Muslim MILF Aunty Riding
में अपनी एक फूफी को चोदने की ताक में था जो कराची में रहती थीं. उनका नाम हिफ्ज़ा था और उनके दो बचे थे. वो मेरी चारों फुफियों में सब से बड़ी थीं और उनकी उमर 43 साल के लग भाग तो ज़रूर होगी. उमर के इस हिस्से में भी वो बड़ी खूबसूरत, लंबी, गोरी और निहायत सेहतमंद औरत थीं. Muslim MILF Aunty Riding
ये जिस्मानी ख़सूसियात मेरे ददिहाल की औरतों को विरासत में मिली थीं वरना हमारे हाँ औरतें कोई बहुत ज़ियादा लंबी नही होतीं. मेरे मरहूम दादा और दादी दोनों ही तवील क़ामत थे और इसी लिये उनके तक़रीबन सब ही बच्चे लंबे लंबे थे. फूफी हिफ्ज़ा का क़द भी बहुत लंबा था बल्के वो तो खानदान के कई मर्दों से भी लंबी थीं.
फूफी हीना के अलावा मेरी सारी ही फूपियाँ क़द-आवर और लंबी चौड़ी थीं और फूफी हिफ्ज़ा भी बहुत सेहतमंद और लंबी औरत थीं. वो अपनी बहनो में फूफी फ़रीहा और फूफी नादिरा से बहुत ज़ियादा मिलती थीं. लेकिन अपनी बहनो से उनकी शबाहात सिरफ़ चेहरे की साख़्त की हद तक नही थी बल्के उनके बदन भी काफ़ी हद तक एक ही जैसे थे.
फूफी फ़रीहा मेरी पहली फूफी थीं जिनको में चोदने में कामयाब हुआ था. उन्हे चोदने के बाद अब में ये जान गया था के अपनी सग़ी फूफी को चोदना ना-मुमकिन नही होता. इसी लिये अब में किसी तरह फूफी हिफ्ज़ा की चूत भी मारना चाहता था. वो मुझे वैसे भी बहुत पसंद थीं.
मेरे ज़हन में उन्हे चोदने के कई मंसूबे थे मगर डरता था के कहीं बात बिगड़ ना जाए क्योंके ऐसी सूरत में मेरी खैर नही थी. फूफी हिफ्ज़ा को नाराज़ करने में बहुत बड़ा ख़तरा था और इस की एक ख़ास वजह थी. फूफी हिफ्ज़ा के मम्मे फूफी फ़रीहा के मम्मों की तरह बहुत मोटे थे और उनके चौड़े सीने पर खूब सजते थे.
मैंने फूफी हिफ्ज़ा को बगैर ब्रा के एक दो दफ़ा ही देखा था. क़मीज़ के ऊपर से भी ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल नही था के उनके मम्मों के निप्पल गैर मामूली तौर पर लंबे और बड़े थे. सारे बदन की तरह उनके चूतड़ भी बहुत तगड़े और मोटे थे. मज़े की बात ये थी के फूफी फ़रीहा ही की तरह चलते हुए उनके कसे कसाय गोल और सुडौल चूतड़ एक दूसरे के साथ रगड़ खाते रहते और उनकी गोलाइयाँ आगे पीछे हरकत करती रहतीं.
फूफी हिफ्ज़ा का बदन बहुत मज़बूत और गदराया हुआ था. फूफी हिफ्ज़ा को चोदने की कोशिश करना मधुमक्खी के छट्टे में हाथ डालने जैसा था. लेकिन वो हर लिहाज़ से इतनी ज़बरदस्त औरत थीं के उन्हे चोदने की खाहिश को दिल से निकालना भी हिमाक़त ही होती.
मै तो वैसे भी फूफी फ़रीहा को चोद लेने के बाद अपनी सारी फुफियों को अपने लिये एक नैमत समझता था और फूफी हिफ्ज़ा की मोटी ताज़ी चूत ना लेने का तो सवाल ही पैदा नही होता था चाहे इस में जितना भी ख़तरा होता. हाँ ये ज़रूर था के मुझे अच्छी तरह सोच समझ कर ही इस सिलसिले में कोई क़दम उठाना था.
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में ज़हन लड़ाता रहा के फूफी हिफ्ज़ा को चोदने के लिये किया करूँ. किसी भी औरत को अपनी चूत देने पर राज़ी करने के लिये मर्द का उस की शख्सियत के मुख्तलीफ़ पहलो’ओं से वाक़िफ़ होना बहुत ज़रूरी है. मै उनका भतीजा होने की वजह से फूफी हिफ्ज़ा को बड़े क़रीब से जानता था.
वो मेरे सामने खुली किताब की तरह थीं और मुझे किसी ना किसी हद तक ये आगाही थी के उन्हे अपनी चूत देने पर राज़ी करने के लिये किया करना चाहिये. फूफी हिफ्ज़ा का मिज़ाज अगरचे फूफी फ़रीहा से मिलता तो था मगर वो कुछ चीज़ों में उन से मुख्तलीफ़ भी थीं. वो एक सख़्त-गीर, तेज़ तबीयत और जल्द गुस्से में आ जाने वाली औरत मशहूर थीं.
वो इतनी जल्दी किसी से फ्री नही होती थीं. फिर ये भी था के वो खुद को दुनिया की खूबसूरत तरीन औरत समझती थीं. उन्हे अपने आप से बड़ी मुहब्बत थी और बाक़ी सब औरतों को वो खुद से बहुत कम तर जानती थीं. अपनी तारीफ से उन्हे बहुत खुशी होती थी. ऐसा तो खैर सारी ही औरतों के साथ होता है मगर फूफी हिफ्ज़ा तो अपने मुक़ाबले में किसी दूसरी औरत का ज़िकर भी नही सुन सकती थीं.
अगर कोई उनके सामने किसी औरत की तारीफ करता तो वो फॉरन उस में हज़ार कीड़े निकालने लगतीं. इस के अलावा पैसा भी फूफी हिफ्ज़ा की बहुत बड़ी कमज़ोरी था और अगरचे वो दौलतमंद थीं मगर पैसे पर फिर भी जान देती थीं. जेवर और कपड़ों की दीवानी थीं और कभी भी अपने आप को ऐसी चीज़ों से दूर नही रख पाती थीं.
शॉपिंग करना उनके लिये ज़िंदगी का सब से पसंदीदा काम था. इन्ही कमज़ोरियों का सोच कर और मामी शाहिदा वाले तजरबे की रोशनी में मैंने हिम्मत कर के उनकी फुद्दी मारने का प्लान बना ही लिया. बात बिगड़ भी सकती थी मगर में जानता था के फूफी हिफ्ज़ा अगर नाराज़ भी हुईं तो अपनी नाराज़गी मुझ तक ही रक्खेंगी किसी और को कुछ नही बताएंगी क्योंके इस में उनकी भी बड़ी रुसवाई होती.
मै खामोशी से अपने प्लान को अमली जामा पहनाने के लिये सही वक़्त का इंतिज़ार करने लगा. कुछ अरसे बाद मुझे पता चला के फूफी हिफ्ज़ा बा-रास्ता लाहोर पिंडी आ रही हैं. मेरे लिये उन पर हाथ डालने का ये बेहतरीन मोक़ा था. मैंने डैड से कहा के मैंने भी लाहोर जाना है में फूफी हिफ्ज़ा को वापस आते हुए पिंडी लेता आऊँगा.
उन्होने फूफी हिफ्ज़ा से इस सिलसिले में फोन पर बात कर ली. मै चाहता था के मामी शाहिदा की तरह फूफी हिफ्ज़ा को भी किसी होटेल में ही चोदने की कोशिश करूँ क्योंके वहाँ पर किसी को पता ना चलता और अगर वो नाराज़ भी होतीं तो उन्हे संभालना और उनके गुस्से को ठंडा करना निसबतन आसान होता.
मैंने उन्हे कराची फोन किया के में लाहोर कार पर आ रहा हूँ और होटेल में ठहरूं गा आप मेरे साथ ही रहें. हम फाइव स्टार होटेल में ठहरे गे और आप को कोई तक़लीफ़ नही हो गी. उन्होने कहा के फ़रीहा का घर जो है होटेल में रहने की किया ज़रूरत है. मैंने बताया के होटेल में कमरा पहले से बुक है और ऐसी सूरत में वहाँ रहने में किया मुज़ायक़ा है.
इस पर वो मान गईं और कहा के ठीक है तुम मुझे एरपोर्ट से ले लाना. मैंने उन से पुछा के किया उन्होने फूफी फ़रीहा को अपने लाहोर आने के बारे बताया है? उन्होने कहा के नही उससे अभी बताना है. मैंने कहा के जब हम होटेल में ठहर रहे हैं तो आप उन्हे अपने आने का ना बताएं क्योंके वो आप को अपनी तरफ रहने पर मजबूर करेंगी. वो कुछ देर खामोश रहीं लेकिन फिर कहा अच्छा ठीक है.
मैंने अवारी होटेल लाहोर में एक रूम बुक करवया और मुकरर दिन लाहोर एरपोर्ट पर उन्हे रिसीव किया. उस दिन फूफी हिफ्ज़ा ने पीले कपड़े पहन रखे थे जिन में से उनका गोरा सेहतमंद बदन झाँक रहा था. उन्होने व की शकल में दुपट्टा ले रखा था जिस के नीचे उनके मोटे मोटे सेहतमंद मम्मे छुपाये नही चुप रहे थे.
उनके मम्मे इतने बड़े थे के दुपट्टा, क़मीज़ और ब्रा मिल कर भी उन्हे धक नही पा रहे थे और मम्मों के दोनो उभार काफ़ी बाहर निकले हुए थे. फूफी हिफ्ज़ा के मम्मे ब्रा में फँसे फाँसये बिल्कुल साकित थे और उन में थोड़ी सी भी हरकत नही हो रही थी. उन्होने यक़ीनन सही साइज़ का और बड़ा टाइट ब्रा पहन रखा था.
उनकी मोटी गांड़ भी हमेशा ही की तरह हिलती और झटके खाती दिखाई दे रही थी. उनके दोनो चूतड़ एक दूसरे के साथ बिल्कुल जुड़े हुए थे और जब वो चलतीं तो उनके चूतड़ों की हरकत एक समा बाँध देती. उनके गोल मज़बूत बाज़ू और कंधों का ऊपरी हिस्से बे-इंतिहा सफ़ेद थे और गर्मी की वजह से गुलाबी हो गए थे.
वो लिबर्टी मार्केट में शॉपिंग करना चाहती थीं और लाहोर आने का उनका बुन्यादि मक़सद यही था. हम ने कोई चार घंटे लिबर्टी मार्केट में शॉपिंग की. मैंने फूफी हिफ्ज़ा के लिये बहुत सी चीजें अपनी जेब से भी खरीदीन. उन्होने कई दफ़ा मुझे कहा के में ऐसा ना करूँ मगर में बड़े इसरार और खलाऊस के साथ उनके लिये खरिदारी करता रहा. वो बहुत खुश थीं और ये बात उनके चेहरे से साफ़ ज़ाहिर थी.
आम हालात में वो ज़रा सीरीयस ही रहती थीं मगर उस दिन उन्होने काफ़ी बे-तकल्लूफ़ी से मेरे साथ बहुत सारी बातें कीं. फिर हम दोनो अवारी होटेल अपने रूम में आ गए. मैंने बाथरूम जा कर t-शर्ट और शॉर्ट्स पहन लिये. अगर इंसान खुश हो तो उस का किसी बात पर नाराज़ हो जाने का इंकान ज़रा कम हो जाता है. आज फूफी हिफ्ज़ा इतनी सारी चीजें खरीद कर बहुत खुश थीं और मेरे लिये हालात काफ़ी साज़गार नज़र आ रहे थे.
“सोहेल तुम ने बिला-वजा इतने पैसे लगा दिये. बहुत सी चीज़ों की तो मुझे ज़रूरत भी नही थी और तुम ने फिर भी खरीद लीं.” उन्होने कहा.
“फूफी हिफ्ज़ा कोई बात नही मैंने अगर आप के लिये चंद चीजें खरीद लीं तो किया हो गया.” मैंने जवाब दिया.
“तुम बताओ तो सही तुम्हारे कितने पैसे लगे? में तुम्हे देती हूँ. यहाँ होटेल में भी तुम्हारा बहुत खर्चा होगा.” उन्होने कहा.
“छोड़ें भी फूफी हिफ्ज़ा ये आप किया बातें ले बैठीं. मै तो और भी बहुत कुछ खरीदना चाहता था मगर आप ने मुझे रोक दिया.” मैंने जवाबन कहा.
“नही, नही तुम तो छोटे हो में तुम्हारे पैसे नही लगवाना चाहती थी. मुझे तो चाहिये था के तुम्हे कुछ ले कर देती.” वो बोलीं.
“अब बस भी कर दें फूफी हिफ्ज़ा ये किन बातों को ले कर बैठ गईं हैं आप.” मैंने थोड़ा बे-तकल्लूफ होते हुए बात बदलने की कोशिश की.
इसी तरह की कुछ और बातों के बाद ह मुझे अंदाज़ा हो गया के फूफी हिफ्ज़ा बड़े अच्छे मूड में थीं. मैंने गर्मी के हवाले से उनके ब्रा की तरफ देख कर कहा:
“फूफी हिफ्ज़ा एक तो औरतें गर्मी में भी इतने ज़ियादा कपड़े पहनती हैं. ऊपर भी कपड़े और कपड़ों के नीचे उन से भी मोटे कपड़े.”
वो हंस पड़ीं और समझ गईं के मेरा इशारा उनके ब्रा की तरफ है.
“सीने पर भी तो कुछ पहनना पड़ता है इसे हिलता जुलता कैसे छोड़ें.” उन्होने बड़ी बे-तकल्लूफ़ी से कहा.
“घर के अंदर तो सिर्फ़ क़मीज़ काफ़ी है ब्रा की ज़रूरत नही.” मैंने उन्हे टेस्ट करने लिये खुल कर ब्रा का ज़िकर छेड़ा.
“हाँ ब्रा ना हो तो गर्मी में सकूँ रहता है.”
बात ठीक जा रही थी क्योंके फूफी हिफ्ज़ा मुझ से ब्रा जैसी प्राइवेट चीज़ के बारे में बात कर रही थीं.
“फूफी हिफ्ज़ा ब्रा की क्वालिटी से भी फरक़ पड़ता होगा.” मैंने बात जारी रखी.
“बहुत फ़र्क़ पड़ता है. लोकल ब्रा सीना कचील देते हैं मगर इंपोर्टेड आराम-दे होते हैं और कम गरम भी.” उन्होने गैर-इरादि तौर पर अपना एक हाथ अपने मोटे मोटे मम्मों पर रख दिया.
“शायद मम्मों के साइज़ का भी मसला होता होगा. मोटे मम्मे ज़ियादा तंग करते हूँ गे.”
मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली दफ़ा उन से इस तरह और इस ज़बान में बात करने की जुर्रत की थी. मैंने ये जुमला बोल तो दिया मगर मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.
“हाँ ऐसा ही है.” उन्होने मुख्तसर सा जवाब दिया और उनके होठों पर खेलने वाली मुस्कुराहट अचानक घायब हो गई. अगर उन्हे मेरी बात बुरी लगी भी थी तो उन्होने इस का इज़हार करने से गुरेज़ किया था. में उनकी दिमागी हालत का अंदाज़ा लगाने की कोशिश करता रहा.
इन बातों के दोरान फूफी हिफ्ज़ा के चेहरे पर हल्का सा रंग आया मगर वो चुप रहीं. शायद उन्हे अपने मम्मों में मेरी दिलचस्पी से मालूम हो गया था के मेरी नियत किया है. लेकिन में इस बारे में सो फीसद यक़ीन से कुछ नही कह सकता था. उस वक़्त में थोड़ा डरा भी मगर फिर वो फ्रिज़ से पानी लेने उठीं.
तो मुझे उनके उभरे हुए मम्मे साइड से नज़र आये और कुदरत के उन दो कमलात को देख कर मेरा डर खुद-बा-खुद काफ़ी हद तक कम हो गया. मै सुबह से ही फूफी हिफ्ज़ा के मम्मों को देख रहा था मगर अब उनके गैर-मामूली मम्मों का नज़ारा कर के मज़ा आ गया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“फूफी हिफ्ज़ा आप नहा धो लें और प्लीज़ ब्रा उतार दें बहुत गर्मी है.” मैंने फिर बड़ी क़ाबिल-ए-ऐतराज़ बात की.
उन्होने मेरी तरफ देखा.
“ये कमरा सेंट्रली एर कंडीशंड है यहाँ तो बिल्कुल गर्मी नही है.” उन्होने कहा और बाथरूम में चली गईं. वो किसी गहरी सोच में डूबी हुई थीं लेकिन लहजे में गुस्सा बिल्कुल नही था.
मुझे एक ख़याल आया. मैंने बाथरूम के बाहर से उन्हे बताया के में थोड़ी देर के लिये बाहर जा रहा हूँ. फिर कार पर लिबर्टी मार्केट आया, एक बड़े स्टोर से उनके लिये 5 इंपोर्टेड ब्रा खरीदे और वापस भागा. उस वक़्त तक वो कपड़े बदल चुकी थीं मगर ब्रा अब भी पहना हुआ था.
“कहाँ गए थे?” उन्होने सवाल किया.
“आप के लिये इंपोर्टेड ब्रा लाया हूँ. लाहोर की इस गर्मी में आप को इनकी बहुत ज़रूरत है.” मैंने ब्रा उनको देते हुए कहा.
वो ब्रा के बॉक्सस देख कर हैरान तो होन मगर उनका चेहरा जैसे खिल उठा.
“किया ज़रूरत थी में अपने साथ ब्रा ले कर आई हूँ अभी नहा कर बदला है.” उन्होने बॉक्सस को उलट पुलट कर देखते हुए कहा.
“फूफी हिफ्ज़ा आप शर्मिंदा ना करें. फुफियों में आप मुझे सब से अच्छी लगती हैं. आज ही तो आप की खिदमत का मोक़ा मिला है.” मैंने थोड़ा सा झूठ बोला क्योंके मुझे सिरफ़ फूफी हिफ्ज़ा ही नही बल्के अपनी चारों फूपियाँ बहुत अच्छी लगती थीं.
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उनके चेहरे से ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल था के वो किया सोच रही हैं लेकिन बहरहाल ये भी गनीमत थी के उन्होने अभी तक मेरी किसी बात का बुरा नही माना था. मैरा दिल खुशी से झूम उठा क्योंके इस का मतलब ये था के वो ये जान लेने के बाद भी के में उनकी इतनी आओ भगत सिरफ़ फूफी होने की वजह से नही कर रहा था गुस्से में नही आई थीं.
उन जैसी औरत से ये तावॉक़ो नही की जा सकती थी के वो कोई ऐसी बात बर्दाश्त करें जो उन्हे ना-पसंद हो. अगर उन्होने मुझे रोकना होता तो वहीं रोक देतीं. तो किया इस का मतलब ये है के वो मुझे अपनी फुद्दी दे दें गी? काश आज ऐसा हो जाए. मैंने सोचा.
मैंने एक दफ़ा फिर फूफी हिफ्ज़ा के चेहरे के ता’असूरात का जाइज़ा लेने की कोशिश की. वो बहुत खुश नज़र आ रही थीं जिस से ज़ाहिर होता था के मेरे नफ्सीयाती हार्बे कामयाब हो रहे थे. मुझे लगा के अपनी मख़सूस जेहनीयत की वजह से फूफी हिफ्ज़ा अब मेरे जाल में फँसती जा रही थीं. शायद आज अनहोनी हो ही जाती और में उन्हे चोदने में कामयाब हो जाता.
मैरा खौफ और भी कम हो गया.
“फूफी हिफ्ज़ा किया ये ब्रा ठीक साइज़ के हैं.” मैंने पूछा.
“लगता तो है.”
“उमीद है ये ब्रा आप के मम्मों पर फिट हूँ गे.”
में आहिस्ता आहिस्ता अपनी हदों से बाहर निकल रहा था और मेरी बातों में नंगा-पन ज़ियादा हो रहा था. वो मेरी ये बात सुन कर भी कुछ नही बोलीं लेकिन उनके चेहरे पर सोच के गहरे साय ज़रूर नज़र आ रहे थे. ऐसा लगता था जैसे वो अपने ज़हन में कोई गुत्थी सुलझाने की कोशिश कर रही हूँ. यक़ीनन वो ये जान गई थीं के मेरे दिल में उनी फुद्दी मारने की खाहिश है और इस वक़्त वो इसी बारे में सोच रही थीं.
“फूफी हिफ्ज़ा आप इन्हे पहन कर देख लें फिट ना हूँ तो में चेंज करवा लाऊंगा.” मैंने कहा.
उन्होने फिर अजीब नज़रों से मेरी तरफ देखा. उनकी आँखों में कुछ था. फिर बगैर कुछ कहे हुए वो बाथरूम में चली गईं. इस बात में शक-ओ-शुबहेय की कोई गूंजा’इश् नही रह गयी थी के फूफी हिफ्ज़ा ये जान चुकी थीं के में ना-सिरफ़ उन पर गरम था बल्के उन्हे चोदना भी चाहता था. थोड़ी देर बाद फूफी हिफ्ज़ा बाथरूम से बाहर आईं:
“ये ज़रा छोटे हैं.” वो बोलीं. मेरे लिए हुए ब्रा उनके हाथ में थे.
उन्होने अब ब्रा नही पहना था और उनका दुपट्टा कंधे पर पडा था जो उनके एक मम्मे को ढांपे हुए था. उनका दूसरा और सफ़ेद मम्मा गर्मियों में पहनी जाने वाली पतली सी क़मीज़ के अंदर बिल्कुल वाज़ेह नज़र आ रहा था. उनके मम्मे बहुत मोटे और खड़े खड़े थे. उनके एक मम्मे का बहुत ही मोटा और नोकीला निप्पल भी क़मीज़ से आगे निकला हुआ था.
“आप किस कंपनी का ब्रा पहनती हैं फूफी हिफ्ज़ा?” मैंने सवाल किया.
“लिली ऑफ फ्रॅन्स का.” उन्होने कहा.
“आप मुझे अपना बिल्कुल सही साइज़ दें में ये ब्रा चेंज करवा लाता हूँ.” मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा.
“मैरा साइज़ 40 से ऊपर ही है यानी लार्ज.” उन्होने जवाब दिया.
“फूफी हिफ्ज़ा इस तरह तो पता नही चलता. इंपोर्टेड ब्रा के साइज़ लार्ज, स्माल या एक्सट्रा- लार्ज नही होते. आप अभी फीते से अपना साइज़ ले कर मुझे बताएं. नाप का फीता होटेल के हाउस कीपिंग से मिल जाएगा.”
उन्होने एक लम्हा सोचने के बाद असबात में सर हिला दिया. वो इतने महँगे ब्रा को हाथ से जाने नही देना चाहती थीं.
मेरे फोन करने पर होटेल का एक मुलाज़िम आम दर्ज़ियों वाला फीता हमारे रूम में ले आया. मैंने फीता फूफी हिफ्ज़ा को दिया.
“फूफी हिफ्ज़ा ब्रा के लिये नाप दो जगह से लें. एक मम्मों के नीचे कमर का और दूसरे मम्मों के बिल्कुल ऊपर. इन को मिला कर सही साइज़ मिले गा.” मैंने बताया.
“तुम्हे ब्रा का साइज़ लेना किस ने सिखाया है? ये तो बहुत सी औरतों को भी नही पता. खुद मुझे भी पता नही था.” वो मेरी तरफ देख कर बोलीं.
“ये मॉडर्न ज़माना है पता चल ही जाता है.” मैंने कहा.
अब अगला पत्ता फैंकने का वक़्त था.
“फूफी हिफ्ज़ा में नाप ले लेता हूँ ये ब्रा बहुत महेंगे हैं फिट ना आए तो किया फायदा.” मैंने धड़कते दिल से कहा.
उनके चेहरे पर फ़िकरमंदी नज़र आने लगी. कुछ देर सोचने के बाद उन्होने कहा:
“तुम नाप ले लो मगर देखो किसी से इस बात का ज़िकर ना करना. ये मुनासिब बात नही है. मै तुम्हारी फूफी हूँ. किसी को पता ना चले के तुम ने मेरे लिये ब्रा खरीदे थे या मेरा नाप लिया था.”
“फूफी हिफ्ज़ा में जानता हूँ ऐसी बातों का किसी से ज़िकर नही किया जाता.” मैंने जल्दी से फीता उन से ले लिया.
“आप क़मीज़ उतार दें ताके में नाप ले सकूँ.”
ये सुन कर वो कुछ और घबरा गईं. वो इस बात की तवक़ो नही कर रही थीं ऑरा ब शायद उनकी समझ में आ गया था के नाप लेने के बहाने उन्हे नंगा करना चाहता था.
“सोहेल क़मीज़ ऊपर कर के ले लो उतारने की किया ज़रूरत है.”
उन्होने ये कहा ज़रूर मगर उनकी आवाज़ में कोई ऐसी बात थी जिस से में जान गया के अगर मैंने थोड़ा ज़ोर और दिया तो वो अपनी क़मीज़ उतार दें गी.
“इस तरह ब्रा का दरुस्त नंबर नही मिले गा और शायद फिर उन्हे वापस करना मुमकिन ना हो.” मैंने कहा.
उन्होने ये सुन कर आहिस्ता आहिस्ता अपनी क़मीज़ उतारनी शुरू कर दी. जब क़मीज़ उतरी तो चूँके नीचे उन्होने ब्रा नही पहना हुआ था इस लिये उनके तने हुए मोटे मम्मे बिल्कुल नंगे मेरे सामने ज़ाहिर हो गए. अगरचे फूफी हिफ्ज़ा ऊपर से नंगी थीं मगर फिर भी घबराईं नही. बस मुझ से आँखें मिलाने से इज्तिनाब किया.
लेकिन में ये नही कह सकता था के उन्हे मेरे सामने इस तरह नंगा होने से कोई शरम महसूस हो रही थी. कुछ और ही था जो उन्हे मुझ से आँखें चार करने से रोक रहा था. मैंने फूफी हिफ्ज़ा के नंगे मम्मों को देखा. मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा दिल सीना चीर कर बाहर आ जाए गा. उनके मम्मे बहुत मोटे होने के साथ साथ इंतिहा दूधिया, चमकीले, रेशमी और बे-दाग भी थे.
दोनो मम्मों के ऊपर बड़े बड़े निपल्स काफ़ी ज़ियादा बाहर निकले हुए थे. मेरा ये अंदाज़ा भी बिल्कुल दरुस्त साबित हुआ था के उनके मम्मों के निपल्स बहुत लंबे और मोटे थे. आज मैंने अपनी आँखों से उनके निपल्स को देख लिया था. वाक़ई बहुत शानदार मम्मे और बहुत शानदार निपल्स थे फूफी हिफ्ज़ा के.
उनके निपल्स की नोकें इतनी मोटी थीं के उन्हे चुटकी में आसानी से पकड़ा जा सकता था. ऐसा लगता था जैसे उनके निपल्स किसी ने क़लम से तराश कर सलीक़े से उनके मोटे सफ़ेद मम्मों के ऊपर लगा दिये हूँ. उस वक़्त भी उनके खूबसूरत निपल्स पूरी तरह अकड़े हुए खड़े थे.
मैंने काँपते हाथों से उनकी कमर से फीता घुमाया और उनके मोटे ताज़े मम्मों के सांनी ले आया. फिर मैंने फूफी हिफ्ज़ा के मम्मों के नीचे पेट से ऊपर नाप लिया. इस दोरान उनके भारी मम्मों को बिल्कुल नंगा अपने इतने क़रीब देख कर देख कर मेरे दिल में उनके निपल्स को हाथ लगाने और चूसने की शदीद खाहिश पैदा हुई.
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मै फूफी हिफ्ज़ा के मम्मों से अपनी आँखें हटा नही पा रहा था. फूफी हिफ्ज़ा ने यक़ीनन ये देख लिया और बे-साख्ता एक क़दम पीछे हट गईं. वो पीछे हटीं तो उनके पेट उनके इर्द गिर्द लिपटे हुए फीते से थोड़ा ऊपर उनके दोनो मम्मे ज़ोर से हिले और मेरे दोनो हाथों की पुष्ट से लगे. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मै गड़बड़ा गया और नाप वाला फीता मेरे हाथ से छूट कर नीचे ज़मीन पर गिरा. इस सारे वाक़िये की वजह से फूफी हिफ्ज़ा भी अब काफ़ी नर्वस नज़र आ रही थीं. जैसे ही फीता नीचे गिरा वो गैर-इरादि तौर पर उससे उठाने के लिये नीचे झुकीं. नाप लेने के लिये में उनके बहुत क़रीब खड़ा था इस लिये जब वो झुकीं तो उनका एक मम्मा मेरे हाथ के पिछले हिस्से पर लगा.
मैंने अपना हाथ सीधा किया तो उनका मम्मा पूरा का पूरा मेरे हाथ में आ गया. उनके मम्मे ला लांस अपने हाथ पर महसूस करते ही मैंने जल्दी से अपना हाथ पीछे खैंच लिया. उनका मोटा ताज़ा मम्मा फिसलता हुआ मेरे हाथ से निकल गया. उन्होने फीता उठा कर मुझे दिया. मैंने जल्दी से फीता आगे से उनके दोनो मम्मों पर निपल्स के ऊपर जोड़ दिया.
फिर मैंने फीता ठीक करने के लिये उनका दायां मम्मा हाथ में पकड़ा और उस के लंबे निप्पल को फीते के नीचे ले आया. फूफी हिफ्ज़ा के मम्मे को हाथ में पकड़ा तो मेरी टाँगों से जान निकालने लगी. उन्होने भी अपने उसी मम्मे पर नज़रें जमा रखी थीं जो मेरे हाथ में था. उनका मम्मा बड़ा भारी और अच्छा ख़ासा ठोस था.
मेरा सर चकराने लगा. मै सब कुछ भूल गया और मैंने बे-खुदी के आलम में उनके मम्मे को दबाने लगा. उनके मुँह से उन्ह की आवाज़ निकली तो मुझे होश आया और मैंने उनका मम्मा छोड़ दिया. नाप लेने के दोरान भी मेरे हाथ कई दफ़ा उनके मम्मों से टकराते रहे लेकिन वो खामोश ही रहीं.
जब मैंने नाप ले लिया तो उन्होने अपनी क़मीज़ दोबारा पहन ली. वो कुछ देर तो नर्वस ही रहीं मगर फिर बेहतर होने लगीं. में उनके मम्मों के साइज़ का सही हिसाब कर के दोबारा स्टोर गया और ब्रा चेंज करवा लिये. अब आगे मुझे फूफी हिफ्ज़ा की फुद्दी लेने का मोक़ा मिलता या ना मिलता.
मगर ये इतमीनान ज़रूर था के मैंने कम-आज़-कम उनके मम्मों को ना-सिरफ़ नंगा देख लिया था बल्के उन्हे हाथ भी लगा लिये थे. अगर और कुछ ना भी होता तो मेरे लिये यही बहुत था. में वापस होटेल पुहँचा तो मुझे लगा के फूफी हिफ्ज़ा के चेहरे पर हल्की सी खजालत थी जैसे उनकी कोई चोरी पकड़ी गई हो. उन्होने ब्रा ले कर मेरा बहुत शुक्रिया अदा किया.
“फूफी हिफ्ज़ा आप तो ब्रा ना भी पहनें तो लगता है जैसे पहन रखा है.” मैंने उनके भारी मम्मों की तरफ देखते हुए तारीफी अंदाज़ में कहा.
“कियों?” उनके मुँह से निकला.
यही वक़्त था. मै फॉरन बोला:
“आप के मम्मे बहुत मुख्तलीफ़ हैं. मोटे, सख़्त और खड़े हुए इसी लिये अगर आप ने ब्रा ना भी पहना हो तो ऐसा लगता है जैसे पहना हुआ है.”
“ऐसा कुछ नही.” उन्होने जावब दिया मगर लहजे और आँखों की चमक से पता चल रहा था के उन्हे अपनी तारीफ सुन कर खुशी हुई है.
मैंने इस को मुनासिब मोक़ा जानते हुए आगे बढ़ कर उनके बांया मम्मे को हाथ में पकड़ा और कहा:
“फूफी हिफ्ज़ा अब आप ने ब्रा पहना है या नही?”
उस वक़्त उन्होने ब्रा पहन रखा था मगर फिर भी उनके मोटे ताज़े मम्मे का लांस मुझे बहुत अच्छा लगा.
“हाँ पहना हुआ है.”
उन्होने कहा और एक हाथ ऊपर उठाया मगर मुझे अपना मम्मा पकड़ने से नही रोका. उनकी आँखें कुछ कुछ नशीली हो गई थीं. अब कुछ नही रह गया था. में सारी हदूद पड़ कर चुका था मगर फूफी हिफ्ज़ा ने किसी बात पर गुस्से का इज़हार नही किया था. मैंने उनके मम्मे को थोड़ा सा दबाया तो उन्होने हल्की सी एक सिसकी ली.
अब इस बात बिल्कुल वाज़ेह थी के के उन्हे मुझ से अपनी चूत मरवाने पर कोई ऐतराज़ नही था. मुझे इस पर बड़ी हैरत थी लेकिन में सोचने में वक़्त बर्बाद नही करना चाहता था. में उतर कर उनके पास बेड पर बैठ गया और उनके गले में हथ डाल कर उनके गाल का चूमा लिया. उनकी आँखों में खुमार बढ़ता हुआ नज़र आ रहा था.
उन्होने मुझे अपना मुँह चूमने दिया और मेरे बाज़ू पर हाथ रखते हुए बोलीं: “ये तो गुनाह है के……”
मैंने उनकी बात काट दी और उनके होठों को मुँह में ले कर चूसने लगा. में जानता था के ये सब बकवास बातें थीं और वो मुझे अपनी चूत देना चाहती थीं. उन्हे होटेल में आते ही ये अंदाज़ा हो गया था के में उनकी चूत मारना चाहता हूँ और मेरी सारी हरकतों को अच्छी तरह समझते हुए भी उन्होने मुझे रोकने की कोई कोशिश नही की थी.
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इस लिये अब गुनाह-ओ-सवाब का ज़िकर बिल्कुल बे-मानी था. हक़ीक़त यही थी के वो भी चाहती थीं के में उन्हे चोद लूं. में उनके खूबसूरत चेहरे को चूमता रहा. उन्होने पहले तो मेरा साथ नही दिया लेकिन फिर मेरे साथ चिपकते हुए अपनी ज़बान मेरे मुँह में दे दी और में उससे चूसने लगा. वो भी मेरी ज़बान चूसने लगीं.
मैंने फूफी हिफ्ज़ा का मुँह खूब चूमा और वो भी जवाबन मुझे चूमती रहीं. मैंने उनके भारी मम्मों को जो ब्रा के अंदर थे क़मीज़ के ऊपर से ही मसलना और दबाना शुरू किया तो वो और गरम होने लगीं. मै उनकी सफ़ेद गर्दन चूमते हुए सीने तक आया और क़मीज़ का गिरेबां नीचे कर के उनके दोनो मम्मों का ऊपरी नंगा हिस्सा चूमने लगा.
उन्होने अपना दुपट्टा उतार दिया और मेरे एक कंधे को पकड़ लिया. मैंने उठ कर अपने शॉर्ट्स उतार दिये और उनका हाथ अपने खड़े हुए लंड पर रखा. उन्होने मेरे लंड को पकड़ कर पहले तो उससे आहिस्ता से दबा कर महसूस किया और फिर उस पर ऊपर नीचे हाथ फेरने लगीं. उन्होने अचानक अपनी हथेली नीचे कर के मेरे टट्टे अपने नरम हाथ में लिये तो मेरे जिसम में सनसनी दौड़ गई. वो बड़ी नर्मी से मेरे टट्टों को टटोलती रहीं.
“फूफी हिफ्ज़ा क़मीज़ उतारें.” मैंने फूलती हुई साँसों में उनके एक मम्मे को साइड से चूमते हुए कहा.
वो बेड पर सीधी हो कर बैठ गईं. उन्होने पहले अपनी क़मीज़ उतारी और फिर ब्रा का हुक खोल कर उससे अपने मम्मों से अलहदा कर दिया. अब उनके मम्मे बिल्कुल नंगे हो गए. मैंने बे-ताबी से उनके दोनो मम्मों को अपने हाथों में ले लिया और उन्हे बेड पर लिटा दिया. मै उनके मम्मे अपने मुँह में ले कर चूसने लगा.
मम्मे चुसवाने के दोरान वो सिसकियाँ लेने लगीं. फूफी फ़रीहा की तरह मम्मे चुसवाना उन्हे भी पागल कर रहा था. उनके मम्मे इतने बड़े बड़े थे के एक मम्मे को चूसने के लिये मुझे उससे अपने दोनो हाथों में पकड़ना पड़ता था. मै उनके खड़े हुए मोटे निपल्स को मुँह में भर भर कर चूसता रहा.
फूफी हिफ्ज़ा के मम्मों का ज़ाइक़ा बहुत अच्छा था. उनके मम्मों का जो हिस्सा में चूस कर अपने मुँह से बाहर निकालता वो थोड़ी देर सुर्ख रहता और फिर ये सुर्खी चंद लम्हों के बाद दोबारा सफेदी में बदल जाती. मैंने उन्हे करवट से लिटाया और उनके साथ लेट कर बारी बारी उनके दोनो मम्मों के निपल्स को ज़ोर ज़ोर से चूसता रहा.
मेरा लंड उनकी चूत के क़रीब ही था. उन्होने हाथ नीचे कर के मेरा लंड मुट्ठी में ले लिया और आँखें बंद कर के मज़े लेने लगीं. उनका बदन गरम हो गया था और साँस भी अब तेज़ तेज़ चल रही थी. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो कहीं से दौड़ लगा कर आ’ई हूँ.
फूफी हिफ्ज़ा के मम्मे चूसते चूसते मैंने उन्हे सीधा किया और उनकी नाफ़ के को चाटने लगा. उन्होने अपना एक हाथ अपने मम्मे पर रख लिया और मुँह से आवाजें निकालने लगीं. कुछ देर इसी तरह उनकी नाफ़ और पेट को चाटने के बाद मैंने उनकी शलवार का नाड़ा खोला. उन्होने अपने मोटे और गोल गोल चूतड़ ऊपर उठाये और मैंने उनकी शलवार घुटनो तक नीचे कर दी जो उन्होने उतार कर बेड पर रख दी.
उनकी निहायत सेहतमंद चूत अपनी तमाम तर खूबसूरती के साथ मुझे नज़र आई. उनकी चूत बालों से बिल्कुल साफ़ थी. मैंने उनकी चूत पर हाथ फेरा तो वो गीली और बहुत गरम थी. मैंने अपना मुँह नीचे कर के उनकी चूत को को ज़ोर से चूम लिया. ना-जाने क्यों फूफी हिफ्ज़ा ये देख कर हंस पड़ीं लेकिन में अपने काम में मसरूफ़ रहा.
मैंने उनकी सेहतमंद रानों को अंदर की तरफ से पकड़ कर खोला और उनकी मोटी चूत पर ज़बान फेरने लगा. जब औरत की चूत पर बाल ना हूँ तो उससे चाटने का मज़ा हो और होता है. उनकी चूत पर मुँह रखे रखे मैंने अपना एक हाथ आगे किया और उनके मोटे मम्मों को पकड़ कर मसलने लगा.
फूफी हिफ्ज़ा एक बार फिर तेज़ आवाज़ में सिसकियाँ लानी लगीं. फिर रफ़्ता रफ़्ता ये सिसकियाँ भारी आवाज़ों में बदल गईं. उनकी चूत अब बहुत गरम हो चुकी थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस में आग लगी हुई हो. मैंने उनकी चूत पर ज़बान फेरते हुए उनकी गांड़ के सुराख पर उंगली फेरी,
तो उनका मज़बूत बदन काँप कर रह गया और उनके चौड़े चक्ले चूतड़ अकड़ गए. मै जान गया के वो खलास होने के क़रीब हैं. मैंने फिर उनकी चूत में अपना मुँह घुसेड़ दिया और उस के दाने को ज़ोर ज़ोर से चाटने लगा. चंद सेकेंड्स के बाद यही हुआ और वो अपने ताक़तवर बदन को ज़बरदस्त झटके देते हुए खलास होने लगीं.
उउउफफफफ्फ़….उूुउउफफफफ्फ़…..उूुुउउफफफफफ्फ़ की आवाजें मेरे कानो से टकराने लगीं. फूफी हिफ्ज़ा बहुत बुरी तरह खलास हुई थीं. मैंने उन्हे कुछ देर अपने खलास होने का मज़ा लेने दिया. उनकी हालत ज़रा संभली तो हम दोनो करवट ले कर लेट गए. मै उनके मम्मे मुँह में ले कर चूसने लगा और एक हाथ उनकी रानों, चूतड़ों और मोटी फुद्दी पर फेरता रहा.
चंद मिनिट बाद मैंने उठ कर उनके ताक़तवर चूतड़ों के बीच में उनकी गांड़ के सुराख को चाटना शुरू किया. गांड़ चटवाने से फूफी हिफ्ज़ा को कुछ और ही क़िसम का लुत्फ़ आ रहा था. मैंने महसूस किया के उनकी गांड़ का सुराख बा-काएदा हरकत कर रहा था. वो मज़ा लेते हुए गैर-इरादि तौर पर अपनी गांड़ को खोलती और बंद कर रही थीं.
मैंने और भी कई औरतों को यही करते देखा था. मैंने उनकी गांड़ के टाइट सुराख पर ज़बान फेर फेर कर उससे अपने थूक से भर दिया. मै सोच रहा था का जल्द ही में अपना लंड फूफी हिफ्ज़ा की गांड़ के छेद के अंदर करने में भी कामयाब हो जाओं गा. फूफी हिफ्ज़ा जैसी औरत को गाँडू बनाने के ख़याल से ही मेरे खून की गिर्दिश तेज़ हो गई.
फिर मुझे एक और मस्ती सूझी. मैंने फूफी हिफ्ज़ा को सीधा लिटाया और उनके ऊपर आ कर उनके सीने पर इस तरह बैठ गया के उन पर ज़ियादा वज़न ना पड़े. उन्होने मुझे सवालिया निगाहों से देखा. वो समझ नही पा रही थीं के में किया करना चाहता हूँ. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने हाथ नीचे कर के उनके दोनो मम्मे पकड़ लिये और उनके दरमियाँ में अपना खड़ा लंड रख कर उससे आगे पीछे करने लगा. उनके मोटे ताज़े मम्मों के सफ़ेद गोश्त में मेरा लंड गायब हो गया. उन्हे समझ आ गई के में किया कर रहा था. उनकी आँखें बंद थीं और एक हाथ मेरी रान पर रखा हुआ था.
मै उनके मोटे सेहतमंद मम्मों के बीच में घस्से मार रहा था और वो खामोशी से लेतीं हुई थीं. मै कुछ देर इसी तरह फूफी हिफ्ज़ा के निपल्स को मसलते हुए उनके मोटे मोटे मम्मों को चोदता रहा. थोड़ी देर और उनके मम्मों को चोदने के बाद मैंने सोचा के अब कुछ और करना चाहिये.
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“फूफी हिफ्ज़ा किया आप मेरा लंड चूसें गी?” मैंने उनके सफ़ेद मम्मों में से अपना लंड निकालते हुए सवाल किया.
“मैंने कभी ऐसा किया नही मगर आज कर के देखती हूँ.”
उन्होने जवाब दिया और उतर कर बैठ गईं. उनके भारी मम्मे ज़ोर से हीले. मै नही जानता के लंड चूसने के बारे में वो सच कह रही थीं या झूठ. मैंने अपनी t-शर्ट भी उतार दी और बेड पर लेट गया. फूफी हिफ्ज़ा घुटनो के बल मेरे ऊपर झुक गईं और मेरा लंड अपने मुँह में लिया और उस का टोपा चूसने लगीं.
मैंने अपनी टांगें खोल दीं और फूफी हिफ्ज़ा ने मेरे लंड का निचला हिस्सा हाथ में पकड़ लिया और उनका सर मेरे लंड पर ऊपर नीचे होने लगा. उन्हे शायद मेरे लंड का टोपा चूसना ज़ियादा अच्छा लग रहा था क्योंके वो मुसलसल मेरे टोपे पर अपनी ज़बान फैरे जा रहीं थीं. वो चूँके कमर झुका कर मेरा लंड चूस रही थीं इस लिये उनके सेहतमंद मम्मे मुझे नज़र आ रहे थे.
मैंने हाथ आगे बढ़ाया और उनके मम्मों से खेलने लगा. फूफी हिफ्ज़ा को लंड चूसने का तजर्बा वाकई नही था और थोड़ी ही देर में उनका मुँह थूक से भर गया और उनके लिये मेरा लंड चूसना मुश्किल हो गया. मै बहरहाल नीचे से अपना जिसम उठा कर आहिस्ता आहिस्ता उनके थूक से भरे हुए मुँह में अपना लंड अंदर बाहर कर के उसे चोदता रहा.
मैंने उन्हे अब बेड पर लिटाया और खुद उनके ऊपर लेट कर अपने दोनो बाज़ू उनकी कमर के गिर्द डाले और उनके चेहरे, गर्दन, और सीने के ऊपरी हिस्सों को चूमने लगा. चूँके मेरा क़द फूफी हिफ्ज़ा से कम-आज़-कम दो इंच छोटा था इस लिये मेरा लंड उनकी फुद्दी से ज़रा ऊपर पडा हुआ था.
उन्होने अपनी टाँगें खोल कर फैला लीं और मुझे पूरी तरह अपनी फुद्दी के ऊपर आने दिया. मै थोड़ा सा नीचे खिसका ताके मेरा लंड बिल्कुल उनकी फुद्दी के मुँह पर आ जाए. फिर में उनके मम्मों को अपने मुँह में ले कर चूसने लगा. अब मेरा लंड मेरे जिस्म और उनकी गीली फुद्दी के बीच में फँसा हुआ था और उस के अंदर घुसने का शिद्दत से मुंतज़ीर था.
मगर में अभी कुछ देर और अपनी फूफी के खूबसूरत बदन का मज़ा लेना चाहता था. मैंने उन्हे चूमने का सिलसिला जारी रखा. फूफी हिफ्ज़ा के मम्मों को ऊपर नीचे अच्छी तरह चूसने के बाद मैंने घुटनो के ज़ोर पर अपनी कमर ऊपर उठाई और अपना खड़ा हुआ लंड उनकी चूत के अंदर डाल कर दो तीन हल्के हल्के घस्से मारे.
फूफी हिफ्ज़ा ने बड़े आराम से मेरा लंड अपने अंदर ले लिया. वैसे भी मुझे उनकी चूत में घस्से मारने में कोई मुश्किल पेश नही आ रही थी क्योंके वो अंदर से भी काफ़ी गीली थी. उनकी गरम चूत में अपना लंड डाल कर मुझे उतना ही लुत्फ़ आया जैसा में कभी सोचा करता था.
उनकी चूत को अपने लंड से महसूस करते ही मुझे पता चल गया के वो चोदने के लिये बड़ी शानदार औरत थीं. मै यों ही मज़े लेते हुए फूफी हिफ्ज़ा की चूत में हल्के हल्के लेकिन नपे तुले घस्से मारता रहा. वो भी मेरे घस्सों से पूरी तरह लुत्फ़-अंदोज़ हो रही थीं.
घस्से मारते मारते मैंने अपना हाथ नीचे किया और उनकी गांड़ के गोल सुराख में उंगली दी. गांड़ का सुराख बहुत सी औरतों की तरह फूफी हिफ्ज़ा की कमज़ोरी भी था. मैंने अपनी उंगली उनकी टाइट गांड़ के अंदर घुसा ने की कोशिश की तो उन्होने अपनी गांड़ के सुराख को और भी टाइट कर लिया.
लेकिन उन्हे जब अपनी गांड़ में मेरी उंगली महसूस होती रही तो कुछ देर बाद उन्होने मेरे कंधे पकड़ लिये और गांड़ के सुराख को नरम कर लिया. अब वो होंठ दाँतों में दबा कर अपनी चूत में मेरे लंड के झटकों का मज़ा लेने लगीं. मैंने अब उनकी मज़बूत फुद्दी के अंदर ज़ोरदार घस्से मारने शुरू कर दिये.
मेरा पूरा का पूरा लंड फूफी हिफ्ज़ा की फुद्दी के अंदर बाहर हो रहा था और मेरे नीचे लटके हुए टट्टे उनकी गांड़ के सुराख से ज़रा ऊपर बार बार टकरा रहे थे. उनकी फुद्दी में काफ़ी पानी था मगर चुदवाते हुए ना वो पानी कम हो रहा था और ना ज़ियादा. वो पूरी तरह अपनी ताक़तवर और हट्टी कट्टी फुद्दी को हिला हिला कर मेरा साथ दे रही थीं.
घस्सों के झटकों की वजह से उनके मोटे मम्मे एक ख़ास रिदम में ऊपर नीचे हो रहे थे. उन्हे चोदते हुए उनके मम्मों के अकड़े हुए बड़े बड़े निपल्स मुझे हिलते हुए साफ़ दिखाई दे रहे थे. फिर मुझे महसूस हुआ के इस तरह काफ़ी देर तक लंड लेने से फूफी हिफ्ज़ा को कुछ तकलीफ़ हो रही थी.
मैंने ये देख कर अपने घस्सों की रफ़्तार और बढ़ा दी और बड़ी मस्ती में उनके मम्मों को चूसने लगा. अब उनके मुँह से आवाजें निकालने लगीं और मुझे उनकी चूत और ज़ियादा गरम महसूस होने लगी. उन्होने अचानक अपने सेहतमंद और ठोस बदन को मज़ीद अकड़ा लिया और अपने दोनो बाज़ू मेरी गर्दन में डाल दिये.
अब वो अपने चौड़े और ताक़तवर चूतड़ों की मदद से मेरे घस्सों का पूरी तरह साथ देने लगीं. वो इस दोरान मुसलसल ऊवू…ऊवू…..ऊऊओ भी करती जा रही थीं. इसी तरह मेरा लंड लेते लेते और आगे पीछे हरकत करते करते वो एक दफ़ा फिर खलास हो गईं. उनके मुँह से मुसलसल ऊओं…हू ऊओंहू ऊओंहू की आवाजें निकल रही थीं.
मैंने उनके मुँह में मुँह डाल दिया और अपना बहुत सारा थूक उनके मुँह में छोड़ने लगा. वो खलास होने के दोरान पागलों की तरह मुझे चूमने लगीं. पता नही कितने अरसे बाद वो इस तरह खलास हुई थीं. लेकिन बेड पर उनकी हरकतों से साफ़ ज़ाहिर था के फूफी हिफ्ज़ा ना सिरफ़ बहुत गरम औरत थीं बल्के चुदवाना भी बड़ी अच्छी तरह जानती थीं.
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जब मैंने अपना चेहरा उनके चेहरे से हटाया तो उन्होने अपने होंठ सख्ती से बंद कर लिये और मेरा सारा थूक निगल गईं. वो मुझ से सख्ती से लिपटी हुई अपने खलास होने के अमल को लंबा करने की कोशिश करती रहीं. फूफी हिफ्ज़ा जैसी तगड़ी और तंदरुस्त औरत जब पूरी ताक़त से खलास होती है तो उससे चोदने वाले को कुछ और ही क़िसम का लुत्फ़ आता है.
उस वक़्त उनके बल खाते हुए मज़बूत और तवाना बदन को देख कर में भी ऐसा ही लुत्फ़ महसूस कर रहा था. फिर उन्होने दो तीन लंबी लंबी साँसें लीं और अपने बाज़ू मेरी गर्दन से हटा कर साइड पर गिरा दिये. ऐसा करते हुए उनके मोटे मम्मे थरथरा कर रह गये.
उनके खलास होने के बाद भी में कुछ देर तक इसी तरह उनकी चूत में घस्से मारता रहा. मैंने उनके मम्मों को फिर अपने मुँह में ले कर चूसा और अपना लंड उनकी चूत में से बाहर निकाल लिया. फूफी हिफ्ज़ा अब मुझे थकी हुई दिखाई दे रही थीं. “ज़ियादा थक तो नही गईं फूफी हिफ्ज़ा?” मैंने उनका एक मोटा मम्मा हाथ में ले कर पूछा.
“तुम अपने आप को सॅटिस्फाइ करो में ठीक हूँ. इतनी कमज़ोर नही हूँ के थक जाऊं.” उन्होने हंस कर कहा. ये जुमले इस बात की तरफ इशारा करते थे के उन्हे भी अपनी चूत मरवा कर मज़ा आ रहा था. मुझे सॅटिस्फाइ करना असल में खुद उनके लिये भी सैटिसफैक्शन का सबब था इसी लिये अभी वो इस लंड और चूत के खेल को जारी रखना चाहती थीं.
इस के एलावा वो मुझे ये भी बताना चाहती थीं के वो चुदवाने के मामले में किसी से कम नही हैं. उन जैसै खुद-पसंद औरत भला ये कैसे बर्दाश्त करती के वो किसी भी मामले में दूसरी औरतों से पीछे रह जाए. में बेड पर लेट गया और फूफी हिफ्ज़ा को अपने लंड के ऊपर बिठा लिया जो पूरा का पूरा उनकी मोटी चूत के अंदर चला गया.
वो मेरे लंड को अपनी मोटी चूत में ले कर उस पर बैठ तो गईं लेकिन वो बड़ी लंबी और सेहतमंद औरत थीं और मेरे लिये उन्हे इस तरह चोदना मुश्किल हो रहा था. लेकिन अपने लंड पर उनके भारी और गदराये हुए चूतड़ों का बोझ मुझे बे-पनाह मज़ा भी दे रहा था.
उन्होने आहिस्ता आहिस्ता मेरे लंड पर ऊपर नीचे होना शुरू कर दिया. लंड के ऊपर बैठ कर चुदवाने की उनकी शायद पहली दफ़ा थी और कुछ थकान की वजह से भी वो आसानी से लंड पर ऊपर नीचे नही हो पा रही थीं. मगर इस के बावजूद मेरे लंड पर बैठ कर चूत देना उन्हे भी बहुत अच्छा लग रहा था.
उनके भारी चूतड़ मेरी रानों पर आहिस्ता आहिस्ता ऊपर नीचे हो रहे थे. फिर थोड़ी देर बाद ही वो काफ़ी हद तक संभाल गईं. वो अपनी भारी गांड़ को ऊपर नीचे कर के अपनी चूत में मेरा लंड लेतीं रहीं. ऐसा लगता था जैसे वो खुद मेरे लंड पर घस्से मार रही हूँ. मै उनके हिलते हुए गोरे मम्मों से नज़रें नही हटा पा रहा था.
उनके घस्सों के दोरान ही मैंने अपनी गर्दन ऊपर उठाई और उनके मम्मों के निपल्स को मुँह में ले कर चूसने लगा. उन्होने अपना निचला होंठ दांतो में दबा लिया और में भी इसी मुश्किल पोज़िशन में उनकी चूत में जैसे तैसे घस्से मारता रहा. चूँके बेड का मॅट्रेस बहुत नरम था इस लिये मुझे फूफी हिफ्ज़ा के सेहतमंद बदन का वज़न मुझे अपने ऊपर ज़ियादा नही लग रहा था.
और में क़िस्सी ना क़िस्सी तरह अपना लंड उनकी चूत में अंदर बाहर कर रहा था. उनके तेज़ तेज़ हिलते हुए मम्मे मैंने अपने दोनो हाथों में पकड़े रखे और उन्हे चोदने का मज़ा लेता रहा. काफ़ी देर हो चुकी थी और अब मुझ से अपनी मनी अंदर नही रोकी जा रही थी.
मै फूफी हिफ्ज़ा के अंदर खलास होना चाहता था लेकिन इस पोज़िशन में ऐसा करना आसान नही होता. इसी लिये मैंने फूफी हिफ्ज़ा को अपने ऊपर से उतार कर कुतिया बनाया और पिछली तरफ से उनकी चूत के अंदर अपना लंड दाखिल कर दिया. ये औरतों को चोदने की मेरी पसंदीदा पोज़िशन थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उन्होने अपना सर बेड की मॅट्रेस में घुसा दिया और अपने मोटे चूतड़ हिलाते हुए मेरे घस्सों का बहादुरी से मुक़ाबला करने लगीं. मै उनकी कमर पर अपने दोनो हाथों से ज़ोर डाल कर उनकी टांगें खोलने की कोशिश की ताके उनकी चूत ज़ियादा बेहतर अंदाज़ में मेरे सामने आ जाए और मुझे उन्हे चोदने में आसानी हो.
वो भी थोड़ी देर में काफ़ी समझदार हो गईं थीं. उन्होने अपने सेहतमंद और चौड़े चक्ले चूतड़ों को जिन के अंदर मेरा लंड घुसा हुआ था बड़े रिदम में आगे पीछे करना शुरू किया जिस से मुझे और भी मज़ा आने लगा. मै पीछे से फूफी हिफ्ज़ा की चूत में घस्से मारते हुए उनके मोटे चूतड़ों पर हाथ फेरता रहा.
मुझे इसी लिये चूतड़ों की तरफ से औरतों की चूत लेना पसंद था क्योंके इस पोज़िशन में उनके चूतड़ और गांड़ का सुराख मेरे सामने आ जाते थे और में उनकी चूत लेते लेते उनकी गांड़ के मज़ा ले सकता था. ज़ाहिर है मुझे फूफी हिफ्ज़ा की गांड़ भी मारनी थी और उन्हे पीछे से चोदते हुए में उनके छेद का बड़ी अच्छी तरह जाइज़ा ले सकता था.
मैंने उनकी चूत लेते हुए उनके छेद पर नज़रें मर्कूज़ कर दीं. वो अच्छी ख़ासी तेज़ी से मेरे लंड पर आगे पीछे हो रही थीं. फिर अचानक उन्होने एक अजीब हरकत की जो मेरे लिये भी नई थी. उन्होने अपना एक हाथ पीछे किया और मेरे हिलते हुए टट्टों को पकड़ कर सहलाने लगीं.
मेरे जिसम में मज़े की बे-शुमार लहरें बिजली की सी तेज़ी से दौड़ने लगीं और मुझे फूफी हिफ्ज़ा की चूत में लगते हुए हर घस्से का मज़ा दुगना महसूस होने लगा. उन्हे फॉरन ही पता चल गया के टट्टों को पकड़ना मुझे अच्छा लगा है और वो मेरे टट्टों को को हाथ में ले कर उन्हे नर्मी से दबाती रहीं. इस के बाद मैंने अपना लंड फूफी हिफ्ज़ा की चूत में से निकाला और एक दफ़ा फिर उन्हे कमर के बल लिटा दिया.
फिर उनकी चूत में दोबारा अपना लंड दे कर उन्हे चोदने लगा. मैंने उनके होठों को अपने होठों को बंद कर दिया और घस्सों में तेज़ी कर दी. उन्हे फॉरन ही समझ आ गई के में अब उनके अंदर खलास होने वाला हूँ. उन्होने अपने दोनो हाथ अपने चूतड़ों के नीचे रखे और चूतर उठा कर पूरी ताक़त से मेरे घस्सों का जवाब देना शुरू कर दिया. उनके मुँह से तेज़ तेज़ और भारी आवाजें निकालने लगीं.
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वो बिला-शुबा कमाल की औरत थीं और मर्द को सेक्स के दोरान मज़ा देना बहुत अच्छी तरह जानती थीं. इतनी देर तक चुदने के बावजूद अचानक ही फूफी हिफ्ज़ा में बहुत ज़ियादा ताक़त आ गई और मुझे उनके लंबे चौड़े सेहतमंद बदन को संभालना मुश्किल हो गया. वो अपने बदन के हर हिस्से को हरकत देते हुए अपनी चूत दे रही थीं. आख़िर कुछ देर के बाद में खलास होने लगा और मेरी मनी लंड से बाहर निकालने लगी. फूफी हिफ्ज़ा भी आईं इसी वक़्त पर खलास हुईं और यों हम दोनो एक ही वक़्त में डिसचार्ज हो गए.
मेरी गरम गरम मनी फूफी हिफ्ज़ा की उतनी ही गरम चूत के अंदर कहीं गुम हो गई. ज़िंदगी के रंग अजीब हैं. मै सोचा करता था के अपनी फुफियों में फूफी हिफ्ज़ा को चोदना सब से ज़ियादा मुश्किल साबित हो गा लेकिन उन्होने तो फूफी फ़रीहा जितनी मज़ाहीमत भी नही की थी. मै तसवउर भी नही कर सकता था के वो इतनी आसानी से मेरा लंड लेने पर राज़ी हो जायेंगी. इंसान दूसरे इंसानो को शायद कभी भी पूरी तरह नही समझ सकेगा. शायद यही ज़िंदगी का क़ानून है.
Virat says
Bhut hi sunder kahani hai bhai mja aa gya pdh k aise hi aur bhi likhiye