Masum Pyari Ladki Sex
मैं 21 वर्षीया स्नातक लड़की हूँ, पिता जी का व्यवसाय है एवं माँ गृहणी हैं, हमारे पास का मकान कई सालों से खाली पड़ा है। स्नातिकी करने के बाद मेरे पिता ने मुझे आगे पढ़ाना इसलिए मुनासिब नहीं समझा कि फिर ज्यादा पढ़े-लिखे लड़के मिलने मुश्किल हो जाते हैं और लड़की की शादी में परेशानी आ जाती है। Masum Pyari Ladki Sex
इसलिए मैं छोटे मोटे कोर्स कर के अपना समय व्यतीत करती रही हूँ। खाली समय में माँ के साथ रसोई में हाथ बटा देती हूँ, खाना भी ठीक-ठाक पका लेती हूँ। पिताजी अक्सर नौ बजे घर से निकलते हैं और रात को नौ बजे घर लौटते हैं।
एक दिन अचानक ही पास वाले खाली पड़े मकान में हलचल नजर आने लगी, कोई किरायेदार वहाँ पर रहने के लिए आने वाले थे इसलिए मकान मालिक उसे साफ़ करवाने आया था। मकान मालिक का इसी शहर में एक और मकान है जिसमें वो अपने परिवार के साथ रहते हैं।
दो दिन बाद ही उसमे एक छोटा सा परिवार रहने आ गया, पति-पत्नी के अतिरिक्त उनका बीस-बाइस साल का एक लड़का भी है। पड़ोस का घर होने से कुछ हाय-हेलो हुई। माँ और पड़ोसन में कुछ जान पहचान आगे बढ़ने लगी। लड़का इंजीनियरिंग के अन्तिम साल में पढ़ रहा है, देखने में ठीक ठाक है, बुरा नहीं लगता, कद काठी भी अच्छी है।
हमारा शहर ज्यादा बड़ा तो नहीं है लेकिन छोटा भी नहीं है, मनोरंजन के साधन पर्याप्त रूप से उपलब्ध हैं। मैं कभी कभी अपनी सहेलियों के साथ फिल्म भी देख लेती हूँ। समय जैसे तैसे कट रहा है। अब पड़ोस का लड़का शाम के समय अक्सर अपनी छत पर समय काटता है।
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मैं भी अपनी शाम कई बार छत पर बैठ कर गुजारती थी। अब जब भी मैं छत पर जाती तो पड़ोस का लड़का मुझे देखा करता और कभी कभी हाय-हेलो किया करता लेकिन मैं हाय-हेलो का जवाब देकर आगे की बातचीत गोल कर देती थी क्योंकि अक्सर यह फंडा लड़कियों को पटाने का होता है।
हालाँकि मैं पढ़ी-लिखी हूँ लेकिन पारंपरिक रूप से मन पर भारतीय वातावरण ही छाया हुआ है इसलिए मैं इस प्रकार की दोस्ती पर ज्यादा ध्यान नहीं देती। वो कई बार मुझसे बात करने की कोशिश किया करता लेकिन मेरे बर्ताव को देखकर उसे आगे बढ़ने के रास्ते बंद से नजर आने लगे।
उसके व्यवहार से लगता था कि वो मुझसे प्रभावित है और मेरे बर्ताव से व्यथित जरूर है लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी है। कभी कभार वो हमारे घर आ भी जाया करता है जब उसकी माँ अचानक खत्म होने पर उसे कोई सामान लेने हमारे घर भेज दिया करती है।
यह सब रूटीन का काम था। अक्सर लड़कों की निगाहों का सामना करती रही हूँ इसलिए मैं जानती हूँ कि इनको जवाब ना देना ही इनको टालने का सबसे अच्छा प्रयास है। धीरे धीरे छः-आठ महीने नि़कल गए। सब कुछ ऐसा ही चलता रहा।
जान पहचान का बार बार मिलते और देखते रहने से बढ़ना लाजमी होता है। मेरी माँ और पड़ोसन अक्सर दोपहर के खाली समय में एकसाथ बैठकर गपशप किया करती। कभी कभार मैं भी बैठ जाया करती लेकिन उनकी इधर उधर की लल्लो चप्पो मुझे कम ही पसंद आती थी।
मेरी दो सहेलियों की शादी हो चुकी थी इसलिए मुझसे सेक्स का भी थोड़ा बहुत ज्ञान था लेकिन मैं उस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती हूँ इसलिए मेरी सेक्स में रूचि अधिक जागृत नहीं है। जब शादी होगी तब पति की पहल पर देखा जायेगा वाली मानसिकता से मैं सराबोर हूँ।
अभी एक सप्ताह पहले की बात है कि मेरे मामाजी की लड़की की शादी के लिए माँ को पहले ही बुला लिया गया तो वो सात दिन पहले ही मुझे घर अच्छे से सम्हालने की हिदायत देकर घर से मामाजी के यहाँ प्रस्थान कर गई ताकि मामाजी के यहाँ घर में शादी का सा माहौल लगे और छोटे मोटे काम काज मम्मी सम्हाल सके।
मुझे और पापा को शादी के एक दिन पहले मामाजी के यहाँ जाना था. अब मैं सुबह शाम का खाना बना कर दिन में खाली रहती थी। टीवी देखती रहती… दो दिन निकल गए। तीसरे दिन दोपहर लगभग १२ बजे दरवाजे की बेल बजी, मैंने अचंभित होकर दरवाजा खोला तो पड़ोस का लड़का खड़ा था।
मैंने सोचा कि कोई सामान लेने आया होगा सो एक तरफ होकर उसे रास्ता दिया, वो अंदर आ गया। मुझे वो थोड़ा अपसेट सा लगा, मैंने उसके कुछ बोलने का इंतजार किया लेकिन वो सोच में डूबा हुआ कुछ बोल नहीं पा रहा था तो मैंने कहा- बोलो क्या बात है?
फिर भी वो जवाब नहीं दे रहा था, बस मेरी तरफ देखे जा रहा था, मेरे दो तीन बार पूछने पर वो बोला- मैं कुछ कहूँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी ?
मैंने कहा- ऐसी क्या बात है जो मैं बुरा मान सकती हूँ ?
उसने कहा- नहीं, पहले आप मुझसे वादा कीजिये कि आप बुरा नहीं मानेंगी…
अब मेरी असमंजस की बारी थी कि ऐसी क्या बात है जो मुझे इतना बुरा लग सकती है और जो यह कह नहीं पा रहा है… हम एक दूसरे को देखे जा रहे थे, फिर अंत में मैंने हिम्मत करके कहा- चलो, मैं बुरा नहीं मानूंगी ! तुमको जो कहना है कहो…
तो वो कुछ कहने की कोशिश करता, फिर चुप हो जाता तो मैंने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा- मैंने कहा ना कि मैं बुरा नहीं मानूंगी, तुम जो कहना चाहते हो वो कह सकते हो…
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उसके मुह से निकला- मैं.. फिर अटक गया,
तो मैंने कहा- हाँ तुम.. आगे बोलो..
वो: मैं… मैं… बहुत असमंजस में हूँ…
मैं: हाँ तो कहो ना किस असमंजस में हो…
वो: अब क्या कहूँ… कैसे..
मैं: यदि तुम कुछ कह नहीं पाओगे तो मैं कैसे तुम्हारी कुछ सहायता कर पाऊँगी…?
वो कुछ नजदीक आया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथ पकड़ कर बोला- आप सच में बुरा नहीं मानेंगी ना..?
मैं अपना हाथ छुडाने की कोशिश करते हुए बोली- मैं बुरा नहीं मानूंगी…लेकिन मेरा हाथ तो छोड़ो !
इस तरह यह पहला वाकया था जब किसी लड़के ने मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश की थी, कोशिश क्या पकड़ ही लिया था…
वो: नहीं पहले आप वचन दो कि बुरा नहीं मानोगी …
मैंने परेशान होकर कहा- हाँ बाबा, मैं बुरा नहीं मानूंगी, तुम मुझसे जो कहना चाहते हो वो कह सकते हो लेकिन मेरा हाथ छोडो.. प्लीज…
लेकिन उसने हाथ नहीं छोड़ा…
उसकी हालत देखकर मुझे लगा कि वो शायद ठीक से सो भी नहीं पाया है और कुछ परेशान भी है…
फिर उसने धीरे धीरे अटक अटक कर बोलना शुरू किया- मैं कुछ दिन से बहुत……परेशान हूँ, ठीक से .. नींद भी नहीं आ रही है…. कैसे कहूँ.. क्या कहूँ बस यह सोच कर…. बहुत….परेशान हो गया हूँ……. यदि आपको यह बात…..
मैं : हाँ बोलो ना… बोलते रहो, मैं सुन रही हूँ…..
वो : आप यदि बुरा भी मान जाएँ तो आप मुझे मारिएगा.. पीटना मुझे ..
उसकी आँखें डबडबा आई……
मैं : लेकिन बोलो तो सही ऐसी क्या बात है…..
वो : मेरी परेशानी का कारण आप हैं…
अब मेरी समझ में कुछ आया लेकिन फिर भी मैं बोली- क्या….!! मैं तुम्हारी परेशानी का कारण….
वो फिर अचकचा गया.. मेरी तरफ कातर नजरो से देखने लगा….
मैं : बताओ तो सही आखिर मैं.. परेशानी का कारण.. कैसे हूँ….?
वो : मैं आपका ख़याल अपने मन से नहीं निकाल पा रहा हूँ !
मैं अवाक् रह गई…..
वो मेरी आँखों में देखकर बोला- मैं आपको पसंद करने लगा हूँ…….. और आप हर समय मेरे मन में घूमती रहती हैं…….. मैं आपसे बात… करना चाहता हूँ …..और आप ठीक से बात भी नहीं करती हैं…..
मैं सोचने लगी कि यह क्या हो गया है ? किसी से बात नहीं करना इतना बुरा हो सकता है ??
मैं क्या कहती… बस उसकी तरफ देखती रही.. उसने अब तक मेरे हाथ पकड़े हुए थे… अब मुझे उनका भी होश नहीं था…
उसकी आँखों से आँसू गिरने लगे, वो बोलता गया …..मुझे कुछ भी … अच्छा नहीं लगता… ना खाना … सोना भी…. बस आप …..ही आप…. मैं आज के बाद आपको कुछ नहीं कहूँगा…. देखूँगा भी नहीं… चाहे तो आप मुझे मार सकती हैं….
यह कह कर उसने मुझे अपनी बाहों में ले लिया…. अब मुझे होश आया.. मैंने छुड़ाने की कोशिश की तो उसने अपनी बाहों को और भी जकड़ लिया.. अब मैं सोचने लगी कि यदि अब कोई आकर दरवाजा खटखटाए तो हम दोनों को इस तरह अकेले देखकर क्या सोचेगा.. यह क्या कह रहा है… क्या हो रहा है यह सब… हे भगवान…. मुझे घबराहट होने लगी…
मैंने बोला- छोड़ मुझे.. कोई आ गया तो क्या होगा.. पागल….
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लेकिन उसने मुझे नहीं छोड़ा.. वो मुझे मेर मुँह पर यहाँ-वहाँ चूमने की सफल/असफल कोशिश करने लगा… मेरे माथे पर, आँखों और नाक पर, मेरे गालों पर.. मैं अपना चेहरा इधर उधर करने लगी… लेकिन उसके आँखों से आंसू गिर रहे थे और वो मुझे चूमे जा रहा था…
फिर उसका एक हाथ मेरी छाती पर.. मेरे एक बोबे पर आ गया… अब मेरे शरीर में सिरहन दौड गई… मुझे बस एक ही ख़याल आ रहा था कि ये मुझे छोड़ कर चला जाये लेकिन उसकी पकड़ के सामने मैं कुछ कर नहीं पा रही थी…..
वो मेरा बोबा दबाने लगा…. धीरे धीरे मेरे शरीर में चींटियाँ रेंगने लगी…. मैं छूटने की नाकाम कोशिश करती रही… मेरी हिम्मत धीरे धीरे टूटती जा रही थी… मैं शिथिल पड़ती जा रही थी, मुझे लगने लगा कि मेरे साथ ये क्या होने वाला है….
हे भगवान…
उसने मेरे होटों पर अपने होंट रख दिए और चूसने लगा। मैं कसमसाई लेकिन छूटना मुश्किल था… अब उसका बोबे वाला हाथ मेरे सर के पीछे, मेरा चेहरा उसके मुँह की तरफ दबाव दिए हुए था, अब मेरे हाथ समर्पण की मुद्रा में ढीले पड़ गए… मैंने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया….
कुछ देर में मेरे होंट कब उसके होंटो को चूसने लगे मुझे कुछ पता नहीं चला… मेरे शरीर में चींटियाँ रेंग रही थी…. दिल में हौल मची हुई थी.. दिल धाड़ धाड़ बज रहा था…. मुझे कुछ भी दिखाई देना बंद हो गया था… मेरे हाथ धीरे से उठे और उसके हाथों को पकड़ लिया…
इतने में उसने मुझे वहीं सोफे पर गिरा दिया… मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ, बस अब लगने लगा था कि यह जो कुछ करना चाहता है वो जल्दी से कर ले… और चला जाये… वो मुझ पर छा गया… उसका एक हाथ फिर से मेरे बोबे पर आ गया, मेरी साँसे जोर जोर से चलने लगी..
उसका दबाव मेरे वस्ति-क्षेत्र पर पड़ने लगा… मुझे अच्छा लगा… मैं खुद पर आश्चर्य करने लगी कि यह सब मुझे क्यों अच्छा लग रहा है..!! एक हाथ से उसने अपना वजन सम्हाल रखा था और दूसरे से मेरे बोबे दबा रहा था…. मुझे लगने लगा कि वो मुझे मसल डाले… और जोर से…
मेरे मुँह से ऊं ऊं… करके आवाज निकलने लगी तो उसने अपना मुह मेरे होंटों से अलग किया और मेरा कुरता ऊँचा करके बोबे नंगे करने लगा… बोबे देखकर जैसे वो पागल हो गया… वो उन्हें चूमने लगा फिर चुचूक मुँह में लेकर चूसने लगा…
अब मेरी रही सही हिम्मत भी चली गई, मैं बिल्कुल उसकी मेहरबानी पर निर्भर हो गई… मेरे हाथ धीरे से उठे और उसके बाल सहलाने लगे.. अचानक उसका हाथ मेरी पेंटी में घुसता चला गया… मेरी सिरहन सर से पैर तक दौड़ गई लेकिन अब तक मैं बेबस हो चुकी थी…
उसकी ऊँगली मेरी चूत की खांप में चलने लगी, मेरे शरीर में चींटियाँ ही चींटियाँ चलने लगी, मेरे हाथ उसके खोपड़ी के पीछे से मेरे बोबों पे दबाने लगे… मेरे मुँह से अनर्गल शब्द निकल रहे थे… आं…ऊं हाँ…और जाने क्या क्या….
मैं मिंमियाई सी कुनमुनाने लगी, मेरी चूत से पानी निकलने लगा.. जो मेरी गांड से होता हुआ.. मेरी पेंटी गीली होती जा रही रही थी..सब कुछ मेरी बर्दाश्त से बाहर होने लगा… मुझे लगा कि यह कुछ करता क्यों नहीं है… मैं बेबस हुई जा रही थी…
अचानक वो उठा और अपनी पैंट नीचे सरका कर अंडरवियर सहित फिर से मेरे ऊपर आ गया… फिर उसका हाथ नीचे हुआ और जब उसका हाथ हटा तो मुझे अपनी चूत पर कुछ गड़ता हुआ महसूस हुआ…उस गड़न से मुझे बहुत बहुत राहत महसूस हो रही थी, चींटियाँ जैसे थमने लगी थी….
और सिमट कर चूत की तरफ अग्रसर होने लगी ….उसके नीचे का हिस्सा चक्की की तरह मेरे शरीर पर चलने लगा …मेरी चूत में चींटियों ने जैसे अपना बिल बना लिया है, मैं अपने हाथ से चूत को खुजाना चाहती थी लेकिन उसका शरीर मुझसे बुरी तरह से चिपका हुआ था…. झख मार कर मैंने उसकी बांह पर अपनी उँगलियाँ गडा दी, मेरे मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी- कर …जोर से…
मैं फुसफुसाई- अंदर डाल ना….
लेकिन उसने जैसे कुछ सुना ही नहीं … मैं उसको भी नहीं देख पा रही थी…मेरी आँखें मुंदी हुई थी…वो मुझे रगड़े जा रहा था, उसके होंट मेरे होंटो पर और उसके एक हाथ में मेरा बोबा जिसे वो दबाये जा रहा था… धीरे धीरे मेरे शरीर में सनसनी चलने लगी …वो बिना रुके रगड़ता गया…
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सनसनी बढ़ती जा रही थी….और मुझे लगने लगा जैसे मैं अपने शरीर से अलग होकर हवा में उड़ने लगी हूँ, मेरा शरीर हवा सा हल्का हो गया है….. मुझे डर लगने लगा….मैं अपने हाथों को हवा में घुमा कर कुछ पकड़ने को सहारा ढूँढने लगी ताकि उड़ते में गिर ना जाऊं.
लेकिन जब नाकाम हो गई तो उसकी पीठ पर अपनी उँगलियों से जोर से दबाया कि उसके मुँह से आह निकल गई….मुझे डर लगने लगा कि जाने यह क्या हो गया है मुझे ….मेरी आँखों से आंसू निकलने लगे …फिर मुझे लगा कि वो मेरे ऊपर ठहर गया है….
मैं बड़बड़ाने लगी- मुझे डर लग रहा है….मुझे पकड़ लो ….प्लीज …….और आंसू थे कि रुक नहीं रहे….
वो जैसे होश में आया…उसने मुझे सहारा देकर बिठाया और मुझे अपने से चिपका लिया….बोला- कुछ नहीं हुआ रानी …..चुप हो जाओ प्लीज …
वो मुझे पुचकार कर चुप कराने लगा और बताने लगाकि मुझे कुछ नहीं हुआ है, मैं यहीं हूँ अपने घर में …., कहीं नहीं गई हूँ….. थोड़ी देर में मैं होश में आने लगी… फिर मुझे होश आया कि मेरे साथ क्या हुआ है …मैंने अपना कुरता नीचा किया और उसकी तरफ देखने लगी…
फिर मेरा हाथ उठा और उसके एक चांटा पड़ा …मेरे मुँह से निकला …तूने यह क्या कर दिया…..
उसने अपनी पैंट ऊँची की, बटन और चेन लगाईं, अपने कपड़े ठीक किये और सॉरी बोल कर नजरें नीचे किये दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया…. मैं धीरे-धीरे पूरे होश में आ गई और पूरे वाकये को सोचने लगी …15 मिनट में ही मेरे साथ यह क्या हो गया था….?? सब कुछ मेरे सामने घूमने लगा….बार बार….. सोचते सोचते मेरा सर भन्नाने लगा…
फिर मुझे कुछ अच्छा भी लगा कि जाने हवा में कैसे उड़ने लगी थी मैं….. बहुत कोशिश करने पर मैं अपने बुरे ख्यालों से निकलने लगी ….शाम तक मुश्किल से मैं अपने ख्यालों को कुछ नियंत्रित कर पाई…. फिर नहाई और खाना बनाने में अपने को व्यस्त करने लगी….
जैसे तैसे खाना बना कर पापा का इन्तजार किया, छत पर जाने का मन नहीं हुआ…… पापा आये तो उन्हें खाना खिला कर अपने कमरे में आकर सोने का बहाना करने लगी, पापा को आश्चर्य हुआ कि आज मुझे क्या हुआ है…
मुझे उसकी करनी याद आने लगी तो उस पर गुस्सा आने लगा….धीरे धीरे समय निकलता गया, आँखों से नींद गायब थी… फिर मुझे सनसनी, चींटियाँ रेंगना और हवा में उड़ना याद आने लगा, मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मुझे हुआ क्या था फिर सहेलियों की बातें याद आई कि पति का साथ तो बस….तो क्या ये वही अनुभूति ….. उफ्फ्फ्फ़.
सोचते सोचते दिमाग फटने लगा…फिर ना जाने कब नींद आ गई….एकाएक लगा कि बारिश होने लगी है …हड़बड़ा कर उठी तो देखा पापा हाथ में गिलास लिए मेरे मुँह पर पानी के छींटे मार रहे हैं… उठो बेटा …देखो आठ बज गए…कब तक सोती रहोगी…..
मैं उठी, नहाई-धोई और खाना बनाया …पापा को खाना खिला कर भेजा… उफ़ …अब फिर खाली समय का अंतराल ….मेरा सर फट जायेगा….. वो ही घटना बार बार मेरे मानस में घूम रही थी फिर उसके बाद हवा में उड़ना …..ओह ……क्या था वो…कौन बता सकता है ….किस से पूछूँ ….
क्या मैं पूछ सकती थी….शायद नहीं ….अब वो रोमांच भरने लगा… लगा कि कहीं वो आज फिर ना आ जाये…. दो दिन बीत गए …अब मुझे दिन में उसका इंतजार था कि शायद वो आज आ जाये….लेकिन वो नहीं आया…एक दिन बचा था फिर हमें मामाजी के यहाँ जाना था, तीन दिन का लंबा इंतजार मामाजी के घर……ओह….मैं ये क्या सोचने लगी …
मैंने सर झटक दिया…..अब धीरे धीरे दुर्घटना बिसरने लगी और सनसनी और हवा में उड़ना याद आने लगा….मुझे रोमांच होने लगा … क्या एक और बार … अरे हट ! मैं यह क्या सोचने लगी …अब मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा था….
मैं छत की सीढ़ियों से बार बार देखती लेकिन वो कहीं नजर नहीं आ रहा था….बाहर भी नहीं ….. चोरी चोरी चोर नजरों से उसके नजर आने की राह देखने लगी …वो मुझे अच्छा लगने लगा… मामाजी के यहाँ जाते समय भी देखा लेकिन वो नहीं दिखा…..
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तीन दिन बाद मामाजी के यहाँ से आई तो भी मुझे उसके दिखने का इन्तजार था….शाम को मैं छत पर गई तो वो दिखा ….लेकिन नजरें नीचे किये नीचे उतर गया… उफ्फ्फ जालिम….. अगले दिन जब वो छत पर दिखा तो मैंने बहुत उम्मीद से उसे देखा लेकिन उसने अपने हाथ अपने कानों पर लगाए और हाथ जोड़ दिए …. जैसे कह रहा हो कि गलती हो गई…..उसकी नजरें फिर ऊपर नहीं उठी….मैं चाह कर भी कुछ नहीं कह पाई…..
मैं नीचे अपने कमरे में आकार सोचने लगी कि मैं इसलिए हँसू कि उसने मेरे साथ वो कुछ नहीं किया जो वास्तव में होना चाहिए था या रोऊँ कि अब वो मुझे नहीं देख रहा… मैं सोच रही थी कि क्या मैंने उसे चांटा मार कर सही किया ….आखिर किसी को कुछ कह भी नहीं सकती थी …उसने मेरे साथ किया क्या था… जो कुछ किया ..ऊपर से ही ….., मेरी पैंटी तक नीची नहीं की थी उसने…. फिर उसके करने से ज्यादा मुझे हवा में उड़ना क्यों याद आता है बार बार, क्यों अच्छा लगता है वो उड़ना …. क्या वो गलत था या अब मैं गलत हूँ……सोच सोच कर सर फटने लगा है…..आह…
Hot says
Hey grils bhabhi jisko bhi mere sath enjoy karna hai to mujhe Snapchat me msg kre meri id hotbaat97 pe