Gulabi Chut Sex
मैं अपने माँ पापा की इकलौती संतान हूँ, मेरे पापा का गांव में खुद का बहुत बड़ा बिज़नेस है। मेरी हाइट 5’4″ है, रंग गोरा है, आँखें नशीली हैं, गुलाबी उभरे हुए गाल है, मखमली होंठ है, मेरे बाल लंबे हैं, लंबी नुकीली नाक है, छाती 34 की कमर 28 और नितम्ब 35 के हैं। मैं अपनी कमर में एक चांदी की चैन पहनती हूँ, पैरों में पायल और नाक में छोटी सी नथ पहनती हूँ। Gulabi Chut Sex
बारहवीं की परीक्षा होने के बाद मेरा रिजल्ट आया। अच्छे मार्क्स होने की वजह से मेरा अच्छे कॉलेज में कॉमर्स शाखा में एडमिशन मिलना तय था। मैंने और मेरे परिवार ने दो तीन कॉलेज शॉर्टलिस्ट किये थे। बहुत सोचने के बाद मेरी माँ ने शहर के एक कॉलेज में मेरा एडमिशन कराने का फैसला किया।
उसकी दो वजह थी, एक तो उस शहर में मेरी मौसी रहती थी तो मुझे रहने की कोई प्रॉब्लम नहीं थी। और दूसरी बात के मेरी दादी अक्सर बीमार रहती थी तो मेरी मौसी हमेशा उसकी देखभाल करने गांव चली जाती थी, मेरे वहां होने से उनके पति के खाने पीने की टेंशन दूर हो जाती और मौसी भी ठीक से दादी का ख्याल रख पाती।
फिर एक दिन मैं और पापा एडमिशन लेने के लिए शहर आ गए। रात को ट्रेन में बैठ गए और सुबह शहर पहुँच गए। मेरे मौसी के पति जिन्हें मैं कर्नल अंकल बुलाती थी वह हमें लेने स्टेशन पर आ गए। फिर हम तीनों घर गए वहाँ फ्रेश हो कर कॉलेज एडमिशन लेने पहुंच गए, एडमिशन होने के बाद हम घर वापिस आ गए।
हम सबने रात का खाना साथ में खाया, फिर पापा उसी रात की गाड़ी से वापस गांव चले गए। मेरी मौसी स्कूल में टीचर थी पर दादी की बीमारी की वजह से उन्होंने स्वेच्छा से रिटायरमेंट ले ली, मौसाजी आर्मी में कर्नल रह चुके थे और अब रिटायर हो गए थे। उनका एक बेटा था उसकी शादी हो गयी थी, वो और उसकी बीवी दोनों अमेरिका में बस गए थे।
शहर में आने के बाद मैं, मौसी और मौसा जी पहले दो तीन दिन शहर घूमे, वाटर पार्क गए बहुत एन्जॉय किया। फिर अगले हफ्ते से मैंने कॉलेज जॉइन किया और धीरे धीरे शहर की जिंदगी में घुलमिल गयी। कर्नल अंकल की वजह से घर का माहौल बहुत स्ट्रिक्ट था।
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समय पर कॉलेज जाना, समय पर वापस आना, वो मेरी पढ़ाई पर भी काफी ध्यान देते थे। इस बीच दो तीन महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला, मौसी भी दो तीन बार छह सात दिन के लिए दादी के घर भी गयी थी। मैं शहर आयी उसी दौरान मौसी ने एक नौकरानी मीना को काम पर रखा था, जिस वजह से मुझ पर काम का कोई बोझ ना पड़े और मेरी पढ़ाई अच्छे से हो सके।
पर जिस लड़की को हफ्ते में तीन चार बार चुदने का चस्का लगा हो उसको बिना चुदे नींद कैसे आएगी। मुझे अपने तीन चार बायफ़्रेंडस के मोटे लंड चुत में लेने की आदत सी हो गयी थी। कर्नल अंकल के स्ट्रिक्ट स्वभाव की वजह से मेरा लैंगिक कुपोषण हो रहा था। मेरी जवान बुर को लंड की जरूरत थी और वह ना मिलने से मैं मायूस रहने लगी थी।
चुत में लगी आग को सहन ना होने के पर मैं स्टडी टेबल से उठ कर सीधा बाथरूम में गयी। क्या दिन थे जब मैं मेरे बॉयफ़्रेंडस के साथ होटल के बाथरूम में शावर के नीचे भी चुदती थी और क्या आज का दिन है, मेरी चुत को तुरन्त लंड की जरूरत थी। चुदाई के ख्याल आते ही मैंने पहनी हुई नाईटी उतार दी, अंदर पहनी हुई डिजाईनर ब्रा और पैंटी में बहुत मादक लग रही थी।
ब्रा से बाहर निकलने को बेताब हो रहे मेरे स्तनों को आईने में देख कर मैं खुद ही उनको ब्रा के ऊपर से मसलने लगी, जोश मैं मैंने ब्रा का हुक निकाल दिया। मेरा दूसरा हाथ अपने आप ही मेरी पैंटी में घुस गया और मैं अपनी उंगली चुत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी।
धीरे धीरे मुझे पैंटी भी चुभने लगी, मैंने उसे भी उतार दिया। मैं बाथ टब में बैठ कर पूरे जोश में चुत में उंगली करने लगी, पर मेरी नाजुक उंगलियाँ मुझे वह सुख नहीं दे रही थी जो एक मजबूत लंड देता है। पर लंड ही तो नहीं था मेरे पास तो उंगली से ही मेरी चुत में लगी आग को शांत करने लगी, पर आग शांत होने का नाम नहीं ले रही थी।
क्या करूँ समझ नहीं आ रहा था, चुत की आग बढ़ने ही लगी थी, उसको लंड या लंड जैसी कोई चीज चाहिए थी। पर क्या??? कुछ समझ नहीं आ रहा था, बड़ी बैचनी हो रही थी। कुछ तो करना बहुत जरूरी था, अंदर क्या डालूं जिससे लंड वाली फीलिंग आये?
मैं सोच ही रही थी कि तभी मुझे ख्याल आया अंकल आज ही बाजार से कुछ सब्जियां लाये हैं। येस… येस… वह चीज बिल्कुल लंड के जैसी थी, और उसको मैं आराम से मेरी बुर के अंदर डाल सकती थी। मैंने झट से पैंटी पहनी, ब्रा ढूंढी पर कहाँ फेंकी थी, पता ही नहीं चला तो बिना ब्रा के ही गाउन पहन लिया।
मन तो कर रहा था कि नंगी ही किचन में चली जाऊँ और फ्रिज से वह चीज लेकर के रूम में आऊँ, घर में अंकल और मेरे अलावा कोई भी नहीं था, और अंकल भी जल्दी ही सोते हैं। पर रिस्क न लेते हूए मैंने कपड़े पहन लिए। बाथरूम से बाहर आकर जैसे ही मैंने बेडरूम के बाहर कदम रखा, ठंडी हवा की लहर मेरे बदन को छू गयी।
एक तो बाहर बारिश हो रही थी और दूसरी के मेरा गाउन बहुत छोटा था, कंधे पर दो स्ट्रिप्स थे और गाउन लगभग मेरी जांघों को ही ढक पा रहा था। अंदर ब्रा नहीं थी तो उस पतले से कपड़े के अंदर मुझे बहुत ठंड लग रही थी। उस ठंड से मेरी कामुकता तो और ही बढ़ रही थी।
बाहर आकर मैंने दीवार पर देखा तो घड़ी में बारह बजे थे। मैं तेजी से रसोई में गयी, बाहर के स्ट्रीट लाइट की रोशनी कांच की खिड़की से अंदर आ रही थी तो रसोई में काफी रोशनी थी। तो लाइट जलाने की जरूरत नहीं थी, वैसे भी मुझे फ्रिज से वह चीज ले कर के मेरे रूम में भागना था।
मैंने फ्रिज का दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही अंदर की ठंडी हवा मेरे बदन से टकराई और मेरा बदन ठंड से कांपने लगा। मैंने झट से नीचे झुकते हुए सब्जी का ड्रावर खोला, थोड़ी देर ढूंढने के बाद आखिरकार मुझे वह चीज मिल ही गयी। खीरा… आज ही बाजार से लाया गया था और धोकर फ्रिज में रखा गया था, उनमें से एक मैंने उठा लिया।
बिल्कुल सीधा और मोटा… एक बार मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, अब वही मेरी लंड की जरूरत को पूरी करने वाला था। उसको चुत के अंदर बाहर करने के बाद मुझे चुदाई वाली फीलिंग आने वाली थी, यही सोच कर मैं खुश हो रही थी। उसी खुशी में उस खीरे को मैं अपनी जीभ से चाटने लगी, जैसे कि वह खीरा न हो लंड ही हो।
चाटते हुए मैं अपने मुँह को खोल कर खीरे को चूसने लगी जैसे मानो उस लंड रूपी खीरे को ब्लो जॉब दे रही हो। खीरे को लेकर के मैं झट से अपने रूम में जाने वाली थी पर उसको देख कर मुझे कंट्रोल नहीं रहा और किचन में ही उसको मुँह में लेकर चूसने लगी। उत्तेजना में मैं खीरे को मुँह में से निकालकर अपने जांघों पर रगड़ने लगी।
उसका वह ठंडा स्पर्श मेरी उत्तेजना और बढ़ाने लगा। मैंने खड़े खड़े ही अपने पैर फैला दिए और खीरे को पैंटी के ऊपर से ही चुत पर रगड़ने लगी। जैसे जैसे उसको चुत पर घिस रही थी मुझे अलग ही उत्तेजना महसूस हो रही थी। वह खीरा मुझे पागल करने लगा था, धीरे से पैंटी के कपड़े को मेरी चुत से अलग करके मैं खीरे को अपने चुत की दरार पर घिसने लगी, अब मुझे कंट्रोल करना मुश्किल हो गया।
मैं अपने पैर फैलाकर खीरे को अपनी चुत के अंदर दबाने लगी तो मेरे रोंगटे खड़े होने लगे। उसी प्रयास में मैंने अपनी नाईटी ऊपर उठायी, फिर पैंटी को कमर से नीचे सरकाते हुए घुटनों के नीचे ले गयी और उतार दी। अब खीरे का रास्ता साफ था मैंने पैर फैलाकर एक हाथ से मेरी चुत की दरार को खोल दिया और दूसरे हाथ से खीरे को मेरी चुत में घुसाने लगी।
“आहऽऽऽ… ऊई माँऽऽऽ… हम्म…”
खीरा चुत में घुसते ही उसके ठंडे स्पर्श की वजह से मैं सिसक उठी, धीरे धीरे उसका चुत में घुसाते वक्त मुझे काफी उत्तेजना महसूस हो रही थी। पिछले तीन चार महीने से चुत में लंड नहीं घुसा था, और खीरा लंड से थोड़ा मोटा था तो अंदर जाते वक्त मेरी चुत को फैला रहा था, मैं कामज्वर से पागल हो रही थी।
धीरे धीरे मैंने आधे से ज्यादा खीरे को अपनी चुत में घुसाया, फिर चुत को सिकोड़ते हुए अंदर लंड को महसूस किया। यह आईडिया मुझे पहले क्यों नहीं आया था, वह खीरा मेरी चुत को लंड वाली फीलिंग दे रहा था। मैं दोनों पैरों को करीब लाते हुए खड़े खड़े दाये पैर की उंगलियों पर खड़ी हुई. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर एड़ी को नीचे लाते हुए बांयें पैरों की उंगलियों पर खड़ी हुई, मेरी जांघें एक दूसरे से रगड़ने लगी थी पर उस खीरे के मेरी चुत की दीवारों से घिसने से अजीब से सुरसुराहट हुई। न चाहते हुए मैं अपनी आँखें बंद करते हुए दोनों पैरों से कदमताल करने लगी- दाहिने बायें… दाहिने बायें… स्कूल की परेड को याद करते हुए मैं खड़े खड़े ही कदमताल कर रही थी, उस वजह से खीरा चुत की दीवारों पर घिसते हुए अजीब सा सुख दे रहा था।
पैर करीब होने से वह मेरी चुत के दाने को भी रगड़ खा रहा था, कदम ताल की वजह से खीरा धीरे धीरे नीचे की ओर सरक रहा था और अंत में चुत से सटक कर जांघों से नीचे गिर गया। मैंने नीचे झुकते हुए उसको उठा लिया, फ्रिज की रोशनी की वजह से खीरे पर लगा मेरी चुत का रस चमक रहा था। मैं फिर से उसे अपने चुत में घुसा कर कदमताल करने लगी, वो फीलिंग मुझे सातवें आसमान पर ले जा रही थी।
“शुभांगी बेटा, आर यू ओके?”
“शुभांगी बेटी, तुम ठीक तो हो ना…”
“शुभांगी बेटा, आर यू ओके?”
अचानक मेरे कान पर मर्दाना आवाज पड़ी, आवाज की तरफ देखा तो रसोई के दरवाजे पर मौसाजी खड़े थे। उनको देख कर मुझे धक्का सा लगा, हे भगवान क्या देखा उन्होंने, मुझे उनकी तरफ देखना भी मुश्किल हो रहा था। जी तो कर रहा था कि ये जमीन फट जाये और मैं उसमें समा जाऊँ।
“शुभांगी बेटा, तुम ठीक तो हो ना…?”
फिर से उनकी आवाज कान पर पड़ी और मैं होश में आ गयी। बाहर की लाइट की हल्की रोशनी में मुझे मौसाजी का चेहरा साफ साफ दिख रहा था। उनके चेहरे पर कुछ भी भाव नहीं थे, मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि वे कब आये थे, अभी या थोड़ी देर पहले… उन्होंने कुछ देखा ही नहीं… या ‘देख कर भी कुछ ना देखा हो’ ऐसी एक्टिंग कर रहे थे? कुछ भी पता नहीं चल रहा था।
“शुभांगी बेटा, तुम ठीक हो ना… इतनी रात गए फ्रिज के सामने क्या कर रही हो?” उनकी आवाज से मैं फिर से होश में आयी.
उनकी आंखों में अजीब सी चमक दिख रही थी… पर क्यों?
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फिर मैंने अपनी अवस्था पर ध्यान दिया। मैं मौसा जी के सामने बिल्कुल छोटी सी नाईटी में थी, अंदर ब्रा भी नहीं पहनी थी इसलिए उनको मेरे उभारों का आकार ठीक से नजर आ रहा था। फ्रिज की रोशनी में मेरा पूरा बदन चमक रहा था और उत्तेजना में खड़े हुए मेरे निप्पल का आकार नाईटी के ऊपर से नजर आ रहा था। शायद इसलिए उनकी आँखों में चमक थी।
उस ख्याल से मेरा बदन थरथराने लगा, मैंने झट से फ्रिज का दरवाजा बंद कर दिया। उसी वक्त मेरी जांघों में खीरे ने मेरी चुत के दाने को रगड़ा और एक अलग ही उत्तेजना पैदा हो गयी। उसकी ऐसी किक मिली के मैं आँखें बंद करके उस पल का मजा लेने लगी, मौसा जी को सामने देख कर डर से ही सही मेरी चुत ने अपना बांध छोड़ भी दिया था।
“शुभांगी बेटा… तुम ठीक तो हो ना?”
अचानक मेरे कंधों पर मौसा जी के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ, मैंने पलट कर देखा तो मौसाजी पीछे ही खड़े थे।
“रिलैक्स बेटा… क्या हो रहा है तुम्हें?” वे मेरे कंधे को सहलाते हुए बोले।
“क… क… कुछ… न… नही अंकल!”
वे मेरे कंधे को प्यार से सहला रहे थे पर मैं तो उस मर्दाना स्पर्श से और भी उत्तेजित हो रही थी। उस वक्त मेरे प्यासे शरीर को किसी मर्द के स्पर्श की बहुत जरूरत थी।
“इतनी क्यों डरी हो, ठंड लग रही है क्या तुम्हें?” मौसा जी ने पूछा.
मैंने सिर हिलाकर हामी भरी, क्या बोलूं… मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
मेरे हाँ के इशारे पर उन्होंने अपनी शाल उतारकर मेरे बदन पर लपेट दी।
“इतनी क्यों डरी हो? इतनी रात को फ्रिज में क्या ढूंढ रही हो?” वे मुझे शाल लपेटते हुए बोले।
मैंने ठीक से शाल ओढ़ ली, शाल की वजह से मेरे स्तन को तो ठीक से ढक लिया पर मेरी जांघें अभी भी उनके सामने नंगी थी।
“त… त..थैंक्स अंकल!”
शायद मेरी उसी अवस्था की वजह से उन्होंने मुझे शाल ओढ़ने को दी थी। मौसा जी बहुत स्ट्रिक्ट थे पर उतने ही केयरिंग थे इसलिये यहा आने के एक दो हफ्ते में ही हम अच्छे दोस्त बन गए थे। उन्होंने शाल मुझे दी पर मेरी नजर उनके हाफ टी शर्ट से बाहर दिख रहे उनके डोलों पर पड़ी। क्या हो रहा था, कुछ समझ नहीं आ रहा था, उस समय मुझे एक मर्द की सख्त जरूरत थी.
इसलिए सामने खड़े मेरे मौसाजी की ओर मैं आकर्षित होती जा रही थी, और नीचे मेरी चुत में घुसा पड़ा खीरा मेरी उत्तेजना और बढ़ा रहा था। मौसा जी लगभग पचास साल के हो गए थे पर हर रोज एक डेढ़ घंटे कसरत करके अपने आपको बिल्कुल फिट रखा था। उनके मजबूत डोले, छाती पर सफ़ेद हो रहे उनके बाल… उस वजह से और भी आकर्षक दिख रहे थे।
“शुभांगी तुम ठीक हो ना, इतनी रात को क्या ढूंढ रही थी फ्रिज में?” मौसा जी ने फिर से मुझे पूछा और मैं होश में आ गयी।
“क… क्… खीरा!” मैं गलती से बोल गई।
“खीरा, क्यों?” उन्होंने कुछ ना समझते हुए मुझे पूछा.
उनके होंठों पर हल्की सी मुस्कान भी थी, मुझे तो यह शक हो रहा था कि उन्होंने मुझे खीरे को मेरी मुनिया में घुसाते हुए देख लिया है.
“हाँ मौसा जी… भूख लगी थी इसलिए खीरा खा रही थी.” मुझे जो सूझा, मैं बोल गयी, उनके होंठों पर मुस्कान और बढ़ गई।
“आज कम खाना खाया था क्या बेटा?” पूछते हुए उनकी नजर कुछ देर के लिए मेरी जांघों के बीच में गयी और मैं डर गई। क्या सचमुच मौसा जी ने सब देख लिया था, शर्म के मारे मैं मरी जा रही थीं, मुझे जल्द से जल्द वहाँ से निकलना था।
“हाँ… भूख लगी थी इसलिये आयी थी, पर आप इतनी रात गए यहाँ कैसे?” मैं खीरे पर से ध्यान हटाने के लिए बोली।
“बेटा, बहुत देर से नींद ही नहीं आ रही थी, इसलिए सोचा एक पेग मार कर देखूँ, किचन में आया तो तुम फ्रिज के सामने खड़ी थी.”
मैं मन ही मन यही प्रार्थना कर रही थी कि मेरी कदमताल उन्होंने ना देखी हो।
“इतनी रात को पेग… तबियत तो ठीक है ना आप की?” मैंने चिंता में पूछा।
“बेटा, सिर्फ पचास की उम्र है तुम तो ऐसे बोल रही हो कि साठ का हो गया हूं, सिर्फ बाल सफेद हो गए है पर बदन में अभी भी उतना ही जोश है.” वे हाथ पर से डोले और बॉडी दिखाते हुए बोले।
“पता है मौसाजी, आप बहुत स्ट्रांग हो!” खुद को ना रोक पाते हुए मैंने अपने हाथ को उनके डोलों पर घुमाए तो अजीब ही सरसराहट हुई।
मैं वैसे ही उनके डोलों पर हाथ फेरते रही, मेरे स्पर्श से मौसाजी भी उत्तेजित हो रहे थे।
“आप बैठो, मैं आपको पेग बना कर देती हूं.” मैंने उनको हेल्प करने के लिए बोला पर ‘खीरा चुत में घुसा पड़ा है.’ बाद में ध्यान में आया।
ओह शिट!
मौसा जी डाइनिंग टेबल के पास चले गए और कुर्सी पर बैठ गए।
ओ शिट… मैंने मौसा जी की तरफ देखा तो उनकी लुंगी में तम्बू बना हुआ था, वे क्यों उत्तेजित हुए थे? शायद उनको मेरी लगभग ट्रांसपेरेंट नाईटी में मेरे दूध दिख गए होंगे, या शायद उन्होंने मुझे कदमताल करते हुए देख लिया होगा। उसी ख्याल से मेरे सब्र का बांध छूटा और चुत का रस खीरे के आजु बाजू से बाहर बहने लगा, वह फीलिंग मुझे पागल बना रही थी, मेरी हवस बढ़ा रही थी.
मैं तो खीरा लेकर के कमरे में जाने के इरादे से आई थी और कहाँ पेग बनाने के चक्कर में फंस गयी, मुझे तो डर लग रहा था कि कहीं खीरा मेरी चुत से फिर से फिसल न जाये, पैंटी उतारी न होती तो उसे खीरे पर लेकर उसको फिसलने से रोक सकती थी। पैंटी का ख्याल आते ही मैंने नीचे देखा तो फ्रिज के बाजू में ही मेरी पैंटी पड़ी थी, मौसा जी को पैंटी दिखे, उससे पहले मुझे उसे उठाना था।
“क्या हुआ बेटा कुछ ढूंढ रही हो क्या?” मौसा जी मुझे बोले तो मैंने डर कर उनकी तरफ देखा और एक पैर पैंटी पर रख कर उसे पैर के नीचे छुपा लिया।
“कुछ न.. नहीं अंकल, मैं आप को पेग बना कर देती हूं.”
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मैं धीरे धीरे चलकर किचन टेबल तक गयी। मैं पैरों को पास पास रखकर चल रही थी जिससे खीरा नीचे गिरे नहीं और पैरों के नीचे से पैंटी भी खींच के ले जा रही थी कि जब भी मौका मिले उसको उठा लूं। पर चलते हुए खीरा मेरी चुत में अजब तरीके से रगड़ खा रहा था और मुझे और उत्तेजित कर रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं गिलास लेने लगी पर वह ऊपर के शेल्फ में था, मुझे डर था गिलास को निकालते वक्त खीरा नीचे न गिर जाए। मैं पैरों की उंगलियों पर खड़ी रहकर प्रयास करने लगी, मेरी हर हलचल से खीरा मेरी चुत की दीवारों पर रगड़ खा रहा था और हर बार अलग उत्तेजना पैदा कर रहा था। अचानक मुझे मेरे नितम्ब पर कुछ कड़क महसूस हुआ, मैंने डर कर पीछे देखा तो मौसा जी मेरे पीछे खड़े थे।
“हाथ नहीं पहुंच रहा था तो बोल देती… मैं निकाल देता हूँ गिलास!”
उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और आगे सरकते हुए शेल्फ से गिलास निकाला, मैं मौसा जी और टेबल के बीच में सैंडविच की तरह दब गई। गिलास निकालते वक्त उनका हथियार मेरे गांड पर मजे से रगड़ खा रहा था, मैं भी बड़े दिनों के बाद मिल रहे लंड के स्पर्श से कामोत्तेजित हो रही थी, भूल ही गयी थी कि यह मेरे मौसा जी का लंड है।
मौसा जी ने गिलास निकाला और सामने रखे ट्रे में रखा, यह करते वक्त उन्होंने अपना पूरा शरीर मेरी पीठ से सटा दिया, मैं उस मर्दाने स्पर्श से और पागल हो रही थी। मैं भी उनका कड़कपन मेरे गांड पर महसूस कर के खुश हो रही थी। उन्होंने अपना लंड मेरी गांड पर अभी भी दबा कर रखा हुआ था।
“और कुछ निकालना है बेटा?” मौसा जी ने पूछा, उनकी गर्म सांसें मेरी गर्दन पर टकरा रही थी और मैं काम-पागल हो रही थी।
“कुछ नहीं अंकल, पर आप को चखने में क्या चाहिए?” मैंने पूछा।
“खीरा!”
मैंने आश्चर्य से पीछे उनकी तरफ देखा, उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।
खीरा बोलते हुए उन्होंने उनका खीरा भी जोर से मेरे नितम्ब पर रगड़ा था। शायद उन्होंने अंडरवियर नहीं पहनी थी, पचास साल के मौसा जी का लंड भी मेरी वजह से खड़ा है सोच कर ही अजीब सी सरसराहट हो रही थी।
“खीरा क्यों अंकल?”
“क्योंकि तुम खा रही थी ना!” मौसा जी अपना लंड मेरी गांड पर दबाते हुए बोले।
“मैं खा रही थी इसलिए क्यों?” मैंने सवाल पूछते हुए मेरी गांड पीछे कर के उनके लंड पर दबा दी। शायद उनको भी यह अहसास हो गया था, मेरी चुत की आग न जाने मुझसे क्या क्या करवा रही थीं।
“क्योंकि वह मीठा है इसलिये!” उनकी उत्तेजना उनकी आवाज से ही समझ में आ रही थी, मैं और भी खुश हो गई थी। पहली बार मैं एक पचास साल के आदमी के साथ कामुक हरकतें करके उनकी कामुकता बढ़ा रही थी।
“बेटा… यह पैर को क्या चुभ रहा है?” उन्होंने पूछा और मुझे याद आया, मेरे पैरों के पास मेरी पैंटी पड़ी थी, मौसा जी के लंड के स्पर्श में, मैं उसे हटाना भूल ही गयी थी।
“कुछ नहीं मौसा जी पौंछा होगा, मैं बाद में उठाती हूँ.” मैं लड़खड़ाते हुए बोली, मुझे जल्द से जल्द उन्हें मुझसे दूर करना होगा।
“खीरा काट कर दूँ मौसा जी?” मैंने पूछा.
“हाँ… और नमक भी लगाकर दो!” कहते हुए उन्होंने अपने हाथ मेरी कमर पर रखे और मेरे मुँह से दबी सी सिसकी निकल गयी।
धीरे धीरे मौसाजी अपना हाथ मेरी गांड पर घुमाने लगे, शायद उनको स्पर्श से ही पता चल गया होगा कि मैंने पैंटी नहीं पहनी है। मेरी तरफ से कुछ भी विरोध न होने पर उनकी हिम्मत और बढ़ गई और मेरे दोनों नितम्बों पर अपने हाथ साफ किये और मैंने भी उनको रोका नहीं।
“थैंक्स फ़ॉर हेल्पिंग बेटा, मेरी इतनी हेल्प पहले किसी ने नहीं की थी!” ऐसा कहते हुए उन्होंने अपने हाथ मेरे बालों पर फिराए।
“मौसी नहीं है तो आप की पूरी जिम्मेदारी मेरी है, आप को क्या चाहिए वह देना मेरा काम है.”
“थैंक्स शुभांगी!” कहकर वे अपने हाथ मेरे गालों पर ले आए और मेरे गालों को सहलाने लगे। एक नाजुक पल हम दोनों के बीच में पैदा हो गया था। मैंने भी अपने हाथ उनके हाथों पर रख दिए, हम दोनों भी एक दूसरे के आँखों में देख रहे थे।
धीरे धीरे मौसाजी अपना हाथ मेरी गांड पर घुमाने लगे, शायद उनको स्पर्श से ही पता चल गया होगा कि मैंने पैंटी नहीं पहनी है। मेरी तरफ से कुछ भी विरोध न होने पर उनकी हिम्मत और बढ़ गई और मेरे दोनों नितम्बों पर अपने हाथ साफ किये और मैंने भी उनको रोका नहीं।
“थैंक्स फ़ॉर हेल्पिंग बेटा, मेरी इतनी हेल्प पहले किसी ने नहीं की थी!” ऐसा कहते हुए उन्होंने अपने हाथ मेरे बालों पर फिराए।
“मौसी नहीं है तो आप की पूरी जिम्मेदारी मेरी है, आप को क्या चाहिए वह देना मेरा काम है.”
“थैंक्स शुभांगी!” कहकर वे अपने हाथ मेरे गालों पर ले आए और मेरे गालों को सहलाने लगे। एक नाजुक पल हम दोनों के बीच में पैदा हो गया था। मैंने भी अपने हाथ उनके हाथों पर रख दिए, हम दोनों भी एक दूसरे के आँखों में देख रहे थे। अचानक ही मौसा जी अपना चेहरा मेरी तरफ लाने लगे वैसे मैं भी मेरा चेहरा उनकी तरफ ले जाने लगी।
मेरा रिस्पांस पा कर मौसा जी अपने होंठ मेरे होठों के नजदीक ले आये। हम दोनों एक दूसरे की गर्म सांसों को महसूस कर सकते थे, मेरी दिल की धड़कन बढ़ गई थी। आगे क्या होने वाला है सोच कर मेरी सांसें ज़ोरों से चलने लगी, पहली बार हम दोनों में यह नाजुक परिस्थिति पैदा हो गई थी।
‘धडाम… धडाम…’ अचानक ज़ोरों से बिजली कड़की, हम दोनों ने चमक कर बाहर की ओर देखा, बाहर ज़ोरों की बारिश हो रही थी, आंधी भी थी। हमने फिर से एक दूसरे के तरफ देखा. मौसा जी जरा पीछे हटे, अच्छा हुआ कि बिजली कड़क गयी, नहीं तो आज मेरा और मौसा जी का चुम्बन हो गया होता!
हे भगवान… मेरे पचास साल के मौसा जी मुझे किस करने जा रहे थे और मैं भी उन्हें साथ देने चली थी। कुछ समय बाद फ्रिज से आइस निकलने की आवाज आई और मैंने फ्रिज की तरफ देखा, हमारी आँखें फिर से मिली और मैं फिर से शर्मा गयी। मैंने कटा हुआ खीरा और गिलास टेबल पर रखा अभी मौसा जी विहस्की की बोतल और बर्फ ले कर मेरे पास खड़े हो गए गए।
“थैंक्स शुभांगी…” कहकर उन्होंने अपना हाथ मेरे कंधे पर रख कर सहलाया।
“गुड नाईट अंकल, ज्यादा मत पियो!” कह कर मैं वहाँ से बाहर चली आयी।
किचन से बाहर निकलते ही मैंने एक दीवार के आड़ लेकर उस खीरे को मेरी मुनिया से बाहर निकाल लिया, उस खीरे ने मेरी जान ही निकाल दी थी। उसी खीरे को लेकर मैं बैडरूम में जाने लगी तो मुझे मेरी पैंटी का ख्याल आया, ओह शिट… पैंटी तो रसोई में ही रह गई है। अगर मौसा जी को वह दिख गयी तो?
मैं झट से पीछे मुड़ी और किचन की तरफ वापिस जाने लगी।
“आह… शुभांगी… आह!”
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मेरे कानों में मौसा जी के दबे हुए सीत्कार पड़े और मेरे पैर वहीं थम गए। बाहर से ही किचन मैं झांक कर देखा तो मेरे होश उड़ गए। अंदर मौसा जी एक कुर्सी पर बैठे थे और अपने दोनों पैर दूसरी कुर्सी पर रख कर लुंगी के ऊपर से ही अपने लंड को सहला रहे थे। उनके दूसरे हाथ में एक स्पेशल चीज थी, वह कुछ और नहीं मेरी ही पैंटी थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वे मेरी पैंटी को अपने नाक के पास ले जाते और उसको सूंघते और दूसरे हाथों से अपने लंड को सहला रहे थे। वैसे देखें तो मुझे वहाँ से निकल जाना चाहिए था पर अब मेरे मन में भी मौसाजी का खीरा देखने की इच्छा होने लगी थी। उनका लंबा लंड मैंने अपने गांड पर दो बार महसूस किया था, पर अब मुझे उसे देखने का लालच था।
‘मौसा जी कब लुंगी खोलेंगे’ इसका इंतजार करने लगी थी। मौसाजी को जैसे मेरी मन की बात पता चल गई और उन्होंने अपनी लुंगी निकाल दी, उनका लंड बिना किसी पर्दे के छत की ओर तन कर खड़ा था। मैं अपने हाथ में पकड़े खीरे से उनके लंड की तुलना करने लगी.
सच में उनका लंड खीरे जितना लंबा और बड़ा था। इस खीरे के ठंडे स्पर्श से कही ज्यादा सुख मौसा जी के गर्म लंड से मिल सकता था, मैं तो अपने मौसा जी का लंड चुत में लेने के बारे में सोचने लगी थी। उनका लंड देख कर मुझे भी कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था और मैंने हाथ में पकड़े हुए खीरे को फिर से मुनिया में डाला और अंदर बाहर करने लगी।
“ओहऽऽऽऽ शुभांगी… मेरी… सेक्सी… शुभांगी…”
सामने मेरे मौसा जी मेरे नाम की माला जपते हुए जोर जोर से मुठ मार रहे थे और दरवाजे के इस पार मैं उनके लंड को देखते हुए मेरी चुत में खीरे को अंदर बाहर कर रही थी। मन तो हो रहा था कि किचन में चली जाऊँ और उनका लंड अपनी चुत में डाल कर लंड पे उछल कूद करूँ, पर बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आपको कंट्रोल किया हुआ था।
“शुभांगी… मैं… आ गया… ओह… शुभांगी!”
मौसाजी अपना लंड जोर से हिला रहे थे और तभी उनके लंड से एक पिचकारी छुटी, ऊपर उड़ते हुए उनके पेट पर जा गिरी। मैं उनके लंड से उड़ते फव्वारे को आँखें फाड़ कर देख रही थी और उतने ही जोश में खीरे को अंदर बाहर कर रही थी, और मेरा भी बांध छुटा और चुत का रस जांघों से होते हुए जहाँ जगह मिली वहाँ पर बहने लगा। एक अलग ही लेवल का ओर्गास्म था वह… उसका पूरा श्रेय मौसा जी का था।
मेरे पैर तक कर लड़खड़ाने लगे और मैंने किसी तरह दरवाजे को पकड़ कर अपने आप को संभाल लिया। कुछ समय बाद मौसा जी भी होश में आ गए और उन्होंने एक ही घूंट में पूरा गिलास खत्म कर दिया, मेरी पैंटी को फिर से अपनी नाक के करीब ले गए और उसकी खुशबू सूंघी। फिर मौसा जी ने मेरी ही पैंटी से वीर्य को साफ किया, मुझसे पहले मेरी पैंटी मौसा जी के वीर्य तक पहुँच गयी थी।
मैं भी दबे पांव वहाँ से निकली और अपने बैडरूम में गयी। थकान के वजह से मैं कब सो गई पता ही नहीं चला। “धुप्प… खल…” अचानक आवाज सुनाई दी और मेरी नींद टूटी. घड़ी मैंने देखा तो सुबह के आठ बजे हुए थे, मुझे कॉलेज जाने में देर होने वाली थी। मैंने नीचे जाकर देखा तो रसोई में मीना कांच के टुकड़े इकट्ठे कर रही थी, मेज पर रखा कांच का जग टूट गया था।
“सॉरी दीदी, मेरे हाथ से छूट गया!” वह रोती हुई सूरत बनाकर बोली।
“कोई बात नहीं मीना… मैं नया लेती आऊंगी!” मैं उसे बोली.
उसने भी रोना बंद किया और साफ सफाई करने लगी। मैंने रसोई के दरवाजे से बाहर की तरफ देखा, मौसाजी बाहर से हमें ही देख रहे थे। वे गार्डन में कुछ काम कर रहे थे, हम दोनों की आँखें मिली तो उन्होंने नजर चुरा ली और वे फिर से अपने काम में लग गए। उनका नजर चुराना मुझे थोड़ा अजीब लगा।
फर्श पर देखा तो मिट्टी भरे पैरों के निशान थे जो गार्डन से अंदर आ रहे थे और वापस भी जा रहे थे, शायद बाहर से कोई अंदर आया था और वापस भी चला गया था। हैरानी वाली बात यह थी कि उन निशानों को पौंछा गया था पर वे ठीक से साफ़ नहीं हुए थे।
मैंने मीना के पैरों की ओर देखा तो उसने पैरों में चप्पल पहनी हुई थी और वो तो साफ थी, मतलब ये उसके पैरों के निशान नहीं थे। मीना की ओर देखा तो उसके कंधे पर भी मिट्टी लगी थी, वह तो रसोई में थी फिर उसके कंधे पर मिट्टी कैसी?
पैरों के निशान भी किसी आदमी के थे और उस वक्त वहाँ पर एक ही आदमी था… मौसा जी… वे अंदर आये थे क्या? फिर वह बाहर क्यों चले गए? मैंने मीना की ओर देखा, उसने घाघरा चोली पहनी थी और ओढ़नी को अपने बालों में फंसाई थी। थोड़ी सी सावली मीना आज पहने हुए फिट ड्रेस में एकदम सेक्सी लग रही थी।
कांच उठाते हुए उसकी पीठ पर से ओढ़नी नीचे गिर गयी और मुझे उसकी पीठ दिखी, उसकी चोली को पीछे से डोरियाँ थी। सबसे ऊपर की डोर खुली हुई थी, बाकी डोरियाँ किसी ने जबरदस्ती खोलने की कोशिश की हो… ऐसा लग रही थी। मुझे मौसा जी पर शक होने लगा, शायद वही बाहर से अंदर आये हों और मीना के ऊपर जबरदस्ती करने लगे हों और उसी में जग गिर गया हो।
पर ऐसा होता तो मीना चिल्लाई होती! मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। वैसे भी मुझे देर हो रही थी इसलिए मैं जल्दी से तैयार हो गयी और कॉलेज चली गई। शाम को कॉलेज से आने के बाद मैं अपने काम में लग गयी, कल का खीरा अभी भी मेरे ही रूम में था तो आज वापिस किचन में जाने की जरूरत नहीं थी। अपनी पढ़ाई खत्म करने के बाद कपड़े उतार कर उसी खीरे से अपनी मुनिया को शांत किया और नंगी ही सो गई।
“धडाड… धूम… धडाड… धूम”
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जोर से बिजली कड़कने की आवाज से मेरी नींद टूटी, मैंने टेबल लैंप चालू किया तभी वापस कुछ टूटने की आवाज आई। मैंने झट से ब्रा पैंटी पहन ली और ऊपर से नाईटी पहन कर रूम के बाहर आई।
“शुभांगी क्या हुआ?” मौसा जी दौड़ कर मेरे पास आते हुए बोले।
“पता नहीं मौसा जी जोर की आवाज हुई… ”
जैसे मौसा जी मेरे पास पहुँचे फिर से जोर से बिजली कड़की, मैंने डरते हुए मौसा जी को पकड़ लिया।
“रिलैक्स शुभांगी… मैं हूं न… ” वे मेरी पीठ सहलाते हुए बोले।
मैं थोड़ा रिलैक्स हो गयी तो मुझे महसूस हुआ वो मेरी पीठ सहलाते हुए मेरे नाईटी के पतले कपड़े के ऊपर से ही मेरी ब्रा की पट्टी को ढूंढ रहे थे, उनकी उस हरकत की वजह से मेरी धड़कन तेज होने लगी थी।
“मौसा जी, क्या हुआ होगा?” मैंने उन्हें पूछा।
“चलो न देखते हैं.” हम दोनों एक दूसरे को बांहों में पकड़े हुए ही दरवाजे की तरफ गए, बाहर देखा तो गार्डन में बड़े पेड़ की एक टहनी नीचे पड़ी थी और उसकी आवाज आई थी।
“अरे… रे… तेज हवा की वजह रे टहनी टूट गयी.” मौसा जी दुखी होते हुए बोले, दो दिन पहले ही उन्होंने उस जगह पर छोटे पौधे लगाए थे।
“मौसा जी, दो दिन पहले ही आप ने वहाँ पर गुलाब के पौधे लगाए थे ना?” मैं उन्हें याद दिलाते हुए बोली।
“हाँ बेटा, टहनी हटानी होगी, नहीं तो पौधे मर जायेंगे.” मौसा जी ने झट से छतरी उठायी और गार्डन में जाने लगे।
“मौसा जी,दो दिन पहले ही आप ने वहाँ पर गुलाब के पौधे लगाए थे ना?” मैं उन्हें याद दिलाते हुए बोली।
“हाँ बेटा, टहनी हटानी होगी, नहीं तो पौधे मर जायेंगे.” मौसा जी ने झट से छतरी उठायी और गार्डन में जाने लगे।
बारिश में खड़े होकर एक हाथ से छतरी पकड़कर दूसरे हाथ से टहनी को हटाने का प्रयास करने लगे, पर एक हाथ से टहनी नहीं हट रही थी इसलिए मौसा जी ने छतरी को बाजू में रख दिया और दोनों हाथों से टहनी को धक्का देने लगे। उनका भीगा टीशर्ट उनके प्रयासों को मुश्किल बना रहा था इसलिए उन्होंने अपना टीशर्ट भी उतार दिया।
बारिश में भीगा हुआ उनका कसरती शरीर को देखकर मैं फिर से उत्तेजित होने लगी। नीचे लुंगी गीली होकर उनके कमर से चिपक गयी थी, लुंगी से उनकी अंडरवियर दिखने लगी थी और उनकी टांगों के बीच बने तम्बू से मेरी आँखों में चमक आ गयी थी। वे पूरी ताकत से टहनी को हिलाने का प्रयास कर रहे थे पर उनकी ताकत कम पड़ रही थी। मैंने आस पास देखा तो वहां दूसरी छतरी नहीं थी तो मैं बिना छतरी के ही उनकी मदद करने उनके पास गयी।
“बेटा तुम क्यों आयी?” मौसा जी ने पूछा।
“अकेले से हिल नहीं रही थी तो मदद करने आ गयी,” मौसा जी ने हा में सिर हिलाया और टहनी धकेलने लगे।
हम दोनों जोर लगा रहे थे पर टहनी हिल नहीं रही थी, मैंने मौसा जी की ओर देखा तो मौसा जी मुझे ही देख रहे थे। उनकी आँखों में वासना भरी थी, मैंने अपनी ओर देखा तो मुझे भी समझ आ गया। नाईटी घुटनों तक लंबी जरूर थी पर बीच में जांघों तक कट था और उसमें से मेरे गोरी जांघें दिख रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
बारिश की वजह से मेरी पतली नाईटी भीग कर पारदर्शी हो गयी थी और उसमें से मेरी ब्रा और पैंटी दिख रही थी, मेरी ब्रा भी गीली होकर मौसा जी को मेरे निप्पल्स और स्तनों का आकार अच्छे से दिखा रही थी। मैंने मौसा जी की ओर देखा तो मौसा जी मुझे ही देख रहे थे। उनकी आँखों में वासना भरी थी, मैंने अपनी ओर देखा तो मुझे भी समझ आ गया।
नाईटी घुटनों तक लंबी जरूर थी पर बीच में जांघों तक कट था और उसमें से मेरे गोरी जांघें दिख रही थी। बारिश की वजह से मेरी पतली नाईटी भीग कर पारदर्शी हो गयी थी और उसमें से मेरी ब्रा और पैंटी दिख रही थी, मेरी ब्रा भी गीली होकर मौसा जी को मेरे निप्पल्स और स्तनों का आकार अच्छे से दिखा रही थी। मैंने उनको मेरी तरफ देखते हुए पकड़ा तो उन्होंने झट से टहनी की ओर देखा और उसे हटाने की कोशिश करने लगे।
“मौसा जी, ये तो हिल भी नहीं रही अब क्या करेंगे?” मैंने थक कर पूछा, मुझे बारिश की वजह से बहुत ठंड लगने लगी थी।
“एक काम करो तुम मेरे पीछे आ जाओ, दोनों एक जगह पे एक साथ धक्का लगाने से हिल जाएगी.”
मैं उनके पीछे जाकर उनसे सट के खड़ी हो गयी। एक साथ धक्का देने से टहनी थोड़ा सा खिसक तो गयी पर मेरा बदन उनके नंगे बदन पर रगड़ने की वजह से मेरी कामवासना जागृत होने लगी। मेरे स्तन उनकी पीठ में घुस गए थे, मुझे पूरा भरोसा था कि अंकल भी उत्तेजित हो गए होंगे।
“शुभांगी… थोड़ा और जोर लगाना होगा, तुम पीछे से ज्यादा जोर नहीं लगा सकती। एक काम करो तुम आगे हो जाओ, मैं तुम्हारे पीछे से जोर लगाता हूँ.” मौसा जी ने मुझे आगे किया और खुद पीछे हो गए। मैं आगे खड़ी होकर थोड़ा झुकते हुए धक्का देने लगी तभी मौसा जी मुझे पीछे से सट कर खड़े होकर धक्का देने लगे। मौसा जी के लंड ने मेरे नितम्बों से रगड़ खाया और मेरा पूरा बदन थरथरा उठा।
“आहऽऽऽ अंकल… ” मैं सिसक उठी तो मौसा जी ने पूछा- क्या हुआ शुभांगी?
“कुछ नहीं मौसा जी थोड़ा और जोर लगाना होगा!”
उन्होंने टहनी पर जोर लगाने के बजाय मेरी कमर पर ही जोर लगाया और मैं फिर से सिसकार उठी। मौसा जी ने उसे मेरी सहमति समझ कर मेरी गर्दन पर अपने होंठ रख कर चूमने लगे। कल रात के बाद फिर एक बार उनका लंड मेरी नितंब को छू रहा था पर इस बार उसके साथ साथ मेरी गर्दन पर उनके होंठों का स्पर्श भी हो रहा था।
“मौसा जी प्लीज…” मैं मना करने लगी तभी उनके सख्त हाथ मुझे मेरे स्तनों पर महसूस हुए। वे मेरे स्तनों को बेदर्दी से मसलने लगे तो मैं भी गर्म होने लगी।
“अंकल… आहऽऽऽ… मत करो!” मैं उनका विरोध कर रही थी पर शायद उन्हें भी यह पता चल गया था कि उस वक्त मेरे शरीर को उनके सख्त हाथों के स्पर्श की बहुत जरूरत थी।
मेरे मदमस्त स्तनों को मसलते हुए अंकल मेरे नितम्बों के बीच अपना लंड घिस रहे थे। ज़ोरों से हो रही बारिश में हम दोनों भीग रहे थे पर हमारी कामुकता पल दर पल बढ़ रही थी। फिर मौसा जी एक हाथ नीचे ले जाने लगे तो मैं रोमांचित हो गयी। बेताबी में उन्होंने अपने हाथों से मेरे पेट को सहलाया और फिर नाईटी को ऊपर उठाते हुए उसके कट के अंदर से हाथ अंदर ले जाते हुए मेरी पैंटी के अंदर हाथ डाल दिया।
पिछले दो तीन महीने में मेरी उस जगह किसी मर्द का स्पर्श नहीं हुआ था इसलिए जब मौसा जी की उंगलियाँ मेरी चुत की दरार पर घूमने लगी.
मेरी चुत ने अपना बांध छोड़ दिया- मौसा जी… मैं आ गयी!
मैं इतना ही बोल सकी और अगले ही पल मेरी चुत ने मौसा जी की उंगलियों पर कामरस की बारिश कर दी थी। मेरी चुत का रस मौसा जी की उंगलियों पर पड़ते ही उन्होंने जोश में अपनी उंगलियाँ मेरी चुत के अंदर घुसाकर अंदर बाहर करने लगे और जोश में मेरी गर्दन पर किस करने लगे तो मेरे अंदर फिर से तूफान बनने लगा।
“मौसा जी… मौसा जी… मौसा जी… आहऽऽऽऽ”
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इतना ही बोल कर मैं फिर एक बार झड़ गयी थी, मौसा जी भी जोश में मेरी गांड पर अपना लंड ज़ोरों से रगड़ने लगे थे। कुछ ही मिनटों में मीले दो जबरदस्त ओर्गास्म की वजह से मैं थक कर अपना सिर उस टहनी पर रख कर आराम करने लगी और पीछे से मौसा जी अपना लंड मेरी गांड पर घिसना चालू रखा था।
अचानक मेरे पैरों को किसी कपड़े का स्पर्श हुआ, मैंने आँखें खोल कर देखा तो वह मौसा जी की लुंगी थी, मौसा जी ने खुले में अपनी लुंगी खोल दी थी और अंडरवियर के ऊपर से ही अपना लंड मेरी गांड पर धीमी गति से रगड़ रहे थे। हम दोनों के मुँह से हल्की सिसकारियाँ निकल रही थी। जोश में आकर मैं अपना हाथ पीछे ले जाते हुए मेरी नाईटी ऊपर करने लगी, मौसा जी को मेरा इशारा समझ गया और उन्होंने मेरी नाईटी उठाकर मेरी पीठ पर रख दी।
“ओह… शुभांगी, ग्रेट ऐस!”
मौसा जी ने सिसकारी भरी, बारिश में भीगी हुई मेरी गोरी गांड देख कर मौसा जी पागल हो रहे थे। मैंने भी जोश में आकर मेरी गांड को पीछे करते हुए लंड पर दबाया तो मेरी गांड को उनके नंगे लंड का स्पर्श हुआ, मौसा जी ने कब अपनी अंडरवियर उतारी थी मुझे पता भी नहीं चला। मेरी पैंटी मेरी गांड के दरार में घुस गई थी और मौसा जी मेरी गांड पर जोश में अपना लंड घिस रहे थे। मैं भी अपनी उंगलियाँ मेरी चुत में घुसाकर अंदर बाहर करने लगी, हम दोनों ही कामवासना में पागल हो गए थे।
“शुभांगी बेटा… मेरा हो रहा है!” मौसा जी ने मेरी कान में बोला।
उन्होंने अब मेरा एक हाथ पीछे ले जा कर अपने लंड पर रखा, उनको क्या चाहिए मुझे तुरंत समझ में आ गया। मैंने अपने हाथ से उनके लंड को पकड़ा तो उन्होंने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखते हुए उस पर मुठ मारने लगे। दूसरी तरफ मेरी उंगलियाँ मेरी चुत के अंदर बाहर करते समय मुझे मेरे हाथ पर मौसा जी का हाथ महसूस हुआ और उन्होंने भी अपनी उंगलियाँ मेरी चुत के अंदर घुसा दी। हम दोनों की उंगलियाँ मेरी चुत के अंदर बाहर हो रही थी तो दूसरी ओर हम दोनों के हाथ उनके लंड पर मुठ मार रहे थे।
मैं यह ज्यादा देर सहन नहीं कर सकी- हाय मौसा जी… मैं आ गयी!
कहकर मेरी चुत ने फिर से अपना बांध छोड़ा। उसी समय उनके लंड से भी पिचकारी छुटी और उनका गर्म वीर्य मेरी गांड पर गिरने लगा। मैंने उत्तेजना में उनके लंड के आगे अपना हाथ पकड़ा अब उनका वीर्य मेरा हाथ भिगो रहा था तो मेरी चुत उनका हाथ भिगो रही थी।
मैं तो पहले से ही टहनी पर सिर रख कर आराम कर रही थी, अब मौसा जी भी थक कर मेरी पीठ पर गिर गए, हम दोनों ही उसी अवस्था में बेसुध पड़े रहे, तेज बिजली के कड़कने ने हम दोनों फिर से होश में आ गए।
“शुभांगी…”
मौसा जी ने मुझे पुकारा तो मैंने आँखें खोल कर पीछे मौसा जी की ओर देखा, पहली बार मैंने मौसा जी के नजर से नजर मिलाई। हम दोनों की आंखों में वासना भरी थी, अचानक वे अपना चेहरा आगे लाते हुए अपने होंठ मेरे होंठों के पास ले आये। मैं भी सहमति में अपने होंठों को उनके होंठों पर रख जर पूरे जोश से चूमने लगी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
हम दोनों बारी बारी से हमारे नीचे के और ऊपर के होंठ चूस रहे थे। बीच में रुकते हुए मौसा जी ने अपनी जीभ मेरे होंठों के बीच में डाल दी, मैंने भी होंठों को खोलते हुए उनकी जीभ को मुँह के अंदर घुसने की सहमति दी। अब हमारे होंठों के साथ साथ हमारी जीभ का भी द्वंद्व चल रहा था।
बहुत देर एक रोमांटिक लंबा किस एन्जॉय करने के बाद जब हमारे होंठ अलग हुए तब हमारी आँखें फिर से मिली। उन मर्दानी आँखों से आँखें मिलने के बाद मैं एकदम से शर्मा गयी और उनकी बाँहों से छूट कर घर के अंदर भाग गई। “शुभांगी बेटा!” मौसा जी ने पीछे से आवाज दी पर मैंने पीछे न देखते हुए मेरे बैडरूम में घुस गई।
फिर अपने गीले कपड़े उतार कर ड्रेसिंग टेबल के आईने में अपना रूप निहारने लगी, टेबल पर ही वह खीरा पड़ा था जिससे इस सब की शुरुआत हुई थी। पर अब उसकी जरूरत नहीं पड़ने वाली थी यह तो तय था, तीन बार झड़ने की थकावट की वजह से मुझे झट से नींद आ गयी.
दूसरे दिन सुबह मीना के दरवाजा खखटाने से मेरी नींद खुली। सोते समय बाल गीले ही रह गए थे इसलिए बुखार हो गया था। मौसा जी ने खुद मुझे नाश्ता खिलाया और दवाई खिलाई। वे ऐसा बर्ताव कर रहे थे कि कल हम दोनों के बीच कुछ भी नहीं हुआ था। बाद में मैंने फ़ोन कर के अपनी सहेली को बताया कि मैं आज कॉलेज में नहीं आ रही!
और फिर मैं सो गई। दोपहर को चार बजे मेरी नींद खुली, मौसा जी की दी हुई दवाई का अच्छा असर हो गया था। अब तबियत ठीक थी, मैं फ्रेश होकर नीचे रसोई में चली गई। देखा तो मीना रसोई में नहीं थी, सिंक में दोपहर के बर्तन भी वैसे ही पड़े थे।
गार्डन में देखा तो मौसा जी भी वहाँ पर नहीं थे, तो फिर दोनों गए कहाँ? तब मुझे मौसा जी के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दी, जैसे जैसे मैं उनके कमरे के करीब पहुँचने लगी, वैसे वैसे आवाजें ठीक से साफ़ साफ़ सुनाई देने लगी, वे आवाजें मौसा जी के और मीना की सिसकारियों की थी।
वे दोनों अंदर क्या कर रहे थे? मेरी धड़कन बढ़ने लगी और मैं उनके कमरे के करीब पहुँची। वहाँ से अंदर की आवाजें साफ साफ सुनाई दे रही थी, मेरा तो दिमाग ही चकरा गया था। मौसा जी और मीना… अंदर… चुदाई… लगभग मेरी ही उम्र की मीना को अंकल अंदर चोद रहे हैं…
इसी कल्पना से मुझे पसीना छूटने लगा, खुद शादीशुदा होकर और घर में एक जवान लड़की रहते हुए वह इतनी हिम्मत कर रहे थे। मैंने अंदर झांककर देखा, अंदर का नजारा देखा तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी। मीना और मौसा जी दोनों ही नंगे थे, मीना नीचे लेटी हुई थी और मौसा जी ऊपर से उस नाजुक कली को निचोड़ रहे थे।
अपना बड़ा लंड उसकी कमसिन चुत में डालकर अपने कूल्हों को तेजी से हिलाते हुए उसको बेदर्दी से चोद रहे थे। मैं डर कर फिर वापिस दीवार से लग कर खड़ी हो गई, आँखें बंद भी करू तो वही सब दिख रहा था। मन में काफी सवाल उठने लगे थे, क्या मौसा जी ने मीना पर जबरदस्ती की होगी, या फिर मीना ने ही उन्हें अपने जाल में फंसाया होगा। कब से चल रहे होंगे उनके नाजायज संबंध, मतलब उस दिन सुबह मौसा जी ही रसोई में आये होंगे।
“मालिक क्या मस्त चोदते हो आप… आज बहुत मजा आ रहा है!” अंदर से मीना की आवाज आई। मैंने वही से अंदर झांककर देखा, मौसा जी अपनी गांड हिलाते हुए उसको चोद रहे थे और बीच बीच में झुककर उसे किस भी कर रहे थे।
“हाँ मीना, इतनी बार तुमको चोदा है फिर भी तुम बिल्कुल टाइट हो!”
मुझसे भी अब रहा नहीं गया और मैं वहीं पर खड़े खड़े नाईटी को ऊपर सरका के मेरी उंगलियों को पैंटी के अंदर घुसा दी और अपनी मुनिया को मसलने लगी। उंगलियों का स्पर्श होते ही निगोड़ी चुत पानी छोड़ने लगी।
“सुबह से दूसरी बार मुझे चोद रहे हो, फिर भी आप का लंड तन कर खड़ा है, सच में इस उम्र में भी आप का स्टैमिना बिल्कुल जबरदस्त है, मालकिन का तो बुरा हाल करते होंगे आप?”
“बस क्या मीना, बूढ़ा नहीं हो गया हूं, सिर्फ पचास का हूँ, अभी बहुत स्टैमिना है मुझ में। और तेरी मालकिन अब ठंडी पड़ गयी है, दो सालों से उसको चोदा भी नहीं है मैंने!” कहकर और जोश में उसको चोदने लगे।
“मालिक आप थोड़ा आराम करो, तब तक मैं आप का लंड चूसती हूँ!”
उसने वहीं पर पड़ी ओढ़नी से अपना और मौसा जी का पसीना पौंछा तभी मुझे पता चला कि यह सब प्यार से हो रहा था, कोई जबरदस्ती नहीं थी। मौसा जी ने मीना की चुत से अपना लंड बाहर निकाला और बेड पर लेट गए तो उनका खड़ा हुआ लंड मुझे दिखा।
पिछले दो दिन से मैंने उनका लंड मेरे नितंब पर महसूस किया था, कल रात को तो हाथ में भी लिया था पर आज पहली बार बार उजाले में देख रही थी। मीना के चुतरस से सना हुआ उनका लंड उजाले में चमक रहा था, उसे देखते ही मेरी चुत ने पानी छोड़ दिया। अंकल का लंड बहुत ही बड़ा था.
मुझे तो आश्चर्य हो रहा था कि मेरी ही उम्र की मीना इतना बड़ा लंड अपनी चुत में कैसे ले सकती है। अब तक तो मीना ने उनका लंड अपने मुँह में लेकर चूसना शुरू भी कर दिया, बड़े मजे से चाटते हुए उनका सुपारा चूसने लगी। पहली बार लाइव चुदाई देखकर मैं बहुत उत्तेजित हो गयी थी।
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“मालिक सुबह से दूसरी बार मुझे चोद रहे हो फिर भी लंड सीना तान कर खड़ा है!” मीना बोली।
कल रात डेढ़ बजे अंकल ने मेरी गांड पर मुठ मेरी थी और सुबह से अंकल ने नौकरानी मीना को दो बार चोदा था, सच में उनका स्टैमिना बहुत जबरदस्त लग रहा था। जी भर के चुसाई के बाद मीना मौसा जी के ऊपर पर बैठ गयी और उनके लंड पर उठक बैठक करने लगी।
“मालिक, आहऽऽऽ दीदी उठेंगी तो नहीं न… ” अचानक उसने मेरा जिक्र किया तो मैं डर गई।
“सुबह ही उसको गोली खिलाई है इतनी जल्दी असर कम नहीं होगा, अभी टाइम है!”
अच्छा इसलिए मौसा जी इतनी बेपरवाही से उसे चोद रहे थे।
“वाह मालिक, दीदी एक घंटा और सोई तो आप शायद मुझे तीसरी बार चोदेंगे!” मीना उनकी तारीफ करते हुए बोली.
तो मौसा जी ने उसे अपने ऊपर खींच लिया और किस करने लगे और नीचे से दनादन उसकी चुत में लंड पेलने लगे।
“टिंग… टोंग!”
अचानक दरवाजे की घंटी बजी, मैंने ऊपर से देखा तो दरवाजे पर कोई था, कौन आया होगा इस वक्त? अंदर देखा तो मीना और मौसा जी अपनी चुदाई में मस्त थे, उनको घंटी सुनाई ही नहीं दी। शायद मौसा जी के दोस्त आये होंगे, मौसा जी को बताना जरूरी था पर ऐसा क्या करूँ जिससे उनको पता चले? मैं अपनी सोच में मग्न थी।
“टिंग… टोंग!”
एक बार फिर से आवाज आई तो मेरे मुँह से जोर से “आती हूँ…” निकल गया। इतनी जोर से मेरी आवाज सुनने पर उन दोनों ने अपनी चुदाई रोक दी और जल्दी जल्दी में अपने कपड़े पहनने लगे, मैंने भी अपने कपड़े ठीक किये और नीचे जाकर दरवाजा खोला और उनके दोस्तों को घर के अंदर ले लिया।
मैंने चाय बनाई तब तक मौसा जी तैयार होकर नीचे आ गए। हमारी नजर मिली तो उन्होंने शर्म से नजर झुका ली। आजु बाजु देखा तो मीना कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, शायद डर कर ऊपर ही बैठी थी। थोड़ी देर बाद मौसा जी और उनके फ्रेंड घूमने बाहर चले गए.
और मीना रोती हुई नीचे आ गई और मेरे पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाने लगी- दीदी मुझे माफ़ कर दो… मेरे से गलती हो गयी… प्लीज मुझे काम से मत निकालो! मैं उसे रसोई में लेकर के गयी और उसको शांत किया। फिर उसको चाय दी और खुद भी पी।
“दीदी, प्लीज मुझे माफ़ कर दो, मुझसे गलती हो गयी!”
“ठीक है रो मत, मैं कुछ नहीं करूंगी.” यह सुनकर उसने रोना बंद किया।
“थैंक्स दीदी, आप बहुत अच्छी हो!” कहकर उसने मेरे हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर चूम लिया।
“मीना, मुझे बताओ… तुम्हारे और मौसा जी के बीच में यह कब से चल रहा है?”
मेरे पूछने पर वह शर्मा गयी- तीन महीने हो गए होंगे!
यह सुनकर मुझे शॉक लगा, वह लगभग चार महीने से हमारे यहाँ पर काम कर रही थी। मतलब एक ही महीने में उन दोनों में सेक्स शुरू हो गया था।
“कैसे हुआ यह सब, तुमने किया या मौसाजी ने?” मुझे सब जानने की उत्सुकता थी।
“वह आपके मौसा जी ही मुझे आते जाते हुए टच करते, मुझे मालिश करने को बोलते और लुंगी में बना हुआ तम्बू मुझे दिखाते. एक बार मालकिन भी नहीं थी और आप भी नहीं थी तो दोपहर में उन्होंने अपनी लुंगी खोल कर मुझे अपना लंड दिखाया। उनका बड़ा लंड देखकर मैं पहले तो डर गई पर फिर अपने आप को रोक भी नहीं पाई। उस दोपहर को उन्होंने मेरी चुत का भोसड़ा बना डाला!” मीना के चहरे पर शर्म की लाली बिखरी हुई थी।
मौसा जी तो बहुत डेयरिंगबाज निकले, देखा जाए तो पिछले दो दिन में मेरे साथ भी उन्होंने बहुत डेयरिंग दिखाई थी।
“वह तुम्हारा पहली बार था क्या?”
मेरे पूछते ही उसने ना में सिर हिलाया- पहली बार तो नहीं था पर मालिक ने जिस तरह मुझे चोदा उसकी वजह से दो दिन लंगड़ाते हुए चलना पड़ा, बहुत जोश है उनमें!
वह फिर से शर्माते हुए बोली। फिर दोपहर में हम दोनों ने बहुत सारी बातें की. उसने उन दोनों के सेक्स के बारे में पूरे डिटेल्स में बताया। यह सब सुनकर मेरी चुत में खुजली होने लगी, मेरा भी मन मौसा जी के नीचे सोकर उनका लंड मेरी चुत में लेने को मचलने लगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मौसा जी रात को नौ बजे वापिस आये, उनके घर आते ही हमने खाना खाया। मौसा जी तो मेरी तरफ देखने से भी डर रहे थे, खाना खत्म करते ही अपने रूम में चले गए। मैंने सब काम निपटा कर रसोई की लाइट बंद की और अपने रूम में चली गयी, मैंने जैसा सोचा था थोड़ी ही देर बाद दरवाजे पर दस्तक हुई।
“शुभांगी बेटा!” मौसा जी ने आवाज दी तो मेरी धड़कन ही रुक गयी, आगे क्या होने वाला है हम दोनों को भी पता नहीं था।
“आओ ना अंकल, कुछ काम था?” तब तक मौसा जी ने दरवाजा खोला और अंदर आ गए।
“सॉरी बेटा… मुझे माफ़ कर दो… मीना की जवानी देख कर मैं बहक गया था। प्लीज अपनी मौसी को कुछ नहीं बताना, उसको बहुत तकलीफ होगी। प्लीज!” कहकर वो मेरे पैरों में गिर कर रोने लगे।
इतने बडे आदमी को रोते हुए देख कर मुझे बहुत अजीब लग रहा था- ईट्स ओके अंकल, मैं नहीं बताऊँगी मौसी को, आप रोओ मत!
मैं उनके सिर पर हाथ घुमाती हुई बोली, उनको थोड़ी राहत मिली।
“सच बेटा, पर मैं गुनेहगार हूँ, बीवी होकर भी मैं मीना के साथ… सेक्स… सॉरी बेटा!” वे फिर से मुझे माफी मांगते हुए बोले.
तब मैंने उनके आंसू पौंछे- ईट्स ओके अंकल, मौसी भी घर पर नहीं रहती, आपका भी मन करता होगा। आखिर आप भी तो इंसान हैं.
मेरी बात पूरी होते ही उन्होंने मेरे हाथों को अपने हाथों में पकड़ा और बोले- थैंक यू बेटा, मैं तुम्हारा यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा, मुझे समझने के लिए थैंक्स, तुम वाकयी में एक समझदार लड़की हो!
वे मेरी तारीफ करते ही जा रहे थे। मुझे यही सही मौका लगा और मैं उनको बोली- मौसा जी… मैं ही सब को समझती हूं… पर मेरी जरूरतों को कोई भी नहीं समझता!
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कहकर रोती शक्ल बनाई। मौसा जी ने मेरी और आश्चर्य से देखा, मेरी आँखों में चमक देख कर वह भ्रमित हो गए। अगले ही पल मैंने अपने होंठ उनके होंठों पर रख दिये और उन्हें चूसने लगी। शुरूआत में उन्हें पता ही नहीं चला कि क्या हो रहा है पर मेरे होंठ उनके होंठों पर रगड़ खाते ही वे जोश में आ गए और मेरा साथ देने लगे।
हम दोनों जोश में एक दूसरे को चूमने लगे, मौसा जी ने मुझे अपने करीब खींचा और मेरी पीठ पर हाथ घुमाने लगे। थोड़ी देर बाद हमने अपने होंठों को अलग किया, हमारी आँखें मिली तो मैंने शर्म से आँखें बंद की और उनके सीने में अपना मुँह छुपा दिया।
“अरे बेटा, शर्मा क्यों रही हो?” मेरी पीठ को सहलाते हुए उन्होंने पूछा।
“सच कहूँ तो तुम्हें देखते ही तुम मुझे पसंद आई थी, जब तुम्हें शॉर्ट्स, स्कर्ट्स में देखता तो तुम्हें चोदने की इच्छा पैदा हो जाती थी, उस दिन फ्रिज के सामने खीरा लेते हुए देखा, तब मुझे पता चला कि तुम भी बहुत प्यासी हो!”
“अच्छा… तो उस दिन आपने सब देख लिया था?” मैं उन्हें बोली।
“हाँ बेटा… उस दिन पेग बनाने के लिए मैं नीचे उतरा तो तुम फ्रिज के सामने दिखी, मैं तुमको आवाज देने ही वाला था कि तुम फ्रिज से एक खीरा निकालकर चाटने लगी, मैंने ‘आगे क्या करने वाली हो’ देखने का फैसला किया और एक अद्भुत शो देखने को मिला… तुमने वह खीरा तुम्हारी चुत में… अहह!” वे उस रात को याद करते हुए बोले.
मैंने शर्मा कर अपना मुँह अपने हाथों में छुपा लिया।
मौसा जी ने मेरा हाथ मेरे मुँह से हटाते हुए बोले- शुभांगी बेटा… इसमें शर्माना कैसा?
“तो और क्या करूँ… आपने तो सब देख लिया… वह खीरा… मेरे नीचे… कदमताल… ईशश… एक नम्बर के बदमाश हो आप!”
“वैसे वह कदमताल वाली आईडिया बहुत बढ़िया थी!” वे मुझे आंख मारते हुए बोले।
“उस रात को मैंने भी कुछ देखा… मैं पैंटी रसोई में ही भूल गयी थी और जब याद आया तब उसे लेने पहुंची तो अंदर आप मेरी पैंटी सूंघते हुए अपने खीरे पर मुठ मार रहे थे, फिर क्या था मुझे भी बाहर खड़ी रहकर चुत में खीरा वापिस डालना पड़ा।”
“अच्छा… तो तुम भी बदमाश हो?” मौसा जी बोले।
“बदमाश तो आप हो उस दिन मेरी गांड पर अपना लंड घिस रहे थे और रात को तो मेरी नंगी गांड को ही सहला दिया आपने!”
“हम्म… तुम विरोध नहीं कर रही तो चांस मिल गया मुझे…” अंकल आंख मारते हुए बोले।
“उस रात को मैंने भी कुछ देखा… मैं पैंटी रसोई में ही भूल गयी थी और जब याद आया तब उसे लेने पहुंची तो अंदर आप मेरी पैंटी सूंघते हुए अपने खीरे पर मुठ मार रहे थे, फिर क्या था मुझे भी बाहर खड़ी रहकर चुत में खीरा वापिस डालना पड़ा।”
“अच्छा… तो तुम भी बदमाश हो?” मौसा जी बोले।
“बदमाश तो आप हो उस दिन मेरी गांड पर अपना लंड घिस रहे थे और रात को तो मेरी नंगी गांड को ही सहला दिया आपने!”
“हम्म… तुम विरोध नहीं कर रही तो चांस मिल गया मुझे…” अंकल आंख मारते हुए बोले।
“और कल रात आपने तो हद ही कर दी, बाहर गार्डन में भारी बारिश में मेरी गांड पर अपना…” मैंने अपनी बात बीच में ही रोक दी।
“हाँ बेटी… तुम्हें नाईटी में देख कर ही मेरा खड़ा हो गया था, और भीगी नाईटी में तुम्हारी सेक्सी ब्रा पैंटी को देख कर मेरा मुझ पर कंट्रोल ही नहीं रहा और मैंने हिम्मत की, तुमने भी मुझे साथ दिया, तुमको अच्छा लगा था क्या मेरा सहलाना?” मौसा जी ने मुझे पूछा.
तो मैंने शर्माते हुए हाँ में सिर हिलाया। मेरे सिर हिलाते ही मौसा जी ने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये और हम फिर से एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे।
“शुभांगी… यह सपना तो नहीं है ना, मुझे एक चुटकी काटो न!” वह मेरे होंठों पर से अपने होंठ हटाते हुए बोले।
“मौसा जी यह सच है… रुको अभी यकीन हो जाएगा!” कहकर मैंने उनकी पैंट के अंदर खड़े लंड पर होंठ रखे तो मौसा जी सिसक उठे।
“आह… बेटी, ये क्या कर रही हो?”
“आपको यकीन दिला रही हूँ, आपका यह लंड खाकर!” कहते हुए मैंने उनके लंड को जोर से काटा तो मौसा जी चिल्ला उठे।
“शुभांगी… इतना अच्छा लगा तुमको मेरा लंड?”
“हाँ अंकल, आपका लंड आपने लाये हुए खीरे से भी बड़ा है, रसोई में आपने मेरी गांड पर रगड़ा था, तभी मुझे अंदाज आया था, आप जब मुठ मार रहे थे, तब रोशनी कम होने की वजह से दिखाई नहीं पड़ा, पर कल रात को जब हाथ में लिया तभी मुझे नाप का पक्का यकीन हो गया, और आज दोपहर को जब मीना को चोद रहे थे तभी आप के लंड को पहली बार रोशनी में देखा तो उसकी दीवानी हो गयी हूँ.” मैं उनके लंड को पैंट के ऊपर से सहलाते हुए बोली।
“इतना अच्छा लगता है तो खाओ ना मेरा लंड!” मौसा जी आँखें बंद रखते हुए बोले।
मैंने आगे बढ़ते हुए उनकी पैंट के हुक खोले और उनकी अन्डरवियर में अपनी उंगलियाँ घुसाई तो उन्होंने भी अपनी गांड को उठाकर मेरी मदद की फिर उन्होंने ही अपनी पैंट पैरों से निकाल दी। मेरी नजर उनके अंडरवियर में बने तम्बू पर ही अटकी हुई थी।
अपने सूखे हुए होंठों पर जीभ घुमाते हुए मैं उनके लंड को उनकी अंडरवियर के ऊपर से ही काटने लगी, उन्हें इस तरह से तड़पाने में मुझे बड़ा मजा आ रहा था। बहुत दिन बाद मुझे खेलने के लिए लंड मिला था और वह भी दमदार लंड। फिर मैंने अपनी उंगलियाँ उनके अंडरवियर में फंसाकर उसको उनके बदन से अलग कर दिया.
अब मेरे सामने उनका नंगा लंड था। पहली बार उनका लंड इतने पास से देख रही थी, देख कर ही मेरी चुत में पानी आने लगा। उनके लंड की सुपारी रोशनी में चमक रही थी और नीचे गोटियाँ वीर्य से भरी हुई थी। मैंने नीचे झुक कर उनकी गोटियों को किस किया तो मौसा जी सिसकार उठे- क्या देख रही हो शुभांगी रानी?
मौसा जी ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा।
“आप के लंड को देख रही हूँ अंकल!” मैं होंठों पर जबान फिरते हुए बोली।
“पसंद आया मेरी बेटी को मौसा जी का लंड” उन्होंने मुझे पूछा।
“हाँ मौसा जी बहुत मोटा है आपका लंड, और नीचे ये वीर्य की टंकियाँ फुल भरी हुई हैं।” कहकर मैं उनके लंड को हाथ में लेकर उस पर मुठ मारने लगी।
मौसाजी ने भी जोश में आते हुए अपना हाथ मेरी नाईटी के कट से अंदर डाल कर मेरी पैंटी पर रखा, फिर अपनी उंगलियाँ पैंटी के अंदर डालते हुए चुत के छेद पर उंगली घुमाने लगे।
“उम्म्ह… अहह… हय… याह… मौसा जी… मेरी चुत… अहह!” मैं सिसकार उठी।
“शुभांगी तुम्हारी चुत तो पहले से ही गीली हो गयी है.” वह मुझे चूमते हुए बोले।
“आपके लंड देखकर ही वह पानी छोड़ रही है, अब जल्दी से उसे मेरी चुत के अंदर डाल दो अंकल!” मैं बेचैन होते हुए बोली।
मौसा जी झट से खड़े हुए, मेरी नाईटी को मेरी पेट के ऊपर तक सरका दिया और मेरी पैंटी को बेदर्दी से पकड़ते हुए फाड़ कर टुकड़े कर दिए।
मैं तो उनकी ताकत की दीवानी हो गयी थी, उन्होंने एक बार अपने लंड को मुट्ठी में पकड़कर हिलाया फिर अपने सुपारे को मेरी चुत के होंठों पर रखा तो मेरे पूरे तन बदन में तितलियां दौड़ने लगी। उन्होंने मेरी चुत की पंखुड़ियों पर अपना लंड रगड़ा.
चुत से निकलते हुए पानी की वजह से वह गीला हो गया था। फिर उन्होंने अपने लंड को मेरी चुत के मुँह पर रखा और मेरी तरफ देखा, वह पल आ गया था कि मैं अपने पचास साल के मौसा जी पर अपनी अठारह साल की कमसिन जवानी लुटाने जा रही थी।
“शुभांगी… तुम्हें देखते ही मैं तुम्हारा दीवाना हो गया था, सपनों में मैं तुम्हें इस घर के सारे कोनों में चोद चुका हूं और अब मैं तुम्हें सचमुच में चोदने वाला हूँ.” वे नीचे झुककर मुझे चूमने लगे और नीचे मुझे उनका लंड मेरी चुत में घुसने का अहसास होने लगा।
अंकल का लंड एकदम धीरे धीरे से अंदर घुस रहा था, आधे से ज्यादा घुसकर फिर रुक गया तो मैंने अपने होंठ छुड़ा कर उनसे पूछा- क्या हुआ… रुक क्यों गए?
“क्योंकि तुम्हारी चुत मुझे अंदर घुसने नहीं दे रही, आह… बहुत टाइट चुत है तेरी… तुम्हारी चुत की दीवारों ने मेरे लंड को पकड़ कर रखा है.” उन्हें दर्द हो रहा था और वे दर्द से कराहते हुए बोले।
फिर उन्होंने अपना लंड चुत के बाहर खींचा तो मेरी चुत उनके लंड को पकड़ने की कोशिश करने लगी, बहुत दिन बाद उसे एक लंड मिला था और वह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी। उन्होंने अपना पूरा लंड बाहर निकाला और फिर से मेरी चुत पर रखते हुए एक जोर का झटका दिया, दर्द की तेज लहर चुत से उठी और मैं चिल्ला उठी- आहऽऽऽ मौसा जी…
तभी मौसा जी अपने होंठ मेरे होंठों पर लाते हुए मेरी चीख को निकलने से रोका। मौसाजी अब नीचे मेरी चुत में दनादन धक्के लगाते जा रहे थे, मेरी प्यासी चुत को आखिरकार एक मजबूत लंड मिल ही गया था, बहुत दिन बाद मैं चुत में लंड को महसूस कर रही थी।
अपनी आंखें बंद कर के ऊपर मैं उनको अपने नाजुक होंठ चूसने दे रही थी और नीचे से उनका लंड मेरी चुत को गचागच चोद रहा था। वे बारी बारी से मेरे दोनों होंठों को चूस रहे थे और मुझे कस कर भींचते हुए उनका लंड तेजी से चुत के अंदर बाहर कर रहे थे।
मैं भी पचास साल के आदमी का जोश एन्जॉय कर रही थी. वे एक बीस साल के लड़के की तरह तेजी से कमर हिलाते हुए चोद रहे थे. बहुत देर हुए हम उसी पोजीशन में एक दूसरे को कामसुख दे रहे थे। वह एक ही स्पीड में मेरी चुत को कूट रहे थे। अब मुझे कंट्रोल करना मुश्किल जो रहा था, मेरे पेट में एक तूफान बनने लगा था- आहऽऽऽ मौसा जी… जोर से… मैं आ गयी…
मेरे ऐसा बोलते ही उनका बदन थरथरा उठा, उनकी उत्तेजना साफ साफ झलक रही थी- रुको थोड़ी देर… मैं भी आ रहा हूँ…
कहकर अंकल मुझे ट्रेन की स्पीड से चोदने लगे।
“हाँ… मौसा जी… मेरी चुत को अपना पानी पिलाओ, दो तीन महीने से सूखी पड़ी है वो, आज उसकी प्यास बुझाओ… मैं… आ… ई…” कहकर मैंने अपनी आंखें बंद की और उनको जोर से पकड़ लिया मेरे अंदर का लावा मेरी चुत के तले जमा होने लगा था, उस ज्वालामुखी का कभी भी विस्फोट होने वाला था और मौसा जी का मूसल उसी ज्वालामुखी के मुँह पर दनादन धक्के लगा रहा था।
“मौसा जी…” मैंने अपनी उंगलियाँ उनके पीठ में गड़ा दी और एक ही पल में दो दिन में घटी घटनाओं की याद आ गई। मेरी आँखों के सामने उनकी मीना को चोदती हुई इमेज तैयार हो गई, कैसे एक रिदम में वह अपने कूल्हे हिला रहे थे, सब याद आते ही मेरा सारा बदन अकड़ गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“आहऽऽऽ अंकल!” मेरी आवाज ने मेरी अवस्था मौसा जी को सुना दी और उसका जवाब देते हुए मौसा जी ने एक जोर का झटका मेरी चुत में मारा और बस… मेरी चुत के अंदर जमा हुआ लावा फूट पड़ा और मैं अपने बदन को ढीला छोड़ते हुए उस लावे को अपनी चुत से बाहर फेंकने लगी, इतना अद्भुत ऑर्गसम मैंने कभी महसूस नहीं किया था। चिल्लाते हुए मैं अपना पानी चुत से बहने दे रही थी।
मौसाजी ने भी उसी वक्त अपना लंड चुत के अंदर घुसाये रखा था, मेरा पूरा रस उनके लंड के ऊपर से बह रहा था जैसे कि उनके लंड का अभिषेक चल रहा था। मेरा जोश ठंडा होने के बाद मौसा जी ने अपना लंड आधा बाहर निकाला और जोर से अंदर डाल दिया। उस धक्के की वजह से मेरी आँखें खुली की खुली रह गई, मेरी चुत के अंदर फिर से हरकत होने लगी जैसे कि मेरा फिर से बांध छूटने वाला था।
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“मौसा जी…” कहते हुए मैंने अपने दांत उनकी गर्दन में गाड़ दिए तो मौसा जी ने जोश में फिर से एक जोर का झटका मारा तो मेरी चुत फिर से अपना रस छोड़ने लगी। कुछ ही मिनटों में मैं दूसरी बार झड़ रही थी। मुझे मेरी चुत में एक और रस महसूस होने लगा… मौसा जी का लंड अपना रस मेरी चुत में छोड़ रहे थे… ओह गॉड… चुत के अंदर उड़ रही वीर्य की गर्म पिचकारियों की फीलिंग ही अलग होती है। मैं अपना बदन ढीला छोड़ते हुए बेड पर लेट गयी, मौसा जी भी मेरे ऊपर गिर गए।
एक दूसरे को कस कर पकड़ते हुए हम उस पल को एन्जॉय कर रहे थे। चुत रस और वीर्य का अद्भुत मिलन हम दोनों अपने होंठ एक दूसरे पर रगड़ते हुए अनुभव कर रहे थे। उनकी बाहों में कब मेरी आंख लगी पता ही नहीं चला। उसके बाद जब भी मौसी नहीं होती, हम दोनों पति पत्नी की तरह रहते, कभी कभी उनका जोश मुझ अकेले पर भारी पड़ता पर शुक्र था कि मेरी नई सहेली मीना थी। जब तक मैं पढ़ने के लिए वहाँ पर थी मैं और मीना दोनों मिलकर मौसा जी के जोश को संभालती थी।
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