Maa Beta Sex Kahani
आज सुबह से प्रतिमा का मूड बिगड़ा हुआ था, क्या वजह थी वो खुद नहीं जानती थी. “कैसा बकवास दिन है” वो खुद को बोलती है. पूरे घर में ऐसी शांति थी कि घर की हर चीज़ से नीरसता झलक रही थी. तीन बेडरूम का घर काफी खुला डुला था. मगर उस उदासी और सन्नाटे में वो घर अपने असली अकार से कुछ जयादा ही बड़ा जान पड़ता था. Maa Beta Sex Kahani
प्रतिमा का मन घर के किसी काम में नहीं लग रहा था. उसके सर में हल्का सा सरदर्द भी था. शायद रात को ना सो सकने की वजह से था. पिछले पूरे दिन वो घर की साफ़ सफाई में व्यस्त थी, उसे लगा था शायद रात को वो अच्छी नींद सो सकेगी मगर थकान और हलके बदन दर्द के बीच भी वो सोने में असफल रही थी और पूरी रात करवटें बदलते गुजरी थी.
प्रतिमा का पति अतुल पिछले हफ्ते से दुसरे शहर में था. वो एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में जूनियर इंजिनियर था. पगार अच्छी होने की वजह से वो किसी काम से इन्कार नहीं करता था, इसीलिए इस बार जब दुसरे शहर में चल रहे किसी प्रोजेक्ट के लिए कंपनी को एक इंजिनियर भेजना था तो सिर्फ वही राजी हुआ था बाकी सब बहाने बनाने लगे.
उसकी मेहनत और काम के लिए इमानदारी को देखकर कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर ने उसे आश्वासन दिया था कि उसकी पगार में जल्द ही इज़ाफा किया जायेगा. प्रोजेक्ट मेनेजर के बारे में अतुल जानता था वो अपनी बात का बहुत पक्का आदमी था इसीलिए उसे यकीन था कि उसकी पगार जल्द ही बढ़ जाएगी मगर एक तरफ यहाँ उसे पगार बढ़ने की इतनी ख़ुशी थी वहीँ उसे अपनी पत्नी की नाराज़गी की चिंता थी.
जैसे उसने वादा किया था कि वो उसे कहीं घुमाने ले जाएगा, सच में प्रतिमा को मनाने में उसे इस बार बहुत मेहनत करनी पड़ी थी, उसे प्रतिमा को कई वादे करने पड़े थे और कई तरह के प्रलोभन देने पड़े थे तब जाकर कहीं उसका गुस्सा शान्त हुआ था.
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प्रतिमा ने अंत इस बात को सोचकर कि उसके पति की पगार बढ़ने जा रही है अपने मन को किसी तरह समझा बुझा लिया. प्रतिमा अपने बेटे रिशु को नाश्ते के लिए आवाज़ देती है मगर कोई जवाब नहीं आता. दो तीन बार फिर से बुलाने से भी कोई जवाब नहीं मिलता तो प्रतिमा की खीझ में कई गुना बढ़ोतरी हो जाती है.
वो रसोई से सीधे सीढियों का रुख करती है “एक तो इसने नाक में दम कर रखा है, ना अपनी पढाई करता है ना घर के किसी काम में मदद, सारा दिन बस खेल कूद और टीवी” प्रतिमा सीढियाँ चडती बडबड़ा रही थी. प्रतिमा भडाक से दरवाज़ा खोलती है और सामने उसका बेटा गहरी नींद में सोए खर्राटे भर रहा होता है.
“सुबह के दस बजने को आए और इस साहब को देखो अभी तक पैर पसारे कैसे मज़े से सो रहे हैं”, प्रतिमा अपने बेटे की चादर पकड़कर जोर से खींच लेती है. रिशु को झटका सा लगता है. वो हडबडा कर उठ जाता है और सामने अपनी माँ को खड़े देखता है. अभी उसकी आँखें पूरी खुली नहीं थी शायद इसीलिए वो अपनी माँ के चेहरे पे छाया गुस्सा नहीं देख सका.
“क्या मम्मी….क्यों इतनी सुबह सुबह जगा रही हो, मुझे अभी सोना है” रिशु अपनी माँ से शिकायत भरे स्वर में बोला.
“इतनी सुबह सुबह? लाट साहब टाइम मालुम है आपको, दस बजने को आए हैं और आपको अभी भी सोना है, हाथ मुंह धोकर निचे आओ, मैं नाश्ता लगाती हूँ” प्रतिमा तीखे स्वर में बोली.
“मुझे नहीं नाश्ता वाश्ता करना आप जाईये और बस मुझे सोने दीजिए”, रिशु अपनी माँ के हाथ से चादर खींचने की कोशिश करता है. प्रतिमा उसका हाथ झटक देती है और आगे बढ़कर एक ज़ोरदार तमाचा रिशु के मुंह पर लगाती है. तमाचा लगते ही रिशु की आँखें जो अभी भी नींद से बोजिल थीं, खुल जाती हैं और उसे पहली बार एहसास होता है कि उसकी माँ का मूड कितना बिगड़ा हुआ है.
“इसी समय बेड से उठो और हाथ मुंह धोवो, दस मिनट में तुम निचे नाश्ते के टेबल पर होने चाहिए, आज से तुम मेरी इज़ाज़त के बिना ना खेलने जाओगे और ना ही टीवी देखोगे, तुम्हे हर रोज़ समझा समझा कर मेरा दिमाग ख़राब होने को आया और तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं सरकती, अब तुम्हे जिस तरीके से बात समझ में आती है, मैं उसी तरीके से समझाउंगी”, प्रतिमा चिल्लाती हुई बोलती है.
रिशु सर झुकाए बेड पर बैठा था और एक हाथ से तमाचे से लाल हो चुके गाल को सहला रहा था.
“दस मिनट! याद रखना वर्ना …..” कहते हुए प्रतिमा पाँव पटकाते हुए उसके कमरे से निकल जाती है और अपने पीछे भडाक से दरवाज़ा बंद कर देती है. प्रतिमा के जाते ही रिशु छलांग लगा कर उठ जाता है और कमरे से अटैच्ड बाथरूम में घुस जाता है.
दांतों पर फुल स्पीड में ब्रश रगड़ते हुए उसे इस बात की हैरत हो रही थी कि क्या हो गया जो उसकी माँ का मूड आज सुबह सुबह इतना उखड़ा हुआ है. वो तमाचा लगने से इतना आहत नहीं था. जितना वो इस बात से दुखी था कि आज वो क्रिकेट खेलने नही जा पाएगा और xbox का तो नाम भी लेना गुनाह होगा.
अपनी माँ के गुस्से से वो भली भांति वाकिफ था. प्रतिमा के गुस्से से तो खुद उसका पति भी डरता था. अब तो सारा दिन घर पर माँ के सामने बैठकर उन्ही किताबो में सर खपाना पड़ेगा जिनसे बड़ी मुश्किल से उसका पीछा छूटा था. पिछले ऐसे वाकिया से वो जानता था कि अब उसे पहले जैसी आजादी मिलने में दो तीन दिन लग जायेंगे.
मुंह पर पानी के छींटे मारता वो सोच रहा था कि किस तरह वो अपनी माँ को खुश कर सकता है. अगर वो किसी तरह खुश हो गई तो उसकी सजा आज ही ख़त्म हो सकती थी. दस मिनट लगभग होने को थे. रिशु तौलिया उठाकर बेडरूम की और जाने लगा मगर फिर उसने पेशाब करने की सोची.
उसे कुछ खास प्रेशर तो महसूस नहीं हो रहा था मगर फिर भी उसने सोचा कि पेशाब करके ही जाया जाए. ज़िप खोल उसने अपना सोया हुआ लंड बाहर निकाला. फिर अपनी घडी पर नज़र डाली. दस मिनट बीत चुके थे हालांकि वो जानता था कि उसकी माँ उसके थोड़े बहुत जयादा समय लगाने से कुछ नहीं कहेगी मगर फिर भी वो नहीं चाहता था कि वो किसी भी तरह माँ का गुस्सा ना बढ़ाए बल्कि उसे खुश करने की सोचे.
प्रेशर ना होने की वजह से उसे पन्द्रह बीस सेकंड लंड को हिलाना पड़ा तब जाकर धार निकली. अब तक बारह मिनट बीत चुके थे, वो पेंट की ज़िप पकडे पीछे को घुमा और भागते हुए ज़िपर को ऊपर खींचने लगा और यहीं उसने गलती कर दी. भागने से उसका लंड जो पेशाब करने के समय हिलाने से थोडा सा जाग गया था, झटका लगने से बहार आ गया और उधर उसने तेज़ी से ज़िपर ऊपर खींच दी.
अगले ही पल उसका पाँव थम गया. उसका मुंह खुल गया और एक खामोश चीख उसके मुख से निकली. वो तीव्र दर्द से बिलबिला उठा था. उसके लंड की बेहद नर्म त्वचा ज़िपर में फँस गई थी. कम से कम ज़िपर के पांच दांत त्वचा को अपने अंदर कस चुके थे. रिशु को एक तरफ इतना दर्द हो रहा था और उधर उसे अपनी माँ का डर सता रहा था.
अब वहां उसकी मदद करने वाला भी कोई नहीं था. यह बात अलग थी कि अगर कोई होता भी तो भी वो मदद ना मांगता उसे कतई गंवारा ना होता कोई उसे इस हालत में देखे और उसकी खिल्ली उडाए. रिशु ने जैसे ही ज़िपर को वापस खोलने के लिए हाथ लगाया तो दर्द की एक बेहद तेज़ लहर उसके लंड से होकर उसके पूरे जिस्म में फ़ैल गई.
ज़िपर को हिलाने मात्र से उसे लंड में असहनीय पीड़ा महसूस हो रही थी और उधर घड़ी की सुईओं की रफ़्तार जैसे दुगनी तिगुनी हो गयी थी. उसे जल्द ही इस मुसीबत से छुटकारा पाना था वर्ना वो जानता था कि उसकी माँ ऊपर आने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाएगी. उसने धीरे से दोनों हाथों की उँगलियाँ अपनी अध खुली ज़िपर के अन्दर विपरीत दिशाओं में डाली और फिर उसने दो तीन गहरी साँसे लेकर आँखें भींच ली और बिजली की फुर्ती से दोनों हाथों को विपरीत दिशाओं में झटका.
“आअअअअअहहहहहहहह! मम्ममममममममममी!” वो पीड़ा को सह नहीं पाया और चीख पड़ा. उसकी तो दर्द से सांस ही रुक गयी थी. प्रतिमा बेटे के कमरे से निचे आकर टेबल पर नाश्ता लगा रही थी. उसका मूड अब और बिगड़ चूका था और ऊपर से रिशु ऐसा ढीठ था कि थप्पड़ खाने के बाद भी नहीं सुधरा था. बीस मिनट हो चुके थे और वो अब तक नहीं आया था.
“दो तीन मिनट और ……अगर वो अभी भी निचे ना आया तो आज उसकी …..” उसकी सोच की लड़ी अचानक से टूट गई. जब रिशु की दर्द भरी चीख से पूरा घर गूँज उठा. पलक झपकते ही प्रतिमा रिशु के कमरे की तरफ दौड़ रही थी. उसकी जान पे बन आई थी “बेटा क्या हुआ, मैं आ रही हूँ, मैं आ रही हूँ……”
प्रतिमा दौड़ते हुए चीख रही थी. वो पलक झपकते ही ऊपर अपने बेटे के कमरे में थी. सामने बाथरूम के डोर के बीच रिशु अपनी जाँघों के जोड़ पर हाथ रखे गहरी गहरी सांसे ले रहा था. उसका चेहरा ही बता रहा था कि वो कितनी पीड़ा में था.
“मम्मी मेरी लुल्ली…………हुंह…….हुंह…” वो सुबकने लगा, आँखों से पानी की धाराएँ बहने लगी. “मम्मी मेरी लुल्ली पेंट की चैन में आ गई………मम्मी बहुत दर्द हो रहा है..”
प्रतिमा भागती हुई रिशु के पास जाकर निचे घुटनों के बल बैठ जाती है. वो उसके हाथों को हटा देती है. सामने रिशु का लंड उसकी पेंट से बाहर निकला हुआ था. उसने ध्यान से निचे देखा मगर उसे ठीक से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. उसने धीरे से अपनी ऊँगली और अंगूठे के बिच लंड को पकड़कर ऊपर उठाया.
“आह मम्मी”, रिशु दर्द से तिलमिला उठा.
“सॉरी बेटा, सॉरी, मुझे थोडा देखने दो”, प्रतिमा बिलकुल धीरे धीरे बहुत कोमलता से लंड को थोडा सा ऊपर उठती है ताकि देख सके निचे कैसी हालत है. लंड के हल्का सा ऊपर उठने पर प्रतिमा ने देखा कि लंड अभी भी ज़िपर के दो दांतों में फंसा हुआ था. उसने ज़िपर के बेहद पास त्वचा पर ज़िपर के दांतों के निशान भी देखे.
जिनसे मालूम चलता था कि उसने खुद लंड को ज़िपर से आज़ाद करने की कोशिश की थी जिसमे वो थोडा बहुत कामयाब हो भी चूका था. प्रतिमा ने ज़िपर के हैंडल को कांपते हाथों से पकड़ा और उसे अत्याधिक सावधानी से बहुत धीरे धीरे निचे खींचने का प्रयास करने लगी. मगर जैसे ही वो ज़िपर पे हल्का सा दवाब भी देती, रिशु की सिसकियाँ निकलने लग जातीं.
“उफ्फ्फ अब क्या करू! तुम हर दिन नई मुसीबत खड़ी कर देते हो”, प्रतिमा खीझ कर बोल उठी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस मुसीबत से वो कैसे उबरे, रिशु ज़िपर को खींचने नहीं दे रहा था, अब उसका लंड वो बाहर कैसे निकाले.
“आपकी गलती है, सुबह सुबह मुझे आकर डांटने लग जाते हो, छुट्टियों में भी मज़ा नहीं करने देते आप”, रिशु ने अपने दिल की भड़ास निकाल दी. प्रतिमा बेटे की बात सुनकर चुप हो गई.
“वो सही कह रहा है, मेरी डांट की वजह से शायद घबराहट में उससे यह हो गया और फिर मैंने उसे डांटा भी किस बात के लिए, मेरा मूड ख़राब था तो इसमें उसका क्या दोष? साल में एक बार ही तो छुट्टियाँ होती है …..” प्रतिमा ठंडी आह भरती है. अब उसके सामने एक ही रास्ता था.
“छुटियाँ होने का मतलब क्या यह होता है कि तुम सिर्फ और सिर्फ एन्जॉय करो … ना तुम अपनी पड़ाई करते हो, ना किसी काम में मदद करते हो, सारा दिन घर से गायब रहते हो और घर आते ही xbox पे गेम खेलने चालू कर देते हो, अब तुम्हे डांटू नहीं तो इनाम दू?”
“मेरे सभी दोस्त खेलने आते हैं…… किसी की माँ रोक टोक नहीं करती, एक आप ही हो…. जब देखो…. आहअअअअअआ…….”
अचानक रिशु के मुख से तीखी दर्द भरी चीख निकलती है. उसका मुंह खुल जाता है और कुछ पलों के लिए उसकी साँसे गले में ही अटक जाती हैं. प्रतिमा एक दम खड़ा हो कर अपने बेटे के सर पर हाथ फेरती है.
“बस बेटा बस…..अब हो गया….अब तुम्हे तकलीफ नहीं होगी”.
“उफ़… मेरी…हाए….जान निकल……आह्ह्हह्ह…..आप मेरी माँ हो कि दुश्मन” रिशु अब समझा था कि उसकी माँ ने जान बुझकर उसे बातों में फंसाया था कि उसका ध्यान हटते ही वो ज़िपर खोल देती. रिशु की पीड़ा अब पहले जैसी भयानक नहीं थी मगर दर्द अभी भी बहुत था.
“बेटा क्या करती ….. अब इसके सिबा दूसरा उपाए भी नहीं था, कुछ देर बर्दाश्त करो, दर्द मिट जायेगा”, प्रतिमा अपने बेटे की गालों से आंसू पोंछती है. बेटे को इतनी तकलीफ में देख बेचारी माँ का दिल फटा जा रहा था.
“नहीं बर्दाश्त हो रहा माँ… … हाए ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने मेंरी लुल्ली को काट दिया है” रिशु होंठ भींच सिसक सिसक कर बोलता है.
प्रतिमा फिर से निचे घुटनों के बल बैठ उसके लंड को अपने हाथ में कोमलता से थाम लेती है. इस बार रिशु उसका हाथ नहीं हटाता क्योंकि लंड अब ज़िपर से आज़ाद हो चूका था. प्रतिमा लंड के निचे की त्वचा को देखती है. जिस पर जिपर के दांतों के चुभने के निशान थे वो जगह और आस पास की काफी त्वचा सुर्ख लाल हो चुकी थी.
प्रतिमा ने अपने अंगूठे और तर्जनी ऊँगली से लंड को थाम दुसरे हाथ से उस जगह को बहुत कोमलता से सहलाया.
“आआह्ह्ह्ह… माँ जल रहा… है” रिशु सिसकता है.
प्रतिमा एक बार लंड की घायल त्वचा को देखती है और फिर रिशु के सुंदर भोले चेहरे को जो दर्द के मारे आंसुओं से गिला होकर चमक रहा था. फिर वो अपने नर्म मुलायम होंठ लंड की घायल त्वचा पर रख देती है.
“उंहहहहह्ह्ह्हह” रिशु धीमे से आह भरता है.
प्रतिमा के नाज़ुक होंठ बहुत ही कोमलता से लंड की नर्म त्वचा को जगह जगह चूम रहे थे, धिमे धीमे लंड की घायल त्वचा पर कुछ पुच पुच करती वो चुम्बन लेती है. रिशु को अपनी माँ के नाज़ुक होंठों का स्पर्श उस संवेंदनशील जगह पर बहुत ही प्यारा महसूस होता है और उसे फ़ौरन राहत महसूस होती है. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“हाँ …….मम्ममममी… अभी थोडा बहुत अच्छा लग रहा है” रिशु की बात सुन प्रतिमा के होंठों पर मुस्कान फ़ैल जाती है. पुरष को अपने लंड पर किसी औरत के होंठो का नर्म एहसास हमेशा सुखद प्रतीत होता है चाहे वो औरत उसकी माँ ही क्यों ना हो. रिशु की बात से थोडा उत्साहित होकर प्रतिमा और भी तेज़ी से लंड के निचे उस जगह चुम्बन अंकित करने लगती है. कुछ ही पलों में रिशु अपनी माँ के होंठों के स्पर्श के उस सुखद एहसास में डूब जात है.
“आआहह… मम्मी… अभी दर्द कम हो रहा है, प्लीज मम्मी ऐसे ही करते रहिए” प्रतिमा तो जैसे यही सुनना चाहती थी. उसने लंड को ऊपर उठाया और जड़ से लेकर टोपे तक लंड पर चुम्बनों की बरसात कर दी. फिर उसके होंठ खुले और उसकी जिव्हा बाहर आई. उसने जिव्हा की नोंक से घायल त्वचा को सहलाया. गीली नर्म जिव्हा का एहसास होते ही रिशु के मुख से खुद बा खुद सिसकी निकल जाती है. प्रतिमा की जिव्हा उस सिसकी को सुन और भी गति से लंड की निचली त्वचा पर रेंगने लगती है.
“अह्ह्हह्ह्ह्ह …………मम्मी बहुत अच्छा लग रहा है.. बहुत……..बहुत मज़ा आ रहा है” रिशु के मुख से लम्बी सिसकी निकलती है, मगर वो सिसकी दर्द की नहीं बल्कि आनंद की थी, दर्द तो वो कब का भूल चूका था. उधर बेटे के मुख से आनंदमई सिसकी सुन प्रतिमा के होंठों की मुस्कान उसके पूरे चेहरे पर फ़ैल जाती है.
उसकी जिव्हा अब सिर्फ घायल त्वचा पर ही नहीं बल्कि उसके आस पास तक घूम रही थी. अचानक प्रतिमा महसूस करती है कि उसके अंगूठे और तर्जनी ऊँगली में थामे हुए लंड में कुछ हरकत हो रही है. वो हल्का हल्का सा हिलने डुलने लगा था. प्रतिमा बेपरवाह अपनी जिव्हा लंड की जड़ से सिरे तक घुमा रही थी.
रिशु का दर्द कब का मिट चूका था. अब दर्द की जगह मज़ा ले चुका था और कैसा जबरदस्त मज़ा था. इस मज़े से उसकी हालत खराब होती जा रही थी. पूरे जिस्म में गर्मी सी महसूस होने लगी थी. उसे अपने बदन में कुछ तनाव महसूस हो रहा था.
खास कर अपने लंड में और लंड का वो तनाव पल प्रतिपल बढ़ता जा रहा था. उसे अब जाकर एहसास हुआ कि उसका लंड खड़ा हो रहा था. लंड खड़े होने का एहसास प्रतिमा को भी जल्द ही हो गया. जिससे उसके अंगूठे और ऊँगली में उसका आकार बढ़ने लगा, जब उसकी जिव्हा को लंड का नर्म मुलायम एहसास होने लगा.
“उफ्फ्फ यह तो खड़ा हो रहा है, मेरे बेटे का लंड खड़ा हो रहा है”, प्रतिमा खुद से कहती है.
एक पल के लिए उसके मन में आया कि अब शायद उसे रिशु के लंड को छोड़ देना चाहिए मगर अगले ही पल उसने वो विचार अपने दिमाग से झटक दिया.
‘वो इतनी तकलीफ में है और तुझे सही गलत की पड़ी है, कैसी माँ है तू प्रतिमा? जो अपने बेटे की पीड़ा को दूर करने के लिए कुछ देर के लिए अपनी शर्म भी नहीं छोड़ सकती, देख तो बेचारा दर्द से कितना कराह रहा है’ प्रतिमा खुद को धिक्कारती है.
सच में रिशु कराह रहा था. हर सांस के साथ कराह रहा था. मगर उसके मुख से निकलने वाली ‘आआह्ह्ह्ह’ या ‘उफ्फ्फ्फ़’ की कराहें मज़े की थी ना कि दर्द की और यह बात दोनों माँ बेटे बड़ी अच्छे से जानते थे. रिशु कितना मज़े में था यह उसका लंड साफ़ साफ़ दिखा रहा था. जिस का अकार बढ़कर लगभग छे इंच हो चूका था और जो अभी भी बढ़ता जा रहा था.
जैसे जैसे लंड का अकार बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे प्रतिमा की जिव्हा की गति बढती जा रही थी. लंड का कठोर रूप अब उसके सामने था और वो रूप उसके तन बदन में आग लगा रहा था. हालाँकि वो अपने मन में बार बार दोहरा रही थी कि वो अपने बेटे की पीड़ा का निदान कर रही थी मगर उसके पूरे बदन में होने वाली झुरझुरी कुछ और ही बयां कर रही थी.
उसके निप्पल कड़े होकर शर्ट के ऊपर से अपना एहसास देने लगे थे, चूत में रस बहना चालू हो चूका था. वो अपनी उत्तेजना को नज़रंदाज़ करने की कोशिश कर रही थी मगर असलियत में वो अपने आप पर काबू खोती जा रही थी. उसकी सांसें गहरी होती जा रही थी और उसका सीना उसकी साँसों के साथ तेज़ी से ऊपर निचे हो रहा था. बदन में कम्कम्पी सी दौड़ रही थी.
लंड पूरा कड़क हो चूका था और अब उसका आकार करीब साढ़े छे इंच था. लंड इतना सख्त था जैसे मॉसपेशियों का ना होकर लोहे का बना हो. प्रतिमा अपने बेटे के लंड के उस कड़कपन को महसूस करना चाहती थी. मगर जिव्हा से चाटने मात्र से वो उसके कड़कपन को महसूस नहीं कर सकती थी.
प्रतिमा ने खुद को आश्वासन देते हुए कि उसके बेटे की पीड़ा को कम करने के लिए उसे यह कदम उठाना ही होगा, लंड को मध्य से और निचे से अपने रसीले होंठों में भर लिया और अपनी जिव्हा उस पर रगडते हुए उसे चूसने लगी. रिशु के आनंद में कई गुना बढ़ोतरी हो गई. उस बेचारे से बर्दास्त नहीं हुआ और उसके मुख से ऊँची ऊँची कराहें निकलने लगी.
बेटे के मुख से निकलती ‘अह्ह्ह्ह- अह्ह्ह्ह’ ‘उफ़’ ने प्रतिमा को और भी उतेजित कर दिया. धीरे धीरे उसके होंठ लंड के ऊपर की और जाने लगे. जैसे जैसे प्रतिमा के होंठ ऊपर को बढ़ रहे थे, दोनों माँ बेटे की साँसे और सिसकियाँ गहरी होती जा रही थीं.
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प्रतिमा के होंठ एकदम सुपाड़े के पास पहुँच गये थे बल्कि उसके गिले होंठ सुपाड़े के बाहरी सिरे को छू रहे थे. प्रतिमा के दिमाग में कहीं एक आवाज़ गूंजी, उस आवाज़ ने उसे चिताया कि वो क्या करने जा रही है? मगर प्रतिमा ने अगले ही पल उस आवाज़ को अपने मन मस्तिष्क से निकल दिया, ‘वो मेरा बेटा है, मेरा फ़र्ज़ है उसकी देखभाल का, उसे अब जब मेरी इतनी जरूरत है तो मैं क्यों पीछे हटूं?’
अगले ही पल वो हुआ जिसकी आशा में रिशु और प्रतिमा दोनों का बदन कांप रहा था, बुखार की तरह तप रहा था. प्रतिमा के होंठ अपने बेटे के लंड के सुपाड़े के चारों और कस गए. रिशु को लगा शायद वो गिर जाएगा. प्रतिमा ने सुपाड़े को अपने दहकते होंठो में क़ैद कर लिया और उस पर जैसे ही जिव्हा चलाई. रिशु के बदन ने ज़ोरदार झटका खाया.
“आहह्ह्ह… म्म्म्ममी….उफफ्फ्फ्फ़” रिशु सुपाड़े की अति संवेदनशील त्वचा पर अपनी माँ की खुरदरी जिव्हा की रगड़ से ज़ोरों से कराहने लगा. उसके हाथ स्वयं ही ऊपर उठे और अपनी माँ के सर पर कस गए.
रिशु पर अपनी जिव्हा और होंठो का ऐसा जबरदस्त प्रभाव देखकर प्रतिमा जैसे पूरे जोश में आ गई. उसने होंठ कस कर अपनी जिव्हा तेज़ी से चलानी शुरू कर दी. उसका एक हाथ अपने बेटे की कमर पर चला गया और दुसरे से वो उसके अंडकोष सहलाने लगी. अब प्रतिमा का मुंह भी लंड पर आगे पीछे होने लगा था. उसके गिले मुख में धीरे धीरे अन्दर बाहर होते लंड ने रिशु को जोश दिला दिया.
वो अपनी माँ के सर को थामे अपना लंड उसके मुंह में आगे पीछे करने लगा. प्रतिमा के करने और रिशु के करने में फर्क बस इतना था कि यहाँ प्रतिमा धीमे धीमे लंड को चूस रही थी, चाट रही थी, वहीँ रिशु तेज़ी तेज़ी आगे पीछे करते हुए गहराई तक अपनी माँ का मुख चोदने लगा. बेटे का लंड प्रतिमा के गले को टच करता तो उसके मुख से ‘गुन्न्न्न –गुन्न्नन्न’ की आवाज़ निकलती.
उधर रिशु तो जैसे किसी और ही दुनिया में था. आँखें बंद किए वो अपनी माँ के मुंह में अपना लंड घुसेड़ता जा रहा था. प्रतिमा को हालाँकि लंड के इतने तीव्र धक्कों से दिक्कत हो रही थी मगर वो हर संभव प्रयास कर रही थी अपने बेटे के लंड की ज़बरदस्त चुसाई करने का.
उसकी जिव्हा अन्दर बाहर हो रहे लंड के सुपाड़े को रगडती तो उसके होंठ सुपाड़े से लेकर लंड के मध्य भाग तक लंड को दबाते. लंड अन्दर जाते ही उसके गाल फूल जाते और बाहर आते ही वो पिचकने लगते. जल्द ही रिशु को अपने अंडकोष में और लंड की जड़ में दवाब सा बनता महसूस होने लगा.
उसे एहसास हो गया वो झड़ने के करीब है. उसने अब अपनी माँ के मुख को और भी तीव्रता से चोदना शुरू कर दिया. उधर प्रतिमा के लिए अब इस गति से अन्दर बाहर हो रहे लंड को चुसना संभव नही था. वो तो बस अपने होंठो और जिव्हा के इस्तेमाल से जितना हो सकता लंड को सहलाने की कोशिश कर रही थी.
खुद वो अपनी टांगें आपस में रगड़ कर उस सनसनाहट को कम करने की कोशिश कर रही थी. जो उससे बर्दाश्त नहीं हो रही थी. चुत से रस निकल निकल कर उसकी कच्छी और जांघें गीली कर चुका था. अब दोनों माँ बेटे स्पष्ट रूप से कामांध के वशीभूत एक दुसरे से जितना हो सकता कामुक आनंद प्राप्त करने की कोशिश कर रहे थे. दोनों लंड की पीड़ा का दिखावा कब का छोड़ चुके थे.
अचानक रिशु को लगने लगा उसकी सम्पूर्ण शक्ति का केंद्र बिंदु उसका लंड बन गया है. उसका लंड उसे महसूस हुआ जैसे और भी कठोर हो चूका था. लंड की हालत को प्रतिमा ने भी महसूस किया. उस लम्हे, उस पल प्रतिमा के मन में वो विचार कौंधा कि यह तगड़ा कड़क लंड अगर इस समय उसकी चूत में होता तो?
जिस तरह उसका बेटा उसके मुख को गहरे ज़ोरदार धक्कों से चोद रहा था. अगर ऐसे ही बलपूर्वक वो उसकी चूत को गहराई तक चोदता तो? उस विचार ने मानो कामाग्न में जल रही उस नारी के अन्दर जैसे भूचाल ला दिया. उसने दोनों हाथ अपने बेटे के नितम्बो पर रख उसके लंड पर अपना मुख इतनी तेज़ी से आगे पीछे करने लगी कि रिशु ने धक्क्के लगाने बंद कर दिए.
वो पानी माँ के मुखरस से भीगे लंड को उसके मुख में अन्दर बाहर होने के उन आखिरी लम्हों का मज़ा लेने लगा. वो अब किसी भी क्षण झड सकता था. प्रतिमा की जिव्हा के प्रहार के आगे तो उसका बाप बहुत जल्द हार मान लेता था तो उसकी क्या विसात थी?
“ओह्ह्ह्ह………..मम्म्म्ममी…………..आहह्ह्ह्हह्हह्ह्ह……” रिशु कराह उठता है और उसके लंड से वीर्य की प्रचंड धारा निकल प्रतिमा के गले से टकराती है. प्रतिमा के मुख की गति कम होने लगती है. वो धीमे धीमे हल्का हल्का सा सर को आगे पीछे हिलाते हुए अपने बेटे के स्वादिष्ट वीर्य को गटकने लगती है. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
लेकिन एक के बाद एक गिरती धाराएँ उसके लिए मुश्किल पैदा कर रही थी. इसीलिए उसने सर को हिलाना बंद कर दिया और अपने बेटे का वीर्य पीने लगी. उस समय वो इतनी उत्तेजित थी कि अगर उसका बेटा उसे चोदने की कोशिश मात्र करता तो उसे रत्ती भर भी आपत्ति नहीं होती बल्कि वो खुद अपनी टांगें उठाकर उससे खुद चुद्वाती.
लदन से वीर्य निकलना बंद हो चूका था. उसने अपना मुख उसके लंड से हटाया. मुखरस से भीगा लंड चमक रहा था और अभी भी काफी कठोर था. प्रतिमा ने लंड की जड़ को अपनी मुट्ठी में कस अपना हाथ आगे को लाने लगी तो लंड में जमा वीर्य की पतली सी धार निकली. प्रतिमा ने फुर्ती से अपनी जिव्हा बाहर निकाली और लंड को निचे करके उस पतली सी धार को अपनी जिव्हा पर समेट लिया.
“मम्मी …………मम्मी…” रिशु बार बार सिसक रहा था.
उसने फिर से लंड की जड़ को मुट्ठी में भीचा और हाथ आगे को लाई. इस बार मगर एक बूँद ही बाहर निकली. प्रतिमा ने जिव्हा की नोंक से सुपाड़े के छेद से वो बूँद चाट ली.
“मम्मी ………मम्मी ….” रिशु सिसकता जा रहा था.
प्रतिमा की जिव्हा पूरे लंड पर घूमने लगी और उसे चाट कर साफ़ करने लगी. लंड पूरा साफ़ होने के बाद उसने सुपाड़े को अपने होंठो में एक बार फिर से भरकर चूसा और फिर अपने होंठ उसपे दबाकर एक ज़ोरदार चुम्बन लिया.
“ओह्ह्ह्ह मम्म्मम्म्म्ममी …. मम्म्मम्म्म्ममी….” रिशु अभी भी सिसक रहा था.
प्रतिमा ने अपनी जिव्हा अपने होंठो पर घुमाई और वीर्य और मुखरस को अपने मुख में समेट लिया. फिर उसने अपने हाथ रिशु के हाथों पर रखे जो उसके बालों को मुट्ठियों में भींचे हुए थे.
रिशु को अब जाकर एहसास हुआ कि वो जोश में अपनी माँ के बालों को मुट्ठियों में भर खींच रहा था.
“सॉरी मम्मी …मुझे मालूम नहीं यह कैसे….” रिशु अपनी माँ के बालों से हाथ हटाता माफ़ी मांगता है. उसका लंड अब सिकुड़ना शुरू हो चूका था.
“कोई बात नहीं बेटा” प्रतिमा खड़ी होती बोलती है “मुझे उम्मीद है अब तुम्हारी लुल्ली में दर्द नहीं हो रहा होगा”.
“आं….हां…नहीं …. मेरा मतलब अब दर्द नहीं है मम्मी” रिशु हकलाता हुआ बोलता है.
“गुड अब आराम से निचे आना, में नाश्ता गर्म करती हूँ, कहीं फिर से अपनी लुल्ली ज़िपर में ना फंसा देना”.
रिशु को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले? उसे लगा शायद उसकी माँ उसका मजाक उड़ा रही है. लेकिन वो अपनी माँ की कंपकंपाती आवाज़ में डूबी वासना को नहीं देख पा रहा था. वरना वो समझ जाता यह उसकी माँ की आवाज़ नही थी बल्कि कामांध में जल रही एक नारी की उत्तेजना बोल रही थी. जो उस उत्तेजना को मिटाने के लिए किसी भी हद्द तक जा सकती थी.
“और एक बात और ……” प्रतिमा दरवाज़े की चौखट पर पीछे को मुड़कर बोलती है, “अपनी लुल्ली को लुल्ली बुलाना बंद कर … अब यह लुल्ली नहीं रही … पूरा लौड़ा बन गई है” कहकर प्रतिमा कमरे से बहार निकल जाती है.
डायनिंग रूम में नाश्ते के टेबल पर दोनों माँ बेटे ख़ामोशी से खाना खा रहे थे. जो कुछ हुआ था उसके बारे में कोई कुछ भी बोल नहीं रहा था. रिशु की तो अपनी माँ को नज़र उठाकर देखने की हिम्मत तक नहीं हो रही थी. एक तरफ उसे अपने बदन में आनंद की तरंगे घुमती महसूस हो रही थी और वहीँ वो इस सब के मायने समझने में असमर्थ था.
प्रतिमा इस समय सिर्फ और सिर्फ एक ही बात के बारे में सोच रही थी और वो थी अपनी चूत में उठ रही सनसनी को जल्द से जल्द कम करने की. रिशु का तो छुट चूका था. वो तो अपना मज़ा कर चूका था, संतुष्ट था, मगर उसकी संतुष्टि के चक्कर में बेचारी उसकी माँ इतनी गर्म हो चुकी थी की उससे अपनी चूत की आग बर्दाश्त नहीं हो रही थी.
वो बस चाहती थी कि रिशु जल्द से जल्द खाना ख़त्म करके ऊपर चला जाए और फिर वो खुद को शांत कर सके जैसे वो पिछले हफ्ते से करती आ रही थी. उसकी चूत से रस बह- बहकर उसकी जाँघों के निचे तक आ चुका था. खाने के टेबल पर बैठी वो अपनी टांगें आपस में रगड़ रही थी.
मगर उससे उसकी उत्तेजना कम होने की वजाए और भी बढती जा रही थी. वो अपनी चूत से बहते रस की सुगंध को बड़े अच्छे से सूंघ सकती थी. उसे आश्चर्य हो रहा था कि क्या वो सुगंध रिशु तक भी पहुँच रही थी? क्या वो जानता है कि इस समय उसकी माँ कितनी उत्तेजित है?
कि अगर वो, उसका अपना बेटा उसे चोदने की कोशिश करेगा तो वो उससे पूरे मज़े से चुदवा लेगी. मगर क्या वो उसे चोदना चाहेगा? क्या वो अपनी सगी माँ की चूत में अपना लंड पेलना चाहेगा? यही सवाल रह रहकर उसके दिमाग में उठ रहे थे.
रिशु खाना ख़त्म करके अपने रूम में चला गया, बिना कुछ बोले. उसके जाते ही प्रतिमा उठी. उसने बर्तन सिंक में डाले और वो अपने कमरे की और चल पड़ी. कमरे में जाते ही उसने अपने कपडे उतारे और बाथरूम में घुस गयी. ठन्डे पानी की बौछार जैसे उसके बदन को शीतलता देने की वजाए जला रही थी.
उसने दीवार से टेक लगा ली और उसका एक हाथ अपने अकड़े हुए निप्पल को मसलने लगा और दूसरा उसकी चूत को. उसने अपनी चूत में अपनी उंगली अन्दर बाहर करनी शुरू कर दी. “आआह्ह्ह्ह…..ओह्ह्ह्हह…” की कराहें उसके मुख से फूटने लगी. ऊँगली रफ़्तार पकड़ने लगी. बहुत जल्द उसका बदन ऐंठने लगा और कुछ ही पलों में वो सखलित होने लगी.
प्रतिमा हैरान थी. वो ज़िन्दगी में पहली बार इतनी जल्द सखलित हुई थी. मुश्किल से दो मिनट लगे थे. जबकि उसके पति को उसको सखलित करने में पन्द्रह वीस मिनट लग जाते थे. शायद आज वो कुछ ज्यादा ही गर्म हो चुकी थी. शायद उसका जिस्म उसके पति के मुकाबले उसके बेटे को ज्यादा रेस्पोंस दे रहा था या शायद उनके रिश्ते की मर्यादा उनके इस अनैतिक कार्य में छिपी उत्तेजना को बढ़ा रही थी.
कुछ भी हो आज तक प्रतिमा ना कभी इतनी उत्तेजित हुई थी और ना ही इतनी जल्दी छूटी थी. नहाकर प्रतिमा वालों को तौलिए में लपेट कुछ देर के लिए बेड पर लेट जाती है. अब जब उसके दिमाग से काम का बुखार उतर चूका था और असलियत सामने थी तो उसे क्या हुआ था? क्या हो सकता था? और इस सब का क्या परिणाम निकल सकता है? यह सवाल उसे घेरे खडे थे.
एक पल के लीए तो उसे लगा जैसे शायद उसने कल्पना की है और उसके बेटे के बेडरूम में घटी घटना वास्तव में घटी ही नहीं है. मगर नहीं, वो जानती थी, वो उसकी कल्पना नहीं थी. वो अभी भी अपने होंठो के बिच अपने बेटे के लंड का स्पर्श महसूस कर सकती थी. उसके लौड़े के छेद से बहकर निकले रस का स्वाद अपनी जिव्हा अपने होंठो पर महसूस कर सकती थी.
उसे अभी भी अपने सर में दो हिस्सों में हलकी सी पीड़ा का आभास था. यहाँ के बाल उसके बेटे ने उसके मुख को चोदते हुए अपनी मुट्ठियों में भरकर खींचे थे. उसके बेटे ने उसका मुख चोदा था. उसने अपने बेटे का लंड चूसा था. उसके बेटे ने उसका मुख चोदते हुए उसके मुख में अपना वीर्य उगला था. प्रतिमा ने अपने बेटे का लंड चूसते हुए उसका रस पिआ था.
‘हे भगवन! अब वो क्या करेगी? अब वो कैसे अपने बेटे का सामना करेगी? वो उसके बारे में क्या सोचता होगा? नहीं नहीं उसको मालूम था मैं उसके लंड की पीड़ा का निदान कर रही थी’, प्रतिमा खुद को तस्ल्ली देती है, ‘नहीं प्रतिमा, तुम असल में अपने बेटे के मोटे लंड को देखकर बहक गई, तुम उससे मज़े लेने लगी, प्रतिमा का मन मश्तिष्क वाद प्रतिवाद कर रहा था’ यह सब सोचते हुए एकदम से वो परेशान हो उठी थी.
जो बात उसे हैरान कर रही थी कि वो अपने ही बेटे पर मोहित हो गई थी. लेकिन क्यों और कैसे? उसकी कैसे का जवाब तो उसके पास था, मगर क्यों का जवाब वो ढूंड रही थी. उसने आज से पहले कभी भी अपने बेटे को गलत निगाह से नहीं देखा था तो आज फिर अचानक कैसे वो एकदम से उसके साथ सारी हद्दें पार करने को तैयार हो गई?
इस क्यों का जवाब शायद उसके पती के अचानक छुट्टियों में घुमने जाने का प्रोग्राम कैंसिल करने से था. वो नाजाने कितने दिनों से तैयारी कर रही थी. उसने कितनी इच्छाएं पाल रखी थी. पिछले दो साल से उसके पति ने छुट्टी नहीं ली थी और वो महीनो से प्लानिंग कर रहे थे. प्रतिमा के मन को कितना चाव चढ़ा हुआ था.
उन्हें बस इंतज़ार था तो रिशु को स्कूल से छुट्टियाँ होने का. फिर वो किसी हिल स्टेशन पर जाने वाले थे, पूरे एक महीने के लिए. इस एक महीने उसका मूड फुल मस्ती करने का था. ऐसा नहीं था कि प्रतिमा का पति उसका ख्याल नहीं रखता था. वो तो उसकी हर जरूरत को हर शौंक को पूरा करने कि कोशिश करता था.
वो तो उसकी शरीरक जरूरतों को भी हमेश पूरा करने की कोशिश करता था और करता भी क्यों नहीं, प्रतिमा जैसी खूबसूरत औरत किस्मत से मिलती है. मगर समस्या यह थी कि वो दिन भर के काम से शरीरक और मानसिक रूप से इतना थक जाता था कि वो प्रतिमा को उस तरह चोद नहीं पाता था, जिस तरह वो चुदवाना चाहती थी.
प्रतिमा के बदन में इतनी कसावट थी कि जितना उसको मसलो उतनी ही उसमें कसावट बढती जाती थी. वो तो चाहती थी कि उसका पति उसे पूरी रात मसल मसल कर चोदे. मगर काम के बोझ के नीचे दबे उसके पति में इतनी हिम्मत कहाँ रह पाती थी. आखिरी बार प्रतिमा और उसका पति तब बाहर गये थे. जब रिशु दस बरस का था.
उस बात को बीते आठ साल गुज़र चुके थे. अब रिशु बारहवी में पड रहा था. प्रतिमा को आज भी वो समय याद आता था. जब कुलु मनाली की हसीं वादियों में उसने और उसके पति ने एक महीना बिताया था. उफ़ कैसे दिन थे! रात दिन उसका पति उससे चिपका रहता था. घंटो उसकी चूत चाट चाट कर उसको चोदता था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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उसको इतना चोदता था कि वो बस-बस कर उठती थी. वो हसीं समय गुज़रे छे साल हो चुके थे, वो बाहर नहीं गए थे. इस विच हर साल उसका पति साल में तीन चार वार थोड़ी थोड़ी कर छुट्टियाँ लेता मगर उस थोड़ी समय में वो कहीं घुमने नहीं जा सकते थे. ऊपर से रिशु का स्कूल भी होता था और अब तो उसने पिछले दो साल से कोई छुट्टी नहीं ली थी.
इस बार उनका पक्का प्रोग्राम था. वो कैसे कैसे ख्वाब देख रही थी. छुट्टियों में रातें रंगीन करने के वो अपने पति से खुल कर खूब चुदवाने वाली थी. वो पूरी रात उससे चुदवाने वाली थी अलग अलग आसनों में. उसके पति ने भी ऐसी ही इच्छा ज़ाहिर की थी. रोज़ वो उसे बताता था कि वो छुट्टियों में किस किस तरह से उसे चोदने वाला था और जब वो समय पास आया तो उसके पति को जाना पड़ा.
प्रतिमा के सारे ख्वाब टूट गए अब वो बाहर नहीं जा सकते थे. चाहे वो दो महीने छुट्टी लेने वाला था मगर तब रिशु का स्कूल शुरू हो जाने वाला था. जो मज़ा दिल्ली की गर्मी से दूर कहीं पहाड़ी वादियों में मस्ती करने से मिलने वाला था वो घर पर नहीं मिलने वाला था.
शायद इसीलिए प्रतिमा आज अपने आप पर काबू नहीं रख पाई थी. इतने समय से दबी इच्छाएं पूरी ताकत से सामने आ गई थीं और प्रतिमा चाह कर भी खुद को रोक ना सकी जब उसके बेटे का तगड़ा लंड उसके सामने आया. वो अपनी इच्छायों की पूर्ती के लिए रिशु की और झुक गई.
“आआह्ह्ह” प्रतिमा लम्बी लम्बी सिसकियाँ भर रही थी. उसके हाथ बेड पर टिके हुए थे. वो बेड के पास चौपाया बनकर खड़ी थी. बल्कि यूँ कहा जाए वो बेड के किनारे घोड़ी बनी हुई थी और पीछे उसका पति उसकी कमर थामे उसकी चूत में लंड पेले जा रहा था. हर धक्के पर प्रतिमा कराह रही थी. वो अपना सर बेड पर टिका देती है और धक्कों के कारण झूल रहे अपने मम्मों को मसलने लगती है.
“ऊऊफ़्फ़्फ़्फ़” आज तो बहुत मज़ा आ रहा है. कैसे उसके पती का लंड उसकी चूत में पूरी गहराई तक घुस रहा था और वो कितने ज़ोरदार धक्के मार रहा था. प्रतिमा अपने पति की उस ताबड़ तोड़ चुदाई से बहुत ज़बरदस्त आनंद महसूस कर रही थी. वो अपने पति को कुछ कहना चाहती थी. शायद उसकी इस ज़ोरदार मेहनत के लिए उसकी तारीफ करना चाहती थी.
वो चाहती थी कि वो अपने पति की आँखों में झांकें जो हमच-हमच कर उसको चोदे जा रहा था. प्रतिमा धीमे धीमे अपना सर पीछे की और घुमाती है. अचानक उसे अपनी ज़िन्दगी का सबसे बडा झटका लगता है. उसके पीछे खड़ा उसको चोदने वाला उसका पति नहीं था बल्कि उसका बेटा रिशु था जो अपनी माँ की चूत में किसी सांड की तरह लंड पेले जा रहा था.
“नहीईईइईईईई” प्रतिमा चीख पड़ती है.
मगर यह क्या? वो तो अपने कमरे में अकेली थी अपने बेड पर, बिलकुल नंगी, एक ही पल में सुबह की सारी घटनाएं उसकी आँखों के आगे घूम जाती हैं. वो सपना देख रही थी. नहाने के बाद जब वो बेड पर लेटे लेटे अपनी सोचो में गुम थी तो उसे नाजाने कब नींद आ गई. दोपहर के दो बजने को आए थे.
उसे रिशु को खाना देना था. उसे खुद भी भूख महसूस हो रही थी. एक ठंडी आह भरकर प्रतिमा बेड से उठ जाती है और शिंगार के लिए शीशे के सामने बैठ जाती है. वो अपने बालों से तौलिया हटा देती है. अब वो नंगी आईने के सामने बैठी थी और उसके बाल उसकी पिठ पर लटक रहे थे.
प्रतिमा खुद को आईने में निहारती है. उसकी नज़र अपने चेहरे पर पड़ती है तो उसे अपनी आँखों में कुछ लाली नज़र आती है. शायद पिछली कई रातों से ठीक से ना सो सकने की वजह से था. वो अपने खुबसूरत मुख को निहारती रहती है. वो अब भी इतनी सुन्दर थी कि किसी का भी दीन इमान डोल सकता था.
उसकी नज़र निचे की और जाती है तो उसे अपने भारी मम्मो के निप्पल तने हुए महसूस होते हैं. वो अपनी उँगलियों से अपने मम्मो को छूती है. वाकई में उसके निप्पल तने हुए थे. शायद सपने की वजह से. ‘उफ्फ्फ्फ़’ उसका बेटा उस पर जादू किए जा रहा था. उसके सपनो में भी आने लगा था या फिर खुद उसकी खवाहिश इतनी जोर पकड़ चुकी थी कि वो सपनो में भी अपने बेटे से चुदवाने लगी थी ना के अपने पति से.
वो अपने निप्पलों को मसलती अपनी जाँघों के बिच में देखती है. जो स्टूल पर बैठे होने के कारण थोड़ी खुली हुई थी. उसकी गोरी चूत के होंठ हलके से खुले हुए थे और अन्दर से उनमें से गुलाबीपन झांक रहा था. वो एक हाथ से अपना निप्पल मसलना चालू रखती है और दुसरे को वो निचे लाती है.
वो अपनी मध्यम ऊँगली चूत की लकीर में घुमाती है तो उसे एहसास होता है कि उसकी चूत कुछ गीली थी. वो ऊँगली अन्दर घुसाती है तो ऊँगली रस से भीगी चूत में घुसती जाती है. ‘उफ्फ्फ’ उसकी चूत तो जैसे बरस रही थी. प्रतिमा की आंखें बंद हो जाती हैं.
और उसे वो सुबह का समय याद आता है, नहीं उसे वो समय याद नहीं आता, उसे और कुछ याद नहीं आता बस उसे याद आता है तो अपने बेटे का सख्त लंड “हाई कितना मोटा है” वो ऊँगली चूत में चलाती सोचती है, ‘कितना हार्ड था जैसे लोहे का हो, ऐसा मोटा कठोर लंड उसकी चूत में जाएगा तो उसे कैसा लगेगा?
‘उफ्फ्फ्फ़’ वो सख्त लंड तो उसकी चूत को छील देगा, इतना मोटा लंड उसकी चूत की दीवारों को कैसे रगड़ेगा, जैसे जैसे अभी उसका बेटा उसके सपने में रगड़ रहा था, हाँ उसका बेटा जब उसके सपने में उसे किसी सांड की तरह चोद रहा था तो वो कैसे सिसक रही थी.
अगर वो वास्तव में अपना लंड उसकी चूत में घुसाकर उसे चोदेगा तो उसकी क्या हालत होगी’ प्रतिमा एक पल के लिए कल्पना करती है कि अपने बेटे के मोटे तगड़े लंड से चुदवाने में उसे कितना मज़ा आएगा तो उसके होंठो से एक लम्बी ‘आह्ह’ निकल जाती है.
प्रतिमा अपनी आँखें खोलती है और आईने में अपनी आँखों में झांकती है उसे अपनी आँखों में अपने बेटे के लिए असीम वासना तैरती दिखाई देती है और वो डरकर झटके से आईने से दूर हटकर बाथरूम में चली जाती है. मुंह पर पानी के छींटे मारती वो खुद से यही दोहरा रही थी कि उसे खुद पर काबू पाना होगा वरना वो सच में रिशु से चुदवा बैठेगी.
प्रतिमा एक टीशर्ट और पायजामा डाल लेती है. वो ब्रा और पेंटी नहीं पहनती. ‘कितनी गर्मी है, इस गर्मी में वो भला ब्रा और पेंटी कैसे पहने?’ प्रतिमा की टीशर्ट हालाँकि बहुत ज्यादा टाइट नहीं थी मगर उसके मोटे मोटे मम्मो से उसकी पतली सी टीशर्ट खुद कसी हुई थी ना सिर्फ उसके निप्पल टीशर्ट के ऊपर से अपना आभास दे रहे थे बल्कि मम्मो का पूरा आकार भी टीशर्ट से बाखूबी जान पड़ता था.
जब वो थोडा सा भी हिलती डूलती तो उसके मम्मे उसकी टीशर्ट में तूफान मचा देते और उसकी टीशर्ट उसके पायजामे तक नहीं पहुँच रही थी. वो थोड़ी सी छोटी भी थी जिस कारण उसकी नाभि नंगी थी. प्रतिमा हलका सा शिंगार करती है, गले में मंगलसुत्र डाल और अपनी नाक में बाली डाल लेती है.
बालों को वो एक रबड़बंद डाल कर पीठ पीछे लटकने देती है. आईने में एक नज़र डाल वो जल्दी से रसोई की और बढ़ जाती है. उसने कोई खास शिंगार नहीं किया था मगर आईने में डाली एक नज़र से वो जान गई थी कि उसका हुसन कितना क़ातिलाना है और कत्ल होने के लिए उस घर में सिर्फ एक ही शक्स था.
रिशु ने नाश्ते के बाद अपना ज्यादातर समय पड़ाई में बतीत किया था. उसकी माँ ने आज उसे इतना मज़ा दिया था कि उसने सोच लिया था वो अपनी माँ को खुश करने का हर संभव प्रयास करेगा. रिशु कोई बच्चा नहीं था. वो इन्टरनेट के युग में पल बढ़ रहा था.
इसीलिए पुरष- नारी के बिच सम्बन्ध और उस सम्बन्ध में समाहित अतिकथनीए आनंद के बारे में भली भांति जानता था. उसने अपने लैपटॉप पर ना जाने कितनी ब्लू फिल्में देखी थी. मगर उसे वास्तविक दुनिया में इसका कोई अनुभव नहीं था. आज से पहले ना उसने कभी अपनी माँ को गलत नज़र से देखा था ना ही उसका इस और कोई ध्यान ही गया था.
इसीलिए वो यकीन नहीं कर पा रहा था कि उसकी माँ ने उसका लंड मज़े के लिए चूसा था या वो वास्तव में उसकी पीड़ा का निदान कर रही थी. वो इसी उलझन में था और फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसकी माँ ने उत्तेजना के वशीभूत उसका लंड चूसा था या फिर वो मात्र पुत्र मोह में अनजाने में उसकी तकलीफ से परेशान होकर उसका लंड चूस रही थी.
बहरहाल वजह कोई भी हो उसे इतना मज़ा आया था जितना आज तक नहीं आया था और फिर उसे अपनी माँ की वो बात याद आती है जब उसने जाने के समय बोली थी, “अब इसे लुल्ली बोलना बंद करो, तुम्हारी लुल्ली अब लौड़ा बन गई है”. रिशु अपने लंड को अपने हाथ से भींच लेता है.
वो सुबह के समय को जैसे ही याद करता है उसका लंड झटके मारने लगता है आखिरकार किसी तरह पड़ाई करके वो लेट गया और सोने की कोशिश करने लगा मगर नींद उसकी आँखों से लाखो कोस दूर थी. जैसे तैसे उसे नींद आई तो उसे सपने में भी अपनी मम्मी दिखाई देने लगी.
वो दूर खड़ी अपने बदन से एक एक कपडा उतारते हुए उसे पुकार रही थी. मगर जैसे जैसे रिशु उसकी और बढ़ता वो दूर होती जाती. इसी में रिशु की नींद खुल गई वो नहाने चला गया. नहाकर आया तो उसे तेज़ भूख महसूस होने लगी. किचन से आती बर्तनों की आवाज़ से उसने जान लिया था कि उसकी माँ रसोई में खाना बना रही है.
मगर नाजाने क्यों उसे नीचे जाने में शर्म महसूस हो रही थी. वो विचलित सा था. मगर उसकी पुकार जैसे प्रभु ने सुन ली. घर की बेल बजी. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला. कुछ पलों बाद उसकी माँ ने उसे ऊँची आवाज़ में उसको पुकारा. कोई उससे मिलने आया था, कोन हो सकता था? कोई भी हो अब वो बहाने से निचे जा सकता था.
वो निचे गया तो उसने दूर से देखा उसका दोस्त वैभव खड़ा था ‘ओह मैं तो भूल ही गया आज हमारा क्रिकेट का मैच था’ वैभव उसकी माँ से बातें कर रहा था. उसने रिशु की और नज़र उठाकर भी नहीं देखा. जब रिशु बिलकुल पास आ गया तब उसने कहा “रिशु यार, क्या तू भी, कब से तेरा इंतज़ार कर रहे हैं, तू आया क्यों नहीं?
“मेरी तबीअत ठीक नहीं थी, सर दर्द था, वैसे भी मेरा मूड नहीं है, तुम लोग खेलो”.
“अरे नहीं यार, तेरे बिना बात नहीं बनेगी, चल ना यार”.
“नहीं मैं नहीं जा सकता, मैंने तुझे बताया ना कि मुझे सर में बहुत तेज़ दर्द है” रिशु की आँखें अपने दोस्त की आँखों का पिछा कर रही थीं और उसका चेहरा लाल होता जा रहा था.
“प्लीज यार चल ना, तूने प्रॉमिस किया था”.
“मैने एक बार बोल दिया ना कि मैं नहीं जाऊँगा” रिशु एकदम भड़क कर बोला.
उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था कि वैभव उसकी माँ के बदन को घूर रहा था. रिशु की कडकती आवाज़ की और प्रतिमा का धयान भी गया. उसे भी मालूम था वैभव उसके बदन को घूर रहा था. जब उसकी नज़र रिशु की नज़र से मिली तो उसने उसकी आँखें गुस्से से जलती हुई देखी.
उसे माज़रा समझने में देर ना लगी. हालाँकि एक पल के लिए उसके दिल में आया कि उसे अपने बेटे को जलाना चाहिए, बहुत मज़ा आएगा, मगर रिशु का गुस्से से लाल चेहरा देख वो मुड़ी और रसोई में चली गई. उसके होंठों पर मुस्कान थी.
“अरे इस तरह भड़क क्यों रहा है, नहीं जाना तो मत जा, मैं तो तुझे दोस्त मानता था, इसीलिए बुलाने आया था, मुझे क्या पता था…..”
“क्योंकि मेरे बार बार कहने पर भी तुझे समझ नहीं आ रहा और मैं तुझे साफ साफ़ बता दूं, अब मैं खलेने नहीं आया करूँगा, मैंने दूसरा ग्रुप ज्वाइन कर लिया है, या शायद मैं घर पर कंप्यूटर पर गेम खेल लिया करूँगा, इसीलिए मुझे बुलाने आने की जरूरत नहीं है, छुट्टियों के बाद स्कूल में मिलेंगे” रिशु अपने दोस्त की बात काटकर बीच में बोला.
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वैभव को एक पल के लिए यकीन नही हुआ. मगर जब रिशु ने आगे बढ़कर दरवाज़ा खोला और उसकी और अर्थपूर्ण नज़रों से देखा तो वो समझ गया कि उसकी और रिशु की दोस्ती ख़त्म हो गयी है. वो घर से बाहर चला जाता है. रिशु दरवाज़ा बंद करके रसोई में जाता है. यहाँ उसकी माँ के पेट में हँसते हुए दर्द होने लगा था.
रिशु की पदचाप सुनकर उसने मुंह दूसरी और घुमा लिया. कहीं वो उसे हँसते हुए ना देख ले. वो खुद पर काबू पाने की कोशिश कर रही थी. उसे यकीन नहीं हो रहा था उसका बेटा उसको लेकर इतना जल सकता था. रिशु रसोई में से पानी का गिलास लेकर पानी पिने लगा. ‘ऊउन्ह्ह्ह’ गला साफ़ करके प्रतिमा रिशु को देखती है.
अब उसका चेहरा कुछ नार्मल लग रहा था. नाजाने क्यों उसे रिशु का चेहरा इतना प्यारा लगा कि उसका दिल किया वो उसे आगे बढ़कर चूम ले. रिशु के दोस्त के आने से इतना अच्छा जरूर हो गया था कि घर में छाई गंभीरता, चुप्पी टूट सी गई थी. मौन भंग हो गया था. प्रतिमा और रिशु दोनों पहली बार खुल कर सांस ले पा रहे थे. सुबह जो कुछ हुआ था उससे उन दोनों का धयान हट गया था.
“बेटा तुम्हारे लिए ऑमलेट सैंडविच बना रही हूँ, कुछ और खाने का मूड तो नहीं है?” प्रतिमा अपने बेटे की और देखती है.
“नहीं मम्मी मैं सैंडविच ही खाऊँगा, आप को मालूम तो है, मुझे ऑमलेट सैंडविच कितना पसंद है” रिशु अपनी माँ को देखता हुआ नर्म स्वर में बोलता है. वैभव की वजह से उसका बिगड़ा हुआ मूड अब ठीक होने लगा था.
“बस थोडा सा वेट करो, अभी पांच मिनट में रेडी हो जाएगा. ऑमलेट बन गया, घी बस स्टफिंग ब्रेड्स में डालनी बाकी है” प्रतिमा कडाही में कड़छी चलाती हुई अपने बेटे को देखती हुई मुस्करा कर बोलती है.
“कोई बात नहीं मम्मी, आप आराम से कीजिए”, रिशु रसोई के काउंटर से टेक लगाए प्रतिमा को देखता हुआ बोलता है. वो चोर नज़रों से प्रतिमा को घूर रहा था. प्रतिमा का रुख दिवार की और था. इसीलिए रिशु उसको सिर्फ एक साइड से ही देख पा रहा था.
आज रिशु को अपनी माँ कुछ ज्यादा ही खुबसूरत दिख रही थी, मानो उसकी सुन्दरता में कई गुना इजाफा हो गया था. सुन्दर तो वो वैसे भी बहुत थी, इतनी सुन्दर कि वो जैसे भी कपडे पहने, नए पुराने, किसी भी स्टाइल में बाल बांधे, वो खुबसूरत ही दिखती थी. उसे सुन्दर दिखने के लिए किसी भी तरह का फैशन करने की या फिर मेकअप करने की जरूरत नहीं थी.
रिशु को हैरानी हो रही थी कि उसका इस और पहले धयान क्यों नहीं गया. उसका ध्यान अपनी माँ की उठी हुई टीशर्ट और उसमे से झांकते हुए उसके सपाट दुधिया पेट पर गया. खास करके उसकी नाभि पर, उसका गोरा दुधिया पेट और गहरी नाभि पर जैसे उसकी नज़र जम गयी थी.
“बेटा ऑमलेट तैयार है, साथ में जूस लोगे जा फिर चाय पिओगे”.
“मम्मी मैं चाय पीऊँगा” रिशु डायनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठता बोलता है.
रिशु और उसकी माँ दोनों टेबल पर आमने सामने बैठे खाना खा रहे थे. कोई कुछ बोल नहीं रहा था. रिशु का ध्यान बार बार अपनी माँ के चेहरे और उसकी छाती पर चला जाता. यहाँ उसके मुम्मो ने टीशर्ट को ऊपर उठाया हुआ था.
“अगर तुम खेलने जाना चाहते हो तो जा सकते हो, मैं तुम्हे खेलने कूदने से नहीं रोकती, मगर तुम्हे अपनी पढाई का भी धयान रखना चाहिए”, प्रतिमा रिशु को देखते बोलती है.
“सॉरी माँ अब से गलती नहीं होगी, आगे से पूरा ध्यान रखूँगा”, रिशु प्रतिमा के चेहरे की और देखता हुआ बोलता है.
“आज तुमने पढाई की थी?”.
“हाँ मम्मी, सुबह से कर रहा था, अभी बस थोड़े से समय के लिए सोया था”.
“गुड, वैरी गुड, फिर तो तुम खेलने जा सकते हो”, प्रतिमा रिशु की आँखों में देखती बोलती है.
“नहीं माँ, मेरा दिल नहीं कर रहा, वैसे भी मैंने फैसला कर लिया है, घर पर रहकर खूब पढ़ाई करूँगा और….और घर के काम काज में आपकी मदद करूँगा”, रिशु आखिरी लाइन झिझकते हुए बोलता है.
“तुम सारा दिन घर पे रहकर पढ़ाई करोगे और घर के काम में मेरी मदद करोगे?……रियली!” प्रतिमा हैरानी भरे स्वर में बोलती है, “मुझे अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा, क्या मैं जान सकती हूँ इस एकदम से ह्रदय परिवर्तन की वजह क्या है?” प्रतिमा का स्वर उपहास भरा था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“ऐसे ही मम्मी…. मैंने देखा है……आप सार दिन घर पे…. अकेले रहते हो और आपको कितना …..कितना काम अकेले करना पढता है, इसीलिए मैंने सोचा, आप की काम में मदद कर दूंगा और….और …” रिशु से आगे बोला नहीं जा रहा था.
“और? और क्या?” प्रतिमा धीमी सी आवाज़ में बोलती है.
“और …और आपको कंपनी भी मिल जाएगी, आपका अकेलापन भी दूर…….दूर हो जाएगा”, रिशु थूक गटकता है. उसके दिल की धडकन बहुत तेज़ -तेज़ चल रही थी, “मैं भी ….आपके साथ …..आपके साथ समय बिताना चाहता हूँ”.
“तुझे सच में मेरे अकेलेपन की चिंता है? तू सच में मेरे साथ समय बिताना चाहता है?” प्रतिमा की आवाज़ और धीमी हो गई थी.
“हाँ मम्मी, सच में पढाई के बाद जो भी समय बचेगा, उसमे घर के काम में आपकी मदद करूँगा, आप जो भी कहेंगी, जैसे भी कहेंगी, वैसे ही करूँगा”, रिशु ने जोशीले स्वर में कहा.
“मुझे यकीन नहीं हो रहा, कहीं तुम मजाक तो नहीं कर रहे”, प्रतिमा जानती थी उसका बेटा झूठ नहीं बोल रहा. मगर वो उसके मुंह से सुनना चाहती थी.
“बिलकुल भी नहीं मम्मी, आपकी सौगंध! मैं बिलकुल भी मजाक नहीं कर रहा”.
“और क्या तू सारा दिन घर पर अपनी मम्मी के साथ बोर नहीं होगा”, प्रतिमा उसी तरह की धीमी और कामुक सी आवाज़ में बोलती है.
“उन्ह्ह्हह नहीं मम्मी, मैं आपके साथ भला बोर क्यों हूँगा, आपके साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है मम्मी, सच में”, रिशु के वो अलफ़ाज़ प्रतिमा को बहुत प्यारे लगे और उसका दिल किया वो आगे बढ़कर अपने बेटे को चूम ले.
“सब बातें हैं, मुझे लगता है, तू मुझसे दो तीन दिन में ही उब जाएगा” प्रतिमा ने कहा.
“उफ्फ्फ मम्मी अब आपको कैसे यकीन दिलाऊँ, मुझे कोई फ़ोर्स थोड़े ना कर रहा है, मैंने अपनी मर्ज़ी से फैसला किया है, और इसीलिए किया है कि आप मुझे बचुत अच्छी लगती हो”.
रिशु धडकते दिल से कह तो गया. मगर अपनी माँ की प्रतिकिर्या को लेकर वो बहुत डर गया था. प्रतिमा ने भी अपने बेटे के स्वर में कम्पन और डर को महसूस किया. वो अपना खाना छोड़ खड़ी हो गई. रिशु की जान पे बन आई. मगर उसकी माँ सिर्फ टेबल पर आगे को झुकी.
और उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया. झुकने से उसके मुम्मो का काफी हिस्सा टीशर्ट के खुले हुए दो बटनों से दिख रहा था और वैसे भी झुकने की वजह से वो उसकी टीशर्ट को कुछ ज्यादा ही फैला रहे थे. रिशु की पेंट में उसका लंड तम्बू बन चूका था.
“मुझे मालूम है तुम दिल से कह रहे हो ………मुझे तुम पर पूरा यकीन है बेटा, मुझे भी तुम्हारे साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है, तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो बेटा” प्रतिमा बिना रुके बेटे को प्यार भरे मीठे स्वर में बोलती है.
रिशु को अपनी माँ की बात इतनी अच्छी लगी कि उसका चेहरा खिल उठा और उसे देखकर उसकी माँ का. दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी. दोनों अन्दर से बहुत खुश थे. प्रतिमा वापिस कुर्सी पर बैठ गई और बाकी का खाना खाने लगी. रिशु का धयान रह रहकर प्रतिमा के चेहरे तो कभी उसके सीने पर चला जाता.
उसे लग रहा था जैसे उसकी माँ की सुन्दरता पल प्रतिपल बढती जा रही थी. उसका सांस लेना, खाना खाना, बात करना, हर काम से, उसकी हर छोटी से छोटी सी हरकत से उसे अपनी माँ की सुन्दरता झलकती दिखाई दे रही थी. आज कुछ खास ही बात थी, वो खास बात क्या थी, वो यही देखने की कोशिश कर रहा था.
शायद उसका चेहरा आज खिला हुआ था और उसके होंठो की वो प्यारी सी मुस्कुराहट उसकी सुन्दरता को बढ़ा रही थी. नहीं, उसकी माँ सदेव ही इतनी सुन्दर थी मगर आज रूप कुछ ज्यादा ही दमक रहा था या फिर उसके देखने की नज़र बदल गई थी.
उसने गहनों के नाम पर कान में झुमके, नाक में बाली और गले में मंगलसूत्र डाला हुआ था. उसकी तीखी नाक में डाली बाली उसके चेहरे की शोभा बढ़ा रही थी, चेहरे को कितना सुन्दर….. नहीं सुन्दर तो वो बिना बाली के भी दिखती है. फिर क्या, किस लफ्ज़ से उसका रूप…..हाँ …हाँ….उसकी नाक की बाली उसके चहरे को कितना सेक्सी दिखा रही थी, कितना कामुक दिखा रही थी.
प्रतिमा का गोल गोरा चेहरा बेहद गोरी रंगत लिए था और उसके गोल गोरे चेहरे पर उसकी नाक की बाली सच में बेहद सेक्सी दिख रही थी बल्कि उसकी बाली से उसका रूप, चेहरा सेक्सी दिख रहा था. अगर कोई कसर थी तो उसकी टीशर्ट के खुले बटनों ने पूरी कर दी थी.
उसके मुम्मो का हल्का सा ऊपरी हिस्सा और दोनों मुम्मो के विच की खाई बेहद कामुक दिख रही थी मगर जो चीज़ उनकी कामुकता बढ़ा रही थी वो थी दोनों मुम्मो के बीच की खाई में लटकता उसका मंगलसुत्र. गोरे गोरे मुम्मो को जैसे काला मंगलसूत्र चूम रहा था, सहला रहा था.
अब जाकर उसे समझ आया कि आज उसकी माँ उसको इतनी सुन्दर क्यों दिख रही थी. उसने अपनी माँ की सुन्दरता को हमेशा देखा था. मगर सुबह के हादसे के बाद आज उसका धयान पहली बार इस और गया था कि वो कितनी कामुक दिखती है. उसकी हर अदा कामुकता से भरपूर थी.
जिस तरह वो चाय की चुस्कियां ले रही थी, जिस तरह उसके सुर्ख होंठो से चाय का प्याला छूता जा रहा था. जिस तरह सांस लेने से उसका ब्रा रहत सीना हल्का सा ऊपर उठता था. जिस तरह वो विच विच में उसकी और देखकर मुस्करा देती थी…..उफ्फ्फ्फ़ उसकी माँ का बदन कितना कामुक है! कैसे उसके अंग अंग से मादकता बरस रही थी.
प्रतिमा के रूप की चमक ने उसके बेटे को अपने मोहपाश में बांध लिया था, वो जैसे सम्मोहित हो चूका था. प्रतिमा चाय की चुस्कियां लेती बीच बीच में रिशु की और देख लेती थी. जो उसे अपलक घूरे जा रहा था. वो उसकी नज़रों की तपिश अपने चेहरे और सीने पर महसूस कर रही थी.
वो रिशु की आँखों से उसके चेहरे से जान सकती थी उसका बेटा उसके हुसन का दीवाना बन चूका है. वो देख सकती थी कि वो उसके चेहरे की बारीक़ से बारीक़ रेखाओं की और धयान से देख रहा था, वो देख सकती थी कैसे उसकी आँखें उसकी सांस लेने से ऊपर निचे होते उसके मम्मो के साथ ऊपर निचे हो रही थी.
प्रतिमा यहाँ एक तरफ अपने हुसन के इतने जबरदस्त प्रभाव से खुश थी, अपने हुसन पर अभिमान कर रही थी. वहीँ उसे कुछ लज्जा सी भी महसूस हो रही थी कि उसका बेटा अपनी हमउम्र की लड़कियां छोड़ अपनी 38 बर्षीए माँ पे आशिक हो रहा था, उसे कुछ शर्म सी आ रही थी. प्रतिमा प्लेट और कप्स उठाकर सिंक में डाल देती है. प्रतिमा पानी चलाती है तो रिशु उसके पास आकर खड़ा हो जाता है.
“लाओ मम्मी, मैं बरतन साफ़ करने में तुम्हारी मदद करता हूँ”.
“थैंक यू बेटा, मगर अभी नहीं, यह छोटा सा काम मैं कर लूंगी, तुम ऐसा करो टीवी लगाओ, मैं भी आती हूँ, हम दोनों मिलकर टीवी देखेंगे”.
“नहीं मम्मी, अब से हम दोनों मिलकर काम करेंगे, मैंने आपको कहा था ना”.
प्रतिमा के चेहरे पर मुस्कुराहट फ़ैल जाती है.
“बेटा यह सिर्फ दो चार बर्तन ही हैं, मुश्किल से पांच मिनट का काम है, मैं खुद कर लूंगी, तुम शाम को खाना बनाने में मेरी मदद करना, अब तुम जाओ और टीवी पर चेक करो, कौन सी अच्छी मूवी लगी है, दोनों मिलकर कोई मूवी देखते हैं”.
“ठीक है मम्मी, जैसा आप कहें”, रिशु अपनी माँ की नंगन नाभि पर एक नज़र डालता है और मुडकर बाहर जाने लगता है.
“एक मिनट बेटा, मुझे तुमसे एक जरूरी बात कहनी थी” अचानक प्रतिमा रिशु को पीछे से आवाज़ देती है. वो पीछे मुडकर देखता है. उसकी माँ के चेहरे से मुस्कराहट गायब थी. उसका चेहरा कुछ झुका हुआ था और वो बहुत गंभीर जान पडती थी. बल्कि ऐसा लगता था जैसे वो कुछ परेशानी में हो.
“क्या बात है माँ?” रिशु थोडा सा परेशान हो उठता है.
प्रतिमा कुछ पलों तक चुप रहती है जैसे अपनी बात कहने की हिम्मत जूटा रही हो. फिर वो अपना चेहरा ऊपर उठाकर रिशु की आँखों में देखकर बोलती है.
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“बेटा आज सुबह जो कुछ तुम्हारे कमरे में हुआ, मेरा मतलब जो कुछ मैंने किया तुम प्लीज….प्लीज उसका किसी से ज़िक्र नहीं करना, प्लीज बेटा”, प्रतिमा मिन्नत भरे लहजे में फुसफुसा बोली. शायद वो यह बात बहुत समय से रिशु से कहना चाह रही थी मगर कह नहीं पा रही थी.
“सुबह…सुबह क्या हुआ था? तुमने क्या किया था जो मैं किसी को ना बताऊँ?” रिशु प्लेन लहजे में बोलता है.
“वो सुबह…. सुबह जब मैं तुम्हारे कमरे में आई थी, जब…जब तुम्हारी ज़िपर में…” प्रतिमा को समझ नहीं आ रहा था कि रिशु जान बुझकर अनजान क्यों बन रहा है.
“मम्मी मुझे कुछ याद नहीं पड़ता, सुबह क्या हुआ था, मुझे तो आपकी बात ही समझ नहीं आ रही”, रिशु का स्वर पहले की तरह प्लेन था. प्रतिमा और भी परेशान हो उठी थी.
“बेटा तुम समझ क्यों नहीं रहे….उफ्फ्फ्फ़ जब मैंने अपने मुंह में…”
“मम्मी मुझे लगता है, आप मजाक करने के मूड में हो”, रिशु अपनी माँ की बात बीच में काट कर बोला, “सुबह आप मेरे कमरे में मुझे जगाने आई थी और आपने मुझे नाश्ते के लिए बोला था, बस इतनी ही बात थी”, रिशु उसी प्लेन स्वर में बोलता है.
प्रतिमा को अचानक अपने बेटे की बात समझ में आती है. अब जाकर उसे समझ में आया था वो क्या कहना चाहता था.
“तुम्हे यकीन है बात इतनी ही है” प्रतिमा अपने हर शक को दूर कर लेना चाहती थी.
“हां माँ, तुम्हे अच्छी तरह से मालूम है, मेरी याददाशत कितनी अच्छी है” रिशु एक पल के लिए चुप हो जाता है, “और हाँ माँ, जैसे आज सुबह कुछ नहीं हुआ था वैसे ही आगे भी कुछ नहीं होगा और मैं कभी…कभी भी कोई बात किसी से शेयर नहीं करूंगा”.
प्रतिमा गहरी सांस लेती है. उसके होंठो पर मुस्कुराहट लौट आई थी. उसे लगा उसके सीने से कोई भारी बोझ उतर गया था और अब वो निश्चिंत थी. अब वो खुलकर सांस ले सकती थी. उसे अपने बेटे की समझदारी पर गर्व हो उठा और वो इतनी खुश थी कि वो रिशु को शुक्रिया अदा करना चाहती थी मगर सिर्फ लफ़्ज़ों से नहीं. वो अपने बेटे को यताना चाहती थी कि वो उसकी कितनी शुक्रगुजार है.
प्रतिमा आगे बढ़कर रिशु के सर पर हाथ फेरती है. वो उसके इतने पास थी कि उसके मुम्मे अपने बेटे की छाती से सटे हुए थे. वो धीरे से अपना मुंह आगे करती है और… प्रतिमा रिशु के कन्धों को थाम धीरे से मुख आगे लाती है. रिशु के होंठ सूखने लगते हैं, दिल की धडकने तेज़ होने लगती हैं.
प्रतिमा के होंठ बिलकुल रिशु के होंठो के सामने आ जाते हैं, मुश्किल से उन दोनों के होंठो के बीच एक इंच का फासला होगा. रिशु के सीने में उसका दिल ‘धम्म-धम्म’ धड़क रहा था. उसके चेहरे पर अपनी माँ की गर्म साँसे पड रही थी. पेंट में उसका लंड तम्बू बना देता है.
प्रतिमा कुछ सेकंड्स के लिए रिशु की आँखों में आँखें डाल कर देखती है जब उसके होंठ रिशु के होंठो के साथ लगभग टच कर रहे होते हैं. प्रतिमा धीमे से चेहरा दाईं और घुमाती है. उसके होंठ हल्के से रिशु के होंठो से रगड़ खाते हैं. वो रिशु के दायें गाल पर अपने तपते हुए होंठ लगा देती है.
रिशु को अपना गाल जलता हुआ महसूस होता है. वो उत्तेजना में अपनी कमर थोड़ी सी आगे करता है तो पायजामे में उसका लंड अपनी माँ के नंगे पेट पर दबता है. प्रतिमा अपने पेट पर लंड की चुभन महसूस करके होंठो को रिशु के गाल पर दबाती है और अपनी जिव्हा रिशु के गाल पे फेरती है. फिर वो धीमे से अपने होंठ रिशु के गाल से हटाकर उसके कान के पास ले जाती है और सरगोशी करने के अंदाज़ में बोलती है.
“शुक्रिया बेटा, मैं तुम्हे बता नहीं सकती, तुमने मेरे दिल से कितना बड़ा बोझ उतार दिया है”, प्रतिमा एक पल के लिए चुप होती है फिर लगभग ना सुनने वाली आवाज़ में धीरे से फुसफुसाती है.
“मुझे तो मालूम भी नहीं था कि मेरा बेटा जवान हो गया है और इतना समझदार भी” प्रतिमा फिर से एक पल के लिए चुप होती है और फिर से फुसफुसाती है, “अगर ऐसे ही समझदारी दिखाओगे तो मैं वादा करती हूँ, तुम्हे छुट्टियों में बहुत मज़ा आने वाला है”.
प्रतिमा रिशु के कंधे पकड अपना पेट उसके लंड पर दबाती है जो अब झटके मार रहा था और फिर से अपने बेटे के गाल पर एक भीगा चुम्बन देकर उससे चेहरा दूर हटा लेती है. रिशु का चेहरा लाल हो चूका था, उत्तेजना के मारे उसका बुरा हाल था. लंड पेंट में झटके पे झटके मार रहा था. प्रतिमा नज़र नीची करके उसकी पेंट में बुरी तरह झटके मार रहे लंड को देखती है तो उसकी कामरस से गीली चूत में सनसनी होने लगती है.
“तुम जाकर टीवी लगाओ, मैं अभी आती हूँ” प्रतिमा मुस्कराती हुई उसे बोलती है और पीछे को मुडकर वो खुद सिंक के पास चली जाती है. रिशु को कुछ लम्हे होश में आने को लगते हैं. फिर वो खुद को संभालता है और ड्राइंग रूम में चला जाता है.
रिशु टीवी ओन करता है और रिमोट लेकर चैनल चेंज करने लगता है. उसका एक हाथ अपने लंड को मसल रहा था. अभी भी उसे अपने गाल पर अपनी माँ के होंठो की तपिश महसूस हो रही थी. अभी भी वो अपने सीने पर अपनी माँ के मुम्मो का दवाब महसूस कर सकता था.
अभी भी वो उसके उत्तेजना से कड़े निप्पलों को अपनी छाती में चुभते महसूस कर सकता था. उसका लंड अभी भी अपनी माँ के नर्म मुलायम पेट के स्पर्श को याद कर झटके मार रहा था. उस समय उसकी तीव्र इच्छा हो रही थी कि वो बाथरूम में जाकर मुट्ठ मारे. मगर उसकी माँ जल्द ही बर्तन साफ़ करके आने वाली थी.
उसे ज्यादा समय नहीं लगने वाला था. इसीलिए वो किसी तरह हस्तमैथुन की अपनी ज़बरदस्त इच्छा को किसी प्रकार दबाने का प्रयत्न कर रहा था. एक बात से उसे राहत महसूस हो रही थी और ख़ुशी भी कि जब उसने अपना लंड अपनी माँ के पेट पर दबाया था तो उसने गुस्सा ज़ाहिर नहीं किया था.
बल्कि उसने खुद अपना पेट उसके लंड पर दबाया था मतलब उसकी माँ उसे पूरी लाइन दे रही थी. वो फिर से उसके पेट पर अपना लंड दबा सकता था, या फिर शायद उसे इससे बढ़कर कोशिश करनी चाहिए. अगर मौका मिला तो वो उसकी चूत पर अपना लंड दबा कर देखेगा वो क्या प्रतिकिर्या करती है. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
क्या वो भी पहले की तरह वापिस अपनी चूत उसके लंड पर दबाएगी? उसकी माँ उसके लंड पर अपनी चूत दबाएगी इस सम्भावना मात्र से उसका लंड फिर से झटके मारने लगता है. उधर प्रतिमा बर्तन साफ़ करती मुस्करा रही थी. आज नाजाने कितने दिनों, कितने महीनों बाद वो खुद को जिंदा महसूस कर रही थी.
आज कितने समय बाद वो अपने बदन में उठती आनंद की उन लहरों को महसूस कर रही थी, अपने जिस्म में जोश और उत्तेजना के मिलन से पैदा होने वाली विघुत तरंगो का एहसास ले रही थी, उसे अपने अंग अंग में मस्ती छाती महसूस हो रही थी. उसे लग ही नहीं रहा था वो पहले वाली चिडचिडी, उदास, हर वक़्त थकी रहने वाली प्रतिमा है.
नहीं यह प्रतिमा और थी, जो जोश से भरपूर थी जो ज़िन्दगी में छिपे उस असीम आनंद को महसूस करना चाहती थी. जो अपनी ज़िन्दगी के हर पल को मज़ेदार बनाना चाहती थी. यह प्रतिमा औरत को मर्द से मिलने वाले चरम सुख को हासिल करना चाहती थी, हर दिन हर रात, और अगर उसका पति उसे वो सुख नहीं दे सकता था तो वो उसके लिए अपनी जवानी बर्बाद करने वाली नहीं थी.
उसके पास उसका बेटा था, जवान तगड़ा मर्द, हाँ तगड़ा मर्द जिसके पास एक तगड़ा लंड था जो उसके बाप के लंड से लम्बा था, मोटा था, जो पत्थर की तरह अकड जाता था. हाँ वो अपने बेटे पर अपनी जवानी लुटाएगी. वो उसे हर दिन उस स्वर्गिक आनंद का एहसास करवाएगी जो इस दुनिया की कोई औरत नहीं करा सकती और उसका बेटा उसकी सारी इच्छायों की पूर्ती करेगा.
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उसकी सारी ख्वाहिशों को पूरा करेगा उसे अपने पति का इंतज़ार करने की कोई आवशयकता नहीं है, उसे अपना काम प्यारा है तो वो काम करे. उसके पास उसका बेटा है, उसका बेटा, मोटे तगड़े लंड वाला और उसका मोटा तगड़ा लंड अब हर रोज़ उसकी चूत में जाएगा, उसकी अपनी माँ की चूत में जाएगा, उसकी माँ खुद अपने हाथों से पकड़ कर उसका लंड अपनी चूत में लेगी. प्रतिमा के सर पर फिर से काम चड़ा हुआ था मगर इस बार वो जानती थी कि अब उसका अपने बेटे से चुदना तय हो चूका है.
यह उसका नसीब है और वो यह भी जानती थी कि अगर वो एक बार अपने बेटे से चुद गई तो फिर वो हर दिन उससे चुदेगी, बार बार चुदेगी और अब उसे गलत सही की कोई परवाह नहीं थी. वो उसकी माँ है और हर माँ का फ़र्ज़ होता है वो अपने बेटे को दिल खोल कर प्यार करे,उसकी हर जरूरत पूरी करे. चाहे वो जरूरत कैसी भी क्यों ना हो. वो अपन बेटे की हर जरूरत पूरी करेगी, और वो भी उसकी हर जरूरत पूरी करेगा. उन दोनों को अब तरसने की कोई जरूरत नही थी और बिलकुल भी नहीं थी. दोस्तों प्रतिमा ने कैसे रिशु से चुदवाया ये कहानी के गले भाग में…
Sandeep says
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