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औरत का सबसे बड़ा गहना उसकी कुंवारी चूत 1

जनवरी 13, 2024 by hamari

Long Porn Kahani

मेरा नाम सौरभ है, मैं 5’7″ का हैंडसम सा लड़का हूँ.. ऐसा मैं नहीं कह रहा… बल्कि मुझे चाहने वाले कहते हैं। मेरा रंग गोरा है, आँखें भूरी और सीना चौड़ा है। जो मेरे पुरुषार्थ की निशानी है वह 7 इंच का मोटा, हल्के भूरे रंग का है और थोड़ा सा मुड़ा हुआ भी है जो सहवास के वक्त मजा बढ़ा देता है। Long Porn Kahani

यह कहानी तब की है जब मैं 25 साल का था। एक दिन जब मैं रायपुर जाने के लिए बस में चढ़ा तो मुझे चढ़ते ही मेरा एक बचपन का मित्र नितेश दिखाई दिया, वह बस में खिड़की की तरफ उदास बैठा था और खिड़की से बाहर टकटकी लगाये देख रहा था, शायद वो किसी सोच में डूबा था।

‘हाय नितेश, कैसे हो?’ इतना सुनकर ही वह चौंक गया और हकलाते हुए ‘हाँ हह-हाँ हह मैं ठीक हूँ!’ बहुत लड़खड़ाती सी आवाज में जवाब दिया।

अब मैं बिना कुछ कहे उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया, मुझे लगा कि शायद वह मुझे पहचान नहीं पा रहा है, इसलिए मैंने फिर से कहा- शायद तुमने मुझे पहचाना नहीं?

तो उसने कहा- तुम मेरे बचपन के यार सौरभ हो, मैं तुम्हें कैसे भूल सकता हूँ?

इतना कह कर उसने फिर अपना मुंह खिड़की की तरफ कर लिया।

मैंने कहा- क्या हुआ यार, कुछ सोच रहे हो क्या?

तो उसने मेरी ओर नजर घुमाई, मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखा और रोने लगा, फिर उसने खिड़की की तरफ मुंह कर लिया। मैंने उसे और कुछ कहना उचित नहीं समझा और अपनी सीट पर सर टिका कर आँखें बंद कर ली और अपनी पुरानी यादों में खो गया।

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असल में नितेश और उसके परिवार को गांव छोड़े दस साल बीत चुके थे। इन दस सालों में बहुत कुछ बदल गया था। नितेश के पिता बिजली विभाग के अधिकारी थे, उनका तबादला हो गया और वो कंवर्धा आ गये थे, नितेश जब गांव में था तो वह मेरा बहुत करीबी दोस्त हुआ करता था, हम दोनों साथ में बहुत बदमाशी करते थे, पढ़ाई करते थे और एक दूसरे के घर आना जाना लगा ही रहता था।

नितेश के माता पिता भी मुझे अपने बेटे की तरह ही समझते थे, नितेश की बहनें भी मुझे बहुत इज्जत देतीं थी, नितेश की एक बहन उससे पांच साल छोटी थी और एक बहन चार साल बड़ी थी। नितेश के माता पिता ने बच्चा पैदा करते वक्त बच्चों के बीच अंतर का बिल्कुल ख्याल रखा था।

नितेश की बड़ी बहन प्रियंका का शरीर बहुत भारी था, 5’3″ की हाईट, रंग काला, रुखी त्वचा थी शायद वह बहुत आलसी भी थी। वहीं उसकी छोटी बहन अंकिता गोरी और सांवली के बीच के रंग में थी, छरहरी सी चंचल लड़की पढ़ाई में बहुत तेज थी, हम सब साथ में कैरम, लूडो, लुका छुपी का खेल खेला करते थे, कोई भी चीज बांट कर खाया करते थे, बड़े अच्छे दिन थे।

मैं ये सब सोच ही रहा था कि हमारी बस सिमगा पहुँच गई, बस के रुकते ही मेरी आँखें खुल गई। मैंने अपनी बाजू वाली सीट को देखा, वहाँ मैंने नितेश को नहीं पाया, मैंने उसे ढूंढने नजर दौड़ाई तो मुझे नितेश चना फल्ली लेते नजर आया, वो चना फल्ली का पैकेट लेकर मेरे पास आया, मुझे एक पैकेट पकड़ाया और अपनी सीट में बैठते हुए कहा- यार, बेरुखी के लिए माफी चाहता हूँ, पर मैं अभी बहुत ज्यादा परेशान हूँ।

मैंने कहा- कोई बात नहीं यार, मैं समझ सकता हूँ, पर तुम परेशान क्यूं हो?

तो उसने गहरी सांस लेते हुए बोलना शुरु किया- यार, मेरी बड़ी दीदी प्रियंका की शादी हो गई थी, और अब तलाक भी हो गया और दीदी ने दो बार आत्महत्या की कोशिश भी की है, अब तू ही बता मुझे परेशान होना चाहिए या नहीं?

मैंने कहा- हाँ यार, बात तो परेशानी की ही है, पर तू मुझे जरा विस्तार से बतायेगा तभी तो मैं कुछ समझ सकूँगा।

नितेश ने कहा- यार, तू तो जानता ही है कि मेरी दीदी शुरु से ही सांवली और भद्दी है। इसलिए उसके रिश्ते के वक्त बहुत परेशानी हुई, हमने बहुत ज्यादा दहेज दिया तब जाकर एक लड़का मिला था। फिर पता नहीं शादी के दो साल बाद ही तलाक हो गया।

मुझे पूरा मामला समझ नहीं आया, मैंने कहा- और आत्महत्या की कोशिश कब की थी?

तो उसने कहा- एक बार पहले और कर चुकी थी, और अभी हाल ही में फिर से कोशिश की है, मैं अभी वहीं जा रहा हूँ।

मैं अभी भी अधूरी बात ही समझ पाया था लेकिन ज्यादा कुरेदना ठीक नहीं समझा, मैंने कुछ सोच कर कहा- चल मैं भी तेरे साथ चलता हूँ।

और हम बस से उतर कर एक कालोनी की तरफ चल पड़े जहाँ उसकी बहन रहती थी। रास्ते में नितेश ने मुझे बताया कि प्रियंका तलाक के बाद एक टेलीकॉम कम्पनी में काल अटेंडर का काम कर रही है, और साथ ही पी. एस. सी. की तैयारी भी कर रही है. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

वैसे तो उनके घर इतना पैसा है कि उसे काम करने की जरूरत नहीं है पर वो अपना मन बहलाने के लिए जॉब कर रही थी, घर वाले उसे बार बार दूसरी शादी के लिए कहते थे, इसीलिए वो रायपुर आ कर अकेली रह रही थी, उसने पहली बार जहर खा लिया था और सही समय पर हास्पिटल ले जाने से जान बच गई थी।

और इस बार उसने अपनी नस काट ली थी इस बार भी उसे समय पर हास्पिटल ले जाया गया, आज ही हास्पिटल से घर लाये हैं। उसने कोशिश तीन दिन पहले की थी, उसके मम्मी पापा तुरंत ही प्रियंका के पास आ गये थे, पर नितेश बाहर गया हुआ था इसलिए आज जा रहा था।

हम दोनों प्रियंका के घर पहुँचे, उसका घर अकेले रहने के लिए बहुत बड़ा था, दो बेडरुम एक बड़ा सा हाल एक गेस्टरुम और एक किचन था। नितेश ने बाद में बताया कि यह घर उनका खुद का है। जिसे उन लोगों ने किश्त स्कीम में खरीदा था। सभी हाल में ही बैठे थे, प्रियंका वहाँ नहीं थी, सभी बहुत उदास लग रहे थे, मैंने सबके पैर छुये, दस साल बाद भी आंटी अंकल ने मुझे पहचान लिया।

एक दूसरे से खैरियत जानने के बाद मैं और नितेश प्रियंका के रूम में गये, वहाँ नितेश की छोटी बहन अंकिता भी बैठी थी। हमारे अंदर आते ही वो जाने लगी तो नितेश ने उसे रोका और अपनी दोनों बहनों का परिचय कराया, प्रियंका ने कहा- हाँ, मैं इसे पहचानती हूँ… और मुझसे कहा ‘पट्ठा पूरा जवान हो गया है रे तू तो?’

मैंने मुस्कुरा कर कहा- हाँ दीदी!

और फिर अंकिता की तरफ इशारा करके ‘ये भी तो पट्ठी जवान हो गई है।’ इससे पहले अंकिता मुझे आश्चर्य से घूर रही थी पर अब मेरी बातों पर शरमा गई। यहाँ पर आपको अंकिता का हुलिया बताना जरूरी है, अंकिता को मैंने दस साल पहले देखा था.

तब वह केवल दस साल की मरियल सी पतली दुबली लड़की थी, अब वह बीस साल की हो चुकी है, मतलब जवानी का रंग उस पे चढ़ चुका है, 5’5″ हाईट, बेमिसाल खूबसूरती और रंग पहले से भी गोरा एकदम साफ हो गया है। बिना बाजू वाली टाप में उसके हाथ का एक छोटा सा तिल भी बहुत तेज चमक रहा था.

चेहरा लंबा, बाल कुछ कुछ चेहरे पर आ रहे थे, होंठ गुलाबी रंगत के लिये हुए, पतले मगर थोड़े निकले हुए, लगता था किसी ने खींच कर लंबे किये हों। मम्मे बहुत भरे हुए पर सुडौल थे, टॉप के ऊपर से भी बिल्कुल तने हुए थे, मम्मे नीचे की ओर न होकर ऊपर की ओर मुंह किये हुए थे, पिछाड़ी बता रही थी कि कोई भी गाड़ी चल सकती है।

मगर पेट बिल्कुल अंदर था, कुल मिला कर कहूँ तो कयामत की सुंदरी लग रही थी, श्रुति हसन की छोटी बहन कह दूं या देवलोक की अप्सरा तो कुछ गलत नहीं होगा मेरा मन तो उसे देखते ही हिलौर मारने लगा था। लेकिन अभी हालात कुछ अलग थे, अभी प्रियंका कैसे दिखती है, मैं नहीं बता पाऊंगा, क्योंकि उसने चादर ओढ़ रखी थी, चेहरे में उदासी थी झूठी हंसी की परतों में उसने अपने बेइंतहा दर्द को छुपा रखा था।

अचानक ही मेरे दिमाग में एक बात आई और मैंने नितेश और अंकिता को कमरे से बाहर जाने को कहा और उनके जाते ही मैंने दीदी से कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि दीदी ने कहा- अब तुम भी लेक्चर मत देना।

मैंने कहा- नहीं दीदी, मैं तो उस मैटर पर बात भी नहीं करुंगा, जो आपके जख्मों को कुरेदने का काम करे। बल्कि मैं तो बस यह कह रहा हूँ कि जो हुआ सो हुआ, अब उठो, मम्मी पापा से बातें करो मुझसे बातें करो। अपने हाथों से सबको चाय बना कर पिलाओ, सबको अच्छा लगेगा, ऐसे बैठे रहने से क्या होने वाला है।

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उसके आँखों से आंसू की धारा बह निकली। उसने अपने ही हाथों से आंसू पोंछे और कहा- तुम ठीक कह रहे हो।

और बिस्तर से उठते हुए कहा- सबकी चिंता छोड़ो, यह बताओ तुम क्या पियोगे चाय या कॉफी?

तो मैंने कहा- जो आप पिला दो!

और जैसे ही वह कमरे से बाहर आई, सब चौंक गये और उसे आराम करने को कहने लगे।

प्रियंका ने कहा- मैं ठीक हूँ!

तभी मैंने पीछे से सबको शांत रहने का इशारा कर दिया। फिर प्रियंका ने सबको चाय पिलाई और सबके सामने ही आकर कुर्सी पर बैठ गई। प्रियंका को बातें करता देख सब बहुत खुश हुये और सबके साथ मुझे भी खुश देख प्रियंका की उदासी थोड़ी कम हुई।

मैं रायपुर अपने काम से गया था, इसलिए मैंने कहा.. अब मैं चलता हूँ, मुझे बहुत काम है। आप सब भी हमारे घर जरूर आइयेगा, कहते हुए कुर्सी से उठ गया।

फिर सबने कहा- तुम भी आते रहना, और अगर रायपुर में ठहरना हुआ तो यहीं आ जाना, कहीं और ठहरा तो तेरी खैर नहीं!

मैंने ‘जी बिल्कुल!’ कहा और निकल गया।

तभी प्रियंका दीदी की आवाज आई- जरा रुक तो!

मैं रुका। वो मेरे पास आई.. और हाथ आगे बढ़ा के हेंडशेक करते हुये धन्यवाद दिया। इस समय उसकी आँखों में खुशी, आभार मानने के भाव और मेरे लिये स्नेह भी झलक रहा था। मैं जिस काम से गया था, मैंने अपना वह काम पूरा किया और समय पर घर वापसी के लिए निकल गया।

जब मैं बस पर बैठा आधा रास्ता तय कर चुका था.. तब प्रियंका दीदी का फोन आया- सौरभ तुम आज रुक रहे हो क्या? यहीं आ जाओ। मैंने कहा- नहीं दीदी, मैं तो निकल चुका हूँ।

दीदी ने कहा- यहीं रुक जाना था ना..! अब कभी आओगे तो मेरे पास जरूर आना और रुक कर ही जाना।

मैंने हाँ कहा और ऐसे ही कुछ और बातें हुई, फिर हमने फोन रख दिया।

कुछ दिन बितने के बाद मेरे पास एक चिट्ठी आई। दरअसल मैं रायपुर में एक प्राईवेट टेलीकॉम कंपनी की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गया था और उस चिठ्ठी में मुझे आफिस ज्वाइन करने के लिए बुलाया गया था। मैं एक हफ्ते बाद वहाँ रहने की तैयारी करके पहुँच गया और सबसे पहले मैं प्रियंका दीदी के पास गया क्योंकि इत्तेफाकन वो भी उसी लाईन के जॉब में थी।

जैसे ही दीदी ने मुझे देखा वो खुशी से उछल पड़ी, मुझे अजीब लगा पर मैंने सोचा कि अकेली रहती है तो अपने जान पहचान वालों को देख कर खुश होती होगी। खैर मैं अंदर बैठा, फिर फ्रेश होकर हम दोनों ने चाय पी, तभी दीदी को मैंने नौकरी की बात बताई।

दीदी फिर से बहुत खुश हो गई, दीदी ने मुझसे कहा- ज्वाइन कब कर रहे हो?

मैंने कहा- आज ही करना है दीदी!

तो उसने ‘हम्म्म…’ कहते हुए कुछ सोचने की मुद्रा में अपना सर हिलाया और कहा- तू दो मिनट रुक, मैं अभी आती हूँ।

और वो अपने रूम में चली गई।

जब बाहर आई तो मैं उसे देखते ही रह गया क्योंकि उसने बड़ी ही सैक्सी ड्रेस पहन रखी थी, लाईट ब्लू कलर की डीप नेक टॉप और ब्लैक कलर की जींस, बाल खुले हुए थे। हालांकि बेचारी सांवली और मोटी होने की वजह से ज्यादा खूबसूरत नहीं लग रही थी.

फिर भी जितना मैं सोचता था, उतनी बुरी भी नहीं थी। दरअसल शहर में रहने वाली लड़कियाँ अपने कपड़ों और फैशन से अपनी कमजोरियाँ छुपा लेती है। उसके हाथ में स्कूटी की चाबी और स्कार्फ थी, उसने स्कार्फ बांधते हुए ही कहा- अब चल!

मैंने पूछा- कहाँ दीदी?

तो उसने कहा- पहली बात तो तू मुझे दीदी कह के मत पुकारा कर! और अब मैं तुझे तेरे आफिस ले जा रही हूँ, वहाँ बहुत से लोग मेरी पहचान के हैं।

मैंने कहा- हाँ, यह तो ठीक है, आप भी चलो मेरे साथ, पर मैं आपको दीदी न कहूं तो और क्या कहूं?

तो उसने कहा- देख, मुझे सब प्रिया कहते हैं.. तू भी मुझे प्रिया कहा कर!

मैंने हाँ में सर हिलाया और दोनों स्कूटी से ऑफिस की ओर निकल गये।

रास्ते में बहुत सी बातें हुई, गाड़ी प्रिया चला रही थी, बातों के दौरान मैंने दीदी को प्रिया कहना शुरु कर दिया, दो चार बार अटपटा लगा फिर आदत हो गई। आफिस पहुँचते ही वो सबको ऐसे हाय हलो कर रही थी जैसे वो रोज ही यहाँ आती हो। मैं उसके पीछे-पीछे चला जा रहा था, उसने कैबिन के सामने पहुँच कर नॉक किया और ‘मे आई कम इन सर!’ कहते हुए अंदर घुस गई।

सर ने ‘अरे आओ प्रिया, बैठो! कहो कैसे आना हुआ?’ कहकर हमारा स्वागत किया।

वो कंपनी के मैनेजर थे। प्रिया ने खुद बैठते हुए मुझे भी बैठने का इशारा किया और उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए सर से कहा- यह मेरे शहर से आया है। मेरे भाई का दोस्त है, आप लोगों ने इसे अपनी कंपनी में जॉब के लिए सलेक्ट कर लिया है, आज ज्वाइन करने आया है। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

मैंने सर को हैलो कहा और अपना बायोडाटा और वो लैटर दिया। सर ने उसे जल्दी से देखा और साईड में रखते हुए कहा- शुरुआत में 10000/- मिलेगा, बाद में तुम्हारे काम के हिसाब से बढ़ जायेगा। और रहने के लिए… प्रिया ने सर को इतने में ही रोक दिया- नहीं सर, यह तो मेरे साथ ही मेरे घर पर रहेगा।

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मैंने कुछ कहने की कोशिश की.. लेकिन उसने फिर रोक दिया- तू चुप कर, तू कुछ नहीं जानता।

सर ने एक गहरी सांस ली और ओके कहते हुए मुझसे हाथ मिला कर बधाई दी।

प्रिया ने भी हाथ मिलाया और ‘ठीक है सर… तो आप इसे काम समझा दो, मैं चलती हूँ। मैं इसे छुट्टी के टाइम वापस ले जाऊंगी।

मैंने स्माइल दी, तो प्रिया ने कहा- एक मिनट बाहर आना!

मैं प्रिया के साथ बाहर तक गया, प्रिया ने बाहर निकल कर आफिस की दाईं ओर इशारा करके दिखाया- वो देख मेरा आफिस! हम दोनों के आफिस का टाइम लगभग सेम है, मेरी शिफ्ट टाइम 09.45 से 04.30 है और तुम्हारे ऑफिस का 10 से 5 लेकिन अगर अभी तुम्हें नाइट सिफ्ट भी कहें तो मना मत करना, हम बाद में सैटिंग कर लेंगे।

फिर वो चली गई, मैं अंदर आ गया।

अमित नाम के एक लड़के ने मुझे काम समझाया, वो सेम पोस्ट में था। शाम को प्रिया मेरे आफिस में आ गई और हम वापसी के लिए स्कूटी में निकल गये। प्रिया ने रास्ते में एक चौपाटी में गाड़ी रोक दी और फिर हम चौपाटी से गपशप करते हुए एक घंटे लेट घर पहुँचे।

अब हम बहुत अच्छे दोस्त की तरह रहने लगे थे, तो मैंने एक दिन चाय पीते-पीते प्रिया से उसके आत्महत्या के प्रयासों का कारण पूछ लिया। प्रिया ने चाय का कप टेबल पर रख कर एक लंबी गहरी सांस भरी, उसके आँखों में आंसू भर आए… और उसने मुझसे कहा कि अगर मैं उसका सच्चा दोस्त हूँ तो ये सवाल फिर कभी ना करूँ।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाकर तुरंत दूसरी बात छेड़ दी ताकि प्रिया का मन हल्का हो सके।  अब ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.. सब कुछ अच्छा ही चल रहा था, मेरे मन में प्रिया के लिए कोई गलत बात नहीं थी, फिर भी था तो मैं जवान लड़का ही।

ऐसे ही एक दिन रात को प्रिया अपने कमरे में जल्दी सोने चली गई और मैंने अपने मोबाइल पर सेक्सी कहानी पढ़नी शुरू कर दी। कहानी पढ़ते-पढ़ते मेरा हथियार फुंफकारने लगा, मैं इस वक्त हॉल में ही बैठा था, मैं अपने निक्कर के ऊपर से ही उसे सहलाने लगा।

मेरी उत्तेजना बढ़ती गई और मैं लंड को निक्कर से बाहर निकाल कर मसलने लगा और जोर-जोर से हिलाने लगा, मैं झड़ने ही वाला था कि प्रिया अचानक हॉल में आ गई, मैं कुछ ना कर सका। प्रिया ने नजरें चौड़ी करके सलामी देते और हाँफते हुए मेरे नन्हे शहजादे को देखा।

आप सभी को झड़ने के वक्त क्या बेचैनी रहती है.. इसका पता ही होगा, शायद मैं भी उस सुखद एहसास के चक्कर में सब कुछ भूल गया था और मैंने उसके सामने ही चार-पांच झटके और लगा दिए। फिर मेरा सैलाब फूट पड़ा.. कुछ बूँदें छिटक कर प्रिया के चेहरे पर तक चली गईं। ये सब महज चंद सेकंड में हुआ।

फिर प्रिया ने ‘सॉरी..’ कहा और कमरे में वापस चली गई।

मुझे रात भर नींद नहीं आई, मेरी गलती पर भी प्रिया ने खुद ‘सॉरी’ कहा, यह सोचकर मुझे खुद पर बहुत शर्म आ रही थी, सुबह उठ कर मैं प्रिया से नजर नहीं मिला पा रहा था।  प्रिया मेरे से बड़ी थी इसलिए वो मेरी हालत समझ गई, उसने मेरा हाथ पकड़ा और कहा- सौरभ.. रात की बात मैं भूल चुकी हूँ, तुम भी भूल जाओ, जवानी में ऐसी हरकतें अपने आप ही हो जाती हैं। मेरे लिए तुम कल जितने अच्छे थे.. आज भी उतने ही अच्छे हो।

उसके मुंह से इतनी बातें सुनकर मेरे मन का बोझ हल्का हुआ, फिर मैंने मौका अच्छा जानकर प्रिया से कह दिया- बूढ़ी तो तुम भी नहीं हुई हो.. तो क्या तुम्हारे लिए भी ये आम बात है?

प्रिया मेरे सवाल से चौंक गई और उसने मुझे घूर कर देखा, मैं डरने लगा कि मैंने फिर गलत तार तो नहीं छेड़ दिया।

उसने सोफे पर बैठते हुए मुझसे पूछा- आज कौन सा दिन है?

मैंने कहा- आज तो सन्डे है, पर पूछ क्यूं रही हो?

तो उसने कहा- क्योंकि आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी बताती हूँ, कहानी लंबी है इसलिए छुट्टी की पूछ रही थी। उस दिन भी तुमने मेरे आत्महत्या के प्रयासों के बारे में पूछा था ना? असल में यही सबसे बड़ा कारण है।

मैंने कहा- मैं समझा नहीं!

उसने कहा- तुम ऐसे समझोगे भी नहीं.. पूरी कहानी सुनोगे, तब ही समझ पाओगे।

उसने बोलना शुरू किया.. उसने जो कुछ भी बोला, वो एकदम साफ़ शब्दों में कहा था.. हालांकि ये कुछ ज्यादा ही खुल कर कहा था, पर जैसा उसने बताया मैं वैसा ही आपके सामने रख रहा हूँ।

प्रिया ने कहना शुरू किया- तुम तो जानते ही हो कि मैं शुरू से ही मोटी, सांवली सी दिखने वाली लड़की हूँ। इसलिए कालेज लाइफ में किसी ने मुझ पर चांस नहीं मारा और मेरा मन भी खुद से भी इन चीजों में नहीं गया, बस पढ़ाई करने में ही मैंने जिन्दगी गुजार दी। फिर घर में मेरी शादी की बातें होने लगीं, लेकिन हर बार मेरे भद्देपन के कारण लड़के मुझे रिजेक्ट कर देते थे।

दोस्तों.. मेरे दोस्त की बहन प्रिया ने मुझे अपनी जिन्दगी के पहलुओं से परिचित कराना शुरू कर दिया था। उसका ये खुलासा उसकी ही जुबानी काफी दुःखद था इसको पूरे विस्तार से समझने के बाद ही आपको इस कहानी का अर्थ समझ आ सकेगा।

प्रिया ने आगे बोलना शुरू किया- मेरे रिश्ते को लेकर घर वालों का तनाव भी बढ़ने लगा और नतीजा ये हुआ कि वो सब मुझे भी भला बुरा सुनाने लगे। मुझे खुद से घिन आने लगी, मेरा आत्मविश्वास भी गिरने लगा। ऐसे में पापा ने कहीं से एक लड़का ढूंढ निकाला.. मैं बहुत खुश हो गई, लड़का सामान्य था.. पर मेरी तुलना में बहुत अच्छा था।

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बड़े धूमधाम से हमारी शादी हुई, सुहागरात के बारे में मैंने सुना तो था कि पति-पत्नी के शारीरिक सम्बन्ध बनते हैं पर मुझे इसका कोई अनुभव नहीं था। मैं बिस्तर में बैठी डर रही थी कि आज रात क्या होगा, मन में भय था पर खुशी भी थी… क्योंकि आज मेरे जीवन की शुरूआत होनी थी।

कहते हैं न.. किसी भी लड़की का दो बार जन्म होता है, एक जब वो पैदा होती है और दूसरी बार जब शादी होकर अपने पति के पास आती है और पति उसे स्वीकार लेता है। सुहागरात बड़ी ही अनोखी रस्म होती है, इसके मायने मैं अब समझ पाई हूँ।

खैर.. अब रात गहराती गई और वो अब तक कमरे में नहीं आए थे, मुझे नींद सताने लगी थी.. तभी मुझे अपने कंधे पर किसी के छूने का अहसास हुआ, मैं चौंक कर पलटी तो देखा कि कोई और नहीं.. वो मेरे पति राज थे, मैं बिस्तर पर बैठ गई और सर पर पल्लू डाल लिया।

वो मेरे पास आकर बैठ गए और अपना कान पकड़ते हुए मुझसे कहा कि सुहागरात के दिन आपको इस तरह इंतजार कराने के लिए माफी चाहता हूँ, आप जो सजा देना चाहो, मुझे कुबूल है! उस वक्त मैं नजरें झुकाए बैठी थी, मैंने पलकों को थोड़ा उठाया और मुस्कुरा कर कहा- अब आगे से आप हमें कभी इंतजार ना करवाइएगा.. आपके लिए इतनी ही सजा काफी है।

उन्होंने ‘सजा मंजूर है..’ कहते हुए मुझे बांहों में भर लिया और मेरे गहने बड़ी नजाकत से उतारने लगे। पहले तो मैं शर्म से दोहरी हो गई, किसी पुरुष का ऐसा आलिंगन पहली बार था, हालांकि मैं पापा या भाई से कई बार लिपटी थी, पर मन के भाव से लिपटने का एहसास भी बदल जाता है और ऐसा ही हुआ। मेरे शरीर में कंपकपी सी हुई.. पर मैं जल्द ही संयत होकर उनका साथ देने लगी।

गहनों के बाद उन्होंने मेरी दुल्हन चुनरी भी उतार दी, मेरे दिल की धड़कनें और तेज होने लगीं, वो मेरे और करीब आ गए और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.. हाय राम.. ये तो मैंने अभी सोचा भी नहीं था। मेरे ‘वो’ तो बहुत तेज निकले, मैं घबराहट, शर्म और खुशी से लबरेज होने लगी।

मैंने तुरंत ही अपना चेहरा घुमा लिया.. पर उन्होंने अपने हाथों से मेरा चेहरा थाम लिया और अपनी ओर करते हुए कहा कि जानेमन शर्म औरत का सबसे मंहगा गहना होता है, लेकिन सुहागरात में ये गहना भी उतारना पड़ता है.. तभी तो पूर्ण मिलन संभव हो पाएगा।

मैं मुस्कुरा कर रह गई, मैं और कहती भी क्या.. लेकिन मेरी शर्म अब और बढ़ गई, तभी उन्होंने मेरे कंधे पर चुम्बन अंकित कर दिया और मैंने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढक लिया। उन्होंने अपने एक हाथ से मेरी पीठ सहलाई और दूसरे हाथ को मेरे लंहगे के अन्दर डाल कर मेरी जांघों को सहलाने लगे।

उहहहह मईया रे.. इतना उतावला पन.. हाय.. मैं खुश होऊं कि भयभीत.. मेरी समझ से परे था। उन्होंने मेरे जननांग को छूना चाहा और उनके छूने के पहले ही उसमें सरसराहट होने लगी, मेरे सीने के पर्वत कठोरतम होने लगे, मैं शर्म से लाल होकर चौंकने की मुद्रा में लंहगे में घुसे हाथ को पकड़ कर निकालने लगी।

उन्होंने हाथ वहाँ से निकाल तो दिया, पर तुरंत ही दूसरा पैंतरा आजमाते हुए, मेरे उरोजों को थाम लिया। मैं अब समझ चुकी थी कि आज मेरी जिन्दगी की सबसे हसीन रात की शुरूआत हो चुकी है, पर मुझ पर शर्म हावी थी, तो उन्होंने कहा- जान अब शरमाना छोड़ कर थोड़ा साथ दो ना..!

तो मैंने आँखें खोल कर उनकी आँखों में देखा और झिझक से थोड़ा बाहर आते हुए मस्ती से उनकी गर्दन में अपनी बांहों का हार डालकर उन्हें अपनी ओर खींचा और उनके कानों में कहा कि जनाब सल्तनत तो आपको जीतनी है, हम तो मैदान में डटे रहकर अपनी सल्तनत का बचाव करेंगें। अब आप ये कैसे करते हैं आप ही जानिए।

इतना सुनते ही उनके अन्दर अलग ही जोश आ गया.. उन्होंने मेरे ब्लाउज का हुक खोला नहीं.. बल्कि सीधे खींच कर तोड़ दिया और मिनटों में ही अपने कपड़ों को भी निकाल फेंका। अब वो केवल अंतर्वस्त्र में रह गए थे।

उन्होंने अगले ही पल मेरा लंहगा भी खींच दिया, मैंने हल्का प्रतिरोध जताया, लेकिन मैं खुद भी इस कामक्रीड़ा में डूब जाना चाहती थी। अब वो मेरे ऊपर छा गए और मेरे सीने पर उभरी दोनों पर्वत चोटियों को एक करने की चेष्टा करने लगे। अनायास ही मेरे मुंह से सिसकारी निकलने लगी, तभी उन्होंने मेरे सीने की घाटी पर जीभ फिरा दी।

हायय… अब तो मेरा खुद पर संयम रखना नामुमकिन था। उधर नीचे उनका सख्त हो चुका वो बेलन.. मुझे चुभ रहा था, मैं अनुमान लगा सकती थी कि मेरे नन्हे जनाब की कद काठी कम से कम आठ इंच तो होगी ही! मुझे खून खराबे का डर तो था, लेकिन यह भी पता था कि आज नहीं तो कल ये तो होना ही है, इसलिए मैं आँखें मूँदे ही आने वाले पलों का आनन्द लेने लगी, मेरा प्रतिरोध भी अब सहयोग में बदलने लगा था।

वो अब मेरे अंतर्वस्त्रों को भी फाड़ने की कोशिश करने लगे, उनके इस प्रयास से मुझे तकलीफ होने लगी.. तो मैंने खुद ही उन्हें निकालने में उनकी मदद कर दी। तभी उन्होंने एक झटके में अपने बचे कपड़े भी निकाल फेंके। अब हम दोनों मादरजात नग्न अवस्था में पड़े थे। उन्होंने पहली बार मेरी योनि में हाथ फिराया और खुश होकर बोले- क्या कयामत की बनावट है यार, इतनी मखमली, रोयें तक नहीं हैं..! अय हय.. मेरी तो किस्मत खुल गई!

ऐसा कहते हुए उन्होंने मेरी पहले से गीली हो चुकी योनि में अपनी एक उंगली डाल दी। मैं इस हमले के लिए तैयार नहीं थी, मैं चिहुंक उठी, लेकिन फिर अगले हमले का इंतजार करने लगी। कुछ देर पहले सल्तनत की रक्षा करने वाली.. अब खुद ही पूरी सल्तनत लुटाने को तैयार बैठी थी।

अब तो मेरा भी हाथ उनके सख्त मूसल से लिंग को सहलाने लगा था, साथ ही मेरे जिस्म का हर अंग उनके चुम्बन से सराबोर हो रहा था। मेरी योनि तो कब से उसके लिंग के लिए मरी जा रही थी और अब अपनी सल्तनत लुटाने का वक्त भी आ ही गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

राज मेरे पैरों की तरफ घुटनों के बल बैठ गए और उन्होंने मेरे दोनों पैरों को फैला कर मेरी योनि को बड़े प्यार से सहलाया.. मैं तड़प उठी। फिर उन्होंने मेरी योनि पर एक चुम्बन अंकित किया, मेरे शरीर के रोयें खड़े हो गए और फिर वे अपने लिंग महाराज को मेरी योनि के मुहाने पर टिका कर मुझ पर झुक गए।

उन्होंने थोड़ी ताकत लगाई और अपना लगभग आधा लिंग मेरी योनि की दीवारों से रगड़ते हुए, मेरी झिल्ली को फाड़ते हुए अन्दर पेवस्त करा दिया। मैं दर्द के मारे बिलबिला उठी और छूटने की नाकाम कोशिश करने लगी। पर वो तो मुझ पर किसी शेर की तरह झपट्टा मारने लगे.

उन्होंने मेरे उरोजों को दबाते हुए एक और जोर का झटका दिया और अपने लिंग को जड़ तक मेरी योनि में बिठा दिया। मैं रो पड़ी पर उसे कहाँ कोई फर्क पड़ना था, उन्होंने हंसते हुए कहा- क्यों जानेमन.. अब हुई ना सल्तनत फतह?

मैंने मरी सी आवाज में कहा- हाँ हो तो गई.. पर जंग में तो मेरा ही खून बहा है ना, आपको क्या फर्क पड़ना है।

उनका जवाब था कि जंग में तो खून-खराबा आम बात है.. अब सिर्फ लड़ाई का मजा लो!

यह कहते हुए उन्होंने फिर एक बार अपना पूरा लिंग ‘पक्क.. की आवाज के साथ बाहर खींच लिया। किसी बड़े मशरूम की तरह दिखने वाला लिंग का अग्र भाग मेरी योनि से बाहर आ गया.. मुझे बड़ा मजा आया।

फिर उन्होंने मेरी योनि को अपने लिंग के अग्र भाग से सहलाया और एक ही बार में अपना तना हुआ लिंग मेरी योनि की जड़ तक बिठा दिया। इस अप्रत्याशित प्रहार से मैं लगभग बेहोश सी हो गई, पर कमरा ‘आहह ऊहह..’ की आवाजों से गूंज उठा।

जब मैं थोड़ी संयत हुई.. तब एक लम्बे दौर की घमासान पलंगतोड़ कामक्रीड़ा के बाद हम दोनों एक साथ झड़ गए और एक दूसरे से चिपक कर यूं ही लेटे-लेटे कब नींद आ गई.. पता नहीं चला। प्रिया ने आगे बताना शुरू किया- मैं रात भर की कामक्रीड़ा के बाद ऐसे ही सो गई थी और जब सुबह ‘खट’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला, उसी के साथ ही मेरी नींद भी खुल गई।

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मैंने देखा सामने राज खड़े थे, मैं चौंक गई क्योंकि राज तो मेरे साथ थे, पर वो दरवाजे से कैसे आ रहे हैं। उहहह.. मुझे अब होश आया कि बीती रात मेरे साथ कुछ भी नहीं हुआ, असल में मैंने रात भर अपने सुहागरात के सपने देखे हैं। वास्तव में मेरी सुहागरात तो कोरी ही रह गई।

मैंने अकचका कर राज से पूछा- आप रात भर नहीं आए..! और मैं भी आपका इंतजार करते करते सो गई थी।

उनका मुंह खुलते ही दारू की बदबू आई, उन्होंने कहा- वो दोस्तों के साथ कब रात बीत गई.. पता ही नहीं चला!

मैंने ‘कोई बात नहीं..’ कहते हुए उन्हें बिस्तर में लिटाया और सुला कर घर के काम-काज में लग गई।

इसी तरह की दिनचर्या चलने लगी थी, मैंने समझदारी से कुछ दिनों में अपने पति को छोड़कर घर के सभी सदस्यों को खुश कर लिया, राज कभी रात को घर आते थे और कभी नहीं भी आते थे और तीन महीने बाद भी मेरी असली सुहागरात का वक्त नहीं आया था। दोस्तों अभी ये कामुक कहानी जारी रहेगी…

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