New Incest
यह कहानी मेरी नहीं है बल्कि काजल के बताये गये किस्से पर आधारित है। वो बहुत दिनों से कह रही थी कि उसकी भी एक कहानी है और मैं उसे हिंदी में लिख कर आप सब को भेजूँ। पर समय ही मिल रहा था। आज तीन दिन की छुट्टी मिली तो सोचा कि आज यह शुभ काम कर ही दिया जाए। बस लैपटॉप उठाया और बैठ गया काजल की कहानी लिखने। New Incest
काजल 22-23 साल की जवान और खूबसूरत बदन की मलिका, कद पाँच फीट तीन इंच, बदन का एक एक अंग साँचे में ढला हुआ। अभी 8 महीने पहले ही उसकी शादी विवेक खन्ना से हुई जो दिल्ली की एक कंपनी में काम करता है। विवेक भी 24 साल का हट्टा कट्टा नौजवान है। दिखने में सुन्दर और लम्बे मोटे लंड का मालिक।
काजल बहुत खुश थी विवेक से शादी करके। विवेक भी उसकी हर रात को रंगीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता था, खूब मस्त चुदाई करता था वो काजल की। परिवार का एक और अहम् सदस्य था विवेक की माँ सुनीता… उम्र 45 के आसपास पर बदन इतना मस्त कि अच्छी अच्छी कुँवारी लड़कियाँ भी पानी भरती नजर आयें। कद पाँच फीट, चुचे ऐसे जैसे हिमाचल की पहाड़ियाँ। पतला सपाट पेट मस्त उभरे हुए कूल्हे।
आप सोच रहे होंगे कि काजल की कहानी में मैं उसकी सास की तारीफ क्यों लिख रहा हूँ? तो बता दूँ कि इस कहानी की मुख्य पात्र विवेक की माँ और काजल की सास ही है। कहानी की शुरुआत तब हुई जब एक दिन दोपहर में काजल ने अपनी सास के कमरे से सिसकारियों की आवाज सुनी।
उसने दरवाजे में से झाँक कर देखा तो दंग रह गई। उसकी सास सुनीता सिर्फ पेटीकोट में पलंग पर लेटी थी और एक हाथ की दो उँगलियों से अपनी चुत को रगड़ रही थी वहीं दूसरे हाथ से अपनी कड़क चुचियों को मसल रही थी। शायद वो झड़ने वाली थी तभी उसके मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थी।
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काजल का ध्यान सुनीता की चुत पर गया तो देखा की सुनीता की चुत एकदम क्लीन शेव थी जैसे आज ही झांटें साफ़ की हो। पानी के कारण लाइट में चमक रही थी सुनीता की चुत। काजल को आशा नहीं थी कि उसकी सास इतनी कामुक होगी।
बहू काजल दरवाजे पर ही खड़ी रही और जब सास सुनीता झड़ कर शांत हो गई तो वो एकदम से दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गई। काजल को देख अस्तव्यस्त कपड़ों में पड़ी सुनीता एकदम से हड़बड़ा गई और उसने जल्दी से पास पड़ी साड़ी से अपने बदन को ढक लिया।
“अब क्या फायदा मम्मी जी… सब कुछ तो देख चुकी हूँ मैं!” काजल ने हँसते हुए माहौल को हल्का करने के मकसद से कहा।
सुनीता तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी। काजल जाकर सुनीता के पास पलंग पर बैठ गई- मम्मी जी, क्यों परेशान हो रहे हो… होता रहता है ये सब तो… ये सब तो प्राकृतिक है! सुनीता अभी भी चुपचाप बैठी थी जैसे चोरी करते पकड़ी गई हो।
काजल ने सुनीता को सामान्य करने के इरादे से हाथ बढ़ा कर सुनीता की चूची को अपने हाथ में लेते हुए कहा- क्या बात है मम्मी जी… आपकी चूची तो बहुत कड़क और मस्त हैं, देखो मेरी तो तुमसे छोटी भी है और इतनी मुलायम भी नहीं हैं. कहते हुए काजल ने सुनीता का हाथ पकड़ कर अपनी चूची पर रख दिया।
“क्यों शर्मिंदा कर रही हो बहू…” सुनीता के मुँह से पहली बार कोई शब्द निकले।
“अरे नहीं मम्मी जी… ये सब प्राकृतिक क्रिया है… होता है कभी कभी ऐसा कि सेक्स हावी हो जाता है… जब विवेक कभी टूर पर जाते हैं तो मेरे साथ भी ऐसा होता है। तब मैं भी उंगली करके ही शान्त होती हूँ।”
जब बहुत कुछ कहने करने पर भी सुनीता का मन नहीं बदला तो काजल ने ये कहते हुए बात खत्म की कि आज से हम दोनों सहेली हैं। जब भी आपको ऐसी कोई जरूरत महसूस हो तो मुझे बताना मैं आपकी मदद कर दूँगी आपको शांत करने में और जब विवेक टूर पर होंगे तो आप मेरी सहायता कर देना।
कुछ दिन ऐसे ही बीते। काजल पूरी तरह से सास को खुश करने में लगी रहती पर सुनीता काजल के सामने शर्मा जाती और ज्यादातर चुप ही रहती। फिर एक दिन विवेक को तीन दिन के लिए टूर पर जाना था, पीछे से सास बहू घर पर अकेली थी। काजल ने सोच लिया था कि सुनीता को इन तीन दिनों में खोल देना है ताकि वो शर्मिंदा महसूस ना करें।
पहली ही रात को काजल ने सुनीता को अपने कमरे में सोने को कह दिया। सुनीता ने मना भी किया पर काजल नहीं मानी तो सुनीता को उसकी बात माननी ही पड़ी। रात को काजल एक पतली सी नाईटी पहन कर सोने के लिए बेड पर आ गई पर सुनीता साड़ी पहने हुए थी तो काजल ने उसकी साड़ी को खींच कर अलग लिया और एकदम आराम से सोने को कहा।
कुछ देर इधर उधर की बातें की और फिर काजल ने अचानक अपनी नाईटी उतार कर एक तरफ उछाल दी। काजल की इस हरकत से सुनीता स्तब्ध थी। इससे पहले कि वो कुछ बोलती, काजल ने आगे बढ़ कर सुनीता के पेटीकोट कर नाड़ा खींच दिया और फिर बिना देर किये सुनीता के ब्लाउज के हुक खोलने लगी। सुनीता ने रोकने की कोशिश की पर काजल उसको पूर्ण रूप से नंगी करने के बाद ही रुकी। अब बेड पर दोनों सास बहू जन्मजात नंगी बैठी थी।
“अरे मम्मी जी… आप तो नई नवेली दुल्हन की तरह शर्मा रही है… आगे बढ़ो और मजा करो।”
“काजल, तू बहुत बेशर्म है री… देख तो बेशर्म ने अपने साथ साथ मुझे भी नंगी कर दिया!”
“मम्मी जी अभी तो सिर्फ नंगी किया है आगे आगे देखो क्या क्या करती हूँ।”
“तू तो पूरी पागल है…” सुनीता शर्म से लाल हो गई थी। यह पहला मौका था जब वो अपने पति के अलावा किसी के सामने पूर्ण रूप से नग्न थी।
कपड़े उतारने के बाद काजल सुनीता से लिपट गई और सुनीता के खरबूजे के साइज़ के चुचों को मसलने लगी। सुनीता कसमसा रही थी पर सच यही था कि उसको भी इस सब से उत्तेजना होने लगी थी। काजल ने किसी मर्द की तरह ही पहले तो उसके चुचों को कस कस के मसला.
और फिर अपनी सासू माँ के तन चुके चूचुकों को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। जैसे ही काजल ने सुनीता के मम्मे चूसने शुरू किये, सुनीता तो जैसे जन्नत में पहुँच गई। सालों से सेक्स का मजा नहीं ले पाई थी सुनीता। जब भी ज्यादा बेचैन होती तो बस उंगली से चुत मसल कर पानी निकाल लेती। मूली खीरा बेंगन भी कभी प्रयोग नहीं किया था।
आज जब काजल ने ये सब किया तो सुनीता को बहुत मजा आने लगा था। काजल ऐसे ही सब कर रही थी जैसे विवेक उसके साथ करता था उसको गर्म करने के लिए। चूची चूसते चूसते काजल ने एक उंगली सुनीता की चुत में पेल दी। सुनीता की चुत पूरी गीली हो चुकी थी उत्तेजना के कारण।
जब काजल की उंगली घुसी तो सुनीता मस्त हो उठी और उसके मुँह से आह्ह्ह निकल गई। सुनीता ने भी अब काजल के चुचों को अपनी हथेली में दबोच लिया और मसलने लगी थी। काजल अब उसके चुचों को छोड़ नीचे की तरफ बढ़ने लगी थी। और फिर काजल ने सुनीता की चुत पर जब अपने होंठ रखे तो सुनीता का पूरा बदन गनगना उठा।
काजल ने जीभ निकाल कर अपनी सासू माँ को खुश करने के लिए पूरी लगन से सुनीता की चुत चाटना शुरू कर दिया। सुनीता के लिए ये सब एक नया अनुभव था। काजल की थोड़ी सी मेहनत से ही सुनीता की चुत से पानी का दरिया बहने लगा।
काजल के लिए भी ये अनुभव नया था क्योंकि आज तक उसने सिर्फ अपनी चुत चटवाई थी जबकि आज वो पहली बार किसी की चुत का मजा ले रही थी। इसी सोच के कारण काजल भी उत्तेजित होने लगी थी। काजल अपनी सास की चुत चाटते हुए अपने चुचों को मसल रही थी। अब उसकी चुत में भी गुदगुदी होने लगी थी।
जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने पलटी मारी और अपनी सासू माँ के ऊपर आकर 69 की पोजीशन बना अपनी चुत सुनीता के मुँह के ऊपर कर दी। सुनीता भी समझ गई कि उसकी लाड़ली बहू क्या चाहती है और उसने भी काजल की चुत में अपनी जीभ घुसा दी। करीब एक घंटा सास बहूएक दूसरे से लिपट कर मजा लेती रही और फिर दोनों पस्त होकर लेट गई।
“काजल… आज सालों बाद मेरा इतना पानी निकला है… चार बार झड़ी आज मेरी चुत…” सुनीता ने लम्बी लम्बी साँस लेते हुए काजल से कहा।
“माँ जी… सच बताना, आखरी बार चुत में लंड कब लिया था आपने?”
“बहुत साल हो गये अब तो याद भी नहीं…”
“फिर भी बताओ ना?”
सुनीता ने अपनी कहानी काजल को सुनानी शुरू की। जब मैं स्कूल में पढ़ती थी तब विवेक के पापा से मेरी शादी हुई, वो तब नए नए फौज में भर्ती हुए थे, 19-20 के ही थे वो भी… दोनों ही नादान, सुहागरात को ना उन्हें कुछ पता था ना मुझे। पहली रात तो बस ऐसे ही बीत गई।
अगले उनके दोस्तों ने उनको बताया कि क्या कैसे करना है तब जाकर दूसरी रात को इन्होंने मेरी सील खोली। मेरी कमसिन सी चुत और उनका लंड सारी रात दोनों अन्दर डाल कर पड़े रहे। सुबह देखा तो पूरा बिस्तर खून से सना पड़ा था। लगभग 20 दिन रहे हम साथ साथ, रोज तीन से चार बार चुदाई करते। फिर उनकी छुट्टियाँ ख़त्म हो गई और वो अपनी ड्यूटी पर चले गए। बहुत याद आती थी उनकी!
मेरी ससुराल में भरा पूरा परिवार था। मेरी सास इतनी कड़क के उनकी नजर से ही डर लगता था मुझे। कभी इधर उधर नजर उठाने की हिम्मत भी नहीं हुई। दोनों तड़पते रहे। फिर धीरे धीरे आदत सी हो गई। वो छुट्टियों में आते और हम दोनों पूरा समय बस एक दूसरे में ही खोये रहते, पूरी पूरी रात हम चुदाई का मजा लेते, एक एक पल का आनन्द लेते।
फिर मैं पेट से हो गई, वो अपनी ड्यूटी पर थे जब मुझे अपनी कोख में पल रहे बच्चे का पता चला। जब विवेक पैदा हुआ तो वो आये। फिर उनकी ड्यूटी दूर बंगाल बोर्डर पर हो गई और वो एक साल तक नहीं आये। मैं भी विवेक के साथ व्यस्त रहने लगी।
तीन साल तक वो जब भी आये तो हमारा मिलना सिर्फ रात को ही होता। दिन में तो बात भी नहीं होती। जब उनकी ड्यूटी पठानकोट हुई तब हम दो साल साथ में फॅमिली क्वाटर में रहे। जिन्दगी ऐसे ही चल रही थी, फिर तेरह साल पहले एक एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई, तब से अब तक अकेले ही जिन्दगी काट रही हूँ। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“माँ जी… बुरा मत मानना… पर क्या इन तेरह साल में कभी आपका मन नहीं हुआ किसी से सेक्स करने का?”
“नही… विवेक की परवरिश ही मेरा मकसद बन गया था तो इधर उधर कभी ध्यान ही नहीं गया.”
“मतलब आप इतने दिनों से उंगली से ही काम चला रही थी?” काजल ने सवाल किया।
“बताया ना कि कभी मन नहीं हुआ…”
“फिर उस दिन इतनी गर्म कैसे हो गई आप…”
“वो… वो… रहने दे ना बहू… तू भी क्या बात लेकर बैठ गई।”
“बताओ ना प्लीज…”
काजल के बार बार कहने पर सुनीता ने बताना शुरू किया: अब तू मेरी बहू के साथ साथ मेरी सहेली भी बन गई है तो तुझसे कुछ नहीं छुपाऊँगी… असल में उससे एक रात पहले जब मैं पेशाब करने के लिए उठी तो तू और विवेक चुदाई का मजा ले रहे थे। तुम्हारे कमरे से सिसकारियाँ आहें… और तुम्हारी पायल की छमछम की आवाज आ रही थी।
मैं समझ गई थी कि मेरा बेटा विवेक मेरी बहू यानि तुम्हारी चुदाई कर रहा है। तुम्हारे कमरे का दरवाजा भी थोड़ा सा खुला हुआ था। मैंने अपने आप को बहुत रोका पर फिर भी मैं अपने आप को रोक नहीं पाई तुम्हारे कमरे में झाँकने से। अन्दर का नजारा देखा तो मेरा तो सारा बदन सिहर उठा।
विवेक अपने मोटे से लंड से तुम्हारी चुत बजा रहा था। मैं देखते ही एकदम से अपने कमरे की तरफ चली गई पर मेरा दिल बेचैन हो गया था। बहुत कोशिश की पर मन नहीं माना और मैं फिर से तुम्हारे कमरे के पास पहुँच गई और पूरे 20 मिनट तक मैंने अपने बेटा बहू की चुदाई का कार्यक्रम देखा।
चुत पानी पानी हो गई थी मेरी। सारा दिन मेरे दिमाग में तुम दोनों की चुदाई का सीन ही चलता रहा। जब कण्ट्रोल नहीं हुआ तो उंगली से अपने आप को शांत करने की कोशिश कर रही थी की तभी तुम आ गई और मेरी चोरी पकड़ी गई।
“ओह्ह तो ये बात है…”
“बहू, प्लीज किसी सामने ये बात मत करना!”
“मैं समझ सकती हूँ माँ जी… ये भी तो शरीर की जरूरत है… जब मैं दो दिन भी विवेक से चुदे बिना नहीं रह सकती तो आपने तो फिर भी तेरह साल काटे है चुदाई के बिना… पर अब आप चिन्ता मत करो आप के बदन की यह जरूरत मैं पूरी कर दिया करूँगी।” कह कर काजल सुनीता से लिपट गई और कुछ देर के लिए फिर से दोनों बदन से बदन रगड़ कर चुत से पानी निकालने लगी।
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कहते हैं ना सेक्स की आग में जब मस्ती का तड़का लगता है तो ये बहुत ज्यादा भड़कने लगती है। लगभग एक महीना हो गया था दोनों सास बहू को… जब भी मन करता और समय मिलता दोनों कपड़े उतार कर बेड पर आ जाती मस्ती करने। फिर एक दिन…
“काजल मेरी जान… तूने मेरी आदत बिगाड़ के रख दी है… सेक्स की जो आग पिछले तेरह सालों से दबी हुई थी तूने उसको सुलगा दिया है.”
“तो क्या हुआ माँ जी… जब तक जिन्दगी है, मजे लो!”
“पर काजल अब दिक्कत कुछ बढ़ती जा रही है.”
“मतलब.?”
“मतलब यह कि… कभी कभी जब सेक्स हावी हो जाता है तो फिर कण्ट्रोल नहीं होता.”
“तो क्या हुआ माँ जी… आपकी बहू है ना आपको मजे देने के लिए!”
“बात वो नहीं है काजल…” सुनीता कुछ बेचैन सी होकर बोली।
“तो क्या बात है माँ जी… खुल कर बोलो… वैसे भी अब हम सास बहू से ज्यादा सहेलियाँ हैं!”
“अब कैसे बताऊँ…”
“अरे बिंदास बोलो ना माँ जी…”
“काजल… जब से तूने मुझे ये लत लगाई है… मेरा दिल बेचैन रहने लगा है। अब रात को जब भी आँख खुलती है तो ध्यान तुम्हारे कमरे की तरफ ही जाता है। फिर ये सोच सोच कर चुत सुलगने लगती है कि तू तो विवेक के मोटे लंड से मजे ले रही होगी और मैं अकेली पड़ी अपनी चुत को उंगली से मसल रही होती हूँ.”
“ओह्ह… तो ये बात है… मतलब आप का भी मन करने लगा है अब लंड से मजे लेने का?”
“हट पागल… अब इस उम्र में लंड लेकर मैं क्या करुँगी.”
“मन करता है तो बताओ ना?”
“कुछ नहीं… छोड़ इस बात को!” सुनीता ये बोल कर अपने कमरे में चली गई।
काजल को अपनी सास की बातों से यह तो महसूस हो गया था की सुनीता के मन में लंड लेने की चाहत है। पर दिक्कत यह थी कि वो अपनी सास को खुश रखने के लिए किसका लंड दिलवाए अपनी प्यारी सासू माँ को। दिन बीतते जा रहे थे और अब सुनीता कुछ ज्यादा बेचैन रहने लगी थी। यह बात काजल महसूस कर रही थी। काजल ने सुनीता से कई बार इस बारे में बात भी की पर सुनीता हर बार टाल जाती। एक दिन सुनीता ने काजल से जो बोला वो सुन एक बार के लिए तो काजल अचम्भित हो गई।
“काजल वैसे तो मुझे ये बात नहीं कहनी चाहिए पर अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो एक बात बोलूँ?”
“बोलो ना माँ जी… पूछना कैसा?”
“काजल मुझे कहते हुए शर्म महसूस हो रही है कैसे बोलूँ!”
“आप मेरी सहेली भी हो और सहेली से कोई बात कहने में कैसी शर्म?”
“काजल… वो…”
“अरे बोलो ना?”
“काजल… मैं चाहती हूँ कि तुम कोई ऐसा इंतजाम करो कि मैं तेरी और विवेक की चुदाई देख सकूँ!”
“माँ जी… आपने देखी तो है पहले भी?”
“अरे तब तो डर के मारे अच्छे से देख ही नहीं पाई थी… बस अब कुछ ऐसा कर कि शुरू से आखिर तक देखने का मौका मिले.”
“कोई नहीं… मैं करती हूँ कुछ इंतजाम!”
“तू बहुत अच्छी है काजल… बहुत ख्याल रखती है मेरा!”
“एक बात तो बताओ सासू मां… आपके मन में कैसे ख्याल आया हमारी चुदाई देखने का?” काजल ने पूछा।
“अब क्या बताऊँ… तू दिन में मेरे साथ मजा करने के बाद रात को विवेक के लंड का मजा लेती है तो कभी कभी तुम्हारे कमरे से मस्ती भरी सिसकारियाँ सुन मेरी चुत में भी आग सी लग जाती है… बहुत कोशिश करती हूँ अपने आप को रोकने की पर कण्ट्रोल नहीं होता है और सारी सारी रात करवटें बदल बदल कर कटती है। उंगली से भी शान्त करने की कोशिश करती हूँ पर आग नहीं बुझती। बस मन करता है तुम दोनों को चुदाई का मजा लेते हुए देखूँ और अपनी चुत में उंगली करूँ शायद कुछ शांति मिले!”
“ओह्ह्ह… ऐसी बात है… कोई ना मम्मी जी मैं कुछ इंतजाम करती हूँ… पर एक बात तो है…” काजल कुछ कहते कहते रुक गई।
“अरे बोल ना क्या बात है?” सुनीता ने उत्सुकता से पूछा।
“मम्मी जी… एक बात बताओ कि अगर मेरी और विवेक की चुदाई देख कर आपका मन भी चुदने को करने लगा तो फिर क्या करोगी?”
यह सुन सुनीता चुप हो गई, इस बात का उसके पास कोई जवाब नहीं था।
चुप्पी काजल ने ही तोड़ी- मम्मी जी… मुझे लगता है कि आपको भी अपनी चुत की आग को ठण्डा करने के लिए लंड की जरूरत है.
“हट पगली… तू फिर शुरू हो गई… अब मेरी उम्र थोड़े ही है लंड लेने की…” सुनीता ने शर्माते हुए कहा।
“माँ जी… लंड लेने के लिए उम्र कोई मायने नहीं रखती… मैंने तो 80-80 साल की बुढ़िया का भी सुना है कि वो लंड लेती हैं। अगर आपको झूठ लग रहा हो तो नेट पर देख लो… जब तक चुत में आग है तब तक लंड लेने की लालसा औरत में रहती ही है. और एक बात लंड लेने से बूढ़ी भी जवान हो जाती है… उम्र रुक सी जाती है.”
“बस कर बहू… अब क्या मुझे चुदवा कर ही मानोगी… पहले ही चुत चाट चाट के मेरी दबी हुई आग को सुलगा चुकी हो तुम!”
“माँ जी आप इशारा तो करो… कोई ना कोई लंड भी खोज ही लेंगे आपके लिए!” काजल ने हँसते हुए कहा।
“बहू… जब भरी जवानी में विवेक के पापा अकेले छोड़ के ड्यूटी पर जाते थे तब कोई लंड नहीं खोजा तो अब बुढ़ापे में खोज के क्या नरक में जाना है?”
“वो तो ठीक है माँ जी… पर अगर चुत में आग लगी है तो उसको तो ठण्डा करना ही पड़ेगा ना… नहीं तो बहुत ख़राब करती है ये आग!”
“बस कर… जैसे पिछले कुछ दिनों से तुम मेरी आग ठंडी कर रही है बस वैसे ही करती रह… अब लंड लेने की ना तो उम्र है और ना ही कोई चाहत!”
बात करते करते ही दोनों सास बहू बेड पर जल्दी ही नंगी हो गई और फिर शुरू हो गया एक दूसरे की चुत से पानी निकालने का मुकाबला. शांत होने के बाद काजल बोली- आप चिन्ता ना करो, आजकल में ही मैं आपको मेरी और विवेक की चुदाई का लाइव टेलीकास्ट दिखाती हूँ और फिर जल्दी ही आपकी चुत के लिए भी एक मोटे लम्बे लंड का इंतजाम करती हूँ.
“मुझे नहीं चाहिए किसी का लंड… इस उम्र में बदनाम करवाएगी क्या कमीनी…”
“चिन्ता ना करो माँ जी… बदनामी नहीं होने दूँगी आपकी… आपके लिए ऐसा लंड देखूँगी जिसमे बदनामी का कोई डर ना हो…” कह कर काजल उठ कर अपने कमरे में चली गई।
सुनीता अभी भी बेड पर नंगी पड़ी अपने चुचे मसलते हुए सोच रही थी कि क्या उसकी बहू सच में उसके लिए लंड का इंतजाम करेगी? और अगर करेगी तो किसका? ऐसा कौन है जिससे चुदवाने पर उसकी बदनामी का खतरा कम है? यही सोचते सोचते उसकी आँख लग गई। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
शाम को सात बजे उसकी आँख खुली तो अपने आप को बेड पर नंगी पड़े देख वो शरमा गई और जल्दी से उठ कर उसने अपने कपड़े पहने और बाहर आई। विवेक ड्यूटी से आ चुका था। सुनीता का दिमाग एक बार फिर ये सोच कर धक् रह गया कि अगर विवेक उसके कमरे में आ जाता और अपनी माँ ऐसे नंगी पड़े देख लेता तो वो उसके बारे में क्या सोचता!
पर बाहर सब कुछ सामान्य था। ऐसे ही दो तीन दिन बीते। फिर एक सुबह काजल ने सुनीता को बताया कि आज रात को तैयार रहना मेरी और विवेक की चुदाई देखने के लिए। सुनते ही सुनीता की दिल की धड़कनों ने शताब्दी एक्सप्रेस की स्पीड पकड़ ली। वो शरमा भी रही थी और मन भी कर रहा था वो चुदाई का नजारा देखने का।
सुनीता के लिए तो शाम तक का समय काटना पहाड़ जैसा हो गया था। शर्म के मारे कुछ कह नहीं रही थी पर नजर घड़ी पर ही थी कि कब रात होगी और कब वो लाइव चुदाई देखेगी। चुदाई भी किसकी… अपनी बहू और बेटे की। शाम हुई, विवेक घर आ गया, सबने खाना पीना किया, सोने की तैयारी होने लगी।
साथ ही साथ सुनीता की बेचैनी और दिल की धड़कनें भी बढ़ने लगी। विवेक अपने कमरे में जाकर टीवी देखने लगा। तभी काजल सुनीता के कमरे में आई और उसको अपने साथ चलने को कहा। सुनीता बिना कुछ बोले उसके साथ चल दी। काजल के कमरे के दरवाजे पर जाकर काजल ने सुनीता को रुकने को कहा और बोली कि जब मैं बोलूं तब अन्दर आ जाना।
सुनीता दरवाजे पर खड़ी काजल के बुलावे का इंतज़ार करने लगी, एक एक पल भारी हो रहा था, अजीब सा डर भी था कि कहीं विवेक को पता लग गया तो क्या होगा। चुदाई देखने की ललक उसकी चुत से पानी के रूप में टपक रही थी जो उसे वही खड़े रहने को मजबूर कर रही थी।
दस मिनट बाद काजल के कमरे की लाइट बंद हो गई। उसने सोचा कि अब तो लाइट भी बंद हो गई शायद काजल का प्लान फेल हो गया है, वो मुड़कर वापिस अपने कमरे की तरफ जाने लगी। तभी काजल कमरे से बाहर आई और सुनीता का हाथ पकड़ कर कमरे में ले गई।
कमरे में नाईट बल्ब जग रहा था, विवेक भी बेड पर नहीं था। काजल ने दबी आवाज में बताया कि विवेक बाथरूम में है। उसने सुनीता को चुपके से एक परदे के पीछे छुपा दिया। काजल ने परदे के पीछे एक कुर्सी रख कर सुनीता के बैठने की व्यवस्था भी कर रखी थी।
सुनीता अपनी बहू के प्यार और समझदारी पर गदगद हो गई थी। सुनीता ने काजल को लाइट जला कर सब करने को कहा। तभी बाथरूम के दरवाजे पर हलचल हुई तो काजल पर्दा ठीक करके वापिस बेड पर जाकर बैठ गई। विवेक बाथरूम में से सिर्फ अंडरवियर में बाहर आया, आते ही वो भी बेड पर काजल के पास बैठ गया। काजल जो अपनी सासू माँ को गर्मागर्म लाइव चुदाई दिखाने को लालायित थी वो खुद ही विवेक से लिपट गई और अपने होंठ विवेक के होंठों से जोड़ दिए।
“क्या बात है मेरी जान… आज तो मेरे कुछ करने से पहले ही गर्म हो रही हो?”
“बात मत करो… बस शुरू हो जाओ… आग लगी पड़ी है नीचे चुत में…”
“ओके मेरी जान… तुम्हें तो पता ही है कि मैं तो खुद तेरी चुत का हरदम प्यासा रहता हूँ।”
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फिर आगे काजल ने विवेक को कुछ बोलने नहीं दिया और एक बार फिर अपने होंठ विवेक के होंठों से मिला दिए। उधर सुनीता की चुत भी कार्यक्रम के शुरू में ही गीली हो गई थी। मात्र चार फीट की दूरी से वो आज अपने बेटे बहू की लाइव चुदाई देखने वाली थी।
उधर विवेक ने काजल के बदन से उसकी नाईटी उतर कर साइड में फेंक दी। काजल नाईटी के नीचे बिल्कुल नंगी थी। उत्तेजना उसे भी हो रही थी ये सोच कर कि आज उसकी चुदाई देखने वाला कमरे में मौजूद है। काजल को नंगी करते ही विवेक उसकी चुची का मर्दन करने लगा और फिर एक चूची को मुँह में लेकर चूसने भी लगा।
काजल के मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी थी। सुनीता का हाथ भी अपनी साड़ी में घुस कर चुत को सहलाने लगा था। काजल का हाथ अब विवेक के अंडरवियर में घुस कर उसके लंड से खेल रहा था। सुनीता बड़े ध्यान से विवेक के लंड के अंडरवियर से बाहर आने का इंतज़ार कर रही थी।
पहले जब उसने छुप कर काजल और विवेक की चुदाई देखी थी तब उसे सिर्फ विवेक के लंड की एक झलक मात्र देखने को मिली थी पर आज वो विवेक के लंड को मात्र चार फीट की दूरी से चमकती लाइट में देखने वाली थी। ना जाने क्यों उसका मन कर रहा था कि काजल अब जल्दी से विवेक का लंड बाहर निकाले और आगे की कार्यवाही शुरू करे।
तभी जैसे काजल को सुनीता के मन की आवाज सुनाई दे गई और उसने एक झटके के साथ विवेक का आठ इंच लम्बा और लगभग तीन इंच मोटा लंड बाहर निकाल लिया। विवेक का लंड काजल के हाथ के स्पर्श से लगभग तन चुका था। विवेक ने अपना अंडरवियर खुद उतार आकर अपनी टांगों से अलग किया और वो भी नंगा हो गया।
सुनीता की नजर जैसे ही विवेक के लंड पर पड़ी तो उसकी चुत में पानी उतर आया। बहुत सालों बाद इतनी नजदीक से किसी मर्द का लंड देखा था। क्या मस्त मोटा और कड़क लंड था विवेक का। एक बारगी तो सुनीता का मन करने लगा कि वो अभी उठ कर जाए और काजल को साइड में कर विवेक के लंड का अहसास करे।
विवेक ने आगे बढ़ कर लंड का सुपारा काजल के होंठों से लगा दिया तो काजल ने भी झट से मुँह खोल कर लंड मुँह में भर लिया और मस्त होकर चूसने लगी। विवेक अपने लंड पर काजल के होंठ और जीभ के स्पर्श से आनन्दित हो उठा और उसके मुँह से मस्ती भरी आहें निकलने लगी थी।
विवेक का एक हाथ काजल की मस्त चूची का मर्दन कर रहा था तो दूसरा काजल की जाँघों के बीच चुत के दाने को सहलाने में व्यस्त था। दूसरी तरफ सुनीता भी अपने पेटीकोट को पूरा ऊपर उठा कर अपनी चुत के दाने को अपने हाथों से सहला रही थी। चुत पानी पानी हो रही थी सुनीता की… बिना कुछ करे ही वो मस्त हो गई थी।
चुत में कीड़े कुलबुला रहे थे और मस्ती की खुमारी चढ़ती जा रही थी। सच कहें तो सुनीता से अब कण्ट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। उधर बेड पर अब विवेक और काजल 69 की पोजीशन में आकर मजे कर रहे थे। विवेक की जीभ काजल की चुत की गहराई नाप रही थी तो काजल भी विवेक के लम्बे मोटे लंड को लोलीपॉप बनाये हुए चाट और चूस रही थी।
दोनों मस्त मग्न थे, चपर चपर की आवाज के बीच कभी कभी दोनों में से किसी की आह या सिसकारने की आवाज आती। दस मिनट की चूसा चुसाई के बाद दोनों का पानी छुट गया। काजल ने विवेक का लंड मुँह से निकाल कर फेंटना शुरू कर दिया तो अगले कुछ मिनट में ही विवेक का लंड काजल की चुत की गहराई नापने को तैयार हो गया।
विवेक ने बेड से नीचे खड़े होकर काजल की दोनों टाँगें अपने कंधों पर रखी और लंड को चुत पर सेट करके एक जोरदार धक्के के साथ लगभग पूरा लंड काजल की चुत में उतार दिया। जोरदार प्रहार से काजल कराह उठी और उसके सिसकारने की आवाजें कमरे में गूँजने लगी।
विवेक ने भी लंड अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया। हर धक्के के साथ काजल आह आह आईई ऊईईई कर रही थी। तभी जैसे काजल को अपनी सासु माँ की याद आई और उसने सुनीता को और उत्तेजित करने के उदेश्य से काजल ने अपनी सिसकारियों की आवाज बढ़ा दी- आह… जोर जोर से चोद मेरे राजा… फाड़ दाल मेरी चुत अपने मोटे लंड से… उम्म्ह… अहह… हय… याह… क्या कड़क लंड है मेरे मर्द का… चुत की नश नश में करंट भर देता है जालिम… चोद… चोद… जोर जोर से चोद मेरी जान!
विवेक एक बारगी तो काजल के इस रूप को देख कर दंग रह गया क्योंकि आज से पहले कभी काजल ने ऐसा नहीं किया था उल्टे वो तो विवेक को कम आवाजें करने को बोलती थी कि ‘धीरे बोलो या धीरे करो… साथ वाले कमरे में मम्मी जी सो रही हैं…’ पर आज वो खुद ऐसे आवाजें निकाल रही थी कि साथ वाले कमरे में मम्मी जी तो क्या पड़ोसी भी सुन लें, समझ लें कि काजल चुद रही है।
जो भी था काजल की इस हरकत ने विवेक को और ज्यादा उत्तेजित कर दिया था और वो अब पहले से भी ज्यादा जोश के साथ काजल की चुत में लंड पेल रहा था- ले मेरी रानी… ले पूरा का पूरा लंड ले… आज तो तेरी चुत में अलग ही बात है… आग बरसा रही थी साली… ले चुद मेरे मोटे लंड से…
विवेक भी अब काजल के रंग में रंगने लगा था। काजल भी तो ये ही चाहती थी। दूसरी तरफ सुनीता का हाल बेहाल हुआ पड़ा था। तीन तीन उंगलियाँ चुत में पेल रही थी, चुत पानी पानी हो रही थी पर चुत में जो आग लगी थी वो जैसे कह रही थी कि ‘अब उंगली से काम नहीं बनेगा, मेरी जान अब तो मेरे लिए लंड का इंतजाम कर ही दे तो शांति मिले।’
अब सुनीता का ध्यान काजल विवेक की चुदाई से ज्यादा अपनी चुत को ठण्डी करने पर था। उधर विवेक ने काजल को अब घोड़ी बना लिया था और लंड पीछे से काजल की चुत में उतार दिया था और सुपरफास्ट गति से लंड को अंदर बाहर करते हुए काजल की चुत बजा रहा था।
विवेक के टट्टे काजल की गांड पर थप थप की मधुर आवाज कर रहे थे। हर धक्के के साथ विवेक की मस्ती भरी आहें और काजल की दर्द और मस्ती से भरी सिसकारियाँ कमरे के मौसम को और ज्यादा रंगीन बना रही थी। करीब बीस मिनट की मस्त चुदाई के बाद विवेक ने अपने लंड का लावा काजल की चुत में उगल दिया।
वो और काजल दोनों हैरान थे क्यूंकि आज चुदाई और दिनों के मुकाबले थोड़ा ज्यादा लम्बी चली थी। आमतौर पर विवेक काजल को दस से बारह मिनट तक ही चोदता था पर आज तो लगभग बीस मिनट तक उसने काजल की चुदाई की थी। काजल भी पहले दो या तीन बार ही झड़ती थी पर आज तो जैसे उसकी चुत से दरिया बह निकला था। आज वो पाँच बार झड़ी थी और अब निढाल सी बेड पर पड़ी अपनी साँसों को नियंत्रित कर रही थी।
विवेक भी उसके साइड में लेटा हुआ लम्बी लम्बी साँसें ले रहा था। सुनीता भी अब झड़ झड़ के थक सी गई थी। बहुत पानी निकला था आज उसकी चुत से! तभी जैसे काजल को सुनीता का ख्याल आया। सुनीता को कमरे से निकाल कर दूसरे कमरे में भेजने के लिए विवेक को साइड करना जरूरी था।
“विवेक आज तो तुमने कमाल ही कर दिया… मेरा तो मन है की आज एक बार और ऐसी ही मस्त वाली पारी खेली जाए…”
“आज क्या खा के आई है मेरी जान… जो चुत में इतनी गर्मी हो रही है कि बीस मिनट की चुदाई के बाद भी मैडम को दुबारा चुदाई करवानी है?”
“पता नहीं पर आज तो मन कर रहा है कि जैसे सारी रात चुदवाती रहूँ… तुम बाथरूम से फ्रेश होकर आओ जल्दी से… फिर सोचते हैं दूसरी पारी के बारे में…”
विवेक उठ कर बाथरूम में चला गया। विवेक के जाते ही काजल सुनीता के पास गई और उसको बाहर जाने का इशारा किया। सुनीता की हालत ख़राब थी, काजल ने उसको उठाया और उसको दरवाजे तक छोड़ कर वापिस अपने बेड पर आकर लेट गई। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
सुनीता लगभग लड़खड़ाते हुए क़दमों से अपने कमरे में पहुँची और धम से बेड पर लेट गई। लेटते ही सुनीता जैसे नींद के आगोश में समा गई। उसमे अब हिलने की भी ताकत नहीं बची थी। उंगली कर कर के चुत का सारा रस तो निचोड़ चुकी थी वो।
अगली सुबह जब सुनीता उठी तो नौ बज चुके थे। काजल नाश्ता तैयार कर विवेक को ऑफिस भेज चुकी थी। काजल जब सुनीता के कमरे में आई तो सुनीता अस्तव्यस्त कपड़ों में अपने बेड पर लेटी हुई थी। काजल ने जाकर सुनीता की साड़ी खींच दी। काजल के ऐसा करने पर सुनीता एकदम से हड़बड़ा के उठकर बैठ गई।
“क्या हुआ मम्मी जी… आज तो बहुत नींद आ रही है?”
“पूछ मत… रात तो जैसे पूरा बदन ही निचोड़ दिया किसी ने… पानी का दरिया बह रहा था टांगों के बीच!”
“ऐसा क्या हो गया मम्मी जी… जो दरिया चल पड़ा आपकी टांगों के बीच…” काजल ने अपनी आँखें नचाते हुए पूछा.
“तू सच में बहुत बदमाश लड़की है… कमीनी ने मुझे भी अपने जैसे बदमाश बना दिया है… बिल्कुल शर्म नहीं करती तू!”
“अरे… बताओ ना मम्मी प्लीज… क्या क्या हुआ… रात को?”
“बताया तो शुरू से आखिर तक टाँगों के बीच बस दरिया ही बहता रहा… इतनी उत्तेजना, इतना मजा तो ब्लू फिल्म देखने में भी नहीं आता जितना तेरी और विवेक की लाइव चुदाई देख कर आया। वैसे मेरा बेटा मस्त चोदता है… तुम्हारी तो हालत खराब कर दी थी उसने धक्के मार मार कर!”
“एक बात पूछूँ… कैसा लगा अपने बेटे विवेक का लंड?”
“हट कमीनी… कुछ तो शर्म रखा कर… एक माँ से पूछ रही है कि बेटे का लंड कैसा है.”
“अरे… मैंने ऐसा क्या पूछ लिया… रात को आपने देखा तो है… तभी पूछा कि कैसा है… वैसे अभी खुद ही तो कह रही थी ‘मेरा बेटा मस्त चोदता है…’ काजल ने झूठमूठ का नाराज होते हुए कहा।
“वो बात नहीं है काजल… पर अपने ही बेटे की तारीफ़ करने में शर्म तो आएगी ही ना…”
“मम्मी जी, मैंने आपको पहले ही कह दिया था कि अब सास बहू का रिश्ता छोड़ कर हम दोनों सहेलियां बन चुकी हैं… और सहेलियाँ ऐसी बातें कर सकती है… किसी के भी बारे में!”
“ठीक है… बहुत लम्बा, कड़क और मोटा लंड है विवेक का… अब खुश?” सुनीता इतना सब बोल कर शरमा गई।
“वो तो है… जब अन्दर घुसता है तो हलचल मचा देता है!”
“मौज है तेरी… सेवा किया कर मेरी… जो ऐसा कड़क मर्द पैदा करके तुझे दिया पति बनाने के लिए!” सुनीता के इतना कहते ही कमरे में दोनों सास बहू के ठहाके गूंज उठे.
सुनीता उठी और सीधा बाथरूम में घुस कर बिना देर किये नंगी हो गई और शावर चला कर उसके नीचे खड़ी हो गई। ठण्डे ठण्डे पानी की बूंदों ने बदन में एक बार फिर से हलचल मचा दी और रात का नजारा याद आते ही सुनीता का हाथ एक बार फिर से अपनी चुत पर पहुँच गया था।
दो तीन दिन बीते तो सुनीता का मन एक बार फिर से लाइव चुदाई के लिए मचलने लगा। उसने काजल को कुछ नहीं कहा पर काजल ने उसके मन की बात जान ली थी। काजल अपनी सास को सेक्स की आग में ऐसे जलते हुए नहीं देख पा रही थी पर उसके पास इस बात का कोई इलाज भी तो नहीं था। सुनीता की आग एक लंड से ही ठंडी हो सकती थी पर अब काजल अपनी सास के लिए लंड कहा से ढूंढें।
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काजल ने एक बार और रिस्क लेते हुए सुनीता को अपनी और विवेक की लाइव चुदाई दिखाई। इससे सुनीता की आग ठंडी होने बजाए और ज्यादा भड़क उठी थी। काजल बार बार सोचती कि किसका लंड दिलवाए वो अपनी प्यारी सासू माँ को। उधर सुनीता के मन के किसी कोने में अब लंड लेने की चाहत सर उठाने लगी थी पर वो शर्म के मारे कह नहीं सकती थी।
बस काजल विवेक की लाइव चुदाई के पलों को याद कर कर के अपनी चुत से पानी निकालती रहती थी। अचानक एक दिन काजल ने कुछ कहानियाँ पढ़ी जिनमें माँ बेटे की चुदाई की कहानियाँ भी थी। आज का समाज ऐसा ही है। आज औरत को लंड और मर्द को चुत चाहिए बस… चाहे वो किसी की भी क्यों ना हो।
बहन भाई से चुदने को तैयार है तो भाई भी बहन को चोदने के लिए लंड खड़ा किये तैयार है। ऐसे ही सास दामाद, माँ बेटा, बाप बेटी सब एक दूसरे को भोगने के लिए तैयार बैठे हैं। यह इक्कीसवीं सदी की दुनिया है, लोक-लाज, शर्म-लिहाज पुराने जमाने की बातें हो गई है।
कानून का डर ना हो तो ये सब सरेआम होने लगे। काजल का भी दिमाग घूम गया था। उसके दिमाग में भी सुनीता और विवेक की चुदाई के सीन घूमने लगे थे। कहानियाँ पढ़ पढ़ कर वो भी सोचने लगी थी कि क्यों ना सुनीता की चुत विवेक के लंड से ठण्डी करवा दी जाए।
पर क्या विवेक अपनी माँ को चोदने को तैयार होगा? क्या सुनीता मान जायेगी विवेक का लंड लेने के लिए? सुनीता तो शायद मान भी जाए पर विवेक का मानना मुश्किल लग रहा था। सारा दिन अब काजल के दिमाग में बस यही सब घूमता रहता।
दिन रात अब वो इसी प्लानिंग में लगी रहती कि कैसे वो सुनीता की चुत विवेक के लंड से चुदवाये। इसी प्लानिंग के तहत उसने विवेक को भी दो तीन बार माँ बेटे की चुदाई की कहानियाँ पढ़वाई। अब अक्सर वो विवेक के सामने सुनीता की बातें करने लगी थी। जैसे कि मम्मी जी इस उम्र में भी कितनी मस्त है, कड़क है, सेक्सी है इत्यादि इत्यादि।
एक दिन दोनों चुदाई करने के बाद साथ साथ लेटे हुए थे तो काजल ने फिर से सुनीता की बात छेड़ दी- विवेक, एक बात पूछूँ?
“पूछो…”
“मम्मी जी ने इतने साल कैसे निकालें होंगे बिना चुदाई के?”
“मतलब…??”
“मतलब यह कि मम्मी जी खूबसूरत हैं और बदन भी तुमने देखा होगा कितना मस्त है… तो बस यही देख कर मन में ख्याल आया कि मम्मी जी का दिल नहीं करता होगा क्या चुदाई के लिए?”
“क्या सारा दिन बस इन्ही बातों में लगी रहती हो…”
“अरे… मैं बिना सिर पैर की बात थोड़े ही कर रही हूँ… मैंने मम्मी जी को एक दो बार देखा है कमरे में अपनी चुत को मसलते हुए… उंगली करते हुए… तभी मुझे लगा कि हो सकता है कि उनका भी मन हो चुदाई का… वैसे भी ज्यादा उम्र थोड़े ही हुई है उनकी…” काजल ने अपनी बात विवेक के सामने रख दी।
तभी काजल उठ कर कमरे से बाहर रसोई में पानी लेने गई पर तुरन्त ही वापिस आ गई। विवेक ने जब पूछा कि पानी नहीं लेकर आई तो काजल ने विवेक को अपने साथ चलने को कहा। विवेक पूछता रह गया कि कहाँ ले जा रही हो पर काजल उसको लगभग खींचते हुए सुनीता के कमरे के सामने ले गई।
सुनीता के कमरे का दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था। काजल ने विवेक को अन्दर देखने को कहा तो पहले तो विवेक मना करने लगा पर काजल ने जब जिद की तो विवेक ने जैसे ही कमरे में झाँक कर देखा तो हक्काबक्का रह गया। सुनीता अपने पलंग पर बिल्कुल नंगी पड़ी अपनी चुत सहला रही थी।
कमरे की लाइट भी जली हुई थी जिस कारण सुनीता का बदन रोशनी में चमक रहा था। यह काजल की प्लानिंग का हिस्सा नहीं था। यह तो जब काजल और विवेक चुदाई कर रहे थे तो सुनीता उनके कमरे के दरवाजे के छेद से उनकी चुदाई देख रही थी और जब चुदाई का खेल खत्म हुआ तो सुनीता अपने कमरे में जाकर अपनी चुत सहला कर पानी निकाल रही थी।
सुनीता को कोई अंदाजा भी नहीं था कि काजल या विवेक में से कोई भी इस समय उसके कमरे में आ सकता है या झाँक सकता है। वो तो पूरी मस्ती में अपनी चुत को उंगली से रगड़ रगड़ कर अपना पानी निकालने की कोशिश कर रही थी। विवेक अपने कमरे में जाना चाहता था पर काजल ने उसे रोक के रखा। तभी अन्दर से सुनीता के बड़बड़ाने की आवाज आई। जब ध्यान से सुना तो विवेक और काजल दोनों ही सन्न रह गए।
सुनीता कह रही थी- काजल कमीनी अकेले अकेले विवेक के मोटे कड़क लंड का मजा लेती रहती है… कमीनी कभी मेरी चुत का भी तो सोच… मुझे भी विवेक जैसा कड़क लंड चाहिए अपनी चुत की आग को ठण्डा करने के लिए… तेरह साल से प्यासी है… कुछ तो इंतजाम कर कमीनी मेरी चुत के लिए भी!
काजल समझ सकती थी कि सुनीता को अब लंड चाहिए पर विवेक के लिए ये सब बिल्कुल नया था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी माँ इतनी कामुक होगी और लंड लेने के लिए तड़प रही होगी। और लंड भी अपने बेटे विवेक के लंड जैसा।
उसी दिन से विवेक के दिमाग में भी सुनीता का वो रात वाला सीन घूमने लगा था। जब भी वो अकेला बैठा होता तो उसका ध्यान ना चाहते हुए भी सुनीता पर पहुँच जाता। काजल को भी ये सब समझते देर नहीं लगी कि विवेक सुनीता की तरफ आकर्षित होने लगा है। माँ बेटा दोनों एक दूसरे की तरफ आकर्षित हो रहे थे पर सामाजिक बंदिशों के कारण दोनों ही चुप थे।
दिन बीतते जा रहे थे, आग दोनों ही तरफ बढ़ रही थी। काजल भी विवेक के मन को हर रोज टटोल रही थी। सुनीता ऊपरी मन से तो मना कर रही थी पर अब उसका मन करने लगा था चुदाई का। काजल हर रोज उससे भी चुदाई की बात कर कर के उसकी आग में घी डालती रहती थी। फिर एक दिन…
शाम का समय था, काजल और सुनीता साथ साथ बैठी रात के खाने की तैयारी कर रही थी। काजल ने फिर से चुदाई की चर्चा शुरू कर दी- मम्मी जी… कब तक इस तरह सेक्स की आग में जलती रहोगी… मैं तो बोलती हूँ चुदवा लो किसी से!
“तुम फिर से शुरू हो गई… कितनी बार बोला कि मैं नहीं चुदवा सकती… बदनाम नहीं होना मुझे इस उम्र में!”
“मम्मी जी… आप हाँ करो तो कोई ऐसा लंड ढूँढ दूँ आपकी चुत के लिए जिससे चुदने पर बदनामी का भी डर ना हो?”
“तू ये बात हर बार बोलती है… चल ठीक है, मैं तैयार हूँ चुदवाने के लिए अब बता किससे चुदवायेगी मुझे जिसमे बदनामी नहीं होगी… बोल… बोल ना?” सुनीता हल्का गुस्सा दिखाती हुई बोली।
“मम्मी जी… मैं आपकी पक्के वाली सहेली हूँ… मुझे अच्छे से पता है कि आप भी चुदवाना चाहती है… जल रही हैं चुदाई की आग में… इसी लिए मैंने सोचा है कि आपके लिए अब लंड का इंतजाम कर ही देती हूँ.”
“पर… किसका???”
“विवेक का…” काजल ने जैसे बम्ब फोड़ दिया था सुनीता के ऊपर।
“क्या… हरामजादी तू होश में तो है… तुझे पता भी है तू क्या बोल रही है?” सुनीता गुस्से में चिल्लाई।
“मम्मी जी… मुझे पता है कि आपको विवेक का लंड पसंद है… आप यह भी जानती हो कि विवेक का लंड कितना मस्त कड़क लंड है… तो आपकी पसंद का लंड ही तो दिलवाना चाह रही हूँ मैं… उसमें क्या दिक्कत है?”
“दिक्कत… क्यों दिक्कत नहीं है… एक माँ को अपने बेटे से चुदवाने को बोल रही हो और पूछ रही हो कि क्या दिक्कत है… पाप है ये!”
“कोई पाप नहीं है… आज रात को मैं आपको कुछ पढ़ने को दूँगी फिर सुबह बताना कि कहाँ दिक्कत है?”
“कमीनी ये बात विवेक से मत करना… वर्ना पता नहीं क्या सोचेगा वो मेरे बारे में!”
“उनसे क्या बात करनी… वो तो पहले ही अपनी माँ के हुस्न का दीवाना हुआ घूम रहा है.”
“मतलब??” सुनीता ने चौंकते हुए पूछा.
काजल ने सुनीता को उस रात वाली सारी बात बता दी तो सुनीता अचम्भित होकर काजल को देखने लगी थी, सुनीता से कुछ कहते नहीं बन रहा था। वो चुपचाप उठकर बाथरूम में चली गई और टॉयलेट सीट पर बैठे बैठे काजल की कही बातों को याद कर कर बेचैन हो रही थी।
कभी उसको अपने ऊपर गुस्सा आता और वो शर्मिंदा महसूस करने लगती पर अगले ही पल उसे काजल की कही ये बात याद आती कि विवेक भी उसके हुस्न का दीवाना हुआ घूम रहा है तो वो विवेक के बारे में सोच कर उत्तेजित हो जाती। उसे गर्व सा महसूस होता की क्या वो सच में इतनी खूबसूरत है कि उसका खुद का बेटा भी उसकी और आकर्षित हो रहा है।
लगभग बीस मिनट बाद जब काजल ने बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो सुनीता विचारों की दुनिया से बाहर आई। बाहर आते ही सुनीता अपने कमरे में चली गई और काजल रसोई में काम निपटाने लगी। रात हुई और बीत गई। उस रात सुनीता पूरी रात नहीं सो पाई थी.
वो समझ ही नहीं पा रही थी काजल उसे कहाँ ले जा रही है। क्या उसे सच में लंड की जरूरत है। क्या उसे अब चुदवा लेना चाहिए। पर किससे… क्या विवेक से… नहीं… नहीं… वो बेटा है मेरा, मैं उससे कैसे चुदवा सकती हूँ। दूसरी तरफ काजल विवेक से चुदवाते हुए यही बातें कर रही थी कि क्या विवेक भी सुनीता को चोदने की सोच रहा है।
विवेक उसको कभी गुस्से से तो कभी प्यार से चुप करवाने की नाकाम सी कोशिश कर रहा था- काजल… प्लीज यार मत करो ऐसी बातें… माँ है वो मेरी!
“वो तो मुझे भी पता है कि माँ है वो तुम्हारी पर तुमने खुद देखा और सुना कि वो कैसे तड़प रही है लंड लेने के लिए…”
“तो मैं क्या कर सकता हूँ?”
“क्यों नहीं कर सकते… सुना नहीं वो कह रही थी कि उसको चुदवाने के लिए आप जैसा ही कड़क लंड चाहिए… मतलब साफ़ है कि वो आपके लंड को पसंद करती है और चुदवाना चाहती हैं.”
“मैं इसमें उनकी कोई मदद नहीं कर सकता… और अब तुम भी ऐसी बातें करना बंद करो और सो जाओ… पता नहीं क्या क्या सोचती रहती हो सारा दिन!”
“सच बताना… क्या तुम्हें मम्मी जी अच्छी नहीं लगती… क्या तुम उन्हें सिर्फ इसीलिए तड़पते देखते रहोगे क्योंकि तुम उनके बेटे हो… और सोच कर देखो अगर उन्होंने बाहर किसी से चुदवा लिया और कुछ गड़बड़ हो गई तो कितनी बदनामी होगी तुम्हारी और इस घर की?”
“प्लीज… मुझे कोई बात नहीं करनी इस बारे में…” कहकर विवेक मुँह फेर कर सो गया।
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लगभग एक सप्ताह और बीत गया, बात आगे नहीं बढ़ रही थी। तभी काजल के मायके से फ़ोन आया कि काजल के पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है और उन्होंने उसे मिलने के लिए बुलाया है। काजल का मायका चंडीगढ़ में था। विवेक ने जब ये खबर काजल को बताई तो वो बेचैन हो उठी और विवेक से चंडीगढ़ जाने के बारे में बात की। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
विवेक खुद काजल के साथ जाना चाहता था तो उसने अपने ऑफिस में अपने बॉस से छुट्टी के लिए बात की तो बॉस ने अर्जेंट मीटिंग का कहते हुए उसको छुट्टी देने से इन्कार कर दिया। जब विवेक को छुट्टी नहीं मिली तो विवेक ने काजल को सुनीता के साथ चले जाने को कहा।
एक बार तो काजल इसके लिए मान गई पर फिर उसने अकेले जाने को कहा। विवेक ने बहुत कहा कि मम्मी जी को साथ ले जाओ पर वो अकेले जाने पर ही अड़ी रही। उसके मन में दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी। वो विवेक और सुनीता को अकेले छोड़ना चाहती थी।
खाने पीने और घर के दूसरे काम का बहाना बना कर उसने सुनीता को साथ ले जाने से मना कर दिया। विवेक क्या कर सकता था… उसने काजल को अगली सुबह चंडीगढ़ जाने वाली बस में बैठा दिया और खुद अपनी ड्यूटी पर निकल गया। यहीं से कहानी ने दूसरा मोड़ ले लिया।
मीटिंग लम्बी चली और मीटिंग के बाद डिनर भी ऑफिस में ही था तो विवेक को देर हो गई। क्योंकि काजल भी नहीं थी तो उसने अपने एक दोस्त के साथ दो पेग व्हिस्की के लगा लिए और खाना खा पी कर रात को करीब बारह बजे घर पहुँचा। उसने इस बारे में अपनी मम्मी सुनीता को पहले ही फ़ोन करके बता दिया था।
सुनीता भी खाना खाकर टीवी देखने बैठ गई। टीवी पर रोमांटिक सीन आया तो सुनीता की चुत भी कुलबुलाई। उसने सोचा कि एक बार चुत से पानी निकाल ही लिया जाए। सुनीता ने साड़ी उतार कर नाईटी पहन ली थी और नाईटी को ऊपर उठा कर चुत को मसल मसल कर पानी निकाल दिया। पानी निकलने के बाद सुनीता पर नींद हावी हो गई और वो वहीं सोफे पर ही ढेर हो गई।
रात को विवेक जब आया तो उसने सोचा कि देर हो चुकी है तो क्यों मम्मी को तंग किया, उसने अपनी चाबी से दरवाजा खोला और अंदर आ गया। अन्दर आते ही सबसे पहले टीवी पर नजर पड़ी फिर जब उसकी नजर सोफे पर सोते हुई अपनी माँ सुनीता पर पड़ी तो उसकी धड़कनें एकदम से बढ़ गई।
सोफे पर सुनीता लगभग अधनंगी सी लेटी हुई थी… नाईटी घुटनों से ऊपर जाँघों तक उठी हुई थी और सुनीता दीन-दुनिया से बेखबर सी सो रही थी। विवेक ने अपनी मम्मी को इस अवस्था में देखा तो उसके दिल में हलचल सी मची। विवेक बिना कुछ बोले अपने कमरे में चला गया और जाकर फ्रेश हुआ और बनियान और लोअर पहन कर वापिस कमरे में आया।
वो सुनीता को जगा कर अन्दर कमरे में भेजने के इरादे से आया था। विवेक के मन में आया कि सुनीता उसके सामने अपने आप को अर्धनग्न अवस्था में देख कर पता नहीं क्या सोचेगी तो क्यों ना सुनीता की नाईटी को ठीक कर दे। वो सोफे के पास खड़ा ये सोच रहा था पर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी सुनीता को छूने की।
कुछ देर के बाद उसने हिम्मत करके सुनीता की नाईटी को ठीक करने के लिए हाथ आगे बढ़ाया और नाईटी को थोड़ा ऊपर उठा कर जैसे ही ठीक करने लगा तो उसकी नजर सीधे अपनी माँ सुनीता की चुत पर गई। सुनीता ने नाईटी के नीचे पैंटी नहीं पहनी हुई थी… या यूँ कह सकते है कि उसने चुत में उंगली करते समय वो उतार दी थी।
सुनीता की क्लीन शेव चुत देख विवेक की हालत खराब होने लगी। उसकी नजरों के सामने वही चुत थी जिसमें से वो पैदा हुआ था। विवेक को सुनीता की चुत काजल की चुत से भी ज्यादा सुन्दर लग रही थी। कुछ तो शराब का हल्का हल्का नशा पहले से ही था और कुछ अपनी मम्मी सुनीता की चुत देख कर विवेक अपने होश में नहीं रहा।
कहाँ तो वो अपनी माँ का अर्धनग्न बदन ढकने के लिए आया था पर अब वो खुद अपनी माँ के खूबसूरत बदन को देख कर उत्तेजित हो रहा था। उसने नाईटी को नीचे करने की जगह थोड़ा और ऊपर उठा दिया। सुनीता की चुत देख विवेक का लंड भी लोअर फाड़ने को बेचैन सा हो गया था।
विवेक ने हाथ आगे बढ़ा कर उंगली से अपनी माँ की चुत को छुआ। चुत का सुनीता की चुत से निकला नमकीन रस उसकी उंगली पर लग गया। विवेक ने वो रस चख कर देखा तो मदहोश होता चला गया। तभी सुनीता ने करवट ली तो विवेक को जैसे होश आया, वो जल्दी से वहाँ से हट गया और अपने कमरे की दरवाजे पर जाकर उसने सुनीता को आवाज लगाई।
विवेक की आवाज सुन कर सुनीता एकदम से चौंक कर उठी। उसने देखा विवेक अपने कमरे के दरवाजे पर खड़ा था। तभी उसका ध्यान अपने अस्तव्यस्त कपड़ों पर गया तो और ज्यादा चौंक गई। सुनीता सोफे से उठी और रसोई में घुसते हुए उसने विवेक से खाने के लिए पूछा। विवेक ने मना कर दिया और वो अपने कमरे में अन्दर चला गया।
उधर सुनीता रसोई में खड़ी खड़ी सोच रही थी कि क्या विवेक ने उसको अर्धनग्न अवस्था में देख लिया होगा। अगर देख लिया होगा तो वो क्या सोच रहा होगा। दूसरी तरफ विवेक भी अपने बेड पर लेटा अपनी माँ के बारे में ही सोच रहा था कि उसकी मम्मी इस उम्र में भी कितनी खूबसूरत और मस्त बदन की मालकिन है। सोचते सोचते उसका हाथ कब अपने लंड पर चला गया उसे खुद भी पता नहीं लगा।
वो अपनी माँ के बारे में सोच सोच कर मदहोश हुआ जा रहा था कि तभी सुनीता उसके लिए दूध का गिलास लेकर आ गई। विवेक को सुनीता के आने का पता भी नहीं लगा, वो तो आँखें बंद किये अपने तन कर खड़े लंड को लोअर में हाथ डाल कर सहला रहा था।
सुनीता ने जब विवेक को ऐसा करते देखा तो उसकी चुत में भी खुजली सी होने लगी। ये सब काजल की मेहरबानी थी जो एक माँ बेटा एक दूसरे के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित हो रहे थे। वो रात तो जैसे तैसे निकल गई। अगली सुबह ही काजल का फ़ोन आ गया, उसने पहले विवेक से बात की। कुछ देर घर परिवार की बातें करने के बाद उसने विवेक से पूछा- और सुनाओ मेरी जान… कुछ बात बनी या नहीं रात को?
“मतलब?”
“अजी अब मतलब भी हम ही बतायें?”
“पहेली मत बुझाओ… साफ़ साफ़ कहो…क्या कहना चाहती हो?”
“मैं ये पूछना चाह रही थी कि रात को कुछ किया या नहीं… या फिर दोनों माँ बेटा अपने अपने कमरे में अपने हाथ से लगे रहे?”
“क्या यार काजल… तुम इससे अलग कुछ सोचती भी हो या नहीं…”
“मैं तो सिर्फ अपने परिवार के बारे में सोचती हूँ जी… आपका और आपकी माँ का ध्यान रखना भी तो मेरा फर्ज है… और जब पता है कि माँ बेटा दोनों एक दूसरे को चाहते है तो उनको मिलवाने का जिम्मा भी तो मेरा ही बनता है.”
“ऐसा कुछ नहीं है.”
“मुझ से मत छुपाया करो… सब पता है मुझे कि कैसे तुम अपनी खूबसूरत माँ के दीवाने हो… और मुझे अच्छे से पता है कि मम्मी जी भी तुम्हारे लंड की दीवानी है… देख भी चुके हो तुम अपनी आँखों से और सुन भी चुके हो.”
“तुम चाहती क्या हो?”
“मैं चाहती हूँ कि तुम मम्मी जी की तड़पती जवानी को अपने लंड से शांत कर दो… मैं उन्हें तड़पते हुए नहीं देख सकती!”
“तुम पागल हो!”
“जो मर्जी समझो… सिर्फ तुम दोनों को एकान्त देने के लिए ही मैं अपने मायके आई हूँ… वैसे मेरे पापा बिल्कुल ठीक है और मेरी दिल्ली में ही उनसे इस बारे में बात हो गई थी… पर मैं तुम दोनों को कुछ करने का मौका देना चाहती थी तभी अकेली आई थी… समझे… अब मौका मत जाने दो… और चोद डालो अपनी माँ की चुत!”
विवेक से कुछ कहते नहीं बन रहा था क्योंकि वो खुद भी तो अपनी माँ की रसीली चुत का मजा लेना चाहता था। काजल ने मम्मी से बात करवाने को कहा तो विवेक ने रसोई में काम कर रही अपनी माँ को फ़ोन पकड़ा दिया और खुद अपने कमरे में चला गया।
“कैसे हो मम्मी जी?” काजल ने पूछा।
“मैं तो ठीक हूँ… तुम अपने पिता जी की तबीयत का बताओ?”
“वो ठीक है तुम अपनी बताओ… बात कुछ आगे बढ़ी या नहीं?”
“कमीनी तुझे इसके सिवा कुछ सूझता नहीं है क्या?”
“मम्मी जी आपको अच्छे से पता है कि मैं चंडीगढ़ क्यों आई हूँ… इस मौके को खराब मत करो… और ले लो विवेक के मोटे लंड से मजा!”
“हरामजादी… तुम पक्का मुझे मेरे बेटे से चुदवा कर ही मानेगी.”
अभी सुनीता यह बोल ही रही थी कि अचानक विवेक रसोई में आ गया। विवेक ने भी यह सुन लिया था। अब शक की कोई गुंजाईश नहीं रह गई थी कि सुनीता विवेक से चुदना चाहती है। विवेक को देखते ही सुनीता की भी बोलती बंद हो गई। वो समझ चुकी थी कि विवेक ने सब सुन लिया है, उसने फोन काट कर विवेक की तरफ बढ़ा दिया।
अब विवेक आपने आप को रोक नहीं पाया और उसने फ़ोन की जगह सुनीता के बढ़े हुए हाथ को पकड़ लिया और सुनीता को अपनी तरफ खींचा। सुनीता के शरीर में झुरझरी सी फ़ैल गई। उसने अपना हाथ छुड़वाने की असफल सी कोशिश की। विवेक ने आगे बढ़ कर सुनीता को अपनी बाहों में भर लिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“विवेक… ये क्या कर रहा है… छोड़ मुझे…” सुनीता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा।
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पर विवेक को तो जैसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया, उसने एक हाथ से नाईटी के ऊपर से ही सुनीता के कूल्हे को सहलाना शुरू कर दिया। सुनीता छटपटाई और छूटने की कोशिश की। विवेक ने एक हाथ से सुनीता के सर को पकड़ लिया और इससे पहले की सुनीता कुछ समझ पाती विवेक ने अपने होंठ सुनीता के होंठों पर टिका दिए।
विवेक का लंड अब तक खड़ा होकर लोअर में तम्बू बना रहा था। सुनीता के होंठों को चूसते हुए जब विवेक ने उसके कूल्हे दबाते हुए उसको अपने से लिपटाया तो विवेक का लंड सुनीता को अपनी नाभि के पास चुभता हुआ महसूस हुआ। लंड के स्पर्श के एहसास मात्र से सुनीता की कामवासना भड़क उठी और वो भी विवेक से लिपट गई।
माँ बेटे के बीच की शर्म एकदम से ना जाने कहाँ गुम हो गई। दोनों कामाग्नि में जलने लगे और समाज की दृष्टि में वर्जित सम्बन्ध स्थापित करने में व्यस्त हो गए। विवेक के हाथ अब अपनी माँ की नाईटी में घुस कर उसके मुलायम बदन का मुआयना कर रहे थे।
फिर तो कब नाईटी ने सुनीता के बदन का साथ छोड़ा खुद सुनीता को भी पता नहीं चला। वो अब सिर्फ एक पैंटी में अपने सगे बेटे विवेक के सामने खड़ी थी। विवेक ने भी जब अपनी माँ के मस्त तने हुए बड़े बड़े मम्मे देखे तो वो अपने आप को रोक नहीं पाया और टूट पड़ा वो अपनी माँ के मम्मों पर… एक मम्मे को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे मम्मे को अपने हाथ में लेकर बेरहमी से मसलने लगा।
सुनीता को याद आया कि जब विवेक चार साल का था जब उसने उसके मम्मों से दूध पीना बंद किया था और आज बीस साल बाद वो उन्ही मम्मो को चूस और मसल रहा था। ये बात सुनीता को और ज्यादा उत्तेजित कर रही थी। “आह… ऊईईईई मा… धीरे कर विवेक बेटा… धीरे… जान ही निकाल लेगा क्या…” सुनीता मस्ती भरे दर्द को सहते हुए आहें और सिसकारियां भर रही थी।
उसके हाथ भी अपने आप ही विवेक के लोअर में कैद लंड को ढूँढ रहे थे। पहले तो वो लोअर के ऊपर से ही लंड को सहला कर उसकी लम्बाई मोटाई का अंदाज लेती रही फिर जब कण्ट्रोल नहीं हुआ तो उसने एक ही झटके में विवेक का लोअर और अंडरवियर नीचे खींच कर लंड को बाहर निकाल लिया।
विवेक के लम्बे और मोटे गर्म लंड को अपने हाथ में पकड़ते ही सुनीता की चुत से झरना फूट पड़ा था। उधर विवेक ने भी जब अपने लंड पर अपनी सगी माँ के हाथ को महसूस किया तो वो सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसका लंड और भी जबरदस्त ढंग से अकड़ गया।
सुनीता ने विवेक के लंड को अपनी हथेली में भर लिया था और अब वो अपने मम्मे चुसवाते हुए विवेक के लंड को मसल रही थी। विवेक का हाथ भी अगले ही पल अपनी माँ की पैंटी में घुस गया। चिकनी और पनियाई हुई चुत गर्म होकर जैसे भांप छोड़ रही थी।
उसने जैसे ही अपनी माँ के दाने को सहलाया तो सुनीता के शरीर में झुरझरी सी फ़ैल गई। आज बरसों बाद किसी मर्द ने उसकी चुत को और उसके दाने को छेड़ा या सहलाया था। सुनीता मस्ती के मारे अपने बेटे से और जोर से लिपट गई। विवेक ने भी अपनी मम्मी को अपनी गोद में उठाया और अपने बेडरूम में ले गया।
सुनीता को बेड पर लेटा कर विवेक अपने कपड़े उतारने लगा और सुनीता बेड पर पड़े पड़े उसको देखती रही। चंद पलों में ही विवेक अपनी माँ के सामने उसी अवस्था में खड़ा था जिस अवस्था में वो 24 साल पहले पैदा हुआ था। सुनीता मन ही मन बहुत खुश और उत्तेजित थी जैसे किसी बच्चे को कोई मनचाही चीज मिलने वाली हो।
माँ बेटे के रिश्ते को तो जैसे कब का भूल चुकी थी। याद थी तो बस अपनी चुत की लंड के लिए प्यास। उसका मन बैचैन हो रहा था कि विवेक उसको चोदने में इतनी देर क्यों लगा रहा है, बस विवेक आये और अपने मोटे लंड से उसकी चुत की धज्जियाँ उड़ा दे… फाड़ डाले उसकी चुत।
विवेक भी जल्दी से अपनी माँ की चुत का मजा लेकर उसकी प्यास बुझाना चाहता था। तभी तो वो जल्दी से बेड पर चढ़ गया और एक झटके से अपनी माँ की पैंटी फाड़ कर उसके बदन से अलग कर दी। एक पल के लिए विवेक अपनी माँ की चुत देखता रहा। एकदम चिकनी और क्लीन शेव चुत देख अपनी माँ की खूबसूरती पर मोहित हो गया था।
उसने अपनी माँ की पनियाई चुत को अपनी उंगली से छू के देखा और फिर धीरे धीरे एक उंगली अपनी माँ की चुत में उतार दी। सुनीता पहले तो थोड़ा कसमसाई पर अगले ही पल वो उसके बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई, उसने कस कर सिर के नीचे लगे तकिये को कस कर पकड़ लिया। उसे लगने लगा था जैसे उसकी चुत से अभी सब कुछ बाहर निकल आएगा।
विवेक ने अपनी उंगली से कुछ देर अपनी माँ की चुत को सहलाया और फिर अपने होंठ चुत पर टिका दिए। वैसे तो काजल सुनीता को बहुत बार अपनी जीभ से ये मजा दे चुकी थी पर विवेक की थोड़ी खुरदरी जीभ का मजा ही कुछ और था। लेस्बियन सेक्स और किसी मर्द के साथ सेक्स करने में सबसे बड़ा फर्क तो यही है।
मर्द के कड़क हाथ खुरदरी जीभ और सबसे बड़ी बात मजबूती औरत को मदहोश करने में इन सब चीजों का बहुत योगदान रहता है। यही हाल अब सुनीता का हो रहा था। काजल ने बेशक उसके बदन को मसला हो उसकी चुत चाटी हो या उंगली की हो पर विवेक के साथ ये मजा काजल की मुकाबले कई गुना ज्यादा आ रहा था।
जब विवेक सुनीता की चुत चाट रहा था तो सुनीता ने भी विवेक का लंड पकड़ लिया और मसलने लगी। विवेक थोड़ा सा सुनीता की तरफ सरक गया। अब विवेक का लंड सुनीता के चेहरे के बिल्कुल पास था। बरसों बाद आज सुनीता लंड को इतने नजदीक से देख रही थी।
विवेक के लंड का लाल लाल सुपारा सुनीता को बहुत अच्छा लग रहा था। उसने जीभ निकाल कर विवेक के सुपारे को चख कर देखा। सुनीता को इसका स्वाद बहुत अच्छा लगा तो वो जीभ निकाल कर अच्छे से चाटने लगी और फिर कुछ ही देर में विवेक का लंड सुनीता के मुँह के अन्दर था और सुनीता मस्त होकर विवेक का लंड चाट और चूस रही थी।
विवेक तो जैसे जन्नत में था, उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी सेक्सी माँ कभी उसका लंड इस तरह से चूसेगी। अब दोनों माँ बेटा 69 की अवस्था में आ गए थे और मस्त होकर एक दूसरे के लंड चुत को चाट और चूस रहे थे।
जब से ये सब शुरू हुआ था तब से अब तक दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई थी। इस चुप्पी को सुनीता ने ही तोड़ा- कमीने… कब तक तड़पाएगा अपनी माँ को… अब चोद भी दे… बहुत प्यासी है तेरी माँ की चुत! इतना सुनना था कि विवेक ने अगले ही पल पोजीशन संभाली और अपना लंड टिका दिया सुनीता की आग उगलती चुत के मुहाने पर। जैसे ही सुपारा चुत के संपर्क में आया तो सुनीता ने अपनी गांड उछाल कर उसका स्वागत किया।
चुत पहले से ही पानी पानी हो रही थी, विवेक ने भी सुनीता का इशारा समझा और धक्का दिया अपना मोटा लौड़ा अपनी माँ की चुत में। मम्मी की चुत सालों बाद चुद रही थी तो मोटे लंड के साथ फैलती चली गई और साथ ही दर्द के मारे सुनीता की आँखें भी फ़ैल गई। एक बारगी तो उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे आज ही उसकी सुहागरात हो और उसका पति उसकी चुत की सील खोल रहा है।
वो दर्द से कराही- अह्ह्ह… उईई… ओह्ह्ह माँ… धीरे डाल कमीने… फाड़ेगा क्या अपनी माँ की चुत!
विवेक का अभी सिर्फ सुपारा ही अन्दर गया था और सुनीता का ये हाल था, अभी तो पूरा लंड बाहर था। विवेक ने मन ही मन कुछ सोचा और लंड बाहर निकाल कर उस पर थोड़ा थूक लगाया और दुबारा से लंड को ठिकाने पर टिका कर बिना देर किये एक जोरदार धक्का लगा कर लगभग आधा लंड चुत में उतार दिया। सुनीता दर्द में चिल्ला उठी… पर विवेक ने बेरहमी से साथ ही दूसरा धक्का लगा कर पूरा लंड सुनीता की चुत में पेल दिया।
“हाय्य्य य्य्य… मरर… गईई ईईई उईई याईईई आईईईई…” सुनीता दर्द से तड़प उठी।
“बहनचोद कुते… रण्डी की चुत नहीं है… तेरी माँ की चुत है कमीने…”
“सॉरी मम्मी… वो उत्तेजना में कुछ ज्यादा हो गया… बस अब आराम से करूँगा.” कह कर विवेक ने अपने होंठ अपनी माँ के होंठों से मिला दिए। अब विवेक सुनीता के होंठ चूस रहा था और दोनों हाथो से अपनी माँ की बड़ी बड़ी चुचियाँ मसल रहा था।
विवेक के रुक जाने से सुनीता को भी थोड़ा आराम मिला था, उसे भी अपनी चूत अब भरी भरी महसूस हो रही थी, उसका मन करने लगा था कि अब विवेक धक्के मारना शुरू करे।
“अब ऐसे ही पड़ा रहेगा या कुछ करेगा भी?”
सुनीता का बस इतना कहना था कि विवेक को भी जैसे इसी बात का इंतजार था, उसने धीरे धीरे लंड सुनीता की चुत में अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया। शुरू के दस बीस धक्कों में तो सुनीता को थोड़ा दर्द हुआ पर फिर तो जैसे जन्नत के दरवाजे खुलते चले गए, हर धक्के के साथ सुनीता का बदन मस्ती से झूम उठा और साथ ही विवेक के धक्कों की भी स्पीड अब बढ़ती चली गई और बेड पर जैसे भूचाल आ गया।
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“चोद दे रे… चोद अपनी माँ की चुत… बहुत प्यासी है तेरी माँ… मिटा दे उसकी प्यास… क्या मस्त लंड है तेरा… मजा आ गया… आह्ह्ह… चोद मेरे बच्चे… चोद… जोर जोर से चोद!” सुनीता मस्ती में बड़बड़ाती जा रही थी।
उधर विवेक भी जैसे जन्नत में था, काजल की चुत में भी शायद इतना मजा नहीं था जितना उसको अपनी माँ की चुत चोदने में आ रहा था। इसका एक मुख्य कारण तो अपनी सगी माँ की चुत को चोदने का एहसास भी था।
“ओह्ह… माँ… तू क्यों तड़पती रही इतने दिन… मुझे बताया क्यों नहीं… क्या चुत है तुम्हारी… तुम्हें तो मैं दिन रात चोदना चाहूँगा… एक पल के लिए भी तड़पने नहीं दूंगा अपनी प्यारी माँ को…”
“उम्म्मम्म… चोद… मेरे बेटा… आज से ये चुत मेरे मर्द बेटे के लिए तोहफा… जब चाहे चोद लेना… क्योंकि इसमें तेरी बीवी को भी ऐतराज नहीं होगा… अब तो जब भी दिल करेगा, खूब चुदवाया करुँगी… प्यासी नहीं रहना है अब मुझे…”
इसी मस्ती की धुन में दोनों माँ बेटा लगभग पंद्रह बीस मिनट तक चुदाई का आनन्द लेते रहे। इस बीच सुनीता दो बार झड़ चुकी थी और अब विवेक भी झड़ने को तैयार था। अब वो तूफानी गति से अपनी माँ की चुत में लंड पेल रहा था। सुनीता भी गांड उछाल उछाल कर विवेक को लंड को अपनी चुत में अन्दर तक महसूस कर रही थी।
और फिर विवेक के लंड ने गर्म गर्म वीर्य की पिचकारी छोड़ दी अपनी माँ की चुत में। सुनीता की चुत भी गर्मी से बह उठी और तीसरी बार झड़ने लगी। चुत की पकड़ लंड पर बढ़ गई थी और वो लंड से वीर्य का कतरा कतरा निचोड़ने को बेचैन कर लग रही थी।
झड़ने के बाद दोनों ही काफी देर तक ऐसे ही लेटे रहे। जब विवेक के फ़ोन की घंटी बजी तो जैसे दोनों जन्नत से जमीन पर आये। फ़ोन विवेक के बॉस का था, विवेक को जरूरी मीटिंग के लिए पहुँचना था पर सुनीता को चोदने के चक्कर में उसे कुछ याद ही नहीं रहा।
उसने तबीयत ख़राब होने का बहाना बनाया और फिर मात्र दस मिनट में ही नहा धोकर वो ऑफिस के लिए निकल गया। सुनीता अभी भी नंगधड़ंग बेड पर पड़ी थी, उसे अब नींद आने लगी थी और वो कब सो गई उसे खुद भी पता नहीं लगा। विवेक ऑफिस तो पहुँचा पर उसका दिल अभी भी सुनीता पर ही अटका हुआ था। जैसे तैसे दोपहर तक ऑफिस में बिताया और फिर तबीयत का बहाना बना कर वापिस घर के लिए निकल पड़ा।
उधर जब सुनीता की आँख खुली तो उसने अपने आप को अभी भी बेड पर नंगी पड़े पाया और एकदम से सब कुछ फिल्म की तरह उसकी आँखों के सामने घूम गया। तब उसको एहसास हुआ कि उसने कामाग्नि में यह क्या कर दिया है। उसे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि वो कैसे अपने सगे बेटे के साथ ये सब कर सकती है। कहीं ना कहीं ग्लानि के भाव सुनीता के मन में उठ रहे थे।
वो बेड से उठ कर बाथरूम की तरफ चली तो उसकी चुत में एक टीस सी उठी और उसे वो मजा याद आने लगा जो विवेक से चुदवाते हुए उसे आ रहा था। वो दुविधा में थी कि उसने गलत किया या सही। वो कुछ समझ नहीं पा रही थी। बाथरूम में फ्रेश हो, नहा धोकर वो बाहर निकली और रसोई में घुस गई। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
भूख भी लगने लगी थी, नाश्ता बना कर खाया पीया और फिर कमरे में अपने बेड पर लेटे लेटे वो सुबह की विवेक के साथ बीते पलों को याद कर कभी परेशान हो जाती तो कभी चुदाई के एहसास से दिल की धड़कनें बढ़ जाती उसकी! तभी दरवाजे पर आहट हुई, इस समय कौन आया होगा, यह सोचते हुए सुनीता दरवाजे की तरफ बढ़ी। दरवाजा खोलते ही उसकी धड़कनें बढ़ गई। दरवाजे पर विवेक खड़ा था।
“इतनी जल्दी कैसे आ गया तू…”
“कुछ नहीं बस थोड़ा सिर में दर्द था तो वापिस आ गया!” कहकर विवेक अपने कमरे में चला गया।
कुछ देर बाद सुनीता विवेक के कमरे में चाय पूछने के लिए गई तो विवेक उसी समय बाथरूम से फ्रेश होकर निकला था और उसने उस समय बनियान और अंडरवियर ही पहना हुआ था। ना चाहते हुए भी सुनीता की नजर उसके अंडरवियर में लंड और अंडकोष से बने उभार पर गई, उसके दिल की धड़कन एक बार से फिर बढ़ने लगी। वो विवेक को बिना चाय पूछे ही बाहर आ गई और रसोई में जाकर चाय बनाने लगी।
वो चाय बनाने में मशरूफ थी कि विवेक रसोई में आया और उसने सुनीता को पीछे से पकड़ कर अपने से चिपका लिया। सुनीता ने छूटने की कोशिश की पर विवेक ने उसको कस के पकड़े रखा और अपने होंठ सुनीता की गर्दन पर रख दिए। वो सुनीता की गर्दन और कान की लटकन को चूमने लगा। विवेक का इतना करना था कि सुनीता भी बहकने लगी और विवेक से लिपट गई।
गैस बंद कर विवेक सुनीता को एक बार फिर अपने बेडरूम में ले गया और कुछ ही देर बाद दोनों माँ बेटा फिर से नंगे बदन एक दूसरे से उलझे हुए अपनी कामाग्नि को शान्त करने में व्यस्त हो गए। कमरे में से अब सिर्फ आहे और सिसकारियाँ ही सुनाई दे रही थी या फिर सुनाई दे रही थी बेड की चूं चूं!
दोपहर को शुरू हुआ यह तूफ़ान शाम के नौ बजे तक चला, दोनों ने तीन बार चुदाई का भरपूर मजा लिया, उसके बाद विवेक बाजार से खाने पीने का सामान ले आया और खा पीकर दोनों फिर से बेडरूम में घुस गए और फिर सारी रात बेडरूम में भूचाल आया रहा।
कमाल की बात यह थी कि दोनों माँ बेटे ने आपस में चुदाई के सिवा कोई बात नहीं की थी। अगर कुछ किया था वो बस चुदाई वो भी आसन बदल बदल कर। कभी विवेक ऊपर सुनीता नीचे तो कभी सुनीता ऊपर तो विवेक नीचे। कभी घोड़ी बन कर तो कभी टेबल पर उल्टा लेटा कर।
दोनों ने ही अपने अपने फ़ोन बंद किये हुए थे। काजल ने दोनों का फ़ोन बहुत बार मिलाया पर फ़ोन तो बंद थे। अगली सुबह विवेक छुट्टी लेना चाहता था पर सुनीता ने मना कर दिया क्योंकि पिछली दोपहर से आठ बार चुदवा चुकी थी और उसकी चुत सूज कर डबल रोटी हुई पड़ी थी, उसमें अब और चुदवाने की ताकत नहीं बची थी।
विवेक ने नाश्ता किया और वो अपने ऑफिस के लिए निकल गया। उसके जाते ही सुनीता ने अपना फ़ोन खोला ही था कि काजल का फ़ोन आ गया। उसने सुनीता से बार बार पूछा कि कुछ हुआ या नहीं पर सुनीता ने मना कर दिया। काजल ने सुनीता को कहा कि उनके पास आज आज की रात और है, या तो वो विवेक से चुद कर मजा ले ले नहीं तो वो आते ही उनको विवेक के सामने नंगी करके चुदने को डाल देगी।
अब उसे क्या पता था कि उसकी सास और पति तो पहली पारी में ही शतक जमा कर पारी घोषित कर चुके हैं। विवेक उस दिन भी जल्दी आ गया और शाम होते होते उसने और सुनीता ने दो बार चुदाई कर ली थी। फिर रात का खाना दोनों बाहर करने गए। विवेक ने अपनी माँ के लिए 3-4 जोड़ी फैंसी अंडरगारमेंट्स ख़रीदे। सुनीता के कहने पर 2 जोड़ी काजल के लिए भी लिए और फिर रात को करीब 11 बजे घर पहुँचे।
घर में अन्दर घुसते ही जैसे ही सुनीता ने दरवाजा बंद किया विवेक ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और सीधा अपने बेडरूम में लेकर घुस गया और अगले कुछ ही पलों में दोनों के बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। विवेक ने सुनीता को नए ब्रा-पैंटी डाल कर दिखाने को कहा तो सुनीता ने भी ख़ुशी ख़ुशी सब एक एक बार पहन कर विवेक को दिखाए।
सुनीता दो दिन की चुदाई से ही खिल उठी थी। जो सुनीता पिछले तेरह साल से चुदाई के लिए तरस रही थी वो आज उसे छप्पर फाड़ कर मिल रही थी। कपड़े उतर चुके थे और विवेक सुनीता की चुत पर अपनी जीभ टिका चुका था और सुनीता ने भी अपने बेटे का लंड अपने मुँह में भर लिया था। फिर सारी रात घपाघप घपाघप होती रही। सुनीता चुदती रही और विवेक चोदता रहा।
सुनीता ने विवेक को बता दिया था कि अगले दिन काजल आने वाली है और वो काजल के सामने यह जाहिर नहीं होने देना चाहती है कि वो विवेक से चुद चुकी है तो बस आज रात जम के चोद दो फिर दो तीन दिन काजल के सामने शराफत का नाटक करने के बाद ही चुदाई होगी दोनों के बीच। ताकि काजल को लगे कि उसने ही सुनीता को विवेक से चुदवाया है।
सुबह तक पाँच बार चुदाई हुई और फिर दोनों सो गए। दस बजे विवेक अपनी ड्यूटी पर चला गया और करीब बारह बजे काजल आ गई। वो सुनीता से बहुत नाराज हुई कि उसने विवेक को और सुनीता को मौका दिया पर फिर भी दोनों ने कुछ नहीं किया। सुनीता की मन ही मन हँसी छुट रही थी पर उसने काजल को एक बार भी ये बात जाहिर नहीं होने दी।
शाम को विवेक आ गया और खाना खाने के बाद जब काजल और विवेक अपने बेडरूम में मिले तो विवेक काजल से ऐसे लिपटा जैसे तड़प रहा हो काजल को चोदने के लिए। जैसे पिछले तीन दिन से चुत देखी ही ना हो। काजल विवेक पर भी नाराज हुई कि उसने कहने के बाद भी अपनी मम्मी को नहीं चोदा. पर विवेक ने बोल दिया कि उसे शर्म आती है अपनी माँ के साथ ये सब करने में।
यह सुन काजल बोली- तुम दोनों ही लुल्ल हो… मुझे ही कुछ करना पड़ेगा।
अगले दिन से काजल ने सुनीता और विवेक दोनों पर ही दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वो चुदाई करें।
काजल सुनीता को बोली- मम्मी जी, जब चुत में आग लगी है और विवेक चोदने को भी तैयार है तो आप चुदवा क्यों नहीं लेती?
सुनीता बोली- काजल… मुझे एक दो दिन का टाइम दे… मैं सोचती हूँ इस बारे में!
“कोई एक दो दिन का टाइम नहीं… जो होगा आज रात को होगा… बस आप अपनी चुत चमका कर रखना ताकि आपका बेटा आपकी चुत देखते ही चोदने को टूट पड़े!”
“तू मुझे चुदवा कर ही मानेगी कमीनी…”
शाम को विवेक आया, सबने खाना खाया और फिर जब सब सोने की तैयारी करने लगे तो काजल ने सुनीता को अपने साथ उनके बेडरूम में चलने को कहा। सुनीता ऊपर से मना करती रही पर सच तो ये था कि उसने पिछली रात भी बड़ी मुश्किल से काटी थी विवेक से चुदे बिना… थोड़ी ना-नुकर के बाद सुनीता काजल के साथ उसके कमरे में चली गई।
विवेक सिर्फ अंडरवियर में बैठा काजल का इंतज़ार कर रहा था। सुनीता को देख उसने भी चौंकने का ड्रामा किया। काजल कुछ नहीं बोली बस उसने सुनीता की साड़ी खींच दी। सुनीता ब्लाउज और पेटीकोट में विवेक के सामने खड़ी थी। विवेक या सुनीता कुछ बोलते इससे पहले ही काजल ने पेटीकोट का कमरबन्द खींच दिया। पेटीकोट सुनीता के बदन से अलग हो उसके कदम चूमने लगा। सुनीता ने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी।
“अब सब कुछ मैं ही करूँ या आप भी खड़े होकर कुछ करोगे?” काजल ने विवेक की तरफ देखते हुए कहा।
“क्या कर रही हो काजल… माँ है वो मेरी… कैसे चोद सकता हूँ मैं उन्हें?” विवेक का ड्रामा अभी भी चालू था।
“अब खड़े होकर कुछ करते हो या पड़ोसी को बुलाऊं तुम्हारी माँ चुदवाने के लिए!”
काजल पर तो जैसे भूत सवार था सुनीता को विवेक से चुदवाने का। तभी सुनीता ने विवेक को आँख मारी और आने का इशारा किया तो विवेक शर्माने का नाटक करते हुए सुनीता के पास गया और एक हाथ सुनीता की चूची पर रख दिया। काजल यह देख पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई और एक डायरेक्टर की तरह दोनों को बताने लगी कि क्या करना है। उसे क्या पता था कि ये दोनों तो पहले ही इस काम की पीएचडी कर चुके है।
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“जल्दी से अपनी माँ का ब्लाउज भी उतार दो… और मम्मी जी आप भी जल्दी से विवेक का अंडरवियर उतार कर लंड पकड़ कर देखो अपने हाथ में!” विवेक और सुनीता दोनों काजल की ये बातें सुन कर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे। अब उन दोनों ने भी नाटक बंद कर मजे लेने का सोचा और फिर तो दोनों लिपट गए एक दूसरे से। कुछ ही देर में दोनों के नंगे बदन बेड पर एक दूसरे से उलझे हुए थे। काजल भी अपने कपड़े उतार चुकी थी और बेड के कोने पर बैठ माँ बेटे की चुदाई का लाइव शो देख रही थी।
सुनीता ने विवेक का लंड चूसा और विवेक ने भी दिल से सुनीता की चुत चाटी और फिर एक ही झटके में विवेक ने अपना लंड सुनीता की चुत में उतार दिया। अगले बीस मिनट तक दोनों चुदाई का मजा लेते रहे और काजल ये सोच सोच कर खुश होती रही कि आखिर उसने अपनी सासू माँ की प्यास बुझाने का प्रबन्ध कर दिया था। बेशक इस काम के लिए उसे अपना पति अपनी सास के साथ साँझा करना पड़ रहा था। उस दिन से चुदाई का जो सिलसिला शुरू हुआ वो शायद आज भी जारी है।
Rahulchavan says
no