Pink Wet Pussy
सभी दोस्तों को मेरा सादर प्रणाम और प्यारी भाभियों और कुंवारी !! चूत वालियों को मेरे लंड का प्रणाम. मैं आपको अपने जीवन की रास लीला सुनाने जा रहा हूँ । दोस्तों मैं चन्दन इंडिया के दिल मध्य प्रदेश के सागर का रहने वाला हूँ. मेरी उमर ३८ साल रंग गोरा मजबूत कद-काठी और ६”४” लम्बा हूँ. मुझे मजलूम की मदद करने मैं बड़ी राहत मिलती है और नर्म दिल हूँ। Pink Wet Pussy
जैसा की अक्सर कहानियो में होता है कि कहानी का कैरेक्टर के ऑफिस की दोस्त या पड़ोसन या रिश्तेदार वाली कोई बुर (जिसको मैं प्यार से मुनिया कहता हूँ) मिल जाती है उसे तुरन्त चोदने लगता है, पर हकीकत इससे कही अधिक जुदा और कड़वी होती है एक चूत चोदने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है ऐसी एक कोशिश की यह कहानी है।
हमारा शहर सागर प्राकृतिक सुन्दरता और हिल्स से घिरा हुआ है। यह एक बहुत ही सुंदर लैक है और यहां के लोग बहुत ही संतुष्ट और सीधे सादे हैं। पर यहां की महिलायें बहुत चुदक्कड़ है यह मैंने बहुत बाद में जाना। मैं क्रिकेट और फुटबॉल का नेशनल प्लेयर रहा हूँ इस कारण से अपने एरिया में बहुत मशहूर था और सुंदर कद काठी और रूप रंग गोरा होने के कारण हैंडसम भी दिखता था.
लेकिन मुझे अपने लन्ड की प्यास किसी न किसी के बारे मैं सोच कर और अपनी मुट्ठ मार कर या अपना तकिये को चोदकर बुझानी पड़ती थी मैं अपनी हेल्पिंग हब्बिट्स के कारण भी बहुत मशहूर था और सभी मुझे प्यार भी इसीलिए बहुत करते थे।
मेरे घर के सामने ग्राउंड है जहा मैं खेलते हुए बड़ा हुआ और अपने सभी सपने सन्जोए। एक दिन हम कुछ दोस्त मोर्निंग एक्सर्साईज करके आ रहे थे तभी सामने से आती हुई ३ लड़कियों पर नज़र पड़ी। उनमे से दो को मैं चेहरे से तो जानता था कि वो मेरे घर के आस पास रहती है।
तीसरी से बिल्कुल अनजान था और वो कोई ख़ास भी नहीं थी. हम दोस्त अपनी बातों में मस्त दौड़ लगाते हुए जैसे ही उनके पास पहुचे तो बीच वाली लड़की मेरे को बहुत पसंद आई. मै सिर्फ़ बनियान और नेक्कर मैं था तो मेरे सारे मस्सल्स दिखाई दे रहे थे जिससे शायद वो थोडी इम्प्रेस हुई उसने भी मुझे भरपूर नज़र देखा.
मेरा ध्यान उस लड़की पर लगा होने से मैं नीचे पत्थर नही देख पाया और ठोकर खाकर गिर पड़ा वो तीनो लड़कियां बहुत जोरों से हंस पड़ी और भाग गई. मुझे घुटनों और सर में बहुत चोट लगी थी काफ़ी खून बहा था इस कारण मै कुछ दिन अपनी मोर्निंग एक्सर्साईज के लिए दोस्तों के पास नही जा पाया.
ठंडों का मौसम चल रहा था हमारे मोहल्ले मैं एक शादी थी. मेरी हर किसी से अच्छी पटती थी इसलिए मेरे बहुत सारे दोस्त हुआ करते थे. उस शादी में मैं अपने ऊपर एक जिम्मेदार पड़ोसी की भूमिका निभाते हुए बहुत काम कर रहा था.
और मै जयादातर महिलाओं के आस पास मंडराता कि शायद कोई पट जाए या कोई लिंक मिल जाए मुनिया रानी को चोदने या दर्शन करने के। पर किस्मत ख़राब. कोई नही मिली. मुझ से किसी खनकती आवाज ने कहा ” सुनिए आप तो बहुत अच्छे लग रहे है आप और बहुत मेहनत भी कर रहे है यहां.”
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मैंने जैसे ही मुड़कर देखा तो वो ही बीच वाली लड़की जिसको देखकर मै गिरा था और जिसके कारण मेरे सर पर अभी भी पट्टी बंधी हुई थी जिसमे ३ टाँके लगे हुए थे और घुटने का भी हाल कुछ अच्छा नही था… मैंने देखा वो खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैंने कहा “आ आप ….. आपने मेरे से कुछ कहा.”
” नही यहां ऐसे बहुत सारे लोग है जो मेरे को देख कर रोड पर गिरकर अपना सर फ़ुड़वा बैठे” वो अपनी सहेलियों से घिरी चहकती हुई बोली।
” आप लोग तो हंस कर भाग गई…. मेरे सर और पैर दोनों मैं बहुत चोट लगी थी” मैंने कहा.
मेरे ही मोहल्ले की एक लड़की कोमल जिसे मै पहले पटाने की कोशि्श कर चुका था पर वो पटी नहीं थी बल्कि मेरी उससे लडाई हो गई थी. कोमल ने मेरे से मुह चिड़ाते हुए कहा इनको ” च्च्च च्च छक … अरे!! अरे!! बेचारा….. चन्दन भैया अभी तक कोई मिली नही तो अब लड़कियों को देख कर सड़कों पर गिरने लगे ” और खिल खिला कर हंस दी…
मैंने कोमल के कई सपने देखे मै कोमल को अपनी गाड़ी पर बिठाकर कही ले जा रहा हूँ उसके दूध मेरी पीठ से छु रहे है वो मेरे लंड को पकड़ कर मोटरसाईकिल पर पीछे बैठी है उसके बूब्स टच होने से मेरा लंड खड़ा हो जाता है तो मै धामोनी रोड के जंगल मै गाड़ी ले जाता हूँ.
जहा उसको गाड़ी से उतार कर अपने गले से लिपटा लेता हूँ उसके लिप्स, गर्दन बूब्स पर किस कर रहा हूँ और उसके मम्मे दबा रहा हूँ साथ ही साथ उसकी मुनिया(बुर) को भी मसल रहा हूँ वो पहले तो न नुकर करती है लेकिन जब मै उसकी मुनिया और बूब्स उसके कपडों के ऊपर से किस करता हूँ और उसकी सलवार खोल कर उसकी पैंटी के ऊपर से ही उसकी पेशाब को चाटने लगा.
कोमल भी सीई हीई येः क्या कर रहे हो…. मैं जल रही हूँ मुझे कुछ हो रहा है…. कह रही है और मै कोमल को वहीं झाडियों मैं जमीन पर लिटाकर चोदने लगता हूं। पहले कोमल का पानी छूटता है फिर मेरा.. जब ख्वाब पूरा हुआ तो देखा लंड मेरा मेरे हाथ मैं झड़ चुका है और मुट्ठी मारने से लंड लाल हो गया है.
मुझे बहुत बुरा लगा कोमल के तानों से मेरी बे-इज्ज़ती हुई थी वहां से मैंने इन दोनों को सबक सिखाने का ठान लिया. मैंने गुलाब जामुन का शीरा उसकी बैठने वाली सीट पर लगा दिया जिससे उसकी सफ़ेद ड्रेस ख़राब हो गई और वो ऐन मौके पर गन्दी ड्रेस पहने यहां वहां घूमती रही और लोग उसे कुछ न कुछ कहते रहे. पर उसका चेहरा ज्यों का त्यों था..
मैंने कोमल को उसके हाल पर छोड़ कर अपने टारगेट पर कन्स्न्ट्रेट करना उचित समझा. मै उससे जान पहचान करना चाहता था जब से उसको देखा था उसके भी नाम की कई मूठ मारी जा चुकी थी और तकिये का कोना चोदा जा चुका था.. मेरा तकिये के कोने मेरे स्पेर्म्स के कारण कड़क होना शुरू हो गई थे. पर कोई लड़की अभी तक पटी नहीं थी.
इसबार मैंने हिम्मत करके उसका नाम पूछ लिया. जहा वो खाना खा रही थी वहीं चला गया और पूछा “आप क्या लेंगी और… कुछ लाऊँ स्वीट्स या स्पेशल आइटम आपके लिए… भीड़ बहुत थी उस शादी मैं वो मेरे पास आ गई और चुपचाप खड़ी होकर खाना खाने लगी.
मैंने उसको पूछा “आप इस ड्रेस मैं बहुत सुंदर लग रही है.. मेरा नाम चन्दन है आपका नाम जान सकता हूँ…” फिर भी चुप रही वो और एक बार बड़े तीखे नैन करके देखा. हलके से मुस्कुराते हुए बोली” अभी नही सिर्फ़ हाल चाल जानना था सो जान लिया.”
मैंने उसका नाम वहीँ उसकी सहेलियों से पता कर लिया और उसका एड्रेस भी पता कर लिया था. उसका नाम तृप्ति था. वो मेरे घर के ही पास रहती थी. पंजाबी फॅमिली की लड़की थी. सिंपल सोबर छरहरी दिखती थी. उसकी लम्बाई मेरे लायक फिट थी उसके बूब्स थोड़े छोटे ३२ के करीब होंगे और पतला छरहरा बदन तीखे नैन-नक्श थे उसके.
वो मेरे मन को बहुत भा गई थी. शादी से लौट के मैंने उस रात तृप्ति के नाम के कई बार मुट्ठ मारी. मै उसको पटाने का बहुत अवसर खोजा करता था वो मेरे घर के सामने से रोज निकलती थी पर हम बात नही कर पाते थे. ऐसा होते होते करीबन १ साल बीत गया.
एक बार मै दिल्ली जा रहा था ट्रेन से. स्टेशन पर गाड़ी आने मैं कुछ देर बाकी थी शादियों का सीज़न चल रहा था काफ़ी भीड़ थी. मेरा रिज़र्वेशन स्लीपर में था. तभी मुझे तृप्ति दिखी, साथ में उसका भाई और सभी फॅमिली मेम्बेर्स भी थे। उसके भाई से मेरी जान पहचान थी सो हम दोनों बात करने लगे. मैंने पूछा “कहा जा रहे हो” तो बोले “मौसी के यहां शादी है दिल्ली मैं वहीँ जा रहे है”.
मुझ से पूछा ” चन्दन जी आप कहा जा रहे हो.”
मैंने कहा ” दिल्ली जा रहा हूँ थोड़ा काम है और एक दोस्त की शादी भी अटेण्ड करनी है.”
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इतने में ट्रेन आने का अनौंसमेंट हो चुका था। उनके साथ बहुत सामान था, मेरे साथ सिर्फ़ एक एयर बैग था उन्होंने मेरे से सामान गाड़ी में चढाने की रेकुएस्ट करी गाड़ी प्लेटफोर्म पर आ चुकी थी यात्री इधर उधर अपनी सीट तलाशने के लिए बेतहाशा भाग रहे थे बहुत भीड़ थी.
तृप्ति के भाई ने बताया की इसी कोच में चढना है तो हम फटाफट उनका सामान चढाने मैं बीजी हो गए. उनका सामान गाड़ी के अंदर करके उनकी सीट्स पर सामान एडजस्ट करने लगा मैंने अपना बैग भी उन्ही की सीट पर रख दिया था मुझे अपनी सीट पर जाने की कोई हड़बड़ी नही थी क्योंकि बीना जंक्शन तक तो एक्सप्रेस मैं अपनी सीट का रिज़र्वेशन तो भूल जाना ही बेहतर होता है.
क्योंकि डेली पैसेन्जर्स भी बहुत ट्रेवल करते है इस ट्रेन से सो मै उनका सामान एडजस्ट करता रहा. गाड़ी सागर स्टेशन से रवाना हो चुकी थी. मै पसीने मैं तरबतर हो गया था. अब तक गाड़ी ने अच्छी खासी स्पीड पकड़ ली थी. तृप्ति की पूरी फॅमिली सेट हो चुकी थी और उनका सामान भी.
गाड़ी बीना 9 बजे रात को पहुचती थी और फिर वहा से दूसरी गोंडवाना मैं जुड़ कर दिल्ली जाती थी. इसलिए बीना मैं भीड़ कम हो जाती है. मै सबका सामान सेट करके थोड़ा चैन की साँस लेने कम्पार्ट्मेन्ट के गेट पर आ गया फिर साथ खड़े एक मुसाफिर से पूछा “यह कौन सा कोच है.”
उसने घमंडी सा रिप्लाई करते हुए कहा एस ४…. तुम्हें कौन सो छाने ( आपको कौन सा कोच चाहिए)” “अरे गुरु जोई चाने थो …. जौन मैं हम ठाडे है ….. (बुन्देलखंडी) (यही चाहिए था जिसमे हम खड़े है)” मैंने अपनी टिकेट पर सीट नम्बर और कोच देखा तो यही कोच था जिसमे तृप्ति थी बस मेरी बर्थ गेट के बगल वाली सबसे ऊपर की बर्थ थी.
बीना मैं मैंने हल्का सा नाश्ता किया और घूमने फिरने लगा. मुझे अपने बैग का बिल्कुल भी ख्याल नही था. बिना से गाड़ी चली तो ठण्ड थोडी बढ गई थी मुझे अपने बैग का ख्याल आया. मै उनकी सीट के पास गया तो मैंने “पूछा मेरा बैग कहा रख दिया.”
तृप्ति की कजिन बोली ” आप यहां कोई बैग नही छोड़ गए आप तो हमारा सामान चढवा रहे थे उस समय आपके पास कोई बैग नही था” जबकि मुझे ख्याल था की मैंने बैग तृप्ति की सीट पर रखा था. वो लोग बोली की आपका बैग सागर मैं ही छूट गया लगता है.
मैंने कहा कोई बात नही. उन्होंने पूछा कि आपकी कौन सी बर्थ है मैंने कहा इसी कोच मैं लास्ट वाली. तृप्ति की मम्मी बोली “बेटा अब जो हो गया तो हो गया जाने दो ठण्ड बहुत हो रही है ऐसा करो मेरे पास एक कम्बल एक्स्ट्रा है वो तुम ले लो.”
मैंने कहा “जी कोई बात नहीं मै मैनेज कर लूँगा.”
” ऐसे कैसे मनेज कर लोगे यहां कोई मार्केट या घर थोड़े ही किसी का जो तुमको मिल जाएगा ठण्ड बहुत है ले लो” तृप्ति की मम्मी ने कहा.
“मुझे नींद वैसे भी नहीं आना है रात तो ऐसे ही आंखों मैं ही कट जायेगी..” मैंने तृप्ति की ऑर देखते हुए कहा. तृप्ति बुरा सा मुह बनके दूसरे तरफ़ देखने लगी.
ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर दौडी जा रही थी. मुझे ठण्ड भी लग रही थी तभी तृप्ति की मम्मी ने कम्बल निकालना शुरू किया तो तृप्ति ने पहली बार बोला. रुको मम्मी मै अपना कम्बल दे देती हूँ और मै वो वाला ओढ लूंगी. तृप्ति ने अपना कम्बल और बिछा हुआ चादर दोनों दे दी…..
मुझे बिन मांगे मुराद मिल गई क्योंकि तृप्ति के शरीर की खुशबू उस कम्बल और चादर मैं समां चुकी थी. मै फटाफट वो कम्बल लेकर अपनी सीट पर आ गया… मुझे नींद तो आने वाली नहीं थी आँखों मैं तृप्ति की मुनिया और उसका चेहरा घूम रहा था.
मै तृप्ति के कम्बल और चादर को सूंघ रहा था उसमे से काफी अच्छी सुंगंध आ रही थी. मैं तृप्ति का बदन अपने शरीर से लिपटा हुआ महसूस करने लगा और उसकी कल्पनों मैं खोने लगा.. तृप्ति और मै एक ही कम्बल मै नंगे लेटे हुए है मै तृप्ति के बूब्स चूस रहा हूँ और वो मेरे मस्त लौडे को खिला रही है.
मेरा लंड मै जवानी आने लगी थी जिसको मै अपने हाथ से सहलाते हुए आँखे बंद किए एक्सप्रेस की सीट पर लेटा हुआ तृप्ति के शरीर को महसूस कर रहा था. जैसे जैसे मेरे लंड मै उत्तेजना बढती जा रही थी वैसे वैसे मै तृप्ति के शरीर को अपने कम्बल मैं अपने साथ महसूस कर रहा था.
इधर ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार पर थी मै तृप्ति के बूब्स प्रेस करते हुए उसके क्लिटोरिस( चूत के दाने) को मसल रहा था और उसके लिप्स और गर्दन पर लिक करता हुआ तृप्ति के एक-एक निप्प्ल को बारी बारी चूस रहा था..
इधर तृप्ति भी कह रही थी अह्ह्ह हह सीईईई ओम्म्म मम् बहु्त अच्छा लग रहा है मै बहुत दिन से तुमको चाहती हूँ चन्दन……. जबसे तुमको देखा है मै रोज तुम्हारे नाम से अपनी चूत को ऊँगली या मोमबत्ती से …… चोदती हूं …उम् म ….. आ अ अ अ …. तुम्हारा लंड तुम्हारे जैसा मस्त है उम् म म म बिल्कुल लम्बा चोदा चन्दन …. उम् म म आ अअ अआ जल्दी से मेरी चूत में अपना लन्ड घुसा दो अब सहन नही हो रहा उ मम म आया अ अ अ.
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और मै एक झटके में तृप्ति की बुर मैं लंड पेल कर धक्के मारने लगा ट्रेन की रफ्तार की तरह के धक्के … फटाफट जैसे तृप्ति झड़ रही हो उम् मम् चन्दन ……मेरी बुर र … सी पेशाब…. निकलने वाली ही तुम्हारे लंड ने मुझे मूता दिया मेरी पहली चुदाई बड़ी जबरदस्त हुई उम् म आ अ अ जैसे ही तृप्ति झडी मैं भी झड़ने लगा.
मै भूल गया की मै ट्रेन मै हूँ और सपने मै तृप्ति को चौद्ते हुए मुट्ठ मार रहा हूँ और मैं भी आ आया…. हा ह तृप्ति… ऊऊ मजा आ गया मै कब से तुमको चोदना चाहता था कहते हुई झड़ने लगा और बहुत सारा पानी अपने रुमाल मैं निकाल कुछ तृप्ति के चादर मैं भी गिर गया.
जब मै शांत हुआ तो मेरे होश वापिस आए और मैंने देखा कि मै तो अकेला ट्रेन मै सफर कर रहा हूँ.. शुक्र है सभी साथी यात्री अपनी अपनी बेर्थ्स पर कम्बल ओढ कर सो रहे थी. ठण्ड बहुत तेज़ थी उस पर गेट के पास की बर्थ बहुत ठंडी लगती है अब मुझे पेशाब जाने के लिए उठाना था मै हाफ पेंट में सफर करता हूँ तो मुझे ज्यादा दिक्कत नही हुई..
अब तक रात के १.३० बज चुके थे मै जैसे ही नीचे उतरा तो मुझे लगा जैसे तृप्ति की सीट से किसी ने मुझे रुकने का संकेत किया हो तृप्ति की सीट के पास कोच के सभी यात्री गहरी नींद मै सो रहे थे और ट्रेन अभी १ घंटे कही रुकने वाली नही थी. मैंने देखा तृप्ति हाथ मै कुछ लिए आ रही है.. मेरे पास आकर बोली “बुधू तुम अपना बैग नहीं देख सके मुझे क्या संभालोगे” ठंड मैं ठिठुरते हो…”
मैंने उसकी बात पर ध्यान नही दिया उसने क्या मेसेज दे दिया मै रिप्लाई दिया ” मैं तुम्हारे कम्बल मै तुम्हारी खुशबू लेकर मस्त हो रहा था” मै अपने लंड के पानी से भरा रुमाल अपने हाथ मै लिए था. जिसको देख कर वो बोली “यह क्या है” मैंने कहा ” रुमाल है”.
“यह गीला क्यों है” तृप्ति ने पूछा ” ऐसे ही… तुम्हारे कारण … कह कर मैंने टाल दिया…..
तृप्ति ने पूछा “मेरे कारण कैसे……” फिर मुझे ध्यान आया की अभी अभी तृप्ति ने मुझे कुछ मेसेज दिया है….
मैंने तृप्ति को गेट के पास सटाया और उसकी आंखों मै देखते हुए उसको कहा तृप्ति आई लव यू और उसके लिप्स अपने लिप्स मैं भर लिए उसके मम्मे पर और गांड पर हाथ फेरने लगा. तृप्ति भी मेरा किस का जवाब दे रही थी…
मै तृप्ति के दूधों की दरार मै चूसने लगा था और बूब्स को दबा रहा था… मेरा लंड जो आधा बैठा था फ़िर से ताकत भरने लगा और उसके पेट से टकराने लगा.. तृप्ति मेरे से बोली आई लव यू टू.. इधर कोई देख लेगा जल्दी से इंटर कनेक्ट कोच की और इशारा कर के कहने लगी उस कोच के टॉयलेट मैं चलो…
हम दोनों टॉयलेट में घुस गए…. टॉयलेट को लाक करते ही मै उसको अपने से लिपटा लिया और पागलों की भाति चूमने लगा.. तृप्ति मै तुमसे बहुत प्यार करता हूँ और तुमको दिलो जान से चाहता हूँ… हां! मेरे राजा चन्दन मै भी तुम्हारे बिना पागल हो रही थी….. जानते हो यह प्रोग्राम कैसे बना दिल्ली जाने का, मेरे आने का.
मै तुम्हारे घर आई थी मम्मी के साथ तुम्हारी मम्मी और मेरी मम्मी संकट मोचन मन्दिर पर रामायण मंडल की मेंबर है.. तो उन्होंने बताया की चन्दन को परसों दिल्ली जाना ही तो वो नही जा सकती उनके साथ. तब मैंने भी मम्मी को प्रोग्राम बनने को कह दिया मैंने कहा यह कहानी छोड़ो अभी तो मजा लो.
मैंने उसको कमोड शीट पर बिठा दिया और उसके पैर से लेकर सर तक कपडों के ऊपर से ही चूसने चूमने लगा….. मैंने उसकी चूत पर हाथ रखा वो “सी ई ईई आई वहां नही वहां कुछ कुछ होता है जब भी तुमको देखती हु मेरी अंदर से पेशाब निकल जाती है वहां नही” ऐसा कहने लगी.
मैंने कहा “मुझे विश्वास नही होता मुझे दिखाओ ” ऐसा कहकर मै सलवार के ऊपर से उसकी अंदरूनी जांघ और बूब्स पर हाथ से मालिश करने लगा.
” हट बेशरम कभी देखते है लड़कियों की ऐसे वो शादी के बाद होता है ” तृप्ति बोली.
मैंने तृप्ति के बूब्स को सहलाते हुई और उसकी अंदरूनी जांघ पर चूमते हुए उसकी चूत की तरफ़ बदने लगा और कहा ” ठीक है जैसा तुम कहो पर मै कपड़े के ऊपर से तो चेक कर लूंगा”” तृप्ति भी अब गरमाने लगी थी उसकी चूत भी काफ़ी गर्म और गीली होने लगी थी.
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वो अपने दोनों पैरो को सिकोड़ कर मेरे को चूत तक पहुचने से रोक रही थी… ” प्लीज़ वहां नही मैं कंट्रोल नहीं कर पाऊँगी अपने आप, को कुछ हो जायेगा …. मेरी कजिन के भरोसे आई हूं उसको पटा रखा है मैंने। यदि कोई जाग गया तो उसकी भी मुसीबत हो जायेगी प्लीज़ मुझे जाने दो अब…”
मैंने तृप्ति के दोनों पैर अपनी ताकत से फैलाये और उसकी सलवार की सिलाई को फाड़कर उसकी पिंक पैंटी जो की उसके चूत के रस मैं सराबोर थी अपने मुह में ले लिया… उसकी पैंटी से पेशाब की मिलीजुली स्मेल के साथ उसके पानी का भी स्वाद मिल रहा था…..
मैंने पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत को जोरो से चूसना चालू कर दिया.. तृप्ति कहे जा रही थी” प्लीज़ नो ! मुझे जाने दो उई मा मैं कंट्रोल खो रही हूं उम् मम मम् मुझे जाने दो…. और.. जोर से चाटो मेरी पेशाब में कुछ हो रहा है बहुत अच्छा लग रहा है.
मेरे पेट में गुदगुदी हो रही है तृप्ति के निप्पल भी खड़े हो गए थी क्योंकि उसकी कुर्ती मै हाथ डाल कर उसके मम्मे मसल रहा था तृप्ति मेरे सर को अपनी चूत पर दबाये जा रही थी … उम्म मै तृप्ति की पैन्टी को चूत से साइड में खिसका के उसकी चूत को चूत की लम्बाई में चूस रहा था।
तृप्ति अपने दोनों पैर टॉयलेट के विण्डो पर टिकाये मुझसे अपनी चूत चटवा रही थी तृप्ति की बुर बिल्कुल कुंवारी थी मैंने अपनी ऊँगली उसकी बुर मैं घुसेदी बुर बहुत टाइट और गीली थी तृप्ति हलके हलके से करह रही थी ” उम्म्म आआ मर गई” मैं तृप्ति की बुर को ऊँगली से चोद रहा था और चूत के दाने को चाट और चूस रहा था..
सलवार पहने होने के कारण चूत चाटने मैं बहुत दिक्कत हो रही थी. तृप्ति की चूत झड़ने के कगार पर थी” आ आअ कुछ करो मेरा शरीर अकड़ रहा है पहले ऐसा कभी नही हुआ मेरी पेशाब निकलने वाली ही अपना मुह हटाओ और जोर से चूसो अपनी उंगली और घुसाओ आअ आ . उई माँ आअ अ….
उसकी जवानी का पहला झटका खाकर मेरे मुह को अपने चूत के अमृत से भरने लगी…… तृप्ति के मम्मे बहुत कड़क और फूल कर ३२ से ३४ होगये मालूम होते थे… इधर मेरी हालत ज्यादा ख़राब थी … मैंने तृप्ति को बोला प्लीज़ एक बार इसमे डाल लेने दो तृप्ति ने कहा ‘ अभी नही राजा मै तो ख़ुद तड़प रही हूँ तुम्हारी पेशाब अपनी पेशाब मैं घुसवानेको.. उम्म्म सुना ही बहुत मजा आता है और दर्द भी होता है.”
मैंने कहा “अपन दोनों के पेशाब के और भी नाम है ” “मुझे शर्म आती है वो बोलते हुई” और वो खड़ी होने लगी मै कमोड शीट पर बैठा और अपनी नेक्कर नीचे खिसका दी मेरा हल्लाबी लंड देखकर उसका मुह खुला का खुला रह गया.
“हाय राम… ममम म इतना बड़ा और मोटा……….तो मैंने कभी किसी का नही देखा.
मैंने पूछा “किसका देखा है तुमने… बताओ.”
मेरे भैया जब भाभी की चुदाई करते है तो मै अपने कमरे से झाँक कर देखती हूँ.. भाभी भइया के इससे अद्धे से भी कम साइज़ के पेशाब में चिल्लाती है फ़िर इस जैसी पेशाब मै तो मेरा क्या हाल करेगी… मै कभी नही घुसवाउंगी.”
मैंने कहा अछा “मत घुसवाना, पर अभी तो इसको शांत करो.”
“मै कैसे शांत करू” तृप्ति ने कहा.
मैंने कहा “टाइम बरबाद मत करो, जल्दी से इसे हाथ मैं लो और मेरी मुट्ठ मारो” मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लंड पर लगाया और आगे पीछे करवाया. पहले तो तृप्ति थोड़ा हिचकी फिर बोली ” तुम्हारा लंड बहुत शानदार है मेरी चूत में फ़िर से खुजली होने लगी है……हीई सीइई मैई इ इक्या करू ओम मम म फ्लिच्क कक्क.”
एक ही झटके मैं मेरा सुपाडा उसने किसी आइसक्रीम कोण की तरह चूस लिया मै जैसे स्वर्ग में पहुच गया मैंने उसके मुह में धक्के मारे मैंने कहा मेरा पानी निकलने वाला है. “मेरी चूत फ़िर से गरम हो गई है इसका कुछ करो सी ई इ आअ आ अ………..” तृप्ति सिसकारियां भर रही थी.
मैंने तृप्ति को फौरन कमोड शीट पर बैठाया और उसकी कुर्ती का कपड़ा उसके मुह मै भर दिया….. जिससे लंड घुसने पर वो चिल्लाये नही मैंने उसको समझाया भी थोड़ा दर्द होगा सहन करना .. मैंने उसकी दोनों टांगें फैली और चूत चाटी दो ऊँगली उसकी चूत मै भी घुसी उसकी चूत बहुत टाइट थी और बहुत गीली लिसलिसी सी गरम थी.
तृप्ति कसमसा रही थी ” हीई इ सी ई इ इ इ अब जल्दी करो.. मेरे बदन मैं करोड़ों चीटियाँ घूम रही है मेरी बुर को ना जाने क्या हो गया है” तृप्ति ने कुर्ती मुह से निकाल कर कहा. मैंने अपने लन्ड पर बहुत सारा थूक लगाया और कुछ उसकी गीली चूत मै भी लगाया जिससे उसकी चूत के लिसलिसे रस से मेरा थूक मिलकर और चूत को चिकना कर दे….
मैंने लंड हाथ मैं लेकर सुपाडा तृप्ति की चूत मैं ऊपर नीचे रगडा .. तृप्ति अपनी गांड उठा कर मेरे लंड का स्वागत कर रही थी अब वो बिना लंड डलवाए नही रह सकती थी. उसने मेरे लन्ड को पकड़ा और अपनी बुर पर टिकाया मैंने पहले थोड़ा सा सुपाडा अंदर कर उसको अंदर बाहर कर एडजस्ट किया….
मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे लण्ड को किसी जलते हुए चमड़े के क्लंप मैं कस दिया हो. इतनी टाइट बुर थी तृप्ति की मैंने थोडी और लंड अंदर पेला तृप्ति की मुह मै यदि कुर्ती ना घुसाई होती तो पूरे कम्पार्टमेंट के यात्री हमें चुदाई करते हुए पकड़ लेते….
तृप्ति मेरे मोटे लंड के कारन अपना सिर इधर उधर हिलाकर और अपनी आंखों से आंसू निकाल कर बता रही थी की उसको कितना दर्द हो रहा है… मैं थोडी देर रुक कर फाटक से एक गहरा और चूत फाड़ धक्का पेला जिससे तृप्ति की बुर की झिल्ली फटी और लौड़ा उसकी गहराई तक समां गया तृप्ति की तो हालत ख़राब हो गई थी..
मैंने थोड़ा रुक कर लंड बाहर खींचा तो उसके साथ खून भी बहर आया और फटा फट धक्के मारने लगा. तृप्ति की टाइट चूत के कारण मेरे गेंदों मै उबाल आना शुरू हो गया था.. मैंने मौके की नजाकत को ताड़ते हुए पहले लंड बाहर निकाला और गहरी साँस लेकर अपनी पोजीशन कंट्रोल करी और तृप्ति के मुह से कुर्ती हटी.
और फिर धीरे धीरे पूरा लंड घुसा कर शुरू मै हलके धक्के मारे फ़िर ताबड़ तोड़ धक्के लगाए. मै अपनी स्पीड एक्सप्रेस से मिला रहा था…” तृप्ति की बुर पानी छोड़ने वाली थी क्योंकि उसने अपनी कुर्ती वापिस अपने मुह में डाल ली थी और तृप्ति की बुर मेरे लौडे को कसने लगी थे. मै तृप्ति के ३२ से ३४ साइज़ हुए मम्मे मसलता हुआ चुदाई कर रहा था..
तृप्ति बहुत जोरो से झडी तभी मेरे लण्ड ने भी आखिरी सांसे ली तो मैंने तृप्ति के दोनों मम्मे पूरी ताकत से भीचते हुए अपना लौड़ा तृप्ति की टाइट बुर मै आखिरी जड़ तक पेल दिया और तृप्ति की बूर को मैंने पहला वीर्य का स्वाद दिया तृप्ति भी बहुत खुश हो गई थी.
जब साँस थमी तो मैंने लन्ड तृप्ति की बुर से बाहर निकाल जिससे तृप्ति की बुर से मेरे वीर्य के साथ तृप्ति की बुर से जवानी और कुंवारापन का सबूत भी बहकर बाहर आ रहा था. मैंने तृप्ति को हटाया और कमोड में पेशाब करी तृप्ति बड़े गौर से मेरे लंड से पेशाब निकलते देखते रही और एक बार तो उसने मुह भी लगा दिया.
उसका पूरा मुह मेरे पेशाब से गीला हो गया कुछ ही उसके मुह में जा पाया मैंने अपना लंड धोया नही उस पर तृप्ति की बुर का पानी और जवानी की सील लगी रहने दिया और नेक्कर के अंदर किया तृप्ति की बुर मै सुजन आ गई थी मै इंतज़ार कर रहा था की अब तृप्ति भी अपनी बुर साफ़ करेगी तो नंगी होगी तो उसने मुझे बाहर जाने को बोला.
मै उसकी बात मानकर उसको अपना रुमाल बताकर आ गया. मैंने अपनी घड़ी मै टाइम देखा तो हम लोगो के सवा घंटा गुजर गया था टॉयलेट में… शुक्र है भगवन का कि ठंड के कारण कोई नही जागा था और ट्रेन भी नही रुकी थी. थोडी देर बाद तृप्ति अपनी बुर पर हा्थ फेरती हुई कुछ लड़खड़ाते हुए बाहर आई.
मैंने पूछा क्या हाल है जानेमन तुम्हारी बुर के” सुजन आ गई है पर चुदवाने मै बहुत मजा आया फ़िर से चुदवाने का मन कर रहा है. ” ये लो यह रूमाल तुम वहां छोड़ आए थे। स फक्स….इसमे यह क्या लगा है लिसलिसा” यह वोही रुमाल था जिसमे मैंने तृप्ति के नाम की मुट्ठ मारी थी अपनी सीट पर लेते हुए वोही मुझे देने लगी.
“इसमे वोही लिसलिसा है तो अभी तुम्हारी मुनिया मै मेरे लंड ने उडेला है…. और तुम क्या लिए हो” मैंने तृप्ति को कहा… उसने पहले सूंघा फूले कहने लगी ” ये मेरी पैंटी ही… ख़राब हो गई थी तो मैंने निकाल ली.. और तुम्हारा रुमाल मै ले जा रही हूँ इसे अपने साथ रखूँगी और तुम्हारे पानी का स्वाद लेकर इसे सूंघकर सो जाउंगी.. तुम दिल्ली में कहां रुकोगे.. और किस काम से जा रहे हो” तृप्ति ने मेरे से पूछा.
तुम अपनी पैंटी मुझे दो मैंने तृप्ति से कहा फिर बताउंगा कि मैं कहां और क्यों जा रहा हूँ. पहले तो तृप्ति मुझे घुड़की “तुम क्या करोगे मेरी गन्दी पैंटी का” मैंने कहा ” वोही जो तुम मेरे रुमाल के साथ करोगी और मै तुम्हारी पैंटी अपने लंड पर लपेट कर मुट्ठ भी मारूंगा.”
उसने मेरे को चुम्मा देते हुए कहा “पागल” और अपनी पैंटी मुझे दे दी मैंने वहां जहां उसकी बुर रहती है उसको अपनी नाक से लगाया और जीभ से चाटा तो तृप्ति शर्मा गई. मैंने तृप्ति को बताया की मुझे दिल्ली में थोड़ा काम है और एक दोस्त की शादी भी है इतना सुनकर वो कुछ आश्वस्त हुई.
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मैंने कहा तुम मेरा सेल नम्बर ले लो मेरे को फ़ोन कर लेना मै बता दूँगा की कहा पर रुकुंगा और हम कैसे और कब मिलेंगे यह भी बता देंगे. तृप्ति मेरा रुमाल लेकर अपनी सीट पर आ गई और मै अपनी सीट पर. अब मेरा बैग भी आ गया था सो मैंने बैग मै से एयर पिल्लो निकाल और अपने सिराहने रख कर तृप्ति को याद करने लगा मेरा मेरा लंड फ़िर से खडा होने लगा सो मैंने सीट पर लेटकर तृप्ति की पैंटी सूंघने लगा उसमे से तृप्ति की पेशाब और उसके पानी की स्मेल आ रही थी. उस स्मेल ने कमाल ही कर दिया मेरा लंड फंफनाकर बहुत कड़क हो गया.
मैंने तृप्ति की पैंटी का वो हिस्सा जो कि उसकी चूत से चिपका रहता था मैंने फाड़ लिया और बाकी की पैंटी लेटे लेटे ही लंड पर लपेट ली नेक्कर के अंदर मैंने तृप्ति को सपने में चोदते हुए और उसकी बुर की खुसबू सूंघते हुए उसकी पेशाब भरी पैंटी को चाटते हुए मुठ मारने लगा मैंने अपना सारा पानी तृप्ति की फटी हुई पैंटी और अपनी चड्डी मै निकाल दिया ३ बार झड़ने के कारण पता ही नही चला की कब मै सो गया”. दोस्तों मेरी कहानी अभी बाकि है, आगे मेरी कहानी में मैंने एक और लड़की को चोदा, ये जानने के लिए कहानी का अगला भाग पढ़े…