Tuition Didi Chudai
कुंवारी लड़की अन्तर्वासना कहानी बात उन दिनों की है जब मेरी उम्र 18 साल की थी। मैं बचपन से ही गोरा और तंदुरुस्त शरीर का मालिक था, और 18 साल की उम्र में भी मुझमें काफी बचपना था। मेरे मोहल्ले में एक प्रियंका दीदी रहती थीं, जो बीएससी में पढ़ रही थीं और उनकी उम्र करीब 20-21 साल की थी। Tuition Didi Chudai
वह मोहल्ले के बच्चों को पढ़ाती थीं। वह बहुत ही आकर्षक थीं, लेकिन बेहद सख्त। जवान लड़के उनके घर के आसपास चक्कर लगाते रहते थे। शायद उनका किसी से चक्कर भी था। बच्चों से वह बहुत सख्ती से पेश आती थीं। जैसे, अगर हमारी बॉल उनके यहाँ चली जाती, तो वह कभी वापस नहीं मिलती थी।
उनका रूप-रंग एकदम गोरा-गुलाबी, 5 फीट 3 इंच की हाइट, भरे हुए स्तन, सुडौल नितंब और पतली कमर थी। उन दिनों मुझे सेक्स के बारे में काफी जानकारी थी। यह जानकारी इन्टरनेट और दोस्तों की बातों से मिली थी। हम बच्चे उनसे बहुत डरते थे, क्योंकि वह गुस्से में हाथ भी उठा देती थीं।
लेकिन हमारे घर में उनकी अच्छी इज्जत थी, क्योंकि मेरी मम्मी एक लेक्चरर थीं और उन्होंने प्रियंका दीदी को पढ़ाया भी था। इसलिए उनका हमारे घर आना-जाना लगा रहता था। मैं पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन लापरवाह था, इसलिए मेरे नंबर तो अच्छे आते थे, पर मैं क्लास में टॉप नहीं कर पाता था।
इस बात की चिंता मेरे घरवालों को बहुत थी। मम्मी स्कूल जाती थीं और पापा ऑफिस, और मम्मी दोपहर बाद तक आती थीं, जबकि पापा रात तक। इसलिए मैं स्कूल से आने के बाद खेल-कूद और मस्ती में लग जाता था। मम्मी ने एक दिन प्रियंका दीदी को बुलाकर मुझे उनके हवाले कर दिया और कहा कि स्कूल से आने के दो घंटे बाद तक तुम उनके यहाँ रहना। मेरा खाना घर पर रखा होगा, और मुझे उसे खाकर उनके यहाँ जाना होगा।
दीदी ने मम्मी से सख्त लहजे में कहा, “आंटी, इसकी आवारागर्दी और मस्ती तो मैं निकाल दूँगी।”
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मैं घबरा गया कि वह मुझे डरा कर रखेंगी और मेरी मस्ती बंद हो जाएगी। अगले दिन से मैं उनके यहाँ जाने लगा। वह घर में या तो सलवार-सूट बिना चुन्नी के या गाउन में घूमती थीं। घर में उनकी मम्मी होती थीं, जो ज्यादातर घर के कामों में व्यस्त रहती थीं।
उनका एक भाई था, जो मुझसे बड़ा लेकिन उनसे छोटा था, बिल्कुल निकम्मा, और ज्यादातर घर से बाहर रहता था। उनके पापा सुबह ऑफिस चले जाते थे और शाम को ही लौटते थे। मैं दोपहर के करीब दो बजे से चार बजे तक उनके घर रहने लगा। मेरी मम्मी भी लगभग चार बजे तक आती थीं।
पहले 15-20 दिन तो सब कुछ मेरे सोचने के मुताबिक ही होता रहा। वह मेरे आते ही मुझसे किताब-कॉपी निकलवाकर मेरा होमवर्क करवातीं या मेरा पाठ सुनतीं और काफी रौब से मुझसे बात करती थीं। वह एकदम कैजुअल होकर बैठती थीं, जिससे उनका गला कभी-कभी खुला दिख जाता और ब्रा में कसे हुए उनके स्तन दिख जाते, जो एकदम गोरे और मक्खन की बॉल की तरह थे।
लेकिन निप्पल कभी नहीं दिखे, और न ही मैंने कभी जानबूझकर झाँकने की कोशिश की, क्योंकि अगर वह मुझे पकड़ लेतीं तो बहुत मारतीं और घर पर भी बता देतीं। लेकिन उनके स्तन बड़े सॉलिड थे। घर जाकर भी मैं उनके बारे में ही सोचता रहता था।
एक दिन मैंने देखा कि उन्होंने जो सलवार पहनी थी, उसकी जाँघों के बीच की सिलाई निकली हुई थी, जिससे उनकी पैंटी दिख रही थी और उसकी साइड से झाँट के बाल भी। उनकी जाँघें भी काफी गोरी थीं। गर्मी के दिन थे, और हम दोनों ज़मीन पर बैठते थे।
मैंने पालथी मार रखी थी, और किताब मेरी गोद में थी। उनका एक पाँव सीधा फैला हुआ था और एक मुड़ा हुआ खड़ा था। वह सोफे से पीठ टिकाकर बैठी थीं। उनका कुर्ता खिसककर पेट और जाँघों के बीच आ गया था, और सलवार का चूत वाला हिस्सा मेरी आँखों के ठीक सामने था।
मैं तो देखता ही रह गया। वह अपने किसी काम में व्यस्त थीं, और मैं नीचे सिर झुकाए किताब देखने की कोशिश कर रहा था। उनकी पैंटी उनकी चूत के फोल्ड के बीच आ गई थी, जिससे चूत का मुँह और दाना दिखने लगा था। चूत उभरी हुई थी, एक छोटी पाव रोटी की तरह।
थोड़ी देर में उन्होंने पोजीशन बदली, तो उनकी चूत के दर्शन मेरी आँखों से ओझल हो गए। अब मैं रोज उनके यहाँ जाने के लिए बेचैन होने लगा। वह भी अब मुझसे ज्यादा सख्ती से पेश नहीं आती थीं। गर्मियों की छुट्टियाँ पड़ गई थीं, और मम्मी घर पर ही थीं, लेकिन फिर भी उनके यहाँ जाने का शेड्यूल बना हुआ था।
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उनके भाई की भी छुट्टियाँ पड़ गई थीं, और वह अपनी मम्मी को लेकर अपने मामा के यहाँ चला गया। एक दिन मैं किसी काम से बाजार गया था, और उनके यहाँ जाने में देर हो गई। दोपहर का समय था, धूप तेज थी। वह बाहर अपनी बालकनी में खड़ी होकर मेरा इंतज़ार कर रही थीं। मैं करीब तीन बजे आया और अपने घर सामान रखने के लिए जाने लगा।
उन्होंने वहीं से कहा, “कहाँ रह गया आज?”
मैंने कहा, “दीदी, बस अभी आता हूँ।”
मैंने फटाफट पानी पिया और किताबें उठाकर उनके यहाँ भागा। उन्होंने फटाफट दरवाज़ा खोला। घर पर उनके अलावा कोई नहीं था। मेरा चेहरा धूप और गर्मी की वजह से लाल हो रहा था, और पसीने भी आ रहे थे। उन्होंने मेरा कान पकड़कर कहा, “कहाँ दोपहर में घूमता फिर रहा है? चल, बैठ।”
मैं ज़मीन पर बैठ गया। गर्मियों में ठंडे फर्श पर बैठना बहुत अच्छा लगता है, और मुझे सुकून मिला। उस दिन उन्होंने सफेद बैकग्राउंड पर पीले फूलों वाला एक कॉटन सूट पहन रखा था, जिसका गला थोड़ा बड़ा था। चुन्नी तो वह घर पर लेती ही नहीं थीं, इसलिए गले से नीचे का हिस्सा साफ चमक रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने निक्कर और टी-शर्ट पहन रखी थी। क्योंकि मैं तंदुरुस्त था, मेरी जाँघें भी एकदम पुष्ट थीं, जिनपर अभी तक बाल नहीं आए थे। लेकिन झाँट के बाल थोड़े लंबे ज़रूर हो गए थे। मेरा चेहरा गोल और भरा हुआ था, जिसपर दाढ़ी-मूँछ के हल्के-हल्के रोएँ आने शुरू हुए थे।
उस दिन वह मेरे बगल में एक तकिया लगाकर लेट गईं। उनका सिर मेरे पैरों के पास था, और मैंने पालथी मार रखी थी। उन्होंने मेरी तरफ करवट ले ली, और उनकी आँखें अधखुली सी थीं, जैसे नींद आने वाली हो। उनके स्तन मुझे गले के ऊपर से आधे दिख रहे थे।
उस दिन उन्होंने ब्रा नहीं पहनी थी, इसलिए निप्पल कुर्ते में एक पॉइंट बना रहे थे। मैं अपनी किताब पढ़ने लगा। मुझे एक इंग्लिश का शब्द समझ नहीं आया, तो मैंने उनसे पूछा। उन्होंने लेटे-लेटे ही मेरे पैरों पर रखी किताब को तिरछा करके देखा।
इस प्रक्रिया में दो काम हुए: एक तो उनके स्तन और ज़्यादा दिखाई पड़ गए, और उनका हाथ मेरी जाँघ पर लगा, जिससे मुझे गुदगुदी का एहसास हुआ। लेकिन इसके बाद एक अजीब बात हुई। उन्होंने बताने के बाद अपना हाथ मेरी जाँघ से नहीं हटाया और लगभग औंधे मुँह होकर पड़ गईं।
मुझे अजीब सा लगा, लेकिन डर के मारे कुछ नहीं बोला। मैं अपनी किताब पर ध्यान देने की कोशिश करने लगा। अब एक और हरकत हुई। उन्होंने औंधे पड़े-पड़े ही एक अंगड़ाई सी ली और अपने नितंब सिकोड़े और शरीर को थोड़ा अकड़ा सा लिया। उनके नितंब सलवार से ढके थे, लेकिन कुर्ता ऊपर से हट गया था।
इस प्रक्रिया में उन्होंने अपनी उंगलियाँ मेरे निक्कर के अंदर डालने की कोशिश की। मेरा निक्कर थोड़ा ढीला था, इसलिए उन्हें थोड़ी सफलता मिल गई। अब उनकी उंगलियाँ मेरे लंड से एक इंच की दूरी पर थीं। मेरा भी मन बहकने लगा। जो हाथ उनका मुझपर था, मैंने हिम्मत करके उसकी बाहों पर अपना हाथ टिका दिया और किताब पकड़े रखी।
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अब स्थिति यह थी कि वह मुझे निक्कर के अंदर से टटोलने की कोशिश कर रही थीं, और मैं उनकी बाहों और कंधे के पास उनके स्तनों को छूने की हिम्मत कर रहा था। उनके इतना करीब मैं पहले कभी नहीं गया था। उनकी बगल से उनकी आस्तीन छोटी थी, और हाथ स्ट्रेच करने की वजह से थोड़ी और ऊपर हो गई थी, जिससे उनकी बगल के बाल गोरी-गोरी बाहों के साथ दिखकर उन्हें और सेक्सी बना रहे थे।
उनकी उंगलियाँ बार-बार मुझे अंदर से टटोल रही थीं और मेरे लंड को छूने के लिए स्ट्रगल कर रही थीं। मैंने नीचे एक वीआईपी फ्रेंची की चड्डी भी पहनी थी। मेरा लंड अब तक तनाव में आ गया था। अब वह मेरी चड्डी की एज पर आ गईं और मेरी जाँघों में सनसनाहट शुरू कर दी।
मैंने भी अब धीरे से उनका स्तन, जो उसी हाथ के पास था, उनके कुर्ते के ऊपर से छू लिया। एकदम नरम चीज़ का एहसास हुआ। उन्होंने गहरी साँस भरी और एकदम अपने हाथ को मेरी चड्डी के ऊपर रख दिया, जिसमें मेरा लंड कैद था। लंड उनके हाथ पड़ते ही और सख्त हो गया।
मेरी आँखों में लाल डोरे उतर आए, और बदन से गर्मी निकलने लगी। उनकी साँसें भी तेज़ हो गई थीं। उनका चेहरा साफ नहीं दिख रहा था, क्योंकि वह औंधी सी पड़ी थीं, लेकिन उनकी एक आँख जो दिख रही थी, वह बंद थी। उनके चेहरे पर उनके बाल भी पड़े हुए थे, जो कंधों और स्तनों पर भी पड़े थे।
मैंने हिम्मत करके उनके बालों को कंधे और स्तनों से हटाना शुरू किया, ताकि मैं उनका चेहरा और स्तनों के दर्शन कर सकूँ। वह अब भी आँखें बंद किए पड़ी थीं। उनके चेहरे पर पसीने की बूँदें उभर आई थीं। चेहरा धीरे-धीरे सुर्ख हो रहा था। अब मैंने और हिम्मत की और उनकी कोहनी से ऊपर सहलाने लगा।
उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। अब मैंने किताब बंद करके एक साइड में रख दी और जो हो रहा था, उस पर ध्यान देने लगा। उन्होंने अब मेरा लंड, जो उस वक्त करीब पाँच इंच का होगा, उसे चड्डी के ऊपर से सहलवाना शुरू किया। मैंने भी बाँह से होते हुए उनके चेहरे तक हाथ ले गया, जो अब तप रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने पहले एक-दो बार सिर्फ़ चेहरा छुआ। जब कोई विरोध नहीं हुआ, तो मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने प्यार से उनके चेहरे और होठों पर हाथ फेरा। अब मैं गले की तरफ़ बढ़ा, लेकिन बीच में उनकी बाँह, जो मेरे लंड को पकड़े थी, आ रही थी, इसलिए सिर्फ़ गले को ही छू सका, जो पसीजा हुआ था।
फिर मैंने चेहरे से हाथ हटाकर सीधा उनके स्तनों पर रखा, जो बिना ब्रा के एकदम वास्तविक अहसास दे रहे थे। उन्हें कुर्ते के बाहर से महसूस करने के बाद मैंने गले में हाथ डाल दिया और दोनों बॉल्स को महसूस करने लगा। उनकी साँसें अब और तेज़ हो गई थीं, और लंड पर तेज़ी से एक्शन चल रहा था।
मुझे हाथ गले में घुसाए रखने में थोड़ी तकलीफ़ हो रही थी, क्योंकि एंगल ठीक नहीं बैठ पा रहा था। वह मेरी परेशानी समझ गईं और थोड़ा सीधी होकर लेटीं और आँखें थोड़ी सी खोलकर मेरी तरफ़ देखा। मेरी तो जान सी निकल गई। उनका हाथ अब भी मेरे लंड को चड्डी के ऊपर से पकड़े था।
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उन्होंने धीरे से मुझसे कहा, “आराम से लेट जा,” और करवट लेकर आँखें फिर से बंद कर लीं। मैं इशारा समझ गया। मैं भी उनकी बगल में उनकी ओर करवट करके लेट गया। उनका हाथ अब बाहर निकल आया था। मेरे लेटते ही उन्होंने मेरे सिर को अपने सीने से लगा लिया, और मैं उनके सीने से चिपककर अपना मुँह खोल दिया और उनके स्तनों को मुँह से छेड़ने लगा।
मैंने अपना एक हाथ उनके नितंबों पर रख दिया। उस हाथ को भी मैं धीरे-धीरे नितंबों की दरार में ले गया। उन्होंने पैंटी भी नहीं पहनी थी, जिससे मुझे उनके नितंबों का भी पूरा अहसास हुआ। अब उनका हाथ मेरे निक्कर के बटन को खोलने में लगा था, जिसे मैंने अपने ही हाथ से खोल दिया।
फिर उन्होंने मेरी ज़िप खोलकर निक्कर को एकदम ढीला कर दिया, और मैंने भी थोड़ा अपने कुल्हे उठाकर उन्हें निक्कर नीचे करने में मदद की। अब उनका हाथ सीधा मेरी चड्डी के अंदर चला गया और मेरे लंड से खेलने लगा। मेरा लंड भी फुफकारें मारने लगा।
मैंने अब नितंबों से हाथ हटाकर उनके कुर्ते के अंदर डाल दिए और कमर व पेट से होते हुए सीधे उनके स्तनों तक पहुँच गया। मैंने निप्पल को ज़ोर से दबा दिया, जिससे उनकी थोड़ी सी चीख निकल गई। उन्होंने धीरे से आँख खोली, लेकिन मैं डरा नहीं। उन्होंने बड़े ही मादक अंदाज़ में कहा, “आराम से कर।”
मैंने कुर्ता खींचकर उनके गले तक कर दिया। दोनों स्तन एकदम नंगे और कबूतर की तरह खड़े थे। एकदम गोरे-गोरे और क्रिकेट की बॉल जितने बड़े। दोनों निप्पल, जो सामान्य रूप से नरम और दबे हुए होते थे, एकदम सख्त और पूरी तरह खिल गए थे। मैं उन्हें देखते ही पागल हो गया और चूसने व काटने लगा।
वह भी एकदम मस्त हो गईं और मुझे और चिपका लिया। उनका कुर्ता, जो अभी तक गले में था, अब भी बीच में आ रहा था। मैंने धीरे से उन्हें इशारा किया कि इसे उतारो, तो उन्होंने बैठकर उसे उतार दिया। बैठने पर मुझे उनकी पूरी गोरी चिकनी कमर और हिलते हुए स्तन दिखाई पड़े, जो इस हरकत में एकदम स्वाभाविक रूप से हिल रहे थे।
अब वह फिर मेरी बगल में लेट गईं और पहली बार मुझे प्यार से चूमा। मैंने भी उनके सिर के पीछे से हाथ डालकर उनके बालों में उंगलियाँ घुसाते हुए एक जवान मर्द की तरह उनके होठों को चूमा। इसके बाद उनके स्तनों को पकड़कर मैं उन्हें स्मूच करता रहा।
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वह भी मेरा पूरा साथ दे रही थीं और उन्होंने अब मेरा लंड चड्डी से निकाल दिया और चड्डी नीचे सरका दी। मैं अब जोश में आ गया था, इसलिए मैंने फँसे हुए निक्कर और चड्डी दोनों को एक झटके से उतारकर फेंक दिया। अब वह टॉपलेस थीं और मैं बॉटमलेस। अब मेरा हाथ उनकी सलवार पर चला और पेट पर रेंगते हुए उनकी सलवार के नाड़े वाले बॉर्डर से होते हुए उनकी चूत पर पहुँच गया।
चूत पर बहुत बाल थे, वहाँ सारा हिस्सा पसीने और उनके रसों से गीला था। चूत के क्रैक को छूते ही उनमें करंट सा लगा, और उन्होंने मेरे कंधे में दाँत गड़ा दिए। मैंने झट से उनके मुँह पर मुँह रखकर जीभ अंदर डाल दी। वह पूरी गर्म हो चुकी थीं और मैं भी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अब मैं सलवार के नाड़े से स्ट्रगल कर रहा था, जिसे उन्होंने खुद खोल दिया और नितंब उठाकर मुझे सलवार निकालने में मदद की। अब वह मादरजात नंगी मेरे सामने पड़ी थीं। जिस लड़की का हम बच्चों पर इतना खौफ था, वह मेरे सामने नंगी पड़ी थी। मेरे दिल में उसे एक साथ पूरी नंगी देखने की हसरत उठी, तो मैं अपनी टी-शर्ट उतारने के लिए उठा और उसके दोनों तरफ़ पैर करके खड़ा हो गया।
मेरा लंड नब्बे डिग्री पर खड़ा होकर उसे सलामी दे रहा था। वह यह देखकर शरमा सी गईं और आँखों पर हाथ रख लिया। लेकिन बाकी तो वह पूरी नंगी पड़ी थीं। पूरा शरीर एकदम गोरा-चिट्टा, स्तनों पर गुलाबी निप्पल और झाँट के काले बाल एक परफेक्ट कॉन्ट्रास्टिंग कॉम्बिनेशन दे रहे थे।
एक-दो मिनट उसे ऐसे ही देखने के बाद मैं घुटनों के बल नीचे बैठ गया, दोनों घुटने उसके साइडों में थे। अब मैंने कमांडिंग पोजीशन संभाली और उसका हाथ उसके चेहरे से हटाया। वह किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह मुँह को दूसरी तरफ़ करने लगी। मैंने उसके मुँह पर चुंबन किए।
उसने अब मेरे लंड को पकड़ लिया और उसपर हाथ आगे-पीछे करने लगी। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। मैंने भी उसकी चूत में तेज़ी से उंगली करनी शुरू कर दी, जिससे वह काफी उत्तेजित हो गई और शरीर तोड़ने लगी। वह मेरे लंड को अपनी चूत से लगाना चाह रही थी, मैंने भी कोई विरोध नहीं किया।
वह भी पहली बार थी और मैं भी। मैंने कई बार कोशिश की, लेकिन लंड अंदर न जाकर इधर-उधर फिसल जाता था। उसे एक बार हँसी भी आ गई। फिर उसने कहा, “ऐसे ही कर लो,” और मैं उससे चिपककर लंड को उसके ऊपर से ही धक्के मारने लगा और साथ में चूत में भी उंगली करता रहा।
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वह बहुत उत्तेजित हो गई और “आह” की आवाज़ के साथ उसने मुझे जकड़ लिया और मेरे हाथ को चूत पर पकड़कर अपनी दोनों जाँघों में कस लिया। मैंने भी कसकर उसकी चूत को पूरे हाथ की मुट्ठी में भर लिया और उसकी गर्मी और रसों को महसूस करने लगा। मैं उसके चेहरे को देखता रहा, उसकी उत्तेजना की वजह से उसकी आँख बंद थी। जब खुली, तो वह शरमा गई और मुझे अपने ऊपर खींच लिया। मैंने अब फिर से चूत के ऊपर से धक्के लगाने शुरू कर दिए और स्तनों को कसकर पकड़ लिया।
दो-तीन मिनट बाद ही मैं उसके पेट पर ही फारिग हो गया। फिर हम दोनों कुछ देर तो ऐसे ही पड़े रहे। फिर उसने पास ही पड़ा एक तौलिया उठाया और मुझे और खुद को साफ किया। प्यार से मुझे देखते हुए उसने मुझे चूमा। अब मैं उससे ज़रा भी खौफज़दा नहीं था, और वह मुझे अब अपनी आज्ञाकारी पत्नी की तरह लग रही थी। फिर हम दोनों ने कपड़े पहने और आँखों ही आँखों में यह वादा किया कि इस बात को किसी को नहीं बताएँगे। फिर चूमा और मैं अपने घर आ गया।
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