Beautiful Pussy Fuck
पड़ोसन आंटी चुदाई कहानी न जाने कब से यह मेरे ख्याल में बस गया था मुझे याद तक नहीं, लेकिन अब 35 साल की उम्र में उस ख्वाहिश को पूरा करने की मैंने ठान ली थी। जीवन तो बस एक बार मिला है तो उसमें ही अपनी चाहतों और आरजू को पूरा करना है। क्या इच्छा थी यह तो बताना मैं भूल ही गया। तो सुनिए। मेरी इच्छा थी कि दुनिया की हर तरह की चूत और चूची का मज़ा लूँ! Beautiful Pussy Fuck
गोरी बुर, सांवली बुर, काली बुर, जापानी बुर, चाइनीज़ बुर! यूँ समझ लीजिये कि हर तरह की बुर का स्वाद चखना चाहता था। हर तरह की चूत के अंदर अपने लंड को डालना चाहता था। लेकिन मेरी शुरुआत तो देशी चूत से हुई थी, उस समय मैं सिर्फ बाईस साल का था। मेरे पड़ोस में एक महिला रहती थी, उनका नाम था गरिमा और उन्हें मैं गरिमा आंटी कहता था।
गरिमा आंटी की उम्र 45-50 के बीच रही होगी, सांवले रंग की और लम्बे लम्बे रेशमी बाल के अलावा उनके चूतड़ काफी बड़े थे, चूचियों का आकार भी तरबूज के बराबर लगता था। मैं अक्सर गरिमा आंटी का नाम लेकर हस्तमैथुन करता था। एक शाम को मैं अपना कमरा बंद करके के मूठ मार रहा था। मैं जोर जोर से अपने आप बोले जा रहा था-
यह रही गरिमा आंटी की चूत और मेरा लंड… आहा ओहो ! आंटी चूत में ले ले मेरा लंड… यह गया तेरी बुर में मेरा लौड़ा पूरा सात इंच… चाची का चूची.. हाय हाय.. चोद लिया… गरिमा.. पेलने दे न… क्या चूत है…! गरिमा चाची का क्या गांड है…!
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और इसी के साथ मेरा लंड झड़ गया। फिर बेल बजी…मैंने दरवाज़ा खोला तो सामने गरिमा आंटी खड़ी थी, लाल रंग की साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज में, गुस्से से लाल! उन्होंने अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लिया और फिर बोली- क्यों बे हरामी! क्या बोल रहा था? गन्दी गन्दी बात करता है मेरे बारे में? मेरा चूत लेगा ? देखी है मेरी चूत तूने…? है दम तेरी गांड में इतनी ?
और फिर आंटी ने अपनी साड़ी उठा दी। नीचे कोई पैंटी-वैन्टी नहीं थी, दो सुडौल जांघों के बीच एक शानदार चूत थी, बिलकुल तराशी हुई बिल्कुल गोरी-चिट्टी, साफ़, एक भी बाल या झांट का नामो-निशान नहीं, बुर की दरार बिल्कुल चिपकी हुई !
ऐसा मालूम होता था जैसे गुलाब की दो पंखुड़ियाँ आपस में लिपटी हुई हों.. हे भगवान! इतनी सुंदर चूत, इतनी रसीली बुर, इतनी चिकनी योनि! भग्नासा करीब १ इंच लम्बी होगी। वैसे तो मैंने छुप छुप कर स्कूल के बाथरूम में सौ से अधिक चूत के दर्शन किए होंगे. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैडम कामिनी की गोरी और रेशमी झांट वाली बुर से लेकर मैडम शोभा की हाथी के जैसी फैली हुई चूत! मेरी क्लास की शिवांगी की कुंवारी चूत और मीता के काली किन्तु रसदार चूत। लेकिन ऐसा सुंदर चूत तो पहली बार देखी थी।
आंटी, आपकी चूत तो अति सुंदर है, मैं इसकी पूजा करना चाहता हूँ.. यानि चूत पूजा! मैं एकदम से बोल पड़ा।
“ठीक है!” यह कह कर आंटी सामने वाले सोफ़े पर टांगें फैला कर बैठ गई। अब उनकी बुर के अंदर का गुलाबी और गीला हिस्सा भी दिख रहा था। मैं पूजा की थाली लेकर आया, सबसे पहले सिन्दूर से आंटी की बुर का तिलक किया, फिर फूल चढ़ाए उनकी चूत पर, उसके बाद मैंने एक लोटा जल चढ़ाया। अंत में दो अगरबत्ती जला कर बुर में खोंस दी और फिर हाथ जोड़ कर बुर देवी की जय! चूत देवी की जय! कहने लगा..
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आंटी बोली- रुको मुझे मूतना है !
“तो मूतिये आंटी जी! यह तो मेरे लिए प्रसाद है, चूतामृत यानि बुर का अमृत!”
आंटी खड़ी हो कर मूतने लगी, मैं झुक कर उनका मूत पीने लगा। मूत से मेरा चेहरा भीग गया था। उसके बाद आंटी की आज्ञा से मैंने उनकी योनि का स्वाद चखा। उनकी चिकनी चूत को पहले चाटने लगा और फिर जीभ से अंदर का नमकीन पानी पीने लगा.. चिप चिपा और नमकीन.. आंटी सिसकारियाँ लेती रही और मैं उनकी बूर को चूसता रहा जैसे कोई लॉलीपोप हो..
मैं आनंद-विभोर होकर कहते जा रहा था- वाह रसगुल्ले सरीखी बुर! फिर मैंने सम्भोग की इज़ाज़त मांगी!
आंटी ने कहा- चोद ले.. बुर.. गांड दोनों.. लेकिन ध्यान से!
मैं अपने लंड को हाथ में थाम कर बुर पर रगड़ने लगा.. और वोह सिसकारने लगी- डाल दे बेटा अपनी आंटी की चूत में अपना लंड !
अभी लो आंटी ! यह कह कर मैंने अपना लंड घुसा दिया और घुच घुच करके चोदने लगा।
“और जोर से चोद..”
“लो आंटी! मेरा लंड लो.. अब गांड की बारी !”
कभी गांड और कभी बुर करते हुए मैं आंटी को चोदता रहा करीब तीन घंटे तक…
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आंटी साथ में गाना गा रही थी :
तेरा लंड मेरी बुर…
अंदर उसके डालो ज़रूर…
चोदो चोदो, जोर से चोदो…
अपने लंड से बुर को खोदो…
गांड में भी इसे घुसा दो…
फिर अपना धात गिरा दो…
इस गाने के साथ आंटी घोड़ी बन चुकी थी और और मैं खड़ा होकर पीछे चोद रहा था। मेरा लंड चोद चोद कर लाल हो चुका था.. नौ इंच लम्बे और मोटे लंड की हर नस दिख रही थी। मेरा लंड आंटी की चूत के रस में गीला हो कर चमक रहा था।
जोर लगा के हईसा..
चोदो मुझ को अईसा…
बुर मेरी फट जाये…
गांड मेरी थर्राए…
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आंटी ने नया गाना शुरू कर दिया। मैं भी नये जोश के साथ आंटी की तरबूज जैसे चूचियों को दबाते हुए और तेज़ी से बुर को चोदने लगा.. बीच बीच में गांड में भी लंड डाल देता… और आंटी चिहुंक जाती.. चुदाई करते हुए रात के ग्यारह बज चुके थे और सन्नाटे में घपच-घपच और घुच-घुच की आवाज़ आ रही थी.. यह चुदने की आवाज़ थी… यह आवाज़ योनि और लिंग के संगम की थी.. यह आवाज़ एक संगीत तरह मेरे कानों में गूँज रही थी और मैंने अपने लंड की गति बढ़ा दी। आंटी ख़ुशी के मारे जोर जोर से चिल्लाने लगी- चोदो… चोदो… राजा ! चूत मेरी चोदो…