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मेरा नाम शकुन्तला है। डेढ़ साल पहले मेरी शादी अजित से हुई, अच्छा ऊँचा पूरा खूबसूरत नौजवान है और उसकी एक ही पैशन है, मैं। मौका मिलते ही शुरू हो जाता है, कहीं भी कभी भी मुझे चोदने की ताक में रहता है। समझ लो मैंने उसे जोरू का गुलाम बना लिया है। Lallantop Sexy Kissa
हम आपस में एकदम खुले और फ्रेंक है और वह मेरा एडिक्ट हो गया है। मेरी ननद नंदिनी ने अभी मही ने पहले अपनी सोलहवीं वर्षगांठ मनायी है। ग्यारहवी में पढ़ती है। 5’4” कद है और उसका मासूम चेहरा और गदराया बदन, इससे वह बला की मादक लगती है। और यह उसे मालूम है।
उसका गोरा रंग ऐसा है जैसे दूध में थोड़ा गुलाब घुला हो। उसके कमसिन उरोज छोटे है, करीब 32” साइज़ के, पर उसके नाजुक बदन और पतली कमर के कारण काफ़ी बड़े लगते हैं। मुझसे वह बहुत खुली है और हमारा संबंध बहुत घनिष्ठ है। नंदिनी असल में मेरे पति की चचेरी बहन है पर मेरी इकलौती ननद होने की वजह से उसे मेरे और मेरी सहेलियों की रंगीली छेड़छाड़ सहनी पड़ती है।
यह छेड़छाड़ सिर्फ़ बोलने सुनने की नहीं है, बहुत बार हम उसकी चूंचियाँ भी मसल देते हैं। होली में उसकी बचने की हर कोशिस नाकाम करके मैंने जबसे उसके टाप में हाथ डालकर उसका जोबन दबाया था, तबसे हमारे बीच के सब बांध टूट गये हैं। वह हमारी कामुक छिछोलेदार बातों और नान-वेज चुटकुलों का मजा तो लेती ही है, बल्कि खुद भी हमारी बातों का दो टूक जवाब देने की कोशिस में रहती है।
मेरे पति के साथ भी जब मैं बात. करती हूँ तो नंदिनी के बारे में भी हम ऐसी ही बात करते हैं। कल रात भी जब हमारी धुआंधार चुदाई चल रही थी तो मैंने अपने पति को छेड़ा “क्यों, नंदिनी की याद आ रही है जो आज इतने जोश में हो?”
उसने मेरी चूची दबाई और जवाब में अपना लंड बाहर निकालकर एक बार में फिर पूरा अंदर कर दिया। मेरे गाल पर दांत लगाते हुए वह बोला- “अभी वह छोटी है…”
मैंने अपने चूतड़ उछालकर कहा- “उसकी चिंता न करो, एक बार बरसात होने के बाद वह एकदम बड़ी हो जायेगी। वैसे भी तुम जब कहो, मैं ट्राई करा दूँगी, वह छोरी तुम्हारा ये पूरा मूसल घोंट जायेगी…”
इस बात पर उसने मेरे खड़े मम्मों को काट खाया और बोला- “मुझे क्या बहनचोद समझ रखा है?”
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मैंने अपने लंबे नाखून से उसकी पीठ खरोंचते हुए कहा- “और क्या, मुझे तो शुरू में ही पता चल गया था कि मेरी सारी ननद. छिनार है और ससुराल के सारे मर्द बहनचोद। वैसे तुम्हें आपत्ति हो तो मैं अपने भैया पंकज से उसका उद्घाटन करा दूँगी। हाँ चाहो तो पीछे वाली का उद्घाटन तमु कर देना। (मेरा पति नितंबों का रसिया है, गुदा सIभोग का बहुत शौकीन और हर दो तीन दिन में मेरी गान्ड का बाजा बज ही जाता है। मैंने बहुत बार उसे नंदिनी के कमसिन भरे नितंबों को घूरते हुए देखा है) और इस तरह बात बराबर हो जायेगी…”
इससे वह इतना मस्त हुआ और उस रात मेरी ऐसी चुदाई हुई जो बस जिंदगी में कभी-कभी होती है। मैं उसे नंदिनी के सामने भी छेड़ा करती थी और वे दोनों इस बात पर शरमा से जाते थे पर मन में दोनों के लड्डू फूटते थे, यह मुझे पक्का मालूम है।
अगले दिन सावन शुरू हो गया था। सावन की झड़ी लगी थी, घने बादल छाये थे। रेडियो पर गिरिजा देवी ‘बरसन लागी रे बदरिया अलाप रही थी। बाहर हरियाली छाई थी और मेरा मन खुशी से गा रहा था। मैं अपनी छोटी ननद नंदिनी को छेड़ रही थी। मैं उसके हाथ में मेंहंदी लगा रहा थी, उसकी गोरी हथेली और नाजुक उंगलियों पर सुंदर डिजाइन बना रही थी पर मेरा मन कल रात में खोया था।
मैं एक भी मिनट नही सोई थी, बाहर और कमरे में भी रात भर बरसात जो होती रही। वहां बादल धरती पर छाकर रस बरसा रहा थे, यहां मेरा पति मुझे पर छाया था और मैं उसके रस में भीगी जा रही थी। बिजली की हर गरज पर मैं उसे जकड़ लेती और वह अपना लंड मेरी चूत में पेल देता।
रात भर चुदाई चली, पहले बिजली की कौंध जैसी प्रखर, पर उसके बाद एक धीमी सुरी ली लय में जैसे सावन का रस बरस रहा हो। रात भर मेरी छरहरी टांग उसके कंधे पर टिकी रही थी। मेरी ननद ने अपनी बड़ी-बड़ी आँख. उठाकर मुझे उलाहना दिया- “क्यों भाभी, कहां खो गयी, ये मेरे हाथ है, भैया के नही …”
मैं खिलखिलाकर बोली – “तुम्हारे भैया हाथ नहीं, कुछ और पकड़ते है…”
वह भी हँसने लगी और बोली – “हाँ मालूम है…”
अब बारी मेरी थी, मैंने झूठ मूठ का अचरज दिखाते हुए कहा- “तुम्हें कैसे मालूम, तुमने भी पकड़ा था क्या?”
वह शरमा गयी।
पर मैंने नहीं छोड़ा- “बन्नो, अब तो तुम्हारा सोलहवां सावन लग गया है…” और फिर हाथ उसके स्कर्ट के अंदर डालकर बोली – “अब तो इस केसर क्यारी में बरसात हो जानी चाहिये…”
वह भी इस नोक झौंक में शामिल होकर बोली – “अरे भाभी, आपके ताल में तो रोज दिन रात पानी बरसता है, पर मेरी भाभी को अपनी इस ननद की फिकर ही नहीं है…”
उसके दूसरे हाथ में मेंहंदी लगाते हुए मैंने कहा- “मेरी गलती… अबकी बरसात में तो ज़रूर तुम्हारी केसर क्यारी में बरसात करवा दूँगी और कोई नहीं मिला तो तुम्हारे भैया तो हैं ही, उनका भी स्वाद बदल जायेगा। और लेट मी टेल यू, ही इज़ रियली गुड। और वैसे मेरा कज़न पंकज तो तुम्हारा दीवाना है ही, उसे तो जब चाहो…”
नंदिनी ने नाक सिकोड़कर कहा- “अपने भैया से कहिये अपना मुँह धो आए.…”
मैं हँसकर बोली – “अरे वो मुँह क्या, तुम जो कहोगी वह सब कुछ धोकर आ जायेगा…” फिर मैंने उसे याद दिलाया- “यू नो, पहले तुम्हारे लिए मैं क्या गाती थी?
हमरे गाँववाली गोरिया जब जवान होई, तब हमारा गंगा स्नान होई।
“तो अब गंगा स्नान करने का वक्त आ गया, चाहे तो मेरे भाई को और चाहो तो अपने भाई को या फिर दोनों को। इस बारिश में तो बरस जाओ जम के…”
एक दिन मैं अपने पति के साथ लिगरी खरीदने को गयी और कुछ सेक्सी चीज़. पसंद की। मैंने नंदिनी के लिए भी एक दो ली और अपने अजित को दिखाई। वह समझा कि ये मेरे लिए है इसलिए उसने सुझाव दिया कि गुलाबी रंग की पुश-अप टाइप की भी ले लूं। मैंने वे पैक कराईं और कुछ चाकलेट भी ले लिए।
जब हम घर पहुँचे तो मैंने पैकेट उसके हाथ में देकर उसे नंदिनी को देने को कहा। उसे लगा कि चाकलेट का पैकेट है और वह नंदिनी को देने लगा। मैंने कहा कि खोलकर दो। जब उसने पैकेट खोला तो वो गुलाबी ब्रा देखकर एकदम झेंप गया। मैं खिलखिला उठी और नंदिनी को छेड़ने लगी- “नंदिनी, ये तुम्हारे भैया खुद तुम्हारे लिए पसंद करके लाये हैं…”
फिर अजित को बोली – “अरे इतने प्यार से लाये हैं तो पहना भी दीजिये…”
नंदिनी शरमा कर भाग गयी। अजित भी शरमा गया था पर इतना उत्तेजित हो गया था कि कपड़े बदलते समय उसका खड़ा लंड साफ दिख रहा था। उन्होने उसी समय मुझे झुका कर मेरी इतनी जबरदस्त चुदाई की कि मजा आ गया।
हाँ, तो मैं कहाँ थी?
मैंने मेरी छोटी ननद के हाथ में मेंहंदी लगाने का काम पूरा कर लिया था और वह उसे सुखाने में लगी थी। बरसात अब कम हो गयी थी और सिर्फ़ बूंदा-बांदी हो रही थी। तभी मेरी सहेली प्रिया ने आकर हमें बाहर झूला झूलने को बुलाया। हमारे घर के पीछे घनी अमराई है जहां एक पेड़ पर झूला बंधता है और अड़ोस पड़ोस की सभी औरत और लड़कियां आकर झूला झूलते हैं और कजरी गाते हैं।
प्रिया भाभी कामुक रसीले चुटकुले सुनाने और दोहरे अर्थ की बात करने में एक्सपर्ट थी। मेरी ननद होने की वजह से नंदिनी बेचारी सबका निशाना बनती थी। जब सब औरत. साथ होती तो कोई किसी तरह की शरम या बंधन नहीं पालता था। हम अपनी रातों के अनुभव भी एक दूसरे को बताते। नंदिनी यह जानती थी इसलिए मेरे साथ आने में हिचकिचा रही थी। इसलिए उसने बहाना बना लिया कि हाथ की मेंहंदी सूखी नहीं है तो झूले की रस्सी वह कैसे पकड़ेगी।
प्रिया ने उसके गाल पर चुन्टी काट कर कहा- “अरे तुम्हारी भाभी तुम्हारे जोबन पकड़कर रहेगी। सारी रात तुम्हारी ये भाभी शकुन्तला तुम्हारे भैया के साथ झूला झूलती है, तो कौन सी रस्सी पकड़ती है। जैसे तुम्हारे भैया इसकी चूची पकड़कर झूला झुलाते हैं, वैसे ही हम आज उनकी बहन को झूला झुलाएँगे…”
जब हम अमराई को पहुँचे तो वहां तीन औरत. पहले ही झूला झूल रही थीं। सबके हाथ में मेंहंदी थी और धानी चुनरी में लिपटी, गहनों से लदी वे सुंदर नारियाँ अठखेलियां कर रही थीं। नंदिनी को देखते ही वे उससे छेड़छाड़ करने लगीं- “क्यों ननद रानी, अभी बरसात हुई कि नहीं?”
उसे बीच में बिठाकर एक बाजू से प्रिया भाभी और एक बाजू से एक दूसरी औरत ने उसे पकड़ लिया। पकड़कर सहारा देने का तो सिर्फ़ बहाना था, असल में वे उसके कमसिन उरोजो को सहला रही थी। मुझे झूले को धक्का देने या पेंग देने का काम दिया गया। जल्द ही हमने झूले की गति बढ़ा दी और बेचारी नंदिनी, अपने हाथों में लगी गीली मेंहंदी के कारण अपने बचाव में कुछ नहीं कर सकी। प्रिया भाभी उसे छेड़ते हुए एक कजरी गाने लगी।
कैसे खेलन जैबो सावन में कजरिया, बदरिया घिर आयी ननदी,
तू तो जात हो अकेली, न संग न सहेली, गुंडा और छैला घेर लेहिएँ तोरी डगरिया,
बदरिया घिर आयी ननदी,
कोई तो चोलिया खोलिये और कस के जोबना मसलिएँ,
और कोई भरतपुर लूटिएँ, लुट जायी आज तोरी जवानियां, बदरिया घिर आयी ननदी.
जल्दी ही गीत और उनके हावभाव ज़्यादा कामुक और रंगीले हो गये और अब नंदिनी भी उस माहौल में मन से शामिल हो गयी। पर अब फिर से वर्षा का जोर बढ़ गया था और इसलिए मेरी अधिकतर सहेलियां वहां से खिसक ली। अब मैं और प्रिया भाभी ही रह गये और रह गयी हमारे बीच सेंडविच बनी नंदिनी।
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प्रिया भाभी ने मुझे खूब आग्रह किया कि मेरी रात के क्रिया कलापों का विस्तृत विवरण दूं। मुझे मालूम था कि यह सब असल में नंदिनी के लिए था और मैंने भी पूरे डिटेल में अपनी आपबीती हिन्दी में सुनायी। मैंने बड़े मजे ले-लेकर बताया कि कैसे अजित ने मेरे पैर अपने कंधे पर रखकर सारी रात मुझे चोदा, चोदते समय कैसे मेरी चूंचियाँ मसल-मसलकर रगड़ी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
और कैसे मेरा एक निपल उनके मुँह में था, एक हाथ में था और कैसे उनकी एक उंगली मेरा क्लिट सहला रही थी। ये सब बात. करके मैं और मेरी जवान ननद बहुत उत्तेजित हो गये थे। उधर प्रिया भाभी एक और सेक्सी कजरी गाने लगी।
बदरिया घिर आयी ननदी, अरे मोरे सैयाँ और देवर दोनों बड़े ही रसिया कैसे खेलूं कजरिया रे
देवर मोरा चोली खोले और सैयाँ साया उठाये,
देवर मोरा बडा ही रसिया जोबन मोरा दबाये, सैयाँ मोरा बात न माने कस के अंदर धँसाये
अरे दोनों संग-संग लूटे मजा सावनवां में,
बदरिया घिर आयी ननदी।
अब नंदिनी ने भी भाभी की बात का दो टूक जवाब देते हुए कहा- “अरे भाभी, ये तो बड़ी मजेदार बात है, एक साथ दो-दो का मजा, और क्या चाहिये…”
मैं प्रिया से बोली कि चलो, हम लोग भी आज इसको एक साथ दो का मजा देते हैं।
प्रिया भाभी हाँ बोली और तुरंत उसके हाथ नंदिनी के टाप के अंदर घुस गये। इसके पहले कि नंदिनी कुछ कहती या प्रतिकार करती, भाभी उसके जवान स्तनों को पकड़कर प्यार से सहलाने और दबाने लगी। मैंने नंदिनी की स्कर्ट उठाकर उसकी पैंटी उतार दी।
अब पानी फिर जोर से बरसने लगा था और हमारे कपड़े गीले होकर हमारे शरीर से ऐसे चिपक गये थे कि हर अंग का आकार साफ दिखता था। बेचारी नंदिनी हमारे बीच फंसी थी और वह छूटने को अपने हाथों का प्रयोग भी नहीं कर सकती थी। इतनी देर की रंगीली छेड़छाड़ ने उसे भी उत्तेजित कर दिया था। मेरी उंगली अब उसके बाहरी भगोश्ठ (लेबिया) को रगड़ रही थी और अंगूठा उसके क्लिट को छेड़ रहा था।
“ओह… नहीं भाभी, अब छोड़ दी जिये…” कहती हुई वह प्रतिरोध तो कर रही थी पर यह एकदम कमजोर प्रतिरोध था।
“अरे सावन में मजा न लोगी तो कब लोगी? फिर कहोगी कि भैया से भाभी तो मजा ले लेती हैं और मैं प्यासी रह जाती हूँ…” कहते हुए, मैने उसकी कोरी कँवारी चूत की रगड़-घिसाई और तेज कर दी।
“अरे आज हमीं दो से मजा ले लो…” कहकर प्रिया भाभी ने उसका टाप उठाकर उसका भीगा जोबन नंगा कर दिया- “देखो आज बताती हूँ कि तुम्हारे भैया कैसे चूची रगड़ते हैं…” कहती हुई वह अपनी दोनों हथेलियां नंदिनी की किशोर छातियों पर रखकर उन्हें जोर से मसलने लगी।
“हाँ और मैं बताती हूँ कि कैसे उनका लंड मेरी चूत में चुदाई करता है, कहकर मैंने अपनी उंगली की टिप उसकी चूत में अंदर डाल दी और धीरे-धीरे गोल-गोल घुमाने लगी।
“ओह भाभी, प्लीज़…” कहती हुई वह अपने चूतड़ झूले पर रगड़ रही थी। काले घने बादल फिर घिर आये थे।
हमारे पैर झूले को पेंग दे रहे थे और उसी लय में हमारे हाथ मेरी ननद की चूत और चूची को रगड़ रहे थे। मेरी एक उंगली उसकी चूत के अंदर थी और दूसरी उसकी चूत को खूब जोर से दबा रहा थी। मेरा अंगूठा उसके क्लिट पर जमा हुआ था और उससे धींगा-मस्ती कर रहा था।
“ओह, भाभी, ओह…” कहके अब नंदिनी सिसकारियाँ भरती हुई तड़प रही थी।
मैंने प्रिया की ओर देखा और वह समझ गयी। उसने नंदिनी के निप्पलों पर अपना दबाव बढ़ा दिया और मैंने उसके क्लिट को उंगली और अंगूठे के बीच लेकर रगड़कर दबा दिया। नंदिनी शायद, पहले भी झड़ चुकी होगी पर झूले पर झूलते हुए, बरसात में भीगते हुए ओर्गज़म का उसका यह पहला अनुभव था। हम दोनों ने उसे बाहों में भींच लिया, और यह कामना की कि उसके ‘थाइलेंड़ ’ में घनघोर वर्षा होती रहे।
अब तक उसे बहुत मजा आने लगा था। बोली – “अरे भाभी, आप लोगों से बचे तब ना…”
मैंने चुटकी लेते हुए कहा- “कोई बात नहीं ननद रानी, कुछ नहीं तो मैं शेयर कर लूंगी, मैं कुछ दिन बाद चार पांच दिन छुट्टी पर जा रही हूँ, और तुम्हारे भैया उपवास पर रहेंगे। इससे अच्छा… अरे जो केयर करते हैं वही शेयर करते हैं…”
जैसे ही पानी कुछ थमा, हम घर की ओर भागे। मैं नंदिनी को अपने कमरे में ले गयी। उसे छीन्क आयी तो मैंने ये कहकर कि “अरे ठंडक लग जायेगी, जल्दी ये गीले कपड़े उतारो…” ओर उसे कुछ समझ में आने के पहले ही उसका टाप उतार दिया और ब्रेजियर खोल डाली।
वह बेचारी झेंप कर अपनी ब्रा पकडने की कोशिस करने लगी पर मेरे आगे उसकी क्या चलती। उसके कमसिन जवान स्तन बाहर आ गये। मैंने एक छोटा तौलिया लिया और उन्हें पोंछने का दिखावा करती हुई उन्हें जोर से रगड़ने लगी। तभी मुझे भी छीन्क आ गयी। अब नंदिनी की बारी थी, उसने मेरी साड़ी खींच दी और बोली – “भाभी आप भी कपड़े बदलिए…”
“ठकि है…” कहकर मैंने अपना ब्लाउज़ और ब्रा भी खोल दी।
नंदिनी की आँख. मेरे गर्व से तनी 36डीडी साइज़ के जोबन पर गड़ी थीं। जब उसने उनपर बने दांत के निशान, खरोन्चे और बृजिंग के निशान देखे तो वह चौंक पड़ी- “ये क्या भाभी, ये कैसे निशान हैं?”
उसकी स्कर्ट उतारते हुए मैं बोली – “तुम्हारे भैया के, रात भर जो उन्होने काटा और चूसा है…”
“अरे मेरे भैया तो बड़े जुल्मी हैं…” कहते हुए नंदिनी ने हल्के से मेरे उरोजो को छुआ।
मैंने उसके हाथों में अपनी चूची थमा दी और बोली – “और क्या? लेकिन बन्नो, दर्द चाहे जितना हो, मजा भी खूब आता है। मैं तो कहती हूँ कि एक बार तुम भी उनसे चुसवा कर देखो…”
नंदिनी घबरा गयी- “ना बाबा ना, मुझे ऐसे नहीं कटवाना…”
“चलो, भैया से तो जब भैया आएँगे तब चुसवाना, अभी भाभी से चुसवा लो…” कहते हुए मैंने उसकी कुँवारी कोमल चूची मुँह में भर ली और लगी चूसने। थोड़ी देर बाद मेरी जीभ उसके स्तन के निचले भाग को चाटती हुई उसके स्तनाग्रो की ओर बढ़ने लगी। दूसरे हाथ से मैं उसके उरोजो को पकड़कर धीरे-धीरे मसल रही थी। वह ‘नहीं भाभी, नहीं भाभी’ कर रही थी पर मैं जानती थी कि यह सिर्फ़ दिखावे का विरोध है।
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मेरी जीभ अब उसके जोबन को सहलाकर चाट रही थी और उसके स्तनों को मस्त कर रही थी। बीच में ही मैं अपनी जीभ से उसके स्तनाग्रो को फ्लिक कर देती। अचानक मैंने उसके एक निपल को अपने होंठों के बीच पकड़ लिया और उसे चूसने लगी। नंदिनी अब सिसक रही थी “भाभी ओह, हाँ, ऊह… नहीं भाभी, छोड़ दीजिये प्लीज़…”
मैंने एक मस्ती की सिसकारी भरी और उसके हाथ अपने दूधिया स्तनों पर रखकर उसे मेरे मतवाले उरोजो को दबाने और हथेली में भरकर उनसे खेलने पर मजबूर कर दिया। कुछ देर की हिचकिचाहट के बाद नंदिनी के हाथ मेरे स्तनों पर घूमने लगे और मैं उत्तेजित होकर उस सुकुमार कन्या के स्तन और जोर से मसलने लगी।
तभी फोन की घंटी की कर्कश आवाज ने हमारी इस धुंद रति को रोक दिया। नंदिनी फोन उठाकर बात करने लगी। मैं उसकी चूंचियाँ हाथ में पकड़कर उससे पीछे से चिपक गई और हचक-हचक कर धक्के मारने लगी जैसे उसे पीछे से चोद रही होऊँ। मेरी चूंचियाँ उसकी नग्न कोमल पीठ पर रगड़ रही थी।
“येस? अच्छा तो साले जी है… हाँ कहिये? मैं सब समझती हूँ… मेरी नहीं, इस सेक्सी मौसम में आपको मेरी नहीं, अपनी बहनजी की याद सता रही होगी…”
नंदिनी की चुचियों का मर्दन करते हुए मैं सब सुन रही थी। मैं समझ गयी कि वह मेरे भाई पंकज से बात कर रही है। मेरी शादी से ही वह उसे ‘साले जी’ कहकर चिढ़ाती थी। फोन पर पंकज है यह समझ में आते ही मैंने उसके निप्पलों को उंगलियों से मसला और दूसरे हाथ से उसकी चूत कसकर पकड़ ली।
वह ‘आह’ कर उठी और पंकज ने पूछा कि क्या हुआ?
मैंने फोन नंदिनी के हाथ से खींचकर हँसते हुए पंकज से कहा- “इस मस्त मौसम में वह तुम्हारी आवाज सुनकर सिसक रही है, अगर तुम आ जाओ तो…”
पंकज बोला- “ठीक है मैं आ रहा हूँ, पर रात भर रुकुंगा…”
मैंने नंदिनी को बताया- “देखो, पंकज आ रहा है, लगता है आज तो बरसात होकर ही रहेगी…”
वह शरमा गयी और बोली – “हाँ, मैं जानती हू…”
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अचानक मैंने गौर किया कि नंदिनी के कपड़े तो नीचे उसके कमरे में होंगे इसलिए मैंने उसे अपनी एक धानी साड़ी पहना दी, जो सावन की इस छटा से मेल खा रही थी। मैंने भी एक ऐसी ही साड़ी पहन ली। नंदिनी ने साड़ी तो पहन ली पर फिर तुनक गयी- “भाभी आपकी चोली तो…”
मेरे पास इस समस्या का भी समाधान था- “देखो, अभी हमारे पास समय नहीं है, पंकज ने पास से ही फोन किया था, वह आता ही होगा। तुम मेरी ये स्ट्रिंग वाली चोली पहन लो। यह बैकलेस है और इसे पीछे से बांध सकते हैं। ब्रा अभी रहने दो…” उसके कुछ कहने के पहले मैंने उसे अपनी बैकलेस चोली पहना दी और पीछे से कसकर डोरी उसकी पीठ पर बांध दी।
उन कपों में कस जाने के बाद उसके टेनिस की गेंदों जैसे स्तन तनकर खड़े हो गये और ऊपर उभर आये। उसे यह पता नहीं था कि वह लो कट चोली है और उसमें से उसकी जवानी का माल साफ दिख रहा है। मैंने उसके निपल कस के दबाये और वे भी कड़े होकर उभर आये।
बेल बजी और वह भागकर दरवाजा खोलने चली गयी कि शायद पंकज आ गया। भैया ज़रूर आये थे पर मेरे नहीं, उसके… मेरा पति अजित ओफिस से जल्दी आ गया था। यह समझकर कि मैं हूँ, उसने नंदिनी को ही कसकर आलिगन में समेट लिया। पीछे से मेरे हँसने पर उसे अपनी गलती समझ में आयी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
पर जब उसने मेरी ननद की ओर देखा तो उसकी निगाह. नंदिनी के जवान उरोजो पर अटक गयीं जो उस तंग लो कट बैकलेस चोली में बंध कर गर्व से सीना तान कर खड़े थे। अपने स्तनों का उभार छुपाने के लिए नंदिनी ने आंचल लेना चाहा पर मैंने हँस के उसका आंचल उसके मम्मों के बीच समेट दिया। मैं समझ गयी थी कि मेरा पति बहुत उत्तेजित हो गया है, उसके पैंट में तंबू दिखायी देने लगा था।
जब हम अपने कमरे में आये तो मैंने तुरंत उसे हाथ में जकड़ लिया और बोली – “अगर चोली के अंदर से देखकर ये हाल हो रहा है तो एक बार जब हाथ में आ जायेगा तो क्या होगा? तुम कुछ भी कहो, अब यह साबित हो गया है कि मेरी छोटी सी ननद पर तुम मरते हो…” यह कहकर मैं उसकी गोद में बैठ गयी और उसके प्यासे होंठों को चूमकर पूछा- “क्यों कैसा लगा मेरी ननद का रूप?”
“बड़ी हो गयी है…” उसने कबूल किया।
मैं अपने नितम्ब उसके तनकर खड़े लंड पर रगड़ती हुई बोली – “बड़ी हो गयी है या बड़ा हो गया है। मैं उसको बुलाती हूँ, एक बार फिर जरा कस के पकड़ के देखो…”
वह मुझे रोकता रह गया पर मैंने नंदिनी को हांक मारकर बुला ही लिया। वह बेचारी आंचल में अपनी जवानी छुपाने की कोशिस करती हुई आई पर उससे उसके किशोर स्तन और उभरकर दिख रहे थे। मै अपने पति की गोद में ही बैठी रही और उसके लंड में फिर से होती उत्तेजना का आभास मुझे होता रहा। मैंने नंदिनी को रसोई के बारे में विस्तार से हिदायत दी। मैंने उससे कहा कि आराम से समय लेकर तैयारी करे क्योंकी आज पंकज आ रहा है और उसे खुश करना ज़रूरी है।
उसने पूछा कि भाभी, भैया को कुछ चाय या नाश्ता चाहिये होगा?
मैंने मना कर दिया। कहा कि उन्हें बाहर जाना है इसलिए वह सब तैयारी कर ले और मैं फिर आकर खाना पकाने में उसकी सहायता करूँगी। उसके जाते ही मैंने दरवाजा लगाकर सिटकनी चढ़ा दी और वापस अजित के पास आ गयी। वह समझ गया कि नंदिनी अब रसोई में घंटे भर तो व्यस्त रहेगी।
मैंने जिप खोलकर उसका लंड निकाल लिया और अधीरता से उसे चूसने लगी। फिर उसे लिटाकर मैं उसपर चढ़ गयी और ऊपर से मन भर के जबरदस्त चुदाई की। कुछ देर बाद मैं नीचे थी और वो ऊपर थे। मैं सिसकारियाँ भर भरकर बोलती रही – “आह… ओह… प्लीज़ और कस के चोदो… हाँ, ऐसे ही …” पलंग के चरमराने के साथ ही मेरी पायल खनक रही थी और नंदिनी को वह सुनाई दे रही होगी, मैं जानती थी।
जब हमारी चुदाई समाप्त हुई तो अजित थक कर लस्त हो गया था। मैं किचन में आयी तो नंदिनी अपनी मुस्कान नहीं छुपा पाई- “क्यों भाभी, भैया को नाश्ता करा दिया?”
“हाँ, पर अभी मेरा भाई आ रहा है, उसे तुम नाश्ता, डिनर, ब्रेकफ़ास्ट सब करवा देना, और अब अगर ज़्यादा बोला ना…” कहते हुए मैंने एक बैंगन उठा लिया- “… तो मेरा भाई तो बाद में आयेगा, पहले मैं ही तुम्हारी चूत को नाश्ता करा दूँगी…”
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पंकज जल्दी ही आ गया। बिलकुल भीग गया था क्योंकी पानी फिर बरसने लगा था। उसकी यह हालत देखकर नंदिनी हँसने लगी। मैंने उसे डांटा और कहा कि जल्दी से इसे कपड़े दे, नहीं तो ठंडक लग जायेगी।
नंदिनी उसे ताने मारती रही – “मै अपनी टाप, स्कर्ट दूं या भाभी आपकी साड़ी और ब्लाउज़ लाऊँ ?” और मेरे कानों में धीरे से बोली – “और भाभी अपने भाई से उनकी ब्रा का साइज़ तो पूछ ली जिये, मेरी तो होगी नहीं, शायद आपकी हो जाये…”
पंकज के कान पर उसकी फुसफुसाहट नहीं पहुँची थी। बोला- “नहीं नहीं, मैं एक जोड़े कपड़े साथ लाया हूँ…”
नंदिनी उसके लिए तौलिया लेकर आयी और उसने अपने आपको सुखाकर कपड़े बदल लिए। उन्हें अकेला छोड़कर मैं खाना लगाने चली गई। खाने को बैठने के पहले मैंने नंदिनी की ड्रेस बदलवा दी थी। अब वह एक साल पुराना फ्रोक पहने थी जो उसे टाइट होता था और वह बिल्कुल किसी म्यूजिक वीडियो वाली बेबी डाल लग रही थी। नंदिनी को मैंने अजित के सामने और मेरे भैया पंकज के बाजू में बिठाया था।
उसको खाना परोसते समय मैं उसे लगातार छेड़ रही थी- “नंदिनी, सिर्फ़ अपने भाई को मत दो, मेरे भाई का भी खयाल रखना…”
वह बोली – “नहीं भाभी, मैं दोनों का खयाल रखूंगी…” नंदिनी का टाइट फ्रोक लो कट था और जब वह झुकती, दोनों पुरुष उसके मचलते स्तनों और बीच की घाटी के सौंदर्य का मजा लेते। मैंने अपने पति की पैंट में दिखते तंबू का अंदाजा लिया। वह फिर से अपना सिर उठा रहा था। उसे दबाते हुए मैंने नंदिनी को फिर ताना मारा- “देखो, जैसे मैं रोज तुम्हारे भाई का खयाल रखती हूँ, वैसे ही तुम मेरे भाई का खयाल रखो…”
मेरी बात का दुहरा अर्थ समझकर वह शर्मा गई पर उलट कर बोली – “दे तो रही हूँ आपके भाई को पर वे ही शरमा रहे हैं…”
खाने भर हमारी यह छेड़छाड़ और हँसी मजाक चलते रहे। अजित का अब पूरा खडा हो गया था, शायद मेरी किशोरी ननद के जवान जोबन के लगातार दर्शन, मेरी उंगलियों की उसके लंड से खेल और सावन की लगातार झड़ी ने उसे मदहोश कर दिया था। एक जम्भाइ देकर दर्शाते हुए कि वह थक गया है, अजित उठा और जाने के पहले मुझे जल्दी आने को कह गया।
नंदिनी मुझे बोली – “भाभी, भैया को नींद आ रही है, जाके सुला दीजिये…”
मैने उसके गाल पर चुन्टी काट कर कहा- “ठीक है, उन्हें तो मैं रोज सुलाती हूँ, पर तुम आज जरा मेरे भाई को ठीक से सुलाना…”
पंकज के सोने का इंतजाम मैंने नंदिनी के पास वाले कमरे में ही किया था। वह कमरा असल में करीब-करीब नंदिनी के कमरे का ही एक भाग था, बीच में बस एक दरवाजा था। मैं दो गलास दूध लाई और नंदिनी को देते हुए बोली – “एक तुम्हारे लिए और एक मेरे भैया के लिए, उन्हें जरा अपने हाथ से पिला देना…”
वह हँस पड़ी और पंकज को छेड़ते हुए बोली – “अरे मुझे नहीं मालूम था कि साले जी अब तक दूध पीते हैं…”
मैंने पंकज का पक्ष लेते हुए कहा- “अरे अगर तुम्हारे जैसी पिलाने वाली हो तो वह रात भर मुँह लगाकर पीता रहे…”
इस बार नंदिनी ने तुरंत पलटकर जवाब दिया- “भाभी, आपके भैया तो मुँह खोलते ही नहीं…”
मैंने नंदिनी की चूची दबाकर कहा- “अरे बन्नो, ये मेरे सामने मुँह नहीं खोल रहा है, अभी मेरे जाने के बाद देखना क्या-क्या खोलता है…”
तभी अजित ने मुझे आवाज लगायी, कि एक गलास पानी लेकर आऊँ।
नंदिनी बोली – “भाभी, जल्दी जाइये, भैया की प्यास नहीं बुझी तो…”
मैं उसकी बात काट कर बोली – “ठीक है, मैं चली तुम्हारे भाई की प्यास बुझाने और तुम मेरे भाई की प्यास बुझाओ…”
जब मैं ऊपर अपने बेडरूम में पहुँची तो देखा कि अब बात हद तक बढ़ गयी थी। अजित पलंग पर पूर्ण नग्नावस्था में लेटा हुआ था और उसका लंड शान से झंडे जैसा सिर उठाकर खड़ा था। मैंने फटाफट अपने कपड़े उतारे और उसके उस महाकाय लंड का चुंबन लिया।
मैंने होंठों को उसके सुपाड़े पर रगड़ा और उसपर जीभ चलाते हुए पूछा- “लगता है कि आज मेरी किशोरी ननद की उभरती चूंचियाँ देखकर एकदम मस्त हो गये हो। घबराओ मत, जल्दी ही उसके कुंवारे होंठ तुम्हें चाट रहे होंगे और तुम उसके सारे रसीले छेदो का मजा लोगे…”
मेरे पति ने बात काट कर कहा- “ये क्या बोल रही हो, और किससे बोल रही हो?”
मैंने उसके लोहे जैसे सख़्त लंड को दबाते अजित को आँख मारते हुए कहा- “अपने इस मस्त यार से जो आज मेरी कमसिन ननद की चूंचियाँ देखकर मस्त हो गया है। मैं उसको बोल रही हूँ कि उसे छोटी मस्त चूची वाली का मजा चखाऊँगी। आखिर यह मुझे इतना मजा देता है, मुझे भी तो इसका खयाल रखना चाहिये…”
इतना कहकर मैंने मुँह खोलकर एक बार में ही उसका फूला हुआ लाल तपता सुपाड़ा अपने जलते होंठों के बीच ले लिया। मेरी लंबी स्लिम उंगलियां अब उसकी गोटियां सहला रही थीं। मेरी जीभ उसके मूंड छिद्र को छेड़कर उसके डंडे को चाटने लगी थी, साथ ही मेरी उंगलियां उसकी गोटियों और गुदा के बीच के भाग को हौले-हौले रगड़ रही थीं।
अब वह बुरी तरह उत्तेजित था और मुझसे और करने की याचना कर रहा था। आखिर मैं कौन होती थी, अपने ननद के भाई को भूखा रखने वाली? इसलिए मैंने उसे जोर से चूसना शुरू कर दिया। वह अपने चूतड़ उचका-उचका कर और मजा लेने की कोशिस कर रहा था। कुछ देर जोर से चूसने के बाद मैंने उसके लंड को मुँह से निकाला और अपने निचले मुँह के होंठों से उसे छेड़ने लगी।
मैंने उसके हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए थे और मेरी मस्त 36डीडी का जोबन उसकी छाती पर रगड़ रही थी। अब वह बुरी तरह उत्तेजित था और मुझसे और करने की याचना कर रहा था। आखिर मैं कौन होती थी, अपने ननद के भाई को भूखा रखने वाली ? इसलिए मैंने उसे जोर से चूसना शुरू कर दिया।
वह अपने चूतड़ उचका-उचका कर और मजा लेने की कोशिस कर रहा था। कुछ देर जोर से चूसने के बाद मैंने उसके लंड को मुँह से निकाला और अपने निचले मुँह के होंठों से उसे छेड़ने लगी। मैंने उसके हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए थे और मेरी मस्त 36डीडी का जोबन उसकी छाती पर रगड़ रही थी।
बाहर कुछ देर पहले की बूंदा-बांदी अब घनघोर वर्षा में परवर्तित हो गयी थी। खिड़की पर बूँदों के गिरने की आवाज के साथ-साथ मैं अपनी चूत उसके तन्नाये लंड पर घिस रही थी। अब वह मुझसे याचना करते हुए कह रहा था- “प्लीज़, टेक इट, मेरा लंड ले लो, ओह, ओह…”
मैंने एक धीमे धक्के के साथ बस उसके लंड का छोर अपनी चूत में ले लिया और फिर रुक गयी- “ओके, मैं अभी खूब जम के चुदाई कराऊँगी पर पहले एक बात इमानदारी से बताओ…” मुझे मालूम था कि लंड का छोर चूत में फँसा हो तो इस हालत में कोई पुरुष झूठ नहीं बोल सकता।
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“हाँ पूछो…” बेचारा अजित विवश होकर बोला।
“जब तुमने मेरी ननद का जोबन देखा तो तुम्हारा खड़ा हुआ था कि नहीं?” मैंने पूछा।
“किसी का भी हो जायेगा, एक किशोरी का खिलता जोबन देखकर…” वह बोला।
“नहीं मैं तुम्हारा पूछ रही हूँ, सच सच बताओ नंदिनी का देखकर तुम्हारा खड़ा हो गया था कि नहीं?”
“हाँ हो गया था एकदम हो गया था…” उसने स्वीकार किया “पर प्लीज़ चोदो ना…”
मैंने अपनी पतली कमर से धक्का दिया और उसका सुपाड़ा अपनी चूत में लेकर फिर रुक गयी। चूत को सिकोड़कर उसे पकड़ते हुए मैंने अपनी पूछताछ जारी रखी- “तो तुमको लगता है कि वह मस्त माल हो गयी है चोदने लायक…”
“हाँ लेकिन अभी तो तुम मुझे चोदो…”
उसके इस बात को स्वीकारने के बाद मैंने जोर से धक्का लगाया और उसक लंड गप से मेरी गीली चूत में समा गया। मतवाले मौसम के साथ-साथ नंदिनी के बारे में की हुई मेरी छेड़-छाड़ के कारण उसका लंड लोहे के राड जैसा खड़ा हो गया था। मेरी म्यान में घुसकर उसे चौड़ा करता हुआ अंदर से मेरी कोमल नलिका को वह जोर से घिस रहा था।
अब मैं भी न रुक सकी और उछल-उछलकर उसे चोदने लगी। मेरी कसी मस्त चुचियों को वह मसल कुचल रहा था। मैं उसके कंधे पकड़कर ऊपर से धक्के लगा रही थी और उसके मतवाले लंड को अपनी चूत में निगल कर चोद रही थी। उसके लंड को मेरी चूत अपनी माँस पेशियों को सिकोड़कर कसकर पकड़ लेती और कभी मैं उसे अपनी चूत से करीब-करीब पूरा निकाल देती।
सिर्फ़ सुपाड़ा अंदर रह जाता। उसे कुछ देर तंग करने के बाद मैं उसकी पीठ अपने लंबे नाखूनों से खरोंच कर फिर उसका लंड पूरा अंदर ले लेती। एक हवा के झोंके के साथ खिड़की खुल गयी और वर्षा की फुहार. अंदर आकर मेरी ज़ुल्फो से खेलने लगी। ठंडी हवा ने मेरी पीठ को सहलाया और हवा के एक और झोंके ने वर्षा की बूँदों से मेरे स्तनों के उभार को रस में भिगो दिया। मेरे पति ने मुझे कसकर बाहों में लेकर मेरे स्तन अपनी छाती पर भींच लिए।
मेरे कान में फुसफुसा कर वह बोला- “बहुत मजा आ रहा है…”
उसे छेड़ने का एक भी मौका मैं हाथ से नहीं जाने देती थी। बोली – “कल जब नंदिनी को चोदोगे ना तो इससे भी ज़्यादा मजा आयेगा…”
दिखावे का गुस्सा करते हुए वह मुझपर झपटा और मुझे मेरी पीठ के बल नीचे पटक दिया। पर ऐसा करने में उसका लंड मेरी चूत से बाहर आ गया। उसने मेरे पैर मोड़कर उन्हें मेरे सिर के पास लाकर मेरी गठरी बना दी और अपना लंड मेरे क्लिट पर रगड़ने लगा- “मुझे बहनचोद बनाने चली थी, चलो पहले तुम तो चुदाओ फिर अपनी ननद की बात करना…”
अपनी चूत सिकोड़कर मैंने उसे लंड अंदर डालने से रोका और ताना मारा- “मन तो करता है मिल जाये… अरे मैं तो चुदवाऊँगी ही पर…” अचानक बिजली जोर से कौंधी और मैं एक चीख के साथ उससे चिपक गयी। मौका देखकर अजित ने एक बार में अपना लंड जड़ तक मेरी चूत में उतार दिया।
बाहर लगातार गरज के साथ वर्षा हो रही थी और हम उसी लय में चुदाई कर रहे थे। हम ऐसे मदहोश हुए कि समय का कोई ध्यान हमें नहीं रहा। मैं भी अजित के हर धक्के के जवाब में उतने ही जोर से नीचे से अपने चूतड़ उछालती थी। बहुत देर चोद-चोदकर आखिर हम एक साथ स्खलित हुए।
बिजली भी चली गयी थी और घना अंधेरा छा गया था। हम एक दूसरे की बाहों में लिपटे रहे। बिजली की कौंध में हमारे आपस में लिपटे नग्न तन क्षणभर को दिखाई देते और फिर गायब हो जाते। मेरे पति ने धीरे-धीरे मेरे कान को अपने दाँतों से कतरना शुरू कर दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
बादलों की गरज अब बंद हो गयी थी और रिमझिम पानी बरस रहा था इसलिए हमने कमरे की सब खिड़कियां खोल दी थीं। रस की बौछार. हमें बार-बार भिगा जातीं। पानी की बूँदों से मेरे फिर से उत्तेजित निपल गीले हो गये थे और एक बूँद निपल के छोर पर आकर थम गयी थी। मेरा पति उसका लोभ न पचा पाया और उसने वो बूंद जीभ से चाट ली।
धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ता हुआ वह मेरे गोरे पेट पर जमी नन्हीं बूँदों को चाटने लगा। वहां से मेरी कामना की घाटी तक पहुँचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने होंठों से मेरी स्वादिष्ट रसीली चूत को खोलते हुए उसकी जीभ मेरी चूत में घुसकर उसे चाटने लगी। मैं असहनीय सुख से अधमरी सी हो गयी थी।
वहां से मेरी कामना की घाटी तक पहुँचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने होंठों से मेरी स्वादिष्ट रसीली चूत को खोलते हुए उसकी जीभ मेरी चूत में घुसकर उसे चाटने लगी। मैं असहनीय सुख से अधमरी सी हो गयी थी। बाल्कनी के खुले दरवाजे को देखकर उसे एक बात सूझी। मुझे खींचकर वह बाहर ले गया।
मैं कहती ही रह गयी कि अरे ये क्या करते हो, मैं कुछ पहन तो लूं, पर वह एक न माना। रात की मखमली काली चादर ने हमें ओढ़ा रखा था। हम दोनों उस बरसते अमृत में भीगते हुए उस स्वर्गसुख का आनंद लेने लेगे। “आओ आज तुम्हें सावन की फुहार का पूरा मजा देता हूँ…”
उसकी इस बात से मैं कहाँ पीछे हटने वाली थी। उससे चिपटते हुए मैने कहा- “मजा तो मैं दूँगी चलो उधर सावन बरसे इधर तुम बरसो…” और यह कहते हुए मैंने अपनी अंदर और बाहर से पूरी गीली चूत उसके लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया। अंधेरा ज़रूर था पर बादल छँट रहे थे और बीच-बीच में चांद बादलों के पीछे से ऐसे निकल आता जैसे कोई दुल्हन साजन की एक झलकी के लिए घूंघट उठाकर देख रही हो।
चंद्रमा का बढ़ता घटता प्रकाश हमारे शरीर पर रंगोली सी बना रहा था। मैं उसका लंड पकड़े थी और वह मेरी चूत से खेल रहा था। हम दोनों वर्षा में भीगते हुए फिर तप उठे थे। बाल्कनी की मुंडेर देखकर मेरे पति ने मुझे चारों खाने नीचे हो जाने को कहा। मैं तुरंत कोहनियों और घुटनों पर जम गयी।
वर्षा की बूंदे अब मेरी पीठ पर पड़कर मेरे नितंबों की चीर में से जलधारा बनाते हुए बह रही थीं। तेज फुहार मेरे उरोजो पर चुभ रही थीं। जल्दी ही मेरे पति ने मेरे पीछे से एक हाथ से मेरी चूची पकड़ी और अपना लंड मेरी चूत में एक बार में आधे से ज़्यादा गाड़ दिया- “मेरी बहुत दिन से इक्षा थी कि सावन में भीगते हुए खूब जमकर चुदाई करूँ.…” वह सिसक कर बोला।
“हाँ, और मेरी भी…” कहते हुए मैंने चूत से उसके लंड को जकड़ लिया और उसके अगले प्रहार की प्रतीक्षा करने लगी। पर हमारे भाग्य में यह नहीं था। बिजली लौट आयी और उजाला हो गया। हमने जल्दी में बाल्कनी का लाइट आन रहने दिया था।
हम शायद फिर भी जुटे रहते पर पास के फ्लेट से आवाज आने से हमारी हिम्मत नहीं हुई। हम भागकर अंदर आये और दरवाजा लगा लिया। अंदर हमें रोकने वाला कोई नहीं था। मैं अपने साजन के गोद में बैठ गयी और उसका लंड अपनी चूत में ले लिया।
वह बोला- “चलो आज तुम्हें सावन के झूले का मजा दूं.…” और मेरी पतली कमरिया दोनों हाथों में पकड़कर वह मुझे झुलाने के अंदाज में चोदने लगा।
हम लोगों ने खूब आसन बदल-बदल कर चुदाई की। बाहर पानी तेज हो गया था और उसके साथ हमारी चुदाई की रफ़्तार भी। आखिर अजित ने मुझे पलंग पर पटका, झुक कर मेरी टांग उठाकर अपने कंध पर रखीं और फिर हचक-हचक कर मुझे चोदने लगा। मेरी चूची की खूब जमकर रगड़ाई हो रही थी और चूत की जमकर चुदाई।
करीब करीब आधे घंटे की घमासान रति के बाद हम झड़े। दोनों थक कर चूर हो गये थे। मैं उसके पीछे उससे चिपट कर लेटी थी और मेरी चूची उसकी पीठ पर रगड़ते हुए उसके कान हौले-हौले काट रही थी। हम इसी तरह स्पून आसन में बहुत देर पड़े रहे।
अब चांद निकल आया था और कमरे में शुभ्र चांदनी फैल गयी थी। मैंने फिर उसके लंड को मुट्ठी में लेकर सहलाना शुरू कर दिया पर दो बार की भरपूर चुदाई के बाद अब वह लस्त होकर मुरझाया पड़ा था। मैंने फिर से हल्की फुल्की बातचीत चालू कर दी।
“नंदिनी तुम्हारी सगी बहन तो नहीं है ना?”
“ना, तुम जानती हो मेरी…”
उसकी बात काट कर उसके फिर से जागते हुए लंड को पकड़कर मैं बोली – “अरे यार, आजकल तो लोग सगी को नहीं छोड़ते और फिर वह तो तुम्हारी … जानते हो कई मज हबों में तो ऐसे रिश्तों में बाकायदा शादी भी होती है…
फिर? अच्छा ये बताओ, तुम्हें वह कैसी लगती है?”
“अच्छी लगती है…”
“अच्छा और आज उसकी चुचियों को देखकर तुम्हारा लंड खड़ा हो गया था ना?” कहते हुए मैंने उसके सुपाड़े पर से चमड़ी नीचे कर दी। अब वह फिर करीब करीब पूरा खड़ा हो गया था।
“वो…वो…वो मैंने बोला तो था तुम्हें… अब देखकर तो हो जायेगा…”
“अच्छा तुम्हें उसकी चूची के अलावा क्या मस्त लगता है? उसके चूतड़ कैसे लगते हैं? अगर उसकी गान्ड मारने को मिले? सोचो मस्त-मस्त भारी गान्ड लेकिन एकदम कसा-कसा छेद, कैसे फँस-फँसकर तुम्हारा ये मूसल जायेगा…”
अब मेरी बात का जवाब उसके लंड ने उचक कर दिया। सिर्फ़ मेरी वर्णन से ही वह फिर टन्ना गया था और मेरी मुट्ठी के बाहर आ गया था।
“देखो मेरी ननद के चूतड़ और उसकी गान्ड के बारे में सोच करके ही कितने कस के खड़ा हो गया। इसका मतलब है कि तुम्हारा उसकी लेने का कितना मन करता है…” अब मैं उसके लंड को कसकर मुठिया रही थी- “एक बार उसकी कुँवारी कसी गान्ड मार लो…”
अब वह इतना कामो त्तेजित हो गया था कि मुझे पटककर मुझपर चढ़ बैठा- “ननद की गान्ड तो मैं बाद में मारूँगा पर आज भाभी की नहीं छोड़ूंगा…”
मुझे फिर कोहनियों और घुटनों पर खड़ा करके उसने पीछे से मेरी चूत में लंड डाल दिया। कुछ देर चोदने के बाद लंड बाहर खींचकर उसने मेरे चुतड़ों के बीच उतार दिया। ओह क्या दर्द हुआ? और कितना मदभरा दर्द? क्या सुख मिला? मैं पहली बार गान्ड नहीं मरा रही थी, कई बार हम ऐसा गुदा संभोग करते थे।
पहले धक्के में लंड का छोर बस मेरी गान्ड के छल्ले को पार कर सका। पर उसने पेलना जारी रखा और धीरे- धीरे उसका सुपाड़ा पूरा मेरी गान्ड में घुस गया। अब वह रुक गया और उसकी दो उंगलियां मेरे चूत में घुसकर चूतमंथन करने लगीं। दूसरे हाथ से वह मेरा स्तनमर्दन करने लगा।
इस दोहरी मीठ मार के आगे मेरा दर्द हवा हो गया और अचानक मेरी दोनों चूंचियाँ हाथों से कुचलकर उसने एक जोरदार धक्का लगाया। मेरी चीख निकलते-निकलते बची। शायद आधा लंड मेरी गान्ड में घुस गया था। अब मुझे भी मजा आने लगा था।
मेरी स्थिति देखकर कि मैं सम्भल गयी हूँ, वह अब मेरी गान्ड मारने लगा। उसकी दो उंगलियां मेरी चूत के अंदर घुसकर मेरा चरम बिंदु ढूँढ़ रही थीं और अंगूठा मेरी क्लिट पर चल रहा था। दर्द और मादक सुख का वह एक अद्भुत मिश्रण था। मैं जानती थे कि वह आज दो बार पहले ही झड़ चुका है इसलिए मेरी गान्ड की अच्छी मराई होगी।
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नंदिनी के बारे में मेरे ताने सुन-सुनकर वह आपे के बाहर हो गया था और घचाघच मेरी गान्ड चोद रहा था पर मुझे बहुत आनंद आ रहा था। मैंने अपनी गुदा सिकोड़कर उसके लंड को पकड़ा तो वह समझ गया कि अब मुझे मजा आ रहा है। उसने करीब-करीब पूरा लंड सुपाड़े तक बाहर खींचकर निकाला और फिर धीरे-धीरे अंदर धँसाने लगा। मैंने फिर छेड़ा- “हाँ, ऐसे ही कल मेरी ननद की गान्ड मारना…” मेरी बात सुनकर उसका लंड मेरी गान्ड में उछलने लगा और जवाब में उसने मेरे क्लिट को मसलते हुए कसकर मेरी चूची दबायी और एक शक्तिशाली धक्के में अपना लंड जड़ तक मेरी गान्ड में उतार दिया।
फिर झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला- “उसकी तो मैं कल मारूँगा पर आज तुम अपनी गान्ड मरवा लो…” जवाब में मैंने अपने चूतड़ पीछे धकेले और बोली – “चलो मेरे राजा मान तो गये कि कल मेरी ननद की गान्ड मारोगे…” हम आधे घंटे तक इस गुदा संभोग का मजा लेते रहे और फिर वह मेरी गान्ड में झड़ गया। पर तब तक उसकी उंगलियों के जादू ने मेरा भी दो बार काम तमाम कर दिया था। रात ढलने को आ गयी थी और एक दूसरे की बाहों में सिमटकर हम आखिर गहरी नींद सो गये।
Vaibhav says
Kahani achchhi hai