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गुंडे के मजबूत जवान लंड की दीवानी बन गई

नवम्बर 19, 2023 by hamari

Premika Ki Chudai

मैं आप सबको अपने बारे में ज्यादा कुछ तो नहीं बता सकती पर मैं बस कुछ बातें बताती हुँ, जैसे कि मैं शादीशुदा हुँ और मैं अपने पति और बच्चों के साथ रहती हुँ। मेरा और मेरे पति का परिवार कहीं और रहता है। अपनी बात करूँ तो मेरा रंग गोरा है और मेरा शरीर हमेशा से ही काफ़ी खूबसूरत और उभार भरा है। Premika Ki Chudai

मैंने बाकी लड़कियों कि तरह कभी कई लड़को से दोस्ती नहीं रखी। मेरे माता-पिता काफ़ी सख्त थे और उन्हें मेरा कोई भी वैसा काम करना पसंद नहीं था जो उन्हें अच्छा ना लगता हो। मैं बचपन से ही काफ़ी धार्मिक माहौल में पली हुँ। यही वजह थी कि मेरे पति मेरे जीवन में पहले मर्द थे।

मुझे पिछले कुछ समय में ही इस जगह के बारे में पता चला है जहाँ लोग सेक्स की कहानीयाँ लिखते हैं। मैंने कुछ पढ़ी और मुझे भी अपनी कहानी बताने का मन हुआ। मुझे काफ़ी घबराहट हो रही है पर काफ़ी सोचने के बाद बहुत हिम्मत कर के मैं अपनी निजी बातें आप सबको बताने जा रही हूँ।

आज मैं जो किस्सा आपको बता रही हुँ वो मेरे जीवन में मेरे पति के अलावा आने वाले दूसरे मर्द की है। मेरी शादी के कुछ समय बाद से मुझे सब अधूरा सा लगता था। मेरे पति काम पर चले जाते और मैं घर पर अकेली रहती।

हमारे घर में हम दोनों के अलावा और कोई नही था। पर बात वो नहीं थी। वक्त तो मैं अपना काट लेती थी और पड़ोसी भी थें बात करने को। पर मुझे हमारी सेक्स लाइफ़ अधूरी लग रही थी। वो हमेशा काम में लगे रहते और काफ़ी थके भी रहते थे। हम सेक्स बहुत कम करते थे।

हमारी शादी के 5 साल बाद भी हमें कोई बच्चा नहीं था। मेरा शरीर हमेशा तड़पता रहता था और इससे मैं काफ़ी बेचैन भी रहती थी। हम कई-कई दिनों बाद सेक्स करते थे और तब जाकर मेरी तड़प थोड़ी शांत होती थी। मेरा मन तो रोज़ सेक्स करने का होता था पर मैं मन मार के रह जाती थी।

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हमारे यहाँ कई बदमाश और गुंडे हैं जो पूरा दिन लोगों को परेशान करते रहते हैं। जब भी मैं अपने पति के साथ बाहर जाती थी तो देखती थी कि वो बदमाश आती जाती लड़कियों को छेड़ते थें और लोगों के साथ मारपीट भी करते थें। पुलिस का भी इनपे कुछ असर नही था।

ये अक्सर जेल जाते थे और बाहर आकर फिर वही सब करते। लोग इनसे बहुत परेशान थे लेकिन कोई इनके मुँह नहीं लगना चाहता था। सभी कहते थे कि अकेले बाहर जाना ठीक नहीं है। उन्हीं में से एक बदमाश था जिसे सभी लोग दारा भाई बोलते थें। वो हमारे इलाके में बहुत जाना माना था।

वो एक तरह से सभी बदमाशों का लीडर था। इलाके में उसकी बहुत चलती थी। मुझे साथ की औरतों से पता चला कि वो बहुत बड़ा बदमाश है। वो पास के ही गांव का था और बचपन से वहीं रहता आया है। उसका असली नाम मुहम्मद अकबर राशिद खान था और दारा तो लोग बस उसे वैसे ही बोलते थें।

वो छोटी उम्र से ही गलत कामों में पर गया था। उन्होंने मुझे बताया कि हर बुरे कामों में उसका नाम आया है और लड़कियों पर तो उसकी नज़र बहुत गंदी है। वो कई लड़कियों को अपने जांसे मे ले चुका है। पुलिस में भी उसकी अच्छी पहचान है इसलिए सभी कांड कर के भी बच जाता है।

तो मैं जब भी कभी बाहर जाती थी तो अकसर मुझे भी बदमाश छेड़ते थें और गंदी बातें करते थे। मेरे पति इस सब पर ध्यान नहीं देते थें क्योंकि उन्हें इन बदमाशों के मुंह नहीं लगना था, वो हमेशा सब की तरह मुझे संभल कर रहने और उन पर ध्यान ना देने को कहते। मुझे ये सब बहुत बुरा लगता था।

लेकिन उन सबसे कौन लड़ता और कब तक। मेरे पति कोई पहलवान तो नहीं थे। वो तो बहुत पतले-दुबले और साधारण कद के आम आदमी थे। वो कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं करते थे और ना ही कर सकते थे। ये दारा भी मुझे हमेशा घूरता था लेकिन उस समय तक मैंने उसपे कुछ खास ध्यान नहीं दिया था। मेरे लिए वो बस उन बदमाशों में से एक था, बल्कि सबसे बड़ा बदमाश।

सब ऐसे ही चलता रहा पर कुछ समय बाद मुझे कुछ बदला-बदला सा लगने लगा। पहले तो मैंने महसूस नहीं किया पर बाद में मैंने गौर किया कि अब बाहर जाने पर बदमाश मुझे छेड़ते नहीं थे। मैंने इसके बारे में अपने पड़ोसियों से जब बात की और उन्हें कहा कि लगता है आजकल गुंडागर्दी कुछ घटी है तो उन्होंने कहा बहन किस दुनिया में हो? कुछ नहीं बदला है। वो सब अभी भी परेशान थी बदमाशों से। मुझे ये अजीब लगा।

मुझे तो कोई नहीं छेड़ रहा था, सिवाय उस दारा के। वैसे तो वो कुछ नहीं कहता था पर हमेशा मुझे घूरता रहता था और मैं जहाँ जाती मुझे वहाँ दिख जाता था। वो जैसे मेरा पिछा करता हो। मुझे उसमें से कमीनापन छलकता दिखता था।वो भीड़-भाड़ में मेरे करीब आने की कोशिश करता था।

मैं हर दिन मंदिर जाती तो वो मुझे वहाँ भी मिल जाता। मैं सोचती थी कि एक मुसलमान होकर वो मंदिर में क्या करता है पर मैं उसे रोक तो नहीं सकती थी। पर धीरे-धीरे अब मेरा उसपर ध्यान जाने लगा था। वो काफ़ी आकर्षक था। वो अकसर मुझे देखता रहता था पर मैं अपनी आंखें चुरा के आगे बढ़ जाती थी।

धीरे-धीरे मुझे ये बात महसूस होने लगी कि दारा की नज़र मुझपर टिकी है शायद इसलिए मुझे कोई नहीं छेड़ रहा था। ना जाने क्यों पर धीरे-धीरे मेरा भी आकर्षण दारा की ओर होने लगा। मैं दिन-रात ना चाहते हुए भी बस उसके बारे सोचते रहती।

शायद मेरे पति के प्यार कि तड़प के कारण ये हो रहा था। मैं इसके बारे में किसी को बता भी नहीं सकती थी। मुझे उसका मुझे देखना अच्छा लगने लगा। अब मैं उससे आंखें नहीं चुराने लगी। मैं भी उसे मुझे देखने का पूरा मौका देने लगी और उससे थोड़ी बहुत आंखें मिलाने लगी।

दारा बहुत ऊंचा और हट्टा-कट्टा मर्द था। वो काफ़ी ताकतवर लगता था। अब तो वो भीड़भाड़ में मेरे करीब आने का मौका नहीं छोड़ता था। वो मुझे काफ़ी अच्छा लगने लगा था। उसे देखकर मैं कामुक हो जाती थी। मैं जानती थी ये ठीक नहीं है पर मुझे ये अच्छा लग रहा था। पर मैं संभलकर रह रही थी, मैं नहीं चाहती थी कि समाज में मेरा नाम खराब हो।

एक दिन मैं हमेशा कि तरह घर पर अकेली थी। घर के सभी काम करने के बाद मैं बेड पर लेटी हुई दारा के ही बारे में सोच रही थी। अचानक किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। मैंने खुद को ठीक किया और दरवाज़ा खोलने गई। मैंने जैसे दरवाज़ा खोला मैं बाहर देखकर चौंक गई। बाहर दारा खड़ा था जो दरवाज़ा खटखटा रहा था।

मेरी सांसे थम सी गई और दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। मैं सोच में पड़ी थी कि वो यहां क्यों आया है, अगर किसी ने देख लिया तो। तभी उसने एक डब्बा मेरे आगे किया और कहा कि ईद के मौके पर वो सबको सेवियां बांट रहे हैं। मैं थोड़ा शांत हुई और मैंने ईद मुबारक बोल कर डब्बा ले लिया।

उस दिन पहली बार मैं उससे इतने करीब से मिल रही थी। हालांकि पहले भी वो मेरे करीब आया था पर ऐसे आमने-सामने हम पहली बार ही मिले थें और पहली बार ही हमने बात की। वो करीब से और भी ज्यादा आकर्षक लग रहा था।

उसका शरीर किसी पहलवान की तरह बड़ा था और ऊंचाई में तो मैं उसकी छाती तक ही थी। उसे देख के मुझे कुछ हो रहा था। वो भी मुझे देखे जा रहा था। फिर उसे किसी ने आवाज़ दी और वो चला गया। मैं कई दिनों तक इस बारे में सोचती रही और ऐसे ही दिन बीतते रहे। और फिर एक और दिन आया।

मेरे पति रोज़ की तरह काम पर जा चुके थे और मैं घर पर अकेली थी। मैं रसोई में काम कर रही थी तभी दरवाज़े पर कोई आया। मैंने जाकर दरवाज़ा खोला और देखा बाहर दारा खड़ा है। मेरा दिल सहम गया और तेज़ी से धड़कने लगा और मेरे मन मैं अंदर मुझे खुशी सी हुई।

उसे देख कर मुझे अजीब सा लगता था, खुशी और घबराहट दोनों साथ-साथ होती थी। मेरी ऐसी हालत थी कि मैं हर वक़्त उसे देखना चाहती थी। वो अपने बाकी बदमाश दोस्तों के साथ किसी चीज़ का चंदा जमा कर रहा था। और इस बार भी मेरे पास सिर्फ वो ही आया था।

मैंने उससे पूछा कि क्या बात है तो उसने मुझे कहा कि उसे पानी चाहिए। मैं पानी लेने अंदर गई और बाहर आई तो देखा कि वो अंदर आकर बैठ गया था। मैं घबरा गई। मैंने सोचा कि अगर किसी ने उसे मेरे साथ अकेले अंदर देख लिया तो बातें बनाएंगे।

मैंने खुद को शांत किया, उसके पास गई और उसे पानी का ग्लास दिया। ग्लास लेने के बहाने वो मुझे छूने की कोशिश करने लगा। मुझे वो मन ही मन अच्छा लगता था पर मैं पूरी कोशिश करती थी कि उसे इस बात का अंदाजा ना होने दुं। मैं नहीं चाहती थी कि एक गुंडे के साथ मेरा नाम बदनाम हो।

उसने पानी पिया और ग्लास मुझे लौटाया। वो मुझे अपनी हवस भड़ी नजरों से देख रहा था जो मुझे न जाने क्यों बहुत अच्छा लग रहा था। मैं ग्लास लेकर वापस मुड़ी तो अचानक मेरा पल्लु अटका और सरक गया। मेरा सहम गई और मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा। मुझे लगा कि दारा ने मेरा पल्लु खींचा है।

मैंने पीछे मुड़ के देखा तो मेरा पल्लु दारा ने नहीं खींचा था, वो तो बस फस गया था। मुझसे पहले दारा ने मेरा पल्लु पकड़ लिया। पल्लु छुड़ा कर वो मेरी तरफ़ आया। मैं सहमी हुई थी। तभी बाहर से किसी ने उसे आवाज़ लगाई और वो पल्लू मेरे हाथ में देकर चला गया।

इस बात ने तो मेरी रातों की नींद उड़ा दी। मैं बस इसी बारे में सोचने लगी। ये बात मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रही थी। दिन-ब-दिन मेरी तड़प बढ़ती जा रही थी। एक दिन मैं घर का सामना लेने के लिए अकेली ही बाज़ार चली गई। मैं वहाँ अपना सामान ले रही थी कि मेरी नज़र वहाँ भी दारा पर पड़ी।

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वो वहाँ भी मुझपर नज़र रखे हुए था। उसे देखते ही मुझे वो दिन फिर याद आ गया। मैंने खुद को संभाला और अपना सारा जरूरी सामान लेने लगी। कुछ समय में मैंने सारा सामान ले लिया वापस घर के लिए निकली। मुझे उस दिन काफ़ी अच्छे दाम में सामान मिल गए। वापस लौटने के लिए मुझे कोई रिक्शा नहीं मिल रही थी।

इसलिए रिक्शा ढूंढते-ढूंढते मैं पैदल ही बाज़ार से थोड़ा बाहर आ गई। मैं कोई रिक्शा ढुंढ ही रही थी तभी पीछे से एक बाइक मेरे पास आकर रुकी। मैंने देखा तो वो कोई और नहीं दारा ही था। मेरी हालत फिर खराब हो गई। वो खुले सड़क पर मेरे पास आकर बात करने लगा था। उसने मुझे कहा कि मैं पैदल क्यों जा रही हुँ, वो मुझे अपनी बाइक पर छोड़ देगा।

मैंने उसे कह दिया कि नहीं मैं खुद चली जाऊंगी। पर वो मुझे मनाने लगा। मुझे डर था कि अगर किसी ने मुझे ऐसे देख लिया तो गड़बड़ हो जाएगी। उसे शायद ये बात समझ आ गई कि मैं किसी के देखने के डर से उसके साथ नहीं बैठ रही हुँ, तो उसने मुझे कहा कि वो मुझे घर से कुछ दूर पहले ही उतार देगा।

रिक्शा मिल नहीं रही थी और उस जगह मुझे कोई जान-पहचान का दिख भी नहीं रहा था इसलिए मैं उसके साथ बैठ गई। मैंने बचाव के लिए अपना चेहरा भी ढक लिया ताकि मुझे रास्ते में कोई ना पहचान पाए। मेरे पास सामान था तो मैं ठीक से बैठ नहीं पा रही थी तो उसने मुझे कहा कि आगे रास्ता खराब है इसलिए मैं उसे पकड़ कर अच्छे से बैठ जाऊं।

मैंने एक हाथ से उसका कंधा पकड़ लिया और हम चलने लगे। रास्ता काफ़ी खराब था जिसकी वजह से झटके लग रहे थें और मैं बार-बार उसके करीब चली जाती थी। मुझे मन ही मन बहुत अच्छा लग रहा था और साथ ही मैं डरी हुई भी थी कि कहीं कोई मुझे देख कर पहचान न ले। और बात फैल जाए कि मैं एक बदमाश के साथ घूमती हुँ।

कुछ देर बाद अचानक उसने बाइक रोक दी। मैंने उससे पूछा कि उसने बीच रास्ते में बाइक क्यों रोक दी तो उसने कहा कि बाइक खुद रुक गई है। उसने बाइक शुरू करने की कोशिश की पर कुछ नहीं हुआ। बाइक खराब हो गई थी। उसने कहा कि यहीं पास में एक जगह है जहाँ मैं रुक सकती हुँ तब तक वो बाइक ठीक करवा लेगा।

मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था। वो जगह बहुत सुनसान थी और उस जगह पर तो कोई रिक्शा भी नहीं मिल सकती थी। मैं ऐसे रास्ते से अकेले नहीं जाना चाहती थी इसलिए मैंने उसकी बात मान ली और उसके साथ चल पड़ी। वो मुझे लेकर किसी एक छोटे से घर में पहुंचा।

मैंने उससे पूछा कि क्या ये उसका घर है तो उसने कहा कि नहीं ये जगह बस उसके अपने दोस्तों के साथ टाइम पास के लिए है। मैं अंदर गई और देखा कि वो जगह बहुत अजीब थी। हर तरफ़ सिगरेट, लुडकी हुई दारू की बोतलें, मांस-मछली के जूठे टुकड़े और हड्डियां। मेरे जैसे शुद्ध ब्राह्मण के लिए तो नर्क जैसा था।

मैंने उसे कहा कि मैं यहाँ नहीं रुक सकती तो उसने मुझे कहा कि अंदर जा के देखुं। मैं किसी तरह मान गई। अंदर के हालात फिर भी ठीक थें। उसने बेड से गंदी चादर हटाई और साफ़ सफ़ेद चादर बिछा दी। उसने मुझे बैठने को कहा। गर्मी बहुत ज्यादा थी। वो अंदर गया और मेरे लिए पानी ले आया।

मैं पानी पीने ही जा रही थी कि उसके हाथ के ठोकर से सारा पानी मेरे ऊपर गिर गया और मेरा पूरा ब्लाउज गीला हो गया। उसने मुझसे माफ़ी मांगी और कहा कि ये गलती से हुआ। मैंने कहा कोई बात नहीं। मुझे बाथरूम जाना था तो मैंने उससे पूछा और बाथरूम चली गई।

मैंने उसे बोल दिया कि वो जल्दी से बाइक ठीक करवा के ले आए या कोई रिक्शा ले आए ताकि मैं घर जा सकूं। कुछ देर बाद मैं बाथरूम से बाहर लौटी। मैं अपनी साड़ी ठीक करते हुए आगे बढ़ रही थी कि अचानक मेरा पल्लू कहीं अटका और मेरी छाती से सरक गया। मैं पल्लू छुड़ाने पीछे मुड़ी तो मैं हैरान रह गई।

वहाँ दारा खड़ा था। वो कहीं नही गया था। और मेरा पल्लू कहीं अटका नही था बल्कि दारा ने ही उसे खींचा था। मेरा पल्लू उसके हाथ में था। मैं सुन्न पर चुकी थी। मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी। वो मेरे पल्लू के लेकर मेरी ओर बढ़ा। वो मेरे करीब आया और मेरे पल्लू को उसने नीचे गिरा दिया।

मेरी सांसें तेज़ हो रही थी। मैं इतनी भी कोशिश नहीं कर पाई कि अपना पल्लू उठा के खुद को ढक लुं। फिर उसने अपने हाथ मेरी कमर में डाला और मुझे मजबूती से अपनी तरफ़ खींच लिया। मैं मानो हिल भी नहीं पा रही थी। मैं जानती थी ये गलत है पर मैं चाह के भी उसे रोक नहीं पा रही थी या फिर शायद रोकना ही नहीं चाहती थी।

मेरा जिस्म इसके लिए तड़प रहा था। उसने अपने दूसरे हाथ से मेरे चेहरे को पकड़ा और अपनी खुरदरी उंगलियों से मेरे नाजुक होंठों को मसल दिया। इससे मेरी दर्द से आह निकल गई। फिर उसने मेरे बालों में हाथ डाला और पीछे से मेरे बालों को जकड़ के खींचा और मेरे होठों को चूमने लगा।

वो पूरे जोश में मेरे होठों को चूम रहा था। मुझे ये काफ़ी अच्छा लग रहा था। मेरे पति ने मुझे कभी इस तरह नहीं चूमा था। मैं भी कुछ ना करके ही उसका पूरा साथ दे रही थी। वो मेरे होंठों को बुरी तरह चूस रहा था। काफ़ी देर तक वो मुझे चूमता रहा।

फिर वो अपना हाथ मेरे पूरे बदन पर फेरने लगा। उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू किये और एक पल में उसने मुझपर से मेरी साड़ी निकाल फैंकी और मेरी पेटीकोट भी गिरा दी। मैं उसके आगे अधनंगी खड़ी थी। मेरे बदन पर बस नाम के ही कपड़े बचे थें। वो मेरे नंगे बदन को घूर रहा था।

मुझे बहुत शर्म आ रही थी। मैं अपने हाथों से अपने आप को ढकने की कोशिश कर रही थी पर मैं नाकामयाब थी। उसने भी अपना कुर्ता निकाल दिया। उसने फिर मेरे हाथ को पकड़ा और मुझे अपनी ओर खींच लिया। उसने मुझे घुमा कर पीछे से जकड़ लिया और अपने दोनों हाथ मेरे स्तनों पर रख दिये।

मेरी सांस भारी हो गई। वो मेरे स्तनों को दबाने लगा। उसके बड़े कठोर हाथों में मेरे कोमल स्तन संतरों की तरह लग रहे थें जिसे वो कभी भी निचोड़ दे। मेरे पति के छोटे से हाथ कभी मुझे ऐसा महसूस नहीं करवा पाएं थें। अचानक उसने मेरा ब्लाउज पकड़ा और एक झटके में उसके सारे हुक तोड़ दिए जिसके साथ कपड़ा थोड़ा फट भी गया।

मेरी आंखें भी फटी रह गई कि ये क्या हुआ। फिर उसने मेरी ब्रा भी निकाल फैंकी जिससे मेरे स्तन भी नंगे हो गए। वो मेरे स्तन के साथ ऐसे खेल रहा था जैसे किसी बच्चे की गेंद हो। वो उन्हें कभी सहलाता, कभी दबाता और कभी उछालता था।

फिर उसने मेरे दोनों निप्पलों को पकड़ा और मेरे दोनों स्तनों को जोर से झिंझोड दिया। फिर उसने मुझे अपनी और घुमाया और करीब खींचा। मेरे स्तन उसकी छाती से जाकर चिपक गए। उसने मुझे कस कर पकड़ रखा था जिससे मैं मेरे पैरों की बस उंगलियां ही जमीन को छू पा रही थीं।

मेरा पूरा शरीर उसकी बाहों में था। मेरा भरा-पूरा शरीर इतना हल्का भी नहीं था जितनी आसानी उसने मुझे उठा रखा था। मुझे उसके ताकत का अंदाज़ा हो रहा था। वो मेरे चेहरे, होंठ और गर्दन को चूम रहा था। मेरा मंगलसूत्र मेरे गले में उसे तंग कर रहा था।

मंगलसूत्र के बार-बार बीच में आने से परेशानी हो रही थी, वो कहीं इसे तोड़ ना दे इसलिए मैंने उसे निकाल देने को कहा पर उसने मना कर दिया। मेरे स्तन उसकी छाती से रगड़े जा रहे थें। मैं उसके शरीर को महसूस कर रही थी। उसका वो बड़ा और मजबूत शरीर किसी चट्टान की तरह सख्त था।

उसकी चौड़ी छाती थी जो बालों से ढकी थी। उसके मजबूत पकड़ में तो मैं हिल भी नहीं पा रही थी। मेरा नाज़ुक शरीर उसकी मजबूत बाहों में मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि एक कमजोर हिरनी किसी शेर के कब्ज़े में हो। उसकी बाहों में मैं बेबस महसूस कर रही थी जो कि मुझे अच्छा भी लग रहा था।

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उसके बदन की वो महक मुझे और कामुक कर रही थी। मुझसे और रहा नहीं जा रहा था। धीरे-धीरे उसने अपनी पकड़ ढीली की और मेरे बदन को सहलाते हुए अचानक ही उसने मेरी गांड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर जोर से मसल दिया। अचानक इस दर्द से मेरे मुंह से जोर की कराहती हुई चींख निकल गयी।

उसने कुछ पलों तक अपनी पकड़ मजबूत ही रखी और फिर आराम से छोड़ दिया। फिर उसने मेरे पेट को सहलाते हुए अपना हाथ मेरी पैंटी में डाल दिया। उसने जैसे अपने अपनी मोटी उंगलियों से मेरी चूत को छूआ मेरा पूरा शरीर सिहर गया। ऐसा लगा जैसे पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई हो।

मैं पहले से ही गीली हो चुकी थी। वो अपनी खुरदरी उंगलियों को मेरी कोमल चूत पर सहलाने लगा। मेरे लिए ये सब नया अनुभव था। मुझे ऐसा पहले कभी महसूस नहीं हुआ था। मैं अपना होश खोए जा रही थी। मेरे मुंह से बस सिसकियाँ निकल रही थीं।

वो नीचे मेरी चूत सहला रहा था और ऊपर मेरे स्तनों से खेल रहा था। वो कभी मेरे स्तन को चूमता कभी चूसता और कभी जोर से काट लेता। ये सब मैं ज्यादा देर तक नहीं झेल पाई और मैं झड़ गई। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। ऐसा मज़ा तो मुझे अपने पति के साथ कभी सेक्स कर के भी नहीं आया था।

मैंने सोचा भी नहीं था कि बिना चुदाई के भी कोई इतना मज़ा कर सकता है। इस एक बार के झरने जितना मज़ा मुझे अपनी जिंदगी में कभी नहीं आया था, ये अब तक का सबसे अच्छा समय था मेरे जिस्म की आग के लिए। मैं यही सोच रही थी कि मेरे पति कभी मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं करते।

मुझे लगा कि अब दारा मुझे छोड़ देगा पर नहीं, उसकी तो अभी शुरूआत भी नहीं हुई थी। उसने अपनी गीली उंगलियां बाहर निकालीं और मेरे मुंह में डाल दी। मुझे ये थोड़ा गंदा लगा पर मैंने उसे रोका नहीं। मुझे ये सब अच्छा लग रहा था। अब मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया था।

 वो मेरे साथ कुछ भी कर सकता था। मैं उसकी उंगलियों को अच्छे से चूसने लगी। फिर उसने मुझे अपने कंधे पर उठा लिया और मुझे अंदर बेड पर ले जाकर पटक दिया। वो मेरे पास आया और मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चूमने लगा। उसका भारी भरकम शरीर मेरे नाज़ुक से शरीर को अपने नीचे रोंद रहा था।

उसने मेरी बाहों को मेरी पीठ के पीछे डाल के जकड़ दिया और बेइंतिहा मुझे चूमने लगा। मुझे थोड़ी तकलीफ़ भी हो रही थी पर मज़ा भी आ रहा था। वो मुझे चूमने के साथ-साथ मुझे चाट भी रहा था। उसकी लंबी जीभ से मेरा पूरा चेहरा और गर्दन उसकी थूक से लथपथ हो गया था।

फिर वो उठा तो ऐसा लगा जैसे मेरा पूरा शरीर हल्का हो गया हो। फिर वो उठा और उसने अपने आगे मेरी टांगें अपनी ओर की और मेरी पैंटी एक झटके में निकाल फ़ैंकी। अब मैं उसके सामने पूरी तरह से नंगी थी। मेरे बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। उसने मेरी दोनों टांगों को पकड़ा और उन्हें फैलाने लगा।

उसने मेरी टांगें फैला दी और मेरी कोमल तड़पती हुई चूत को देखने लगा। वो मेरी चूत पर अपनी उंगली फेरने लगा। मेरा बदन फिर सिहरने लगा। फिर वो उठा और मुझसे कहा कि मैं अपनी टांगें फैला कर रखूं और इसे बंद ना करूं। और वो कहीं चला गया।

मैं वैसे ही पड़ी रही और अपनी चूत पर उंगली फैरने लगी। तभी वो वापस आया और उसके हाथ में उस्तरा था। मुझे समझ नहीं आया कि वो क्या करना चाहता है। वो मेरे पास आया और उसने उस्तरा मेरी चूत पर रख दिया। मैं तो डर से घबरा ही गई कि ये क्या कर रहा है।

तभी उसने कहा घबराओ मत, वो सिर्फ बाल निकालेगा। मेरी चूत पर बहुत घने बाल थे। दारा उन बालों को उस्तरे से निकाल रहा था। ये भी मेरे लिये पहली बार था। मैंने अकसर सुना था कि लड़कियां अपने बाल निकालती है पर पैरों के।

मेरे शरीर पर चूत और सिर के अलावा और कहीं खास घने बाल नहीं थें इसलिए मुझे कभी इन सब की जरूरत नहीं पड़ी। कुछ ही पल में उसने मेरी चूत पर से सारे बाल निकाल दिए। मुझे थोड़ा अलग महसूस हो रहा था। उसने मेरी चूत को साफ़ किया। मैंने अपनी चूत को छूआ।

मुझे काफ़ी अजीब महसूस हो रहा था, कुछ काफ़ी छोटे बाल महसूस हो रहे थें। पर मुझे काफ़ी खुला-खुला महसूस हो रहा था। मुझे ये पसंद आया। उसने अचानक मुझसे पूछा कि क्या मैंने कभी सेक्स किया है? मैं ये सुन कर थोड़ी हैरान हुई कि ये किस तरह का सवाल है, पर मैंने हाँ में जवाब दे दिया।

ये सुनकर वो कुछ अजीब तरह से हंसने लगा। मुझे समझ नहीं आया कि वो क्यों मुस्कुरा रहा है। उसने मेरी दोनों जांघों पर हाथ रखा और जोर देने लगा। वो मेरी टांगों को ज्यादा से ज्यादा फैलाने की कोशिश कर रहा था। मुझे इससे काफ़ी दर्द हो रहा था। मैंने उसे ऐसा करने से मना किया पर वो मेरी नहीं सुन रहा था।

मेरी चूत फैलने लगी थी जो दर्द को और बढ़ा रहा था। मैं दर्द से कराह रही थी। फिर उसने मेरी दोनों जांघों पर जोर दे कर फैलाने के साथ-साथ मेरी उठी हुई चूत पर अपना मुंह लगा दिया। मुझे ये अजीब लगा और ये देखकर मैं हैरान रह गई कि उसने मेरी चूत पर अपना मुंह लगा दिया।

मेरे पति ने ऐसा कभी नहीं किया था और ना ही मैंने ऐसा कभी सोचा था। पर उसके ऐसा करने से मेरी खिंच रही चूत की चमड़ी को थोड़ा राहत मिली पर ज्यादा देर तक नहीं। वो मेरी चूत को चाट रहा था जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। अब उसने अपनी उंगली भी मेरी चूत के अंदर डाल दी।

उसकी मोटी और सख्त उंगली के मेरे अंदर जाने से मेरी हालत खराब हो रही थी। मेरे मुंह से सिसकियाँ और आह आह की आवाज़ें आ रही थी। वो एक साथ मेरी चूत को चाट रहा था और अपनी उंगली भी अंदर बाहर कर रहा था। मेरा पूरा शरीर मचल रहा था और मैंने अपने दोनों हाथों से उसका सिर पकड़ रखा था।

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मेरा खुद पर काबू नहीं था। उसने एक के बाद अपनी दूसरी उंगली भी अंदर डाल दी। मुझे ऐसा लग रहा था कि आज से पहले तो मैंने कभी सेक्स किया ही नहीं है। ऐसा मज़ा तो मुझे मेरे पति के चोदने से नहीं आया जितना अभी सिर्फ दारा की उंगलियों से आ रहा है।

धीरे-धीरे उसने अपनी तीसरी उंगली भी मेरी चूत में डाल दी जिससे मेरी जान ही निकल गई। मेरी हालत खस्ता हो गई और मैं और ज्यादा दर्द से कराहने लगी। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि सेक्स में इतना दर्द भी हो सकता है।

मेरे पति के साथ सेक्स में मुझे कभी कुछ खास दर्द नहीं हुआ था जो कि मुझे दारा के साथ हो रहा था, हां पर मुझे दर्द के साथ मज़ा भी आ रहा था जो मेरे पति के मुकाबले कई गुणा ज्यादा था। वो तेज़ी से अपनी उंगलियां मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा। इससे मेरा खुद पर काबू नहीं रहा और मैं दर्द से चींखने लगी।

मेरा बदन अकड़ने लगा और मैं झड़ने कि तरह झड़ गई। मेरे मुंह से जोर की कराहटें निकली और झड़ते ही मैं जोर-जोर से हांफने लगी। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ने जबरदस्ती मेरे अंदर से कुछ निकाल लिया हो। मेरे लिए तो इतना ही हद से ज्यादा हो गया था पर दारा का तो अभी बाकी ही था।

मैंने कुछ सांसे ली फिर दारा उठा और उसने अब अपना पजामा उतारा। मैं ये देखकर हैरान रह गई। उसका शरीर काफ़ी सख्त और ताकतवर दिख रहा था। उसकी बड़ी-बड़ी जांघें और मजबूत शरीर देख कर मैं और ज्यादा उत्तेजित हो रही थी। मेरा मन चाह रहा था कि वो मुझे चोदे और बस चोदता रहे और मेरे नाज़ुक जिस्म को मसल कर रख दे।

मुझे पहली बार ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं किसी मर्द के आगे अपना नंगा शरीर लिये पड़ी हुँ जो सिर्फ उसके लिए है। अपने पती के साथ भी मुझे ऐसा महसूस हुआ था पर ये वाला उससे कई गुना ज्यादा अच्छा था। मैं दारा और अपने पति की तुलना सपने में भी नहीं कर सकती।

दारा मेरे पति के मुकाबले काफ़ी ताकतवर और मजबूत जिस्म का मालिक है और वो काफ़ी लंबा-चौड़ा भी है। और सेक्स के मामले में तो दूर-दूर तक कोई मुकाबला नहीं। दारा का सुडोल शरीर और उस पर बाल उसकी मर्दानगी को और चार चांद लगा रहे थे। मेरे जिस्म की आग उसे देख कर और भड़कने लगी।

मैं उसके शरीर को निहारे ही जा रही थी। मेरा दिमाग जैसे सुन हो गया था। मैं कुछ और सोच ही नहीं पा रही थी। तभी उसने अपने शरीर पर बचा आखिरी कपड़ा अपना अंडरवियर भी निकाल दिया। मैं जैसे अचानक सपने से उठी। मैं चौंक गई और मेरे मुंह से अपने आप हैरानी भरी आवाज़ निकाल आई।

मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। मेरी ये हालत उसका लंड देख लेने की वजह से हुई थी। उसका लंड काफ़ी बड़ा था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि किसी मर्द का लंड इतना बड़ा भी हो सकता है। मैंने तो इससे पहले बस अपने पती का ही देखा था और उनके मुकाबले तो दारा का लंड बहुत ज्यादा बड़ा था।

मेरे मन में एक ही ख्याल आया कि कोई भी औरत इतना बड़ा लंड कैसे ले सकती है? मेरी नज़रे उसपर से हट ही नहीं रही थीं। वो अपना लंड लेकर मेरे मुंह के पास आया। उसका लंड मेरे होठों को छू गया। मैंने तुरंत ही मेरा मुहं फेर लिया। वो चाहता था कि मैं उसे मुहं में लूं।

मैं हैरान हो गई कि ये वो क्या करने बोल रहा है। मैंने ना में सर हिला दिया। उसने भी ज्यादा जबरदस्ती नहीं की। फिर उसने मेरी टांगों को अपनी और खींचा और उन्हें फैला कर मेरी चूत के आगे खड़ा हो गया। मैं अपनी टांगों के बीच उसे देख रही थी।

वो अपने मुंह पर एक मर्दाना मुस्कान ले कर लंड को सहला रहा था। उसका लंड और बड़ा और सख्त होता जा रहा था। मैं वहां पड़े-पड़े उसके सख्त लंड को देख कर ही सिहर रही थी। मैं डर भी रही थी कि ना जाने कैसे मेरी चूत उसे झेल पायेगी पर फिर भी मैं ना तक नहीं कह रही थी। मैं उसे लेना भी चाहती थी।

अब उसका लंड तन चुका था। उसने अपना लंड मेरी चूत पर रखा। उसके लंड के छूते ही मेरा शरीर ज़ोर से सिहर गया। वो धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत पर ऊपर से नीचे तक रगड़ने लगा। मुझे ये बहुत अच्छा लग रहा था। फिर उसने अपनी उंगलियों को अचानक मेरे मुंह में डाल दिया और गले तक ले गया।

अचानक उसके ऐसा करने से मुझे घुटन हुई। तभी उसने मेरी थूक से सनी उंगलियां बाहर निकाली और खुद भी हाथ में थूक कर उसने वो अपने लंड में लगा लिया। उसने मेरी चूत को एक बार चाटा और फिर अपना लंड मेरी चूत पर टिका दिया। उसने जोर देना शुरू किया। उसके जोर देते ही मुझे दर्द होने लगा।

मुझे महसूस हो रहा था कि उसका लंड मेरी चूत को फाड़ रहा है। मुझे दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा था और मैं रोने लगी। मैं तड़पने लगी। मैंने उसे लंड बाहर करने कहा पर उसने मेरी एक बात नहीं सुनी। मैं उसे धक्का दे रही थी पर उसपर कोई असर नहीं था। उसने मेरे दोनों हाथों को दबोच लिया।

उसने मुझे ऐसे पकड़ा कि मैं ज़रा भी हिल नहीं पा रही थी और फिर उसने एक जोरदार धक्का मारा और उसका लंड मेरी चूत फाड़कर अंदर चला गया। मेरी दर्द से जोरदार चींख निकल गई। मेरी आंखों में आंसू भर गए। वो कुछ पल रुका और मुझे सांस लेने का वक्त मिला।

अभी उसका सिर्फ लंड का सिर ही मेरे अंदर गया था और मेरी हालत इतने में ही खराब थी। धीरे-धीरे उसने अपना लगभग आधा लंड मेरी चूत मे डाल दिया। वो मेरे अंदर वहाँ तक पहुंच गया था जहाँ तक मेरे पति कभी नहीं पहुंच पाये थे और ना ही मैंने कभी सोचा था, और अभी तो उसका और अंदर जाना बाकी था।

वो अपना लंड अंदर बाहर कर रहा था और अब मुझे दर्द के साथ मज़ा भी आने लगा। मेरे मुंह से कराहटें निकल रही थी। मुझे अच्छा लग रहा था। मैं अपना होश खो रही थी। मुझे उसका सख्त लंड अपनी चूत में रगड़ खाता महसूस हो रहा था। वो धीरे-धीरे अपना लंड और अंदर धकेल रहा था।

उसने मेरे जिस्म पर काबू कर रखा था और मैं भी खुद को उसकी बाहों में खो चुकी थी। वो मुझे चोदते हुए मुझे चूमे जा रहा था। अचानक उसने फिर से एक जोरदार धक्का दिया और मैं फिर चींख पड़ी। मुझे महसूस हुआ जैसे उसका लंड मेरे पेट में घुस गया है पर ऐसा नहीं था। उसका लंड लगभग पूरा मेरी चूत के अंदर चला गया था।

मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरी चूत इतनी गहरी है। मेरी आंखों में आंसू थें पर मैं अब तक दर्द को भूल चुकी थी और बस चुदने का मज़ा ले रही थी। वो मुझे पूरे जोश में चोद रहा था। उसने अपना लंड बाहर निकाला और एक झटके में मेरी चूत के अंदर तक डाल दिया। इस अचानक वार से मैं चींख पड़ी। ऐसा उसने तीन-चार बार किया।

अब तक मेरी चूत को उसके लंड की आदत हो गई। उसने मुझे पकड़ा और तेजी से मुझे चोदने लगा। मुझे उसके लंड का मेरी चूत की मांसपेशियों में रगड़ महसूस हो रही थी। साथ ही ऐसा लग रहा था कि वो अपने लंड से मेरी चूत के मांस को बाहर खिंच कर फिर अंदर भर रहा है।

मेरी आवाज़ से पूरा कमरा गूंज रहा था। शायद बाहर भी आने-जाने वालों को मेरी आवाज़ सुनाई दे रही होंगी पर मुझे उसकी चिंता नहीं थी। मैं बस खुल कर उस पल का मज़ा लेना चाहती थी। वो काफ़ी देर तक मुझे ऐसे ही चोदता रहा। और मैं झड़ गई।

फिर वो उठा और उसने अपना लंड धीरे से बाहर निकाला। उसका लंड खून से लथपथ था और मेरी टांगों के बीच का नज़ारा ऐसा था जैसे मेरी चूत ने खून की उल्टी की हो। मैं ये देख कर घबरा गई। मुझे लगा इतना बड़ा लंड लेके मैंने खुद को चोट पहुंचा ली है। पर दारा ने मुझे शांत किया और समझाया कि ऐसा ही होता है।

मेरे पति के साथ ऐसा नहीं हुआ था। ये सब समझने में मुझे समय लगा पर धीरे-धीरे सब समझ आ गया। मैं बुरी तरह से थक चुकी थी। मुझे लगा अब हो चुका है पर ऐसा नहीं था। उसने मुझे उठा कर उल्टा किया और मुझे मेरे घुटनों पर बिठा दिया और आगे करके किसी घोड़े कि तरह बना दिया।

फिर उसने पीछे से अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया। ये एक अलग ही एहसास था। उसने मुझे पीछे से चोदना शुरू कर दिया। उसका लंड पूरी ताकत से मेरी चूत को चीर रहा था। वो पूरे जोश में था। उसने मेरे बालों को पकड़ कर खींचा और मुझे जोरदार चोदने लगा।

जैसे उसका लंड मेरी चूत को अंदर तक चोद रहा था, साथ ही उसकी सख्त जांघें मेरी गांड से टकरा रहीं थीं। मेरी कराहटों के साथ थप-थप की आवाज़ भी गूंजने लगी। वो मेरे शरीर से किसी खिलौने की तरह खेल रहा था। वो थकने का नाम ही नहीं ले रहा था।

उसने एक हाथ से मेरे दोनों हाथों को मेरी पीठ पीछे पकड़ लिया और दूसरे से मेरे गले को दबोच कर चोदने लगा। मेरा शरीर थक चुका था और मैं ज्यादा देर तक वैसे नहीं रह पाई और मैं चुदते हुए बिस्तर पर गिरने लगी। पर वो मुझे चोदे ही जा रहा था।

मैं बिस्तर पर पड़ी थी और पीछे से मेरे ऊपर ही चोदते हुए आ चुका था। मेरा कोमल शरीर बिस्तर और उसके बड़े से लंड के बीच में तकलीफ़ भरे मज़े मे था। मैं थक के चूर-चूर हो चुकी थी पर मैं उससे बस चुदते रहना चाहती थी। वो थप-थप कर के एक बार में अपना लंड पूरा बाहर और अंदर करने लगा।

उसके धक्कों से मेरी गांड बिस्तर में उछल रही थी और बेड के कराहने की आवाज़ें आ रही थीं। ऐसे ही काफ़ी देर तक वो मुझे चोदता रहा और मेरे अंदर ही वो झर गया। उससे चुदते हुए ना जाने मैं कितनी बार झर गई। मेरी चूत पूरी खुल चुकी थी।

ऐसा लग रहा था जैसे पूरी जिंदगी का पानी एक बार में निकल गया और जैसे सात जन्मों की चुदाई एक बार में हो गई हो। चुदने के बाद मैं हिल भी नहीं पा रही थी और मैं हैरान थी कि वो अभी भी अपने पैरों पर खड़ा हो सकता था जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

उस लम्बी चुदाई के बाद मैं उसकी बाहों में पड़ी थी। हम एक दूसरे को चूम रहे थे। मैं बूरी तरह थकी हुई थी पर घर तो जाना ही था। तो मैं उठी। मुझसे खड़ा तक नहीं हुआ जा रहा था। पर किसी तरह मैंने खुद को साफ़ किया और तैयार हुई। दारा ने मेरी मदद की।

मैंने किसी तरह अपना स्तन उस फटे ब्लाउज में छिपाया और खुद को पल्लु से ढक लिया। उसने मेरी पैंटी अपने पास ही रख ली। मैं बाहर निकली तो देखा अंधेरा हो चुका है। मेरे तो होश उड़ गये। मुझे लगा था कि मैं कुछ घंटे ही यहाँ थी पर ये तो पूरा दिन निकल चुका था।

मैं सुबह से घर से निकली हुं और अब लगभग रात हो गई। मुझे जल्दी घर पहुंचना था इससे पहले कि मेरे पति आ जाते। दारा ने मुझे छोड़ने के लिए बाईक शुरू की और वो खराब नहीं हुई थी। मैं समझ गई थी। उसने मुझे बस्ती के बाहर तक छोड़ दिया।

वो मुझे घर तक छोड़ना चाहता था पर मैं नहीं चाहती थी कोई हमें देखे इसलिए मैंने मना कर दिया। पर मेरा चलना भी मुश्किल था इसलिए उसने कहीं से रिक्शा मंगा दी जो मुझे घर तक छोड़ गया। मेरी हालत खराब थी इसलिए मेरे से घर का कोई काम नहीं हुआ। मेरे पति के आने पर मैंने उन्हें बोल दिया कि मेरी तबियत खराब है। देर रात तक मुझे नींद नहीं आ रही थी।

मैं बस दिन में जो हुआ उसके बारे में ही सोचे जा रही थी। मेरी यादों में बस दारा ही आ रहा था। उसका वो मजबूत बदन और वो बड़ा सा लंड जिसने मेरी चूत को खोल के रख दिया और पूरा बदन नींबू की तरह निचोड़ दिया। मुझे अपनी टांगों के बीच में कमी सी महसूस हो रही थी। मुझे अब समझ आ गया था कि उसने क्यों पूछा था कि क्या मैंने कभी सेक्स किया है, और मैंने तब हां कहा था।

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पर सच ये था कि नहीं मैंने नहीं किया और अगर मैं दारा से ना मिलती तो शायद सेक्स का असली मज़ा ना ले पाती और ना समझ पाती। उस दिन बाद मैं दारा की होके रह गई। उसने मुझे पूरी तरह बदल कर रख दिया। धीरे-धीरे मुझे उसके लंड की आदत पर गई और मेरी चूत उसके लंड को अंदर तक लेने लगी। फिर उसने मुझे दिखाया कि वो क्या चीज़ है। वो मुझे कई अलग-अगल तरीकों से चोदता और हर बार मेरी हालत बुरी कर देता। उसने मुझे लंड चूसने की आदत भी लगा दी। एक दिन उसने सिर्फ़ मेरे मुंह को ही चोदा था।

मेरी चूत, मुंह, गांड और पूरे शरीर को उसकी आदत पड़ गई। उससे मिलने के बाद लोग भी मुझे कहने लगे थे कि मेरी खूबसूरती बढ़ती जा रही है, क्योंकि दारा से मिलने के बाद मेरे शरीर का उभार और बढ़ गया था और मेरे होठं भी थोड़े मोटे हो गये थें। उससे मिलने बाद तो दारा मेरे लिए मेरे पति से बढ़ के हो गया। मेरे पति से ज्यादा में उसकी हो गई। आज तक हमारा रिश्ता हमारे बीच ही है। आज उसकी वजह से ही मेरे चार प्यारे-प्यारे बच्चे हैं। दूआ करती हूं कि आगे भी सब ठीक रहे। बस यही थी मेरी दास्तान।

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