Small Virgin Pussy
मेरा नाम दिलीप हैं, मेरी उम्र 28 साल है और मैं दिल्ली का हूँ… मेरी नोकरी लग गई और मुझे उसके लिए जयपुर जाना पड़ा, जयपुर में मेरे दूर का भाई दिलीप रहेता था जो मेरे से 15 साल बड़ा था. मैंने जयपुर जाने से पहेले ही उसे फ़ोन कर दिया था और वोह मुझे स्टेशन लेने भी आया था, जब तक कोई और इंतजाम ना हो मैंने उसी के घर रुकने का सोचा था. Small Virgin Pussy
स्टेशन पर वोह अपनी लड़की सावित्री के साथ आया था. सावित्री बहुत ही मांसल और सुंदर थी, उसका एक एक स्तन जैसे की ठांस ठांस कर कपड़ो में भरा हुआ था, मैंने उसे 10 साल पहेले जब वोह 10 साल की थी तब देखा था, तब वोह एक बच्ची थी और अब बच्चे पैदा करने को तैयार ! मेरा लंड उसे देख कर पहेली नजर में ही खड़ा हो गया.
मुझे दिलीप के घर ठहरे एक हफ्ता हो गया था, सावित्री से मैंने आँखमिचोली कब से चालू कर दी थी और वोह भी जब मुझे उपर मेरे कमरे में खाना देने आती या पानी का जग देने आती तो तिरछी नजरो से देखती थी. अक्सर शाम के वक्त मैं लंगोट की साइज़ के बरमूडा में ही होता था और उसके आते ही लंड बरमुडे का आकार ऊँचा कर देता था.
एक दिन हमारे बोस की बीवी की बर्थ-डे थी और ऑफिस का सभी स्टाफ पार्टी में जानेवाला था इसलिए बोस ने सभी को तैयार होने के लिए लंच के वक्त ही छोड़ दिया, मैं घर आ गया और देखा की दिलीप और सरला भाभी दिखाई नहीं दे रहे थे…!
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मैंने सावित्री को तभी बरामदे पर अपने बाल झटकते देखा, वह अपनी नीली नाईटी पहने बाल को टुवाल से झटक रही थी और शायद अंदर ब्रा नहीं पहेनी हुई थी इसलिए उसके मांसल स्तन इधर उधर हो रहे थे, मेरा लंड उबलने लगा. मैं कुछ कहूँ उसके पहले ही सावित्री बोली, मम्मी डेडी अभिजित अंकल के वहाँ गए है और रात को लौटेंगे.
मेरे दिमाग में सावित्री की चुदाई की योजना तभी बनने लगी और मेरा लंड पेंट में करवटे लेने लगा. मैं मनोमन सावित्री की चूत को लेने की योजना सोचते हुए अपने रूम में जूते और कपडे निकाल रहा था, मैं अपने कपडे उतार अपनी चड्डी में खड़े हुए सावित्री के बारे में ही सोच कर अपने लंड के उपर हाथ फेर रहा था.
मेरा लंड मांसल हुआ पड़ा था और हाथ फेरने से मजा आ रही थी. तभी रूम का दरवाजा धम से खुल गया और सावित्री वहाँ पानी का ग्लास लिए खड़ी थी, मैं जैसे ही दरवाजे की तरफ पलटा मैंने देखा की सावित्री की नजर मेरे खड़े हुए लंड पर ही थी, उसके मुहं से हंसी निकल गयी और वह ग्लास मेज पे रख के निचे चली गई.
पहेले तो मुझे लगा की वह डर गई लेकिन फिर मैंने सोचा की उसकी हंसी बहुत शरारती थी, मैंने अपना मोबाइल निकाला और बोस को फोन किया की मेरे भैया की तबियत ख़राब है इसलिए उन्हें ले कर अस्पताल जा रहा हूँ, मुझे आज कुछ भी कर के सावित्री की चूत में अपने मांसल लंड के झंडे गाड़ने थे…!
मैं निचे आया और देखा की सावित्री किचन में खाना गर्म कर रही थी मैं किचन में घुसा और मैंने देखा की सावित्री अब भी दांतों में मुस्कुरा रही थी, मैंने बेसिन में हाथ धोने के बहाने बिलकुल उससे सट के लंड उसकी गांड पर अड़ा दियां और हाथ धोए, सावित्री ने पलट कर मेरी तरफ देंखा और मैं उसे स्मित दे रहा था, वह भी हंस पड़ी.
फिर क्या, अब तो सिग्नल मिल गया था मुझे, केवल सही पटरी पर चलना था बस. मैंने सावित्री को कहा सावित्री खाने में क्या बनाया है. सावित्री बोली, भिंडी और रोटी, मैं हंसा और बोला मुझे कभी रोटी बनानी नहीं आई और अब तो अच्छा रूम मिल गया तो खाना मुझे ही बनाना है कुछ दिनों में.
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सावित्री बोली कोई बात नहीं मैं आपको सिखा दूंगी बाद में. मैंने कहा बाद में क्यूँ आज ही सिखा दो, में रोज रोज थोड़ी ऑफिस से जल्दी आता हूँ. सावित्री अभी भी होंठो को दबाये मुस्कान दे रही थी, वह हां या ना कहे उसके पहेले मैंने अपने शर्ट की बाएं चढ़ाई और मैं प्लेटफोर्म के पास जाके खड़ा हुआ. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने सावित्री के हाथ से बेलन लिया और चोकी पर रोटी बेलने लगा, मुझे वैसे रोटी बनानी आती थी, बस मैं सावित्री को घास डाल रहा था. सावित्री बोली ऐसे नहीं, लाओ मैं बताती हूँ, मैंने कहा मेरे हाथ यही रहेने दो और बताओ. सावित्री ने बेलन के उपर रहे मेरे हाथ पर अपने हाथ रखे, उसके कंपन दे रहे हाथ उसकी जवानी में आई गरमावट के आसार दे रहे थे.
उसके बड़े चुंचे मेरे कमर से लड़ते थे और मेरा लंड इधर बोखलाता जा रहा था. उसने मुझे रोटी बेलवाई पर मैंने इस दौरान कितनी बार उसकी उँगलियाँ दबाई और उसे अपने इरादे इसके द्वारा स्पष्ट कियें. सावित्री ने ऊँगली हटाई नहीं और मैं समझा के वह भी लंड खाने को तैयार है. मैने कहा सावित्री तूम आगे आओ, मैं देखता हूँ पीछे से.
सावित्री आगे आया गई और मैंने पीछे से बेलन को पकड़ा, मेरा तना हुआ लंड उसकी गांड से दूर था, लेकिन मैं बिच बिच में बेलन घुमाने के बहाने अपने लंड को उसकी फेली गांड से टकरा देता था, मैंने देखा की सावित्री की साँसे अब तेज हो चली थी और जब में लंड उसकी गांड से टकराता तब उसके होंठ कितनी बार दांतों के निचे जाते थे.
मैं एक कदम आगे बढ़ा औ मैंने अब लंड उसकी गांड पर टिका दिया बिना पीछे लिए, उसकी गांड से मेरा लंड बिलकुल मस्त टच हो रहा था क्यूंकि उसने शायद अंदर पेंटी नहीं डाली थी…! सावित्री बोली, चलो खाना निकाल दूँ, आपको…! मैंने कहा सावित्री, आज मेरे कुछ और ही खाने की इच्छा है….!
सावित्री हंस [पड़ी और बोली क्या खाओगे चाचा, मैंने कहा जो आप प्यार से खिला दे भिंडी के अलावा… सावित्री फिर हंसी. मैंने अपना हाथ आगे किया और उसकी कमर के उपर रख दिया, सावित्री की आँखे बंध हुई और वह सिसकारी लगाने लगी. मेरे हाथ अब तेजी से चल रहे थे और मैंने उन्हें उपर लेकर सावित्री के मांसल चुंचो को सहेलाना और दबाना चालू किया.
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सावित्री मुझे पीछे धक्के दे रही थी और यह जताना चाहती थी की उसे कुछ नहीं करना है अपर उसके स्तन के कड़े हुए निपल्स और उसकी बढ़ती साँसे उसकी गर्मी का बयान कर रही थी. मैंने अपने दोनों हाथ अब उसके चुन्चो पर रख दिए और लंड भी उसकी गांड में कपड़ो के साथ ही घुसाने लगा.
एकाद मिनिट लंड उसकी गांड पर लगाते ही सावित्री भी अब बेबस हो गई और अपना हाथ पीछे कर के मेरे लंड को सहलाने लगी. मैंने अब बिना वक्त गवाँए अपने कपडे उतारने शरू कियें, सावित्री ने जैसे ही मेरे 8 इंच मांसल लंड को देखा वह ख़ुशी से झूम उठी और मेरे लंड को हाथ लगा कर खेलने लगी उसके कोमल हाथ में मेरा लंड मजे से खेलने लगा.
मैंने भी सावित्री के कपड़े अब एक एक कर के दूर करने शरू कर दिए और उसके मांसल भरे हुए चुंचे मेरा लंड उठाने लगे, मैंने उसके चुन्चो को अपने दोनों हाथो में लेकर सहेलाना और दबाना शरू कर दियां, सावित्री अब भी सिसकारियाँ ले रही थी.
थोड़ी देर में हम दोनों बिलकुल नग्न हो गए और मेरा लंड सावित्री के भरपूर मांसल शरीर को देख और भी तन रहा था. मैंने सावित्री को उठा के किचन के प्लेटफोर्म पर बिठा दियां और उसकी टांगे खोल दी उसकी बिना बाल वाली चूत मस्त सेक्सी लग रही थी.
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मैंने धीमे धीमे उसके चूत के ऊपर हाथ फेरा और धीमे से एक ऊँगली अंदर सरका दी, अंदर इतना पानी निकला था की मेरी ऊँगली पूरी भीग गई, सावित्री की चुदाई का ख़याल मेरे लंड को हिलाने लगा. मैंने धीमे से सावित्री की नाभि पर जीभ लगाईं और धीमे धीमे जीभ को निचे लाता गया और उसकी चूत के होंठो को अपनी जीभ से संतृप्तता देने लगा.
सावित्री मेरे बालो को नोंचने लगी और उसके मुहं से बहुत ही सिसकारियाँ निकलने लगी ओह होऊ ओह आआह्ह्ह… आहा…मैंने उसके मांसल चूत पर जीभ फेरना चालू ही रखा. दो मिनिट की चुसाई के बाद मैंने जीभ निकाली और सावित्री को निचे बैठाया और उसके मुहं में अपना मांसल लंड दे दिया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
सावित्री केन्डी खा रही हो वैसे लंड को चूसने लगी. मेरा लंड मैं उसके गले तक घुसाने की कोशिश कर रहा था पर लंड के मांसल होने की वजह से वह अंदर तक जा नहीं रहा था. सावित्री और मैं दोनों अब ओरल सेक्स से संतृप्त होने लगे थे और अब हम दोनों को भी सही देसी चुदाई का मजा लेना था.
मैंने सावित्री को वही प्लेटफोर्म पर लेटाया और उसकी टांगे निचे रखी, सावित्री की मांसल चूत मेरे लंड के पास ही पड़ी थी. मैंने एक झटका दियां और इस सेक्सी योनी में अपना लंड पूरी तरह घुसेड दिया, सावित्री के मुहं से चीख निकल पड़ी.. ओह मम्मी मार डाला…
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मैंने अपना हाथ उसके मुहं पर रख दिया और लंड को बिना हिलाए उसकी चूत में ही रहेने दिया. एकाद मिनिट के बाद उसकी चूत एडजस्ट हो गई और मैंने धीमे धीमे सावित्री की चुदाई चालू कर दी. सावित्री भी अब लंड से एन्जॉय करने लगी थी और उसने भी अपनी बड़ी गांड उठा उठा के मुझ से चुदवाना चालू कर दिया. वोह अपनी गांड आगे पीछे कर के मांसल लंड को पूरा अन्दर लेने लगी मैंने भी उसके चुंचे, गर्दन, कंधे और पेट पर किस देते हुए उसकी चुदाई 10 मिनिट तक चालू रखी. सावित्री की चूत अब झाग निकालने लगी थी और यह झाग मेरे लंड के उपर आ रहा था.
सावित्री ने मुझे कस के पकड़ा और मैं समझ गया की वह झड चुकी है. मैंने अब अपने झटके और भी तेज कर दिए और उसकी मस्त चुदाई जारी रखी, 2 मिनिट के बाद मेरे लंड ने भी पानी निकाल दिया और हम दोनों वहीँ प्लेटफोर्म पर चिपक के पड़े रहे….!!! फिर तो यह चुदाई का सिलसिला एक साल तक जारी रहा…मैंने वही उनके घर के करीब एक रूम रख ली ताकि सावित्री वहा आ जा सके..कभी कभी उसके मम्मी डेडी घर ना होने पर मैं उसके घर जा के भी उसकी चुदाई कर देता था……!!!