Haveli Mein Chudai XXX
मैं गाँव की रहने वाली हूँ. ये फरीदाबाद में आता है. मात्र कहने को गांव है, हम लोगो को सारी सुविधा दिल्ली वाली ही मिलती है. हमारा ये गांव दिल्ली फरीदाबाद बोर्डर से सटा हुआ है. हम सभी गांव वाले पिछले ४० सालों से विशम्भर सिंह से बहुत प्रताड़ित है. वो हमारे गांव का प्रधान है. Haveli Mein Chudai XXX
हर बार जब इलेक्शन आता है तो पैसा बाटकर जीत जाता है और हमारे गाँव का कोई विकास नही करता. खैर किसी तरह हम गाँववाले जैसे तैसे अपनी जिंदगी काट रहें थे. पर पिछले महीने तो गजब ही हो गया. प्रधान मेरी जमीन को कब्ज़ा करना चाहता था.
उसने किसी बड़े बिल्डर को मेरी जमीन दिखाई तो बिल्डर वहां कोई माल बनाना चाहता था. उसके लिए उसने प्रधान से कहा. कुछ रोज पहले जब प्रधान मेरे पास आया तो मैंने उसको खाट पर बिठाया. मेरे पति शम्भू घर पर नही थे. वो खेत गए थे. मैं अपने कच्चे घर के बाहर ही खड़ी थी.
अरे कैसी हो शर्मीला?? विशम्भर सिंह [हमारे प्रधान] ने बड़ी खुसमिजाजी से पूछा.
सही हूँ मालिक! मैंने कहा और बैठने के लिए उनको खाट दी.
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हमारा ये प्रधान उपर से तो खुद को हमारा रक्षक दिखाता था, पर था बहुत हरामी पीस. हमारे गांव में उसने एक भी नाली, एक भी सड़क नही बनवाई थी. सारा पैसा वो दबा लेता था. प्रधान का भाई सरकरी कोटे राशन की दूकान चलाता था, जिसमे वो गरीब लोगों कोई कुछ नही बाटता था.
१० लीटर केरोसिन की जगह हम गरीबो को वो १ लीटर, २ लीटर केरोसीन बाटता था. वहीँ २० किलो गेहूं और चावल की जगह ५ ५ किलो गेहूं चावल बाटता था और कहता था की कुछ बचा ही नही. पर बाहर से विशम्भर सिंह खुद को हम गरीब गांववालों का मसीहा मानता था.
४० साल के इतिहास में उसने एक भी नाली और सड़क हमारे गाँव में नही बनायी. उपर से सभी ग्राम पंचायत के तालाबों में जहाँ गाँव वालों के घरों का वेस्ट पानी जाता था, उसे भी उसने बेच दिया और पैसे अपनी जेब में रख लिए. वो हमारे गांव की जवान लड़कियों की ताड़ा करता था. उसकी नियत खराब थी.
क्या हुक्म है मालिक?? मैंने कहा.
तुम्हारी वो सड़क वाली जमीन पर एक बड़ी कंपनी अपना माल बनाना चाहती है. इसलिए वो जमीन तुम उसको बेच दो. पैसा भी अच्छा मिलेगा’ विशम्भर सिंह बोला.
वो ६० साल का हो चुका था. हमेशा धोती कुर्ता पहनता था. उसके सिर के सारे बाल पक चुके थे. विशम्भर सिंह गोल चेहरे वाला था. वो हमेशा सिर हिला हिलाकर बड़ी इस्टाइल से बात करता था. शाम को जब मेरे पति घर लौटे तो मैंने उनको ये बात बताई.
वो इस बात पर बहुत गुस्सा हुए. वो खेत के किनारे १० बीघा, वहीँ हमारे पास एक बची कुची जमीन थी. अगर उसे भी हम बेच देंगे तो खाएंगे क्या. मेरे पति कहने लगे. उपर से हमारे गांव में जिन जिन लोगों ने अपनी जमीन बेच दी थी वो धीरे धीरे बैंक में जमा पैसा खा गए थे और कुछ ही सालों में ठनठन गोपाल बन गए थे.
इसलिए मैं और मेरे पति पूरी तरह से जमीन उस शोपिंग माल बनाने वाली कंपनी के खिलाफ थे. कुछ दिन बाद प्रधान विशम्भर सिंह का आदमी पूछने आया की हमने क्या फैसला किया है. मैं उसको बताया की हम जमीन नही बेचेंगे. इस बात पर वो क्रोधित हो गया और धमकाने लगा.
कुछ बीते तो प्रधान के जिस खेत को हम जोतते बोते थे, मारे जलन और इर्षा के उनसे हमसे ले लिया. हमने उसको तुरंत दे दिया. वहाँ हमारी गेहूं की फसल लगी हुई थी. कुछ दी दिन में उसने गेहूं निकलने वाला था, पर ठाकुर ने मेरे परिवार को सबक सिखाने के लिए वो अपनी जमीन ले ली. कुछ दिन बाद ठाकुर फिर मेरे पास आया.
ओ शर्मीला, तुमको मैं प्यार से समझा रहा हूँ की वो जमीन उस कंपनी को दे दो वो मुझे आँख दिखाते हुए बोला.
नही! विशम्भर सिंह तुम यहाँ से चले जाओ. इसमें में भलाई है. हम वो जमीन नही बेचेंगे! मैंने साफ साफ कहा.
शर्मीला, इसका परिणाम अच्छा नही होगा!! विशम्भर सिंह धमकी देने लगा.
कोई बात नही! मैंने कहा.
वो चिढ गया. और मेरे घर से चला गया. मैं अपनी गायों को चराने घास के मैदान में ले गयी. मैं एक पेड़ के किनारे बैठकर अपनी गायों को चारा रही थी. की इतने में गाँव की एक लड़की आई.
शर्मीला बुआ!! शर्मीला बुआ , वो शम्भू चाचा को प्रधान अपने कोठी पर उठा ले गया. लड़की बोली. मैं सारा काम छोड़ के भाग के विशम्भर सिंह के पास देखा. देखा तो मेरा होश उड़ गया. विशम्भर सिंह के आदमी मेरे पति शम्भू को एक पेड़ से बांधे हुए थे. लाठियों और डंडों की बौछार उन पर हो रही थी.
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बता शम्भू, जमीन उस कम्पनी को बेचेगा की नही?? बता साले?? उसके आदमी मेरे पति को मार मारकर उससे पूछ रहें थे.
नही मेरे पति को मत मारो! छोड़ दो इसे! मैंने विशम्भर सिंह के पैर पकड़ लिए. वो हँसे लगा.
और मारो इसके मर्द को, बहुत चर्बी चढ़ गयी है इसको. जब पुरे गाँव ने अपनी जमीन उस शौपिंग माल बनाने वाली कम्पनी को बेच दी, इसे क्यों हर्ज है. और मारों शम्भू को’ हमारा प्रधान विशम्भर सिंह बोला. मैं रोने लगी. मेरे सामने ही मेरे पति शम्भू को करीब १०० लाठी पड़ा होगा. प्रधान के आदमी चाबुक भी मेरे मर्द पर बरसा रहें थे.
छोड़ दो मेरे पति को!! मैंने प्रधान के पैर पकड़ रखे थे. मैं बिलक बिलक कर रो रही थी. पर वो कोई बात नही सुन रहा था. फिर विशम्भर सिंह ने मारे द्वेष और इर्षा के मेरे पति पर चोरी का झूठा आरोप लगा दिया और उनको जेल में बंद करवा दिया. मैं अगले दिन शाम को फिर उसके पास गयी. ६० साल का विशम्भर सिंह मुझे देख के हसंने लगा. आज मुझे उसने उपर से नीचे तक घूर के देखा.
अरी ओ शर्मीला!! मैं तेरे पति को जेल से छुडवा भी दूँगा और तेरी जमीन भी छोड़ दूँगा. पर तू एक काम कर दे. अपनी ये जवानी तू एक सप्ताह के लिए मेरे नाम करदे’ प्रधान बोला
मैं तुरंत उसका मतलब समझ गयी. प्रधान विशम्भर सिंह की मुझ पर अब बुरी नियत थी. वो मेरी जमीन के साथ साथ मुझ पर भी गन्दी नियत रखता था. मेरी जमीन नही ले सका तो अब मुझ पर कुदृष्टी डालने लगा. मैंने पीले रंग की साड़ी ब्लाउज पहन रखा था.
मेरे ब्लाउज के खुले गहरे गले से मेरा खूबसूरत जिस्म दिख रहा था. जब मैंने विशम्भर सिंह की गन्दी नजरे पर बदन पर देखी तो मैंने अपना ब्लाउज जरा उपर किया. और साड़ी के आँचल से मैंने अपना जिस्म और ब्लाउज का वो खुला वाला भाग ढँक लिया.
विशम्भर सिंह !! भगवान के लिए अपना झूठा चोरी वाला आरोप वापिस के लो और मेरे पति को छुडा दो! मैंने उससे हाथ जोडते हुए कहा.
देख शर्मीला!! या तो अपनी जमीन के कागज मुझको लाके दे दे या अपनी शानदार जवानी की जमीन मेरे नाम कर दे’ वो कमीना बोला.
दोस्तों, मैं रोते रोते घर चली आई. मैं गहन सोच में डूब गयी थी. रात भर मैं सो नही सकी. अपनी जमीन उस दुस्त विशम्भर सिंह को सौप दूँ, या खुद उससे चुदवा लूँ. तब ही वो अपना चोरी का आरोप वाविस लेता. मैं रात में जरा भी सो ना सकी.
एक दिल कह रहा था की जमीन के कागज़ उसको दे दूँ, फिर दूसरा दिल कहता था की नही ये बिल्कुल नही नही होगा. इसलिए प्रधान के साथ १ हफ्ते तक सो जाऊं. सुबह जब हुई तो मैं अपना फैलसा कर चुकी थी. उस दिन शाम के ८ बजे मैं अपने गाँव के प्रधान विशम्भर सिंह के पास जा पहुची.
विशम्भर सिंह! मैं आ गयी हूँ. जो करना है, कर ले! मैंने कहा.
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वो कमीना अपने गुर्गों के साथ शराब पी रहा था. विशम्भर सिंह और उसके सब साथियों के हाथों में एक एक शराब का ग्लास था.
शर्मीला!! बड़ी चालाक है तू, इज्जत देने को तयार है, पर जमीन नही. मुझे कोई दिक्कत नही. मैं इससे ही काम चला लूँगा! विशम्भर सिंह बोला. वो मुझे अंदर कमरे में ले गया. मैं जानती थी की अंदर क्या होगा. अंदर जाते ही वो मेरे जिस्म पर टूट पड़ा.
मेरे गालों पर उसने चुम्मा लेने की कोसिस की. आखिर में ले ही लिया. मैंने कुछ नही कहा. अगर ये कमीना मुझको जमकर चोदना ही चाहता है तो कोई बात नही. कौन सा मेरी चूत घट जाएगी या कम हो जाएगी. मेरे गाँव का ये दुस्त प्रधान विशम्भर सिंग मेरे सीने ने चिपक गया. मैं कुछ नही कर सकी.
उसने अपने शयनकक्ष में मुझे ले जाकर पलंग पर लिटा दिया. मैं अभी ३० साल की थी, भरपूर यौवन और रूप की देवी थी मैं. मैं बहुत गोरी थी और मेरे काले काले बालों की जुल्फे जब उडती थी मेरे गांव के अच्छे अच्छे मर्द रास्ता चलना भूल जाते थे.
मुझे जरा भी भनक नही थी, पर शुरू से ही विशम्भर सिंह की नजरें मेरे रूप रंग पर थी. वो मुझे से चिपक गया. मुझे उसने अपनी दो विशाल ताकतवर भुजाओं में पकड़ लिया. मेरी पीठ पर उसके हाथ ही लहरा रहें थे. विशम्भर मेरे होठों को पीने लगा.
आज पहली चक्कर किसी गैर मर्द ने मुझको छुआ था. वरना अभी तक तो मेरे पति ने ही मुझे छुआ था. सिर्फ उन्होंने ही मुझे आज तक चोदा खाया था. मैं एक पति व्रता औरत थी. विशम्भर सिंह के हाथ मेरे पीठ को नापने लगे. वो मेरे होठ को अपने होंठो से पी रहा था.
मेरे मस्त मस्त मम्मों पर भी वो हाथ रख रहा था. अचानक पंखे की हवा से मेरा आँचल उड़ गया और मेरा ब्लाउज प्रधान को दिखने लगा. मेरे बड़े साइज़ के चुच्चे भी उनको दिख गए. वो बिल्कुल पागल हो गया. मेरे ब्लोस के उपर से ही वो मेरी मस्त मस्त गोल गोल छातियाँ दबाने लगा.
मुझे बड़ा खराब लगा ऐसे किसी गैर मर्द से अपनी गोल गोल भरी भरी छातियाँ दबवाते हुए. ये मेरे सतीत्व पर सीधा प्रहार था. पर मैं मजबूर थी. कहीं मुझ जैसी गरीब का ब्लाउज फट गया तो मैं जल्दी दोबारा न्या ब्लाउज ले भी नही पाऊँगी. ये सोच मैंने खुद अपने कसे कसे ब्लाउज की बटन खोल दी.
मेरे बड़े बड़े ३६ साइज़ की मस्त मस्त छातियों को देखकर विशम्भर सिंह पागल हो गया. वो जोर जोर से मेरे दूध दबाने लगा. मैं कुछ नही कर सकी. फिर उसने अपने कपड़े निकाल दिए. ६० साल की बुढौती की उम्र में भी उसका लौड़ा बड़ा मोटा तंदुरुस्त था.
उसने मेरी साड़ी निकाल अंत में मेरे पेटीकोट का नारा भी खोल दिया और मुझे बेआभ्रुरु कर दिया. इससे पहले मैं सिर्फ अपने पति के सामने ही नंगी हुई थी. इससे पहले मैंने सिर्फ अपने पति से सामने अपने पेटीकोट का नारा खोला था. आज पहली बार मैं किसी गैर मर्द के सामने नंगी हुई थी.
विशम्भर सिंह ने अपना लौड़ा हाथ में ले लिया और मेरे चुच्चों पर जोर जोर से मोटे लौड़े से थपकी देने लगा. मेरे मुलायम चुच्चों में वो अपना मोटा लौड़ा घुसाने लगा. फिर वो मेरे चुच्चे पीने लगा. कुछ देर पश्चात उसने मेरे पैर खोल दिए. और मेरी मस्त मस्त लाल लाल चूत पर आ गया और पीने लगा. आज तक सिर्फ मेरे मर्द शम्भू ने ही मेरी चूत पी थी. क्यूंकि इसे पीने का अधिकार सिर्फ मेरे पति का था. पर आज वो जेल में झूठे इल्जाम में बंद. उनको छुड़ाना मेरी जिम्मेदारी थी.
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मैंने एक नजर नीचे डाली. विशम्भर सिंह अपनी जीभ से मेरी चूत मस्ती से पी रहा रहा. मैं बाहर से तो नही, पर अंदर से जरुर रो रही थी. फिर वो मुझे चोदने लगा. जैसे ही उसने लंड मेरे भोसड़े में डाला, मैं उछल पडी. फिर वो मुझे चोदने लगा. मैं मजबूर थी. चुदवाना ही मात्र एक विकल्प था. मैं चुद रही थी. मेरे गांव का वो कमीना प्रधान मुझे चोद रहा था. मुझे फट फट चोदने की आवाज उसके पुरे कमरे में गूंज रही थी.
वो मुझको ले रहा था. अपने पति को छुडवाने के लिए मैं दे रही थी. विशम्भर सिंह ने मुझे पूरा २ घंटे बेदर्दी से चोदा और मेरी चूत में ही अपना माल गिरा दिया. फिर उसने मेरी गाड़ भी २ बार ली. जब मैं उसकी कोठी से बाहर निकली तो उसके आदमी मुझे देखके हँसने लगी. देखो शर्मीला कैसे चुदके जा रही है! अपने मर्द को छुडवाने की फ़ीस इसने विशम्भर सिंह को दे दी. अब कल १२ बजे तक इसका मर्द छूट जाएगा’ वो लोग बोले. मैं घर चली आई. अगले दिन मेरा मर्द शम्भू दोपहर १२ बजे तक जेल से छूटकर घर आ गया. मैं खुश हो गयी.
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