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बाली उम्र में ही टूट गई थी कंगना की चूत सील

सितम्बर 24, 2024 by hamari

Hot Actress Sex

मैं मंडी हिमांचल से कंगना अपने तजुर्बे आप लोगों से शेयर करना चाहती हूँ। यहाँ कुदरती खूबसूरती की भरमार है और यह बात यहाँ की लडकियों मैं भी है। हिमांचली लडकियों की खूबसूरती के चर्चे बहुत दूर तक हैं और वोही चर्चे मेरे भी हैं। मैं कॉलेज ख़तम कर चुकी हूँ और अभिनय करती हूँ। Hot Actress Sex

सेक्स की आदत छोटी उम्र से लग गयी और उसका कारण था यहाँ के मर्दों की भूख। एक लड़का अखिल हमारे पड़ोस मैं रहता था और जब भी मैं बाकी बच्चो के साथ खेल रही होती तो वो मुझे साइड पे बुला के मेरे जिस्म पे हाथ फेरा करता और मेरे होंठों को चूसा करता। 10 मिनट ऐसा करने के बाद वह मुझे टॉफी दे देता और बोलता किसी को न सुनाना वरना टॉफी नही मिलेगी।

ऐसा काफी दिनों तक चलता रहा और फिर एक दिन वो मुझे अपने घर ले गया। वहां सोफ़ा पे लिटा के उसने पहले 5 मिनट मुझे चूम चूम के बेहाल कर दिया। फिर अपनी पेंट उतार के मुझे अपना लिंग पकड़ा दिया। मैं हैरान थी क्युकी पहली बार खड़ा लिंग देख रही थी।

उसने मुझे पुछा की टॉफी पसंद है या चोकलेट तो मेने कहा चाकलेट। उसने मुझसे कहा की अगर चाकलेट चाहिए तो उसका लिंग मसलना पड़ेगा। मैं भोली भाली थी। मुझे क्या पता यह सब क्या होता हे। मैं उसका लिंग मसलने लगी और वोह भी मेरे जिस्म पे हाथ फेरने लगा।

फिर उसने मुझे चुम्बन दे के लिटाया और मेरी पेंटी उतार दी और मेरी जान्घों के बीच अपना लिंग फंसा के आगे पीछे झटके देने लगा। साथ ही वोह हमारे मोहल्ले की सबसे सेक्सी लड़की जिसका नाम प्रिया था और जो मेरी दूर की बहन थी उसका नाम ले रहा था। मैं हैरान परेशान सी सोफा पे लेटी हुई यह झेलती रही।

फिर उसने मुझे उलटी लिटा दिया पेट के बल और पीछे से मेरी टांगो में लिंग सटा के धक्कम पेल करने लगा। 5 मिनट बाद उसने मुझे सीधी करके मेरे पेट और जाँघो पे सफ़ेद गाढ़ा पानी निकाल दिया। मैं हैरान हो गयी क्युकी पहली बार यह देखा था।

मेने पुछा यह दही कहाँ से आया तो वोह हस के बोला हाँ यह दही है स्वाद ले के देख मेने ऊँगली से उठा के जीब पे रखा तो अजीव सा नमकीन स्वाद आया। फिर उसने अपनी ऊँगली पे लगा के सारा मुझे पिला दिया। उसके बाद अखिल ने मुझे चोकलेट दी और बोल किसी से ना कहना।

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मुझे चोकलेट पसंद थी और फिर यह सिलसिला चल पड़ा। वह तक़रीबन हर दुसरे या तीसरे दिन मेरा ऐसा करता और बदले में चोकलेट या चिप्स दे देता। पर एक बात थी उसने कभी भी मेरे सुराख़ में लिंग डालने की कोशिश नही की। यह था मेरा पहले योंन सम्बन्ध जो 6 महीने चला।

फिर अखिल के पापा का तबादला किसी और शेहर हो गया। अखिल के चले जाने के बाद अगले कई साल मेरी जिंदगी में कोई नया लड़का नही आया। मैं अब बड़ी हो रही थी और मेरे अंदर नई नई उमंगें जवान होने लगी थी। टीवी पे फिल्मो में दिखने वाले सीन्स मुझे मस्त कर देते।

रोमांटिक सीन्स देख देख के मैं भी अपने हीरो की राह देखने लगी थी। कोई भी लड़का मुझे देखता तो मैं अंदर ही अंदर उम्मीद लगा बैठती की क्या येही हे मेरा अनुरागकुमार। फिर वोह पल आ ही गया जब मेरा अनुरागकुमार मेरे सपनो को पूरा करने चला आया। हमने अपना घर बदल लिया था और नये मोहल्ले में एक किराये के सेट में रहने चले आये थे। यह पुराने मोहल्ले से बड़ा और ज्यादा पोश एरिया था।

मैंने ध्यान दिया की दो लड़के आते जाते मुझे घूर के आपस में बातें करते हैं। वह दोनों क्लास मेट थे और मेरे स्कूल के सीनियर्स भी। मैं भी उनसे बात करना चाहती थी पर उनकी और से पहेल का इंतजार कर रही थी। कुछ दिन बीत गये और मेरी उस मोहल्ले में नई सहेलियां बन गयी।

उनमे से रंगोली दीदी मेरी बेस्ट फ्रंड थी। वोह एकदम खुल्ले ख्यालों वाली पंजाबी कुड़ी थी। मोहल्ले के लडको से उसकी खूब पटती थी। एक शाम को हम पार्क में खेल रहे थे की तभी रंगोली दीदी कहीं गायब हो गयी। उनको ढूँढने के लिए मैं पार्क के पिछले कोने में गयी तो वहां झाड़ियों से मुझे रंगोली दीदी के हस्सने की आवाज़ आई।

मैं चोकन्नी हो गयी और बड़े ध्यान से करीब गयी। वहां जो हो रहा था उस से मेरे होश उड़ गये। रंगोली दीदी को दो लडको ने अपने बीच दबोच रखा था और उनकी स्कर्ट उठी हुई थी कमर तक। मेरे दिमाग में अखिल के साथ बिताये पल याद आने लगे और मेरा जिस्म मस्ती के सैलाब में बहने लगा।

मैं रंगोली दीदी की हरकतों को देख के हैरान भी थी और उनकी हिम्मत की दाद भी दे रही थी। तभी वह दोनों लडको पे मेरी नजर पड़ी तो देखा की यह वही दोनों हैं जो मुझे घूरते थे। मैने ध्यान से उनकी बातों को सुना तो पता चला की वह मेरे ही बारे में बातें कर रहे थे।

रंगोली दीदी ने उनको मेरा नाम बताया और कहा की वह दोनों सबर रखें तो मेरी उनसे दोस्ती करवा देंगी। यह बात सुन के मेरा दिल मस्ती से कूदने लगा और मैं वहां से चली आई। 15 मिनट बाद वह तीनो भी आ गये और रंगोली दीदी ने मुझे बुला के अपने दोनों दोस्तों से परिचय करवाया। उनके नाम अनुराग और विक्रमादित्य था।

अनुराग ऊँचा लम्बा हट्टा कट्टा लड़का था। रंग सांवला और चेहरे पे शेव बनाई हुई थी जिस से अंदाजा हो गया की वह व्यस्क हो चूका था। मोहल्ले के सभी लड़ों पे उसका दबदबा था क्युकी वह बॉडी बिल्डिंग करता था जिम में और अमीर माँ बाप का इकलोता बेटा था। उसके पापा ठाकुर थे।

विक्रमादित्य हिमांचली ठाकुर लड़का था। एकदम गोरा चिट्टा और चिकना पर बातों का उतना ही तेज़ और चिकनी चुपड़ी बातें करने वाला। अनुराग ने दोस्ती का हाथ मेरी और बढाया और मैंने भी बिना देरी के अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया। विक्रमादित्य भी मेरे पास आया और हाथ आगे बढाया पर अनुराग मेरा हाथ छोड़ने को तयार ही नही था।

रंगोली दीदी हँसते हुए बोली कंगना अनुराग का हाथ छोड़ेगी या बेचारा विक्रमादित्य खड़ा रहे। मैं शर्म से लाल हो गयी पर अनुराग ने बेशर्मो की तरह मेरा हाथ पकडे रखा। मुझे मजबूरी में अपने बायें हाथ से विक्रमादित्य का हाथ थामना पड़ा। यह देख के रंगोली दीदी बोली की तुम दोनों नई के चक्कर में पुरानी को भूल तो नही जाओगे।

इस्पे अनुराग ने हस के कहा की चिकनी मालो का साथ नसीब वालों को मिलता है। इस बात पे हम सब खूब खिलखिला के हस दिए और हमारी दोस्ती का सफ़र शुरू हो गया नये माहोल में आ के एज नये खुल्लेपन का एहसास होने लगा था। अनुराग और विक्रमादित्य से दोस्ती कर के नई उमंगे परवान चड़ने लगी थी।

रंगोली दीदी भी खूब बढ़ावा देती थी मुझे। एक दिन शाम को हम सारे छुप्पा छुपी खेल रहे थे। मैं अनुराग के साथ एक दीवार के पीछे छुप गये। विक्रमादित्य रंगोली दीदी के साथ उनके घर के टॉयलेट में छुप गये जो बाहर बना हुआ था लॉन में। अनुराग ने मुझे अपने सामने कर लिया और चुप रहने को कहा।

तभी अक्षित जो हम सबको ढूंड रहा था वहां आया पर हम अनुराग ने मोका देखते मेरा हाथ पकड़ा और विक्रमादित्य के टॉयलेट की और दौड़ पड़ा। मैं भी अनुराग का साथ देती हुई वहां पोहंच गयी। अनुराग ने विक्रमादित्य से दरवाजा खोलने को कहा और फिर हम दोनों भी अंदर घुस गये। अब जो हुआ उसके लिए मैं बिलकुल तयार नही थी।

अनुराग मेरे पीछे खड़ा हो गया और विक्रमादित्य रंगोली दीदी के। फिर विक्रमादित्य ने अपने कूल्हे को रंगोली के नितम्बों पे रगड़ना शुरू कर दिया। मैं आंखें खोल के रंगोली को देख रही थी पर उसने मुझसे कहा ऐसा करने में बहुत मज्जा आता हे। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले अनुराग ने अपने कूल्हे को मेरे नितंबो से लगा दिया।

मेरी सिस्कारियां निकल गयी पर रंगोली ने मेरा हाथ थाम के मुझे चुप रहने का इशारा किया। बाहिर अक्षित हमें ढूंड रहाथा और अंदर हम रासलीला कर रहे थे। अनुराग ने अपना मोटा लम्बा लिंग मेरे नितंबो के बिच की दरार में फस्सा दिया था और अब हलके हलके धक्के दे के वोह मुझे अखिल की याद दिला रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मेने घुटनों जितनी फ्रॉक पहनी थी और वोह भी अब अनुराग ने हाथ से उठानी शुरू कर दी। मेरी गरम सांसें तेज़ी से चलने लगी और अनुराग भी अब अपनी साँसों को मेरी गर्दन गले और पीठ पे छोड़ने लगा जिस से मेरी मस्ती दोगुनी होती गयी। सामने विक्रमादित्य ने रंगोली की स्कर्ट कमर तक उठा ली हुई थी और अपने कूल्हों को बड़ी तेज़ी से उसके नितंबो पे रगड़ रहा था।

हम चारों की तेज़ सांसें उस छोटी सी जगह पे कोहराम मचा रही थी। विक्रमादित्य ने रंगोली की पेंटी घुटनों तक खिसका दी थी। रंगोली की हालत बदहवासी से भरी हुई थी और वह विक्रमादित्य को उकसा रही थी । इधर अनुराग बड़े ध्यान से मेरी हालत पतली करने मैं लगा हुआ था।

मेरी फ्रॉक अब कमर तक उठ चुकी थी। मेरी पेंटी भी घुटनों तक खिस्सक गयी हुई थी और अनुराग का लिंग भी बाहिर आ गया था। मेने अपने नग्न नितम्बों पर उसका गरम नंगा लिंग महसूस किया और बिजली के झटके से महसूस करते हुए अनुराग के अगले कदम का इंतजार करने लगी।

अनुराग ने भी देर नहीं की और सीधे अपने लिंग को मेरी जाँघो के बीच फस्सा दिया। मेरी उमंगें तरोताजा हो गयी और मैं हवस के खेल का खुल के मज्जा लेने लगी। अब मेरी नज़र रंगोली पेपड़ी जो की घोड़ी की तरह झुकी हुई थी और तक़रीबन नंगी हो चुकी थी पूरी तरह।

विक्रमादित्य ने अपने लिंग पे थूक लगा के रंगोली के नितंबो के बीच गान्ड द्वार पर रख के तेज़ धक्का मारा। रंगोली की हलकी चीख निकली और फिर उसने अपने होंठो को दांतों तल्ले दबा दिया। उफ्फ्फ क्या नज़ारा था …. विक्रमादित्य का लिंग रंगोली के अंदर बाहर हो रहा था और रंगोली झुक्की हुई मज्जे ले ले के मरवा रही थी।

मेरा मन किया की काश रंगोली की जगह मैं होती। तभी अनुराग ने अपने लिंग पे थूक लगा दी और फिर मुझे झुकने को कहा। मैं भी बिना सोचे समझे झुक गयी और आने वाले तूफ़ान की तयारी करने लगी। फिर अनुराग ने भी मेरी गान्ड पर थूक लगा के ऊँगली अन्दर घुसा दी। मेरी सांस उपर की उपर और नीचे की निचे रुक गयी।

पर कुछ ही पलों बाद सब सामान्य हो गया और अब अनुराग की ऊँगली पूरी तेज़ी से मेरी गांड में अंदर बाहिर होने लगी। इसके बाद अनुराग ने मेरी गांड में और थूक लगा के अपने लंड को लगा दिया। फिर मेरी पतली कमर को थाम के एक करारा शॉट मारा। मेरी जोर से चीख निकल गयी और मैंने अनुराग को धक्केल के पीछे हटा दिया।

अनुराग ने मुझसे पुछा क्या हुआ तो मैं बोली की बहुत दर्द हुआ। इस्पे अनुराग ने रंगोली की और इशारा करके कहा की यह भी तो पूरा लंड ले रही हे। मैं घबरा गयी थी और गांड मरवाने का शोक मेरे दिमाग से उतर चुका था। अनुराग ने भी मोके की नजाकत को समझते हुए मुझे छोड़ दिया।

मैं उस टॉयलेट से बाहर निकली और अपने घर चली गयी। पर सारी रात अनुराग की अशलील हरकतें बार बार याद आती रही और रंगोली के कारनामे भी नींद उड़ाते रहे उस रात मुझे नींद नही आई। सारी रात करवट बदल बदल कर निकली। सुबह हुई तो मैं स्कूल को तयार हो के चल दी।

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दोपहर लंच ब्रेक में अनुराग मेरे पास आया और हँसते हुए पुछा कल दर्द हुआ था क्या। मेने सर हिला के इशारे से हाँ कहा। वोह बोला शुरू में दर्द होता हे फिर बाद में मज्जा आयेगा जेसे रंगोली लेती हे। मैंने सर हिल के हाँ कहा और फिर पुछा कि रंगोली दीदी को भी पहली बार दर्द हुआ था।

इस्पे अनुराग हस के बोला की रंगोली की जिसने फर्स्ट टाइम ली होगी उसको पता होगा हम तो उसके शिष्य हैं और उस्सी ने हमें यह सब सिखाया। मैं इस बात पे हस दी और अनुराग भी मेरे साथ खूब हँसा। फिर अनुराग मुझे स्कूल कैन्टीन ले गया और चिप्स पेप्सी वगेरा मंगवा दी।

तभी वहां विक्रमादित्य और रंगोली भी आ गये। अनुराग ने उठ के पहले विक्रमादित्य फिर रंगोली को हग किया ओर हम चारो बेठ गये। अनुराग बोला चलो आज बंक मार के फिल्म देखने चलते हैं। मैंने मना किया तो अनुराग ने कहा रंगोली और विक्रमादित्य तुम दोनों चलोगे क्या।

वह तयार हो गये। फिर तीनो स्कूल के पिछले गेट पे गये और अनुराग ने वहां खड़े दरबान को 50 रूपए दिए तो उसने गेट खोल दिया। तभी रंगोली ने मुझे आने का इशारा किया। मेरी कुछ समज में आये उससे पहले अनुराग मेरे पास आया और हाथ पकड़ के साथ चल पड़ा।

मैं कोई विरोध नहीं कर पाई और हम चारो स्कूल से बाहर आ गये। हम सब सिनेमा पोहंच गये और अनुराग ने 4 टिकेट खरीदे। हम अंदर पोहंचे तो फिल्म स्टार्ट हो गयी थी। इमरान हाश्मी और उदिता गोस्वामी की अक्सर में खूब गरमा गरम सीन थे और जब तक हम सीट पे बेठें तब तक इमरान ने उदिता को चूमना चाटना शुरू कर दिया था।

मैं और रंगोली बीच में बेठे और विक्रमादित्य अनुराग हमारे साइड पे। अनुराग मेरी और था इसलिए मैं उसकी शरारतों के लिए मन ही मन तैयार थी। और उसने भी समय बर्बाद नही किया। सीधे अपने हाथ को मेरी जाँघ पे रख के हलके हलके मसलने दबाने लगा।

मैं उस समय उतेजना से भर गयी और अपने सर को उसके कंधे पे टिक्का के उसको ग्रीन सिग्नल देदी। वोह बायें हाथ से जाँघो को मसलने में लगा था और दायें हाथ को मेरे कंधो से होते हुए मेरे उरोजों को मसलने लगा। पहली बार मुझे अपने मम्मों पे किसी मर्द के स्पर्श का असर महसूस होने लगा।

इतना मज़्ज़ा आता होगा मम्मे दबवाने में तो कब की शुरू हो गयी होती। उधर विक्रमादित्य ने रंगोली की स्कर्ट के अंदर हाथ दाल के उसकी हालत खराब कर दी थी। साथ ही वोह उसके मम्मों को बारी बारी से निचोड़ रहा था। मैं उसकी हरकतों को देख रही थी की तभी विक्रमादित्य ने मेरी और देख के गन्दा इशारा किया।

मैं नाक मरोड़ के उसके इशारे को अनदेखा कर दिया। तभी उसने रंगोली की शर्ट के उपर वाले 2 बटन खोल के उसमे अपना हाथ घुसा दिया। मेरी तो आंखें फटी की फटी रह गयी पर रंगोली उसका पूरा साथ देती हुई मुस्कुराती हुई मम्मे दबवाती रही। यहाँ अनुराग ने भी अपनी हरकत तेज़ करते हुए मेरी शर्ट के 2 बटन खोल दिए और हाथ अंदर दाल दिया।

मेरी चीख निकल गयी पर उसनेदुसरे हाथ से मेरा मुह दबा दिया। विक्रमादित्य रंगोली और अनुराग तीनो मुझे घूर के देखने लग्गे। मैं भी शर्मिंदा महसूस करती हुई सोरी सोरी कहने लगी। रंगोली ने मुझे डांट लगाते हुए कहा की अब मैं बच्ची नही रह गयी हूँ। मैं भी शर्म से लाल हो गयी थी और उसको भरोसा देते हुए बोली की आगे से ऐसा नही होगा।

मैं शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। अनुराग का हाथ मेरी शर्ट के अंदर था और मेरे नग्न उरोजों के साथ जी भर के खेल रहा था। मैं अपनी कक्षा की उन गिनी चुनी लड़कियों में से थी जो ब्रा पेहेन के आती थी। रंगोली मुझसे 2 कक्षा आगे थी परन्तु मेरे उरोज उसके उरोजो को अभी से टक्कर देरहे थे।

अनुराग ने मेरी ब्रा में हाथ डाला हुआ था और मेरे चिकने मम्मे कस कस से निचोड़ने में लगा हुआ था। मेरी हालत खराब होती जा रही थी। चुनमूनियाँ से रस बह बह के पेंटी को गीली कर चूका था। सांसें उखाड़ने लगी थी हवस के सैलाब में। उधर मेरी दाएँ ओर बेठी रंगोली की हालत मुझसे भी खराब थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

विक्रमादित्य कभी रंगोली के होंठ चूसता तो कभी अपना मूंह उसके मम्मों पे रख देता जिन्हें वोह ब्रा से बाहर निकाल चूका था। रंगोली के निप्पल मूंह में लेके वोह चूसे जा रहा था और रंगोली के चेहरे पे हवस के रंग साफ़ झलक रहे थे। हमारे आस पास भी येही सब चल रहा था।

जवान जोड़े अपनी रंग रलियों में बेखबर योंन सुख का आनंद ले रहे थे। अब विक्रमादित्य ने अपनी अगली चाल चलते हुए ज़िप खोल के अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। रंगोली ने भी झट से उसके चार इंची लिंग को थाम के मसलना शुरू कर दिया। उनको देख अनुराग केसे पीछे रहता।

उसने भी ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाल लिया। उफ्फ्फ में उसका लंड देखते ही परेशान हो गई क्युकी वह विक्रमादित्य के लिंग से दो इंच लम्बा ओर दो गुना मोटा था। उसका लंड अभी से कॉलेज के लडको के साइज़ का हो गया था। मैंने अपने कांपते हुए हाथ उसके लंड पे रख के महसूस किया की उसके लंड में आग जेसी गर्मी और दिल जेसी धड़कन थी।

मेरे हाथ का स्पर्श पाते ही अनुराग का लंड उछल उछल के हिलने लगा। अनुराग अपने हाथो से मेरे जिस्म को गरमा रहा था और मैं भी जोश में आ के तेजी से उसके लिंग पे अपने हाथ फिसला फिसला के योंन सुख ले रही थी। उधर रंगोली के हाथ तेजी से विक्रमादित्य का हस्त मैथुन कर रहे थे कि तभी विक्रमादित्य के लिंग से सफ़ेद गाढ़ा माल पिचकारी मारता हुआ छूट गया और रंगोली के हाथों को भर गया।

इधर मैं जोश से भर गयी और तेजी से अनुराग के लंड की सेवा करने लगी। कुछ पलों में अनुराग ने भी अपनी पिचकारी छोड़ दी पर उसने मेरे सर को थाम के अपने लंड पे झुका लिया जिस कारण उसका माल मेरे हाथों से साथ साथ ठोड़ी और होंठो पे भी गिरा। पूरानी यादें ताज़ा हो गयी जब मेने अपने होंठो पे जीभ फेरी। वोही नमकीन सा स्वाद और चिपचिपा एहसास।

हमने अपने आप को संभाला और साफ़ सफाई करके बैठ गये। फिल्म ख़त्म हुई और हम सब बाहिर आ गये। मैं शर्म से सर झुका के चल रही थी पर रंगोली के चेहरे पे कोई शर्म नही थी। वह उन दोनों लड़कों से हस हस के बातें करती चलती रही। तभी अनुराग ने मेरा हाथ थाम लिया और पुछा क्या बात है चुप क्यूँ हो।

इसपे मेने अनुराग की आँखों में आंखें ड़ाल के कहा कि यह सब ठीक नही जो हम कर रहे हैं। अनुराग मुस्कुराया और बोला तुम मेरी गर्ल फ्रेंड बनोगी। मैं ख़ुशी से फूले नही समा रही थी और मेने झट से सर हिला के हामी भर दी। शायद मुझे विकी से प्यार हो गया था.

सिनेमा के अंदर हुए अनुभव ने मुझे बोल्ड बना दिया था और अब मैं काफी खुल गयी थी। स्कूल और घर दोनों जगह अनुराग मेरे साथ मस्ती करने का कोई मोका नही छोड़ता। अनुराग के लिंग का हस्त-मैथुन करते करते और उस से निकले वीर्य का स्वाद लेते लेते दो हफ्ते हो गये थे।

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फिर एक दिन शनिवार को हाफ-डे स्कूल छुट्टी के बाद अनुराग मुझे अपने घर ले गया। वहां उसने मुझे अपना आलिशान दो मंजिला बंगला दिखाया। उस समय वहां उसके नोकर के सिवा कोई ओर नही था। फिर अंत मैं जब पूरा बंगला अन्दर बाहर से देख लिया तो वह मुझे अपने मम्मी-पापा के बेडरूम ले गया।

वहां उसने एक अलमारी खोली और किताबों के निचे से एक मैगज़ीन निकाली। मैं तब तक बिस्तर पे बेठ चुकी थी। अनुराग ने वो रंगीन मैगज़ीन मेरे सामने रख के कहा यह ब्लू-मैगज़ीन हे। मेने पहले कभी ब्लू-मैगज़ीन नही देखी थी पर देखने की इच्छा जरुर थी। मेने पहला पन्ना खोला तो दंग रह गयी।

उसपे ढेर सारी तसवीरें थी जिन में अंग्रेज युगल सम्भोग की अलग अलग क्रिया में दिख रहे थे। मेने अनुराग की और देखा और मुस्कुराते हुए पुछा कि ये गन्दी मैगज़ीन कहा से लायी तो उसने बिलकुल बेबाकी से कह दिया की मम्मी पापा की हे। मैं हैरान हो गयी और दो पल के लिए यह सोचने लगीकहीं मेरे मम्मी पापा भी तो ऐसी गन्दी मैगज़ीन नही देखते।

खैर मैं वापिस मैगज़ीन में खो गयी और पन्ने पलटा पलटा के सेक्स को नये तरीके से जानने लगी। उसमे हस्त-मैथुन तो था ही पर पहली बार गान्ड-मैथुन, मुख-मैथुन और चुनमूनियाँ-मैथुन के नज़ारे देखने को मिल रगे थे। ओर साथ ही साथ एक मर्द-दो लडकियां या एक लड़की-दो मर्द एकसाथ सेक्स करते देखने को मिले।

यह सब देख देख के मेरी हालत का अंदाज़ा आप सब लगा ही सकते हो, एक तो कच्ची उम्र उपर से बॉय-फ्रेंड का साथ। मेरी चुनमूनियाँ गीली होचुकी थी और जिस्म हवस की गर्मी से लाल हो गया था। अनुराग भी शायद इसी मकसद से मुझे अपने घर लाया था और अब मेरी हालत से उसको मेरे किले में अपना झंडा गाड़ के जीत का जशन मनाने का आसान मोका दिख रहा था मैगज़ीन देखते देखते मेरा मन बोहत विचिलित हो चूका था।

मेरे हाथ पैर थरथरा रहे थे ओर सर भारी हो गया था। जेसे जेसे पन्ने पलट रही थी वेसे वेसे हवस की दासी बनती जा रही थी । अब अनुराग ने अपनी चाल चली और मुझे पकड़ के पेट के बल लिटा दिया और खुद मेरे उपर चढ़ गया । मैं कुछ कहती उस से पहले मैगज़ीन मेरे सामने रख दी और बोला ऐसे देख।

उसका 6 इंची लंड मेरे पिछवाड़े की दरार में सटा हुआ महसूस हो रहा था। अब अनुराग मैगज़ीन के पेजपलटा रहा था और मुझे समझा भी रहा था की यह पोज केसे लेते हैं। पर मेरा ध्यान अब उसके लिंग पे था जो मेरे पिछवाड़े को निहाल कर रहा था। मेने स्कूल ड्रेस पहनी हुई थी, स्कर्ट और शर्ट।

अनुराग ने अब मुझसे कहा की वो मुझे मैगज़ीन वाला मज्जा देना चाहता हे। मेने भी व्याकुल मन सेहामी भर दी ओर उसको ग्रीन सिग्नल दिया। अनुराग ने मेरी स्कर्ट उठाना शुरू किया। मेरी चिकनी जवानी नंगी होती जा रही थी। स्कर्ट कमर तक उठा देने के बाद अनुराग ने मेरी पेंटी झटके से निचे खींच दी और पेरों से बाहर करके मुझे कमर के निचे पूरी नंगी करके मेरे चिकने शरीर पे अपनी हाथ फेरने लगा।

अब मैं बिलकुल से हवस की गिरिफ्त में थी ओर अनुराग की अगली चालका इंतजार करने लगी। तभी अनुराग ने मैगज़ीन को वोह पन्ना खोला जिस पे गान्ड-मैथुन की तस्वीर थी । मैं अनुराग का इशारा समज गयी और मन ही मन से खुद को तयार करने लगी।

अनुराग ने अब मेरे चिकने मांसल और गान्ड चुतड की दो फांको को अपने दो हाथो से चीर के अलग किया और फिर पुछा की थूक लगाऊं या तेल? मेने कोई जवाब नही दिया तो उसने थूक लगा के मेरी गांड को चिकनी करना शुरू कर दिया। अच्छी तरह से थूक लगाने के बाद उसने ऊँगली मेरी गांड में घुसा दी।

मेरी हलकी सी चीख निकली पर ऊँगली अंदर घुस चुकी थी और अब अनुराग उसको अंदर बाहर करने लगा। मेरे अंदर हवस का तूफ़ान तेज होता जा रहा था। अनुराग ने अब ऊँगली निकाल ली और फिर से थूक लगा के गांड को चिकनाई से भरने लगा। फिर उसने अपनी पेंट उतार दी।

अपने लिंग पे थूक लगा कर मेरे गान्ड-द्वार पे थूका और उसपे लिंग टिका के बोला – रंडी, तयार हो जा। थोडा दर्द होगा पहले फिर मज़ा ही मज़ा। मेने लम्बी सांस ली और शरीर ढीला छोड़ दिया। अनुराग ने मेरे चुतड खोल के लंड को एक झटका देते हुए मेरी गांड में घुसेड़ना चाहा पर सुराख तंग होने के कारण लंड फिसल गया।

अनुराग ने मुझे अपने दोनों हाथ पीछे लाने को कहा और बोला कि में अपने चुतड हाथो से फैला लू। मेने वेसा ही किया ओर अब अनुराग को आराम से लंड अंदर डालने का अवसर मिल गया। अगले ही पल अनुराग के लिंग-मुंड ने मेरी गांड के तंग सुराख को चीरते हुए जगह बना के अंदर प्रवेश पा लिया।

मेरी तेज़ चीख निकली पर अनुराग ने मेरा मूंह बंद कर दिया और अब तेज़ी से धक्के मार मार के अपने लंड को मेरी तंग गांड में घुसाता गया। मैं पीड़ा से कराह रही थी पर अनुराग ने मेरा मूंह बंद कर रखा था। ८-१० धक्कों के बाद वोह रुक गया और मेरे मूंह से हाथ हटा के मेरे ऊपर लेट गया।

मैंने अनुराग से रोते हुए कहा कि मुझे छोड़ दे यह सब मुझसे नही होगा। उसपे अनुराग ने कहा की अब रोती क्यों हे लंड पूरा अंदर हे। मुझे यह जान के थोड़ी राहत मिली की लंड पूरा अंदर था। अब मेने अपने शरीर को ढीला कर दिया जो कि अब तक अकड़ा हुआ था दर्द से। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

अनुराग ने भी धीरज रखा ओर कुछ देर में ही मेरा दर्द काफी कम हो चूका था। अनुराग ने लंड पूरा बाह रखिंच के फिर से मेरी गांड और अपने लंड पे थूक लगा के फिर से पोजीशन बनाई ओर अब की बार आराम से लंड अंदर घुसाने लगा। इस बार दर्द कम हुआ ओर मज़ा ज्यादा आया। मेने भी शरीर ढीला छोड़ दिया ओर अनुराग को आराम से मारने को कहा।

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अनुराग अब स्पीड बढ़ा के तेज़ी से मेरी ले रहा था। साथ ही बोल रहा था की रंगोली से ज्यादा मज़ा तेरे साथ आ रहा हे। तुम कुडियां मस्त होती हो ओर मज्जे से गांड मरवाती हो। मैं यह जान के खुश हुई की रंगोली से ज्यादा मज़ा मुझ में था और अब में भी गांड उठा उठा के लंड लेने लगी।

यह देख के अनुराग का जोश दोगुना हो गया ओर उसने मेरी कमर थाम के मेरी गांड में ताबड़तोड़ धक्के मारना शुरू कर दिया। मैं भी जोर जोर से सिस्कारियां मारती हुई गांड मरवा रही थी कि तभी अनुराग मेरे उपर निढाल सा गिर गया ओर उसके लंड से वीर्य की धार मेरे अंदर बहने लगी।

2 मिनट वेसे ही मेरे उपरपढ़ा रहने के बाद वोह उठा ओर तोलिये से अपना लंड साफ़ करके मेरी गांड पे रख दिया। में सीधी हुई ओर अपनी गांड को तोलिये से साफ़ करके पेंटी पहन ली। अब तो सिलसिला चल पड़ा था मेरा और अनुराग का। जब भी मोका मिलता अनुराग मुझे घर पे या स्कूल में दबोच के मेरी ले लेता।

पर धीरे धीरे मुझे एहसास होने लगा था कि इस सब में प्यार तो हे ही नही। अनुराग कभी भी मुझे किस नही करता और न ही प्यार भरी रोमानी बातें करता। वह बस मोका मिलते ही मुझे झुका के स्कर्ट उठाता, पेंटी उतारता और थूक लगा के मेरी गांड मार लेता। एक दिन मेने रंगोली दीदी से इस बारे में बात की।

उसने मुझे यकीन दिलाया कि अनुराग बोहत अछा लड़का हे ओर मुझे उस जेसा बॉय-फ्रेंड नही मिलेगा। तभी अनुराग और विक्रमादित्य वहां आ गये। रंगोली ने अनुराग को झिडकी लगा के मेरा ख्याल रखने को कहा। विक्रमादित्य को मोका मिला और उसने अनुराग को मेरा ख्याल रखने की सलाह देते हुए यह कह दिया कि अगर वोह ख्याल नही रखेगा तो में रखूगा।

विक्रमादित्य की आँखों में अजीब सी चमक थी, ओर मुझे पहली बार विक्रमादित्य में एक अछा इन्सान नजर आया। वेसे देखने में ओर बोल-चाल में विक्रमादित्य अनुराग से कई कदम आगे था ओर मेने पहली बार ध्यान दिया की विक्रमादित्य अनुराग से कितना गोरा चिकना ओर स्मार्ट था।

स्कूल ख़त्म होने के बाद हम चारो बाहर निकले ओर अनुराग के कहने पे पास के रेस्टोरेंट की ओर चल दिए। अनुराग मेरी दायें ओर था पर उसका ध्यान मुझसे ज्यादा रंगोली में था। विक्रमादित्य मेरी बाएँ तरफ था ओर बार बार मेरी आँखों में आंखें डाल के कुछ कहने का यतन कर रहा था।

तभी चलते चलते उसने अपना हाथ मेरे नितम्ब पे चिपका दिया। मेरी सिसकारी निकल गयी पर उसने जल्दी हाथ हटा लिया। मेने उसकी ओर देखा तो वोह मुस्कुरा दिया। मैं भी उसकी बेशर्मी से भरी मुस्कान पे लुट सी गयी ओर मुस्कुरा दी। हम सब अंदर बैठे बातें कर रहे थे।

विक्रमादित्य मेरे सामने और अनुराग रंगोली के सामने था। तभी मुझे किसी के पेर अपनी टांग से छुते हुए महसूस हुए। मुझे लगा अनुराग ही होगा इसलिए विरोध नही किया और बेठी रही। आहिस्ते से वो पेर मेरी दोनों टांगो के बिच से घुटनों तक आ गये। पर अनुराग तो ऐसी हरकतें करता ही नही था।

वह तो बस मेरे गदराए चुनमूनियाँडों का दीवाना था। खैर, थोड़ी देर बाद हम वहां से चल पड़े। मेरा ध्यान विक्रमादित्य की पेंट की ओर गया तो समझ गयी की मुझे पेर से कोन छेड़ रहा था। विक्रमादित्य की पेंट में टेंट बना हुआ था । मैं मुस्कुरा गयी। शर्म के मारे चेहरा लाल हो गया।

विक्रमादित्य ने भी मेरी नजर पकड ली थी जब में उसके लिंग को घूर रही थी। वह भी मुझे देख मुस्कुराया ओर एक फ्लाइंग किस चोरी से मेरी ओर भेज दी। मेने भी आंख के इशारे से उसे जता दिया कि मेने उसकी फ्लाइंग किस कबूल कर ली। धीरे धीरे विक्रमादित्य मेरे करीब ओर अनुराग मुझसे दूर होते जा रहे थे।

एक दिन हम चारो अनुराग के घर शनिवार के दिन हाफ-डे छुट्टी के बाद गये। वहां हम विकी के मम्मी पापा वाले बेडरूम में बैठे थे जहाँ विकी ने कोई बीस बार मेरी गांड ली होगी। बातों बातों में ही ब्लू-फिल्मो पे आ गये तो पता चला की रंगोली को ऐसी फिल्म्स देखते हुए दो साल हो चुके थे ओर यह बात भी पता चली की विकी ने रंगोली को भी इस कमरे में बुला के फिल्मे देखी हैं।

धीरे धीरे माहोल गरम हो गया। रंगोली ने बताया की जब पहले पहले विकी उसकी लेता था तो दर्द कितना हुआ करता था। इस बात पे मैंने भी अपने दर्द भरे एहसास को बता दिया। फिर बात विक्रमादित्य ओर विकी के लिंग के साइज़ की हुई तो दोनों ने अपने कपडे उतार के तन्ने हुए लंड सामने करते हुए बोला बताओ कोन किसका पसंद करती हे।

रंगोली ने झट से विकी का ६ इंची मोटा लंड पकड़ लिया। मेरी नज़रें विक्रमादित्य के पांच इंची गोरे चिकने लंड पे टिक्की हुई थी। पर शर्म के मारे मेने कोई हरकत नही की ओर चुप चाप बेठी रही। तभी विक्रमादित्य रंगोली की ओर बढ़ा और उसके होंठों को अपने मूंह में भर के रसपान करने लगा।

रंगोली को उन दोनों के साथ खुल के अय्याशी करते देख मुझे विकी की दिखाई हुई ब्लू-मैगज़ीन याद आई जिस में एक लड़की 2 या 3 मर्दों के साथ लगी होती थी। तभी अनुराग ने पुछा किसे किसे ब्लू-फिल्म देखनी हे। हम सब ने एक स्वर में हामी भर दी। अनुराग ने अलमारी से एक cd निकाली ओर dvd player में डाल दी। फिल्म शुरू हो गयी ओर साथ ही साथ उन तीनो की अय्याशी भी।

रंगोली उन दोनों को बड़ी आसानी से संभाले हुए थी। एक तरफ अनुराग का लंड हाथों में सहलाते सहलाते और तगड़ा कर रही थी दूसरी तरफ विक्रमादित्य से अपने होंठो को चुसवा चुसवा के मदमस्त कर रही थी। ब्लू-फिल्म शुरू हो चुकी थी ओर मेरा सारा ध्यान उसमे होने वाले हवस के प्रदर्शन पे चला गया।

एक इंडियन सी दिखने वाली लड़की को दो अंग्रेजो ने घेर रखा था ओर बारी बारी से उसके जिस्म से खिलवाड़ कर रहे थे। कभी मम्मे चूसते तो कभी होंठो का मदिरापान करके उसकी मदहोशी बढ़ाते। इधर अनुराग ओर विक्रमादित्य पूरे नंगे हो के रंगोली को भी नग्न करने में जुट गये।

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यह सब देख के मेरे दिल-दिमाग पे गहरा असर पढ़ रहा था। प्यार ओर हवस के बीच का फर्क अब बेमानी हो गया था। जिस अनुराग से पहले मुझे प्यार हुआ ओर जिस विक्रमादित्य के लिए मेरे दिल में नये जज्बात उभर रहे थे वह दोनों मेरी आँखों के सामने मेरी सहेली ओर स्कूल की सबसे चालू माल के साथ हवस का नंगा नाच खेल रहे थे।

पर मैं भी तो रंगोली की राह पे चल पड़ी थी। अब मेरे लिए पीछे हटना संभव नही था। दो-दो हवस भरे नज़ारे देख के मेरा दिमाग मेरे काबू से बाहिर होता जा रहा था। मैंने भी अब अयाशी के समुन्द्र में डुबकी लगाने की ठान ली ओर उन तीनो के देखते देखते अपने जिस्म से स्कूल यूनिफार्म की स्कर्ट ओर शर्ट उतार के बिस्तर पे उनके साथ जा मिली।

हम चारों नंगे बेड पे ब्लू-फिल्म का आनंद ले रहे थे। मुझे नंगी देख विक्रमादित्य ने रंगोली को छोड़ के मेरे पास आ गया था। ओर फिर मेरी नंगी कमर में हाथ डाल के अपने चिकने नंगे गोरे बदन से चिपका लिया। मैं भी शरम लाज की सभी सीमाओं को लाँघ के विक्रमादित्य से चिपक गयी।

फिर विक्रमादित्य ने मेरे रसीले होंठो का रसपान शुरू किया ओर निचे से एक ऊँगली मेरी योनि में घुसा दी। मेरी चीख निकली ओर तभी अनुराग ओर रंगोली का ध्यान मेरी ओर गया। मैं विक्रमादित्य से अलग हो के अपनी योनि पर हाथ अखे हुए लेटी थी। विक्रमादित्य परेशान ओर अनुराग हैरान था।

विक्रमादित्य ने पुछा की तेरी इतनी टाइट क्यों हे। अनुराग तो बोलता हे कि इसने कई बार ली हे तेरी। इस पर मेने कहा की अनुराग पीछे वाली लेता हैं। मैं आगे से कुवारी हूँ। रंगोली यह बात सुन के हस दी ओर बोली – अनुराग ने तेरी पीछे वाली सील तोड़ी है, अब आगे वाली विक्रमादित्य तोडेगा।

यह सुन के मैंने विक्रमादित्य की ओर देखा तो वोह चमकती आँखों से मेरी ओर देख के बोला – तयार है जानेमन अपनी सील तुडवाने को? मैं थोडा सा घबरा गयी ओर प्रेगनेंसी के डर से उनको अवगत करवाया। मुझे माँ नही बनना था इसलिए मेने उनसे बता दिया जो मेरे दिल में था।

रंगोली ने हस्ते हुए कहा की घबरा मत कुछ नही होगा। में भी तो चुनमूनियाँ देती हूँ। मैं कभी प्रेग्नेंट नही हुई। मेने पुछा केसे तो उसने मुझे सेफ पीरियड, कंडोम, माला-डी और एबॉर्शन के बारे में सब बताया। जब मुझे संतुष्टि हो गयी तो में भी चुनमूनियाँ संभोग के लिए तैयार हो गयी।

मैंने विक्रमादित्य के लिंग को हाथों में ले के मसलना शुरू किया। उधर रंगोली झुक के अनुराग के लंड को चूस रही थी जेसे ब्लू-फिल्म में हो रहा था। विक्रमादित्य ने मुझे इशारा किया चूसने का। मैं भी झुक गयी ओर मूह खोल के उसके गोरे लंड का सुपाडा मूंह में ले के चूसने लगी। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् …. क्या नज़ारा था।

हिमांचल की दो सबसे हसीन रंडिया झुक के अपने मुंह में लंड लिए हुए थीं ओर दोनों एक दुसरे से आगे बढ़ना चाहती थी। रंगोली अनुभवी थी ओर लिंग को धीमी लय से चूस रही थी। वहीँ मैं जोश से भरी हुई तेज़ी से लिंग-मुंड पे अपने रसीले होंठ चला रही थी। विकी ओर विक्रमादित्य के जिस्म मचल रहे थे ओर वे किसी भी समय झड सकते थे।

तभी अनुराग ने अपना लंड रंगोली के मुंह से खीँच लिया ओर मेरे पीछे आ गया। मैं विक्रमादित्य का लंड चूसने में व्यस्त थी की तभी मेरे मांसल चुतडों के बीच मुझे विकी का फनफनाता लंड महसूस हुआ। मेने विक्रमादित्य के लिंग को मुंह से निकाल के पीछे देखा तो विकी तयार था ओर तभी मेरी गांड में तेज़ दर्द के साथ उसका मोटा सुपाडा प्रवेश कर गया। मेरे मुंह से चीख निकली – हाय रब्बा …ओउह ओह आओह … आज तो बहुत मोटा लग रहा है, अनुराग!”

अनुराग अपने फूले हुए लंड को मेरी गांड की गहराइयों में अंदर ओर अंदर करता गया तेज़ धक्कों से। उधर विक्रमादित्य ने फिर से मेरे मुंह में अपने लिंग को ठूस दिया ओर अब कंगना दो दो लंड अपने अंदर ले के निहाल हुए जा रही थी। अनुराग के धक्के तेज़ होते गये ओर कुछ ही पलों बाद उसका कामरस मेरी गान्ड में बह निकला।

में भी अनुराग को झड़ते हुए महसूस कर रही थी। उसके लंड की नस्सें फूल ओर सिकुड़ के मेरी चिकनी गांड में वीर्य का सैलाब भर रही थी। मुझे गरम लावा अपने अंदर बहता हुआ महसूस हो रहा था। अब अनुराग निढाल हो के बिस्तर पे गिर गया पर मुझे आज़ादी नही मिली क्युकी विक्रमादित्य मेरे मुंह में लय बना के धक्के देता हुआ मेरा मुख-मैथुन कर रहा था।

कुछ देर बाद वह मेरी टांगो के बीच आ गया ओर अपने लिंग को मेरी करारी चुनमूनियाँ पे रगड़ने लगा। में जानती थी अब क्या होने वाला था पर अपना कुवारापन खोने का डर तो हर भारतीये लड़की को होता ही हे। मेने विक्रमादित्य से रुकने को कहा पर इस से पहले की में कुछ समज पाती विक्रमादित्य ने तीर निशाने पे छोड दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

तीखे दर्द से में एकदम दोहरी हो गयी ओर चीख चीख के विक्रमादित्य को मेरी चुनमूनियाँ से अपना लिंग निकालने की गुजारिश करने लगी। पर मेरी किसी बात का उस पर असर नही हुआ ओर वो मुझे बिस्तर में दबा के मेरी चुनमूनियाँ की गहराई नापने में जुट गया। दूसरी ओर रंगोली कुत्ती पोज में झुकी हुई थी और अनुराग उसकी गांड पीछे खड़ा हो के ले रहा था।

उसके लम्बे केश अनुराग ने लगाम की तरह पकड रखे थे ओर खींच खींच के लंड पेल रहा था अंदर बाहर। हम दोनों अपने रब को याद करके “लंड महाराज” का जाप कर रही थी जब की विक्रमादित्य ओर अनुराग दोनों अपने अपने लंड से हमारी सेवा में जुट गये थे।

मेरे दर्द में अब कुछ कमी होने लगी क्योंकि चुनमूनियाँ पनिया चुकी थी जिस से लंड को अंदर बाहर करना में आसानी ही रही थी। विक्रमादित्य ने चुदाई की रफ़्तार बढ़ा ली ओर दूसरी तरफ अनुराग ने तो शताब्दी रेल की भांति रंगोली की गांड में तूफ़ान भर दिया था। आखिरकार वह पल आ ही गया ओर हम चारों एक साथ अपने चरम पे पहुँच गये।

मैं ओर रंगोली “… हाय रब्बा.. ओह… आह् मार…” कहती हुई झड़ने लगी तो दूसरी तरफ विक्रमादित्य ओर अनुराग “ओह … आह … ये ले मेरा पानी … और ले … मज़ा आ गया, रंडी!” जेसे शब्द बोल के हमारे अंदर ही झड गये। चुनमूनियाँ समागम द्वारा यह मेरे जीवन का पहला स्खलन था।

शारीरिक ओर मानसिक तौर पे जिंदगी का सबसे हसींन एहसास जो एक उफनते हुए सैलाब की भांती सारे बाँध तोड़ के बाहिर निकल आया था। यह कुछ ऐसा नशा था जिसकी लत्त पहली ही बार में लग गयी थी। अगले कुछ मिनटों तक में बेसुध सी बिस्तर में पड़ी रही। जब मुझे होश आया तो विक्रमादित्य की जगह अनुराग मोर्चा संभाल चूका था। रंगोली ने चूस चूस के उसका लंड रॉड जेसा सख्त कर दिया था। अनुराग मेरी चिकनी गोरी जाघों के बीच पोजीशन बना के बैठा था।

मैंने कहा – अनुराग, यह क्या कर रहे हो? तुमने अभी तो ली थी!

उसने कहा – अब तक तो सिर्फ गांड ली है तेरी। अब तेरी चुनमूनियाँ का भी मज़ा लूँगा।

तभी विक्रमादित्य बाथरूम से निकला ओर बिस्तर का नजारा देख के मेरे पास आ गया। उसने मेरे कान में कहा – रंगोली से ज्यादा मज़ा तेरी लेने में आया। अब अनुराग को भी दिखा दे कितना मज़ा है तेरी चुनमूनियाँ में।

उसने अनुराग को इशारा किया ओर मेरे होंठो पे अपना मुंह रख दिया। मैं उसके किस में खोई थी तभी अनुराग ने अपना ६ इंची हथियार मेरी चुनमूनियाँ में घुसा दिया … मेरी चीख भी विक्रमादित्य ने निकलने नही दी अपने मुंह को मेरे मुंह पे दबा के। अनुराग ने आव देखा ना ताव ओर जंगली सांड की तरह मेरी कमसिन करारी चुनमूनियाँ में ताबड़ तोड़ अपना लौडा पेलता चला गया।

मैं अपने रब्ब को याद करने लगी। कुछ देर बाद दर्द कम हुआ तो विक्रमादित्य ने मेरे मुंह से अपना मुंह हटा लिया। अब मैं खुल के चुदवाने लगी। पीड़ा की जगह अब आनंद ने ले ली थी ओर में बढ़ चढ़ के उनका साथ देने लगी। विक्रमादित्य ने मेरे निम्बू जितने उरोज को हाथों से मसलना शुरू किया ओर अनुराग ने मेरी दोनों चिकनी गोरी टांगो को उठा के अपने कंधो पे रख लिया।

अब तो चुदवाने में मुझे जन्नत का मज़ा आने लगा और में “चोद अनुराग, चोद … जोर से … ! ओर अंदर घुसा! … ओर अंदर!” जेसी बातें बोल के अनुराग को उकसाने लगी। अनुराग भी मेरे इस बदले हुए रूप को देख के बोखला गया ओर एकदम वेह्शी बन के मेरी चुनमूनियाँ कि घिसाई करने लगा।

कुछ देर में मेरी चुनमूनियाँ ने पानी छोड़ दिया ओर मैं झड गयी। मेरे बाद ही अनुराग भी झड गया ओर मेरे उपर निढाल सा हो के गिर गया। दो बार चुद कर मेरी चुनमूनियाँ सूज गयी थी। अनुराग और विक्रमादित्य बाहर रंगोली से गप्पें मार रहे थे और में अंदर बिस्तर से उठने की कोशिश कर रही थी।

फिर जेसे तेसे में कांपती टांगो से चल के बाथरूम गयी और खुद को शावर के नीचे खड़ी कर के नहा धो के साफ़ करने लगी। फिर नहा के यूनिफार्म पहनी और बाहर निकली, मुझे देख के उन तीनो ने बातें बंद कर दी। में बड़ी मुश्किल से चल पा रही थी। रंगोली मेरे पास आयी और बोली की ऐसे घर जायगी तो सब शक करेंगे।

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वो मुझे फिर से अंदर ले गयी और अनुराग से बोली की दूध गरम कर दे। फिर उसने विक्रमादित्य को बाज़ार से पैन किलर लाने को कहा। अब मेरे साथ बैठ के रंगोली ने अपने पहले यौन अनुभव के बारे में बताया। आज से 3 साल पहले उसका कोमार्य ट्यूशन वाले सर ने लिया था और तब उसकी भी ये ही हालत हुई थी। फिर उन्होंने गरम दूध और पैन किलर टेबलेट दी थी जिस से बहुत आराम मिला था। करीब आधे घंटे बाद में घर जाने की स्थिति में थी। उस रात मुझे नींद नही आई।

एक तरफ कुंवारापन खोने का दुःख तो दूसरी और जिंदगी में पहली बार स्वर्ग का एहसास कराता यौन स्खलन। एक तरफ लिंग से मिलने वाला दर्द तो दूसरी और उस्सी लिंग से मिलने वाला सुख। एक तरफ हवस में डूबे तीन खुदगर्ज़ लोग तो दूसरी तरफ मेरी तकलीफ का हल ढूँढ़ते हुए वोही तीन दोस्त। बस इसी कशमकश में सारी रात निकल गयी और सुबह 4 बजे कहीं जा के थोड़ी सी नींद आई। अगले एक महीने मेरी जम कर चुदाई हुई। विक्रमादित्य ओर अनुराग ने मुझे काम क्रीडा में निपुण बना दिया था और रंगोली तो थी ही एक्सपर्ट एडवाइज के लिए।

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  1. .... says

    सितम्बर 25, 2024 at 12:30 पूर्वाह्न

    BSDK Congress ka choda teri maa randi

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