Indian Office Girl XXX
मेरा नाम अशोक… मैं 40 साल का हूँ, भोपाल का रहने वाला हूँ और एक प्राईवेट ऑफिस में क्लर्क के पद पर कार्यरत हूँ। दो साल पहले तक मेरी आर्थिक स्थिति सही नहीं थी, किसी तरह गुजर बसर चल जाता था, पर दो साल पहले इस प्राईवेट कम्पनी का ऐड आया था और उस ऐड को पड़ने के बाद मैं भी इन्टरव्यू देने गया। Indian Office Girl XXX
इन्टरव्यू देते समय पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि मेरे आँखों से आँसू निकल पड़े। शायद विश्वास नहीं था अपने ऊपर… लेकिन जो मैडम थी, शायद 25 वर्ष की थी, साधारण नाक नक्शे की थी, उनकी दया के कारण मुझे वो नौकरी मिल गई। हालाँकि सैलरी कम थी, लेकिन बंधी-बंधाई सैलरी मिलने की आस में मैंने उस काम के लिये हाँ कर दिया। अगले दिन से मैं काम पर लग गया।
वो मैडम जिसका नाम सौम्या है एक कुछ सख्त मिजाज की लेडी है। उसने मुझे अपने ही चेम्बर में एक कोने की सीट दिखाई और मुझे काम समझाने लगी। वैसे तो वो किसी बात का बुरा नहीं मानती थी, लेकिन अगर किसी का काम अधूरा हो, तो फिर उस बन्दे की शामत ही थी, चाहे फिर वो लड़की हो या लड़का।
उसका कपड़ा पहनने का तरीका बहुत ही उत्तेजक था… वो टीशर्ट और जींस ही अकसर पहनती थी। वो कपड़े बहुत ही टाईट पहनती थी, इससे उसके पुट्ठे और छाती का उभार खुल कर प्रदर्शित होता था। चूंकि मैं नया नया था, इसलिये मैं ज्यादा इस बात को तवज्जो नहीं दे रहा था।
हालांकि एक बात मैंने नोटिस की कि वो सभी बातों का जवाब बड़ी सफाई के साथ देती थी। चाहे बात द्विअर्थी ही क्यों न हो। ऐसे ही एक दिन में बैठा हुआ था कि एक और कर्मचारी था जो काफी देर से मेरी सीट पर बैठ हुए काम कर रहा था, मुझे देखते खड़ा हुआ और कहीं जाने की तैयारी कर रहा था और बार-बार ‘मैडम इजाजत है क्या…’ कह रहा था।
मैडम झल्ला कर बोली- अरे बाबा जाओ ना!
तभी वो शायद मैडम को छेड़ते हुए बोला- जाऊँ कैसे? अभी आपने लिया नहीं और फिर कहोगी तुमने दिया नहीं इसलिये मैंने लिया नहीं।
मैडम उसी समय एक रजिस्टर उठाया और उसमें कुछ लिखने के बाद बोली- ठीक है न, अब तो तुमने दे दिया और मैंने ले लिया, अब जाओ.
मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने मैडम से पूछा- मैडम, ये कैसा लेना देना है?
मेरी तरफ देखते हुए बोली- एटेन्ड्स की बात हो रही थी।
उस दिन से पहले तक मैं थोड़ा सा खुल नहीं पा रहा था, शायद नई-नई ज्वाईनिंग के कारण… लेकिन अब मेरी भी थोड़ी सी धारणा बदल गई थी और मैं भी उससे छेड़छाड़ करने लगा था। पर वो मेरे काबू में नहीं आ रही थी। हाँ… एक बात तो है वो अपने काम के प्रति बड़ी ईमानदार थी, काम अगर पेन्डिंग है तो वो काम पूरा करके जाती थी।
इसी तरह एक बार काम करते हुए बहुत देर हो चुकी थी, हम दोनों साथ-साथ ही घर के लिये निकले, रास्ते में मैंने उसे ड्रॉप करने के लिये ऑफर दिया, लेकिन उसने मना कर दिया। इससे मेरा मन थोड़ा बोझिल हो गया और फिर मैं अपने काम से काम रखने लगा। धीरे-धीरे एक साल बीतने लगा और मैं सौम्या से केवल काम की बात करता था।
मुझे ऐसा लगने लगा कि वो मुझे इग्नोर कर रही थी क्योंकि उसने न तो मुझे अपना नम्बर दिया और न ही मेरा नम्बर लिया। खैर बात उसके बर्थ डे से शुरू होती है, उस दिन उसने मुझे जबरदस्ती अपनी बर्थ डे पार्टी पर बुलाया और अच्छे से बात करना शुरू की और उस दिन से वो मेरे पास ज्यादा समय बिता रही थी, अब मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी और मैं उसे छेड़ने लगा था, जिसका वो रिप्लाई भी मुस्कुरा कर देने लगी।
एक दिन मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया- तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है या नहीं?
उसने बोला- ऑफिस के काम से फुर्सत नहीं मिलती तो बॉयफ्रेंड कहां से पालूँ?
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तो मुझे लगा कि उसके करीबी होने का मुझे एक मौका मिल सकता है। धीरे-धीरे मैं उससे खुल कर बात करने लगा, वो भी मुझे वैसा ही जवाब देने लगी, लेकिन बीच-बीच में वो ऐसी हरकत कर देती कि फिर मुझे वापस अपनी मांद में जाना पड़ता। लेकिन ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नहीं।
शुक्रवार का दिन था और शनिवार के दिन कुछ जरूरी कागज की जरूरत थी, ताकि उसको दूसरे ऑफिस में फारवर्ड किया जा सके, मुझे भी ऑफिस के काम से सुबह ही भोपाल जाना था। तो हमारे बॉस ने तय किया कि चाहे जैसे हो उस काम को कम्पलीट करके सौम्या को सभी कागज हैण्ड ओवर आज ही कर देना है ताकि सौम्या उस पेपर को डिसपेच करने से पहले एक बार अच्छे से चेक कर ले।
सौम्या घर जा चुकी थी और बॉस भी घर जा चुके थे। मैंने अपना काम खत्म किया और पेपर लेकर सौम्या मैडम के घर आ गया। मेरा पेट दर्द हो रहा था और मुझे प्रेशर भी बहुत मार रहा था। जैसे ही मैं सौम्या के घर पहुँचा और उसके घर की कॉल बेल बजाई, दरवाजे पर सौम्या ही थी, दरवाजे पर ही उसने वो पेपर लिये और वापस जाने लगी.
तो मैंने अपनी प्रॉबल्म बताई, पहले तो वो न नुकुर करती रही, और बोली कि वो घर में अकेली है और उसके मम्मी पापा कभी भी आ सकते है, असामान्य स्थिति से बचने के लिये वो मना कर रही है। लेकिन फिर मेरी हालत पर दया दिखाते हुए मुझे अन्दर बुला लिया और वाशरूम दिखाते हुए बोली- जाओ।
मैं बातों को ध्यान दिये बिना वाशरूम में घुसा और फ्रेश होने लगा। अब जैसे-जैसे मैं अपने पेट दर्द पर काबू पाने लगा, वैसे-वैसे मेरे दिमाग में खुरापात शुरू होने लगी, आज एक मौका है अगर वास्तव में मेरे लिये सौम्या के दिल के कोने में थोड़ी भी जगह होगी तो मेरी बात मानेगी, नहीं तो फिर जो मेरे साथ होगा, उसके लिये भी मैं तैयार था।
इसलिये फारिग होने पर मैंने अपने पूरे कपड़े उसी वाशरूम में उतारे और बाहर नंगा ही आ गया। जैसे ही मैंने लैट्रिन का दरवाजा खोला, सौम्या सामने थी, मुझे नंगा देखकर बोली- अशोक तुम नंगे क्यों हो? आम तौर पर कोई भी लड़की किसी को नंगा देखे तो तुरन्त अपनी आँख बन्द कर लेती, पर सौम्या मुझे एकटक देख रही थी, मुझ उसकी इस बात से थोड़ा हौंसला मिला।
तभी वो मुझसे बोली- जल्दी से अपने कपड़े पहनो और जाओ यहाँ से, मेरे मम्मी-पापा कभी भी आ सकते हैं।
‘यह तो कोई बात नहीं हुई कि तुम मुझे नंगा देखो।’ मैं अभी अपनी बात पूरी कर ही रहा था कि वो बोल पड़ी- मैंने तुमसे थोड़े ही कहा था कि पखाने से नंगे निकलो, अब जाओ यहाँ से.
मैं समझ रहा था कि थोड़ा और प्रयास करने से कम से कम मैं भी सौम्या को नंगी देख सकता था। मैंने अपने कपड़े उठाये और गुसलखाने में घुस गया और वहीं से सौम्या को आवाज लगाई, मेरी आवाज सुनकर सौम्या गुसलखाने के पास आई और मुझे हल्के से झड़पते हुए बोली- अभी तक तुमने अपने कपड़े नहीं पहने, जल्दी करो, मम्मी-पापा आते ही होंगे।
मैंने उसकी इसी बात को पकड़ते हुए अपनी कपड़े को पानी से भरे हुए टब की तरफ करते हुए बोला- तुमने मुझे नंगा देखा है, मुझे भी तुम्हें नंगी देखना है।
‘यह नहीं हो सकता, तुम अपने कपड़े पहनो और अब चले जाओ। नहीं तो अब बुरा हो जायेगा।’
मैं थोड़ा डर गया, लेकिन मन ने कहा कि ‘एक अन्तिम कोशिश कर लो, शायद नजर को सकून मिल जाये।’
यह ख्याल आते ही मैंने चड्डी को टब में डाल दिया और सौम्या से बोला- अगर तुम नंगी नहीं होगी तो मैं अपने सब कपड़े पानी में डाल दूंगा और इसी तरह नंगा रहूँगा, फिर तुम जानो और तुम्हारा काम!
बनियान डालने वाला ही था कि सौम्या मुझे रोकते हुए बोली- रूको!
कहकर वो अपने एक-एक कपड़े उतारने लगी और पूरी तरह से नंगी हो गई। क्या उजला शरीर थी सौम्या का… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैं टकटकी लगा कर देखता ही रह गया! क्या छोटे-छोटे संतरे जैसी उसकी चुची थी, उन संतरों जैसी चुची पर काली छोटी मोटी सी निप्पल थी।
उसकी योनि पर घने-घने गुच्छे रूपी बालों को पहरा था। वह अपने दोनों हाथों से अपनी बुर को छुपाने का अथक प्रयास कर रही थी। उसकी कांखों और टाँगों पर भी बाल थे, जैसे एक अनछुई नवयौवना के होते हों। तभी वो मुझे झकझोरते हुए मुझसे बोली- अशोक, अब तुमने मुझे नंगी देख लिया है, अब तुम जाओ प्लीज!
मैं तुरन्त अपने घुटने के बल पर उसके समीप बैठ गया और उसकी नाभि को चूमते हुए उसे थैंक्स बोला।
वो मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली- जाओ प्लीज, मम्मी-पापा कभी भी आ सकते हैं।
मैंने उसकी बात को सुना और खड़े होकर उसको अपने से चिपका लिया, वो भी मुझसे कस कर चिपक गई, वो बड़ी गहरी-गहरी सांसें ले रही थी और उसकी गर्म सांसें मुझसे टकरा रही थी।
फिर वो मुझसे अलग होते हुए बोली- अब जल्दी से जाओ, मैंने तुम्हारी बात मान ली, अब तुम भी मेरी बात मानो।
मैंने तुरन्त ही अपने कपड़े पहने और वहां से चला गया। वो मुझे नंगी ही दरवाजे तक छोड़ने आई। शनिवार और रविवार का दिन मेरे लिये कैसा बीता, मैं खुद भी नहीं समझ पाया, मेरे मन में सौम्या की बुर की चुदाई का ख्याल आ रहा था… मैं उसको फोन करना चाह रहा था, पर हिम्मत नहीं पड़ रही थी।
खैर किसी तरह सोमवार को मैं ऑफिस पहुँचा, तो सौम्या वहां नहीं थी। ऑफिस से पता चला कि शनिवार को जो जरूरी काम था, उसको करके वो चली गई थी। अब मुझे अपने किये पर अफसोस हो रहा था। मैं सोच रहा था कि सिर्फ एक बार सौम्या से मेरी बात हो जाये तो मैं उससे माफी मांग लूँ।
खैर उस दिन मैंने किसी तरह से अपना समय काटा और घर जाने को हुआ तो मेरे कदम खुद-ब-खुद सौम्या के घर की तरफ बढ़ गये। घर के नीचे पहुँच कर मैं घंटी बजाने ही वाला था कि मेरे मन ने एक बार फिर ऐसा करने से रोक दिया।
मैं चुपचाप घर चला आया, लेकिन मैं पूरी रात इस बात का विचार करके नहीं सो पाया कि कहीं मैंने सौम्या को हर्ट तो नहीं कर दिया, मुझे लगा कि सौम्या की बुर की चुदाई के बारे में मेरी सोच अनुचित है। लेकिन सौम्या की चुप्पी ने भी तो मेरा हौंसला बढ़ाया था और वो खुद भी मुझसे लिपटी हुई थी, उसकी बातों में कहीं भी सख्ती नहीं थी।
खैर, मैं दूसरे दिन ऑफिस पहुँचा तो देखा तो सौम्या भी ऑफिस में थी। उसको देखकर मेरे मन भी खुश हुए बिना न रह सका, पर हम दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर रहे थे। मैं उससे माफ़ी मांगना चाह रहा था, पर मौका हाथ नहीं आ रहा था। खैर एक बजे के आस-पास जब हम दोनों को एकान्त मिला तो मैं तुरन्त सौम्या की तरफ घूमा और अपने हाथ जोड़कर उससे माफी मांगने लगा।
वो तुरन्त मेरे हाथ को पकड़कर बोली- इसकी कोई जरूरत नहीं है, जो होना था हो गया। फिर हम दोनों अपना काम करने लगे। मैं यह साफ महसूस कर सकता था कि सौम्या मुझसे कुछ कहना चाहती है, पर कह नहीं पा रही है। इसी बीच लंच का समय हो गया और मैं बाकी स्टाफ के साथ लंच लेने चला गया।
जब मैं लंच लेकर वापस केबिन में लौटा तो सौम्या वहाँ नहीं थी, चपरासी ने मुझे बताया कि सौम्या घर जा चुकी है। मैं अपनी कुर्सी पर बैठा था कि तभी मेरी नजर एक छोटी सी पर्ची पर पड़ी, जो मॉनीटर से दबी हुई थी। उसमें लिखा था कि क्या आज तुम ऑफिस के बाद मेरे घर आ सकते हो?
मेरी तो खुशी का ठिकाना न रहा। मैं अब समय को किसी तरह से बिता रहा था और बार-बार मेरी नजर घड़ी पर जा रही थी। किसी तरह ऑफिस खत्म होने को आया, मैं तुरन्त ही अपनी गाड़ी उठा कर सौम्या के घर की तरफ चल दिया, उसके घर पहुंचकर जब मैंने घंटी बजाई तो तुरन्त ही दरवाजा खुल गया.
मुझे भी उसके अन्दर एक बैचेनी सी नजर आई, उसने मुझे बैठाया और चाय, नाशता और पानी को टेबिल पर रखकर बैठ गई. मैं और सौम्या चुपचाप बैठे चाय पी रहे थे कि तभी मेरी नजर सौम्या के पैरों की तरफ गई, वो अपने अंगूठे से जमीन को खुरचने का प्रयास कर रही थी, ऐसा लग रहा था कि वो कुछ कहना चाह रही हो, लेकिन कह नहीं पा रही.
मैंने ही शुरूआत करने की सोची, मैंने उसकी तंद्रा को भंग करते हुए पूछा- सौम्या, आपने मुझे क्यों बुलाया?
उसने एकदम से चौंक कर मेरी तरफ देखा और फिर नजरें झुका कर बोली- अशोक, मेरे घर में आज से तीन दिन तक कोई नहीं है। क्या तुम मेरे साथ रह सकते हो?
‘पर क्यों?’ मैंने पूछा।
वो थोड़ी देर तक चुप रही, मैंने एक बार फिर पूछा- आखिर तीन दिन तक मुझे तुम्हारे साथ क्यों रूकना है?
वो मेरे आँखों में आँखें डाल कर बोली- मुझे एक बार फिर से तुम्हें नंगा देखना है।
इतना कहकर वो चुप हो गई। मेरे मन में एक अलग सी खुशी छा रही थी, जो लड़की किसी को अपने पुट्ठे पर हाथ नहीं रखने देती थी, वो मुझे खुद इनवाईट कर रही थी। इत्तेफाक था कि इन दिनों मेरा घर भी खाली पड़ा हुआ था और अगले 10 दिन तक कोई वापस भी नहीं आने वाला था, इसलिये मैंने सौम्या से पूछा कि क्या वो मेरे साथ मेरे घर चलेगी?
वो राजी भी हो गई। उसने मुझे चौराहे पर वेट करने के लिये कहा, मैं चौराहे पर आकर उसका इंतजार करने लगा। थोड़ी ही देर बाद सौम्या अपने हाथ में एक छोटी अटैची लेकर आ गई। मैं सौम्या को लेकर अपने घर आ गया। थोड़ी देर तक वो चुपचाप मेरे घर को देख रही थी और मैं चाय बना रहा था.
मैंने उसे चाय सर्व की और उसके बाद मैं खाना बनाने की तैयारी करने लगा. इस बीच सौम्या ने मुझसे कोई बात नहीं की, बस मेरे साथ खाना बनाने में मेरी मदद कर रही थी। उसके बाद हम दोनों ने साथ खाना खाया और फिर हम दोनों मेरे कमरे में आ गये।
बहुत देर की चुप्पी को मैंने तोड़ते हुए सौम्या से पूछा- अब क्या करना है?
वो बोली- जो मैंने तुमसे कहा था, वही करना है!
उसके अन्दर अभी भी एक झिझक थी।
मैंने कहा- ठीक है, लेकिन तुम्हें भी नंगी होना होगा।
इस पर वो बोली- मैं भी नंगी हो जाऊँगी, पर पहले तुम्हें नंगा होना होगा।
‘ठीक है!’ यह कहते हुए मैंने अपने कपड़े उतारना शुरू किया, जब मैं पूर्ण नंगा हो गया तो सौम्या मेरे पास आई और मेरे नंगे जिस्म पर अपने हाथ फेरने लगी। वो अपनी उंगलियों को मेरी एक-एक नाजुक जगह पर चला रही थी, कभी मेरे निप्पल पर तो कभी मेरी नाभि पर… तो कभी जांघ और अंडे पर या फिर लंड पर…
फिर मेरे पीछे आती और मेरे चूतड़ को सहलाती और एक उंगली चूतड़ के दरार में डालती। बड़ी देर तक मैं यूं ही खड़ा रहा और वो मेरे बदन से खेलती रही। फिर उसने अपने चुम्बनों की बौछार सी कर दी, मैं बुत की तरह खड़ा था और वो कभी मुझसे कस कर लिपट जाये तो कभी मेरे सभी अंगों को बेइन्तहा चूमे।
तब वो मुझसे अलग हुई और अपने चेहरे को हाथों में छुपाकर बिस्तर के कोने में जा कर दुबक गई। मैं उसके इस व्यवहार को समझ नहीं पाया, मैं उसके पास गया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसको पुचकारा, मैं बोला- सौम्या यह तो अनफेयर है। तुमने भी मेरे सामने नंगी होने का वायदा किया था, अब तुम्हारी बारी है।
वो मेरी तरफ घूमी, उसकी आँखों में आँसू थे।
मैंने उसके आंसू पोंछते हुए कहा- कोई बात नहीं, अगर तुम नंगी नहीं होना चाहती तो कोई बात नहीं, कोई जबरदस्ती नहीं है.
इतना कहकर मैं उठने लगा, तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- आज पहली बार अपनी इच्छा से अपने लिये कुछ कर रही हूँ और मेरे परिवार में किसी को कुछ नहीं मालूम है।
मैंने कहा- कोई बात नहीं, अगर तुम वापस जाना चाहो तो मैं तुम्हें ले चलने के लिये तैयार हूँ।
‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। आज मैं अपने सुख का अहसास करना चाहती हूँ।’ वो पलंग पर ही खड़ी हो गई और अपने जिस्म से अपने कपड़े अलग करने लगी।
जब उसने अपने पूरे कपड़े उतार लिये तो मैं उसे गौर से देखने लगा तो वो फिर शर्मा गई और अपने चेहरे को छुपा लिया। क्या अंग थे उसके… दोनों जांघें आपस में चिपकी हुई थी, ऐसा लग रहा था कि दोनों जांघें मिलकर सौम्या की योनि को मुझसे छिपाने का अथक असफल प्रयास कर रही थी।
हालांकि उसकी योनि को बालों ने भी छिपा रखा था, बड़े-बड़े बाल उगे हुए थे। धीरे-धीरे मेरी नजर ऊपर की तरफ जा रही थी, उसकी गहरी बड़ी सी नाभि भी बहुत ही आकर्षक लग रही थी। पेट उसका अन्दर की तरफ था। मैंने धीरे से अपने होंठ नाभि के पास रख दिए और एक हल्का सा चुम्बन दे डाला।
अब मेरी नजर उसके उठे हुए स्तनों पर थी, जिनके बीच में काले रंग की छोटी बिन्दी जैसी निप्पल था। मेरे हाथ उन निप्पल को छूने लगे, मेरे दोनों चुटकी में उसके निप्पल फंस चुके थे। सौम्या ने अभी भी अपना चेहरा छुपा रखा था, बीच बीच में वो अपनी उंगलियों के बीच से मुझे खेलते हुए देख लेती थी और जब मेरी नजर उस पर पड़ती थी तो वो फिर से अपने चेहरे को छुपा लेती थी।
इसी बीच मेरे हाथ उसके चूतड़ के उभारों पर टिक गये। उसके उभारों में बड़ा कसाव था, दबाने में बड़ा ही मजा आ रहा था, बीच-बीच में मेरे उंगली जैसे ही उसकी दरार के बीच घुस कर उस छेद के अन्दर जाने की कोशिश करती, वैसे ही वो आह बोल देती और मेरी उंगली बाहर निकल आती।
मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और लेकर गोल-गोल चक्कर काटने लगा, उसकी हंसी छूट पड़ी। सौम्या के स्तन मेरे होंठों से छू रहे थे, मैं अपनी जीभ निकालकर उसके स्तनों के बीचों बीच लटके हुए काले अंगूर पर लगा देता। मैं बारी-बारी से दोनों निप्पल को चटकारे लेकर टच करता, मेरी इस अदा पर सौम्या ने अपने होंठों को गोल किया और मुझे फ्लाईंग किस दी.
जवाब में मैंने भी उसे फ्लाईंग किस दी। सौम्या की टांगें मेरे लिंग से लड़ रही थी। उसकी कांख में भी बाल थे और पसीने की गंध मेरे नथूनों में धंसी जा रही थी, लेकिन मुझे बड़ा मजा आ रहा था। फिर मैंने उसको अपनी गोद से उतारा और पलंग पर लेटाकर उसकी बगल में लेट गया और उसके ऊपर अपनी टांग चढ़ा दी।
मेरा लिंग उसके योनि से टच कर रहा था और इससे ही मुझे उसके अन्दर से निकलती हुई गर्मी का अहसास हो रहा था। मेरे लिये उसके कांख में बाल होने या उसके योनि के ऊपर बाल होने का कोई मतलब नहीं था। मैंने उसके दोनों हाथों को पकड़ा और उसके सर के ऊपर ले जाकर सीधा कर दिया और अपनी नाक उसकी कांख से निकलती हुई गंध को सूंघने के लिये लगा दी।
मैं धीरे-धीरे उसके शरीर के हर हिस्से को अपने अन्दर महसूस करना चाहता था, मैंने सौम्या को सीधा लेटाया और उसके ऊपर अपनी टांग को एक बार फिर चढ़ाया और उसके गर्दन पर अपने होंठ रख दिये, उसके बाद मैंने उसके होंठों को चूसना शुरू किया, वो भी मेरे होंठ को चूस रही थी।
उसके बाद मैं उसके दोनों स्तनों को बारी-बारी से अपने मुंह के अन्दर लिया, फिर सौम्या के पेट पर अपनी जीभ चलाते हुए उसके गहरी नाभि के पास पहुंच गया और अपनी जीभ मैंने उसकी नाभि के अन्दर घुसेड़ दी। वो इधर-उधर उछलने लगी, बोली- अशोक, प्लीज अपनी जीभ निकालो, मुझे गुदगुदी हो रही है।
मैंने अपनी जीभ निकाली और एक गहर चुम्बन जड़ दिया, मैं और नीचे उतरा योनि के पास पहुंचा और जांघों को चूमने लगा, हालांकि उसकी जांघ के आस पास भी बालों का जंगल था और वो टूट कर मेरे मुंह के अन्दर आ रहे थे, पर जैसे ही मैंने उसकी योनि पर अपने मुंह को रखा.
उसने तुरन्त ही मेरे सर को धक्का देकर अलग कर दिया और अपने हाथ से उस जगह को ढक लिया और बोली- इस जगह को रहने दो, मुझे यह पसन्द नहीं है। मैंने धीरे से उसके हाथ को हटाया और बोला- तुम्हारे लिये यह जगह अच्छी नहीं है, पर मेरे लिये तो बहुत ही अच्छी जगह है।
इतना कहने के साथ ही जैसे मैंने एक बार फिर योनि के बीचों बीच चुम्बन जड़ने का प्रयास किया, सौम्या ने एक बार फिर अपने हाथ उस जगह पर रख लिया। मैंने उसके हाथ को फिर से हटाया और खुद पलंग से नीचे उतरा और सौम्या की कमर को पकड़ कर नीचे की तरफ खींचा और उसके दोनों पैरों को पैताने पर टिका दिया और सौम्या से बोला- मुझे दो मिनट का समय दो, अगर तुम्हें पसंद न आये तो फिर मैं नहीं करूंगा।
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‘ठीक है!’ वो बोली.
मैंने उसकी जांघों को पकड़ा और उसके योनि के मुहाने पर अपने होंठ रख दिए, योनि के मुहाने से गर्म हवा निकल रही थी, मैंने अपनी जीभ निकाली और बस टच ही की थी कि सौम्या का जिस्म अकड़ने लगा और उसका पानी निकल गया, वो बस इतना ही बोल पाई थी- अशोक, प्लीज अपना मुंह वहाँ से हटा लो, मेरे अन्दर से कुछ बाहर आ रहा है!
लेकिन तब तक उसके रस का स्वाद मेरे जीभ को टच कर चुका था। मैंने अपना मुंह हटाया और देखा तो सफेद तरह पदार्थ निकल रहा था। मैंने उसके रस को एक उंगली में लिया और उसके पास पहुंचा और उसको दिखाते हुए बोला- सौम्या देखो, यह तुम्हारे अन्दर से निकला है.
उसने अपनी आँखें खोली, बोली- क्या है यह?
मैं बोला- तुम्हारा वीर्य है ये, लो इसे चखो!
‘छीः मैं नहीं चखती!’
‘क्यों?’ मैंने पूछा.
तो बोली- जहाँ से पेशाब निकलती है, वहीं से यह भी निकला है। मैं चखूँगी तो मुझे उल्टी हो जायेगी।
‘मुझे तो नहीं हुई, तुम्हारा रस मेरे जीभ को टच कर चुका है.’ कहते हुए मैं उसके बगल में लेट गया।
‘तो ठीक है, तो तुम्ही इसे चख लो।’
‘ओ.के.’ कहते हुए मैंने उस उंगली को अपने मुंह के अन्दर किया- उम्म्ह… अहह… हय… याह…
‘छीः’ कहते हुए पल्टी और मेरे ऊपर अपनी टांग को चढ़ाकर बोली- यह तुमने क्या किया?
‘तुम्ही तो बोली थी।’
‘मैंने मजाक किया था.’
‘सेक्स में मजाक नहीं, मजा आना चाहिये। अभी जब तुम्हारी बुर चाट रहा था…’
‘बुर…’ मेरी बात को काटते हुए बोली।
‘हाँ बुर, मैंने अपनी हथेली उसकी बुर को सहलाते हुए बोला- इसी को बुर कहते हैं।
सौम्या ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे समझने का प्रयास कर रही हो, मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि जो लड़की ऑफिस को डील कर रही हो उसे जिस्म के नाम न मालूम हो। फिर भी मैंने सोचा ‘हो सकता हो, कभी इसने ध्यान नहीं दिया हो।’
फिर मैंने अपनी बात को आगे बढ़ाया और उससे बोला- जब मैं तुम्हारी बुर चाट रहा था तो कैसा लगा?
एक बार फिर वो चुप हो गई और कुछ देर बाद बोली- शुरू में तो मजा नहीं आया लेकिन फिर बहुत मजा आ रहा था।
अभी तक उसके हाथ मेरे सीने के बालों से खेल रहे थे। फिर वो मेरे ऊपर फ्लैट लेट गई और मेरा लंड उसकी चूत के पास जांघों के बीच फंसा हुआ था। मेरे हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे। फिर मेरा हाथ उसके पुट्ठे पर गया और उसको दबाते हुए बोला- तुम्हारा पुट्ठा बहुत टाईट है।
वो थोड़ा मुस्कुराई और मेरे गालों पर पप्पी ले ली, मैंने उसकी गांड के अन्दर उंगली डालते हुए कहा- जानेमन गाल पर पप्पी मत दो, मेरे होंठों को चूसो।
उसने मेरा हाथ पकड़ा और खींचते हुए बोली- अपनी उंगली पीछे से निकालो।
मैं हँसते हुए बोला- पीछे से नहीं, गांड बोलो गांड!
‘धत्त…’
मैंने उसके चेहरे को अपनी तरफ करते हुए कहा- देखो, अगर सेक्स का मजा लेना हो तो, खुल कर लो।
सौम्या मेरी तरफ अभी भी प्रश्न भरी निगाहों से देख रही थी।
मैंने उसकी लटों को एक तरफ करते हुए कहा- अच्छा अब तुम भी मुझे वैसे ही प्यार करो जैसे मैंने तुम्हें किया।
मेरी इस बात को सुनते ही वो तुरन्त ही मेरे होंठों को चूमने लगी, फिर नीचे उतरते हुए मेरे निप्पल को अपने होंठों का मजा देने लगी, फिर मेरी नाभि की तरफ ठीक उसी तरह कर रही थी, जैसे मैंने किया. मेरा लंड हिचकोले खा रहा था। जांघ के अगल बगल तक उसने अपनी जीभ चलाई और फिर नीचे पैरों की तरफ उतरने लगी.
तब मैंने उसे टोकते हुए कहा- सौम्या यह फेयर नहीं है, मैंने तुम्हारी बुर को भी प्यार किया था, तो अब तुमको भी मेरे लंड को प्यार करना होगा!
उसने मेरी तरफ देखा और फिर अपने काम पर शुरू हो गई. मैंने दो बार उससे प्लीज कहा तो वो बड़ी मुश्किल वो मेरे लिंग के अग्र भाग को अपने मुंह के अन्दर ले पाई थी। हाँ ये अलग बात थी कि वो मेरे बाल रहित लंड के आसपास की जगहों को बड़े ही प्यार से सहलाती और उन जगहों को चूम लेती थी.
इसी बीच मैंने सुपारे के खोल को नीचे किया और सौम्या से उस पर अपनी जीभ चलाने को कहा. थोड़ा न नुकुर करने के बाद उसने अपनी जीभ चलाना शुरू की, मेरा लंड सौम्या के मुंह की चपेट में आने से तड़प सा गया था और वैसे भी काफी समय से बर्दाशत भी कर रहा था।
इसलिये जैसे ही सौम्या ने जीभ चलाई मेरी रस मलाई फड़फड़ाते हुए निकल गई जो सौम्या के जीभ को टच करते हुए उसके मुंह के अन्दर और चेहरे पर गिर गई. ‘छीईईई ईईईई…’ कहकर वो बाथरूम की तरफ भागी, मैं भी उसके पीछे-पीछे बाथरूम की तरफ भागा और मेरा रस भी मेरे भागने के कारण यहाँ वहाँ गिर रहा था।
मैं बाथरूम के अन्दर पहुंचा तो सौम्या उल्टी करने का प्रयत्न कर रही थी, मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा- परेशान मत हो, उल्टी नहीं होगी!
लेकिन वो मुंह के अन्दर उंगली डाल कर उल्टी करने का प्रयास कर रही थी. बेसिन से झुके होने के कारण उसका गुदा (गांड) द्वार थोड़ा सा खुल गया था और मैंने सौम्या के दोनों कूल्हों को कस कर दबा दिया. ‘उईईई ईईई…’ करके एकदम से पल्टी और मेरे मुंह पर एक झापड़ रसीद कर दिया उसने!
मैं अपना गाल मलता रह गया और वो भाग के बिस्तर पर पेट के बल लेट गई। मैं भी अपने गाल को सहलाते हुए पीछे पीछे कमरे में आ गया, वो दोनों हाथों के अन्दर अपना मुंह छुपा कर लेटी हुई थी, मैं उसकी पीठ सहलाने लगा लेकिन वो कोई रिस्पॉन्स नहीं दे रही थी।
मैं एक जवान बुर की चुदाई कर भी पाऊँगा या नहीं? मेरी मलाई सौम्या के मुंह के अन्दर और चेहरे पर गिर गई. वो बाथरूम की तरफ भागी, मैं उसके पीछे बाथरूम में गया, मैंने सौम्या के दोनों कूल्हों को कस कर दबा दिया. ‘उईई ईई…’ करके वो पलटी और उसने मेरे गाल पर एक झापड़ जड़ दिया!
मैं अपना गाल मलता रह गया… अब मुझे लगा कि अभी तक ये ओरल सेक्स था, तो मैं एक तमाचा खा गया, कहीं अगर बुर छेदन पर बात आ गई और वो तड़प उठी तो वो मेरा तो कत्ल ही कर देगी। फिर भी मैं उसकी पीठ सहलाते सहलाते चूमने लगा लेकिन फिर भी उसने कोई रिऐक्ट नहीं किया.
मैं चुपचाप उसकी पीठ चूमते-चूमते नीचे की तरफ बढ़ने लगा, मैंने उसके कूल्हे को चूमा, अब जाकर उसके जिस्म में कुछ कसमसाहट सी आई कि तभी मेरे दांत उसके कूल्हे में गड़ गये। ‘उईईईई मां…’ कहकर फिर वो उसी पोजिशन में लेट गई। मैंने दोनों कूल्हे को मसलना शुरू कर दिया और उसकी गांड के अन्दर थूक दिया और फिर धीरे से अपनी जीभ लगा दी.
बस… वो फिर झटके से उठी और अपने को मुझसे अलग किया और बोली- क्या अशोक, क्या है ये सब? गन्दी जगह को चाटना ही सेक्स है?
पता नहीं वो क्या-क्या बड़बड़ाये जा रही थी. मैं उसे चुप कराते हुए बोला- सेक्स का मजा लेना हो तो खुल कर लो। नखरे करने से बस मेरा डंडा तुम्हारे होल के अन्दर जायेगा, टहलेगा और घर्षण करेगा, अपना रस तुम्हारी गुफा में डालकर चला आयेगा, और ये सभी क्रियायें 8-10 मिनट में हो जाएंगी, और तुम एक किनारे करवट लेकर सो जाओगी और मैं एक किनारे…
लेकिन शर्म लिहाज छोड़ दो, केवल बिस्तर पर हर जगह नहीं, और खुलकर मजा लो तो खूब मजा भी आयेगा। अब एक बात बताओ, जब मैं तुम्हारी बुर चाट रहा था, तो तुम कसमसाई थी और तुम्हारा रस निकल गया था, और वो रस निकलकर मेरे मुंह से चला गया था तो मैंने कुछ कहा था?
बस एक बात मुझे नहीं पसंद है और वो यह कि किसी लड़की या औरत के शरीर के किसी अंग पर बाल हों। अब ये खुद देखो कि तुम्हारी बुर झांटों से ढकी पड़ी है। वो मेरी तरफ एकटक देखती रही और मैं उसको बताता रहा। फिर जब मैं चुप हो गया तो वो बोली- अशोक, मैं इस कम ऐज में बहुत काम कर चुकी हूँ.
लेकिन और लोगों को जब जिदंगी के मजे लेते हुए देखती हूँ तो मन मेरा बहुत दुखी हो जाता था। लेकिन उस रात तुमने जो मेरे साथ किया, उस समय जरूर बुरा लगा, लेकिन जब मैं तुम्हारे बारे में सोचने लगी तो मुझे बहुत अचछा लगने लगा। इसलिये मैं तुम्हारी बांहों में आकर खोना चाहती हूँ। अब तुम जो कहोगे वो मैं सब करूंगी।
इतना कहने के साथ ही सौम्या एक बार फिर पेट के बल लेट गई, मैं भी उसी अवस्था में उसके ऊपर लेट गया। थोड़ी देर तक तो उसने मेरा वजन बर्दाश्त किया, फिर जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो बोली- ओफओ… हटो ऊपर से!
मैं उसको चिढ़ाने की नीयत से बोला- हट तो जाऊंगा, लेकिन अपनी गांड का मजा लेने दो।
‘लो जितना मजा लेना है लो, लेकिन मेरे ऊपर से हटो, दम घुट रहा है।’
‘ऐसे नहीं, प्यार से बोलो, मेरी जान, तुम मेरी गांड से मजा लो।’
‘ठीक है, मैं बोलने को तैयार हूँ, लेकिन मेरे ऊपर से हटकर मेरे बगल में आओ।’
मैंने उसकी बात मान ली, वो मेरे तरफ घूमी और अपने सर को अपने हाथ से टिका कर बोली- मेरी जान, तुम मेरी गांड से मजा लो ना।
‘ओह ओ… पहले एक वादा करो जानेमन!’
‘वादा? बोलो?’
मुझे लगा अब सौम्या भी मेरे रंग में रंगने को तैयार है, मैंने उसकी आँखों में देखा और बोला- जैसे मैं तुम्हारी गांड के साथ मजा लूंगा, वैसे ही तुमको भी मेरे साथ मजा लेना होगा।
‘हाँ बाबा… मैं भी तुम्हारी गांड के साथ वैसा ही करूंगी, जैसा तुम मेरी गांड के साथ करोगे। आज से पहले मैं कभी किसी के सामने नंगी नहीं रही और न कोई मर्द मेरे साथ नंगा रहा। अब और क्या चाहिये?’
‘ठीक है बाबा, नाराज मत हो, चलो लेट जाओ।’
फिर वो पट लेट गई, और मैं उसके जिस्म से खेलने लगा, मैंने उसके कूल्हे को पकड़कर फैलाया और लंड को उसकी गांड से सटाने लगा, लेकिन जब मैं ऐसा नहीं कर पाया तो मैंने सौम्या से कूल्हे को फैलाने के लिये बोला, उसने अपनी गांड जितना वो कर सकती थी उतना उसने फैलाया और मैं फिर अपने लंड को उसकी छेद में सहलाने लगा- कैसा लग रहा है?
बोली- सुरसुराहट सी लग रही है।
उसके बाद मैंने उसको चित किया और उसकी नाभि में जीभ चलाने के बाद बोला- अगर तुमने वैक्स किया होता तो तुम और सेक्सी लगती!
‘हाँ यार, आज के पहले मुझे इसकी जरूरत नहीं पड़ी।’
‘चलो कोई बात नहीं…’ मैंने यह कहते हुए उसको बड़े ही प्यार से देखा और नीचे झुक कर उसकी बालों से घिरी हुई चूत को चूमा।
जितनी बार मैं उसकी चूत को चूमता, उतनी ही बार वहाँ का बाल टूटकर मुंह में आ जाता। फिर मैंने एक तकिया सौम्या की कमर के नीचे लगाते हुए कहा- डार्लिंग अपनी असली मजा पाने के लिये तैयार हो जाओ, थोड़ा सा दर्द होगा, और तुम चाहो तो खुल कर चिल्ला सकती हो, क्योंकि घर में कोई नहीं है।
उसके बाद मैंने उसकी टांगों को फैलाया और लंड से उसकी चूत के सेन्टर को सहलाने लगा. क्या भभके मार रही थी उसकी चूत!
तभी वो बोल पड़ी- तुम्हारा बहुत गर्म लग रहा है।
मैं फिर उसको छेड़ते हुए बोला- क्या गर्म लग रहा है?
‘वही जो तुम मेरे इसमें (बुर की ओर इशारा करते हुए) सटाये हो।’
‘अरे यार, खुल कर बोल, मेरा लंड तुमको तुम्हारी चूत में गर्म लग रहा है।’
‘हाँ-हाँ तुम्हारा लललंड गर्म लग रहा है।’
‘कहाँ पर?’
‘मेरी बूऊऊऊऊउर में…’
मैं उसको बातों में उलझाये रहा और धीरे-धीरे लंड को अन्दर डालने की कोशिश करने लगा। मेरा सुपारा अन्दर जाने की कोशिश करता कि सौम्या हिल डुल जाती तो सुपारा बाहर आ जाता। बुर की गर्माहट के आगे कब मेरा लंड पिघल जाये, इसलिये मुझे जो करना था, इस तरह करना था कि काम जल्दी हो जाये।
मैंने थोड़ा सा सौम्या को दर्द देने की ठानी और मैंने एक हल्का धक्का लगाया, मेरा सुपारा सौम्या की चूत में फंस चुका था और सौम्या के हलक से चीख भी निकल चुकी थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ तुरन्त मैंने अपने हाथों को बिस्तर पर टिकाया और सौम्या के ऊपर इस तरह लेट गया कि वो मेरे वजन से दब ना जाये।
मेरी नजर सौम्या के चेहरे पर थी, उसने अपने दांतों के बीच अपने होंठों को दबाया हुआ था, और चेहरे पर उसके दर्द सा दिख रहा था। मैंने सांत्वना देते हुए कहा- सौम्या थोड़ा दर्द झेल लो, फिर मजा ही मजा! उसने मेरी तरफ देखा, उसकी आँखों से आंसू टपक रहा था, फिर भी सौम्या ने मुझे अपनी पलक झपका कर सहमति दी।
मैंने भी अब ज्यादा ताकत दिखाने की कोशिश नहीं की और उसके बाद धीरे-धीरे मैं अपने लंड को उसकी चूत के अन्दर ही थोड़ा सा अन्दर बाहर करके लंड को हिलाता डुलाता रहा। मेरे इस प्रयास से लंड ने उसकी चूत के अन्दर जगह बनानी शुरू कर दी।
यह अलग बात थी कि उसकी सील फटने के कारण और मेरा लगातार एक ही जगह पर घर्षण करते रहने से वो वास्तव में दर्द बर्दाश्त कर रही थी। और अन्त में दोनों की मेहनत और धैर्य की सफलता मिली। लंड ने सौम्या की चूत के अन्दर जगह बना ली थी।
पर सौम्या मुझे मेरा लंड निकालने के लिये लगातार बोले जा रही थी, कह रही थी- अशोक, प्लीज मेरे अंदर बहुत जलन हो रही है। निकालो! मैं समझ चुका था कि सील फट गई है इसलिये जलन हो रही है, लेकिन फिर भी मैंने उसकी बात को अनसुना करते हुए अपने काम को करना चालू रखा, बस हल्के-हल्के मैं अपने लंड को अन्दर बाहर कर रहा था.
दोनों हाथ मेरे पूरे जिस्म का बोझ उठाये हुए थे और वो भी दर्द करने लगे थे, तो मैंने अपना पूरा बोझ सौम्या के ऊपर दे दिया और उसके होंठों को चूसने लगा. धीरे-धीरे मेरी मेहनत रंग लाने लगी और अब सौम्या अपनी कमर भी उचकाने लगी, मैंने अपने को रोका और सौम्या की तरफ देखते हुए बोला- तुम अपनी कमर को क्यों उचका रही हो?
तो बड़ी ही साफगोई से बोली- मेरी बुर के अन्दर जहाँ-जहाँ खुजली हो रही है, तुम्हारे लंड से खुजलाने का मन कर रहा है। कितनी मीठी… यार ये बहुत ही मीठी-मीठी खुजली है, जितनी मिटाने की कोशिश कर रही हूँ, उतनी ही बढ़ती जा रही है।
‘अपना दूध पिलाओगी?’
‘अब मैं तुमको कुछ मना नहीं कर रही हूँ अब मैं तुम्हारी हूँ जो पीना हो, पी लो।’
‘मजा आ रहा है?’
‘बहुत मजा आ रहा है!’ सौम्या बोली- मैं चाहती हूँ कि तुम अपना लंड मेरी बुर के अन्दर डाले ही रहो।
उसके इतना कहने के साथ ही मैं रूक गया और उसके छोटे-छोटे संतरेनुमा चूची को गोलगप्पा समझ कर मैं अपने मुंह के अन्दर भर लेता तो कभी उसके दाने पर अपनी जीभ चलाता या फिर उन दानों को बोतल में भरे हुए माजा के अन्तिम बूंद समझ कर चूसता।
मुझे बहुत मजा आ रहा था कि सौम्या एक बार फिर बोली- अशोक, खुजली और बढ़ रही है।
मैं समझ चुका था, अब उसे मेरे लंड के धक्के चाहिये थे, इसलिये मैं एक बार फिर पहली वाली पोजिशन में आया और अपने दोनों हाथों को एक बार फिर बिस्तर पर टिकाया और इस बार थोड़ा तेज धक्के लगाने लगा, सौम्या भी अपनी कमर उठा-उठा कर मेरा साथ देने लगी.
करीब 10 मिनट तक दोनों एक दूसरे से दंगल लड़ रहे थे कि सौम्या ढीली और सुस्त हो गई और अब उसने अपनी कमर उचकाना बंद कर दिया था. पहले से उसकी चूत से निकलते हुए खून से मेरा लंड सना हुआ था इसलिये मैं समझ नहीं पाया, लेकिन उसके सुस्त और ढीले पड़ जाने से मैं समझ चुका था कि उसकी बुर ने रस छोड़ दिया था।
इधर मैं भी 20-25 धक्के और लगा पाया था कि मुझे लगा कि मैं भी खलास होने वाला हूँ, मैंने तुरन्त ही अपने लंड को बाहर निकाला और उसकी बुर के ऊपर अपना पानी गिरा दिया और औंधे मुंह उसके ऊपर गिर गया. जब थोड़ा जान आई तो उसके बगल में लेट गया। मेरे हटते ही सौम्या का हाथ अपनी बुर के ऊपर चलने लगा। उसकी उंगलियों में उसका खून और मेरा वीर्य लगा हुआ था.
और जब उसकी नजर अपनी उंगलियों पर पड़ी तो वो चीख कर बैठ गई और मुझे दिखाते हुये बोली- ये खून?
‘अरे ये खून!?!’ मैंने भी मजा लेने के लिये चौंकते हुए पूछा।
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फिर उसकी उंगली अपनी चूत के अन्दर गई, जहाँ गीला होने के कारण खून अभी सूखा नहीं था, उसकी उंगली में फिर खून आ गया, उसकी आँखें फट सी गई और उसी फटी आंखों से मेरी तरफ देखा और फिर अचकचा कर बेहोश हो गई। मैं अपनी जगह से उठा और सेवलोन, कॉटन और एक दवा की ट्यूब जो अकसर करके कटी-फटी जगह पर लगाया जाता है, लेकर आया और कॉटन और सेवलोन से उसके चूत के अन्दर और आस पास की जगह को अच्छे से साफ किया और फिर वो क्रीम लगा दी.
फिर गोदी में उठाकर उसको सोफे में लेटाया, चादर बदल कर एक बार फिर उसको बिस्तर पर लेटा कर चादर उढ़ा दी और फिर सौम्या को बेहोशी से बाहर लाने की कोशिश करने लगा. कोई पांच मिनट बाद ही वो होश में आ गई, मुझे देखते ही वो उठ कर बैठ गई।
मैंने प्यार से उसके सर को सहलाते हुए पूछा- क्या हुआ जो तुम बेहोश हो गई?
उसने मेरे कंधे पर अपना सर रखा लेकिन मेरे किसी बात का जवाब नहीं दिया, बस एक ही शब्द बोली- यह खून कैसा?
‘तुम्हारा कुंवारापन खत्म हो गया है।’
फिर हम दोनों काफी देर तक चुप बैठे रहे, बुर की चुदाई में काफी समय बीत चुका था, लगभग आधी रात हो चुकी थी, इसलिये दोनों एक दूसरे से चिपक कर सो गये। अब आगे दो दिन क्या क्या हुआ जानने के लिए कहानी का गला भाग पढ़े…