Shy Girl Hold Dick
ये हिंदी सेक्स स्टोरी मेरे किशोरावस्था की है, मैंने स्कूल से निकल कर जूनियर कॉलेज में कदम रक्खा ही था, सारा माहौल उस समय रूमानी लगता था, हर लड़की खूबसूरत लगती थी, शरीर और दिमाग में मस्ती रहती थी, शरीर जैसे हर समय विस्फोट के लिए तैयार, मुठ मारने लगा था, लंड बेचैन रहता था. Shy Girl Hold Dick
वैसे मैं पढाई में भी तेज था और क्लास में ऊँचे दर्जे से पास होता था, इस वजह से घर और बाहर इज्जत थी, किसी चीज के लिए घरवाले मना नहीं करते, उसी समय गर्मी की छुट्टियां हुई और मेरे ताउजी के एक घनिष्ट मित्र अपनी पत्नी और बेटी के साथ हमारे घर आये तीन चार दिनों के लिए, उन्हें पुरी जाना था और हमारे यहाँ रुके थे.
बेटी बनारस के एक स्कूल में नवी कक्षा की छात्रा थी और अभी अभी परीक्षा का रिजल्ट आया था जिसमे पास हो गयी थी, छुट्टियों के बाद दसवीं कक्षा में दाखिला लेना था, उसके परिवार से हमारा बहुत पुराना सम्बन्ध था और मेहमानों जैसी कोई बात नहीं थी. उसके पिताजी भी मेरे पिताजी के दोस्त जैसे ही थे.
पहले हम संयुक्त परिवार में रहते थे, तीन चार सालों से ताउजी व्यापार के लिए पूना रहने लगे थे. बिपाशा को बहुत सालों के बाद देखा था, उसे मेरे बारे में याद तो था, पहले बिलकुल एक छोटी बच्ची सी थी जब देखा था, हमलोग मकान के पीछे के बाड़े में खेले हुए थे और उसे याद था की साथ ही आइसक्रीम खाने और पिक्चर देखने गए थे जब वो एक दो बार आयी थी.
अब जब वो आयी तो मैंने देखा की वो बड़ी लगने लगी थी, शरीर भर गया था, ऊँचाई भी पूरी हो गयी थी, अब वो सलवार पेहेनने लगी थी, मेरा भी देखने का अंदाज बदल गया था, पहले इस तरह से देखा नहीं था, अब वो शर्माती थी, और ज्यादा कर अपनी माँ के साथ ही रहती, थोड़ी बहुत बातें हुई लेकिन झिझकते हुए.
मुझे वो बहुत अच्छी लगी, सुन्दर तो थी ही लेकिन जवानी आने से और भी मदमस्त लगने लगी थी, मैं उससे दोस्ती बढ़ाने और किसी भी तरह उसे आगोश में लेने के लिए व्याकुल हो गया, अब छुट्टियों के बावजूद में दोस्तों के पास नहीं जा रहा था और घर में ही रहता.
छोटे भाई के जरिये बिपाशा के साथ कैरम, लूडो खेलने की योजना बनाता और उसके सामने रहने की कोशिश करता, वो लोग तीन चार दिन के लिए ही आये थे, बातों बातों में अकेले में मैंने एक दो बार उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ की तो वो शर्मा गयी, लगा जैसे की उसे यह सुनने में अच्छा लगा.
दूसरी रात को मैं, बिपाशा और भाई जमीन पर बैठे लूडो खेल रहे थे, माँ पिताजी वगैरह दुसरे कमरे में थे, मैं मौका पाकर बिपाशा के हाथों को और बाँहों को छु देता था, एक दो बार मैंने पासा फेंकते हुए अपना हाथ उसके जांघों पर भी रख कर हलके से दबा दिया था पर उसने कोई विरोध नहीं किया.
शायद उसे लगा हो की अनायास ही ऐसा हुआ हो, उसकी भरी भरी गुदाज जांघों के स्पर्श से बिजली सी शरीर में कौंध गयी, मेरा शरीर अब आवेश से गरम हो रहा था, रात को मैं हाफ पैंट पेहेन कर सोता था, मैंने कोशिस की और बिपाशा के और नजदीक खिसककर हो गया, मैंने धीरे से अपने एक पैर के पंजों को बिपाशा की जांघों के नीचे घुसाना शुरू किया.
उसने मेरी ओर देखा पर कहा कुछ नहीं और दूर हटने की कोशिश भी नहीं की, मेरी हिम्मत बढ़ी और मैं पैर की उंगुलियों से उसके जांघों के नीचे हिस्से को सहलाने लगा, मुझे लगा की मेरे पैरों पर किसी ने गरम बिपाशा स्पंज रख दिया है, थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की बिपाशा ने अपनी जांघों को कुछ ऊपर किया जैसे की मुझे और अन्दर तक पैर डालने के लिए कह रही हो.
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मैंने हिम्मत कर अपने पंजो को और अन्दर किया, अब मेरे पंजे बिलकुल उसके योनी के नजदीक थे, मैं धीरे धीरे अपने पैर के अंगूठे से उसके योनी के पास उसे छेड़ रहा था. मेरा लंड बेकाबू हो गया था, मैं उसे अपना फुफकारता हुआ लंड दिखाना चाहता था, अब मन खेल में नहीं था, बिपाशा भी बेमन से खेल रही थी.
उसकी आवाज़ उखड़ रही थी, लग रहा था उसका गला सूख गया है, मेरे पैर की उंगलिया अब उसके योनी के ऊपर तक पहुँच गयी थी, मैं अंगूठे से उसकी बूर दबा रहा था, मुझे लगा जैसे की उसकी बूर से कुछ पानी जैसा निकला हो, उसकी सलवार गीली लग रही थी, मेरे लिय बैठना मुश्किल था.
मैंने बिपाशा से कहा मेरी गोटियाँ ऐसे ही रहने दो और तुम दोनों खेलो और मैं सुसु से आता हूँ फिर तुम्हे हराऊँगा, मुझे मालूम था भाई जीत जायेगा, वो बहुत लूडो खेलता था, वही हुआ, थोड़ी देर में वो जीत गया और खेल से बाहर हो गया, अब मैं और बिपाशा थे, भाई अपने बेड पर जा कर किताब पढ़ने लगा.
मैं आकर अपनी जगह बैठ गया, बिपाशा से कहा आगे खेलो, और पहले की तरह अपने पंजों को बिपाशा के जांघों के नीचे सरकाने लगा, बिपाशा ने बिना कुछ कहे जांघे ऊपर की और मैं उसकी बूर को कुरेदने लगा, अब हम खेल का बहाना कर रहे थे, थोड़ी देर बाद देखा तो भाई सो रहा था.
अब वो बार बार मेरी तरफ देख रही थी, मैंने एक प्लान किया था, बाथरूम से वापस आते समय अपने पैंट के सामने के दो बटन खोले लिए थे, अब बैठते समय वहां बने सुराख़ से लंड थोड़ा थोड़ा झांक रहा था, बिपाशा की नजर उसपर पड़ रही थी, मैं ऐसा बना हुआ था की मुझे मालूम ही नहीं हो ही मेरे बटन खुले हैं, मैं कनखियों से देख रहा था.
बिपाशा की नजर बार बार उस और जा रही थी, मेरा निशाना ठीक था, बिपाशा और मै दोनों व्याकुल थे, हम खेल रहे थे लेकिन कोई दूसरा ही खेल चल रहा था, दोनों चुप थे, लंड अन्दर बने रहने को तैयार नहीं था, आवेश में फटकर बाहर आना चाहता था, मैं बिपाशा को बार बार अब छु रहा था, कभी जांघों पर, कभी उसकी कमर पर, कभी उसके हाथों को पकड़ रहा था.
उसका जिस्म बहुत ही भरा भरा था, अचानक मैंने देखा बिपाशा की आँखे मेरे पैंट नीचले हिस्से पर जम गयी हैं, लंड बेकाबू होकर सामने के दरवाज़े से बाहर फिसल पड़ा, अपनी उत्तेजित अवस्था में तना खड़ा था पुरी लम्बाई के साथ, लाल सुपाड़ा, वासना की तरलता से चिकना और चमकता हुआ, ६.५ इंच लम्बा, मोटा और कुछ कुछ हल्का कलास लिए हुए, तनाव से फडफडा रहा था.
बिपाशा स्तब्ध सी फटी फटी आँखों से देख रही थी, मैं फिर भी अंजान सा बना उससे पासा फेकने को कहता रहा, बिपाशा भी उत्तेजित थी, उसकी बूर का पानी मेरे अंगूठे को गीला कर रहा था, उससे रहा नहीं गया और वो उठ कर भागी, कहा “मुझे अब नहीं खेलना है”, समझ में नहीं आया की कहीं नाराज तो नहीं हो गयी.
अब लंड को शांत करना आसान नहीं था, मैं उठा लाइट बंद की और बिस्तर पर लेट गया, बिपाशा की गुदाज झंघे और उसके भारी नितम्ब याद आ रहे थे, उनको नंगा देखने की इच्छा तेज हो गयी, उन्हें छूने की और चूमने की इच्छा हो रही थी, उसकी योनी का गीलापन परेशान कर रहा था.
उसके उठे हुए वक्ष और भरे नितम्बो को याद कर रहा नहीं गया, मुठ मार कर लंड को शांत किया, भरभराकर वीर्य निकल पडा, कब गहरी नीद आयी मालूम नहीं. गर्मी का समय था, लगभग सुबह ५-६ बजे नीद खुली तो पाया मुहं में एक अजीब क़िस्म का कड़वा मीठा सा स्वाद है, ताज्जुब हुआ.
शीशे में देखा तो मुहं में चोकलेट लगी हुई थी और लगा किसीने जबदस्ती मुहं में चाकलेट डालने की कोशिश की थी, यह किसने किया होगा मैंने सोचा, कमरे से बाहर आया और बिपाशा के कमरे में झांक कर देखा वह सो रही थी, उसकी माँ और पिताजी नहीं थे, फिर मैंने अपने बाबूजी के कमरे में देखा वहां भी कोई नहीं था.
मुझे ध्यान आया रात को माँ ने बताया था की उनलोगों के साथ सुबह का दर्शन करने मंदिर जाने का प्रोग्राम था और घर की चाभियाँ मुझे दी थी, मंदिर हमारे यहाँ से कोई ४५ किलोमीटर होगा , बाहर देखा तो गाड़ी गैरेज में नहीं थी, मतलब था उनको कम से कम २-३ घंटे तो लगेंगे, मैं समझ गया यह चोकलेट की बदमाशी हो न हो बिपाशा की ही थी.
मैं वापस आया और बिपाशा के कमरे में देखा, वो ऐसे ही सो रही थी पैर फैला कर नितम्बों को ऊपर किये, वक्ष को गद्दे पर दबाये हुए, उसकी चूत के निचले हिस्से का का हल्का उभार उसके सलवार में दिख रहा था, मैं नजदीक आया और गौर से देखा उसने अन्दर पेंटी नहीं पहनी हुई थी.
कुर्ती ऊपर सरक गयी थी, की कमर को सलवार के नाड़े ने घेर रखा था, मुझे रात को सताया, मैंने भी बदला लेने की सोची, बिपाशा का पूरा शरीर उस समय गजब की सेक्सी अवस्था में गद्दे पर फैला पड़ा था, वो पुरी नीदं में बेखबर सो रही थी, मैंने उसके नजदीक बैठ गया और उसके बेधड़क फैले शरीर का आनंद लेने लगा.
गदराया बदन, कमर गोरी जिसपर सलवार बंधी थी, उभार के साथ बड़े नितम्ब, बाल खुले, साँसों के साथ वक्ष ऊपर नीचे हो रहा था, कोई प्रतिमा सी लग रही थी, जैसे बुला रही थी मुझे ले लो. मुझे अपने पर कंट्रोल नहीं रहा, मैं उसकी पीठ की और बैठा था, धीरे धीर कुर्ती को और ऊपर सरकाया.
वो थोडा कुनमुनाई पर उठी नहीं, अब उसकी पूरी नंगी कमर दिख रही थी, मेरे हाथ काँप रहे थे, मैंने धीरे से हाथ कमर पर घेर कर सलवार के नाड़े को खींचना शुरू किया, डर भी लग रहा था की कहीं उठ न जाए और बात बिगड़ जाये, नाड़ा खुल गया और सलवार की पकड़ कमर पर ढीली हो गयी.
मैंने सलवार को नीचे खिसकाना शुरू किया लेकिन सलवार थोड़ी सी नीची होकर रुक गयी, वो गद्दे और नितम्ब के बीच में दबी थी, और खींचने पर बिपाशा जग जाती, बिपाशा के गोरे और चिकने नितम्ब अपनी उभार के साथ ऊपरी हिस्सा दिख रहा था, नितम्बों के बीच की दरार दिख रही थी.
मैंने धीरे से हाथ उसके नितम्बों पर रक्खा और चूम लिया, हाथ को दरार के ऊपर से नीचे सरकाने की कोशिश की तो गरम हवा सी हथेलियों में लगी, बहुत मजा आ रहा था और डर से एक रोमांच भी हो रहा था, मेरे शरीर के रोंये खड़े हो गए थे. पहली बार किसी लड़की के नितम्ब खुले देख रहा था.
वो भी इतनी नजदीक से और उनको प्यार करने और चूमने का अवसर भी, मैंने कभी स्वप्न में भी सोचा नहीं था, बिपाशा जवान कली थी, अभी जवानी का रंग चढ़ ही रहा था, बिलकुल नादान सी, लेकिन शरीर ऐसा भरा हुआ और नशीला बनाया था भगवान ने, मैं देखता रह गया, सुडौल विकसित नितम्ब, गोरे और इतने चिकने.
भूरी लालिमा के साथ नितम्बो के बीच की दरार जो उसकी योनी तक जा रही थी, मुझसे रहा नहीं गया, मैं जीभ और होठों से नितम्बो की पहाड़ियों को चूम चाट रहा था, वासना ने मुझे निष्फिक्र बना दिया था, शायद बिपाशा को कुछ आभास हुआ और उसने मेरी ओर करवट ली, अब उसका जोबन ऊपर की तरफ उठा हुआ.
सलवार नाभी से नीचे, नाड़ा खुला, नीन्द में श्वास लेती , वक्ष ऊपर नीचे श्वास के साथ, मैं उसके चहरे को देख रहा था, कमर कटाव के साथ, वक्ष विकसित और कुर्ती के ऊपरी हिस्से से वक्ष का मांसल भाग बाहर निकल पड़ने को तैयार, अब सलवार को नीचे खींच पाना आसान था.
बहुत धीर से नितम्ब के किनारे सलवार को पकड़ कर खींचा और सलवार जैसे कोई निकलना ही चाहती हो ऐसे निकल पडी, घुटनों तक सलवार को नीचे किया, सामने कोई अप्सरा नींद में बेफिक्र सो रही थी, मैं उसकी योनी देखा कर जैसे होश खो बैठा, आज पहली बार लड़की की योनी देखी वो भी एक कली की.
बहुत हलके मुलायम बाल योनी पर, सुनहरे, अभी आने ही शुरू हुए थे ऐसा लगा, योनी के दोनों भाग फूले हुए, मीठे मालपुए की तरह… एक खूबसूरत कमसिन कन्या जिसपर नई नई जवानी का खुमार चढ़ ही रहा था, इस प्रकार बेसुध सोई हुई अर्धनग्न, अपने बहुमूल्य खजाने को अनजाने में दिखाती हुई.
उसे पता भी नहीं था वो क्या कर रही है, स्तनों का उन्नत उभार, कटीली कमर, योनी के दोनों ओर के फूले हुए पट, योनीद्वार के किनारे के सुनहरे बाल, मोटी गोरी झांघों का योनीद्वार के पास मिलकर बनता हुआ त्रिकोण और उसपर मासूमियत भरा उसका चेहरा गहरी नींद में बेखबर. यह दृश्य मुझे पागल बना रहा था.
पाठकों, क्या कभी आपने जवान होती हरे भरे शरीर वाली कमसिन कली को अर्धनग्न देखा है और वो भी बेसुध बेखबर ? दोस्तों आपने भी जाना होगा की चोरी चोरी छुप के होनेवाली मस्ती का आनंद कुछ और ही होता है, कोई देख लेगा ऐसा एक रोमांच, शरीर में एक झुरझुरी, भय और आनंद का मिश्रण.
खुले सेक्स में वो मजा कभी नहीं. मैंने बिपाशा की योनी के पास मुँह ले गया और स्वास ली, एक नशीली सुगंध, बिपाशा के शरीर की मोहक सुगंध उसके योनी के पसीने और रात को की गयी मूत्र परत से निकलती सुंगंध मिलकर एक अजीब समाँ बन रहा था,रहा नहीं गया, मैं धीरे से योनी पट को चूम रहा था.
मन हो रहा था के योनी को हाथों से फैलाकर योनी छिद्र में अपनी जीभ डाल कर चूम लूं चाट लूं और उसे बाँहों में भर कर प्यार करूँ… एक खूबसूरत कमसिन कन्या जिसपर नई नई जवानी का खुमार चढ़ ही रहा था, इस प्रकार बेसुध सोई हुई अर्धनग्न, अपने बहुमूल्य खजाने को अनजाने में दिखाती हुई.
उसे पता भी नहीं था वो क्या कर रही है, स्तनों का उन्नत उभार, कटीली कमर, योनी के दोनों ओर के फूले हुए पट, योनीद्वार के किनारे के सुनहरे बाल, मोटी गोरी झांघों का योनीद्वार के पास मिलकर बनता हुआ त्रिकोण और उसपर मासूमियत भरा उसका चेहरा गहरी नींद में बेखबर.
यह दृश्य मुझे पागल बना रहा था. पाठकों, क्या कभी आपने जवान होती हरे भरे शरीर वाली कमसिन कली को अर्धनग्न देखा है और वो भी बेसुध बेखबर ? दोस्तों आपने भी जाना होगा की चोरी चोरी छुप के होनेवाली मस्ती का आनंद कुछ और ही होता है, कोई देख लेगा ऐसा एक रोमांच, शरीर में एक झुरझुरी, भय और आनंद का मिश्रण.
खुले सेक्स में वो मजा कभी नहीं. मैंने बिपाशा की योनी के पास मुँह ले गया और स्वास ली, एक नशीली सुगंध, बिपाशा के शरीर की मोहक सुगंध उसके योनी के पसीने और रात को की गयी मूत्र परत से निकलती सुंगंध मिलकर एक अजीब समाँ बन रहा था,रहा नहीं गया, मैं धीरे से योनी पट को चूम रहा था.
मन हो रहा था के योनी को हाथों से फैलाकर योनी छिद्र में अपनी जीभ डाल कर चूम लूं चाट लूं और उसे बाँहों में भर कर प्यार करूँ… आप सोचें की एक कुंवारी कमसिन कन्या जिसकी उम्र नादान है और जो अभी खिलती हुई कली ही है और एक लड़का जिसने अभी उम्र के सत्रवेंह साल में ही प्रवेश किया है.
सेक्स के बारे में कितने उत्सुक और अधीर होंगे, यह मैंने बाद में जाना की बिपाशा भी सेक्स की रंगीन दुनिया के लिए सोचती थी और कमसिन कन्याएँ जितना सोचती हैं और अधरी होती हैं उतना और किसी उम्र में शायद ही होती होंगी और इस आनंद को प्राप्त करने के लिए नए प्रयोग करने से भी संकोच नहीं करती…
बिपाशा बाथरूम में गयी और सलवार उतार कर अपने योनी स्थान को धोने लगी, बाथ का दरवाज़ा आधा खुला छोड़ दिया था, शायद उसने सोचा नहीं इतनी सुबह कोई होगा और मैं पीछे से देख रहा होऊँगा. अद्भुत दृश्य… बनाने वाले ने गज़ब के नितम्ब और जांघें दी थी, गोल, भरे भरे मांसल,गोरे, बिलकुल जैसे सांचे में ढले हुए.
मै उसकी योनी नहीं देख पा रहा था, पानी की धार योनी को साफ़ करती हुई जांघों के बीच से पैरों पर होती हुए नीचे गिर रही थी, उसकी कुर्ती गीली हो गयी थी, मैं दरवाजे के पीछे छुप कर देख ही रहा था की वो अचानक ही मुड़ी और मुझे देख स्तब्ध हो गयी, यही हाल मेरा था, उसने सलवार नहीं पहनी थी.
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सामने से अर्ध नग्न, योनी जांघें और पैर पानी से गीले, योनी पर के हलके सुनहरे बाल योनी से चिपके हुए, स्तन उन्नत और कुर्ती को फाड़ बाहर आने को तैयार, स्तन का ऊपरी हिस्सा गोरा चिकना आकर्षित कर रहा था, लेकिन हम दोनों को काटो तो खून नहीं ऐसी हालत थी….
बिपाशा ने हड़बड़ा कर अपनी सलवार खूंटी से खींची और बिना पहने ही अपने कमरे की ओर भागी, मैं देखता रह गया, एक जवान नंगी कन्या के नितंबों को, हिलते और मचलते हुए . मेरा मन बेचैन, रहा नहीं गया, मैं कमरे के तरफ आया, बिपाशा ने सलवार पेहेन ली थी, बाहर निकलते हुए बोली यह तुमने किया?
मैंने अनजान बनते हुए पुछा, क्या किया?
“ज्यादा चालाक मत बनो तुमने मुझे चोकलेट क्रीम से पूरी तरह लस दिया, और इस तरह?”
“तो किस तरह, तुम ने भी रात को क्या किया.”
“पर मैंने तुम्हारे मुहं में लगाया और तुमने…….” और बोलते बोलत वो रुक गयी.
“और मैंने क्या, तुम्हें जो अच्छा लगा वहां तुमने लगाया, मुझे जो अच्छा लगा वहां मैंने लगाया.”
बिपाशा की तो आवाज ही बंद होगई सुनकर, “तुम गंदे हो ” उसने कहा.
“तुमने कपडे ख़राब कर दिए मेरे, मेरी सलवार पर दाग लग गए, कैसे छूटेंगे.”
” और मेरे पैंट पर जो दाग लगे वो क्या” मैंने कहा.
“झूठ, मैंने वहां नहीं लगाया ” बिपाशा बोल पड़ी.
“तुमने लगाया, यह देख” मैंने अपना अंडरवियर लाकर दिखाया जिसमें रात वीर्य पोंछा था, सूख कर दाग हो गए थे.
“यह चोकलेट थोड़ी है, यह क्या है, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ” और बिपाशा मेरे अंडरवियर को देख शर्मा गयी, उसे समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या बोल रहा हूँ.
” यह तुम्हारी वजह से है, तुम्हारे कारण यह निकला” मैंने कहा.
“निकला ?” उसने अनजाने में पुछा.
” मेरा रस.”
” तुम्हारा रस मतलब ?” वो वाकई अनजान थी.
“तुम गुस्सा नहीं हो तो मैं बताऊँगा तुमने क्या किया मेरे साथ ” मैं अब उससे कुछ खुल गया था और मुझे अपने पर काबू नहीं था, मैं चाहता था की बात को उस ओर मोड़ कर उसकी प्रतिक्रिया देंखूं.
“बोलो” उसने कहा.
“गुस्सा नहीं होना, यह देख क्या किया” कहकर मैंने अपने अपने लिंग पर हाथ रक्खा जो अब फिर से फुफकार रहा था और पैंट के एक तरफ के किनारे को ऊपर कर लिंग की चमड़ी को पूरा पीछे खींच भरपूर लाल सुपाड़े की झलक उसे दिखाई, लिंग था मोटा और लाल, उसकी आँखें पथरा सी गयीं, एकटक निहारने लगी.
“आआअ, उईई, यह क्या है….आआआआ..शी शी शी शी……..ओह हो यह क्या है ….” बिपाशा का चेहरा आश्चर्य से भरा था, आँखें सुपाड़े पर अटकी थी.
और आवाज़ भारी हो गयी जैसे गले में रुंध गयी हो, लिंग फडफडा रहा था, शिष्न बिंदु पर रस की बूँद दिख रही थी, उसने मुझे देखा.
“देख क्या किया, यही रस है, तुमने ऐसा किया” कहकर मैंने शिश्न चमड़ी को आगे पीछे किया, रस की बूँद स्पष्ट थी, शिश्न चिकना और गीला हो गया, बिपाशा देखे जा रही थी लिंग का रूप, उससे रहा नहीं गया और अनायास वो शिश्न पर फूँक मारने लगी, साथ ही अजीब सी आवाज़ भी कर थी, आह ऊह्ह…
उसने कहा “मैंने तो रात को इसे छुआ भी नहीं फिर यह ऐसा रस सा क्या निकल रहा है ” …….. बिपाशा के नजरें मादक थी, लग रहा था वो शिश्न को हाथ में लेने के लिए बेताब थी, गुस्सा होना तो दूर वो तो अचरज से मरी जा रही थी जैसे कोई बच्चा नए खिलौने के लिए व्याकुल हो.
मैं कुछ कहता इससे पहले ही बिपाशा ने हाथ आगे बढ़ा कर शिश्न को पकड़ लिया और अपने हाथों से चमड़ी को आगे पीछे करने लगी और साथ ही फूँक मार रही थी, लिंग से जैसे लावा ही फूट पड़ेगा ऐसा लगा, मैं किसी और ही दुनिया में था, विश्वास नहीं हो रहा था की बिपाशा ने मेरे लिंग को थाम रक्खा था और उसे सहला रही थी.
” क्या चीज़ है …. आह्ह्ह्ह ये ऐसा क्यों हो गया, इतना लाल और लगता है रो रहा है, ….” बिपाशा बोल रही थी, उसने मुझे देखा, आँखों में जैसे गुलाबी नशा…..”तुमने इसे छोड़ दिया और चोकलेट नहीं खिलाई इसलिए रो रहा है…” मैं बोला और बिपाशा को कंधे पकड़ कर खड़ा किया, अब उसके होंठ मेरे सामने थे.
मैंने धीरे से उनको चूमा, और हाथ कमर के पीछे बाँध उसे आगोश में भर लिया, उसके स्तन मेरे सीने से दब रहे थे, उसने भी मेरे कमर में हाथ डाल मझे अपने से सटा लिया, मैं समझ गया वो लाल मस्त लिंग को देख कर गरम हो गयी थी और सब कुछ भूल कर वासना में बह गयी थी, बिपाशा की हालत मदहोश जैसी हो गयी.
वो मेरे हाथों पर गिर पडी, धीरे से उसे पलंग पर लेटाया……….शिश्न उसके हाथों में पकड़ा कर कुर्ती के ऊपर से उसके उरोजों को सहलाने लगा, धीरे धीरे स्तनों को सहला रहा था, दबा रहा था, मेरा हर काम उसकी कामाग्नी बढ़ा रहा था, उसके मुहं से अजीब सी आवाजें निकल रही थी, मेरे शिश्न को छोड़ने को तैयार ही नहीं, उसे खींच रही थी, दबा रही थी…
शिश्न रस से लसपस था, मैंने कुर्ती के ऊपर के बटन खोले बहुत सावधानी से की उसको किसी प्रकार का डर ना लगे… शिश्न रस से लसपस था, मैंने कुर्ती के ऊपर के बटन खोले बहुत सावधानी से की उसको किसी प्रकार का डर ना लगे…. दुधिया उरोजों की उठान, बिपाशा की सांसें तेज चल रही थी.
मेरे लिंग के साथ बहुत मजे से खेल रही थी, उसे खींचना, पकड़ कर मचोड़ देना और पूरे लाल सुपाड़े को निकाल कर उसपर फूंक मारना, हैरानी और प्यार से देखना, मैं भी व्याकुल था, कुर्ती के बाकी बटन खोल उरोजों को आजाद किया, मस्त बिलकुल विकसित, बहुत ही गुदाज, दूधिया चमकते उरोजों के जोड़े, गुलाबी घुन्डियाँ और ऐरोला.
इस उम्र की लड़कियों का अगर शरीर विकसित हो तो अत्यंत गुदाज और वासनामयी हो जाता है, बिपाशा अच्छे परिवार से थी, खानपान अच्छा था, इस उम्र में खाती पीती लड़कियों के शरीर में एक प्रकार का भारीपन आजाता है और नितम्ब और कूल्हे भर जातें हैं, वक्ष विकसित हो शान से अपनी उठान दिखाते हैं, अपने वजन से भी झुकते नहीं.
चोली हर समय टाईट हो जाती है, झांघें बड़ी और मांसल हो जाती हैं, योनी पट फूल उठते हैं और योनी द्वार को ढक लेते हैं जैसे किसी कीमती चीज़ का बचाव कर रहें हो, योनी पर हलके बाल आ जाते हैं, योनी श्राव शुरू हो जाता है, चेहरा भर जाता है और एक मादकता हर समय चेहरे पर रहती है, आँखें चंचल हो जाती हैं.
पसीने में एक नशीली खुशबु हो जाती है, कोई रूप और शरीर की प्रसंशा करता रहे ऐसी तमन्ना इस नाबालिग उम्र में हरसमय होती है, किसी अच्छे लगने वाले का हल्का स्पर्श भी शरीर में जैसे बिजली भर देता है और खुमारी छा जाती है, बिपाशा की उम्र भी वही थी……
..मैंने सोचा भी नहीं इतनी जल्दी बिपाशा अपने आप को समर्पित कर देगी, लेकिन यह उस उम्र का तकाजा ही है और इस उम्र में लड़कियों के लिए अपने आप को कामवासना से बचाना बहुत मुश्किल है अगर उन्हें कोई फ़साने की कोशिस करे तो… कुछ साल के बाद यानी अगर लडकी १९-२० की हो जाती है तो थोडा मुश्किल है लेकिन कमसिन उम्र में बहुत जल्दी ही प्रभावित हो जाती हैं…
बिपाशा के साथ यही हुआ… मैं उसके स्तनों को मसल रहा था, वो मेरे लिंग को सहला रही थी, लग रहा था लिंग से रस की धार छूट पड़ेगी, मैं हाथ नीचे सरकाकर उसकी योनी के पास लाया और उसके त्रिकोण को सहलाने लगा, मैं धीरे करना चाहता था, जल्दबाजी में बिपाशा डर जाती.
कमसिन लड़किया जितनी जल्दी समर्पण करती हैं उतनी ही डरती भी हैं और जरा सा उतावलापन दिखाने से डर कर दूर भाग जाती हैं, उन्हें प्यार और धैर्य से नजदीक लाना होता है, उसके बाद वो आँख बंद कर आपपर भरोसा करती हैं… हम दोनों आनंद विभोर थे, दिमाग में माँ-पिताजी के वापस लौटने आने का भी भय था, मैंने बिपाशा के कान में कुछ प्यार भरी बातें कही और उसे अपनी योनी को दिखाने के लिए राजी किया.
“सिर्फ एक बार दिखाऊँगी, वो भी छूने नहीं दूंगी” वो बोली.
“तुमने मेरा कैसे छुआ और खींच खींच कर दर्द कर दिया, ठीक है एक बार देखूँगा और तुम्हारी सुसु की एक पप्पी लूँगा फिर कभी मत दिखाना” कह कर उसे मनाया, उसने शर्म से आँखें बंद कर ली, मैंने नाड़ा खोल सलवार नीचे की और उस सुन्दरता को देखता रह गया, योनी पर के बाल सुनहरे थे.
सर झुकाकर एक लम्बी सांस ली और उसकी मादकता को सूँघता रहा, नरम और मुलायम, अंगुलियो से योनी पट को थोडा फैलाया, गुलाबी रेशम की दीवार खुल गयी. ” जल्दी करो जो करना है, ” उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी, “वहां कुछ काट रहा है ” “जल्दी करो” “करो ना.”
और वो अपना सर जोरों से हिलाने लगी, और मेरे हाथों पर जोर से नाखून गड़ा दिए , आँखें बंद थी, और नितम्ब उठा कर बेड पर पटकने लगी, मैंने योनी पट खोल होठ और जीभ योनी के अन्दर घुसा योनी को चूसने लगा, “ओह्ह्हह्ह. आह्ह्ह.ओह्ह्ह्ह .उईईइईईए . .आअह्हाआअ….” जैसी आवाजें करने लगी.
“और कर” ” और कर”, “पूरा काट ले उसे” , “करता रह”, “छोड़ मत”, “जोरे से काट”, “दांत गड़ा दे, काट ले”, “चूसे ले” जैसी भाषा बोलने लगी, मैं जोरों से योनी को चूस रहा था और कई जगह योनी के अन्दर काट लिया, पर उसे और चाहिए था, वो पागल सी हो गयी थी, लिंग को टाईट पकड़ खींचने लगी.
मेरी हालत ख़राब थी, कुछ ही छनों में लिंग ने पानी छोड़ दिया और वीर्य की धार उसके स्तनों और पेट पर गिरी, कुछ बूँद उसके चेहरे पर भी गिरीं और जैसे की उसे होश आया, “क्या हुआ, यह क्या हुआ” कहती हुई वो हडबडा कर उठ बैठी, उसे समझ में नहीं आया की क्या हुआ.
मेरे लिंग के मुहं पर दूधिया वीर्य की बूँद लगी हुई थी और उसके चेहरे पेट और स्तनों पर, कुछ सेकेंड्स तो आश्चर्य से देखती रही फिर शर्मा गयी. बोली ” क्या किया तुमने मुझे” और सर झुका लिया, बिना आँख मिलाये पूछा “और यह क्या है, छी.. छी ..कैसे आया छी …” कहकर मुहं और स्तन पर लगे वीर्य को अपनी अंगुलियो और हथेलियो से पोंछ लिया.
बिपाशा की मासूमियत उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे, उसने अपनी हथेलियों को सूँघा और पूछा “यह क्या है” और मेरे लिंग को देखने लगी, “इससे निकला ” और मैंने सर हिलाया तो अचरज से उसकी आँखें बड़ी हो गयीं , “कैसे “.
मैंने कहा ” कल रात भी तुमने ऐसे ही इसे निकाला था जो मेरे अंडरवियर में लगा है, यह लड़कों के लंड का रस है जो जवान सुन्दर लड़की के छूने से निकल जाता है ” मैंने पहली बार लंड शब्द का इस्तेमाल किया था.
“पर रात मैंने तो तुम्हारे इसे छुआ नहीं” बिपाशा बोली,
“तो क्या हुआ, तुमने मुझे तो छुआ था “… तुमने नींद में मुझे छुआ और इसे पकड़ कर इतना खींचा की इसका जूस निकल गया.”
“झूठ मत बोलो, मैंने सिर्फ तुम्हारे मुंह में चोकलेट डाली थी और कुछ नहीं किया” बिपाशा बोली.
“सच बताओ, तुमने मुझे पप्पी नहीं ली?” मैंने अँधेरे में तीर मारा जो निशाने पर लगा.
बिपाशा को काटो तो खून नहीं, ” बस एक बार गाल पर” आँखें झुकाकर और चेहरा घुमा कर बिपाशा ने जवाब दिया, मैंने बिपाशा के गोरे गालों पर छोटी सी पप्पी जड़ थी, वो शर्म से बोल नहीं पा रही थी, मैंने उसे खींचा और सीने से लगा कर होठों को चूस लिया, उसने भी अब जवाब दिया और मेरे सर को पकड़ जोरों से मेरे होठ अपने मुहं में लेकर चूसने लगी.
हम तन्मय थे, शरीर मैं चीटियाँ चल रही थी, जलन सी होने लगी, मैंने स्तनों को दबाया और कुर्ती के बचे हुए बटन खोल कुर्ती नीचे सरका दिया, वो पूरे समय आँखें झुकाए खड़ी रही मुझे थामे हुए, और मेरे लिंग को सहलाते हुए जो बिपाशा के सहलाने से फिर से गर्म हो कठोर होने लगा था…
बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे, एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, बिपाशा के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की…
बाँहों में मस्त जवान कली, गुदाज़ उरोजो का खुला निमंत्रण, हसीं चेहरा, गुलाबी होंठ जो वासना से थरथरा रहे थे, एक खूबसूरत उफनता हुआ स्त्री शरीर जो किसी को भी दीवाना बना दे, हम एक दुसरे के बाँहों में थे, बिपाशा के गोरे और चिकने स्तन उठान पर अपनी पूरी शान से जैसे किसी जवान होती लड़की के होते हैं.
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गुलाबी एरोला, मुहं में लेकर चूसने लगा, वो हल्की सिस्कारी भर रही थी, मेरे लिंग को दोनों हाथों से पकड़ सहला रही थी और अपनी योनी की और खींच रही थी, पूरा माहौल वासना की आग से भरा था, मुझे कुछ होश था लेकिन बिपाशा पूरी तरह मदहोश, मैंने उसे चूम कर दूर हटाया, वो बहुत गर्म थी और मेरे हाथों को बुरी तरह खरोंच लिया दूर होते हुए, अपनी नाराजगी जाहिर की इस तरह, पर माँ-पिताजी आने वाले थे, मन में डर था. उसने याचना भरी आँखों से देखा जैसे कह रही हो क्यों छोड़ दिया.
गालों को चूमते हुए बिपाशा के कानों में कहा ” माँ-पिताजी आने वाले हैं, दोपहर में मिलेंगे”… उसकी बेचैनी साफ़ दिख रही थी, मैंने सोचा भी नहीं था की एक नादान सी दिखने वाली लड़की का काम वासना से ये हाल होगा, मैं अपने कमरे में आया और आँखें बंद कर अपने भगवान को धन्यवाद् दिया जिसने ऐसा सुनेहरा मौका मुझे दिया था एक जवान मस्त लडकी को सम्भोग के लिए मेरे पास भेजा, बिपाशा का मस्ती भरा शरीर जैसे आँखों और दिमाग से हटने का नाम नहीं ले रहा था…. भगवान ने बहुत धैर्य और आराम से उसे बनाया था.