Hot Aunty Fuck Kahani
मैं अपने माता, पिता, छोटे भाई और चाची के साथ यूपी के एक शहर में रहता हूँ और कॉलेज में पढ़ता हूँ। हमारा घर दो मंजिला है, जिसकी नीचे की मंजिल में एक बड़ा हॉल, दो बैडरूम जिसमें से एक में मम्मी-पापा और दूसरे में मेरा छोटा भाई सोते हैं तथा एक रसोई और दो बाथरूम है जो कि बैडरूम के साथ संलग्न है। Hot Aunty Fuck Kahani
ऊपर की मंजिल में दो बैडरूम, जिसमें से एक बैडरूम में मैं और दूसरे बैडरूम में मेरी चाची सोती हैं तथा एक छोटा स्टोर और एक बाथरूम है। वह बाथरूम दोनों बैडरूम के बीच में है और उसमें दो दरवाज़े हैं जिस में से एक मेरे बेडरूम में और दूसरा चाची के बैडरूम में खुलता है।
मेरे पापा एक निजी कंपनी में उच्च महा-प्रबंधक हैं और रोज़ सुबह नौ बजे तक तैयार ऑफिस चले जाते तथा रात को देर से ही घर लौटते हैं। पापा की कम्पनी की दूसरे 12 शहरों में भी शाखाएँ हैं जिनकी देखरेख के सिलसिले में अधिकतर उन्हें हर सप्ताह दो से तीन दिन के लिए बाहर जाना ही पड़ता है।
मेरी मम्मी एक कुशल गृहिणी हैं और घर के काम के साथ साथ अपने खाली समय में वह एक समाज सेवा संस्था के लिए भी काम करती हैं। सोमवार से शुक्रवार तक मम्मी रोज़ घर का काम-काज निबटा कर सुबह दस बजे से शाम पाँच बजे तक समाज-सेवा के कार्य के लिए घर से बाहर ही व्यस्त रहती हैं।
मेरा छोटा भाई दिन में स्कूल और शाम को एयर-फोर्स में भरती की परीक्षा की तैयारी में कोचिंग और ट्रेनिंग के लिए घर से बाहर ही रहता है तथा रात आठ बजे तक ही घर लौटता था। मैं कॉलेज में बी.कॉम के अन्तिम वर्ष की पढ़ाई कर रहा हूँ और सुबह आठ बजे कॉलेज के लिए निकल जाता था और अपराह्न 4 बजे तक ही घर पहुँचता था।
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मेरी चाची भी एक गृहिणी हैं और पूरा दिन घर पर ही रहती हैं तथा घर के काम और देखभाल में माँ की सहायता करती हैं। मेरे चाचा चाची पहले तो एक अलग घर में रहते थे लेकिन एक वर्ष पहले जब चाचा को नौकरी के सिलसिले में दुबई चले गए, तब से चाची हमारे साथ रहने आ गई।
जिस घटना का विवरण मैं आप सबके साथ साझा करना चाहता हूँ वह लगभग छह माह पहले घटी थी और उससे मिलने वाले आनन्द और संतुष्टि को मैं आज भी प्राप्त कर रहा हूँ। घटना वाले दिन की सुबह जब कॉलेज में पहले दो पीरियड की पढ़ाई हो चुकी थी और अगले दो पीरियड खाली थे.
तब मुझे याद आया कि मैं लायब्ररी की एक किताब को लाना भूल गया था और वह मुझे उसी दिन वापिस जमा करानी थी। तभी मुझे विचार आया कि मैं इन दो खाली पीरियड में घर जाकर उस किताब को लाकर लायब्ररी में जमा करा सकता हूँ तथा बाकी के सभी पीरियड में भी उपस्थित रह सकता हूँ।
तब मैंने तुरंत बाइक उठायी और घर की ओर चल पड़ा। जब मैंने घर पहुँच कर घंटी बजाई तो पाया कि लाइट न होने के कारण वह बज नहीं रही थी। तब मैंने दरवाज़ा खटखटाया लेकिन किसी ने नहीं भी खोला। यह सोच कर कि शायद माँ समाज सेवा में चली गई होगी और चाची स्नान आदि कर रही होगी, इसलिए मैंने मेरे पास जो घर की डुप्लिकेट चाबी थी उससे दरवाज़ा खोला और अन्दर गया।
घर के अंदर जाकर नीचे की मंजिल में जब मैंने माँ और चाची को नहीं पाया तब यह सोच कर की शायद चाची बाज़ार से सामान खरीदने गई होगी, मैं ऊपर की मंजिल अपने कमरे की ओर चल पड़ा। मैं जैसे ही चाची के कमरे के पास पहुँचा तो मुझे कुछ खुसफ़ुसाने की आवाजें सुनाई दी। मैं ठिठक कर रुक गया और दरवाज़े पर कान लगा कर ध्यान से सुनने लगा।
चाची किसी से कह रही थी– अभी तुम परसों ही तो आये थे, फिर इतनी जल्दी कैसे आना हुआ?
किसी आदमी की आवाज सुनाई दी- मेरी जान, आज तो तुम्हारे पिताजी यानि मेरे ताऊजी ने भेजा है यह सामान देकर। और सच कहूँ तो मेरा मन भी तुमसे मिलने के लिए का बहुत आतुर था।
फिर वह बोला- कामिनी डार्लिंग, कल जब से ताऊजी ने बोला यह सामान तुम्हें दे आने को तब से बस यही मन कर रहा था कि कब सवेरा हो और मैं उड़ कर तुम्हारे पास पहुँचूं, तुम्हारी गुद्देदार चूचियों को मुंह में लेकर चूसूँ और अपने लंड तथा तुम्हारी चूत दोनों की प्यास बुझाऊँ।
चाची बोली- तुम अभी परसों ही तो चोद कर गए हो… फिर इतनी जल्दी क्या ज़रूरत पड़ गई।
धर्मेन्द्र बोला- अरे जालिम बहना, तेरी चूत है ही इतनी प्यारी। अगर मेरे बस में होता तो मैं हर वक्त अपना लंड उसी में डाल कर पड़ा रहता। तेरी इन संतरे जैसी चूचियों का शहद तो सारा दिन चूसने का मन करता रहता है।
दोनों की बातें सुन कर मैं समझ गया कि वह चाची का चचेरा भाई धर्मेन्द्र था और घर में कोई न होने का सबसे ज्यादा फायदा यह दोनों ही उठा रहे थे। मैं कुछ और सोचता, इससे पहले चाची की आवाज सुनाई दी- सुनो धर्मेन्द्र, आज जरा चूसा-चुसाई को छोड़ो और जो भी करना है जल्दी से करो। आज जीजी कह रही थी कि वे घर जल्दी वापिस आएँगी क्योंकि भाई जी टूर से आज ही वापिस आने वाले हैं।
धर्मेन्द्र बोला- मेरी रानी, तुम जो हुक्म करोगी और जैसा भी चाहोगी वैसी ही चुदाई का कार्यक्रम बना दिया जायेगा।
उनकी बातें सुन कर मैंने अपने मन में ठान ली कि आज तो मैं उनकी ब्लू फिल्म का सीधा प्रसारण देख कर ही वापिस कालेज जाऊँगा। इसलिए बिना कोई आहट किये मैं अपने कमरे से बाथरूम में जा कर चाची के ओर वाला दरवाज़े को थोडा सा खोल दिया जिससे मुझे उस कमरे के अन्दर का दृश्य साफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था।
शायद उन लोगों को इस बात का एहसास भी नहीं था कि कोई उस समय भी घर पर आ सकता है इसलिए वह दोनों चुम्बन के आदान प्रदान और अपनी रास लीला में मग्न थे। उस समय चाची नीले रंग के ब्लाउज तथा पेटीकोट पहने थी और सिर पर तौलिया लपेटा हुआ था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
शायद वह उसी समय नहा कर आई थी जब धर्मेन्द्र आ गया होगा। धर्मेन्द्र खड़े-खड़े ही दोनों हाथों से ब्लाउज के ऊपर से ही चाची की चूचियों से खेल रहा था। फिर उसने धीरे-धीरे चाची के ब्लाउज के हुक खोल कर उसे शरीर से अलग कर दिया और चाची ने अन्दर जो नीले रंग ब्रा पहन रखी थी उसे भी उतार दिया।
इस बीच धर्मेन्द्र ने चाची के शरीर को चूमते हुए उसके पेटीकोट के नाड़े को खींच दिया और उसे नीचे उसके पैरों के पास गिरने दिया। अब चाची सिर्फ नीले रंग की पैंटी में धर्मेन्द्र के सामने खड़ी थी और वह उसके 34-26-36 पैमाने वाले गोरे तथा मांसल शरीर को ऊपर से नीचे तक मसल एवं चूम रहा था।
धर्मेन्द्र को उसके शरीर को चूमने और मसलने में व्यस्त देख कर चाची बोली- अब तुम चूमा चुसाई करके क्यों देर कर रहे हो? जो करने आये हो वह जल्दी से करो और यहाँ से निकल जाओ। मैंने तुम्हें बताया है न कि जीजी आज जल्दी आने को कह गई हैं। अगर वह आ गईँ तो हमें लेने के देने पड़ जायेंगे।
यह बात सुन कर धर्मेन्द्र जल्दी से नीचे बैठ गया और दोनों हाथों से चाची की पैंटी को पकड़ कर नीचे खींच कर उसे उतार कर कोने में फेंक दिया तथा चाची को बिलकुल निर्वस्त्र कर दिया। इसके बाद धर्मेन्द्र ने चाची को बैड पर लिटाया.
और खुद भी अपने सारे कपड़े उतार कर नग्न हो कर बैड पर चढ़ गया। फिर उसने चाची की दोनों टांगों को पकड़ कर चौड़ा करते ही बोला- क्या बात है जानेमन, आज तो तुमने बड़ी सफाई कर रखी है? परसों तो यहाँ पर झांटों का जंगल उगा हुआ था।
चाची बोली- आज कल गर्मी बहुत होने की वजह मुझे नीचे चूत के पास बहुत पसीना आता था और सारा दिन तथा रात मैं वहाँ खुजली करती रहती थी। इसीलिए मैं अभी-अभी नहाते हुए इन्हें साफ़ करके ही आई हूँ।
धर्मेन्द्र बोला- कोई बात नहीं मेरी जान। इस काम के लिए तो मैं हमेशा तुम्हारी सेवा में हाज़िर हूँ। अभी तुम्हारी चुदाई करके तुम्हारी चूत की गर्मी ठंडा करता हूँ और सारी खुजली मिटा देता हूँ।
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यह कहते हुए धर्मेन्द्र अपना मुंह चाची की चूत पर ले गया और जीभ से उसको चाटने लगा और उसकी फांकों में से रिसने वाले रस को चूसने लगा। चाची धर्मेन्द्र द्वारा करी जाने वाली इस चुसाई से मस्त होने लगी और सिसकारियाँ लेते हुए अपनी कमर को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगी।
पांच मिनट चुदाई करने के बाद धर्मेन्द्र उठा और अपने अध-खड़े लंड को चाची की चूत पर घिसने लगा जिससे उसका लंड एकदम से सख्त हो कर खड़ा हो गया। तब धर्मेन्द्र जल्दी से चाची की टांगों के बीच में घुटनों के बल बैठ गया और अपने लंड को उनकी चूत के मुहाने पर लगा कर उसे एक ही झटके में पूरा का पूरा चाची की चूत के अंदर डाल दिया।
चाची ने एक हलकी सी सिसकारी भरी और धर्मेन्द्र के अगले कुछ धक्कों के बाद ही उन्होंने हर धक्के का जवाब अपने कूल्हे उठा कर धक्कों से ही देने लगी। लगभग 20-22 तेज़ धक्के मारने के बाद धर्मेन्द्र ने अपनी गति बढ़ा दी और बहुत तेज़ धक्के लगते हुए बोला- मेरी रानी, आज तो तुम्हारी चूत बहुत टाइट हो रखी है और मेरे लंड को बहुत रगड़ मार रही है। अच्छा अब मैं झड़ने वाला हूँ इसलिए अपने को संभालो और जल्दी से मेरे साथ ही झड़ जाओ।
चाची बोली- मेरे राजा, मैं भी आने वाली हूँ। तुम जल्दी से आ जाओ मेरे राजा। मैं एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने दूँगी।
इसके बाद धर्मेन्द्र ने 6-7 अत्यधिक तीव्र गति से धक्के मारे और चाची के साथ खुद भी झड़ गया तथा पस्त होकर उसके ऊपर ही लेट गया। इस सीधे प्रसारण की समाप्ति के होने तक मेरा हथियार भी पैन्ट में तन कर खड़ा हो गया था।
उस समय मेरा मन तो कर रहा था कि मैं अन्दर जाकर धर्मेन्द्र को वहाँ से हटा दूँ और खुद मोर्चा सम्भाल कर चाची की चूत का बाजा ही बजा दूँ। लेकिन समय की नजाकत को समझते हुए मैंने वहाँ से निकल जाने में ही अपनी भलाई समझी और तुरंत बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया तथा लाइब्रेरी की किताब उठा कर घर से बाहर निकल गया।
अगले पीरियड के शुरू होने से पहले मैं कॉलेज तो पहुँच गया था, लेकिन वहां मेरा मन बिल्कुल नहीं लगा और चाची तथा धर्मेन्द्र की चुदाई का दृश्य मेरी आँखों के सामने घूमता रहा। पीरियड के अंत होने पर जब मैं कॉलेज से घर वापिस पहुँचा तब देखा कि धर्मेन्द्र जा चुका था तथा चाची भी कपड़े बदल कर हरे रंग की चमकली साड़ी पहने बैठक में टीवी देख रही थी।
मैं चुपचाप ऊपर अपने कमरे की ओर बढ़ने लगा, तभी रसोई में काम कर रही मम्मी एकदम से पलटी और मुझे देख कर बोली- अरे अमन क्या हुआ? तू जल्दी कैसे आ गया? अभी तो सिर्फ दो ही बजे हैं? मैंने उत्तर दिया- कुछ नहीं मम्मी, एक प्रोफ़ेसर नहीं आये थे इसलिए अंतिम पीरियड खाली थे और मेरे सिर में थोड़ा दर्द हो रहा है तथा मुझे कुछ कमजोरी भी महसूस हो रही है।
मम्मी बोली- शायद रात को देर तक पढ़ने से नींद पूरी नहीं हुई होगी इसी कारण से ऐसा लग रहा होगा। मैं तेरे लिए चाय बनाकर लाती हूँ, पीकर तुम आराम कर लेना, जल्दी ही आराम महसूस होगा।
चाय पीकर मैं लेट गया लेकिन आँखे बंद करते ही फिर वही दृश्य एक चल-चित्र की तरह मेरी आँखों के सामने तैरने लगे। मेरी आँख लगने ही वाली थी कि मम्मी की आवाज सुनाई दी- कामिनी, मैं जरा बाहर जा रही हूँ, छः बजे तक आ जाऊँगी। अमन की तबियत ठीक नहीं है तुम कुछ देर उसके पास ही बैठ जाना।
चाची बोली- अच्छा जीजी, आप निश्चिन्त हो कर जाइए, मैं अमन को देखती रहूंगी।
मम्मी और चाची की बात सुनते ही मेरे मन का शैतान जाग उठा और मैंने सोचा कि चाची को सेट करने के लिए यही सब से बढ़िया मौका था। मैंने फ़ौरन अपने सारे कपड़े बदल कर सिर्फ लुंगी तथा बनियान पहन कर चाची की इंतज़ार में बैड पर लेट गया।
थोड़ी देर के बाद चाची आई और मुझसे पूछा- अमन तुम्हें क्या हुआ? सुबह तो तुम बिल्कुल ठीक थे?
मैं बोला- चाची ऐसा कुछ चिंता करने की बात नहीं है, थोड़ा सिर में दर्द कर रहा है और शरीर भी टूट रहा है।
चाची मेरे सिरहाने बैठती हुई बोली- अमन, आ मैं तेरा सिर दबा देती हूँ इससे तुम्हे कुछ आराम मिलेगा और नींद भी आ जाएगी। जब सो कर उठोगे तब अपने आप को ठीक एवं तरो-ताज़ा महसूस करोगे।
इतना कह कर उन्होंने मेरा सिर अपनी गोदी में रख लिया और सहलाने एवं दबाने लगी। कुछ देर लेटे रहने के बाद मैंने चाची से कहा की मेरे कन्धों के जोड़ों में बहुत दर्द हो रहा है इसलिए कृपया आप थोड़ा वहाँ पर भी दबा दें।
चाची ने जब मेरे कंधे दबाने शुरू किये तब मैंने धीरे से अपना दायाँ बाजू उठा अपने माथे पर रख दिया और जब वह कन्धा दबाने के लिए आगे झुकती तब मेरा हाथ उनकी चूचियों से टकरा जाता। जब चाची ने मेरी इस हरकत पर कुछ नहीं कहा तब मेरी हिम्मत बढ़ गयी और मैंने उस हाथ को धीरे-धीरे सरका कर उनकी बायीं चूची पर टिका दिया और अंदाजे से उनके चुचुक को मसल दिया।
मेरी इस हरकत से वह शायद सोते से जागी हो और मेरा हाथ अपनी चूची से हटाते हुए बोली- यह क्या कर रहे हो अमन? बहुत बदतमीज हो गए हो। आने दो तुम्हारी मम्मी को मैं उन्हें इस हरकत के बारे में ज़रूर बताऊँगी। चाची की बात सुन कर और उनके तेवर देख कर एक बार तो मैं डर गया.
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लेकिन हिम्मत करके बोला- चाची, तुम मेरे बारे में क्या बताओगी? आज तो मैं ही तुम्हारे और धर्मेन्द्र के बीच में पकने वाली खिचड़ी का पर्दाफाश कर दूंगा। आज सुबह 11 बजे से 12 बजे के बीच में आपके कमरे में जो कुछ भी हुआ था वह सब कुछ मैंने भी देखा और सुना था।
मेरी कही बात सुन कर चाची के होश उड़ गए तथा उसके चेहरे का रंग सफ़ेद पड़ गया और वह अपना सिर पकड़ कर धम से मेरे बैड पर ही बैठ गई। मैंने अपना तीर निशाने पर लगता देख उसके पास जा कर कहा- यदि तुम मुझे भी खुश कर दोगी तो मैं मम्मी को क्या किसी और को भी कुछ नहीं बताऊँगा।
मुझे नहीं पता था कि चाची ने मेरी बात सुनी या नहीं क्योंकि वह निर्जीव सी हो कर बैड पर बैठी हुई थी। मेरे दिमाग में तो शैतान का वास हो चुका था इसलिए मैंने उन की चुप्पी को मौन स्वीकृति मान कर उनके होंठों पर अपने होंठ रख कर चूमने लगा और उनकी चूचियों से खेलना शुरू कर दिया।
जब कोई विरोध नहीं मिला तब मैंने उनके ब्लाउज के हुक खोल कर उसे उनके बदन से अलग कर दिया और उनकी ब्रा को ऊपर उठा कर उनकी चूचियों को चूसना शुरू कर दिया। फिर धीरे से मैंने एक एक कर के उनके शरीर से सारे कपड़े उतार कर उन्हें पूर्ण नग्न कर दिया और मेरे इस कार्य के लिए चाची ने एक चाबी वाली गुड़िया की तरह निर्विरोध मेरा पूरा साथ दिया।
इसके बाद मैंने उन्हें अपने दोनों हाथों में उठा कर बैड पर सीधा लिटा दिया और उनकी चौड़ी करी हुई टाँगों के बीच बैठ कर उनकी चूत चाटने लगा। शुरू में तो चूत का नमकीन स्वाद थोड़ा अजीब लगा था लेकिन कुछ देर के बाद जब मैं उस स्वाद से अभ्यस्त हो गया तब मैंने मैंने उनकी चूत के होंटों को चाटने लगा।
उसके बाद मैंने अपनी जीभ से उनके भगनासा को मसला और अपनी जीभ को उनकी चूत के अंदर बाहर करके उनके जी-स्पॉट को रगड़ा तब मुझे सब कुछ बहुत अच्छा लगा। चाची की चूत पर मेरे मुँह के आक्रमण से वह उत्तेजित हो उठीं और यह सब उनके शरीर की कंपकंपी और चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्हें बहुत आनन्द मिल रहा था।
चाची की चूत को चाटने से मैं इतना उत्तेजित हो गया की मेरा लंड खड़ा हो कर इतना तन गया की मुझे लगने लगा कि अगर देर करी तो उसकी नसें फट जायेंगी। तब मैं उठ कर अपने को चाची की टांगों के बीच में घुटनों के बज बैठ कर अपने लंड को उनकी चूत के मुहाने पर टिकाया और एक हल्का सा धक्का मार दिया।
क्योंकि मेरा लंड धर्मेन्द्र की अपेक्षा कुछ अधिक मोटा था इसलिए मेरे पहले धक्के से वह चूत के अंदर सिर्फ आधा ही जा सका। चाची के मुँह से एक सीत्कार निकली लेकिन उन्होंने अपने पर काबू कर के चुपचाप लेटी रही और तब मैंने अपनी धुन में ही एक जोर का धक्का मार कर अपना पूरा लंड उनकी चूत में प्रवेश करा दिया।
उनकी चूत में फंस के घुसते हुए मेरे मोटे लंड से हुए दर्द के कारण चाची के मुँह से न चाहते हुए भी एक चीख निकल गई और उन्होंने मुझे कस का पकड़ लिया तथा उनकी आँखें गीली हो गई। चाची को दर्द में देख कर मैं थोड़ी देर के लिए रुक गया और उनकी होंठों, गालो, गीली आँखों और चुचियों को चूमा और फिर उनकी चुचुक को चूसने लगा।
लगभग पांच मिनट रुकने के बाद जब मुझे लगा कि चाची सामान्य हो गयी तब मैं धक्के मारने लगा और किसी स्त्री के साथ पहली बार सेक्स का मजा भी लूटने लगा था लेकिन वह सब था एक-तरफा ही। लगभग 15-16 धक्के मारने के बाद मैंने चाची की चूत में सिकुड़न की लहरें महसूस करीं और मेरा लंड उसमे फंस फंस कर अंदर बाहर हो रहा था।
मैंने धक्के मारने जारी रखे और अभी दो या तीन धक्के ही मारे थे कि चाची के मुख से दबे स्वर में आह्ह्ह… आह्ह्ह… की सिसकारी सुनाई दी। मैंने धक्के मारना रोका नहीं और महसूस किया कि मेरे अगले धक्कों में मेरा लंड आराम से फिसलता हुआ चूत के अंदर बाहर होने लगा क्योंकि चाची की चूत द्वारा छोड़े गए रस से काफी फिसलन हो गई थी।
उसके बाद तो मेरे धक्कों की गति भी तेज़ हो गई और अगले 20-22 धक्कों के बाद मुझे मेरे अंडकोष में कुछ गुदगुदी महसूस हुई और उधर चाची ने एक बार फिर से सिसकारी भरी। देखते ही देखते चाची और मैं दोनों ही एक साथ झड़ गए तथा मेरे वीर्य और चाची के रस का मिलन उनकी चूत के अंदर ही होने लगा।
मैं दस मिनट के लिए पस्त हो कर चाची के ऊपर लेटा रहा और फिर उठ कर बाथरूम गया और अपने को साफ़ किया। जब मैं वापिस कमरे में आया तो देखा कि मेरी गुमसुम चाची अपने कपड़े पहन रही थी। तब मैं उनके होंठों और गालों को चूम कर बैड पर लेट गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
चाची कपड़े पहन कर पता नहीं क्या सोचती हुए मेरे पास ही बैड पर बैठ गयी और मुझे थकावट के कारण शीघ्र ही मेरी आँख लग गई। शाम छः बजे जब मेरी आँख खुली और मैं नीचे की मंजिल पर गया तो देखा कि मम्मी आ चुकी थी।
उन्होंने मुझे देखते ही पूछा- अब तबियत कैसी है?
मैंने उत्तर दिया- पहले से अब तो बेहतर है।
तब माँ ने कहा- बहुत अच्छी बात है कि तुम्हें आराम मिल गया। बैठो, मैं कामिनी को कहती हूँ, वह तुम्हें यहीं चाय दे देगी।
फिर माँ ने ऊँची आवाज़ में बोली- कामिनी, मैं नहाने जा रही हूँ। अमन उठ गया है तुम उसको चाय बना कर दे दो।
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रसोई में से चाची की आवाज़ आई- अच्छा जीजी… कुछ देर के बाद चाची चाय का कप ले कर आई और मेरे सामने रख कर जाने लगी तभी मैंने हाथ बढ़ा कर धीरे से उनकी चूचियों को मसल दिया। वह कुछ भी नहीं बोली और चुपचाप मुड़ कर रसोई में चली गयी तथा अपने काम में व्यस्त हो गई।
चाय पीकर जब मैं रसोई में कप रखने गया तो देखा की चाची बर्तन धो रही थी और उसकी पीठ मेरे ओर थी। तब मैंने कप देने के बहाने उनकी पीठ से चिपक कर अपने बाजूओं को उनके चारों ओर से आगे करते हुए उन्हें कप पकड़ाया।
उन्होंने जैसे ही मेरे हाथ से कप पकड़ा मैंने उनको अपने बाहुपाश में ले लिया और उनकी दोनों चूचियों को पकड़ कर जोर से मसल दिया। चाची दर्द के मारे आह्ह… आह्ह… कर उठी और बोली- अमन, क्या कर रहे हो, मुझे भी दर्द होती है। इतनी जोर से मसलने के बदले अगर थोड़ा आराम से सहलाते तो दोनों को ही आनन्द मिलता।
चाची की बात सुन कर मैंने बहुत ही आराम से कुछ देर उनकी चूचियों को सहलाया और फिर उनके होंठों को चूम कर अपने कमरे में चला गया। अगले दो दिन शनिवार और रविवार थे और पापा मम्मी घर पर ही रहते थे इसलिए मुझे चाची के साथ कुछ करने के लिए कोई मौका ही नहीं मिला।
क्योंकि सोमवार सुबह तो मुझे कोई मौका नहीं मिलने वाला था इसलिए मैं कॉलेज चला गया और आशा थी कि शाम को थोड़ा जल्दी घर आऊँगा तो अवश्य ही मौका मिल जायेगा। लेकिन शाम को जब मैं कॉलेज से घर आया तो बहुत मायूस होना पड़ा क्योंकि छोटे भाई की कोचिंग समाप्त हो चुकी थी और वह घर पर ही तथा पूरी शाम मुझे अपने कमरे में ही रहना पड़ा।
इसी तरह बृहस्पतिवार तक यानि चार दिन छोटे भाई के घर पर ही होने के कारण मैं चाची के साथ कुछ अधिक नहीं कर सका लेकिन जब भी मौका मिलता था मैं उनकी चूचियों और गालों को ज़रूर मसल देता था। शुक्रवार सुबह जब मैं नाश्ता कर रहा था, तब मम्मी ने बताया कि उसी दोपहर को वह, पापा और छोटा भाई उसके एयर फ़ोर्स में प्रवेश के सिलसिले में बाहर जा रहे थे और रविवार रात तक ही वापिस आयेंगे।
नाश्ता करके जब मैं बर्तन रखने के लिए रसोई में गया तब चाची को बहुत खुश देखा तब मैंने उनके पास जाकर धीरे से उनकी चूचियों को मसलते हुए उनकी ख़ुशी का कारण पूछा लेकिन वह कुछ नहीं बोली और चुपचाप अपने काम में लगी रही। उस दिन मैं कॉलेज से दोपहर दो बजे ही लौट आया तो देखा कि चाची ने फिरोजी रंग की साड़ी पहन रखी थी, हल्का सा मेक-अप भी कर रखा था।
मुझे देखते ही चाची बोली- आ गए अमन। चलो जल्दी से हाथ मुंह धो लो, साथ बैठ कर खाना खायेंगे।
उनके बदले हुए रूप को देख कर मैं चकित रह गया क्योंकि जब से मैंने उनकी चुदाई की थी तबसे वह मुझसे बात ही नहीं करती थी। मैं फ्रेश होकर जब टेबल पर आया और हम दोनों खाना खाने बैठे तब मैंने देखा की सारा खाना मेरी पसंद का ही था।
खाना खाते हुए मैंने चाची से पूछा- मम्मी पापा किस समय गए?
चाची बोली- वे दोपहर का खाना खाकर एक बजे गए हैं।
मैं बोला- क्या तुम्हें पता था कि वे सब इतने दिनों के लिए बाहर जा रहे हैं?
चाची बोली- हाँ, जीजी ने रात को ही मुझे अपना सारा कार्यक्रम बता दिया था।
मैं बोला- क्या इसीलिए तुम सुबह खुश थी?
चाची बोली- हाँ, मुझे ख़ुशी थी कियोंकि मुझे तुम्हारे साथ अकेले रहने के लिए ढाई दिन और दो रातें मिल रहे थे।
मैंने कहा- इन ढाई दिनों के लिए तुम अपने मायके जा कर धर्मेन्द्र के साथ भी बिता सकती थी?
मेरी व्यंग्य को सुन कर वह बोली- देखो अमन, मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ कि मुझे सेक्स करना बहुत पसंद है लेकिन तुम्हारे चाचा के जाने के बाद मैं उससे वंचित रह गई थी। इसलिए उनके विदेश जाने के बाद जब तीन महीने के लिए मैं अपने मायके रही थी तब मुझे सेक्स के बिना छह माह से अधिक हो चुके थे।
वहाँ मैं अपनी वासना की आग को बर्दाश्त नहीं कर पाई और इसलिए मैंने धर्मेन्द्र को सेक्स के लिए लुभा लिया और उससे चुदाई करवाती रहती थी। मेरे आग्रह पर वह मेरी वासना को शांत करने के लिए सप्ताह में एक दिन यहाँ आ कर मुझे चोद जाता था।
फिर कुछ क्षण रुक कर उसने अपनी बात को जारी रखते हुए वह बोली- लेकिन उस दिन जब तुमने मुझे जबरदस्ती चोदा था तब मुझे तुम्हारा मोटा और सख्त लंड बहुत पसंद आया। जो आनन्द और संतुष्टि तुमने मुझे उस दिन दी थी वह आज तक ना तो तुम्हारे चाचा और ना ही धर्मेन्द्र मुझे दे सका था।
पिछले छह दिनों में जब तुम्हें मौका मिलता था, तुम मुझे चूम और मसल कर तड़पता छोड़ जाते थे और मैं अपनी अतृप्त वासना की आग में जल कर रह जाती थी। तुम्हारे साथ इस घर में इन आने वाले दिनों में अपनी अतृप्त वासना की तृप्ति होने की आशा के कारण मैं खुश थी।
अब मेरा तुम से अनुरोध है कि अगले ढाई दिन और दो रातों में अपनी इच्छा अनुसार मुझे चोद कर मेरी वासना की आग को शांत कर के मुझे तृप्ति प्रदान कर दो। खाना पूरा होते ही मैंने उठते हुए कहा- तो फिर देर किस बात की है? चलो, पहली शिफ्ट अभी लगा लेते हैं।
चाची खुश होते हुए बोली- ठीक है, तुम बाहर के दरवाजे की कुण्डी लगा दो, तब तक मैं टेबल साफ़ कर देती हूँ।
मैं फ़टाफ़ट कुंडी लगा कर कमरे में पहुंचा तब तक चाची भी आ गई और मुझसे लिपट कर अपनी बाँहों में जकड़ लिया। मैंने उनके होंटों पर अपने होंट रखे दिए और हम दोनों धीरे-धीरे एक दूसरे के होंटों तथा जीभ की चूमने एवं चूसने लगे।
दस मिनट के बाद मैंने उनके और उन्होंने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए और कुछ ही मिनटों के बाद हम दोनों बिलकुल निर्वस्त्र एक दूसरे से चिपटे हुए थे। फिर हम दोनों बैड पर 69 की अवस्था में लेट गए और मैं उनकी चूत को खीर की कटोरी समझ कर चाटने लगा तथा वह मेरे लंड को लॉलीपोप की तरह चूसने लगी।
चाची मेरे लंड को चूसती जा रही थी और कहती जा रही थी- मेरे राजा, चूसो जोर से चूसो मेरी चूत को, खा जाओ इसे।
काफी देर तक ऐसे ही चलता रहा और फिर चाची की चूत ने पानी छोड़ दिया जिसे मैंने चाट लिया तथा मेरे लंड ने भी वीर्य की धार छोड़ दी जिसे चाची बहुत चाव से शहद समझ कर पी गई। उसके बाद आधे घंटे तक हम दोनों एक दूसरे से चिपके हुए तथा एक दूसरे के गुप्तांगों को मसलते हुए लेटे रहे।
जब हम दोनों फिर से उत्तेजित होने लगे तब हमने 69 की अवस्था में चूत और लंड को चाट एवं चूस कर कुछ ही मिनटों में चुदाई के लिए तैयार हो गए। तब चाची ने मुझे बैड पर लिटा दिया और मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर लगाया और उस पर बैठ कर उसे पूरा का पूरा अपनी चूत में समां लिया।
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इसके बाद वह उछल उछल कर चुदाई करने लगी और जब उसके चूत में हलचल एवं खिंचावट होती तब जोर जोर से सिसकारी भरती और पानी छोड़ देती। बीस मिनट तक चुदाई करके जब वह थक गई तब नीचे लेट गई और मैं उनके ऊपर चढ़ गया और बहुत ही तेजी से उसकी चुदाई करने लगा। उस तेज़ चुदाई को दस मिनट ही हुए थे की चाची जोर से चिल्लाई- आईईई ईई… अमन मैं आने वाली हूँ तुम भी जल्दी से आ जाओ! साथ साथ झड़ने में बहुत ही आनन्द आता है और दोनों को पूर्ण संतुष्टि भी मिलेगी।
चाची की बात सुन कर मैं बहुत उत्तेजित हो गया और तेज़ धक्के लगाने लगा तभी मेरा लंड उनकी चूत के अंदर ही फूल गया और उनके साथ मैं भी उनके अन्दर ही झड़ गया। हम दोनों थक गए थे इसलिए उसी तरह एक दूसरे से लिपटे हुए सो गए और शाम के छह बजे ही उठे! उन ढाई दिन और दो रातों में हम दोनों ने दसियों बार चुदाई करी! उसके बाद आज तक हमें जब भी कभी मौका मिलता था हम दोनों अपनी वासना की आग को शांत कर लेते थे।
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