Sister Antarvasna Kahani
नमस्कार दोस्तों, कैसे है आप सभी लोग दोस्तो आपने कहानी का पिछला भाग परिवार में चुदाई की अनोखी कहानी 5 में पढ़ा होगा की अमर अपनी माँ को जयपुर में ले जाकर घूम घुमा कर चोद रहा था. और उसकी माँ भी उसके मोटे लंड पर खूब कूद रही थी अब आगे – Sister Antarvasna Kahani
अगले दिन सारा समय हम एक दूसरे के साथ उस होटल के कमरे में एक साथ ही रहे। हम दोनों ही ज्यादा से ज्यादा समय एक दूसरे का साथ ही रहकर बिताना चाहते थे। सारा दिन हम दोनों ने कभी चूसकर तो कभी चुदाई करते हुए बिताया, बस खाना खाने, पानी पीने और टॉयलेट जाने को छोड़कर हम कामक्रीड़ा में व्यस्त रहे।
जब हम दोनों बिस्तर में ना भी होते, तब भी हम दोनों नंगे ही रहते, और एक दूसरे के नग्न बदन के स्पर्षसुख का मजा लेते रहते। जब चाहे एक दूसरे के होंठों को चूम लेते, जिस से जिस्म की भूख फ़िर जाग उठती और हमारे जिस्म एक दूसरे में आलिंगनबद्ध हो जाते, और हम फ़िर से चुदाई शुरू कर देते।
हम किशोर नवविवाहितों जैसा बर्ताव कर रहे थे, हम माँ बेटे प्यार के बंधन को समझते हुए बार बार एकाकार हो जाते। शाम हो गयी थी, बाहर अंधेरा होने लगा था, और मैं बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई कराह रही थी, अमर पीछे से अपना लण्ड मेरी चूत में तेजी से पेल रहा था.
तभी उसने मेरी वीर्य से भरी चूत में से अपना लण्ड फ़च्च की आवाज के साथ बाहर निकाल लिया, मुझे रिक्तता का अनचाहा अनुभव होने लगा। लेकिन जैसे ही अमर के लण्ड ने मेरी गाँड़ के छेद को छुआ तो मेरी नाराजगी खुशी में तब्दील हो गयी।
हाँफ़ते हुए अमर ने अपने फ़नफ़नाते वीर्य के पानी से चिकने हुए लण्ड के सुपाड़े को मेरी गाँड़ की मोटी गुदाज गोलाईयों के बीच की दरार में घुसाते हुए मेरी गाँड़ के छेद पर सहलाना शुरू कर दिया। सिर उठाकर कंधे के ऊपर से पीछे देखते हुए मैंने शैतानी भरे अंदाज में कहा, ”ओह बेटा, मैं तो सोच रही थी कि कहीं तू मेरे उस छोटे से छेद को भूल तो नहीं गया!”
अमर थोड़ा शर्माते हुए हँस दिया, लेकिन जब उसकी आँखें मेरी आँखों से मिली तो उनमें वासना साफ़ झलक रही थी। ”ऐसा हो सकता है क्या मम्मी! मैं तो आपकी चूत को बस थोड़ा आराम देना चाह रहा था बस…”
”ऑ… मेरा प्यारा बेटा, कितना समझदार है!”
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बेड पर उल्टा लेटे हुए अपनी गाँड़ की गोलाईयों को अपने दोनों हाथों में भरकर मैंने अपनी गाँड़ को चौड़ा करके खोल दिया, जिससे अमर मेरी गाँड़ के छोटे से गुलाबी छेद में लण्ड आसानी से घुसा सके, ऐसा करते हुए मेरे चेहरे पर चिर परिचित मुस्कान आ गयी।
जैसे ही अमर ने मेरे ऊपर आते हुए अपने बदन का भार मेरे ऊपर डाला, मैं मस्त होकर कसमसाकर उठी और मेरे मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी। जब अमर मेरी गाँड़ में अपने लण्ड को आसानी से घुसाने के लिये अपने वीर्य के पानी और मेरी चूत के रस से चिकना कर रहा था.
तो बस उसकी हल्के हल्के गुर्राने की आवाज और मेरे कराहने की धीमी आवाजों के सिवा और कोई वार्तालाप नहीं हो रहा था। इससे पहले कि अमर का लण्ड मेरे गुदाद्वार में प्रवेश करता, मैं अपनी गाँड़ में अमर के लण्ड के घुसने की उत्सुकता के कारण अपने बेटे के सामने पूर्ण रूप से समर्पण कर चुकी थी।
मैंने अपनी गाँड़ की माँसपेशियों को ढीला कर दिया, और अमर के वीर्य के वीर्य के पानी से चिकने हुए लण्ड को मेरी रबर समान लचीली गाँड़ में घुसने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई। जैसे ही अमर के मूसल जैसे लण्ड ने मेरी गाँड़ के छेद को चौड़ा करते हुए धीरे से अंदर प्रवेश करना शुरू किया, मैं कराह उठी।
अमर जैसा पहले कई बार कर चुका था, उसी तरह आराम से मेरी गाँड़ में अपना लण्ड घुसाकर, उसको अंदर बाहर करते हुए पेलना शुरू कर दिया। मेरी गाँड़ के द्वार को पूरी तरह खुलने के लिये शुरू में वो हल्के हल्के झटके मार रहा था, और साथ साथ मेरी अनोखी टाईट गाँड़ की गर्माहट का मजा ले रहा था।
और फ़िर उसने अपना पूरा लण्ड मेरी गाँड़ में घुसा दिया, उसके टट्टे मेरी चूत से टकराने लगे। अमर ने अपना एक हाथ बैड पर टिका कर अपना वजन उस प ले लिया, और दूसरे हाथ से वो मेरी चूत के दाने को सहलाने लगा।
अमर का मांसल बदन मेरे गदराये गुदाज शरीर के ऊपर छाया हुआ था, और मेरी गाँड़ उसके लण्ड की मोटाई के अनुसार अपने आप को ऐड्जस्ट कर रही थी। अमर का सिर मेरे कन्धे पर टिका हुआ था, और वो मेरी गर्दन को चूमते हुए अपनी कमर को आगे पीछे कर अपने लण्ड से मेरी गाँड़ में आराम से धीरे धीरे गहरे झटके मार रहा था।
मजे से गाँड़ मरवाने का जुनून इस कदर मेरे ऊपर सवार हो गया था कि मैं अमर के गुर्राने का जवाब भी अपनी धीमी चीखों के साथ नहीं दे रही थी। हर झटके के साथ जब उसका लण्ड मेरी गाँड़ में अंदर घुसता तो बार बार अमर अपनी मम्मी की गाँड़ की भक्ती की गवाही देता, और मेरे कान को चूसते हुए, धीमे से मेरी तारीफ़ के कुछ शब्द कह देता।
जिस तरह से मेरी चूत के दाने के सहला कर गोलाई में मसलते हुए अमर मेरी टाईट गाँड़ के छेद में अपने मोटे लण्ड को अंदर गहराई तक पेल रहा था, मैं मस्त होकर निढाल होते हुए लम्बी लम्बी साँसे लेते हुए खुशी से काँप रही थी।
और फ़िर जब अमर झड़ा तो जितना भी वीर्य उस दिन के चुदाई समारोह के दौरान उसकी गोटियों में बचा था उसने मेरे गुदा द्वार को भर दिया। मैं तो इतनी बार झड़ चुकी थी कि मानो मैं निढाल होकर बेहोश हो चुकी थी। लेकिन एक बार अंत में फ़िर से मेरा बदन में झड़ते हुए काँप उठा, ऐसा अमर के मेरे चूत के फ़ूले हुए दाने को रगड़ने की वजह से हुआ।
लेकिन मुझे पता नहीं चल रहा था कि मस्ती मेरी चूत में आ रही थी या फ़िर ऐंठते हुए संवेदनशील गाँड़ के छेद में से। उस वक्त ये बात कोई मायने नहीं रखती थी। चरमोत्कर्ष की ऊँचाई से नीचे आते हुए हम दोनों माँ बेटे अगल बगल टाँग में टाँग फ़ँसा कर, दोनों पसीने में तरबतर निढाल होकर हाँफ़ रहे थे, और एक दूसरे को जकड़े हुए लेटे हुए थे।
नींद के गहरे आगोश में जाते हुए मेरी आँखों के बंद होने से पहले मुझे बस इतना याद है कि अमर मेरे मम्मों को अपनी बाहों में जकड़ते हुए मेरी गर्दन को चूम रहा था। अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो होटल के रूम की खिड़की से आती तेज धूप बता रही थी कि दोपहर हो गयी थी। मैंने अमर को अपने पास बैठकर मुझे निहारते हुए पाया।
”गुड मॉर्निंग मम्मी,” अमर ने मुझसे कहा, और फ़िर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। ”मैं तो बहुत देर से जागा हुआ हूँ, शायद मेरा छोटू तो मेरे से भी पहले उठ गया था,” अमर मुस्कुराकर अपने लण्ड की तरफ़ इशारा करते हुए बोला।
मैं खिलखिला कर हँस दी, और अमर के लण्ड को हल्का सा सहलाकर अपने हाथ में पकड़ में पकड़ कर हिलाने लगी। अमर खुश होकर मुझसे जोरों से चिपक गया, और मेरे होंठों को चूमने लगा। शायद अमर मुझे इतना प्यार से चूमकर अपनी व्यक्त ना की जा सकने वाली खुशी और प्रसन्नता का इजहार कर रहा था। मैं उसके लण्ड को जल्दी तेजी से मुठियाने लगी, अमर ने एक पल को चूमना छोड़ कराहने लगा।
”जोर से करो मम्मी, आह्ह्…” अमर चीख कर बोला।
”ना बेटा,” मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया। और फ़िर अमर को सीधा लिटाते हुए, उसके ऊपर सवार होकर मैंने थोड़ा गम्भीर होते हुए कहा, ”मैंने ठान लिया है कि जब भी हम दोनों साथ होंगे, मैं एक पल भी जाया नहीं होने दूँगी बेटा।”
अमर ने हामी में सिर हिला दिया, और मैंने उसका लण्ड पकड़कर अपनी चूत के छेद पर लगा दिया। ”अगले हफ़्ते जब तक सन्नो बुआ के घर से वापस नहीं लौटकर आती, मैं हर एक पल को जीवन भर सहेज कर रखना चाहती हूँ, अमर बेटा,” मैंने उसके मूसल जैसे लण्ड के ऊपर अपनी पनियाती मुलायम चूत को रगड़ते हुए कहा। ”और सन्नो के लौटने के बाद तब की तब देखेंगे।”
जैसे ही अमर के लण्ड के ऊपर बैठते हुए उसको अपनी चूत के अंदर लिया, हम दोनों एक साथ कराह उठे। लण्ड ईन्च दर ईन्च मेरी चूत में घुसता जा रहा था, मैंने आह भरते हुए अमर से पूछा, ”अपनी मम्मी को ऐसे ही प्यार करते रहोगे ना बेटा?”
मैं एक गहरी साँस लेकर रुक गयी, अमर का लण्ड अभी आधा ही मेरी चिकनी चूत में घुसा था, तभी हम दोनों की आँखें मिल गयी। अमर रूँधे गले के साथ किसी तरह बोला, ”हाँ मम्मी हमेशा…”
और फ़िर मेरी गाँड़ की गुदाज गोलाईयों को अपने हाथों में भरकर अमर मुझे अपने लण्ड के ऊपर उछालने लगा, बस एक दो बार उछालने के बाद उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर घुस गया। जब मैं अमर के ऊपर सवारी कर रही थी.
तब अपनी माँ की चूत की चिकनी मखमली दीवार का घर्षण अपने लण्ड पर ऊपर से नीचे तक मेहसूस करते हुए अमर गुर्राने लगा था, मेरी आँखें बंद होने लगी थीं, और मेरे बड़े बड़े मम्मे हर उछाल के साथ उछल रहे थे।
”ओह मम्मी हम ऐसे ही चुदाई किया करेंगे, हमेशा… ऐसी ही चुदाई… बहुत मजा आता है मम्मी…आई लव यू मम्मी…!”
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”म्म्मुआआ… आई लव यू बेटा!” मैं धीमे से बोली, अपने बेटे के लण्ड को एक बार फ़िर से अपनी चूत में जड़ तक घुसा कर, मैं खुशी के मारे काँप रही थी। मुस्कुराते हुए मैं थोड़ा आगे झुक गयी, मेरे मम्मे अमर की छाती से मसलने लगे, हम दोनों के होंठ एक दूसरे को छूने लगे.
मैं अपनी प्यासी चूत को अमर के फ़नफ़नाते लण्ड पर रगड़ते हुए मानो दही बिलोने लगी। मुझे अमर के लण्ड का अपनी चूत में घुसे होने का एहसास बहुत अच्छा लग रहा था, जिस तरह से अमर का लण्ड मेरी चूत को पूरी तरह भर देता था, चूत के छेद को खोलते हुए, चूत की गुफ़ा में मजे से अंदर घुस जाता था.
और चूत के अंदर हर संवेदनशील हिस्से को प्यार से सहला देता था, वो एक मस्त एहसास था। मैं आनंदित होकर मस्ती में डूबी हुई थी, और अमर अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाकर, हर झटके के साथ अपनी गाँड़ ऊपर करते हुए, मुझे अपने ऊपर उछाल रहा था, हम दोनों के बदन स्वतः ही चुदाई की ताल से ताल मिला रहे था।
अपने बेटे अमर के खुले हुए होंठों को चूसते हुए, एक माँ के मुँह से जो वाक्य निकला उसके हर शब्द में सच्चाई थी : “बेटा, हम दोनों हमेशा ऐसे ही किया करेंगे… हाँ सच में बेटा… हाँ…”
सन्नो के मुँह से उसकी मम्मी की अपने बेटे से चुदाई की दास्तान सुनने के बाद मेरे लण्ड में भी हरकत होने लगी थी। मेरा भी मन सन्नो से लण्ड चुसवाने का करने लगा, मैंने अपने वॉलट में से हजार रुपये का नोट निकाला और सन्नो की चुँचियों को दबाते हुए, और अपने लण्ड को पाजामे में से बाहर निकलाते हुए मैंने सन्नो को एक हजार रुपये देते हुए पूछा से, “लेकिन तुम तो बता रहीं थीं कि तुमको भी अमर कई बार चोद चुका है, उसकी शुरूआत कब और कैसे हुई, उसके बारे में भी बताओ ना।
सन्नो मेरे लण्ड को अपने सीधे हाथ में लेकर हिलाने लगी, और अपने मुँह में लेकर चूसने से पहले, उसने अपने भाई अमर से अपनी चुदाई की जो कहानी सुनाई वो कुछ इस तरह थी: अब आगे की कहानी सन्नो की जुबानी-
मम्मी की अमर से हुई चुदाई के किस्से सुनकर मुझे भी अमर से चुदवाने का मन करने लगा था, जब मम्मी को अपने सगे बेटे अमर से चुदने में कोई एतराज नहीं था, तो मैं तो उस समय कच्ची कली थी, जिसकी चूत में हमेशा खुजली मची रहती थी।
जब अमर और मैंने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो एक बार मम्मी को हम दोनों को एक साथ अकेला छोड़कर किसी वजह से मामा के घर जाना पड़ा, उस दिन से हमारी जिन्दगी ही बदल गयी। जाने से पहले मम्मी मुझे अमर का ठीक से ध्यान रखने का बोल कर गयी थीं।
मुझे अच्छी तरह याद है, वो जून का महीना था, रात में खाना खाने के बाद, लाईट ऑफ़ होने के कुछ देर बाद ही अमर खिसक कर मेरे पास आ गया और उसने कुछ देर बाद ही अमर ने मेरी पैण्टी में हाथ घुसा दिया था, और मैने भी अपनी टाँगें फ़ैलाकर मेरी पनिया रही चूत के साथ खेलने का उसको भरपूर मौका दिया था।
अमर मुझे खींच कर कमरे में ले गया था, और जल्दी से घुटनों के बल बैठकर उसने एक झटके में उसने मेरी पैण्टी उतार कर मेरे घुटनों तक ला दी थी। मैं खिसक कर बैड के सिरहाने पर सहारा लगा कर बैठ गयी, और अपनी टाँगें फ़ैला दी।
अमर ने जब मेरी पैण्टी उतारनी शुरु की तो मैंने भी अपनी गाँड़ उठा दी, और उसे ऐसा करने में उसका सहयोग दिया। अमर मेरी नरम मुलायम और इर्द गिर्द झाँटों के हल्के हल्के बालों से घिरी खूबसुरत चूत को देखकर दीवाना हो गया।
मैंने अपनी टाँगें थोड़ी और फ़ैला दी, जिससे उसको मेरी चूत का और बेहतर दीदार हो सके। जैसे ही मैंने अपनी टाँगें थोड़ा और फ़ैलायीं, मेरी चूत के दोनों होंठ अलग अलग हो गये और मानो मेरी गुलाबी चूत मेरे भाई अमर को सामने देख मुस्कुराने लगी।
अमर का लण्ड उसके पाजामे में तम्बू बना रहा था। अमर ने अपने पाजामे का नाड़ा खोला और पाजामे और अन्डरवियर को नीचे खिसका दिया, उसका लण्ड एकदम लोहे के डण्डे की तरह सख्त हो चुका था, लण्ड का सुपाड़ा फ़ूल कर लाल हो रहा था, जैसे ही अमर अपने लण्ड को मेरी चूत के मुँह की तरफ़ लाया, मैं सिहर उठी।
जैसे ही उसने अपने लण्ड को मेरी चूत के होंठो पर रगड़ा, मैं बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी। जैसे ही अमर ने अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाने का प्रयास किया, मैं दर्द के मारे चील्लाने लगी। मेरी कुँवारी चूत में पहली बार किसी का लण्ड घुस रहा था।
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कुछ देर प्रयास करने के बाद जब अमर का बड़ा लण्ड मेरी छोटी सी चूत में घुसने में असफ़ल रहा, तो अमर ने ढेर सारा थूक अपने लण्ड के सुपाड़े पर लगा लिया। हम दोनों ने पापा को मम्मी को चोदते हुए ऐसा करते हुए देखा था।
अमर की ये ट्रिक कार कर गयी और मेरी चूत की दोनों पन्खुड़ियाँ अलग अलग होकर अमर के लण्ड का स्वागत करने लगी, अमर के लण्ड का सुपाड़ा और लण्ड भी कुछ ईन्च मेरी चूत में आसानी से अन्दर घुस गया। मेरा भाई अमर मेरी चूत की चिकनाहट और गर्माहट को अपने लण्ड से मेहसूस कर रहा था, मेरी चूत चुदने को बेकरार होकर बेपनाह पनिया रही थी।
अमर का लण्ड मानो कोई गर्म छुरी हो जो अमूल बटर को काट रहा हो। मेरी चुदने को बेकरार चूत उसके लण्ड की पुरी लम्बाई पर चिकने लिसलिसे पानी की एक पतली सी परत चढा रही थी, जिससे उसके लण्ड को और ज्यादा गहराई तक जाने में आसानी हो सके।
किसी रोबोट की मानिंद मेरे भाई अमर की कमर स्वतः ही आगे पीछे होने लगी और उसका लण्ड मेरी चूत में हल्के हल्के धीरे धीरे अन्दर बाहर होने लगा। अमर के लण्ड और मेरी चूत में मानो आग लगी हुई थी। मेरी चूत में अमर के लण्ड के अन्दर बाहर होने से जो घर्षण हो रहा था वो दोनों के बदन में बेपनाह आग रही था।
उस दिन मुझे एहसास हुआ कि क्यों चुदाई रिश्ते नाते मर्यादा सब कुछ भुलाने पर मजबूर कर देती है। अमर के टट्टों में उबाल आना शुरु हो गया था, और मैं भी अपनी चूत की आग बुझाने के लिये अपनी गाँड़ उठा उठाकर अपने भाई अमर से मस्त चुदाई करवाने में उसका भरपूर सहयोग कर रही थी।
एक बारगी जब हम दोनों, की आँख आपस में मिली तो मुझे एहसास हुआ कि अमर अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में पेलकर मेरी चूत की पूरी गहराई को अपने लण्ड से नाप रहा था। मेरी चूत अब बड़ी आसानी से उसके पूरे लोहे जैसे लण्ड को निगलकर उसके लण्ड के झटकों के साथ खुल और सिंकुड़ रही थी।
ये मेरी पहली चुदाई थी, लेकिन मैं अपने भाई अमर के लण्ड के झटकों से ताल से ताल मिलाते हुए कराह रही थी। मेरा भाई अमर मेरी चूत को अन्दर बाहर, ऊपर नीचे तो कभी साईड से, हर तरफ़ से चोद रहा था, और मेरी चूत उसको हर तरह से चोदने के लिये आमंत्रित कर रही थी।
अपने माँ बाप और माँ और भाई की चुदाई देख देख कर ही शायद मैं एक्स्पर्ट हो गयी थी। अमर क लण्ड मेरी कुँवारी चूत का भोग करते हुए और मेरे करहाने की आवाज सुनकर मेरी छोटी सी चूत पर और ज्यादा ताबड़तोड़ प्रहार कर रहा था।
जो कुछ हो रहा था वो नैचुरल था, मेरी चूत ने शुरु में जो प्रतिरोध किया था, उसे भूलकर वो अब चुदाई में सह्योग कर रही थी। एक बार थोड़ी जब अमर ने एक जोर का झटका मारा तो मानो मेरी तो जान ही निकल गयी, और मेरे मुँह से बरबस चीख निकल गयी, और मेरी चूत ढेर सारा पानी छोड़कर स्खलित हो गयी।
कुछ देर बाद अमर ने मेरी चूत से अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। अमर ने जब अपने लण्द और मेरी चूत की तरफ़ देखा तो उसे और मुझे एहसास हुआ कि मेरी कुँवारी चूत की झिल्ली फ़टने से जो खून निकला था उसकी वजह से अमर का लण्ड लाल खून से लिसा हुआ था, और बैडशीट पर भी खून के दाग लग गये थे।
मैं अपना कौमार्य अपने सगे भाई से चुदकर खो चुकी थी, जो कुछ हो चुका था उस पर पछताना अब व्यर्थ था। हम दोनों की साँस अभी भी तेज तेज चल रही थी, लेकिन मेरे भाई अमर का लण्ड का स्पर्श पाते ही मेरी चूत फ़िर से पनियाने लगी और मेरे शरीर में 440 वोल्ट का करेन्ट दौड़ गया। अब मुझे समझ में आ रहा था कि जब पापा मम्मी को चोदते थे तो दोनों के मुँह से वो कराहने की मदमस्त आवाज क्यों और कैसे निकलती थीं।
मेरे चुदने की लालसा फ़िर से बलवती होने लगी थी, मैं बैड पर थोड़ा नीचे खिसक आई और अपनी दोनों टाँगों को अपने दोनों हाथों से उठाकर, अपनी चूत को खोलकर मैं अपने भाई अमर को अपना लण्ड डालकर मुझे चोदने के लिये आमंत्रित और प्रोत्साहित करने लगी।
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मैंने मम्मी को पापा और अमर से चुदते हुए ऐसा करते हुए देखा था, और अमर ने भी वो ही किया जो उसने पापा को करते हुए देखा था, और जो वो खुद मम्मी को चोदते हुए करता था, उसने अपने हाथ पर ढेर सारा थूक लिया और पहन्ले उससे अपने लण्ड के सुपाड़े को गीला किया और बाकि को मेरी चूत के होठों और छेद के ऊपर घिस दिया, उसके ऐसा करते ही मेरी चूत को चमकने लगी।
मेरे भाई अमर की आँखों में भी मेरी चमकती गीली चूत को देखकर एक अजीब चमक आ गयी। इस बार मेरी चूत ने कोई प्रतिरोध नहीं किया, और अमर का जिद्दी लण्ड एक बार में ही मेरी चूत के अन्दर तक घुस गया। मैंने और मेरे भाई अमर दोनों ने पापा को मम्मी के ऊपर चढकर मिशनरी पोजीशन में ही चोदते हुए देखा था.
शायद उस समय तक हम दोनों को किसी और पोजिशन का पता भी नहीं था। लेकिन उसका एक फ़ायदा तो हुआ, हम दोनों एक दूसरे का चेहरा देख पा रहे थे, लेकिन जैसे ही अमर का लण्ड पूरा मेरी चूत में घुसा, मेरी आँखें खुदबखुद बन्द होने लगीं, और वही हाल अमर का भी था.
लेकिन जब भी बीच बीच में थोड़ी आँख खुलती तो एक दूसरे के चेहरे के भाव देखकर पता चल जाता कि दोनों को चुदाई में कितना ज्यादा मजा आ रहा था। अमर अपने लण्ड से मेरी चूत को मूसल की तरह ताबड़ तोड़ कूट रहा था। मेरी चूत की दीवार और ज्यादा फ़ैलती जा रही थी, जिससे अमर का मोटा लण्ड और ज्यादा आसानी से अन्दर बाहर हो रहा था।
मेरे भाई अमर का लण्ड के गहरे झटके मेरी चूत की सुरंग की खुजली मिटा रहा था। मेरी चूत की माँसपेशियाँ कभी टाईट होकर और कभी लूज होकर दर्द और चुदाई के सुख को आत्मसात कर रही थीं। मुझे इस बात पर गर्व हो रहा था कि मैं अपनी चूत की खुजली अपने भाई के लण्ड से मिटा रही थी.
ना कि भाग कर किसी बाहरी आवारा लड़के के साथ, इस से घर परिवार की इज्जत पर दाग लगने का कोई खतरा नहीं था। ये विचार मेरे दिमाग में आते ही और ज्यादा चुदासी हो उठी, और अपनी गाँड़ उठा उठा कर अमर का चुदाई में सहयोग देने लगी।
और तभी मेरी चूत ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया और मैं स्खलित हो गयी। मेरे भाई को अमर को कुछ समझ नहीं आया और उसने लण्ड का एक जोर का झटका मार कर अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में अन्दर तक घुसा दिया। मुझे मानो जन्नत दिखाई दे गयी।
उस वक्त चुदाई के मामले में मैं और अमर दोनों ही नौ सीखिया थे, हाँलांकि मम्मी को चोदकर अमर मुझसे कुछ थोड़ा ज्यादा जानता था, लेकिन किसी जवान लड़की की कुँवारी टाईट चुत चोदने को उसे भी पहली बार मिली थी। कहाँ मम्मी का ढीला ढाला भोसड़ा और कहाँ मेरी टाईट कुँवारी चूत, हल्की झाँटों से घिरी मेरी कुँवारी चूत देखकर वो भी पागल हो गया था।
झड़ते हुए हुए जब मेरी चूत की माँस पेशियों ने मेरे भाई अमर के लण्ड को निचोड़ना शुरु किया, तो उसकी गोलियों में भी उबाल आने लगा। उसने तुरंत अपना लण्ड मेरी चूत में से बाहर निकाल लिया और तभी उसके लण्ड से वीर्य की जो पिचकारी निकली उसने मेरे पेट, मेरी चूँचियों और मेरे चेहरे सभी को अपने पानी से तर बतर कर दिया।
मैं अमर के लण्ड को अपने एक हाथ की मुट्ठी में लेकर आगे पीछे करने लगी, और उसके लण्ड को अपनी चुँचियों और निप्पल पर रगड़ने लगी, जिससे उसके वीर्य की आखिरी बूँद तक बाहर निकल जाये। मैं इस बात से खुश थी कि उसने समय रहते अपना लण्ड बाहर निकाल लिया, मैं किसी भी शर्त पर गर्भवती नहीं होना चाहती थी.
और उस दिन के बाद सब कुछ बदल गया। जब कोई लड़की एक बार कौमार्य खो देती है तो वो लड़की और ज्यादा बेशर्म हो जाती है। सन्नो मेरी तरफ़ देखकर थोड़ा मुस्कुरायी, और फ़िर हँसते हुए बोली, इसीलिए उस दिन के बाद जब भी आपने हजार के तीन नोट दिखाये, मैंने भी अपनी चूत खोल कर आपको दे दी। मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया, और उसे पैण्ट की जेब से दो और हजार के नोट दिखाकर मुस्कुराने लगा।
मुझे मुस्कुराते हुए देखकर वो बोली, अब ज्यादा मत मुस्कुराओ विशाल बाबू, आपको शायद पता नहीं है कि आपकी गिफ़्टी दीदी एक बार मुझे आपक लण्ड चूसते हुए छुप कर देख चुकी हैं। पिछले हफ़्ते वो जॉब से जल्दी आ गयीं थीं और वो अपनी चाबी से मेन गेट का दरवाजा खोलकर अंदर आकर हमारी चुदाई देख चुकी हैं।
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चुदने के बाद आपको सोता हुआ छोड़कर जब मैं किचन में बर्तन साफ़ करने जा रही थी, तो मुझे दीदी के रूम से कुछ आवाज सुनाई दी, जब मैंने थोड़ा सा दरवाजा खोल कर देखा तो दीदी बैड पर नंगी होकर अपनी चूत मे उँगली कर रही थी। जब मैं घर का सारा काम खत्म करके मेन गेट खोलकर जाने लगी, तो वो अपने रूम के डोर पर खड़ी होकर मुझे घूर रहीं थीं। हाँलांकि इस बारे में उन्होने मुझसे कभी कोई बात नहीं की है, और शायद मेमसाहब को भी कुछ नहीं बताया है। लेकिन सावधान रहना।
सन्नो की ये बात सुनकर मेरे पैरों के तले से तो मानों जमीन ही खिसक गयी। सन्नो बोली ये दो हजार के नोट अपनी जेब में वापस रख लो, बस एक हजार लण्ड चूसने के दे दो, जीजू भी लन्दन से आने वाले हैं, शायद वो दीदी को कम्पनी से साथ लेते हुए ही आयेंगे। अगर दीदी और जीजू जल्दी आ गये तो हम दोनों की खैर नहीं, जब कभी सब लोग कहीं बाहर गये होंगे तब इत्मीनान से तुमसे चुदवाऊँगी।
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