Thriller Sex Kahani
नमस्कार दोस्तों मैं अमित, आप सभी का एक बार फिर से हमारी वासना पर स्वागत करता हूँ. दोस्तों आपने मेरी कहानी का पिछला भाग संस्कारी बहु अपने ससुर की रंडी बन गई 1 पढ़ी होगी. तो दोस्तों जैसे की अब तक आप सब ने पढ़ा की कैसे मेरे पिता जी अपनी बहु के दीवाने हो गए थे और उसे चोदना चाहते थे. और उसे चोदने के लिए गाँव बुला लिया था, अब आगे- Thriller Sex Kahani
काली रात थी और टिमटिमाते हुए जुगनुओं के बीच मैं गांव पहुचा समय बहुत हो चुका था लगभग 12 बज चुके थे, पूरे गांव में सन्नाट पसर गया था, ऐसे भी यहां 8-9 बजे ही लोग सो जाया करते है, मैं अपनी उम्मीद से पहले ही पहुच गया था, इतनी तेज गाड़ी मैने कभी भी नही चलाई थी.
मेरा घर गांव से थोड़े दूर में था ऐसे भी वँहा अधिकतर बड़े घर गांव से थोड़े दूर में बसे थे, मेरा घर भी उनमे एक था जिसमे बड़ा सा बगीचा था और दो मंजिली इमारत थी, ऐसे तो चारो ओर घेरा किया हुआ था लेकिन शांत इलाका होने के कारण चोरी के डर से मुक्क्त था, बस जंगली जानवरो से फसल को नुकसान ना हो जाए इसलिए तारो से घेर दिया गया था.
मैंने कर अपने घर के बाहर रोकी मुख्य इमारत और गेट के बीच अच्छी खासी दूरी थी, पिता जी का सपना था की एक बंगले जैसा घर हो, वो बंगला तो नही बन पाया लेकिन एक फार्महाउस जैसा जरूर बन गया था मैं बाहर खड़े होकर फिर से खुशबू को फोन लगाया लेकिन कोई जवाब नही पाकर मैं कार वही छोड़कर दरवाजे से खुदकर अंदर गया.
मुझे तो घर का कोना कोना पता था अगर कोई दरवाजा नही खोला तो भी मेरे पास कुछ साधन थे की मैं अंदर जा सकता था, जब मैं इमारत के पास आया तो पिता जी के कमरे की लाइट जलते हुए दिखाई दी, उनका कमरा ग्राउंड फ्लोर में था, पहले मैंने अपने कमरे को चेक किया जो की फर्स्ट फ्लोर में था लेकिन वँहा की लाइट बंद थी.
मैं पिता जी के कमरे के पास पहुचा और अंदर झांकने की कोशिश करने लगा, खिड़कियां बंद थी, और मुझे कुछ सूझ नही रहा था मेरे दिमाग में एक तरकीब आयी मैं अपने बगीचे से बांस की बानी सीढ़ी पकड़ लाया और ऊपर के छोटी खिड़की से अंदर देखने लगा, नजारा पूरी तरह से साफ था, और मेरा दिल पूरी तरह से टूटा हुआ…
अंदर खुशबू बाबुजी के लिंग को अपने मुह में डाले हुए अपना सर हिला रही थी, किसी भी तरह से ये तो नही लग रहा था की वो किसी भी मजबूरी में है, वो एक झीनी सी नाइटी पहनी हुई थी वही बाबुजी पूरी तरह से नंगे बिस्तर में सोए पड़े थे.
खुशबू ने सच कहा था की उनका हथियार मेरे हथियार से कही बड़ा और मजबूत है, उनकी छाती की चौड़ाई भी कमाल की थी, इस उम्र में भी वो असली मर्द लग रहे थे, खुशबू का कोमल शरीर बिस्तर से नीचे घुटनो के बल बैठा हुआ था, बिस्तर की हालत देखकर वो लगता था की कुछ राउंड हो चुके है खुशबू की पेंटी बिस्तर के एक ओर पड़ी थी तो ब्रा बिस्तर से नीचे.
यानी ये लोग फिर से कारनामा करने वाले थे और खुशबू कुछ देर पहले ही अपने नंगे जिस्म में ये नाइटी डाली होगी, और दोनो में से किसी का फिर से मूड बन गया होगा, मेरे लिए इससे ज्यादा देखना कठिन था आखिर मैं क्या देख रहा था अपनी ही बीवी को अपने ही पिता के साथ ये सब करते, और मैं क्या कर सकता था मार डालू दोनो को ????? तलाक दे दु ???? क्या करू…
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मेरा दिमाग काम करना बंद कर चुका था और जो भी मुझे समझना था मैं समझ चुका था मैं चुप चाप उठा और सीढ़ी को उसके स्थान में रख जैसे आया था वैसे ही वँहा से निकल गया, कार को जंगलो की ओर घुमा दिया और एक सुनसान सी जगह में रोक लिया, नीचे उतरा और जोरो से चिल्लाय.. “आआआआ.”
मेरे आंखों में आंसू फुट गए ये उस मजबूरी के आंसू थे जो मैं इतने दिनों से सह रहा था, मुझे बड़ी जोरो से शराब या सिगरेट की तलब लग रही थी, ऐसे तो सालो से मैंने इन्हें हाथ भी नही लगाया था लेकिन कालेज के समय की थोड़ी लत अभी भी बाकी थी.
मैं सोच में पड़ा हुआ था की क्या करू घने जंगल में यू अंधेरी रात को मैं अकेला कार के बाहर बैठा था, लेकिन मेरे दिल में थोड़ा भी डर नही था, मैं यू ही ना जाने कितने देर यू ही बैठा हुआ था, की मेरे मोबाइल की रिंग बजी मैं बहुत ही थका हुआ था.
शायद यू ही बैठे हुए मुझे नीद आ चुकी थी, स्क्रीन में देखा तो खुशबू का फोन था अभी 4 बज रहे थे, यानी बाबुजी के उठाने का समय था, वो जरूर उठकर उसे भी अभी उठाये होंगे और रात भर चुदने के बाद अभी वो अपने… हमारे कमरे में गई होगी..
“हलो अपने काल किया था मैं सो गई थी.”
“मादरचोद फोन रख.” मैं एक स्वाभाविक से अंदाज में बोला.
“हैल्लो हैल्लो.. क्या क्या कहा अपने.” शायद खुशबू को भी ये कभी यकीन नही होता की मैं ऐसा भी कुछ बोल सकता हु.
‘मैंने कहा मादरचोद फोन रख.”
थोड़ी देर को एक शांति फैल गई.
“क्या हुआ आपको.” वो धीरे से बोली.
“समझ नही आता क्या बोल रहा हु.”
“आप ठीक तो हो ना.”
“तेरी मा की चुत साली रंडी तुझे क्या मतलब की मैं ठीक हु या नही हु फोन रख.”
और मैंने फोन रख दिया, उसके बाद मेरे मोबाइल में लगभग 50 बार ही खुशबू का फोन आया लेकिन मैंने नही उठाया, मैं गाड़ी चलता जंगल के और भी अंदर चला गया जंहा पर मुझे आदिवासियों का निवास मिल गया, मैं उन जगहों से बहुत ही परिचित था.
लगभग 5 बज चुके थे और मेरे लिए यहां दारू मिलना बहुत ही सरल था, वो लोग खुद ही दारू बनाया करते थे, लेकिन वो किसी भी अनजाने व्यक्ति को तो देंगे नही मैं सोचने लगा की आखिर क्या किया जाय, तभी एक लड़का मेरी ही उम्र का मेरे पास अपनी गाड़ी रोकता है, वो एक बुलेट में था.
“कुछ ढूंढ रहे हो” वो एक नार्मल शहर का आदमी लग रहा था.
“हाँ दारू चाहिए थी.”
वो हँसने लगा.
“10 बजे देशी मिल जाएगी अंग्रेजी के लिए तो 30 किलोमीटर दूर के कस्बे में जाना होगा.”
“ना ही देशी चाहिए ना विदेशी यहां आदिवासी का बनाया हुआ भी मिल सकता है.”
वो मुझे घूरने लगा.
“जंगल के इतने अंदर सिर्फ दारू पीने तो कोई नही आता यार और शक्ल से तो तुम बेवड़े भी नही लग रहे हो.”
वो फिर से हँसने लगा और उसकी बात सुनकर मेरे होठो में भी एक फीकी मुस्कान आ गई मैं कुछ भी नही बोला लेकिन थोड़ी चुप्पी के बस वो बोल पड़ा.
“अच्छा चलो यहां का मुखिया मेरे पहचान का है, उसके घर चलते है, कुछ पैसे है.”
मैंने हा में सर हिलाया.
“ऐसे 2-3 सौ की दारू भी बहुत हो जाएगी, शुध्द देसी घर में बनाया हुआ मजा आ जाएगा.”
मैं उसके साथ चला गया, मुखिया कहने का ही मुखिया था, गिनकर 10-15 घर का गांव होता है जंगलो में, शहरी को देखकर या तो वो बहुत ही आवभगत करते है या दूर से ही नमस्कार कर देते है, पास भी नही फटकते, वो मुखिया उसके पहचान का था वो उसने हमारी बहुत खातिरदारी की.
वो हमे एक दूसरे घर में ले गया जो की एक झोपडा ही था, महुए की भीनी भीनी गंध मेरे नाक में जाने लगी थी बिल्कुल ताजा अभी अभी बना हुआ महुआ की शराब, मेरे दिल ने वाह कहा, उसने 2-3 लीटर लेकर हमारे सामने रख दिया, वो उससे ही कुछ एक अलग भाषा में बात करने लगा.
“इसके साथ कुछ और लोगे.”
“सिगरेट मिल जाय तो”
“यार तुम भी यहां कहा की सिगरेट, मेरा मतलब था की देशी मुर्गा वगैरह.”
मैंने हा में सर हिलाया वो उससे कुछ बात करके मेरे पास ही बैठ गया.
“मेरा नाम रविश है और तुम्हारा.”
“मैं अमित.”
“कहा से?”
वो अपनी जेब से मुस्कुराते हुए सिगरेट निकाला, मैंने उसे घूरा तो वो मुस्करा दिया.
“इमरजेंसी के लिए बचा कर रखी थी, लग रहा है यही इमरजेंसी है” वो मुस्कुराया.
मैंने उसे अपने शहर का नाम बताया वो भी वही काम करता था और यहां पास के ही गांव का रहने वाला था, यंहा कुछ काम से जा रहा था की दारू पीने के चस्के में यहां चला आया था, जाम बनते गए और उससे मेरी दोस्ती बढ़ती गई, हमने मिलकर 1.5 लीटर खत्म कर दिया था और अब उठने की हालत भी नही थी.
“यार अमित तू अगर यहां रुकना चाहे हो रुक जा, मुखिया को मैं बोल दूंगा की तुझे जो चाहिए वो लेकर दे दे.”
जाम अब भी जारी था, मैंने भी हामी भर दी, मुझे यहां आये लगभग 1 घंटे हो चुके थे, खुशबू ने फोन करना बंद कर दिया था और मैं भी बहुत रिलेक्स फील कर रहा था, मैं पूरी तरह से टाइट था, तभी मेरा फोन फिर से बजा स्क्रीन में देखने की कोशिस को तो बाबुजी का फोन था, मैंने उसे कान से लगाया..
“हैल्लो.”
“नालायक कहा है तू बहु इतना फोन लगा रही है.”
मुझे रात की सभी बात याद आ गई.
“चुप कर साले बुड्ढे, मादर…”
मैं फोन रख दिया, उसके बाद मेरे पास कोई भी फोन नही आया था, ना जाने ये हिम्मत कहा से आ गई ये दारू का नशा था या खुशबू की बेवफाई का.
“ये किसके ऊपर गुस्सा निकाल रहे हो.”
मेरे कुछ देर पहले ही बने हुए दोस्त जो की अब मेरा अजीज हो चुका था की बात पर मेरा ध्यान गया.
“मेरा बाप था.” मैंने थोड़े बुझे हुए स्वर में कहा, ऐसे तो नशा अपने सुरूर में था लेकिन फिर भी सालो से जिस आदमी के सामने दबते हुए आ रहा था उससे ऐसी बात करना… थोड़ा तो मैं सम्हाल ही गया..
“बाप से कोई ऐसे बात करता है.” वो हैरान था.
“जब बाप ऐसा हो तो ऐसे ही बात करना चाहिए.” मेरी आवाज में एक गुस्सा था जिसे शायद रविश में भांप लिया था..
“ऐसा क्या हो गया.”
उसने ऐसे जोर दिया जैसे की वो मेरे लिए कुछ कर सकता है, ऐसे भी जो आदमी ऐसी जगह में मुझे दारू पिलाये उसके लिए तो दिल में एक भाईचारा उमड़ ही जाता है, मैंने शुरुवात की, दारू खत्म हो चुकी थी, चिकन खत्म हो चुका था और मुखिया ने और शराब ला दी थी.
मेरी बात चलती रही वो ध्यान से सुनता रहा जैसे हम दोनो ही नशे में नही है हम गंभीरता से बात कर रहे थे, मेरी जुबान तो लड़खड़ा रही थी लेकिन मैं गंदी गंदी गालिया बोलने में कोई भी हिचक नही दिखा रहा था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“ओह ऐसे बाप को तो मार ही देना चाहिए.”
रविश की बात से मैं थोड़ा दंग रह गया.
“और नही तो क्या मुझे नही लगता की लड़की की कोई गलती है, वो तो बेचारी…तुम अपने बाप को कुछ कहते नही और वो बेचारी ठहरी गांव की सीधी साधी लड़की, तेरे बाप के आने से पहले तो वो कितनी शर्मीली थी फिर उसे क्या हो गया, सब उसकी ही करामात है वो ही छेड़ता हो गया और उसके दबाव में आकर ही वो बेचारी ये सब कर रही है…”
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रविश एक अनजान शख्स मेरे परिवार के बारे में कैसे फैसला कर सकता है, लेकिन उसकी बात भी सही थी.
“लेकिन…”
“लेकिन क्या देखो मैं तो अनजान हु और मुझे तुम्हारे परिवार से क्या लेकिन तुमने जितना बताया है उससे तो यही लगता है.”
रविश मुझे बहुत ही अपना सा लग रहा था….
“लेकिन अब मैं क्या करू” मैं एक अनजान शख्स से पूछ रहा था की मुझे क्या करना चाहिए..
“यंहा रहो और अपने घर पर नजर रखो, देखो समझो की आखिर कौन गलत है अगर तुम्हारी बीवी गलत है वो उसे तलाक दो, तुम्हारा बाप गलत है तो उसे सजा दो की वो याद रखे, मर्द बनो यार.”
‘और दोनो ही गलत हुए तो, जैसा की मुझे लगता है.”
उसके चहरे में हँसी आ गई, वो अपना हाथ पीछे कर कुछ निकालता है, वो एक रिवाल्वर था, जिसे देख कर मेरे होशं ही गुम हो गए.
“तो ये लो दोनो को ही ठोक दो, तुम तो यहां हो ही नही, और बाकी की फिक्र मत करो, मार कर अपने काम में निकल जाना किसी को कुछ भी पता नही लगेगा, बाकी मेरा नंबर रख लो मैं सब सम्हाल लूंगा.”
“तुम पागल हो गए हो.”
मेरी आंखे फट गई, भले ही मैं नशे में था लेकिन इतना भी तो नही था की अपने बीवी और पिता को मार दु..
“हा हा तो और क्या कर सकते हो, तुम्हारी बीवी की गुलाबी चुत में कोई अपना तगड़ा सा लौड़ा घुसा रहा है और तुम हाथ में हाथ धरे बैठे रहोगे.”
उसकी बातो में व्यंग था एक अजीब सा व्यंग, उसकी मुस्कुराहट मेरे जेहन में बस गई जैसे वो मुझे चिढ़ा रहा हो.
“चुप रहो वरना तुम्हे ही मार दूंगा” मैं जोरो से चिल्लाया और वो जोरो से हंसा.
“मर्द बन जाकर अपनी पत्नी को सम्हाल और अपने बाप से लड़, मुझे मार के क्या मिलेगा.”
मैं गुस्से को पी गया था, वो उठा और जाने लगा.
“यही रुक जा, जो चाहिए होगा वो मिल जाएगा, शाम को निकल जाना जासूसी करने.”
वो ये कहता हुआ निकल गया और में आखिरी घुट पीता हुआ बस सोच में डूबा रहा… शाररिक और मानसिक थकान ने मुझे गहरी नींद में धकेल दिया था, जब उठा तो सर बहुत ही भारी था, शाम के 5 बज रहे थे, मुखिया जी ने बहुत सेवा की मैं तैयार होकर रविश की बातो के बारे में सोचने लगा, और अपनी कर उठाकर फिर से जासूसी करने निकल गया.
8 बज चुके थे और घना अंधेरा छाया हुआ था, मैं फिर से उसी तरह कूदकर अंदर गया, आज मेरे कमरे की बत्ती भी जल रही थी, शायद वो दोनो अभी हाल में होंगे क्योकि सोने का समय तो हुआ नही था, या मेरी बात को उन्होंने थोड़ा गंभीरता से लिया है और सतर्क हो गए है.
मैं धीरे से पिछले दरवाजे को खोलता हुआ अंदर गया, वो अभी खाने की टेबल पर बैठे थे, दोनो ही शांति से खाना खा रहे थे, उनका खाना खत्म होते ही बाबुजी ने खुशबू को इशारा किया और वो सर झुकाए खड़ी रही.
“क्या हुआ रे रंडी चल आजा मेरे कमरे में” इतना बोलकर वो चले गए, मेरे खून में थोड़ा उबाल आया मैं उनके सामने जाकर खुशबू को बचाना चाहता था लेकिन मैं रुक कर देखने लगा मैं देखना चाहता था खुशबू का रिएक्शन, वो हल्के से हा में गर्दन हिला कर बर्तनों को समेटने लगी.
बाबुजी अपने कमरे में जा चुके थे, मुझे खुशबू की सिसकिया सुनाई दे रही थी, मेरे दिल में खुशबू के लिए एक सहानुभूति का भाव जाग गया, और मैं उसे जाकर जकड़ लेना चाहता था लेकिन मैं रुक गया, आखिर कैसे मैं कहता की मैं तुम्हे छिपकर देख रहा था लेकिन मैं कुछ भी नही किया, लेकिन आज तो मुझे कुछ करना था.
सबसे पहले तो मैं ये ही जानना चाहता था की आखिर दोनो कहा तक पहुचे और साथ ही ये भी क्या सच में खुशबू ऐसा कुछ कर रही है, अभी तो पूरी बात समझना भी बाकी था, मैं चुप हो देखने लगा, कही दिल के किसी कोने में तो मैं खुशबू को रंडी की तरह व्यवहार करते हुए भी देखना चाहता था, लेकिन बस मेरे लिए ही और शायद बाबुजी के लिए ????
खुशबू काम खत्म कर पहले तो हमारे कमरे में गई और फिर बाबुजी के कमरे में चली गई, वो कपड़े बदल कर आयी थी, एक झीनी सी नाइटी डाले हुए वो बाबुजी के कमरे में गई, उसकी काले रंग की नाइटी में उसके काले रंग की पेंटी की झलक साफ दिख रही थी लेकिन उसने ब्रा तो नही पहनी थी.
एक मानव का सहज स्वभाव होता है की जब वो किसी लड़की को ऐसी अवस्था में देखे तो चाहे लड़की कोई भी हो उसके मन एक हलचल तो उठ ही जाती है, ये तो मेरी बीवी थी जो आज किसी और के लिए तैयार हुई थी लेकिन सच में मेरे दिल में भी एक टिस सी उठ गई.
साली ये दारू भी गजब की चीज होती है, जब तक चढ़ी रही तब तक शेर होते हो उतारने की बाद पहले से ज्यादा कमजोर हो जाते हो साथ ही सेक्स की भूख भी थोड़ी बढ़ जाती है, दोनो ही असर मुझपर भी हो रहा था, कल कहा मैं मारने मारने की बाते सोच रहा था और आज देखो मैं फिर से वही पुराना आदमी हो गया.
लेकिन मुझे लग रहा था की मैं पहले से और भी जायद कमजोर हो गया हु, दिल की धड़कने बढ़ने लगी थी खुशबू ने सभी लाइट बंद कर दी, मेरे लिए ये अच्छा ही था क्योकि अब मैं और भी आराम से सब कुछ देख सकता था ना जाने मैं कितने देर ये सब देख पाता, खुशबू के कमरे में जाने के बाद ही मुझे आवाजे सुनाई देनी शुरू हो गई.
“साली रंडी बहुत समय लगा दिया.”
“बाबुजी वो.”
“मादरचोद मैं तेरा बाबुजी नही हु तेरा मालिक हु, स्वामी बोल मुझे.”
“जी स्वामी.”
खुशबू की दबी हुई आवाज ने मुझे और भी जोरो से झकझोर दिया, खुशबू की सिसकिया मेरे कानो में पड़ने लगी थी, और मुझसे बर्दास्त करना अब बाहर होने लगा था, हा मैं डरपोक हो सकता हु लेकिन इतना तो नही की मैं ऐसा अन्याय सह पाता.
जो आदमी खुशबू को बेटी बेटी कहता था आज वही ऐसे व्यवहार कर रहा था, मैं कमरे के और नजदीक गया, मेरा दिल सुन्न हो गया क्योकि दरवाजा पूरी तरह से खुला हुआ था, वैसे भी उन्हें यहां किसका डर था, मैं तुरंत ही छिप गया, बाहर के अंधेरे ने मुझे छिपा लिया था, और कमरे की रोशनी मुझे सब कुछ दिखा रही थी,
“अरे मेरी जान रोती क्यो हो, तुमने ही तो कहा था की एक मर्द जैसे मेरे ऊपर हुकुम चलाओ, और अब रोने लगी.”
बाबुजी की इस बात ने फिर से मेरा दिमाग खराब कर दिया.
क्या??????????
खुशबू ने कहा था, ????
“हा लेकिन मुझे कभी कभी गंदा लगता है.”
खुशबू की मासूम सी आवाज मेरे कानो में पड़ी, मेरी मासूम सी खुशबू के चहरे में अब भी वही मासूमियत टपक रही थी जिसे देखकर मैं उसका दीवाना हुआ था, लेकिन ये मासूम सी लड़की ऐसे निकलेगी ये मैंने नही सोचा था.
“तो क्या ऐसा नही करू.”
“आप कीजिये ना, लेकिन मेरे रोने या चिल्लाने से मेरे ऊपर दया मत किया कीजिये, मुझे बाद में अच्छा लगने लगता है.”
वो हल्के से मुस्कुराई, जिससे मेरा दिल चूर चूर हो गया
“साली तू है ही रंडी जबसे तुझे पहली बार देखा था तब ही समझ गया था, की तू चोदने के लिए सही माल है लेकिन सोचा नही था की तू इतनी बड़ी रंडी निकलेगी, इसीलिए तेरी शादी उस झाटु से करवाया था.”
बाबुजी के हँसने की आवाज से मेरा और भी टूट गया, मेरा ही बाप मेरे बारे में ये सोचता है.
“लेकिन मैं तो आपकी बहु हु ना और वो तो आपका बेटा है फिर मेरे साथ ऐसा क्यो किया.”
आश्चर्य जनक रूप से खुशबू फिर से रोने लगी इसबार वो जोर जोर से रो रही थी.
“मैं तो आपको अपने पिता के समान समझती थी सोचती थी की मायके से ज्यादा प्यार मुझे ससुराल में मिलेगा, लेकिन आपने तो मुझपर ही डोरे डालने लगे मुझे एक सीधी साधी लड़की से एक रंडी के जैसे बना दिया.”
“हा हा हाँ.”
बाबुजी के ठहाकों से पूरा कमरा ही गूंज गया, उन्होंने खुशबू को अपने मजबूत बांहो में जकड़ लिया, और उसके स्तनों को सहलाने लगे, खुशबू की पीठ बाबुजी के चौड़ी छातियों में सटी हुई थी और जो की बालो से भरी हुई थी और वो सर उठाये बाबुजी को देख रही थी, बाबुजी पीछे से हाथ लाकर खुशबू के मजबूत और उठे हुए स्तनों में अपने हाथ फिरा रहे थे.
खुशबू के चहरे के भाव भी बदल रहे थे, कई भावनाएं उसके चहरे में आकर चले जाते, डर, प्यार, वासना, छिड़, हवस, दर्द, रोमांच और मजा सब कुछ था उसके चहरे में कभी ये तो कभी वो, थोड़े देर की मालिस ने खुशबू को बेचैन कर दिया था…
“काहे का बेटा और काहे की बहु, अमित मेरा बेटा नही है.”
क्या? मेरे कान खड़े हो गए.
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“मैं एक फौजी था और उसकी माँ से बहुत ही प्यार करता था लेकिन वो साली मुझे भाव ही नही देती थी, वो किसी दूसरे लड़के को प्यार करती थी, लेकिन मैं तो ठहरा कमीना, मुझे तो वो चाहिए ही थी, मैंने धोखे से उन दोनो का ब्रेकअप करा दिया, जब दोनो घर से भागने वाले थे तो मैंने लड़के को ही मरवा दिया.
उसकी माँ को लगा की उसका प्रेमी उसे धोखा दे दिया, तब मैं उसका सहारा बन गया, लेकिन शादी के बाद मुझे पता चला की वो पहले से ही प्रैग्नेंट थी, ना ही मैंने उसे कुछ कहा ना ही उसने कुछ बताया लेकिन मेरे लिए उसके बच्चे के लिए कभी भी प्यार नही आया. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मुझे वो मिल गया जो मुझे चाहिए था, उसे हमेशा ही लगता था की मैं यही समझता हु की अमित मेरा बेटा है लेकिन मैं जानता था की वो उसकी मा की अय्याशी का नतीजा थी, इसलिए वो भी उसी लड़के की ही तरह निकला डरपोक.”
बोलते बोलते उनके चहरे में गुस्सा भर गया और मैं जमीन में बैठा हुआ रोने लगा, अब उसका हाथ खुशबू के योनि को पेंटी के ऊपर से जोरो से मसलने लगा था लेकिन खुशबू के चहरे में कोई भी भाव नही उभर रहे थे जिसे बाबुजी ने भी समझ लिया था.
“क्या हुआ तुम मुर्दो जैसे क्यो हो गई.”
“मुझे अब पता चला की आप ऐसा क्यो कर रहे हो, आप बदला ले रहे हो, उनकी माँ से… उनसे… लेकिन उनका क्या दोष है?”
“उसका क्या दोष है? वो पाप की निशानी है, जिंदगी भर मैं उससे बदला लेना चाहता था लेकिन अब जाके मुझे सुकून मिला है.”
“वो पाप की नही प्यार की निशानी है.”
“चुप साली रंडी.”
बाबुजी ने एक जोर का थप्पड़ खुशबू के गालो में लगा दिया जिससे वो बिस्तर में गिर पड़ी… मैं अभी भी रो ही रहा था, मुझे समझ ही नही आ रहा था की मैं करू तो क्या करू.
“आपने मेरे प्यार को भी मारा है, मेरे प्रेमी से दूर कर मुझे अमित जी के साथ शादी के बंधन में बांध दिया, मैं उनके लिए वफादार थी तब अपने मुझे धमकाकर अपने साथ ऐसा रिश्ता बनाने में मजबूर कर दिया, अभी तक मैं आपके इशारों में नाचती थी लेकिन अब और नहीं.”
खुशबू खड़ी हो रही थी लेकिन बाबुजी उसके ऊपर चढ़ गए और उसके पेंटी को पकड़कर खिंचने लगे वो छटपटाती रही लेकिन उन्होंने पेंटी को फाड़ ही डाला, खुशबू की नाइटी अब उसके कमर के ऊपर थी और बाबुजी पूरी तरह से नंगे हो चुके थे, उनके अकड़े हुए लिंग ने खुशबू की योनि को मसलना शुरू कर दिया था, जैसे जैसे उनका दबाव बढ़ता खुशबू की छटपटाहट कम होते जाती थी.
“बोल रंडी तू मेरी रंडी है की नही..”
“नही मैं किसी की पत्नी हु मेरे साथ ऐसा मत करो.” खुशबू रोने लगी.
“तो तेरी चूत से ये पानी क्यो बह रहा है.” बाबुजी ने व्यंग मारते हुए कहा.
“ओह नही बाबुजी ऐसा मत करो मैं आपकी बहु….आह बा…बु,,..जी ओह.”
पूरा लिंग ही खुशबू के अंदर समा चुका था और खुशबू ने बाबुजी के पीठ को अपने बांहो समा लिया था, खुशबू मजे में थी वो सिसकिया ले रही थी बाबुजी उसे पेले जा रहे थे, वो आह आह कहे जा रही थी, मैं उठखडा हुआ और कमरे के दरवाजे के पास पहुचा.
खुशबू आँखे बंद किये मजे ले रही थी वही बाबुजी जानवरो की तरह अपनी बहु की चुद फाड़ने में लगे थे, बाबुजी खुशबू के ऊपर चढ़े हुए थे जिससे खुशबू का चहरा मेरी ओर था, खुशबू ने हल्के से आंखे खोली मैं उसे साफ साफ दिख रहा था, मेरे आंखों से आंसू अब भी झड़ रहे थे, हम दोनो की ही नजरे मिली और खुशबू के चहरे में एक मुस्कुराहट आ गई.
“आह और जोरो से बाबुजी चोदो अपनी बहु को और जोरो से.”
खुशबू ने मेरी आंखों में देखते हुए कहा, “बाबुजी जैस बावले ही हो गए.”
“मादरचोद साली रंडी, तुझे चोदता हु, देख देख ना कभी तेरा वो प्रेमी तुझे कभी किया होगा ना ही तेरा पति, ओह आह.”
उसका कमर जोरो से चल रहा था और खुशबू मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी, लेकिन उस मुस्कुराहट में एक गुस्सा समाया हुआ था, गुस्से से तपती हुई उसकी आंखों को देखते ही मेरा दिल ही रुक गया, जिसे उसकी इज्जत लूटी जा रही हो और मैं बस देख रहा हु.
“मेरा पति नामर्द है बाबुजी चोदो मुझे.”
खुशबू ने जोरो से कहा और उसके आंखों में आंसू छलक गए, वो अब भी मुझे देख रही थी, उसकी इस बात ने मेरे दिल को चिर दिया था, मैं इतना असहाय तो कभी नही था मैं एक नामर्द हु?
“वो मादरचोद क्या चोदेगा तुझे अब तो तू बस मेरी ही रांड बन कर रहेगी, रोज तुझे उसके सामने ही चोदूँगा आने दे उस साले को… छिनाल माँ का नामर्द बेटा.. आह, आह…”
“अमित नही” खुशबू घबराई.
“आआआ.”
बाबुजी की चीख निकली, उनके सर से खून बह रहा था, मेरे हाथो में एक रॉड था जिसे मैंने पूरी ताकत से उनके सर पर दे मारा था, उन्होंने मेरे साथ जो किया लेकिन माँ के बारे में बोलकर गलती कर दी मेरे लिए अब सहना मुश्किल हो गया था, पास ही रखे एक लोहे के रॉड को मैंने दे मारा था.
खुशबू तुरंत उन्हें छोड़कर खड़ी हो गई थी, सर से बहते हुए खून के साथ वो पलटे और मुझे आश्चर्य से देखा, हम दोनो की नजरे मिली ही थी की मैंने फिर से हाथ घुमाया और रॉड जाकर उसके जबड़े से लगा और उनका जबड़ा उखड़ गया.
और एक आखिरी वॉर आधा माथा ही फट गया था, थोड़ी देर छटपटाने के बाद ही वो मर गए… खुशबू ने मुझे देखा और मैंने खुशबू को उसके आंखों में आंसू भी थे और प्यार भी, लेकिन मेरे दिलो दिमाग में बस शांति थी.
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एक साल के बाद…
बाबुजी की हत्या किये एक साल बीत चुका था, मैं आज जेल से छूटने वाला था, ये एक साल शायद मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे एक साल साबित हुए, जेल का एक साल और सबसे अच्छा जी हा, जीवन की नई सच्चाइयों को समझने और सहने का जो मौका मिला जिनसे मैं अब तक अनजान ही था.
एक अदन सा सॉफ्टवेयर इंजीनियर ही तो था जो अपनी माँ के पल्लू में छिपा हुआ अपनी जिंदगी जी रहा था फिर अपनी पत्नी के पल्लू में, मेरे पिता जी जो की मेरे बायोलॉजिकल पिता नही थे उनसे डरते हुए ही मैंने अपनी जिंदगी गुजार दी थी लेकिन अब किसी का डर ही नही रह गया था, ना ही कोई जेल की चारदीवारी डरा सकती थी ना ही कोई सजा…
जेल में भी मुझे इज्जत से देखा जाता था क्योकि मैं कोई अपराधी नही था मुझे सजा हुई थी मेरी पत्नी के बलात्कारी को मारने की, कोर्ट के ये प्रूव हो चुका था की मैंने अपनी पत्नी को बचाने के लिए ही अपने पिता पर वॉर किया था, और मेरे वकील ने कमाल ही कर दिया था.
मेरा वकील रविश, जिससे मेरी दोस्ती दारू के कारण हो गई थी, कोर्ट ने मुझसे माफी मांगते हुए मुझे रिहा किया था, भारतीय अदालत में देर है पर अंधेर नही, जेल में भी सभी मेरे अच्छे मित्र बन चुके थे कुछ की आंखों में तो आंसू भी था जब उन्हें पता चला की मैं बाहर जा रहा हु.
वो सभी बड़ी बड़ी गलतियों की सजाए पा रहे थे लेकिन इंसान तो आखिर इंसान ही होता है, आक्रोश में आकर की गई एक गलती की सजा जिंदगी भर भुगतनी पड़ती है, कोमल हृदय के लोग भी संजीदा मुजरिमो की जिंदगी बसर कर रहे थे…
जेल की गेट से आज मैं पहली बार पूरी तरह से आजाद होकर बाहर निकल रहा था, बाहर खुशबू और रविश मेरे इंतजार में थे, मुझे देखते ही खुशबू भागते हुए मेरे पास आयी और मुझसे लिपट गई, दोनो के ही आंखों में आंसुओ के धार थे, उसने बड़े ही प्यार से मेरे गालो को चूमा.
“आपको आजाद देखकर अच्छा लगा.”
“हम्म चलो अब हमे कम से कम कोर्ट जाने से तो छुट्टी मिल गई.”
मैं हंसा और दोनो भी.
“ऐसा नही है अमित बाबू अभी आपकी आखिरी पेशी कोर्ट में होनी बाकी है.”
रविश के चहरे में एक अर्थपूर्ण मुस्कान आ गई और वो मेरे गले से लग गया.
“कैसे हो मेरे दोस्त.”
“हमेशा की तरह ही बढ़िया.”
“तो चले.”
“चलो.”
कोर्ट में मजिस्ट्रेट हमारे सामने बैठा था, रविश और खुशबू के साथ साथ मेरे भी चहरे में खुसी खिल रही है, हम तीनो ने एक पेपर में साइन किया..
“बधाई हो आप दोनो आज से पति पत्नी.”
मजिस्ट्रेट ने बड़े ही प्यार से कहा…
खुशबू की आँखों से आंसू छलक रहे थे, वो सीधे रविश के गले से लग गई, ना जाने कितने सालो का इंतजार आज सच हो गया था, दोनो ने मुझे देखा उनकी ये खुसी देखकर मेरे भी नयन भर आये थे दोनो ही मेरे गले से लग गए…
मेरे फ्लेट में गाजे बाजे बज रहे थे और कुछ खास दोस्तो के साथ हम पार्टी कर रहे थे, दो कारण थे एक मेरे छूटने की खुसी और दूसरी मेरी पत्नी की दूसरी शादी…मेरे दोस्त इस फैसले पर आश्चर्य से भरे हुए पहुचे थे, लेकिन मुझे देखकर ही उन्हें यकीन हो गया था की जो हो रहा है सही हो रहा है. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं इन एक सालो में पूरी तरह से बदल गया था, खुसी मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई थी, जब बाबुजी को मैंने मारा था तब मुझे ये भी नही पता था की आखिर सही कौन है और गलत कौन लेकिन कड़ियां खुलने लगी… मैं अपने बॉस जो की अब मेरे अच्छे दोस्त भी थे को सुनाने लगा..
“खुशबू जब स्कूल में थी तब से ही उसका पहला प्यार रविश था, दोनो ही साथ पढ़े और बड़े हुए लेकिन सामाजिक मर्यादा ने दोनो को मिलने नही दिया, जब खुशबू का यौवन अपने अंगड़ाइयां भर रहा था तब उसपर बाबुजी की नजर पड़ी, जिसका परिणाम था की बाबुजी खुशबू के प्रति आसक्त हो गए, वो उसे पाने की हर सम्भव कोशिशे करने लगे.
लेकिन जल्द ही उन्हें ये अहसास हो गया की ये लड़की उनके हाथ में नही आने वाली और इसका कोई प्रेमी भी है, माँ के देहांत के बाद तो बाबुजी खुले सांड की तरह हो गए और जो चीज उन्हें पसंद थी उसे वो हर कीमत में पाना चाहते थे.
उन्होंने खुशबू के पिता से दोस्ती बड़ाई और उन्हें खुशबू और रविश के बारे में बतलाया, जिससे उसके पिता भड़क गए और उसकी पढ़ाई पर रोक लगा दिया, समाज में बदनामी का डर खुशबू के पिता जी को सताने लगा था की बाबुजी ने अपना पासा फेका और दोस्ती के खातिर उन्होंने खुशबू को मेरी बीवी बनाना स्वीकार किया.
खुशबू के बाबुजी भी अपने को बाबुजी के अहसानो के नीचे दबा हुआ मानने लगे, और खुशबू ने भी अपने भाग्य से समझौता करके घर वालो की बात माननी स्वीकार कर ली, खुशबू एक सीधी साधी सी लेकिन बहुत ही समझदार लड़की थी.
वो रविश से शादी के कुछ दिनों पहले से दूरी बनाने लगी लेकिन रविश को ये नागवार गुजरा, वो उससे मिलने की कोशिस करने लगा, खुशबू ने उसे स्प्ष्ट शब्दो में समझा दिया की वो अब किसी और की होने जा रही है और वो उसे भूल जाय.
रविश के पास भी अब कोई चारा नही था लेकिन वो खुशबू से दूर नही जाना चाहता था उसने मेरे बारे में पता किया और इसी शहर में आकर रहने लगा, जंहा मेरा जॉब था, उसने वही पर अपनी वकालत शुरू कर दी. इधर खुशबू ने भी अपने पत्नी और बहु का धर्म बखूबी निभाया, वो बाबुजी के हर अदा को बाप जैसा प्यार समझने लगी.
उस बेचारी को क्या पता था की उनके मन में क्या चल रहा है, लेकिन उसे तब तक शक भी ना हुआ जब तक बाबुजी शहर नही आये, कार चलाने के बहाने से वो उसे छूने लगे थे, खुशबू ने उसे गलत नही समझा लेकिन फिर उनका छूना बढ़ने लगा तब जाकर खुशबू को शक होने लगा.
वो उसे वो कपड़े दिलवाते जो की एक ससुर कभी अपनी बहु को लिए नही लेता, और फिर उनकी छेड़छाड़ बढ़ने लगी, खुशबू समझदार लड़की थी उसने मुझतक कोई भी बात आने नही दी, वो बाबुजी को समझकर ही शांत करवाना चाहती थी लेकिन उन्होंने उसे डराया की वो मुझे खुशबू के प्रेमी के बारे में बता देंगे.
और फिर उसपर वो जुल्म करेंगे जो की उसने सोचा भी नही होगा, खुशबू जानती थी की मैं बाबुजी से कितना डरता हु, वो उनके सामने विवश सी होने लगी, शॉपिग करते हुए खुशबू को रविश मिला और दोनो फिर से एक दूसरे के संपर्क में आये खुशबू ने रविश का नंबर लिया और उससे बात करने लगी.
वो बाबुजी के बारे में उसे बताया और मेरे कमजोरियों से उसे अवगत कराया, रविश एक वकील था साथ ही उसे खुशबू के भविष्य की भी फिक्र थी, उसने ही उसे आईडिया दिया की बाबुजी को कुछ दिनों तक दूर रखे और मुझे उनके खिलाफ भड़काए की मैं कुछ कर सकू, मैं उन्हें रोकू…
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खुशबू को मुझसे उम्मीद तो नही थी लेकिन रविश के कहने पर उसने मुझे जलाना शुरू किया फिर उसने वो सब बता दिया जो की वो छुपा के रखी थी, लेकिन मैं तो ठहरा डरपोक आदमी, खुशबू ने बाबुजी के जाने के बाद भी पूरी कोशिस की कि मेरे अंदर थोड़ी हिम्मत आ जाए.
वो थोड़ी कामियाब तो रही लेकिन बाबुजी ने उसे अपने पास बुला लिया, वो चाहती तो शायद नही जाती लेकिन खुशबू के पिता जी ने भी उसके ऊपर फोर्स करना शुरू कर दिया की ससुर जब अकेले है तो तुम दोनो को कुछ दिन वँहा भी रहना चाहिए.
अकेले वहां जाने के बाद तो खुशबू की हालत और भी खराब होने लगी, खुशबू ने रविश को बोल रखा था की अगर कुछ ऐसी वैसी बात हुई तो वो उसे फोन करेगी लेकिन बाबुजी ने उसे मौका ही नही दिया, वही रविश अभी शहर में ही था, बाबुजी ने खुशबू के साथ जबरदस्ती की और उसे अपने नीचे ले आये.
ये बात उस दिन की थी जब मैं वहां पहुचा, खुशबू के लिए उनकी बात मानने के सिवाय कोई चारा ही नही था, उन्होंने खुशबू की वीडियो भी बनाई, जो की कोर्ट में सबूत के तहत पेश की गई थी, उसमे भी साफ पता चल रहा था की बाबुजी ने खुशबू के साथ जबरदस्ती की थी और उसका वीडियो बना कर उसका यौन शोषण कर रहे थे.
उसी दिन रात मैं आया और ये सब देखकर बौखला गया, खुशबू बाबुजी की बात मानने को मजबूर थी जो वो उसे कहने को कहते वो कहती जो करने को कहते करती, मैं बौखलाया हुआ जंगलो में चला गया जब मेरी बात खुशबू से हुई, मुझे अपसेट देखकर खुशबू ने रविश से मुझे ढ़ंढने को कहा वो मेरे फ्लेट आया लेकिन मैं वँहा नही था वो मुझे ढूंढता हुआ जंगल पहुचा जंहा उसकी मुझसे मुलाकात हुई…
बाकी की कहानी वैसी है जो की हम जानते है, मुझे खुशबू की आँखों में सच्चाई दिखाई दी और मैंने बाबुजी को मार डाला……मुझे इसके लिए जेल हो गई, खुशबू ने मुझे शादी से पहले के अपने और रविश के रिस्ते में सब कुछ बताया और रविश ने ही मेरा केस लड़ा.
मुझे उसके लिए एक सहानुभूति तो थी ही लेकिन मैं खुशबू के बलिदान से बहुत ही प्रभावित था, वो जब तक मेरे साथ थी मेरे लिए वफादार थी, शादी के बाद उसने अपने बचपन के प्यार से भी दूरी बना ली, ये मेरी ही गलती थी की मैं उसे प्रोटेक्ट नही कर पाया…
मुझे अपने किये इस पाप के प्रायश्चित करने की एक युक्ति सूझ गई और मैंने खुशबू और रविश को एक दूसरे से शादी करने को कहा, वो दोनो ही कई महीनों तक ना नुकुर करते रहे लेकिन आखिर में वो मेरी जिद के सामने मान ही गए, मैंने खुशबू को तलाक दिया, लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी की वो शादी तब तक नही करेंगे जब तक की मैं जेल से छूटकर नही आ जाता, तो हमने आज की तारीख फिक्स कर ली..”
मेरी बात के खत्म होते ही सभी लोग तालिया बजाने लगे, रविश ने एक जाम मुझे दिया और हम सभी इन्जॉय करने लगे… रात का समय था और मैं अपने फ्लेट के गेस्ट रूम में लेटा हुआ था, सभी मेहमान जा चुके थे, आज पूरे साल बाद मुझे इतना कोमल बिस्तर नशीब हुआ था.
आज ही खुशबू और रविश की शादी ही थी लेकिन रविश के फ्लेट में काम चलने के कारण वो दोनो ही मेरे ही फ्लेट में रुके हुए थे, आज वो मेरे कमरे में सोने वाले थे, मुझमे इतनी भी हिम्मत नही थी की मैं उनकी सुहाग की सेज सजता, खुशबू के लिए दिल के किसी कोने में पत्नी वाला भाव अभी भी मेरे अंदर था.
मैं अपने खयालो में ही खोया था की दरवाजा खुला, खुशबू अब अपने कपड़े चेंज कर चुकी थी वो एक सामान्य सी साड़ी में थी लेकिन हमेशा की तरह ही बहुत ही खूबसूरत लग रही थी, उसके हाथो में दूध का एक ग्लास था, जिसमे उसने केसर डाला हुआ था.
“हम आज यहां रुक रहे है आपको इससे तकलीफ तो नही होगी” उसने मुझे दूध देते हुए पूछा.
“मैं कभी नही चाहुगा की तुम्हारी सुहागरात हमारे कमरे में हो” मेरे चहरे में एक शरारत भरी मुस्कान थी.
“आप पागल हो गए हो क्या, आपको लगता है की मैं हमारे बिस्तर में ये सब…छि छि, नहीं.”
उसके चहरे में शर्म दौड़ गई थी.
“आज से वो तुम्हारा पति है.”
“आज से नही जब वो मुझे अपने घर ले जाएंगे तब से, और हमने मिलने को सालो इंतजार किया है, एक दिन और सही.”
उसके चहरे में भी एक मुस्कान आ गई.
“तो आज मेरे साथ….” मैंने उसे शरारत भरे लहजे में पूछा.
“छि कितने गंदे हो आप, अब मैं उनकी पत्नी हु, चलो दूध पियो और सो जाओ.”
वो वहां से भागी लेकिन उसका चहरा शर्म से लाल हो गया था..
“अरे सुनो मैं मजाक कर रहा था.”
वो पलटी
“मैं जानती हु, आप मेरे साथ कभी गलत नही कर सकते” उसने बड़े ही प्यार से कहा और वँहा से चली गई…
ये मेरी पत्नी.. सॉरी पूर्व पत्नी थी, इतनी मासूम इतनी प्यारी, जिसपर आंखे मूंदकर भी भरोसा किया जा सकता था… मेरी मासूम पत्…सॉरी पूर्व पत्नी…
खुशबू के जाने के बाद मैं उसकी भोली बातो को याद कर रहा था की मुझे याद आया की यही वो कमरा था जंहा बाबुजी रहा करते थे, मैंने पूरे कमरे पर एक नजर डाली, उनका कोई भी समान यंहा पर नही था, मैं पास पड़ी मेज पर पहुचा बस कुछ पुस्तके रखी थी.
मेज में बने दराज को खोलकर देखा वो भी खाली था, तभी मुझे याद आय की बाबुजी की एक आदत थी… वो अपनी इम्पोर्टेन्ट चीजो को दराज में नही उसके ऊपर किसी टेप से चिपकाकर रखते थे, मैंने ऊपर हाथ फेरा मुझे कुछ नही मिला, मेरे होठो में एक मुस्कान आ गई.
बाबुजी सच में बड़े ही चतुर व्यक्ति थे एक लड़की के हवस ने उन्हें डूबा दिया, दराज के ऊपर ही सतह अलग लकड़ी की बनी हुई थी मतलब की ऊपर वो मेज का निचला हिस्सा नही था, मैं दराज को निकाल कर मेज के नीचे झुका और उसे ध्यान से देखने लगा.
हल्के से ठोकने पर ही मुझे उसके खोखले होने का अंदाज लग गया था मतलब यहां कुछ तो होगा जो वो सभी से छुपाना चाहते थे, मेरी थोड़ी ही कोशिस काम आयी और वो हिस्सा एक ओर सरका अंदर टेप से चिपका कर एक पिस्तौल रखी गई थी, शायद किसी इमरजेंसी के लिये.
मैंने उसे निकाला, पिस्तौल के हत्थे में कागज में लपटि कोई छोटी सी चीज चिपकी हुई थी, मैंने उसे निकाल कर देखा तो वो मोबाइल की मेमोरी चिप थी, 4gb, मेरे चहरे में मुस्कान फिर खिल गई, पता नही इन 4gb में था क्या??
मैंने उसे अपने मोबाइल में लगाया और उसमे रखे वीडियो को देखने लगा, जैसे जैसे वीडियो आगे बढ़ रहा था, मेरे पेट में हलचल होने लगी थी, मेरी धड़कनों ने बढ़ना शुरू कर दिया था, मैं उस पिस्तौल को उठा सीधे ही खुशबू के कमरे में पहुचा, अंदर से हँसने की आवाजे आ रही थी. खुशबू की आवाज मुझे स्पष्ट सुनाई दे रही थी…
“ठरकी बाप का चुतिया बेटा” खुशबू जोरो से हँस पड़ी.
“अरे धीरे उठ गया तो.”
“कल दोपहर तक नही उठेगा दूध में 5 गोलिया डाल दी है, 2 गोली में ही उसका क्या होता था तुम्हे तो पता है.”
दोनो फिर से हँसने लगे, मेरे सामने वीडियो का हर चित्र घूम गया था, मैंने दरवाजे को जोरो से लात मारी.
“क क कौन है” रविश की डरी हुई आवाज आई.
“दरवाजा खोलो.”
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मैं दहाड़ा और थोड़ी ही देर में दरवाजा खुला सामने खुशबू एक नाइटी में थी वही रविश एक निकर और बनियाइन में देखने से ही पता लग रहा था की उन्होंने ये जल्दी जल्दी में पहना है… मैंने पिस्तौल की नोक सीधे रविश के माथे पर ठिका दिया.
मेरे हाथो में बाबुजी की पिस्तौल थी और उसकी नोक पर था रविश का सर, वो और खुशबू डर से कांप रहे थे, मेरे चहरे में आया हुआ गुस्सा थोड़ी देर में ही मुस्कान में बदल गया, और मैं ठहाके मार कर हँसने लगा, वो दोनो ही मुझे बड़े ही आश्चर्य से देखने लगे थे.
“बहुत कमाल का खेल खेला है तुम दोनो ने, मेरे हाथो अपने रास्ते का सबसे बड़ा कांटा हटवा दिया, और अब आजादी से सारी दुनिया के सामने शादी भी कर लिए, वाह वाह… लेकिन क्या तुमने सोचा की मेरे ऊपर क्या बीत रही है, मुझे कैसा लग रहा होगा, मैं पूरे एक साल जेल के पीछे रहा, अपने पिता के कत्ल की जुर्म में… ठिक है की वो मेरे पिता नही थे लेकिन फिर भी उन्होंने हो तो मुझे पाला था,” मेरे आंखों में आंसू आने लगे.
“और तुम, तुम्हे तो मैंने जान से ज्यादा चाहा था, तुम कितनी मासूम थी कितनी प्यारी सी और ये सब…”
मैं फफक पड़ा मेरे हाथ ढीले पड़ गए और मैं बिस्तर में बैठ कर ही रोने लगा, रविश अब मेरे सामने खड़ा था. कुछ देर तक तो हम यू ही रहे, थोड़ी देर बाद खुशबू मेरे पास आयी और अपने घुटनो को जमीन से लगा कर मेरे सामने बैठ गई,
“मैं जानती हु की आप मुझे गलत समझते है और हा हमने गलत किया लेकिन हम एक दूसरे को बचपन से प्यार करते आ रहे है, हमारे प्यार को तोड़ने वाला, हमे एक दूसरे से अलग करने वाला और मेरी अस्मिता को भंग करने की कोसिस करने वाला एक ही आदमी है, उसे तो इसकी सजा मिलनी ही थी.”
खुशबू का स्वर थोड़ा ठंडा हो चुका था/
“और जो उस वीडियो में था क्या वो गलत था, जो मैंने अपने कानो से अभी अभी सुना…”
मैं हल्की आवाज में ही बोल पाया.
“वो सब सही है, और हम दोनो भी तुम्हारे सामने है, तुमने हमारे लिए जो किआ है वो कोई भी नही कर सकता और अब तुम जब सच जान ही चुके हो तो तुम जो भी सजा हमे देना चाहते हो वो दे दो, हम दोनो ही हर सजा के लिए तैयार है.” रविश बोल पड़ा.
उसकी बात से मैं थोड़ा हंसा लेकिन उस हँसी में बहुत सा दर्द छुपा हुआ था….
“क्या सजा चाहते हो, और मैं कौन होता हु तुम्हे सजा देने वाला, एक चुतिया आदमी..” मेरी आवाज में ठंडापन आ गया था.
“नही मुझे माफ कर दीजिये जो मैंने आपके लिए ऐसे शब्दो का प्रयोग किया,” अब खुशबू रोने लगी थी.
“मैं जानना चाहता हु, और जब मैं सब कुछ सही सही जान लूंगा तभी मुझे थोड़ी शांति मिलेगी…”
खुशबू ने अपना चहरा उठाकर मेरी ओर देखा और कहना शुरू किया, वो दोनो चाहते तो मेरे हाथो से बंदूक छीन सकते थे या कुछ और कर सकते थे लेकिन उनके इस व्यवहार ने मुझे थोड़ी राहत दी, खुशबू ने अपनी कहानी शुरू की मैंने उसे टोक दिया.
“वो बताओ जो मैं नही जानता.”
“हमारी शादी के बाद भी मैं और रविश एक दूसरे से अलग नही हुए थे, बाबुजी ने मेरी शादी यही सोच कर करवाई थी की मैं गांव की एक मासूम सी लड़की हु और मुझे फसाना उनके लिए बहुत ही आसान होगा लेकिन मेरे सीधे होने के बावजूद मैं रविश के प्यार में पागल थी.
और हम दोनो के जिस्मानी रिस्ते तो हमारे किशोरावस्था आने की बाद से ही शुरू हो गए थे जिससे बाबुजी अवगत नही थे, शादी के बाद उन्होंने मुझपर प्यार छिड़कना शुरू कर दिया था, मैं मन मार कर ही उनका साथ देने लगी वो मुझे जिस्मानी तौर पर उत्तेजित करने की कोसीसे करते थे.
वो सोचते थे की मैं एक भोली भली लड़की हु और मुझे उनकी हरकतों के बारे में कुछ भी नही पता लेकिन मैं सब कुछ समझती थी, तभी रविश को भी ये पता लग गया की बाबुजी ने ही हमारे रिस्ते को तुड़वाया है, मेरे दिल में आपके लिए सहानभूति और प्यार हमेशा से ही था लेकिन आपके दब्बू स्वभाव के कारण मैं कुछ भी ऐसा नही कर पा रही थी इसके लिए आपको जगाना जरूरी था.
शुरू में हमने सोचा था की आपको सब कुछ बता दिया जाय लेकिन आपके बाबुजी के सामने आपकी स्तिथि को जानकर हम दोनो ने चुप ही रहने का फैसला कर लिया, बाबुजी की छेड़छाड़ बढ़ते जा रही थी वही रविश और मैं जो की एक दूसरे से अलग होने की पूरी कोशिस कर रहे थे, इसी कारण अलग भी नही हो पा रहे थे.
आपकी कमजोरी के कारण मैं जिस्मानी रूप से संतुस्ट भी नही हो पाती थी, ऐसे में मेरे लिए आपके प्रति वफादार रहना भी मुश्किल हो रहा था, इसी बीच हम गांव छोड़कर शहर आ गए, रविश ने मेरे ही कारण यहां अपना ऑफिस खोल लिया.
हम एक दूसरे से मिलने लगे शुरू में तो हम एक दूसरे के लिए बस एक अच्छे दोस्त ही थे लेकिन मेरी मजबूरियों और रविश के मेरे लिए प्यार ने हमदोनो को फिर से एक दूसरे के करीब लाया, लेकिन फिर भी मैं रविश से जिस्मानी संबध नही बनाना चाहती थी.
लेकिन वो अब घर आने लगा था, जब उसे ये पता चला की आप मुझे संतुस्ट भी नही कर पाते तो वो मेरे करीब आने लगा, हम पहले तो बस एक दूसरे के बांहो में घंटो बिताते थे लेकिन फिर हम एक दिन हमारे होठ मील गए और साथ ही हम दोनो एक दूसरे में पहले की ही तरह मिल गए…”
कमरे में शांति थी एक अजीब सी बेचैन करने वाली शांति, अब खुशबू उसकी पत्नी थी लेकिन मेरे लिए ये दिल तोड़ने वाली बात थी, आज उसने कबूल ही कर लिया था की वो रविश के साथ क्या क्या करती थी, खुशबू मेरे पास आकर बैठ गई और मेरे बालो में हाथ फेरने लगी.
“मैं आपको बहुत ही प्यार करती हु, आप सच मानिए या नहीं.”
मैंने उसे अजीब नजरो से देखा, वो सफेद झूट बोल रही थी अभी अभी उसने सब कुछ काबुल किय मुझे फसाया और अभी वो मुझे प्यार करने की बात कर रही है.
“मैं आपके लेपटॉप में देखा था की आपको क्या पढ़ना पसंद है, हमे लगा की हो ना हो आप के अंदर ये चाहत है की मैं किसी और मर्द से संबंध बनाऊ और आप हमे देखे, हम पहले वही करने की सोच रहे थे, ताकि हमे भी कोई परेशानी ना हो और आपके साथ मेरा संबंध भी बना रहे लेकिन तभी बाबुजी आ गए.
हमारे लिए फिर से एक मुश्किल आ पड़ी, उनका स्वाभव तो इस बार और भी खतरनाक हो गया था, वो मुझे कार सीखने के बहाने इधर उधर छूने लगे थे, लेकिन उनकी भी इतनी हिम्मत नही हो रही थी की वो सीधे मुझसे कुछ कह पाए, लेकिन उस दिन सबकुछ बदल गया…
रविश से मेरी जुदाई बर्दास्त नही हो रही थी तो जब आप ऑफिस गए थे तो मैंने बाबुजी को वही दवाई दिया जो की आपको देती थी, रविश और मैं इसी कमरे में एक दूसरे के प्यार में दुबे हुए थे और ना जाने कैसे बाबुजी की नींद खुल गई उन्होंने बाहर से सब कुछ सुना और पीछे से ना जाने कैसे रोशनदान से ही अपने मोबाइल से हमारी शूटिंग कर ली.
पहले तो उन्होंने रविश के जाने का इंतजार किया लेकिन उसके बाद… उसके बाद उन्होंने सीधे मेरे कमरे में आकर मेरे कमर को पीछे से पकड़ लिया मैं चीखी तो वो मुझे गालिया देने लगे… ‘मादरचोद अपने यार से चुदवा रही है और मेरे सामने सती सावित्री बन रही है.’
मैं गिड़गिड़ाने लगी उन्होंने मुझे वो क्लिप दिखाई मेरे पास अब और कोई भी चारा नही बचा था इसके की मैं वो सब करू जो वो चाहते है, उन्होंने मेरी साड़ी मेरे कमर से अलग कर दी और मेरे पेट को चूमने लगे, मैं रोती रही लेकिन वो… “साली कमाल की है तू, काश ये सब मुझे पहले ही पता चल जाता तो तेरे साथ ही रोज सुहागरात मनाया करता, लेकिन कोई बात नही अब भी देर नही हुई है अब तुझे अपने बच्चे की माँ बनाऊंगा.”
उन्होंने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए और हर जिस्म को अपने जीभ से गिला करने लगे, मैं ना चाहते हुए भी गीली हो रही थी और उनके मर्दाना बदन को अपने जिस्म से सटा रही थी मैं रो तो रही थी लेकिन मेरे योनि से आग की जलन ने मुझे उनके नीचे होने में कोई दिक्कत नही होने दी.
उस दिन उन्होंने मुझे खूब रगड़ा, आपकी बीवी उस दिन दो मर्दो के साथ संभोग कर चुकी थी और आप अपने ऑफिस में थे, बाबुजी की एक बात तो अच्छी थी की वो आपसे और रविश से भी ज्यादा ताकतवर थे और वो मुझे पीसकर रख देते थे, पहले मैंने इसे अपने तक ही रखने की सोची लेकिन, उन्होंने मर्यादाओ को लांघना शुरू कर दिया.
वो बाहर भी मेरे साथ एक वेश्या के तरह वर्ताव करते, आपके पूरे कॉन्डोम को उन्होंने ही खत्म किया था, जब आप ऑफिस में होते या फिर जब आप सोए होते तो आपकी बीवी उनके नीचे अपनी जवानी को मसला रही होती थी, उन्होंने एक सुनसान जगह में कार में भी मुझे चोदा था, और बगीचे में भी, कई बार उन्होंने मुझे अपने वीर्य से नहला भी दिया और मुझे भर भी दिया…”
मैं और रविश दोनो ही खुशबू की ओर मुह फाडे देख रहे थे, खुशबू के चहरे में ये सब याद करके एक उत्तेजना सी आ गई थी, उसका चहरा मादक हो गया था, वो एक झीनी सी नाइटी में थी जिसके अंदर कुछ भी नही पहने होने के कारण उसके जिस्म का हर भराव साफ साफ दिख रहा था.
हाथो में भरी हुई चूड़ियां माथे की काली बिंदी और मांग में भरा हुआ सिंदूर उसे और भी आकर्षक और उतेजक बना रहा था, और उसके मुह से मादक आवाज में ये सब सुनकर मेरे और रविश के लिंगो ने भी झटके मारने शुरू के दिए थे जो की हमारे ढीले निकर में बने टेंट से साफ ही समझ आ रहा था, खुशबू ने मेरे लिंग को अपने एक हाथ से पकड़ा क्योकि उसका दूसरा हाथ रविश के लिंग को सहला रहा था.
“आह,”
मेरे मुह से अचानक ही निकल गया था खुशबू ने बोलना शुरू किया,
“सच तो ये है की मुझे बाबुजी के साथ बहुत ही मजा आने लगा था क्योकि जो तुम दोनो ही नही कर सकते वो उन्होंने मेरे साथ किया, वो तुम दोनो के बराबर थे, लेकिन उन्होंने अति करना शुरू कर दिया हद तो तब हो गई जब उन्होंने रविश को घर बुलाया और उसके सामने ही मुझे चोदा, और ये बस मुझे देखते हुए अपना लंड ही हिला रहा था.
लेकिन तब ही मुझे एक और भी चीज समझ आई की रविश को भी मुझे दूसरे से चुदते हुए देखना पसंद था, लेकिन इसके बाद हम दोनो ही रोया करते थे, बाबुजी अपने मकसद में कामियाब हो रहे थे, उन्होंने मुझे अपने प्रेमी के सामने चोदा था और अब वो मुझे मेरे पति के सामने चोदना चाहते थे.
लेकिन मैं नही चाहती थी की आपको भी ये दर्द सहना पड़े जो की रविश को सहना पड़ा था, क्योकि मैं जानती हु की भले ही लिंग के खड़े रहने तक ये चीजे अच्छी लगे पर ये आत्मा हो ही मार देती है, मैं नही चाहती थी की मेरे दोनो प्यार उस कुत्ते के गुलाम बन जाए और वो जब चाहे जैसे चाहे मुझे आप दोनो के सामने रौदे.
इसलिए मैंने उन्हें रास्ते से हटाने का प्लान बनाया, मैं उन्हें गांव में मार देना चाहती थी, जब वो मुझे आपके सामने चोदने की तैयारी कर रहे थे, उन्होंने कहा था की उसके मन में मेरा डर इतना हो जाए की वो कुछ बोल ही ना पाए एक बार वो मेरे गेयर में आ गया फिर कुछ भी करना नही पड़ेगा.
मैं अब बाबुजी के सामने एक रंडी की तरह व्यवहार करने लगी थी ताकि उन्हें मेरे ऊपर शक ना हो, उन्हें लग रहा था की मैं उनका साथ दे रही हु लेकिन असल में मैं उन्हें मरना चाहती थी, रविश ने मुझे कहा था की अगर मैं गांव में उन्हें मार दूंगी और उनके ऊपर बलात्कार का जुर्म लगा दूंगी तो वो मुझे बचा सकता है.
हम दोनो ने ही ये प्लान किया था की आपके आने से पहले ही ये काम हो जाना चाहिए, और इसी लिए मैंने आपके दिमाग में ये बात डाल दी की मैं अभी तक उनके नीचे नही आयी हु लेकिन जल्द ही वो मुझे जबरस्ती अपने नीचे ले आएंगे. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
दो दिनों तक उन्होंने मुझे खूब चोदा क्योकि घर में बहुत से काम करने वाले थे और उनके रहते मैं कुछ नही कर सकती थी लेकिन फिर उन्होंने सब को छुट्टी पर भेज दिया ताकि जब आये तो आपके ऊपर वो अपना अधिकार आसानी से जमा सके, यही वो वक्त था जब मुझे अपना काम करना था.
लेकिन मुझे पता चला की आप घर से निकल चुके हो, मैंने रविश को आपके ही पीछे लगा रखा था, हम दोनो ने ही प्लान बदलने की सोची क्योना आप ही बाबुजी को मार दे, लेकिन इसके लिए ये जरूरी था की आपके अंदर का मर्द बाहर आये और मुझे आपके ऊपर थोड़ा तो भरोषा था.
लेकिन पहले दिन आप सिर्फ देख कर ही चले गए, आप जब रोशनदान से हमे देख रहे थे तो मुझे और बाबुजी दोनो को ही पता था की आप हमे देख रहे हो, वो इससे खुस थे, लेकिन उन्हें ये उम्मीद नही थी की आप सुबह होते ही इतने खतरनाक मूड में आ जाएंगे.
उन्होंने दूसरे दिन पूरे दिन आपका इंतजार किया, की आप आये लेकिन उधर रविश आपको दारू पिला रहा था और आपके दिमाग में ये बात डाल रहा था की आपको अपने बाबुजी को मार देना चाहिए, अगर आप उन्हें नही मारते तो शायद मैं उन्हें मार देती क्योकि अब समय कम था और मेरे सहने की सीमा भी खत्म होने लगी थी.
मैंने वो रोड कमरे में लाकर रखा था, फिर जो हुआ वो तो आप जानते ही हो……अब मैंने कितना सही किया या गलत ये तो मुझे नही पता लेकिन जो भी किया कही ना कही सिर्फ हम दोनो के लिए ही नही आपके भी भलाई के लिए किया.
चाहे बाबुजी कितने बड़े मर्द क्यों ना हो जो की मुझे सच्चे अर्थों में संतुस्ट करते थे लेकिन प्यार तो मैंने आप दोनो से ही किया है और उन्होंने मुझे बलात्कार से ही पाया था ना ही प्यार से, मुझे अपने जिस्म की प्यास पर भी घृणा आने लगी थी.
अब मुझे कोई भी ग्लानि नही है, मैंने जो भी किया वो अपने प्यार के लिए ही किया, वरना अगर मुझे बस अपनी वासना की फिक्र होती तो मैं आप दोनो को ही बस बाबुजी का गुलाम बनने देती आप दोनो बस मेरे चुद से उनका वीर्य साफ किया करते, और वो आपके ही सामने आपके प्यार को रौंदा करते…”
बोलते बोलते खुशबू के आंखों में आंसू आ गए थे, वो हमारे निकर से हमारा लिंग निकाल कर सहला रही थी लेकिन अब उसके हाथ थम चुके थे, वो भीगी हुई आंखों से मेरी ओर देखने लगी.
“मैं आपसे बहुत प्यार करती हु, आप मेरे पति थे, लेकिन मैं रविश से भी बहुत प्यार करती हु वो मेरा पहला प्यार है, मेरे लिए आप दोनो को ही छोड़ना कठिन है, शायद मैं आप दोनो की ही गुनहगार हु लेकिन अगर हो सके तो मुझे अपना लो.
जिंदगी भर दोनो ही मेरे पति और प्रेमी बनकर रहो, मैं जानती हु की बाबुजी के जिस्म से संभोग करने के बाद मेरे लिए आप में से एक के साथ ही जीवन भर रहना संभव नही है, कोई एक मुझे संतुस्ट नही कर पायेगा, हो सके तो दोनो ही मिलकर मुझे संतुस्ट करो…”
वो हमारे लिंग को जोरो से दबाती है अब उसके चहरे में फिर से मादकता थी वही हम दोनो के चहरे में मुस्कान, मैं और रविश एक दूसरे के चहरे को देखने लगे…
“तूने मेरी बीवी को मेरे पीठ पीछे बहुत चोदा है, लेकिन अब मैं तेरी बीवी को तेरे ही सामने चोदूँगा, इतनी सजा तो तुझे मिलनी ही चाहिए.”
खुशबू हँस पड़ी वही हरिश थोड़ा नर्वस हो गया लेकिन वो भी तैयार था, खुशबू अपने को बिस्तर में डाल के फैल गई, मैं उसके कोमल और कठोर वक्षो को मसलने लगा, वो आहे भर रही थी, रविश उसके सर के पास जाकर उसके मुह में अपना लिंग घुसाने लगा, वो उसे किसी लॉलीपॉप की तरह चूस रही थी.
मैंने उसके नाइटी को उसके जांघो से ऊपर तक सरकाया और उसके गीले योनि में अपना लिंग सहलाया, उसने आह भरकर मेरे सर को पकड़ लिया, आज ना जाने मेरे लिंग में ऐसी अकड़ कहा से आ गई थी, मेरी बीवी आज मेरे साथ एक प्रेमी की तरह चुदने वाली थी.
वही जो लड़का कभी खुशबू का प्रेमी हुआ करता था वो आज उसका पति था, जो की सामने खड़े अपनी नई बीवी को अपने प्रेमी से चुदते हुए देखने वाला था, खुशबू अब रविश के लिंग को छोड़कर मेरे होठो में अपने होठो को घुसने लगी हम दोनो ही एक दूसरे के होठो को खा रहे थे और रविश बिस्तर के पास खड़ा अपने लिंग को सहला रहा था.
मैंने अपने लिंग को थोड़ा और सरकाया और वो आज सालो के बाद खुशबू की योनि में समा गया, इतने दिनों से मैं इसका इंतजार कर रहा था, मैं आज गजब की फुर्ती दिखा रहा था, क्योकि पूरे साल मैंने अपने शरीर पर ही ध्यान दिया था, मेरे शरीरी की ताकत पहले से काफी बढ़ चुकी थी और इसका अंदाज मेरे तेज और मजबूत धक्कों से खुशबू को भी हो रहा था…
“आह अगर इतना पहले ही चोदते तो मैं किसी और के साथ क्यो जाती आह आह आह.”
खुशबू पूरी तरह से गर्म हो कर शांत हो चुकी थी, और मैं अपना लावा उसके अंदर छोड़ रहा था, मैं थोड़े देर के लिये खुशबू से अलग हुआ जब रविश ने कमान सम्हाली अब वो अपने लिंग से खुशबू की कि चुद फाड़ रहा था, खुशबू आहे भर रही थी.
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मैं उन्हें देखकर फिर से तन गया, मुझे एक गहरी सी जलन भी हो रही थी. मैं और रविश दोनो ही एक दूसरे से ज्यादा अच्छा होने की कोशिस कर रहे थे जिसका पूरा मजा खुशबू उठा रही थी, रविश के बाद फिर से मैं आया और मेरे बाद फिर से रविश हम तीनो ही थकने का नाम ही नही ले रहे थे, जब तक की हम उठाने के बिल्कुल भी काबिल नही रहे तब तक हमने खुशबू की चुदाई की, खुशबू की भी हालत खराब हो गई थी, आखिरी बार मैं खुशबू के अंदर झड़कर एक रन से रविश से जीत गया…
एक सप्ताह के बाद… रविश के नए फ्लेट में प्रबेश की पार्टी थी और पास के ही अंकल आंटी भी आये हुए थे, सभी बुजुर्ग खुशबू के व्यवहार से बहुत ही खुस दिख रहे थे, वो उन्हें अपनी खुद की बहु की तरह प्यार दे रहे थे, एक आंटी खुशबू को देखकर बहुत ही भावुक हो गई, खुशबू सर ढंके हुए साड़ी और सिंदूर और हाथो में चूड़ी और पैरो में पायल पहने किसी नई दुल्हन ही लग रही थी..
“बेटा रविश तू कितना खुसनशिब है की तुझे इतनी संस्कारी बीवी मिली, सच में कितनी मासूम है बहु…”
हम तीनो की नजरे मिली और हमारे चहरे में मुस्कान खिल गया. ‘मासूम बहु’ मेरे होठो से अनायास ही निकला.