Chachi Jabardasti Chudai
दोस्तों आप सब कैसे है उम्मीद है मस्त होंगे. दोस्तों आपने मेरी कहानी के पिछले भाग पतिव्रता बुआ की वासना साथ संभोग 1 में आपने पढ़ा होगा की मैं वासना से भर कर अपनी बुआ के साथ जबरदस्ती कर रहा था, जिससे बुरा नाराज हो गई. बुआ जा चुकी थी। मेरे वासना-पूर्ति के लक्ष्य की धज्जियां उड़ गयी थी। Chachi Jabardasti Chudai
उसकी दी हुई धमकी अभी तक मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी और डर के मारे मेरे दिल की धड़कन बढ़ी हुई थी। संस्कार, पतिव्रता, मर्यादा.. अजीब चीजे है। जब इनका वजूद सामने ना हो तो हमें इन सब चीजों का हल्का सा अहसास भर होता है और जैसे ही वजूद हमारे सामने होता है..
हम मर्यादा, संस्कारो का ढोल पीटने लगते है.. जैसे एक अँधेरी रात में भूत सामने ना हो तो हल्का सा डर भर बना होता है और भूत दिखते ही हमारी घिघ्घी बंध जाती है। बुआ के साथ भी शायद यही हुआ था.. पति के देखते ही पतिव्रता धर्म जग उठा था..
या शायद वो अब तक मारे संकोच के कुछ बोल नहीं पा रही थी और आज उसके नग्न योनि तक मेरे हाथ और लिंग के पोहोचते ही सब्र का बाँध टूट गया। लेकिन फिर कल जब वो अपने पैरों के तलवे से मेरे उत्तेज्जित लिंग को सहला रही थी.. मसल रही थी, वो क्या था? मै कुछ समझ नहीं पा रहा था.. मै बुआ को समझ नहीं पा रहा था..
“औरतो को समझने बैठु तो समझने में पूरी जिंदगी गुजर जायेगी”.
समझने की कोशिश करना बेकार था। त्रिया चरित्र का बेजोड़ नमूना मेरे सामने था। मैंने बेचैनी में करवट बदली। सामने चाची पीठ मेरे तरफ किये हुए सो रही थी। चाची के शादी हुए दो-तीन साल ही गुजरे थे। बनारसी साड़ी और भरपूर जेवर, हाथो में भरपूर चूड़ियां (जो हर बार हिलने पे खन-खनाने लगती थी) पहने हुए वो किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी।
पीठ तो पल्लू से ढका हुआ था लेकिन कमर पे कुछ ज्यादा ही नीचे के तरफ बंधी साड़ी पुरे चिकने कमर के नग्नता को दर्शा रही थी। चाची के गाण्ड बुआ जैसे चौड़े तो नहीं थे पर गोल-मटोल, बाहर की ओर उभड़े, कसे हुए गाण्ड की बात भी कुछ अलग होती है..
“वासना में इंसान का सोच अपने निम्न-स्तर की सारी सीमाओ को लाँघ जाता है..”
कसे हुए गाण्ड.. कठोर चूचियाँ.. यौवन से भरपूर बदन। अभी तो चुत भी ज्यादा ढीली नहीं हुई होगी और जवानी भी हिलोरे मार रही होगी। बुआ भले ही कमरे से चली गयी थी पर मेरी कामुकता अभी भी बरकरार थी। बुआ के बदन के साथ किये हुए मजे के कारण अभी तक मेरा लौड़ा कठोर था। मै चाची के कसावट लिए हुए उभड़े गाण्ड को देख रहा था। कुछ मिनटों पहले घटी घटना से मै काफी उत्तेज़्ज़ित था और..
“मेरे चरित्र का पतन तो बोहोत पहले हो चूका था..”
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मैं खिसकते-खिसकते चाची के काफी करीब आ गया था। अब हालात ऐसे थे की अगर मैं अपने कमर को ज़रा सा भी आगे करता तो मेरा पूर्ण रूप से अकड़ा लण्ड चाची के गाण्ड में घुसने लगता। मै चाची के गाण्ड बड़े गौर से देख रहा था। बनारसी साड़ी में कसे हुए गोल-मटोल.. थोड़ा चौरापन लिए हुए लेकिन बोहोत ज्यादा उभड़े हुए गाण्ड थे। कसावट काफी थी..
“चाटा मारते हुए गाण्ड में लौड़ा पेलने में ज्यादा मजा आएगा..”
मेरे अंदर उत्तेजना काफी बढ़ गयी थी.. कामुकता से मै पागल हो रहा था। मुझे अपने लौड़ा को झाड़ना ही था, नहीं तो आज मेरे घर में किसी का जबरदस्ती हो जाता। मैंने अपना लण्ड बाहर निकाला.. प्री-कम पुरे सुपाड़े पे फ़ैल गए थे और हल्की रौशनी में मेरा लौड़ा चमक रहा था।
मैंने अपने कमर को आगे करते हुए चाची के उभड़े हुए गाण्ड पे हलके से लौड़े की रगड़ दी। लंबी साँसों से पता चल रहा था कि चाची गहरे नींद में थी। मैंने अपने लौड़े को चाची के दोनों कसे हुए चुतड़ो के बीच में ले आया। अब चाची की गाण्ड मजा दे रही थी। दरारों के बीच लौड़ा रगड़ते हुए मैंने अपने नाक को चाची के बालों के पास लाके एक गहरी साँस ली। उफ्फ.. मादकता भाड़ी खुश्बू थी।
मै उस नव-विवाहिता औरत जिसकी चुत अभी ज्यादा चुदी नहीं थी.. जो रिश्ते में मेरी चाची थी.. माँ समान चाची थी के गाण्ड पे लौड़ा रगड़ रहा था। मै अपने लौड़े से उसके गाण्ड के दरार में.. साड़ी के ऊपर से ही ताबड़-तोड़ धक्के लगाना चाहता था, पर मेरी हिम्मत इतनी ना थी।
अभी अभी मैंने एक धमकी सुनी थी और दूसरा मेरे जिंदगी को तबाह कर सकती थी। मैं अपने जज्बातों पे काबू किये हुए हौले-हौले लण्ड घिस रहा था। पता नहीं चाची को इस बात का अहसास था भी या नहीं की साड़ी के ऊपर से ही उनका गाण्ड मारा जा रहा है पर मेरा इतने से कुछ नहीं हो पा रहा था।
मुझे अपने लौड़े पे एक तगड़ी रगड़ चाहिए थी और इस वक़्त ये काम सिर्फ मेरा हाथ कर सकता था। और ये काम मै अपने जवान चाची के बदन को महसूस करते हुए करना चाहता था। मैंने करवट बदली, अब मैं सीधा हो गया था। मेरा पीठ बिस्तर पे टीका हुआ था और लौड़ा पूर्ण रूप से अकड़ कर सीधे छत की ओर घूर रहा था।
चाची मेरे बगल में गहरी नींद में.. अपने मादक गाण्ड को उभाड़े हुए लेटी हुई थी। दाहिने हाथ से लण्ड को जकड कर मैं अपना बायां हाथ चाची के उभड़े हुए जवान गाण्ड की ओर बढ़ाना सुरु कर चुका था। हाथ चूतड़ पे पोहोंचते ही मैंने अपने हथेली को बिना दबाब बनाये उसके स्पंज की तरह कसे हुए चूतड़ को सहलाना चालू कर दिया।
कामुक अहसास था.. एक शादी-शुदा जवान औरत जो मेरी चाची है के कसे हुए गाण्ड को सहलाना कामुक ही नहीं अत्यधिक कामुक अहसास था मेरे लिए। मेरी आँखे कभी अपने लौड़े का मंथन करते हाथो पे तो कभी चाची के गोल-मटोल गाण्ड पे फिसल रही थी।
परंतु मेरा दिमाग कहीं और था.. मेरी सोच कहीं और थी। मैं अपने हाथों को बुआ के पूरी तरह गीली कच्छि में महसूस कर रहा था। मैं बुआ के रसीले.. चुदी-चुदाई चुत को बेदर्दी से मसल रहा था। और बुआ लगातार कहे जा रही थी.. “आह.. आह.. और ज्जजोड़ से मसस्सलो.. मेरी झांटो को उखाड़ लो.. उफ़्फ़ मादरचोददद..”
मुझे मेरे हाथ का दबाब चाची के जवान चूतड़ पे बढ़ते हुए महसूस हो रहे थे.. और मेरा हाथ मेरे लौड़े पे अब प्रचण्ड गति से ऊपर-नीचे हो रहा था। कमरे में एक हल्की “फच-फच” की आवाज़ आ रही थी जो की लौड़े पे उगले गए मेरे थूक के कारण थी। मेरी आँख अब सिर्फ और सिर्फ चाची के कसे हुए गाण्ड पे टिकी हुई थी और मेरे हाथ अब बारी-बारी से उसके दोनों चुतड़ो को सहला रहे थे।
लेकिन मेरा दिमाग अभी भी वहां अनुपस्थित था। मेरी सोच में मै अब बुआ के कच्छी को उतार चूका था और उसके नंगे छिनार बूर के दानो को अँगूठे से मसलते हुए बीच वाली बड़ी ऊँगली से उसके फैली बूर को चोद रहा था.. बुआ मेरे नंगे.. पुरे कठोर लौड़े को मुट्ठी में पकडे जोर-जोर से उमेठते हुए फुस-फुसा रही थी..
“उउउहहह.. मादरच्च्चोद.. ऊँगली निककक्काल.. पेल दद्दे अपना ज्जवान लौड़ा.. आह.. अपने रंड्डी बुआआ.. उफ़्फ़.. के छिनार बब्बुर में.. हाय्य.. मादरच्च्चोद.. “
मुझे साफ-साफ अहसास हो रहा था की मेरे हाथ का दबाब जवान चाची के कसे हुए गाण्ड पे कुछ ज्यादा बढ़ गया है। इधर लौड़े पे मेरे हाथों का वेग अपने अधिकतम तेजी पे था। मेरी कामुकता.. मेरी भड़की हुई वासना अपने चरम-सीमा पे थी और मेरा खड़ा लौड़ा अब कुछ पलो का मेहमान था।
मेरा हाथ अब फिसल के चाची के गाण्ड के दरार में धंस चूका था। मै अपने हाथ को चाची के कसे हुए जवान गाण्ड के दरार में धँसते हुए साफ़ देख रहा था पर मेरा दिमाग कहीं और था.. मै खुली आँखों से सपने देख रहा था। अपने सोच में.. मै बुआ को घोड़ी बना चुका था।
वो अपने दोनों हाथों और दोनों टखने पे झुकी हुई थी। उसके विशाल.. हाहाकारी.. चौड़े.. गुदाज गाण्ड मेरे पेट से चिपके हुए थे और मेरा कठोर लौड़ा उसके फैली.. शादी-शुदा झांटो वाली बूर को चीरती हुई अंदर-बाहर हो रही थी। हर धक्के पे कमरे में “फच-फच” और “थप-थप” की आवाज़ गूँज रही थी।
उसके बड़े और मांसल चूचियाँ हवा में झुल रही थी जिसे वो कभी-कभी अपने एक हाथ को उठा कर जोर से दबा देती थी और उसके मुंह से एक “आह” निकल जाती थी। मेरे एक हाथ ने बुआ के बालों को पकड़ कर उस रण्डी बुआ नामक घोड़ी का लगाम बना लिया था और मेरा दूसरा हाथ उसके चिकने चुतड़ो को मसलते हुए उसपे चांटा मार रहे थे। मै जोश में बुद-बुदाये जा रहा था..
“मेरी रण्डी बुआ.. मेरी छिनार बुआ.. चुदवा और जोर से चुदवा भोंसड़ी बुआ.. आह.. मेरी बड़ी गाण्ड वाली बुआ.. मेरी शादी-शुदा रण्डी बुआ.. मेरा लौड़ा अपने बुर में ले.. मादरचोद बुआ..”
मेरी सोच में बुआ भी अब अपने गाण्ड को पुरे वेग में आगे-पीछे कर रही थी और एक हाथ को उठा अपने चुँचियो को बारी-बारी से मसलते हुए बोले जा रही थी..
“हुँहुँ.. मादरचोद.. ऊँह.. बुआचोद.. आह.. आह.. प्पेल अपना मूसल मेरे ओखड़ी में बहनचोदददददद.. हायय्य मर गई मादद्दरचोद.. उफ़्फ़.. आह.. बच्चेदानी पे ठोककर म्मार रहा है लौड़ा तेरा.. फाड़ द्दे मेरा बच्चेदानी मादरचोद.. आह.. आह”.
और तभी मेरे सोच में मेरी चाची ना जाने से कहाँ से आ गयी। पूरी नंगी.. उसके सुडौल.. कसे हुए.. मद्धम आकार के चुँचियां हवा में झुल रहे थे। वो मेरे पीछे घुटनो के बल बैठी हुई अपनी चिकनी.. बिना झांटो वाली.. कसी हुई शादी-शुदा बूर को ऊँगली से चोदे जा रही थी। उसका दूसरा हाथ मेरे चुतड़ो को फैला कर मेर गाण्ड के छेद को ऊँगली से खरोंच रहे थे। चाची के मुँह से लगातार फूस-फुसाहट निकल रही थी..
“मुझे भी चोद.. आह.. आह.. मादरचोद.. उफ़्फ़.. अपनी इस माँ सामान चाची को भी चोद.. रण्डी की तरह चोद.. ऊँह.. ऊँह.. चोद मादरचोद.. उफ़्फ़”.
मेरी कल्पना.. मेरी सोच उफ़ान पे थी। मै बुआ के आग उगलती छिनार बुर में ताबड़-तोड़ धक्के लगा रहा था और तभी चाची ने मेरे चुतड़ो को फैलाया और गाण्ड के छेद में मुँह लगा दिया। अब वो अपना जीभ निकाल मेरे गाण्ड के छेद को भयानक तरीके से चाटने लगी।
मेरी कल्पना.. मेरी सोच उफ़ान पे थी। मै बुआ के आग उगलती छिनार बुर में ताबड़-तोड़ धक्के लगा रहा था और तभी चाची ने मेरे चुतड़ो को फैलाया और गाण्ड के छेद में मुँह लगा दिया। अब वो अपना जीभ निकाल मेरे गाण्ड के छेद को भयानक तरीके से चाटने लगी।
चाची के इस हरकत से मै अत्यधिक कामुक हो गया था। मेरे हाथ जो बुआ के चौड़े.. मांसल गाण्ड को मसल रहे थे वो अब उसके गाण्ड के दरार में घुस गए और मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली बुआ के गाण्ड के छेद पे एक बार में ही पूरा घुसेड़ दिया.. बुआ चिल्ला उठी..
“आह.. हाय.. मदारचचोद..”
इधर यथार्थ में.. सच्चाई में.. मै अब बस झड़ने वाला था.. .मेरी नजरे अभी भी चाची के गाण्ड पे टिकी हुई थी और तभी चाची के गाण्ड में थिड़कंन हुई और तब जा के मुझे अहसास हुआ की मैंने अपने बीच वाली ऊँगली को चाची के गाण्ड के दरार में.. साड़ी के ऊपर से ही उनके गाण्ड के छेद के पास घुसेड़ रखा है।
मैं अब किसी भी पल झड़ने वाला था.. मेरा लौड़ा कभी भी वीर्य की बारिश कर सकता था। मैं अपना हाथ वहां चाची के गाण्ड के छेद से हटाने की स्थिति में नहीं था। ऊपर से अपनी ऊँगली पे उसके जवान गाण्ड के छेद का अहसास मुझे और मजा दे रहा था। तभी एक झटके में चाची किसी बिजली की तरह पलट गयी।
वो सीधा पलटी थी.. उसके पीठ बिस्तर से टिके हुए थे और तभी मेरे लण्ड ने पिचकारी मार दी.. वो सीधा उछल के चाची के साड़ी पे गिरी जहाँ साड़ी के प्लेट होते है.. ठीक चुत के आस-पास। मेरी आँखें पल भर को झपकी और फिर खुल गयी। और मै देख सकता था मेरे वीर्य की दूसरी पिचकारी सीधा उड़ कर चाची के नग्न पेट पे गिरी।
मेरी आँखें घूमती हुए चाची के चेहरे पे गयी और मैने देखा वो हैरत और अविस्वास से मेरे वीर्य उगलते लौड़े की तरफ देख रही थी। और फिर उसकी आँखें मेरे हाथों और कमर से होते हुए ऊपर की ओर आने लगी। मैंने बिना एक पल गवाएँ अपनी पलको को बन्द कर लिया।
मै अपने चाची के आँखों में नहीं देख सकता था.. इस वक़्त तो बिलकुल भी नहीं जब मेरे हाथ में मेरा वीर्य उगलता लौड़ा हो। पता नहीं चाची क्या कर रही थी पर मेरी गाण्ड भयानक तरीके से फट रही थी। कुछ देर में पापा-माँ को पता चल जायेगा.. घर में इतने सारे मेहमान है.. सबको पता चल जायेगा।
मै गायब हो जाना चाहता था.. दुनिया से गायब.. बेइज्जती से भला गायब होना था। कुछ पलों के बाद मुझे अपने हाथ और लौड़े पे किसी कपडे का अहसास हुआ। कुछ देर तो मैं सन्न रह गया फिर धीरे-धीरे आँखें खोली.. मेरे हाथ और लौड़े पे एक छोटा तौलिया जैसा रुमाल पड़ा हुआ था। ये चाची का रुमाल था जिसे उन्होंने अपनी कमर में खोंस रखा था। मेरी नजरे ऊपर उठी.. चाची का कहीं पता नहीं था.. वो जा चुकी थी।
“पता नहीं आगे क्या होने वाला था?”
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लेकिन मुझे ये पता था कि मेरा आज का दिन बोहोत ख़राब गुजरा था और मेरी गर्दन सूली पे अटकी हुई थी.. मै अँधेरी रात में एक सुनसान जगह पे अकेला खड़ा था लेकिन रात भले ही अँधेरी थी पर कहीं ना कहीं से रौशनी आ रही थी क्योंकि मैं अपने आस-पास की चीजो को बड़ी आसानी से देख पा रहा था।
कुछ देर युहं ही खड़े रहने के बाद.. देखते ही देखते मेरे चारो तरफ बैलो का झुण्ड आ गया। उनके बड़े-बड़े सींग थे और वो बड़े ही खतरनाक तरीके से अपने सर को हिला रहे थे। मै भागना चाहता था और फिर मुझे अपने पीछे की तरफ एक रास्ता दिख गया और मैने उसी रास्ते पे लपक कर भागना शुरु कर दिया।
भागते-भागते मैंने पीछे पलट कर देखा तो वो जंगली बैल भी मेरे पीछे दौड़ता आ रहा था और फिर उनकी शक्ले बदल गयी। अब किसी का चेहरा मेरे पापा की तरह था तो किसी का चेहरा मेरे चाचा की तरह, कोई मेरे फूफा जी की तरह दिख रहा था। मैं अब पूरी तरह डर गया था और अपने भागने की रफ़्तार बढ़ा दी थी।
तभी सामने मुझे अपनी बुआ दिखी और मै रुक गया और एका-एक मेरी बुआ ने अपनी साड़ी खींच के उतार दी, मैंने पीछे पलट के देखा वो इंसानी शक्ले वाले बैल अभी भी मेरे पीछे आ रहे थे और सामने मेरी बुआ पूरी नग्न हो गयी थी और बड़े ही मादक तरीके से मुस्कुरा रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं तय नहीं कर पा रहा था की मुझे भागना चाहिए या बुआ के साथ सम्भोग करना चाहिए। बैल नजदीक आ रहा था काफी नजदीक और मैंने तय कर लिया की मुझे भागते रहना चाहिए और तभी मुझे अपने लौड़े पे किसी ठोस हाथ का अहसास हुआ और मैंने नीचे की तरफ देखा तो मेरी चाची पूरी नग्न मेरे लण्ड को हाथो में ले के सहला रही थी।
अब भागना मुश्किल था। मैंने पीछे पलट कर देखा था बैल अब काफी नजदीक आ गया था और मुझ पे कभी भी वार कर सकता था लेकिन चाची के हाथों से मिलने वाले मजे को मैं युही छोरना नहीं चाहता था और तभी कहीं से बच्चो का शोर-गुल सुनायी दिया और काफी जोर से… मेरी आँखे खुल गयी थी।
बाहर फैले उजाले से पता चल रहा था कि सूरज निकले हुए काफी वक़्त हो गया है। कमरे के बाहर बच्चे खेल रहे थे और शोर मचा रहे थे। मेरी आँखे उपर को उठी तो मैंने देखा मेरी चाची एक रुमाल को हाथो में पकड़ी खड़ी हल्के से मुस्कुरा रही थी। मेरी नजर फिर से उनके हाथों पे गयी.
और फिर उनके पकडे हुए रुमाल पे और तभी मुझे बीते रात की वो हाहाकारी मंजर भी याद आ गया और ये भी की उनके हाथ में पकड़ा हुआ रुमाल,चाची का वो रुमाल है जो पिछली रात को मेरे वीर्य से सन गया था। लेकिन चाची के मुस्कुराने की वजह क्या है और तभी मेरा ध्यान अपने हाथों पे गया.
और फिर हाथो की स्थिति पे और मेरी नजरे शर्म या डर जो भी कहे उसकी वजह से नीचे झुक गया। मेरे लौड़ा पूरी तरह ठनका हुआ था और मै अपने हाथों से उसे पकड़ कर मसल रहा था शायद ये सपने का असर था लेकिन मेरी चाची ना जाने कब से मेरी इस हरकत को देख रही थी। मैंने झट से अपने हाथों को लिँग से दूर किया और तभी मेरे गंदे मन ने एक नयी सोच पैदा की..
“अगर बुआ एक हाहाकारी अधेर इमारत है तो चाची भी एक जवान.. सुन्दर रस से भड़ी मादक मकान है”.
और मेरे दिल ने डर को दूर हटा के एक निर्लज फैसला ले लिया। मैंने अपने झुकी हुई आँखों को सीधे ऊपर उठा कर चाची के आँखों से मिला दिया वो अभी भी हल्के से मुस्कुरा रही थी.. शायद रात की हरकत के बाद मेरे इस तरह शरमाने की वजह से। मैंने अपनी आँखों को चाची के आँखों में ठहर जाने दिया और मेरा हाथ फिर से मेरे लौड़े पे आ गया और बेचारा कठोर लण्ड फिर से मसला जाने लगा।
कुछ ही पलो में चाची की आँखे फिसलती हुई नीचे आ गयी और फीर उन्हें जो दिखा उसके बाद उनके चेहरे पे मुस्कान की जगह एक आशचर्य ने ले लिया लेकिन वो अपने जगह से हिली नहीं और वैसे ही देखती रही। एक जवान, नव-विवाहिता चाची अपने हाथो में उसके भतीजे के सूखे वीर्य से सने हुए रुमाल को पकडे उसे लण्ड मसलते हुए देख रही थी..
ये मादक दृश्य बोहोत कम देखने को मिलता है। मेरी हिम्मत बढ़ गयी थी। मैंने कुछ देर युही लौड़े को मसलने के बाद अपना हाथ सीधा पैंट के अंदर किया और बिना समय गवाएँ अपने फुफकारते लण्ड को आजाद कर दिया। मेरी आँखे अभी भी चाची के प्यारे चेहरे पे टिकी हुई थी।
मेरे आजाद लण्ड को देख उनके चेहरे पे टिका आशचर्य अब अविस्वास में बदल चुका था। और तभी मेरे आँखे चाची के हाथों पे गयी.. वो अपने हाथ में पकडे रुमाल को बेदर्दी से मसल रही थी.. कुछ ऐसे जैसे वो उसे निचोड़ रही हो.. पूरी ताकत से।
“क्या वो रुमाल को वासना में निचोड़ रही.. कहीँ वो मेरे नंगे और कठोर लण्ड को देख के उत्तेज्जित तो नहीं हो गयी और रुमाल को मेरा लौड़ा समझ के मसल रही है”.
ये विचार आते ही मेरा लौड़ा झन्ना उठा। मैंने अब अपने हथेली को लौड़े के इर्द-गिर्द लपेट लिया था और लौड़ा मुठियाने लगा था। मेरे हाथों की स्पीड बढ़ चुकी थी और चाची के चेहरे पे अब भी अविस्वास था लेकिन मुझे उनके आँखों में वासना भी उफनती हुई दिख रही थी।
चाची की आँखे मेरे मसलते हुए लौड़े पे जमी हुई थी और रुमाल अब उनके हथेलियों में पूरी तरह समां चूका था और अब वो उसे किसी स्पंज के तरह मसल रही थी। मेरी आँखे उनके जिस्म पे फिसल रही थी। वो बोहोत ही सुन्दर थी.. भरपूर जवान औरत। माध्यम आकार के एकदम सख्त, बिना किसी ढीलेपन के उनकी चुँचियां पूरी तरह गुदाज थी।
सपाट पेट और गहरी नाभी जिसमे आप अपनी पूरी जीभ घुसा के नचा सकते है। फिर पतली कमर.. बिलकुल लचकती हुई। गोल और काफी उभड़े हुए उनके जवान नितम्ब जो की पूरी तरह सख्त है और चलने पे उसमे पैदा हुई हल्की कम्पन्न आपके लौड़े में कम्पन्न कर सकती है।
फिर पैंटी में छुपा चाची का बुर कैसा होगा.. रेशमी झांटो से भड़ा या चिकना.. बुर की छेद टाइट.. कड़ापन लिए हुए छोटा सा भगनासा और पूरी तरह गीली हुई बुर में लौड़ा घुसाने का मजा ही स्वर्ग है मेरे दोस्त। और उनकी जाँघे.. उफ़्फ़ चिकनी.. बिना रोये के.. गुदाज जाँघे। मै पागल हो रहा था और अपना पागलपन मै अपने कठोर लण्ड पे उसे बेदर्दी से मुठियाते हुए निकाल रहा था।
मेरे दिलो-दिमाग पे वासना पूरी तरह छा गयी थी और मै फिर से डर बोहोत पीछे छोड़ आया था। शायद चाची का भी यही हाल था.. वो नजरे जमाये मेरे लण्ड को देखे जा रही थी। मै अब झड़ना चाहता था.. मेरी वासना फिर से उफ़ान मार रही थी। मैंने चाची की आँखों में देखा वहां भी वासना अपना घर बना चुकी थी। मैंने अब एक और कदम बढ़ाने की सोची।
“चाची.. चाची सुनो”.
उसने अपनी आँखे ऊपर उठायी और मेरे आँखों में देखा.. जैसे पूछ रही अब और क्या करना है..”
उनकी आँखे जल रही थी.. वासना के डोरे तैर रहे थे। मेरी मुँह से स्वतः बोल फुट पड़े..
“अपनी साड़ी ऊपर उठाओ.. प्लीज़”.
चाची की आँखे कुछ पल तक मेरे आँखों में देखती रही जैसे वो समझना चाहती है मैंने क्या कह दिया है.. और फिर उनकी आँखे फिसलती हुई मेरे लौड़े पे आ गयी। मै उसकी वासना को और भड़का देना चाहता था.. मैंने अपने अँगूठे से प्री-कम को पूरे सुपाड़े पे फैला दिया.
और कमर को आगे धकेलते हुए लौड़ा को गोल-गोल नचाने लगा और फिर उसे हथेली में कैद कर के पहले से कहीं ज्यादा तेज मुठियाने लगा। मुझे चाची के चेहरे पे बेचैनी बढ़ते हुए देखा। दोबारा मैंने चान्स लिया.. “प्लीज़ चाची साड़ी ऊपर उठाओ ना”.
इस बार चाची ने अपनी आँखे लौड़े पर से नहीं हटायी पर उनका हाथ उनके जांघो पे आके साड़ी को इकठ्ठा करना सुरु कर चुका था। वासना हवा में घुल चूका था। मेरी साँसे तेज हो चुकी थी और चाची का भी वही हाल था। मैंने अपनी हाथो को स्पीड कम कर दी अब मैं जल्दी झड़ना नहीं चाहता था।
साड़ी घुटनो तक पोहोंच चुकी थी। उफ़्फ़ क्या पैर थे। बालों एक भी निसान नहीं था.. पूरी तरह चिकनी.. मलाई की तरह उजली। गुदाज पिंडलियां और फिर साड़ी थोड़ी और ऊपर सड़की और यहाँ से गुदाज.. केले के तने जैसे चिकने.. मक्खन की तरह मुलायम और बेइंतिहा मादक जांघो का सफर सुरु हो रहा था।
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चाची की साँसे बोहोत तेज हो चुकी थी.. सीने पे उनकी चुँचिया ऊपर नीचे हो रही थी.. वासना पूरी तरह हावी हो गया था उसपे। उफ़्फ़.. मैंने अपने लण्ड को मुट्ठी में जोड़ से दबा दिया.. चाची की साड़ी अब पूरे जांघो को बेपर्दा कर चुकी थी।
क्या माल थी वो.. एक दम दूध के तरह उजले.. चीकने जाँघ। गुदाज.. माँस से भड़े हुए थे। मै उनपे दांत गड़ाना चाहता था.. चांटा मार के उनको लाल करना चाहता था। चाची रुक गयी थी। पर मेरी वासना अब रुकने का नाम भी नहीं सुन सकता था। मैं और देखना चाहता था.. चाची की चुत की दर्शन चाहता था।
“चाची थोड़ा और ऊपर करो ना.. चुत तक” मै वासना में बोलता चला गया।
चाची के रसीले होंठो से एक छोटी सी “आह” निकली। शायद गंदे और कामुक शब्द पसंद थे उसको। और फिर उसके हाथ साड़ी समेत उसके कमर तक पोहोंच चुके थे। उफ़्फ़.. अगर मैंने अपने हाथों को लण्ड से हटाया ना होता तो मैं झड़ चूका होता। अत्यधिक मादक दृश्य था वो।
एक नयी शादी-शुदा जवान.. चुदासी चाची अपने दोनों हाथों से साड़ी ऊपर उठायी हुई.. लाल लेस वाली कच्छी पहने हुए अपने भतीजे को मुठ मारते हुए देख रही थी। गोरी जाँघे.. लाल कच्छी वो भी लेस वाली.. उसमे कसे हुए.. उभड़े.. पाँव रोटी की तरह फुले हुए चाची की चुत कहर ढा रही थी।
और तभी चाची ने साड़ी पकडे हुए ही अपनी दो अंगुलियां नीचे की और कच्छी के ऊपर से ही अपनी चुत को दबा दिया.. उसके मुँह से एक मादक सिसकी निकली। ये पहली हरकत थी जो चाची ने बिना मेरे कहे की थी.. वो भी वासना में जल रही थी। मेरा लौड़ा पूरा फूल चूका था.. झड़ने की कगार पे था मैं। उधर चाची अपने बुर को दो अंगुलियों से रगड़ रही थी। और तभी मेरे मुँह से निकल गया..
“आह चाची बुर दिखाओ.. कच्छी साइड करो.. उफ़्फ़.. मुझे बुर देखना है प्लीज़”.
चाची ने एक पल भी देर नहीं किया.. अपने दाहिने तरफ वाले साड़ी के छोर को पेटिकोट में फंसाया और अपने हाथों से पहले उसने कच्छी के ऊपर से ही पूरे चुत को सहलाया.. रगड़ा और फिर कच्छी को एक तरफ कर के वो पीछे की ओर थोड़ा झुकी और अपने कमर को आगे कर दिया।
उफ़्फ़.. क्या चुदासी औरत थी वो.. उसका चुत दिखाने का पोज़ बोहोत ही सेक्सी था.. जैसे वो चुत दिखाने के लिए बेचैन हो रही हो। छोटे-छोटे काली झांटो के बीच उसकी फूली हुई चुत थी। चुत के दोनों फांको के बीच एक लम्बी दरार थी जो एक-दूसरे से चिपकी हुई थी..
इसका मतलब इस चुत ने ज्यादा लौड़ा नहीं देखा है.. चाचा जी ऐसे आइटम को इग्नोर कैसे कर पाते होंगे। मुझे चाची की काली झांटे चमकती हुई दिख रही थी.. ओह.. काफी कामरस छोर रही थी वो। चाची ने एक ऊँगली से दरार को फैलाया.. हाय.. अन्दर का दृश्य कतई हाहाकारी था.. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
लालिमा लिए हुए उसके बुर का छेद.. मेरे लौड़े को पुकार रहा था.. पूरी तरह गीली मेरी चुदासी चाची की छिनार बुर लौड़ा माँग रही थी.. चाची का चेहरा लाल हो चूका था.. उसके नथुने फूल-पिचके रहे थे.. निचले वाले होंठ उसके दांतो के तले रौंदे जा रहे थे और आँखे बंद हो चुकी थी उसकी.. लगातार मुँह से हल्की.. “आह.. उफ़्फ़.. सस्स.. सस्स.. ” निकल रही थी।
बुर फैलाये हुए ही उसकी बीच वाली उँगली दोनों फांको के बीच घुस चुकी थी और उसने अपने भगनासा को रगड़ना सुरु कर दिया था। मेरा लौड़ा अब प्रचण्ड बेग पे था.. घोड़ा अपना लगाम तोड़ चूका था.. और मैं अब झड़ने वाला था और बोहोत ही प्रचण्ड तरीके से.. शायद जिन्दगी में पहली बार ऐसे.. इतनी प्रचण्ड वासना से। चाची की बुर रगड़ाई को देखते हुए.. मेरे मुँह से ना जाने कैसे निकल गया.. शायद इतनी प्रचण्ड वासना से..
“कमाल की हो चाची तुम.. आआह.. एक दम रण्डी हो तुम.. कसी हुई चुत वाली रण्डी”. चाची के मुँह से एक जोरदार “आह” निकला और उसकी अंगुलियां काफी तेजी से बुर को रगड़ने लगी.. और उसके पैर हलके से काँपने लगे.. उफ़्फ़.. इस छिनाल को गालियाँ भी पसँद है।
मैं अब झड़ने वाला था बस कुछ ही पलो में.. मेरी हाथ की स्पीड बढ़ चुकी थी.. चाची की पसँद जान के मैंने दोबारा कहा.. “और रगड़ो जोर से रगड़ो अपनी बुर को छिनार..”
चाची की आँखे खुल गयी थी और वो मेरे लौड़े को देख रही थी और अपनी बुर को प्रचण्ड वेग से रगड़ रही थी.. “मादरचोद.. रण्डी.. मेरा लौड़ा का पानी चाटेगी छिनार.. रण्डी चाची.. ले मुँह में ले मादरचोद..” मैंने पहली पिचकारी मार दी। चाची के बाएं हाथ से भी साड़ी छुट चुकी थी.. और उसका चुत ढक चूका था।
दाहिना हाथ अब और प्रचण्ड गति से बुर को रगड़ रहा था और तभी उसने बाएँ हाथ में पकडे मेरे रात के वीर्य से सने रुमाल को अपने मुँह के पास लाके जीभ से चाटना सुरु कर दिया.. उसकी कमर बुरी तरह से कांप रही थी.. उसके बुर से चिपकी अंगुलियां पे उसकी कमर आगे-पीछे हो रही थी.. और वो मेरी वीर्य उगलते लौड़े को देखते हुए.. सूखे हुए वीर्य से सने रुमाल को चाट रही थी।
और फिर तभी.. “आह.. सस्स.. सस्स.. मै गयी.. उफ़्फ़.. माँ.. हाय..” उसके कमर ने चार-पांच दफा जोर का झटका मारा और वो शान्त पड़ गयी। अभी भी रुमाल पे उसके जीभ चल रहे थे.. और फिर धीरे-धीरे.. बिना साड़ी के अंदर से अपनी अंगुलियां निकाले वो नीचे बैठती चली गयी।
मौहोल शांत पड़ गया था.. मै और चाची भी शांत पड़ गए थे। कुछ 2-3 मिनट बाद चाची ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और मेरी तरफ देखा.. हमारी नजरे मिली बस कुछ पलों के लिए और मैंने उसके आँखों में कुछ नहीं देखा.. उसका चेहरा भी सपाट था.. बिना किसी भाव के.. और फिर वो उठी..
अपने साड़ी को ठीक किया और हाथ में पकडे रुमाल को मेरी तरफ उछाल दिया जो सीधा मेरे ठन्डे पड़े लिंग पे आके गिरा.. फिर बिना कुछ बोले वो पलटी और अपनी गाण्ड हिलाते हुए कमरे से बाहर निकल गयी। मैंने रुमाल से लौड़े को साफ किया वीर्य पोछा। चाची बोहोत ही आसान माल थी.. एक दिन में औरत अपनी बुर दिखा दे तो बिस्तर तक लाना बोहोत आसान है.. शायद भड़ी जवानी का असर था..
“कम अनुभवी औरते बिस्तर पे जल्दी आती है अगर वो कामुक हो तो।”
बुआ अधेर उम्र की खेली खायी औरत थी और तभी मुझे बुआ का ध्यान आया.. मै उसे कैसे भूल गया.. भले ही चाची जवान थी.. कसी हुई थी लेकिन मेरी पहली वासना मेरी बुआ थी.. ये ठीक पहले प्यार जैसा था। मुझे खुद पे गुस्सा आया.. मुझे बुआ को पाना था.. उसे चोदना था..
अब मुझे सिर्फ बुआ पे ध्यान लगाना था.. समय कम था.. शादी ख़त्म हो चुकी थी और बुआ अब जल्दी ही जाने वाली थी.. और डर को मैं बोहोत पीछे छोड़ आया था.. मुझे उसके जाने से पहले पूरी कोशिश करनी थी.. अपनी वासना पूर्ति की कोशिश।
मैं कमरे से बाहर निकला और अगले ही कमरे में मुझे चाची फिर से दिखी बिलकुल अकेले.. मै दरवाजे पे पोहोंचा और रुमाल उसकी ओर उछाल दिया.. उसने हाथ से रुमाल पकड़ा और फिर छोर दिया तब तक उसके हाथ मेरे वीर्य से सन चुके थे.. मैंने इशारे से उसे चाटने को कहा और बिना देखे मुड़ के बुआ की तलाश में निकल पड़ा.. मै अब डरना बिलकुल भूल चुका था.. “वासना का असर था”.
कुछ चीजे हमें बड़ी आसानी से मिल जाती है, तो कुछ चीजो के लिए हमें हजार कोशिशें करनी होती है, हजारो बार हारना पड़ता है.. तब भी जरुरी नहीं वो चीज हमें मिल ही जाये। वासना की लड़ाई में आप तलवार की नोक पे खड़े होते है, ज़रा सी चूक और आप गए। वही अगर आपने सावधानी से खेला तो बाजी आपकी भी हो सकती है। बुआ के लिए मेरी वासना की लड़ाई कुछ इसी प्रकार की जंग थी।
कमरे से निकल कर मैं जब बाहर आया तो सच में काफी देर हो चुकी थी.. सभी लोग नास्ता कर रहे थे। पर मेरी नजरे तो किसी और को ढूंढ रही थी। मुझे देखना था कि रात में हुई उस वासना की लड़ाई में जिसमे में मै बुआ के कच्छी के अंदर उसके नंगी चुत तक पोहोच गया था उसके बाद उसकी क्या प्रतिक्रिया थी। क्या अब मैं इस लड़ाई में जीत के काफी करीब आ गया था..
या बस वो सिर्फ रात गयी बात गयी वाली बात थी। क्या रात के उस हाहाकारी मंजर के बाद मैं बुआ को चोद सकता था या फिर उसकी मर्यादा, संस्कार, पतिव्रता धर्म, रिश्ते के वसूल वाला रोग दुबारा से जग जायेगा। मै किसी चीज को ले के कतई निश्चित नहीं था.. ना ही मैं मुंगेरी लाल के हसीन सपने देख रहा था।
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अभी थोड़ी देर पहले चाची के साथ घटी कामुक घटना के बाद मुझे लग रहा था कि मैंने अपने डर को काफी पीछे छोर आया हूँ लेकिन बुआ को ले के आये मेरे इस विचार से मेरे अंदर डर की लहर फिर से हिलोरे मारने लगी थी। और तभी बाथरूम का दरवाजा खुला और मेरी नजर अनायास ही उधर मुड़ गयी..
एक अधेर शादी-शुदा.. गदराया कामुक बदन.. गीले बाल.. गोरा चेहरा.. और उस कामुक चेहरे पे कुछ गीले बालों की लटे इधर-उधर होती हुई.. रसीले होंठ.. गुदाज चिकने गर्दन.. और उसके नीचे साँसों के साथ इठलाती.. चुस्त.. .काफी बड़े.. गुदाज.. मांसल.. ब्लाउज में कैद चुचियां..
हल्का सा मोटापन लिए हुए मांसल पेट.. किसी अँधेरे कुएँ से भी गहरी नाभि.. कामुकता से मेरी आँखे बंद हो गयी.. लिंग में एक झुरझुरी सी दौड़ गयी.. मैंने खुद को संभाला.. बुआ के गीले हुस्न-पान के लिये आँखें खोली.. लेकिन मुझे बस एक आखिरी झलक मिली उसके चौड़े.. पीछे की ओर उभड़े.. फैले हुए.. चलने के साथ बलखाती हुई विशाल नितम्ब की। “ये चुदासी औरत पलंग तोड़ देगी”.
दोपहर का समय था। सुबह से लगातार की गयी कोशिशों के बाद भी मुझे बुआ के करीब जाने का मौका नहीं मिल पाया था। घर काफी खाली हो चूका था.. अधिकांश रिश्तेदार जा चुके थे। बुआ गीले कपड़ो को छत पे सूखने के लिए डाल कर नीचे आयी थी और दादी के कमरे के दरवाजे पे खड़ी हो कर दादी से कुछ बाते कर रही थी।
मै सुबह से लगातार मौके की तलाश में था.. मै बेचैन था.. कैसे भी मै उसके बदन को छूना चाहता था। मेरी बेचैनी इस कदर बढ़ गयी थी की मैं लगातार उसपे नजर रख रहा था.. कितनी बार हमारी आँखे मिली थी.. कितनी बार हमलोगों ने दो-चार बाते की थी पर उसकी प्रतिक्रिया सामान्य थी, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, जैसे पिछली रात मेरे हाथों ने उसके चुदासी चुत को रगड़ के झाड़ा ही नहीं था.
जैसे मेरे कठोर लण्ड ने जीवन में पहली बार उसके चुत को छुआ ही नहीं था। उसकी सामान्य प्रतिक्रिया मुझे काफी परेशान कर रही थी। दूसरी तरफ चाची थी जो मेरे से नजर मिलाने से भी कतरा रही थी.. सुबह से चाची ने एक दफा भी मेरे से बात नहीं करा था। और यही एक कारण था की चाची के मामले में मुझे डर बिलकुल भी नहीं लग रहा था।
बुआ दरवाजे पे खड़ी बाते कर रही थी और मेरी नजर उसके विशाल चौड़े गाण्ड पे टिकी हुई थी.. उसके हिलने से उसके चुतड़ो में होती कंपन से मेरे लौड़े में जान आ गयी थी। मै अपने लौड़े को हाथ में पकड़ के पायजामे में एडजस्ट कर ही रहा था कि एका-एक बुआ ने पीछे पलट कर देखा..
मेरी आँखें उसके गुदाज गाण्ड से होती हुई उसके आँखों से मिल गयी.. बुआ ने कुछ पलों तक मेरी आँखों में देखा और फिर उसकी नजर मेरे हाथ में पकडे हुए लौड़े पे गयी और फिर वो पलट कर पहले जैसी खड़ी हो गयी। नहीं.. पहले जैसी नहीं.. इस बार उसकी गाण्ड पीछे को ज्यादा उभड़ गयी थी।
बुआ इस बार आगे को थोड़ा ज्यादा झुक के खड़ी हुई थी जिसकी वजह से उसकी गाण्ड काफी मादक मुद्रा में थी.. क्या ये मेरे लिए एक न्योता है.. “आओ मेरी गाण्ड पे अपना खड़ा लौड़ा रगड़ो”. मै कुछ करने की सोच ही रहा था कि बुआ के हाथ में पकड़ा हुआ उसका हेयर-क्लिप नीचे गिर गया और उसके बाद बुआ ने गर्दन घुमा के एक बार फिर मेरी ओर देखा और हेयर-क्लिप उठाने के लिए नीचे झुक गयी।
उफ़्फ़.. क्या मंजर था.. मेरी साँसे थम गयी थी.. उसके चौड़े नितम्ब झुकने के कारण अथाह फ़ैल गए थे.. ऐसा लग रहा था कि उसके विशाल नितम्ब कभी भी साड़ी फाड़ कर उसके गुदाज गाण्ड को नंगी कर देंगे और मुझे उसके भुड़े गाण्ड के छेद के साथ-साथ उसकी लप-लपाती चुदासी, काले झांटो वाली बुर के भी दर्शन हो जायेंगे।
लेकिन मेरे हसीन सपने थम गए थे.. बुआ खड़ी हो चुकी थी और साथ ही साथ मेरे लण्ड को भी भरपूर खड़ा कर चुकी थी। झुकने के वजह से उसकी साड़ी उसके चौड़े चुतड़ो के बीच फंस गए थे.. मतलब आज बुआ ने कच्छी नहीं पहना था। साड़ी और पेटिकोट के नीचे उसके चौड़े नितम्ब और उसकी शादी-शुदा बुर बिलकुल नंगी थी।
मेरे दिल की बेचैनी अब मेरे तने हुए लौड़े तक पोहोंच गयी थी। मैंने कदम बढ़ाया और ठीक बुआ के पीछे आ के खड़ा हो गया। बुआ की गाण्ड अभी भी पीछे की ओर कुछ ज्यादा उभड़ी हुई थी और साड़ी अभी तक उसके चुतड़ो के मांसल दरार में फंसी हुई थी। मेरे हाथ नीचे हो गए थे और बुआ के नितम्ब से कुछ ही दूरी पे झुल रहे थे लेकिन डर फिर से मेरे पे हावी हो रहा था।
रात में मिली धमकी का असर अभी तक था। कुछ मिनट मुझे हिम्मत जुटाने में लग गए और फिर मैंने धीरे से अपनी उंगलियां बुआ के मदमस्त गाण्ड के दरार में फिराया और एक झटके में उसमे फँसी साड़ी बाहर की ओर खींच लिया। बुआ के शरीर में हलकी सी कंपन हुई.
जो मैं उसके चौड़े नितंब पे महसूस कर सकता था, लेकिन सामने दादी बैठी थी इसलिए वो कुछ प्रतिक्रिया दे नहीं पायी। अब मेरे हाथ बुआ के दोनों मदमस्त शादी-शुदा विशाल गुम्बद जैसे चुतड़ो पे फिसल रहे थे। मैंने लाढ से अपना ठोड़ी बुआ के कंधे पे रखा और उसके गाण्ड को मुट्ठी में भरते हुए कहा..
“तुम कब जाने वाली हो बुआ?”
अब मेरा अकड़ा हुआ लण्ड बुआ के कमर पे ठोकर मार रहा था।
“क्यों बड़ी जल्दी है मुझे यहाँ से भगाने की” बुआ ने हलकी भारी साँसों के साथ कहा।
अब तक मेरे हाथ की उँगलियाँ फिर से साड़ी समेत बुआ के गाण्ड के दरार में पेवस्त हो चुकी थी और साथ ही साथ मेरे लफ्ज़ भी निकल रहे थे..
“मेरा बस चले तो मैं आपको यहाँ से जाने ही ना दू”.
मैंने फिर से साड़ी को गाण्ड के दरार में ही फंसे रहने दिया और हाथो को बुआ के तंदरुस्त जांघो पे फिराते हुए उसके दोनों गुम्बदनुमा चुतड़ो को मसलते हुए.. उसके पीठ पे उसके ब्रा-स्ट्रेप को टटोलने लगा। बुआ की साँसे अब भारी हो चली थी और भारी साँसों के बीच बुआ के स्वर फूटे.. “बस-बस रहने दो.. 4-5 दिन बैठा के खिलाओगे और फिर बोलोगे बुआ अब अपना रास्ता नापो”.
मेरे हाथ उसके ब्रा-स्ट्रेप से खेलने के बाद.. उसकी नंगी कमर को सहलाने के बाद.. अब मेरे हाथ ने फिर से उसके मांसल चुतड़ो को दबोच लिया था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“नहीं ऐसा नहीं है बुआ मुझे तो लगता है आपने शादी ही बेकार की.. सारी उम्र यही रह जाती”.
ये कहने के साथ मैंने अपनी उँगलियों को फिर से उसके दरारों में घूंसा दिया और इस बार पूरा अंदर तक.. यहाँ तक की मै अपनी उँगलियों पे उसके सिकुड़ते हुए गाण्ड के छेद को महसूस कर सकता था.. मैंने उसकी गाण्ड के छेद को उंगलियो से कुरेदा और फिर दरार में फंसी उसकी साड़ी को बाहर निकालते हुए एक फिर से अंदर पेवस्त कर दिया। अब बुआ की साँसे अधिक भारी हो चली थी और उसका शरीर हल्के झटके खा रहा था।
“दादी आपने क्यों की बुआ की शादी.. इनको यहाँ ही रख लेती”.
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इस बार मैंने अपने उँगलियों को गाण्ड के दरार में पूरा नीचे तक ठूंस दिया था और फिर मैंने अपनी उंगलियों पे बुआ के काली झांटो को महसूस किया और फिर.. अआह.. जन्न्त का द्वार.. बुआ की मखमली.. चुद-चुद कर फैली हुई शादी-शुदा बुर पे मेरी अंगुलियाँ फिसलने लगी थी।
बुआ ने अपनी कमर को हिलाया ताकि मेरा हाथ उसके चुत के पास से हट जाये.. लेकिन इस बार भी फायदा मुझे ही हुआ.. मेरा अकड़ा हुआ लौड़ा बुआ के कमर पे रगड़ खा गया और मस्ती में आके मैंने खुद से बुआ के कमर पे लण्ड रगड़ते हुए उसके फुले हुए चुदासी बुर को मुट्ठी में दबोच लिया। मेरे और बुआ के बीच चल रही वासनामयी कुश्ती से अनजान दादी ने कहा..
“बेटी पराया धन होती है बउवा.. कब तक उसको रोक कर रख सकते है.. एक ना एक दिन तो चली ही जाती है”.
बुआ के बुर को मसलते हुए मेरे मन में विचार आया.. “अपनी इस बेटी को तब तक रोक लो जब तक मैं इसे चोद ना लूँ”.
अब तक बुआ के दोनों जांघो के बीच जगह बन गयी थी.. मतलब बुआ ने अपने दोनों पैरों को हल्का सा फैला दिया था। अब ये एक सामान्य प्रतिक्रिया थी या बूआ की चुत फिर से चुदासी हो गयी थी.. इसका मुझे कोई अंदाजा नहीं था। लेकिन मेरे अंदर की आग अब हर पल अपनी सारी सीमाओं को तोड़ती जा रही थी.. मेरी वासना ने मेरे हर सोच-विचार.. अच्छे-बुरे.. डर-भय सब पे विजय पा ली थी।
अब मेरा वजूद इस बात पे आके ठहर गया था कि बुआ के चुत में मेरा लौड़ा जाना चाहिए। तभी बाहर से किसी ने आवाज़ लगायी.. मेरा हाथ झट से बुआ के चुत से.. उसके गाण्ड से दूर हो गया। लेकिन बुलावा दादी का था। दादी का बिस्तर से उतरना.. फिर चल कर कमरे से बाहर जाना और फिर मेरे और बुआ से ओझल होने के बीच मेरे दिल और दिमाग ने बिना कुछ सोचे-समझे.. एक हाहाकारी फैसला ले लिया।
“आज बुआ को चोदना है.. कैसे भी.. जैसे भी.. आज या तो ‘जय’ नहीं तो ‘छय’..” दादी के ओझल होने के बाद बुआ कुछ कर पाती इससे पहले ही मेरे हाथ उसके कमर के दोनों तरफ जम गए थे और इससे पहले वो कुछ सोच पाती.. मै बिलकुल उसके पीछे आ चुका था और मेरा लण्ड अब उसके चौड़े गाण्ड के फैले हुए दरारों के बीच था।
उसके कमर को जकड़े हुए और अपने लौड़े को उसके दरारों के बीच ठेलते हुए मैंने उसे आगे की ओर धकेलना सुरु कर दिया था। बुआ अचंभित थी.. चकित थी.. इससे पहले वो कुछ समझ पाती वो पलंग के किनारों से सटी खड़ी थी और मेरे पास उसे और आगे धकेलने के लिए जगह नहीं थी।
मैंने अपने कमर को जितना हो सकता था उतना बुआ के दरारों के बीच ठेल रखा था और लगातार उसके चौड़े चुतड़ो के बीच साड़ी और पेटिकोट के ऊपर से ही सूखे धक्के लगाये जा रहा था। मेरे हाथ अब उसके कमर को छोर कर उसके नंगे पेट को मसल रहे थे.. फिर मेरी अंगुलियो ने उसके गहरी नाभि को ढूंढ लिया और मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली से बुआ के नाभि को कुरेदना सुरु कर दिया। बुआ के मुँह से एक “स्सस्स.. सिसस्स..” फूटी।
अब मेरे हाथ उसके नंगे पेट को छोर.. उसकी गहरी नाभी को छोर ऊपर की ओर फिसल रहे थे। और कुछ ही पलो में मेरे हाथ उसके गुदाज.. बड़े-बड़े.. मोटे-ताजे चूचियों पे थे। मैंने अपनी छिनार बुआ के दोनों चुँचियो को दोनों हथेली में दबोचा और जितना हो सके उतने जोर से मसल दिया..
बुआ कराह उठी.. “आह.. तुम पागल तो नहीं हो गए.. स्सस्स.. दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा.. उफ़्फ़..”
हाँ.. मै पागल ही तो हो गया था.. वासना में.. अपनी अधेर.. शादी-शुदा.. मंगलसूत्र पहने.. माँग में सिन्दुर भरे.. चुदी-चुदाई.. कामुक.. चुदासी बुआ के वासना में मै पागल हो गया था।
मै लगातार बुआ के चुँचियो को मसलता जा रहा था.. उसकी चुँचियां स्पंज की तरह थी जो पूरी तरह से मेरे हथेलियों में आभी नहीं रही थी। बुआ के कड़क निप्पल वाले चुँचियो को दबाते-दबाते मै उसकी गर्दन पे झुका और पागलो की तरह उसके गर्दन को चाटने लगा.. उसके बाल बार-बार मेरे मुँह में आ रहे थे.. लेकिन उसके गले के नमकीन स्वाद के सामने उन रेशमी बालों की हैसियत क्या थी।
मै उसके कानों के लवो को अपने होंठो के बीच लेके उसे किसी टॉफी की तरह चूसने लगा.. और फिर मेरे जीभ बुआ के कानों के अंदर तक घुस गये और मै जानवर की तरह उसके सारे कान को चाटने लगा। बुआ लगातार खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। उसके मुँह से लगातार सिसकारी फुट रही थी।
मेरे जीभ अब बुआ के नंगे कंधे पे चल रहे थे.. मेरी हथेली में उसकी चुंचियों का अहसास लगातार मेरे वासना को भड़का रही थी। उसके नंगे कंधे को चाटते-चाटते मैंने अपना लौड़ा पूरी ताकत से उसके विशाल गाण्ड के दरार में पेल दिया और ठीक उसी वक़्त मैंने उसके कंधे पे अपने दाँत गड़ा दिए.. बुआ कराह उठी.. “आह.. हरामी.. क्या कर रहा है तू.. कोई आ जायेगा.. छोड़ मुझे.. ओह.. माँ..”
लेकिन वासना मेरे ऊपर कीसी भूत की तरह सवार हो चुकी थी। अगले ही पल मेरे हाथ बुआ के चुँचियो को छोर उसके जांघो पे आ गए थे.. और मैं उसके जांघो पे फैली उसकी साड़ी को ऊपर उठाये जा रहा था। बुआ ने एक दो बार मेरे हाथों को झटकने की कोशिश की थी लेकिन मै यूँ हार मानने वाला नहीं था।
साड़ी अब पूरी ऊपर उसके कमर तक आ चुकी थी.. मैंने अपने हाथों को आगे से बुआ के चिकने और मांसल जांघो पे फिराया और उसे अपने नाखूनों से खखोरते हुए उसके नंगे बिना कच्छी के बुर को हथेली में दबोच लिया। बुआ सीहर उठी थी.. उसकी गाण्ड ने मेरे पजायमे के अंदर छिपे कठोर लण्ड पे एक हल्का सा धक्का दिया।
बुआ भी चुदासी हो रही थी.. मेरी छिनार बुआ गर्म हो के मेरे लौड़े पे ठोकर मार रही थी। मैंने उँगलियों में उसके काले झांटो को दबोचा और उसे उखाड़ने लगा.. बुआ कराह उठी.. उसने अपने चौड़े गाण्ड से मेरे लौड़े को मसल दिया। अब मेरे लिए रुकना उतना ही मुश्किल था जितना बिना ऑक्सीजन के रहना..
मै नीचे झुक गया था और टखने पे बैठा बुआ के चौड़े.. गुदाज हाहाकारी गाण्ड को निहार रहा था.. एक दम चिकने.. कसे हुए चूतड.. और तंग गाण्ड की दरार.. मेरी कामुकता की आग में घी का काम कर रही थी। बुआ की गाण्ड सच में हाहाकारी थी.. मैं उसके दोनों चुतड़ो को मुट्ठी में दबोच उसे भभोरने लगा था..
बुआ अपने गाण्ड को हिला कर उसे छुपाने या मुझे भड़काने की कोशिश कर रही थी पता नहीं लेकिन अब तक मेरे जीभ उसके चिकने चुतड़ो को चाट-चाट कर गीला कर रहे थे और तभी मैंने उसके कसे हुए चुतड़ो को दाँत में पकड़ काट बैठा.. मेरे अंदर कही से एक जानवर आ गया था।
बुआ हलके से चीख बैठी.. उसने अपने दोनों मुट्ठी में चादर को दबोच रखा था। मैंने ज्यादा देर करना उचित नहीं समझा.. लोहा गर्म था.. हथौड़ा चलाने में देरी करना मूर्खता होती। मै अब खड़ा हो चूका था और मेरा लौड़ा पायजामा को अलविदा कह चुका था।
बुआ ने पलट कर देखा मै क्या कर रहा हूँ.. इसे पहले वो कुछ बोल पाती.. मैंने उसके पीठ पे हाथ डाल उसे बिस्तर से टिका दिया। और उसके चुतड़ो के दोनों पट को हाथ से फैला रहा था तभी बुआ बोली.. “नीचे मत करो.. वहां नहीं..”
मै कन्फ्यूज़ हो गया.. मेरे मुँह से फुसफुसाहट निकली.. “नहीं.. मै गाण्ड नहीं मार रहा हूँ.. मै तो.. “
आगे का शब्द बोलने में मुझे कुछ अजीब सा लगा..
लेकिन तब तक बुआ बोल चुकी थी.. “हरामी मेरी चुत भी मत मार.. ऊँगली से कर दे या चाट दे.. लौड़ा मत कर प्लीज़”.
मुझे लगा बुआ बस नखरे कर रही है.. और वैसे भी मेरे ऊपर वासना ने अपना तांडव कर रखा था.. मैंने अपना लण्ड बुआ के चुत के ऊपर रखा और एक ज़ोरदार धक्का मारा.. बुआ चिल्ला उठी.. और मुझे मेरी जन्न्त मिल गयी थी.. स्वर्ग यही था.. मेरी छिनार.. चुदासी.. अधेर उम्र की एक शादी-शुदा बुआ.. चौड़े-उभड़े गाण्ड.. बड़ी-बड़ी माँसल चुंचियों.. काली-काली झांटो सहित चुत वाली बुआ के बुर में ही स्वर्ग था।
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मैंने अपना लौड़ा आधा बाहर खींचा और दुबारा अंदर करने ही वाला था कि बुआ एकाएक पलट गयी.. मैने हड़बड़ी में उसकी कमर को पकड़ना चाहा लेकिन तब तक उसकी हाथो ने मुझे धक्का दे दिया था। मैं ठीक से संभल भी पता तब तक बुआ अपनी साड़ी नीचे कर चुकी थी। मैंने उसकी बाँहों को पकड़ा और.. “बुआ प्लीज़ बस एक बार..”
“चट्टटटाक्क्क” बुआ के हाथ मेरे गालो पे थे और उसके हाथ हटने के बाद मेरे हाथ अपने खुद के गालो को सहला रहे थे। बुआ का चेहरा अभी भी कामुक था.. अभी भी उसकी साँसे भारी थी.. उसकी आँखों में अभी भी चुदासी झलक रही थी.. लेकिन फिर भी उसका इंकार था..
बुआ बोल पड़ी.. “हरामी तुम को रात में भी समझाई थी ना.. हजार बार समझाने पे भी समझ नहीं आती ना.. अब तुम एक बार भी मेरे शरीर को छू के देख.. भैया-भाभी को बताउंगी ही.. मै उनको (फूफा जी) भी बताउंगी उसके बाद तुम अपना हाल देखना.. हरामी.. दोगला..”
इसके बाद वो पलटी और कमरे से निकल गयी। मै स्तब्ध सा खड़ा रह गया.. “ये पतिव्रता धर्म.. संस्कार.. रिश्ते की मर्यादा था.. या कुछ और..” आपको जोर से भूख लगी हो और आपके सामने आपका मनपसंद पकवान परोसा गया हो.. मन को कितनी शांति मिलती है.. दिल कितना खुश हो जाता है। लेकिन जैसे ही आपने अपना हाथ पकवान की ओर बढ़ाया, वो झट से गायब। अब आप अपनी मन की व्यथा बताओ? दिल का दर्द सुनाओ?
कमरे में सुप्त होते लिँग के साथ खड़ा मेरा हाल भी यही था। अभी कुछ देर पहले मेरे हाथों में कभी बुआ के मदमस्त उरोज थे तो कभी उसकी हाहाकारी नितम्ब। मेरे हाथ कभी उसके चुस्त जाँघों को सहला रहे थे तो कभी उसके चौड़े चूतड़ को और हद तो ये थी थोड़ी देर पहले मेरा अकड़ा हुआ लण्ड उसकी लपलपाती चुत के चुदी-चुदाई छेद को भेद के उसके गहराई में उतरा हुआ था लेकिन तब भी मैं उसे चोद नहीं पाया था..
मेरी वासना-पूर्ति अभी भी आधी अधूरी ही थी। मैं अपने सुस्त पर रहे लिंग पे अभी भी उसकी चुदासी चुत के काम-रस को महसूस कर पा रहा था.. उसकी बुर की गहराइयों की गर्माहट अभी भी मेरे लिंग को झुलसा रही थी। लेकिन अब बुआ यहाँ नहीं थी.. उसके बड़े-बड़े चुंचियाँ भी यहाँ नहीं थी.. न ही थे उसके हाहाकारी चौड़े चुतर और ना ही उसकी फैली हुई शादी-शुदा बुर। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
ये माजरा अजीब था.. बुआ पहल भी करती थी.. एक हद तक साथ भी देती थी.. गर्म भी होती थी.. चुदासी में उसकी चुत रस भी टपकाती थी.. लेकिन मैं उसे चोद नहीं पाता था। रिश्ते-नाते.. मर्यादा की दिवार उतनी कमजोर नहीं थी जितना मैंने सोचा था। एक गर्म चुदासी औरत जो लगातार लगभग एक सप्ताह से सिड्यूस(seduce) हो रही थी..
उसके चुत को कई बार मसला जा चूका था.. कितनी बार उसे कठोर लौड़े का अहसास दिलाया गया था और एक बार उसके गहराइयो में लिंग को उतारा भी गया था लेकिन तब भी वो मर्यादा की जर्जर हो चुकी दीवार को संभाले हुई थी। लेकिन मेरा धैर्य अब जवाब दे रहा था.. मेरे खड़े लौड़े पे हर बार धोखा हो रहा था..
प्यासा कुएँ के पास जा तो रहा था लेकिन कुआँ हर बार थोड़ी दूर खिसक जा रही थी और शायद इस बार तो गायब ही हो गयी थी। कमरे में खड़े क्षण-प्रतिक्षण मेरा गुस्सा और झुंझलाहट बढ़ता जा रहा था। मेरे मन में अजीब-अजीब विचार आ रहे थे.. जैसे की मै अभी बुआ के पास जाऊँ और उसे कमरे में बन्द कर के जबरदस्ती गालियों के साथ चोद डालू।
मैं उसे अपमानित(humiliate) कर के बिस्तर पे पटक कर रगड़ डालू.. मुझे खुद पे गुस्सा भी आ रहा था कि बुआ के चांटा मारने के बाद मैंने उसे जाने क्यु दिया.. उसे वही पटक कर चोद क्यु नहीं दिया। लेकिन अब क्या हो सकता था.. चिड़िया तो उड़ चुकी थी। कमरे में खड़ा मै खुद से हजार सवाल पूछ रहा था और मेरे मस्तिष्क और दिल के पास कोई जवाब नहीं था।
क्षोभ.. अपमान.. गुस्से.. झुंझुलाहट के मारे मेरा दम घूँट रहा था.. कमरे में रहना अब मै सहन नहीं कर पा रहा था और इसी विचार ने मेरा ध्यान छत पे जाने की ओर आकर्षित किया और शायद इसलिए भी क्युकी मै कहीं एकांत में बैठ कर अपने हार पे रोना चाहता था.. अपने गुस्से को बाहर निकलना चाहता था।
अपने सुश्त पड़े लिँग को तो मैंने कब का पायजामे में डाल दिया था, अब अपने दोनों हाथों को जेब में डाल मै एक ऐसे जुआरी की तरह कमरे से बाहर निकला जो अपना सब कुछ इस आखिरी दाँव में हार गया हो। छत की सीढियाँ चढ़ते हुए मेरा दिमाग विचारों से भरा पड़ा था और मेरा गुस्सा क्षण-प्रतिक्षण बढ़ता जा रहा था।
सीढ़ियों के मोड़ पे मुड़ते ही मै ठिठक के खड़ा हो गया.. सामने कुछ 7-8 सीढ़ियों के बाद छत पे प्रवेश करने का दरवाजा था और दरवाजे के उस पार छत पर कपडे सुखाने के लिए बँधी रस्सी पे गीले कपड़े डालती चाची खड़ी थी। चाची नहा के आयी थी। गीले बाल.. गेहुआँ रँग.. पतली-सुराहीदार गर्दन और गर्दन में भड़कता हुआ मंगल-सूत्र।
“ये मँगल-सूत्र वाली औरते लौड़े में आग लगा देती है”.
उसके नीचे मध्यम आकार की लेकिन ठोस चुँचियां.. बिलकुल संतरे की तरह मुलायमता लिए हुए कठोर। सपाट पेट.. गहरी नाभी और फिर मेरी नजरे चाची के दोनों तंदरुस्त जाँघों के बीच आके ठहर गयी जहाँ से थोरी ऊपर साड़ी बँधी हुई थी और ठीक दोनों जांघो के जोड़ के पास साड़ी की बिलकुल हल्की सी ढ़लान..
और मेरे नजरो के सामने सुबह की वो अत्यधिक कामुक घटना धड़-धड़ाते हुए गुजरने लगी। मेरी वासना जो नीचे कमरे में बुआ के जाने के बाद सुस्त पर गयी थी वो फिर जागती हुई महसूस हुई और नीचे पायजामे में सर उठाता मेरा लिँग इस बात की गवाही दे रहा था। चाची कल रात को पहनी गयी लाल बनारसी साड़ी के मैचिंग लाल लेस वाली कच्छी को निचोड़ रही थी।
अभी भी मैं बुआ को भुला था नहीं था.. उसका अधेर बदन.. उसके तिरिस्कार.. उसका मारा हुआ चांटा मेरे अंदर एक कामुकता भरा गुस्सा उतपन्न कर रह था। और तभी चाची नीचे आने को पलटी और उसकी आँखे मेरी आँखों से टकराई और वो ठिठक के एक पल के लिए रुक गयी फिर जैसा आज सुबह से होता आ रहा था, उसने अपनी नजरे झुकायी और फिर सीढ़ी से उतरने लगी।
उन्ही कुछ पलो में जब हमारी नजरे मिली थी मेरी वासना पूरी तरह जग उठी थी और इस बार मेरे अंदर फैले गुस्से और झुंझुलाहट ने मेरे डर को पूरी तरह दबा दिया था। कुछ ही पलो में वो जिस सीढ़ी पे मै खड़ा था उसी सीढ़ी पे थी और अगले पल वो मेरे नीचे वाली सीढ़ी पे थी.
और उसके अगले पल वो शायद उसके नीचे वाली सीढ़ी पे होती लेकिन उससे पहले मेरा हाथ पीछे की ओर गया और चाची के मांसल बाँहों को पकड़ लिया, चाची वहीँ किसी बूत की तरह जम गयी और इस से पहले वो कुछ समझ पाती मैंने उसे ऊपर की ओर खींच लिया।
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चाची ने ऊपर आने से विरोध करते हुए अपने बाँह को छुड़ाने का प्रयत्न किया लेकिन मेरी पकड़ मजबूत थी। मैं चाची को खींचते हुए या युँ कहे घसीटते हुए ऊपर दरवाजे के बगल में ख़ाली जगह पे लाके, उसे दीवार से सटा कर खड़ा कर दिया। चाची वहाँ सहमी सी खड़ी थी और मेरे दोनों हाथ उसके जवान, ताजे शादी-शुदा बदन के इर्द-गिर्द दीवारों पे जमे थे।
मै अपनी वासना से जलती आँखों से उसे घूरे जा रहा था.. मेरी चाची सक्ल से बड़ी मासूम थी यारो.. उसके होंठ बोहोत रसीले थे.. गुलाबी रंगत लिए फड़फड़ाते हुए बिलकुल चूसने के लिए बने होंठ। उसके गले और ब्लाउज के बीच का नग्न हिस्सा बिलकुल चिकना था और उसके नीचे साँसों के साथ उछलती हुई उसकी ठोस चुंचियाँ मेरे तने हुए लण्ड में खलबली मचा रही थी..
और फिर मेरी नजर उसके चिकने-लम्बे गले में चमकते हुए मँगल-सूत्र पे पड़ी और मैंने बिना एक पल गवाएँ चाची के कंधे पे छाये उसके रेशमी बालों को पीछे करते हुए अपना सर उसके गले में छुपा दिया। चाची के दोनों हाथ मेरे सीने पे आके मेरे शरीर को पीछे धकेलने लगे और वो बोल पड़ी.. “आप पागल हो गए है.. ओफ़ क्या कर रहे है.. छोड़िए मुझे नीचे जाने दीजिए.. कोई आ जायेगा..”
इस वासना की आंधी में मै भगवान की भी नहीं सुनता तो फिर मैं अपने सगे चाचा की जवान बीवी की कैसे सुन लेता। मै लगातार उसकी गले पे चुम्बन की बारिश करते जा रहा था.. मेरे हाथ उसके कमर और नंगे पेट को सख्ती से पकड़े हुए उन्हें मसल रहे थे.. अब मैं चाची के गले को उसके नंगे कंधे से लेके उसके ठोढ़ी तक अपने खुरदरे जीभ से चाटने लगा था..
चाची पूरी जोर आजमाइश करते हुए छूटने की प्रयास में जुटी हुई थी और साथ ही साथ मैं उसके जिस्म में हल्की सिहरन भी महसूस कर पा रहा था.. मेरे हाथ अब उसके कमर और पेट से उसके ब्लाउज तक का सफर तय कर चुके थे और अब उसके दोनों मध्य्म आकार के मस्त चुँचियो पे फिसल रहा था।
चाची अब पहले से ज्यादा मेरे कैद से निकलने का प्रयत्न कर रही थी। अब वो पहले से ज्यादा छटपटाने लगी थी लेकिन मेरे ऊपर एक अलग तरह का भूत सवार था। चाची के हाथों से लगातार मेरे सीने पे होती ज़ोर-आजमाइश से मेरे सीने में हल्का-हल्का दर्द भी होने लगा था, लेकिन बिना दर्द की परवाह किये मेरे हाथ उसके चुस्त चुँचियो को अपने हथेली में जकड चुके थे।
उफ़्फ़.. क्या सख्त और मुलायम थे उसके चुंचियाँ.. बिल्कुल संतरे की तरह मुलायम कठोरता लिए हुए। मै उसके चुँचियो को मुट्ठी में लिए दबाये जा रहा था.. चाची मेरे नीचे छटपटा रही थी.. शायद मजे में या मेरे कैद से छूटने के लिए लेकिन उस लड़ाई में उसका टखना बार-बार मेरे अकड़े हुए लौड़े से टकड़ा रहा था।
मैं चाची के गर्दन के मांस को अपने होंठो में लेके चूसने लगा और नीचे मेरी अँगुलियों ने उसके निप्पल को ढूंढ़ के उसे मरोड़ डाला। चाची सीत्कार उठी.. उसके फुसफुसाहट मेरे कानों में उभड़े.. “स्सीsss.. आह.. आप पागल हो गए है.. प्लीज़ छोड़िये मुझे.. सुबह मै बहक गयी थी इसका ये मतलब नहीं की आप मेरे साथ.. आह.. कुछ भी कर लेंगे.. गलती हो गयी थी मुझसे.. आह.. दर्द हो रहा है छोड़िये मुझे.. स्सस्सस्सीss.. बेटे सामान हैहहह.. आप मेरे..”
उस समय मै कुछ भी सुनने के मूड में नहीं था.. वासना मेरे पे सनीचरा की तरह सवार था.. अगर वो मेरी माँ भी होती तो भी शायद मैं नहीं रुकता। मै चाची की बातों को अनसुनी करते हुए.. चुप-चाप बिना कुछ बोले उसके जवान बदन के उतार-चढ़ाव से खेल रहा था।
मेरा एक हाथ उसके चुँचियो को छोर चूका था और उसके सपाट पेट को सहलाने के बाद उसके उभड़े हुए चुतड़ो के गोलाइयों को हलके से मसल रहा था। चाची अब छूटने के लिए ज्यादा जोर लगा रही थी। मेरा चेहरा अभी भी उसके गर्दन के नीचे छुपा हुआ था और उसके गर्दन को कुरेदने के बाद मेरे जीभ अब उसके उरोजों के ऊपर के नंगे छाती वाले हिस्से को चाट रहे थे।
मेरे दूसरा हाथ उसके बायें तरफ वाली चुँची के निप्पल को ब्लाउज और ब्रा के ऊपर से चुटकी में पकड़ मसल रहे थे। मेरा दाहिना हाथ अब चाची के चुतड़ो से हट कर साड़ी के ऊपर से ही उसके तंदरुस्त जाँघ को सहलाये जा रहा था। मेरे हाथ अब उसके चुत से कुछ ही दूर थे और अगले ही पल मेरे मुट्ठी में उसकी चुत थी.. आज मेरी मासूम चाची ने कच्छी नहीं पहनी थी।
मैंने उस फुले हुए जवान को चुत मुट्ठी में लेके हौले से मसल दिया। एका-एक चाची ने अपने कमर को आगे फिर पीछे कर के एक जोरदार झटका दिया जिसके कारण मेरा हाथ उसके जिस्म से दूर हो गया.. मैंने झट से अपना चेहरा उसके गर्दन के पास से निकाला और उसके चेहरा पे देखा वहाँ मुझे गुस्सा दिखा.. ठीक बुआ की तरह वाला गुस्सा।
चाची सुबह के बाद से पहली बार मेरी आँखों में देख रही थी.. उसने मुझे घूरते हुए कहा.. “छोड़िये आप मुझे और जाने दीजिए यहाँ से.. नहीं तो मैं चिल्ला दूँगी और फिर नीचे जाके सबको बता दूँगी.. आप क्या कर रहे थे मेरे साथ..” ये उसी तरह के लफ्ज़ थे जो बुआ ने मुझे थोड़ी देर पहले नीचे कमरे में कहा था।
मेरे अंदर पहले से ही गुस्सा और अपमान भरा पड़ा था.. और हार की झुंझुलाहट मेरे दिल को डुबोये जा रही थी और फिर एक और अपमान और हार। मेरे अंदर एका-एक.. ना जाने कहाँ से एक वहशी ने सर उठाना सुरु किया। मुझे वहां चाची और बुआ एक साथ ही दिखी.. एक ही शरीर में। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने अपना हाथ बढ़ाया और सीधा चाची के कमर को पकड़ कर उन्हें उल्टा घुमा दिया, अब चाची की गोल-मटोल गाण्ड मेरे तरफ थी और उनका चेहरा दीवार की तरफ। मैंने एक हाथ से अपने पायजामे के अंदर से अपना अकड़ा लौड़ा निकाला और चाची के गाण्ड के दरार में साड़ी के ऊपर से ही धाँस के रगड़ना सुरु कर दिया। मेरा चेहरा उनके कानों के पास था..
मैं उनके कान के लवो को हलके से काटते हुए फुँफकारा.. “मादरचोद.. भोसड़ी वाली.. सबको बताएगी.. जा अब जा के बता तेरे बेटे सामान भतीजे ने तेरी गाण्ड मार ली..” चाची स्तब्ध थी की ये हो क्या रहा है। भौचक्का थी की ये मुझे क्या हो गया।
मेरा हाथ अब आगे आके उसके बुर पे था और मै साड़ी के ऊपर से ही उसके बुर को पागलो की तरह रगड़े जा रहा था.. और पीछे से मैंने धक्के लगाना स्टार्ट कर दिया था.. साड़ी के ऊपर से ही मैं धक्के लगाये जा रहा था। कुछ देर बाद चाची की फुसफुसाहट फिर गूंजी.. “प्लीज़ छोर दीजिए.. कोई आजायेगा तो क्या सोचेगा..”
अचंभित करने वाली बात ये थी की चाची इस बार खुद को छुड़ाने के लिए मुँह से बोले शब्द के अलावा कोई कोशिश नहीं कर रही थी.. ना हाथ मार रही थी ना पाँव.. यहाँ तक मुझे उनके साँसों में भारीपन का भी अहसास हुआ। मैं एक हाथ से लगातार चाची के बुर को रगड़े जा रहा था और मेरा दूसरा हाथ अब आगे से चाची के साड़ी को ऊपर उठाये जा रहा था।
मेरे हाथ अब उसके नग्न.. चिकने जाँघों पे थे.. और मै उन्हें सहला नहीं रहा था बल्कि मुट्ठी में दबोचे मसल रहा था.. खरोच रहा था। मेरा दूसरा हाथ अब बुर रगड़ाई छोर ऊपर की ओर सफर कर रहा था.. चाची के सपाट पेट को मुट्ठी में दबोच मैंने उसे पुरे दम से मसल दिया..
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मेरा हाथ रेंगते-रेंगते अब चाची के तने हुए चुंचियाँ पे था.. कुछ ही पलो में मैं अपने सगे चाचा की बीवी के चुँचियो को आंटा की तरह गूँथ रहा था। मै चाची के बदन के हर हिस्से को मसलना चाहता था.. उसे दर्द देना चाहता था.. शायद ये मेरे अंदर के गुस्से की देन थी की मैं चाची के साथ किसी जानवर की तरह पेश आ रहा था।
ब्लाउज और ब्रा के ऊपर से भी मै चाची के तन चुके निप्पल को महसूस कर सकता था। अब हालात ये थी की मेरा पूरी तरह कठोर हो चूका लण्ड चाची के गाण्ड के दरार में साड़ी के ऊपर से ही लगातार घीस रहा था। आगें के तरफ से मेरा दाहिना हाथ उसके साड़ी को ऊपर उठा के नग्न तंदरुस्त जांघो पे रगड़.. दबोच और खरोंच मारते जा रहा था।
मेरा बायां हाथ चाची के कसे हुए चुंचियों को बारी-बारी से कभी पूरी हथेली में दबोच कर बेदर्दी से मसल रहा था तो कभी ब्लाउज के उपर उभड़े उसके सख्त निप्पल को चुटकी में ले के मसल रहा था। चाची बोहोत जोर-जोर से साँसे ले रही थी लेकिन वो अपने मुँह से एक शब्द भी बाहर नहीं निकलने दे रही थी।
जब-जब मैं उसके जाँघों के चिकने गोश्त को मुट्ठी में पकड़ के मसलता था या उसकी सख्त चुँचियो को गूँथ देता था तो मुझे अपने लौड़े पे चाची के गोल-मटोल गाण्ड का दबाब बढ़ता हुआ महसूस होता था। मेरा बायां हाथ अभी उसकी चुंचियों के मर्दन में लगा था लेकिन मेरा दाहिना हाथ चाची के जांघो को भभोरते हुए उसकी चुत के ऊपर आ चुका था।
मुझे अपने हथेली पे चाची के छोटे काली झांटे चुभते हुए महसूस हो रहे थे। मैने चाची के छोटे-छोटे झांटो को चुटकी में पकड़ा और बेदर्दी से उसे उखाड़ने की कोशिश करने लगा, चाची ने एक जोर की सांस ली और मुझे अपने लौड़े पे उसके चूतड़ दबते हुए महसूस हुए। चाची कामुक हो रही थी.. और दूसरी तरफ मैं वासना और गुस्से के मिश्रण में जानवर बन चूका था।
अब मेरी अंगुलियां चाची के बुर के भगनासे(clit) को ढूंढ रही थी लेकिन चाची के दोनों जाँघे सटे हुए के कारण मेरी अंगुलियां वहां तक पहुँच नहीं पा रही थी। मैंने अपने बाये हाथ को चुँचियो से हटाया और पीछे ला के चाची के गाण्ड में हाथ घुसा के दोनों जांघो को फैलाने की कोशिश की लेकिन चाची सख्ती से अपना जांघो को जोड़े खड़ी रही।
मैंने एक दो बार और कोशिश की लेकिन असफल रहा। मेरा गुस्सा फिर से ऊपर चढ़ चूका था। मैंने अपने दाहिने हाथ के हथेली में चाची के बुर को दबोचते हुए उसके कान में गुस्से से फुसफुसाया.. “साली रण्डी.. पैर फैला वरना तेरा यहीं जबरदस्ती चोद दूँगा..”
चाची के मुँह से “आह” निकली और अचानक उसने अपना पैर फैला दिया और मेरा हाथ जो जबदरस्ती उसके जाँघों के बीच घुसने की कोशिश कर रहा था.. फिसलते और चाची के कसे हुए भोसड़े को रगड़ता उसके रसीली बुर के छेद पे आ गया। अचानक मेरे सामने सुबह का वो दृश्य आ गया जब मैंने चाची पे अधिकार जमाते हुए उसे चुत दिखाने को बोला था..
और जब मैंने कामुकता में उसे गाली दी थी उसके बाद चाची अति-कामुक हो के अपने चुत को रगड़ने लगी थी। कहीं चाची सबमिसिव(submissive) टाइप की औरत तो नहीं है जिन्हें अपमानित(humiliate) हो के.. वश में हो के चुदाई करने में मजा आता है। इस सोच ने मेरे अंदर भड़की वासना को प्रचण्ड कर दिया..
कुछ देर पहले मेरे अंदर ना जाने कहाँ से पैदा हुए जानवर को जंगली बना दिया। मेरे अंगुलियों के बीच चाची की भगनासा थी और मै उसे चुटकियों में पकडे अपने सारी ताकत से मसले जा रहा था.. मेरे दूसरे हाथ ने पीछे आके चाची के गोल-मटोल.. कसे हुए गाण्ड को बेपर्दा कर दिया था।
अब मैं चाची के कसे हुए तंग नंगी गाण्ड के दरार में अपना लौड़ा रगड़ रहा था.. मेरे कठोर लौड़े का सुपाड़ा चाची के गाण्ड के चिप-चिपे छेद से रगड़ खता हुआ उसके रस उगलती चुत के छेद पे धक्के मार रहा था। चाची अब कामुकता में पूरी तरह डूब चुकी थी.. उसके मुँह से लगातार सीत्कार निकल रही थी। पर मैं उसे दर्द देना चाहता था.. मेरे अंदर का जानवर उसे दर्द में देखना चाहता था।
मैंने अब उसके कड़क और पूरी तरह गीली हो चुकी भगनासा(clit) को छोरा और और अपनी बीच वाली ऊँगली को उसके बुर के फड़फड़ाती हुई छेद में पेलता चला गया.. उफ़्फ़ काफी टाइट छेद थी.. सच में इसकी जवानी को अभी निचोड़ा जाना बाकी था.. चाची के मुँह से एक सन्तुष्ट “ओह्ह” निकली और उसके हाथ के नाख़ून मेरे हाथ में धँसते चले गये..
उसने अपना गाण्ड पुरे जोर से मेरे लौड़े पे दबा दिया जैसे की वो मेरे लौड़े को या तो तोड़ देना चाहती हो या अपने गाण्ड के छेद में घुसा लेना चाहती हो। अब तक चाची के दहकती चुत में मै दो ऊँगली घुसा चूका था। मेरा दूसरा हाथ अब उसके होंठो को अँगूठे से मसल रहा था.. क्या रसीले होंठ थे..
मैंने उन होंठो को मसलते हुए अपनी एक ऊँगली चाची के मुंह के अंदर घुसा दीया.. और एक पल में चाची ने मेरे ऊँगली को अपने जीभ और तालु के बीच लपेट चूसना चालू कर दिया.. उफ़्फ़ इस औरत के अंदर बोहोत आग भरी पड़ी है। चाची की कम चुदी चुत के लपलपाती छेद में फंसी मेरी ऊँगली गति पकड़ चुकी थी..
और उसके मखमली गाण्ड के तंग दरारों में रगड़ खाता मेरा लौड़ा भी अपनी गति पा चूका था। मैंने चाची के मुँह के अंदर फँसी ऊँगली बाहर निकाली और उसके चिकने गालो पे एक जोर का तमाचा जड़ दिया.. चाची चिहुँक पड़ी.. और उसे सँभलने का वक़्त दिए बिना मैंने दूसरा चांटा भी रसीद कर दिया.. फिर लगातार चांटा पे चांटा और मेरे मुँह से निकलने वाले बोल थे..
“रण्डी तू नखड़े दिखा रही थी.. साली तू एक छिनार औरत है जो अपने ही बेटे सामान लड़के से गर्म हो के मजे ले रही हो.. रण्डी.. मादरचोद..” अगले ही पल मेरे मुँह से एक जोरदार “आह” निकली.. क्युकी अचानक चाची ने अपने गाण्ड को किसी पागल की तरह आगे-पीछे करना स्टार्ट कर दिया था..
मेरा लौड़ा प्रचण्ड तरीके से उसके तंग दरारों में रगड़ खा रहा था.. चाची ने अपनी कामुकता की सीमा को लाँघ दिया था.. सच में वो एक रखैल टाइप औरत थी। अब उसकी चुत में ऊँगली रख पाना मुश्किल था और मेरी ऊँगली फिसलती हुई बाहर निकल गयी.. चाची अपने कमर को हिला कर लगातार मेरे लौड़े पे अपने गाण्ड से धक्के मारे जा रही थी..
कभी-कभी मेरे लौड़े का सुपाड़ा उसकी बूर की छेद को भेद कर हल्का अंदर भी घुस जा रहा था। मैंने चाची के चुत को फिर से मुट्ठी में दबोचा और दूसरे हाथ से उसकी कसी हुई चुंचियाँ को निचोड़ने लगा.. मै भी अपना कमर हिला कर उसके धक्के लगाने की गति की बराबरी करने लगा था।
इधर मेरे हथेली ने चाची के चुत पे अपनी पकड़ ढीली की और उसकी आग उगलती चुत को नीचे से थप-थपाने लगा.. मै अपने टट्टे में वीर्य को उबलते हुए महसूस कर सकता था.. मेरी वासना अब उफ़ान पे थी.. और ना जाने कब मैने चाची के चुत को थप-थपाने के बदले उसकी प्यासी बूर पे थप्पड़ मारने लगा..
जैसे-जैसे मेरे टट्टे उबल रहे थे वैसे-वैसे मेरी चुत पे थप्पड़ मारने की गति बढ़ती जा रही थी.. मै कामुकता में जलने लगा था.. मेरे अंदर का गुस्सा अब लावा बन के निकलने वाला था.. मेरे मुँह से गंदे शब्दो की बारिश हो रही थी.. .”आह.. रण्डी.. तू रखैल बन के रहेगी मेरी.. छिनार औरत तू पर्सनल रण्डी है मेरी.. मेरे चाचा की बीवी मेरी रखैल बन के रहेगी.. तुझे मै जब चाहूं तब पटक के चोदुंगा छिनार.. आह”.
चाची ने अपने कमर की गति और तेज कर दी.. जैसे वो आज मेरे लौड़े को घीस-घीस कर तबाह कर देगी और उसके के मुंह से कामुक फुसफुसाहट निकली.. “आह.. माँहह.. और तेज चांटे मारो.. ओह्ह.. अपनी रखैल के स्सस्सी.. चुत पे.. हहहह.. उफ़्फ़..”
ये कहने के साथ ही वो थोड़ा और झुकी और तेजी के साथ उसका हाथ नीचे से.. उसके दोनों टांगो के बीच से निकल कर मेरे टट्टो पे आगये.. और बिना एक पल देरी किये.. उसने उन्हें मुट्ठी में दबोच हलके से मसल दिया.. फिर वो उसे नाखूनों से खरोचने लगी.. उसकी इस कामुक हरकत से मेरे गाण्ड के छेद में एक सुरसुरी सी दौड़ गयी.. मेरे लिए रुकना मुश्किल होने लगा।
मेरा लण्ड और भी तेजी से लगातार चाची के चिकने पिछवाड़े के दरारों में फिसलता कभी उसके भगनासा पे रगड़ खा रहा था तो कभी हल्का सा उसके पूरी तरह गीली छेद में घुस जा रहा था। मेरे हाथ अब उसके प्यासी चुत पे चटा-चट चांटे बरसा रहे थे.. मै अब कभी भी वीर्य की बारिश कर सकता था..
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मेरा दूसरा हाथ उसके चुँचियो को छोर उसके सख्त चुताड़ो को नाख़ून से खरोंच रहे थे.. और तभी मेरी नजर उसके फैले हुए चुतड़ो के फांक के बीच पड़ी.. उफ़्फ़.. बाल रहित चाची की भुड़ी.. चिकनी और छोटी सी गाण्ड की छेद.. फूल-सिकुड़ रही थी.. मेरी ऊँगली ने ना जाने कैसे खुद ही उसके गाण्ड के छेद तक का सफर तय कर लिया और अगले ही पल बिना किसी चिकनाई के मैं अपनी बीच वाली ऊँगली एक झटके में उसकी सिकुड़ती गाण्ड के छेद में पेलता चला गया.. मजे में मेरे मुंह से एक जोरदार गाली निकली.. “साली रण्डी.. आह”.
और इसके ही साथ चाची बुरी तरह काँपने लगी.. और मेरा सुपाड़ा फिसलता हुआ उसके चुत के छेद को हल्का सा फैला ज़रा सा अंदर दाखिल हुआ और मैंने अपने गाण्ड के छेद को सिकोड़ते हुए वीर्य की बारिश चाची के छिनार चुत में कर दी.. चाची के चुत से एक कराह निकली.. “हाय.. माँहह.. मै गयी.. उफ़्फ़..” मेरी ऊँगली उसके गाण्ड के छेद में जड़ तक धंस चुकी थी.. मेरी हथेली ने उसके चुत को मुट्ठी में ले के बुरी तरह भींच दिया था.. चाची की कमर और गाण्ड शांत पड़ गयी थी और साथ ही मेरे लण्ड ने भी वीर्य उगलना बंद कर दिया था.