Hawas Bhari Ladki
दोस्तो इस साल मकर संक्रांति पर जो हुआ उस पर मुझे आज भी विश्वास नही हो पा रहा है. लखनऊ में मकर संक्रांति हर वर्ष 14 जनवरी को मनाई जाती है और इस दिन को पतंगो का त्योहार कहते है. हज़ारो पतंगे उड़ाई जाती है. लोग टेरेस पर चढ़ कर ग्रूप बनाकर दिन भर पतंगे उड़ाते रहते है. Hawas Bhari Ladki
मैं भी और मेरी बिल्डिंग वाले भी पतंगे उड़ाने के बड़े शौकीन है. हम लोग सुबह से ही टेरेस पर चढ़ जाते है और शाम ढले ही वापस नीचे आते है. हमारी बिल्डिंग की टेरेस बहुत बड़ी है इसलिए दूसरी जगह के लोग भी हमारी बिल्डिंग में पतंगे उड़ाने आते है. हम लोग अपने फ्रेंड्स को बुलाते है हमारे साथ एंजाय करने के लिए.
इस बड़ी टेरेस के साथ एक पानी की टंकी के लिए एक छोटी टेरेस भी बनी हुई है जो टेरेस के दूसरे हिस्से में है. पतंगे उड़ाने के लिए सब लोग बड़ी टेरेस ही यूज़ करते है. छोटी टेरेस मैं टेरेस से एक मंज़िल उपर भी है और स्टेरकेस के दूसरी तरफ भी है. उस तरफ दूसरी बिल्डिंग्स दूर होने के कारण पतंगे भी कम उड़ती है.
मैं मिड्ल क्लास फॅमिली से हूँ और अपने परिवार के साथ भाड़े के घर में रहता हूँ. हमारी बिल्डिंग में सब लोग भाड़े से ही रहते है. मकान मालिक दूसरी जगह रहता है. बिल्डिंग में कई कमरे खाली भी है. केयी तीन-चार सालों से खाली पड़े है. मेरा घर तीन रूम का है.
आगे कोने में एक रूम काफ़ी दिनो से खाली पड़ा है तो मैने उसकी खिड़की, जोकि बॅक साइड के बॅराम्डा में खुलती है, के स्क्रू निकाल दिए. जिसे मैं उसको निकाल कर दिन में काफ़ी बार उस रूम को काम में लेता था. किसी को मालूम भी नही पड़ता था.
मकान मालिक ने उसकी एलेक्ट्रिसिटी चालू रख छ्चोड़ी थी इसलिए फॅन और लाइट की कोई प्राब्लम नही होती थी. हम फ्रेंड्स लोग उसमे बैठकर कामुक कहानिया या मस्ती-ब्लास्ट ब्लॉग पर देशी वीडियो या विदेशी वीडियो देखते थे. मतलब यह हमारी अयाशी का अड्डा था. अंदर एक मेज और दो-तीन कुर्सिया पड़ी हुई थी.
मैं बी.कॉम के फाइनल एअर में हूँ. ऊम्र 19 यियर्ज़ और कद 5’9″ और कसरती बदन. रंग गोरा और चेहरे से खूबसूरत. कॉलेज में मेरी काफ़ी लड़कियों से दोस्ती है जोकि मेरे रंग रूप पर फिदा है. मैं भी इनके साथ काफ़ी खेला खाया हुआ हूँ और हमारे शारीरिक संभंध भी बने हुए है.
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मुझे नयी-नयी अटॅक्टिव लड़कियों से दोस्ती करने में मज़ा आता है और इसमे मैं काफ़ी सक्सेस्फुल भी रहा हूँ. मेरे 8″ के लंबे समान की केयी लड़किया दीवानी है. खैर बात मकर सकरांति वाले किस्से की. उस दिन हम लोग सब टेरेस पेर सुबह 9 बजे से ही टेरेस से पतंगे उड़ाने में लगे हुए थे.
मैं और मेरी बहन अंजलि टेरेस पर दूसरे लोगो के साथ पतंगे उड़ाने में लगे हुए थे. दोपहर में खाना खाने के बाद हम लोग वापस उपेर टेरेस पर आ गये. तभी मैने देखा कि एक लड़की जोकि टाइट टी-शर्ट और टाइट जीन्स पहने हुए वहाँ खड़ी पतंगे उड़ने का मज़ा ले रही थी.
खुद तो नही उड़ा रही थी लेकिन चरखी पकड़े हुए एंजाय कर रही थी. मालूम करने पर मालूम हुआ कि हमारे किसी पड़ोसी की दूर की रिश्तेदार है और यही पास में कही रहती है. नाम उसका सनाया है. सनाया की उम्र मुझे 18 वर्ष से ज़्यादा की नही लग रही थी.
हाइट करीबन 5’4″ रंग मीडियम लेकिन बॉडी बोले तो एकदम झक्कास!! उफ्फ! टाइट टी-शर्ट में च्छूपे हुए मीडियम से बड़े उसके अनार, पतली कमर और टाइट जीन्स से ढके हुई उसकी मांसल जांघे और राउंड शेप के चूतड़. हॅयियी. एस, मेरा मन उसको देख कर तड़फ़ उठा.
वाकई में मेरा दिल बल्ले-बल्ले करने लगा. उसकी टी-शर्ट के टाइट होने की वजह से उसके बूब्स की नुकीली नोक मेरे कलेजे को चीरती जा रही थी. मेरे लंड में रह-रह कर तनाव पैदा हो रहा था. मन कर रहा था कि माँझा और पतंगे को छ्चोड़कर उसके मम्मो को हथेली में लेकर मसल दूं.
उफ़फ्फ़! क्या कातिल जवानी थी उसकी. वो भी इतनी देर में तीन-चार बार नज़रें घुमा कर मुझे उपर से नीचे तक देख रही थी. उसकी नज़रें रह-रह कर मुझ पर टिक जाती. मेरी नज़रें तो काइट पर कम उसके उपेर ज़्यादा थी.
मेरी बहन जोकि मेरी चरखी पकड़े हुए थी अचानक बोली, “भैया, मुझे ज़रा नीचे जाना है, तुम ज़रा चरखी पकड़ लो ना.”
मेरी काइट उस समय काफ़ी उपेर थी इसलिए मैने कहा, “ज़रा 10-15 मिनिट रूको, अंजलि. अभी चरखी कौन पकड़ेगा?”
लेकिन अंजलि बोली, “अर्जेंट काम है भैया. लो मैं किसी दूसरे को पकड़ाती हूँ.”
सयोंग से उस समय सनाया के हाथ में कोई चरखी नही थी. मेरी बहन उसको जानती भी थी. उसने सनाया को बुलाया और कहा, “प्लीज़ यह चरखी थोड़ी देर के लिए पकड़ लो. मुझे अर्जेंट काम से नीचे जाना है.”
सनाया ने मेरी चरखी अंजलि के हाथ से ले ली. अब मेरी उस समय की चाहत के हाथ में मेरी डोर हो गयी.
मैने उसे हाई हेलो किया, “हाई. आइ’म जीशान.”
सनाया ने जवाब दिया, “हाई. आइ’म सनाया.”
फिर मैं काइट उड़ाने में लग गया. बीच-बीच में उसको देखने के बहाने सिर पीछे कर उसे कुच्छ-ना-कुच्छ बात कर लेता. इससे मुझे मालूम हुआ कि वो चार साल पहले ही अपने गाओं से मुंबई में आई है और सेकेंड एअर BA में है. उसके बोलने के अंदाज़ से लग गया कि वो मुंबई में काफ़ी एंजाय कर रही है.
उसकी गाँवो वाली शरम हैया ख़तम हो चुकी है. वहाँ उसे पतंगे कभी उड़ाने को नही मिली थी. लेकिन उसे काइट उड़ते हुए देखना खूब पसंद है. मैने महसूस किया कि सनाया का चरखी पकड़ना पर्फेक्ट्ली नही आता है. मैने उसे बताया की काइट उड़ाने वाले के हाथ के इशारे को समझ कर कैसे चरखी पकड़ी जाती है. कैसे उड़ाने वाले के पीछे खड़ा हुआ जाता है.
इतना सब बताने से उसने चरखी पकड़ने का अंदाज़ बदला और मुझे भी काइट उड़ाने में आसानी होने लगी. मैं बार-बार पीछे देखकर उसके मम्मो का आँखों से रसवादन कर लेता था. उसका चेहरे की सुंदरता को पी लेता था. वो भी मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुझे ताक्ति रहती.
जिसे मेरा उत्साह बढ़ रहा था. मेरे कॉलेज का एक्सपीरियेन्स मेरे काम आ रहा था. तभी मुझे एक आइडिया सूझा मैं अब अपनी उड़ती हुई पतंग को एक साइड में ले गया और पीछे की तरफ होने लगा जिससे सनाया भी मेरे साथ पीछे होने लगी. मेरे अनएक्सपेक्टेड पीछे होने से मेरा बदन उसके जिस्म से रगड़ खा जाता.
इसे मेरे बदन में चिंगारियाँ पैदा होने लगी. मैं अपनी काइट को नीचे उतारने के बहाने अपनी कोहनी से उसके मम्मो को टच करने लगा. फिर वापस से ढील दे कर काइट को और आगे बढ़ा देता. ऐसा आधे घंटे में मैने ना जाने कितनी बार किया होगा.
उसके मम्मे से मेरी कोहनी के हल्के टच से मेरे जिस्म में अंगारे भर रहे थे. उसकी तरफ से कोई नाराज़गी ना देखकर मुझे लगा मज़ा तो उसे भी आ रहा है. मैं अपनी इस कोहनी की हरकत का बड़े ही अंदाज़ से लुत्फ़ उठा रहा था. इस बीच मेरी केयी पतंगे कट गयी. तुरंत ही दूसरी नयी काइट उड़ा देता. और इस लुत्फ़ का मज़ा उठाता रहा.
तभी मेरी बहन अंजलि वापस आ गयी. उसके साथ मेरी फॅमिली के दूसरे मेंबर्ज़ भी आ गये. अंजलि ने आते ही कहा, “सनाया, ला अब चरखी मुझे….”
मज़ा खराब होते हुए देख मैने तुरंत ही बीच में बोल दिया, “अंजलि, जा. तू पापा की चरखी पकड़ ले. सनाया अभी मेरी चरखी पकड़ी हुई है.”
सनाया ने मोहक अंदाज़ से मुस्कराते हुए कहा, “अंजलि, मैं ठीक हूँ यहाँ. तू अपने पापा की चरखी ले ले.”
अब मुझे यकीन हो गया कि मेरा तीर निशाने पर लगा हुआ है. आटा कूदी फसली. मच्चली जाल में आ रही है. मैं अपने नये शिकार को पा कर बड़ा खुश हो रहा था. उसके बड़े और नुकीले मम्मो को अब मसल्ने का उपाय खोजने लगा. तभी मेरी यह इच्च्छा पूरी होने आ गयी.
सनाया ने कहा, “जीशान, मुझे भी काइट उड़ाने दो ना.”
मैने पूछा, “तुम्हे आता है काइट उड़ाना.”
सनाया ने इनकार में सिर हिलाते हुए कहा, “नही. मैने कभी भी काइट नही उड़ाई है.”
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तब मैने मौके को ताड़ते हुए कहा, “रूको अभी. यहाँ तो तुम्हारे हाथ में आते ही कोई ना कोई तुम्हारी काइट काट देगा.” फिर मैने दूसरी छोटी टेरेस के बारे में बताया, जोकि वहाँ से दिखाई तो नही पड़ रही थी, कहा, “वहाँ से उड़ाते है. वहाँ पतंगे बहुत कम है और तुम्हारी काइट को कोई जल्दी से काटेगा नही और तुम्हे भी उड़ाने में मज़ा आएगा.”
मैने जल्दिबाज़ी में अपनी काइट के माँझे को बीच से ही तोड़ दिया. कौन उतारने का झंझट करे. मुझसे ज़्यादा जल्दी इस वक़्त और किसे होगी, फ्रेंड्स? मैने 10-12 पतंगे साथ में ली और स्टेरकेस के दूसरी तरफ चल पड़ा. मेरे पीछे-पीछे सनाया हाथ में चरखी पकड़े हुए चल पड़ी.
किसी ने हमे नही पूछा की कहाँ जा रहे हो. सब अपनी पतंगे उड़ाने में मशगूल थे. हम दोनो उस छोटी टेरेस पर चढ़ गये. वहाँ से बड़ी टेरेस वाले नही दिखाई दे रहे थे और उन लोगो को हम नही दिखाई दे रहे थे. अगल बगल में बिल्डिंग्स नीचे थी जिसे हमे कोई तकलीफ़ नही थी.
मैने वाहा पहुँचते ही काइट को उड़ाया और चरखी खुद पकड़ कर काइट उसके हाथ में दे दी. पहली बार उड़ाने के कारण उसे काइट संभालने में काफ़ी दिक्कत हो रही थी इसलिए काइट को मैने वापस अपने हाथ में ले ली. अब मैने वही पुरानी टॅक्टिक्स अपनाई.
इस बार जगह छोटी होने से मैं बार-बार और जल्दी-जल्दी अपनी कोहनी से उसके मम्मो पर रगड़ देने लगा. बस इतना ध्यान रखा कि कोई ज़ोर से ना मार दूँ. मैने महशूष किया की सनाया के मम्मे मुझे इस बार ज़्यादा कड़क लगे. इस पर गौर करते हुए पीछे मूड कर देखा तो मेरा मुँह आश्चर्या से खुला रह गया.
सनाया अपना सीना थोडा आगे की और कर के आँखे बंद किए हुए खड़ी है. यानी खुद मेरी कोहनी की रगड़ खाने के लिए उतावली हो रखी है. मैने झूमते हुए काइट को उड़ाते हुए कोहनी से थोड़े ज़्यादा दबाते हुए उसके दोनो मम्मो पर बारी बारी रगड़ मारी.
वॉववव! उसके मुँह से सिसकारी निकल रही थी. उफ़फ्फ़! यह सुनकर मेरा लंड तो दंडनाता हुआ खड़ा हो गया. मेरा जोश बढ़ गया. अब मुझे एक कदम और आगे बढ़ाना था. फिर एक आइडिया दीमाग में आया. आरे वह मेरे शैतान दिमाग!!!
मैने सनाया के हाथ में फिर से काइट थमा दी. उसे उड़ाने में दिक्कत होने पर मैने उसका हाथ थाम कर उसे उड़ाने के बारे में सिखाने लगा. सिखाना तो बहाना था. मैं तो अपनी जाँघो से उसके गोल-गोल चूतड़ को रगड़ रहा था. मेरा लंड मेरी जीन्स के अंदर कहीं छुपा हुआ था लेकिन था बड़ा अलर्ट.
उसके चूतड़ का अहसास पाते ही फुंफ-कारने लगा. उसके हाथो को काइट उड़ाने के बहाने अपने हाथों से पकड़ रखा था. उसकी कोमल स्किन की छुहन मेरे जिस्म में बिजली पैदा कर रही थी. काइट को संभालने के कारण हम दोनो के हाथ एक साथ आगे पीछे हो रहे थे.
जिसे मेरे हाथ उसके मम्मो को टच कर रहे थे. मैं अब उसके मम्मो के एकदम नज़दीक पहुँच चुका था. वो भी मज़े लेती हुई अपने हाथो को थोड़े ज़ोर से आगे पीच्चे कर रही थी जिसे उसके मम्मो पेर हाथो की टक्कर भी ज़ोर से होने लगी. इसके साथ ही उसकी सिसकारियाँ बढ़ने लगी. उसकी आँखे बंद होने लगी.
मैने इसका फायदा उठाते हुए अपनी जांघो का ज़ोर उसके चूतड़ पर बढ़ा दिया. मेरा लंड शायद उसकी चूतड़ के क्रॅक्स के बीच लगा हुआ था. शायद इसलिए की दोनो की मोटी जीन्स पहने होने के कारण मालूम नही पड़ रहा था. फिर भी मैं कोशिश में लगा हुआ था.
अब मेरे हाथ बार-बार उसके उन्नत और बड़े मम्मो के पास ही रह रहे थे. मैं अपने गालों को उसके गालों से टच करने की कोशिश करने लगा. हमारा ध्यान अब काइट उड़ाने पर नही बल्कि एक दूसरे में खो जाने में हो रहा था. काइट तो हमारी कोई पेच लगा कर काट चुका था लेकिन हम दोनो इस नये पेच लड़ाने में लगे हुए थे.
अब मेरे हाथ सीधे उसके मम्मो को थाम चुके थे. उफफफफ्फ़! उसके मांसल और कड़क मम्मे मेरी हथेलियों के बीच में थे. मैं उनको सहला रहा था. वो आँखें बंद किए हुए सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ का ज़ोर मेरे लंड की तरफ बढ़ा रही थी.
इसी बीच मैने अपने घुटने से उसके घुटनो को मोड़ा और हम दोनो टेरेस के फर्श पर जा बैठे. अब उसका मुँह मेरी तरफ. उसका कोमल चेहरा, बंद आँखें, भारी साँसें और रूस से भरे तपते होंठ मुझे चूमने का इन्विटेशन देते हुए मेरी ओर बढ़े.
मैं झट से अपने दोनो हथेलियों से उसको थाम लिया और अपने होंठो को उसके रसीले होंठो पर रख दिया. अफ… मादक रसीले होंठ… नरम और गरम… तपते हुए उसके होंठ… संतरे की फांको के जैसे मीठे होंठ… सनाया भी अपनी आँखें बंद किए हुए मेरे तपते होंठो का जूस अपने नीचले होंठ से पी रही थी.
मेरे दोनो हाथ अब उसके कोमल गालों को छु रहे थे. उसकी रेशमी जुल्फें हमारे दोनो के चेहरे पर बिखरी हुई थी. उन्न रेशमी ज़ुल्फो के नीचे हम दोनो एक ज़ोर दार चुंबन लेने में लगे हुए थे. मैं उसके गालों को, कान को और उसकी बंद आँखों को अपनी हथेली से सहला रहा था.
दोनो दीन-दुनिया से बेख़बर एक दूसरे के आगोश में खोए चुंबन पर चुंबन ले रहे थे. मैं अब अपने हाथों को नीचे लाते हुए उसकी टाइट टी-शर्ट में छिपे हुए उसके 2-2 गथीले और उभरे हुए उसके मम्मो को सहलाने लगा. सहलाते ही सनाया के मुँह से सिसकारी निकल पड़ी. सिसकारी के साथ ही उसके मुँह से थूक बाहर निकलने लगा. मैने झट से उसके दोनो मम्मो को थोड़ा ज़ोर से दबा दिया.
“हाई दायया… थोड़ा धीरे…” बस इतना ही निकला उसके मुँह से.
मैने फिर से अपनी जीभ उसके मुँह में थेल्ते हुए उसके उसकी नरम जीभ का स्वाद लेने लगा और उसके मम्मो को सहलाते रहा. अब वो बेसब्री हो उठी. उसके हाथ मेरे सीने से फिसलते हुए मेरी जीन्स की चैन के पास आ गिरे. मैने थोडा बैठते हुए उसे अपनी बाहों में जाकड़ लिया. मैं उसके मम्मो को अब टी-शर्ट के अंदर से बाहर निकालने की कोशिश करने लगा.
वो मेरी जीन्स की चैन को खोलने की कोशिश कर रही थी. तभी नीचे टेरेस एक-साथ ज़ोर दार आवाज़ गूँज उठी. शायद किसी की काइट किसी ने काटी थी. हम दोनो एक दूसरे की आँखों में देखा. एक दूसरे को छ्चोड़ने का सवाल नही था लेकिन यहाँ कपड़े उतारना भी ख़तरे से खाली नही था.
तभी मैने कहा, “सनाया, चलो नीचे चलते हैं.”
वो बोली, “कहाँ? अब रहा नही जा रहा है जीशान.”
“नीचे एक रूम है. मैं पहले नीचे उतरता हूँ. पीछे पीछे तुम भी एक-दो मिनिट बाद नीचे आ जाना,” मैने उसे कहा.
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उसको छोड़ते हुए मैने फिर से उसके मदमुस्त होंठो का एक चुंबन ले लिया और नीचे टेरेस पेर उतर कर सीधा 2न्ड फ्लोर के खाली रूम, जोकि मेरा और मेरे फ्रेंड्स का ऐषगाह था, की तरफ निकल पड़ा. 3 मिनिट बाद सनाया भी वहाँ पर आ गयी.
मैने रूम के पीछे वाली खिड़की को खोला और यहाँ-वहाँ देखने के बाद सनाया को रूम के अंदर खिड़की से जाने को कहा. सनाया के घुसने के बाद मैं भी अंदर घुस गया. अब रूम में हम दो ही थे. दो जिस्म दो जान जोकि एक जान होने वाले थे.
मैने नाइट बल्ब जला दिया और सनाया को अपनी बाहों में भर लिया. सनाया और मैं दोनो एक दूसरे के जिस्म से अपने जिस्म को रगड़ रहे थे. गालों से गालों को… होंठो से होंठो को… सीने से सीने को… और… जांघों से जांघों को… फिर मैने सामने पड़ी मेज को खाली किया और सनाया को उस पर लेटा दिया.
सनाया आँखें मुन्दे लेट गयी. मैं उसके पास आकर उसके मम्मो को उसकी टाइट टी-शर्ट पर से ही चूमने लगा. उसके कड़क मम्मे मेरे मुँह में भी नही समा रहे थे. अपने होंठो से उसके मम्मो को रगड़ रहा था. साथ ही सनाया की सिसकियाँ निकल रही थी.
फिर मैने बेसबरा होते हुए उसकी टी-शर्ट को उतार फेंका. उसके मम्मे अब लो-कट ब्रा के पीछे छुपे हुए नज़र आने लगे. मैं अपने दोनो हाथों से उसके मम्मो को चोली के साथ ही दबाने लगा. उसके कड़क मम्मे मेरे हाथो में भरे हुए थे. सनाया के मुँह से सिसकारी निकल रही थी.
उसके मम्मो को मसल्ते हुए मेरे लंड में ऐंठन होने लगी. लंड जीन्स के बाहर आने को उतावला हो रहा था. मैने अपनी टी-शर्ट को उतार कर रूम के एक कोने की तरफ फेंक दिया. तभी सनाया मेरे कसरती बदन को देखते ही मेज पर उठ कर बैठ गयी और मेरी बनियान को पकड़ कर मेरे गालों को चाटने लगी.
मेरे होंठो को चूमने लगी. उसके दोनो हाथ मेरे बालों और गालों को सहला रहे थे. उसके तपते होंठ मेरे होंठो को चूम रहे थे. मेरे सीने को अपने हाथों से रगड़ रही थी. उसकी गरम साँसे पूरे रूम में तूफान ला रही थी. अपने हाथों से उसने मेरी बनियान को फाड़ फेंका. फिर मेरी जीन्स के उभरे हुए भाग को अपनी हथेली में जकड़ लिया.
अब वो अपने हाथों से करतब दिखती हुई मेरे लंड को मसल्ने लगी. मेरा लंड बहाल हो रहा था. जीन्स में क़ैद बेबस लंड उसके हाथों में उच्छल-कूद मचा रहा था. सनाया ने जीन्स की चैन खोल कर मेरे अंडरवेर के साथ ही मेरे लंड को चाटने लगी. मेरे अंडरवेर सहित ही मेरे लंड को अपने मुँह में डाल लिया. मैं बेहवाश हो गया.
मेरी यह हालत देख सनाया ने मेरे अंडरवेर को नीचे कर मेरे 8 इंच के लंड को अपने हाथ में थाम लिया. मेरा लाल-लाल लंड किसी गुसेले सांड़ की तरह उसे ताक रहा था. अपने हाथों से तौलते हुए मेरे लंड को सहला रही थी. मेरा लंड बार-बार उच्छल कर उसे सलामी दे रहा था.
उसने अपने गालों को मेरे लंड के नज़दीक ला कर रगड़ने लगी. मेरा लंड उसके नरम-नरम गरम-गरम गालों से टच हो कर लोहे की तरह सख़्त हो गया. मैने उसके बालों को पकड़ा और अपना लंड उसके होंठो के पास कर दिया. मगर उसने केवल अपनी जीभ ही बाहर निकाली और मेरे सुपारे को सिर्फ़ टच ही कर रही थी.
मैं पागल हो गया. मैं उसके बालों को पकड़े हुए अपने लंड को उसके मुँह में डालने को उतावला हो रहा था. लेकिन वो मेरे सांड़ जैसे लंड को और पागल करने पर उतारू थी. फिर उसने अपने रसीले होंठो को ओ की तरह कर मेरे लंड के सुपारे को अपने होंठो के बीच दबा लिया.
अब मैं बेसबरा होते हुए उसके बालों को एक हाथ से पकड़े हुए अपने चुतड़ों का धक्का मारने लगा और अपने लंड को थोड़ा अंदर घुसाने को कामयाब हो गया. इसके साथ ही सनाया ने मेरे लंबे और मोटे लंड को अपने मुँह में अंदर जाने के लिए अपने होंठो को और खोल दिया.
अब मेरे लंड आधे से ज़्यादा उसके मुँह में घुस गया. उसने मेरे लंड को अब चूसना शुरू कर दिया. अब सिसकारियाँ निकालने की मेरी बारी थी. मुझे बड़ा ही शकून मिलने लगा. सनाया एक एक्सपर्ट की तरह मेरे लंड को चूस रही थी.
इस मुख चुदाई से मेरा लंड और सख़्त हो गया. मैं अब अपने चूतड़ के धक्के मार कर उसके साथ मुख-चोदन करने लगा. तभी लगा कि मेरे लंड का पानी निकल सकता है तो मैने अपना लंड बाहर निकाल लिया. सनाया मेरे चेहरे की तरफ देखने लगी.
मैने कहा, “सनाया, मेरा पानी निकल जाएगा.”
सनाया ने कहा, “तो निकल जाने दो. रुके क्यों?”
मैने कहा, “नही. अभी नही. लास्ट में एक साथ पानी निकालूँगा.”
इसके साथ ही मैने अपनी जीन्स को नीचे कर अंडरवेर और जीन्स को निकाल फेंका और उसके चोली में छिपे ख़ज़ाने को मुँह से रगड़ने लगा. मैं अपने लंड को थोड़ा आराम देना चाहता था. मैं अपने दोनो हाथों से उसके मम्मो को मसल और दबा रहा था. सनाया की सिसकारी मम्मो को दबाने के साथ ही निकल पड़ी.
अब मैं समझा कि उसके मम्मे बड़े सेन्सिटिव है. टच करते ही उसके जिस्म में एक झूर-झूरी फैल जाती है. शायद काइट उड़ाते वक़्त मेरे लगे उसके मम्मो पर धाक्के के कारण ही अभी वो इस हालत में मेरे साथ है. फिर सनाया को मेज पर लेटा कर उसकी ब्रा को खोल बाहर निकाला और उसके मम्मो को चूमने, चाटने लगा.
उसके बड़े साइज़ के, कड़क, सुडोल और उन्नत मम्मे मुझे जी भर कर मासल्न को कह रहे थे. मैं उन्न मम्मो पर टूट पड़ा. वो भी आँखे बंद किए बड़े आराम से सिसकारियाँ लेती हुई रगडवा रही थी. मैने अपने मुँह में जी भर कर चूसा.
इसी बीच सनाया ने अपनी जीन्स और पॅंटी को अपनी टॅंगो से नीचे धकेल कर पूरी तरह नंगी हो कर मेरे सामने चित्त लेट गयी. अब मैं अपने मुँह को नीचे लेटे हुए उसकी कोमल और रेशम जैसी झांतो को चूमते हुए अपने मुँह को उसकी चूत पर टीका दिया.
उसकी चूत जोकि उसके जूस से पूरी तरह गीली हो चुकी थी. मैने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसकी जांघों और उसकी झांतों को चाटने लगा. गुद-गुडी हो रही थी सनाया को. अपनी दोनो झंघों को सिकोड रही थी. मैं अपनी एक हथेली उसकी झंघों के बीच फँसा कर अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटने लगा.
उसकी जुवैसी चूत मेरे जीभ के टच होते ही और जूस निकालने लगी. मस्ती से भरी हुई सनाया ने अब अपनी दोनो झंघों को खोल कर अपनी चूत को मेरे सामने परोस दिया. मैं उसके चूत-दाने को अपनी एक अंगूली से रगड़ने लगा. जिसे उसकी सिसकारियाँ ज़ोर पकड़ने लगी.
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साथ ही मैं अपने एक हाथ से उसके एक मम्मे को मसल रहा था. फिर मैने अपनी जीभ उसकी चूत के अंदर घुसा दी और मुँह से उसकी चूत की चुदाई करने लगा. अब सनाया बेसबरा हो कर बैठ गयी. उसे सहन नही हो पा रहा था. उसने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ लिया और अपने गालों से रगड़ने लगी.
अब वो मेरे लंड के करतब देखना चाहती थी. उसने मेरे लंड को मुँह में डाला और चूसने लगी. मैं उसका इशारा समझा और देर नही करते हुए उसकी दोनो टाँगो को मेज पर फैलाया और अपने लंड का सुपरा उसकी जुवैसी चूत के मुँह पर लगा दिया. सनाया मेरे लंड को पकड़े हुए अपनी चूत के द्वार से रगड़ रही थी.
उसकी चूत मेरे लंड को सटकाने के लिए बेकाबू हो रही थी. मैने अपने लंड को उसकी चूत के मुँह पर फिट किया और एक हल्का सा धक्का दिया. लंड फिसल कर बाहर आ गया. तब मैने उसकी दोनो टाँगो को और चोडा किया और अपने लंड का धक्का ज़रा ज़ोर से मारा. लंड सीधा एक चोथाई उसकी चूत में जा घुसा और बाहर निकली उसकी हल्की चीख.
“हाीइ… उफ़फ्फ़…. ज़रा धीरे से… हाईईइ…” सनाया मेरे लंड का झटका खाते ही हल्की सी चीखी.
मैने अब अपने लंड को थोड़ा बाहर निकाला और दो-तीन धक्के दे मारे. इन धक्को के साथ ही शुरू हुई हमारी चुदाई. अब मैं हकले-हल्के धक्के मारते हुए अपने 8 इंच के लंड को करीबन 80% तक घुसा दिया. हल्के-हल्के, मीडियम-मीडियम और फिर तेज धक्के लगाने लगे. मैं उस पर हुए उसके होंठो को चूस्ते हुए अपने धक्को को बराबर लगाना चालू रखा.
सनाया मेरे धक्को को हल्की तकलीफ़ के साथ खा रही थी. लेकिन साथ ही उसकी सिसकारियाँ भी बढ़ती जा रही थी. फिर मैने अपने धक्को की स्पीड पूरी तरह बढ़ा दी. जिसका जवाब मुझे उसके नीचे से बढ़ते धक्को के रूप में मिलने लगा. साथ ही उसकी सिसकारियाँ भी तेज होने लगी. 5-7 मिनिट बाद उसकी सिसकारियाँ बहुत तेज हो गयी.
“उफ़फ्फ़…. एसस्स… चोदो…. चोदो…. ऐसे ही अपने लंड से चोदो…. बड़ा मज़ा आ रहा है…. बड़ा सख़्त है तुमहरा लंड…. काट डालो मेरी काइट जैसी चूत को… अपने माँझे जैसे तीखे लंड से…. . …. चोदो…. मुझे…. …. ऐसे ही….” चुदने की मस्ती में सनाया बॅड-बड़ाने लगी.
उसकी बढ़ती हुई सिसकारियों से मैं जोश में आ गया और उसकी दोनो टाँगो को घुटने से मोदते हुए उसकी टाँगो को उसके मुँह की तरफ कर उसपेर चढ़ गया और दे-दना-दान धक्के पर धक्के लगाने लगा. अब मेरा लंड पूरा का पूरा इस पोज़िशन में उसकी चूत में घुसा जा रहा था. मैं अब अपने लंड को पूरा बाहर निकालता और बेरहमी से उसकी चूत के अंदर झट से घुसा देता. उसकी हालत अब बड़ी गरम हो रही थी.
“उम्म्म…. ह्म्म्म्मम… . ऊऊहह…. आओउुउउ….. चोदो…. लंड…. चूत…. चोदो….” सिसकारियाँ लेती रही थी सनाया. तभी उसने हल्की चीख मारते हुए मुझे कस कर पकड़ लिया और अपनी चूत को मेरे लंड से चिपका कर मुझे अपनी बाहों में ले लिया. मैं समझ गया कि उसकी चूत का पानी निकल रहा है.
मैने अपने धक्को की स्पीड को धीमे कर दिया. वो अपने सीने से चिपकते हुए मुझे कस कर जकड़े हुए थी. मैने धीरे-धीरे अपने धक्के देने बंद कर दिए. वो अब लंबी-लंबी साँसे लेते हुए मेरे नीचे चित्त लेटे हुए थी. मेरा लंड अभी भी सख़्त था और उसको चोदने को मचल रहा था.
जब उसकी साँसे बराबर हो गयी तो मैं उसे टेढ़ा करते हुए साइड से उसकी चूत पर वार करने लगा. साथ ही उसके मम्मो को मसल रहा था. उसके चूतड़ मेरी जाँघो से रगड़ खा रहे थे. अपने चूतड़ से धक्के मारते हुए मैं लंड को आधा ही उसकी चूत में घुसा पा रहा था.
लेकिन उसके चूतड़ की रगदाई से मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था. मैने धक्के मारने चालू रखे. लंड उसकी चूत में घुसता और फिर झटके से बाहर आ कर वापस उसकी चूत की गुफा में छुप जाता. चूतड़ की रागड़ाई से सनाया का जिस्म बेकाबू होने लगा. वो उठ बैठी.
सनाया ने मुझे अपनी पीठ से धकेलते हुए मुझे मेज पर लेटा दिया और मुझ पर चढ़ बैठी. उसके चूतड़ मेरी तरफ थे. उसने मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ा और अपनी चूत के अंदर मेरे सुपारे को डाल कर एक ज़ोर का झटका दिया जिससे मेरा लंड सुर्र्ररर से उसकी चूत में जा बैठा.
अब वो अपने चूतड़ को उच्छलते हुए मेरे लंड को अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगी. मैने अपने दोनो हाथ उसके चूतड़ पर रखते हुए उसे सहलाने लगा. उसके दमदार चूतड़ बार-बार मेरी झांघो पर गिरते और उपेर की और उठते हुए फिर से रगड़ मरते. मेरा लंड उसकी चूत की गहराई को पूरी तरह माप रहा था.
वो अपने दोनो हाथ मेरी जाँघो पर रख कर मुझसे चुदवा रही थी. तभी उसने पोज़िशन बदलते हुए मेरे लंड को बाहर निकाले बिना ही घूम गयी और अपना चेहरा मेरे चेहरे की तरफ करते हुए अपनी चूत को उसी स्पीड से हिलाते हुए धक्के मारने लगी. मैं अब उसके मम्मो को उच्छलते हुए देखने लगा. सनाया मेरे दोनो हाथो को पकड़ कर अपने दोनो मम्मो के पास ले गयी.
मैने उसके दोनो मम्मो को थाम लिया. अब वो उपेर-नीचे होते हुए अपनी चूत को मेरी जाँघो से टकराते हुए मेरे लंड को पूरा-का-पूरा अंदर ले रही थी. मैं उसके मम्मो और निपल्स को दबा और मसल रहा था. जिसे उसके जिस्म में जोश भर रहा था और सिसकारियाँ निकल रही थी.
“हां…. दबओ मेरे मम्मो को…. बड़ा मज़ा आ रहा है…. मेरे निपल्स को पिंच करो…. उफफफ्फ़…. पूरा अंदर जा रहा है तुम्हारा लंड…. चूत को बड़ा मज़ा आ रहा है ऐसे…. बड़ा सख़्त है तुम्हारा लंड….. एसस्स… एसस्स…. नोच डालो मेरे मम्मो को….. उफफफ्फ़….. हाईईइ….. तुम्हारा लंड….. मेरी चूत….. उफ़फ्फ़ क्या चुद रही है मेरी चूत….. बड़ा…. और बड़ा…. एस्स….. एसस्स…. एसस्स….” चुदवाते हुए सनाया की सिसकारियाँ बढ़ने लगी.
तभी एक हल्की चीख मारते हुए सनाया मेरे सीने से चिपकटे हुए मुझ पर लेट गयी और गहरी-गहरी साँसे लेने लगी. उसका पानी फिर से निकल गया. लंबी-लंबी गहरी-गहरी साँसे लेते हुए मेरे होंठो को चूमने लगी. मैने उसकी पीठ पर हाथ रखते हुए अपने सीने से दबा लिया और हम 4-5 मिनट तक ऐसे ही पड़े रहे.
जब काफ़ी देर हो गयी और सनाया भी शांत हो गयी तो मैने सनाया को मेज से नीचे उतार कर उसकी दोनो कोहनी को मेज से लगा कर उसे घोड़ी बना दिया. जिसे उसकी चूत पीछे से उभर कर बाहर आ गयी. मेरा लंड लोहे की रोड की तरह अब भी सख़्त था.
मैने उसकी चूत को चौड़ा किया और एक जोरदार झटका देते हुए उसकी चूत में डाल दिया. मैने उसके दोनो कंधों को पकड़े हुए अपने लंड के धक्के देने शुरू कर दिए. मेरी जांघे उसके चूतड़ से टकराती हुई मेरे लंड को उसकी चूत की पूरी गहराई तक पहुँचा रही थी.
लेकिन 30-35 झटकों में ही सनाया का पानी निकलने लगा. मेरा लंड अभी तक मैदान-ए-जंग में वैसा का वैसा ही खड़ा रह गया. जब उसका पानी निकल गया तो वो मेज पर से हाथ हटा कर मेरे सामने नीचे बैठ गयी. अब सनाया की और चुदवाने की हिम्मत नही बची थी.
वो मेरे लंड को अपने मुँह से ही झाड़ देने में लगी हुई थी. मेरा लंड कड़क, खड़ा, होशियार और पानी चोद्ने को उतावला. मैने उसके बाल पकड़ कर उसके मुँह को चूत की तरह चोद्ने लगा. अपना लंड बाहर निकाल कर उसके मुँह में पूरा का पूरा पेल रहा था. मेरा पानी अब निकलने ही वाला था कि तभी बाहर आवाज़ होने लगी.
सब लोग पतंगे उड़ा कर नीचे आ रहे थे. मुझे मेरी बहन अंजलि की भी आवाज़ भी सुनाई दी. अब रूम में रहने का सवाल ही नही था. मैं बड़ा मयूष हो गया. मयूष तो सनाया भी थी. लेकिन किसी के भी अंदर आने का डर जो ठहरा. मेरा लंड जल्दी से सिकुड़ने लगा. अब सख्ती ख़तम होने लगी.
सनाया फुफउसाते हुए बोली, “विशाल, क्या करें अब? तुम्हारा लंड तो अभी तक झाड़ा ही नही है.”
मैने भी धीमे से बोलते हुए कहा, “कोई बात नही. अब तुमसे फिर मुलाकात होगी तभी ही झदेगा यह.”
सनाया बोली, “लेकिन कब? ऐसा मौका कब मिलेगा.”
मैं बोला, “अब मेरे लंड को झाड़ने के लिए तुम्हे जल्दी ही मुझसे मिलना होगा. चलो अच्च्छा है. इसी बहाने तुम अब मुझसे जल्दी ही मिलॉगी.”
सनाया बोली, “अब कैसे करें?”
मैने कहा, “तुम बाहर निकलो और बाजू में बाथरूम है. वहाँ जा कर बाहर चले जाना. किसी को भी शक नही होगा. मैं भी थोड़ी देर में बाहर आ जाऊँगा.”
हमने अपने-अपने कपड़े पहने और मैं सनाया को बाहर भेज कर 2-3 मिनट बाद खुद भी बाहर आ गया. देखा सनाया मेरी बहन अंजलि से बात कर रही है. फिर उसे बात करते हुए बाइ-बाइ कर नीचे उतरने लगी. मैं भी चुप-चाप पास में आकर खड़ा हो गया और अप्पर टेरेस पर जाने लगा.
मेरी आज की कहानी यही ख़तम होते दिखी. बड़ी खीज हो रही थी कि 5-7 मिनट और मिल जाते तो क्या हो जाता? खैर टेरेस पर पहुँच गया. अंधेरा होने लगा था. इसीलिए सभी लोग नीचे आ गये. टेरेस कोई नही था.
मैं अपने लंड को सहलाते हुआ अपनी पतंगे और माँझा लेने उपेर छोटी टेरेस की ओर जाने लगा. मन बड़ा उदास था और लंड मयूष. जब मैं पतंगे और मंजा समेट रहा था की किसी के उपेर आने की आवाज़ सुनाई दी. वाउ! यह तो सनाया ही थी.
“सनाया तुम!” मैने आश्चर्या से पुछा. “अभी तक तुम गयी नही?”
“कैसे जाती विशाल तुमको छोड़ कर?” सनाया ने धीरे से कहा, “ऐसा मज़ा देने वाले को ऐसे ही छोड़ देती मैं?”
मैने सनाया को खुशी से झूमते हुए अपनी बाहों में ले लिया. अंधेरा हो रहा था और किसी के देखने का डर भी नही था.
“किसी ने देखा तो नही तुम्हे?” मैने अपनी बाहों में छुपाते हुए पूछा.
मेरी बाहों में सिमट-ती हुई सनाया बोली, “नही. किसी ने नही देखा. जब सीढ़ी पर कोई नही था तब मैं उपर च्चढ़ गयी.”
अब मैं सनाया को अपनी बाहों में ज़ोर से जकड़ते हुए उसके होठों को चूमने लगा. सनाया भी मेरे चुंबन का जवाब चुंबन से देने लगी.
बीच में ही मैने उसे पूच्छा, “डर नही लगा तुम्हे?”
“डर कैसा? काम अधूरा है तो पूरा तो करना पड़ेगा की नही?” ऐसा कह कर सनाया नीचे बैठ कर मेरी जीन्स की चैन खोल डाली.
जब मैं अपनी जीन्स और अंडरवेर को नीचे कर रहा था तो वो अपनी टी-शर्ट को निकाल फेंकी. उसकी ब्रा गायब थी. उसने मेरे लंड को अपने दोनो मम्मो के बीच डाल कर मेरे लंड को मसलना शुरू किया और मम्मो से मेरे लंड को चोद्ने (टिट-फक्किंग) लगी.
उसके सेंसेटिवे मम्मो की चुदाई ने मेरे लंड को फिर से लोहे जैसा सख़्त बना दिया. 5-7 मिनट तक मेरे लंड को अपने मम्मो के बीच दबाते हुए खूब चुची-चुदाई की. फिर मेरे लंड को मुँह में लिया और लंड को चूसने लगी. 3-4 मिनट की चूसाई के बाद मेरे लंड का पानी निकलने को तय्यार था.
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मैने सनाया के मुँह को पकड़ा और अपने लंड को बाहर निकाला और उसकी हथेली को अपनी हथेली के साथ लगा कर अपने लंड को झाड़ने लगा. मेरा निशाना उसके मम्मे थे. 4-5 बड़ी-बड़ी पिचकारी उसके मम्मो पेर बारी-बारी से मारी जिसे उसके दोनो मम्मे मेरे रस से ढक गये और फिर अपने लंड को उसके मम्मो के बीच दबा कर अपना बाकी का रस निकाला. अपने अंडरवेर से उसके मम्मो को पोंच्छ कर उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसको चूमने लगा.
“फिर कब मिलॉगी सनाया?”
“अब हमारा मिलना तो होता ही रहेगा. अब हम जल्दी-जल्दी मिलेंगे.”
मैं उसको नीचे छोड़ कर उस रूम में वापस गया. मेज और समान ठीक से रखने के बाद सब तरफ नज़र दौड़ाई कि कोई गड़बड़ ना रह जाए. तभी कोने में मुझे सनाया की ब्रा पड़ी हुई मिली. अब समझ में आया कि उपर टेरेस पर उसकी ब्रा क्यों नही थी. आज 15 दिन हो गये. सनाया और मेरी 2 बार मुलाकात हो चुकी है. एक बार इस टेरेस पर और एक बार उस रूम में उसकी खूब चुदाई कर चुका हूँ मैं.