Cousin Sex Story
ये कहानी काफी पुरानी है। मैं कक्षा 11 में था, और 18 की उम्र पार करके ही ग्यारहवीं में पहुंचा था। उस उम्र के लगभग सभी लड़कों की तरह मैं भी हर समय काफी हॉर्नी रहता था। क्लास में अपनी पेंसिल या रबर नीचे गिरा देता सिर्फ इसलिए, कि पीछे बैठी लड़की अगर ज़रा भी टांगें चौड़ी करके बैठी हो, तो पेंसिल उठाने के लिए जब झुकूंगा तो उसकी स्कर्ट के नीचे झाँक कर देख सकूं। Cousin Sex Story
ज़्यादातर तो स्कर्ट लम्बी होने की वजह से उसके नीचे दिखता ही नहीं था, या कभी इत्तेफ़ाक़ से सफ़ेद या लाल पैंटी दिख जाती थी। परन्तु इस चक्कर में तो एक बार पीछे बैठी दीक्षा की झांटें दिख गयी थी, जब उसकी पैंटी एक साइड से एक-दम ऊपर उसकी चूत की फांकों के बीच तक खिसक गयी थी। उस दिन मुझसे वही पेंसिल दो बार नीचे गिरी थी।
पापा के ऑफिस चले जाने के बाद छुप कर मम्मी को नंगा नहाते हुए देखने के लिए कभी-कभी कोई बहाना बना कर स्कूल ना जाता, और उन्हें देख कर लौड़े (जिसे मैं अपना प्यारा मुन्ना कहता हूँ) को निकाल कर रूमाल में मुठ मार लिया करता था।
ख़ास मज़ा तो मम्मी को अपनी झाटों से भरी चूत धोते हुए देखने में आता था, जब वह टांगें चौड़ी किये हुए पटले पर बैठी अपनी चूत की फांकें अलग करती, और झुक कर लोटे से उस पर पानी डालती थीं। वोह भी क्या दिन थे। चूत से झांटें कोई औरत शेव नहीं करती थी।
और ठीक ही तो है, बिना झांटों के चूत तो एक बेकार सी दरार जैसी ही दिखती है, जैसे किसी बच्ची की। मम्मी की जैसी झांटों से ढकी नंगी चूत का ख्याल आते ही मेरे लौड़े का सुपाड़ा फूल कर लाल हो जाता और उसकी टोपी गीली होने लगती। एक बात और, घर मैं केवल 2 घंटे के लिए सुबह 6 से 8 तक ही पानी आता था और 7 से 8 तक कम प्रेशर पर, तो हम सब का नहाना सुबह ही हो जाता था।
पापा जल्दी ऑफिस चले जाते थे, और मम्मी नहाने के बाद केवल साड़ी लपेट कर बिना ब्लाउज और पेटीकोट पहने किचन में खाना वगैरह के सिलसिले में लगी रहती थी, या कभी अगर नहाई ना होती तो केवल नाइटी में (बिना ब्लाउज और पैंटी के) होती थी।
अक्सर नाइटी पीछे से मम्मी के चूतड़ों के बीच दरार में फंसी होती थी और सामने से बड़े-बड़े मम्मों की क्लीवेज और दोनों नोकीले निप्पल दिखते थे। बाजार घूमते हुए भी मेरी नज़र हमेशा आंटियों और लड़कियों की चूची और चूतड़ों पर ही रहती थी, और लौड़े को काफी मुश्किल से काबू में रख पाता था।
कुछ औरतों की हिप्स काफी चौड़ी होती, और चलते समय उनके चूतड़ ऊपर-नीचे होते देख तो बड़ा मज़ा आता था। मैंने कई पैंटों में तो जेब में छेद कर लिया था, जिससे कि ज़रुरत पड़ने पर जेब में हाथ डाल कर लौड़ा काबू में कर सकूं। कभी कभार जब किसी औरत या लड़की को चलते-चलते अनायास अपनी चूत पल भर के लिए खुजाते अगर देख लेता, तो फ़ौरन जेब में हाथ डाल कर थिरकते लंड को संभालना पड़ता था, और उसी समय मुट्ठ मारने को जी करता था।
इसे भी पढ़े – सऊदी में कफील की चुदासी बेटी ने चुदवाया
बेहद इच्छा थी कि कोई काली झांट वाली लड़की नंगी होकर मुझे अपनी चूत अच्छी तरह देखने, छूने, और सूंघने और चाट या चूस लेने दे। और मैं भी उसे अपना लौड़ा और लटकन अच्छी तरह और खूब देर तक सहला लेने दूँ और खूब चुसवाऊँ। पर ये सब ख्याली पुलाव तो तब तक सिर्फ सोच ही में था।
उस ज़माने में औरतों की बाजार वाली पैंटी या मर्दों के अंडरवियर तो थे ही नहीं, घरों के बाहर बाकी कपड़ों के साथ औरतों की लाल या सफ़ेद घर की बनी हुई चड्ढी और मर्दों के ढ़ीले जांघिये सूखा करते थे। चड्ढी पर अक्सर चूत के पानी का हल्का पीला सा निशान भी नज़र आ जाता था और थोड़े ज्यादा पीले निशान में तो थोड़ी चूत की महक भी मैंने सूंघी थी।
ज़ाहिर है, सूंघ कर चेहरे पर मुस्कान और लौड़े मैं सुरसुराहट भी हुई थी, ख्यालों मैं झांटों से भरी चूत जो दिख गयी थी। मम्मी सिर्फ ब्लाउज और ढीले पेटीकोट में ही सोती थी, और जब पापा टूर पर जाते तो मैं देर तक पढ़ाई के बहाने जगा रहता क्योंकि मम्मी गहरी नींद मैं टांगें मोड़ कर सोती थी, और अक्सर टांगें चौड़ी होने से उनकी झांटें साफ़ दिखती थीं।
ऐसे में मैं कच्छे का नाडा खोल कर आराम से दो या कभी तीन बार झांटें देखते हुए मुठ मार के सोता, तो मुझे खूब गहरी नींद आती थी। एक-आध बार तो मैंने उनको नींद में अपनी चूत खुजाते हुआ भी देखा था! मेरे तो तब रोंगटे खड़े हो जाते थे, लौड़े के साथ-साथ।
खैर, अब अपनी उस असली वारदात पर आता हूँ जिसकी वजह से मेरे सारे सेक्सी सपने पूरे हुए और जिसकी वजह से मैं यह सब बता रहा हूँ। एक दिन पापा ने घर आके बताया कि मेरी कजिन दीक्षा को हमारे पास आ कर रहना होगा, क्योंकि उन्हें बारहवीं कक्षा का बोर्ड एग्जाम उसी शहर से देना था।
दीक्षा तीन बहनों में दूसरी थी और काफी सांवली चपटे से चेहरे वाली स्कर्ट-ब्लाउज में रहने वाली लड़की थी, जो 18 साल कि हो चुकी थी। और बस किसी तरह से पास होने भर के नंबर लाने की फिराक में थी। मैं यह सुन कर मन ही मन काफी खुश हुआ, कि चलो एक लड़की जिसका मन पढ़ाई में कम लगता था, और मुझसे कुछ महीने ही बड़ी थी, हमारे साथ रहेगी कुछ समय तक।
और असल में ज़्यादा खुशी इसलिए हुई कि दीक्षा का अगर पढ़ाई में कम मन लगता था, तो ज़रूर कुछ दूसरी खुराफात करती और सोचती तो होगी ही। और अगर पट गयी तो दोनों खूब मज़े करेंगे एक दूसरे के साथ। दीक्षा के आने के बाद हम लोगों के रूटीन में कोई ख़ास बदलाव नहीं आया था, सिवाय इसके की मुझे नहा कर थोड़ा और जल्दी निकल आना पड़ता था।
क्यूंकि मैं स्कूल जाता था, और दीक्षा की तो प्रेप-लीव चल रही थी। पर उसे नल में से पानी जाने से पहले ही बाथरूम जाना होता था। मैंने पूछा क्यों, तो बोली कि बाल्टी में भरे हुए पानी से नहाने में वो मज़ा नहीं है जो कि नल से गिरते पानी की धार से नहाने में आता है। बात आयी-गयी हो गई। फिर मैनें एक-दो दिन बाद नोटिस किया, कि दीक्षा की सभी स्कर्ट में दो पॉकेट ज़रूर थी, और हर समय उसका एक या दूसरा हाथ जेब में ही होता है।
ख़ैर, यह भी आई-गयी सी बात होने से पहले मैंने एक और काफी इंटरेस्टिंग चीज़ नोटिस की। रात को हम चारों एक लाइन से एक ही जगह कवर्ड और ढके हुए वरांडे में सोते थे, पहले पापा, फिर मम्मी, दीक्षा, और मैं। कई रात देखा कि चाहे कितनी भी गर्मी हो, दीक्षा को एक चादर तो ओढ़नी ही होती थी, और अक्सर (लगभग रोज़) उसका एक हाथ अधखुली सी टांगों के बीच होता था।
सोचा, यह भी शायद मेरी तरह अपनी चूत में मुठ मारती होगी, लेकिन मेरी परेशानी यह थी कि लड़की आखिर करती क्या है अपनी चूत में मज़े लेने के लिए। जैसे मैं लौड़े का सुपाड़ा जल्दी-जल्दी खोलता-बंद करता हूँ? धीरे-धीरे चूत पर से दीक्षा की चादर भी ऊपर नीचे होती दिखती थी, और वह मेरी तरफ थोड़ा मुड़ के यह काम करती थी, जिससे दूसरी तरफ लेटी मेरी मम्मी को उसकी ये हरकत ना दिखाई दे।
मतलब साफ़ था, दीक्षा भी दिन में कम से कम एक बार तो अपनी चूत अच्छी तरह रगड़ती ही थी, और सोने से पहले तो शायद रोज़। मन ही मन मैं भी खुश था कि बस एक मौके की ज़रुरत थी, और दीक्षा पट तो जायगी ही। क्योंकि उसे भी तो बस एक मौके की ही तो तलाश होगी मेरी तरह। और फिर ख्यालों में मुझे हम दोनों नंगे होकर मेरे लौड़े और बॉल्स, और उसकी चूची और चूत से खेलते हुए महसूस होते।
बस यही समझ में नहीं आता कि चूत को आखिर किस तरह या कहाँ छूना पड़ता होगा मस्ती दिलाने के लिए? फिर नींद आ जाती और अगले दिन स्कूल में दिन भर यही बात दिमाग में घूम रही होती थी और कई बार स्कूल के बाथरूम में जाकर लौड़ा हिलाना पड़ता था। क्लास में भी फटी जेब में से लौड़े के सुपाड़े को कभी सहलाता, कभी खोलता/बंद करता और अगर चिपचिपा रस निकलने लगता, तो जेब से हाथ बाहर कर लेता।
अक्सर स्कूल में अब मेरा लौड़ा हर समय खड़ा सा ही रहता था और दोपहर टिफ़िन खाने के टाइम भी मुझे अपनी डेस्क पर बैठे-बैठे ही खाना खा लेना पड़ता था। कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, और फिर स्कूल के दिनों में दीक्षा और मैं या तो एक-आध मामूली सी बात कर लेते, या मैं दूर से उसका हाथ उसकी अपनी स्कर्ट की जेब में देख कर अपने लौड़े में सुरसुराहट महसूस कर लेता।
हर रात दीक्षा हाथ से अपनी चूत से खेलती हुई तो मालूम देती ही थी। रोज़ यह भी सोचता कि उससे ऐसी-वैसी बातें करूं भी तो कैसे? एक लड़की से लंड-चूत की बातें करने के लिए तो बहुत हिम्मत से काम लेना पड़ता है,और सही मौक़ा भी तो चाहिए।
लेकिन एक बात तो तय थी, जब भी मेरा हाथ मेरी पैंट की जेब में होता तो उसकी नज़र मेरी पैंट की ज़िप पर और मेरी नज़र उसकी स्कर्ट के अंदर टटोली जा रही चूत पर जाती ही थी। इसके बाद हम आपस में चाहे कुछ भी बातें ना भी करें, मगर हम दोनों के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान तो रहती ही थी। मैं बस यही सोचता कि आखिर आगे कुछ बात कैसे और कब की जाए।
मन ही मन यह सोच कर खुश हो लेता था कि उसके चेहरे की हल्की मुस्कान का मतलब भी यही था, कि उसके दिमाग में भी कुछ मेरे साथ मज़े लिए जा सकते हैं यह ज़रूर होगा। और वो भी सोचती होगी कि बड़ी होने के नाते पहल करे भी तो कैसे? और कब, क्योंकि घर में हम दोनों का अकेले होना भी तो ज़रूरी था।
इत्तेफ़ाक़ से अगले शनिवार को ही मम्मी-पापा को सुबह 6 बजे एक सत्संग में जाना था, और दीक्षा और मैं भी उस दिन जल्दी उठ गए थे। पापा-मम्मी के चले जाने के बाद मैंने दीक्षा कहा कि पहले वह नहा ले क्योंकि नल में 7 बजे तक अच्छा पानी आएगा, और उसे पानी आते-आते नलके की धार में ही नहाने में अच्छा लगता था।
मैं कमरे में डाइनिंग टेबल पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। जैसे ही दीक्षा ने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया, मैंने सोचा उसको कपड़े उतारते और नंगा होकर नहाते हुए झाँक कर देखता हूँ, जैसे मम्मी को देखा करता था। मैं दबे पाँव उठ कर बाथरूम की प्राइवेट बालकनी में खुलने वाले दरवाज़े पर जाकर उसमें एक छेद में से सांस रोक कर अंदर झाँकने लगा। अंदर जो हो रहा था वह देख कर मेरी धड़कन तेज़, चेहरा लाल, और लौड़ा टन्न हो गया।
दीक्षा अपना ब्लाउज और स्कर्ट उतार चुकी थी, और पीछे हाथ करके ब्रा का हुक खोल रही थी। मैंने भी झट अपने पजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे किया, और एक हाथ में लौड़ा और दूसरे में बॉल्स थाम लिए। डर कोई था ही नहीं, क्योंकि मम्मी-पापा जा चुके थे।
दीक्षा ने ब्रा उतार कर अपने मम्मों को फ्री किया, और दोनों हाथ में एक-एक मम्मा पकड़ा और उनको ऊपर नीचे किया जैसे उनका वज़न तौल रही हो। चूचियों को ऊपर उठा कर ध्यान से देखा, और लम्बी जीभ निकाल कर दोनों पर जीभ फेरी। चूचियां तन गयीं तो उन्हें थोड़ा मसला। फिर कच्छी उतार कर खूंटी पर टाँग दी।
खूँटी उसी दरवाज़े पर थी जिससे मैं अंदर झाँक रहा था, तो दीक्षा की झांटें मुझे बहुत पास से दिख गयीं। चूत की फांकें थोड़ी फूली हुई थीं और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। बाथरूम की तेज़ रोशनी में 18 साल की एक-दम नंगी सांवली दीक्षा को मैं चार फुट की दूरी से आराम से देख रहा था, बिना पकड़े जाने के डर के।
दीक्षा की चूत का एरिया काली मुलायम झांटों से ढका था। थोड़ा झुक कर दीक्षा ने अपनी चूत को देखा, और तीन-चार बार झांटों को धीरे-धीरे सहला कर एक पाँव उठा कर उल्टी रखी बाल्टी पर टिका दिया। ऐसा करने से उसकी झांटें नीचे की तरफ से अलग हुई तो चूत की फांकें भी अलग हुई और चूत के अंदर का पिंक हिस्सा थोड़ा नज़र आने लगा।
इधर मेरे हाथ में लौड़ा झटके मार रहा था और उधर बाथरूम के अंदर दीक्षा अपनी चूत रगड़ रही थी एक हाथ से, और दूसरे हाथ से कभी एक चूची तो कभी दूसरी चूची मसली जा रही थी। थोड़ी देर तक यह करने के बाद दीक्षा ने चूची से हाथ हटा कर नल को बस इतना खोला कि उसमे से एक पतली-सी धार लगातार गिरती रहे।
पटले को पानी की गिरती धार के नीचे खिसकाया और उस पर बैठ कर जांघें चौड़ी करके चूत को गिरते पानी के नीचे कर लिया। अब चूत पर लगातार नल से पानी की धार गिर रही थी, और दीक्षा ने अपने दोनों हाथ पीछे ज़मीन पर टिका रखे थे।
कभी-कभी अपने चूतड़ थोड़ा उठा कर पानी की धार को चूत के अलग-अलग हिस्सों पर गिराती तो उसका पेट अंदर जाता और लम्बी सांस उसे आ जाती। मैं दरवाज़े की दरार पर आँख लगा कर लौड़े को थामे मस्त खड़ा नंगी दीक्षा और उसकी चूत पर पानी गिराने कि हरकत देखे जा रहा था।
इसे भी पढ़े – मम्मी को चोदने के लिए पंडित का मदद लिया 1
थोड़ी देर बाद दीक्षा ने दोनों हाथों से नल की टोंटी के पीछे के पाइप को पकड़ लिया। उसने अपना सर अपने एक कंधे पर टिका रखा था, और रह-रह कर उसका बदन कंपकंपाता और गहरी सांस आ जाती थी उसको। फिर एक हाथ नल से हटा कर एक-एक करके दोनों मम्मे सहलाये और फिर एक चूची को मसलते-मसलते गांड धीरे-धीरे आग-पीछे करके पानी की धार को चूत पर ऊपर से नीचे तक कई बार गिराया।
मेरी धड़कनें बेहद तेज़ होने के बावजूद, मुझे तो पता था कि घर में दूसरा कोई नहीं था। तो मैं आराम से देख सकता था, और जब तक पूरा मज़ा नहीं ले लेती तब तक दीक्षा बाहर आने वाली नहीं है। मैंने भी दीक्षा को देखते-देखते दोनों हाथ से लौड़े और बॉल्स को खूब खुल कर आराम से सहलाया।
एक बार सोचा कि धीरे से बाथरूम के दरवाज़े पर दस्तक दूँ, या उसे पुकारूँ, परन्तु ऐसा नहीं किया, यह सोच कर कि वह हड़बड़ा जाएगी और यह नज़ारा बंद हो जाएगा। और फिर कहीं मेरी शिकायत ही ना कर दे। थोड़ी दूर से ही सही, और उसके अपने हाथों से ही, पर पहली बार किसी एक दम नंगी लड़की को चूत में मज़े लेते हुए देख ही लिया मैंने आखिरकार।
एक और चीज़ देख कर और भी मस्त हो गया था, दीक्षा की काफी घनी झांटें थीं, और बाकी बदन एक-दम चिकना। मम्मे ऐसे कि हाथ भर जाय और चूची चूसने लायक तनी हुई। वैसे ही झांकते हुए मुझे दो बार रूमाल में मुठ मारनी पड़ी, जब तक दीक्षा ने एक ज़ोरदार थिरकन और लम्बी सांस के बाद अपनी जांघें कई बार खोली, और बंद कीं.
आगे झुक कर चूत और गांड को साबुन से धोया, नल बंद किया, उठ कर चूत को तौलिया से पोंछा, और बाकी नहाना किये बिना ही सफ़ेद पैंटी और ब्रा पहन कर बाहर आने के लिए तैयार होने लगी। मैं भी दो बार तो लौड़े को झाड़ चुका था। पजामा ऊपर करके फिर मैं डाइनिंग टेबल पर आ कर अखबार पढ़ने लगा, जैसे कुछ हुआ ही ना हो।
दीक्षा ने नाहा कर आने पर मुझसे जल्दी नहाने को कहा और बोली कि फिर एक साथ नाश्ता करेंगे। मैंने कहा,”पहले नाश्ता ही कर लेते हैं क्योंकि मैं तो बाल्टी में भरे पानी से भी नहा लूँगा।” तो नाश्ता लाने के लिए जाते-जाते बोली,”नल की धार और ताज़े पानी में नहाने का तो मुकाबला ही नहीं, लेकिन तुम्हारी जैसी मर्ज़ी।”
यह सुन कर केवल पजामे में ही मेरा मुन्ना (मेरा लौड़ा) फिर हरकत करने को तैयार होने लगा, और मुझे काफी जोर लगा उसे काबू में करने में। नाश्ता करते-करते मैंने दीक्षा को बताया, कि पापा कुछ दिनों से बाथरूम का बाहर बालकनी की तरफ वाला दरवाज़ा ठीक करवाना चाहते हैं, क्योंकि उसमें दरारें पड़ गयी हैं और कोई बद्तमीज़ नौकर या कामवाली अंदर नहाने वाले को झाँक कर नंगा नहाते हुए देख सकते हैं।
“हाय राम !” वोह बोली, “तब तो मुझे भी थोड़ा केयरफुल रहना होगा।”
मैं: क्यों, आप को घबराने की क्या ज़रुरत है? इस समय यहां मेरे सिवा कोई भी नहीं है, और फिर आप सिर्फ नहाती ही तो हैं! “चल हट बदमाश! कपड़े तो उतार के ही नहाती हूँ ना, कहीं तूने कुछ झाँका-देखा तो नहीं?”
और हम दोनों बस हंस पड़े और नाश्ता करने लगे। मैंने बात को थोड़ा और मज़ेदार रखने के लिए पूछ ही लिया, “लेकिन आपको बाल्टी के पानी से नहाना क्यों नहीं अच्छा लगता ?” तो दीक्षा मेरी तरफ देख कर और मुस्कुरा के बोली “बताया तो, बदन पर मग से पानी डालो या फिर पानी नल की धार से गिरे, दोनों में ज़मीन आसमान का फर्क होता है। तुम बाल्टी में भरे पानी से नहाने वाले लड़के लोग क्या जानो?”
मैंने पूछना तो चाहा कि बदन पर पानी गिरने में भी लड़के और लड़की का फर्क बीच में कैसे आ गया, पर आज के लिए कुछ ज़्यादा ही हो जाएगा, यह सोच कर चुप रह गया। खुश इसलिए था, कि हम लोग एक-दूसरे के साथ कुछ और खुल कर बात करने को तैयार होते तो दिख रहे थे। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
नाश्ता ख़त्म होने के बाद भी बाथरूम में पानी अभी आ रहा था, और मेरे मुन्ना मास्टर लौड़े ने भी कच्छे में अपने आप पर थोड़ा काबू कर लिया था जब मैं नहाने गया। पर मुझे उम्मीद थी कि दीक्षा के मन में ज़रूर इच्छा है कुछ भी मेरे साथ करने की, और वो भी एक बार झाँकेगी तो ज़रूर।
नहाने जाते-जाते मैं बोला, “मैं चला नहाने और आप भी ताक-झाँक मत करियेगा” तो जवाब मिला “तुम फ़िक्र मत करो और आराम से नहा लो। मुझे ताक-झाँक करने में कोई भी दिलचस्पी नहीं है, मैं तो अगर कुछ देखना होता है तो खुलेआम देख लेती हूँ। सब को यही करना भी चाहिए।”
मैं बोला, “कि अगर कुछ भी दिखाने की इच्छा हो, तो भी बिना हिचक बस खुल्लम-खुल्ला दिखा ही देना चाहिए” और हम दोनों फिर हंस पड़े और मैं नहाने चल दिया। बाथरूम में कपड़े उतारते समय एक आँख बालकोनी की साइड वाले दरवाज़े की दरार पर थी, यह जानने के लिए की कब उसमें से आ रही रौशनी भी कम हो तो पता चल जाए कि दीक्षा ने वहां से देखने की कोशिश की थी।
पापा-मम्मी के आने में तो अभी कम से कम दो घंटे थे। तो आराम से कपड़े उतार के नंगा बाल्टी के सामने पटले पर बैठ कर मग से अपने ऊपर पानी ऐसे डालना चालू किया, कि बाहर कमरे में डाइनिंग टेबल तक पानी गिरने की आवाज़ जा सके। मैं बदन को भिगो कर साबुन लेने उठा ही था, कि दीक्षा ने बाहर से पूछा कि, “चाचा-चाची कब तक आएंगे?”
मैंने बताया कि, “उन्हें अभी और दो घंटे लगने वाले हैं”, तो दीक्षा बोली “ठीक है, मैं अपने कमरे में जा रही हूँ ” और फिर कुर्सी खिसकने की आवाज़ आई। सोचा कि उसकी ताक-झाँक ना करने वाली बात शायद ठीक ही होगी, मगर तभी लगा कि दरवाज़े की दरार पे रोशनी बंद हुई थी।
दिमाग में “दीक्षा आ गयी” का मैसेज पहुँच गया, और जो कुछ भी मैंने दीक्षा के बारे में सोचा था, सब सही साबित होने लगा। मेरा प्यारा लौड़ा (जिसको मैं प्यार से मुन्ना और दीक्षा की चूत को मुनिया कहूंगा आगे से) दीक्षा को सलाम करने को खड़ा था, लेकिन उसको दिख नहीं रहा होगा क्योंकि दरवाज़ा तो मेरे बायीं तरफ था।
मैंने तुरंत साबुन लौड़े और टांगों पर लगाया, और वहीं खड़ा होकर खड़े लौड़े और बॉल्स को अच्छी तरह मला, जिससे बाहर से झांकती हुई दीक्षा मेरे लौड़े और बॉल्स को अच्छे से देख सके। मग में पानी लेकर लौड़े को और अपनी झांटों को धोया, और फिर इत्मीनान से धीरे-धीरे सुपाड़े को खोला और बंद किया।
दरवाज़े की दरार से रोशनी ना आने का मतलब साफ़ था कि दीक्षा खूब अच्छी तरह आँख दरार पर लगा कर ध्यान से देख रही थी मेरी सब हरकतों को। अच्छा मौक़ा था दीक्षा को दिखाने का कि मुझे भी नहाते समय मुठ मारने में मज़ा आता था।
लौड़े के सुपाड़े को देखने की जगह के पास ले जाकर आराम से धीरे-धीरे फोरस्किन को खोल-बंद करके और बॉल्स को सहला-सहला कर जो मैंने मुठ मारी, तो क्लाइमेक्स पर एक मोटी बूँद दरवाज़े से देखने वाले छेद के ठीक नीचे जाकर चिपकी। दीक्षा ने सब-कुछ अपनी आँख को दरवाज़े के छेद पर लगाए हुए देखा।
सोच रहा था कि दीक्षा भी अपनी पैंटी नीचे गिरा कर खूब चूत रगड़ रही होगी, और मम्मे दबाये होंगे मुझे नंगा लौड़ा हिलाते देखते हुए, और बाथरूम से बहार आकर उसकी शकल देख कर पता चल जाएगा, और कान लाल भी तो ज़रूर हो गए होंगे।
सब कुछ सही निकला मगर मैंने ठान लिया था, कि पहल भी उसको ही करने दूंगा मामला आगे बढ़ाने में, क्योंकि यह भी तो पता करना था, कि एक चालू लड़की क्या करती होगी अपने से छोटे कजिन भाई के साथ मस्ती करने के लिए, उसे पटाने के लिए।
मैंने जान बूझ कर उस दिन थोड़ा ढीला कच्छा पहना जिससे दो बातें हो सकें। एक तो यह कि जब ज़रुरत हो तब आसानी से जेब में हाथ डाल कर मुन्ने को पकड़ या सहला सकूं या काबू में ला सकूं, और दूसरा ये कि अगर दीक्षा आज ही कुछ कर डालने के मूड में आ गयी हो, तो वोह आसानी से लौड़े को मेरी पैंट के ऊपर से ही टटोल सके।
बाथरूम से बाहर आया तो ज़ाहिर है, दीक्षा वहां नहीं थी क्योंकि अपने कमरे में जाने वाली बात तो वो कर ही चुकी थी। समझ में आ गया की यही था उसके चालू होने का सबूत। सोच रहा था कि मैंने तो दीक्षा को अपनी चूत पर पानी गिराते हुए और मम्मे सहला कर चूची मसलते देख दो बार मुठ मारी थी, तो उसने मुझे नंगा और लौड़े से खेलते देख कर जाने क्या-क्या मस्ती की होगी अपने बदन और चूत से?
ड्राइंग रूम में दीवान पर दीक्षा की पढ़ाई के लिए छोटी टांग वाली एक स्टडी डेस्क रक्खी रहती थी, और वहीं वो या तो अल्थी-पालथी मार के या फिर कभी एक टांग नीचे लटका के पढ़ने के लिए बैठती थी। दीवान और दीक्षा के ठीक सामने रखी कुर्सी पर बैठ कर मैं पढ़ाई करता था।
उस दिन भी वो वहीं बैठी थी एक टांग नीचे करके, और लग रहा था कि बड़े ध्यान से कुछ लिख रही थी। हाँ, उसके कान लाल तो थे ही, और चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रहा था कि उसकी धड़कन अभी तक थोड़ी तेज़ ही थी। मेरा भी लौड़ा दीक्षा को उस हालत में देख कर काफ़ी फूल सा गया, और इससे पहले कि वह खड़ा होकर तम्बू बनाये, मैं भी चुप-चाप अपनी कुर्सी पर बैठ गया।
पढ़ाई का तो मेरा मन था नहीं, तो मैं अपने ख्यालों में डूब गया। सोच रहा था कि लड़कियों के कितने मज़े होते हैं। पहली बात, लौड़ा ना होने की वजह से चाहे कितनी भी मस्ती में क्यूं ना हों, सामने वाले को कुछ पता नहीं चलता, दूसरे दो मम्में और चूचियां भी तो हैं जिन पर जब चाहे हाथ फेर कर भी मस्ती ले सकती हैं, और चूची चुसवाने में तो उन्हें बहुत मज़ा आता ही होगा। चूत तो है ही बड़े काम की चीज़।
मेरे तो इन ख्यालों से ही लौड़े पर असर होने लगा था, और यह चाहते हुए कि दीक्षा मेरी पैंट को हल्का सा उठते हुए भांप तो ले, कुर्सी पर धीरे से अपने आप को एडजस्ट कर रहा था। 18 भी क्या उम्र होती है, बाथरूम में मुठ मारने के बाद भी प्यारे मुन्ने को चैन ना था, और मुझे मालूम था कि दीक्षा चाहे कितनी भी पढ़ने का नाटक कर रही हो, पर उसकी चूत तो मुझे बाथरूम में नंगा देख कर गीली ज़रूर हो गयी होगी।
पर मैंने तो सोच ही लिया था कि पहल वो ही करे तो ठीक था, इसलिए भी कि अगर वो पहले कुछ करेगी तो हरगिज़ मेरी शिकायत तो कर ही नहीं सकती। मेरी सोच इस बार फिर सच निकली। जब दीक्षा ने अपनी नीचे लटक रही टांग को पल भर के लिए उठा कर दीवान पर रखा.
और दोनों घुटने आपस में मिला कर फिर अलग किये तो उसकी स्कर्ट थोड़ी जांघ पर ऊपर हुई, और यह साफ़ नज़र आया कि उसने एक टाइट सफ़ेद पैंटी पहनी थी, जो कि उसकी चूत (या प्यारी मुनिया) की दरार में घुसी थी, और काली झांटें पैंटी की दोनों साइड से निकली हुई भी दिख रही हैं।
इसे भी पढ़े – मेरी टाइट बुर में चला गया भाई का लंड
मैंने यह पूरी हरकत बिना हिले देख ली थी। और उसने शायद यह जान-बूझ कर किया था। लग रहा था कि दीक्षा ने मुझे दिखाने के लिए ही एक बार अपनी टांग उठाई और फिर वापस नीचे रख ली। उसकी पहल करने की यही पहली हरकत थी। मैंने भी अपनी एक टांग आहिस्ता से उठा कर कुर्सी पर रखी, जिससे कि ध्यान से देखने वाले को यह महसूस हो सके कि ढ़ीले कच्छे में पैंट के अंदर झटका मारता लौड़ा बहुत खुश हो रहा था।
हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ बोले बिना और एक-दूसरे की तरफ देखे बिना ही आपस में बहुत कुछ कह दिया था। और दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखे बिना हल्का-हल्का मुस्कुरा रहे थे। ज़रूर दीक्षा भी अपनी अगली हरकत प्लान मन ही मन कर रही थी।
थोड़ी और देर पढ़ाई का नाटक करने के बाद अचानक दीक्षा ने अपनी नोटबुक बंद की और दीवान से उठ कर मुझसे बोली “मेरा चाय पीने का मन हो रहा है, तुम भी पियोगे? मैं बना के लाऊंगी।” मैंने भी हामी भर दी। वहीं ड्राइंग रूम में चाय की चुस्की लेते हुए दीक्षा मेरे पास वाली कुर्सी पर बैठ गयी.
और बोली “यार तुम तो स्कूल चले जाते हो रोज़ और घर में चाची और मैं रह जाते हैं। कितनी पढ़ाई करूँ? और सच तो यह है कि मुझे तो बस पास होना है किसी तरह। फिर दो चार साल में शादी कर लूंगी किसी अच्छी कमाई करने वाले लड़के से और सेट हो जाऊंगी।
बहुत बोर होती हूँ अकेली यहाँ घर पर तुम्हारे स्कूल चले जाने के बाद। यहाँ कोई दोस्त भी तो नहीं है आस-पास में, समझ नहीं आता कि दिन कैसे काटूँ?” तो मैंने पूछा “आप अपने घर पर खाली समय में क्या करती थीं?” वोह बोली कि “वहां अपनी बहनों और सहेलियों से गप लड़ाती थी, या उनके साथ घूमने निकल जाती थी।” मैंने कहा कि ‘यह समस्या तो है, लेकिन इसमें मैं क्या मदद करूं?”
दीक्षा बोली कि “वह सोच के बताएगी और पूछा कि मैं स्कूल मे़ अपने दोस्तों के साथ किस टॉपिक पर अक्सर बातें करता हूँ?” अब मेरी बारी थी सोच में पड़ने की, लेकिन बहुत हिम्मत करके बोल ही पड़ा मैं: “हम लड़के लोग तो ज़्यादातर कुछ एडल्ट टॉपिक्स पर बातें ही करते हैं, या फिर कभी क्रिकेट, टेनिस या फुटबॉल के मैच चल रहे होते हैं तो उनके बारे में बातें होती हैं।”
साफ़ दिखाई दे रहा था कि दीक्षा की आँखों में मेरे जवाब से अचानक एक चमक सी आ गयी थी। उसने अपनी कुर्सी थोड़ी मेरे पास खिसकाते हुए कहा “थोड़ा खुल कर बताओ ना-एडल्ट टॉपिक्स पर बातें मतलब? क्या बताते या पूछते हो?” मैंने टालते हुए कहा “में आपको ऐसी-वैसी बातें जो मेरे दोस्त लोग करते हैं कैसे बताऊँ?आप कहीं मुझसे पूछ कर मेरे बताने से मम्मी से मेरी शिकायत तो नहीं कर दोगी?”
दीक्षा काफ़ी मिन्नतें सी करती हुई बोली “यार तुम तो मुझे अभी ठीक से पहचाने ही नहीं हो। एडल्ट टॉपिक्स पर तो मैं और मेरी फ्रेंड्स भी बातें करते हैं और उस तरह की बातों में ही तो मन लगा रहता है ना। अब मैं चाची से तो ये सब बातें कर नहीं सकती, और बचे एक तुम।
और फिर तुम हो भी तो इतने हैंडसम और थोड़े से दुष्ट भी, तुम भी नहीं बताओगे तो मैं कहाँ जाउंगी? तुमसे मिलते ही मुझे तो लगने लगा था कि यहां तुम्हारे साथ मज़े से यह बोर्ड एग्जाम तक का टाइम कट जाएगा, और तुम्हें तो लग रहा है कि मैं तुम्हारी शिकायत कर दूँगी.”
दीक्षा ने रुआंसी सी शक्ल बना कर बोला। मुझे उस पर तरस आ गया और सबसे ज़्यादा मज़ा तो यह सुन कर आया था कि उसे भी एडल्ट और उस तरह की बातों में ही तो मज़ा आता था। मैंने खड़ा हो कर एक हाथ दीक्षा के कंधे पर रख के बोला “आप यहां थोड़े दिन के लिए ही आई हो, मुझसे बड़ी हो, और मैं आपको खुश ही देखना चाहता हूँ। और आप खुद ही कह रही हो कि मेरी शिकायत नहीं करोगी तो मैंने मान लिया।
लेकिन एडल्ट टॉपिक्स जैसी बातों में तो कुछ ऐसे वैसे शब्दों का भी इस्तेमाल होता है, वह सब मैं कैसे बोलूंगा? और आजकल तो लेटेस्ट एक मस्तराम नाम के लेखक की किताबें भी आ गयी हैं जिनमे सब कुछ खुल्लम-खुल्ला लिखा रहता है, ऐसा मैंने अपने दोस्तों से सुना है।” ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
दीक्षा का चेहरा मेरी बातें सुन कर एक-दम रिलैक्स हो गया। वो बोली “हाँ! मस्तराम की किताबों के बारे में तो मेरी फ्रेंड्स भी खुसर-पुसर करती हैं। और तुम पूछ रहे हो ऐसे-वैसे शब्द कैसे बोलूंगा, है ना? रोज़ तो हम सब बार-बार और चाहे कोई भी बात पे चाचा से ‘बुरचोद’ ये या ‘माचोद’ सुनते हैं ना?
जैसे कि यह बोलने में या सुनने में कोई बिग डील नहीं है? या जब गुस्से में होते हैं तो ‘माँ-चोद’ या ‘बैन-चोद’ भी सुनने में आता है ना? बस चाची और मैं या तुम और हमारे माँ-बाप हमारे सामने साफ़-साफ़ आपस की बातों में बुर, चूत, लौड़ा, लंड, झांट, भोंसड़ा, गांड, और साफ़ लफ़्ज़ों में मादर-चोद या बे्हन-चोद नहीं बोलते हैं।
लेकिन कभी सोचा है, इसीलिये तुम और तुम्हारे दोस्त या मैं और मेरी सहेलियां आपस में कुछ भी कहने में झिझकते नहीं हैं? हम और तुम भी बेझिझक एक दूसरे से इन सब तरह की बातें करें अकेले में तो क्या प्रॉब्लम है? और बोलूं ? कोई पर्दा भी नहीं रहेगा मेरी तरफ से हमारे बीच, और मैंने भी मस्तराम के बारे में सुना है, मुझे भी वो किताबें पढ़नी हैं बस अकेले में तुम्हारे साथ।
मुझे तो ज़रा भी शर्म या झिझक नहीं हुई तुमसे यह कहने में। हम सब फ्रेंड्स भी आपस में कभी कभी ‘चूतिया मत बना यार’ जैसी बातें भी करती हैं। मैं अपनी क्लास में कई लड़कियों को जानती हूँ जो अपने बॉय-फ्रेंड्स से रेगुलरली अपने या उनके घर पर रोज़ मौज-मस्ती भी करती हैं।
फिर क्या तुम्हारी क्लास में ऐसे लड़के नहीं है जिन्होंने कई लड़कियों को फंसा रखा है? मैंने तो अपने मन की सारी बात तुमसे कह दी, अब आगे तुम्हारी मर्ज़ी।” यह सब दीक्षा के मुँह से सुन कर मेरी कुछ देर के लिए तो बोलती ही बंद हो गयी और मैं भौंचक्का उनको बस देखता रह गया।
दीक्षा खिलखिला कर ज़ोर से हंसी और फिर उसने खड़े होकर अपनी बाहें खोली और मुझ से चिपक कर खूब मेरे चेहरे को किस किया और बोली “बड़े भोले हो यार तुम, ठीक तो हो ना, और अब तुम्हें क्या कहना है?” मैंने बड़ी सी मुस्कराहट के साथ फिर उन्हें गले लगाया और इस बार मैंने उन्हें सारे चेहरे पर किस करते हुए कहा “दीक्षा बहन यू आर द बेस्ट इन द वर्ल्ड”, और दोनों पास पास की कुर्सियों पर बैठ गए।
इतना सब कुछ इतनी जल्दी हम दोनों के साथ हो गया था कि दोनों की साँस में साँस आने में समय लगा। इससे पहले कि हम और कुछ बात करते दरवाज़े की घंटी बजी। मैंने जाकर देखा तो पड़ोस वाली आंटी आयी थीं यह बताने कि उनके घर में फ़ोन करके मेरे पापा ने उनको बताया है कि वो लोग रात को डिनर के बाद तक ही आएंगे, और दीक्षा और में उनके आने का इंतज़ार तब तक ना करें।
हम वापस आ कर बैठ गए, लेकिन पहले से कहीं ज्यादा रिलैक्स्ड थे, और खूब सारी बातें करने के मूड में थे। इस बार मैं पहले बोला “दीक्षा बहन आपको—” मेरा इतना कहना था कि दीक्षा मेरी बात काटते बोल पड़ी “ये क्या आप-आप लगा रखी है तुमने? बंद करो ये फॉर्मेलिटी और मुझे दीक्षा या ‘तुम’ ही बुलाया करो ” “ओके” मैं बोला, “यह बताना चाहता था कि आज मैंने तुम्हें बाथरूम के दरवाज़े की दरार से झाँक कर नंगा नहाते हुए देखा था।”
वह हंसी और बोली “अच्छा तो बताओ क्या देखा तुमने?” मैंने कहा “तुम तो बहुत ही अनोखे तरीके से मास्टरबेट कर रही थीं यार, बिल्कुल बिना हाथ लगाए अपनी चूत को, नहाने के बहाने बाथरूम में बैठी। कैसे सीखा ये तरीका?” “अरे ये तो बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद वाली बात है तुम लड़कों के लिए।
चूत में जो सही जगह नल से पानी की धार गिराने में मज़ा आता है और कितनी देर तक आता रहता है इसका अंदाज़ तो सिर्फ खुद लड़की या फिर उसको बेहद प्यार करने वाला और मज़ा दिलाने में ही मज़ा लेने वाला लड़का ही जान सकता है” दीक्षा ने मुझे समझाया।
“ओह्ह्ह्ह यह तो मुझे भी तुमसे सीखना पड़ेगा, सिखाओगी ना?” मैंने कहा। “ओके” दीक्षा बोली “लेकिन पहले ज़रा खड़े होकर मेरे सामने तो आओ। और ये जान लो की मैंने भी उसी दरार से तुम्हें भी नंगा और लौड़े पर साबुन लगाते हुए भी देखा है। और जैसे मैंने कहा था, अब सब कुछ खुल्लम-खुल्ला भी देखने वाली हूँ।”
मैं तो हैरान था कि दीक्षा ने यह सब कुछ कह भी दिया बिना किसी संकोच के, और मुझसे कहलवा भी लिया, जैसे रिहर्सल करके ही आयी हो यहाँ। मैं जा खड़ा हुआ उसके सामने तो दीक्षा ने पहले मेरे कंधे पर हाथ रख कर मेरे होठों पर किस किया। फिर अपना चेहरा हटा कर बोली “कैसा लगा?” मेरा तो सर चकरा सा गया था!
मैंने बिना कुछ बोले उसे ठीक उसकी तरह बस किस कर लिया फिरसे। “ओह, इसका मतलब अच्छा लगा तुम्हें। पता है, मैंने पहली बार किसी को होठों पर चूमा है?” मैंने भी अपना हाथ खड़ा करके कहा “मेरी भी पहली किस थी यह।” “चाचा और चाची तो डिनर तक आएंगे, तब तक और खुल्लम-खुल्ला मस्ती करें?” दीक्षा ने पूछा।
मैंने हिम्मत करके जवाब में दीक्षा की कमर में हाथ डाल कर उसे अपने पास खींचा, और उसके एक मम्मे पर अपना हाथ रख दिया। फुल मज़े लेने के मूड में दीक्षा ने खुद ही मेरा दूसरा हाथ अपने दूसरे मम्मे पर रखते हुए बोली “लो दबा लो इन्हें मेरे मम्मों को।” मैंने उन्हें दबाया तो लौड़े पर असर होना ही था, तो मेरी पैंट पर तम्बू बनते हुए उसने देखा, और मेरी पैंट और ढीली चड्डी उतार दी। और मुझसे मेरी शर्ट और बनियान भी उतरवा दी।
फिर लौड़े के सामने एक गिलास पकड़ा एक हाथ से और दूसरे हाथ से लौड़ा पकड़ कर बोली “पहले अच्छी तरह मूत लो, फिर कुछ करूंगी।” मैंने भी आराम से मूता और कहा कि “आगे और कुछ करने से पहले अपने भी सब कपड़े उतारो”, क्योंकि मैं तो नंगा था ही। “ठीक है” बोल कर दीक्षा ने चुप-चाप मेरी तरफ देखते हुए सारे कपड़े उतार दिए, और उसी कुर्सी पर आके पालथी मार के बैठ गयी, जिस कुर्सी के सामने मैं नंगा खड़ा था।
सांवली होने के बावजूद धांसू बॉडी की बनी थी वह। बड़े-बड़े लेकिन तने हुए मम्मे जिनमे मज़े से चूसने लायक चूचियां, थोड़े बगल के बाल, और मखमली और काली झांटों के सिवा थोड़े नाभि के नीचे रोंगटे थे, और कहीं भी बाल ही नहीं थे। मैंने कहा “दीक्षा यार तुम मेरे सामने एक-दम नंगी। वाह क्या चीज़ दिख रही हो।
मन कर रहा है की तुम्हें बाहों में जकड कर तुम्हारे सारे बदन पर लम्बे-लम्बे किस दूँ, और फिर तुम्हारे चूचे चूसूं और झांटो को सहलाते-सहलाते तुम्हारी चूत को भी खूब मज़े दिलाऊं।” दीक्षा के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी थी, और वो तो बस मेरे लौड़े को एक टक देखे जा रही थी, जो उसके होटों से केवल 6 इंच दूर था।
आराम से उसने बिना कुछ कहे एक हाथ से मेरी बॉल्स को थोड़ा टटोला जैसे उनका वज़न नाप रही हो, और दूसरे हाथ से मेरा लौड़ा काफी प्यार से पकड़ा जैसे किसी बहुत महंगी और नाज़ुक चीज़ को हाथ में ले रही हो। लौड़े के टोपे की खाल को धीरे से अपने मुंह के पास थोड़ा खींचते हुए उसी मुस्कान के साथ अपने होठों पर जीभ फेरी, और फिर जीभ को ज़रा आगे निकाल के लौड़े की आगे की हुई खाल को जीभ से टटोला।
इसे भी पढ़े – मेरे जिस्म पर नजर थी चचेरे भाई की
जुबां अंदर लेकर मुंह बंद किया जैसे लौड़े का स्वाद चखा हो, मगर उसकी मुस्कान और आँखों की चमक लगातार वैसी की वैसी ही बनी रही। दीक्षा ने मेरे लौड़े को जल्दी-जल्दी दो-तीन झटके मारते हुऐ महसूस करते ही अपनी मुट्ठी थोड़ी टाइट कर ली, और बॉल्स पर से दूसरा हाथ तुरंत हटा लिया।
मेरी भी जान में जान आई और मैंने गहरी सांस लेते हुऐ सोचा कि ना जाने कैसे दीक्षा ने सोचा होगा कि अगर देर तक ऐसे ही मस्त रहना और मज़े लेते रहना है, तो सही समय पर लौड़े को थोड़ी राहत देनी ही पड़ेगी। मेरी गहरी सांस लेकर टेंशन कम होते देख मेरी आँखों से आँखें मिला कर बिना कुछ कहे एक बेहद प्यारी सी कामुकता से टपकती मुस्कान दी.
और वापस अपने नंगे छोटे भाई के साथ बदमाशी भरे और ज़बरदस्त लौड़ा-छेड़ो रवैये को चालू कर दिया, जैसे ना जाने कब से किसी ऐसे ही मौके के सपने देखती हुई अपनी चूत अकेले रगड़ कर हताश हो। और अब तो मुझसे मिल कर हम दोनों के सबसे रंगीन सपनों को बूँद-बूँद करके सारे माज़ों को निचोड़-निचोड़ कर पूरा करेगी।
अपने इरादे मुझे बिना बोले ही अच्छी तरह समझा कर दीक्षा ने मुझमें और मुझसे भी ज़्यादा मेरे लौड़े को ज़बरदस्त उम्मीदों से भर दिया था। और मैं तो उसकी चूचियां और चूत को पी जाने का बेहद बेसब्री से इंतज़ार कर ही रहा था। कि दीक्षा ने अपने दोनों हाथ फिर से मेरे बॉल्स और लौड़े पर पहले की तरह रख दिए।
उसके हाथ मेरे लौड़े पर लगते ही दिमाग में घंटियां बजने लगी, जिसका असर लौड़े के लगातार 3-4 झंकों में बदल गया, और उसने लौड़े को ज़रा ज़ोर से पकड़ कर शांत किया। धीरे से अपनी पकड़ ढीली करते हुए उसने लौड़े के सुपाड़े को उतना खोला कि सुपाड़े का मुँह दिखाई देने लगा।
अपने होठों पर एक बार जीभ फेर कर जीभ आगे करके मेरे सुपाड़े के मुँह पर लगा दिया, और जीभ से ही उस पर खेलने लगी। मुझे मज़ा इतना आ रहा था कि झटके मारने कि बजाये लौड़ा लगातार कंपकंपी सी लेने लगा था। और मुझे तो लग रहा था कि ये काम तो में क़यामत तक करवाता रह सकता हूँ।
मैं दीक्षा से उस हालत में बोला कि “तुम उठो, अब मुझे बैठना है, और तुम मेरे सामने खड़ी हो जाओ।” मुझे यह कहता सुन कर दीक्षा ने पहले लौड़े का सुपाड़ा खोल कर थोड़ी देर चूसा, और फिर जैसे नशे में ही लहराती हुई सी मेरे सामने खड़ी हुई और मुझे बिठा कर मेरे दोनों हाथ पकड़ कर अपने चूतड़ों पर रख दिए, और खुद मेरे बालों से खेलने लगी।
मैं बैठा था और दीक्षा इतना पास खड़ी थी कि उसके मम्मे मेरे चेहरे के दोनों तरफ थे। कुछ देर मेरे बालों से हाथ हटा कर अपनी दोनों चूचियां पकड़ कर खुद ही उनसे मेरे गालों पर हल्के-हल्के चूची-चपत लगाए और निप्पल्स को मेरे गालों पर रगड़ा, मेरी पलकों पर घिसा, और फिर एक चूची मेरे होंठ पर रख दी बड़ी शरारती मुस्कान के साथ और बोली “लो चूसो अब जितना चूसना है।”
मैं एक चूची चूसते-चूसते दूसरी चूची मसल रहा था, तो दीक्षा के खुले मुँह से अपने माथे पर गरम साँसों का मज़ा ले रहा था। कुछ देर बाद जब दीक्षा ने एक चूची निकाल कर दूसरी मेरे मुँह में दे दी, तो चूची चूसते-चूसते उसके चूतड़ों पर हाथ फेरा और कभी उसकी कमर मलता, कभी चूतड़ और कभी दूसरी चूची। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
कुछ देर बाद दीक्षा ने एक टांग उठा कर पास वाली कुर्सी पर रख ली। तो मुझे उसकी चूत की डस्की सी मस्त महक आयी। चूत की मस्त महक से मेरे बदमाशी भरे दिमाग ने मेरे लौड़े से एक बार फिर दो-तीन ज़बरदस्त झटके लगवाए, एक बूँद चिपचिपा रसा निकालवाया, और एक हाथ दीक्षा की चूत की घनी और मखमली झांटों पर रखवा दिय।
दीक्षा चूची चुसवाते हुए कुर्सी पर रखी हुई टांग की जांघ खोल-बंद करने लगी तो उसकी चूत पर रखा मेरा हाथ हल्के से दबता और फिर झाटों से झांकती मुनिया के पिंक होंठ छू लेता। अपने मम्मे चुसवाते हुए उसने अपना एक हाथ चूत से खेलते मेरे हाथ के ऊपर रख लिया, और अपने हाथ से मेरा हाथ अपनी चूत पर दबा कर अपनी रफ़्तार से चूत को खूब घिसा।
चूत के होठ भी गीले से होने लगे थे, तो उसकी मुनिया ने दीक्षा के दिमाग को धीरे-धीरे हिप्स आगे पीछे करवाने का मैसेज दिया होगा, क्योंकि ऐसा होने लगा था। थोड़ी देर में हिप्स के आगे-पीछे होने का सिलसिला ताल-मेल में होते-होते हल्के झटकों में बदला और दीक्षा के बदन में एक सिहरन सी आयी और उसकी चूत या मुनिया से मेरे हाथ में थोड़ा और रस निकला, जिससे मेरा उसकी चूत पर हरकत करता हाथ कुछ चिकना सा हो गया।
दीक्षा सिहरन लेने के बाद फिर अपने चूतड़ों को चूत पर रखे मेरे हाथ पर आगे-पीछे एक ताल में करने लगी। लेकिन इस बार ये ताल थोड़ी तेज़ हो गयी थी, और वोह कभी अपनी आँखें बंद करती या कभी सर ऊपर-नीचे करती। इस बार जब थोड़ी देर बाद उसे सिहरन आई तो काफी देर तक रुक-रुक के आती रही। और हर सिहरन के साथ चूत से भी मेरे हाथ और उसकी झांटों को गीला करता रस निकला।
दीक्षा के साथ ये सब होते देख मैं बेहद खुश फील कर रहा था। क्योंकि साफ़ पता चल रहा था, कि कितनी ज़ोर का ओर्गास्म दीक्षा को मेरी मदद से आया है, ऐसा नल के पानी की धार सा कभी नहीं आया होगा। इधर मेरा लौड़ा टन्न खड़ा था, और उधर निढाल सी दीक्षा को अब एनर्जी चाहिए थी।
मैंने बैठे-बैठे उसे अपनी बाहों मैं भर कर अपनी सामने ही फर्श पर बिछे कालीन पर बिठा लिया। फिर उसकी बगल में बाहें डाल अपने पास खींचा और अपनी लौड़े को थोड़ा साइड में करके उसका सर अपनी जांघ पर रख लिया। मेरी कुर्सी के पैरों के बीच में से उसने अपनी टांगें निकाल कर सीधी कर लीं, और एक हाथ मेरी कमर के पीछे कर लिया और दूसरे से लौड़ा पकड़े हुए आँखें बंद कर लीं।
1-2 मिनट मैंने भी उसे आराम करने दिया, और कोई हरकत नहीं की। मेरा मुन्ना भी कुछ देर आराम करने के मूड से थोड़ा ढीला हुआ, और फिर जब दीक्षा की मुट्ठी में सोने वाला था तो अचानक उसने आँखें खोली, ज़ोर से मुस्कुराई, मेरी गर्दन में दोनों बाहें डाल कर मुझे एक बहुत लंबा और गीला किस दिया।
फिर खड़े होकर बोली “बाप रे। क्या ओर्गास्म था वो। और एक आध बार अगर तुमने यही किया तो तुम्हें अपने सामान में बाँध के घर ले जाउंगी।” फिर नीचे बैठ कर मुझसे मेरी दोनों टांगें कुर्सी के दोनों हत्थों पर लटका लेने के लिए बोला। ऐसा करने से मेरे चूतड़ कुर्सी के किनारे तक खिसक गए और मेरा खड़ा मुन्ना बैठी हुई दीक्षा के चेहरे से केवल 6 इंच दूर हो गया, और बॉल्स कुर्सी के किनारे से नीचे लटक गयीं।
दीक्षा ने लौड़ा चूसते हुए मेरी बॉल्स से खेलना शुरू कर दिया। “बड़ा प्यारा सा है ये तुम्हारा लौड़ा यार, मन कर रहा है खा जाऊं इसे।” कह कर कभी चूसती और कभी फोरस्किन को सुपाड़े पर ऊपर-नीचे खिसकाती। “मुझे भी ज़िंदगी में इतना मज़ा पहले कभी नहीं आया, यार दीक्षा। बस तुम कभी लौड़ा चूसो और कभी चूत चुसवाओ। लेकिन इस चक्कर में अगर मैं झड़ जाऊं तो उसके कुछ देर बाद ही लौड़ा दुबारा खड़ा होगा।”
और हम दोनों ज़ोर से हंस पड़े। ज़ाहिर है, दोनों बहुत खुश थे और भूखे भी थे पहले खाना खाने के लिए और फिर बहुत सी मस्ती के लिये। लेकिन अब तो वाकई भूख लग आई थी हम दोनों को। उठ खड़े होकर सबसे पहले तो घर के दरवाज़े अच्छी तरह बंद किये, जिससे कोई भी बिना बैल बजाये अंदर ना आ जाए।
और फिर सभी खिड़की के परदे सरकाए, क्योंकि हम दोनों का कपड़े पहनने का मूड ही नहीं था। उसके बाद फ्रिज में देखा तो खाने के नाम पर केवल अंडे और काफी सारी ब्रेड थी। दीक्षा ने 2-2 अंडे के दो ऑमलेट बना दिए और उसने 4 और मैंने 6 स्लाइस खा कर गरम दूध में कॉफ़ी मिला कर पी लिया।
अच्छी एनर्जी भी आ गयी, और कॉफ़ी पीने से चुस्ती भी। फिर बातें करने की सोची तो दीक्षा ने मुझसे पूछा कि मैंने क्या कभी किसी औरत या एडल्ट लड़की को आज से पहले नंगा देखा था? मैं बोला “सिर्फ थोड़ी ताक-झाँक करके ही देखा है और वो भी सिर्फ एक को, लेकिन कई बार।”
दीक्षा भी कोई सीधी-सादी बेवक़ूफ़ तो थी नहीं, तो बोली “समझ गयी, अपनी मम्मी और मेरी चाची को को झाँक कर देखते हो जब वो नहाते होते हैं। अव्वल किस्म के बदमाश हो तुम तो, एक्चुअली हम दोनों ही, क्योंकि ताक-झाँक करने के मौके तो मैं भी छोड़ती नहीं हूँ।
आगे नहीं पूछूँगी। मैंने तो कई लड़कियां नंगी देखी हैं, बताऊँ कौन-कौन?” “ऑफ़ कोर्स मुझे पता करना है वो वो कौन थीं और तुमने कब और कैसे देखा?” मैं बोला। दीक्षा ने कहा कि वोह बताएगी लेकिन पहले जानना चाहती है कि मैंने किसी को ख्यालों में नंगा देखा है या नंगा देखने बहुत ज़ोर की मर्ज़ी हुई है?
मैंने कहा “ये भी कोई पूछने की बात है? मैं तो अगर कोई भी सुन्दर या बड़े चूचे या मोटी गांड वाली लड़की या औरत देखता हूँ, तो फ़ौरन उसे ख्यालों में नंगा कर लेता हूँ। और कोई अगर ज्यादा अच्छी लग गयी तो उसके बारे में सोच कर घर आकर मौक़ा मिलते ही लौड़ा भी हिला लेता हूँ। सभी लड़के यही करते हैं !”
दीक्षा ने भी मेरी बात पर हामी भर दी। और बोली कि लौड़े तो सब तरह के देखे ही होंगे मैंने क्योंकि लड़के तो मूतते समय एक दूसरे के सामने ही खड़े-खड़े अपना-अपना लंड बाहर करके धार मार लेते हैं। और बोली कि उसे पता है कि लड़के तो एक-दूसरे से मुठ भी मरवा लेते हैं, बड़े बेशरम होते हैं!
इसे भी पढ़े – बिना कपड़ो के चाची और भी सुंदर लग रही थी
फिर बोली कि ये तो मैं जानता ही हूँगा कि बहनें एक दुसरे के साथ या अपनी मम्मी के साथ नहा लेती हैं, और हॉस्टल में रहनेवाली लड़कियां कभी-कभी इकट्ठे भी नंगी नहा लेती हैं। केवल वो लड़कियां शामिल नहीं होती जिनके या तो मम्मे बहुत छोटे हों या फिर बदन पर बहुत बाल होते हों।
“हाँ, लंड मैंने तुम्हारे वाले से पहले केवल चार ही कुछ ठीक तरह से देखे-एक पापा का लंड जब मम्मी उसे चूस रही थी और हम दो बहनें झांक कर देख रही थीं थोड़ा सा खिड़की का पर्दा खिसका कर। दूसरा अपनी बड़ी बहन के आशिक का लौड़ा देखा था, जब वो मेरी बहन से हमारे बागीचे मैं आम के पेड़ के पीछे चुसवा रहा था, और उन दोनों को मालूम नहीं था कि मैं पास के पेड़ के पीछे अपनी चूत में उंगली कर रही थी एक इंग्लिश मैगज़ीन में चुदाई की तस्वीरें देखते हुए।
और तीसरा अपने माली का जब वो बागीचे की क्यारियों में गुड़ाई कर रहा था और उसका लौड़ा उसकी धोती के साइड से बाहर निकल कर लटक रहा था, और उसे इस बात का होश ही नहीं था। चौथा रिसेंटली देखने को मिला कॉलेज की लाइब्रेरी में। एक लड़के ने मुझे अकेला देख कर झट अपनी पैंट और चड्डी नीचे कर के मुझ को अपना लौड़ा पकड़वाना चाहा, और मैं तुरंत लाइब्रेरियन की डेस्क की ओर चली गयी।
“अच्छा ये बताओ कि हम दोनों अब मस्तराम की पोंडी कब इकट्ठे पढ़ेंगे?” दीक्षा ने मेरे सोये लौड़े को जगाने के लिए उसके टोपे की टोपी को ऊपर-नीचे करते हुए पूछा। मैं बोला कि “वह बाद मैं देखेंगे कि इकट्ठी पढ़ाई कब करते हैं, पहले तुम कुर्सी पर बैठ जाओ और एक टांग एक हत्थे पर और दूसरी टाँग दूसरे हत्थे पर रख लो, जैसे तुमने मुझे बिठाया था। क्योंकि पूरी अच्छी तरह से खुली चूत को सामने से मैं देखना चाहता हूँ। तुम्हारे मूतने वाला छेद, चुदवाने वाला छेद, और चूत का चना यानी क्लिट कैसे दिखते हैं।”
दीक्षा को मेरी बात सुन कर हंसी आ गयी, पर वो जैसे मैंने कहा था वैसे टांगें चौड़ी और चूत खुली करके बैठ गयी और मुझसे पास आने को कहा। मैंने बोला कि पहले थोड़ा चाटूँगा और चूसूंगा चूत को, उसके बाद मम्मी के कमरे से टॉर्च लाकर अच्छी तरह से देखूँगा। “हाय! तो चाटो ना मेरी चूत जल्दी प्लीज़” अपने चूतड़ थोड़े उचका कर दीक्षा बोली। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उसने अपने दोनों हाथों से चूत को और खोला और चूत के ऊपरी हिस्से पर दाने पर उंगली रख कर बोली “पहले यहाँ चूसो फिर बड़ा सा मुंह खोल कर सारी की सारी चूत मुंह में लेकर चूसते रहना और उसका जूस पीते रहना।” कभी ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि कोई लड़की मुझसे इस तरह अपनी चूत चूसने के लिए बोलेगी।
और ना यह पता था कि चूत चूसने में भी इतना मज़ा आ सकता है। तभी सोच लिया कि दीक्षा से बोलूंगा कि जब में घर में रहूँ तो हमेशा बिना पैंटी ही रहा करे, तो जब भी मौक़ा लगे, मैं चूत चूस सकूं। कुछ ही देर में दीक्षा ने चूत चुसवाते-चुसवाते ज़ोर से मेरे सर को दोनों हाथ से अपनी चूत पर दबाया, और चूत से ढेर सारा पानी निकालते हुए झटके मारे, और निढाल सी होकर मेरा सर छोड़ दिया।
मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं तो चूत चूसता रहा जब तक उसने खुद मेरा सर हटा कर मुझसे उठने के लिए नहीं कहा। वह भी उठ खड़ी हुई और मुझसे लिपट कर बोली “यार, आज तुम्हारी वजह से पता चला कि आज तक का ज़िंदगी में मेरा सबसे प्यारा काम तो चूत चुसवाना या फिर लौड़ा चूसना ही है। और अब जब भी मौक़ा मिलेगा, मैं तुम्हारे इस लौड़े को नहीं छोड़ने वाली हूँ।”
कुछ भी हो, दीक्षा ने खुद अपनी नंगी और चौड़ी की हुई चूत मुझे दिखाई, और फिर समझाया कि कहाँ क्या है। ऐसा मौक़ा मैं कैसे छोड़ देता? सभी खिड़कियों का पर्दा बंद करने से क्योंकि रोशनी कम हो गयी थी, मैंने दीक्षा से कहा कि वो वैसे ही बैठी रहे मैं फ़ौरन टॉर्च लेकर आता हूँ। टोर्च लेने ऊपर मम्मी के बैडरूम मैं गया और उनकी ड्रावर खोली टॉर्च निकालने के लिए।
ड्रावर मैं टॉर्च तो मिल ही गयी, और एक काला रबर का लौड़ा और निप्पल पंप भी मिला, जो मैंने देख कर वापस रख दिया। रबर के लौड़े की क्यों ज़रुरत पड़ती है माँ को, ये सोचने वाली बात ज़रूर थी। ख़ैर, टॉर्च लेकर दीक्षा के पास जब तक पहुंचा मेरे लौड़े में अच्छी-खासी जान आ गयी थी, ये सोच कर कि दीक्षा अब मुझे चूत-टयूशन देगी, और वो भी खुद अपनी खुली घनी और मखमली झांटों से भरी मुनिया पर टॉर्च से लाइट डाल कर।
नीचे दीक्षा जी कोई खुराफाती हरकत किये बिना रहने वाली लड़की तो थीं नहीं। वो खुद बुर और झाटों पर हाथ फेर रही थी, और चूत या अपनी मुनिया को गीला किया हुआ था। मैंने उसी हाथ में जली हुई टोर्च उसे पकड़ा दी और कहा कि “लाइट मारो चूत पर और अपना लेक्चर शुरू करो”।
दीक्षा बोली “अब ज़रा ध्यान से सुनना। क्लिट सबसे ऊपर, फिर मूतने वाला छेद, और उसके नीचे मेरा चुदवाने वाला छेद है। क्लिट वैसे आम तौर पर दिखाई नहीं देती, लेकिन जब मैं मस्ती में क्लिट को रगड़ती हूँ तो फूल कर लाल हो जाती है एक मिनी-लंड की तरह। जब मैं नाम लूँ तो तुम वहां अपनी ऊँगली रख देना।
मैं ‘हूँ’ बोलूं तो उस जगह को टोर्च की रोशनी में अच्छी तरह देख लेना। उस जगह के बारे में तुम्हारे देखते समय मैं सब कुछ बता दूँगी, और फिर तुम जब कहोगे तो मैं अगला नाम लूंगी। तुम उंगली रखना और इस तरह तुम सब सीख-समझ जाओगे। ठीक है? और हाँ, एक बात और, यह बताने के लिए कि तुम सब समझ गए हो, उसी जगह पर एक किस दे देना।”
मैं तो इतनी देर से मेरी प्यारी दीक्षा बहन की और भी प्यारी चूत, झांटें, और गांड अपने सामने बिल्कुल नज़दीक और खुली, जो मैं चाहूँ करवाने को तैयार देख कर आधा पागल सा हो गया था, और उसकी सभी बातो पर हाँ करते हुए सोच रहा था, कि ना जाने मैंने क्या-क्या नेक काम किये होंगे अपने पिछले जन्म में कि ये सब मुझे नसीब हो रहा था।
तभी दीक्षा बोली “गांड का छेद” और मैं चौंक गया क्योंकि वह तो सिलेबस मैं था ही नहीं? फिर भी दीक्षा के चुदवाने वाले छेद के नीचे ऊँगली रख कर उंगली को नीचे खिसकाता हुआ गांड के छेद पर रुक गया। “वैरी गुड!” दीक्षा बोली और फिर बोली “कुछ आदमी ऐसे भी होते हैं जिन्हें अपना लौड़ा यहां घुसाने मैं मज़ा आता है और कुछ औरतों को भी गांड मरवाना पसंद है।
लेकिन ज़्यादातर मर्द और औरत इसे बिल्कुल पसंद नहीं करते। तुम और मैं दोनों इसे नापसंद करने वालों मैं हैं, ओके? अब बताओ मूतने वाला छेद?” मैंने झट वहां उंगली रख दी। “गुड, इसके बारे मैं तो क्या बोलूं, सिर्फ कुछ करके ही दिखा सकती हूँ” इतना कहते ही उसने मूत की धार छोड़ दी।
मैं झट पीछे हट गया तो बच गया, नहीं तो धार सीधी मेरे मूँह में जाती। “अब पहले पोंछो मेरी चूत को” दीक्षा बोली, तो मैंने उसकी चूत अपने रूमाल से पोंछ दी। थोड़ी मस्ती सूझी तो रूमाल हटा कर उसकी और अब मेरी भी हो गयी मुनिया को एक बार चाट कर चूम भी लिया, तो देखा कि दीक्षा की गांड के छेद और टांगों में टेंशन आया और अनायास ही चूतड़ ऊपर को उठे।
वो मुस्कुरा के बोली “ठहरो बदमाश! लेक्चर अभी पूरा नहीं हुआ है, उसके बाद ही इस सबकी परमिशन दूंगी।” दीक्षा की लेक्चर वाली बात मैंने सुनी-अनसुनी सी करके पास ही रखे एक स्टूल को उसकी कुर्सी के पास खिसकाया, और उस पर खड़े होकर अपने चूत चूमने की वजह से टन्न हुए लौड़े को दीक्षा के गाल से छू दिया।
चूत पर चुम्मी पा कर गरम हुई दीक्षा की आँखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान आ गयी, और उसने एक हाथ से लौड़े को पकड़ कर मुँह में चूसना शुरू कर दिया, और अपने दूसरे हाथ से चूत सहलाने लगी। लौड़ा चुसवाने में मस्त मैंने अपना हाथ उसके चूत सहला रहे हाथ के ऊपर रख दिया।
काफी फिट मामला था हम दोनों के बीच। उस समय कोई फिल्म बनाने वाला होता तो ज़रूर एक धाकड़ फिल्म बन सकती थी। दीक्षा ने भी मेरा हाथ अपने हाथ के ऊपर फील किया तो बोली “तुम रगड़ो मेरी चूत को अपने हाथ से, मैं बताती हूँ कहाँ और कैसे।”
उसने मेरी एक उंगली से अपनी क्लिट (चूत का चना) रगड़वाना चालू कर दिया, और लौड़े को तो गज़ब का चूस रही थी। मैं धीरे-धीरे अपने आप हिप्स को आगे-पीछे कर के लौड़ा चुसवा रहा था। हम दोनों एक-दूसरे की आँख में आँख मिला कर अपने कार्यक्रम में पूरी तरह खो गए थे। मुझे तो अपने लौड़े में आ रहे चरम सुख के सिवा किसी बात का कोई होश नहीं था।
तभी दीक्षा ने गले में अटक-अटक के आने वाली लम्बी सांस के साथ दोनो जाँघों में कंपकंपी सी आई और क्लिट को रगड़ती मेरी उंगली और भी गीली और चिकनी हो गयी। दीक्षा ने पल भर आँखें खोल कर लौड़े को थोड़ा और मूँह के अंदर खींचा और चूसते-चूसते मेरी बॉल्स से भी खेलने लगी।
वो चूतड़ उठा-उठा कर क्लिट रगड़वा रही थी, जैसे चाहती हो कि किसी तरह चूत और भी खुल जाए। मुझे लग रहा था कि बस अब तो कुछ मिनिट की ही बात थी, कि लौड़ा उछल-उछल कर इतना खुश हो जाएगा, कि सुबह से अब तक तीसरी या चौथी बार पूरा का पूरा अपने अंदर भरा हुआ रस दीक्षा के मूँह में निकाल कर ही मानेगा।
उधर दीक्षा की चूत का भी वैसा ही हाल था। इतनी मस्त हो रही थी चूत की दीक्षा की जाँघों को कंपा रही थी, रस छोड़ रही थी, चूतड़ों को मजबूर कर रही थी, कि वे रह-रह कर उछलें। अचानक दीक्षा ने चूतड़ों की एक और ज़ोर से उछाल मार कर अपनी जाँघों से मेरे हाथ को भींच कर लगातार कई उछालें मारी।
दीक्षा ने एक सिसकियों भरी और लम्बी सांस ली, और मूँह में लौड़ा लिए हुए ही मममम जैसी सॉफ्ट सी आवाज़ निकाली, और मुझे प्यारी सी मुस्कान देकर वापस जांघें खोल कर क्लिट रगड़वाने लगी और लौड़ा और भी मूँह के अंदर लेकर फिर चूसने लगी।
इसे भी पढ़े – बहन गेंहू के खेत में चुदवा रही थी
ज़ाहिर था कि दीक्षा हमारे इस मस्ती के राउंड से इतनी खुश थी कि वो इसको अभी जल्दी ख़त्म नहीं होने देना चाहती थी। चाहता तो मैं भी यही था पर डर था कि अगर लौड़ा स्पिल मारने की स्टेज पर पहुँच गया तो रुक ना सकेगा, और हमारी मस्ती कम से कम आधे घंटे के लिए बंद करनी पड़ेगी।
तो मैंने धीरे से मुन्ने को दिमाग से समझाते हुए दीक्षा के मूँह में से निकाल लिया। दीक्षा ने सवालिया नज़रों से मुझे देखा और फिर जब उसने भी भांप लिया की मामला क्या था, तो टाँगे नीचे कर के सीधी बैठ गयी और मेरे चेहरे को दोनों हाथों से नीचे कर के मूँह पर एक लंबा सा किस दे दिया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
बोली “लो मेरा ये निप्पल चूसो थोड़ी देर तक। बेहद प्यारे हो तुम तो यार, तुम्हारे साथ तो मुझे चैन से बैठा ही नहीं जाता। तुम चूची चूसो और मैं अपने आप चूत में थोड़े और मजे ले लेती हूँ, और तुम लौड़े को ज़रा आराम करने दो।” मैंने कहा ” मैं अगर तुम्हारे मुंह में लौड़े का स्पिल मार दूँ तो तुम क्या करोगी?” तो वो बोली “तुम्हारा स्पिल?”
मेरा गाल अंगूठे और उंगली के बीच दबा कर हिलाते हुए बोली “इस बदमाश का स्पिल वेस्ट थोड़े ही करूंगी। पूरा गटक जाऊंगी।” और फिरसे मेरा चेहरा दोनों हाथों से भींच कर होठों पर किस कर लिया और बोली “मुझे तो इस नादान से लंड से अजीब सा लगाव हो गया है। जी भरता ही नहीं, मन करता है कि लौड़ा चूसती रहूँ और चूत रगड़वाती रहूँ। चाचा-चाची आ जाएंगे तो कैसे काम चलेगा?” और हम दोनों फिर अपने लौड़ा-चूत के काम में लग गए।
अब मामला साफ़ हो गया था। मैंने दीक्षा से कहा कि हम लोग बिस्तर पर चलते हैं और इस बार 69 पोजीशन में एक-दूसरे को चूस-चूस कर खल्लास कर लेते हैं, तो अगले 2-3 घंटे बस बातें करने में बिताएंगे। मैं अपनी कहानी सुनाऊंगा और तुम अपनी।
सुन कर दीक्षा की तो बाछें खिल गयीं और मुझसे लिपट कर बोली “तुम तो जीनियस भी हो यार, चलो जल्दी से 69 शुरू करते हैं मगर मैं ही ऊपर रहूंगी जिससे तुम मेरी चूत का एक बार और अच्छे से मुआयना कर सको, और तुमको तो अपनी चूत खोल कर दिखाने की सोच से ही मुझे तो बदन में मज़ेदार गुदगुदी होती है।”
हम दोनों एक-दूसरे के कंधे पर हाथ डाल कर मेरे कमरे मैं चले आये। मैं बिस्तर पर अपने तकिये पे सर रख कर लेट गया और दीक्षा को कहा कि पहले वो मेरे सीने के इर्द-गिर्द बिस्तर पर घुटने टेक कर बैठ और चूत को मेरे मुंह पर ले आये जिससे कि पहले सिर्फ मैं एक बार उसकी चूत की क्लिट और पंखुड़ियों को चूस-चूस कर अच्छी तरह कई बार ओर्गास्म दिला दूँ। 69 और एकसाथ चूत चूसना और लंड चुसवाना सेकंड राउंड में करेंगे।
दीक्षा तो और भी खुश हुई क्यूंकि इस तरह तो उसकी चूत दो बार चुसेगी मगर लौड़ा एक ही बार झड़ेगा। फ़टाफ़ट ऊपर आकर उसने खुली चूत मेरे मुँह से एक इंच दूरी पर कर ली। मैं तकिये से ज़रा नीचे खिसका और उसको बोला कि वो अपनी दोनों कोहनी तकिये पर रख कर अपने घुटने मेरे सर के दोनों तरफ कर के अपनी चूत ठीक मेरे चेहरे के ऊपर लटका दे।
तो में अपने हाथ उसके चूतड़ों पर रख कर अपने आप अपने सर को उचका-उचका के मनमानी रफ़्तार से उसकी चूत जहां से भी मेरी मर्ज़ी होगी चूस लूंगा या चाट लूंगा। दीक्षा को यह गांड ऊपर उठा कर और डॉगी जैसे अपनी चूत चटवाने की पोजीशन फ़ौरन समझ में आ गई और उसने ऐसा ही किया।
मैं चूस रहा था और वो चूत को आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, जहाँ चुसवाना होता था उस मुताबिक़ मस्ती से चुसवा रही थी और ऐसी आवाज़ें निकाल रही थी, जैसे कहीं दूर पेट के अंदर से आह्ह्ह्हम्म्म्म सी निकल रही है। फिर उसने अपने मम्मे दोनों हाथ में लेकर चूत चुसवाते हुआ लम्बी जीभ निकाल कर अपने दोनों चूचों पर फेर कर उनको गीला किया अंगूठे और उँगलियों से मसल-मसल कर उन्हें लंबा किया।
मेरे मुहँ पर रखी हुई मुनिआ की ओर देख कर मेरे मुंह पर रगड़ते-रगड़ते एक हाथ पीछे करके मेरे लौड़े पर हाथ फेरने लगी। अपनी चूत को मेरी जीभ से खूब ज़ोर से चटवाया और “पी जाओ इसे, ओह बहुत अच्छा लग रहा है, मैं तो बस मर ही गई” बोल के हिप्स के तेज़ झटके मार के और चूत का जूस मुझे पिला कर अपनी जाँघों से मेरे सर को भींच लिया.
और दो-तीन बार अपनी बेहद खुश और गीली मुनिआ को मेरे मुंह और नाक पर दबा कर और रगड़ कर मेरे साइड में बिस्तर पर लुढ़क गई। एक-दम चित्त पड़ी थी, टांगें मुड़ी हुई, जांघें खुली हुई, और चूत मैं हलके-हलके झटके अभी भी आ रहे थे। साथ-साथ गांड का छेद खुल-बंद हो रहा था, और साँसें भी धीरे-धीरे नार्मल होने लगी थीं।
कुछ देर उसको ऐसे ही पड़े देख कर मैं निहारता, फिर वही सोचते हुए कि क्या ज़बरदस्त नसीब से दीक्षा जैसी सेक्स में मेरी तरह बेहद दिलचस्पी लेने वाली हमारे घर में आयी है, और मुझे उसके साथ पूरे दिन नंगे रह कर मौज-मस्ती करने का मौक़ा मिला है।
जब मुझे दिखा की दीक्षा के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आई है, और उसने अपने पैर सीधे कर लिए हैं, मैंने उसके मम्मों के बीच अपना फेस करके बाहों में पकड़ कर अपने ऊपर लिटा लिया, और उसके कान के निचले हिस्से को चूसा और गर्दन को किस करके बोला “एक बार चाय पीते हैं और मैं मूतूंगा, फिर आगे का कार्यक्रम क्या और कितनी देर में शुरू करें यह तय करेंगे।”
दीक्षा तो जैसे कुछ सुना ही ना हो मेरा चेहरा अपने हाथों में और सर मेरी छाती पर रखे हुए और कुछ देर लेटी रही, और फिर सर उठा कर लौड़े को पकड़ा, सुपाड़े पर से खाल नीचे की, और उसके छोटे से पिंक लिप्स पर झुक कर जीभ फेर कर सुपाड़े को थोड़ा चूसा, और फिर मुझे भी एक चुस्की लेने जैसी किस देकर फाइनली बोली कि “चलो तुम आराम से मूत कर आओ, और मैं चाय बनाती हूँ।’
यह कह कर वो पलंग की साइड में खड़ी हुई और हाथ पकड़ कर मुझे अपने पास खड़ा किया, और बोली “यू आर द बेस्ट थिंग देट एवर हैपेंड टू मी!” और एक टाइट हग देकर चाय बनाने चली गई। मैं टॉयलेट में खड़ा मुस्कुराता हुआ मूतते-मूतते सोच रहा था कि दीक्षा तो मेरे लिए बेस्ट चीज़ से भी कई गुना अच्छी चीज़ थी।
मूत कर मैंने लौड़े को अच्छी तरह धो लिया क्योंकि थोड़ी देर में दीक्षा उसकी जबरदस्त चुसाई करेगी अपनी चूत दोबारा चुसवाते हुए 69 पोजीशन में। दीक्षा बैडरूम में ही चाय लेकर आ गयी और हमने वहीं चाय पीते-पीते यह तय किया कि क्योंकि अभी 3:30 ही हुआ थे, तो हम पहले बाहर थोड़ा घूम कर और गोल-गप्पे खा कर आते हैं। जल्दी ही कपडे पहन कर हम दोनों पास वाले बाजार की तरफ चल दिए।
मैंने दीक्षा को अपनी माँ के फेवरिट गोल-गप्पे वाले के खोमचे पर ले गया। गोल-गप्पे खा कर जब हम ऐसे ही घूम रहे थे, तो एक कोने में पेड़ के नीचे एक ठेला वाला किताबें बेचते हुऐ दिखा। मैंने दीक्षा को वहीं रुकने को कहा यह कह कर, कि देखूं शायद उसके पास मस्तराम की किताब भी मिल जाए। ठेले पर सस्ती हिंदी की किताबों के अलावा एग्जाम की कुंजी और कम्पटीशन बुक्स भी थीं।
चूंकि कोई दूसरा ग्राहक आस-पास नहीं था, तो धीरे से उससे पूछा “कुछ फोटो वाली किताबें हैं क्या?” मुझे ऊपर से नीचे तक देख कर उसने फ़िल्मी किताबें दिखाईं। मैंने कहा “कुछ और एडल्ट टाइप दिखाओ”, तो मुस्कुरा कर एक पेपर-बैग में से नंगी औरतों की तस्वीरों वाली एक किताब दिखाई।
थोड़ी देर उस किताब को देखने के बाद हिम्मत करके धीरे से पूछा मैंने “फिर तो तुम्हारे पास मस्तराम वाली पोंडी भी होगी?” वोह बोला “है, मगर थोड़ी पुरानी सी है, क्योंकि लोग एक-दो दिन के लिए सिर्फ पढ़ने के लिए ले जाते हैं और फिर वापस कर देते हैं। घर पर अपने पास नहीं रखते।”
दाम पूछने पर बोला कि खरीदने के लिए 15 रूपए और पढ़ कर वापस के लिए 20 रूपए, जिसमें किताब लौटाने पर 15 वापस देगा। थोड़ा बार्गेन करने पर 10 में बेचने को तैयार हुआ तो मुझे एक ब्राउन पेपर बैग में रखी हुई किताब उसने दी। वहीं किताब को पन्ने पलट कर देख कर जब मेरा लौड़ा बेकाबू हो जाने की तैयारी में होने लगा, तो मैंने किताब खरीद ली।
खरीद कर अपने झोले में डाल कर खुशी-खुशी मुड़ कर दीक्षा की तरफ चल दिया। दीक्षा टाइम-पास के लिए एक ब्लाउज-स्कर्ट वाले ठेले पर खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी। मुझे जल्दी-जल्दी और खुश आते देख कर समझ गयी कि किताब मिल गयी होगी। घर वापस करीब शाम 5 बजे हम पहुंचे।
इसे भी पढ़े – भैया ने बहन को वीर्य पिलाया अपना
घर आते ही दीक्षा ने किताब जिसका नाम “तीन मस्त घटना” था, निकाली और उसके बाद जल्दी-जल्दी पन्ने पलटे और बोली “यार इसमें कुछ ख़ास नहीं है, इससे ज़्यादा तो हम कुछ ही घंटों में कर भी चुके हैं, और जो बाकी है वो चलो कर लेते हैं।
जब तुम हो तो मुझे किताब-विताब नहीं, बस तुम ही चाहिए। मैंने भी सोचा की बात तो सही थी, जब दीक्षा सामने थी तो किताब का क्या काम? किताब तो अकेले में मुठ मारने के लिए ही ठीक है, सोच कर मैंने दीक्षा की चूची पर हाथ फेरा। हमने एक-दूसरे को बाजार से आकर नंगा किया ही था, कि दीक्षा ने दोनों हाथ से मेरा लौड़ा और बॉल्स थाम लिए.
और मेरे सामने घुटनों के बल बैठ कर अपनी जीभ निकाल कर मेरे लौड़े के टोपे के ऊपर फोरस्किन के मुँह पर फेरा, और फिर पूरे टोपे को मुंह में लेकर हाथ से धीरे-धीरे मुठ मारते हुए, लगी चूसने चस्के ले-ले कर जैसे लॉलीपॉप हो। सातवें आसमान से भी ऊपर सैर कर रहा था मैं दीक्षा के दोनों कानों पर हाथ रख लौड़े को उसके मुंह से अंदर-बाहर करते हुए। क्या कमाल की चीज़ है दीक्षा, जैसे लौड़ा चूसने के लिए ही बनी हो।
जब मुझे लगा कि बस अब तो झड़ ही जाऊंगा और मैंने उसके सर को थोड़ा 10-15 सेकंड लौड़े से दूर रखे रहा तो खड़े होकर बोली ” चलो बिस्तर पर 69 करते हैं, मुझे अपनी चूत भी तो साथ-साथ चुसवानी है ना। तुम ऊपर से लौड़ा लटकाओ मेरे मुंह पर, मैं नीचे मुनिया का मुंह खोल कर उसका दाना चुस्वाती हूँ। हाय! मेरी क्लीट में तो सोच के ही सुरसुराहट होने लगी है।”
मेरा पहला तजुर्बा था 69 का। हम दोनों ही का पहला। और मुझे ताज्जुब तो इस बात का हो रहा था कि ना जाने कैसे बेहद बदमाश दीक्षा को समझ आ जाता था कि मैं झड़ने वाला था, तो वो लौड़ा मुंह में से निकाल कर मेरी बॉल्स को टाइट पकड़ लेती, और मेरा लोड अंदर का अंदर ही रह जाता।
उसने अपनी पूरी की पूरी चूत और खासकर चूत का चना इतना चुसवाया कि वह फूल कर मोटा हो गया, और उसकी चूत से जो पानी लगातार रिस रहा था, उससे मेरी नाक से ठोड़ी तक गीली हो गई। आखिरकार उसकी चूत इस कदर मस्त हुई की उसने उछल-उछल कर कई ओर्गास्म लिए और साथ ही लौड़े ने पूरा पानी उसके मुंह में छोड़ दिया।
निढाल हो कर हम दोनों थोडी देर पड़े रहे बिस्तर पर। फिर काफी देर तक मैं उसकी जांघ पर सर रख कर खुली चूत और झांटों को सहलाता रहा और दीक्षा मेरी जांघ पर सर रखे हुए मेरे लौड़े और बॉल्स से खेलती रही। फिर मेरी तरफ देख कर बड़ी शरारत भरी मुस्कान के साथ लौड़े को हिलाते हुए पूछा “इसकी कभी चूत चोदने की इच्छा नहीं होती क्या?”
मैंने भी मुस्कुरा कर उसके चूत के दाने को उंगली से टीज़ करते हुए और चोदने वाले छेद में एक उंगली धीरे-धीरे अंदर-बाहर करते हुए जवाब दिया “उतनी ही ज़ोर की इच्छा होती है जितनी इसकी अपने अंदर लौड़ा लेने की।” “जल्दी ही चोदम-चुदाई का कार्यक्रम भी करेंगे, फिलहाल तुम मेरी चूत थोड़ी और चूसो तो मैं एक बार तुम्हारे लौड़े का बचा जूस भी तो पियूं।” ये कह कर मेरे टन्न हुए लौड़े को फिर चूसने लगी।
कमाल की लन्ड-चूस लड़की है दीक्षा। इस बार उसने कोई कसार नहीं छोड़ी, ऐसा चूसा मेरे लौड़े को कि मैंने सारा बचा जूस भी उसके मुंह में खाली कर ही दिया। अट्ठारह साल की उम्र, दीक्षा और मैं दोनों नंगे, ज़ोरों की चूसम-चुसाई करके अभी-अभी निबटे, और लौड़ा दीक्षा के दोनों हाथों में, ऊपर से चोदने-चुदवाने की बात, तो उसे खड़ा होना ही था, सो हो गया।
दीक्षा के दिमाग में तो बस बदमाशी ही भरी हुई थी। उसने फिर लौड़े को चूसना शुरू कर दिया और अपनी जांघें चौड़ी कर के चूत थोड़ी ऊपर उठा दी। मैं भी दोनों हाथ से उसकी चूत खोल कर चाटने लगा, और बस यही करते ही रहे काफी देर तक। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
ना उसका और ना मेरा मन भर रहा था। बनाने वाले ने क्या चीज़ बनायी है चूत। हर समय आदमी की मर्ज़ी होती एक ही है, कोई औरत बड़े मम्मे और काली लम्बी चूचियों वाली काश: बस नंगी दिख तो जाय किसी तरह, तो बस प्यार से वो जितना चुसवाय बस चूस लो चूची और पी लो चूत।
शाम 7 बज चुके थे और मैं सोच ही रहा था कि माँ-डैड के आने में अब केवल डेढ़ या दो ही घंटे होंगे, कि किसी ने घंटी बजाई। दीक्षा तो “तुम देखो कौन है इस समय” बोल कर अपने कपड़े समेट कर बाथरूम में घुस गयी, और मैंने फ़ौरन शर्ट पहन कर पैंट की ज़िप बंद करते-करते दरवाज़ा खोला तो देखा कि पड़ोसन, (जो कि मम्मी से छोटी है) सामने खड़ी थी।
मैंने नमस्ते करके अंदर बुलाया तो बोली “तुम्हारी माँ का फ़ोन आया था कि वे आज नहीं आएंगी, तो उनका इंतज़ार ना करना, और तुम और तुम्हारी बहन दीक्षा दोनों रात का खाना मेरे साथ खाओगे।” “ओके ऑन्टी हम कितनी देर में आपके यहां आ जाएँ?” मैंने पूछा तो बोली जल्दी आ जाना और खाना तो साड़े-आठ बजे गरम-गरम मिलेगा।
“थोड़ा जल्दी अगर आओगे तो मैं दीक्षा से मिल लूंगी, और मैं भी अकेली हूँ क्योंकि तुम्हारे अंकल टूर पर रहेंगे और 10 दिन तक, मेरा भी अकेले घर पर जी नहीं लगता। तुमसे और दीक्षा से बातें करके मेरा भी जी बहल जाएगा। अच्छा मैं चलती हूँ क्योंकि गैस पर दाल चढ़ा कर आयी हूँ, बाय”.
इसे भी पढ़े – तौलिया गिरा भाभी को 8 इंच का लंड दिखाया
ये कह कर हाथ हिला कर वो चली गयीं। करीब एक महीने पहले ही ये लोग आये थे पड़ोस में। शादी को आठ बरस हो चुके थे मगर अभी तक कोइ बच्चा नहीं था। मम्मी से पड़ोसन की अच्छी जान-पहचान हो गयी थी, पर मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह नहीं जानता था। क्योंकि स्कूल चला जाता था।
काफी सेक्सी औरत मालूम पड़ती थी, और रात में काफी देर तक उनके कमरे का टेबल-लैम्प जला रहता था। मस्त चोदम-चुदाई कार्यक्रम देर रात तक जरूर चलता होगा, और मैंने सोच रखा था कि किसी रात दोस्तों के साथ नाईट-शो देख कर लौटते समय कोशिश करूंगा उन लोगों के कमरे में झांक कर देखने की।
मज़ा आ गया यह सुन कर कि शैतान दीक्षा के साथ पड़ोसन के घर जाने का मौका मिला था, और वो भी रात को जब वो घर में अकेली रहने वाली है अगले कुछ दिनों तक। दीक्षा ने जब किवाड़ बंद होने की आवाज़ सुनी तो अपने कपड़े तो बाथरूम में छोड़ कर नंगी ही बाहर आके पूछा कि “कौन था?”
मैंने उसकी चूचियां मसलते हुए उसे बताया कि “आज सारी रात हमारी है, और डिनर का भी पड़ोस वाली आंटी के यहां, जो कि इस समय अकेली है, इंतज़ाम हो गया है।” “वंडरफुल!” वो बोली। “कैसी है तुम्हारी पड़ोसन?” “अकेली है कुछ दिन से, तो ज़रूर काफी चुदने का मन कर रहा होगा, और ज़रूर उँगली भी तो करती होगी?
तुम अगर अकेले होते और वह तुम्हें खाने पर बुलाने आती तो उसका क्लियर एक ही मतलब निकलता है, कि वो देखना चाहती है कि तुम उसे चोदने मैं कितने इंट्रेस्टेड हो? तुम ऐसे में क्या उस के साथ चुदाई और मस्ती करते?” मेरा दिमाग भी दीक्षा की देखा-देखी खुराफाती होने लगा था, और चूंकि लौड़ा खड़ा होकर मुझे और भी खुराफाती सोच सुझा रहा था।
मैं बोला “ख्याल तो ज़रूर आया था, मगर हिम्मत होती नहीं, यह सोच कर कि अगर शिकायत कर दे तो मेरा क्या होगा?” “हट डरपोक कहीं का।” पहली बात तो वो शिकायत करती ही नहीं, बल्कि उसके मन में तो गुदगुदी होती यह सोच कर कि एक हैंडसम लड़के का दिल उसपे आ गया है, और उसे चोदना सिखाने में बड़ा मज़ा आएगा। और पड़ोस में रहता है, जब मर्ज़ी हुई इशारे से बुला कर मज़े कर लूंगी।
दूसरी बात, अगर शिकायत का ख्याल आता भी तो किसके पास जाती? तुम्हारी माँ के पास, और फिर क्या कहती? क्या वो बोलती “हाय बहन जी, आपको पता है आपका बेटा अब बड़ा हो गया है क्योंकि मुझपे डोरे डाल कर मुझे चोदने की फिराक में है। उस पर ज़रा निगरानी रखिये!” और यह कह कर खिलखिला कर दीक्षा हंसी।
तब समझ में आया मुझे कि मेरी सोच में कितना बेकार का बचपना था। मैंने खुश होकर दीक्षा की चूची चूसनी शुरू कर दी, तो वो बोली “हाँ खूब चूसो और मुझे और अपने आप को भी पड़ोस में खाना खाने के लिए जाने से पहले गरम रखो। क्योंकि मैं उस आंटी की नीयत भांपना चाहती हूँ।”
फिर बोली “देखो वहाँ पहुँच कर में तो आंटी के साथ किचन में पहले जाउंगी साथ में रोटी-पराठा बनवाने। फिर खा-पी के जब हमलोग बातें कर रहे हों तो तुम बातों-बातों में अपना हाथ मेरे कंधे पर रख देना। मैं हटाऊँगी नहीं, और ऐसे दिखाउंगी जैसे कुछ हुआ ही ना हो। फिर मुझे आंटी का रिएक्शन देखना है।
अगर वो भी खुली किस्म की इंसान हैं तो या तो फ़ौरन कुछ हमें वहाँ रोके रखने वाली बातें चालू जरूर करेंगी, या फिर बाय करके कल मिलने के लिए कह देंगी। जो भी हो, आगे क्या कहना या करना है बस मुझपे छोड़ दो, ठीक है?” मैंने उसकी चूची चूसते-चूसते उसकी झांटें और चूत की पंखुड़ियां भी सहलाईं और हामी भर दी।
शाम के साढ़े सात ही हुए थे जब पड़ोस वाली आंटी हमें बुलाने आयी थी। मतलब यह कि हमारे पास करीब आधा-पौन घंटा था पड़ोस में जाने से पहले। बदमाशियों में पक्की माहिर दीक्षा ने अपनी चूची चुसवाने के लिए आगे बढ़ते हुआ कहा “अमित, तुम मेरी चूचियों से खेलो और मैं सोचती हूं कि आंटी के घर पे क्या करना है। मगर पहले तो यह है कि अगर आंटी ने हम दोनों में इंटरेस्ट दिखाया तो तुम उन्हें चोदने को तैयार रहना मेरे सामने, ओके?”
यह सुन कर मैं तो ऐसा चौंका कि अगर अपने आप को फ़ौरन संभालता नहीं तो दीक्षा की चूची चबा ही ली होती। मैं बोला “यार दीक्षा, तुम्हें भी हद की बदमाशी के अलावा कुछ सूझता ही नहीं क्या? अभी हम ना वहां पहुंचे, ना हमने खाना खाया, और ना तुमने आंटी को सही तरह से समझा, सीधे उन्हें मुझसे चुदवाने की दूर की सोच तक कैसे पहुंच गई?”
दीक्षा खिलखिला कर हंसी, और फिर मेरे लौड़े को सहलाती हुई बोली “सारी की सारी वजह तो ये तुम्हारा प्यारा सा लौड़ा और तुम हो। मुझे तो मेरे दिमाग में आलरेडी ये लन्ड आंटी की घुंघराली झांटों वाली चूत के अंदर और मेरी चूत उनके मुंह पर दिखाई दे रही है।”
यह कह कर मेरे सामने घुटने टेक कर बैठ गई दीक्षा, एक हाथ से पकड़ा लौड़ा, और दूसरे से मेरी बॉल्स को सहलाते हुए लगी सुपाड़े को चूसने, और अगले पांच मिनिट में चूस-चूस कर ऐसे उसे खड़ा कर दिया, कि मेरे दिमाग में भी आंटी की चूत नज़र आने लगी।
इससे पहले कि मैं एक बार फिर झड़ जाऊं, मैंने दीक्षा कि बगलों में हाथ डाल कर उसे खड़ा किया, और खुद उसके सामने बैठ कर अंगूठों से उसकी चूत की फांकें अलग कर उसके चने को चूसने लगा।
“हाय राम! क्या चूसते हो तुम! तुम चूसो मेरी चूत और मैं सोचती हूं कि हम लोग क्या पहन कर चलें आंटी के घर”।
आठ बजे जब हम निकले खाना खाने तो दीक्षा ने अपनी चूत और मम्मे, और मैंने अपने लौड़ा, बॉल्स, और झांटे अच्छी तरह से साबुन से धोये हुए थे, और उसने ब्रा, ब्लाउज, और घुटनों तक की स्कर्ट पहनी जिसके नीचे उसने नंगे रहने का इरादा किया, और मुझे भी कच्छा नहीं पहनने दिया.
और एक ऐसी पैंट पहनने को कहा, जिसकी दोनों जेबों में छेद हो, तांकि ज़रुरत पड़ने पर खड़े लौड़े को काबू में रख सकूं। मैंने पूछा कि खुद स्कर्ट के नीचे नंगी क्यों जा रही थी, तो वो बोली “अभी पूछो मत, वहां अगर बात बनती हुई लगी मुझे, तो खुद ही समझ जाओगे। और इसलिए भी कि जब भी मौक़ा मिले तो तुम उसे छू सको”, मुझे शरारत भरी नज़रों से देख कर।
“लेकिन यार दीक्षा, मुझे तो एक हाथ जेब में ही रखे रहना पड़ेगा क्योंकि ये लौड़ा तो अपनी हरकतों से बाज़ कैसे आएगा? यह जानते हुए कि तुम तो अपनी स्कर्ट के नीचे नंगी हो ?” मैंने कहा “दीक्षा, एक काम करो, 10 मिनिट देर से चलते हैं, और उतनी देर में अगर तुम मेरे लौड़े को चूस-चूस कर और एक बार खाली कर दो तो वो एक घंटे तक के लिए शांत रहेगा, क्या ख्याल है?” “नहीं, अभी और बिल्कुल नहीं”.
इसे भी पढ़े – भाभी ने अपने बोबे चुसाए देवर ने
दीक्षा ने मेरे लौड़े के सामने बैठ कर, बड़े प्यार से मेरी पैंट के आगे के बटन खोल कर, उसे दोनों हाथों में लेकर उसे ध्यान से देखते हुए उसको कहा “मुन्ने बच्चू, मेरा बस चले और तुम्हारे अमित पापा अगर बर्दाश्त कर सकें तो तुम्हें चूस तो मैं सारे दिन सकती हूं, तुम हो ही इतने प्यारे। लेकिन क्या पता अमित को और मुझे खाना खिला कर पड़ोस वाली आंटी तुमसे मेहनत करवाना चाहती हो, और तुम्हें मेरी तरह अपनी बुर और चूचियां खोल कर दिखा दे तो क्या करोगे?”
दीक्षा ने तो पड़ोसन को जैसे मिलने से पहले ही तय कर लिया था कि वो खाना खिलाने के बाद हम दोनों के साथ सेक्स मस्ती तो ज़रूर करना चाहती होगी ही। मेरे दिमाग में भी दीक्षा को देख कर लगने लगा था कि जैसे सभी अकेली जवान पड़ोसनें पड़ोस के जवान लड़के -लड़कियों के साथ सेक्स मस्ती करते ही होंगे। आखिर सोचने में तो कोई हर्ज़ नहीं है ना? बदमाशी सीखनी हो तो बस दीक्षा से मिलना काफ़ी है। खेर, जैसे-तैसे मैंने दीक्षा से लौड़ा छुड़वाया और पॉकेट में हाथ डाल कर उसे काबू में किया। और फिर चल पड़े हम दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर, खाना खाने के लिए।
Richa says
I like 😍 it 😲