Dehati Chut XXX
मेरा नाम धर्मेश है. बात उन दिनों की है जब मेरी उम्र 19 साल की थी और मै इंजीनियरिंग के पहले साल में कलकत्ता में पढ़ रहा था. मै बलिया का रहने वाला हूँ. मेरे सेमेस्टर के एक्जाम समाप्त हो गए थे. और कुछ दिनों की छुट्टी के लिए घर आया था. मेरा घर संयुक्त परिवार का है. Dehati Chut XXX
मेरे परिवार के अलावा मेरे चाचा एवं चाची भी साथ में ही रहते थे. मेरे चाचा पेशे से हार्डवेयर के थोक विक्रेता थे. उन्होंने काफी धन कमाया रखा था उन्होंने. उनकी शादी को सात साल हो गए थे लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं हुई थी. चाची की उम्र 28 साल की थी.
वो बलिया जिले के ही एक गाँव की थी. थी तो देहाती लेकिन देखने में मस्त थी. उनकी जवानी पुरे शवाब पर थी. झक गोरा बदन और कटीले नैन नक्श और गदराये बदन की मालकिन थी. वो लोग ऊपर के मंजिल में रहते थे. जब चाचा दूकान और मेरे पापा अपने कार्यालय चले जाते थे तो मै और चाची दिन भर ऊपर बैठ कर गप्पें हाकां करते थे.
चाची का नाम रवीना था. सच कहूँ तो वो मुझे अपना दोस्त मानती थी. वो मेरे सामने बड़े ही सहज भाव से रहती थी. अपने कपडे लत्ते भी मेरे सामने ठीक से नहीं पहनती थी. उनकी चूची की आधी दरार हमेशा दिखती रहती थी. कभी कभी तो सेक्स की बात भी कर डालती थी.
जब भी मुझे अकेली पाती थी तो हमेशा डबल मीनिंग बात बोलती थी. जैसे बछडा भी दूध देता है. तेरा डंडा कितना बड़ा है? तुझे स्पेशल दवा की जरुरत है. आदी. दिन भर मेरे कालेज और कलकत्ता के किस्से सुनते रहती थी. जब मेरे कलकत्ता जाने के छः दिन शेष रह गए थे तभी एक दिन चाची ने कहा – वो लोग भी कलकत्ता घुमने जाना चाहते हैं.
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मैंने कहा – हाँ क्यों नहीं. आप दोनों (चाचा-चाची) मेरे साथ ही अगले शनिवार को चलिए. मै आप दोनों को वहां की पूरी सैर करवा दूंगा.
चाची ने अपना प्लान चाचा को बताया. चाचा तुरंत मान गए. मैंने उसी समय इन्टरनेट से हम तीनो का टिकट एसी फर्स्ट क्लास में कटवाया. अगले शनिवार को हमारी ट्रेन थी. अगले शनिवार को सुबह हम तीनो ट्रेन से कलकत्ता के लिए रवाना हुए. अगले दिन रविवार को शाम सात बजे हम सभी कलकत्ता पहुच चुके थे.
मैंने उनको एक बढ़िया सा होटल में कमरा दिला दिया. उसके बाद मै वापस अपने होस्टल आ गया. होस्टल आने पर पता चला कि कल से कालेज के क्लर्क लोग अपनी वेतन बढाने के मांग को ले कर अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जा रहे हैं. और इस दौरान कालेज बंद रहेगा. मेरे अधिकाँश मित्रों को ये बात पता चल गयी थी. इसलिए सिर्फ 25 – 30 प्रतिशत छात्र ही कालेज आये थे.
मै अगले दिन करीब 11 बजे अपने चाचा के कमरे पर गया.वहां दोनों नाश्ता कर रहे थे. चाची ने मेरे लिए भी नाश्ता लगा दिया. मैंने देखा कि चाचा कुछ परेशान हैं. पूछने पर पता चला कि जिस कम्पनी का उन्होंने फ्रेंचाइजी ले रखा है उस कम्पनी ने दुबई में जबरदस्त सेल ऑफ़र किया है.
अब चाचा की परेशानी ये थी कि अगर वो वापस चाची को बलिया छोड़ने जाते और वहां से दुबई जाते तो तक तक सेल समाप्त हो जाती. और अगर साथ में ले कर दुबई जा नही सकते थे क्यों कि चाची का कोई पासपोर्ट वीजा था ही नहीं.
मैंने कहा – अगर आप दुबई जाना चाहते हैं तो आप चले जाएँ. क्यों कि मेरा कालेज अभी एक साप्ताह बंद रह सकता है. मै चाची को या तो बलिया पहुंचा दूंगा या फिर आपके वापस आने तक यहीं रहेगी. आप दुबई से यहाँ आ जाना और फिर घूम फिर कर चाची के साथ वापस बलिया चले जाना. चाचा को मेरा सुझाव पसंद आया.
चाची ने भी कहा – हां जी, आप बेफिक्र हो कर जाइए. और वापस यहीं आइयेगा. तब तक धर्मेश मुझे कलकत्ता घुमा देगा. आपके साथ मै दोबारा घूम कर वापस आपके साथ ही बलिया चले जाऊंगी. चाचा को चाची का ये सुझाव भी पसंद आया.
लैपटॉप पर इन्टरनेट खोल कर देखा तो उसी दिन के दो बजे की फ्लाईट में सीट खाली थी. चाचा ने तुरंत सीट बुक की और हम तीनो एयरपोर्ट की और निकल पड़े. दो बजे चाचा की फ्लाईट ने दुबई की राह पकड़ी और मैंने एवं चाची ने कलकत्ता बाज़ार की. चाची के साथ लंच किया.
घूमते घूमते हम मल्टीप्लेक्स आ गए. शाम के सात बज गए थे. चाची ने कहा – काफी महीनो से मल्टीप्लेक्स में सिनेमा नहीं देखा. आज देखूंगी. मैंने देखा कि कोई नई पिक्चर आयी थी इसलिए सारी टिकट बिक चुकी थी. उसके किसी हाल में कोई एडल्ट टाइप की इंग्लिश पिक्चर की हिंदी वर्सन लगी हुई है.
फिल्म चार सप्ताह से चल रही थी इसलिए अब उसमे कोई भीड़ नही थी. मैंने 2 टिकट सबसे कोने का लिया और हाल के अन्दर चला गया. मुझे सबसे ऊपर की कतार वाली सीट दी गयी थी. और उस पूरी कतार में दुसरा कोई भी नही था. हमारी कतार के पीछे सिर्फ दीवार थी.
मैंने जान बुझ कर ऐसी सीट मांगी थी. मेरा आगे वाले तीन कतार के बाद कोने पर एक लड़का और लड़की अकेले थे. उस कतार में भी उसके अलावे कोई नही था. उसके अगले कतार में दुसरे कोने पर एक और जोड़ा था. इस तरह से उस समय 300 दर्शकों की क्षमता वाले हाल में सिर्फ 20 – 22 दर्शक रहे होंगे.
पता नही इतने कम दर्शकों के लिए फिल्म क्यों लगा रखा था. वो मेरे दाहिने और बैठी. चाची के दाहिने दिवार थी. तुरंत ही फिल्म चालू हो गयी. फिल्म शुरू होने के तुरंत बाद ही मेरे बाद के चौथे कतार में बैठे लड़के एवं लड़की ने एक दुसरे के होठों को किस करना चालू कर दिया. हालांकि सिनेमा घरों में इस तरह के सीन आम बात हैं. हर शो में कुछ लड़के लड़की सिर्फ इसलिए ही आते हैं.
चाची ने उस जोड़े की तरफ मुझे इशारा कर के कहा – हाय देख तो धर्मेश. कैसे एक दुसरे खुलेआम को चूस रहे हैं.
मैंने कहा – चाची , यहाँ आधे से अधिक सिर्फ इसलिए ही आते हैं. सिनेमा हाल ऐसे जगह के लिए बेस्ट है. तू उस कोने पर बैठे उस जोड़े को तो देख. वो भी वही काम कर रहा है. अभी तो सिर्फ एक दुसरे को किस कर रहे हैं ना. आगे देखना क्या क्या करते हैं. तू ध्यान मत दे इन सब पर. सब मस्ती करते हैं. यही तो लाइफ है.
चाची – तुने भी कभी मस्ती की या नहीं इस तरह से सिनेमा हाल में.
मैंने कहा – अभी तक तो नहीं की. लेकिन अब के बाद पता नहीं.
तुरंत ही फिल्म में सेक्सी सीन आने शुरू हो गए. मेरी चाची ने मेरे कान में फुसफुसा कर कहा – हाय राम, जरा देखो तो ये कैसी सिनेमा है.
मैंने कहा – चाची, ये कलकत्ता है. यहाँ सब इसी तरह की फिल्मे रहती है. अब देखो चुपचाप आराम से. ऐसी फिल्मो के मज़े लो. बलिया में ये सब देखने को नहीं मिलेगी.
वो पूरी फिल्म सेक्स पर ही आधारित थी. मेरी चाची अब गरम हो रही थी. वो गरम गरम साँसे फेंक रही थी. उसका बदन ऐठ रहा था. शायद वो पहली बार किसी हाल में एडल्ट फिल्म देख रही थी. मैंने पूछा – क्यों चाची? पहले कभी देखी है ऐसी मस्त फिल्म?
चाची – नहीं रे. कभी नही देखी.
मैंने धीरे धीरे अपना दाहिना हाथ उनके पीछे से ले जा कर उनके कंधे पर रख दिया. मैंने देखा कि चाची अपने हाथ से अपने चूत को साड़ी के ऊपर से सहला रही है. शायद सेक्सी सीन देख कर उनकी चूत गीली हो रही थी. मेरा भी लंड खड़ा हो गया था.
मैंने भी अपना बायाँ हाथ अपने लंड पर रख दिया. मैंने धीरे धीरे चाची के पीठ पर दाहिना हाथ फेरा. उसने कुछ नही कहा. वो अपनी चूत को जोर जोर से रगड़ रही थी. मैंने उनकी पीठ पर से हाथ फेरना छोड़ दाहिने हाथ से उनके गले को लपेटा और अपनी तरफ उसे खींचते हुए लाया. चाची मेरी तरफ झुक गयी.
मैंने पूछा- क्यों चाची, मज़ा आ रहा है फिल्म देखने में?
चाची ने शर्माते हुए कहा – धत ! मुझे तो बड़ी शर्म आ रही है.
मैंने कहा – क्यों ? इसमें शर्माना कैसा? तुम और चाचा तो ऐसा करते होंगे न? तेरे एक हाथ जहाँ हैं न उस से तो लगता है कि मज़े आ रहे हैं तुझे.
चाची – हाय राम, बड़ा बेशरम हो गया है तू रे कलकत्ता में रह कर. बड़ा देखता है यहाँ – वहां कि कहाँ हाथ हैं. कहाँ नहीं.
मैंने चाची के कानो को अपने मुह के पास लाया और कहा – जानती हो चाची? ऐसी फिल्मे देख कर मुझे भी कुछ कुछ होने लगता है.
चाची ने अपने होठ को मेरे होठो के पास लगभग सटाते हुए कहा – क्या होने लगता है?
मैंने अपने लंड को घसते हुए कहा – वही, जो तुझे हो रहा है न. मन करता है कि यहीं निकाल दूँ.
चाची – सिनेमा हाल में निकालते हो क्या?
मैंने – कई बार निकाला है. आज तू है इसलिए रुक गया हूँ.
चाची – आज यहाँ मत निकाल. बाद में निकाल लेना.
थोड़ी देर में फिल्म की नायिका ने अपनी चूची मसलवा रही थी. हम दोनों और गर्म हो गए. तो मैंने चाची के कान में अपने होठ सटा कर कहा – देख चाची, साली के चूची क्या मस्त है. नहीं?
चाची – ऐसी तो सब की होती है.
मैंने – तेरी है क्या ऐसी चूची?
चाची – और नहीं तो क्या?
मैंने – तेरी चूची छू कर देखूं क्या ?
चाची – हाँ, छू कर देख ले.
मैंने अपना दाहिना हाथ से उनके चूची को पकड़ लिया और दबाने लगा. उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया और आराम से अपने चूची को दबवाने लगी. मैंने धीरे धीरे अपना दाहिना हाथ उनके ब्लाउज के अन्दर डाल दिया. फिर ब्रा के अन्दर हाथ डाल कर उनका बड़े बड़े चुचीयों को मसलने लगा. वो मस्त हुई जा रही थी.
मैंने – अपनी ब्लाउज खोल दे न. तब मज़े से दबाऊंगा.
उसने कहा – यहाँ?
मैंने कहा और नहीं तो क्या? साडी को अपने चूची से ढके रहना. यहाँ कोई नहीं देखने वाला.
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वो भी गरम हो चुकी थी. उसने ब्लाउज खोल दिया. लगे हाथ उसने अपना ब्रा भी खोल दिया. और अपने नंगी चूची को अपनी साड़ी से ढक लिया. मैंने मज़े ले ले कर उसके नंगी चूची को सिनेमा हाल में ही दबाना चालू कर दिया.
मै जो चाहता था वो मुझे करने दे रही थी. मुझे पूरी आजादी दे रखी थी. थी. मैंने अपने बाएं हाथ से उनके बाएं हाथ को पकड़ा और उसके हाथ को अपने लंड पर रख दिया. और धीरे से कहा- देखो न. कितना खड़ा हो गया है. चाची ने मेरे लंड को जींस के ऊपर से दबाना चालू कर दिया.
अब मैंने देख लिया कि चाची पूरी तरह से गर्म है तो मैंने अपना हाथ उनके ब्लाउज से निकाला और उसके पेट पर ले जा कर नाभी को सहलाने लगा. धीरे धीरे मैं अपने हाथ को नुकीला बनाया और नाभी के नीचे उनके साड़ी के अन्दर डाल दिया. चाची थोड़ी चौड़ी हो गयी जिस से मुझे हाथ और नीचे ले जाने में सहूलियत हो सके.
मैंने अपना हाथ और नीचे किया तो उनकी पेंटी मिल गयी. मैंने उनकी पेंटी में हाथ डाला और उनके चूत पर हाथ ले गया. ओह क्या चूत थे. एक दम घने बाल. पूरी तरह से चिपचिपी हो गयी थी. मैंने काफी देर तक उनकी चूत को सहलाता रहा. और वो मेरे लंड को दबा रही थी.
मैंने अपने दाहिने हाथ की एक ऊँगली उनके चूत के अन्दर घुसा दी. वो पागल सी हो गयी. उसने आस पास देखा तो कोई भी हम लोग के आस पास नहीं था. उसने अपनी साड़ी को नीचे से उठाया और जांघ के ऊपर तक ले आयी. फिर मेरे हाथ को साड़ी के ऊपर से हटा कर नीचे से खुले हुए रास्ते से ला कर अपनी चूत पर रख दी. और बोली – अब आराम से कर, जो करना है.
अब मै उसके चूत को आराम से छू रहा था. उसने अपनी पेंटी को नीचे सरका दिया था. मैंने उसकी चूत में उंगली डालनी शुरू की तो उसने अपनी चूत और चौड़ी कर ली.
उसने मेरे कान में कहा – तू भी अपनी जींस की पेंट खोल ना. मै भी तेरी सहलाऊं.
मैंने जींस का चेन खोल दिया. लंड किसी राड की तरह खड़ा था. चाची ने बिना किसी हिचक के मेरे लंड को पकड़ा और सहलाने लगी. मै भी उसकी चूत में अपनी उंगली डाल कर अन्दर बाहर करने लगा. वो सिसकारी भर रही थी. मेरा लंड भी एकदम चिपचिपा हो गया था.
मैंने कहा – चाची, अब बर्दाश्त नहीं होता. अब मुझे मुठ मार कर माल निकालना ही पडेगा.
चाची – आज मै मार देती हूँ तेरी मुठ. मुझसे मुठ मरवाएगा?
मैंने कहा – तुझे आता है लंड का मुठ मारना ?
चाची – मुझे क्या नही आता? तेरे चाचा का लगभग हर रात को मुठ मारती हूँ. सिर्फ हाथ से ही नही…किसी और से भी..
मैंने कहा – किसी और से कैसे?
चाची – तुझे नही पता कि लंड का मुठ मारने में हाथ के अलावा और किस चीज का इस्तेमाल होता है?
मैंने कहा – पता है मुझे. मुंह से ना.
चाची – तुझे तो सब पता है.
मैंने कहाँ – तू चाचा का लंड अपने मुंह में ले कर चूसती है?
चाची – हाँ रे, बड़ा मजा आता है मुझे और उनको.
मैंने कहा – तू चाचा का माल कभी पी है?
चाची – बहुत बार. एकदम नमकीन मक्खन की तरह लगता है.
मैंने- तू तो बहुत एक्सपर्ट है. मेरी भी मुठ मार दे ना आज. अपने हाथों से ही सही.
चाची ने मेरे लंड को तेजी से ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया. सचमुच काफी एक्सपर्ट थी वो. चाची सिनेमा हाल के अँधेरे में मेरा मुठ मारने लगी. पहली बार कोई मेरा मुठ मार रही थी. मै ज्यादा देर बर्दास्त नहीं कर पाया. धीरे से बोला – हाय चाची, मेरा निकलने वाला है. चाची ने तुरन अपने साड़ी का पल्लू मेरे लंड पर लपेटा. सारा माल मैंने चाची के साड़ी में ही गिरा दिया.
फिर मैंने चाची के चूत में उंगली अन्दर बाहर करने लगा. चाची भी एडल्ट फिल्म की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पायी. उनका माल भी निकलने लगा. उसने तुरंत अपने चूत में से मेरी ऊँगली निकाली और अपने साड़ी के पल्लू में अपना माल पोंछ डाला.
2 मिनट बाद अचानक बोली – धर्मेश, चलो यहाँ से, अपने होटल के कमरे में.
मैंने कहा – क्यों? अभी तो फिल्म ख़त्म भी नहीं हुई है.
चाची – नहीं, अभी चलो, मुझे काम है तुमसे.
मैंने – क्या काम है मुझसे?
चाची- वही. जो अभी यहाँ कर रहे हो. वहां आराम से करेंगे.
मैंने कहा – ठीक है चलो.
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और हम लोग फिल्म चालू होने के 45 मिनट बाद ही निकल गए. हमारा होटल वहां से पांच मिनट की दुरी पर ही था. वहां से हम सीधे अपने कमरे में आये. कमरे में आते ही चाची ने अपनी साड़ी उतरा फेंकी. लपक कर मेरी शर्ट और जींस खोल दी.
अब मै सिर्फ अंडरवियर में था. चाची ने अगले ही पल अपनी ब्लाउज को खोल दिया. और पेटीकोट भी उतार दी. अब वो भी सिर्फ ब्रा और पेंटी में और मै सिर्फ अंडरवियर में था. वो मुझे अपने सीने के लपेट कर पागलों की तरह चूमने लगी. मेरे पुरे बदन को चाटने लगी.
चाची- धर्मेश , आ जा, अब जो भी करना है आराम से कर. मुझे भी तेरी काफी प्यास लगी है. मेरी प्यास बुझा दे. चीर डाल मुझे.
मैंने अपना अंडरवियर खोल दिया. मेरा 9 इंच का लंड किसी तोप की भांति चाची के तरफ खडा था. मै आगे बढ़ा और अपना लंड चाची के हांथों में थमा दिया. चाची मेरे लंड को सहलाने लगी. बोली – बाप रे बाप ! कितना बड़ा लंड है रे.
मैंने रवीना (चाची) के चुचियों का दबाते हुए कहा – रवीना चाची, तू बड़ी मस्त है. चाचा को तो खूब मज़े देती होगी तू.
रवीना – तू भी ले न मज़े. तू चाचा का भतीजा है. तेरा भी उतना ही हक बनता है मुझ पर. और तू मुझे सिर्फ रवीना कह ना. चाची क्यों पुकारता है मुझे. अब से तू मेरा दुसरा पति है.
मैंने – हाँ रवीना. क्यों नहीं.
रवीना – हाय, कितना अच्छा लगता है जब तू मुझे मेरे नाम से बुलाता है. सच बता कितनी को चोदा है तू अब तक?
मैंने – अब तक एक भी रवीना डार्लिंग, आज तुझसे ही अपनी ज़िंदगी की पहली चुदाई शुरू करूँगा.
मैंने रवीना के ब्रा को खोला और नंगी चूची को आज़ाद किया. साली की चूची तो ऐसी थी कि आज तक मैंने किसी ब्लू फिल्मों की रंडियों की चूचियां भी वैसी नहीं देखी. एकदम चिकनी और गोरी. एक तिल का भी दाग नही था.
मैंने उसकी घुंडियों को अपने मुंह में लिया और चूसने लगा. रवीना सिसकारी भरने लगी. मैंने उसे लिटा दिया. उसके बदन के हर अंग को चूसते हुए उसके पेंटी पर आया. उसकी पेंटी बिलकूल गीली हो चुकी थी. मैंने उसकी पेंटी के ऊपर से ही उसके चूत को चूसने लगा.
रवीना पागल सी हो रही थी. मैंने धीरे धीरे उसकी पेंटी को उसकी चूत पर से हटाया. आह ! क्या शानदार चूत थी. लगता ही नहीं था कि पिछले चार साल से इसकी चुदाई हो रही थी. गोरी गोरी चूत पर काले काले झांट. ऐसा लगता था चाँद पर बादल छ गए हों.
मैंने झांटों को हाथ से बगल किया और उसके चूत को उँगलियों से फैलाया. अन्दर एकदम लाल नजारा देख कर मेरा दिमाग ख़राब हो रहा था. मैंने झट से उसकी लाल लाल चूत में अपनी लपलपाती जीभ डाली. और स्वाद लिया. फिर मैंने अपनी पूरी जीभ जहाँ तक संभव हुआ उसकी चूत में घुसा कर चूस चूस कर स्वाद लेता रहा.
रवीना जन्नत में थी. उसने अपने दोनों टांगो से मेरे सर को लपेट लिए और अपने चूत की तरफ दबाने लगी. दस मिनट तक उसकी चूत चूसने के बाद उसके चूत से माल निकलने लगा. मैंने बिना किसी शर्म के सारा माल को चाट लिया. रवीना बेसुध हो कर पड़ी थी. वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी.
मैंने कहा – सच बता रवीना, चाचा से पहले कितनो से चुदवाई है तू?
रवीना – तेरे चाचा से पहले सिर्फ दो ने चोदा है मुझे.
मैंने कहा – हाय, किस किस ने तुझे भोग रे?
रवीना – जब मै सोलह साल की थी तब स्कूल की एक सहेली के भाई ने मुझे तीन बार चोदा. फिर जब मै उन्नीस साल की थी तो कालेज में मेरा एक फ्रेंड था. हम सब एक जगह पिकनिक पर गए थे. तब उसने मुझे वहां एक बार चोदा. एक साल बाद तो मेरी शादी ही तेरे चाचा से हो गयी.
मैंने – तब तो मै चौथा मर्द हुआ तेरा न?
रवीना – हाँ. लेकिन सब से प्यारा मर्द.
मै उसके बदन पर लेट गया आर उसके रसीले होठ को अपने होठ में लिए और अपनी जीभ उसके मुंह में डाल दिया. कभी वो मेरी जीभ चुस्ती कभी मै उसकी जीभ चूसता. इस बीच मैंने उसके दोनों टांगो को फैलया और उसके चूत में उंगली डाल दिया.
रवीना ने मेरी लंड पकड़ी और उसे अपने चूत के छेद के ऊपर ले गयी और हल्का सा घुसा दी. अब शेष काम मेरा था. मैंने उसके जीभ को चाटते हुए ही एक झटके में अपना लंड उसके चूत में पूरा डाल दिया. वो दर्द में मारे बिलबिला गयी.
बोली – अरे , धर्मेश, फाड़ देगा क्या रे? निकाल रे.
लेकिन मै जानता था कि ये कम रंडी नहीं है. इसे कुछ नहीं होगा. मैंने उसकी दोनों बाहें पकड़ी और अपने लंड को उसके चूत में धक्के लगा शुरू कर दिया. वो कस के अपनी आँखें बंद कर रही थी और दबी जुबान से कराह रही थी.
लेकिन मुझे उस पर कोई रहम नहीं आ रहा था. बल्कि उसके चीख में मुझे मजा आ रहा था. 70 -75 धक्के के बाद उसकी चीखें बंद हो हो गयी. अब उसकी चूत पूरी तरह से मेरे लंड को सहने योग्य चौड़ी हो गयी थी. अब वो मज़े लेने लगी. उसने अपनी आँखे खोल कर मुस्कुरा कर कहा – हाय रे धर्मेश. बड़ा जालिम है रे तू. मुझे तो लगा मार ही डालेगा.
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मैंने कहा – रवीना डार्लिंग, मै तुझे कैसे मार सकता हूँ रे. तू तो अब मेरी जान बन गयी है. और तुझे तो आदत होगी न बचपन से?
रवीना हंसने लगी. बोली – लेकिन इतना बड़ा लंड की आदत नहीं है मेरे शेर राजा.. मज़ा आ रहा है तुझ से चुदवा कर.
करीब दस मिनट तक चोदने के बाद मेरे लंड से माल निकलने पर हो गया. मैंने कहा – रवीना डार्लिंग, माल निकलने वाला है.
रवीना – निकलने दो न वहीँ.
अचानक मेरे लंड से गंगा जमुना बहने लगी और मै पूरा जोर लगा कर रवीना की चूत में अपना लंड घुसा दिया. रवीना कराह उठी. थोड़ी देर बाद हम दोनों को होश आया. मेरा लंड उसके चूत में ही था. मै उसके नंगे बदन पर से उठा. समय देखा तो नौ बजने को थे. मैंने पूछा – रवीना नहाएगी?
रवीना – हाँ रे, चल न.
मैंने उसे अपनी गोद में उठाया. उसने भी हँसते हुए अपनी दोनों बाहें मेरे गले में लपेटा और हम दोनों बाथरूम में आ गए. वहां मैंने रवीना को बाथटब में डाल दिया. फिर शावर को टब की ओर घुमाया और चला दिया. अब नीचे भी पानी और ऊपर से भी पानी बरस रहा था.
मै रवीना के ऊपर लेट गया. अब हम ठन्डे पानी में एक दुसरे के आगोश में थे. मेरे होठ उसके होठ चूम रहे थे. मेरे एक हाथ उसके चुचियों से खेल रहे थे और मेरे दसरे हाथ उसके चूत के छेद में ऊँगली कर रहे थे. और वो भी खाली नही थी. वो मेरे लंड को दबा रही थी.
दस मिनट तक ठन्डे पानी में एक दुसरे के बदन से खेलने के बाद हम दोनों का शरीर फिर गर्म हो गया. मैंने उसके टांगों को टब के ऊपर रखा और अपने लंड को उसके सुराख में डाला और पानी में डूबे डूबे ही उसे 20 मिनट तक आराम से चोदता रहा.
इस दौरान मेरे और उसके होठ कभी अलग नहीं हुए. अचानक मेरे लंड ने माल निकालना चालू किया तो मै उसे चोदना छोड़ कर उसके चूत में लंड को पूरी ताकत के साथ दबाया और स्थिर हो गया और मेरे होठ का दवाब उसके होठ पर और ज्यादा बढ़ गया.
जब मै उसके होठ के अपने होठ अलग किया तो उसने कहा – कितनी देर तक चोदते हो, मेरी जान तुम्हे पता है मेरा दो बार माल निकल चूका था इस चुदाई में. मै कब से कहना चाहती थी लेकिन तुमने मेरे होठों पर भी अपने होठो से ताला लगा दिया था.
मैंने कहा – रवीना डार्लिंग, सच बताना, कैसा लगा मेरा लंड का करिश्मा?
रवीना – मानना पड़ेगा, सच में मज़ा आ गया मुझे तो आज. अब चल कुछ खा -पी ले. अभी तो पुरी रात बांकी है.
मैंने बाथरूम के ही फोन पर से खाने के लिए चिकन, पुलाव, बियर और सिगरेट रूम में ही मंगवा लिया. थोड़ी देर में कमरे की घंटी बजी. मै टावेल लपेट कर बहार आया. और खाना टेबल पर रखवा कर वेटर को वापस किया. कमरे का दरवाजा बंद कर के मैंने मैंने रवीना को आवाज दिया. रवीना नंगे ही बाथरूम से बाहर आई.
मैंने भी टावेल खोल दिया. फिर हम दोनों ने जम के चिकन-पुलाव खाया और बियर पी. रवीना पहले भी बियर पीती थी. चाचा पिलाता था. मेरे कहने पर उस ने उस दिन 3 सिगरेट भी पी ली. उसके बाद मैंने उसकी कम से कम 10 – 11 बार चुदाई की. कभी उसकी चूत की चुदाई , तो कभी गांड की चुदाई, तो कभी मुंह की चुदाई. कभी चूची की चुदाई.
साली रवीना भी कम नही थी. एक दम रंडी की तरह रात भर चुदवाते रही. सारी रात मैंने उसे लुटा. सुबह के आठ बजे तक मैंने उसकी चुदाई करी. तब जा कर रवीना को थकान हुई. तब बोली – धर्मेश , अब मै थक गयी हूँ. अब बाथरूम चल न.
मैंने उसे उठा कर बाथरूम ले गया. बाथरूम में संडास के दो सीट थे. एक देसी और एक विदेशी. उसे देसी सीट पसंद थी. मै विदेशी सीट पर बैठ गया और संडास करने लगा. वो मेरे सामने ही देसी सीट पर बैठ कर संडास करने लगी. मुझे उसकी संडास की खुसबू भी अच्छी लग रही थी.
मैंने कहा – रवीना , तेरी गांड मै धोऊंगा आज.
उसने कहा – ठीक है. मै भी तेरी गांड धोउंगी.
संडास कर के हम दोनों उठे. मैंने उसे सर नीचे कर के गांड उठाने कहा. उसने ऐसा ही किया. इस से उसका गांड खुल गया. मैंने पानी से अच्छे से उसके गांड में लगे पैखाने को अपने हाथ से साफ़ किया. फिर मैंने भी वही पोजीशन बनायी. उसने भी मेरी गांड को अपने हाथ से साफ़ किया.
फिर हम दोनों लगभग एक घंटे तक टब में डूबे रहे और एक दुसरे के अंगों से खेलते रहे. टब में दो बार उसी चुदाई करी. फिर वापस कमरे में आ कर नाश्ता मंगवाया. और नाश्ता कर के हम दोनों जो सोये तो सीधे पांच बजे उठे. हम दोनों नंगे थे.उसने मेरे लंड पर हाथ साफ़ करना शुरू किया. लंड दूसरी पारी के लिए एकदम से तैयार हो गया.
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मै रवीना के बदन पर चढ़ गया और उसके चूत में अपना नौ इंच का लंड घुसेड दिया. तभी चाचा का फोन आया. लेकिन मैंने रवीना की चुदाई बंद नही की. रवीना ने मुझसे चुदवाते हुए अपने पति यानी मेरे चाचा से बात की. उन्होंने कहा कि वो दुबई पहुँच गए हैं. फिर रवीना से पूछा कि क्या तुमने धर्मेश के साथ कलकत्ता घूमी या नहीं. रवीना ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा और फोन पर कहा – धर्मेश को फुर्सत ही नहीं मिलता है. जब आप आयेंगे तभी मै आपके साथ घुमुंगी. तब तक आपका इंतज़ार करती हूँ.
फोन रख कर उसने बगल से सिगरेट उठाया और जला कर कश लेते हुए कहा – क्यों धर्मेश? तब तक तुम मुझे जन्नत की सैर करवाओगे न?
मैंने हँसते हुए अपने लंड के धक्के उसके चूत में तेज किया और कहा – क्यों नहीं रवीना डार्लिंग.लेकिन तू हैं बड़ी कमीनी चीज.
रवीना ने भी मेरे लंड के धक्के पर कराहते हुए मुस्कुरा कर कहा – तू भी तो कम हरामी नहीं है. पक्का मादरचोद है तू. मौका मिले तो अपनी माँ को भी चोद डालेगा तू.
मैंने कहा- पक्की रंडी है तू साली. एकदम सही पहचाना मुझे. तुझ पर तो मेरी तभी से नजर थी जब से तू मेरे घर पर चाची बन के आई थी. अब जा के मौका मिला है तुझे चोदने का.
रवीना – हाय मेरे हरामी राजा. पहले क्यों नही बताया. इतने दिन तक तुझे प्यासा तो ना रहना पड़ता.
मैंने कहा – सब्र का फल मीठा होता है मेरी जान.
तब तक मेरे लंड का माल उसके चूत में निकल चुका था. अब मै उसके बदन पर निढाल सा पडा था और वो सिगरेट के कश ले रही थी. और फिर….अगले 6 दिन तक हम दोनों में से कोई कमरे के बाहर भी नहीं निकला जब तक कि चाचा दुबई से वापस नहीं आ गए.
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