Garam Muslim Beti Sex
हमारे ही घर में काम करने वाले एक खानसामे ने मुझे कमसिन उम्र में ही चोद कर कली से फूल बना दिया और करीब 2 साल तक ये सब चलता रहा, दो साल तक नन्हे मुझे चोदता रहा, मेरी अम्मी की जानकारी में! पहले तो छुप छुपा कर ही नन्हे मुझे चोदता था, मगर धीरे धीरे मेरी और अम्मी की शर्म खुलती गई. Garam Muslim Beti Sex
क्योंकि नन्हे अक्सर मुझे अम्मी के सामने ही बुला कर ले जाता, कमरे के अंदर क्या हो रहा है अम्मी सब जानती थी। अम्मी के सामने ही नन्हे अक्सर मुझे चूम लेता, मेरे छोटे छोटे मम्में दबाता, और यही सब कुछ वो अम्मी के साथ भी करता है। मैं देखती कि कैसे अम्मी उसकी की हर बदतमीजी को हंस कर टाल जाती।
और अब तो हालात ये हो गए कि नन्हे अम्मी के कमरे ही मुझे चोदता, अक्सर दरवाजा खुला होता और अम्मी आते जाते अपनी ही बेटी को किसी गैर मर्द से चुदते हुये देखती। ये बात मुझे बाद में पता चली के अम्मी ने किसी वक़्त नन्हे से वादा किया था कि वो अपनी सबसे प्यारी चीज़ नन्हे को तोहफे के तौर पर देंगी.
और अम्मी की सबसे प्यारी चीज़ मैं थी, जिसे उसने अपनी आशिक को गिफ्ट कर दिया था. और आशिक भी खुश था कि उसे पहले एक शादीशुदा औरत मिली चोदने को और बाद में एक बिल्कुल कच्ची कली। खैर अब आगे की बात करते हैं।
अब मैं बड़ी क्लास में हो गई थी, पूरी जवान हो चुकी थी। बाकी नन्हे के तजुर्बेकार हाथों ने मेरे जिस्म को बड़े अछे से तराशा था। अच्छे खान पान की वजह से और कच्ची उम्र में ही चुदाई ने मेरे बदन को बहुत जल्दी एक भरपूर औरत का रूप दे दिया था।
अब मुझे अपनी अम्मी के कपड़े बिल्कुल फिट आने लगे थे, बल्कि उनकी ब्रा तो मुझे टाईट आती थी और मेरी ब्रा उनको ढीली आती थी। कद काठी और रंग रूप में भी मैं निखर चुकी थी। अम्मी और मुझमें फर्क करना मुश्किल था, मगर फिर मेरी अम्मी मुझसे ज़्यादा हसीब है, आज भी।
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एक दिन मैं स्कूल से आते हुये बारिश में भीग गई, जब घर पहुंची तो जल्दबाज़ी में अम्मी की नाईटी उठा कर पहन ली, मगर नाईटी के नीचे मैंने कुछ नहीं पहना था। मैं किचन में जाकर अपने लिए खाना लगाने लगी, अभी मैं अपनी प्लेट में खाना डाल ही रही थी कि तभी किसी ने मुझे आकर पीछे से पकड़ लिया।
मुझे लगा नन्हे होगा, इस लिए मैं कुछ नहीं बोली, ना ही चौंकी। पकड़ने वाले ने एक हाथ से मेरे मम्में दबाये और दूसरे हाथ से मेरी चूत को सहला दिया। मगर जैसे ही मैं पलटी, मेरे हाथ से खाने की प्लेट नीचे गिर गई, मैं तो देख कर हैरान ही रह गई, यह नन्हे नहीं, ये तो अब्बा थे।
अब्बा भी बहुत भौचक्के से रह गए- अरे, मैं समझा तुम्हारी अम्मी है! कह कर वो बाहर को चले गए।
बेशक मुझे भी हैरानी हुई, मगर अब्बा के हाथ मुझे अपने जिस्म पर फिसलते बहुत अच्छे लगे। मैंने किचन साफ की और दोबारा अपने लिए खाना डाल कर अपने रूम में आ कर बैठ कर खाना खाने लगी, मगर मेरे दिमाग में वो 5 सेकंड का अब्बा का मेरे कोमल अंगों को सहलाना ही मेरे दिमाग में घूम रहा था। चाह कर भी मैं उस बात को अपने दिमाग में नहीं निकाल पा रही थी. खाना खाकर मैं खुद ही नन्हे के पास गई, वो बैठा काम कर रहा था।
मैंने उसे कहा- नन्हे, क्या तुम मेरे बदन को सिर्फ सहला सकते हो? बेशक उसने सहलाया, मगर मुझे वो मजा नहीं आया, जो अब्बा के हाथों में था। थोड़ा सहला कर उसने चोद कर मुझे वापिस भेज दिया, मगर मुझे तो आज उसकी चुदाई में भी कोई खास मजा नहीं आया।
तो क्या मैं अब किसी दूसरे मर्द को चाहती थी, और दूसरा मर्द भी कौन, मेरे अपने अब्बा! अपनी ही अम्मी की सौत! मगर इस में भी क्या बुराई थी? अम्मी ने भी अपने यार के सामने मुझे खुद ही पेश किया था। अगर मैं उनका यार बाँट सकती हूँ, तो शौहर क्यों नहीं।
आज अब्बा मुझे कुछ ज़्यादा ही प्यारे लगने लगे थे। रात को जब हम सब खाना खाने बैठे तो मैं अपने अब्बा के बिल्कुल सामने बैठी, और बार बार उन्हें ही देखती रही, मगर अब्बा मेरे से नज़रें चुरा रहे थे। खाने के बाद मैंने अम्मी को दोपहर वाली बात बता दी।
तो अम्मी ने कहा- तो क्या चाहती है तू?
मैंने कहा- मैं तो कुछ नहीं चाहती।
अम्मी बोली- देख तुझे नन्हे दे तो दिया, तो तू उस से मज़े कर, और मुझे तेरे अब्बा से मज़े करने दे। मैं चुप रही मगर मैं दिल ही दिल में सोच रही थी कि काश अब्बा भी मुझ पर मेहरबान हो जाएँ। छोटी उम्र से चुदने के कारण अब मुझे किसी भी मर्द में सिर्फ उसका मजबूत लंड ही नज़र आता था। मुझे अब अपने किसी भी रिश्ते की कोई परवाह नहीं रही थी।
मेरा भाई मेरे साथ ही सोता था, कई बार मैंने उसके सोते हुये उसकी निकर के ऊपर से ही उसकी लुल्ली पकड़ कर देखी, कभी कभी उस से खेली और वो खड़ी हो गई। मैंने एक दो बार कोशिश की किसी तरह उसकी लुल्ली उसकी निकर से बाहर निकाल लूँ और उसके साथ खेल कर देखूँ, उसे चूस कर देखूँ, मगर कामयाब नहीं हो सकी।
हाँ इतना ज़रूर करती के मैं अक्सर उसके साथ बहुत चिपक कर सोती, ताकि मेरे मम्में उसके बदन से लगें, और वो मेरे जिस्म की नरमी महसूस करे। बड़ा भाई तो मुझ पर बहुत ही रोआब रखता था, अक्सर मुझे डांटता सा रहता था। उससे मैं थोड़ा डरती ज़रूर थी, मगर मैं उसकी लुंगी में हिलते हुये लंड को देख कर उसे भी छूना चाहती थी।
बड़े भाई से तो मुझे कोई खास उम्मीद नहीं थी, मगर इतना मुझे ज़रूर लगता था कि मेरा छोटा भाई एक दिन मुझे चोदेगा। मेरा सारा ध्यान अब अपने अब्बा पर ही था, क्योंकि मैंने बहुत बार अपने अब्बा को दारू के नशे में मेरी अम्मी की माँ चोदते देखा था, क्या ज़बरदस्त, और जोरदार चुदाई करते हैं अब्बू। नन्हे भी अच्छा चोदता है, मगर उसमें वो दम नहीं है जो अब्बू में है।
और मैं तो चाहती यही थी कि जो भी मुझे चोदे मुझे तोड़ कर रख दे, और ये काम सिर्फ अब्बू ही कर सकते थे। मुझे पता था कि अक्सर अब्बू रात को बहुत ज़्यादा शराब पी कर आते हैं, और जिस दिन उन्होंने बहुत पी होती है, उस दिन तो अम्मी की खैर नहीं होती।
उसके बाद मैं इस बात का खास ख्याल रखने लगी कि कब अब्बा घर आते हैं, कब जाते हैं, मैं उनकी हर बात का ख्याल रखने लगी। अक्सर मैं अम्मी को काट कर अब्बा के हर वक़्त नजदीक रहने की कोशिश करने लगी और अब्बा भी इस बात को नोटिस करने लगे हैं कि जिस दिन से उन्होंने गलती से मेरे जिस्म को सहला दिया था, उस दिन से मैं उनके ज़्यादा नजदीक आ गई थी।
मगर मुझे अभी तक वो नहीं मिला था मुझे जो मैं चाहती थी। मगर कभी कभी आप जो सोचते हो, वो आपको इतनी आसानी से भी मिल जाता है, जितना आपने सोचा नहीं होता। एक दिन अम्मी की तबीयत ठीक नहीं थी तो खाना मैंने ही बनाया।
उस दिन अब्बू रात को देर से घर आए, और उन्होंने बहुत शराब पी रखी थी। मुझे लगा कि इससे अच्छा मौका मुझे और नहीं मिलेगा, अगर मैं फिर से उन मजबूत मर्दाना हाथों को अपने बदन पर सहलाते हुये, घुमाते हुये महसूस करना चाहती हूँ, तो आज ही मुझे कुछ करना पड़ेगा।
मैंने जानबूझ कर अम्मी की वही नाईटी पहनी जो उस दिन पहनी थी, जिसमें अब्बू ने मुझे पकड़ लिया था। भाई तो दोनों खाना खा कर सो चुके थे, मैंने अब्बा को खाना दिया, मगर उन्होंने बहुत थोड़ा सा खाया और अपने कमरे में जाकर लेट गए।
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मैंने बर्तन किचन में रखे और फिर जाकर अम्मी को देखा, उनका बदन बुखार में तप रहा था, मैंने अम्मी से कहा- अम्मी आप मेरे रूम में सो जाओ, यहाँ अब्बा ए सी चलायेंगे तो आपको और ठंड लगेगी। और मैंने अम्मी को समझा कर अपने रूम में ले जा कर लेटा दिया।
उसके बाद मैं बाथरूम में गई, अपने बाल ठीक से बनाए, थोड़ा सा मेकअप किया और बड़े आराम से जा कर अब्बा के साथ लेट गई। मगर अब्बा तो सो चुके थे, ज़ोर ज़ोर से खर्राटे मार रहे थे। मैं थोड़ा मायूस सी हो गई कि यार ये क्या बात हुई, मैं तो कुछ और ही सोच कर आई थी, मगर यहाँ तो लगता है मुझे कुछ भी नहीं मिलने वाला।
मगर फिर भी मैंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और अब्बू के बिल्कुल साथ सट कर लेट गई। कुछ देर मैं लेटी लेटी जैसे किसी बात का इंतज़ार करती रही। फिर अब्बा ने करवट बदली और सोते सोते बोले- ऊँह, थोड़ा सा उधर को होना! और अपनी बाजू से उन्होंने मुझे करवट के बल कर दिया और पीछे से मेरे साथ अपना जिस्म चिपका दिया।
उनका पेट मेरी पीठ से लगा और और उनका लंड मैं अपने चूतड़ों से लगा महसूस कर रही थी। बेशक अब्बू का लंड सोया हुआ था, मगर फिर मुझे वो गर्म और ज़बरदस्त लग रहा था। मैंने खुद अपनी कमर हिला कर अब्बू के लंड को अपने चूतड़ों में सेट कर लिया।
मगर मुझे इससे भी चैन नहीं आया, तो मैंने अपना हाथ पीछे को घुमाया और लुंगी में ही अब्बू का लंड पकड़ लिया, मोटा और मजबूत लौड़ा। मगर जब हाथ में पकड़ लिया तो मुझे और चुदास होने लगी, सिर्फ पकड़ कर क्या करती, मैंने बड़े हल्के से अब्बू के लंड को हिलाया, और हिलाया… और हिलाया… कभी दबाया तो कभी आगे पीछे किया।
बेशक अब्बू सो रहे थे, मगर उनका लंड जाग रहा था और मेरे हिलाने से वो ताव खाता जा रहा था और अपना आकार ले रहा था। फिर अब्बा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी- क्यों पंगे ले रही है, सो जा कुतिया। मगर मैं कैसे सो सकती थी, अब्बू के लंड को हाथ में पकड़ने के बाद मैं तो उसे अपनी चूत में लेने को तड़प रही थी।
मैंने धीरे धीरे अपनी नाईटी सरका कर ऊपर को खींच ली और अपनी कमर तक खुद को नंगी कर लिया, अब मैंने नीचे से कोई ब्रा या पेंटी तो पहनी नहीं थी, तो कमर तक नाईटी उठाते ही मैं नंगी हो गई। अब मेरा दिल चाह रहा था कि अब्बा की लुंगी भी ऊपर सरका कर उनका लंड बाहर निकाल कर देखूँ।
इसीलिए मैंने अपने अब्बू की लुंगी का एक किनारा पकड़ा और उसे ऊपर की ओर सरकाने लगी। मैंने कोई जल्दी नहीं की, बड़े आराम से सरकाते हुये मैं अब्बा की लुंगी उनकी जांघों तक उठा लाई। अब तो बड़ा आसान था, मैंने आगे से लुंगी को ऊपर को उठाया और अब्बा का लंबा मोटा लंड, जिसे मैंने अम्मी के हाथों में, मुँह में और चूत में घुसते देखा था, मेरी मुट्ठी में था।
मैंने पकड़ कर अब्बा के लंड को अपने चूतड़ों के साथ लगाया। अब्बा की नींद शायद टूट गई, मगर वो जगे नहीं, नींद में ही बोले- क्या हुआ सलमा, बहुत तड़प रही है, सो जा और मुझे भी सोने दे। मतलब अब्बा को यही अहसास था कि उनके साथ मैं नहीं उनकी बीवी ही लेटी है।
तो मैंने सोचा के क्यों न फिर खुल कर खेलूँ। मैं उठ बैठी और मैंने अब्बा की सारी लुंगी ऊपर को खींच दी और उनका लंड अपने दोनों हाथों में पकड़ लिया। अब तो वो 8 इंच का मोटा मूसल मेरे हाथों में था, पूरा तना हुआ। रोशनी बहुत कम थी, मगर फिर भी मैं देख सकती थी।
मैंने पहले तो लंड को थोड़ा सा सहलाया, मगर लंड को हाथ में पकड़ने से मेरे जिस्म की आग भड़क गई थी, तो मैंने आव देखा न ताव, अब्बा के लंड का टोपा अपने मुँह में ले लिया। लंड की मदमस्त गंध मेरी साँसों में और लंड का नमकीन कसैला सा स्वाद मेरे मुँह में घुल गया।
मगर मुझे तो ये स्वाद पसंद है, बहुत पसंद है। मैंने लंड अभी थोड़ा सा ही चूसा था कि अब्बा की नींद फिर से टूटी, वो फिर से बिदके- क्या कर रही है, छिनाल, बहुत आग लगी है क्या? मगर जब मैं फिर भी चूसती रही तो, अब्बा उठ बैठे- रुक अभी तेरी माँ चोदता हूँ कुतिया!
कह कर अब्बा ने अपनी लुंगी उतार फेंकी और मुझे धक्का दिया तो मैं खुद ही घोड़ी के पोज़ में आ गई। अब्बा ने दारू के नशे कुछ आगा पीछा न सोचा और अपना लंड पकड़ कर मेरी चूत पर रखा और बड़ी बेदर्दी से अंदर घुसेड़ दिया। “हाय अम्मी…” बस यही निकला मेरे मुँह से।
मगर अब अब्बा को जुनून चढ़ चुका था, उन्होंने बड़ी मजबूती से मेरी कमर को दोनों तरफ से पकड़ लिया और लगे लंड पेलने। पहले तो मुझे बहुत रोमांचक सा लगा कि आज मेरे मन की इच्छा पूरी ही गई। मगर अब्बा हर तरह से नन्हे से कहीं बेहतर थे।
उनके मजबूत हाथों की सख्त उंगलियाँ जैसे मेरे कूल्हों में गड़ी पड़ी थी कि मैं हिल न सकूँ, और उनके जोरदार घस्से, मेरे सारे वजूद को हिला रहे थे। मेरे बाल बिखर गए, मैं तो जैसे पागल सी हो रही थी। नन्हे ने आजतक मुझे ऐसा मजा नहीं दिया। इतनी ताकत, इतना ज़ोर, जैसे शेर ने अपने शिकार को पकड़ रखा हो और शिकार तो खुद शिकार बन कर बहुत खुश था।
अब्बा का नशा तो जैसे मुझे होने लगा था। उनकी चुदाई में मैं बस ‘आई अम्मी जी, ऊई अम्मी जी, हाय अम्मी जी। बस अम्मीजी अम्मीजी’ ही करे जा रही थी। अब्बा ने मुझे करीब 20 मिनट चोदा। बेशक ए सी चल रहा था मगर अब्बा तो पसीने में भीगे ही, मैं भी पसीना पसीना हो रही थी।
एक बार मैं झड़ चुकी थी, मगर मैं चाहती थी कि न मैं दोबारा झड़ूँ, और अब्बा तो बिल्कुल भी न झड़ें। क्या अम्मी रोज़ इस शानदार मर्द से चुदवा कर अपनी ज़िंदगी के मजा ले रही थी, मेरी चूत तो जैसे पानी का दरिया हो रही थी, छप छप हुई पड़ी थी, मेरी चूत के पानी से।
पता नहीं दारू का नशा था या नींद… अब्बा ने मुझे चोदा तो खूब मगर मुझे और कहीं भी नहीं छुआ, न मेरे मम्में दबाये, न मुझे चूमा। मुझे भी इस लाजवाब चुदाई में ये ख्याल नहीं आया कि अब्बा मेरा मखमली बदन सहला कर तो देखो।
फिर अचानक अब्बा की जवानी में सैलाब आ गया और मेरी चूत अंदर तक अब्बा के गर्म, गाढ़े, रसीले माल से भर गई। अब्बा ने बहुत ज़ोर वो आखरी झटके मेरी चूत में मारे, और जब झड़ गए तो फिर से बिस्तर पर गिर कर सो गए। मैं वैसे ही लेटी रही।
कितनी देर मैंने अपने सोये हुये अब्बू के सीने पर सर रख कर उनके ढीले लंड को अपने हाथ में लेकर लेटी रही। कितना सारा माल तो उनकी अपनी जांघों और कमर पर भी गिरा। मैंने एक उंगली उनके लंड के टोपे पर लगाई और फिर उस उंगली पर लगा हुआ अब्बा का माल मैंने अपने जीभ से चाटा। बढ़िया गाढ़ा माल, नमकीन।
मैंने पहले नन्हे का माल भी एक दो बार चखा था, मगर उसका माल पतला सा होता था। मगर अब्बा का माल तो गोंद की तरह गाढ़ा था। उसके बाद मैंने अपनी नाईटी उतार दी और बिल्कुल नंगी हो कर अब्बा के साथ ही सो गई। सुबह करीब 6 बजे मेरी आँख खुली, तब तक अब्बा सो रहे थे।
मैं जाग तो गई, पर बिस्तर से नहीं उठी। मैंने देखा अब्बा बेशक सो रहे थे, मगर उनका काला लंड पूरी शान से सर उठाए खड़ा था। मगर अब मैंने अब्बा के लंड को नहीं छेड़ा। मैं चाहती थी कि अब्बा जाग जाएँ और उठ कर मुझे देखें। थोड़ी देर बाद अब्बा भी उठे। मैं सोने का नाटक करने लगी, मगर मैं अपनी टाँगें खोल कर लेटी थी।
अब्बा उठे और पहले आँखें मलते हुये उन्होंने अपनी लुंगी उठाई और खड़े होकर बांधने लगे। लुंगी बांधते बांधते उनका ध्यान मेरी तरफ गया। पहले तो उन्होंने बड़े ध्यान से मेरे बदन को और फिर जब मेरे चेहरे को देखा तो चौंक पड़े- या अल्लाह…! बस इतना ही बोल पाये और झट से दूसरे कमरे में गए।
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उधर उन्होंने अम्मी को सोये हुये देखा और फिर वापिस मेरे कमरे में आए. मैं भी जान बूझ कर उठने का नाटक सा करने लगी, और जब आँखें खोल कर अब्बा को देखा तो अपना मुँह अपने हाथों से ढक लिया। अब्बा सिर्फ इतना ही बोले- कपड़े पहन लो! और बाहर को चले गए। मगर मैं खुश थी, चुदाई का एक नया एहसास हुआ था मुझे। अम्मी तीन चार दिन बीमार रहीं, और मैं ही हर रोज़ अब्बा के साथ सोती, पहले दो दिन तो अब्बा दारू पी कर आए थे, मगर बाद में वो सोफी ही आते, खाना खाते.
और जब मैं गहरी नींद में सोने का नाटक कर रही होती, तो वो मुझे जम कर पेलते। एक कुँवारी लड़की के जिस्म से उन्होंने जी भर के खेला, बाद में तो मेरे सारे जिस्म को वो जैसे चाट गए, खा गए। रोज़ रात को अब्बू दो बार मुझे चोदते। फिर जब अम्मी ठीक हो गई तो वो अब्बू के साथ सोने लगी और मेरी और अब्बू की चुदाई का खेल बंद हो गया इस लिए अब ज़रूरी हो गया था कि अम्मी के सामने भी मैं अब्बू से चुदवा लूँ।
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