Village Pyasi Aurat XXX
जब ये सब मादक घटनाये घटना शुरू हुई तब मैंने अभी अभी जवानी मे कदमा रखा था गाँव के बड़े पुश्तैनी मकान मे मैं कुछ ही दिन पहले माँ के साथ रहने आया था पाँच साल की उम्र से मैं शहर मे मामाजी के यहाँ रहता था और वहीं स्कूल मे पढता था तब गाँव मे सिर्फ़ प्राइमरी स्कूल था इसलिए माँ ने मुझे पढने शहर भेज दिया था. Village Pyasi Aurat XXX
अब गाँव मे हाई स्कूल खुल जाने से माँ ने मुझे यहीं बुलावा लिया था कि बारहवीं तक की पूरी पढ़ाई मैं यहीं कर सकूँ. घर मे माँ, मैं, हमारा जवान तेईस चौबीस साल का नौकर मनोहर और उसकी माँ शकुन्तला रहते थे शकुन्तला हमारे यहाँ घर मे नौकरानी थी चालीस के आसपास उमर होगी घर के पीछे खेत मे एक छोटा मकान रहने को माँ ने उन्हें दे दिया था.
जब मैं वापस आया तो माँ के साथ साथ शकुन्तला और मनोहर को भी बहुत खुशी हुई मुझे याद है कि बचपन से शकुन्तला और मनोहर मुझे बहुत प्यार करते थे मेरी सारी देख भाल बचपन मे मनोहर ही किया करता था. वापस आने के दो दिन मे ही मैं समझ गया था कि माँ मनोहर और शकुन्तला को कितना मानती थी.
वे हमारे यहाँ बहुत सालों से थे, मेरे जन्म के भी बहुत पहले से, असल मे माँ उन्हें शादी के बाद मैके से ले आई थी अब मैंने महसूस किया कि माँ की उनसे घनिष्टता और बढ़ गयी थी वहाँ उनसे नौकर जैसा नहीं बल्कि घर जैसा बर्ताव करती थी मनोहर तो मांजी मांजी कहता हमेशा उसके आगे पीछे घूमता था.
घर का सारा काम माँ ने शकुन्तला के सुपुर्द कर रखा था कभी कभी शकुन्तला माँ से ऐसे पेश आती थी जैसे शकुन्तला नौकरानी नहीं, बल्कि माँ की सास हो कई बार वह माँ पर अधिकार जताते हुए उससे डाँट दपट भी करती थी पर माँ चुपचाप मुस्कराकर सब सहन कर लेती थी इसका कारण मुझे जल्दी ही पता चल गया.
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जब से मैं आया था तब से शकुन्तला और मनोहर मेरी ओर ख़ास ध्यान देने लगे थे शकुन्तला बार बार मुझे पकडकर सीने से लगा लेती और चूम लेती “मुन्ना, बड़ा प्यारा हो गया है तू, बड़ा होकर अब और खूबसूरत लगने लगा है बिलकुल छोकरियों जैसा सुंदर है, गोरा चिकना.”
माँ यह सुनकर अक्सर कहती “अरे अभी कच्ची उमर का बच्चा है, बड़ा कहाँ हुआ है” तो शकुन्तला कहती “हमारे काम के लिए काफ़ी बड़ा है मालकिन” और आँखें नचाकर हँसने लगती माँ फिर उसे डाँट कर चुप कर देती शकुन्तला की बातों मे छुपा अर्थ बाद मे मुझे समझ मे आया.
मनोहर भी मेरी ओर देखता और अलग तरीके से हँसता कहता “मुन्ना, नहला दूँ? बचपन मे मैं ही नहलाता था तुझे.”
मैं नाराज़ होकर उसे डाँट देता वैसे बात सही थी मुझे कुछ कुछ याद था कि बचपन मे मनोहर मुझे नंगा करके नहलाता मुझे तब वह कई बार चूम भी लेता था मेरे शिश्न और नितंबों को वह खूब साबुन लगाकर रगडता था और मुझे वह बड़ा अच्छा लगता था.
एक दो बार खेल खेल मे मनोहर मेरा शिश्न या नितंब भी चूम लेता और फिर कहता कि मैं माँ से ना कहूँ मुझे अटपटा लगता पर मज़ा भी आता वह मुझे इतना प्यार करता था इसलिए मैं चुप रहता वैसे शकुन्तला की यह बात सच थी कि अब मैं बड़ा हो गया था माँ को भले ना मालूम हो पर शकुन्तला ने शायद मेरे तने शिश्न का उभार पैंट मे से देख लिया होगा.
इस कमसिन अम्र मे भी मेरा लंड खड़ा होने लगा था और पिछले ही साल से मेरा हस्तमैथुन भी शुरू हो गया था शहर मे मैं गंदी किताबें चोरी से पढता और उनमे की नंगी औरतों की तस्वीरें देखकर मुठ्ठ मारता बहुत मज़ा आता था औरतों के प्रति मेरी रूचि बहुत बढ़ गयी थी ख़ास कर बड़ी खाए पिए बदन की औरतें मुझे बहुत अच्छी लगती थीं.
गाँव आने के बाद गंदी किताबें मिलना बंद हो गया था इसलिए अब मैं मन के लड्डू खाते हुए तरह तरह की औरतों के नंगे बदन की कल्पना करते हुए मुठ्ठ मारा करता था. आने के बाद माँ के प्रति मेरा आकर्षण बहुत बढ़ गया था सहसा मैंने महसूस किया था कि मेरी माँ एक बड़ी मतवाली नारी थी.
उसके इस रूप का मुझ पर जादू सा हो गया था शुरू मे एक दिन मुझे अपराधी जैसा लगा थी पर फिर लंड मे होती मीठी टीस ने मेरे मन के सारे बंधन तोड दिए थे. मेरी माँ दिखने मे साधारण सुंदर थी भले ही बहुत रूपवती ना हो पर बड़ी सेक्सी लगती थी बत्तीस साल की अम्र होने से उसमे एक पके फल सी मिठास आ गयी थी.
थोड़ा मोटा खाया पिया मांसल शरीर, गाँव के स्टाइल मे जल्दी जल्दी पहनी ढीली ढाली साड़ी चोली और चोली मे से दिखती सफेद ब्रा मे कसी मोटी मोटी चुचियाँ, इनसे वह बड़ी चुदैल सी लगती थी बिलकुल मेरी ख़ास किताबों मे दिखाई चुदैल रंडियों जैसी!
मैंने तो अब उसके नाम से मुठ्ठ मारना शुरू कर दिया था अक्सर धोने को डाली हुई उसकी ब्रा या पैंटी मैं चुपचाप कमरे मे ले आता और उसमे मुठ्ठ मारता उन कपड़ों मे से आती उसके शरीर की सुगंध मुझे मतवाला कर देती थी एक दो बार मैं पकड़े जाते हुए बचा माँ को अपनी पैंटी और ब्रा नहीं मिले तो वह शकुन्तला को डाँटने लगी.
शकुन्तला बोली कि माँ ने धोने डाली ही नहीं किसी तराहा से मैं दूसरे दिन उन्हें फिर धोने के कपड़ों मे छुपा आया शकुन्तला को शायद पता चल गया था क्योंकि माँ की डाँट खाते हुए वह मेरी ओर देखकर मंद मंद हँस रही थी पर कुछ बोली नहीं मेरी जान मे जान आई!
मुझे ज़्यादा दिन प्यासा नहीं रहना पड़ा माँ वास्तव मे कितनी चुदैल और छिनाल थी और घर मे क्या क्या गुल खिलते थे, यह मुझे जल्द ही मालूम हो गया मैं एक दिन देर रात को अपने कमरे से पानी पीने को निकला उस दिन मुझे नींद नहीं आ रही थी माँ के कमरे से कराहने की आवाज़ें आ रही थीं.
मैं दरवाजे से सट कर खड़ा हो गया और कान लगाकर सुनने लगा सोचा माँ बीमार तो नहीं है! “आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हा, मर गयी रे, शकुन्तला तू मुझे मार डालेगी आज उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ईह्ह्ह्ह्ह मायाम ” माँ की हल्की चीख सुनकर मुझे लगा कि ना जाने शकुन्तला बाई माँ को क्या यातना दे रही है.
इसलिए मैं अंदर घुसने के लिए दरवाजा ख़टखटाने ही वाला था कि शकुन्तला की आवाज़ आई “मालकिन, नखरे मत करो अभी तो सिर्फ़ उंगली ही डाली है आपकी चूत मे! रोज की तराहा जीभ डालूंगी तो क्या करोगी?”
“अरे पर आज कितना मीठा मसल रही है मेरे दाने को तू छिनाल जालिम, कहाँ से सीखा ऐसा दाना रगडना?” माँ कराहती हुई बोली.
“मनोहर सीख कर आया है शहर से, शायद वह ब्लू फिल्म मे देख कर आया है कल रात को मुझे चोदने के पहले बहुत देर मेरा दाना मसलता रहा हरामी इतना झड़ाया मुझे कि मै लस्त हो गयी!” शकुन्तला की आवाज़ आई.
“तभी कल मुझे चोदने नहीं आया बदमाश, अपनी अम्मा को ही चोदता रहा तू तो दिन रात चुदाती है अपने बेटे से, तेरा मन नहीं भरता? रोज रात को पहले मेरे पास ले आया कर उसे तुझे मालूम है उसकी रात की ड्यूटी मेरे कमरे मे है तू भी रोज आ जाया कर, सब मिलकर चुदाई करेंगे हफ्ते मे एक बार चुद कर मेरा मन नहीं भरता शकुन्तला बाई चल अब चूस मेरी बुर, ज़्यादा ना तडपा.”
“मैं तो रोज आऊ बाई पर अब मुन्ना आ गया है ज़रा छुपा कर करना पड़ता है” शकुन्तला बोली.
“अरे वह बच्चा है, जल्दी सो जाता है अब चूस ले मेरी बुर को, मत तडपा मेरी रानी अपनी मालकिन को” माँ कराहते हुए बोली.
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सुनकर मैं बहुत गरम हो गया था दरवाजे से अंदर झाँकने की कोशिश की पर कोई छेद या दरार नहीं थी आख़िर अपने कमरे मे जाकर दो बार मुठ्ठ मारी तब शांति मिली मन ही मन मे कल्पना कर रहा था कि माँ और शकुन्तला की रति कैसी दिखती होगी! एक दो बार मैंने लेस्बियन वाली कहानियाँ पढ़ी थीं पर चित्र नहीं देखे थे.
अब मैं इस ताक मे था कि रात को कौन माँ के कमरे मे आता है यह देखूं मनोहर कभी ना कभी आएगा और माँ को चोदेगा इस बात से मैं ऐसा गरमाया कि समझ मे नहीं आ रहा था कि क्या करूँ माँ के साथ साथ अब शकुन्तला बाई के नंगे बदन की कल्पना भी करने लगा.
चालीस साल उमर होने के बावजूद शकुन्तला बाई का शरीर काफ़ी छरहरा और तंदुरुस्त था साँवली ज़रूर थी पर दिखने मे काफ़ी ठीक लगती थी दोपहर को उसके नाम की मैंने दो तीन मुठ्ठ मार लीं. दूसरे दिन भी रात मे शकुन्तला माँ के कमरे मे आई पर अकेले उस रात मैं चुपचाप माँ के कमरे तक गया और कान लगाकर अंदर की बातें सुनने लगा.
“कल ले आऊन्गि मनोहर को अपने साथ बहूरानी वह ज़रा काम मे था खेतों को भी तो देखना पड़ता है! अब चुपचाप मेरी बुर चूसो खुद तो चुसवा लेती हो, मैं क्या मुठ्ठ मारूं? कल मनोहर ने भी नहीं चोदा” शकुन्तला बोली.
कुछ देर की खामोशी के बाद शकुन्तला बोली “हाँ, ऐसे चूसो मालकिन, अब आया मज़ा ज़रा जीभ अंदर तो डालो, देखो आपकी नौकरानी की चूत मे क्या माल है तुम्हारे लिए और तुम्हें पसंद है ये मुझे मालूम है! कई बार तो चखा चुकी हो!”
मैं समझ गया मनोहर के लंड का लालच दे कर आज शकुन्तला माँ से खूब चूत चुसवा रही थी कुछ ही देर मे शकुन्तला के कराहने की आवाज़ आने लगी और फिर वह चुप हो गयी साली झड गयी थी शायद.
“अच्छा लगा मेरी बुर का पानी मालकिन? मैं तो पहले ही कहती थी कि रोज चखा करो अब रोज चुसवाऊँगी आप से” बोलकर शकुन्तला फिर सिसकारियाँ भरने लगी.
कुछ देर बाद शकुन्तला बोली “बहू रानी, अब मुन्ना भी आ गया है उससे भी चुदा कर देखो, घर का लडका है, कब काम आएगा? अब मैं या मनोहर किसी दिन ना हों आपकी सेवा के लिए फिर भी प्यासा रहने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें!” मेरे कान खड़े हो गये मेरी बातें हो रही थीं लंड भी उछलने लगा.
माँ कुछ देर चुप रही फिर थोड़ी शरमा कर बोली “अरे अभी छोटा है शोभित बच्चा है और फिर मेरे बेटे से ही मैं कैसे चुदाऊ?”
“वाह मालकिन, मेरे बेटे से चुदाती हो, मेरे और मेरे बेटे की चुदाई मे बड़ा रस लेती हो और खुद के बेटे की बात आई तो शरमाती हो मुझे देखो, अपने बेटे से चुदा कर क्या सुख पाती हम! वैसे बड़ा प्यारा छोकरा है अपना मुन्ना और छोटा वोटा कुछ नहीं है रोज सडका लगाता है बदमाश मुझे पता है.
मैं कपड़े धोती हँ उसके और तुम्हारे भी तुम्हारी ब्रा कई बार कड़ी रहती है, उसमे दाग भी रहते हैं कौन मुठ्ठ मारता है उसमे? मनोहर तो नहीं मारता यह मैं जानती हूँ और उस दिन तुम मुझ पर झल्ला रही थीं तुम्हारी ब्रा और पैंटी नहीं मिले इसलिए! कौन बदमाश उन्हें ले गया था, बताओ तो?” शकुन्तला हँसते हुए बोली.
कुछ देर कमरे से सिर्फ़ चूसने और चूमा चाटी की आवाज़ें आईं फिर माँ की वासना भरी आवाज़ आई “बदमाश है बड़ा, अपनी माँ की ब्रा मे मुठ्ठ मारता है अब तो उससे चुदा ही लूँ शकुन्तला! अभी लंड छोटा होगा मेरे बेटे का पर होगा बड़ा रसीला री मेरा तो मन हो रहा है चूसने का.”
“और उससे बुर चुसवाने का मन नहीं होता मालकिन? एक माँ के लिए इससे मस्त बात क्या हो सकती है कि वह अपने बेटे को अपनी उसी चूत का रस पिलाए जिसमे से वह बाहर आया है! ये बेटे बड़े बदमाश होते हैं बहू रानी अपनी अम्मा पर मरते हैं इनसे तो कुछ भी करा लो अम्मा के गुलाम होते हैं ये बच्चे” शकुन्तला हँस कर बोली.
कुछ देर बाद शकुन्तला बोली “तुम्हें शर्म आती है तो मुन्ना को मेरे हवाले कर दो मैं और मनोहर मिलकर उसे सब सिखा देंगे फिर जब सधा चोदू बन जाए तुम्हारा बेटा तो तुम उसे अपनी सेवा मे रख लेना.”
माँ बोली “तेरी बात तो समझ मे आती है पर इसमे मनोहर क्या करेगा?”
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शकुन्तला बोली “बहू रानी, मनोहर महा हरामी है, शायद उसे मुन्ना अच्छा लगता है बचपन मे वही तो संभालता था मुन्ना को, नहलाता भी था तुम खुद मनोहर से क्यों नहीं बात कर लेती? कल तो आएगा ही वह तुम्हें चोदने, तब पूछ लेना वैसे बड़ा रसिक है मेरा लाल खट्टा मीठा दोनों खाना चाहता है और मुन्ना से ज़्यादा मस्त मीठा स्वाद उसे कहाँ मिलेगा?
अब यह बताओ बहू रानी कि मेरी बुर का पानी पसंद आया कि नहीं वैसे पानी नहीं शहद है तुझे पक्का माल चखाने के चक्कर मे आज मैंने मनोहर से चुदाया भी नहीं और मुठ्ठ भी नहीं मारी सीधा आपके मुँहा मे झड रही हूँ कल रात के बाद.”
अम्मा शकुन्तला की बुर चूसती हुई बोली “अरी यह भी कोई पूछने की बात है? तेरी चूत का माल है या खोवा? गाढा गाढा सफेद सफेद, मलाई दार कितना चिपचिपा है देख! तार तार छूट रहे हैं! मनोहर बड़ा नसीब वाला है, बचपन से चखता आया है यह मावा अब मेरे लिए भी रखा कर और शोभित बेटे को भी चखा देना कभी.”
मैं वहाँ से खिसक लिया माँ को चोदने की बात सोच कर ही मैं पागल सा हुआ जा रहा था उपर से शकुन्तला बाई और मनोहर की बात सोच कर मुझे कुछ डर सा भी लग रहा था कहीं अम्मा मान गयी और मुझे उन चुदैल माँ बेटे के हवाले कर दिया तो मेरा क्या हाल होगा?
वैसे मन ही मन फूल कर कुप्पा भी हो रहा था शकुन्तला बाई के छरहरे दुबले पतले कसे शरीर को याद करके उसीके नाम से मैंने उस रात हस्तमैथुन कर डाला. अब मनोहर के बारे मे भी मैं सोच रहा था वह बड़े गठीले बदन का हेंड्सॅम जवान था शकुन्तला काली थी पर मनोहर एकदम गेहुएँ रंग का था मॉडल बनने लायक था.
सोते समय शकुन्तला की इसी बात को मैं सोच रहा था कि मनोहर मेरा स्वाद लेगा या क्या करेगा? दूसरे दिन सुबह से मैं इस चक्कर मे था कि किसी तरह माँ के कमरे मे देखने को मिले जब माँ बाहर गयी थी और मैं अकेला था.
तब मैंने हाथ से घुमाने वाली ड्रिल से दरवाजे मे एक छेद कर दिया उसके उपर उसी रंग का एक लकड़ी का टुकडा फंसा दिया आज मनोहर आने वाला था कुछ भी हो जाए, मैं अपनी माँ को उस सजीले नौजवान से चुदते देखना चाहता था.
रात को मैं जल्दी अपने कमरे मे चला गया अंदर से सुनता रहा मनोहर और शकुन्तला बाई आने का पता मुझे चल गया जब अम्मा ने अपने कमरे का दरवाजा खोला कुछ देर रुकने के बाद मैं चुपचाप बाहर निकाला और माँ के कमरे के दरवाजे के पास आया अंदर से सिसकने और हँसने की आवाज़ें आ रही थीं.
“चोद डाल मुझे मनोहर बेटे, और ज़ोर से चोद अपनी मालकिन की चूत.
शकुन्तला अपने बेटे को कह की मुझा पर दया ना करे, हचक हचक कर मुझे चोद डाले हफ़्ता होने को आया यह बदमाश गायब था, मैं तो तरस कर रह गयी इसके लंड को” अम्मा सिसकते हुए कह रही थी. फिर शकुन्तला की आवाज़ आई “बेटा, देखता क्या है, लगा ज़ोर का धक्का, चोद डाल साली को, देख कैसे रीरिया रही है?
कमर तोड दे इस हरामन की, पर झडाना नहीं जब तक मैं ना कहूँ मन भर कर चुदने दे, कबकी प्यासी है तेरी मालकिन तेरे लौडे के लिए!” अम्मा और मनोहर को और उत्तेजित करने को शकुन्तला गंदे गंदे शब्दों और गालियों का प्रयोग जान बुझ कर रही थी शायद!
मैंने दरवाजे के छेद से अंदर देखा उपर की बत्ती जल रही थी इसलिए सब साफ दिख रहा था माँ मादरजात नंगी बिस्तर पर लेटी थी और मनोहर उसपर चढा हुआ उसे घचाघाच चोद रहा था मैं बाजू से देख रहा था इसलिए अम्मा की बुर तो मुझे नहीं दिखी पर मनोहरका मोटा लंबा लंड सपासाप माँ की गोरी गोरी जांघों के अंदर बाहर होता हुआ मुझे दिख रहा था.
शकुन्तला भी पूरी नंगी होकर माँ के सिरहाने बैठ कर उसके स्तन दबा रही थी क्या मोटी चुचियां थीं माँ की और ये बड़े काले निपल! बीच बीच मे झुक कर मंजुबाई अम्मा के होंठ चूम लेती थी मनोहर ऐसा कस कर मेरी माँ को चोद रहा था कि जैसे खाट तोड देगा खाट भी चर्ऱ मर्ऱ चर्ऱ मर्ऱ चरमरा रही थी.
मेरी माँ को चोदते चोदते मनोहर बोला “मांजी, कभी गान्ड भी मरवाइए बहुत मज़ा आएगा.”
माँ सिसकती हुई बोली “हाँ रे चोदू, तुझे तो मज़ा आएगा पर मेरी फट जाएगी आज तक नहीं मरवाई मैंने अब तुझसे मराउ? मैं नहीं मरवाती गान्ड इतने मोटे लंड से.”
शकुन्तला बोली “नहीं फटेगी मालकिन घर का मख्खन लगा कर प्यार से मारेगा मेरा बेटा आसानी से फिसलेगा मेरी भी गान्ड मारता है यह हरामी, बहुत मज़ा आता है अब मेरी गान्ड चुद चुद कर फुकला हो गयी है, मेरे बेटे को भी किसी नयी तंग गान्ड का मज़ा लेने दो.”
अम्मा अब हाथ पैर फेंक रही थी “चोद मनोहर, चोद डाल मुझे राजा, शकुन्तला बाई, मेरी चूची दबा और ज़ोर से मुझे चुम्मा दे दे मेरी जान!”
“बहुत चिचिया रही है यह रंडी इसका मुँह बंद करना पड़ेगा” कहकर शकुन्तला माँ के मुँह पर चढ कर बैठ गयी अपनी चूत माँ के मुँह पर रख कर उसने अम्मा की बोलती बंद कर दी और फिर जांघें आपस मे कस कर माँ का सिर अपनी जांघों मे दबा लिया फिर उचक उचक कर माँ की मुँह चोदने लगी.
यहा नज़ारा देख कर मुझसे नहीं रहा गया मुँह से आवाज़ ना निकले ऐसी कोशिश करता हुआ अपने लंड को मैं रगड रगड कर अंदर चल रही धुआँधार चुदाई देखने लगा शकुन्तला माँ का सिर कस कर अपनी बुर पर दबा कर उपर नीचे उछल रही थी.
दोनों माँ बेटे मिलकर बहुत देर अम्मा को गूंधते रहे जब माँ झडने को आ जाती तब शकुन्तला बाई मनोहर को इशारा कर देती “रुक बेटे, लंड पेलना बंद कर, नहीं तो झड जाएगी ये साली चुदैल औरत बहुत दिन से मुझे कह रही थी कि मनोहर नहीं आया चोदने, तो आज ऐसा चोद कि दो दिन उठ ना सके.”
दस मिनिट मे माँ की हालत बुरी हो गयी वह रो पडी शकुन्तला की चूत मे दबे उसके मुँह से हल्की दबी चीखें निकल रही थीं उसे यह चुदासी सहन नहीं हो रही थी बिना झडे उस मीठी सूली पर लटके लटके वह अब बुरी तरह तडप रही थी शकुन्तला खुद शायद एक दो बार अम्मा के मुँह मे झड चुकी थी.
माँ के सिर पर से उतर कर वह लेट गयी और अम्मा के चुंबन लेने लगी “पसंद आया अपनी नौकरानी की बुर का रस मालकिन? मनोहर से चुदते चुदते तो यह और मसालेदार लगा होगा आपको”.
माँ कुछ कहने की स्थिति मे नहीं थी बस सिसकती जा रही थी माँ की चरम सुख की इस स्थिति मे मौका देखकर शकुन्तला ने मेरी बात आगे छेडी “मालकिन, मैं कह रही थी की कल से मनोहर मुन्ना को स्कूल छोड़ आया करेगा और ले भी आएगा आते आते मेरे पास छोड़ दिया करेगा.”
माँ सिर इधर उधर फेकते हुए हाथ पैर पटकते हुए बोली “तुम दोनों क्या करोगे मेरे बच्चे के साथ मुझे मालूम है, हाय मैं मरी अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मनोहर दया कर, चोद डाल रे बेटे, मत तडपा अब”हाईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई.
मनोहर माँ की चूत मे लंड पेलता हुआ बोला “बहुत प्यार करेंगे मुन्ना को मांजी, उसे भी सब काम क्रीडा सिखा कर आपके कदमों मे ला कर पटक देंगे फिर आप दिन भर उस बच्चे के साथ मस्ती करना.”
माँ को बात शायद जच रही थी क्योंकि उसने कुछ नहीं कहा शकुन्तला ने माँ के निपल मसलते हुए कहा “अरे अभी से उसे चुदाई के खेल मे लगा दिया तो दो साल मे लंड भी बड़ा हो जाएगा उसका मनोहर को देखो, जब से लंड खड़ा होने लगा, तब से चोद रहा है मुझे बदमाश अब देखो कैसा घोड़े जैसा लौडा हो गया है उसका.”
माँ आख़िर तैयार हो गयी “ठीक है मनोहर, कल से तेरे और शकुन्तला के सुपुर्द किया मैंने मुन्ने को, हाइईईईईईईईईईईई य्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, मैं मरती क्यों नहीं? चोद चोद कर मार डाल मुझे मेरे राजा” मस्ती मे पागल होकर अम्मा बोली.
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शकुन्तला खुश हो गयी मनोहर को बोली “मनोहर बेटे, कल से ही शुरू हो जा मैं कहती थी ना कि मालकिन मान जाएँगी! आख़िर अपने बेटे को भी तो पक्का चोदू बनाना है इन्हें तू अब चोद डाल बेटे ऐसे चोद अपनी मालकिन को कि वह सीधे इंद्रलोक पहुँच जाए.” माँ के होंठों पर अपना मुँह जमाकर शकुन्तला अम्मा का मुँह चूसने लगी और मनोहर अब अम्मा को ऐसी बेरहमी से चोदने लगा जैसे घोडा घोडी को चोदता है मुझसे अब ना रहा गया.
मैं वहाँ से भागा और कमरे मे आकर सटासट मुठ्ठ मारी झडा तो इतनी ज़ोर से कि वीर्य सीधा छह फुट दूर सामने की दीवार पर लगा आज का वह कामुक नज़ारा मेरे लिए स्वर्ग का नज़ारा था. मैं फिर जाकर आगे की चुदाई देखना चाहता था पर इतने मीठे स्खलन के बाद कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला. दूसरे दिन माँ बहुत तृप्त दिख रही थी चलते चलते थोड़े पैर अलग फैला कर चल रही थी.