Village Girl Shop Sex
कामिनी और प्रेरणा, राजस्थान में एक गाँव के सरकारी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली 2 अल्हड़, जवान लड़कियाँ। बचपन की सहेलियाँ, जो आपस में पड़ोसी भी है. वो दोनो लगभग भागती हुई सी लाला जी की दुकान पर पहुँची.. Village Girl Shop Sex
कामिनी : ”लाला जी, लालाजी, 2 कोल्ड ड्रिंक दे दो और 1 बिस्कुट का पैकेट, पैसे पापा शाम को देंगे…”
लाला जी ने नज़र भर कर दोनो को देखा. उनके सामने पैदा हुई ये फूलों की कलियाँ पूरी तरह से पक चुकी थी. उन दोनो ने छोटी-2 स्कर्ट के साथ – साथ कसी हुई टी शर्ट पहनी हुई थी.. जिसके नीचे ब्रा भी नही थी.. उनके उठते-गिरते सीने को देखकर और उनकी बिना ब्रा की छातियो के पीछे से झाँक रहे नुकीले गुलाबी निप्पल्स को देखकर उन्होने अपने सूखे होंठो पर जीभ फेरी..
”अरे, जो लेना है ले लो कामिनी, पैसे कौनसा भागे जा रहे है… जा, अंदर से निकाल ले कोला..”
उन्होने दुकान के पिछले हिस्से में बने एक दूसरे कमरे में रखे फ्रिज की तरफ इशारा किया.. दोनो मुस्कुराती हुई अंदर चल दी, इस बात से अंजान की उस बूढ़े लाला की भूखी नज़रें उनके थिरक रहे नितंबो को देखकर, उनकी तुलना एक दूसरे से कर रहीं है.
पर उनमे भरी जवानी की चर्बी को वो सही से तोल भी नही पाए थे की उनके दिल की धड़कन रोक देने वाला दृश्य उनकी आँखो के सामने आ गया.. कामिनी ने जब झुककर फ्रीज में से बॉटल निकाली तो उसकी नन्ही सी स्कर्ट उपर खींच गयी, और उसकी बिना चड्डी की गांड लाला जी के सामने प्रकट हो गयी…
कोई और होता तो वहीं का वहीं मर जाता पर लाला जी ने बचपन से ही बादाम खाए थे उनकी वजह से उनका स्ट्रॉंग दिल फ़ेल होने से बच गया.. पर साँस लेना भूल गये बेचारे… फटी आँखो से उन नंगे कुल्हो को देखकर उनका हाथ अपनी घोती में घुस गया…
और अपने खड़े हो चुके लंड की कसावट को महसूस करके उनके शरीर का रोँया-2 खड़ा हो गया..लंड से निकल रहा प्रीकम उनके हाथ पर आ लगा. उन्होने झट्ट से सामने पड़े मर्तबान से 2 क्रीम रोल निकाले और उसे अपनी धोती में घुसा कर अपने लंड पर रगड़ लिया.
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उसपर लगी क्रीम लाला जी के लंड पर चिपक गयी और लाला जी के लंड का पानी क्रीम रोल पर.. जब दोनो बाहर आई तो लाला जी ने बिस्कुट के पैकेट के साथ वो क्रीम रोल भी उन्हे थमा दिए और बोले : “ये लो, ये स्पेशल तुम दोनो के लिए है…मेरी तरफ से.”
दोनो उसे देखते ही खुश हो गयी, ये उनका फेवरेट जो था, उन्होने तुरंत वो अपने हाथ में लिया और उस रोल को मुँह में ले लिया… लाला जी का तो बुरा हाल हो गया. जिस अंदाज से दोनो ने उसे मुँह में लिया था उन्हे ऐसा लग रहा था जैसे वो उनका लंड चूस रही है…
लालाजी के लंड का प्रीकम उन्होंने अपनी जीभ से समेट कर निगल लिया. उन्हे तो कुछ पता भी नही चला पर उन दोनो को अपने लंड का पानी चाटते देखकर लाला जी का मन आज कुछ करने को मचल उठा.. दोनो उन्हे थेंक्यु लालाजी बोलकर हिरनियों की तरह उछलती हुई बाहर निकल गयी..
लालाजी की नज़रें एक बार फिर से उनके कूल्हों पर चिपक कर रह गयी… और हाथ अपने लंड को एक बार फिर से रगड़ने लगा.. वो फुसफुसाए “साली…रंडिया…बिना ब्रा और कच्छी के घूम रही है…इन्हे तो चावल की बोरी पर लिटाकर रगड़ देने को मन करता है…सालियों ने सुबह -2 लंड खड़ा करवा दिया…अब तो कुछ करना ही पड़ेगा…”
इतना कहकर उन्होने जल्दी से दूकान का शटर डाउन किया और दुकान के सामने वाली गली में घुस गये वहां रहने वाली सलमा को वो काफ़ी सालो से चोदते आ रहे थे… वो लालाजी से चुदाई करवाती और उसके बदले अपने घर का राशन उनकी दुकान से उठा लाती थी.. लालाजी की दुकान से निकलते ही कामिनी और प्रेरणा ज़ोर-2 से हँसने लगी…
कामिनी : “देखा, मैं ना कहती थी की वो ठरकी लाला आज फिर से क्रीम रोल देगा…चल अब जल्दी से शर्त के 10 रूपए निकाल.”
प्रेरणा ने हंसते हुए 10 का नोट निकाल कर उसके हाथ पर रख दिया और बोली : “हाँ…हाँ ..ये ले अपने 10 रूपए…मुझे तो वैसे भी इसके बदले क्रीम रोल मिल गया है…”
और एक बार फिर से दोनो ठहाका लगाकर हँसने लगी..
प्रेरणा : “वैसे तेरी डेयरिंग तो माननी पड़ेगी कामिनी, आज तूने जो कहा, वो करके दिखा दिया, बिना कच्छी के तेरे नंगे चूतड़ देखकर उस लाला का बुरा हाल हो रहा था…तूने देखा ना, कैसे वो फटी आँखो से तेरे और मेरे सीने को घूर रहा था…जैसे खा ही जाएगा हमारे चुच्चो को…”
कामिनी : “और तू भी तो कम नही है री..पहले तो कितने नाटक कर रही थी की बिना ब्रा के नही जाएगी, तेरे दाने काफ़ी बड़े है, दूर से दिखते है…पर बाद में तू सबसे ज़्यादा सीना निकाल कर वही दाने दिखा रही थी…साली एक नंबर की घस्ति बनेगी तू बड़ी होकर…”
इतना कहकर वो दोनो फिर से हँसने लगी.. लालाजी को तरसाकर उनसे चीज़े ऐंठने का ये सिलसिला काफ़ी दिनों से चल रहा था और दिन ब दिन ये और भी रोचक और उत्तेजक होता जा रहा था.. दूसरी तरफ, लालाजी जब सलमा के घर पहुँचे तो वो अपनी बेटी को नाश्ता करवा रही थी…
लालाजी को इतनी सुबह आए देखकर वो भी हैरान रह गयी पर अंदर से काफ़ी खुश भी हुई… आज लालजी बिना कहे ही आए थे, यानी उन्हे चुदाई की तलब बड़े ज़ोर से लगी थी.. उसके घर का राशन भी ख़त्म हो चुका था, उन्हे खुश करके वो शाम को दुकान से समान भी ला सकती थी..
उसने लालाजी को बिठाया और अपनी बेटी को बाहर खेलने भेज दिया.. दरवाजा बंद करते ही लालाजी ने अपनी धोती उतार फेंकी.. अंदर वो कभी कुछ नही पहनते थे… 52 साल की उम्र के बावजूद उनका लंड किसी जवान आदमी के लंड समान अकड़ कर खड़ा था…
सलमा : “या अल्ला, आज इसे क्या हो गया है…लगता है लालाजी ने आज फिर से कच्ची जवानी देख ली है…”
वो लालाजी की रग-2 जानती थी.. लालाजी के पास कुछ कहने-सुनने का समय नही था उन्होने सलमा की कमीज़ उतारी और उसकी सलवार भी नोच कर फेंक दी.. बाकी कपड़े भी पलक झपकते ही उतर गये… अब वो उनके सामने नंगी थी…
पर उसे नंगा देखकर भी उनके लंड में वो तनाव नही आ रहा था जो कामिनी की गांड की एक झलक देखकर आ गया था.. लालाजी उसके रसीले बदन को देखे जा रहे थे और सलमा ने अपनी चूत में उंगली घुसाकर अपना रस उन्हे दिखाया और बोली : “अब आ भी जाओ लालाजी, देखो ना, मेरी मुनिया आपको देखकर कितना पनिया रही है…जल्दी से अपना ये लौड़ा मेरे अंदर घुसा कर इसकी प्यास बुझा दो लाला…आओ ना…”
उस रसीली औरत ने अपनी रस में डूबी उंगली हिला कर जब लालाजी को अपनी तरफ बुलाया तो वो उसकी तरफ खींचते चले गये.. एक पल के लिए उनके जहन से कामिनी और प्रेरणा का चेहरा उतर गया.. वो अपना कड़क लंड मसलते हुए आगे लाए और सलमा की चूत पर रखकर उसपर झुकते चले गये…
लालाजी का वजन काफ़ी था उनके भारी शरीर और मोटे लंड के नीचे दबकर उस बेचारी सलमा की चीख निकल गयी… ”आआआआआआआआआआआआअहह लालाजी…… मार डाला आपने तो…… ऐसा लग रहा है जैसे कोई सांड चोद रहा है मुझे…. अहह…..चूत फाड़ोगे क्या मेरी आज…”
लालाजी भी चिल्लाए : “भेंन की लौड़ी….तेरी चूत में ना जाने कितने लंड घुस चुके है, फिर भी तेरी चूत इतनी कसी हुई है….साली……कौनसा तेल लगती है इसपर…”
सलमा : “आआआआआअहह…आपकी ही दुकान का तेल है लालाजी…आज सुबह ही ख़त्म हुआ है…शाम को फिर से लेने आउंगी…”
उसने चुदाई करवाते-2 ही अपने काम की बात भी कर ली.. लालाजी भी जानते थे की वो कितनी हरामी टाइप की औरत है पर चुदाई करवाते हुए वो जिस तरह खुल कर मस्ती करती थी, उसी बात के लिए लालाजी उसके कायल थे… लालाजी ने अपने लंड के पिस्टन से उसकी चूत को किसी मशीन की तरह चोदना जारी रखा..
सलमा : “आआआआआहह लालाजी…आज तो कसम से आपके बूड़े शरीर में जैसे कोई ताक़त आ गयी है…किस कली को देख आए आज…अहह.”
लालाजी बुदबुदाए : “वो है ना साली…दोनो रंडिया…अपने मोहल्ले की…कामिनी और प्रेरणा…साली बिना ब्रा पेंटी के घूमती है आजकल…..साली हरामजादियाँ….आज तो कसम से उन्हे दुकान पर ही ठोकने का मन कर रहा था…”
सलमा हँसी और बोली : “उन दोनो ने तो पुर मोहल्ले की नींद उड़ा रखी है लालाजी… उफफफफ्फ़…उन्हे देखकर मुझे अपनी जवानी के यही दिन याद आ गये….. अहह…. मैने तो इस उम्र में खेत में नंगी खड़ी होकर अपनी चूत मरवाई थी और वो भी 4 लौड़ो से….और कसम से लालजी, आज भी वैसी ही फीलिंग आ रही है जैसे एक साथ 4 लंड चोद रहे है मुझे…”
लालाजी को वो अपनी जवानी के किस्से सुना रही थी और लालाजी एक बार फिर से कामिनी और प्रेरणा के ख़यालो में डूबकर उसकी चूत का बाजा बजाने लगे… और जल्द ही, कामिनी और प्रेरणा के नाम का ढेर सारा रसीला प्रसाद उन्होने सलमा की चूत में उड़ेल दिया…
उसके बाद लालाजी ने अपने कपड़े पहने और बिना कुछ कहे बाहर निकल गये… दुकान खोलकर वो फिर से अपने काम में लग गये पर उनका मन नही लग रहा था… अब उन्हे किसी भी हालत में उन दोनो को अपनी बॉटल में उतारना था और उसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार थे.
लालाजी का साहूकारी का भी काम था और गाँव के लोग अक्सर उनसे ऊँचे रेट पर पैसे ले जाते थे… वैसे तो लालाजी का रोब ही इतना था की बिना कहे ही हर कोई उनकी दुकान पर आकर सूद के पैसे हर महीने दे जाता था, पर फिर भी कई बार उन्हे अपना लट्ठ लेकर निकलना ही पड़ता था वसूली करने…
उनका रोबीला अंदाज ही काफ़ी होता था गाँव के लोगो के लिए, इसलिए जब वो उगाही करने जाते तो पैसे निकलवा कर ही वापिस आते… लालाजी की पत्नी को मरे 5 साल से ज़्यादा हो चुके थे… उनकी एक बेटी थी जो साथ के गाँव में ब्याही हुई थी…
शादी के बाद उसने भी एक फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया था और वो भी अब 18 की हो चली थी और अक्सर अपने नाना से मिलने, अपनी माँ के साथ उनके घर आया करती थी.. पर जब से लालाजी की बीबी का देहांत हुआ था, उसके बाद से उनकी सैक्स लाइफ में बहुत बदलाव आए थे…
पहले तो उनकी सैक्स लाइफ नीरस थी… 2-4 महीने में कभी कभार उनकी बीबी राज़ी होती तो उसकी मार लेते थे… पर बीबी के जाने के बाद उनके चंचल मन ने अंगडाइयाँ लेनी शुरू कर दी… सलमा के साथ भी उनके संबंध उसी दौरान हुए थे… ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वो अक्सर उनकी दुकान से समान उधार ले जाती और पैसे लाटाने के नाम पर अपनी ग़रीबी की दुहाई देती… ऐसे ही एक दिन जब लालाजी उसके घर गये और पैसे का तक़ाज़ा किया तो उसने अपनी साड़ी का पल्लू गिरा दिया और लाला जी के कदमो मे बैठ गयी…
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बस एक वो दिन था और एक आज का दिन है, ऐसा शायद ही कोई हफ़्ता निकलता होगा जब लालाजी का लंड उसकी चूत में जाकर अपनी वसूली नहीं करता था .. बदले में वो अपने घर का राशन बिना किसी रोक टोक के उठा लाती..
पर एक ही औरत को चोदते -2 अब लालजी का मन ऊब सा चुका था… उनके सामने जब गाँव की कसी हुई जवानियां, अपने मादक शरीर को लेकर निकलती तो उनके लंड का बुरा हाल हो जाता था… और ये बुरा हाल ख़ासकर कामिनी की कच्ची अम्बियों को देखकर होता था…
उन दोनो की कामुक हरकतों ने लालाजी का जीना हराम कर रखा था.. खैर, आज जब लालजी ने अपना बही ख़ाता खोला तो उन्होने पाया की अजय ने जो पैसे उधार लिए थे, उसका सूद नही आया है अब तक… अजय दरअसल कामिनी का पिता था..
बस, फिर क्या था… लालजी की आँखो में एक चमक सी आ गयी.. उन्होने झत्ट से अपना लट्ठ उठाया, दुकान का शटर नीचे गिराया और चल दिए कामिनी के घर की तरफ.. वहां पहुँचकर उन्होने दरवाजा खटकाया पर काफ़ी देर तक कोई बाहर ही नही निकला… एक पल के लिए तो लालजी को लगा की शायद अंदर कोई नही है… पर तभी उन्हे एक मीठी सी आवाज़ सुनाई दी..
”कौन है…”
लालाजी के कान और लंड एकसाथ खड़े हो गये… ये कामिनी की आवाज़ थी.
वो अपने रोबीले अंदाज में बोले : “मैं हूँ…लाला…”
अंदर खड़ी कामिनी का पूरा शरीर काँप सा गया लालाजी की आवाज़ सुनकर… दरअसल वो उस वक़्त नहा रही थी… और नहाते हुए वो सुबह वाली बात को याद करके अपनी मुनिया को मसल भी रही थी की कैसे उसने और प्रेरणा ने मिलकर लालाजी की हालत खराब कर दी थी… और अपनी चूत मसलते हुए वो ये भी सोच रही थी की उसकी नंगी गांड को देखकर लालाजी कैसे अपने खड़े लंड को रगड़ रहे होंगे…
पर अचानक दरवाजा कूटने की आवाज़ ने उसकी तंद्रा भंग कर दी थी.. काफ़ी देर तक दरवाजा पीटने की आवाज़ सुनकर वो नंगी ही भागती हुई बाहर निकल आई थी क्योंकि उसके अलावा घर पर इस वक़्त कोई नही था.. उसके पिताजी खेतो में थे और माँ उन्हे खाना देने गयी हुई थी.. कामिनी के शरारती दिमाग़ में एक और शरारत ने जन्म ले लिया था अब तक..
कामिनी बड़े सैक्सी अंदाज में बोली : “नमस्ते लालाजी…कहिए…कैसे आना हुआ…”
लालाजी ने इधर उधर देखा, आस पास देखने वाला कोई नही था…
वो बोले : “अर्रे, दरवाजा बंद करके भला कोई नमस्ते करता है…दरवाजा खोल एक मिनट… बड़ी देर से खड़का रहा हूँ, तेरे पिताजी से जरुरी काम है ”
कामिनी : “ओह्ह… लालाजी… माफ़ करना… पर मैं नहा रही थी… दरवाजे की आवाज़ सुनकर ऐसे ही भागती आ गयी… नंगी खड़ी हूँ, इसलिए दरवाजा नही खोल रही… एक मिनट रूको.. मैं कुछ पहन लेती हूँ…”
उफफफफ्फ़…. एक तो घर में अकेली… उपर से नहा धोकर नंगी खड़ी है… हाय… इसकी इसी अदाओं पर तो लालाजी का लंड उसका दीवाना है… उसने ये सब दरवाजे के इतने करीब आकर, अपनी रसीली आवाज़ में कही थी की दरवाजे के दूसरी तरफ खड़े लालाजी का लंड उनकी धोती में खड़ा होकर दरवाजे की कुण्डी से जा टकराया…
लालाजी दम साधे उसके दरवाजा खोने का इंतजार करने लगे.. एक मिनट में जब दरवाजा खुला तो कामिनी को देखकर उनकी साँसे तेज हो गयी… वो जल्दबाज़ी में एक टॉवल लपेट कर बाहर आ गयी थी… उसने सिर्फ टॉवल पहना हुआ था और कुछ भी नही…
और उपर से उसके गीले शरीर से पानी बूंदे सरकती हुई उसके मुम्मों के बीच जा रही थी.. लालाजी का दिल धाड़-2 करने लगा..वो उनके सामने ऐसे खड़ी थी जैसे ये पहनावा उसके लिए आम सी बात है, पर अंदर से वो ही जानती थी की उसका क्या हाल हो रहा है.
कामिनी : “हांजी लालाजी, आइए ना अंदर…बैठिये…”
लालाजी अंदर आ गये और बरामदे में पड़ी खाट पर जाकर बैठ गये… उनकी नज़रें कामिनी के बदन से ही चिपकी हुई थी… आज वो सही तरह से उसके शरीर की बनावट को देख पा रहे थे… कामिनी की कमर में एक कटाव पैदा हो चुका था जो उसके रसीले कुल्हो की चौड़ाई दर्शाते हुए नीचे तक फैलता हुआ दिख रहा था…
ब्रा तो वो पहले भी नही पहनती थी इसलिए उसकी गोलाइयों का उन्हे अच्छे से अंदाज़ा था… करीब 32 का साइज़ था उसके गुलगुलो का.. और उनपर लगे कंचे जितने मोटे लाल निप्पल… उफफफ्फ़.. उनकी नोक को तो लालजी ने कई बार अपनी आँखो के धनुषबान से भेदा था..
कामिनी : “लालाजी…पानी….ओ लालाजी….पानी लीजिए…”
लालाजी को उनके ख़यालो से, लंड के बाल पकड़ कर बाहर घसीट लाई थी कामिनी, जो उनके सामने पानी का ग्लास लेकर खड़ी थी.. नीचे झुकने की वजह से उस कॉटन के टॉवल पर उसकी जवानी का पूरा बोझ आ पड़ा था… ऐसा लग रहा था जैसे पानी के गुब्बारे, कपड़े में लपेट कर लटका दिए है किसी ने… और उनपर लगे मोटे निप्पल उस कपड़े में छेद करके उसकी जवानी का रस बिखेरने तैयार थे…
पर इन सबसे अंजान बन रही कामिनी, भोली सी सूरत बना कर लालाजी के पास ही बैठ गयी और बोली : “पिताजी तो शाम को ही मिलते है लालाजी, आपको तो पता ही है…और माँ उनके लिए खाना लेकर अभी थोड़ी देर पहले ही निकली है…घंटा भर तो लगेगा उन्हे भी लोटने में…”
लालाजी को जैसे वो ये बताना चाह रही थी की अगले एक घंटे तक वो अकेली ही है घर पर…
लालाजी ने उसके गोरे बदन को अपनी शराबी आँखो से चोदते हुए कहा : “अर्रे, मैं ठहरा व्यापारी आदमी, मुझे क्या पता की कब वो घर पर रहेगा और कब खेतो में…मुझे तो अपने ब्याज से मतबल है…आज ही देखा मैने, 20 दिन उपर हो चुके है और ससुरे ने ब्याज ही ना दिया…”
लालाजी अपनी आवाज़ में थोड़ा गुस्सा ले आए थे… कामिनी ने तो हमेशा से ही उनके मुँह से मिठास भरी बातें सुनी थी… इसलिए वो भी थोड़ा घबरा सी गयी…
वो बोली : “लालाजी…इस बार बापू ने नयी मोटर लगवाई है खेतो में, शायद इसलिए पैसो की थोड़ी तंगी सी हो गयी है…”
वैसे तो उसका सफाई देने का कोई मतलब नही था पर लालाजी ताड़ गये की उसे अपनी फैमिली की कितनी चिंता है…
लालाजी : “देख कामिनी, तेरा बापू मोटर लगवाए या मोटर गाड़ी लेकर आए, मेरे पैसे टाइम से ना मिले तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ…”
लालाजी का ये रूप देखकर अब कामिनी को सच में चिंता होने लगी थी… उसने सुन तो रखा था की लालाजी ऐसे लोगो से किस तरह का बर्ताव करते है पर ये नही सोचा था की उसके बापू के साथ भी ऐसा हो सकता है…
उसने लालाजी के पाँव पकड़ लिए : “नही लालजी…आप ऐसा ना बोलो…मेरा बापू जल्दी ही कुछ कर देगा…आप ऐसा ना बोलो…थोड़े दिन की मोहलत दोगे तो वो आपके सूद के पैसे दे देंगे..”
लालाजी ने उसकी बाहें पकड़ कर उपर उठा लिया… उस नन्ही परी की आँखो में आँसू आ रहे थे..
लाला : “अर्रे…तू तो रोने लगी…अर्रे ना…ऐसा ना कर….मैं इतना भी बुरा ना हू जितना तू सोचन लाग री है.”
बात करते-2 लालाजी ने उसे अपने बदन से सटा सा लिया… उसके जिस्म से निकल रही साबुन की भीनी -2 खुश्बू लालाजी को पागल बना रही थी… पानी की बूंदे अभी तक उसके शरीर से चो रही थी… लालाजी की धोती में खड़ा छोटा पहलवान एक बार फिर से हरकत में आया और उसने अपने सामने खड़ी कामिनी को झटका मारकर अपने अस्तित्व का एहसास भी करवा दिया..
एक पल के लिए तो कामिनी भी घबरा गयी की ये क्या था जो उसके पेट से आ टकराया… उसने नज़रें नीचे की तो लालाजी की धोती में से झाँक रहे उनके मोटे लंड पर उसकी नज़र पड़ी, जो बड़ी चालाकी से अपना चेहरा बाहर निकाल कर कामिनी के बदन को टच कर रहा था… वो तो एकदम से डर गयी… आज से पहले उसने लंड का सिर्फ़ नाम ही सुना था कभी देखा नही था…
ये तो ऐसे लग रहा था जैसे कोई काली घीस हो… उसकी कलाई कितना मोटा था और लगभग उतना ही लम्बा उसने घबराकर लालाजी को धक्का दिया और दूर जाकर खड़ी हो गयी… लालाजी ने भी अपने पालतू जानवर को वापिस उसके पिजरे में धकेल दिया और हंसते हुए चारपाई पर वापिस बैठ गये… उन्हे तो पता भी नही चला की कामिनी ने उनका जंगली चूहा देख लिया है..
लालाजी : “चल, तेरी बात मानकर मैं कुछ दिन और रुक जाता हूँ…इसी बात पर एक चाय तो पीला दे…”
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कामिनी बेचारी सहमी हुई सी अंदर गयी और चाय बनाने लगी… उसके जहन में रह-रहकर लालाजी के लंड की शक्ल उभर रही थी… उसने तो सोचा था की गोरा-चिट्टा, सुंदर सा लंड होता होगा… जिसे सहलाने में, दबाने में, चूसने में मज़ा मिलता है. इसलिए लड़किया उसकी दीवानी होती है… उसे क्या पता था की वो निगोडा ऐसा कालू निकलेगा..
जैसे-तैसे उसने चाय बनाई और लालाजी को देने पहुँच गयी.. लालाजी की नज़रें उसके अंग-2 को भेदने में लगी थी, ये बात तो उसे भी अच्छे से पता थी पर उसे भी तो उन्हे अपना शरीर दिखाकर सताने में मज़ा आता था… खैर, चाय पीकर लालाजी चले गये… और उसने आवाज़ देकर अपनी सहेली प्रेरणा को अपने घर बुला लिया.. और उसे लालाजी के घर आने के बाद से लेकर जाने तक का पूरा किस्सा विस्तार से सुनाया..
प्रेरणा : “यार, तू दिन ब दिन बड़ी हरामी होती जा रही है… पहले तो तू लालजी को सताती थी अपना बदन दिखाकर और आज तुझमे इतनी हिम्मत आ गयी की उनका हथियार भी देख लिया तूने…”
कामिनी : “अररी, मैने जान बूझकर नही देखा री… वो तो बस… शायद… मुझे ऐसी हालत में देखकर उनका वो काबू में नही रहा… इसलिए बाहर निकल आया…” उसने शर्माते हुए ये कहा
प्रेरणा : “ओये, रहने दे तू… तुझे मैं अच्छे से जानती हूँ…पिछले कुछ दिनों से तू कुछ ज़्यादा ही उड़ने लगी है… यही हाल रहा ना तो जल्द ही चुद भी जाएगी, देख लेना…”
कामिनी : “मुझे चुदने की इतनी भी जल्दी नही है री… और ऐसे लंड से चुदने में तो बिल्कुल भी नही… एकदम काला नाग था लाला का लंड…सच में प्रेरणा, देखकर ही घिन्न सी आ रही थी…डर भी लग रहा था…”
प्रेरणा : “तो तूने क्या सोचा था, जैसी इंसान की शक्ल होती है, वैसा ही उनका लंड भी होता है… हा हा… वो तो सबका ही काला होता है पागल… बस ये देखना है की वो कितना लंबा है और कितना मोटा… और चुदाई करने में कितनी देर तक अकड़ कर रहता है…”
कामिनी : “तू तो ऐसे बोल रही है जैसे तूने पी एच डी कर ली है इसमें…”
प्रेरणा : “यार, तुझे तो पता है ना… आजकल शोभा दीदी आई हुई है घर पर… कल रात मैं उनसे इसी बारे में बाते कर रही थी… और हम दोनो आपस में बहुत खुली हुई है, तुझे भी पता है…इसलिए उन्होने ये सब बातें बड़े विस्तार से बताई मुझे…”
शोभा दरअसल प्रेरणा की बड़ी बहन थी… जिसकी शादी 2 साल पहले बाड़मेर में हुई थी… 3-4 महीने में 1 बार वो घर पर आ जाया करती थी..
कामिनी : “हम्म…. हो सकता है उनकी बात सही हो…पर मुझे नही लगता की मैं कभी ऐसे लंड से चुद पाऊँगी..”
प्रेरणा : “चुदने की बात तो तू ऐसे कर रही है जैसे तू लालजी के लंड को अंदर लेने को पहले से ही तैयार थी…और अब उसका रंग देखकर मना कर रही है…”
कामिनी : “तू चाहे जो भी समझ…पर मुझे नही लगता की मैं कभी चुदाई के बारे में पहले जैसा सोच पाऊँगी…”
बात तो सही थी… पिछले कुछ दिनों से वो दोनो अक्सर चुदाई की ही बातें किया करती थी… और लालाजी से पंगे लेने के भी नये-2 तरीके सोचा करती थी.. और ऐसा नही था की गाँव में और लड़के नही थे वो लालाजी के साथ ही ऐसा इसलिए किया करती थी की ऐसा करने में बदनामी का डर कम था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
क्योंकि लालाजी किसी से ज़्यादा बात नही किया करते थे…और उनसे लोग डरते भी थे. दूसरे लड़को के साथ ऐसी हरकत करने की देर थी की पूरा गाँव उनके पीछे पड़ जाना था.. पर लालाजी के साथ अपने हिसाब से पंगे लेकर वो भी खुश रहती थी और लालजी को भी उनके हिस्से की खुशी मिल जाती थी. साथ में फ्री का क्रीमरोल तो था ही.
प्रेरणा ने उसे समझाते हुए कहा : “अच्छा तू मुझे एक बात बता…ये लोग अक्सर छुप कर…अंधेरे में .. और रात में ही सैक्स क्यों करते है…”
कामिनी ने उसे गोल आँखे करके देखा और बोली : “पता नही…”
प्रेरणा : “वो इसलिए की लंड के रंग और रूप से उन्हे कोई लेना देना नही होता…वो अंदर जाकर कैसा मज़ा देगा सिर्फ़ यही मायने रखता है…बाकी सबकी अपनी-2 सोच है…”
कामिनी ने सोचा की बात तो प्रेरणा सही कह रही है… उसके माँ बाप भी तो सभी के सोने के बाद नंगे होकर चुदाई करते थे… और वो भी बत्ती बुझा कर… एक-दो बार उसने सोने का बहाना करके, अंधेरे कमरे में उनके नंगे शरीर की हरकत ही देखी थी… पर उसे देखकर वो सिर्फ़ उनके मज़े को ही महसूस कर पाई थी, उन दोनो के अंगो को नही देख पाई थी..
कामिनी : “हम्म्म ..शायद तू सही कह रही है…”
प्रेरणा : “अच्छा, ज़रा डीटेल में बता ना…कैसा था लालाजी का लंड…”
कामिनी की आँखो में गुलाबीपन उतर आया…
वो शरमाते हुए बोली : “यार…मैं तो इतना डर सी गयी थी की उसे ढंग से देख भी नही पाई…बस ये समझ ले की…इतना मोटा था आगे से…”
उसने अपने अंगूठे और साथ वाली उंगली को मिलाकर एक गोला बनाया और प्रेरणा को दिखाया…
प्रेरणा : “सस्स्स्स्स्स्स्सस्स… हाय….. तू कितनी खुशकिस्मत है…. तूने अपनी लाइफ का पहला लंड देख भी लिया…मैं एक बार फिर तुझसे पीछे रह गयी…”
दोनो खिलखिलाकर हंस पड़ी…
और फिर कुछ सोचकर प्रेरणा बोली : “यार, अगर तू बोल रही है की उनका आगे से इतना मोटा था तो सच में उनसे चुदाई करवाने में काफ़ी मज़ा आएगा…”
कामिनी उसके चेहरे को देखकर सोचने लगी की उसकी बात का मतलब क्या है..
प्रेरणा : “मैं तुझे बता रही थी ना शोभा दीदी के बारे में .. उन्होने ही मुझे बताया था… उनके पति यानी मेरे जीजाजी का लंड तो सिर्फ़ इतना मोटा है जितना मेरा अंगूठा…और इतना ही लंबा… बस… इसलिए वो ज़्यादा एंजाय भी नही कर पाती…”
कामिनी खुली आँखो से ऐसे लंड को इमेजीन करने लगी जो अंगूठे जितना मोटा और लंबा हो… और उसके बारे में सोचकर उसे कुछ ज़्यादा एक्साइटमेंट भी नही हुई… सोचने में ही ऐसा लग रहा है तो अंदर जाकर भला कौन सा तीर मार लेना है ऐसे लंड ने…
इससे अच्छा तो मोटा लंड ही है… चूत फांके चीरता हुआ जब वो अंदर जाएगा तो कितना मज़ा मिलेगा… ये सोचकर ही उसकी चूत में एक कसक सी उठी और गीलेपन का एहसास कामिनी को दे गयी…
”उम्म्म्मममममममम….. अब ऐसी बाते करेगी तो मुझे फिर से कुछ होने लगेगा…”
यही वो शब्द थे जिन्हे सुनने के लिए प्रेरणा इतनी मेहनत कर रही थी…
वो उसके करीब आई और अपनी जीभ से उसके होंठो को चाटते हुए बोली : “तो कौन बोल रहा है साली की सब्र कर… दिखा दे अपनी रसीली चूत एक बार फिर…लालाजी का नाम लेकर…”
प्रेरणा अपनी सहेली की रग-2 से वाकिफ़ थी… और शायद अंदर से ये भी जानती थी की लालाजी से चुदने के सपने वो कई दिनों से देख रही है… ऐसे मौके पर एक बार फिर से लालाजी का नाम लेकर उसने फिर से उसकी चूत का रस पीने का प्रोग्राम पक्का कर लिया…
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प्रेरणा को भी इस खेल में मज़ा आता था… और आए भी क्यो नही, भले ही एक लड़की का दूसरी लड़की के साथ ऐसा रिश्ता ग़लत होता है पर जब तक उनकी चूत में किसी का लंड नही जा सकता तब तक अपनी पक्की सहेली की जीभ तो घुस्वा ही सकते है वो दोनो…
और जब से प्रेरणा ने उसकी चूत का रस पिया था, तब से तो वो उसके नशीले रस की दीवानी सी हो चुकी थी… हालाँकि उसने खुद अपनी चूत का रस भी उंगली डालकर चखा था.. पर उसमे वो नशा नही था जो कामिनी की चूत से निकले रस का था…
जैसे पहली धार की कच्ची शराब हो… ठीक वैसा नशा था उसका… और ये सब बाते करने के पीछे उसका मकसद एक बार फिर से उसकी चूत का रस पीने का था… प्रेरणा ने जैसे ही कामिनी के होंठो को चाटा उसके तो कुत्ते फैल हो गये… वो भी उसके होंठो पर टूट पड़ी…
प्रेरणा ने उसकी टॉवल को खींच कर कागज़ की तरह नीचे फेंक दिया… अंदर से तो वो पूरी नंगी ही थी.. कामिनी को उसके गुलाबी निप्पल वाले नन्हे अमरूद भी बहुत पसंद थे… गोरे-2 कच्चे टिकोरों पर चमक रहे लाल कंचे देखकर उसका मन ललचा उठा उन्हे चूसने के लिए…
वो उन्हे काफ़ी देर तक चूसती रही फिर प्रेरणा ने उसे उसी खाट पर लिटा दिया जिसपर अभी कुछ देर पहले लालाजी बैठे थे… प्रेरणा ने भी अपने कपडे झटके से उतार फेंके, वो कामिनी के मुकाबले थोड़ी सांवली थी, पर उसका बदन भी काफी कसा हुआ था, वैसे भी लड़कियां नंगी होकर हमेशा ख़ूबसूरत दिखती हैं. और उसकी टांगे अपने कंधे पर लगाकर वो उसकी शहद की दुकान से मिठास बटोरने लगी..
”आआआआहह खा जा इसे…… निकाल ले सारा जूस अंदर का….अहह…साली आजकल बहुत बहती है ये….पी जा सारा रस…पी जा…”
प्रेरणा को तो वो रस वैसे ही बहुत पसंद था… वो अपनी जीभ की स्ट्रॉ लगाकर उसकी चूत का रस सडप -2 करके पीने लगी… और अंत में जब कामिनी की चूत ने असली घी का त्याग किया तो उसके झड़ते हुए शरीर को महसूस करके वो खटिया भी चरमरा उठी…
और जैसे ही वो शांत हुई की बाहर की कुण्डी खटक गयी… कामिनी की माँ वापिस आ गयी थी खेतो से… कामिनी नंगी ही भागती हुई बाथरूम में घुस गयी और प्रेरणा को सब संभालने का कहकर दरवाजा खोलने को कहा.. प्रेरणा ने जब दराजा खोला तो उसे अपने घर में देखकर उसने इधर – उधर देखा और बोली : “तू यहाँ क्या कर रही है इस बकत…और ये कामिनी कहाँ है…”
प्रेरणा : “वो मैं उसके साथ खेल रही थी…अब वो नहाने गयी है…बोली जब तक माँ नही आती मैं यहीं रूकूं…”
कामिनी की माँ :” इसकी जवानी में ना जाने कौनसे उबाल आ रहे है आजकल, दिन में दूसरी बार नहा रही है…और ये देखो, मेरा तौलिया कैसे ज़मीन पर फेंका हुआ है…”
कहते हुए उसने तौलिया उठा कर अंदर रख दिया… प्रेरणा भी जानती थी की अब यहाँ से निकल जाने में ही भलाई है… इसलिए उसकी माँ को ये कहकर की कामिनी को उसी के घर भेज देना, वो वहां से आ गयी.. अब उसे और कामिनी को कुछ ऐसा प्लान बनाना था ताकि ये रोज-2 के छोटे-मोटे मज़े से बढ़कर कुछ आगे निकल सके…
और इसके लिए लालाजी से अच्छा बंदोबस्त कोई और हो ही नही सकता था.. नहा धोकर कामिनी बाहर आई और उसने लालाजी के घर पर आने की बात माँ को बतायी… लालाजी का नाम सुनकर तो उसकी माँ भी घबरा गयी.. उसे भी लालाजी के बर्ताव के बारे में अच्छे से पता था और वो ये भी जानती थी की उनके हालात आजकल अच्छे नही चल रहे है इसलिए सूद चुकाने में देरी हो रही है…
अपनी माँ को उनकी सोच में छोड़कर वो प्रेरणा के घर पहुँच गयी… प्रेरणा के पिता का देहांत कई सालों पहले हो चुका था… इसलिए उनके खेतो का काम उसका बड़ा भाई और माँ मिलकर संभालते थे… और दोनो शाम से पहले घर आने वाले नही थे इसलिए उन दोनो को किसी भी बात की रोक टोक या डर नही था.. प्रेरणा की बहन शोभा आजकल अपने ससुराल से आई हुई थी, वो भी अपने बचपन की सहेली बिजली के घर गयी हुई थी…
प्रेरणा : “कामिनी, एक तो ये तेरी माँ है ना, दिन ब दिन खड़ूस होती जा रही है… मुझे देखते ही ना जाने कैसी आग सी लग जाती है उन्हे…ऐसा ही रहा तो मैने तेरे घर आना बंद कर देना है…”
कामिनी भी ये बात जानती थी की उसकी माँ को प्रेरणा फूटी आँख नही सुहाती… उनका मानना था की उसके साथ मिलकर वो पूरे गाँव में बिना संगल की गाँय की तरह घूमती रहती है… उन्हे शायद 1-2 लोगो ने बोला भी था की दोनो के पर निकल आए है आजकल…
अपनी फूट रही जवानी को दोनो गाँव भर में घूमकर दिखाती फिरती है… इसलिए उन्हे लगता था की प्रेरणा के साथ कामिनी ज़्यादा ना ही मिले तो ही सही है.. पर उन दोनो की दोस्ती इन बातों को नजरअंदाज करके आगे बढ़ती चली जा रही थी..
कामिनी : “छोड़ ना ये रोज की बातें…पहले ये बता की लालाजी को कैसे काबू में लाया जाए…”
प्रेरणा : “अर्रे, वो लाला तो पहले से ही काबू में है… फ्री में क्रीमरोल कोई ऐसे ही नही दे देता… हा हा.”
कामिनी : “मुझे तो लगता है की वो अपना क्रीम रोल देने की फिराक में है…”
प्रेरणा : “हाँ, वही…काला सा…जो तुझे पसंद नही है…”
कामिनी तुनककर बोली : “हाँ, नही है…”
प्रेरणा : “नही है तो पसंद करना पड़ेगा…नही तो लालाजी तेरे काबू में नही आएँगे…”
कामिनी ने सोचने वाला चेहरा बना लिया… जैसे उसकी बात पर गोर कर रही हो.
प्रेरणा : “देख कामिनी…बात सिर्फ़ मज़े की नही है…बात तेरे पिताजी के सूद की भी है…हो सकता है लालाजी के साथ मज़े लेने के बाद वो तेरे पिताजी का सूद भी माफ़ कर दे…”
कामिनी (थोड़ा गुस्से में ) : “तू कहना क्या चाहती है…लालाजी के सूद के बदले मैं उन्हे अपनी चूत भेंट कर दूँ क्या..मुझे ऐसा-वैसा समझ रखा है क्या तूने..? ”
प्रेरणा : “ओहो…बात तो तू ऐसे कर रही है जैसे खुद बड़ी दूध की धुली है…और ये काम करना ही नही चाहती…याद है न, पिछले हफ्ते क्या बात हुई थी हमारी, और कल की 10 रूपए वाली शर्त के बाद तो तूने अपनी नंगी गांड भी दिखा दी उस लाला को…अब रह ही क्या गया है, जब 10 रुपय के बदले नंगी गांड दिखा सकती है तो 10 हज़ार के बदले चूत भी तो दे सकती है ना…, इसलिए ये बेकार की बाते मत कर, जो सच है वो यही है की तुझे लाला की ज़रूरत है और लाला को तेरी जवानी की…”
वैसे प्रेरणा सच ही कह रही थी… रोजाना आपस में सैक्स के बारे में तरह-2 की बातें करने के बाद उन्होने यही सोचा था की अपने हुस्न का जलवा दिखाकर वो लालाजी से समान ऐंठा करेंगी, और ऐसा करने में वो कामयाब भी हो गयी थी…
कामिनी :”चल..मान ली तेरी बात…पर लालाजी ने अगर ये बात गाँव भर में फैला दी तो मेरी माँ तो मेरा गला काट देगी…और तेरा भाई भी तुझे जिंदा नही छोड़ेगा…”
प्रेरणा : “बस…यही तो…यही प्लानिंग तो हमें करनी है…ताकि हमारा काम भी हो जाए और लाला भी अपनी ज़ुबान से कुछ ना बोले…”
दोनो आपस में ऐसे बातें कर रही थी जैसे कोई जंग जीतने निकलना हो.. वैसे ये प्लानिंग किसी जंग से कम की लग भी नही रही थी… इतने सालों तक संभाल कर रखी जवानी का पहला सौदा बिना सोचे समझे नही करना चाहती थी वो दोनो…
यहाँ एक बात जान लेनी आवश्यक है की चूत की खुजली के बारे में कामिनी ज़्यादा आगे थी… उसी का दिमाग़ इस तरह की बातों में ज़्यादा दौड़ता था… अपने माँ बाप का मूड भाँपकर वो रात भर सिर्फ़ उनकी चुदाई भरी आहें सुनने के लिए जागा करती थी…
अपनी चूत को रगड़ कर वो जब तक दिन में 2-3 बार झड़ नही जाती थी, उसे चैन ही नही आता था… नहाते हुए भी वो अपने पूरे बदन, ख़ासकर मुम्मो को निचोड़कर रख देती थी… गाँव के हर मर्द के बारे में सोचकर, उसके लंड को अपनी चूत में लेते हुए सिसकारियां मारते हुए अपनी चूत रगड़ना उसके लिए आम बात थी…
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और इसलिए उसने अपनी इन बातों के जाल में प्रेरणा को भी फँसा लिया था… जब दिन भर उसकी पक्की सहेली सैक्स के बारे में बाते करती तो वो भला कैसे इस रोग से अछूती रह जाती… जवानी के कीड़े ने उसे भी काट लिया और वो दोनो अक्सर सैक्स से जुड़ी गंदी बाते करके घंटो हँसती रहती…
खेल – २ में वो एक दूसरे के अंगो सहलाती और जल्द ही वो खेल सारी मर्यादाएं लांघकर सैक्स के खेल में बदल गया, जिसमें वो गन्दी वाली मूवीज की तरह लैस्बियन सैक्स भी करने लगी. और इसी दौरान उन्होने शर्त लगाकर, लालाजी को भी सताया और अपनी भड़क रही जवानी को शांत करने का उन्हे ये एक नया तरीका मिल गया..
कामिनी बोली : “मेरे दिमाग़ में एक आइडिया है…और अगर वो आइडिया कामयाब हो गया तो पिताजी के पैसो की सिरदर्दी भी दूर हो जाएगी और हमारा काम भी बन जाएगा…और इसके लिए आज शाम को ही हम दोनो लाला की दुकान पर चलेंगे..बोल मंजूर है..”
प्रेरणा जानती थी की उसके खुराफाती दिमाग़ में ज़रूर कुछ गंदा पक रहा है… पर मज़े लेने की चाह तो उसमे भी बहुत थी और वो जानती थी की वो जो भी करेगी, उसमे मज़े तो दोनो को ही मिलेंगे… इसलिए उसने तुरंत हां कर दी.
कामिनी ने उसे पूरा प्लान समझाया और सारी बात सुनकर प्रेरणा भी उसके दिमाग़ की दाद दिए बिना नही रह सकी.. बस… फिर क्या था… दोनो शाम को अपनी प्लानिंग के अनुसार लालाजी की दुकान पर पहुँच गयी. लालाजी ने जब दूर से उन दोनो हुस्न की परियों को अपनी दुकान पर आते देखा तो उनकी धोती में सुस्ता रहा काला अजगर अंगड़ाई लेता हुआ खड़ा हो गया… जैसे कह रहा हो ‘आ गयी दोनो हरामजादियां, अब आएगा मज़ा’
लालाजी : “आओ आओ… क्या हाल है कामिनी…प्रेरणा, बोल क्या लेना है आज तुम्हे…”
बात तो वो कामिनी से कर रहे थे पर उनका एक हाथ उनकी धोती में घुस कर अपने लंड को रगड़ रहा था… कामिनी ने प्रेरणा की तरफ देखा, उसने एक डरा हुआ सा चेहरा बना रखा था… जैसे कुछ कहना चाहती हो पर सकुचा रही हो..
लालाजी : “अररी, साँप सूंघ गया है क्या तुझे…बोल ना…क्या लेगी…”
लालाजी का तो मन कर रहा था की बस एक बार बोल दे ‘लालाजी, आपका लंड लूँगी… बोलो… दोगे क्या..’
पर वो भी जानते थे की वो ऐसा नही बोलेगी… अचानक लालाजी ने नोट किया की जो कुर्ती कामिनी ने पहनी हुई है, उसका गाला काफी गहरा है… और उसकी वजह से उसकी गोलाइयाँ सॉफ दिख रही है… लालाजी की तो हालत पतली हो गयी… कल वो अपनी नंगी गांड दिखा कर गयी थी और आज अपने नंगे आम दिखाने पर उतारू है… कामिनी ने डरा हुआ सा फेस बना रखा था…
वो धीरे से बोली : “लालाजी ..वो…वो ..आपसे कुछ ख़ास बात करनी थी…”
लालाजी ने आस पास देखा, दूर -2 तक कोई नही दिखाई दे रहा था… लालाजी अपनी जगह से उठ कर बाहर निकले और अंदर पड़ी चारपाई पर जाकर बैठ गये… उन्होने दोनो को भी वही बुला लिया.. दरवाजे पर परदा कर दिया ताकि बाहर से कोई उन्हे देख ना सके..
लालाजी की प्यासी नज़रों के सामने कामिनी के कबूतर फड़फड़ा रहे थे… उसकी आधे से ज्यादा गोलाइयाँ उनकी आँखों के सामने थी… लालाजी ने फ्रिज में से 2 कोला निकाल कर उन्हे पकड़ा दी… ठंडी-2 बोतल हाथ में आते ही दोनो ने उसे मुँह से लगा कर पीना शुरू कर दिया…
बॉटल से 2 बूँद टपक कर उसकी क्लिवेज पर जाकर गिरी और गहरी घाटियों में गायब हो गयी… लालाजी ने बड़ी मुश्किल से अपने सूखे गले को तर किया… मन तो कर रहा था की उसकी गोलाईयों पर जीभ फिरा कर वो 2 बूँद भी वेस्ट होने से बचा ले… पर ऐसा करना मुमकिन नही था..
लालाजी : “हाँ…अब बोल…क्या बात है…किसी चीज़ की ज़रूरत है क्या तुझे…?”
कोला पीने के बाद कामिनी बोली : “हाँ लालाजी… और आपके सिवा हमारी मदद कोई और नही कर सकता…”
लालाजी ने अपने कान उसकी तरफ लगा दिए और बोले : “हाँ हाँ बोल, क्या मदद चाहिए तुझे…”
कामिनी : “लालाजी… वो… वो, हमें…. कुछ पैसो की ज़रूरत थी…”
लालाजी ने उन दोनो को ऐसे देखा जैसे विश्वास ही ना कर पा रहे हो… भला उन्हे पैसो की क्या ज़रूरत आन पड़ी… पर वो कुछ नही बोले… उनके दिमाग़ में तो कुछ और ही चलना शुरू हो गया था..
कामिनी : “हमे दरअसल…12 हज़ार रूपए की सख़्त ज़रुरत है”
लालाजी : “देख कामिनी…मुझे वैसे पूछना तो नही चाहिए…पर…इतने पैसे तुझे किस काम के लिए चाहिए…और ये पैसे तू वापिस कैसे करेगी…”
कामिनी जानती थी की लालाजी ये सब ज़रूर पूछेंगे… इसलिए वो पहले से ही जवाब तैयार करके लाई थी…
वो बोली : “वो मैं अभी आपको नही बता सकती… पर मेरा विश्वास करिए… मैं आपके सारे पैसे जल्द ही लौटा दूँगी…”
लालाजी तो अंदर से बहुत खुश हो रहे थे… उनके हिसाब से तो ये उनके पास अपने आप फँसने चली आई थी… 12 हज़ार उनके लिए बहुत छोटी रकम थी… और लालाजी अच्छे से जानते थे की उनके चुंगल में एक बार जब कोई फँस जाता है तो पूरी उम्र ब्याज देता रहता है.. असल वही खड़ा रहता है…
और इन दोनो हिरनियों को काबू में करने के लिए इससे अच्छा उपाय कुछ और हो ही नही सकता था.. लालाजी ये तो समझ गये थे की जैसा मुँह बनाकर वो उनके सामने बैठी है, पैसो की ज़रूरत कुछ ज़्यादा ही है… इसलिए उन्होने एक बार फिर से पूछा : “पहले तू मुझे बता दे की पैसे किसलिए चाहिए तो मुझे देने में कोई परेशानी नही है..”
कामिनी ने तो सोचा था की लाला उनकी बात को जल्द ही मान जाएगा, पर वो भी बनिया आदमी था, इतनी आसानी से पैसे निकालने वाला नही था.. कामिनी ने कोई बहाना भी नही बनाया था, इसलिए उसके दिमाग़ ने तुरंत काम करना शुरू कर दिया… उसने प्रेरणा की तरफ देखा, उसके चेहरे पर भी हवाइयां उड़ रही थी, यानी उसका दिमाग़ भी नही चल रहा था..
कामिनी ने जल्द ही एक बहाना तैयार कर लिया, और बोली : “देखिए लालाजी, आपको मैं बता तो रही हूँ, पर आपसे निवेदन है की आप किसी से भी इस बारे में कुछ नही बोलना.. ख़ासकर हमारे घर वालो से…”
कामिनी का इतना कहना था की ठरकी लाला ने आगे बढ़कर उसके हाथ पर अपने हाथ रख दिया और उसके नर्म हाथों को अपने खुरदुरे हाथों से मसलता हुआ बोला : “अर्रे, नही रे…तू मुझपर पूरा बिस्वास कर सकत है… बतला अब…”
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पास आने की वजह से लाला उसकी मुम्मो की घाटी को थोड़ी और गहराई से नाप पा रहा था.. कामिनी की मुनिया तो एकदम से पनिया गयी… एक तो लाला के सख़्त हाथ और उपर से उनकी गंदी नज़रे… ऐसा लग रहा था जैसे उनकी आँखो से कोई शक्ति निकल कर उसके सख़्त मुम्मे मसल रही है… ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
कामिनी : “वो क्या है ना…इस साल हमारी 12वी क्लास ख़तम हो जवेगी… उसके बाद हमें कॉलेज करना है, और हमारे दोनो के घर वाले ये नही चाहते, वो बोल रहे है की इतना खर्चा करना उनके बस की बात नही है… इसलिए हमने सोचा की अभी के लिए आपसे पैसे लेकर अपने-2 फॉर्म भर लेंगे.. और साथ में अपने अडोस पड़ोस के बच्चो को टूशन पढ़ा कर पैसे बनाते रहेंगे.. ऐसा करने से घर वालो पर भी बोझ नही पड़ेगा और आपके पैसे भी धीरे-2 उतर जाएँगे..”
लालाजी मुस्कुराए और बोले : “वह, इरादा तो बहुत अच्छा है तुम दोनो का…और सच कहूं तो ऐसे काम के लिए मैं पैसे देने से कभी मना नही करता… पर कारोबारी आदमी हूँ, इसलिए सूद पर ही दूँगा… और हर महीने तुम दोनो को 600-600 रुपय मुझे सूद के देने होंगे..”
कामिनी ने हिसाब लगाया तो वो काफ़ी ऊँची ब्याज दर थी… पर उनके दिमाग़ में जो प्लान था उसके सामने ये 10% का ब्याज उनके आड़े आने वाला नही था… इसलिए दोनो ने तुरंत हां कर दी. लालाजी ने एक पेपर पर उन दोनो का राज़ीनामा लिया. उनके दस्तख़त करवाकर लाला ने उन दोनो के हाथ में 6-6 हज़ार रूपर रख दिए… पैसे देखकर दोनो के चेहरे चमक उठे… और लालाजी को धन्यवाद बोलकर वो दोनो उठ खड़ी हुई…
और जैसे ही वो दोनो जाने लगी तो लाला ने कहा : “अर्रे, इतनी जल्दी भी क्या है…थोड़ी देर रुक जा…अपने क्रीम रोल तो लेते जाओ दोनो…”
इतना कहकर लाला अपनी खीँसे निपोरता हुआ बाहर निकल आया और मर्तबान से 2 लंबे से क्रीमरोल्ल निकाल लिए… अभी कुछ देर पहले ही फ्रेश बनकर आए थे इसलिए उनकी क्रीम भी ताज़ा थी… लाला के दिमाग़ में कुछ चालाकी आई और उसने एक रोल में से उपर की क्रीम निकाल कर दूसरे पर लगा दी…
और अंदर आकर वो ज़्यादा क्रीम वाला रोल उसने कामिनी की तरफ लहरा दिया.. और जैसा लाला चाहता था, वैसा ही हुआ उपर रखी क्रीम उछलकर नीचे गिरी और सीधा कामिनी के सीने पर आकर चिपक गयी… लाला का हाथ तुरंत हरकत में आ गया और उसने वो क्रीम उसके सीने से पोंछ डाली..
ये सब इतनी जल्दी हुआ की कामिनी को भी समझने का मौका नही मिला की ये हुआ क्या है… प्रेरणा तो अपने रोल को पकड़ने के साथ ही उसे खाने में व्यस्त हो गयी… पर कामिनी का पूरा शरीर काँप कर रह गया.. लाला ने उसकी छाती पर पड़ी क्रीम को जब अपनी 4 उंगलियो से समेटा तो उसके गुदाज मुम्मो को बुरी तरह से रगड़ता चला गया…
ऐसा लग रहा था जैसे लाला ने उसके मुम्मो के साथ क्रीम वाली होली खेल ली है.. उसका उपरी छाती वाला हिस्सा चिकना हो गया… लाला ने अपनी बेशर्मी दिखाते हुए वो सॉफ की हुई क्रीम अपने मुँह में लेकर चाट ली.. कामिनी तो सुलग कर रह गयी…
आज पहली बार उसके मुम्मो को किसी ने छुआ था… और वो भी लाला ने.. कामिनी जानती थी की वो अगर चाहे तो गाँव के जवान और हॅंडसम लड़को को पटा कर ये सब मज़े ले सकती है पर उस लाला में ना जाने क्या सम्मोहन था की वो उसके हाथो ऐसा काम करवाने चली आई थी…
और आज पहली बार उसका कमोत्तेजना से भरा स्पर्श पाकर और भी ज़्यादा उत्तेजित हो गयी थी… लाला की भी हालत खराब हो गयी थी… उन्हे पैसे देकर तो अब लाला में भी हिम्मत सी आ गयी थी, इसलिए उसने ऐसा दुस्साहसी कदम उठाया था…
और जब ऐसा करने के बाद भी कामिनी ने कुछ नही कहा और अपना क्रीमरोल लेकर चुपचाप खाने लगी तो लाला समझ गया की चिड़िया ने दाना चुग लिया है… यानी आगे भी वो उसके साथ ऐसी छेड़खानी कर सकता है, वो कुछ नही कहेगी..
उसके बाद लाला को धन्यवाद बोलकर दोनो बाहर निकल आई… घर आकर दोनो बहुत खुश थी, उनकी प्लानिंग का पहला चरण पूरा हो चुका था. घर आने के बाद दोनो ने अपना दिमाग़ लगाया की अब इन पैसों को कैसे अपने माँ बाप के थ्रू लालाजी तक पहुँचाया जाए..
और आख़िरकार पूरी रात सोचने के बाद कामिनी के दिमाग़ में एक आइडिया आ ही गया. अगले दिन जब कामिनी और प्रेरणा स्कूल में मिले तो उसने प्रेरणा को वो आइडिया बताया और उसने भी अपनी सहमति जता दी. स्कूल से वापिस आकर कामिनी ने खुश होते हुए अपनी माँ को बताया की उसे स्कूल की तरफ से 10 हज़ार रूपए की स्कॉलरशिप मिली है…
पढ़ने में तो वो होशियार थी ही, इसलिए उसकी माँ को कोई शक भी नही हुआ… कुछ ही देर में प्रेरणा भी आ गयी और खुश होकर उसने भी वही बात दोहराई… कामिनी की माँ की आँखो में आँसू आ गये… 10 हज़ार उनके लिए बहुत बड़ी रकम थी…
उसकी माँ के दिमाग़ में सिर्फ़ वही ख्याल आया की उन पैसो से वो लाला का क़र्ज़ उतार सकते है.. रात को जब कामिनी के पापा घर आए तो इस खबर को सुनकर वो भी काफ़ी खुश हुए.. कामिनी ने बताया की अगले दिन कलेक्टर साहब खुद आकर वो इनाम उसे स्कूल में देंगे..
उसके माँ -बाप ग़रीब होने के साथ-2 अनपढ़ भी थे, इसलिए उन्हे इन बातो का कोई ज्ञान ही नही था… और वो कामिनी के स्कूल जाने से भी कतराते थे… इसलिए कामिनी के झूट के पकड़े जाने का सवाल ही नही उठता था.. अगले दिन स्कूल से आकर कामिनी ने 10 हज़ार रुपय अपनी माँ के हाथ में रख दिए.. जिसे उसके पिताजी ने लालाजी को वापिस कर दिया…
पैसे वापिस करने से पहले कामिनी ने उन्हे समझा दिया की वो ये किसी से भी ना कहे की ये पैसे कामिनी के स्कूल से मिले है, वरना सब मज़ाक उड़ाएंगे की बेटी को मिले पैसो से अपना क़र्ज़ उतार रहे है… इसलिए पैसे वापिस करते हुए कामिनी के पिताजी ने लाला को यही कहा की अपने ससुराल वालो से ये पैसे उधार लिए है,ताकि वो अपना कर्ज़ा उतार सके..
और इस तरह से लालजी के पैसे वापिस उन्ही के पास पहुँच गये.. और बाकी के बचे 2 हज़ार रुपय उन दोनो ने बाँट लिए… सब कुछ वैसे ही हो रहा था जैसा उन्होने सोचा था. अगले दिन जब कामिनी लालाजी की दुकान पर गयी तो लालाजी ने पूरी रात सोचकर उसके लिए कुछ अलग ही प्लान बना रखा था.
कामिनी को देखकर लालाजी ने कहा : “अरी कामिनी..अच्छा हुआ तू आ गयी…तुझसे बहुत ज़रूरी काम था मुझे…”
कामिनी : “हाँ लालाजी, बोलिए… क्या काम है..”
अंदर से तो वो भी जानती थी की लालाजी के दिमाग़ मे ज़रूर कुछ गंदा चल रहा है… वैसे चल तो उसके दिमाग़ में भी रहा था..
लाला : “देख ना..कल रात से तबीयत ठीक नही है… पूरी पीठ दुख रही है…वैध जी से दवाई भी ली.. उन्होने ये तेल दिया है…बोले पीठ पर लगा लेना, आराम मिलेगा…अब अपनी पीठ तक मेरा हाथ तो जाएगा नही…इसलिए तुझे ही मेरी मदद करनी पड़ेगी…”
लालाजी तो ऐसे हक़ जता कर बोल रहे थे जैसे पूरे गाँव में कोई और है ही नही जो उनकी मदद कर सके.. और उनके कहने का तरीका ठीक वैसा ही था जैसे कामिनी ने उनसे पैसो की मदद माँगी थी… इसलिए वो भी समझ गयी की उसे भी लालाजी की मदद करनी ही पड़ेगी…
कामिनी ने सिर हिला कर हामी भर दी.. लालजी ने तुरंत शटर आधा गिरा दिया और कामिनी को लेकर दुकान के पिछले हिस्से में बने अपने घर में आ गए… कामिनी का दिल धाड़ -2 कर रहा था… ये पहला मौका था जब वो प्रेरणा के बिना लालाजी के पास आई थी…
और धूर्त लाला ने मौका देखते ही उसे अपने झाँसे में ले लिया.. फिर कामिनी ने सोचा की अच्छा ही हुआ जो प्रेरणा नही आई वरना लालाजी ये बात बोल ही ना पाते.. अंदर जाते ही लालजी ने अपना कुर्ता उतार दिया.. उनका गठीला बदन देखकर कामिनी के रोँये खड़े हो गये…
जाँघो के बीच रसीलापन आ गया और आँखों में गुलाबीपन.. लालाजी अपने बिस्तर पर उल्टे होकर लेट गये और कामिनी को एक छोटी सी शीशी देकर पीठ पर मालिश करने को कहा… कामिनी ने तेल अपने हाथ में लेकर जब लालाजी के बदन पर लगाया तो उनके मुँह से एक ठंडी आह निकल गयी…
”आआआआआआआआअहह…. वाााहह कामिनी…. तेरे हाथ कितने मुलायम है… मज़ा आ गया… ऐसा लग रहा है जैसे रयी छुआ रही है मेरे जिस्म से… आआआअहह शाबाश…. थोड़ा और रगड़ के कर… आहह”
लालाजी उल्टे लेटे थे और इसी वजह से उन्हे प्राब्लम भी हो रही थी… उनका खूँटे जैसा लंड खड़ा हो चुका था… लालाजी ने अपना हाथ नीचे लेजाकर किसी तरह से उसे एडजस्ट करके उपर की तरफ कर लिया… उनके लंड का सुपाड़ा उनकी नाभि को टच कर रहा था…
पर अभी भी उन्हे खड़े लंड की वजह से उल्टा लेटने में परेशानी हो रही थी… कामिनी ये सब नोट कर रही थी… और उसे लालाजी की हालत पर हँसी भी आ रही थी. उसने उन्हे सताने का एक तरीका निकाला..
वो बोली : “लालाजी ..ऐसे हाथ सही से नही पड़ रहा…क्या मैं आपके उपर बैठ जाऊं ..”
लालाजी की तो आँखे फैल गयी ये सुनकर… नेकी और पूछ -2… लालाजी ने तुरंत लंबी वाली हाँ कर दी… बस फिर क्या था, कामिनी किसी बंदरिया की तरह उछल कर उनके कूल्हों पर बैठ गयी… लालाजी तो जैसे जीते-जागते स्वर्ग में पहुँच गये…
ऐसा गद्देदार एहसास तो उन्हे अपने जीवन में आजतक नही मिला था… ये कामिनी के वही कूल्हे थे जिन्हे इधर-उधर मटकते देखकर वो अपनी आँखे सेका करते थे… आज उसी डबल रोटी जैसी गांड से वो उनके चूतड़ों पर घिसाई कर रही थी…
कामिनी ने अपनी टांगे मोड़ कर साइड में लगा दी और दोनो हाथो से उनकी पीठ को उपर से नीचे तक उस तेल से रगड़ने लगी.. लालाजी को एक तरफ मज़ा तो बहुत आ रहा था पर उनकी वो तकलीफ़ पहले से ज़्यादा बढ़ चुकी थी…
उनका लंड नीचे दबकर पहले ही फँसा हुआ सा पड़ा था, उपर से कामिनी का भार आ जाने की वजह से उसका कचुंबर सा निकालने को हो गया था…जैसे कोई मोटा अजगर किसी चट्टान के नीचे दब गया हो कामिनी भी अपना पूरा भार अपने कुल्हो पर डालकर लालाजी के चूतड़ों की चटनी बनाने पर उतारू थी…
वो एक लय बनाकर लालाजी के बदन की मालिश कर रही थी… जिस वजह से लालाजी का शरीर उपर से नीचे तक हिचकोले खाने लगा… कामिनी भी लालाजी की शरीर नुमा नाव पर बैठकर आगे पीछे हो रही थी… और इस आगे-पीछे का स्वाद लालाजी को भी मिल रहा था…
उनके लंड पर घिस्से लगने की वजह से वो उत्तेजित हो रहे थे… ये एहसास ठीक वैसा ही था जैसे वो किसी की चूत मार रहे हो अपने नीचे दबाकर… अपनी उत्तेजना के दौरान एक पल के लिए तो लालाजी के मन में आया की पलटकर कामिनी को अपने नीचे गिरा दे और अपना ये बोराया हुआ सा लंड उसकी कुँवारी चूत में पेलकर उसका कांड कर दे…
पर उन्हे ऐसा करने में डर भी लग रहा था की कहीं उसने चीख मारकर सभी को इकट्ठा कर लिया तो उनकी खैर नही… इसलिए उन्होंने अपने मन और लंड को समझाया की पहले वो कामिनी के मन को टटोल लेंगे… थोड़े टाइम बाद जब उन्हे लगेगा की वो उनसे चुदने के लिए तैयार है और वो इसका ज़िक्र किसी से नही करेगी, तभी उसे चोदने में मज़ा आएगा…
और वैसे भी, अभी के लिए भी जो एहसास उन्हे मिल रहा था वो किसी चुदाई से कम नही था… उपर से कामिनी के बदन का स्पर्श भी उन्हे उनकी उत्तेजना को पूरा भड़काने में कामगार सिद्ध हो रहा था… इसलिए वो उसी तरह, अपने लंड को बेड पर रगड़कर, अपने ऑर्गॅज़म के करीब पहुँचने लगे..
और अंत में आकर, ना चाहते हुए भी उनके मुँह से आनंदमयी सिसकारियाँ निकल ही गयी.. ”आआआआआआहह कामिनी…… मज़ा आ गया…… हायययययययययी………” कामिनी को तो इस बात की जानकारी भी नही थी की लालाजी झड़ चुके है… वो तो उनके अकड़ रहे शरीर को देखकर एक पल के लिए डर भी गयी थी की कहीं बूड़े लालाजी को कुछ हो तो नही गया… पर जब लालाजी ने कुछ बोला तो उसकी जान में जान आई..
लालाजी : “शाबाश कामिनी…शाबाश…ऐसी मालिश तो मेरी आज तक किसी ने नही की है….चल अब उतर जा तू…मुझे तो नींद सी आ रही है…मैं थोड़ा सो लेता हूँ…”
पर कामिनी शायद उनके खड़े लंड को देखना चाहती थी…
कामिनी : ”थोड़ा पलट भी जाइए लालाजी, आपकी छाती पर भी मालिश कर देती मैं…”
लालाजी का मन तो बहुत था की वो भी उससे अपनी छाती की मालिश करवाए पर उनकी हालत नही थी वो करवाने की…
इसलिए उन्होने कहा : “नही कामिनी…आज नही….फिर कभी कर दियो…अभी तो नींद सी आ रही है…तू जा…और जाते हुए मर्तबान से क्रीम रोल निकाल ले…”
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वो उन्होने इसलिए कहा क्योंकि उनके बिस्तर पर ढेर सारा वीर्य गिरा पड़ा था… अपनी सेहत के लिए लालाजी बादाम और चने भिगो कर खाते थे, इसलिए उनका वीर्य भी मात्रा से अधिक निकलता था…और उस हालत में वो सीधा होकर वो झड़ा हुआ माल उसे नहीं दिखाना चाहते थे कामिनी नीचे उतरी और 2 क्रीम रोल निकाल कर बाहर आ गयी… लालाजी अपने बिस्तर से उठे और बेड की हालत देखकर उन्हे भी हँसी आ गयी… सलमा होती तो इस सारी मलाई को चाट जाती…
लालाजी खड़े होकर अपने मुरझाए हुए लंड को मसलते हुए बोले : ”ये मलाई तो अब एक दिन ये कामिनी ही खाएगी…साली को बड़ा मज़ा आ रहा था ना मुझे सताने में… अगली बार इसका अच्छे से बदला लूँगा…फिर देखता हूँ इसकी हालत..” लालाजी के दिमाग़ में उसके लिए कुछ स्पेशल प्लान बनने शुरू हो चुके थे. क्रीम रोल लेकर कामिनी सीधा प्रेरणा के घर पहुँच गयी वो उसके हिस्से का रोल उसे देना चाहती थी और आज का किस्सा भी सुनाना चाहती थी..
Hot says
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