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कामवाली बाई और धोबन को एक साथ पेला

अप्रैल 30, 2025 by hamari

Sex Master Hindi Story

दोस्तो मैं हूं संदीप, उम्र 27 साल। दिल्ली के पास गुडगाँव में रहता हूंI गुडगाँव में ही चार सितारा होटल में शिफ्ट मैनेजर हूं। होटल में अलग अलग समय की शिफ्टें चलती हैं फैक्ट्रियों की तरह नहीं सुबह आठ से साढ़े चार। शाम साढ़े चार से रात एक बजे तक। होटल की शिफ्ट किसी भी समय शुरू हो सकती है। Sex Master Hindi Story

कई कई बार कोइ ना आए तो दो दो शिफ्टों में भी काम करना पड़ता है। उसके बदले में छुट्टी मिल जाती है। 25 साल की माधुरी मेरी पत्नी है। गुडगाँव में ही निजी क्षेत्र के बैंक में काम करती है। दो साल पहले ही हमारी शादी हुई है। कोइ बच्चा अभी नहीं है, मगर अगले महीने होने वाला है।

कायदे के हिसाब से माधुरी को बैंक से छह महीने की छुट्टी मिलेगी मैटरनिटी लीव (मातृत्व अवकाश)। कुछ भी कह लो। छुट्टी तो छुट्टी ही है। अगले हफ्ते से माधुरी गाजियाबाद चली जाएगी, अपने मायके – डिलिवरी के लिए। गाजियाबाद वो चार पांच महीने तो लगाएगी ही। उसके बाद भी आती जाती रहेगी।

इस दौरान मैं ही गाजियाबाद जाया करूंगा। इस दौरान माधुरी के साथ चुदाई होना तो कुछ मुश्किल सा ही लगता है। माधुरी को इस बात की बड़ी चिंता रहती है की उसके जाने के बाद मुझे कोइ परेशानी ना हो। काम वाली कंचन और धोबन वंदना को ख़ास हिदायत है कि उसके जाने के बाद उन्होंने छुट्टी नहीं करनी है – “साहब को कोइ परेशानी नहीं होनी चाहिए उसकी गैरमौजूदगी में”। पत्नी हो तो ऐसी।

काम वालियों को पटाना मेरी पत्नी – माधुरी खूब जानती है। किसी ना किसी बहाने उन्हें पैसे देती रहती है। एडवांस के लिए कभी भी मना नहीं करती। माधुरी डिलीवरी के लिए चली गयी और इन काम वालियों ने भी “साहब” क्या खूब ख्याल रक्खा। ऐसा ख्याल कि माधुरी ने कभी सोचा भी नहीं होगा।

एक बात बता दूं। अगर किसी ने घर में काम करने वाली बाई को, धोबन को या मोहल्ले में सफाई करने वाली जवान औरत को नहीं चोदा तो उसने ज़िंदगी में कुछ नहीं किया, बस घास ही उखाड़ी है। ये ज्ञान मुझे पहले नहीं था – मगर अब है। अब पूछने वाले पूछेंगे कि भई ये तो बताओ, इनके चुदाई में ऐसा भी क्या ख़ास होता है। चूत तो चूत ही होती है – चाहे काम वाली की हो या घरवाली की।

बात इन पूछने वालों की भी ठीक है। मगर यहां सौ बात की एक बात ये है कि शारीरिक मेहनत करने के कारण इनकी मम्मे, चूतड़ और चूत एकदम टाइट होते हैं और चुदाई से पहले या चुदाई के दौरान हमारी शहरी बीवीयों की तरह इनकी चूतें पानी नहीं छोड़ती।

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अब पूछने वाले पूछेंगे कि भई ये तो बताओ, इनके चुदाई में ऐसा भी क्या ख़ास होता है। चूत तो चूत ही होती है – चाहे काम वाली की हो या घरवाली की। बात इन पूछने वालों की भी ठीक है। मगर यहां सौ बात की एक बात ये है कि शारीरिक मेहनत करने के कारण इनकी मम्मे, चूतड़ और चूत एकदम टाइट होते हैं और चुदाई से पहले या चुदाई के दौरान हमारी शहरी बीवीयों की तरह इनकी चूतें पानी नहीं छोड़ती।

चुदाई के वक़्त लंड इनकी चूत में रगड़ा खा कर जाता है – आआह… क्या रगड़ा लगता है लंड कोI मजा ही आ जाता है। दूसरी बात है कि इनके पति इनकी बढ़िया चुदाई नहीं कर पाते। मगर इसमें काम वालियों का कोइ कसूर नहीं। इन कामवालियों के मर्द बेचारे दस बारह घंटे के काम से थके मांदे घर आते हैं खाना खा कर घरवाली के ऊपर सवार हो जाते हैं पानी छुड़ाते हैं और सो जाते हैं।

घरवाली की चुदाई उनके लिए नींद की गोली खाने की तरह होती है। चुदाई की और सो गए। एक काम की थकान, दूसरी चुदाई की थकान। बढ़िया नींद आती है। साथ ही इनके पति कालोनियों के ये रेढ़ी, ठेले लगाने वाले, मिस्त्री मज़दूर नशा बहुत करते हैं।

बीवियों की पिटाई इनके लिए आम बात है औरतों की पिटाई इन कालोनियों में मर्दानगी की निशानी समझी जाती है। यही दो चार कारण है कि इनकी औरतें बढ़िया मर्द, बढ़िया लंड और बढ़िया चुदाई की तलाश में रहती हैं। उनकी देखा देखी इनकी कुंवारी लडकियां भी उसी लाइन पर चल पड़ती हैं। बढ़िया मर्द, बढ़िया लंड और बढ़िया चुदाई की तलाश में I

अब आते हैं असली किस्से पर कि मुझे ये ज्ञान कैसे हुआ कि अगर किसी ने घर में काम करने वाली बाई को, धोबन को या मोहल्ले में सफाई करने वाली जवान औरत को नहीं चोदा तो उसने ज़िंदगी में कुछ नहीं किया, बस घास ही उखाड़ी है। ये तो सभी जानते हैं कि शहरों में लगभग सभी घरों में कामवालियां झाड़ू पोछा और बर्तन करने आती हैं।

वैसे तो ये हर उम्र की होती हैं मगर हमारे घर जो आती है – कंचन – वो तीस की है या शायद बत्तीस की या चौंतीस की ? कद होगा पांच फुट एक या फिर दो इंच। इन काम वालियों की उम्र का अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है। बस यही देखा जा सकता है कि जिस्म कड़क है या ढीला ढाला है। हमारी काम वाली कंचन का जिस्म कड़क है – उम्र चाहे जो हो। ये तनी हुए चूचियां सख्त उभरे हुए चूतड़। वैसे मुझे तो देखने कंचन में तीस से कम की ही लगती है I

कंचन – हमारी काम वाली, हंसमुख खुशमिजाज और बातूनी है। काम करते करते बातें करती रहती है। कोइ सुन रहा है या नहीं इससे उसे कोइ मतलब नहीं।

कंचन का पति सब्ज़ी का ठेला लगाता है – इन्द्रेश सब्ज़ी वाला। एक नंबर का नशेड़ी। कोइ दिन ऐसा नहीं होता जब रात को नशा करके घर न आता हो और अपनी बीवी कंचन से झगड़ा न करता हो। कंचन जब हमारे घर सुबह काम करने आती है तो पहले दस मिनट रात की पूरी रिपोर्ट देती है। अगर मेरी पत्नी माधुरी घर में है तो उसे – अगर माधुरी घर पर नहीं है नहीं तो मुझे।

जब कंचन मुझ से बात कर रही होते है तो उसकी चूचियों में चूतड़ों पर और चूत वाली जगह पर बड़ी खुजली होती रहती है। हमेशा खुजाती रहती है। कई बार मैं हैरान होता हूं कि मेरी बीवी माधुरी से बात करते हुए कंचन को चूचियों, चूतड़ों और चूत पर खुजली क्यों नहीं होती। शायद माधुरी के पास वो चीज़ नहीं है जो मेरे पास है – लंड।

कभी कभी कंचन के साथ लड़की भी आती है – लता – देखने में अट्ठारह बीस की लगती है। किसी को नहीं पता उसका कंचन के साथ क्या रिश्ता है। लता कंचन को मौसी बुलाती है मेरी बीवी माधुरी को मैडम और मुझे सर बुलाती है, कंचन जितने घरों में भी काम करती हैं सभी को उसने लता के साथ अपना रिश्ता अलग अलग बता रखा है। किसी को कहती है लता उसकी भतीजी है – किसी को कुछ किसी को कुछ।

किसी को भी – मेरे समेत – इससे कोइ मतलब नहीं कि वो कंचन की क्या लगती है। मोटी बात ये है कि लता सुन्दर है जवान है कड़क है – और शायद अब तक चुदी भी नहीं – कुंवारी है – सील बंद। लता जब भी हमारे घर आती है मुझे बड़ी अजीब नजरों से देखती है।

लता छोटे कद की है – पांच भी मुश्किल से होगी। शरीर से गोल मटोल। भरे जिस्म वाली I बड़ी बड़ी चूचियां और बड़े बड़े ही चूतड़। नैन नक्श बंगालनों जैसे – मुझे तो बंगाल की ही लगती है। शायद सब को ये बात मालूम नहीं कि असली और कुदरती सुंदरता या तो कश्मीरी लड़कियों में होती है – गोरी चिट्टी गुलाबी रंगत की, या फिर बंगाल की लड़कियों की। सांवले रंग की ये गोलमटोल बंगालनें – ये बड़ी बड़ी आँखें, गोल गोल होंठ।

बंगालनों के गोल गोल होंठ देख कर हमेशा मन करता है पहले तो इन होठों को चूसा जाये, फिर इनसे लंड चुसवाया जाये। कंचन के साथ आने वाली लड़की लता को देख कर भी मुझे ऐसा ही लगता रहता है। शहरी लोग घर में कपड़े धोने की मशीन होने के बावजूद अक्सर काम वालियों से कपड़े भी धुलवाते हैं। उनका मानना है की मशीन की धुलाई से कपड़े खराब हो जाते हैं।

मुझे तो अक्सर ऐसा लगता है कि कपड़े धोने की मशीन घर में इस लिए रखी जाती है कि पड़ोसी और रिश्तेदार ये ना कहें “लो जी इनके घर में तो कपड़े धोने की मशीन भी नहीं है”। कम से कम हमारी घर में तो कपड़े धोने की मशीन होने का यही कारण है।

कई घरों की काम वालियां कपड़े धोने से मना कर देती हैं क्योंकि कपड़े धोते हुए उनके अपने कपड़े गीले हो जाते हैं। ऐसे में कई लोग धोबन से कपड़े धुलवाते हैं। धोबनें पैसे तो जरूर थोड़े ज्यादा लेती हैं, मगर कपड़े बढ़िया धोती हैं – चका चक।

मेरी पत्नी कहा करती है धोबन की सबसे बड़ी पहचान है कि वो कपड़े तो बढ़िया धोती ही हैं, कपड़े धोते समय उनके अपने कपड़े कभी गीले नहीं होते। हमारे घर में भी ऐसी ही एक धोबन कपड़े धोने आती है – वंदना। उम्र होगी यही कोइ 30 – 32 साल। वही बात – इनकी उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल है। कंचन की ही तरह वंदना भी कड़क है। मुझे तो वंदना भी तीस से कम की ही लगती है।

वंदना मुझे साहब बुलाती है और माधुरी को बीबी जी। वंदना का घरवाला – मोहन – पास ही कपड़े इस्त्री करने वाला ठेला लगाता है। अगर कभी वंदना लोगों के घरों में कपड़े धोने से जल्दी फारिग हो जाती है तो ठेले पर चली जाती है पति मोहन की मदद करने। वंदना फिर कपड़े इस्त्री करती है और मोहन बैठ कर बीड़ी पीता है।

वंदना भी कद की छोटी है – पांच फुट एक इंच या दो इंच होगी। हल्की सांवली है मगर है ग़ज़ब की सुन्दर। काम वाली कंचन और धोबन वंदना मुझे तो दोनों एक जैसी ही लगती हैं। दोनों का कद भी बराबर सा ही है और जिस्म भी एक सा कड़क। वंदना कंचन से थोड़ी भारी शरीर वाली है।

मगर वंदना से मेरा सामना कम होता है। वो दुसरे वाले टॉयलेट में कपड़े धोती है, छत पर कपड़े सूखने के लिए डाल कर बाहर बाहर से ही चली जाती है। अगर कभी कंचन की तरह वंदना भी मुझसे बात करे तो मुझे पता चले की मुझ से बात करते हुए उसकी चूचियों, चूतड़ों और चूत पर खुजली मचती है या नहीं जैसे कंचन के मचती है।

वंदना कपड़े धोते हुए साड़ी घुटनों तक चढ़ा लेती है और नीचे जमीन पर घुटने मोड़ कर पैरों के बल बैठ कर कपड़े धोती है। पीछे से अगर नजर पड़े तो भारी चूतड़ बाकी शरीर से बिलकुल अलग दिखाई देते हैं। इस तरह पैरों के बल बैठने से चूतड़ और ज़्यादा फ़ैल जाते हैंI

सच कहूं, मेरा तो कई बार वंदना के चूतड़ चाटने का ही मन करने लगता है। वैसे तो आपस की बात है इतनी सुन्दर बीवी के होते हुए भी वंदना की नंगी टांगें और मांसल चूतड़ देख कर कई बार मैंने मुट्ठ मार कर लंड का पानी छुड़ाया है। वैसे वंदना की चुदाई का ख्याल पहले तो मन में कभी नहीं आया.

मगर उस दिन – जिस दिन से मैंने वंदना की काली झांटों वाली चूत देख ली तब से उसकी चुदाई का भी मन होने लगा। हुआ ये, कि एक दिन मेरी दोपहर दो बजे की शिफ्ट थी और मुझे मोज़े नहीं मिल रहे थे। माधुरी बैंक जा चुकी थी। मैंने सोचा धोने वाले कपड़ों में से मोज़े निकाल लेता हूं, बाद में माधुरी आएगी तो ढूंढ देगी।

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कुसम साड़ी घुटनों तक चढ़ा कर जमीन पर घुटने मोड़ कर पैरों के बल बैठी कपड़े धो रही थी। सामने धोने धोने कपड़ों का ढेर लगा हुआ था। मैं झुक कर मोज़े ढूंढ रहा था कि मेरी नजर वंदना टांगों के बीच पड़ी। वंदना की साड़ी उस दिन घुटनों से भी ऊपर थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

वंदना ने चड्ढी नहीं पहनी थी वैसे तो कोई काम वाली बाई चड्ढी नहीं पहनती वंदना की चूत और झांटों के काले स्याह बाल मेरी आँखों के सामने थे। पैरों के बल बैठने के कारण चूत की फांकें खुल गयी थी और गुलाबी छेद दिखाई दे रहा था। मोजा तो मैं भूल गया, बस वंदना की चूत और चूत के ऊपर की झांटें ही देखता रह गया।

वंदना ने मुझे उसकी चूत पर नजरें गड़ाए देखा और कपड़े धोने बंद कर दिए। फिर वो हंस कर बोली, “साहब कहां ढूढ़ रहे हैं मोज़े वहां ढूंढिए” – वंदना ने कपड़ों के ढेर के तरफ इशारा किया। मै हड़बड़ा कर कपड़ों के ढेर से मोज़े ले कर वापस आ गया। मै ड्राईंग रूम में बैठा था। वंदना काम खत्म कर जाने लगी।

मेरे पास आ कर बोली, “साहब, बीबी जी कब जा रही हैं डिलीवरी के लिए”।

मैंने भी बता दिया, “अगले हफ्ते”।

आज से पहले तो कभी वंदना मेरे सामने नहीं आयी थी, ना ही कभी बात ही की थी। फिर आज अचानक? वंदना ने एक हाथ से अपनी चूत के ऊपर से साड़ी या धोती खींची, जैसे चूत में घुसी चड्ढी निकाल रही हो। ये पहली बार हो रहा था। मगर मैंने तो देखा ही था उस दिन वंदना ने चड्ढी नहीं पहनी हुई थी।

झांटों की काले बल मैंने खुद अपनी आखों से देखे थे। तो फिर वंदना चूत में से क्या निकाल रही थी। चूत में तो चड्ढी ही घुसती है, साड़ी या धोती तो घुसती नहीं। तो फिर वंदना ने मेरे सामने ऐसा क्यों किया? क्या वंदना चुदाई के लिए पट रही थी?

माधुरी गाजियाबाद चली गयी। मैंने वंदना और कंचन के साथ आने वाली कड़क लड़की लता की चूत चोदने के सपने लेने शुरू कर दिए। कंचन अभी चुदाई के सपनों में नहीं थी। वैसे तो पहले वंदना भी नहीं थी। ये तो जिस दिन से वंदना की चूत और झांटें देखी उसके बाद से उसकी चुदाई का मन होने लगा।

वंदना की चुदाई तो माधुरी के जाने के तीसरे दिन ही हो गयी। हुआ ये की मुझे होटल रात में जाना था। दस बजे तक कंचन झाड़ू पोछा बर्तन करके जा चुकी थी। ग्यारह बजे वंदना आयी और इधर उधर देख कर बोली, “साहब, बीबी जी गयी”?

मैंने भी जवाब दिया, “वो तो परसों ही चली गयी थी। कल तुम आई नहीं”।

वंदना कुछ रुक कर बोली साहब आज तो मोज़े गुम नहीं हुए ? साथ ही वो हंस दी और चूत के ऊपर से साड़ी ऐसे ठीक की जैसे साड़ी के नीचे चड्ढी चूत में घुस गयी हो और उसको निकाल रही हो। मैंने सोचा उस दिन तो वंदना ने चड्ढी नहीं डाली थीI साड़ी तो चूत में फंस नहीं सकती और चड्ढी वंदना पहनती नहीं। फिर ये बार बार चूत वाली जगह से साड़ी क्यों खींचती है ?

क्या मुझे जताना चाहती है, “साहब मेरी फुद्दी तैयार है आ जाईये”।

फिर भी मैंने पूछा, “मोज़े?”

वंदना हंसी और बोली, “आप के मोज़े बहुत गुम होते हैं”।

मैंने भी शरारत से कहा कहा, “वंदना गुम तो हुए हैं, तुम मदद कर दो ढूंढने में”।

ये कहने के साथ ही मैने साड़ी के ऊपर से वंदना के चूतड़ों को जोर से दबा दिया। क्या सख्त चूतड़ थे वंदना के। वंदना ने कुछ भी नहीं कहा। उल्टा वंदना ने बड़ी ही कातिल नजरों से मुझे और मेरे लंड को देख कर कहा, “कहां ढूंढने हैं साहब”? वंदना ने फिर चूत पर साड़ी ठीक की। मैं समझ गया की वंदना चुदाई चाह रही है। मेरे लंड में हरकत होने लगी।

कमरे में ही ढूंढते हैं – और तो कहीं मिलेंगे भी नहीं।

ठीक है साहब। और वो कमरे की तरफ चल पडी। मैंने जाली वाला दरवाजा बंद कर दिया और कुंडी लगा दी, मगर लकड़ी वाला दरवाजा खुला रहने दिया। कोइ आ भी जाए तो शक नहीं होगा। और अगर कोइ आ भी गया तो घंटी बजायेगा और हमारे पास टाइम होगा लंड और चूत ढकने का।

वैसे किसी का आने की उम्मीद कम ही थी – लड़की की के आने की उम्मीद तो नहीं ही थी। जिस आदमी की बीवी घर में न हो ऐसे “छड़े लंड गिरधारी” के घर कौन लड़की आएगी। वंदना के चूतड़ दबाने पर भी जब वंदना चुप रही तो मैं ये तो समझ ही गया कि वो चुदाई के लिए तैयार है। मेरा लंड कुलबुला रहा था।

जाली वाला दरवाजा बंद करके मैं कमरे में पहुंचा। वंदना बेड पर बैठी हुए थी। बेड पर बैठने का मतलब ही ये था की चुदाई करवाने का मन बना कर ही आयी हैं। मैं जा कर वंदना के सामने खड़ा हो गया। मैंने पायजामा ही डाला हुआ था। पायजामें में लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था।

जाली वाला दरवाजा बंद करके मैं कमरे में पहुंचा। वंदना बेड पर बैठी हुए थी। बेड पर बैठने का मतलब ही ये था की चुदाई करवाने का मन बना कर ही आयी हैं। मैं जा कर वंदना के सामने खड़ा हो गया। मैंने पायजामा ही डाला हुआ था। पायजामें में लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था।

वंदना ने मेरी तरफ देख कर शर्माते हुए पूछा, “ये क्या है साहब ? आप तो कह रहे हो मोज़े ढूंढने हैं?”

अब वो शर्मा रही थी या शर्माने का दिखावा कर रही थी, ये तो वही जाने।

मैंने अपने लंड को पकड़ कर हिला कर कहा, “मोज़े भी ढूंढ लेंगे। ये भी कुछ ढूंढ रहा है”।

वंदना उठने लगी और बोली, “बड़े खराब हो साहब आप। मैं चलती हूं।”

अब पहली बार में तो औरत मानती भी नहीं। कुछ तो न नुकुर करती ही है।

मैंने वंदना के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “क्या हुआ? एक बार देखो तो सही। पूछ तो लो क्या ढूंढ रहा है ये, क्या चाहिए इसको?”

मैंने वंदना को बेड पर बिठा दिया और साथ ही उसके भारी भारी मम्मों को हाथों से दबाने लगा। वंदना कसमसाई तो जरूर मगर बेड पर बैठ गयी, “नहीं साहब नहीं, ये क्या कर रहे हो”? वंदना बोली तो जरूर मगर उसने उठने की कोई कोशिश नहीं की। मैंने पायजामे का एलास्टिक खींचा और लंड बाहर निकाल कर वंदना के मुंह के आगे लहराने लगा।

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वंदना ने सर उठा कर पूछा, “क्या करूं साहब?”

मैंने भी लंड पकड़ कर उसके होठों के बिलकुल पास कर दिया और बोला, “जो मन में आये करो – चूसना चाहो तो चूस लो।”

वंदना फिर बोली “ये क्या कह रहे हो साहब? कोइ आ गया तो? किसी को पता चल गया तो”?

“कोइ आ गया तो? किसी को पता चल गया तो”? जहां लड़की ने ये कहा, समझो वो कह रही है “आ जाओ – करो मेरे चुदाई।”

बस जवाब में आदमी को भी बस इतना ही कहना होता है, “कोइ नहीं आएगा। किसी को पता नहीं चलेगा”।

मैंने भी वंदना से कहा, ” कोइ नहीं आएगा। किसी को पता नहीं चलेगा।” और साथ ही लंड उसके होठों पर लगा दिया।

मेरा इतना ही कहना था और वंदना ने लंड मुंह में ले लिया। एक मिनट पहले शर्माने वाली वंदना क्या जबरदस्त लंड चूस रही थी। मुझे कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं की मेरी बीवी माधुरी लंड चुसाई में वंदना के आस पास भी नहीं ठहरती। अगर मेरा बस चले तो माधुरी को बोलूं वंदना से लंड चूसने का तरीका सीख ले। वंदना होठों से लंड को चूस रही थी और बीच बीच में अपनी जुबान सुपाड़े के छेद पर घुमाती थी।

क्या मजा आ रहा था। वंदना ने लंड मुंह से बाहर निकल लियाI मैं कहने ही वाला था कि वंदना थोड़ा और चूसो, कि वंदना ने लंड के सुपाड़े के नीचे वाले हिस्से को अपनी जुबान से खुजाना शुरू कर दिया। लंड की इस जगह पर तो मर्द खुद भी उंगली से खुजाये तो मजा आता है, ये तो औरत की जुबान थी। इस लंड के सुपाड़े के नीचे वाले भाग के खुजाने में जादू था। मेरा लंड फुंकारे लेने लगा।

वंदना की शर्म तो कब की जा चुकी थी। बोली, “क्यों साहब मजा आ रहा है?”

मैंने भी कहा, “बहुत मजा आ रहा है वंदना। फिर ऐसे ही जुबान से लंड के सुपाड़े के नीचे खुजाओ”।

वंदना बोली, “देखना साहब कहीं मुंह में ही ना मजा निकाल देना।”

मैंने भी हंस कर कहा, “उसकी चिंता ना करो वंदना, मुंह में नहीं निकलेगा। जहां निकलना है वहीं निकलेगा – चूत में। रगड़ कर चुदाई होगी आज तुम्हारीI”

वंदना भी कौन सी कम थी। दस घरों में कपड़े धोने वाली धोबन थी – बोली, “मैं भी तो ऐसे ही कह रही थी साहब, मुझे मालूम है आज मस्त चुदाई होगी”।

वंदना मेरा लंड हाथ में पकड़ कर बोली, “एक बात बोलूं साहब, लंड तो बड़ा मस्त है आपका मोटा और सख्त। हाथ में भी नहीं आता। बीबी जी बड़ी किस्मत वाली है जिनको ऐसा लंड मिलता है”।

वंदना हंस कर बोली, “एक बात बताओ साहब क्या पिलाती है बीबी जी इसको। मुझे बताना, मैं भी पिलाऊंगी अपने मर्द के लंड को”।

मैंने भी हंस कहा, “बीबी जी से ही पूछ लेना क्या पिलाती है इसको “। फिर मैं कुछ रुक के बोला, “वंदना अब तो तू भी लिया करेगी इसको ”

वंदना ने लंड के नीचे के हिस्से को एक बार फिर जुबान से खुजलाया। मेरी सिसकारी निकली “आआह वंदना”।

वंदना बोली, “बस साहब डालो इसको जहां डालना है”।

मेरा मन तो वंदना के मोटे मोटे चूतड़ों में छुपी गांड चोदने का था।

मैंने पूछ ही लिया, “कहां लेगी वंदना, आगे या पीछे।”

वंदना बोली, “साहब आज तो चूत की आग ही बुझाओ”।

ये कह वंदना बेड के किनारे पर लेट गयी और टांगें उठा कर चौड़ी कर दी। वंदना की झांटों के बाल स्याह काले थे।

मैंने कहा “वंदना, चूत के बाल साफ़ करने हैं? क्रीम है मेरे पास। तू ऐसे ही लेटी रह मैं क्रीम लगा कर बाल साफ़ कर देता हूं”।

वंदना बोली, “साहब चूत की झांटों के बाल साफ करना शहर की लड़कियों का फैशन है। हम लोग नहीं हटाती झांटों के बाल”।

मैंने भी पूछा, “ऐसा क्यों वंदना ? ऐसा क्या इन झांटों के बालों में।”

वंदना हंस कर बोली, “साहब एक बार सूंघ कर देखो। इन झांटों की खुशबू और चूत के स्वाद से ही मर्दों के लंड खड़े हो जाते हैं”।

फिर बात जारी रखते हुए बोली, “साहब एक बात बोलूं ? चूत का पानी और औरत का मूत – दोनों मिल कर ऐसी खुशबू बनाते हैं कि सूंघते ही बड़े बड़े ब्रह्मचारी भी मुट्ठ मारने लग जाते हैं।”

वंदना क्या ज्ञान की बात बता रही थी – हंसते हुए बोली, “साहब देखा नहीं आपने – घोड़ा, सांड, कुत्ता – ये सब चुदाई से पहले चूत सूंघते हैं। चूत सूंघते ही उनके लंड बाहर आ जाते हैं”।

मैंने भी सोचा, ये घोड़ा, सांड, कुत्ते वाली बात तो सही बोल रही है वंदना।

फिर अपने झांटों पर हाथ फेर कर बोली, “आओ साहब आप भी एक बार सूंघ कर देखो। कसम से आप बीबी जी की झांटों के बाल साफ़ कराना भूल जाओगे”।

मैं हंसा और झुक कर वंदना की चूत चौड़ी की और जुबान चूत में घुसेड़ दी। मेरा नाक वंदना की झांटों पर था। वंदना ने बिलकुल ठीक कहा था। झांटो में से उठ रही अजीब सी खुशबू चूत के पानी और औरत के मूत से मिल कर बनी खुशबू सच में ही लंड को और सख्त कर रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

चूत चूसने और झांटों की खुशबू से जब मेरा लंड फनफनाने लगा तो मैं खड़ा हो गया और बोला, “सही कहा था तुमने वंदना। लंड सख्त हो गया है। चुदाई मांग रहा है। मैं निरोध लाता हूं”।

वंदना बोली, “छोड़ो साहब निरोध। क्यों चुदाई का मजा आधा कर रहे हो। हमारे मर्द नहीं चढ़ाते निरोध लंड पर। उनके पास तो टाइम ही नहीं होता निरोध चढ़ाने का”।

“खाना खाते हैं और चढ़ जाते हैं ऊपर चुदाई करने। इनका बस चले तो हर दुसरे महीने पेट से कर दें हमें। साले माहवारी भी ना आने दें। इसी लिए हमे कुछ ऐसा करना पड़ता है की बच्चा ही न ठहरे”।

“इसी चक्कर में तो साहब मैंने कोपट्टी लगवाई हुई है। बेफिक्र हो कर चुदाई करो”।

मैंने पूछा, “कोपट्टी? तम्हारा मतलब कॉप्पर टी”?

वंदना बोले, “हां साहब वही जो आप कह रहे हैं। कालोनी की तकरीबन सभी औरतों ने ये लगवाई हुई है। खुल के चुदाई करवाओ, कोइ झंझट नहीं”।

बस तो अब वंदना की चुदाई रह गयी थी – मगर नहीं। अभी वंदना ने ज्ञान की कुछ और बातें भी बतानी थीं। जैसे ही मैं लंड वंदना की चूत में डालने लगा, मुझे लगा वंदना के चूत बिलकुल सूखी है। चूत ने पानी तो छोड़ा ही नहीं जो अक्सर लड़कियों की चूत चुदाई के ख्याल से ही छोड़ देती हैं।

मैंने वंदना को पूछा, “क्या बात है वंदना, चूत अभी लंड लेने के लिए तैयार नहीं?”

वंदना ने जवाब दिया, “तैयार है साहब। आग लगी हुई है मेरी चूत में। आप चोद क्यों नहीं रहे। लंड डालो साहब और ठंडा करो मेरी चूत को – पानी निकालो इसका”।

फिर वंदना थोड़ा रुकी और फिर हैरानी से पूछा, “मगर साहब आपने ऐसा क्यों कहा की मेरी चूत तैयार नहीं है”?

मैंने जवाब दिया, “ऐसे ही। पानी नहीं छोड़ा तुम्हारी चूत ने। गीली नहीं हुई।”

वंदना जरा सा हंसी, “अरे साहब हम मेहनत करने वालियों की चूत पानी नहीं छोड़ती। तभी तो चुदाई में मजा आता है। रगड़ रगड़ कर चुदाई होती है। वो क्या हुआ कि लंड फिसल के चूत में बैठ गया जरा सा भी रगड़ा नहीं लगा”।

वंदना बोली, “आप साहब बस जरा सा थूक लगाओ अपने लंड पर और देखो कैसे रगड़ रगड़ कर जाता है लंड अंदर। आपका मोटा लंड तो और भी रगड़ कर जाएगा मेरी चूत में। डालो साहब अब और देर मत करो। अब नहीं रहा जा रहा”। कहते हुए वंदना ने जोर से चूतड़ घुमाए।

मैंने थोड़ा थूक वंदना की चूत के छेद के ऊपर लगाया चूत के अंदर नहीं। मैं भी तो रगड़ाई के मजे लेना चाहता था। लंड वंदना की चूत के छेद पर रख जैसे ही अंदर धकेला, सच में ऐसा लगा कुंवारी चूत चोदने लगा हूं। वंदना सही कह रही थी। चूत अगर पानी छोड़ दे तो लंड फिसल कर अंदर चला जाता है।

मेरे दिमाग में आया, कंचन के साथ आने वाले अट्ठारह बीस साल की लता की चूत भी पानी नहीं छोड़ती होगी? क्या उसकी भी ऐसी ही काली काली झांटें होंगी?

तभी वंदना बोली, “क्या सोचने लगे साहब – कहां ध्यान है। चुदाई करो। लगाओ धक्के।”

मैंने वंदना की जांघों को पकड़ा और एक झटके से लंड वंदना की चूत में डाल दिया। वंदना की सिसकारी निकली “आआह साहब …. आज चुदाई का असली मजा आएगा”।

इसके बाद मैंने बीस पच्चीस मिनट वंदना की वो चुदाई की कि उसकी सिसकारियां ही बंद नहीं हो रही थीं… आअह… आअह साहब, मजा आ गया आज तो चुदाई का… आअह… साहब चोदो साहब आह।

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वंदना जोर जोर से चूतड़ घुमा रही थी। वंदना की लगातार की सिसकारियों, और लगातार चूतड़ घूमने मुझे तो ये भी समझ नहीं आया कि वंदना कब झड़ी, झड़ी भी या नहीं या फिर एक से ज्यादा बार झड़ी। बस अब मेरा भी लंड पानी छोड़ने वाला था।

आआह… वंदना… आअह… वंदना की आवाज के साथ मेरे लंड का ढेर सारा गरम पानी वंदना के चूत में चला गया। वंदना ने जोर से चूतड़ घुमाए और निढाल हो गयी। मैं कुछ देर ऐसे ही लंड वंदना की चूत में डाले खड़ा रहा। फिर मैंने लंड निकाला और बेड पर ही वंदना की बगल में बैठ गया। थोड़ी देर में वंदना उठी। नीचे बैठ कर मेरा लंड थोड़ा चूसा और बाथ रूम में चली गयी।

थोड़ी ही देर में आयी और बोली, “साहब आप तो बड़ी ही मस्त चुदाई करते हो। हमारे मर्द तो दिन भर के थके आते हैं, खाना खाते हैं, लंड अंदर डालते हैं अपना पानी छुड़ाते हैं और सो जाते हैं। उनको इस बात से कोइ लेना देना नहीं कि घरवाली का पानी छूटा या नहीं। आप ने तो चुदाई का पूरा मजा दे दिया। पता नहीं कितनी बार पानी छूटा मेरा”।

फिर चलते हुए वंदना बोली, “अच्छा साहब चलती हूं। परसों आऊंगी। परसों ही कपड़े भी धो दूंगी।” कह कर वंदना चली गयी।

सच ही कह रही थी वंदना I “चुदाई के वक़्त चूत सूखी ही रहनी चाहिए तभी असली चुदाई होती है”।

अगले दिन सुबह जब काम वाली कंचन आयी तो बड़ी अजीब तरीके से मुझे देख रही थी और मुस्कुरा भी रही थी। मुस्कुराती तो मुझे देख कर वो कभी भी नहीं थी। बात करते वक़्त वही आगे पीछे खुजली ही करती थी। आज ऐसा क्या नया हो गया जो कंचन मुस्कुरा भी रही है? मेरे मन में शक सा पैदा हुआ, कहीं वंदना ने इसे हमारी चुदाई की बाबत बता तो नहीं दिया?

कुछ तो था कंचन की मुस्कुराहट में। फिर ख्याल आया की अगर बता भी दिया है तो क्या हुआ। काम और आसान हो जाएगा लता को चोदने का। कंचन को चोदने का ख्याल मेरे मन में उस समय भी नहीं था। तीसरे दिन वंदना जल्दी आ गयी।

अक्सर वंदना दोपहर के आसपास आती थी। कंचन पहले से ही आयी हुई थी। पांच दिन के कपड़े धोने के लिए पड़े थे। कपड़ों का ढेर लगा हुआ था। शायद इसी लिए वंदना जल्दी आ गयी थी। कंचन ने काम खत्म किया और “चलती हूं” कह कर मेरी तरफ मुस्कुरा कर देख कर चली गयी।

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मैं बाथरूम में गया जहां वंदना कपडे धो रही थी। मैंने कहा, “वंदना कपडे बाद में धो लेना”।

बाद में? मगर किसके बाद में? ये बताने की जरूरत वंदना को नहीं पडी।

वंदना ने पूछा, “कंचन गयी क्या साहब?”

मैंने जवाब दिया, “हां अभी अभी निकली है”।

वंदना बोली, “तो थोड़ा रुको साहब, कंचन कहीं आ ही ना जाए वापस किसी बहाने से”।

मैं खड़ा लंड ले कर वापस ड्राईंग रूम में आ गया और टीवी देखने लगा। पंद्रह मिनट बाद वंदना आ गयी। माथे पर हल्का पसीना था।

मैंने कहा, “वंदना ऐसा करो चाय बना लो अपने लिए भी और मेरे लिए भी। थोड़ा आराम कर लो। आज तो ऐसे भी तुम जल्दी आ गयी हो”।

“ठीक है साहब” बोल कर वंदना चाय बनाने लगी।

कुझे रहा नहीं जा रहा था। मैं उठ कर किचन में चला गया। वंदना चाय बना रही और उसकी पीठ मेरी तरफ थी। वंदना के मोटे चूतड़ देख कर मुझसे रहा नहीं गया। मैं पीछे गया और वंदना को कमर से पकड़ लिया। मेरा खड़ा लंड वंदना के चूतड़ों पर पर रगड़ खा रहा था।

वंदना ने मेरे हाथों पर अपना हाथ रक्खा और कहा, ” क्या हुआ साहब आपका तो खड़ा है। चाय बनाऊं या रहने दूं”।

मैंने वंदना के चूतड़ों को पकड़ कर जोर से दबाया और कहा, “नहीं नहीं वंदना चाय बनाओ तुम्हारे मस्त चूतड़ देख कर रहा नहीं गया… बस और कुछ नहीं”।

वंदना ने मेरी तरफ देखे बिना ही कहा, “कोइ बात नहीं साहब, मर्दों का ही तो खड़ा होता है I और अगर औरत के चूतड़ देख कर भी अगर मर्द का खड़ा ना हुआ तो वो मर्द काहे का।”

वंदना चाय भी बना रही थी और बोले भी जा रही थी, “साहब एक बात और बताऊं, साड़ी के अंदर छुपी चूत तो दिखती नहीं इस लिए उसका ध्यान भी नहीं आता। मगर पीछे से दो चूतड़ जब चलते समय ठप्प ठप्प करके हिलते हैं तो बरबस ही चूतड़ों के बीच की लाइन और लाइन के बीच के छेद – गांड का ध्यान आ जाता है। लंड में हलचल मचाने के लिए ये बहुत होता है साहब”। वंदना ने एक और ज्ञान की बात बताई। वंदना चूत, गांड के मामले में सच में ही ज्ञानी थी।

मैंने भी कहा, “वैसे एक बात बोलूं वंदना ? चूतड़ तो तुम्हारे भी बड़े मस्त हैं” I

वंदना ने एक और ज्ञान की बात बताई। वंदना चूत, गांड के मामले में सच में ही ज्ञानी थी।

मैंने भी कहा, “वैसे एक बात बोलूं वंदना ? चूतड़ तो तुम्हारे भी बड़े मस्त हैं”I

चाय बनाते बनाते वंदना बोली, “अच्छा साहब ? कितने मस्त हैं?”

मैंने भी वंदना के कान के पास मुंह ले जा कर कहा, “बहुत ज़्यादा मस्त हैं वंदना, मेरा तो चोदने का मन होने लगा है”।

वंदना ने बिना सर उठाये कहा, “गांड चोदने की बात कर रहे हो साहब?”

मैंने कुछ कुछ झिझकते हुए कहा, “हां”!!

“तो साहब “हां कहने में इतना टाइम क्यों लगा रहे हो, बोल दो हां गांड चोदनी है मैं मना थोड़े ही करूंगी”।

मैंने कहा, “फिर तुम्हारा मजा ? मेरा मतलब तुम्हारी चूत का पानी”?

वंदना बोली, “उसकी फ़िक्र ना करो साहब, मेरा घरवाला भी कभी कभी मेरी गांड चोदता है। जब वो पीछे से मेरी गांड चोदता है तो मैं उंगली चूत में डाल कर पानी छुड़ा लेती हूं”।

मैंने वंदना के चूतड़ एक बार और दबाये और ड्राईंग रूम में आ गया। वंदना चाय बना कर ले आयी।

चाय पीते पीते मैंने कहा “वंदना मेरे होते तुम्हें अपनी चूत का पानी छुड़ाने के लिए उंगली नहीं चलानी पड़ेगी”।

कुसम थोड़ा हंसते हुए बोली, “ऐसा क्या साहब ? क्या करोगे आप? दोनों गांड और चूत चोदोगे ?

मैंने भी कहा, “देखते हैं”।

वंदना खड़े खड़े ही चाय पीने लगी। मैंने कहा, “यहां आ जाओ वंदना आराम से बैठ कर चाय पीयो”। मैंने उसे अपने साथ बैठने का इशारा किया।

वंदना ने कहा, “नहीं साहब आपके साथ कैसे बैठ सकती हूं। चुदाई करवाना अलग बात है। आपके साथ बैठ कर आपकी बराबरी नहीं कर सकती”।

मैंने भी सोचा “ये होते हैं उसूल”।

चाय पी कर हम बेड रूम में आ गये। मैंने वंदना से कहा, “वंदना आज सारे कपड़े निकाल दो”।

वंदना ने एक बार भी ना नहीं कहा और साड़ी, पेटीकोट ब्लाउज और ब्रा निकाल दी। मस्त जिस्म था वंदना का। मम्मे और चूतड़ एकदम खड़े तने हुए । कमर अगर पतली नहीं थी तो भी वंदना का पेट बढ़ा हुआ भी नहीं था। मेरा लंड खड़ा होने लगा। शारीरिक मेहनत करने के कारण इन काम वालियों के जिस्म तो कड़क ही रहते हैं। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

इनके पेट बाहर नहीं निकलते। तभी तो कोठियों में रहने वाले मर्द इनको चोदने को हमेशा तैयार रहते हैं। औरत का पेट निकला हुआ हो तो लंड को खड़ा करने में जोर लगाना पड़ता है या फिर लंड खड़ा करने की गोलियां कहानी पड़ती हैं – विदेशी विआग्रा या देसी सुहागरा – 100 मिलीग्राम वाली – चुदाई से पौना घंटा पहले। गोली खाने से लंड फनफना कर खड़ा हो जाता है और जल्दी झड़ता भी नहीं।

वैसे अभी तक मुझे इन गोलियों की जरूरत नहीं पडी – माधुरी का जिस्म भी मस्त सेक्सी है – पर कब तक ? आखिर को भी तो माधुरी का पेट निकलेगा ही। शहरी औरतों का निकल ही जाता है। अगर पेट बढ़ने से माधुरी रोक लेगी तो इसमें उसीका भला है। चुदाई अच्छी होती रहेगी। वंदना की बड़ी बड़ी चूचिया मुंह में लेने में मजा आ गया। इधर मैं वंदना की चूचियां चूस रहा था, उधर एक हाथ से वंदना के चूतड़ मसल रहा था। बीच बीच में गांड के छेद में उंगली भी घुसेड़ देता था।

थोड़ी देर में वंदना बोली, “चलो साहब थोड़ा लंड चुसवाओ और चोदो मेरी गांड। गांड में खुजली मच रही है”। ये कह कर वंदना बेड पर बैठ गयी।

मैंने लंड वंदना के मुंह में डाल दिया। वंदना ने पहले की ही तरह कमाल की लंड चुसाई की। लंड एकदम सख्त हो गया। वंदना ने लंड मुंह में से निकला और हाथ में ले कर हंसते हुए बोली, “साहब ये तो तैयार है गांड में घुसने के लिए”। इतना कह कर वंदना बेड के किनारे पर कुहनियों के बल उलटा लेट गयी और चूतड़ उठा दिए।

मैं जा कर क्रीम ले आया। वंदना ने दोनों हाथ पीछे करके चूतड़ चौड़े कर दिए। गांड का गहरा भूरे रंग का छेद मेरी आँखों के सामने था। मैंने छेद को कपड़े से साफ़ किया और अपनी जुबान छेद पर फेरी। वंदना ने एक सिसकारी ली आअह साहब एक बार और।

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वंदना मस्ती में बोली, “मुझे तो अपने मर्द को ये भी बताना पड़ेगा, कि साले गांड के छेद को चाटा भी कर कभी। सीधा लंड अंदर डालने की जल्दी करता है”।

में वंदना के चूतड़ों को चूम रहा था। चूतड़ों पर हल्के निशान थे जैसे दांतों के होते हैं। मैंने वंदना से पूछा, “वंदना तुम्हारे चूतड़ों पर ये निशान कैसे हैं”?

वंदना बोली, “साहब मेरा मर्द चूतड़ों को जब चूमता चाटता है तो कई बार दांतों से काटता भी है। साहब आप भी काटो ना थोड़ा – बड़ा मजा आता है”।

मैं सोच रहा था “कैसे कैसे शौक होते हैं औरतों के”।

मैंने वंदना के चूतड़ों पर हल्का हल्का काटा। जैसे ही मैं हल्के से दांतों से काटता था वंदना एक ऊंची सिसकारी लेती थी “आआह साहब”।

ऐसे ही कुछ देर तक करने के बाद मैने वंदना की गांड का छेद थोड़ा और चाटा और क्रीम वंदना की गांड के छेद पर और अपने लंड पर लगा दी। चूतड़ पकड़ कर लंड छेद पर रखा और अंदर धकेला। लंड फिसलता चला गया था। लग रहा था कि वंदना की गांड की चुदाई होती रहती थी।

मैंने कमर से वंदना के चूतड़ पकड़ कर मैंने धक्के लगाने शुरू किये। गांड चोदने का भी अपना ही मजा है। मोटे चूतड़ सामने थे। लंड का आख़री सिरा और टट्टे जब चूतड़ों के साथ टकराते थे तो आवाज आती थी ठप्प….ठप्प…ठप्प । बीच बीच में मैं कुछ धक्के वंदना की चूत में भी लगा देता था।

जल्दी ही वंदना ने चूतड़ आगे पीछे करने शुरू कर दिए। वंदना सिसकारियां ले रही थी। वंदना ने अपनी चूत का दाना अपनी उंगली से रगड़ना शुरू कर दिया। मतलब वंदना को गांड चुदवाते वक़्त चूत में लंड लेने की आदत नहीं थी। फिर मैंने भी ध्यान गांड चोदने में लगाया और वंदना को उंगली करके चूत का पानी छुड़ाने के लिए छोड़ दिया। वंदना को ऐसी ही आदत पड़ी हुई थी।

वंदना के भारी भारी सेक्सी चूतड़ पकड़ कर मैंने लम्बे लम्बे जोरदार धक्के लगाए। वंदना आवाजें निकाल रही थी “साहब बड़ा मजा आ रहा है। पूरा गांड के अंदर तक जा रहा है अपना खूंटा। रगड़ो साहब। मेरी चूत झड़ने वाली है। आअह आअह साहब और जोर से”।

वंदना ने जोर से अपनी चूत में उंगली चलाई और चूतड़ घुमाए और एक लम्बी “आआह आआह आ गया साहब निकाल गया… आआह” के साथ वंदना की चूत ने पानी छोड़ दिया।

मैं दस मिनट और वंदना की गांड चोदता रहा।

वंदना नीचे कसमसा रही थी। मैंने वंदना से ही पूछा, “वंदना मेरा लंड तो अभी खड़ा है, अभी झड़ेगा भी नहीं। बोलो क्या करना है। गांड ही चुदवानी है या चूत चुदवानी हैं”।

वंदना बोली, “साहब मेरी गांड तो दुखने लग गयी। इतनी तो कभी नहीं चुदी। चूत पानी छोड़ चुकी है। आप लेटो मैं चूस कर निकालती हूं आपका पानी”।

मैं बेड पर लेट गया। वंदना मेरा लंड चूसने लगी। दस ही मिनट की चुसाई के बाद मेरा निकलने को हो गया।

मैंने एक जोर की आवाज निकाली “आअह वंदना” और मेरा गरम पानी वंदना के मुंह में निकल गया। वंदना कुछ देर ऐसी ही लंड मुंह में लेकर बैठी रही। फिर मेरे लंड का पानी निगल कर मेरा लंड चाट चाट कर साफ़ कियाI मैं तो अभी लेटा ही हुआ था। मेरे लंड को पकड़ कर वंदना बोली, “कितना पानी छोड़ते हो साहब आप। मुंह में छुड़ाने मजा आ गया।

ये कह कर वंदना खड़ी हुई और कपड़े पहनने लगी। मैं भी उठ कर बाथरूम चला गया। वापस आया तो वंदना जाने को तैयार थी। वंदना बोली साहब मैं तीन दिन अब नहीं आ पाऊंगी। मुझे अपने घर वाले मोहन के साथ के साथ मथुरा वृंदावन जाना है। आप कपड़े इक्क्ठे कर लेना। तीन दिन बाद आ कर कपड़े भी धो दूंगी और “मेरे लंड के तरफ इशारा करके बोली, “इसका काम भी कर दूंगी”।

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फिर वंदना बोली, “अगर आप कहो तो कंचन को बोल दूं कपड़े धो देगी या फिर लता को भेज देगी वो धो देगी कपड़े”।

लता का नाम आते ही मेरे लंड कसमसाने लगा जैसे खड़ा हो रहा हो।

मैंने पूछा, “वंदना एक बात बता, ये लड़की – लता – ये कौन है,क्या लगती है कंचन की”। मैंने लंड को जरा सा खुजलाया। वंदना ने भी मुझे लंड खुजलाते हुए देख लिया।

वंदना हंस कर बोली “क्यों, साहब क्या बात है – क्या हुआI खुजली मच गई लता के नाम से? चोदनी है क्या” ?

मैं सकपकाया, “नहीं नहीं मैंने तो ऐसे ही पूछा है”।

वंदना बोली, “अरे शर्मा क्यों रहे हो साहब। चोदनी है तो कंचन से बात करो। जवान है साहब। पता नहीं सील भी टूटी है नहीं। मगर है तो चुदाई के लायक। चुदाई चाहती भी है। कहो तो मैं बात करूं कंचन से” I

मैंने जल्दी में कहा “नहीं वंदना नहीं। मैंने तो ऐसे ही पूछ लिया”।

वंदना बोली, “कोइ बात नहीं साहब। मगर एक बात बताऊं लता पर जवानी अपना रंग दिखा रही है। चुदाई के लिए बेचैन हो रही है वो”।

अब मुझे भी लता के बारे में बात करने में मजा आने लगा। मैंने पूछा, “चुदाई के लिए बेचैन – मतलब “?

वंदना बता रही थी, ” साहब आपने तो देखा ही है कैसी कड़क शरीर वाली लड़की है लता। कालोनी की सारे लड़के उसके पीछे हैं। अनजाने में किसी से कभी भी चुद जाएगी आरती”।

“हमारी कालोनी से लगती झुग्गियों की हालत बड़ी खराब है। वहां कचरा बीनने वाले कबाड़ी रहते हैं I वहां तेरह तेरह चौदह चौदह साल की लड़कियां चुदाई करवाती हैं – वो भी सरे आम”।

“लड़के खुले आम एक दुसरे की बहन चोदते हैं ये कह कर तू मेरी बहन चोद ले में तेरी चोद लेता हूं”।

“एक ही झुग्गी में एक दूसरे के सामने ये खेल चलता है – सबको पता है। घर में तो कोइ होता नहीं – सब तो कचरा बीनने चले जाते हैं।

“पंद्रह सोलह साल की लड़कियों के तो बच्चे ठहर जाते हैं”।

“इन झुग्गियों के लड़के आवारागर्दी के अलावा कुछ काम धंदा नहीं करते”।

“घर की औरतें, लडकियां कमाती है – ये मौज करते हैं। छोटी मोटी चोरियां करते हैं इधर उधर घूमते रहते हैं” I

“खूब बन ठन कर रहते हैं। रंग बिरंगे कपड़े पहनते हैं। बालों के अजीब अजीब फैशन करते हैं हमारी कालोनी में भी आ जाते है और लड़कियां छेड़ते हैं I

“हमारी कालोनी के गुंडा टाइप के लड़के और इन झुग्गी वाले लड़कों में खूब छनती है। मिल कर नशा करते हैं”।

“एक बार झुग्गी वालों से या कालोनी के किसी आवारा गुंडा – दादा टाइप किसी लड़के से लता चुद गयी तो अपनी गुंडागर्दी के बल पर अपने हर दोस्त से, अपने जानने वालों से सब से चुदवा देंगे उसे, कंचन भी कुछ नहीं कर पाएगी I कहां तक निगरानी करेगी लता की। साले भड़वे हैं सारे के सारे”।

मैंने पूछा, “तुम लोग रोकते नहीं इनको ? पुलिस में शिकायत नहीं करते?”

साहब हम लोगों में इन गुंडों से उलझने की हिम्मत नहीं। पुलिस भी इनको कुछ नहीं कहती। इनका तो ये रोज का काम है। शिकायत भी करो तो पुलिस वाले थाने ले जाते हैं और दो थप्पड़ लगा कर छोड़ देते हैं। जेल में अंदर डाल नहीं सकते क्यों की ये नाबालिग होते हैं”। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

“वापस कालोनी में आ कर और शेर बन जाते हैं। कमरे के आगे आ कर बोलते हैं, “क्या उखाड़ लिया पुलिस में जा कर”।

“एक बात और बोलूं साहब ? लता आपने तो देखी ही है। जिस तरह से वो सुन्दर और जवान निकल रही है – और जैसे कालोनी के लड़के उसके आगे पीछे घुमते हैं – गंदे गंदे इशारे करते हैं – लता भी मजे लेती है।

आखिर को लता भी तो लड़की ही है – उसकी चूत भी गर्म हो जाती होगी इनके गंदे गंदे इशारे देख कर – चुदवाने का मन भी करता ही होगा उसका । कंचन और मैं कई बार देख चुकी हैं लता को अपनी चूत में उंगली करते हुए”।

फिर वंदना बोली, “और साहब आस पास के गुज्जरों के पैसे वाले बिगड़ैल लड़के तो लता जैसी कड़क, भरे जिस्म वाली लड़की को एक बार चोदने के लिए दस बीस हजार खर्च करने को तैयार हो जायेंगे “।

“कंचन के पति इन्द्रेश का कोइ भरोसा नहीं। नशेड़ी तो है ही और फिर लता ही कौन सी उसके अपनी बेटी है। कहीं चुदाई की प्यासी लता को इन्हीं गुज्जरों के पास ले गया तो ? चार चार चढ़ेंगे लता के ऊपर। चूत का भौसड़ा बना देंगे दो हफ्ते में ही” ।

वंदना की बातें बड़े शहरों के साथ लगी कालोनियों की सच्चाईयां बयान कर रहीं थीं। आधे से ज़्यादा रेप भी इन्हीं झुग्गियों में रहने वाले नाबालिग ही करते हैं।

वंदना ने कहा, ” साहब हुए एक बात बोलूं ? एक तो कालोनी का माहौल – दुसरे लता की फूटती हुई जवानी। लता उम्र के ऐसे मोड़ पर है कि अब उसको चुदाई तो चाहिए ही। आप चोद दोगे तो लड़की की गर्मी निकल जाएगी ”

“और फिर बीबी जी भी तीन चार महीने तो अपने मायके ही रहेंगी। मजे लो आप भी। बीच बीच में मैं ले आया करूंगी उसे आपके पास”।

वंदना की ऐसी बातें सुन सुन कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। मैंने खड़े होते हुए लंड को पायजामे में ठीक से बिठाने के लिए लंड खुजलाया – वंदना ने मुझे लंड खुजलाता देख लिया और हंस कर चली गयी। अगले तीन दिन वंदना ने नहीं आना था। अगली सुबह कंचन आ आयी।

कंचन आई, मगर कुछ बदली बदली लग रही थी। बालों में खुश्बू वाला तेल लगाया हुआ था। करीने से बाल संवारे हुए थे। मांग में केसरी रंग का सिंदूर लगाया हुआ था। लिपस्टिक और बिंदी तो थी ही। कंचन तो ऐसी सजी हुए थी मानो मेले में जाने के लिए तैयार हो कर आयी हो।

कंचन आई, मगर कुछ बदली बदली लग रही थी। बालों में खुश्बू वाला तेल लगाया हुआ था। करीने से बाल संवारे हुए थे। मांग में केसरी रंग का सिंदूर लगाया हुआ था। लिपस्टिक और बिंदी तो थी ही। कंचन तो ऐसी सजी हुए थी मानो मेले में जाने के लिए तैयार हो कर आयी हो।

अब घर में तो मैं अकेला ही था ना रसोई में बर्तन ज्यादा थे ना घर में सफाई के जरूरत थी। कंचन आधे घंटे में ही फारिग हो गयी। मैं ड्राइंग रूम में ही बैठा था। कंचन मेरे पास आयी,और बोली, बाबू जी काम तो हो गया – वंदना मुझे साहब बोलती थी – कंचन मुझे बाबू जी और लता मुझे सर बोलतीं थी। बाबू जी वंदना कह रही थी आप से कपड़े धोने के लिए पूछ लूं”।

मैंने कहा, “कंचन, कपड़े तो कोइ ख़ास हैं नहीं आज”।

कंचन अपनी जगह से हिली नहीं। वहीं खड़ी रही।

मैंने कंचन से पूछा, कंचन कुछ चाहिए ? कुछ काम है “?

असल में मैंने कंचन को चोदने का तो कभी सोचा ही नहीं था। कंचन ही क्या, मैंने तो वंदना को भी चोदने का नहीं सोचा था। मैं तो बस लता की चूत की चुदाई चाहता था। ये तो उस दिन वंदना की झांटें दिखाई दे गयीं और चुदाई का मन बन गया। वरना मैं तो वंदना के चूतड़ देख देख कर मुट्ठ मार कर लंड का पानी छुड़ाने में ही खुश था।

लेकिन वंदना ने जैसे मेरा लंड चूसा था। जैसी वंदना की चूत के ऊपर बालों झांटों में से महक आरही थी, अब कंचन की झांटों की खुशबू लेने और उसको चोदने की इच्छा भी जाग रही थी। कंचन को इतनी पास खड़ा देख कर लंड में कुलबुलाहट होने लग गयी थी।

कंचन मेरी तरफ देख कर बोली, “देख लो साहब कोई काम है तो बता दो”। ये कहते हुए कंचन एक कदम और आगे आ गयी।

जिस तरह से कंचन मेरे पास मेरे सामने खड़ी थी और जैसे वो सज संवर कर आयी थी – जैसे बात कर रही थी – उससे अब मेरे मन में कोइ शंका नहीं रही कि वंदना अपनी और मेरी चुदाई की बात कंचन को बता चुकी है और अब कंचन भी मुझसे चुदाई करवाना चाहती है। वंदना को चोदने के बाद तो अब मुझे कंचन को चोदने में कोइ हिचकिचाहट भी नहीं थी।

और फिर कंचन भी तो हमेशा ही मुझे बात करते हुए अपनी चूचियां, चूतड़ और चूत खुजाती ही थी। उल्टा मेरे दिमाग में एक ख्याल सा आया की अगर कंचन चुद जाएगी तो हो सकता है लता की चुदाई का भी रास्ता साफ़ हो जाए। फिर एक पल को ख्याल आया कि अगर वंदना ने कंचन को मेरे और अपने चुदाई के बारे में बता दिया है तो फिर जो वंदना और मेरे बीच लता को ले कर बात हुई, वो भी जरूर बताई होगी।

अचानक कंचन थोड़ा आगे आयी और बोली, “बाबू जी वंदना बड़ी तारीफ कर रही थी आपकी”।

मैंने अनजान बनते हुए कंचन से ही पूछा, “अच्छा ? क्या कह रही थी वंदना ?

कंचन अब मुझसे केवल इतनी दूरी पर थी कि मैं उसे छू सकता था। कंचन के बालों में लगे तेल की गंध मुझ तक पहुंच रही थी।

मैं बैठा सोच रहा था की कैसे पहल करूं।

कंचन आधे मिनट चुप रही फिर बिलकुल मेरे सामने आ गयी, “बाबू जी, वंदना ने सब बता दिया है मुझे”।

तो मतलब वंदना ने मेरी और अपने चुदाई के बारे में कंचन को बता दिया था।

मैंने अब कंचन को चोदने की नजर से देखा। कंचन भी वंदना की ही उम्र की थी – या एक दो साल बड़ी। काम करने वालियों जिस्म तो कसे हुए ही होते हैं I उम्र का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।

कंचन का रंग तो सांवला ही था मगर नैन नक्श तीखे थे। सांवले रंग पर लाल लिपस्टिक कंचन को और सेक्सी बना रहे थे I

वंदना को चोदने के बाद मेरे मन में कंचन को भी चोदने की इच्छा जोर मार रही थी।

एक ही पल में कई सवाल मेरे दिमाग में आ गए।

क्या कंचन की चूत पर भी वंदना की चूत की झांटों के तरह काली काली झांटें होंगी ? क्या कंचन की झांटों में से भी वैसी ही मस्त सेक्सी खुशबू आ रही होगी ? चूत के पानी और मूत को मिलने से बनी खुशबू जिसके बारे में वंदना कह रही थी कि जिसे सूंघ कर ब्रह्मचारी भी मुट्ठ मारने लग जाए।

क्या कंचन की चूत भी चुदाई से पहले पानी नहीं छोड़ेगी – सूखी ही रहेगी? क्या कंचन की चूत में भी लंड रगड़ कर ही जाएगा ?

क्या कंचन के चूतड़ भी भरे भरे होंगे ? क्या कंचन के चूतड़ों पर भी दाँतों के निशान होंगे ? क्या कंचन भी गांड चुदवाने को तैयार हो जाएगी ?

मुझे सोचता देख कर कंचन बोली, “किन ख्यालों में खो गए बाबू जी”?

ये सुनते ही मैंने कंचन को चूतड़ों से पकड़ा और अपनी तरफ खींच लिया और उसका नंगा पेट चूम लिया ।

कंचन बोली, “बाबू जी दरवाजा खुला है, मैं बंद करके आती हूं”।

मैंने कहा, “जाली के दरवाजे की कुंडी लगा कर आ जाओ”।

कंचन दरवाजा बंद करने गयी कर मैं बेड रूम में चला गया। दरवाजा बंद करके कंचन बेड रूम में ही आ गयी। मैं खड़ा हुआ और कंचन की साड़ी खोलने लगा। कंचन ने एकदम अपनी साड़ी पेटीकोट और ब्लाउज उतार दिए। नीचे न चड्ढी थी ना ब्रा। कंचन का जिस्म किसी कदर भी वंदना से कम नहीं था।

कंचन की चूत पर भी वैसे ही काले बाल थे, मतलब चूत की झांटों कि खुशबू भी वैसी ही होगी – लंड खड़ा करने वाली। मैं कुछ देर कंचन को बाहों में ले कर उसकी चूचियां अपने सीने मसलता रहा। जैसे ही मैं कंचन के होंठ चूसने के लिए झुका, कंचन बोली, “एक मिनट बाबू जी”। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.

कंचन ने पास पड़ी साड़ी से अपने होठों पर लगी लिपस्टिक पोंछ ली और होठ खोल कर चेहरा मेरी और उठा दिया। मैंने कंचन के होंठ अपने होठों में ले लिए और एक हाथ कंचन की चूत पर ले गया। कंचन ने टांगें चौड़ी कर दी। मैंने उगली से कंचन की चूत का दाना ढूंढा और उसे उंगली से मसलने लगा। कंचन की चूत भी वंदना की चूत की तरह ही सूखी थी।

कुछ देर बाद कंचन मुझसे अलग हुई और मेरे पायजामे का नाड़ा खोलने लगी। मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिए। कंचन ने मेरा लंड अपने हाथ में ले लिया और दबाने लगी। मेरा लंड सख्त होने लगा था। कंचन बेड के किनारे पर बैठ गयी और लंड मुंह में ले लिया। कंचन भी चुसाई में वंदना से कम नहीं थी। मैं सोच रहा था ये काम वालियां इतनी बढ़िया चुसाई कैसे कर लेती हैं?

मेरा लंड अब चूत मांग रहा था। मैंने कंचन से कहा, “बस कंचन, अब जरा अपने फुद्दी चुसवाओ और फिर चुदाई करें। लंड तैयार है”।

कंचन वहीं बेड के किनारे लेट गयी और टांगें उठा कर अपने चूत खोल दी। एक जैसी ही थी कंचन और वंदना की चूत। वैसे तो सारी चूतें एक जैसी ही होती हैं। बस यही फरक होता है कोइ चूत उभरी हुई होती है। उभरी चूत की फांक की लाइन पूरी दिखाई देती है। कोइ चूत में फांक की लाइन दिखाई ही नहीं देती। टांगें तो दोनों तरह की चूत चोदने के लिए उठाने ही पड़ती हैं।

मैंने कंचन की चूत चूसने के लिए जैसे मुंह नीचे किया, कंचन की झांटों की तीखी खुशबू ने मुझे मस्त कर दिया। कंचन की झांटों की खुशबू वंदना की झांटों की खुशबू से भी तेज थी। या तो कंचन की झांटों में चूत का पानी ज्यादा था या फिर मूत कुछ ज्यादा था।

सारी औरतों की चूत एक जैसा पानी भी तो नहीं छोड़ती और मूतने के बाद कितना मूत झांटों में लगा रह गया ये सब भी तो सभी औरतों में एक जैसा नहीं होता। इसी लिए सभी औरतों की झांटों की खुशबू भी अलग अलग होती है। उनको इस खुशबू में छुपी मस्ती का क्या पता जिनकी बीवियां झांटों के बाल बढ़ने ही नहीं देती – जैसे मेरी बीवी माधुरी।

कंचन की चूत के नमकीन स्वाद और झांटों की खुशबू के बीच लता की चूत का ध्यान आ गया। क्या उसकी भी झांटें होंगी ? अगर होंगी तो उस कुंवारी फुद्दी की झांटों में से कैसे महक आ रही होगी। खैर इतनी चुसाई के बाद कंचन ने चूतड़ ऊपर नीचे करने शुरू कर दिए। शायद लंड मांग रही थी। मैं खड़ा हुआ और लेटी हुई कंचन के टांगें उठा ने लगा।

तभी कंचन बोली, “ऐसे चोदोगे बाबू जी” ?

मैं रुक गया, “तुम्हें कैसे चुदवानी है कंचन”?

कंचन बोली, “लिटा कर चोदो बाबू जी जैसे मर्द अपनी औरतों को लिटा कर ऊपर लेट कर चोदते हैं – अपनी औरत को बाहों में जकड़ कर”।

मैं भी माधुरी को ऐसे ही चोदता हूं। औरत की चूचियां जब छाती के साथ चिपकती हैं तो चुदाई का मजा दुगना हो जाता है। वैसे हर किस्म की चुदाई की अपनी ख़ास बात होती है। जैसे बेड के किनारे लिटा कर चुदाई करते समय चूचिया हिलती हैं।

उनका मजा अलग है। चाहो तो चूचियां पकड़ कर दबा दो या चूची का निप्पल मसल लो। अब पीछे से घोड़ी बना कर चुदाई की अपनी मस्ती है। चूतड़ों को पकड़ कर चुदाई करो। चुदाई करते करते गांड में उंगली घुसेड़ने का भी अपना ही मजा है।

मैंने कंचन को कहा “ठीक है कंचन, लेट जाओ। कंचन लेट गयी मैंने कंचन के चूतड़ों के नीचे तकिया टिका दिया और चूत उठा दी”।

कंचन ने टांगें उठा कर चौड़ी की और हाथों से चूत की फांकें खोल दी। कंचन की चूत का गुलाबी छेद सामने था। मैंने थोड़ा थूक कंचन की चूत के छेद पर लगाया और लंड ऊपर रख कर एक ही बार में जड़ तक अंदर बिठा दिया।

कंचन ने एक सिसकारी ली “आअह बाबू जी मस्त लंड है आपका। वंदना ठीक ही कह रही थी “।

मैंने सोचा अगर वंदना ने इतना कुछ बता दिया है तो फिर तो लता के बारे में भी जरूर बताया होगा। कंचन की चुदाई होने वाली थी मगर मेरे दिमाग से लता नहीं निकल रही थी। क्या मुझे बात करनी चाहिए कंचन से लता को चोदने के लिए? नहीं, शायद अभी नहीं – आज नहीं।

कंचन कहीं ये ना सोचने लगे कि बाबू जी ने मुझे चोदा है लता की चुदाई का रास्ता खोलने के लिए। और फिर माधुरी को गए अभी तीन दिन ही तो हुए हैं और मैं दो चूतें चोद भी चुका हूं। मैंने नीचे लेटी कंचन को बाहों में जकड़ लिया और लम्बे लम्बे धक्के लगाने लगा।

कंचन चूतड़ घुमा रही थी। कंचन पर चुदाई की मस्ती शायद कुछ ज्यादा ही थी। इधर कंचन ने भी मुझे बाहों में पकड़ कर साथ चिपका लिया और उधर अपनी टांगें मेरी कमर के पीछे कर के मुझे जकड़ लिया। मैं कंचन को खूब जोर जोर से चोद रहा था, जल्दी ही कंचन “आआह बाबू जी… आआह बाबू जी” की आवाजें निकालने लगी।

दस मिनट की चुदाई ही हुई होगी कि कंचन ने एक लम्बी सिसकारी ली “आआआआह… और जोर से चूतड़ घुमा कर ढीली हो गयी”। कंचन झड़ गयी थी। साफ़ लग रहा था चुदाई से पहले जो चूत सूखी थी अब पानी से भरी पड़ी। जितनी मर्जी इन काम वालियों की चूतें सूखी रहें, झड़ने के बाद तो हर औरत की चूत पानी से भर जाती हैं।

कंचन झड़ गयी थी मगर मेरा लंड अभी भी तना हुआ था। कंचन ने मेरे कमर से टांगे हटा ली। एक पल को ख्याल आया कि कंचन से पूछूं कि कंचन अब कैसे चुदवानी है, मगर मस्ती मुझ पर हावी थी। चुदाई बीच में रोकने का मेरा मन नहीं था। मैंने कंचन की चुदाई जरी रक्खी और धक्के लगाता रहा।

साथ आठ मिनट के लगातार धक्के ही लगे होंगे कि कंचन ने टांगों से मेरी कमर फिर जकड ली। कंचन की चूत चुदते चुदते फिर गरम हो गयी थी। चुदाई चलती रही। अब मेरा भी लंड झड़ने वाला था। मरे लंड के धक्कों की स्पीड अपने आप बढ़ गयी। मेरे मुंह से भी आवाजें निकलने लगी “आह कंचन, कंचन, आअह कंचन”।

इसे भी पढ़े – बहनों की जिम्मेदारी पार्ट 6

मेरी धुआंधार चुदाई और मजे से भरी सिसकारियों ने कंचन को भी झड़ने के निकट ला दिया। कंचन जोर जोर से चूतड़ घुमाने लगी और मेरी गालों के साथ अपनी गालें रगड़ने लगी। तभी मुझे मजा आ गया I “आअह्ह… कंचन निकल गया मेरा” – कंचन भी फुसफुसाई “मेरा भी बाबू जी… आअह”। मैं और कंचन दोनों इक्क्ठे झड़ गए। कुछ देर ऐसे ही लेटने के बाद मैने लंड कंचन की चूत में से निकला और कंचन के पास ही लेट गया। आधे घंटे से ज्यादा के चुदाई ने थका दिया था। थक तो कंचन भी गयी होगी। दस मिनट हम ऐसे ही लेटे रहे।

फिर कंचन पहले उठी और बाथरूम जा कर चूत की धुलाई कर के और मूत के वापस आ गयी। मेरे पास ही बैठ कर मेरा ढीला लंड एक बार चूसा और बोली, बाबू जी आप तो बड़ी मस्त चुदाई करते हो। बताया तो वंदना ने भी था बाबू जी कि आपका लंड बहुत बड़ा है और आपकी चुदाई भी मस्त है – मगर इतना मस्त चोदते हो आप, ये नहीं सोचा था। मजा आ गया आज तो”। कंचन बाथरूम से चूत धो कर और मूत कर तो आ गयी थी मगर अभी भी नंगी ही थी। मैं तो नंगा ही लेटा हुआ था।

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