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वासना के अतिरेक में अश्विनी ने माया के हाथ अपने कांपते हाथों में ले लिये. जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होंने रोमांचित हो कर उसे अपनी तरफ खींचा. झिझकते हुए माया उनके इतने नजदीक आ गई कि उसकी गर्म सांसे उन्हें अपने गले पर महसूस होने लगी. Naukrani Malik Sambhog Porn
अश्विनी ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर उठाया और उसकी नशीली आंखों में झांकने लगे. माया ने लजाते हुए पलकें झुका लीं पर उनसे छूटने की कोशिश नहीं की. उससे अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन पा कर अश्विनी ने अपने कंपकंपाते होंठ उसके नर्म गाल पर रख दिए.
तब भी माया ने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होने एक झटके से उसे बिस्तर पर गिराया और उसे अपनी आगोश में ले लिया. माया के मुंह से एक सीत्कार निकल गई. … तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो अश्विनी की नींद खुल गई. उन्होंने देखा कि बिस्तर पर वे अकेले थे.
वे बुदबुदा उठे … इसी वक़्त आना था …. पर वे घड़ी देख कर खिसिया गए. सुबह हो चुकी थी. दुबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. बाहर माया खड़ी थी, उनकी कामवाली, जो एक मिनट पहले ही उनके अधूरे सपने से ओझल हुई थी. उसके अन्दर आने पर अश्विनी ने दरवाजा बंद कर दिया.
जबसे उनकी पत्नी अंजलि गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे. अंजलि की दीदी शादी के पांच वर्ष बाद गर्भवती हुई थी. वे कोई जोखिम नही उठाना चाहती थीं इसलिए दो महीने पहले ही उन्होंने अंजलि को अपने यहाँ बुला लिया था. पिछले माह उनके बेटा हुआ था.
जच्चा के कमजोर होने के कारण अंजलि को एक महीने और वहां रुकना था. इसलिये अश्विनी इस वक्त मजबूरी में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे. काफी समय से उनका मन अपने घर पर काम करने वाली माया पर आया हुआ था. माया युवा थी. उसके नयन-नक्श आकर्षक थे.
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उसका बदन गदराया हुआ था. अपनी पत्नी के रहते उन्होंने कभी माया को वासना की नज़र से नहीं देखा था. अंजलि थी ही इतनी खूबसूरत! उसके सामने माया कुछ भी नहीं थी. पर अब पत्नी के वियोग ने उन की मनोदशा बदल दी थी. माया उन्हें बहुत लुभावनी लगने लगी थी और वे उसे पाने के लिए वे बेचैन हो उठे थे.
अश्विनी जानते थे कि माया बहुत गरीब है. वो मेहनत कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है. उसका पति निठल्ला है और पत्नी की कमाई पर निर्भर है. उन्होंने सोचा कि पैसा ही माया की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे उसे पाया जा सकता है.
अश्विनी जानते थे कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है. फिर माया की क्या औकात कि उन्हें पुट्ठे पर हाथ न रखने दे. माया को हासिल करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी. आज उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित करने का फैसला कर लिया.
माया के आने के बाद वे अपने बिस्तर पर लेट गए और कराहने लगे. माया अंदर काम कर रही थी. जब उसने अश्विनी के कराहने की आवाज सुनी तो वो साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई उनके पास आयी. उन्हें बेचैन देख कर उसने पूछा, ‘‘बाबूजी, क्या हुआ? … तबियत खराब है?’’
दर्द का अभिनय करते हुए अश्विनी ने कहा, “सर में बहुत दर्द है.”
“आपने दवा ली?”
“हां, ली थी पर कोई फायदा नहीं हुआ. जब अंजलि यहाँ थी तो सर दबा देती थी और दर्द दूर हो जाता था. पर अब वो तो यहाँ है नहीं.”
माया सहानुभूति से बोली, ‘‘बाबूजी, आपको बुरा न लगे तो मैं आपका सर दबा दूं?’’
‘‘तुम्हे वापस जाने में देर हो जायेगी! मैं तुम्हे तकलीफ़ नहीं देना चाहता… पर घर में कोई और है भी नहीं,’’ अश्विनी ने विवशता दिखाते हुए कहा.
“इसमें तकलीफ़ कैसी? और मुझे घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं है,” माया ने कहा.
माया झिझकते हुए पलंग पर उनके पास बैठ गई. वो उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और सहलाने लगी. एक स्त्री के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही अश्विनी का शरीर उत्तेजना से झनझनाने लगा. उन्होंने कुछ देर स्त्री-स्पर्श का आनंद लिया और फिर अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए बोले, ‘‘माया, तुम्हारे हाथों में तो जादू है! बस थोड़ी देर और दबा दो.’’
कुछ देर और स्पर्श-सुख लेने के बाद उन्होंने सहानुभूति से कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम्हारा आदमी कोई काम नहीं करता. वो बीमार रहता है क्या?’’
‘‘बीमार काहे का? … खासा तन्दरुस्त है पर काम करना ही नहीं चाहता!’’ माया मुंह बनाते हुए बोली.
‘‘फिर तो तम्हारा गुजारा मुश्किल से होता होगा?’’
‘‘क्या करें बाबूजी, मरद काम न करे तो मुश्किल तो होती ही है,’’ माया बोली.
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ अश्विनी ने पूछा.
‘‘वही एक हजार रुपए जो आपके घर से मिलते हैं.’’
“कहीं और काम क्यों नहीं करती तुम?”
“बाबूजी, आजकल शहर में बाहर की इतनी बाइयां आई हुई हैं कि घर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.” माया दुखी हो कर बोली.
“लेकिन इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?”
“अब क्या करें बाबूजी, हम गरीबों की सुध लेने वाला है ही कौन?” माया विवशता से बोली.
थोड़ी देर एक बोझिल सन्नाटा छाया रहा. फिर अश्विनी मीठे स्वर में बोले, ‘‘अगर तुम्हे इतने काम के दो हज़ार रुपए मिलने लगे तो?’’
माया अचरज से बोली, ‘‘दो हज़ार कौन देता है, बाबूजी?’’
‘‘मैं दूंगा.’’ अश्विनी ने हिम्मत कर के कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
माया उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी. उसे समझ में नहीं आया कि इस मेहरबानी का क्या कारण हो सकता है. उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें, बाबूजी?’’
माया के हाथ को सहलाते हुए अश्विनी ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं तुम्हे अपना समझता हूँ. मैं तुम्हारी गरीबी और तुम्हारा दुःख दूर करना चाहता हूँ.”
“और मुझे सिर्फ वो ही काम करना होगा जो मैं अभी करती हूँ?”
“हां, पर साथ में मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार भी चाहिए. दे सकोगी?’’ अश्विनी ने हिम्मत कर के कहा.
कुछ पलों तक सन्नाटा रहा. फिर माया ने शंका व्यक्त की, ‘‘बीवीजी को पता चल गया तो?’’
‘‘अगर मैं और तुम उन्हें न बताएं तो उन्हें कैसे पता लगेगा?’’ अश्विनी ने उत्तर दिया. अब उन्हें बात बनती नज़र आ रही थी.
‘‘ठीक है पर मेरी एक शर्त है …’’
यह सुनते ही अश्विनी खुश हो गए. उन्होंने माया को टोकते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है. तुम बस हां कह दो.’’
‘‘मैं कहाँ इंकार कर रही हूं पर पहले मेरी बात तो सुन लो, बाबूजी.’’ माया थोड़ी शंका से बोली.
अब अश्विनी को इत्मीनान हो गया था कि काम बन चुका है. उन्होंने बेसब्री से कहा, ‘‘बात बाद में सुनूंगा. पहले तुम मेरी बाहों में आ जाओ.’’
माया कुछ कहती उससे पहले उन्होंने उसे खींच कर अपनी बाहों में भींच लिया. उनके होंठ माया के गाल से चिपक गए. वे उत्तेजना से उसे चूमने लगे. माया ने किसी तरह खुद को उनसे छुड़ाया, “बाबूजी, आज नहीं. … आपको दफ्तर जाना है. कल इतवार है. कल आप जो चाहो कर लेना.”
अगले चौबीस घंटे अश्विनी पर बहुत भारी पड़े. उन्हें एक-एक पल एक साल के बराबर लग रहा था. वे माया की कल्पना में डूबे रहे. उनकी हालत सुहागरात को दुल्हन की प्रतीक्षा करते दूल्हे जैसी थी. किसी तरह अगली सुबह आई. रोज की तरह सुबह आठ बजे माया भी आ गई.
जब वो अन्दर जाने लगी तो अश्विनी ने पीछे से उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. वे उसे तुरंत बैडरूम में ले जाना चाहते थे लेकिन माया ने उनकी पकड़ से छूट कर कहा, “ये क्या, बाबूजी? मैं कहीं भागी जा रही हूँ? पहले मुझे अपना काम तो कर लेने दो.”
“काम की क्या जल्दी है? वो तो बाद में भी हो सकता है!” अश्विनी ने बेसब्री से कहा.
“नहीं, मैं पहले घर का काम करूंगी. आपने कहा था ना कि आप मेरी हर शर्त मानेंगे.”
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अब बेचारे अश्विनी के पास कोई जवाब नहीं था. उन्हें एक घंटे और इंतजार करना था. वे अपने बैडरूम में चले गए और माया अपने रोजाना के काम में लग गई. अश्विनी ने कितनी कल्पनाएं कर रखी थीं कि वे आज माया के साथ क्या-क्या करेंगे! एक घंटे तक वही कल्पनाएं उनके दिमाग में घूमती रहीं.
बीच-बीच में उन्हें यह भी लग रहा था कि माया आज काम में ज्यादा ही वक़्त लगा रही है! अश्विनी का एक घंटा बड़ी बेचैनी से बीता. कभी वे बिस्तर पर लेट जाते तो कभी कुर्सी पर बैठते … कभी उठ कर खिड़की से बाहर झांकते तो कभी अपनी तैय्यारियों का जायज़ा लेते (उन्होंने तकिये के नीचे एक लग्जरी कन्डोम का पैकेट और जैली की एक ट्यूब रख रखी थी.)
नौ बज चुके थे. धूप तेज हो गई थी. पंखा चलने और खिड़की खुली होने के बावजूद कमरे में गर्मी बढ़ गई थी. पर अश्विनी को इस गर्मी का कोई एहसास नहीं था. उन्हें एहसास था सिर्फ अपने अन्दर की गर्मी का. वे खिड़की के पर्दों के बीच से बाहर की तरफ देख रहे थे कि उन्हें अचानक कमरे का दरवाजा बंद होने की आवाज सुनाई दी.
उन्होंने मुड़ कर देखा. माया दरवाजे के पास खड़ी थी. उसकी नज़रें शर्म से झुकी हुई थीं. माया के कपडे हमेशा जैसे ही थे पर अश्विनी को लाल रंग की साडी और ब्लाउज में वो नयी नवेली दुल्हन जैसी लग रही थी. वे कामातुर हो कर माया की तरफ बढे. उनकी कल्पना आज हकीकत में बदलने वाली थी.
पास पहुँच कर उन्होने माया को अपने सीने से लगा लिया और उसे बेसब्री से चूमने लगे. उन्होने अब तक अपनी पत्नी के अलावा किसी स्त्री को नहीं चूमा था. माया को चूमने में उन्हें एक अलग तरह का मज़ा आ रहा था. जैसे ही उनका चुम्बन ख़त्म हुआ, माया थोड़ा पीछे हट कर बोली, “ऐसी क्या जल्दी है, बाबूजी? … खिड़की से किसी ने देख लिया तो?”
“खिड़की के बाहर तो सुनसान है. वहां से कौन देखेगा?”
“मर्द लोग ऐसी ही लापरवाही करते हैं. उनका क्या बिगड़ता है? बदनाम तो औरत होती है. … हटिये, मैं देखती हूँ.”
माया खिड़की के पास गई. उसने पर्दों के बीच से बाहर झाँका. इधर-उधर देखने के बाद जब उसे तसल्ली हो गई तो उसने पर्दों को एडजस्ट किया और अश्विनी के पास वापस आ कर बोली, “सब ठीक है. अब कर लीजिये जो करना है.”
“करना तो बहुत कुछ है. पर पहले मैं तुम्हे अच्छी तरह देखना चाहता हूँ.”
“देख तो रहे हैं मुझे, अब अच्छी तरह कैसे देखेंगे?”
“अभी तो मैं तुम्हे कम और तुम्हारे कपड़ों को ज्यादा देख रहा हूँ. अगर तुम अपने कपडों से बाहर निकलो तो मैं तुम्हे देख पाऊंगा.” अश्विनी ने कहा.
“मुझे शर्म आ रही है, बाबूजी. पहले आप उतारिये,” माया ने सर झुका कर कहा.
नौकरानी के सामने कपडे उतारने में अश्विनी को भी शर्म आ रही थी पर इसके बिना आगे बढ़ना असंभव था. अश्विनी अपने कपड़े उतारने लगे. यह देख कर माया ने भी अपनी साडी उतार दी. अश्विनी अपना कुरता उतार चुके थे और अपना पाजामा उतार रहे थे.
माया को उनके लिंग आकार अभी से दिखाई देने लगा था. उसने अपना ब्लाउज उतारा. अश्विनी की नज़र उसकी छाती पर थी. जैसे ही उसने अपनी ब्रा उतारी, उसके दोनो स्तन उछल कर आज़ाद हो गये. फिर उसने अपना पेटीकोट भी उतार दिया. उसने अन्दर चड्डी नही पहनी थी.
उसका गदराया हुआ बदन, करीब 36 साइज़ के उन्नत स्तन, तने हुए निप्पल, पतली कमर, पुष्ट जांघें और जांघों के बीच एक हल्की सी दरार … यह सब देख कर अश्विनी की उत्तेजना सारी हदें पर कर गई. उन्होंने अनुभव किया कि माया का नंगा शरीर अंजलि से ज्यादा उत्तेजक है. वो अब उसे पा लेने को आतुर हो गये.
अब तक अश्विनी भी नंगे हो चुके थे. माया ने लजाते हुए उनके लिंग को देखा. उसे वो कोई खास बड़ा नहीं लगा. उससे बड़ा तो उसके मरद का था. वो सोच रही थी कि यह अन्दर जाएगा तो उसे कैसा लगेगा. … शुरुआत उसने ही की. वो अश्विनी के पास गई और उनके लिंग को अपने हाथ में ले कर उसे सहलाने लगी.
उसके हाथ का स्पर्श पा कर लिंग तुरंत तनाव में आ गया. अश्विनी ने भी उसके स्तनो को थाम कर उन्हें मसलना शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद अश्विनी माया को पलंग पर ले गए. दोनो एक दूसरे को अपनी बाहों में भर कर लेट गये. दीपक ने अपने एक हाथ से उसके निपल को मसलते हुए कहा, “माया, … तुम नही जानती कि मैं इस दिन का कब से इंतजार कर रहा था!”
“मैं खुश हूं कि मेरे कारण आपको वो सुख मिल रहा है जिसकी आपको जरूरत थी,” माया ने अश्विनी के लिंग को मसलते हुए कहा.
अश्विनी फुसफुसा कर बोले, “तुम्हारे हाथों में जादू है, माया.”
माया बोली, “अच्छा? लेकिन यह तो मेरे हाथ में आने से पहले से खड़ा है.”
अश्विनी भी नहीं समझ पा रहे थे कि आज उनके लिंग में इतना जोश कहाँ से आ रहा है. वो भी अपने लिंग के कड़ेपन को देख कर हैरान थे और कामोत्तेजना से आहें भर रहे थे. … माया ने अपनी कोहनी के बल अपने को उठाया और वो अश्विनी की जांघों के बीच झुकने लगी.
अश्विनी यह सोच कर रोमांचित हो रहे थे कि माया उनके लिंग को अपने मुह में लेने वाली है. उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि माया जैसी कम पढ़ी स्त्री मुखमैथुन से परिचित होगी. उनकी पढ़ी-लिखी मॉडर्न पत्नी ने भी सिर्फ एक-दो बार उनका लिंग मुंह में लिया था और फिर जता दिया था कि उन्हें यह पसंद नहीं है.
“ओह! … कितना उत्तेजक होगा यह अनुभव!” अश्विनी ने सोचा और धीमे से माया के सर के पीछे अपना हाथ रखा. उसके सर को आगे की तरफ धकेल कर उन्होंने यह जता दिया कि वे भी यही चाहते है. माया ने उनके लिंगमुंड को चूमा. उसके होंठ लिंग के ऊपरी हिस्से को छू रहे थे और तीन-चार बार चूमने के बाद माया ने अपनी जीभ लिंग पर फिरानी शुरू कर दी…
अश्विनी आँखें बंद कर के इस एहसास का आनंद ले रहे थे. माया ने अपना मुंह खोला और लिंग को थोड़ा अंदर लेते हुए अपने होंठों से कस लिया. उसके ऐसा करते ही अश्विनी को अपने लिंग पर उसके मुह की आंतरिक गरमाहट महसूस हुई. उन्हें लगा कि उनका वीर्य उसी समय निकल जाएगा.
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उन्होंने अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर के अपनी उत्तेजना और रोमांच पर काबू किया. फिर उन्होंने अपने हिप्स उसके मुह की तरफ उठा दिये जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लिंग उसके मुह मे जा सके और वो उसके पूरे मुह की गरमाहट अपने लिंग पर महसूस कर सके.
लेकिन उनकी उत्तेजना इतनी बढ़ गई थी कि वे माया का सर पकड़ कर उसे अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे. अब माया का मुह पूरे लिंग को अपने अंदर समा चुका था. माया कुछ देर और उनके लिंग को अपने मुह में लिए चूसती रही पर अश्विनी का यौन-तनाव अब बर्दाश्त के बाहर हो गया था.
उन्होंने माया को चित लिटा दिया. वो समझ गई कि अब वक्त आ चुका है. उसने अपनी टाँगे चौड़ी कर दी. अश्विनी उस की फैली हुई टाँगों के बीच आये और उसके ऊपर लेट गये. वे उसके गरम और मांसल शरीर का स्पर्श पा कर और भी कामातुर हो गए.
उनका उत्तेजित लिंग माया की योनि से टकरा रहा था. उनकी बाँहें माया के गिर्द भिंच गयीं और उनके नितम्ब बरबस ऊपर-नीचे होने लगे. माया ने अपनी टांगें ऊपर उठा दी. लिंग ने अनजाने में ही अपना लक्ष्य पा लिया और योनी के अन्दर घुस गया.
अश्विनी अपने लिंग पर योनि की गरमाहट को पूरी तरह से महसूस कर पा रहे थे. योनी की जकड़ उतनी मजबूत नहीं थी जितनी उनकी पत्नी की योनी की होती थी. लेकिन लिंग पर नई योनी कि गिरफ्त रोमांचकारी तो होती ही है और अश्विनी भी इसका अपवाद नहीं थे.
लिंग पर नई योनी का स्पर्श, शरीर के नीचे नई स्त्री का शरीर और आँखों के सामने एक नई स्त्री का चेहरा – इन सब ने अश्विनी को उतेजना की पराकाष्ठ पर पंहुचा दिया. उनका लिंग जल्दी वीर्यपात न कर दे इसलिये अपना ध्यान योनी से हटाने के लिए अश्विनी ने माया के निचले होंठ को अपने होंठों में दबाया और उसे चूसने लगे.
माया ने भी उनका साथ दिया और वो उनका ऊपर वाला होंठ चूसने लगी. अब अश्विनी ने अपनी जीभ माया के मुह में घुसा दी. माया भी पीछे नहीं रही. दोनों की जीभ एक-दूसरी से लड़ने लगीं. इसका परिणाम यह हुआ कि अश्विनी अपनी उत्तेजना पर काबू खो बैठे.
उनके नितम्ब उन के वश में नहीं रहे और बेसाख्ता फुदकने लगे. उनका लिंग सटासट योनि के अंदर-बाहर हो रहा था. उसमे निरंतर स्पंदन हो रहा था. उनकी साँसे तेज हो गई थी. उनके मचलने के कारण लिंग योनि के बाहर निकल सकता था.
माया ने इस सम्भावना को ताड़ लिया. उसने अपने पैर उनके नितम्बों पर कस कर उनके धक्कों को नियंत्रित करने की कोशिश की. वह सफल भी हुई पर एक मिनट बाद अश्विनी का लिंग फिर से बेलगाम घोड़े की तरह सरपट दौड़ने लगा. उनका मुंह खुला हुआ था और उससे आहें निकल रही थी.
लिंग तूफानी गति से अंदर बाहर हो रहा था. अचानक अश्विनी का शरीर अकड़ गया और उनके लिंग ने योनी में कामरस निकाल दिया. वे माया के ऊपर एक कटी हुई पतंग की तरह गिर गए. वे अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझ रहे थे कि एक लम्बे अर्से के बाद आज उन्हें एक पूर्ण तृप्ति देने वाले संभोग का अनुभव हुआ था.
जब अश्विनी कामोन्माद से उबरे तो उन्हें एहसास हुआ कि माया ने तो उन्हें तृप्ति दे दी थी पर वे उसे तृप्त नहीं कर पाए थे. वे माया के ऊपर से उतर कर उसकी बगल में लेट गए. लंबी साँसे लेते हुए वे बोले, “माया, बहुत जल्दी हो गया ना! तुम तो शायद प्यासी ही रह गई.”
माया उनके सीने पर हाथ फेरते हुए बोली, “पहली बार नई औरत के साथ ऐसा हो जाता है. पर अभी हमारे पास वक़्त है. आप थोड़ी देर आराम कीजिये, मैं चाय बना कर लाती हूं.”
वो सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर पहले बाथरूम में गई और फिर किचन में. उसके जाने के दो मिनट बाद अश्विनी बाथरूम में गये. वापस आ कर उन्होने अंडरवियर पहना और कुर्सी पर बैठ गये. पिछले कुछ मिनटों में जो उनके साथ हुआ था वो उनके दिमाग में एक फिल्म की तरह चलने लगा.
उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उन्होंने अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री के साथ सम्भोग किया था! पर सामने पड़े माया के कपड़े बता रहे थे कि यह सच था. वे थोड़े लज्जित भी थे – एक तो इसलिये कि उन्होंने एक नौकरानी के साथ यह काम किया था और दूसरे इसलिये कि वे उसे तुष्ट नहीं कर पाए.
अश्विनी अपने ख्यालों में खोये हुए थे कि माया उनके लिए चाय ले कर आ गई. उन्हें चाय का कप दे कर वह उनके सामने जमीन पर बैठ कर चाय पीने लगी. उनको उदास देख कर वह बोली, “दुखी क्यों हो रहे हैं, बाबूजी? मैंने कहा ना कि हमारे पास वक्त है. इस बार सब ठीक होगा!”
“इस बार?” अश्विनी निराशा से बोले. “… अब दुबारा होना तो बहुत मुश्किल है!”
“क्या बात करते हैं, बाबूजी?” माया विश्वास से बोली. “आप चाय पी लीजिये. फिर मैं आपके लंड को तैयार न कर दूं तो मेरा नाम माया नहीं.”
यह सुन कर अश्विनी चौंक गए, न सिर्फ माया के आत्मविश्वास से बल्कि उसकी भाषा से भी. वे ऐसे शब्दों से अनभिज्ञ नहीं थे, अनभिज्ञ तो कोई भी नहीं होता. पर उन्होंने अब तक किसी भी स्त्री के साथ ऐसी भाषा में बात नहीं की थी. किसी स्त्री के मुंह से ऐसे शब्द सुनना तो और भी विस्मयकारी था.
उनकी पत्नी तो इतनी शालीन थी कि उनके सामने ऐसी भाषा का प्रयोग करना अकल्पनीय था. उनको चकित देख कर माया फिर बोली, “आपको यकीन नहीं हो रहा है, बाबूजी? अभी देख लेना … आपके लंड की क्या मजाल कि मेरे मुंह में आ जाए और खड़ा न हो!”
अब अश्विनी समझ गए कि माया जिस तबके की थी उसमे मर्दों और औरतों द्वारा ऐसी भाषा में बोलना सामान्य होता होगा. चाय ख़त्म हो चुकी थी. माया किचन में कप रख आई. उसने अश्विनी के सामने बैठ कर उनका अंडरवियर उतारा. उनके लंड को हाथ में ले कर वो बोली, “मुन्ना, बहुत सो लिए. अब उठ जाओ. अब तुम्हे काम पर लगना है.”
थोड़ी देर लंड को हाथ से सहलाने के बाद उसने सुपाडा अपने मुंह में ले लिया और उस पर अपनी जीभ फिराने लगी. जल्द ही उसकी जादुई जीभ का असर दिखा. निर्जीव से पड़े लंड में जान आने लगी. धीरे धीरे उसकी लम्बाई और सख्ती बढ़ने लगी. माया ने पूरे लंड को अपने मुंह में लिया और उसे कस कर चूसने लगी.
अश्विनी ने उसके सिर पर हाथ रख कर अपनी आँखे बंद कर ली. … उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनका लंड इतनी जल्दी दुबारा खड़ा हो गया था! माया उनके लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे वो उसके रस को चूस कर ही निकालना चाहती हो. अश्विनी इस सुखद एहसास का भरपूर मज़ा ले रहे थे, ”ओsssह…! माया … थोड़ा धीरे … आsssह्ह …!”
माया पांच मिनट तक उनका लंड चूसती रही. जब उसे यकीन हो गया कि अब लंड से काम लिया जा सकता है तो उसने अश्विनी को पलंग पर लेटने को कहा. जब अश्विनी लेट गए तब उसने अपना ब्लाउज़ और पेटीकोट उतारना शुरू किया. अश्विनी कामविभोर हो कर उसे निर्वस्त्र होते हुए देख रहे थे.
नंगी होने के बाद माया उनकी जांघों पर सवार हो गई. वो आगे झुक कर उनके होंठों को चूसने लगी. अश्विनी ने उसके स्तनों को अपने हाथों में लिया और उन्हें हल्के हाथों से दबाने लगे. माया ने अपना मुंह उठा कर कहा, “बाबूजी, जोर से दबाओ ना. मेरी चून्चियां बीवीजी जितनी नाज़ुक नहीं हैं!”
अश्विनी उसकी चून्चियों को तबीयत से दबाने और मसलने लगे. माया ने फिर से अपने रसीले होंठ उनके होंठों पर रख दिए और उनसे जीभ लड़ाने लगी. अश्विनी को ऐसा लग रहा था मानो वो स्वप्नलोक की सैर कर रहे हों. पलंग पर स्त्री का ऐसा सक्रिय और आक्रामक रूप वे पहली बार देख रहे थे. जब वे बुरी तरह काम-विव्हल हो गए तो उन्होंने माया से याचना के स्वर में कहा, “बस माया, … अब अन्दर डालने दो.”
माया ने शरारत से उन्हें देखा और पूछा, “कहाँ डालना चाहते हो, बाबूजी? … मुंह में या मेरी चूत में?”
… अश्विनी ने शर्मा कर कहा, “तुम्हारी चूत में.”
माया ने अपनी चूत पर थूक लगाया और उसे अश्विनी के लंड से सटा दिया. लंड को अपने हाथ से पकड़ कर उसने अपनी कमर को नीचे धकेला. एक ही धक्के में चूत ने पूरे लंड को अपने अन्दर निगल लिया. अब माया हौले-हौले धक्के लगाने लगी.
माया की गर्म चूत में जा कर अश्विनी के लंड में जैसे आग सी लग गयी. उनके नितम्ब अनायास ही उछलने लगे पर इस बार कमान माया के हाथों में थी. उसने अश्विनी की जाँघों को अपनी जाँघों के नीचे दबाया और उन्हें उछलने से रोक दिया. उसने अश्विनी से कहा, “बाबूजी, आप आराम से लेटे रहो और मुझे अपना काम करने दो.”
अश्विनी ने समर्पण कर दिया. जब माया ने देखा कि अश्विनी अब उसके कंट्रोल में हैं तो उसने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. अश्विनी लेटे-लेटे माया के धक्कों का मज़ा लेने लगे. माया एक-दो मिनट धक्के मारती और जब उसे लगता कि अश्विनी झड़ने वाले हैं तो वो रुक जाती. ऐसे ही वो एक बार धक्कों के बीच रुकी तो उसने पूछा, “बाबूजी, कभी बीवीजी भी आपको ऐसे चोदती हैं या वे सिर्फ चुदवाती हैं?”
अश्विनी ने थोडा शरमाते हुए कहा, “वे तो सिर्फ नीचे लेटती हैं. बाकी सब मैं ही करता हूं.”
“बाबूजी, मेरा मरद तो मुझे हर तरह से चोदता है – कभी नीचे लिटा कर, कभी ऊपर चढ़ा कर, कभी घोड़ी बना कर तो कभी खड़े-खड़े,” माया ने कहा.
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अश्विनी को लगा कि उसे चुदाई के साथ-साथ माया की अश्लील बातें सुनने में भी मज़ा आ रहा है. … चुदाई और माया की बातें दो-तीन मिनट और चलीं. फिर अश्विनी को लगा कि वे आनन्दातिरेक में आसमान में उड़ रहे है. जब आनंद का एहसास अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया तो उन्होने माया की कमर पकड़ ली. उनके नितंब अपने आप तेज़ी से फुदकने लगे. वैसे भी उन्होंने बहुत देर से अपने को रोक रखा था. उन्होंने माया को अपनी बाहों में भींच लिया.
उन्हें अपने लंड पर उसकी चूत का स्पंदन महसूस हो रहा था जिसे वे सहन नहीं कर पाये. उनका लंड माया की चूत में वीर्य की बौछार करने लगा. जब माया की चूत ने उनके वीर्य की आखिरी बूंद भी निचोड़ ली तो उनका लंड सिकुडने लगा. दोनों एक दूसरे को बाहों में समेटे लेटे रहे. … कुछ देर बाद जब अश्विनी की साँसे सामान्य हुईं तो उन्होंने कहा, “माया, तुमने आज जो आनंद मुझे दिया है वो मैं कभी नहीं भूलूंगा.”
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