Gandu Ladka Chudai Kahani
मेरा नाम अखिलेश चौबे है। मुझे कॉलेज में किसी ऐसे विषय में एडमिशन लेना था जिसमें जल्दी नौकरी मिल सके। मुझे किसी ने होटल मेनेजमेन्ट में दाखिला लेने की सलाह दी। मैंने इस हेतु कुछ लोगों की राय भी ली। किसी ने कहा- भैया जी, मत जाना इस लाइन में, बहुत कठिन है, यह ठीक है कि नौकरी तो तुम्हें पढ़ाई पूरी करने से पहले ही मिल जायेगी, वो भी फ़ाईव स्टार होटल में. Gandu Ladka Chudai Kahani
तो मैंने फ़ैसला कर लिया कि मुझे इसी लाईन में जाना है। मुझे मेरठ में प्रवेश मिल गया। मुझे विज्ञान विषय का होने से बहुत फ़ायदा हुआ। हॉस्टल बहुत ही मंहगा था। सो मैंने एक किराये का कमरा ढूंढ लिया। जल्दी ही मेरी दोस्ती बहुत से छात्रों से हो गई पर लड़कियों को छोड़ कर।
तीन चार माह के पश्चात मेरी दोस्ती एक लोकल लड़के से हो गई। वो देखने में किसी अच्छे परिवार का लगता था। बहुत ही सुन्दर दुबला पतला, लम्बा लड़का था। पास ही रहता था। पैसे वाला लगता था। प्रशांत नाम था उसका. मेरे कमरे के सामने ही एक पार्क था मैं अक्सर शाम को वहाँ जा कर बैठ कर सिगरेट या कुछ कुछ टिट बिट्स खाता रहता था।
एक दिन वो मेरे समीप आ कर बैठ गया और मुझसे लाईटर मांगा। मैंने उसे देखा, वो मुझे भला सा लगा। मैंने उसे लाईटर दे दिया। उसने सिगरेट जलाने के बाद मुझे भी सिगरेट ऑफ़र की। फिर धीरे धीरे बातचीत का दौर शुरू हुआ। उसने भी कॉलेज में नया नया प्रवेश लिया था। वो बहुत ही संतुलित हंसी मजाक करता था। मुझे तो वो पहली नजर में ही बहुत अच्छा लगा। इस तरह हमारी दोस्ती की शुरूआत हुई।
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एक दिन उसने पूछ ही लिया- कहाँ रहते हो अखिलेश?
“वो सामने, किराये का कमरा ले रखा है।”
“साथ में और कौन कौन है?”
“साथ में?. अरे भई, अकेला हूँ. मेरे साथ और कौन होगा?”
और एक दिन उसने मेरा कमरा भी देखा। मेरा टीवी, मेरा कम्प्यूटर वगैरह।
जब वो पार्क में घूमने आया करता था तो उसके हाथ में अक्सर एक पत्रिका हुआ करती थी। एक बार मैंने उससे वो किताब मांग ली। उसमे लड़कियों की अर्धनग्न तस्वीरें थी. बहुत ही उत्तेजक पोज थे. मैंने तो ऐसी मेगजीन पहली बार देखी थी।
“पसन्द आ गई क्या?”
“मेगजीन जोरदार है यार. क्या झकास फोटू हैं।”
इसके बाद वो वैसी मेगजीन रोज लाने लगा। मैं उसे बड़े चाव से देखता और उत्तेजित भी हो जाता था। मेरा लण्ड तक खड़ा हो जाया करता था। एक बार उसके हाथ में कोई किताब थी।
मैंने जिज्ञासावश पूछ ही लिया- प्रशांत, अब यह किताब कैसी है.?
“भोसड़ी के, किताब है और क्या?”
उसके ऐसे लहजे से मैंने आगे नहीं पूछा।
“देखेगा क्या?. लण्ड चूत की किताब है. साला लण्ड फ़न्ने खां हो जायेगा !”
वो आरम्भ से ही इसी तरह की भाषा बोलता था।
“क्या इसमें लण्ड-चूत की फोटो है?”
“अरे बाबा ले जा, इसे कमरे में देखना, ध्यान रहे किसी चूतिये के हाथ ना पड़ जाये।”
मैं थोड़ा सा सतर्क हो गया, क्या है इस किताब में भला. मैंने चुप से वो किताब अपनी कमीज में डाल कर बटन बन्द कर लिये। मुझे तो इस किताब को पढ़ने की जल्दी थी। मैंने तुरन्त घर आकर अपने कपड़े बदले और पजामा पहन कर बिस्तर पर लेट गया।
किताब को खोला तो वो कोई कहानी सी लगी। मैंने उसे पढ़ना शुरू किया. उसमें तो खुले तौर लण्ड, चूत, चूचियाँ जैसी भाषा का प्रयोग किया गया था। पढ़ते पढ़ते जाने कब मेरा लण्ड सख्त होने लगा। मेरा हाथ लण्ड पर अपने आप ही पहुंच गया। पढ़ते पढ़ते कड़क लण्ड पर धीरे धीरे हाथ ऊपर-नीचे चलने भी लगा था।
तभी जैसे मेरे लण्ड से आग सी निकल पड़ी। मेरा वीर्य लण्ड से निकल पड़ा, मेरा पजामा गीला हो उठा। उफ़्फ़. ना जाने कितना माल निकला होगा। लगा पजामे में कीचड़ ही कीचड़ हो गया था। मैं जल्दी से उठा और अपना पजामा बाल्टी में डाल कर भिगो दिया।
फिर उसे हाथ से यूँ ही रगड़ कर साफ़ कर लिया और पंखे के नीचे कुर्सी पर सूखने को डाल दिया। समय देखा तो आठ बज रहे थे। मैंने जल्दी से जीन्स पहनी और भोजन के लिये पास के भोजनालय में चला गया। पर भोजन के बाद भी, मुझे उस किताब को पूरी पढ़ने के लिये बेताबी थी। रात को मैं फिर किताब खोल कर पढ़ने लगा। एक बार फिर जोर से मेरा वीर्यपात हो गया।
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“पढ़ी किताब ?. कैसी लगी?”
मुझे शरम सी आ गई। क्या कहता उसे. कि वाकई किताब फ़न्ने खां थी।
“अरे मजा आया कि नहीं. बता तो?”
“जोरदार थी यार.”
“माल वाल निकला या नहीं?”
मैं यह बात सुन कर झेंप गया। फिर भी वो लड़का ही तो था.
“दो बार निकल गया यार. नहीं नहीं अपने आप ही निकल गया. मैंने कुछ नहीं किया था।”
“अरे तो भई कर लेता ना. घर का ही तो मामला है, कुछ लगता थोड़े ही है।”
मुझे उसकी बात पर हंसी आ गई। वो मुझे कई दिनों तक किताबें देता रहा। एक दिन उसके हाथ में एक पेनड्राइव थी।
“देखेगा इसे. लड़कियों की मस्त चुदाई है इसमें।”
“क्या. कैसे.?”
“इसे ब्ल्यू फ़िल्म कहते हैं. इसमें चुदाई के सीन है. ले ले जा. देखना इसे.”
और सच में, मेरी कल्पनाओं से परे, उसमें अंग्रेज लड़की-लड़कों की भरपूर चुदाई थी। उसे देख कर मैंने खूब मुठ्ठ भी मारी और बहुत सा वीर्य भी निकाला। मुझे अपना वो दोस्त प्रशांत बहुत प्यारा लगने था। एक बार वो एक शराब की आधी बोतल ले आया और बोला- चल, आज तेरे कमरे पर चलते हैं. पियेगा?
“शराब है ना..?”
“रम है रम. बढ़िया वाली है. कैंटीन से मंगवाई है।”
मैंने कभी शराब नहीं पी थी तो सोचा एक बार तो चख ले. फिर कभी हाथ भी नहीं लगाऊँगा। हम दोनों कमरे में आ गए।
“नीचे ही दरी बिछा दे. मैं अभी आया।”
मैंने पलंग से बिस्तर हटा कर नीचे लगा दिया। फिर उसके पास एर लकड़ी का पाटिया लगा कर गिलास उस पर रख दिया। फिर मैंने जाकर स्नान किया और अपने ढीले ढाले वस्त्र पहन कर वहीं नीचे बैठ गया। कुछ ही देर में प्रशांत आ गया, उसके हाथ में एक पेकेट था जिसमें एक भुना हुआ लाल रंग का चिकन था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उसने एक पेनड्राइव निकाली और लगा कर बैठ गया। हम लोग धीरे धीरे शराब पीते रहे और लड़कियों की बातें करने लगे। पहले तो शराब कुछ कड़वी सी लगी, कोई ऐसा विशेष स्वाद नहीं था कि अच्छा लगे। टीवी पर चुदाई के सीन चल रहे थे। फिर हमारी बातें धीरे धीरे समाप्त हो गई और हमारा ध्यान उस चुदाई के सीन पर चला गया।
मेरा तो लण्ड बेकाबू होने लगा था। ढीले ढाले कपड़ों में तो वो और तम्बू बना तमाशा दिखा रहा था, मेरे लण्ड का खड़ा होना, फिर उसे छुपाना। मैंने अपना हाथ लण्ड के ऊपर रख दिया ताकि वो उभरा हुआ नजर ना आये। पर प्रशांत यह सब देख रहा था। दारू भी समाप्त हो गई। फ़िल्म भी समाप्त हो चली थी।
प्रशांत उठा और मेरे लण्ड पर हाथ मारते हुये बोला- अब जाकर मुठ्ठी मार ले. मजा आयेगा। मैं तो चला.
मेरा लण्ड एक मीठी सी कसक से भर उठा था।
प्रशांत कल मेरी तरफ़ से शराब होगी.
“अब तू रहने दे. मेरे पास कैंटीन की शराब की बोतलें है. मैं ले आऊँगा। बाय बाय. मुठ्ठ मारेगा ना. हा हा हा. निकाल दे माल.”
फिर उसने मेरे चूतड़ दबा दिए-. साले के मस्त चूतड़ हैं. बाय बाय.
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उसके चूतड़ दबाने से मुझे एक झुरझुरी सी आई। मेरे दिलो दिमाग में कोई और नहीं आया, बस प्रशांत ही था तो उसकी गाण्ड को मन में रख कर मुठ्ठ मार लिया। वो पैदल ही अपने घर की तरफ़ रवाना हो गया था। प्रशांत दूसरे दिन भी अद्धा ले आया था और साथ में एक चिकन भी। कुछ काजू, किशमिश और नमकीन भी थी।
पहले रात होने तक हम दोनों पार्क में घूमते रहे फिर लगभग आठ बजे कमरे में आ गये। रोज की भांति मैंने स्नान किया और अपने ढीले ढाले वस्त्र पहन कर आ गया। फिर प्रशांत भी स्नान करने चला गया। स्नान के पश्चात उसने तौलिया लपेट लिया और चड्डी को उसने पंखे के नीचे सुखाने डाल दिया।
ऊपर बदन पर वो कुछ नहीं पहना था, बस एक तौलिया लपेटे हुये था। उसने फिर से नई विडियो लगा दी थी और हमारे पेग चलने लगे। आज हमने लकड़ी का पाटिया नहीं लगाया था। अब हम अपनी दोनों टांगें फ़ैला सकते थे। यह ब्ल्यू फ़िल्म कुछ अलग थी।
इसमे तो लड़कों के मध्य गाण्ड मराने का दृश्य चल रहे थे। हमारे दोनों के लण्ड तन्ना उठे थे। प्रशांत का तो सख्त लण्ड तौलिये में से बाहर नजर भी आ रहा था। उसने अपना खड़ा लण्ड जरा भी छुपाने की कोशिश नहीं की। पर मेरा पजामा तो तम्बू बन कर तना हुआ था। मैंने अपना रुमाल उस पर डाल लिया था। दोनो नशे के हल्के सरूर में थे।
टीवी पर लड़के की गाण्ड मारते हुये देख कर मुझे भी प्रशांत सेक्सी लगने लगा। कैसी होगी प्रशांत की गाण्ड? एक बार साले की मार दूँ तो मजा जाये। मेरा मन भी उसका तना हुआ लण्ड पकड़ने को मचलने लगा। जबकि प्रशांत की वासना भरी निगाहें मेरे लण्ड पर पहले से ही थी। बिस्तर पर हम दोनों पास पास बैठे थे, इसी नजदीकी का फ़ायदा उठाते हुए उसने मेरा रुमाल मेरे लण्ड से हटा दिया। और अपने हाथ उससे पोंछने लगा।
“अरे क्या बात है यार. तेरा लौड़ा तो फ़न्ने खां हो रहा है?”
उसके कहने से मैं एक बारगी शरमा सा गया और अपने लण्ड पर हाथ रख लिया।
“अरे उसे फ़्रेश हवा तो लेने दे. देख साला कैसा लहरा रहा है।”
मेरा हाथ हटा कर उसने अपने हाथ से उसे हिला डाला। मेरे लण्ड में एक मीठी सी लहर उठ गई। मेरा मन भी विचलित हो रहा था। पर मैंने प्रशांत को कुछ नहीं कहा।
“तेरा लण्ड तो तौलिये से बाहर झांक रहा है. लगता है. बहुत अकड़ा हुआ है।”
“तेरा ज्यादा कड़क लग रहा है, जरा देखूँ तो.”
“अरे रे. मत कर यार.”
उसने मेरे लण्ड को अपनी अंगुलियों से हिलाते हुये कहा. यह तो बिस्तर में भी छेद कर देगा। मुझे मौका मिला और हिम्मत करते हुये उसके तौलिये के भीतर हाथ डाल दिया। उफ़्फ़्फ़ तौबा. मुलायम चमड़ी, फिर तना हुआ डण्डा. मुझसे रहा नहीं गया। मैंने अपने हथेली में उसका लण्ड बन्द कर लिया।
“प्रशांत यार. यह तो गजब की बला है।”
वो मेरे और पास आ गया और अब उसने भी अपनी मुठ्ठी मेरे लण्ड पर कस ली थी। दोनों के कड़कते लण्ड जाने क्या कहर ढाने वाले थे। उसने मेरे पैजामे का नाड़ा खोल कर उसे नीचे सरका दिया। मेरा लण्ड बाहर पंखे की हवा में लहराने लगा। मुझे उसकी यह हरकत दिल को छू गई।
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उसने बड़े ही कोमलता से मेरे लण्ड को धीरे धीरे दबाना शुरू कर दिया। मेरी आँखें कुछ वासना से और कुछ शराब से गुलाबी हो उठी थी। मुझमें एक तेज उत्तेजना का संचार होने लगा था। मैं उसके लण्ड को मुठ्ठी में जकड़ कर उसे ऊपर नीचे करने लगा।
वह भी मेरे लण्ड को हिला हिला कर हाथ ऊपर नीचे मारते हुये मुझे मदहोश करने लगा। कितनी देर तक हम मुठ्ठ मारने की प्रक्रिया करते रहे, पता ही ना चला और फिर प्रशांत ने एक अंगड़ाई सी ली और उसने अपना पांव खोल दिया और अपना वीर्य जोर से छोड़ दिया। तौलिये ने सारे वीर्य को सोख लिया।
तभी उसका हाथ भी मेरे लण्ड पर घुमा घुमा कर वो चलाने लगा, उस समय मुझे अपना वीर्य भी निकलता सा लगा। मैंने तुरन्त उसका तौलिया खींचा और उस पर अपना वीर्य तीर की भांति निकालने लगा। वो मुझे देख कर मुस्कराने लगा। मुझे भी अब झेंप सी आ गई. यह क्या कर लिया मैंने।
“कैसा निकला माल. साला सारा का सारा दम निकाल दिया।”
फिर हंसते हुये बोला-. अखिलेश अब चलता हूँ. बहुत मजे कर लिये.
“मजा आता है ना यार. कुछ करना ही नहीं पड़ता है.”
“अरे देखता जा यार. आगे भी मजे करेंगे. कल आता हूँ.”
प्रशांत ने अपने आधे सूखे कपड़े पहन लिये और बाय कहकर चलता बना। अगले दिन प्रशांत एक नई विडियो लाया था। वो भी समलिंगी लड़कों की विडियो थी। रोज की तरह हम दोनों ने स्नान किया। मैं तो आज लुंगी में ही था। उसे भी मैंने एक लुंगी दे दी। मुझे लगा कि कुछ मामला हुआ तो ये लुंगियाँ उतार फ़ेंकेंगे। फ़िल्म के साथ साथ हमारी फ़िल्म भी आरम्भ हो गई थी। उसने कुछ ही देर के बाद अपनी कमीज उतार दी थी। मैंने भी अपनी बनियान उतार दी।
“सुन अखिलेश, आज कुछ ओर मजा करते हैं.. तू मेरी पीठ पर गुदगुदी कर. ठीक है ना?”
“जैसा तू कहे. चल उल्टा लेट जा।”
प्रशांत जल्दी से उल्टा लेट गया और मैं उसकी पीठ को सहलाने लगा। मेरा मन फ़िल्म देख देख कर कुछ करने को होने लगा था। मैंने उसकी लुंगी ढीली कर दी और उसे नीचे सरका दी। उसकी चिकनी गाण्ड मेरे सामने आ गई थी। मैंने उसकी दोनों टांगें खोल दी और उसके चूतड़ों को दबाने लगा।
मेरा लण्ड उसकी गाण्ड देख देख कर बेकाबू होने लगा था। मैंने उसकी गाण्ड की दरार पर अंगुली ऊपर नीचे रगड़ी। उसे बहुत आनन्द आने लगा था। उसकी गाण्ड का सिकुड़ा हुआ छेद और उस पर झुर्रियां. उसे कुरेदने में उसे बहुत सुख मिल रहा था। उसके मुख से सिसकारी भी निकल रही थी।
उसकी गाण्ड के छेद का छल्ला बार बार अन्दर-बाहर हो कर खुल और बन्द हो रहा था। मैंने दारू के गिलास में अपनी अंगुली भिगो कर उसे उसकी गाण्ड में धीरे से डाल दी। उसने भी प्रत्युत्तर में मेरा लण्ड जोर से दबा दिया। तभी उसने अपना सर उठा कर मेरा खुशबूदार लण्ड अपने मुख में भर लिया। मुझे एकदम गीला गीला सा लगा। मुझे लगा कि उसके कड़क लण्ड का स्वाद मैं भी ले लूँ।
“प्रशांत, सीधा हो जा, मुझे भी तेरा लण्ड चूसना है. देख फ़िल्म में भी तो वो चूस रहा है।”
प्रशांत सीधा हो गया। उसका लण्ड बहुत ही कड़क रहा था। मैं उसकी बगल में करवट लेकर लेट गया। उसने अपना लण्ड मेरे मुख के समीप कर दिया और मैंने अपना लण्ड उसके मुख के समीप कर लिया। मैंने उसका लण्ड अपने मुँह में ले लिया। बहुत अजीब सा लगा था।
गोल गोल नरम सुपारा. फिर उसका लण्ड का डण्डा. मैंने उसे दबा कर चूसना शुरू कर दिया। उसकी तो चोदने जैसी गाण्ड चलने लगी और उसने तो जैसे धक्का मारना आरम्भ कर दिया। उसके लण्ड चूसने से मेरा शरीर पिघलने लगा था, जैसे अकड़न सी भर गई थी।
“प्रशांत, मेरा तो निकलने वाला है. ओह्ह्ह. बस कर.”
“मेरा भी अखिलेश. अरे आह.”
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तभी मेरा वीर्य उसके मुख में ही निकल गया। मैंने लण्ड को उसके गले तक दबा दिया। तभी प्रशांत का भी वीर्य मेरे गले के पास जोर से निकल गया। ना चाहते हुए भी उसका वीर्य मेरे गले में उतरता चला गया। कुछ देर तो हम दोनों ही निढाल से वैसे ही पड़े रहे।
फिर हम दोनों दीवार का टेक लगा कर विश्राम करने लगे। धीरे धीरे हम दोनों ने शराब समाप्त की, चिकन खाया. पेट भर गया तो जान आई। आधे घण्टे तक सुस्ताने के बाद हम फिर तरोताजा थे। तभी मैंने अपने मन की बात प्रशांत से कह दी।
“तेरी गाण्ड तो बड़ी मस्त है यार. मन तो कर रहा था की तेरी गाण्ड मार लूँ !”
प्रशांत हंस पड़ा- मेरी भी इच्छा यही थी कि एक बार यार अपन दोनों सुहागरात तो मना लें।
“अरे चल ! सुहागरात तो दुल्हन के साथ मनाते हैं !”
“तो क्या हुआ. मैं दुल्हन बन जाता हू और तू मेरी मार देना।”
“साला, चुदेगा क्या.?”
“अरे चल यार मान जा ना. यह लुंगी मैं ओढ़ लेता हूँ, और तू मुझे लड़की समझ कर चोद डाल।”
उसने लुंगी को अपने सर पर डाल कर घूंघट सा बना लिया और अपनी गाण्ड ऊंची करके घोड़ी बन गया। मेरे मन में लड्डू फ़ूटने लगे। प्रशांत की गाण्ड को मन में रख कर मैं तो रोज मुठ्ठ मारता था, आज तो मौका ही दे दिया है उसने। लण्ड मेरा अपने आप ही फ़ूल कर मोटा हो गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“अरे भोसड़ी के. तेल डाल कर गाण्ड मारना.”
“ओह्ह. हाँ. अभी ले !”
मैंने तेल की शीशी ली और अपने लण्ड पर तेल लगाया और फिर उसकी गाण्ड के छेद पर भी लगा दिया। मुझे लगा कि उसे गाण्ड मरवाने की जल्दी थी। वो इस बात से बहुत ही उत्तेजित था कि अब उसकी गाण्ड चुदेगी। उसका नीचे लटका हुआ लण्ड गजब का तन्ना रहा था।
मैंने उसका तन्नाया हुआ लण्ड पकड़ा और अपना लण्ड उसकी गाण्ड से चिपका दिया। तेल की चिकनाई के कारण मेरा लण्ड थोड़ी सी कोशिश के बाद उसके गाण्ड के छेद में फ़ंस गया। बस फिर क्या था, हल्के से जोर से लण्ड अन्दर सरकने लगा। प्रशांत भी प्रसन्न हो गया।
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मजा आ गया यार अखिलेश. साले भड़वे ! तूने तो मेरी गाण्ड मार ही दी. क्या आनन्द आ रहा है. मार साले मार.”
मैंने लण्ड को अन्दर-बाहर करते हुए उसकी गाण्ड पेलनी आरम्भ कर दी, बिल्कुल ब्ल्यू फ़िल्म में जैसे मारते हैं, वैसे ही ! मैंने उसका कड़क लण्ड मसलते हुये उसकी मारना चालू रखा। बहुत कसा छेद था। कुछ सी देर में मेरे लण्ड का माल निकल गया।
“यार, अखिलेश बहुत मजा आता है यार. तू भी गाण्ड मरा कर देख ले.”
मेरा मन भी ललचा गया। थोड़ा सा आराम करने के बाद और और एक पेग शराब और पीने के बाद हम दोनों फिर से तैयार थे। इस बार मेरी गाण्ड चुदनी थी। प्रशांत की ही तरह मैंने भी घोड़ी बन कर उसे चोदने की दावत दी। उसने पहले तो मेरी गाण्ड को बहुत थपथपाया. दबाया.
फिर जीभ से चाटा भी। फिर मेरे चूतड़ों के दोनों पट चीर कर उसने जीभ से मेरी शैम्पू की खुशबू से भरपूर मेरी गाण्ड चाटी। जीभ को छेद में घुसाया भी। उफ़्फ़ बहुत आनन्द आया. फिर उसने अपनी अंगुली से मेरी गाण्ड में तेल लगा कर चोदा। मेरी गाण्ड अन्दर तक चिकनी हो गई थी। थूक और तेल का मिश्रण छेद को बहुत चिकना कर रहा था।
तभी उसका फ़ूले हुए सुपारे को मैंने अपनी गाण्ड की छेद पर महसूस किया। नरम सा, गरम सा. कठोर और दमदार। फिर उसका लण्ड मेरी गाण्ड को ढीला छोड़ने पर चाकू की तरह अन्दर घुस गया। उसने अब धीरे धीरे लण्ड को अन्दर-बाहर करके गाण्ड को मारनी शुरू कर दी। बहुत मीठी मीठी सी अनुभूति होने लगी थी।
“पूरा घुसा दे रे प्रशांत. चोद दे गाण्ड को यार !”
“ना ना! धीरे धीरे. मुझे तो बहुत मजा आ रहा है. साली मां की भोसड़ी. क्या कसी गाण्ड है !”
“अरे दे ना झटका. फ़ाड़ दे साली को. बहुत उतावली थी रे ये गाण्ड लौड़ा लेने को. मार साली हरामी को.”
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प्रशांत अपनी आँखें बन्द किए हौले हौले से मेरी गाण्ड मार रहा था। मुझे बहुत ही आनन्द आ रहा था। मेरा लण्ड फ़ूल कर जैसे फ़टने लगा था। उसका लण्ड जने कब मेरी गाण्ड में पूरा उतर चुका था और भरपूर आनन्द दे रहा था। तभी प्रशांत झड़ने लगा। उसने अपना लण्ड दबा दबा कर अपने वीर्य को पूरा अन्दर निकाल दिया। फिर वो मेरी पीठ पर झुक सा गया। उसका लण्ड सिकुड़ कर अपने आप ही बाहर सरकने लगा था। फिर प्रशांत ने मेरे अकड़े हुये लण्ड को मुठ्ठी मार कर झड़ा दिया।
मैंने अपने जीवन में पहली बार गाण्ड मरवाई थी, मुझे इसमें बहुत आनन्द आया था। लगा कि यार लोग लड़कियों के पीछे यूँ ही मरा करते हैं. एक छेद ही तो चाहिये माल निकालने के लिये। उसके बाद मैं जब तक मेरठ में रहा, मैंने तो बहुत मज़ा किया प्रशांत के साथ। प्रशांत भी बहुत खुश था इस सेक्स से. इस बारे में कोई नहीं जानता था. हम दोनों बिल्कुल सुरक्षित थे. हम दोनों कभी कभी तो मेरठ से दिल्ली, आगरा, हरिद्वार, लखनऊ आदि शहरों में भी घूम आते थे और वहाँ पर हनीमून मनाते थे।