Sister Showing Boobs Pussy
हेल्लो दोस्तों, आप सभी का फिर से हमारी वासना डॉट नेट पर स्वागत है. दोस्तों आपने कहानी के पिछले भाग “ताश के पत्तो का सेक्सी खेल 1” में पढ़ा होगा की कैसे अर्पिता अपनी जवानी पर पहली बारिश अपने भाई से करवाने का मूड बना ली थी. और उसका भाई दुष्यंत भी अपनी दीदी के सेक्सी फिगर को पाने के लिए बेचैन था. अब आगे- Sister Showing Boobs Pussy
वो सीधा अपने कमरे में गया और अपने बेड पर बैठकर पायजामे को नीचे किया और . लंड हाथ मे पकड़ कर ज़ोर से मसलने लगा…
”ओह……. दीदी ……………..क्या करते हो आप…………….अहह ……. क्या चीज़ हो यार…………..”
और उसकी बंद आँखो के सामने उसकी बहन की नंगी छातियाँ घूम रही थी.. और वो ज़ोर-2 से अपने लंड को मसलते हुए मूठ मारने लगा. अर्पिता कुछ देर तक वहीं बैठी रही और फिर उपर की तरफ चल दी…उसने अपनी माँ को देखा तो वो गहरी नींद में सो रही थी…वो निश्चिंत हो गयी…
उसने अपना मोबाइल उठाया…आज वो कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित थी…और अपने वी चेट और ऍफ़ बी फ्रेंड्स के साथ कुछ ख़ास करने के मूड में थी…वो अपनी माँ की बगल मे लेटने ही वाली थी की उसे दुष्यंत के कमरे से कोई आवाज़ आई.. उसने देखा की उसके कमरे की लाइट जल रही है..और शायद दरवाजा भी खुला है..
उसने गोर से सुना तो वो आवाज़ फिर से आई….और इस बार की आवाज़ सुनकर वो समझ गयी की वो क्या है…और अगले ही पल उसके होंठों पर एक शरारत भरी मुस्कान आ गयी…और वो बिल्ली की तरह दबे पाँव से अपने भाई के कमरे की तरफ चल दी..
एक अलग ही तरह का रोमांच महसूस कर रही थी अर्पिता…उसके दिल की धड़कने उसे अपने कानों तक सुनाई दे रही थी..अंदर से तो वो पूरी नंगी पहले से ही थी..इसलिए उसके खड़े हुए निप्पल टी शर्ट से रगड़ खाकर उसमे ड्रिल करने लायक पैने हो चुके थे.. वो दुष्यंत के कमरे के बाहर जाकर खड़ी हो गयी…और उसने खुले हुए दरवाजे की झिर्री में से झाँककर अंदर देखा..
उसका भाई दुष्यंत नीचे से नंगा होकर लेटा था और अपनी आँखे बंद करके बड़ी ही तेज़ी से अपने लंड को रगड़ रहा था..ऐसा सेक्सी सीन तो उसने आज तक नही देखा था…और ना ही सोचा था..उसकी आँखे तो दुष्यंत के लंड के उपर जम कर रह गयी..वो आज सुबह भी उसके लंड को देख चुकी थी..
जब वो आरती की चुदाई करने जा रहा था..पर अभी वो आरती को सोचकर मूठ मार रहा है या उसे सोचकर ये जानने की उत्सुकतता थी अर्पिता के मन मे.. भले ही वो उसका सगा भाई था…पर अगर वो उसके बारे मे सोचकर मूठ मार रहा है तो उसे अंदर से अलग ही खुशी का एहसास होना था..
शायद अर्पिता को भी अपने भाई मे अब इंटरस्ट आने लगा था…भाई होने से पहले वो एक मर्द था…और वो भी बड़े लंड वाला..ऐसे लंड को देखकर ही अर्पिता की टाँगो के बीच कुछ-2 हो रहा था..जब वो वहाँ जायेगा तो पता नही क्या होगा.. अर्पिता ने अपनी जांघे भींच ली और अंदर देखने लगी…उसका एक हाथ उपर रेंगता हुआ आया और अपनी ब्रेस्ट को पकड़ कर धीरे-2 भींचने लगा.
वो लगातार ये भी सोच रही थी की ऐसे कब तक चलता रहेगा…उसके और दुष्यंत के बीच के बीच जो शर्म का परदा था वो तो गिर ही चुका है…कुछ और परदे गिराने बाकी हैं,पर वो छोटा है इसलिए अपनी तरफ से पहल करने मे शायद शरमा रहा है…और उसने खुद भी अपनी तरफ से कुछ ज़्यादा नही किया..
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एक लड़की होने के नाते इतनी अकल तो थी उसको…और उपर से दोनो का रिश्ता भी तो ऐसा था की कुछ भी करने से पहले सब कुछ सोचना पड़ रहा था..पर यहाँ कौन है उन्हे देखने वाला..सारी दुनिया सो रही है…उनकी माँ भी दूसरे कमरे मे खर्राटे मार रही है..ऐसे मे अगर थोड़ी बहुत मस्ती कर भी ले तो क्या बिगड़ेगा..
और ये सब सोचते-2 उसने अचानक से ही दरवाजे को एक ही झटके मे खोल दिया.. और दरवाजा खुलने की आवाज़ से दुष्यंत ने अपनी आँखे एकदम से खोली और अर्पिता को सामने खड़ा पाकर एकदम से उसने पास ही पड़ा तकिया उठाकर अपने लंड के ऊपर लगा लिया..
दुष्यंत : “दी …दीदी …आप …..ये दरवाजा ……शिट …..मैं समझा मैने बंद कर दिया …..”
वो नज़रें भी नही मिला पा रहा था अर्पिता से..पर अर्पिता तो जैसे सोच ही चुकी थी की अब ये बेकार की ड्रामेबाजी को बीच मे से निकाल देना चाहिए. वो आगे आई और सीधा आकर दुष्यंत के साथ ही पलंग पर एक टाँग रखकर बैठ गयी..
अर्पिता : “अरे कोई बात नही…ये तो सब करते हैं…मैं भी करती हू अपने कमरे मे…जब माँ सो जाती है…वो तो अभी जाग रही थी..इसलिए मैने सोचा कुछ देर इंतजार कर लेती हू…और फिर तुम्हारा दरवाजा खुला हुआ देखा तो यहाँ चली आई…पर तुम तो यहाँ पहले से ही… ही ही ही ..”
और वो शरारत भरी हँसी हँसने लगी.. और उसके व्यवहार से साफ़ पता चल रहा हा की दुष्यंत को ऐसी अवस्था मे देखने के बाद उसे कोई फ़र्क ही नही पड़ता…वो बिल्कुल नॉर्मल सा बिहेव कर रही थी. एक टाँग मोड़कर बैठने की वजह से उसका घुटना दुष्यंत की नंगी जाँघ से टच कर रहा था..
अर्पिता का तो पता नही पर दुष्यंत के जिस्म मे जैसे कोई करंट प्रवाह कर रहा था. उसे तो पहले लगा की एक ही दिन मे लगातार दूसरी बार अपनी बहन के हाथो ऐसे पकड़े जाने के बाद वो पता नही उससे कभी नज़रें भी मिला पाएगा या नही…पर अर्पिता का दोस्ताना व्यवहार देखकर उसमे भी थोड़ी बहुत हिम्मत आ गयी.
दुष्यंत : “आई एम सॉरी दीदी…मुझे ये सब …ऐसे नही करना चाहिए था…आज सुबह भी आपके सामने…”
अर्पिता : “अरे मुझे बिल्कुल भी बुरा नही लगा तेरी इन बातों का…तेरी उम्र ही ऐसी है…हो जाता है ये सब…और सुबह वाली और अब वाली बात पर तो मुझे सॉरी बोलना चाहिए तुझे…दोनो बार ही मेरी वजह से तू बीच मे लटका रह गया..”
और ये कहकर वो अपने मुँह पर हाथ रखकर हँसने लगी..
दुष्यंत भी उसे शरारत मे हंसते देखकर बोला : “हाँ , ये बात तो सही कही आपने…अब आप क्या जानो, हम लड़कों की ये कितनी बड़ी प्राब्लम है…जब तक अंदर से वो निकलता नही, बड़ी टेंशन् सी फील होती है..”
अर्पिता : “क्या नही निकलता ??”
दुष्यंत एकदम से झेंप सा गया…उसने बोल तो दिया था,पर अर्पिता के सवाल का जवाब देने मे उसका चेहरा लाल हो उठा. अर्पिता ये देखकर फिर से हँसने लगी, और बोली : “तू तो एकदम लड़कियो की तरह से शरमाता है…सीधा बोल ना, माल जब तक अंदर से बाहर नही निकलता, परेशानी होती है..”
अपनी बहन को ऐसे बेशार्मों की तरहा बोलता देखकर दुष्यंत का मुँह खुला रह गया.
अर्पिता : “ऐसे क्या देख रहा है तू…तुझे क्या लगा, मुझे ये सब नही पता…लगता है तुझे आरती ने कुछ भी नही बताया…की हम दोनो के बीच कैसी-2 बातें होती थी पहले..”
दुष्यंत : “नही…उसके साथ ऐसी बातें करने का टाइम ही नही मिला कभी…”
अर्पिता (आँखे घुमाते हुए) : “हाँ , उसके साथ तो तुझे बस एक ही काम करने का टाइम मिलता होगा…और उसमे भी मैं बीच मे टपक पड़ती हू .. ही ही”
दुष्यंत भी हंस दिया..
अर्पिता : “अच्छा एक बात तो बता…अभी भी तू उसके बारे मे सोचकर ही ये कर रहा था ना..”
अब मज़ा लेने की बारी दुष्यंत की थी.
दुष्यंत : “मैं …मैं क्या कर रहा था अभी ?”
अर्पिता : “अच्छा …अब मुझसे छुपाने का क्या फायदा …अभी मेरे आने से पहले तू वो कर रहा था ना…”
दुष्यंत : “नही दीदी…मैं तो बस कपड़े चेंज कर रहा था..मैने पायज़ामा नीचे उतारा ही था की आप आ गयी…”
अर्पिता : “झूठ मत बोल…मैं सब देख रही थी दरवाजे के पीछे से…तू अपना वो रगड़ रहा था…माल निकालने के लिए…बोल …”
दुष्यंत : “क्या रगड़ रहा था दीदी…खुल कर बोलो ना…”
अब अर्पिता भी समझ चुकी थी की उनके बीच का एक और परदा गिर चुका है…अब खुलकर वो सब बोल सकते हैं..
अर्पिता : “अपना लंड रगड़ रहा था तू…यही सुनना चाहता था ना …बोल, रगड़ रहा था या नही…”
अपनी सेक्सी बहन के मुँह से लंड शब्द सुनकर तकिया थोड़ा सा और उपर हो गया…उसके लंड ने अंदर ही अंदर झटके मारने शुरू कर दिए थे. दुष्यंत कुछ नही बोला…बस मुस्कुराता रहा… उसकी नज़रें फिर से उसकी टी शर्ट मे उभरे निप्पल्स को घूरने लगी…..दुष्यंत की जलती हुई आँखे उसके जिस्म मे जहाँ-2 पड़ रही थी, उसे ऐसे लग रहा था की वो हिस्सा जल रहा है..उसकी छातियाँ…उसकी नाभि…उसके होंठ…उसके कान…आँखे..और चूत भी बुरी तरह से सुलग रही थी उसकी.
अर्पिता : “बोल ना….उसके बारे मे ही सोच रहा था ना तू…”
वो पूछ तो अपनी सहेली के बारे मे रही थी…पर दुष्यंत के मुँह से अपना नाम सुनना चाहती थी.
दुष्यंत : “नही…उसके बारे मे सोचकर नही…किसी और के बारे मे सोचकर..”
इतना सुनते ही अर्पिता का मन हुआ की दुष्यंत से लिपट जाए…उसके होंठों को चूस ले…और एकदम से नंगी होकर उसके लंड पर सवार हो जाए. उसके दिल ने फिर से धाड़-2 धड़कना शुरू कर दिया.
अर्पिता : “तो फिर किस …… किसके…बारे मे….सोचकर….ये …कर रहा था..”
उसके होंठ काँप से रहे थे…उसके कान लाल हो उठे…जैसे अपना नाम सुनने की तैयारी कर रहे हो.. दुष्यंत भी अब गेम में आ चुका था…वो भी अर्पिता को तड़पाना चाहता था, जैसे वो अभी उसको तडपा रही थी..
दुष्यंत : ” है कोई…उससे भी सुंदर…उससे भी हसीन…उसकी आँखे तो कमाल की हैं…और उसके बूब्स…वो तो जैसे नाप तोलकर बनाए हुए हैं…और उसके निप्पल्स,वो तो कहर भरपा दे,उन्हे चूसने भर से ही शायद सारी प्यास बुझ जाए मेरी..”
दुष्यंत का हर शब्द अर्पिता की चूत से रिस रहे पानी को और तेज़ी से बाहर धकेल रहा था…जो शायद दुष्यंत के बिस्तर पर आज की रात धब्बे के रूप मे रहने वाला था.
अर्पिता : “नाम तो बता मुझे….ऐसे नही समझ आ रहा ….”
उसकी आँखों मे लाल डोरे तैरने लगे थे..हल्का पानी भी आने लगा था उनमे…
दुष्यंत : “उसका नाम तुम मेरे दोस्त से पूछ लो…”
और दुष्यंत ने ग़जब की हिम्मत दिखाते हुए अपना तकिया नीचे गिरा दिया…और अपना विशालकाए लंड अपनी सग़ी बहन अर्पिता की आँखो के सामने लहरा दिया. अर्पिता की आँखे फैल गयी उसके लंड को इतने करीब से देखकर…. पास से देखने से वो और भी बड़ा लग रहा था…उसके सिरे पर प्रिकम की बूँद उभर कर चिपकी पड़ी थी… अर्पिता तो सम्मोहित सी होकर उसे देखे जा रही थी…जैसे आँखो ही आँखो मे उसे निगल रही हो…
दुष्यंत ने अपने लंड को हिलाते हुए उपर नीचे किया और उसे अर्पिता की तरफ करते हुए बोला : “लो दीदी…पूछ लो मेरे दोस्त से…मैं किसके बारे मे सोचकर इसे रगड़ रहा था…”
अर्पिता का दाँया हाथ कांपता हुआ सा आगे की तरफ बड़ा…उसके मुँह से साँसे तेज़ी से बाहर निकलने लगी…छातियाँ उपर नीचे होने लगी…और उसने अपने ठंडे हाथों से दुष्यंत के गरमा गर्म लंड को पकड़ लिया.. और जैसे ही अर्पिता के ठंडे और नर्म हाथ उसके लंड से टकराए, उसने ज़ोर से सिसकारी मारते हुए कहा : “ओह…….अर्पिता …………”
दुष्यंत के दोस्त ने तो नही,पर उसने वो नाम खुद ही बता दिया अपनी बहन को… और अपना नाम सुनते ही अर्पिता का पूरा बदन झनझना उठा…और उसने अपने प्यासे होंठ तेज़ी से अपने भाई की तरफ बड़ा दिए.. तभी बाहर से उनकी माँ की आवाज़ आई : “अर्पिता ……दुष्यंत….कहाँ हो तुम दोनो….”
अर्पिता का तो चेहरा ही पीला पड़ गया अपनी माँ की आवाज़ सुनकर…उनके रूम का तो दरवाजा भी खुला हुआ था..अर्पिता ने भी आते हुए दुष्यंत के रूम का दरवाजा बंद नही किया था..अभी तो उनकी तबीयत खराब है , इसलिए वो बेड से उठ नही सकती…वरना अगर वो ऐसे वक़्त पर उस कमरे मे आ जाती तो उन दोनो को रंगे हाथों पकड़ लेती.. अर्पिता ने एक ही झटके मे दुष्यंत के लंड को छोड़ दिया और भागती हुई सी अपने कमरे की तरफ गयी.
”आईईईई माँ …”
और वहाँ पहुँचकर देखा तो वो बेड से उठने की कोशिश कर रही है..
अर्पिता : “रूको माँ …अभी उठो मत…बोलो क्या चाहिए..”
मान : “तू इतनी रात को कहाँ थी…मैं कितनी देर से तुझे आवाज़ें लगा रही थी..”
अर्पिता : “वो ….दुष्यंत अभी-2 आया था…उसके लिए खाना गर्म कर रही थी..”
उसने बड़ी ही सफाई से झूठ बोलकर खुद को और दुष्यंत को बचा लिया.. कुछ ही देर मे उसकी माँ के खर्राटे गूंजने लगे कमरे में..पर उसके बाद अर्पिता की हिम्मत नही हुई की वापिस दुष्यंत के कमरे मे जाए..बस अपनी चूत को मसल कर वो वहीं सो गयी..
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दुष्यंत ने भी अपने लंड को रगड़ -2 कर अपने माल से दीवार पर अर्पिता लिख दिया.. अगले दिन दुष्यंत के उठने से पहले अर्पिता ऑफीस के लिए निकल गयी..दुष्यंत भी लगभग 11 बजे उठा और नाश्ता वगेरह करके माँ के पास बैठा रहा , उन्हे खाना भी खिलाया, दवाई भी दी और पास ही के डॉक्टर को बुलवा कर वो इंजेक्शन भी लगवा दिया.
उसके बाद पूरी दोपहर वो रात के बारे मे सोचता रहा…उसे अब पूरी उम्मीद हो चुकी थी की वो अपनी सेक्सी बहन अर्पिता के साथ हर तरह के मज़े ले सकता है…पर उसे जो भी करना था वो सब काफ़ी सोच समझ कर ही करना था. उसने एक चीज़ नोट की, वो ये की अर्पिता उसकी हर बात मान लेती है…
चाहे वो उसके दोस्तों के सामने कपड़े बदलकर आने वाली हो, उनके साथ जुआ खेलने वाली..या फिर कल रात को उसके कमरे मे कही गयी सारी बातें.. उसे लग रहा था की शायद अर्पिता काफ़ी दिनों से यही सब कुछ चाहती है..और शायद इसलिए वो उसकी बात एक ही बार मे मान लेती है..
उसने मन में सोच लिया की आज वो इस बात का इत्मीनान करके रहेगा की वो जो बात सोच रहा है वो सही भी है या नही…अगर है तो उसके तो काफ़ी मज़े होने वाले हैं..और उसके दिमाग़ के घोड़े काफ़ी दूर तक भागने लगे. खैर, इन सब बातों के अलावा उसने अपने दोस्तों को भी फोन करके बोल दिया आज की रात को दोबारा आने के लिए…
कमलेश और अमित तो कल भी वापिस जाना नही चाहते थे…सेक्सी अर्पिता के साथ 3 पत्ती खेलने का मज़ा ही कुछ और था. शाम को 7 बजे के आस पास अर्पिता भी आ गयी..दुष्यंत ने दरवाजा खोला तो दोनों के चेहरों पर एक अलग ही स्माइल थी…
दुष्यंत का तो मन कर रहा था की वहीं के वहीं उसके गले लग जाए..पर वो पहले ये यकीन भी कर लेना चाहता था की कल वाली बात से वो नाराज़ तो नही है. अर्पिता उपर अपने कमरे मे चली गयी…कुछ देर माँ के पास बैठी…अपने कपड़े बदले और नीचे आकर किचन मे चाय बनाने लगी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
दुष्यंत अंदर बैठा टीवी देख रहा था…अर्पिता ने किचन से ही आवाज़ लगाई : “दुष्यंत…तूने भी चाय पीनी है क्या..”
दुष्यंत सीधा उठकर किचन मे ही चला गया और बोला : “आप पिलाओगी तो कुछ भी पी लूँगा…”
अर्पिता उसकी बात का दूसरा मतलब समझकर मंद-2 मुस्कुराने लगी…दुष्यंत ठीक उसके पीछे आकर खड़ा हो गया..और बोला : “दीदी…वो कल रात वाली बात से…आप नाराज़ तो नही है ना..”
अर्पिता एकदम से उसकी तरफ पलटी…वो इतना पास खड़ा था की पलटते हुए अर्पिता के बूब्स उसकी बाजुओं से छू गये..
अर्पिता : “तू पागल है क्या…हम छोटे बच्चे हैं जो इन बातों की समझ नही है हमें…आजकल सब कुछ ओपन है…सब चलता है…हम दोनो ही अगर एक दूसरे की हेल्प नही करेंगे तो कौन करेगा…”
दुष्यंत : “यानी….आप भी यही चाहती हैं…थैंक गॉड …मैं तो पूरी रात सो नही पाया…ये सोचकर की पता नही आप क्या सोच रही होंगी …”
अर्पिता ने उसके दोनो हाथ अपने हाथों मे पकड़ लिए : “रिलेक्स ….ज़्यादा मत सोचा करो…”
और फिर उसने दुष्यंत को अपने गले से लगा लिया…दुष्यंत ने भी अपनी बाहें उसकी कमर मे डाल कर उसे अपनी तरफ खींच लिया…और आज की ये हग और दिनों से कुछ ज़्यादा ही ज़ोर से थी और कुछ ज़्यादा ही लंबी.. दुष्यंत के हाथ उसकी कमर पर उपर नीचे हो रहे थे.. उसके दोनो बूब्स को वो अपनी छाती पर महसूस कर पा रहा था..
उसके जिस्म से आ रही खुश्बू को वो सूंघ कर मदहोश सा हुए जा रहा था.. उसका लंड खड़ा होकर अर्पिता के नीचे वाले दरवाजे पर दस्तक दे रहा था…अर्पिता को फिर से वही रात वाला सीन याद आ गया…जब वो उसके लंड को पकड़कर हिला रही थी..और उसे चूमने भी वाली थी. अर्पिता ने एकदम से उसके लंड के उपर हाथ रख दिया…और धीरे-2 सहलाने लगी..
अर्पिता : “इसको थोड़ी तमीज़ नही सिखाई तुमने…अपनी बहन को देखकर भी खड़ा हो रहा है ये तो…”
दुष्यंत : “बहन तो मेरी हो तुम…इसकी नही…ये तो मेरा दोस्त है…और आजकल अपने दोस्त की बहन पर ही सबसे ज़्यादा लोग लाइन मारते हैं…”
अर्पिता : “अच्छा जी…इसका मतलब है की तुम भी अपने दोस्तों की बहन पर लाइन मारते हो…या फिर हो सकता ही की वो मुझपर लाइन मारते हो..”
दुष्यंत : “मैं तो बस तुम्हारी फ्रेंड पर लाइन मरता हू…वो तो आपको पता चल ही चुका है…और रही बात आपके उपर लाइन मारने की तो सबसे पहला हक मेरे इस दोस्त का है आपके उपर..उसके बाद किसी और का..”
अर्पिता ये सोचने मात्र से ही सिहर उठी की उसके भाई के अलावा उसके सारे दोस्त भी उसे चोदने लिए तैयार बैठे हैं.. एकदम से चाय उबल गयी.
अर्पिता : “ओहो …चलो छोड़ो मुझे…अंदर जाओ…मैं चाय लेकर आती हू…”
दुष्यंत ने बेमन से उसे छोड़ दिया…और अंदर जाकर बैठ गया..कुछ ही देर मे अर्पिता चाय लेकर आ गयी और दोनों चुस्कियाँ लेते हुए चाय पीने लगे…और बातें करने लगे.
अर्पिता : “आज भी आ रहे हैं क्या वो दोनों …रात को खेलने”.
दुष्यंत : “वो तो कल भी जाना नही चाहते थे…मैने उन्हे दिन में ही फोन कर दिया था…वो ठीक 9 बजे आ जाएँगे..”
अभी 7:30 बज रहे थे..
अर्पिता : “ओहो ….मुझे थोड़ा जल्दी करना होगा…खाना भी बनाना है..माँ को दवाई भी देनी है बाद मे…उन लोगो के आने से पहले माँ को सुला देना है…वरना उन्हे बेकार की परेशानी होगी.”
दुष्यंत समझ गया की अभी कुछ नही हो सकता…अंदर किचन मे ही एक-दो किस्सेस ले लेनी चाहिए थी उसको… चाय पीने के बाद अर्पिता फटाफट काम पर लग गयी…खाना बनाकर उसने माँ को खिलाया और दुष्यंत को भी..और बाद मे खुद ऊपर कमरे में चली गयी .ये सब करते-करते 9 बज गये.
और ठीक 9 बजे उनके घर की बेल बजी…दुष्यंत ने जाकर दरवाजा खोला तो दोनो बाहर खड़े थे…उनके मुँह से शराब की भी महक आ रही थी..शायद शाम से ही दोनो पीने मे लगे थे..अर्पिता के बारे मे सोच-सोचकर.. दुष्यंत ने उन्हे अंदर बिठाया और भागकर उपर गया, माँ सो चुकी थी और अर्पिता अपना खाना खा रही थी.
दुष्यंत : “दीदी …वो लोग आ गये हैं…आप जल्दी से चेंज करके नीचे आ जाओ..”
ये दुष्यंत का इशारा था की वो अपने वही वाले कपड़े पहन कर नीचे आ जाए, जिसमें वो जीत रही थी. और फिर वो नीचे आकर बैठ गया और पत्ते बाँटने लगा.. वो पहली बार मे ही अर्पिता को गेम खिलाकर उनके मन मे शक़ पैदा नही करना चाहता था. जब पत्ते बंट गये और सभी की बूट के बाद 2-2 चाल भी आ गयी तो दुष्यंत ने सबसे पहले पत्ते उठा कर देख लिए..उसके पास सिर्फ़ एक इक्का था और दो छोटे पत्ते…उसने पेक कर दिया. अमित और कमलेश खेलने लगे..
खेलते-2 अमित बोला : “आज अर्पिता नही खेलेगी क्या…?”
वो दोनो शायद काफ़ी देर से वो बात पूछना चाहते थे…दुष्यंत भी मन ही मन मे उनकी बात सुनकर हंस दिया..
दुष्यंत : “पता नही….मैने बोला तो था…पर शायद कल वो काफ़ी बार हार गयी थी…इसलिए मना कर रही थी…शायद आ भी जाए..”
कमलेश : “अरे, ये तो खेल है…कोई ना कोई तो हारता रहता है…इसमे दिल छोटा करने वाली क्या बात है..”
दुष्यंत कुछ नही बोला और दोनो की गेम चलती रही…वो गेम कमलेश जीता , उसके पास पेयर आया था. जैसे ही कमलेश ने पत्ते बाँटने शुरू किए, उन्हे अर्पिता के नीचे उतरने की आवाज़ आई…सभी के सभी सीडियों की तरफ देखने लगे..कमलेश भी पत्ते बाँटकर उसी तरफ देखने लगा.
और जैसे ही अपनी गेंदे उछालती हुई वो नीचे उतरी , उसके अलग ही अंदाज मे डांस करते हुए मुम्मे देखकर वो दोनो हरामी समझ गये की उसने अंदर कुछ नही पहना है…और सभी की तेज नज़रें टी शर्ट के पतले कपड़े के नीचे उसके निप्पल ढूँढने लगे.. वैसे ये बीमारी हर मर्द में होती है….
जहाँ भी कोई मोटे मुम्मों वाली लड़की या आंटी देखी, घूर-घूरकर उसके निप्पल वाली जगह पर उभार ढूँढने की कोशिश करते हैं… वो दोनो भी इस वक़्त यही काम कर रहे थे..और उन्हे एक ही बार मे सफलता भी मिल गयी, एक तो उसने अंदर ब्रा नही पहनी थी और उपर से उसके निप्पल आम लड़कियों के मुक़ाबले कुछ ज़्यादा ही मोटे थे…इसलिए नन्ही-2 चोंच सॉफ दिख रही थी.
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अर्पिता : “दुष्यंत ..मुझे खेलने दो ना…”
दुष्यंत हंसता हुआ उठ गया…और अर्पिता को सामने देखकर दोनो के मुँह से पानी टपकने लगा..
दुष्यंत : “कमलेश…अब अर्पिता आ गयी है, इसलिए पत्ते दोबारा बाँटो…”
कमलेश को कोई परेशानी नही थी, उसने ताश दोबारा फेंटी और फिर से पत्ते बाँटने लगा.. अर्पिता की तरफ से चाल चलने और पत्ते देखने का काम दुष्यंत का ही था…इसलिए 2-2 ब्लाइंड के बाद दुष्यंत ने एकदम से डबल ब्लाइंड चल दी..उसकी देखा देखी कमलेश और अमित ने भी डबल ब्लाइंड चल दी..वो तो बस अर्पिता को घूरने में लगे थे…
दुष्यंत ने फिर से ब्लाइंड का अमाउंट बड़ा दिया और 600 रुपय बीच मे फेंक दिए…अब अमित की फटने लगी..उसने अपने पत्ते उठा लिए..और फिर कुछ सोचकर उसने 1200 बीच मे फेंके और चाल चल दी.. अब चाल बीच मे आ चुकी थी, इसलिए अमित ने भी अपने पत्ते देख लिए..वो काफ़ी देर तक सोचता रहा और आख़िर मे जाकर उसने पेक ही कर दिया..
अब बारी थी अर्पिता की…उसने दुष्यंत की तरफ़ देखा तो दुष्यंत ने 600 की ब्लाइंड फिर से चल दी.. कमलेश ने भी 1200 की चाल रिपीट कर दी.. अब थी असली इम्तिहान की घड़ी…अर्पिता के इम्तिहान की घड़ी…उसकी किस्मत के इम्तिहान की घड़ी..
दुष्यंत ने पत्ते उठाए …उन्हे चूमा…और फिर एक-एक करते हुए उन्हे देखा.. पहला हुकुम का पत्ता था 10 नंबर.. दूसरा भी हुकुम का ही निकला …बेगम… अब तो दुष्यंत को पक्का विश्वास हो गया की उसके पास हुकुम का कलर आया है.. पर जैसे ही उसने तीसरा पत्ता देखा, लाल रंग देखकर उसका दिल टूट गया…
पर अगले ही पल वो खुशी से उछाल पड़ा…क्योंकि वो लाल रंग मे ही सही पर गुलाम था… यानी उसके पास सीक़ुवेंस आया था…10,11,12.. उसने वो सब शो नही होने दिया…और बड़े ही आराम से कमलेश की चाल से डबल चाल चलते हुए 2400 रुपय बीच मे फेंक दिए..
अब कमलेश भी समझ चुका था की दुष्यंत के पास बाड़िया वाले पत्ते आए हैं…इसलिए उसने एकदम से डबल की चाल चली है…पर उसके पास भी पत्ते चाल चलने लायक थे, इसलिए वो अभी तक खेल रहा था…वो आगे चाल तो चलना नही चाहता था पर शो ज़रूर माँग लिया उसने…
दुष्यंत ने शो करते हुए अपने पत्ते सलीके से उसके सामने फेंक दिए… उन्हे देखकर एक दर्द सा उभर आया कमलेश के चेहरे पर…जैसे अक्सर जुआ हारने वाले के चेहरे पर आ जाता है.. उसने भी अपने पत्ते फेंक दिए.. उसके पास 9 का पेयर था.. और दुष्यंत ने हंसते हुए सारे पैसे अपनी तरफ खिसका लिए..
इतने सारे पैसे अपने सामने देखकर अर्पिता खुशी से चिल्ला पड़ी.. वो लगभग 10 हज़ार थे , जो एक ही बार मे उनके पास आ गये थे.. हारने का गम मनाते हुए कमलेश को अर्पिता के उछलते हुए मुम्मो को देखकर कुछ देर के लिए सांत्वना ज़रूर मिली…पर उसका मूड खराब हो चुका था.
एकदम से अर्पिता बोली : “मैं कुछ खाने के लिए लाती हूं अंदर से…”
और वो उठकर अंदर चली गयी.. उसके जाते ही दुष्यंत उसकी सीट पर आकर बैठ गया…ये सोचकर की एक गेम वो भी खेल ले, और हार जाए, ताकि वो खेलने के लिए बैठे रहे…वरना जुआरियों को हमेशा यही लगा रहता है की अगर कोई बड़ी गेम हार जाते हैं तो उसके बाद निकलने की सोचते हैं..
पर उसके बैठते ही कमलेश एकदम से बोला : “अब तुम अर्पिता को ही खेलने दो…ऐसे बीच मे बदल-2 कर मत खेलो…”
दुष्यंत चुपचाप उठ गया…और वापिस सोफे के हत्थे पर बैठ गया.. कमलेश और अमित एक तरफ ही बैठे थे…दोनो एक दूसरे के पास मुँह लेजाकर ख़ुसर फुसर करने लगे..
कमलेश : “यार…ये तो मेरा बैठे-2 निकलवा कर रहेगी आज…साली बिना ब्रा के बैठी है सामने…मन तो कर रहा है की इसके मोटे-2 निप्पल पकड़कर ज़ोर से दबा दूं…”
अमित फुसफुसाया : “हाँ यार…साली बिल्कुल सामने बैठकर ऐसे हिला रही है अपने दूधों को की मन कर रहा है उन्हे दबोचने का…साली रंडी लग रही है बिल्कुल….एक बार बस मिल जाए इसकी…ये सारे पैसे हारने का भी गम नही रहेगा…” और दोनो खी-2 करते हुए हँसने लगे…
दुष्यंत उनकी बातें सुनने की कोशिश कर रहा था पर उसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था.. पर ये तो वो समझ ही चुका था की वो दोनो अर्पिता के बारे मे ही बात कर रहे हैं..
तभी अर्पिता की आवाज़ आई अंदर से : “दुष्यंत…वो बेसन वाली मूँगफली कहाँ रखी है…मिल नही रही मुझे…”
दुष्यंत उठकर अंदर चला गया… अब अमित और कमलेश थोड़ा खुलकर बाते करने लगे अर्पिता के बारे मे… दुष्यंत जैसे ही अंदर पहुँचा, अर्पिता ने उसे अपनी तरफ खींचकर उसे अपने सीने से लगा लिया.. एकदम से अर्पिता की इस हरकत पर वो बोखला सा गया…
क्योंकि उन दोनो के बाहर बैठे हुए अर्पिता से ऐसी हरकत की उम्मीद नही थी उसको… पर उसके नर्म मुलायम मुम्मो के एहसास को अपनी छाती पर महसूस करके उसे मज़ा बहुत आया…और वो एक ही पल मे ये भूल गया की उसके दोनो दोस्त कुछ ही दूर यानी बाहर बैठे हैं… अर्पिता की खुशी देखते ही बनती थी.
अर्पिता : “दुष्यंत….तुमने बिल्कुल सच बोला था…हम जीत गये…वो भी इतने सारे पैसे एक साथ….वाव….आई एम सो हैप्पी ……”
और इतना कहते हुए उसने एकदम से उपर होते हुए दुष्यंत के होंठों को चूम लिया…वो स्मूच तो नही था पर उसके नर्म और ठन्डे होंठों के एहसास को एक पल के लिए ही सही, महसूस करते ही उसके तन बदन मे आग सी लग गयी…उसने भी अर्पिता के चेहरे को पकड़ कर उसे चूमना चाहा पर तभी बाहर से कमलेश की आवाज़ आई.
”अरे भाई…मूँगफली मिली या नही….”
अर्पिता एकदम से दुष्यंत से अलग हो गयी…पर उसकी आँखो की शरारत साफ़ बता रही थी की वो भी दुष्यंत के लिए अभी उतनी ही उतावली हो रही थी ,जितना की वो हो रहा था उसके लिए.. अचानक दुष्यंत ने उसके दोनो मुम्मों को दबोच लिया और ज़ोर से दबा दिया… अर्पिता एक दम से चिहुंक उठी…ये उसके भाई का सीधा और प्रहार था उसके स्तनों पर…जिसे महसूस करके उसका बदन भी ऐंठने लगा..
अर्पिता फुसफुसाई : “छोड़ो दुष्यंत….वो बाहर ही बैठे हैं…कोई अंदर ना आ जाए …छोड़ो ना…ये कर क्या रहे हो तुम….”
दुष्यंत ने भी शरारत भरी मुस्कान से कहा : “मूँगफली ढूँढ रहा हू …”
और इतना कहते-2 उसने अर्पिता के दोनो निप्पल पकड़ कर ज़ोर से भींच दिए..
और बोला : “मिल गयी मूँगफलियाँ….”
अर्पिता कसमसाकर बोली : “कमीने हो तुम एक नंबर के….जाओ अभी बाहर…ये मूँगफलियाँ रात को मिलेंगी…”
दुष्यंत बेचारा बेमन से बाहर निकल आया..पर ये सांत्वना भी थी की आज रात को ज़रूर कुछ ख़ास होकर रहेगा.. दुष्यंत के आने के एक मिनट के अंदर ही अर्पिता भी आ गयी…और आदत के अनुसार कमलेश और अमित की नज़रें फिर से एक बार उसके निप्पल्स पर चली गयी…
और इस बार उन्हे ये देखकर और भी आश्चर्य हुआ की वो तो पहले से भी बड़े दिख रहे थे…ऐसा क्या हो गया अर्पिता को एकदम से…ऐसा तो तब होता है जब लड़की पूरी तरह से उत्तेजित होती है… तो क्या अर्पिता उन्हे देखकर ही उत्तेजित हो रही है… ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
क्योंकि मूँगफली की प्लेट नीचे रखते हुए वो जिस तरीके से उन्हे देख रही थी…सॉफ पता चल रहा था की वो भी उनमे इंटरस्ट ले रही है… उन दोनो के लंड तो खड़े होकर बग़ावत करने लगे… खेल की माँ की चूत …उन्हे तो बस अर्पिता मिल जाए इस वक़्त, वो अपने सारे पैसे ऐसे ही उसे देने के लिए तैयार थे…
पर अर्पिता तो अलग ही दुनिया में थी…उनके मन मे क्या चल रहा है इस बात से भी अंजान.. और इस बार अर्पिता ने पत्ते बाँटने शुरू किए…और वो बेचारे बेमन से अगली गेम खेलने लगे.. अर्पिता के चेहरे की हँसी जाने का नाम ही नही ले रही थी…ऐसा अक्सर होता है, नये-2 जुआरियो के साथ…
अगली गेम के लिए बूट और ब्लाइंड की राशि 500 कर दी गयी…और 3-3 ब्लाइंड चलने के बाद जब एक बार और अर्पिता की तरफ से दुष्यंत ने ब्लाइंड चली तो अमित और कमलेश का मन हुआ की पत्ते उठा कर देख ले…पर फिर ना जाने क्या सोचकर दोनो एक-2 बाजी और ब्लाइंड की खेल गये…
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यही तो दुष्यंत भी चाहता था..क्योंकि उसे तो पक्का विश्वास था की अर्पिता के पत्ते तो अच्छे होंगे ही…इसलिए उसने इस बार ब्लाइंड की रकम भी दुगनी करते हुए 1000 कर दी. अब तो सबसे पहले कमलेश की फटी…क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी पैसे हार चुका था…और ये ग़लती वो इस बार नही करना चाहता था..
उसने अपने पत्ते उठा लिए…उसके पास 2 का पेयर आया था…पत्ते तो काफ़ी छोटे थे…पर चाल चलने लायक थे…उसका एक मन तो हुआ की पेक कर दे..पर फिर रिस्क लेते हुए उसने 2000 बीच मे फेंक कर चाल चल दी. अमित की बारी आई तो उसने झट से अपने पत्ते उठा लिए…
उसके पास इक्का और बादशाह आए थे…साथ में था 7 नंबर…कोई मेल ही नही था…चाल चलने का तो मतलब ही नही था. उसने पेक कर दिया.. अब एक चाल बीच मे आ ही चुकी थी…पर फिर भी दुष्यंत ने अर्पिता के पत्ते देखे बिना एक और ब्लाइंड चल दी…और हज़ार का नोट बीच मे फेंक दिया..
इतनी डेयरिंग तो आज तक इनमे से किसी ने नही दिखाई थी…ऐसा लग रहा था की दुष्यंत को पूरा विश्वास था की वो ही जीतेगा…इतना कॉन्फिडेंस कही उसका ओवर कॉन्फिडेंस ना बन जाए.. अब कमलेश के सामने चुनोती थी…पर एक तरह से देखा जाए तो उसका पलड़ा ही भारी था अब तक…
दुष्यंत ने पत्ते देखे नही थे…और उसके पास पेयर था 2 का…ऐसे में उसके मुक़ाबले के पत्ते होना एक रिस्क ही था दुष्यंत के लिए…पर फिर भी वो चाल के उपर ब्लाइंड खेल गया…शायद ये सोचकर की अगर जीत गया तो तगड़ा माल आएगा हाथ…और अगर हार भी गया तो कोई गम नही..क्योंकि पिछली गेम में वो काफ़ी माल जीत ही चुका था..
कमलेश की नज़रें अर्पिता के उपर थी…तो थोड़ी टेंशन मे आ चुकी थी अपने भाई को ऐसे ब्लाइंड पर ब्लाइंड चलते देखकर.. कमलेश ने फिर से एक बार रिस्क लेते हुए 2000 की चाल चल दी…अब तो अर्पिता की टेंशन और भी बढ़ गयी….टेंशन के मारे उसके निप्पल उबल कर बाहर की तरफ निकल आए…और उसने जाने अंजाने मे ही अपने दाँये निप्पल को पकड़कर ना जाने क्यो उमेठ दिया…
वैसे ये उसकी हमेशा की आदत थी…जब भी वो उत्तेजित होती थी…यानी रात के समय या फिर फ़िन्गरिंग करते समय…वो अपने खड़े हुए निप्पल्स की खुजली को मिटाने के लिए उन्हे ज़ोर-2 से उमेठ देती थी…ऐसा करने में उसकी खुजली भी मिट जाती थी और उसे अंदर तक एक राहत भी मिलती थी..
पर आज वो भले ही उत्तेजित नही थी..पर उसके निप्पल्स मे हो रही खुजली ठीक वैसी ही थी जैसी रात के समय हुआ करती थी….और इस टेंशन वाली खुजली को भी उसने अपनी उंगलियों के बीच दबोच कर मिटा दिया… भले ही ये सब करते हुए उसका खुद पर नियंत्रण नही था..पर उसकी इस हरकत को देखकर सामने बैठे दोनो ठरकियों के लौड़े कबूतर की तरह फड़फड़ाने लगे..
अभी कुछ देर पहले ही मूँगफली की प्लेट नीचे रखते हुए जिस अदा के साथ अर्पिता ने उन दोनो को देखा था और स्माइल किया था…अब उसे फिर से खुले आम अपने निप्पल को मसलते देखकर उन्हे पूरा विश्वास हो गया की वो उन्हे लाइन दे रही है…एक तो पहले से वो बिन ब्रा के और ऊपर से ऐसी रंडियों वाली हरकतें…
उन्होने मन ही मन ये सोच लिया की एक बार वो भी अपनी तरफ से ट्राइ करके रहेंगे…शायद उनका अंदाज़ा सही हो और अर्पिता जैसा माल उन्हे मिल जाए. दुष्यंत इन सब बातो से अंजान अपने गेम को खेलने मे लगा था…उसका एक मन तो हुआ की वो एक और ब्लाइंड चल दे…पर कही कुछ गड़बड़ हो गयी तो सारे पैसे एक ही बार मे जाएँगे..
ये सोचते हुए उसने अपने पत्ते उठा लिए.. और अपने पत्ते देखकर एक पल के लिए तो उसके माथे पर भी परेशानी का पसीना उभर आया.. उसके पास 3 का पेयर आया था. अब देखा जाए तो वो जीत ही रहा था कमलेश से…लेकिन उसे तो ये बात पता नही थी ना.. पत्ते भले ही दुष्यंत के पास चाल चलने लायक थे..
पर वो और चाल चलकर खेल को आगे नही बढ़ाना चाहता था…क्योंकि सामने से कमलेश 2 चालें चल ही चुका था…यानी उसके पास भी ढंग के पत्ते आए होंगे…दुष्यंत को चिंता सताने लगी की कहीं वो ये बाजी हार ना जाए…या फिर हारने से पहले वो पेक कर दे तो कम से कम शो करवाने के 2000 और बच जाएँगे… वो कशमकश मे पड़ गया..
फिर उसने एक निश्चय किया….अर्पिता को उसने वो पत्ते दिखाए…और धीरे से पूछा.. : “दीदी…आप बोलो…शो माँग लू या पेक कर दू …”
अब अर्पिता इतनी समझदार तो थी नही जो इस खेल को इतनी अंदर तक समझ पाती…पर उसने जब देखा की उनके पास 3 का पेयर है…और दुष्यंत ने यही सिखाया था की पेयर ज़्यादातर गेम्स जीता कर ही जाते हैं…उसने हाँ में सिर हिलाकर शो माँगने को कहा …और दुष्यंत ने उसके बाद बिना कुछ सोचे समझे 2000 बीच मे फेंकते हुए शो माँग लिया…
अब ये गेम अगर वो हार जाते तो अभी तक के सारे जीते हुए पैसे एक ही बार मे चले जाने थे…पर ऐसा होना नही था..क्योंकि कमलेश ने जैसे ही अपने पत्ते उन्हे दिखाए…दुष्यंत ने बड़े ही जोशीले तरीके से 2 के पेयर 3 का पेयर फेंकते हुए सारे पैसे अपनी तरफ करने शुरू कर दिए..
और इतने सारे पैसे एक बार फिर से अपनी तरफ आते देखकर अर्पिता तो झल्ली हो गयी…और उसने खुशी के मारे उछलते हुए अपने भाई को गले से लगा लिया…. उसके दोनो मुम्मे बुरी तरह से बेचारे दुष्यंत के चेहरे से रगड़ खाते हुए पिस गये… और उसकी ये हरकत देखकर कमलेश और अमित दुष्यंत की किस्मत को फटी हुई आँखो से देख रहे थे…
वो बड़े ही जोशीले तरीके से दुष्यंत के चेहरे को दबोच कर चिल्लाती जा रही थी : “हम जीत गये….याहूऊऊऊओ….हम जीत गये….”
दुष्यंत ने बड़ी ही मुश्किल से अपने आप को उसके नर्म मुलायम मुम्मे के हमले से छुड़वाया …वो ऐसा करना तो नही चाहता था पर अपने दोस्तों को ऐसे मुँह फाड़कर उसे और अपनी बहन को हग करता देखकर वो खुद को छुड़वाने पर मजबूर हो गया. अब दुष्यंत लगभग 20-25 हज़ार जीत चुका था…
अर्पिता ने सारे नोटो को सलीके से एक के उपर एक रखकर गड्डी बनानी शुरू कर दी…और एक मोटी सी गड्डी बनाकर उसे अपने कुल्हों के नीचे दबा कर बैठ गयी.. उफफफ्फ़….काश…हम नोट होते…बस यही सोचते रह गये कमलेश और अमित. आज काफ़ी पैसे हार चुके थे वो दोनो…और उन दोनो की जेबें लगभग खाली हो चुकी थी.
कमलेश : “दुष्यंत भाई….आज के लिए यहीं ख़त्म करते हैं….अगर गेम लंबी चली गयी तो ज़्यादा चाल चलने के पैसे नही है आज….कल आएँगे हम…वैसे भी कल छोटी दीवाली है…और परसो दीवाली….अब तो उसके हिसाब से ही आएँगे…बस इन दो दिनों का ही खेल रह गया है अब तो…उसके बाद तो फिर से अपने धंधे पानी की तरफ देखना पड़ेगा…”
अमित : “हाँ भाई….आज के लिए तो मैं भी चलूँगा…आज काफ़ी माल हार गया…पर कोई गम नही इसका…इसी बहाने अर्पिता तो खुश हुई ना…”
वो जैसे अर्पिता को मक्खन लगाने के लिए ये सब कह रहा था. अर्पिता भी उसकी बात सुनकर मुस्कुरा उठी…वैसे भी अमित उसको शुरू से ही आकर्षक लगता था…उसकी डील डोल सबसे अलग थी…और शायद ये सोचकर की उसका लंड भी ऐसा होगा…वो अंदर से सिहर उठी.
जाते-2 कमलेश एकदम से पलटा और बोला : “दुष्यंत…अगर तू कहे तो कल हम बल्लू को भी लेते आए….उसका फोन आया था आज सुबह और बोल रहा था खेलने के लिए…मैने तो बोल दिया की आजकल हम दुष्यंत के घर बैठते है…पर वो अगर कहेगा तभी आने के लिए कहूँगा ..”
दुष्यंत कुछ देर के लिए सोच मे पड़ गया.. बल्लू उनका पुराना साथी था…और एक नंबर का हरामी भी…लड़कियों को चोदने और उनके बारे मे बात करना, बस यही काम था उसका…एक-दो बार दुष्यंत ने उसके मुँह से अर्पिता के बारे में सुन लिया था, कहासुनी भी हुई थी दोनों में, तबसे वो उसके साथ दूरी बनाकर रखता था…और ये बात सभी को मालूम थी..
पर जुआ खेलने मे वो एक नंबर का अनाड़ी था..चाल कब और कैसे चलनी है, इसका उसे अंदाज़ा नही था…उसे बस उपर के खेल की जानकारी थी..जैसी जानकारी अर्पिता को थी..ठीक वैसी ही… पर वो खुलकर पैसे लगाता था अपनी हर गेम में …और आज जिस तरह से दुष्यंत के हाथ जुआ जीतने का मंत्र हाथ लगा था, उसके बाद तो ऐसे ही जुआरियों के साथ जुआ खेलने का मज़ा आता है. उसने हां दी…
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उनके जाने के बाद अर्पिता ने पूछा : “ये बल्लू कौन है…?”
दुष्यंत : “वो कल ही देख लेना…इनकी तरह ही एक दोस्त है वो भी…पर ज़्यादा खेलना नही आता उसको..”
अर्पिता : “पर आज मज़ा बहुत आया दुष्यंत…इतने पैसे जीत गये हम….ये देखो…”
उसने अपनी गांड के नीचे से नोटो की गड्डी निकाल कर दिखाई…जो अच्छी तरह से दबने के बाद सीधे हो चुके थे..दुष्यंत भी उन नोटो की गर्मी से ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था की ये असल मे कौनसी गर्मी है…उसकी बहन की गांड की या हरे-2 नोटों की.. अपने कमरे मे जाते ही दुष्यंत ने अपने सारे कपड़े उतार फेंके..और अगल-बगल डियो लगा लिया…
और फिर सिर्फ़ एक निक्कर और टी शर्ट पहन कर अपने बेड पर लेट गया..वो और उसका लंड बड़ी ही बेसब्री से अर्पिता का इंतजार करने लगे…रात के 12 बजने वाले थे…उसकी आँखो मे नींद भरी हुई थी.. पर वो सोना नही चाहता था…बस अपनी आँखो को बंद करके वो अर्पिता के आने के बाद क्या-2 करेगा यही सोचने लगा…और ये सोचते -2 कब उसकी आँख लग गयी, उसे भी पता नही चला.
”दुष्यंत…..दुष्यंत….सो गये क्या….”
दूर से आती आवाज़ सुनकर दुष्यंत की नींद खुल गयी….वो तो सपनों की दुनिया मे था…ठंडी बर्फ मे…पूरा नंगा…और अर्पिता के पीछे भाग रहा था…उसके बचे खुचे कपड़े उतारने के लिए…और वो भागे जा रही थी…भागे जा रही थी…
”दुष्यंत….उठो…..मैं आ गयी…”
अर्पिता की आवाज़ सुनते ही वो एकदम से अपने सपने की दुनिया से बाहर निकला…वो उसकी बगल मे ही बैठी थी…और उसका हाथ दुष्यंत के माथे पर आए पसीने को पोंछ रहा था.
अर्पिता : “क्या हुआ….कोई सपना देख रहे थे क्या……बोलो …”
दुष्यंत ने हाँ में सिर हिलाया.
अर्पिता : “बताओ….क्या देख रहे थे…”
वो शायद जानती थी की वो उसके बारे मे ही सोच रहा था सपने मे…पर फिर भी उसके मुँह से सुनना चाहती थी.
दुष्यंत : “वो मैने बता दिया तो आप शरमा जाएँगी…बहुत कुछ हो रहा था सपने में तो…”
और दुष्यंत की ये बात सुनकर वो सच मे शरमा गयी.. दुष्यंत की नज़रें उसके चेरहरे से होती हुई नीचे तक आई….उसकी क्लिवेज उफन कर बाहर आ रही थी…इतना गहरा गला तो उसने आज तक नही देखा था अपनी बहन का…ऐसा लग रहा था जैसे उसने जान बूझकर अपने मुम्मे बाहर की तरफ निकाले हैं, ताकि दुष्यंत उन्हे देख सके.
अर्पिता ने उसकी नज़रों का पीछा किया और बोली : “एक नंबर के बदमाश हो तुम….मैने तो पहले सोचा भी नही था की तुम ऐसे होगे…पर पिछले 2-3 दिनों से जो भी तुम्हारे बारे मे पता चल रहा है,उसके हिसाब से तो तुम बड़ी पहुँची हुई चीज़ हो…”
दुष्यंत ने अपना हाथ आगे करते हुए अर्पिता की कमर को लपेटा और उसे अपनी तरफ करते हुए खींच लिया…वो आगे की तरफ होती हुई उसकी छाती पर गिर गयी…और अब अर्पिता का चेहरा सिर्फ़ 2-3 इंच की दूरी पर ही था…दोनों की साँसे टकरा रही थी आपस मे.. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अर्पिता के दोनो मुम्मे उसके उपर गिरकर पिचक चुके थे…और अर्पिता की पीठ पीछे दुष्यंत का लंड अपना पूरा रूप ले चुका था. दुष्यंत के हाथ धीरे-2 अर्पिता की टी शर्ट के अंदर घुसने लगे..उसकी कमर के कटाव से होकर जैसे ही दुष्यंत का हाथ अंदर दाखिल हुआ…
अर्पिता एकदम से बोली : “ये….क्या कर रहे हो दुष्यंत….मुझे शर्म आ रही है…”
उसकी आँखो मे गुलाबी लकीरें उतर आई…हल्का पानी भी आने लगा…
दुष्यंत : “दीदी…आपने ही तो कहा था की मूंगफलियां खिलाएँगी…अब हमने इतनी गेम्स जीती हैं…उनके बदले सिर्फ़ यही एक चीज़ तो माँग रहा हू…”
अर्पिता ने सिसक कर उसकी आँखों मे देखा…जैसे कहना चाहती हो की ‘यही से तो शुरुवात होगी बाकी के खेल की…इसके बाद तो रुक नही पाऊँगी ..’
पर वो कुछ बोल ना सकी… और दुष्यंत के हाथ धीरे-2 सरकते हुए अंदर जाने लगे…और जैसे ही उसकी बीच वाली उंगली ने अर्पिता के स्तन का निचला भाग छुआ, दोनो के शरीर सिहर उठे…अर्पिता ने अपने होंठ अपने दांतो तले दबा लिए..ताकि उसकी सिसकी ना निकल जाए…
और दुष्यंत के मुँह से जो साँसे निकल रही थी उससे अर्पिता के बाल पीछे की तरफ उड़ते चले जा रहे थे.. दुष्यंत ने अपनी उंगलियों को अर्पिता के पर्वतों के उपर चढ़ाना शुरू कर दिया…टी शर्ट काफ़ी ढीली थी..इसलिए उसके हाथ आराम से उसके मुममे की चिकनी दीवारों से होते हुए मैन पॉइंट तक पहुँच गये…और दुष्यंत ने धड़कते दिल से अपने अंगूठे और बीच वाली उंगली के बीच उसकी मूँगफली को लेकर ज़ोर से दबा दिया..
”अहह ……. दुष्यंत ………………. धीरेएsssssssssssssssssss ……………”
उसके बाद तो दुष्यंत से सब्र ही नही हुआ…उसने अर्पिता के मुम्मे को अपनी पूरी हथेली मे भरा और ज़ोर-2 से दबाने लगा…ऐसा नर्म एहसास तो उसने आज तक नही लिया था…और उसके निप्पल्स यानी मूँगफलियाँ तो सच मे बड़ी ही करारी थी…उन्हे वो जितना ज़ोर से दबाता वो और भी ज़्यादा उभरकर बाहर निकल आती…
और निप्पल के चारों तरफ के घेरे मे छोटे-2 दाने जो थे..उन्हे भी दुष्यंत अपनी उंगलियों से रगड़ रहा था.. दुष्यंत ने अर्पिता को पीछे की तरफ करते हुए फिर से सीधा बिठा दिया…और अब उसकी निकली हुई छातियों को वो टी शर्ट के उपर से ही दबाने लगा…
दोनो हाथों से दोनो बॉल्स को मसल रहा था वो…अर्पिता तो पागल सी हुई जा रही थी…किसी मर्द का पहला स्पर्श जो था उसके जिस्म पर इस तरह से…उसने जो भी आज तक सोचा हुआ था, वो सब महसूस कर रही थी अपने शरीर पर… दुष्यंत ने अपनी उंगलियाँ सीधा लेजाकर उसके निप्पल्स पर रख दी… अर्पिता ने एक गहरी साँस ली…और उसकी दोनो छातियाँ थोड़ी और बाहर निकल आई.
दुष्यंत ने आदेश सा दिया : “उतारो अपनी टी शर्ट..”
अर्पिता का सीना उपर नीचे होने लगा ये सुनकर…पर ना जाने क्या जादू था दुष्यंत की आवाज़ में …उसके दोनो हाथों ने टी शर्ट के निचले हिस्से को पकड़ा और धीरे-2 उपर सरकाना शुरू कर दिया.. ज़ीरो वॉट का हल्का बल्ब जल रहा था ठीक दुष्यंत के सिर के पीछे…और हल्की मिल्की रोशनी अर्पिता के शरीर पर पड़ रही थी…जो धीरे-2 नंगा हो रहा था.
उसका सपाट पेट जैसे ही ख़त्म हुआ, उसके उभारों ने उजागर होना शुरू कर दिया…और धीरे-2 करते हुए एक के बाद एक दोनो पक्क की आवाज़ करते हुए उछलकर बाहर निकल आए…और अर्पिता ने उस टी शर्ट को सिर से घुमा कर बाहर निकाल दिया.
और अब वो बैठी थी अपने छोटे भाई दुष्यंत के सामने टॉपलेस होकर…अपनी गोल-मटोल छातियाँ लेकर…दुष्यंत ने अपने हाथ ऊपर किये और उन्हें दबाने लगा. दुष्यंत उसकी सुंदरता को बड़ी देर तक निहारता रहा …और फिर उसने एक और आदेश दिया अपनी बड़ी बहन को..
”खिलाओ…मुझे अब ये मूँगफलियाँ…”
उसका इशारा लाल रंग के निप्पल्स तरफ था, जो भुनी हुई मूंगफली जैसा लग रहा था. अर्पिता धीरे से आगे खिसकी…अपनी एक ब्रेस्ट को अपने हाथों मे पकड़ा और दुष्यंत के चेहरे के उपर झुक कर अपने निप्पल से उसके होंठों पर दस्तक दी… पर वो अपना मुँह बंद किए लेटा रहा…
अर्पिता ने अपने पैने निप्पल से उसके होंठों को रगड़ना शुरू कर दिया…पर वो तो जैसे भाव खा रहा था…मज़ा भी उसको लेना था और भाव भी खुद ही खाने लगा.. पर इतना कुछ होने के बाद अब अर्पिता पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी…अब कोई फ़र्क नही पड़ता था की वो पहल करे या दुष्यंत…बस दोनो किसी भी तरह से पूरा मज़ा लेना चाहते थे…
दुष्यंत ने जब अपना मुँह नही खोला तो अर्पिता ने दूसरी ब्रेस्ट को पकड़ा और उसके निप्पल से दुष्यंत के होंठों को रगड़ा…और इस बार उसने थोड़ा ज़ोर लगाया तो उसका खड़ा हुआ निप्पल उसके होंठों की दीवार भेदता हुआ अंदर दाखिल हो गया…पर उसने अपने दाँत आपस मे भींच रखे थे.
अर्पिता ने सिसक कर कहा : “खोलो अब….वरना ये मूँगफलियाँ सील जाएँगी…इनका करारापन चला जाएगा…”
दुष्यंत अपनी बहन की बात एक ही बार मे मान गया…और जैसे ही उसने अपना मुँह खोला, अर्पिता ने पूरा भार उसके उपर डालते हुए अपना पूरा का पूरा मुम्मा उसके मुँह में ठूस दिया….मूँगफली के साथ-2 प्लेट भी अंदर घुसेड दी…दुष्यंत का मुँह काफ़ी बड़ा था…
उसने बड़ी ही कुशलता से उसके पूरे मुम्मे को अपने मुँह मे एडजस्ट किया और उसे ज़ोर-2 से चूसना शुरू कर दिया.. जैसे कोई दूध पीता है. और अपने भाई के दूध निकालने की इस कला से वो निहाल सी होकर सिसकारियाँ मारने लगी..
”आआययययययययययययययीीईईईईईईईईईई .,…….. उम्म्म्ममममममम……. काटो भी इन्हे…… दर्द सा होता है इनमें …….”
अर्पिता ने डॉक्टर दुष्यंत को अपनी परेशानी बताई, और वो उसका इलाज करने में जुट गया. दुष्यंत उन्हे अपने दांतो से चुभलाने भी लगा…जीभ से उसे सहलाता और दाँत से काटकर निशान बना देता…एक-2 करके उसने दोनो मुम्मो को बुरी तरह से चूस्कर लाल कर दिया…
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जगह -2 उसके दांतो के निशान चमकने लगे…अर्पिता ने कुछ देर के लिए उन्हे दुष्यंत के हमले से बचाया और बाहर निकाल लिया…और फिर अपने गीले होंठों के साथ दुष्यंत पर हमला कर दिया.. जैसे ही दुष्यंत ने अर्पिता के होंठों को टच किया…उसका मीठापन किसी शरबत की तरह दुष्यंत के गले से नीचे उतरता चला गया…और दोनो भूखे जानवरों की तरह एक दूसरे को ज़ोर-2 से स्मूच करने लगे..
दुष्यंत तो अक्सर ये सब कर ही लिया करता था…पर आज अर्पिता का पहला अवसर था…अपने स्तन और होंठ चुसवाने का….इसलिए वो खुद ही लालायित सी होकर ये काम करवा रही थी और मज़े भी ले रही थी…वो जानती तो थी की इस काम मे मज़ा आता होगा..
पर इतना आता है, ये आज उसे अपने मुम्मे और होंठ चुसवाने के बाद ही पता चला…एक अलग ही दुनिया मे पहुँच गयी थी वो…दुनिया की कोई भी फीलिंग इनसे बढ़कर नही हो सकती थी…ऐसा एहसास मिल रहा था उसे आज अपने शरीर से…असली मज़ा तो अब मिला उसको…अपने जवान शरीर का…काश ये सब उसने पहले ही कर लिया होता…
स्मूच करते-2 अर्पिता का हाथ दुष्यंत के लंड की तरफ बढ़ने लगा…उसने पहले भी अपने भाई के लंड को उपर-2 से महसूस किया था किचन में .पर अब उसको नंगा करके पकड़ना चाहती थी…उसने दुष्यंत की निक्कर के उपर से ही उसके खड़े हुए लंड को अपने हाथ मे पकड़कर ज़ोर से दबा लिया..
दुष्यंत का मुँह खुल सा गया…और दोनो की किस्स भी टूट गयी.. अर्पिता तो अब खूंखार सी हो उठी थी…वो दुष्यंत की आँखो मे देखते-2 नीचे की तरफ खिसकने लगी…और ठीक उसके लंड के उपर जाकर उसने अपना चेहरा रोक लिया.
अर्पिता : “बहुत खा ली तुमने मेरी मूँगफलियाँ….अब मेरी बारी है…तुम्हारा केला खाने की…”
और फिर अर्पिता ने उसकी निक्कर को दोनो तरफ से पकड़कर नीचे खींच दिया..और दुष्यंत का लंड एक ही झटके में लहराकर उसकी आँखो के सामने नाचने लगा. उसने जब दुष्यंत और आरती को दो दिन पहले वो सब करते देखा था, तब तो काफ़ी दूर थी वो..
पर अब इतने करीब से वो उसके लंड को देखकर घबरा रही थी की अगर इसे अपनी चूत में लेना पड़ गया तो कैसे लेगी…कहाँ उसकी चूत का 2 इंच का छेद और कहाँ ये आठ इंच लंबा लौड़ा… अर्पिता को ऐसे घहबराई हुई नज़रों से अपने लंड को निहारते देखकर दुष्यंत समझ गया की वो क्या सोच रही होगी….उसने अपने लंड को पकड़कर उसके होंठों पर लगाया और बोला : “अब ज़्यादा मत सोचो दीदी….लो…चूसो इसको…आइस्क्रीम की तरह…शाबाश..”
अर्पिता ने अपनी आँखे बंद कर ली और एक हि झटके में उसके लंड को अपने मुँह मे डाल लिया…और धीरे-2 अपने मुँह को उपर नीचे करने लगी..
दुष्यंत : “शाबाश दीदी……….ऐसे ही ……अहहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह…… उम्म्म्ममममममम ….. कितना मज़ा आ रहा है ………………आहह …….. चूसो इसको …………….. उम्म्म्मममममममममम ….ज़ोर से ………………….”
थोड़ी ही देर मे अर्पिता उसके लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे बरसों से यही काम करती आ रही हो वो… वैसे कुछ लड़कियों में ये गुण शुरू से ही होता है…और ऐसी लड़कियाँ ही अपने पार्टनर को खुश रख पाती है.. दुष्यंत के लॅंड को अर्पिता पूरा का पूरा चूस रही थी….
कभी उसको बाहर निकाल कर कुल्फी की तरह सिर्फ़ जीभ से चूसती… और कभी उसकी बॉल्स को भी मुँह मे भरकर निगल जाती…और उसका रस रसगुल्ले की तरह निकालती…उसने तो सोचा भी नही था की लंड चूसने में इतना मज़ा मिलता है…
दुष्यंत ने लाख कोशिश की पर वो उसके लंड को छोड़ने का नाम ही नही ले रही थी…आख़िर उसके मुँह ताज़ा-2 खून जो लगा था… और फिर वही हुआ, जिसका दुष्यंत को डर था…उसके लंड से भरभराकर रस की पिचकारियाँ बाहर निकलने लगी…और गाड़े रस ने अर्पिता के मुँह, होंठ और चेहरे को पूरी तरह से अपने रंग में रंगकर भिगो दिया…
और अपने मुँह में जैसे ही अर्पिता को थोड़ा बहुत स्वाद का एहसास हुआ, उसने अजीब सा मुँह बनाया…और फिर अगले ही पल बिल्ली की तरह अपनी जीभ से सारा का सारा रस चाटने लगी…लंड के आस पास गिरा रस …और फिर दुष्यंत के लंड से अपने चेहरे को रगड़ा और उसपर लगे रस को फिर से लंड चूस्कर निगल गयी..
अर्पिता : “वाव …….सब कुछ कितना टेस्टी है यहाँ का…..मैं तो फैन हो गयी रे तेरे इस केले की और इसके जूस की. …… म्*म्म्मममम ”
अब दुष्यंत अपने बेड से उठ खड़ा हुआ… और उसने खड़े होकर सबसे पहले तो अपने कपड़े उतार कर नीचे फेंके..और पूरा नंगा हो गया…और फिर उसने बड़े ही प्यार से अर्पिता का पायजामा भी नीचे खिसकाया..और उसे भी अपनी तरह नंगा कर दिया.. अर्पिता की आँखे बंद थी…आख़िर पहली बार पूरी तरह से नंगी हो रही थी वो किसी के सामने…
अर्पिता की चूत बिल्कुल चिकनी थी…शायद वो पहले से ही तैयार होकर आई थी…चिकनी चूत से हल्का पानी निकल कर बाहर रिस रहा था… दुष्यंत ने नीचे बैठे-2 ही उसकी एक टाँग को अपने कंधे पर रखा और अपना मुँह सीधा उसकी चूत पर लगा दिया… अर्पिता ने उसके बाल पकड़े और ज़ोर से चीख उठी ….
”अहहsssssssssssssssss…… ओह माय गॉड ….ओह माय गॉड ….ओह माय गॉड”
उसने तो सोचा भी नही था की नर्म चूत पर गर्म होंठ का संगम ऐसा एहसास देगा उसे….. वो अपने आप को संभाल नही पाई और वो बेड की तरफ झुकती चली गयी और उसपर गिरकर चादर की तरह बिछ गयी… दुष्यंत ने उसके दोनो पैरों को फेलाया और अपना मुँह अंदर डाल कर ज़ोर-2 से उसकी चूत को चूसने लगा…
अर्पिता की तो आँखे चढ़ गयी….ऐसा सुखद एहसास तो उसे फिंगरिंग करने के बाद भी नही मिलता था… वो पहले से ही उत्तेजित थी…इसलिए ज़्यादा टाइम नही लगा उसे झड़ने मे….और वो हिचकियाँ लेती हुई दुष्यंत के मुँह के अंदर ही झड़ने लगी…
”अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह। उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म क्या मजा है अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह, चूस इसको, यहाँ से, अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह येस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स आई एम कमिंगsssssssssssss.”
और दुष्यंत तो पुराना खिलाड़ी था इस खेल का…उसने एक भी बूँद बाहर नही निकालने दी…अपना मुँह उसकी चूत से तब तक नही हटाया जब तक वो पूरी तरह से शांत नही हो गयी.. उसके बाद दुष्यंत भी उसकी बगल मे आकर लेट गया…और दोनो एक दूसरे के होंठों को चूस्कर अपना-2 रस खुद ही चखने लगे.. 2 बज चुके थे ये सब करते-2….
दुष्यंत का लंड अपनी आख़िरी लड़ाई के लिए तैयार हो चुका था… उसने धीरे-2 अपने शरीर को अर्पिता से रगड़ना शुरू कर दिया…. अर्पिता भी समझ गयी की अब वो क्या चाहता है….पर उसके अंदर हिम्मत नही बची थी कुछ भी करने की अभी…और वो डर भी था की इतना बड़ा कैसे अंदर जायेगा. एक तो काफ़ी रात हो चुकी थी…दूसरा उसे सुबह ऑफीस भी जाना था…छोटी दीवाली पर ऑफीस मे सभी को गिफ्ट लेने के लिए बुलाया गया था…
अर्पिता : “दुष्यंत…..आज के लिए इतना ही…बाकी कल करेंगे….ऑफीस भी जाना है…”
दुष्यंत ने भी कोई ज़बरदस्ती नही की….अर्पिता ने उसको एक किस्स किया और अपने कपड़े पहन कर वो माँ के पास सोने के लिए चली गयी.. और दुष्यंत ऐसे ही नंगा सो गया…अगले दिन होने वाले जुए के बारे मे सोचते हुए और उसके बाद होने वाली चुदाई के बारे मे सोचते हुए…
अगले दिन अर्पिता की नींद खुल ही नही रही थी…उसने अलार्म ना लगाया होता तो उसे पता ही नही चलता की सुबह के 7 बज चुके हैं..मन तो नहीं था,पर ऑफीस जाना भी ज़रूरी था…वो जल्दी से उठी..नहा धोकर तैयार हो गयी और अपने लिए चाय रख दी.. उसकी माँ अभी तक सो रही थी..
चाय का कप हाथ मे लेकर वो दुष्यंत के कमरे में गयी…और वहाँ का हाल देखकर उसे एहसास हुआ की रात को उन दोनो ने वहाँ क्या धमाल मचाया था.. दुष्यंत के बेड की चादर निकल कर नीचे गिरी हुई थी..उसके कपड़े चारों तरफ बिखरे पड़े थे…पिल्लो भी गिरे पड़े थे इधर उधर…
और वो अपने पैर फेला कर गहरी नींद में सो रहा था…वो पूरा नंगा था..और उसके मैन पार्ट के उपर तकिया पड़ा था…शायद वो रात को उसको अपनी टाँगो के बीच दबोच कर ही सोया था.. अर्पिता धीरे-2 आगे आई और उसने पिल्लो को उठा कर साइड में कर दिया…और अब दुष्यंत उसकी नज़रों के सामने पूरा नंगा था…
भले ही इस वक़्त उसका सिपाही सोया हुआ था पर फिर भी वो बड़ा ही टेम्पटिंग सा लग रहा था..इतना टेम्पटिंग की अर्पिता के मुँह में पानी आ गया..उसने घड़ी देखी, अभी दस मिनट थे उसके पास…उसने सोचा की चाय तो रोज पीते हैं, आज फ्रेश जूस पीया जाए..और उसने चाय का कप टेबल पर रख दिया और दरवाजा बंद करके उसके बेड के पास आ गयी..
शेर चाहे सो रहा हो पर होता वो भी ख़तरनाक है..इसलिए अर्पिता को उसे हाथ लगाने मे डर भी लग रहा था…पर जैसे ही उसके ठंडे हाथ गर्म लंड को छुए , उसके नर्म एहसास हो महसूस करके अर्पिता रोमांच से भर उठी…पिछले 2-3 दिनों से जो भी वो देख और कर रही थी, सबमे उसे मज़ा मिला था…
और अब ये सुबह की रोशनी मे नहाया हुआ दुष्यंत का लंड , वो तो सबसे अलग ही था…वो धीरे से उसके उपर झुकी और पहले अपनी गर्म सांसो से और फिर गर्म जीभ से उसे गुड मॉर्निंग कहा. दुष्यंत को अभी तक मालूम नही था की उसके साथ हो क्या रहा है…वो रात को 4 बजे तक जागता रहा था..
अर्पिता के बारे मे सोच सोचकर..अब जब तक उसके साथ कुछ ज़ोर ज़बरदस्ती ना हो, तब तक उसकी नींद नही खुलने वाली थी.. कल रात को तो उसका लंड पूरा खड़ा हुआ था, पर इस वक़्त अर्पिता के टच से वो नींद से जागने लगा..तभी कहते हैं, लंड का अपना अलग दिमाग़ होता है… ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उसका मालिक भले ही सो रहा था पर दुष्यंत का लंड अपने आप को मिल रहे स्पेशल ट्रीटमेंट से काफ़ी खुश था.और कुछ ही देर में वो खेत की सरसों की तरह लहराने लगा.. अर्पिता ने अपने लिप्स पर पिंक ग्लॉस लगाया हुआ था…जिसे उसने धीरे-2 दुष्यंत के लंड पर मल दिया…वो तेज़ी से उसके लंड को चूस रही थी..
कल रात के जायके को वो भूली नही थी अभी तक…इसलिए उसके जूस निकलने का बेसब्री से वेट कर रही थी… और उसने जिस तरह से तेज झटके मारकर दुष्यंत के लंड को झटके दिए, उसे नींद से जागने के लिए उतने झटके काफ़ी थे…और वैसे भी , नींद में ही सही, उसे ये एहसास हो रहा था की उसका बस निकलने ही वाला है…
और जैसे ही वो घड़ी आई…उसके लंड की टंकी और उसकी आँखे एक साथ खुल गयी.. लंड की टंकी से भरभराकर गाड़ा पानी अर्पिता के मुँह में जाने लगा..और वो अपनी अधखुली आँखो से अपनी टाँगो के बीच लेटी हुई अर्पिता को देखकर हैरान और परेशान हुए जा रहा था..
पर जब तक वो कुछ बोल पाता वो बिल्ली उसकी सारी मलाई चट कर चुकी थी…और फिर बड़े ही सेक्सी तरीके से उसकी आँखो मे देखते हुए उसने अपने होंठों पर जमे रस को चाटते हुए कहा : “गुड मॉर्निंग भाई …” और दुष्यंत उसको पकड़कर कुछ और कर पाता , वो खिलखिलाती हुई सी कमरे से बाहर निकल गयी…उसके ऑफीस का टाइम हो गया था.
फिर 5 मिनट के बाद वो अपना बेग वगेरह लेकर घर से बाहर निकल गयी.. दुष्यंत अभी तक अपने बेड पर नंगा लेटा हुआ सुबह के इस हसीन एनकाउंटर के बारे मे सोच सोचकर मुस्कुरा रहा था. वो फिर से सो गया…करीब 10 बजे के आस पास उसकी नींद खुली, उसका मोबाइल बज रहा था…वो आरती का फोन था.
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दुष्यंत (बुदबुदाते हुए) ‘इसकी चूत में भी सुबह-2 खुजली शुरू हो जाती है’.
फिर फोन उठा कर बड़े ही प्यार से बोला : “हेलो डार्लिंग…कैसी हो..”
आरती : “तुम्हे क्या पड़ी है मेरी फ़िक्र करने की…दो दिन से देख रही हू तुम मुझे इग्नोर कर रहे हो..उस दिन जब अर्पिता ने पकड़ लिया था, उसने कुछ बोला क्या…बोलो…”
दुष्यंत : “अरे नही बेबी…वो तो . काफ़ी खुश थी..और तुम्हारी तारीफ भी कर रही थी…बोल रही थी की तुम दोनो में कुछ ग़लतफ़हमियाँ हो गयी है, वरना वो अभी भी तुम्हे बहुत लाइक करती है…और मेरे और तुम्हारे ऐसे रीलेशन से भी दीदी को कोई प्राब्लम नही है..”
आरती (हैरानी से) : “क्या सच में ….तुम झूठ तो नही बोल रहे ना…”
दुष्यंत : “डार्लिंग…मैं भला क्यो झूठ बोलूँगा…सच मे, वो अभी भी तुम्हे अपना दोस्त मानती है…”
आरती : “ग़लती मेरी ही थी पहले भी….और अब भी…इतनी अच्छी सहेली के साथ मैने ऐसा बर्ताव किया…”
दुष्यंत : “चलो, अब परेशान मत हो, अगर तुम दीदी के साथ फिर से दोस्ती करना चाहती हो तो वो मुझपर छोड़ दो…अब ये बताओ, इतनी सुबह कैसे फोन किया…”
आरती (थोड़े नाराज़गी भरे स्वर मे) : “तुम्हे तो कुछ होता नही है…पर मेरी हालत बड़ी खराब है…बड़ा मन कर रहा है तुमसे मिलने का (चुदवाने का)”
उसकी सेक्सी आवाज़ ने तो दुष्यंत के सोए हुए शेर को फिर से जगा दिया …अभी 10 बज रहे थे…उसको नहाना भी था और नाश्ता भी करना था…माँ को भी नाश्ता करवाना था…इंजेक्शन लगवाना था…
दुष्यंत : “तुम ऐसा करो, 3 बजे आ जाओ…माँ तब तक खाना खाकर सो जाएँगी…फिर बस तू और मैं …”
आरती : “ओक ….मैं आती हू, 3 बजे…”
फिर दुष्यंत आराम से उठा और नहाया ..अपनी किस्मत पर उसको आज बड़ा ही नाज़ हो रहा था… अर्पिता और आरती की दोस्ती वो इसलिए करवाना चाहता था की उसके मन में कही ना कही एक साथ 2 के मज़े लेने की बात थी….पर उसे क्या मालूम था की उसकी ये इच्छा इतनी जल्दी सच हो जाएगी..