Hot Maa Yoni Chudai
नमस्कार दोस्तों, आप सभी का फिर से स्वागत है. दोस्तों आपने कहानी के पिछले भाग “बेटे के लुल्ली को लौड़ा बनाया माँ ने 1“ में आपने पढ़ा होगा की प्रतिमा अपने बेटे रिशु के साथ घर में रहती है और उसका पति अतुल दुसरे शहर में काम करती है. और एक रोज प्रतिमा को अपने बेटे का लंड दिख जाता है, जिससे उसे अपने बेटे से ही चुदने की वासना जग जाती है, अब आगे- Hot Maa Yoni Chudai
प्रतिमा ड्राइंग रूम में आती है तो रिशु सोफे पर बैठे बैठे टीवी के चैनल चेंज कर रहा था. उसकी माँ सोफे पर उसके पास धम्म से बैठ जाती है. “वोही पुरानी घिसी पीटी फिल्मे आ रही है सभी चैनल्स पर” रिशु चैनल चेंज करते बिना अपनी माँ की और देखते बोलता है.
“कोई कॉमेडी लगी है क्या? मेरा कॉमेडी देखने का मूड है, प्लीज कोई एक्शन जा रोमांटिक मूवी मत लगाना” प्रतिमा बेटे से सटती हुई बोलती है.
“हुन्ह्ह्हह… जी सिनेमा पर ‘गोलमाल’ लगी है”.
रिशु को अपनी बगल में अपनी माँ के जिस्म से निकलती तपिश महसूस होती है. पेंट में उसका थोडा सा नर्म पड चूका लंड एक ही झटके में फिर से अपने रूप में लौट आता है. रिशु फिल्म लगाकर सोफे की पुश्त से सर टिका लेता है और अपनी टाँगे उठाकर अपने पाँव सामने पड़े टेबल पर रख देता है.
शायद उसने पहले सोचा नहीं था मगर ऐसा करने से उसका अकड़ा हुआ लंड उभर कर सामने आ जाता है. उसकी पेंट में बना हुआ तम्बू जिसमे कुछ हिल डुल रहा था, प्रतिमा की नज़रों के सामने था. प्रतिमा थोडा सा घूम कर रिशु के कंधे पर सर रख देती है और अपनी टाँगे मोड़ कर अपना वजन रिशु के ऊपर डाल देती है.
वो अपना एक हाथ पीठ पीछे घुमाकर रिशु के कंधे पर और दूसरा सामने उसकी गोद में उसके खड़े लंड से हलकी सी दूरी पर रख देती है. रिशु का लंड अपनी मम्मी के हाथ को इतने नजदीक पाकर सांप की तरह फन उठा फुफकारने लगता है जैसे किसी को डसने के लिए बिलकुल तैयार हो.
यहाँ रिशु का लंड डसने के लिए तैयार था वहीँ उसकी माँ डसवाने के लिए बिलकुल तैयार थी. दोनों माँ बेटे टीवी देख रहे थे. यहाँ रिशु का रुख सीधा टीवी की और था वहीँ प्रतिमा का रुख रिशु की और था. वो उसके कंधे पर सर टिकाए मुंह घुमाकर टीवी देख रही थी. दोनों टीवी देख रहे थे या फिर टीवी देखने का नाटक कर रहे थे.
अगर टीवी देख भी रहे थे तो उनका ध्यान टीवी से ज्यादा एक दुसरे में था. रिशु अपने कंधे में अपनी मम्मी के भारी मुम्मो को गड़ता हुआ महसूस कर रहा था. वो मन ही मन में ख्वाइश कर रहा था कि उसकी माँ उसका लंड पकड़ ले. प्रतिमा ने उसका लंड तो नहीं पकड़ा मगर उसका हाथ थोडा निचे को जरूर हो गया और अब खतरनाक हद तक लंड के करीब था.
रिशु को लगा जैसे उसकी माँ उसे तडपा रही है. उसका लंड और भी अकड़ रहा था जैसे वो प्रतिमा के हाथों में जाने के लिए तड़प रहा था. प्रतिमा धीरे धीरे से रिशु का पेट सहला रही थी. रिशु बैचेनी में धीरे धीरे जानबूझकर अपना कन्धा हिलाता तो वो प्रतिमा की छाती को दबाता, सहलाता.
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रिशु का दिल कर रहा था वो उसकी छाती को अपने हाथ में पकड़ कर उन्हें खूब सहलाए, दबाए,चूमे,उन्हें मसल मसलकर लाल कर दे. मगर वो सीधे सीधे अपनी माँ पर हाथ डालने से डरता था. कुछ देर यूँ ही बैठे रहने के बाद रिशु ने अपना हाथ अपनी माँ के पेट पर रखा और टीशर्ट के छोटे होने के कारण उसका जो पेट नंगा था उसे धीरे से सहलाया.
प्रतिमा के जिस्म में हल्का सा कम्पन हुआ जिसे रिशु ने भी महसूस किया. मगर उसने हाथ नहीं हटाया. वो अपनी माँ की नर्म मुलायम त्वचा को महसूस करता पहले की तरह सहलाता रहा. उधर रिशु की शुरुआत से प्रतिमा ने भी आगे बढ़ने का फैसला किया. उसका हाथ धीरे धीरे निचे जाने लगा. रिशु की धड़कने बढ़ने लगी.
कुछ ही पलों में प्रतिमा की हथेली का पिछला भाग रिशु के लंड के सुपाड़े को छू रहा था. जैसे ही प्रतिमा की हथेली से रिशु का लंड टच हुआ, रिशु अपनी ऊँगली से अपनी माँ की नाभि कुरेदने लगा. दोनों की सांसें गहरी हो रही थी. यहाँ रिशु का लंड बुरी तरह से झटके खा रहा था वहीँ प्रतिमा की चूत रस से सरोबर हो चुकी थी और उसकी कच्छी और झांगें भीगती जा रही थी.
उसके निप्पल अकड़ चुके थे और रिशु के कंधे पर चूभ रहे थे. प्रतिमा थोडा सा ऊपर को उठती है तो रिशु को उसकी गर्म सांस अपनी गर्दन पर महसूस होती है. दोनों माँ बेटे बुरी तरह से उत्तेजित थे. माँ अपने होंठ रिशु की गर्दन से सटा देती है. बेटा सिसक उठता है उसकी एक ऊँगली माँ के पायजामे की इलास्टिक में कमर के एक सिरे से दुसरे सिरे तक पेंटी को टच करती घुमती है.
इस बार माँ कराह उठती है. अपनी टांग मोड़ कर बेटे के लंड को अपने घुटने से रगड़ने लगती है. बेटा कच्छी के उपर से अपनी माँ की चुत से थोडा ऊपर उंगल से गोल गोल घेरे बनाता है और अपनी बाजु माँ की गर्दन के पीछे से घुमाकर उसके कंधे से उसके मुम्मे के बेहद करीब रख देता है.
माँ अपने मुम्मो और चूत के इतने करीब बेटे की उँगलियाँ पाकर मदहोश होने लगती है. वो एक तरफ घुटने को आगे बढाती है और दूसरी तरफ से अपनी हथेली को और बेटे के लंड को दोनों के बीच दबा देती है. बेटा कराह उठता है. माँ बेटे की गर्दन को चूमती हुई उस पर अपनी जिव्हा रगडती है.
बेटे का हाथ सीने पर निचे होता है और मुम्मो की घाटी में उसकी उँगलियाँ दस्तक देने लगती है. माँ हथेली का दवाब देकर घुटने को धीरे धीरे ऊपर निचे करने लगती है. बेटा लगातार कराहने लगता है. वो पायजामे की इलास्टिक को हटाता है. उसकी उँगलियाँ अन्दर तक घुसती जाती हैं और वो अपनी माँ की जांघ को सहलाता है.
दुसरे हाथ से मुम्मे के उपरी हिस्से पर उँगलियों से लकीरे खींचता है. माँ अपने होश गंवाने लगती है, ऊँचे ऊँचे सिसकते हुए अपने घुटने को तेज़ और तेज़ बेटे के लंड पर रगडती है. बेटा माँ के सीने उपर उँगलियाँ और नीचे लाता है. अब उसकी उँगलियाँ मुम्मो के गिर्द गुलाबी घेरे के पास तक पहुँच चुकी थी.
कामौंध में डूबी माँ के निप्पल बेटे की उँगलियों को अपने इतने नज़दीक पाकर और भी अकड़ जाते हैं. इससे वो उसके हाथ में पहुँचने को बेताब हो बेटे का हाथ पायजामे के अन्दर जांघ के जोड़ से होता हुआ जांघ के मध्य तक जा रहा था और जब भी वो ऊपर आता तो हर बार उसका हाथ रस से भीगी कच्छी पर चूत के करीब और करीब होता जाता.
माँ बेटे की गर्दन को हलके से दांतों से काटती है. बेटा होशो हवास खो कर माँ के मुम्मे को अपनी हथेली से ढक देता है मगर उसे दबाता नहीं है. माँ अपना सीना उभार अपने बेटे के हाथ में अपना मुम्मा धकेलती है जैसे उसे दबाने के लिए आमंत्रित कर रही हो. बेटा हथेली को कस कर दबा देता है.
माँ उछल पडती है और हथेली को सीधा करके लंड को पकड़ लेती है और अपने हाथ को तेज़ी से आगे पीछे करने लगती है. बेटा मुम्मे को मसलता हुआ माँ के पायजामे के अन्दर अपने हाथ को माँ की चूत की तरफ लाता है जैसे ही बेटे का हाथ बुरी तरह भीगी हुई कच्छी के ऊपर से अपनी माँ की चूत को छूता है तो माँ बेटे को लगता है जैसे वो नंगी चूत को छू रहा हो.
“आह्ह्हह्ह्ह्ह……” माँ के मुख से चीख निकलती है और उसका बदन जोर जोर से हिलने लगता है. माँ सखलित हो रही थी वो चीखती हुई बेटे के लंड को जोर से पकड़ कर खींचती है, मसलती है, तो बेटा भी माँ के मुम्मे को मुट्ठी में भींच पूरी चूत को कच्छी के ऊपर से हथेली में समेट लेता है. माँ का बदन ऐंठने लगता है वो ऊपर को उठती है और अपने नम होंठ अपने बेटे के होंठो पर रख देती है.
“मम्मम्मम्ममम्मी…..” बेटा इस प्रहार को सहन नहीं कर पाता और पायजामे में उसका लंड वीर्य की फुहारे छोड़ने लगता है. “बे…..टा…..” माँ बेटे के होंठो पर होंठ दबाती है, सिसकती है. माँ बेटा दोनों एक दुसरे को आलिंगन में भर लेते हैं. दोनों ने आज उस चरम सुख को प्राप्त किया था जिसके बारे में लोग सिर्फ सुनते हैं मगर उसे हासिल नहीं कर पाते.
सच में जैसा प्यार एक माँ अपने बेटे को दे सकती है वैसा प्यार एक बेटे को कोई और नहीं दे सकता. प्रतिमा और रिशु सख्लन के बाद शांत पड गए थे. दोनों में से कोई भी हिलडुल नहीं रहा था. सख्लन के पश्चात् थकान और संतुष्टि से दोनों कुछ ही देर में ऊँघने लगे.
कोई एक घंटा बीत जाने के बाद प्रतिमा की आँख खुली. रिशु कुछ देर पहले ही जागा था. प्रतिमा अधमुंदी आँखें ऊपर उठाती है और रिशु की आँखों में देखती है. हालाँकि नींद के बाद वो थोडा सा सुस्त पड गया था मगर प्रतिमा उसकी आँखों में अपने लिए असीम प्यार के साथ साथ संतुष्टी की भावना को साफ़ साफ़ देख सकती थी.
प्रतिमा उठने की कोशिश करती है तो उसे एहसास होता है उसके बेटे का हाथ अभी भी वहीँ हैं यहाँ वो उसके सख्लन के समय थे. प्रतिमा बेटे की आँखों में देखकर मुस्कराती है और धीमे से उसका हाथ जो उसके मुम्मे पर था उसको हटाती है और फिर अपने पायजामे में हाथ डाल रिशु के हाथ को जो उसकी चूत को भीगी कच्छी के ऊपर से दबाए हुए था, बाहर निकालती है.
“सॉरी मम्मी….” रिशु को लगा शायद उसे अपना हाथ वहां से पहले हटा लेना चाहिए था. मगर प्रतिमा उसकी बात की और कोई धयान नहीं देती. वो रिशु की उँगलियों को देखती है जो उसकी चूत के रस से भीगी हुई थीं. उसकी चूत ने कितना रस बहाया होगा उसका अंदाज़ा उसे अपने बेटे की उँगलियाँ देखकर हो रहा था जो कच्छी के ऊपर से इतनी बुरी तरह भीगी हुई थी जैसे उसकी चूत के भीतर समाई हुई हों.
वो रिशु की और देखती है, रिशु उसे ही देख रहा था. प्रतिमा रिशु के हाथ पर अपने चेहरे को झुकाती है और गहरी सांस लेती है जैसे उसकी खुशबू को सूंघ रही हो फिर वो रिशु की और देखती है तो उसके होंठो पर मुस्कान फ़ैल जाती है. वो रिशु की आँखों में देखते हुए अपनी जिव्हा बाहर निकालती है और उसकी उँगलियों को चाटने लगती है.
रिशु अपनी माँ को हैरत से देख रहा था और उधर उसके पयजामे में फिर से हलचल होने लगी थी. प्रतिमा की जिव्हा एक एक ऊँगली को चाटती जा रही थी वो तभी रूकती है जब रिशु का पूरा हाथ साफ़ हो चूका था मगर अब उसका लंड खड़ा हो चूका था.
प्रतिमा की नज़र बेटे के तने लंड पर पडती है तो एक शरारती सी मुस्कान उसके होंठो पर फ़ैल जाती है. वो अपना एक हाथ लंड पर रखकर उसपे अपना वजन डालती ऊपर को उठती है और गहरी साँसे लेते रिशु के होंठो को चूमती है. रिशु भी अपने होंठ प्रतिमा के होंठो पर दबाकर उसके चुम्बन का जवाब देता है. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
प्रतिमा हल्के से चुम्बन के बाद अपने होंठ हटा लेती है और हँसते हुए रिशु की और देखती है जो अपने होंठो पर जीभ घुमाते हुए अपनी माँ की चूत के रस को चाटता है जो प्रतिमा के होंठो ने उसके होंठो पर छोड़ा था. रिशु प्रतिमा की हंसी की आवाज़ सुनता है तो आँखें खोल देता है. प्रतिमा का चेहरा उसके चेहरे के सामने था, वो शर्मा जाता है.
“ओए होए, देखो तो साहब को अभी शर्म आ रही है” रिशु के गाल लाल होने लगते हैं. प्रतिमा और भी जोर से हंसती है “अभी उठो और जाकर थोडा समय पढाई कर लो, बाद में रात के खाने की तैयारी करनी है, मैं अभी कपडे धोने जा रही हूँ, तुम भी अपना अंडरवियर और पेंट उतार कर दे देना और कुछ न्यु पहन लेना”. इतना कह कर प्रतिमा उठती है और उठने के साथ रिशु के लंड को अपनी मुट्ठी में भर लेती है और कस कर मसल देती है.
“आह्ह्ह्ह…” रिशु सिसक उठता है. उसका लंड इस समय पूरे जोश में था, जंग लड़ने के लिए बिलकुल तैयार मगर अभी उसे इंतज़ार करना पड़ेगा. अपनी माँ को जाते हुए रिशु देखता है तो अपने लंड को बड़े प्यार से सहलाता है “बस थोडा सा सब्र कर जल्द ही तेरी मन की मुराद पूरे होने वाली है. लंड ने एक जोर का झटका मारा जैसे रिशु की बात से उसे अत्यंत ख़ुशी मिली हो.
रिशु अपनी पेंट और अंडरवियर उतारता है और एक इलास्टिक का पायजामा पहन लेता है. उसे बहुत शर्म आ रही थी अपनी माँ को अपने वीर्य से खराब कपडे देने में, इसीलिए वो उन्हें गोल करके इकठ्ठा कर देता है और अपनी माँ के कमरे में जाता है यहाँ प्रतिमा अपने कमरे से अटैच्ड बाथरूम में कपडे धो रही थी.
रिशु जैसे ही बाथरूम में पाँव रखता है सामने का नज़ारा देखकर उसके होश गुम हो जाते हैं. सामने प्रतिमा रिशु की तरफ पीठ करके खड़ी थी. उसके बदन पर कपडे के नाम पर एक काली कच्छी थी. उसका पायजामा, टीशर्ट उसके पाँव के पास फर्श पर पड़े हुए थे. वो नल चलाकर बाल्टी में पानी भर रही थी.
रिशु का ध्यान अपनी माँ की गर्दन से होता हुआ नीचे की और आता है. उसने अभी भी अपने बालों में रबड़ डाली हुई थी. उसकी माँ की पीठ पर बाल आसमान में बादल की तरह मंडरा रहे थे. ‘उफफ्फ्फ्फ़’ कितनी गोरी थी, एकदम दूध के जैसे, कहीं पर एक निशान तक नहीं था.
रिशु पहली बार अपनी माँ को इस हालत में देख रहा था. उसके बाल उसकी कमर पर उसके नितम्बो से थोडा सा ऊपर तक आ रहे थे. कंधो से निचे को आते हुए उसकी कमर अन्दर को बल खाकर पतली हो रही थी और फिर थोडा निचे जाकर बाहर को बल खाते हुए उसके नितम्बो के रूप में फ़ैल जाती थी.
कच्छी के अन्दर से झांकती उसकी उभरी गोल मटोल गांड रिशु को पुकार रही थी. उसके नितम्बो को चुमते हुए उसकी कच्छी नितम्बो पर खूब कसी हुई थी और नितम्बो की घाटी में थोडा सा अन्दर की और समाई हुई थी. रिशु का गला खुशक हो गया. उसके गले से आवाज़ नहीं निकल रही थी. उधर बाल्टी आधी पानी से भर जाती है. प्रतिमा निचे झुक जाती है, टांगों के बीच में से उसे कच्छी पर एक बहुत बड़ा गीला धब्बा दिखाई देता है.
यहाँ उसकी कच्छी भीगी होने के कारण इस तरह चूत से चिपकी हुई थी कि रिशु चूत के होंठो को और उनके बीच हलकी सी दरार तक को देख सकता था. मगर जिस चीज़ ने सबसे जयादा उसका धयान अपनी और खींचा वो था प्रतिमा का मुम्मा जो कि झुकने और एक तरफ को मुडने के कारण निचे को झूलता हुआ रिशु की आँखों के सामने था, पूरा तरह से बेपर्दा.
“उन्न्नग्गग्ग्ग्गह्ह्ह्ह” ना चाहते हुए भी रिशु के होंठो से तेज़ सिसकी निकल जाती है.
“ओह्ह्ह्हह…. बेटा तुम हो, मुझे मालूम ही नहीं चला, इधर अपने कपडे डाल दो, मैं धो देती हूँ” प्रतिमा अनजान बनते हुए बोलती है जैसे रिशु के आने का पता ही ना चला हो. वो उठकर खड़ी हो जाती है.
रिशु अपनी माँ के करीब जाता है, इतना करीब कि उसकी गांड उसके अकड़े लंड से मात्र एक हाथ की दूरी पर थी. उस समय उसकी एक ही ख्वाइश थी अपनी माँ की कच्छी उतार कर उसको उसी तरह घोड़ी बनाने का जैसा वो अभी अभी बनी हुई थी और फिर उसकी चूत में अपना लंड डालकर उसको चोदने का.
मगर वो उसे चोद नहीं सकता था, कम से कम अभी तो हरगिज़ नहीं. उसे अभी इंतज़ार करना होगा मगर वो अपनी माँ की नंगी गांड को एक बार छूना जरूर चाहता था. उसकी नंगी पीठ को सहलाना चाहता था. वो अपना हाथ अपनी माँ के गोल मटोल उभरे हुए दुधीआ नितम्ब की और बढाता है, उत्तेजना के मारे वो बुरी तरह से कांप रहा था, उसकी उँगलियाँ लगभग अपनी माँ के नितम्ब को छू रही थी.
“बेटा कहाँ खो गये, इधर डाल दो कपडे” प्रतिमा की आवाज़ से रिशु जैसे नींद से उठता है और अपना हाथ तुरंत वापिस खींच लेता है मगर घबराहट में उसकी उँगलियाँ धीरे से प्रतिमा के नितम्बो को सहला देती हैं.
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“आँ……हाँ….हाँ मम्मी….” रिशु अपने कपडे फर्श पर फेंक देता है, प्रतिमा थोडा सा घूमती है और रिशु को देखती है जो उसके घूमने के कारण नज़र आ रहे मुम्मे को देखते हुए अपने होंठो पर जिव्हा फेर रहा था. डार्क गुलाबी रंग का निप्पल अकड़ कर कठोर हो चूका था, रिशु उसे होंठो में भरकर चुसना चाहता था, काटना चाहता था.
इसी बीच प्रतिमा फर्श पर पड़े रिशु के कपडे उठाने के लिए फिर से झुकती है तो रिशु का लंड उसकी गांड में धंसता चला जाता है. “अरे यह क्या…….” प्रतिमा चौंकने का नाटक करती है, “यह मेरे नितम्बो में क्या चुभ रहा है” कहकर प्रतिमा सीधी हो जाती है और रिशु की तरफ घूम जाती है.
अब माँ बेटा आमने सामने थे. माँ अपने बेटे के सामने केवल एक कच्छी में थी और वो भी बुरी तरह से भीगी हुई उसकी चूत के होंठो को स्पष्ट दिखा रही थी. रिशु की नज़र पहली बार अपनी माँ के नगन मुम्मो पर पडती है. ‘उफफ्फ्फ्फ़’ क्या गोल मटोल भरी मुम्मे थे, सीधे तने और उन पर गुलाबी रंग के कड़क तीखे निप्पल, रिशु सांस लेना भूल गया था.
“अरे तूने इसे फिर से खड़ा कर दिया, मैंने तुझे पढने के लिए कहा था और तू इसे खड़ा करके मेरे पीछे चुभा रहा है” प्रतिमा झूठ मूठ का नाटक करती कहती है, जैसे बेटे का लंड खड़ा होना उसे पसंद नहीं आया हो.
“सॉरी मम्मी….. सॉरी…अभी जा कर पढता हूँ” रिशु बाहर को भागता है.
“अभी इसे मत छेड़ना सुबह से मेहनत कर रहा है, थोडा आराम करने दो, रात को बेचारे को फिर से मेहनत करनी पड़ेगी” रिशु के पीछे उसकी माँ चिल्ला कर कहती है. बेटे की हालत देख प्रतिमा की हंसी रोके नहीं रुक रही थी. वो आज कुछ ज्यादा ही शरारती बन रही थी. उसे बेटे को छेड़ने में, उकसाने में एक अल्ग ही लुत्फ प्राप्त हो रहा था.
रिशु कमरे में जाते ही अपनी पेंट नीचे करता है और लंड मुट्ठी में भरकर मसलता है. “हाएएएएएएईएएए मम्मी…..म्म्मम्म्मी” उसे प्रतिमा के तने हुए मुम्मे याद आते हैं, उसे गुलाबी रंग के तीखे निप्पल याद आते हैं. “उम्म्म्ममम्मम्मम…. मम्म्म्ममी” उसे प्रतिमा की उभरी हुई गोल मटोल कसी हुई गांड याद आती है.
“आआअह्ह्ह्ह……ऊऊउफ़्फ़्फ़्फ़…..” उसे अपनी माँ की भीगी पेंटी से झांकती चूत की याद आती है. उसे याद आता है कैसे पेंटी उसकी चूत के होंठो को चूम रही थी, कैसे वो उसके होंठो के बीच की लकीर के अन्दर को घुसी हुई थी. रिशु अपना हाथ लंड पर चलाता हुआ मुट्ठ मारने लगता है.
मगर तभी उसे याद आता है कि उसकी मम्मी ने उसे क्या कहा था. उसे अपने लंड को आराम देना चाहिए था. मगर वो खुद पर काबू नहीं कर सकत था, प्रतिमा ने जो शो उसे दिखाया था उसे देखने के बाद उसकी उत्तेजना चरम पर पहुँच गई थी. वो फिर से मुट्ठ मारने लगता है.
उसके कानों में अपनी माँ के बोल फिर से गूंजते हैं, ‘रात को इसे फिर से बहुत मेहनत करनी है’ रिशु ना चाहते हुए भी अपने लंड से अपना हाथ हटा लेता है. वो सच में सुबह का दो बार झड चूका था और अगर उसे अब मुट्ठ मारी तो हो सकता है उसका लंड इतना थकने के बाद रात को जवाब दे जाए.
और अगर उसे रात को जैसा उसकी माँ ने कहा था कि बहुत मेहनत करनी पड़ेगी और जो दिन भर की घटनायों को देखते हुए लगभग तय भी लग रहा था तो कहीं वो अपनी मम्मी के सामने शर्मिंदा ही ना हो जाए. रिशु अपने लंड से हाथ हटा लेता है. वो बुरी तरह से झटके मार रहा था.
रिशु तकिये पर सर रखकर अपने झटके मारते हुए लंड को देखता है. लंड का फूला हुआ सुपाड़ा देखते हुए वो कल्पना करता है कि उसका वो सुपाड़ा अपनी माँ की गुलाबी चूत में घुस रहा है और उसकी माँ अपने बेटे के लंड को अपनी चूत में लेते हुए सिसक रही है. वो पूरी नंगी है उसके मुम्मे उभरे हुए हैं, रिशु लंड को चूत में घुसाते उन्हें पकड लेता है और कस कर धक्का मारता है…
“आआअह्ह्ह्ह…………उफफ्फ्फ्फ़…..बेटा….” उसके कानो में अपनी माँ की सिसकी गूंजती है. वो कल्पना मात्र से इतना उत्तेजित हो उठा था कि उसके हाथ फिर से अपने लंड पर पहुँच जाते हैं और वो उसे मसलने लगता है. मगर अगले ही पल वो फिर से अपने लंड पर से हाथ हटा लेता है और झटके से उठ खड़ा होता है.
“मुझे खुद पर काबू पाना है….मुझे खुद पर काबू पाना है…..उफफ्फ्फ्फ़… मम्मी यह तुमने मुझे क्या कर दिया है” रिशु खुद को समझा रहा था. उधर प्रतिमा को बहुत मस्ती चडी हुई थी. उसे अपने अन्दर आज इतनी ऊर्जा, इतना जोश महसूस हो रहा था कि उसके पाँव धरती पर नहीं लग रहे थे.
वो बेटे के स्पर्श मात्र से झड गई थी और वो स्पर्श भी सीधा नहीं था. उसने उसकी चूत को कच्छी के ऊपर से सह्लाया था, उसके मुम्मो को टीशर्ट के ऊपर से मसला था, हाए क्या होगा जब वो उसकी नंगी चूत को छुएगा….जब उसके बेटे की उँगलियाँ उसकी चूत को कुरेदेंगी… उसे सह्लायेंगी… “ऊऊऊऊऊउन्न्नन्न्न्हह्ह्ह्हह्ह्ह्ह……..” जब वो अपने होंठ उसकी चूत पर रगड़ेगा… जब उसकी जिव्हा उसकी चूत को चाटेगी… जब उसकी जिव्हा उसके दाने को सहलाएगी… “आआअह्ह्ह्ह…. उन्न्नन्न्न्हह्ह्ह्ह…..”
और फिर जब वो अपना लंड उसकी चूत के होंठो पर रखेगा, उसका लंड उसकी चूत की पंखुड़ियों को फैलाएगा और फिर उसका वो मोटा लम्बा लौड़ा उसकी चूत में घुसता चला जाएगा… घुसता चला जाएगा… “बेटाआआअह्ह्ह्ह… आआअह्ह्ह्ह” वो अपने लंड से उकी पूरी चूत भर देगा… उसका बेटा अपने मोटे लम्बे लंड से अपनी माँ की चूत को भर देगा… उसे इतना फैला देगा जितना उसका बाप आज तक नहीं फैला पाया… फिर उसका बेटा उसे चोदेगा… “बेटाआआआह्ह्ह्ह……. हाएएएए….. ईईई…..”
उसक बेटा अपना लंड उसकी चूत में अन्दर बाहर करते हुए उसे चोदेगा….उसका बेटा अपनी माँ को चोदेगा………..और माँ बेटे से चुदवाएगी……….उसका लंड अपनी चूत में लेकर उससे तब तक चुदवाएगी जब तक वो झड़ नहीं जाता ….जब तक वो अपने गर्म वीर्य से अपनी माँ की चूत को भर नहीं देता……
“मेरे लाल……..मेरा बेटा……….हे भगवान…………” प्रतिमा झड़ रही थी. उसके हाथ उसके अंगो को मसल रहे थे और सखलित होते उसके दिल में तीव्र इच्छा उठती है कि उसका बेटा उस समय उसके अंगो को मसले. अगर रिशु उस समय बाथरूम में होता तो सही इस समय उसका लंड उसकी चूत में होता और प्रतिमा बेटे से चुद रही होती. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
रात तक इंतज़ार करना उसके लिए बहुत भारी था. उसका दिल कर रहा था वो उसी समय अपने बेटे के कमरे में जाये और उससे चुदवा ले. धीरे धीरे सख्लन के ठंडा पड़ने के बाद प्रतिमा खुद पर काबू पाने में सक्षम हुई. ठन्डे पानी से नहाकर और सख्लन के पश्चात उसकी गर्मी थोड़ी सी कम हो गई थी.
उसे खुद को व्यस्त करना होगा……. तभी वो चुदवाने की अपनी जबरदस्त इच्छा को दबा सकेगी. वैसे भी शाम तक छे बज चुके थे, रात का खाना बनाने का समय हो चूका था. वो शावर से बाहर निकलती है और तौलिये से बदन पोंछती है. गोरे जिस्म से पानी पोंछते हुए प्रतिमा यही सोच रही थी कि वो क्या पहने?
वो कुछ ऐसा पहनने की फ़िराक में थी जिससे वो रिशु की उत्तेजना को बढ़ाए, उसकी भावनाओं को भड़काए. उसके पास कुछ पारदर्शी कपडे थे मगर नहीं वो कुछ और पहनना चाहती थी. अचानक उसका धयान बाल्टी में पड़े धोये कपड़ों पर जाता है तो उसके होंठो पर मुस्कान फ़ैल जाती है… उसे अपनी समस्या का हल मिल गया था.
रिशु कंप्यूटर पर नज़रें गडाए बैठा था जब उसे किचन से बर्तन खटकने की आवाजें आती सुनाई देने लगती है. नाजाने रिशु क्या देख रहा था, जा क्या पड़ रहा था कि वो किचन में जाने की अपनी बलवती इच्छा को कुछ देर दबाने में सफल हो गया. स्क्रीन पर जो कुछ भी था शायद रिशु के ख़ास काम का था, रिशु पूरा धयान देकर उसे समझने की कोशिश कर रहा था. सात बजे के करीब रिशु निचे आता है और सीधे रसोई में जाता है.
“आ गया मेरा राजा बेटा, क्या कर रहा था” सालोनी खाना बनाते हुए बिना दरवाजे की तरफ देखते बोलती है. जब रिशु इतनी देर से निचे नहीं आया था तो उसके मन में चिंता के बादल घिरने लगे थे. “हाँ मम्मी, वो लैपटॉप पर पढ….” रिशु से बात पूरी नहीं होती. सामने उसकी मम्मी उसके कपडे पहने खड़ी थी. प्रतिमा ने वही अंडरवियर और शर्ट पहनी थी जो रिशु उसे धोने के लिए देकर आया था.
“उम्म्म्म…. तुम्हे देखकर लगता है तुम्हे मेरी ड्रेस खूब पसंद आई है” प्रतिमा रिशु को मुख खोले खुद को घूरते हुए देखती बोलती है, “तुम्हारे कपडे धोकर और सुखाकर जब मैंने इन्हें सुंघा तो इनसे इतनी प्यारी खुशबू आई कि मैंने इन्हें ही पहनने का फैसला कर लिया, तुम्हे कोई आपत्ति तो नहीं है ना?” प्रतिमा बेटे की हाफ पेंट में बना हुआ उभार देखते हुए कहती है. उसका उभर अपनी माँ की शर्ट के खुले बटनों और उनके बीच का नज़ारा देख लगातार बढ़ रहा था.
“मुझे कोई आपत्ति नहीं है और तुम इनमे बहुत सुन्दर लग रही हो और……….और……..” रिशु अपनी बात पूरी करने से कतराता है.
“और……..और क्या….बोलो ना….चुप क्यों हो गये ….और क्या? प्रतिमा जैसे बेताब थी उसकी बात सुनने के लिए.
“और और आप इनमे बहुत सेक्सी भी लगती हो” रिशु ने दिल तगड़ा करते हुए धीमी आवाज़ में कहा.
“ओह्ह्ह्हह …. सच में मैं सेक्सी दीखती हूँ या फिर मुझे बहलाने के लिए कह रहे हो”, प्रतिमा रिशु से भी धीमे स्वर में बोलती है जैसे वो कोई गुप्त राज़ साँझा कर रहे हों.
“सच मम्मी….आप सच में बहुत सेक्सी दिख रहे हो…….बहुत बहुत सेक्सी दिख रहे हो” रिशु जोश में आ जाता है.
प्रतिमा की हंसी छूट जाती है. रिशु अपने जोशीलेपन पे थोडा शर्मिंदा हो जाता है. प्रतिमा फिर से मूड कर खाने की और ध्यान देने लगती है. रिशु अपनी माँ की गांड को अपने अंडरवियर में चमकते देखता है. उसका अंडरवियर यु शेप का था और वो प्रतिमा की गांड के उस तरह दर्शन नहीं कर सकता था जिस तरह उसने कुछ देर पहले उसकी वी शेप कच्छी में किये थे.
मगर फिर भी जो नज़ारा उसके सामने था वो भी कम नहीं था. उसका अंडरवियर प्रतिमा के नितम्बो को कस कर उनके अकार को खूब अच्छे से दर्शा रहा था. उनकी गोलाई, उनकी मोटाई और उनके बीच की घाटी…… ‘उन्ह्ह्हह्ह्ह्ह’ बहुत जानलेवा गांड थी उसकी माँ की. नीचे उसकी मोटी गोरी जांघें कितनी लुभावनी थी और ऊपर से उस शरारती माँ ने शर्ट के दो बटन खुले रख छोड़े थे इससे उसके मुम्मो का उपरी भाग और उनके बीच की खाई काफी हद तक नगन थी.
रिशु प्रतिमा के पास जाकर खड़ा हो जाता है. वो अपनी माँ के पीछे खड़ा उसकी गांड को देख रहा था. प्रतिमा को रिशु की मौजूदगी का पूरा एहसास था. रिशु की नज़र माँ की उभरी हुई गांड पर जमी हुई थी और उसका हाथ स्वयं ही उठता हुआ प्रतिमा की गांड की तरफ बढ़ता है जैसे उसका अपने हाथ पर कोई कण्ट्रोल ना हो.
“उन्ह्ह्हह्ह्ह………” प्रतिमा गांड पर बेटे के हाथ को महसूस करते ही ‘आह’ सी भरती है. रिशु नितम्ब की गोलाई पर अपना हाथ फेरता है.
“तुम सच में सेक्सी हो माँ, इतनी सेक्सी कि मैं तुम्हे बता नहीं सकता” माँ की मादक गांड ने रिशु के दिल पे वार किया था. वो फिर से होश खोने लगा था.
“ऊऊऊउम्म्म्मम्मम्मम्म……….” प्रतिमा फिर से थोड़ी आह भरती है, “मुझे इसका एहसास बहुत प्यारा लगा रहा है, मेरी पेंटी से कहीं ज्यादा आरामदायक है…….. और……और…..” प्रतिमा थोडा पीछे हटती है तो उसका बेटा उसकी गांड से हाथ हटा लेता है और उसकी कमर को थाम लेता है. प्रतिमा तब तक पीछे होती है जब तक उसकी उभरी गांड अपने बेटे के लंड को चूम नहीं लेती. प्रतिमा अपनी गांड को हलके से लंड पर दबाती है और उसका बेटा अपने लंड को माँ की गांड पर.
“उन्न्न्नम्मम्मम्ममह्ह्ह्हह……. हाएएएएए………”, प्रतिमा बेटे की तरफ मुंह घुमाती है, “और मैने सच कहा था, तुम्हारे अंडरवियर में से सच में बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी, शायद तुमने इसमें कुछ गिराया था……. मुझे लगता है दोपहर को कुछ गिराया होगा” प्रतिमा की बात से रिशु के गाल लाल होने लगते हैं.
“बता ना क्या गिराया था तूने अपने अंडरवियर में” प्रतिमा बेहद कामुक आवाज़ में लौड़े पर गांड दबाती बोलती है.
“तुम भी ना मम्मी……..” रिशु और भी शर्मा जाता है. मगर वो अपनी कमर पीछे नहीं हटाता बल्कि उसे हल्का सा और दबाता है. उसका लंड कूल्हों की खाई के बीच धंसता जा रहा था. प्रतिमा को एहसास होता है कि सिचुएशन फिर से पहले वाली होती जा रही है.
खुद उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी. मगर अभी सही समय नहीं था अभी उन्हें कुछ देर इंतज़ार करना था इसीलिए वो जिस तरह पीछे को हुई थी उसी तरह आगे को बढ़ गई. रिशु का लंड उसके नितम्बो की घाटी में से निकला तो बुरी तरह से झटके मार रहा था.
“तुम तो कहते थे घर के काम में मेरी मदद करोगे, यह मदद करोगे, मुझे भी काम नहीं करने देते, जब देखो अपने इसको घुसा देते हो मेरी ….” प्रतिमा रिशु को डांटने के स्वर में बोलती है.
“वो मम्मी….वो मम्मी” रिशु शर्मिंदा था और अपनी मम्मी की इस अचानक तबदीली से हतप्रभ भी.
“इधर आओ …और यह सलाद काटो, सब्जी बन गई है, मैं रोटी पका लेती हूँ” प्रतिमा बेटे का उतरा हुआ चेहरा देखकर चह्कती है, “खाली पेट मेहनत नहीं की जाएगी…. ..पहले पेट पूजा फिर……बाकी खाने के बाद”.
“जी मम्मी” रिशु बुझे मन से बोलता है, “उफ्फ्फ्फ़ कैसी ज़ालिम औरत है मेरी मम्मी” जितना उस समय रिशु को अपनी माँ पर प्यार आ रहा था उतना गुस्सा भी.
प्रतिमा रिशु के उतरे चेहरे को देखती है तो वो मुंह घुमा कर होंठ काटती हंसती है “बेचारा” अपने मन में दोहराती है.
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रिशु सलाद को काटने लगता है मगर वो कनखियों से बीच बीच में अपनी माँ को देखता रहता है. जिसकी रोटी पकाते हुए कमर कुछ ज्यादा ही हिल रही थी. साथ ही हिल रहे थे उसके चूतड़. टाइट गोल मटोल चूतड़ जो बाहर को बेहद गोलाई में उभरे हुए थे.
किसी जवान लड़की जैसी अपनी माँ की कसी करारी गांड को देखते हुए उसके मुंह में, नहीं उसके लंड में पानी आ गया था. उसने कुछ देर पहले जब अपना लंड उसकी गांड में चुभोआ था और खुद उसकी माँ ने भी अपनी गांड को वापिस उसके लंड पर दबाया था तो वो ऐसा ज़बरदस्त एहसास था.
खुद उसने पेंट पहनी हुई थी और उसकी माँ ने उसका अंडरवियर पहना हुआ था मगर फिर भी वो प्रतिमा के नितम्बो की तपिश अपने लंड पर दोनों कपड़ों के अवरोध के बावजूद बखूवी महसूस कर सकता था, कैसी मुलायम सी, नर्म सी, कोमल सी गांड महसूस हुई थी.
‘हाएएएएए…… घोड़ी बनाकर मम्मी की मारने में कितना मज़ा आएगा…..’ रिशु अपनी सोच में गुम था.
“सलाद काटने की तरफ धयान दो बरखुरदार, अपनी नज़रें और दिमाग को अपने सामने सलाद पर रखो वरना ऊँगली कट जाएगी” प्रतिमा बेटे को चिताती है तो रिशु शर्मिंदा हो जाता है. मगर वो करे भी तो क्या? वो खुद ही उसकी ऐसी हालत के लिए जिम्मेदार थी. खैर रिशु अपनी नज़र कटाई बोर्ड पर जमाने का प्रयास कर सलाद काटता है और उधर प्रतिमा की रोटी पक चुकी थी.
“देखो तुमसे सलाद भी नहीं काटा गया और मैंने रोटी भी बना दी है, अगर एक दिन तुम्हे खाना बनाना पड़े, तुम तो पूरा दिन निकाल दोगे” प्रतिमा बेटे को छेडती है.
“मम्मी आप भी ना, मैं कौन सा खाना बनाने का काम करता हूँ, थोड़े दिन करूंगा फिर आप देखना कितना फ़ास्ट फ़ास्ट करता हूँ.
“अरे अगर नज़र सामने रखेगा तो ही काम करेगा ना, अगर मेरी कमर के बल गिनता रहेगा तो क्या काम करेगा!” प्रतिमा की छेड़ छाड़ और भी तीखी हो जाती है.
“वैसे मुझे मालूम है, शुरू-शुरू में आदमी को सिखाने में समय लगता है, लेकिन मैं देखूंगी कुछ दिनों के या……कुछ रातों के एक्सपीरियंस के बाद तू कितना फ़ास्ट फ़ास्ट काम कर सकता है…….” प्रतिमा का असल मतलब क्या था, रिशु बाखूबी समझता था शायद इसीलिए उसके गाल लाल हो रहे थे. वो अपनी मम्मी को क्या जवाब दे क्या नहीं, उसकी समझ नहीं आ रहा था और उसकी ऐसी हालत देख प्रतिमा को जैसे बहुत ख़ुशी मिल रही थी. वो उसे इस तरह परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती थी.
“अभी क्या बोलती बंद हो गई? अभी से डर लगने लगा कि यहाँ पे परफॉरमेंस भी चेक होगी, हुंह… टेंशन में आ गये लाट साहब? अब क्या करूँगा? कैसे करूँगा? यही सोच रहे हो ना” प्रतिमा इतनी बेरहम भी हो सकती थी, उसे खुद मालूम नहीं था.
“क्या मम्मी, अब बस भी करो … आप अच्छे से जानती हैं, मैं कभी पीछे नहीं हटता, कभी घबराता नहीं हूँ, हमेशा अव्वल आता हूँ” रिशु अपने आत्मसम्मान की रक्षा करता है.
“ओह्ह्ह्ह…..देखो तो कभी पीछे नहीं हटता… कभी घबराता नहीं…. फिर टाँगे क्यों कांप रहे हैं तुम्हारी …देखना कहीं गिर ना जाना” प्रतिमा कमर पर हाथ रखे चेहरे पर खुशक भाव लिए रिशु को कहती है. मगर उसे ना जाने कितनी कोशिश करनी पड़ रही थी अपनी हंसी रोकने के लिए.
“किसकी टाँगे कांप रही हैं…….कहाँ टांगें कांप रही हैं” रिशु खीझ उठता है.
“किसकी टांगें कांप रही हैं? तुम्हारी और किसकी… देखो अब कहीं डर के मारे पेंट ना गीली कर देना…… ओह यह क्या … मुझे तो लगता है तुमने वाकिया में पेंट गीली कर दी है…” प्रतिमा हैरान होने का नाटक करती हुई रिशु की पेंट की और इशारा करती है. यहाँ ज़िपर की साइड में एक गीले धब्बे का निशान था हालाँकि वो बाखूबी जानती थी कि वो धब्बा उसकी गांड की करतूत का नतीजा था मगर रिशु को परेशान करने का मौका वो हाथ से कैसे जाने देती.
“मम्म्म्मम्मम्ममी……..” रिशु खीझ कर लगभग चिल्ला ही पड़ता है. उसे यकीन नहीं हो रहा था उसकी माँ उसे इस हद्द तक परेशान कर सकती है. प्रतिमा मुंह घुमा लेती है. उसका बदन हिल रहा था अब उससे हंसी रोकना बहुत मुश्किल काम जान पड़ती था.
“ठीक है……. ठीक है, चिल्लाने की जरूरत नहीं है, मुझे तो चिंता हो रही थी कि कहीं दोपहर की तरह फिर से पेंट तो गीली नहीं कर दी क्योंकि अब मेरा दिल कपडे धोने को बिलकुल भी नहीं कर रहा”, प्रतिमा मुंह घुमाए किचन काउंटर से सामान समेटती अपनी हंसी छुपाने का प्रयत्न कर रही थी.
“मम्मी भगवान के लिए बस भी करो” रिशु हथियार डालता बोलता है. उसे मालूम था जुबानी जंग में माँ से जीतना उसके बस की बात नहीं थी.
“अरे भगवान को क्यों बीच में ला रहा है, तुम्हारी पेंट तुमने गीली की है, कोई भगवान ने थोडे की है” प्रतिमा प्लेट्स में सब्जी डालती बोलती है.
“ठीक है नहीं मानोगी तो ना सही, बोलो जो बोलना है, डैड आएँगे तो मैं उनसे आपकी शिकायत करूँगा कि आप मुझे किस तरह परेशान करते हो” रिशु अपनी माँ पर दवाब डालने की कोशिश करता है.
“ओह्ह्ह्ह…. डैड से शिकायत? सच में आने दो डैड को, मैं भी शिकायत करूंगी, तू मुझे किस किस तरह परेशान करता है, अपना वो मुझे कहाँ कहाँ चुभोता है, फिर बार बार पेंट गीली करके मेरे धोने के लिए छोड़ देता है, मैं भी सब बताउंगी, मगर तू खुद ही तो कहता था कि तु मुझे कंपनी देगा, तुझसे मेरा अकेलापन नहीं देखा जाता और अब इतनी जल्दी ऊब गया” प्रतिमा प्रहार पर प्रहार किये जा रही थी. हंसी से उसकी बुरी हालत थी.
“मैं ऊबा नहीं हूँ, आप ही मुझे मज….”
“सलाद की प्लेट्स मेज़ पर रखो”, प्रतिमा अचानक से रिशु की बात बीच में काटकर बोलती है, “फ्रीजर से थोडा ठंडा पानी निकाल लो, मैं रोटी, सब्जी और रायता रखती हूँ, जल्दी करो, बातों पे ध्यान कम दो और काम पे ज्यादा, कब से बातें किये जा रहे हो, बातें किये जा रहे हो, रुकते ही नहीं” रिशु आँखें गोल करके प्रतिमा को घूरता है और उसके माथे पर बल पड़ जाते हैं. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“और मुझे ऐसे घूरना बंद करो, मुझे बहुत भूख लगी है, तुम्हारा पेट तो बातों से भर जाता होगा, मगर मेरा नहीं भरता, कब से सुन रही हूँ, कानो में दर्द होने लगा, मगर तुम हो कि मानते ही नहीं” प्रतिमा कमर पर हाथ रखे रिशु को चिडाती है. रिशु कुछ बोलने के लिए मुंह खोलता है मगर फिर से चुप्प हो जाता है और अविश्वास से सर हिला सलाद की प्लेट उठाता है और खाने के मेज़ की तरफ बढ़ जाता है.
खाने के टेबल पर प्रतिमा और रिशु दोनों चुपचाप खाना खा रहे थे. खाना कितना मजेदार था, इस बात का पता इस बात से चलता था कि रिशु बहुत खीझा होने के बावजूद खाने को मज़े से खा रहा था. मगर फिर भी वो बीच बीच में ‘आहत’ भरी नज़र अपनी माँ पर जरूर डालता. जो उसकी तरफ खाना खाते हुए बिलकुल बेपरवाही से देख कंधे झटक देती है.
प्रतिमा पानी का गिलास उठा के घूँट भरती है, तभी रिशु फिर से उसकी और गुस्से भरी निगाह से देखता है. प्रतिमा इस बार कण्ट्रोल नहीं कर पाती और खिलखिला कर हंस पड़ती है. वो ज़ोरों से खुल कर हंसने लगती है. उसके हंसने से रिशु और भी खीझ उठता है. प्रतिमा ‘ओके… ओके’ बोलती खुद को रोकने की कोशिश करती है मगर वो चुप नहीं रह पाती. हर बार वो खिलखिला कर हंस पड़ती है.
रिशु शुरू से जानता था उसकी माँ उसे जानबूझकर चिढ़ा रही है मगर वो उसके इस तरह जोर से हंसने से खीझ उठा और खाना बंद कर दिया. उसका दिल किया वो वहां से उठ कर चला जाये. ‘सॉरी…….सॉरी….. प्लीज’ प्रतिमा उसे हाथ से इशारा करके खाना खाने को कहती है. रिशु जैसे ही चम्च मुंह की तरफ लेकर जाता है.
कमरा फिर से प्रतिमा की हंसी से गूँज उठता है. अब बस…..और नहीं’ वो उठने से पहले एक नज़र अपनी माँ पर डालता है जो अपने मुंह पर हाथ रखे खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी, अचानक रिशु भी ज़ोरों से हँसने लगता है. कमरे का माहोल बेहद्द ख़ुशनुमा हो उठता है. दोनों माँ बेटा खाना छोड़ काफी देर तक हँसते रहते हैं. अंत में दोनों थोड़े शान्त पड़ जाते हैं.
“उफ्फ्फ्फ़… हे भगवान……” प्रतिमा को खुद याद नहीं था वो इस तरह खुल कर पहले कभी हंसी थी. बल्कि उस घर में इस तरह पहले कभी ऐसी हंसी कब गूंजी थी. प्रतिमा अपनी जगह से उठती है और मुस्कराते हुए रिशु के पास जाती है. रिशु उसे सवालिया नज़रों से देखता है मगर प्रतिमा उसे कोई जवाब नहीं देती.
प्रतिमा रिशु के पास जाकर उसके चेहरे को अपने हाथों में थाम लेती है और बिना कुछ कहे अपने होंठ उसके होंठो पर रख देती है. प्रतिमा रिशु के होंठो पर एक ज़ोरदार चुम्बन लेती है. अपनी जिव्हा से उसके होंठो को चाटती है और फिर से एक मीठा सा चुम्बन लेकर अपना चेहरा उसके चेहरे से दूर हटा लेती है.
“थैंक यू बेटा, थैंक यू सो मच” प्रतिमा ने वो अलफ़ाज़ सिर्फ अपने मुंह से नहीं बोले थे बल्कि रिशु अपनी माँ की आँखों में उन लफ्जों की भावना भी देख सकता था कि उसकी माँ कितनी खुश थी और इसके लिए वो उसकी कितनी शुक्रगुज़ार थी.
वो चुम्बन एक प्यासी नारी का अपने बेटे से कामौत्तेजना में लिया चुम्बन नहीं था. हालाँकि वो एक माँ बेटे का चुम्बन भी नही कहा जा सकता था मगर उस चुम्बन में रिशु ने सिर्फ और सिर्फ अपनी माँ का प्यार ही अनुभव किया था, इसके सिवा कुछ नहीं, इसके सिवा कुछ भी नहीं.
प्रतिमा वापिस अपनी कुर्सी की और जाने लगती है और जैसे ही उसकी रिशु की और पीठ होती है तो रिशु उसके जाते जाते पीछे से उसकी गांड पर हाथ फेर देता है. “ईईईईईई….आअह्ह्ह्ह…. शैतान” प्रतिमा मुस्कराती हुई वापिस कुर्सी पर बैठ जाती है. दोनों माँ बेटे फिर से खाना खाने लगते हैं. दोनों बहुत खुश थे और मुस्करा रहे थे.
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रिशु की नज़र बार बार अपनी माँ के चेहरे की और उठ जाती है. इतना हंसने के बाद प्रतिमा का चेहरा कुछ लाल गुलाबी सा पड़ गया था. उसके होंठो की मुसुराहट उसके चेहरे की मासूमियत और सबसे बढ़कर उसके नाक की बाली ……. ‘उफ्फ्फ कितनी प्यारी कितनी सुन्दर है उसकी माँ………..’रिशु बस यही सोचे जा रहा था. अपनी माँ की सुन्दरता पर उसका मन मोहित होता जा रहा था.
रिशु अपनी जगह से उठता है और अपनी माँ और जाता है. प्रतिमा उसे सवालिया नज़रों से देखती है. वो प्रतिमा के चेहरे को हाथों में थाम लेता है और अपना चेहरा उसके चेहरे पर झुका देता है. उसके माथे पर, उसकी आँखों पर, उसके गालों पर, उसकी नाक पर जी भरकर चुम्बन लेने के बाद रिशु अपना चेहरा उपर उठाता है तो देखता है कि उसकी माँ की आँखें बंद थी.
उसके चेहरे की मासूमियत उसकी वो सुन्दरता जो उसके मन को ठग रही थी, अब और भी बढ़ गई थी. रिशु फिर से अपना चेहरा नीचे लाता है और फिर से अपनी माँ के चेहरे को चूमने लगता है. वो प्रतिमा को चूमता जाता है, चूमता जाता है जैसे उसका मन नहीं भर रहा था, खास कर वो उसकी नाक की बाली की जगाह पर बार बार चूम रहा था.
आखिरकार जब वो अपना चेहरा ऊपर उठाता है तो प्रतिमा धीरे से आँख खोल देती है. उसकी आँखें बता रही थी कि वो अपने बेटे के इस प्यार प्रदर्शन से कितनी खुश थी. प्रतिमा अपने होंठ सिकोड़ कर चूमने के अंदाज़ में बाहर को निकालती है और रिशु को देखकर अपनी ऊँगली को होंठो से छूते हुए उसे इशारा करती है. रिशु फिर से अपना चेहरा नीचे लाता है और अपने होंठ अपनी माँ के होंठो से सटा देता है.
“उम्म्मम्ह्ह्ह…….उम्म्मम्ह्ह्हह्ह…….उम्म्म्मम्म्म्हह्ह्ह्ह” एक के बाद एक प्रतिमा रिशु के होंठो पर चुम्बन लेती है या कहिए देती है. जब रिशु और प्रतिमा अपन चेहरे वापिस खींचते हैं तो दोनों के होंठ ही नहीं चेहरे भी मुस्करा रहे थे. प्रतिमा रिशु के हाथ अपने हाथों में ले लेती है.
“थैंक यू बेटा, थैंक यू सो मच, तुम्हे नहीं मालूम, तुमने मुझे आज कितनी ख़ुशी दी है, आज कितने सालों बाद मुझे लग रहा है कि ज़िन्दगी कितनी खूबसूरत हो सकती है,” प्रतिमा बेटे के हाथ को चूमती है तो रिशु उसके सर पर हाथ फेरता है और फिर से उसके होंठो पर एक प्यारा सा चुम्बन लेता है. रिशु को उस समय ऐसा लग रहा था जैसे उसकी माँ से बढ़कर दुनिया में कुछ भी प्यारा नहीं हो सकता.
“चलो अब बहुत प्यार कर लिया अपनी माँ को, अब खाना फिनिश करो” दोनों फिर से खाना शुरू करते हैं. माँ बेटे दोनों के दिल में मीठी सी गुदगुदी हो रही थी. अब रिशु को भी पहले के मुकाबले थोड़ी कम शर्म आ रही थी वो अपनी माँ के साथ सहजता महसूस कर रहा था.
खाने के बाद दोनों सिंक में अपने अपने बरतन डालते हैं. प्रतिमा के मना करने के बावजूद रिशु उसके साथ बरतन धुलवाने लगता है. जैसे ही एक प्लेट धुलती और रिशु उसे होल्डर में रख देता है. प्रतिमा उसे देखती है और अपना मुंह आगे करती है. रिशु भी तुरंत अपना मुंह आगे को बढ़ा देता है. दोनों के होंठ मिल जाते हैं.
“मुव्व्व्वाआह्ह्ह्ह…..” की आवाज़ के साथ दोनों के होंठ अलग होते हैं. माँ बेटा दोनों एक दुसरे को देख हँसते हैं. उसके बाद अगली प्लेट धुलने के बाद फिर से रिशु प्रतिमा की और देखता है. प्रतिमा तुरंत अपना मुंह आगे बढ़ा देती है. “मुव्व्व्वाआह्ह्ह्ह….” के साथ फिर से उनके होंठ अलग होते हैं और बच्चों की तरह खिलखिला कर हंस पड़ते हैं.
फिर तो माँ बेटे के बीच चुम्बनों का सिलसिला सा शुरू हो गया. हर प्लेट, हर कप, हर बर्तन यहाँ तक कि एक छोटा सा चम्च भी धोने के बाद वो एक दुसरे को चुमते. दोनों के मन शरारत से भरे हुए थे. दोनों से ख़ुशी संभाली नहीं जा रही थी. जब तक बर्तन धुलते तब तक वो इतनी दफा एक दुसरे को चूम चुके थे कि उनकी साँसे गहरी हो चुकी थीं, धडकने बढ़ चुकी थी.
रिशु का लंड झटके मार रहा था और प्रतिमा कि चूत रस से सरोबर हो चुकी थी. बर्तन धोने के पश्चात् दोनों ने एक लम्बा सा चुम्बन लिया और तौलिये से हाथ पोंछते प्रतिमा रिशु को ड्राइंग रूम में भेजती है. खुद दूध गर्म करने लग जाती है. प्रतिमा हाथ में ट्रे पकड़े ड्राइंग रूम में दाखिल होती है.
ट्रे में दूध के साथ एक पॉपकॉर्न का पैकेट भी था. रिशु पहले की तरह टेबल पर पाँव रख सोफे की पुश्त से टेक लगाकर सोफे की एक साइड में बैठा था. प्रतिमा ट्रे को टेबल पर रखती है तो रिशु दूध देखकर नाक भोंह सिकोड़ता है. उसे शुरू से दूध पसंद नहीं था मगर पीना उसे हर रोज़ पड़ता था.
“क्या माँ…. आज तो रहने देती? एक दिन नहीं पियूँगा तो कुछ हो नहीं जाएगा मुझे”.
“आज तो तुझे दूध की सख्त जरूरत है….कोई और दिन होता तो और बात थी… आज तो तुझे सख्त मेहनत करनी है”.
“दूध पिए बिना कोई क्या सख्त मेहनत नहीं कर सकता?”
“कर सकता है अगर उसकी पेंट गीली ना होती हो” रिशु ने अपनी माँ की और आहत नज़रों से देखा.
“वैसे भी दूध नहीं पिएगा तो ताकतवर कैसे बनेगा और ताकतवर नहीं बनेगा तो फिर फ़ास्ट फ़ास्ट कैसे करेगा?”
“मुझमे बहुत ताकत है…. सारा दिन तुमको उठाके घूम सकता हूँ” रिशु जैसे चैलेंज करता है.
“अच्छा चलो देखते हैं कितनी ताकत हैं तुममे…….. घूमाना बाद में… पहले बिठाकर तो दिखा” कहकर प्रतिमा खड़ी होती है और आगे बढ़कर सीधा रिशु की गोद में बैठ जाती है और अपनी बांह उसकी गर्दन पर लपेट देती है.
“आ…आऊच” रिशु लंड पर प्रतिमा की गांड का वजन पड़ते ही कराह उठता है. वो इस अचानक हमले से हडबडा गया था.
“क्या हुआ, तकलीफ हो रही हो तो उतरूं” प्रतिमा रिशु की और आँख नचाकर कहती है. रिशु प्रतिमा की पीठ पीछे हाथ घुमाकर उसे अपनी गोद में अच्छे से थाम लेता है और फिर दुसरे हाथ से उसकी पूर्णतया नंगी जांघो को सहलाता है.
“तुम्हारा जब तक दिल चाहे तुम मेरी गोद में बैठ सकती हो, मैं तुम्हे उठने के लिए नहीं कहूँगा” रिशु का हाथ प्रतिमा के घुटने से शुरू होकर उसके अंडरवियर के निचले सिरे तक घूम रहा था.
“चाहे मेरे वजन से तुम्हारी जान ही निकल जाये?” प्रतिमा रिशु की आँखों में देखती बोलती है.
“तुम्हारा कौन सा वजन है मम्मी, तुम तो फूलों से भी हलकी हो” रिशु ने अपनी माँ के कान में कहा.
“अच्छा,,,, जैसे मुझे नहीं मालूम मैं कितनी वजनी हूँ” प्रतिमा धीमे से स्वर में कहती है.
“अपनी तारीफ़ करवाना चाहती हो….?” प्रतिमा कुछ नहीं बोलती तो रिशु जांघो को सहलाता अपना हाथ अंडरवियर के ऊपर तक लाने लगता है.
“मम्मी आपकी स्किन कितनी कोमल है…… कितनी नरम और मुलायम … आप कितनी गोरी गोरी हो मम्मी” प्रतिमा कुछ देर चुप रहती है. बेटे के हाथ के स्पर्श से उसके पूरे बदन में सिहरन दौड़ रही थी. चूत से रस बहकर बाहर आने लगा था. वो खुद अपने रस की सुगंध ले सकती थी.
“क्यों झूठी तारीफ कर रहा है, मुझे मालूम है, मैं कितनी सुन्दर हूँ” प्रतिमा के कान तरस रहे थे बेटे के मुंह से अपने हुस्न की तारीफ सुनना. उसे बहुत अच्छा लग रहा था.
“झूठ नहीं मम्मी….. सच में ….. आप जैसी सुन्दर मैंने कभी कोई नहीं देखी… आपका चेहरा कितना प्यारा है” रिशु से रहा नहीं जाता. वो फिर से अपनी माँ के गाल को चूम लेता है “और मम्मी….. और….” रिशु कुछ ज्यादा ही जोश में था. वो जो कुछ भी कह रहा था, कर रहा था, उसकी मम्मी उसका कोई बुरा नहीं मान रही थी बल्कि चेहरे से लग रहा था उसे अच्छा लग रहा था.
“और …. और क्या …. बोल ना….” प्रतिमा बैचेनी से बोल उठती है.
“मम्मी आपकी नाक की बाली आप पर बहुत जंचती है, इससे आपका चेहरा और भी प्यारा लगता है, आप सच में बहुत सुंदर हो मम्मी… आपका मंगलसूत्र …” रिशु झिझक उठता है.
“मेरा मंगलसूत्र … वो क्या … बोलो ना मेरा मंगलसूत्र क्या?” प्रतिमा रिशु की गर्दन पर तेज़ साँसे छोडती उसे जीव्ह से चाट रही थी.
“आपका काला मंगलसुत्र आपके गोरे रंग पर कितना फबता है …. और … और”.
“अब बोल भी दो……क्यों सता रहे हो” प्रतिमा अधीरता से बोल उठती है.
“आप बुरा मान जाओगे मम्मी” रिशु मासूमियत से बोलता है.
“अब कैसे गुस्सा करुँगी… तेरी गोद में बैठी हूँ… तेरे इसने गुस्सा करने लायक छोड़ा कहाँ है” प्रतिमा भड़के हुए लंड पर गांड रगडती बोलती है, “तू कुछ भी बोल… कुछ भी…” प्रतिमा बुरी तरह अकड़े लंड को धीरे धीरे नितम्ब हिलाकर रगड़ रही थी. रिशु का चेहरा वासना से लाल होता जा रहा था.
“माँ वो आपका मंगलसूत्र … वो जब दोपहर को … मैंने देखा था… बाथरूम में… जब आपने कपडे नहीं पहने थे… आपका मंगलसूत्र … वो आपके सीने पर… आपके … आपके … उन दोनों के बीच … उफ्फ्फ्फ़… मम्मी… काला मंगलसूत्र… उन दोनों के बीच बहुत प्यारा लग रहा था”.
“सिर्फ प्यारा लग रहा था…… तूने तो सब कुछ देख लिया था….. मैं सोचती थी तुझे कुछ भी लगा होगा…..” प्रतिमा रिशु के कान की लौ को दांतों से काटती बोलती है.
“हाँ मम्मी…. वो… वू…. बहुत … बहुत … सेक्सी भी… सेक्सी भी लग रहा था… आपक्ली नाकिकी बाली भी कितनी सेक्सी है … आप बहुत सेक्सी हो मम्मी… सच में मम्मी… आप बहुत.. बहुत सेक्सी हो”.
“तूने तो मुझे लगभग निराश ही कर दिया था.. मुझे लगा शायद मैं तुझे सेक्सी नहीं लगती…” प्रतिमा पहले की तरह रिशु के कान की लौ काटती बोलती है, कुछ देर दोनों में छुपी छा जाती है.
“मम्मी….. मम्मी….” रिशु बिलकुल धीमें से फुसफुसा कर बोलता है.
“अब क्या…… बोल ना… जो भी बोलना है …………..” प्रतिमा लंड को अपनी गांड से सहलाती बोलती है.
“मम्मी आप मुझे कह रहे थे ….” रिशु एक पल के लिए चुप हो जाता है फिर अपना मुंह प्रतिमा के कान के नज़दीक लाकर फुसफुसाता है.
“मम्मी आप मुझे कह रही थीं….. मगर आप ने भी अंडरवियर को गीला कर दिया है”.
प्रतिमा की नज़र नीचे जाती है तो उसे अंडरवियर के सामने एक गीला धब्बा दिखाई देता है.
“मैं तो सुबह से ही गीली हूँ, मेरी तो गंगा यमुना की तरह रस बहा रही है”.
“सुबह से मम्मी?”
“सुबह से… जब से तेरे इसको चूसा है… ऊपर से तू बार बार इसे मेरे चुभो रहा था… अभी भी देख कैसे चुभ रहा है… बड़ा शैतान है यह तेरा… देख मेरी क्या हालत कर दी है” प्रतिमा रिशु का हाथ अपने घुटने से हटाकर अपनी अंडरवियर पर अपनी चूत के ऊपर रख देती है.
रिशु तुरंत चूत पर हाथ रखकर दबा देता है. उसे चूत के होंठ महसूस हो रहे थे मगर मर्दों का अंडरवियर होने के कारण सामने से उसका डिजाईन ऐसा था कि वो अपनी माँ की चूत को वैसे नहीं महसूस कर सकता था जैसे उसने दोपहर को उसी सोफे पर की थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
जब उसने पायजामे के अन्दर हाथ डालकर उसकी चूत को भीगी कच्छी के ऊपर से मसला था, तब तो उसे ऐसे लगा था जैस उसकी माँ ने कच्छी पहनी ही नहीं थी. उसने दिल में सोचा काश उसकी माँ ने उसके अंडरवियर की जगह अपनी कच्छी पहनी होती. रिशु के सहलाने से प्रतिमा सिसकियाँ भरने लगी थी. उसे लगने लगा था कि शायद उसके चुदने का समय आ गया था.
“रिशु…. रिशु….” प्रतिमा अपने बेटे को पुकारती है जो अपनी दुनिया में खोया हुआ था.
“बेटा मैं सोच रही थी क्योंकि अब तुम घर पर रहने वाले हो तो अगर हम सारा दिन घर पर खाली हाथ बैठेगें तो सही नहीं होगा, हमें कुछ ना कुछ ऐसा काम करना चाहिए जैसे हमारी थोड़ी बहुत कसरत हो जाए….. काम तो यहाँ कुछ… है नहीं” प्रतिमा सिसकीयों के बीच बोलती है.
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“क्या मतलब मम्मी… मैं समझा नहीं” रिशु अब बेहिचक चूत को अंडरवियर पर से मसले जा रहा था.
“मेरा मतलब सारा दिन खाली बैठने से हम आलसी होते जायेंगे… शरीरक क्षमता कम होती जाएगी.. इसलिए हमें कोई काम वगैरा करना चाहिए जैसे … हमारी सेहत ठीक रहे…” प्रतिमा की सिसकियाँ ऊँची होती जा रही थी और वो रिशु की आग को और भड़का रही थी.
“कोन…सा …कोन..सा..काम… मम्मी” रिशु की उँगलियाँ अंडरवियर के सामने की उस डिजाईन में घुसने लगती हैं यहाँ लंड बाहर निकाल कर पेशाब किया जाता है.
“यही तो मैं सोच रही थी… काम तो यहाँ है नहीं…..” प्रतिमा रिशु के लंड को अपनी गांड पर झटके मारता महसूस कर रही थी,“क्यों… ना हम कोई खेल खेले.. तो कैसा रहेगा” प्रतिमा रिशु की उँगलियाँ को अंडरवियर को सामने से खोलते महसूस कर रही थी. अब उसका बेटा जल्द ही उसकी नंगी छूट को छूने वाला था. यह सोचकर प्रतिमा के पूरे बदन में कम्कम्पी सी होंने लगती है. पहली बार उसका बेटा उसकी नंगी चूत को छूने वाला था.
“कैसा खेल मम्मी….” रिशु की उँगलियाँ अंडरवियर के होल से होती हुई चूत को स्पर्श करती हैं.
“आहह्ह्हह्ह्ह्ह…. हे भगवान…….” प्रतिमा चीख पड़ती है “कोई भी ऐसा खेल….. जिसमें उफ्फ्फ्फ़……हम दोनों खूब मज़ा करें … आह……खूब…….खूब… मस्ती करने को मिले…… आह्ह्ह्ह…….उन्न्न्नन्न्गग्गह्ह्हह्ह्ह्ह….. ऊउफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ … थोडा तुम्हारा ज़ोर लगे…. इइइइइआह…. थोडा मेरा ज़ोर लगे… कोई ऐसा खेल….” प्रतिमा दांतों से निचे वाला होंठ काटते हुए ऐसे सिसक सिसक कर बोल रही थी.
रिशु अपनी उँगलियों को चूत में धकेलना चाहता था मगर अंडरवियर के होल की बनावट उसकी ऊँगली को ज्यादा अन्दर तक नहीं जाने दे रही थी.
“आऊऊन्न्नन्नग्गग्ग्ग… कोई ना कोई ….खेल… सोच लेंगे… अपना बना लेंगे ..उफफ्फ्फ्फ़… ऐसा खेल जो दिन और रात को हम दोनों मिलकर खेलेंगे.. हाए बेटा.. तू खेलेगा मेरे साथ वो खेल… अपनी मम्मी के साथ… आह्ह्ह….. बोल ना मेरे लाल… मस्ती करेगा मेरे साथ…”.
“हाँ मम्मी. …….. हाँ……… मैं खेलूँगा…… तुम्हारे साथ…… वो मस्ती वाला खेल.. …… हाए मम्मी मैं दिन रात तुम्हारे साथ मस्ती करूँगा…… दिन रात……” रिशु अपनी उँगलियाँ अंडरवियर के होल से बाहर निकालता है और अपना हाथ अंडरवियर की इलास्टिक के अन्दर डाल देता है. रिशु का हाथ सीधा अपनी माँ की चूत पर जाता है और उसकी चूत को कस कर मुठी में दबोच लेता है.
प्रतिमा एक झटके से उठ रिशु की गोद से निकल सोफे पर थोड़ी दूर खड़ी हो जाती है. रिशु हक्का बक्का रह जाता है. प्रतिमा की अंडरवियर रिशु के हाथ अन्दर डालने के कारण थोड़ी नीचे खिसक गई थी. उसकी चूत पर हलके–हलके, छोटे-छोटे बाल थे जिन्हें शायद उसने अपने पति के जाने के बाद शेव नहीं किया था.
प्रतिमा ट्रे से दूध के गिलास उठाती है और रिशु की और बड़ती है. रिशु कुछ कहने के लिए मुंह खोलता है तो प्रतिमा उसके बोलने से पहले ही उसके होंठो पर अपनी ऊँगली रख देती है.
“अभी नहीं…. यहाँ नहीं… दूध पीकर मेरे कमरे में आ जाना … आज रात तुम्हे वहीँ सोना है … मेरे साथ मेरे बेड पर….”
रिशु प्रतिमा को जाते हुए देखता है, उसकी नज़र अपनी माँ की गांड पर जाती है जिसमें अंडरवियर अंदर को धंसा हुआ था. जो शायद उसके लंड की करतूत थी. फिर उसका ध्यान अपने झटके खाते लंड और अपने हाथ पर जाता है जो उसकी माँ की चूत के रस से बुरी तरह भीगा हुआ था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि अभी अभी क्या हुआ था.
प्रतिमा अपने कमरे में जाती है और सीधे बाथरूम में घुस जाती है. कुछ देर नहाने के बाद बदन पोंछती है. अपने वार्डरोब से एक पेंटी और एक सिल्क की नाईटी निकालती है. अपनी देह को शीशे में निहारती वो अपने चेहरे को देखती है. उसके चेहरे पर कैसे अजीब से भाव थे. वो एक तरफ को हट जाती है.
वो ड्रायर से कोई परफ्यूम निकालती है और उसे बदन पर लगाती है. फिर वो अपनी पेंटी और नाईटी पहनती है. अपने बालों का जुड़ा बनाती है. चेहरे पे हल्का सा मेकअप करती है, अंत में दोबारा शीशे में खुद पर एक निगाह डालती है. उसके सामने शीशे में प्रतिमा नहीं कयामत थी.
उसकी सिल्क की नाईटी से हालाँकि उसके अंग तो नहीं दिख रहे थे मगर सिल्क की वो नाईटी उसके बदन के कटावों और उभारों को इस तरह से चूमती, सहलाती थी और उन्हें इस प्रकार अलींगनबध करती थी कि वो किसी पारदर्शी नाईटी से बढ़कर उत्तेजनात्मक दृश्य पैदा करती थी. संतुष्ट होकर प्रतिमा बेडरूम में चली जाती है.
रिशु बेड पर एक तरफ टांगें लटका कर बैठा हुआ था. प्रतिमा दूसरी तरफ से बेड के ऊपर चड़ती है. “बेटा ऐसे क्यों बैठे हो? ऊपर आराम से बैठो ना” प्रतिमा उसे प्यार से कहती है और कमरे की लाइट बुझा देती है और नाईट बल्ब को जला देती है. कमरे में काफी अँधेरा था, मगर कुछ समय बाद जब उनकी आँखें अँधेरे में एडजस्ट होती हैं तो दोनों एक दुसरे को बाखूबी देख सकते थे, एक दुसरे के चेहरे को बाखूबी पढ़ सकते थे.
“रिशु ऊपर आओ ना बेड पर, इस तरह क्यों बैठे हो” रिशु पहले की तरह ही बेड के सिरहाने टाँगे नीचे लटका कर बैठा रहता है और वो अपनी माँ की और देखता है तो प्रतिमा उसके चेहरे पर नाराज़गी साफ़ देख सकती थी.
“मुझसे नाराज़ हो” प्रतिमा धीमे से पूछती है.
“नहीं मैं भला क्यों नाराज़ होने लगा आपसे”, आखिरकार रिशु मुंह से कुछ फूटता है और अपनी टाँगे उठाकर बेड पर रख लेता है और तकिए पर सर रखकर बेड पर लेट जाता है.
“देखो बेटा अगर तुम इस बात के लिए नाराज़ हो कि…”
“मैंने कहा ना मम्मी, मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, आप खामखाह परेशान हो रही हैं”, प्रतिमा जैसे ही अपनी बात कहनी चालू करती है, रिशु उसे एकदम से काट देता है. उसके खुशक स्वर से मालूम चलता था वो थोडा नहीं बहुत नाराज़ था. रिशु छत की और घूर रहा था जबकि प्रतिमा पिल्लो पर कोहनी के सहारे ऊपर उठी हुई थी और रिशु की और देख रही थी.
कमरे में चुप्पी छा जाती है. प्रतिमा को समझ नहीं आता वो उसे कैसे मनाये? कमरे का माहोल कुछ ऐसा बन चूका था कि वो सीधे जाकर रिशु से लिपट नहीं सकती थी. वो बहुत ही अटपटा होता. प्रतिमा उसी तरह लेटे हुए कोहनी के बल अपना सर उठाए रिशु को घूर रही थी जो अपने माथे पर अपनी बांह रखे छत को घूर रहा था. उसका लंड अब पूरी तरह से नर्म पड़ चूका था.
बेटे को घूरती प्रतिमा अचानक महसूस करती है कि उनके रिश्ते ने एक दिन में क्या से क्या मोड़ ले लिया था. कहाँ वो एक माँ थी, एक पवित्र माँ, जिसके लिए बेटे से बढ़कर कुछ भी नहीं था. शायद अब भी उसकी ममता में कुछ फर्क नहीं पड़ा था, बस अब उनके रिश्ते में वो पवित्रता नहीं रही थी.
सुबह की उस छोटी सी घटना के बाद सब कुछ जैसे एकदम से बिखर गया था. वो उसके लंड को सहलाती किस तरह अपने पर काबू खो देती है और उसके लंड को चुस्ती है और उसके वीर्य को पी जाती है. ‘उफ्फ्फ’ जबकि उसे वीर्य पीना कभी अच्छा नहीं लगता था. वो कभी कभी अपने पति की ख़ुशी के लिए उसके वीर्य को पीती थी.
मगर उसे यह कतई पसंद नही था. मगर आज तो वो किस तरह अपने बेटे के लंड से वीर्य पी गई थी, उसने एक पल के लिए भी नहीं सोचा था कि इस सबका नतीजा क्या होगा? नहीं बाद में अपने कमरे की तन्हाई में उसने यह जरूर सोचा था बल्कि फैसला किया था कि वो फिर कभी भी इस तरह की वाहियात हरकत नहीं करेगी.
मगर उसका फैसला ‘रेत का महल’ साबित हुआ था जो हवा का पहला झोंका आते ही ढह गया था. उसने खुद दोपहर को अपने बेटे के साथ ड्राइंग रूम में क्या किया था? किस तरह वो उसके लंड को अपनी मुट्ठी में भरकर सहलाने लगी थी और जब उसके बेटे ने उसके मुम्मे को टीशर्ट के ऊपर से मसलना चालू किया था तो उसने खुद उसको बढ़ावा दिया था.
किस तरह रिशु ने उसके पायजामे में हाथ डालकर उसकी चूत को कच्छी के ऊपर से सहलाया था और जब उसने उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भरा था. वो खुद अपनी चूत उसके हाथ में उछाल रही थी और फिर उसका सख्लन हो गया था. यह शायद जिंदगी में पहली बार हुआ था कि प्रतिमा ने बिना चुदवाए सख्लन हासिल कर लिया था मात्र अपने बेटे के स्पर्श से और वो भी कच्छी के ऊपर से.
और फिर……… और फिर बाथरूम में वो कैसी बेशर्म बन गई थी. प्रतिमा को बाथरूम की याद आती है जब उसका बेटा उसे कपड़े देने आया था तो उसे मात्र एक भीगी हुई कच्छी में देखकर उसकी क्या हालत हो गई थी, प्रतिमा के होंठो पर मुस्कराहट फ़ैल जाती है.
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किस तरह वो उसकी गांड में अपना लंड ठोक देता है और जब प्रतिमा उसकी और घूमी थी तो किस तरह उसका मुंह खुला रह गया था. बेचारा पलक भी ना झपका रहा था अपनी माँ को अपने सामने एक कच्छी में देखकर उसकी क्या हालत हो गई थी? किस तरह वो उसके नंगे मुम्मो को घूर रहा था, जैसे अभी आगे बढ़कर उन्हें मुंह में भर लेगा.
प्रतिमा दिन की घटनाओं को याद करती करती गर्म हो रही थी. उसकी चूत से रस बहना चालू हो गया था. और अब उसने क्या किया था, किस तरह तपाक से उसके लंड पर जाकर बैठ गई थी. किस तरह उसके लंड को अपनी गांड से मसल रही थी और जब रिशु की उँगलियाँ अंडरवियर के होल से उसकी चूत से टकराई थीं …… हाएएएएएए ..
और फिर उसने अपना हाथ ही उसके अंडरवियर में घुसाकर पहली बार उसकी नंगी चूत को अपनी हथेली में भर लिया था…… ऊऊफ़्फ़्फ़्फ़…. वो फिर से सख्लन के करीब पहुँच गई थी …… वो महसूस कर सकती थी….. उसके बेटे के स्पर्श में जादू था…. या शायद उनके रिश्ते की पवित्रता उनके इस पाप से हासिल होने वाले आनंद को कई गुणा बढ़ा रही थी कि वो अपने बेटे के हल्के से स्पर्श से ही भड़क उठती थी…
और यही हालत शायद रिशु की भी थी…. वो भी शायद अपनी माँ के स्पर्श से बहुत ज्यादा उत्तेजित हो जाता था….. शायद मेरे जैसे वो भी खुद पर काबू खो देता है…. और इसीलिए मैंने उसे वहीँ रोक दिया था…. जिस तरह उसका लंड मेरी गांड के निचे झटके मार रहा था और वो जिस तरह सिसक रहा था वो ज्यादा देर टिकने वाला नहीं था….. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वो जल्द ही सखलित हो जाता .. फिर मेरा क्या होता… अगर वो इतना उत्तेजित ना होता तो मैं उसे ना रोकती.. उससे वहीँ चुदवा लेती.. मगर वो उस समय शायद ही मेंरी चूत में लंड घुसा पाता.. हो सकता है वो यह सब पहली बार कर रहा हो.. नहीं लगभग तै था कि वो पहली बार किसी औरत के साथ का आनंद प्राप्त कर रहा था………
मगर अब क्या… अब वो उससे नाराज़ हो गया था.. अब वो उसे मनाए कैसे .. प्रतिमा सोचती है…. उसे समझ नहीं आ रहा था वो अपनी बात की शुरुआत कहाँ से करे… अचानक बेड की पुश्त पर रखे मोबाइल की घंटी बज उठी, प्रतिमा और रिशु दोनों एकदम से चौंक उठते हैं.
रिशु अपना बाजू अपनी आँखों से हटाकर अपनी माँ की और मुख घुमाकर देखता है. प्रतिमा बेड की पुश्त से मोबाइल उठाती है और जैसी उसने उम्मीद की थी, फ़ोन उसके घरवाले का ही था. प्रतिमा ओके का स्विच दबाकर मोबाइल को कान से लगाती है. वो अब भी पहले की तरह सिरहाने पर कोहनी के बल उचककर रिशु की और देख रही थी और अब रिशु भी उसकी और देख रहा था.
“हेल्लो…. हाँ जान कैसे हो?” प्रतिमा रिशु की आँखों में झांकती मोबाइल के माइक्रोफोन में बोलती है.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“हाँ हम ठीक हैं, रिशु भी ठीक है, पूरी मस्ती कर रहा है, बहुत शरारती बन गया है आजकल, ऐसी ऐसी शरारतें करता है कि क्या बतायुं आपको, आप सुनाइए आप कैसे हैं? आपकी तबीअत तो ठीक है ना”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“और काम काज कैसा चल रहा है?” प्रतिमा रिशु की और घूर रही थी. जिसने फिर से अपना चेहरा मोड़कर ऊपर की और कर लिया था और अपनी आँखों पर फिर से बांह रख ली थी.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“मैं क्या करूंगी वही कर रही थी जो पूरा दिन करती हूँ, बस आपको याद कर रही थी”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“नींद किसे आती है जान, यहाँ तो पूरी पूरी रात करवटें बदलते बदलते निकल जाती है, ना दिन को चैन, ना रात को, बस किसी तरह दिन काट रहे हैं आपकी राह देखते”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“इतनी याद आती है तो फिर छोड़ कर क्यों गए थे…. यह भी नही सोचा मैं किसके सहारे दिन काटूँगी…. इतनी लम्बी लम्बी रातें बिना आपके कैसे काटूं”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“रिशु? वो अपने कमरे में सोया हुआ है उसकी आप चिंता मत कीजिये, जो भी बात करनी है, खुल कर कीजिये”, प्रतिमा थोडा ऊँचे स्वर में बोलती है.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“उफफ्फ्फ्फ़…. मेरी कौन सी हालत आपसे कम बुरी है, आपको कैसे बताऊं, सारा दिन गीली रहती है बेचारी, हर पल आपके लंड के लिए तरसती है”, प्रतिमा का स्वर कामुक होता जा रहा था.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“आपका खड़ा है तो मेरी चूत भी रस टपका रही है, मेरी कच्छी पूरी भीग गई है”’ प्रतिमा की नज़र रिशु के चेहरे से बदलकर अब उसकी पेंट पर थी. यहाँ जिपर के स्थान पर एक तम्बू बनना शुरू हो गया था.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“हाए जानू, क्या बतायुं जितना मैं तुम्हे याद करती हूँ, उससे बढ़कर मेरी चूत तुम्हारे लंड को याद करती है, इसीलिए सारा दिन मेरी कच्छी भीगी रहती है”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“मुझे तो आपकी हर बात याद आती है, जब आप मेरे मुम्मे निचोड़- निचोड़ कर चूसते थे.. जब आप मेरी चूत चाटते थे.. उफफ्फ्फ्फ़.. जब भी आपकी जीभ की याद आती है तो चूत में सनसनी होने लगती है…. किस तरह आप अपनी जीभ मेरी चूत में घुसा कर अन्दर तक चाटते थे….
और जब आप उसे मेरे दाने पे रगड़ते थे…. जब आप पूरी-पूरी रात मुझे चोदते थे…. हाए….. जब आप अपने मोटे लम्बे मुसल से मेरी चूत को पेलते थे…. आआह्ह्ह्ह…. कभी घोड़ी बनाकर .. कभी डौगी स्टाइल में….. उफ्फ्फ्फ़” प्रतिमा एक हाथ सर के निचे टिकाए और दुसरे हाथ से मोबाइल कान को लगाए बेटे की पेंट में मचल रहे तूफ़ान को देख रही थी.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“उफफ्फ्फ्फ़.. मैं भी चूत में ऊँगली कर रही हूँ, जान…. तुमने मेरी चूत में आग लगा दी है …. हाए मेरी चूत…. मेरा मुंह…. मेरी गांड… आपके लंड के लिए तड़प रही है”, प्रतिमा सिसकियाँ भरकर बोल रही थी.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“हाए आपको मेरी चूत की याद में दिन में एक बार मुट्ठ मारनी पड़ती है, मगर मैं नाजाने कितनी बार आपके लंड को याद करके चूत में ऊँगली करती हूँ”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“हाएएए… मुझे भी आपके जाने से पहले बाली रात का एक एक पल याद है.. हाए… पूरी रात आपने सोने नही दिया था, जैसे दो महीने की कसर एक ही रात में पूरी करनी हो…… किस तरह आपने आधे घंटे तक मेरी चूत चाट चाट कर झाड़ी थी, फिर आपने जब मेरे मुंह को चोदा था……
उफ्फ्फ्फ़… मेरी तो सांस ही बंद हो गई थी… गले तक घुसा दिया था आपने … एक एक पल याद है मुझे, उस रात का… आपने जब मुझे खड़े खड़े अपनी गोद में उठा लिया था और फिर अपने लंड पर उछाल उछाल कर पूरे कमरे में घूमते हुए मुझे चोदा था..
इस कोने से उस कोने तक… और फिर सुबह जब आपने मुझे घोड़ी बनाकर मेरी गांड मारी थी….. हाए आपने मेरी तंग गांड में अपना मुसल पेल पेल कर मेरी गांड सुझा दी थी.. मुझसे दो दिन ठीक से चला नहीं गया था..” प्रतिमा अब बोल नहीं रही थी केवल सिसकियाँ भर रही थी.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“मैं भी तड़प रही हूँ जान, कुछ कीजिए ना जान, प्लीज कुछ कीजिये”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“हाँ हाँ मुझे भी आपसे चुदवाना है जान…. प्लीज चोद दीजिये ना…”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“हाए क्यों तरसा रहे हो, डाल दो ना अन्दर…. पेल दो अपना लंड मेरी चूत में”.
“आआईईईईए.. हाए रे जालिम, एक ही झटके में पूरा घुसा दिया….. उफफ्फ्फ्फ़ मेरी जान निकाल दी”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“पेलते रहे जान.. पेलते रहो….. बस ऐसे ही … उफफ्फ्फ्फ़… आह्ह्हह्ह.. जड़ तक पेलते रहो…”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“हाँ… हाँ… ऐसे ही…. ऐसे ही… चोदो अपनी जान को… उफ्फ्फ्फ़…. एक मिनट … एक मिनट.. रुकिए मेरी टाँगे उठाकर अपने कंधे पर रखिये.. हाँ अब चोदो मुझे … अब मेरी चूत में पेलो…..”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“मारो….. मारो…. और जोर से … और जोर से .. उफ्फ्फ… मेरे मुम्मे पकड़ो… मेरे मुम्मे मसल मसलकर अपना लंड पेलो मेरी चूत में……”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
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“आअह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह्ह….. हाए……. आअह्ह्ह्ह…. चोद दीजिये.. जोर से … पेलो … और जोर से … उफफ्फ्फ्फ़ मेरा भी निकलने वाला है… हाए मारिये मेरी चूत ………. मार मार कर सुजा दीजिये … आगे से भी और पीछे से भी… ऐसे ही…. ऐसे ही हाँ मार मार कर आगे पीछे से सुजा दीजिये….”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“आआआअह्हह्हह्हह्ह्ह्हह्ह्हह….. मेरा भी निकल रहा है… मेरा भी निकल रहा है…… हे भगवान….. इसे मेरे मुंह में डाल दीजिये … मुझे आपकी मलाई खानी है”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“लीजिये आपका लंड बिलकुल साफ़ कर दिया है….. देखिये कैसे चमक रहा है…..”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“उफफ्फ्फ्फ़…. मैं आपको क्या बतायुं मुझे कितना मज़ा आया, आपने तो फ़ोन पर ही मेरी ऐसी हालत कर दी, घर आकर क्या करेंगे…”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“मैं इंतज़ार करुँगी बेसब्री से.”
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“रिशु की आप चिंता मत कीजिये, मैं उसका पूरा ख्याल रख रही हूँ, बल्कि अब तो वो मेरा ख्याल रखने लगा है”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“फिर बतायुंगी, अब मुझे नहाने जाना है, आपने मेरी हालत ख़राब कर दी है, पूरी पसीने से भीग गई हूँ”.
दूसरी तरफ से : ……………………………………………………
“आप भी अपना ख्याल रखना घर की चिंता मत कीजिये, आपने काम और सेहत का ध्यान रखना, अच्छा रखती हूँ, ओके बाये … स्वीट ड्रीम्स जान.. मुवाआआआअह्ह्ह्हह”.
दोस्तों अभी के लिए इतना ही आगे की कहानी आगे के भाग में. आगे की कहानी में जानिए बेटे के सामने ही बिस्तर में पति के साथ फ़ोन सेक्स करने के बाद माँ और बेटे ने बिस्तर में क्या ग़दर काटा…