Teen Girl Sex Story
मेरा नाम करण है, मैं 42 साल का तंदरुस्त, 5’11” रंग गेहुंआ, फिट बॉडी का आदमी हूँ। मेरी पत्नी रेखा 39 साल की, स्वस्थ, 5’5″ रंग गोरा और फिगर 36-26-38 है। चंडीगढ़ में मेरा अपना एक छोटा सा सॉफ़्टवेयर एंड हार्डवेयर पार्ट्स सप्लाई का बिज़नेस है जिससे मुझे सब ख़र्चे और टैक्स इत्यादि निकाल के करीब दस से बारह लाख रुपये सलाना की कमाई हो जाती है। एक अपना ऑफिस है, गोदाम है, वर्कशॉप है, 9-10 लोगों का स्टाफ़ है, अपना घर है, कार है। Teen Girl Sex Story
हमारे दो बच्चे हैं, एक बेटी 15 साल की और एक बेटा 12 साल का। हमारी 16 साल की शादीशुदा जिंदगी में हमारी सैक्स लाइफ बहुत ही बढ़िया है। बिस्तर में रेखा और मैं नए नए तज़ुर्बे करते ही रहते हैं, कभी-कभी कोई तज़ुर्बा बैक-फ़ायर भी कर जाता है पर ओवरआल सब मस्त है।
यह घटना आज से 3 साल पहले की है, जब मेरी माँ जो मेरे साथ ही रहती थी, की अचानक मृत्यु हो गई। पिता जी आठ साल पहले ही चल बसे थे लिहाज़ा रेखा, मेरी पत्नी अचानक से घर में बिल्कुल अकेली हो गई। मैं तो सुबह का निकला शाम को घर आता था.
पीछे दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और रेखा सारा दिन घर में अकेली रहती थी, अगर बाजार भी जाना हो तो घर ताला लगा के जाओ। उन दिनों शहर में चोरियां बहुत होती थी और घर के मेन गेट पर लगा ताला तो जैसे चोरों को खुद आवाज़ मार कर बुलाता है।
एक दिन रेखा किसी काम से बाजार गई पर रास्ते में कुछ भूला याद आने पर आधे रास्ते से ही घर वापिस लौटी तो देखा कि चोरों ने मेनगेट का ताला तोड़ रखा था पर इससे पहले कि चोर अपनी किसी कारगुजारी को अंजाम देते, रेखा घर लौट आई और चोरों को फ़ौरन वहाँ से भागना पड़ा।
पर इस काण्ड के बाद रेखा बहुत डरी-डरी सी रहने लगी जिस का सीधा असर हमारे घर-परिवार पर और हमारी सेक्स-लाइफ़ पर पड़ने लगा। अपनी सेक्स लाइफ बिगड़ते देख मुझे बहुत कोफ़्त होती… पर क्या करता? अब मुझे इस समस्या का कोई समाधान सोचना था और बहुत जल्दी ही सोचना था पर कुछ सूझ नहीं रहा था और फिर एक दिन जैसे भगवान् ने खुद इस समस्या का समाधान भेज दिया।
मेरी बड़ी साली साहिबा जिनकी शादी मेरे शहर से 25-30 किलोमीटर दूर एक कस्बे में एक खाते पीते आढ़ती परिवार में हुई थी, की बेटी प्रतिभा ने B.Com पास कर ली थी लेकिन समस्या यह थी कि क़स्बे में कोई अच्छा कॉलेज नहीं था जहां मास्टर्स की जा सके और मेरे शहर में कई अच्छे कॉलेजों समेत यूनिवर्सिटी भी थी।
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लिहाज़ा प्रतिभा ने मेरे शहर में एक नामी गिरामी कॉलेज में M.Com में ऐडमिशन ले लिया था लेकिन किस्मत से प्रतिभा को हॉस्टल में जगह नहीं मिल पाई थी सो मेरी साली साहिबा थोड़ी परेशान सी थी कि एक दिन मैं और रेखा उनके घर उनसे मिलने जा पहुंचे।
बातों बातों में इस बात का ज़िक्र भी आया तो मेरी पत्नी ने प्रतिभा को अपने घर रहने के लिए कह दिया। मैंने भी सोचा कि चलो ठीक ही है, कम से कम रेखा एक नार्मल औरत सा जीवन तो जियेगी। मेरी शादी के समय प्रतिभा सात-आठ साल की पतली सी, मरगिल्ली सी लड़की थी जो हर वक़्त या तो रोती रहती थी या रोने को तैयार रहती थी।
बहुत दफा तो वो घर आये मेहमानों के सामने ही नहीं आती थी और हम पर तो साहब ! हर वक़्त अपनी पत्नी का नशा सवार रहता था, मैंने भी प्रतिभा पर पहले कभी ध्यान नहीं दिया था। लब्बोलुआब ये कि यह फाइनल हो गया कि प्रतिभा हमारे घर रह कर ही m.Com करेगी।
फैसला ये हुआ कि मम्मी वाला कमरा प्रतिभा को दे दिया जाए ताकि वो अपनी पढ़ाई बे रोक-टोक कर सके। इस बात से रेखा इतनी खुश हुई कि उस रात बिस्तर में रेखा ने कहर बरपा दिया। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था लिहाज़ा मैं भी खुश था। एक हफ्ते बाद प्रतिभा हमारे घर आ गई।
उस रात डाइनिंग टेबल पर मैंने पहली बार प्रतिभा को गौर से देखा। डेढ़ पसली की मरघिल्ली सी, रोंदू सी लड़की, माशा-अल्लाह ! जवान हो गई थी, करीब 5′-4″ कद, कमान सा कसा हुआ पतला लेकिन स्वस्थ शरीर, रंग गेहुँआ, लंबे बाल, सुतवाँ नाक, पतले गुलाबी लेकिन भरे-भरे होंठ, तीखे नैननक्श और काले कजरारे नयन! फ़िगर अंदाजन 34-26-34 था।
यूं मैं कोई सैक्स-मैनियॉक नहीं पर ईमानदारी से कहूँ तो उस वक़्त मन ही मन मैं प्रतिभा के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा था। खैर जी ! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे tv देखने लगे, प्रतिभा और रेखा दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।
मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ रेखा ही रही थी और प्रतिभा तो बस हाँ-हूँ कर रही थी। खैर, धीरे धीरे प्रतिभा हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को प्रतिभा पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी प्रतिभा की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी प्रतिभा मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!
मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी पत्नी का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा। शुरू शुरू में तो प्रतिभा हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे प्रतिभा का अपने घर जाना कम होने लगा।
अब प्रतिभा दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी। फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद प्रतिभा तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। करीब पांच हफ्ते बाद एक रात, एक रस्मी से अभिसार से असंतुष्ट सा मैं रेखा के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था कि रेखा ने मुझ से कहा- करण… चलो, कल जाकर प्रतिभा को ले आयें।
प्रतिभा के बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं। मैंने हामी भर दी। अगले दिन हम दोनों जाकर प्रतिभा को ले आये। खुश रेखा ने उस रात अभिसार में मेरे छक्के छुड़ा दिए, रेखा ने मेरा लिंग चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया.
और बाद में खुद मेरा लिंग पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लिंग अपनी गुदा पर रख कर मुझे गुदा मैथुन के लिए आमंत्रित किया, रतिक्रिया के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया।
ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब प्रतिभा सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी डेढ़ महीना बाकी था। मैं दोपहर को खाना खाने घर आता था, पहले जब प्रतिभा कॉलेज गई होती थी तो मैं अक्सर दोपहर को ही रेखा को थाम लिया करता था, कभी रसोई में, कभी स्टोर में, कभी लॉबी में और कभी ड्राइंग रूम में भी… एक-आध बार तो बाथरूम में शावर के नीचे भी!
प्रतिभा के आने से दोपहर की इन तमाम खुराफातों में लगाम लग गई थी। कोफ़्त होती थी कभी कभी पर क्या किया जा सकता था? फिर भी दांव लगा कर कभी-कभार मैं रेखा से छोटी-मोटी चुहलबाज़ी तो कर ही लेता था, जैसे पास से गुज़रती रेखा के नितम्बों को सहला देना.
उसके उरोजों पर हल्के से हाथ फेर देना, निप्पल दबा देना, रसोई में सब्ज़ी बनाती रेखा से सट कर खड़े होकर कढ़ाई में सब्ज़ी देखने के बहाने रेखा के कान के पास एक छोटा सा चुम्बन ले लेना या उसकी साड़ी के पल्लू की आड़ में उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर दबा देना।
मेरे ऐसा करने पर रेखा दिखावटी गुस्सा दिखाती जरूर थी लेकिन तिरछी आँखों से मुझे देखते हुये उसके होंठों पर स्वीकृति की एक मौन सी मुस्कान भी होती थी। दिन बढ़िया गुज़र रहे थे लेकिन मैं प्रतिभा में और उसके मेरे प्रति व्यवहार में कुछ कुछ फर्क महसूस कर रहा था।
मैं अक्सर नोट करता कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक़्त या लिविंग रूम में टी.वी देखते वक़्त या कभी कभी कोई किताब पढ़ते-पढ़ते मैं जब जब सिर उठा कर प्रतिभा की ओर देखता तो उसे मेरी ओर ही देखते पाता और जैसे ही मेरी प्रतिभा की नज़र से नज़र मिलती तो वो या तो नज़र नीची कर लेती या कहीं और देखने लगती।
मुझे कुछ समय के लिए उलझन तो होती पर जल्दी ही मेरा ध्यान किसी और बात पर चला जाता और बात आई-गई हो जाती। बरसात का मौसम आ गया था, बहुत निकम्मी किस्म की गर्मी पड़ रही थी, जिस दिन बरसात होती उस दिन तो मौसम ठीक रहता.
अगले दिन जब धूप निकलती तो उमस के मारे जान निकलने लगती, जगह जगह खड़ा पानी बास मारने लगता और मक्खी-मच्छर पैदा करने की ज़िंदा फैक्टरी बन जाता। एयर कंडीशनड कमरों में ही जिंदगी सिमटी पड़ी थी। उसी मौसम में एक दिन प्रतिभा के कमरे के A.C. की गैस लीक हो गई।
बच्चों का बैडरूम छोटा था और उसमें तीसरे बेड की जगह नहीं थी, ड्राइंग रूम और लिविंग रूम तो रात को सोने के किये डिज़ाइन्ड ही नहीं थे तो एक ही चारा बचता था कि जब तक प्रतिभा के कमरे का A.C. रिपेयर हो कर नहीं आता, प्रतिभा का बेड हमारे बैडरूम में हमारे बेड की बगल में ही लगाया जाए।
ऐसा ही हुआ और ऐसा होने से हम पति-पत्नी की रात वाली रासलीला पर टेम्परेरी बैन लग गया था! पर क्या करते… मज़बूरी थी। हमारे बैडरूम में बेड के साथ ही लेफ्ट साइड बाथरूम का दरवाज़ा था और मेरी पत्नी बैड के लेफ्ट साइड सोना पसंद करती थी और मैं राईट साइड सोता था, हमारे बेड के साथ ही राईट साइड प्रतिभा का फोल्डिंग बेड लगाया गया था।
रात आती, खाना-वाना खा कर हम लोग सोने के लिए बैडरूम में आते। रेखा मेरे बायें और प्रतिभा मेरे दायें… ये दोनों बातें करने लगती और मैं बीच में ही सो जाता। दो-एक दिन बाद एक रात को अचानक मेरी आँख खुली तो पाया कि प्रतिभा बाईं करवट सो रही थी यानी उसका मुंह मेरी ओर था और उसका दायां हाथ मेरी छाती पर था।
मैंने सिर उठा कर देखा तो रेखा को घनघोर नींद के हवाले पाया। मैंने धीरे से प्रतिभा का हाथ अपनी छाती से उठाया और उस हाथ उस की बगल पर रख दिया। पर नींद बहुत देर तक नहीं आई, दिल में बहुत उथल-पुथल सी चल रही थी। क्या प्रतिभा ने जानबूझ कर ऐसा किया था? अगर हाँ तो क्यों? क्या प्रतिभा मेरे साथ… सोच कर झुरझुरी सी उठी और अचानक ही मेरे लिंग में तनाव आ गया।
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इसी उहपोह में जाने कब मेरी आँख लग गई। दिन चढ़ा, सब कुछ अपनी जगह पर, हर चीज़ नार्मल सी थी पर मेरे दिल में इक अनजान सी फ़ीलिंग थी, रह रह कर प्रतिभा के हाथ की छुअन मुझे अपनी छाती पर फील हो रही थी और रह रह कर मेरे लिंग में तनाव आ रहा था।
उस दिन मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार बाथरूम में नहाते समय हस्त मैथुन किया। अगली रात आई, फिर वही सोने का अरेन्जमेन्ट, रेखा डबलबेड के बाईं ओर, मैं दाईं ओर और प्रतिभा का फोल्डिंग बेड हमारे डबलबेड के दाईं ओर सटा हुआ और मुझ में और प्रतिभा में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का फासला।
आज मैं अभी किताब ही पढ़ रहा था कि ये दोनों सोने की तैयारी करने लगी। जल्दी सोने का कारण पूछने पर प्रतिभा ने बताया कि आज दोनों बाज़ार गईं थी, थक गई हैं। पन्द्रह बीस मिनट बाद मैंने लाईट बंद की और खुद उल्टा हो कर सोने की कोशिश करने लगा, उल्टा बोले तो पेट के बल!
पन्द्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि प्रतिभा का हाथ आज़ फिर से मेरे ऊपर आ पड़ा लेकिन आज़ चूंकि मैं उल्टा पड़ा था सो इस बार उसका हाथ मेरी पीठ पर पड़ा। तीन चार मिनट बाद प्रतिभा ने अपना हाथ मेरी पीठ से उठा लिया और खुद सीधी होकर, मतलब पीठ के बल लेट कर सोने का उपक्रम करने लगी।
उसका मेरी ओर वाला हाथ मतलब बायां हाथ उसके सिर के पास सिरहाने पर ही पड़ा था। मेरा मुंह प्रतिभा की ओर ही था और मेरा और प्रतिभा का फासला ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का रहा होगा। अचानक मैंने अपने बायें हाथ को प्रतिभा पर रख दिया… मेरा दिल पसलियों में धाड़-धाड़ बज़ रहा था। कोई हरकत नहीं.. ना मेरी ओर से… ना प्रतिभा की ओर से…
अचानक प्रतिभा ने सिर उठाया और मेरी ओर ध्यान से देखने लगी, मींची आँखों में मैं सोने की एक्टिंग करने लगा। एक डेढ़ मिनट मुझे ध्यान से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में सो रहा था तो उसने अपने हाथ पर जो मेरा हाथ थामे था, चादर डाल थी और चादर के नीचे मेरे हाथ की उँगलियों को एकके बाद एक करके चूमने लगी।
उम्म्ह… अहह… हय… याह… उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, तनाव के कारण मेरा लिंग जैसे फटने की कगार पर था। मैं प्रतिभा के हाथ का स्पंदन महसूस कर सकता था पर मैंने अपनी ओर से कोई हरकत नहीं की। करीब आधे घंटे बाद प्रतिभा ने ऐसा करना बंद किया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैंने सर उठा कर देखा तो लगा कि प्रतिभा सो गई थी शायद! मेरा हाथ अब भी उसके हाथ में जकड़ा हुआ था। ऐसे ही जाने कब मैं सचमुच नींद के आगोश में चला गया। सुबह उठा तो पाया कि रेखा और प्रतिभा उठ कर कब की जा चुकी थी, तभी रेखा अख़बार ले कर आ गई।
दिल में अनाम सी ख़ुशी लिए मैंने जिंदगी का एक नया दिन शुरू किया। तभी प्रतिभा भी बैडरूम में चाय की ट्रे लेकर आई, नहाई-धोई, सफ़ेद पजामी सूट में ताज़ा ताज़ा शैम्पू किये बालों से मनभावन सी खुशबू उड़ाती एकदम ताज़ा दम, सफ़ेद सूट में से सफ़ेद ब्रा साफ़ साफ़ उजाग़र हो रही थी।
जैसे ही मेरी प्रतिभा की आँख से आँख मिली, प्रतिभा की नज़र झुक गई और क्षण भर को ही ग़ुलाबी भरे भरे होंठों पर एक गुप्त सी मुस्कान आकर लुप्त हो गई। रात वाली बात याद आते ही मेरे लिंग में जान सी आने लगी।
जैसे ही प्रतिभा बैठने लगी तो मेरी वाली साइड से सफ़ेद पजामी में से गहरे रंग की पैंटी साफ़ साफ़ झलकने लगी। एक क्षण में ही मेरा लिंग फुल जोश में फुंफ़कारने लगा और मैंने अपने साथ बैठी रेखा का हाथ चादर के अंदर ही पकड़ कर अपने लिंग पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा लिया।
रेखा चिंहुक उठी, लगी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने… लेकिन मैं जाने दूं तब ना! जैसे ही रेखा ने मुझे देख कर आँखें तरेरी तो प्रतिभा ने पूछा- क्या हुआ मौसी?
‘कुछ नहीं…’ कह कर रेखा ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी और चादर के नीचे से मेरा लिंग जोर से पकड़ लिया।
मैं अपने मुक्त हुए हाथ से रेखा की जाँघ जांचने लगा। सारा दिन जैसे हवाओं के हिण्डोले पर बीता, जो मेरे और प्रतिभा के बीच चल रहा था, उस बारे में सारा दिन मेरे अपने ही अंदर तर्क कुतर्क चलते रहे। एक बात तो पक्की थी कि प्रतिभा की तो ख़ैर कच्ची उम्र थी पर मैं जो कर रहा था वो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गलत था और मैं खुद जानता था कि मैं गलत कर रहा था।
लेकिन वो जैसा कहते हैं कि गुनाह की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी। उम्मीद है कि आपको मेरी इस पारिवारिक सेक्स स्टोरी में मजा आ रहा होगा। साली की बेटी की कच्ची उम्र की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, मैंने सोच लिया था कि आज से मैं प्रतिभा वाली साइड सोऊंगा ही
नहीं लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, मेरा पक्का इरादा डाँवाडोल हो रहा था। शाम आई… मैं घर आया, आते ही प्रतिभा मेरे लिए पानी का गिलास ले कर आई, ग़िलास पकड़ते वक़्त मैंने प्रतिभा की आँखों में देखा, प्रतिभा ने शर्मा कर नज़र नीची कर ली और खाली गिलास ले कर चली गई।
आज रात तो कुछ हो कर रहना था, ऐसी सोच आते ही पतलून के अंदर ही मेरा लिंग भयंकर रौद्र रूप में आ गया, रात की प्रतीक्षा में समय काटना मुश्किल हो गया था। शाम को बाथरूम में नहाते समय मैंने एक बार फिर ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ किया।
डिनर करते समय मैंने रह रह कर आती जाती रेखा के नितंबों पर चुटकी काटी। डिनर टेबल पर ही रेखा ने मुझ से प्रतिभा के कमरे के A.C. के बारे में पूछा कि कब ठीक हो के आएगा? यूं मैंने कह तो दिया कि एक-आध दिन में आ जाएगा पर मेरा इरादा तो प्रतिभा के कमरे के A.C. को कयामत के दिन तक ना लाने का हो रहा था। राम राम कर के डिनर निपटाया।
वैसे हम फ़ैमिली के सब लोग डिनर के बाद लिविंग रूम बैठ कर कुछ देर गप्पें हांकते है लेकिन उस दिन मैं सीधा अपने बैडरूम में चला गया। बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैंने अपना अंडरवियर उतार कर वाशिंग-बास्केट में डाल दिया और पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर सीधे अपने बिस्तर पर जा कर A.C. का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर दिया।
रेखा और प्रतिभा अभी बैडरूम में आईं नहीं थी, मैंने बिस्तर में लेट कर आँखें बंद कर ली, बीसेक मिनट बाद दोनों बैडरूम में आईं और मुझे सोता पाया। 10-15 मिनट हल्की-फ़ुल्की बाद गप्पें हांकने के बाद दोनों सोने की तैयारी करने लगी और बैडरूम की लाइट बंद कर दी गई।
जैसे ही बैडरूम की लाइट बंद हुई मैंने तड़ाक से आँखें खोल ली और प्रतिभा को देखने लगा। प्रतिभा तब अपने बिस्तर पर लेटने की तैयारी कर रही थी और अपने बाल बाँध रही थी। मैंने चुपके से अपनी दाईं बाजु प्रतिभा के बिस्तर पर तकिये से ज़रा सी नीचे दूर तक फैला दी।
प्रतिभा चादर ऊपर खींच कर जैसे ही अपने बिस्तर पर लेटी, मेरी बाजु उसकी गर्दन के नीचे से उसके परले कंधे तक पहुँच गई। उसने अपने हाथ से अपने दाएं कंधे के पास टटोल कर देखा तो मेरा दायां हाथ उसके हाथ में आ गया।
जैसे ही प्रतिभा के हाथ की उंगलियां मेरे हाथ से टच हुई, मैंने उस का हाथ जोर से पकड़ लिया। पहले तो प्रतिभा ने दो-चार पल अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन जल्दी ही मेरा हाथ कस के पकड़ लिया। मुझे तो दो जहान् की खुशियां मिल गई जैसे… मानो सारी कायनात ठहर गई हो!
मेरा दिल मेरे सीने में धाड़-धाड़ बज़ रहा था और मैं अपने ही दिल की धड़कन बड़ी साफ़-साफ़ सुन रहा था। पता नहीं ऐसे दो मिनट बीते के दो घंटे… कुछ याद नहीं। फिर मैंने प्रतिभा की ओर करवट ली और अपना बायां हाथ प्रतिभा के बाएं उरोज़ पर रख दिया, प्रतिभा ने मेरा वो हाथ फ़ौरन परे झटक दिया और अपना सर बायें से दायें हिला कर जैसे अपना एतराज़ जताया लेकिन मैंने दोबारा अपना हाथ उसके बायें उरोज़ पर रख दिया।
प्रतिभा ने दोबारा मेरा हाथ अपने उरोज़ पर से उठाना चाहा लेकिन इस बार मेरा हाथ ना उठाने का इरादा पक्का था, दो एक मिनट की असफ़ल कोशिश करने के बाद प्रतिभा ने अपना हाथ मेरे हाथ से उठा लिया और जैसे मुझे मनमानी करने की इज़ाज़त दे दी।
मैं अँधेरे में प्रतिभा के उरोज़ की नरमी और गर्मी दोनों को अपने हाथ में महसूस कर रहा था। धीरे धीरे मैंने अपनी उँगलियों को प्रतिभा के उरोज़ पर ज़ुम्बिश देनी शुरू की। प्रतिभा का उरोज़ बहुत नर्म सा था, मैं उस पर बहुत नरमी से उंगलियां चला रहा था। अचानक एक जगह हल्की सी कुछ सख़्त सी मालूम पड़ी। हल्का सा टटोलने पर पता पड़ा कि यह उरोज़ का निप्पल है।
जैसे ही मेरा हाथ निप्पल को लगा, वो और ज़्यादा टाईट और बड़ा हो कर ख़डा हो गया। मैंने अपना हाथ प्रतिभा की चादर के अंदर डाल कर, प्रतिभा की नाईट सूट का ऊपर वाला एक बटन खोल कर, ब्रा के अंदर से हौले से प्रतिभा के उरोज़ पर रखा तो प्रतिभा के पूरे ज़िस्म में झुरझुरी की एक लहर सी दौड़ गई जिसे मैंने स्पष्टत महसूस किया।
प्रतिभा की गर्म तेज़ साँसें मैं अपनी कलाई पर महसूस कर रहा था। प्रतिभा के उरोज़ के कठोर निप्पल का स्पर्श मैं अपनी हथेली के ठीक बीचों बीच महसूस कर पा रहा था। धीरे से मैंने अपनी पाँचों उंगलियां उरोज़ के साथ साथ ऊपर उठानी शुरू की और अंत में निप्पल उँगलियों के बीच में आ गया जिसे मैंने हलके से दबाया।
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प्रतिभा के मुख से शाश्वत आनन्द की ‘आह’ की हल्की सी सिसकारी प्रफुटित हुई। जल्दी ही मैंने अपना हाथ दूसरे उरोज़ की ओर सरकाया दूर वाला उरोज़ थोड़ा दूर पड़ रहा था तो प्रतिभा बिना कहे खुद ही सरक कर मेरीऔर ख़िसक आई। अब ठीक था।
मैंने अपना हाथ ब्रा के ऊपर से ही परले उरोज़ पर ऱखा और उरोज़ को थोड़ा सा दबाया। प्रतिभा के मुंह से बहुत ही हलकी सी ‘सी… सी’ की सिसकारी निकली। मैंने अपना हाथ उठा कर धीरे से ब्रा के अंदर सरकाया और परले उरोज़ पर कोमलता से हाथ धर दिया।
परले उरोज़ का निप्पल अभी दबा दबा सा था लेकिन जैसे ही मेरे हाथ ने निप्पल को छूआ, निप्पल ने सर उठाना शुरू कर दिया और एक सैकिंड में ही अभिमानी योद्धा गर्व से सर ऊंचा उठाये खड़ा हो गया। अचानक मुझे लगा की मेरे परले हाथ की हथेली पर कुछ नरम-नरम, कुछ गरम-गरम सा लग रहा है, देखा तो अपनी चादर के अंदर प्रतिभा मेरा हाथ बहुत शिद्दत से चूम रही थी, पूरे हाथ पर जीभ फ़िरा रही थी।
जल्दी ही प्रतिभा ने मेरे हाथ की उँगलियाँ एक एक कर के अपने मुँह में डाल कर चूसनी शुरू कर दी। मैं प्रतिभा के होंठों की नरमी और उस की जीभ का नरम स्पर्श अपनी उँगलियों पर महसूस कर कर के रोमांचित हो रहा था। मेरा लिंग 90 डिग्री पर चादर और पजामे का तंबू बनाये फौलाद सा सख्त खड़ा था, मारे उत्तेज़ना के मेरे नलों में तेज़ दर्द हो रहा था।
अब सहन करना मुश्किल था, लेकिन इस से और आगे बढ़ना खतरे से खाली नहीं था। अपने ही बैडरूम में, अपनी ही पत्नी की कुंवारी भांजी के साथ शारीरिक संबंध बनाते या बनाने की कोशिश करते, अपनी ही पत्नी के हाथों रंगे-हाथ पकड़े जाने से ज़्यादा शर्मनाक कुछ और हो नहीं सकता था।
मैं ऐसी बेवकूफी करने वाला हरगिज़ नहीं था। जिंदगी रही तो आगे ऐसे बहुत मौक़े मिलेंगे जब आदमी अपने दिल की कर गुज़रे और प्रतिभा तो राज़ी थी ही! बेमन से मन ममोस कर मैं उठा और बाथरूम में जाकर पेशाब करने के लिए पजामा खोला तो मेरा लिंग झटके से बाहर आया।
जैसे ही मैंने लिंग का मुंह कमोड की ओर पेशाब करने के लिए किया, मेरे पेशाब की धार कमोड में नीचे जाने की बजाए कमोड के ऊपर सामने दीवार कर पड़ी, मैं अपने लिंग को नीचे की ओर झुकाऊं पर मेरा लिंग नीचे की ओर हो ही ना!
जैसे तैसे पेशाब करके मैं वापिस बैडरूम में आया ही था कि रेखा ने मुझ से टाइम पूछा, मेरी तो फट के हाथ में आ गई। ख़ैर जी! रेखा को टाइम बता कर A.C. का टेम्प्रेचर थोड़ा बढ़ा कर मैं भी सोने की कोशिश करने लगा, उधर प्रतिभा भी चुपचाप चित पड़ी सोने का बहाना कर रही थी। बहुत रात बीतने के बाद मुझे नींद आई।
अगला सारा दिन मैंने मन ही मन चिढ़ते कुढ़ते हुए गुज़ारा। जो कुछ और जितना कुछ प्रतिभा के साथ रातों को हो रहा था, उस से ज़्यादाहोने की गुंजाईश बहुत कम थी और ऐसा होना भी बहुत दिनों तक ऐसा होना मुमकिन नहीं था।
आज नहीं तो कल, प्रतिभा के कमरे का A.C. ठीक हो कर आना ही था। ऊपर से अपने ही बैडरूम में रेखा के किसी भी क्षण उठ जाने का डर हम दोनों को खुल कर खेलने नहीं देता था। मुझे जल्दी ही कुछ करना था। किसी दिन प्रतिभा को ले कर किसी होटल में चला जाऊं?ना… ना!
यह निहायत ही बकवास आईडिया था, आधा शहर मुझे जानता था और प्रतिभा को होटल ले कर जाने के अपने खतरे थे। और… घर में? घर में मेरे बच्चे थे, रेखा थी… नहीं नहीं! ऐसा होना भी मुमकिन नहीं था। तो फिर… क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था, लिहाज़ा मैं चिड़चिड़ा सा हो रहा था।
रात को डिनर करने के बाद फिर बाथरूम में ब्रश करने के बाद मैं अपना अंडरवियर उतार कर पजामा बिना अंडरवियर के पहन कर A.C. का टेम्प्रेचर 20 डिग्री पर सेट कर के सीधे अपने बिस्तर पर जा पड़ा। आज प्रतिभा और रेखा दोनों अभी तक बेडरूम में नहीं आई थी।
अपने आप में उलझे हुए मेरी कब आँख लग गई, मुझे पता ही नहीं चला। अचानक मेरे कान में कुछ सुरसुरी सी हुई, मैंने नींद में ही हाथ चलाया तो मेरे हाथ में प्रतिभा का हाथ आ गया, प्रतिभा चुपके से मुझे जगाने की कोशिश कर रही थी।
मैंने प्रतिभा का हाथ अपनी छाती पर रख कर ऊपर अपना हाथ रख दिया और प्रतिभा की साइड वाला हाथ चादर के अंदर से उसके चेहरे पर फेरने लगा। माथा, गाल, कान, आँखें, नाक, होंठ, ठुड्डी, गर्दन… धीरे-धीरे मेरा हाथ नीचे की ओर अग्रसर था और प्रतिभा की साँसें क्रमशः भारी होती जा रही थी और प्रतिभा मुझे पिछले रोज़ की तरह से रोक भी नहीं रही थी, लगता था कि प्रतिभा खुद ऐसा चाह रही थी।
जैसे ही मेरा हाथ गर्दन के नीचे से होता हुआ प्रतिभा कंधे से होता हुआ प्रतिभा की छातियों तक पहुंचा तो मैं एक सुखद आश्चर्य से भर उठा। आज प्रतिभा ने नाईट सूट के नीचे ब्रा नहीं पहनी थी, बस एक पतली बनियान सी पहनी हुई थी। मेरा हाथ उरोज़ को छूते ही प्रतिभा के शरीर में वही परिचित झुनझुनाहट की लहर उठी।
आज मैं कल जैसी नर्म दिली से पेश नहीं आ रहा था, उरोज़ का निप्पल हाथ में आते ही फूल कर सख़्त हो गया था, मैं अंगूठे और एक उंगली के बीच में निप्पल लेकर हल्के हल्के मसलने लगा प्रतिभा का दायां हाथ मेरे हाथ के ऊपर रखा था, जहां जहां उसे तीव्र आनन्द की अनुभूति होती, वहीं वहीं उसका हाथ मेरे हाथ पर कस जाता।
मेरा मन कर रहा था कि मैं प्रतिभा के उरोज़ों का अपने होंठों से रसपान करूँ लेकिन उस में अभी भयंकर ख़तरा था सो मैंने अपने मन पर काबू पाया और इसी खेल को आगे बढ़ाने में लग गया।
मैंने अपना दायां हाथ प्रतिभा के उरोजों से उठा कर प्रतिभा के बाएं हाथ पर (जो मेरी छाती पर ही पड़ा था) रख दिया।
प्रतिभा के हाथ को सहलाते सहलाते मैंने प्रतिभा का हाथ उठा कर पजामे के ऊपर से ही अपने गर्म, तने हुए लिंग पर रख दिया। प्रतिभा को जैसे 440 वाट का करंट लगा, उसने झट से अपना हाथ मेरे लिंग से उठाने की कोशिश की लेकिन उस के हाथ के ऊपर तो मेरा हाथ था, कैसे जाने देता?
दो एक पल की धींगामुश्ती के बाद प्रतिभा ने हार मान ली और मेरे लिंग पर से अपना हाथ हटाने की कोशिश छोड़ दी। मैंने अपने हाथ से जो प्रतिभा का वो हाथ थामे था जिस की गिरफ़्त में मेरा गर्म, फौलाद सा तना हुआ लिंग था, को दो पल के लिए अपने लिंग से हटाया और अपना पजामा अपनी जांघों से नीचे कर के वापिस अपना लिंग प्रतिभा को पकड़ा दिया।
प्रतिभा के शरीर में फिर से वही जानी-पहचानी कंपकंपी की लहर उठी। अब के प्रतिभा का हाथ खुद ही लिंग की चमड़ी को आगे पीछे कर के मेरे लिंग से खेलने लगा, कभी वो शिशनमुंड पर उंगलिया फेरती, कभी लिंग की चमड़ी पीछे कर के शिशनमुंड को अपनी हथेली में भींचती, कभी मेरे अण्डकोषों को सहलाती। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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ऊपर मेरे हाथों द्वारा प्रतिभा की छातियों का काम-मर्दन जारी था। धीरे धीरे मैं अपना दायां हाथ प्रतिभा के पेट पर ले गया, नाईट सूट के अप्पर को पेट से ऊंचा करके मैंने प्रतिभा के पेट पर हल्के से हाथ फेरा और फिर से प्रतिभा के शरीर में वही जानी पहचानी कंपकंपी की लहर को महसूस किया, प्रतिभा का हाथ मेरे लिंग पर जोरों से कस गया।
मैं धीरे धीरे अपना हाथ प्रतिभा के पेट पर घुमाता घुमाता नाभि के आस पास ले गया, प्रतिभा के शरीर में रह रह कर कंपन की लहरें उठ रही थी। जैसे ही मेरा हाथ प्रतिभा के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को टच हुआ, प्रतिभा ने अपने दाएं हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया और मजबूती से मेरा हाथ ऊपर को खींचने लगी।
मैंने जैसे-तैसे अपना हाथ छुड़ाया और फिर से दोबारा जैसे ही प्रतिभा के नाईट सूट के लोअर के नाड़े को छूआ, प्रतिभा की फिर वापिस वही प्रतिक्रिया हुई, उसने मजबूती से मेरा हाथ पकड़ कर वापिस ऊपर खींच लिया। ऐसा लगता था कि प्रतिभा मुझे किसी कीमत पर अपना लोअर खोलने नहीं देगी।
मजबूरी थी… प्यार था, लड़ाई नहीं जो जोर जबरदस्ती करते, जो करना था खामोशी से और आपसी समझ बूझ से ही करना था। मैंने प्रतिभा का हाथ उठा कर वापिस अपने लिंग पर रख दिया और अब की बार अपना हाथ चादर के अंदर पर उसके नाईट सूट के सूती लोअर बाहर से ही प्रतिभा की बाईं जांघ कर रख दिया.
प्रतिभा के शरीर में कंपन की लहर उठी और अब मैं प्रतिभा की जांघ सहलाते सहलाते अपना हाथ जांघ अंदर को और ऊपर की ओर ले जाने लगा। मेरी स्कीम काम कर गई, आनन्द स्वरूप प्रतिभा के मुंह से हल्की-हल्की सिसकारी निकलने लगी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ उसका हाथ जोर-जोर से मेरे लिंग पर ऊपर-नीचे चलने लगा।
प्रतिभा की बाईं जांघ पर स्मूथ चलती मेरी उंगलियों ने अचानक महसूस किया कि उंगलियों और रेशमी जांघ के बीच में कोई मोटा सा कपड़ा आ गया हो। मैं समझ गया कि यह प्रतिभा की पेंटी थी। धीरे धीरे मैं जाँघों के ऊपरी जोड़ की ओर बढ़ा। उफ़! एकदम गर्म और सीली सी जगह…
मैंने वहां अपना हाथ रोक कर अपनी उंगलियों से सितार सी बजाई। फ़ौरन ही प्रतिभा ने मेरे लिंग को इतने जोर से दबाया कि पूछो मत! मैंने नाईट सूट के सूती लोअर के बाहर से ही प्रतिभा की पेंटी को साइड से ऊपर उठाया और नाईट सूट के कपडे समेत अपनी चारों उंगलियां प्रतिभा की पेंटी के अंदर डाल दी।
मेरे हाथ के नीचे जन्नत थी पर मुझे इस जन्नत पर कुछ जटाजूट सा कुछ महसूस होता। शायद प्रतिभा अपने गुप्तांगों के बाल नहीं काटती थी। मैं कुछ देर अपनी उंगलियों से सितार बजाने जैसी हरकत करता रहा और इधर प्रतिभा मेरे लिंग को मथती जा रही थी।
अचानक ही मैंने अपना दायां हाथ प्रतिभा की योनि से उठाया और फुर्ती से प्रतिभा के नाईट सूट के लोअर का नाड़ा खोल कर अपना हाथ प्रतिभा की पेंटी के अंदर से प्रतिभा की बालों भरी योनि पर रख दिया। प्रतिभा ने फ़ौरन अपना दायां हाथ मेरे हाथ पर रखा और मेरा हाथ अपनी योनि से उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन अब तो बाज़ी बीत चुकी थी, अब मैं कैसे हाथ उठाने देता।
मैंने सख्ती से अपना हाथ प्रतिभा की योनि पर टिकाये रखा और साथ साथ अपनी बीच वाली उंगली योनि की दरार पर ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर फिराता रहा। कुछ ही देर बाद प्रतिभा ने मेरे उस हाथ की पुश्त पर जिससे मैं उसकी योनि का जुग़राफ़िया नाप रहा था, एक हल्की सी चपत मारी और अपना हाथ उठा कर परे करके जैसे मुझे खुल कर खेलने की परमीशन दे दी।
प्रतिभा की योनि से बेशुमार काम-रस बह रहा था, उसकी पूरी पेंटी भीग चुकी थी। मैंने योनि की दरार पर उंगली फेरते फेरते अपनी बीच वाली उंगली से प्रतिभा की योनि के भगनासा को सहलाया, प्रतिभा ने जल्दी से अपनी दोनों जाँघें जोर से अंदर को भींच ली।
मैंने वही उंगली प्रतिभा की योनि में जरा नीचे अंदर को दबाई तो प्रतिभा के मुंह से ‘उफ़्फ़’ निकल गया। प्रतिभा शतप्रतिशत कंवारी थी, लगता था कि प्रतिभा ने कभी हस्तमैथुन भी नहीं किया था। तभी मुझे अपनी बाईं ओर हल्की सी हलचल और कपड़ों की सरसराहट का अहसास हुआ, मैंने तत्काल अपना हाथ प्रतिभा की योनि पर से खींचा और प्रतिभा से जरा सा उरली तरफ सरक कर गहरी नींद में सोने के जैसी ऐक्टिंग करने लगा।
मिंची आँखों से देखा तो रेखा बाथरूम जाने के लिए उठ रही थी। जैसे ही रेखा बाथरूम में घुसी मैंने फ़ौरन अपने कपड़े ठीक किये और फुसफुसाती आवाज़ में प्रतिभा को भी अपने कपड़े ठीक करने को कह दिया। सब कुछ ठीक ठाक करने के बाद हम दोनों ऐसे अलग अलग लेट गए जैसे गहरी नींद में हों।
बाथरूम से बाहर आ कर रेखा ने ac का टेम्प्रेचर बढ़ाया और वापिस बिस्तर पर आकर मुझे पीछे से आलिंगन में ले लिया। बाल बाल बचे थे हम! मुझे बहुत देर बाद नींद आई। अगले दिन शनिवार था और शनिवार के बाद इतवार की छुट्टी थी।
शाम को लगभग 4 बज़े A.C. वाले का फ़ोन आया कि A.C. ठीक हो गया था और वो पूछ रहा था कि कब अपने आदमी मेरे घर भेजे ताकि A.C. वापिस फ़िट किया जा सके। मैंने उसे इतवार शाम को आकर A.C. फिट करने को बोला। अब मेरे पास केवल एक ही रात थी जिसमें मैंने कुछ कर गुज़रना था और मैं रात को सबकुछ कर गुज़रने को दृढ़प्रतिज्ञ था।
शाम को मैंने अपने परिचित कैमिस्ट से गहरी नींद आने की गोलियों की एक स्ट्रिप ली और आईसक्रीम की दूकान से एक ब्रिक बटरस्काच आईसक्रीम ले कर घर आया। रेखा को बटरस्काच आईसक्रीम बहुत पसंद थी। चार गोलियां पीस कर में पुड़ी में अपने पास रख ली।
अगली रात डिनर के टाइम डिनर टेबल पर प्रतिभा डिनर सर्व कर रही थी, आमतौर पर रेखा डिनर सर्व करती थी लेकिन उस दिन प्रतिभा डिनर सर्व कर रही थी, आते-जाते बहाने बहाने से मुझे यहां वहां छू रही थी। डिनर हुआ, आईस क्रीम मैंने खुद सबको सर्व की। बच्चों की और रेखा वाली प्लेट में मैंने वो पीसी हुईं नींद की गोलियां मिला दी।
सब ने आईसक्रीम खाई और करीब 9:30 बजे मैं एक दोहरी मनस्थिति में अपने बैडरूम में आ गया। नींद की गोलियों का असर रेखा पर एक से डेढ़ घंटे बाद होना था। ब्रश करने के बाद मैंने हस्तमैथुन किया और अपना अंडरवियर पहने बिना ही पजामा पहन लिया और एक नावेल लेकर वापिस अपने बिस्तर पर आ जमा।
मैं अपने बिस्तर पर दो तकियों के साथ पीठ टिका कर, पेट तक चादर ले कर ओढ़ कर और घुटने मोड़ कर नॉवल पढ़ने लगा। सब काम निपटा कर, करीब सवा दस बजे प्रतिभा और रेखा दोनों बैडरूम में आईं। तब तक बैडरूम में चलते A.C. की बड़ी सुखद सी ठंडक फ़ैल चुकी थी।
आते रेखा बोली- आज तो मैं बहुत थक सी गई हूँ, बहुत नींद आ रही है! ‘मुझे भी!’ प्रतिभा ने भी हामी भरी।
‘तो सो जाओ, किसने रोका है।’ मैंने कहा।
‘और आप?’ रेखा ने पूछा। ‘मैं थोड़ा पढ़ कर सोऊंगा, मुझे अभी नींद नहीं आ रही है।’ मैंने कहा।
‘ठीक है… पर आप ट्यूब लाइट बंद करके टेबललैम्प जला लें!’ रेखा ने मुझसे कहा।
मैंने सिरहाने फिक्स टेबल-लैम्प जला कर ट्यूब लाइट बंद कर दी। अब स्थिति यूं थी कि मेरे सर के ऊपर थोड़ा बाएं तरफ टेबल-लैम्प जल रहा था और प्रतिभा मेरे दाईं तरफ क़दरतन अंधेरे में थी और मेरे दाईं ओर से, मतलब रेखा की ओर से प्रतिभा को साफ़ साफ़ देख पाना मुश्किल था क्योंकि बीच में मैं था और प्रतिभा मेरी परछाई में थी।
बीस-पच्चीस मिनट बिना किसी हरकत के बीते। वैसे तो मेरी नज़र नॉवेल के पन्नों पर थी लेकिन दिमाग प्रतिभा की ओर था। कनखियों से प्रतिभा की ओर देखा तो पाया कि प्रतिभा बाईं करवट लेटी हुई मेरी ओर ही देख रही थी। फिर प्रतिभा ने आँखों ही आँखों में मुझे लाइट बंद करने का इशारा किया लेकिन मैंने उसे अभी रुक जाने का इशारा किया।
जबाब में प्रतिभा ने मुझे ठेंगा दिखा कर मुंह बिचकाया, ऊपर चादर ले कर उलटी तरफ करवट ली और मेरी तरफ पीठ कर के लेट गई। मुझे हंसी आ गई और मैंने हाथ बढ़ा कर प्रतिभा का कंधा छूआ तो उसने मेरा हाथ झटक दिया।
मैंने दोबारा वही हाथ उस की कमर पर रखा तो प्रतिभा ने दुबारा मेरा हाथ अपनी कमर से झटक दिया। लड़की सचमुच रूठ गई थी। अब के मैंने अपना हाथ हौले से प्रतिभा के ऊपर वाले नितम्ब पर रख दिया, इस बार प्रतिभा ने मेरा हाथ नहीं झटका। मैं धीरे-धीरे कोमलता से प्रतिभा का पूरा नितम्ब सहलाने लगा।
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अचानक मुझे महसूस हुआ कि आज प्रतिभा ने लोअर के नीचे पैंटी नहीं पहन रखी थी। वही हाथ प्रतिभा की पीठ पर फिराने से पता चला कि ब्रा भी नदारद थी। इन सब का सामूहिक मतलब तो ये था कि मेरी प्रेयसी अभिसार के लिए आज पूरी तरह से तैयार थी। ऐसा सोचते ही मेरा लिंग अपनी पूरी भयंकरता के साथ मेरे पजामे में फुंफ़कारने लगा।
अपना वही हाथ प्रतिभा के कंधे तक ला कर मैंने प्रतिभा का कंधा हलके से अपनी ओर खींचा तो प्रतिभा सीधी हो कर लेट गई और आँख के इशारे से मुझे टेबल-लैम्प बुझाने को कहा। मैंने पहले रेखा की ओर घूम कर देखा, अपना चेहरा परली तरफ घुमा कर हल्क़े से कंबल में चित लेटी रेखा गहरी निद्रा में थी।
मैंने हाथ बढ़ा कर टेबल लैम्प बंद किया और अंधेरा होते ही झुक कर प्रतिभा के होंठों पर होंठ रख दिए। प्रतिभा ने फ़ौरन अपनी बाजुएं मेरे गले में डाल दी और बड़ी शिद्दत से मेरे होंठ चूसने लगी। थोड़ी देर बाद मैं सीधा हुआ और फ़ौरन दोबारा प्रतिभा की ओर झुक कर मैंने प्रतिभा के माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, सैंकड़ों चुम्बन जड़ दिए।
प्रतिभा के दाएं कान की लौ चुभलाते समय मैं प्रतिभा के मुंह से, आनंद के मारे निकलने वाली ‘सी…सी… सीई… सीई… सीई… ई…ई…ई’ की सिसकारियाँ साफ़ साफ़ सुन रहा था। मैंने प्रतिभा के नाईट सूट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना हाथ अंदर सरकाया।
रुई के समान नरम और कोमल दो गोलों ने जिन के सिरों पर अलग अलग दो निप्पलों के ताज़ सजे थे, मेरे हाथ की उँगलियों का खड़े होकर स्वागत किया। क्या भावनात्मक क्षण थे! मेरा दिल करे कि दोनों कबूतरों को अपने सीने से लगा कर चुम्बनों से भर दूं, निप्पलों को इतना चूसूं… इतना चूसूं कि प्रतिभा के मुंह से आहें निकल जाएँ।
यूं तो प्रतिभा के मुंह से आहें तो मेरे उसके उरोजों को छूने से पहले ही निकलना शुरू हो गई थी। उधर प्रतिभा का बायां हाथ मेरे पाजामे के ऊपर से ही मेरा लिंग ढूंढ रहा था। प्रतिभा ने मेरे पजामे का कपड़ा खींच कर मुझे मेरे लिंग को पजामे की कैद से छुड़ाने का इशारा किया, मैंने तत्क्षण अपना पजामा अपनी जाँघों तक नीचे खींच लिया।
प्रतिभा ने बेसब्री से मेरे तपते, कड़े-खड़े लिंग को अपने हाथ में लिया और उसके शिश्नमुण्ड पर अपनी उंगलियां फेरने लगी। मेरे लिंग से उत्तेजनावश बहुत प्री-कम निकल रहा था और उससे प्रतिभा का सारा हाथ सन गया। अचानक प्रतिभा ने वही हाथ अपने मुंह की ओर किया और अपने हाथ की मेरे प्री-कम से सनी उंगलियां अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी।
मैंने तभी प्रतिभा के नाईट सूट के बाकी बटन भी खोल दिए और उसकी इनर उठा कर दोनों उरोज़ नग्न कर के अपनी जीभ से यहां-वहां चाटने लगा। इससे प्रतिभा बिस्तर पर मछली की तरह तड़फने लगी, प्रतिभा जोर जोर से मेरा लिंग हिला दबा रही थी और मैं प्रतिभा के उरोजों का, निप्पलों का स्वाद चेक कर रहा था।
प्रतिभा पर झुके झुके मैंने अपना बायाँ हाथ प्रतिभा के पेट की ओर बढ़ाया, नाभि पर एक-आध मिनट हाथ की उंगलियां गोल गोल घुमाने के बाद अपना हाथ नीचे की ओर बढ़ा कर हौले से प्रतिभा के नाईट सूट का नाड़ा खोल दिया। सरप्राइज ! आज प्रतिभा ने मुझे ऐसा करने से नहीं रोका।
मैंने जैसे ही अपना हाथ और नीचे करके प्रतिभा की पेंटी विहीन योनि पर रखा, एक और आश्चर्य मेरा इंतज़ार कर रहा था, आज प्रतिभा की योनि एकदम साफ़-सुथरी और चिकनी थी, योनि पर बालों का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था, लगता था कि प्रतिभा ने शाम को ही योनि के बाल साफ़ किये थे। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
छोटी सी योनि ज्यादा से ज्यादा साढ़े चार से पांच इन्च की जिस पर ढाई इंच से तीन इंच की दरार थी, दरार के ऊपर वाले सिरे पर छोटे मटर के साइज़ का भगनासा और प्रतिभा की योनि रस से इतनी सराबोर कि दरार में से रस बह-बह जांघों की अंदर वाली साइडों को भिगो रहा था।
मैंने अपने हाथ की बीच वाली उंगली दरार पर ऊपर से नीचे और फिर नीचे से ऊपर फेरनी शुरू की, प्रतिभा के शरीर में रह रह कर काम तरंगें उठ रही थी जो मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था। इधर प्रतिभा मेरे लिंग का भुरता बनाने पर तुली हुई थी, जोर जोर से लिंग दबा रही थी, चुटकियां काट रही थी और लिंग के शिश्नमुण्ड को अपनी उँगलियों में दबा दबा कर रस निकालने की कोशिश कर रही थी.
और बदले में मैं प्रतिभा के दोनों उरोज़ चूम रहा था, यहाँ-वहाँ चाट रहा था, निप्पल्स चूस रहा था। निःसंदेह, हम दोनों जन्नत में थे। प्रतिभा की योनि पर अपनी उंगलियां चलाते-चलाते मैंने अपने हाथ की बीच वाली उ। गली दरार में घुसा दी और अंगूठे और पहली उगली से प्रतिभा का भगनासा हल्का हल्का मींजने लगा।
इस पर प्रतिभा ने उत्तेज़नावश अपनी दोनों टाँगें और चौड़ी कर दी ताकि मेरी बीच वाली उंगली थोड़ी और योनि में प्रवेश पा सके। मुझे पता था कि प्रतिभा पूर्णतः कँवारी थी और मेरे पास ज्यादा टाइम नहीं था, बस इक वही रात थी और जिंदगी में दोबारा ऐसी रात आनी मुश्किल थी।
मैंने प्रतिभा की योनि में धँसी अपनी उंगली को योनि के अंदर ही गोल गोल घुमाना शुरू कर दिया। इस का नतीजा फ़ौरन सामने आया, प्रतिभा बार बार रिदम में अपने नितम्ब बिस्तर से ऐसे ऊपर उठाने लगी जैसे चाहती हो कि मेरी पूरी उंगली उसकी योनि के अंदर चली जाए।
प्रतिभा की योनि से बेशुमार रस बह रहा था। मेरे लिंग पर उस की पकड़ और मज़बूत हो गई थी। मैं अपनी उंगली को हर गोल घेरे के बाद थोड़ा और अंदर की ओर धँसा देता था। धीरे धीरे गोल गोल घूमती मेरी करीब पूरी उंगली प्रतिभा की योनि में उतर गई।
अब मैंने अपनी उंगली को बाहर निकाला और बीच वाली और तर्जनी उंगली को भी योनि में गोल गोल घुमाते घुमाते डालना शुरू कर दिया। रस से सरोबार प्रतिभा की योनि में मेरी दोनों उंगलियां प्रविष्ट हो गई। अब ठीक था, अपनी प्रेयसी को प्रेम-जीवन के और इस सृष्टि के एक अनुपम और गृहतम रहस्य से परिचित करवाने कासमय आ गया था।
मैंने टाइम देखा, सवा बारह बज रहे थे, मतलब कि नींद की गोलियों का जादू पूरी तरह रेखा पर चल चुका था और अब मेरे लिए ‘वन्स इन आ लाइफ टाइम’ जैसा मौका था। मैं बिस्तर से उठ खड़ा हुआ और पहले अपना पजामा संभाला। परली तरफ जाकर, इससे पहले प्रतिभा कुछ समझ पाती, प्रतिभा को अपनी गोद में उठा कर और अपने से लिपटा कर बाहर ड्राइंग रूम में आ गया।
ड्राइंग रूम में सड़क से थोड़ी सी स्ट्रीट लाइट आ रही थी और वहाँ बैडरूम के जैसा घुप्प अन्धेरा नहीं था। नीम अँधेरे में प्रतिभा मेरी बाहों में छटपटा रही थी- मैं नहीं… मैं नहीं… मौसी उठ जायेगी… मैं बदनाम हो जाऊँगी, आप मुझे कहीं का नहीं छोड़ोगे!ऐसे ऊटपटाँग बोल रही थी।
बाहर आते ही मैंने अपने बैडरूम का दरवाज़ा और बच्चों के कमरे का दरवाज़ा बाहर से लॉक किया और प्रतिभा को बताया कि मौसी नहीं उठेंगी क्योंकि मौसी आज नींद में नहीं नशे में है। फिर मैंने उसको नींद की गोलियों वाली बात बताई तो प्रतिभा आश्वस्त हुई।
मैंने प्रतिभा को बाहों में लेकर उसके तपते होठों पर होंठ रख दिए। अब प्रतिभा भी दुगने जोशो-खरोश से मेरा साथ देने लगी। मैं प्रतिभा का निचला होंठ चूस रहा था और प्रतिभा मेरा ऊपर वाला होंठ चूस रही थी। कभी मैं प्रतिभा की जुबान अपने मुंह में पा कर चूसता और कभी मेरी जीभ प्रतिभा के मुंह के अंदर प्रतिभा के दांत गिनती।
मेरे दोनों हाथ प्रतिभा के जिस्म की चोटियों और घाटियों का जायज़ा ले रहे थे, प्रतिभा का एक हाथ मेरे लिंग के साथ अठखेलियां कर रहा था और दूसरा हाथ मेरी गर्दन के साथ लिपटा था और प्रतिभा खुद मेरे साथ लिपटी हुई पूरी हवा में झूल रही थी।
ऐसे ही प्रतिभा को अपने साथ लिपटाये लिपटाये चलते हुये मैंने ड्राइंग रूम में बिछे दीवान के पास उस को खड़ा कर दिया और खुद प्रतिभा का नाईट सूट उतारने लगा। प्रतिभा ने रस्मी सा प्रतिरोध किया तो सही पर मैं माना ही नहीं… पलों में मैंने प्रतिभा के नाईट सूट के साथ साथ नीचे पहनी इनर भी उतार दी और अगले ही पल मैंने अपने कपड़ों को भी तिलांजलि दे दी और प्रतिभा की ओर मुड़ा।
वस्त्रविहीन खड़ी प्रतिभा कभी अपनी नग्नता छुपाने की, कभी दिखाने की कोशिश करती, कोई खजुराहो का दिलकश मुज्जस्मा लग रही थी। प्रतिभा के अनावृत दो उरोज़ और उन पर तन कर खड़े दो निप्पल जैसे पूरे संसार को चुनौती दे रहे थे कि ‘है कोई… जो हमें झुका सके?’
मेरा मन भावनाओं से भर आया, मैंने प्रतिभा को जोर से अपने आलिंगन में कस लिया और बदले में प्रतिभा ने दुगने जोर से मुझे अपने आलिंगन में कस लिया। प्रतिभा के दोनों उरोज़ मेरे सीने में धँसे हुए से थे। मैं प्रतिभा के दिल की धड़कनें साफ़ साफ़ अपने सीने में धड़कती महसूस कर रहा था।
वक़्त का पहिया चलते-चलते अचानक थम सा गया था, उस वक़्त मैं… सिर्फ मैं था, ना कोई पति… ना पिता, सिर्फ मैं! मेरी दोनों बाजुयें सख़्ती से प्रतिभा को लपेटे हुए प्रतिभा की पीठ पर जमी थीं। मैं अपना एक हाथ प्रतिभा की पीठ पर ऊपर नीचे फिरा रहा था कंधों से लेकर नितंबों के नीचे तक!
कभी कभी मेरी उंगलियां नितंबों की दरार के साथ साथ नीचे… गहरे नीचे उतर जाती, बिल्कुल योनि-द्वार तक! प्रतिभा की योनि से कामरस का अविरल प्रवाह जारी था जिससे मेरा हाथ सना जा रहा था लेकिन उस अलौकिक आनन्द को पाते रहने में मुझे प्रतिभा की योनि-द्वार तक अपने हाथों की गर्दिश कयामत के दिन तक मंज़ूर थी।
थोड़ी देर बाद मैंने बहुत प्यार से प्रतिभा को आलिंगन में लिए लिए, दीवान पर लेटा दिया और प्रतिभा के निप्पलों को अपने मुंह में लेकर कर खुद प्रतिभा के ऊपर झुक सा गया, उसके मुंह से सिसकारियां अपने चरम पर थी। अचानक प्रतिभा ने अपना एक हाथ नीचे कर के मेरा लिंग अपने हाथ थाम लिया और जोर जोर से अपनी ओर खींचने लगी।
आज़माइश की घड़ी पास आती जा रही थी, बतौर प्रेमी, मेरे कौशल का इम्तिहान बहुत सख़्त था, मुझे ना सिर्फ बिना कोई हल्ला किये एक सफल अभिसार करना था, बल्कि अपनी कँवारी प्रेमिका को बिना कोई ठेस लगाए अपने प्यार का एहसास भी करवाना था।
बगल वाले कमरे में मेरी पत्नी सो रही थी और किसी किस्म का हल्ला-गुल्ला उसकी नींद उचाट कर सकता था। काम मुश्किल था… पर मुझे करना ही था… हर हाल में करना था और अभी करना था। मैंने प्रतिभा को जरा सा सीधा किया और घुटनों के बल बैठ कर प्रतिभा की दोनों टांगों के बीच में आ गया.
अपना लिंग मैंने अपने दाएं हाथ में लेकर प्रतिभा की योनि की दरार पर रख कर थोड़ा अंदर की ओर दबाते हुए ऊपर नीचे फिराना शुरू कर दिया। प्रतिभा के मुंह से आहें, कराहें क्रमशः तेज़ और ऊँची होती जा रही थी और उसके शरीर में रह रह कर उत्तेजना की लहरें उठ रही थी।
जैसे ही मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रतिभा की योनि की दरार के ऊपर भगनासा को दबाता, प्रतिभा के शरीर में मदन-तरंग उठती जिसका कम्पन मैं स्पष्टत: महसूस कर रहा था। प्रतिभा की योनि से कामरस अविरल बह रहा था, प्रतिभा रह-रह कर मुझे अपने ऊपर खींच रही थी जिससे यह बात साफ़ थी कि गर्म लोहे पर चोट करने का वक़्त आ गया था पर मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता था।
अचानक मेरे लिंग का शिश्नमुंड प्रतिभा की योनि के मध्य भाग से जरा सा नीचे जैसे किसी नीची सी जगह में अटक गया और तभी प्रतिभा के शरीर में भी जोर से इक झुरझुरी सी उठी, जन्नत का मेहमान जन्नत की दहलीज़ पर ख़डा था, मैंने अपना लिंग प्रतिभा की योनि में वहीं टिका छोड़ दिया और ख़ुद प्रतिभा के ऊपर सीधा लेट गया।
मैंने प्रतिभा का निचला होंठ अपने होंठों में लिया और हौले हौले उस को चुभलाने लगा। प्रतिभा ने प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी दोनों टांगें हवा में उठाईं और मेरी क़मर पर कैंची सी मार कर अपने पैरों से मेरी क़मर नीचे की ओर दबाने लगी। अभी मेरा शिश्नमुंड भी पूरा प्रतिभा की योनि के अंदर नहीं गया था और लड़की मेरे लिंग को और अपनी योनि के अंदर लेने को उतावली हो रही थी।
मैंने अपने लिंग पर हल्का सा दबाव बढ़ाया, अब मेरे लिंग का शिश्नमुंड पूरा प्रतिभा की योनि के अंदर था. ‘आ… ई…ई…ई… ई…ई…ईईईई!!!’ प्रतिभा के मुंह से आनन्द स्वरूप निकल रही सीत्कारों में पीड़ा का जरा सा समावेश हो गया. मुझे इस का पहले से ही अंदाज़ा था, मैंने फ़ौरन अपने लिंग पर दबाब डालना बंद कर दिया और यहीं से शिश्नमुंड वापिस खींच कर हौले से प्रतिभा की योनि में वापिस यही तक दोबारा ले जा कर फिर वापिस खींच लिया.
ऐसा मैंने तीन चार बार किया, प्रतिभा पर इसकी तत्काल प्रतिक्रिया हुई, पांचवी बार जैसे ही मैंने अपना लिंग प्रतिभा की योनि से बाहर निकाला, प्रतिभा ने मेरी पीठ पर अपनी टांगों की कैंची तत्काल पूरी ताक़त से अपनी ओर खींची, परिणाम स्वरूप मैं भी प्रतिभा की ओर जोर से खिंचा और मेरा लिंग भी प्रतिभा की योनि में ढाई से तीन इंच और गहरा चला गया.
‘सी…ई…ई…ई… आह…!’ प्रतिभा के मुख से आनन्द और पीड़ा भरी मिली-जुली सिस्कारी निकल गई.. प्रतिभा की योनि एकदम कसी हुई और अंदर से जैसे धधक रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लिंग जैसे किसी नर्म गर्म संडासी में फंसा हुआ हो. ऐसा लगता था कि योनि की उष्मा शनैः शनैः मेरे लिंग को पिंघला कर ही मानेगी तो विरोध स्वरूप मेरा लिंग भी बृहत्तर से बृहत्तर आकार लेने लगा.
योनि और लिंग के स्राव मिल कर खूब चिकनाहट पैदा कर रहे थे और योनि में लिंग का आवागमन थोड़ा सा सुगम होता जा रहा था लेकिन अभी मैं अपने लिंग को प्रतिभा की योनि के और ज्यादा अंदर प्रवेश करवाने से परहेज़ कर रहा था, आराम-आराम से अपने लिंग को प्रतिभा की योनि से बाहर खींच कर, फिर जहां था वहीं तक दोबारा ठेल रहा था.
अब प्रतिभा भी इस रिदम का लुत्फ़ अपने नितम्ब उठा-उठा कर ले रही थी, ऐसे करते करते दस मिनट हो चुके थे और प्रतिभा आँखें बंद कर के अभिसार का सम्पूर्ण आनन्द ले रही थी, लेकिन अभी कहानी आधी ही हुई थी, समय आ गया था कि इस अभिसार को सम्पूर्णता की ओर अग्रसर किया जाए.
प्रेमपूर्वक किये जा रहे अभिसार का सबसे मुश्किल क्षण आने को था, यह वो क्षण होता है जब एक पुरुष, पूर्ण-पुरुष की उपाधि पाता है और एक स्त्री, सुहागिन की पदवी पाती है. इसी क्षण से आगे चल कर स्त्री, एक जननी बनती है, एक माँ बनती है और एक नई सृष्टि रचती है.
इस पल में पुरुष अपनी प्रेयसी के साथ प्यार के साथ साथ थोड़ी सी क्रूरता से पेश आता है, वही क्रूरता दिखाने का पल आ पहुंचा था. मैंने प्रतिभा के बाएं उरोज़ के निप्पल को मुंह में लिया और उसे चुभलाने लगा, प्रतिभा के गर्म शरीर का उत्ताप फिर से बढ़ने लगा और उन्माद में प्रतिभा बिस्तर पर जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी.
मैंने प्रतिभा का सर अपने दोनों हाथों से दाएं-बाएं से दबा कर, प्रतिभा के उरोज़ के निप्पल से मुंह उठाया और प्रतिभा के दोनों होठों को अपने होठों में दबा लिया और लगा चूसने! अगले ही पल मैंने अपना लिंग प्रतिभा की योनि से बाहर निकाल कर पूरी शक्ति से वापिस प्रतिभा की योनि में उतार दिया.
अगर मैंने प्रतिभा के दोनों होंठ अपने होंठों से बंद नहीं कर दिए होते तो यकीनन प्रतिभा की चीख सड़क के परले सिरे तक सुनाई दी होती. तत्काल प्रतिभा के दोनों हाथों ने दीवान की चादर पकड़ कर गुच्छा-मुच्छा कर डाली और अपने पैरों से मुझे पर धकेलने की असफल कोशिश करने लगी.
प्रतिभा की आँखों से आंसुओं की धारें फ़ूट पड़ी पर अब तो जो होना था सो हो चुका था. अब प्रतिभा कुंवारी नहीं रही थी. मैं प्रतिभा के ऊपर औंधा पड़ा धीरे धीरे प्रतिभा के सर को सहला रहा था, उसके आंसू अपने होंठों से बीन रहा था. धीरे-धीरे प्रतिभा का रोना कम होता गया और मैंने हौले हौले अपनी क़मर को हरकत देना प्रारंभ किया, चार-छह धक्कों के बाद, अचानक प्रतिभा के शरीर में वही जानी पहचानी कम्पन की लहर उठी.
दो पल बाद ही प्रतिभा का शरीर इस रिदम का जवाब देने लगा. लिंग को प्रतिभा की योनि से बाहर खींचने की क्रिया के साथ साथ ही प्रतिभा अपने नितम्ब नीचे को खींच लेती और जैसे ही लिंग योनि में दोबारा प्रवेश पाने को होता तो प्रतिभा शक्ति के साथ अपने नितंब ऊपर को करती, परिणाम स्वरूप एक ठप्प की आवाज के साथ मेरा लिंग प्रतिभा की योनि के अंतिम छोर तक जाता.
प्रतिभा के मुख से ‘आह…आई… ओह… मर गई… हा… उफ़… उम्म्ह… अहह… हय… याह… हाय… सी… ई…ई’ की आधी-अधूरी सी मज़े वाली सिसकारियां अविरल निकल रही थी और मैं बेसाख्ता प्रतिभा को यहाँ-वहाँ चूम रहा था, चाट रहा था माथे पर, आँखों पर, गालों पर, नाक पर, गर्दन पर, गर्दन के नीचे, कंधो पर, उरोजों पर, निप्पलों पर, उरोजों के बीच की जगह पर!
हमारा अभिसार अपनी अधिकतम गति पर था, अचानक प्रतिभा का शरीर अकड़ने लगा, प्रतिभा ने अपने दांत मेरे बाएं कंधे पर गड़ा दिए, मेरी पीठ पर प्रतिभा के तीखे नाख़ून पच्चीकारी करने की कोशिश करने लगे. ये लक्षण मेरे जाने पहचाने थे, मैं तत्काल अपनी कोहनियों के बल हुआ और प्रतिभा के दोनों हाथ अपने हाथों में जकड़ कर बिस्तर पर लगा दिए और अपनी कमर तीव्रतम गति से चलाने लगा.
साथ साथ मैं कभी प्रतिभा के होठों पर चुम्बन जड़ रहा था, कभी उसके निप्पलों पर, कभी उसकी आँखों पर! अचानक प्रतिभा का सारा शरीर कांपने लगा और प्रतिभा की योनि में जैसे विस्फोट हुआ और प्रतिभा की योनि से जैसे स्राव का झरना फूट पड़ा.
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प्रतिभा जिंदगी में पहली बार सम्भोगरत हो कर स्खलित हो रही थी और प्रतिभा की योनि की मांसपेशियों ने संकुचित होकर मेरे लिंग को जैसे निचोड़ना शुरू कर दिया. प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा लिंग और ज्यादा फूलना शुरू हो गया, इसका नतीजा यह निकला कि मेरे लिंग के लिए संकरी योनि में रास्ता और भी ज्यादा संकरा हो गया और मेरे लिंग पर प्रतिभा की योनि की अंदरूनी दीवारों की रगड़ पहले से भी ज्यादा लगने लगी. करीब एक मिनिट बाद ही जैसे ही मैंने पूरी शक्ति से अपना लिंग प्रतिभा की योनि में अंदर तक डाला.
मेरे अंडकोषों में एक जबरदस्त तनाव पैदा हुआ और मेरे लिंग ने पूरी ताक़त से वीर्य की पिचकारी प्रतिभा की योनि के आखिरी सिरे पर मारी फिर एक और.. एक और… एक और… एक और… मेरे गर्म वीर्य की बौछार! अपनी योनि में महसूस कर के अब तक निढाल और करीब-करीब बेहोश पड़ी प्रतिभा जैसे चौंक कर उठी और उसने मुझसे अपने हाथ छुड़ा कर जोर से मुझे आलिंगन में ले लिया और मुझे यहाँ-वहाँ चूमने लगी. एक भँवरे ने एक कली को फूल बना दिया था, एक लड़की, एक औरत बन चुकी थी.