Muslim Bhabhi Fucking Story
जैनब की पहली शादी बी-ए खतम करते ही एक्कीस साल की उम्र में हुई थी… पर शादी के कुछ ही महीनों बाद उसके शौहर की मौत एक हादसे में हो गयी। जैनब बेवा हो कोलकाता में अपने माँ-बाप के घर आ गयी। उनका मिडल-क्लास घर था। जैनब के वालिद की रेडिमेड गार्मेंट्स की दुकान थी। Muslim Bhabhi Fucking Story
जैनब माँ-बाप पर बोझ नहीं बनना चाहती थी इसलिये वो शहर के एक बड़े अपस्केल लेडिज़ बुटीक में असिस्टेंट के तौर पे काम करने लगी। बुटीक में ही ब्यूटी पार्लर भी था तो जैनब के लिये ये अच्छा तजुर्बा था… कपड़े-लत्ते पहनने और बनने संवरने के सलीके सीखने का। इस दौरान उसके माँ-बाप रूकसाना की दूसरी शादी के लिये बहोत कोशिश कर रहे थे।
जैनब बेहद गोरी और खूबसूरत और स्मार्ट थी लेकिन इसके बावजूद कहीं अच्छा और मुनासिब रिश्ता नहीं मिल रहा था। फिर साल भर बाद एक दिन उसके मामा ने उसकी शादी आबिद नाम के आदमी से तय कर दी। तब आबिद की उम्र अढ़तीस साल थी और जैनब की तेईस साल।
आबिद की पहली बीवी का इंतकाल शादी के तेरह साल बाद हुआ था और उसकी एक नौ साल की बेटी भी थी। आबिद रेलवे में जॉब करता था। इसलिये घर वालों ने सोचा कि सरकारी नौकरी है… और किसी चीज़ की कमी भी नहीं… इसलिये जैनब की शादी आबिद के साथ हो गयी।
आबिद की पोस्टिंग शुरू से ही बिहार के छोटे शहर में थी जहाँ उसका खुद का घर भी था। शादी कहिये या समझौता… पर सच तो यही था कि शादी के बाद जैनब को किसी तरह की खुशी नसीब ना हुई…. ना ही वो कोई अपना बच्चा पैदा कर सकी और ना ही उसे शौहर का प्यार मिला।
बस यही था कि समाज में शादीशुदा होने का दर्ज़ा और अच्छा माकूल रहन-सहन। शादी के डेढ़-दो साल बाद उसे अपने शौहर पर उसके बड़े भाई की बीवी नादिया के साथ कुछ नाजायज़ चक्कर का शक होने लगा और उसका ये शक ठीक भी निकला। एक दिन जब आबिद के भाई के बीवी उनके यहाँ आयी हुई थी, तब जैनब ने उन्हें ऊपर वाले कमरे में रंगरलियाँ मनाते… ऐय्याशी करते हुए देख लिया।
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जब जैनब ने इसके बारे में आबिद से बात की तो वो उल्टा उस पर ही बरस उठा। पता नहीं नादिया ने आबिद पर क्या जादू किया था कि आबिद ने जैनब को साफ़-साफ़ बोल दिया कि अगर ये बात किसी को पता चली तो वो जैनब को तलाक़ दे देगा… और उसकी बुरी हालत कर देगा। जैनब ये सब चुपचाप बर्दाश्त कर गयी।
जितने दिन नादिया उनके यहाँ रुकती… आबिद और नादिया दोनों खुल्ले आम शराब के नशे में धुत्त होकर हवस का नंगा खेल घर में खेलते। उन दोनों को अब जैनब की जैसे कोई परवाह ही नहीं थी…. कभी-कभी तो जैनब के बगल में ही बेड पर आबिद और नादिया चुदाई करने लगते।
ये सब देख कर जैनब भी गरम हो जाती थी पर अपनी ख्वाहिशों को अपने सीने में दबाये रखती और ज़िल्लत बर्दाश्त करती रहती। जैनब के पास और कोई चारा भी नहीं था। बेशक नादिया बेहद खूबसूरत और सेक्सी थी लेकिन जैनब भी खूबसूरती और बनने-संवरने में उससे ज़रा भी कम नहीं थी।
नादिया ने आबिद की ज़िंदगी इस क़दर तबाह कर दी थी कि वो जो कभी-कभार जैनब के साथ सैक्स करता भी था…. वो भी करना छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी मर्दाना ताकत शराब में डूबती चली गयी। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब वो नशे में धुत्त गिरते पड़ते घर ना आया हो।
इस सबके बावजूद आबिद चुदक्कड़ नहीं था कि कहीं भी मूँह मारता फिरे। उसका जिस्मानी रिश्ता सिर्फ़ नादिया के साथ ही था जिसे वो दिलो-जान से चाहता था। जैनब ने शुरू-शुरू में अपने हुस्न और खूबसूरती और अदाओं से आबिद को रिझाने और सुधारने की बेहद कोशिश की… लेकिन उसे नाकामयाबी ही हासिल हुई।
फिर जैनब ने इकरा… जो कि आबिद की पहली बीवी से बेटी थी… उसकी परवरिश में और घर संभालने में ध्यान लगाना शुरू कर दिया। अपनी जिस्मानी तस्कीन के लिये जैनब हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती का सहारा लेने लगी। इसी तरह वक़्त गुज़रने लगा और जैनब और आबिद की शादी को दस-ग्यारह साल गुज़र गये।
जैनब चौंतीस साल की हो गयी और इकरा भी बीस साल की हो चुकी थी और कॉलेज में फ़ायनल इयर में थी। जैनब कभी सोचती थी कि इकरा ही इस दुनिया में उसके आने की वजह है… उसका दुनिया में होना ना होना एक बराबर है…. पर कर भी क्या सकती थी… जैसे तैसे ज़िंदगी कट रही थी।
इस दौरान जैनब ने खुद को भी मेन्टेन करके रखा था लेकिन आबिद ने उसकी तारीफ़ में कभी एक अल्फ़ाज़ भी नहीं कहा। शौहर की नज़र अंदाज़गी और सर्द महरी के बावजूद अपनी खुद की खुशी और तसल्ली के लिये हमेशा मेक-अप करके… नये फैशन के सलवार-कमीज़ और सैंडल पहने… सलीके से बन-संवर कर हमेशा तैयार रहती थी।
वो उन गिनी चुनी औरतों में से थी जिसे शायद ही कभी किसी ने बे-तरतीब हालत में देखा हो। चाहे शाम के पाँच बजे हों या सुबह के पाँच बजे…. वो हमेशा बनी संवरी रहती थी। फिर एक दिन वो हुआ जिसने उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल दी। उसने कभी सोचा भी ना था कि ये बेरंग दिखने वाली दुनिया इतनी हसीन भी हो सकती है… पर जैनब को इसका एहसास तब हुआ जब उन सब की ज़िंदगी में संजय आया।
संजय की उम्र बीस-इक्कीस साल की थी। बीस साल का होते-होते ही उसने ग्रैजूएशन कर लिया था। उसके घर पर सिर्फ़ संजय और उसकी माँ ही रहते थे। बचपन में ही पिता की मौत के बाद माँ ने संजय को पाला पोसा पढ़ाया लिखाया। उसके पापा के गुज़रने के बाद माँ को उनकी जगह रेलवे में नौकरी मिल गये थी।
सिर्फ़ दो जने थे… इसलिये पैसो की कभी तंगी महसूस नहीं हुई। संजय की पढ़ायी लिखायी भी एक साधारण से स्कूल और फिर सरकारी कॉलेज से हुई थी… इसलिये संजय की माँ को उसकी पढ़ायी लिखायी का ज्यादा खर्च नहीं उठाना पढ़ा। संजय पढ़ायी लिखायी में बेहद होशियार भी था।
ग्रैजूएशन करते ही संजय ने रेलवे में नौकरी के लिये फ़ॉर्म भर दिये थे। उसके बाद परिक्षायें हुई और संजय का चयन हो गया और जल्दी ही संजय को पोस्टिंग भी मिल गयी। संजय बेहद खुश था पर एक दुख भी था क्योंकि संजय की पोस्टिंग बिहार में हुई थी। संजय पंजाब का रहने वाला था।
इसलिये वहाँ नहीं जाना चाहता था कि पता नहीं कैसे लोग होंगे वहाँ के… कैसी उनकी भाषा होगी… बस यही सब ख्याल संजय के दिमाग में थे। संजय की माँ भी उदास थी पर संजय के लिये सुकून की बात ये थी कि दस दिन बाद ही संजय की माँ का रिटायरमेंट होने वाला था।
इसलिये वो अब सुकून के साथ बिना किसी टेंशन के संजय के मामा यानी अपने भाई के घर रह सकती थी। जिस दिन माँ को नौकरी से रिटायरमेंट मिला… उसके अगले ही दिन संजय बिहार के लिये रवाना हो गया। वहाँ एक छोटे शहर के स्टेशन पर उसे क्लर्क नियुक्त किया गया था।
जब संजय वहाँ पहुँचा और स्टेशन मास्टर को रिपोर्ट किया तो उन्होंने स्टेशन के बाहर ही बने हुए स्टाफ़ हाऊज़ में से एक फ़्लैट संजय को दे दिया। जब संजय फ़्लैट के अंदर गया तो अंदर का हाल देख कर परेशान हो गया। फ़र्श जगह -जगह से टूटा हुआ था… दीवारों पर सीलन के निशान थे…
बिजली की फ़िटिंग जगह-जगह से उखड़ी हुई थी। जब संजय ने स्टेशन मास्टर से इसकी शिकायत की तो उसने संजय से कहा कि उसके पास और कोई फ़्लैट खाली नहीं है… एडजस्ट कर लो यार! स्टेशन मास्टर की उम्र उस वक़्त पैंतालीस के करीब थी और उसका नाम जफ़र था।
जफ़र: “यार संजय कुछ दिन गुजारा कर लो… फिर मैं कुछ इंतज़ाम करता हूँ!”
संजय: “ठीक है सर!”
उसके बाद जफ़र ने संजय को उसका काम और जिम्मेदारियाँ समझायीं! संजय की ड्यूटी नौ बजे से शाम पाँच बजे तक ही थी। धीरे-धीरे संजय की जान पहचान स्टेशन पर बाकी के कर्मचारियों से भी होने लगी। जब कभी संजय फ़्री होता तो ऑफ़िस से बाहर निकल कर प्लेटफ़ोर्म पर घूमने लगता… सब कुछ बहुत अच्छा था।
सिर्फ़ संजय के फ़्लैट को लेकर जफ़र भी अभी तक कुछ नहीं कर पाया था। संजय उससे बार-बार शिकायत नहीं करना चाहता था। एक दिन संजय दोपहर को जब फ़्री था तो वो ऑफ़िस से निकल कर बाहर आया तो देखा जफ़र भी प्लैटफ़ोर्म पर कुर्सी पर बैठे हुए थे। संजय को देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुला लिया।
जफ़र: “सॉरी संजय यार… तुम्हारे फ़्लैट का कुछ कर नहीं पा रहा हूँ!”
संजय: “कोई बात नहीं सर… अब सब कुछ तो आपके हाथ में नहीं है… ये मुझे भी पता है!”
जफ़र: “और बताओ मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूँ… अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो बेझिझक बोल देना!”
संजय: “सर जब तक मेरे फ़्लैट का इंतज़ाम नहीं हो जाता… आप मुझे पास में ही कहीं हो सके तो किराये पर ही रूम दिलवा दें!”
जफ़र (थोड़ी देर सोचने के बाद): “अच्छा देखता हूँ!”
तभी जफ़र की नज़र प्लैटफ़ोर्म पे थोड़ी सी दूर आबिद पर पड़ी। आबिद रेल यातायात सेवा महकमे में ऑफिसर था। उसका ऑफिस प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ की बिल्डिंग में था। उसे देख कर जफ़र ने आबिद को आवाज़ लगायी।
जफ़र: “अरे आबिद यार ज़रा सुनो तो!”
आबिद: “हुक्म कीजिये जफ़र साहब!” आबिद उन दोनों के पास आकर खड़ा हो गया। आबिद और जफ़र दुआ सलाम के बाद बात करने लगे।
जफ़र: “आबिद यार! ये संजय है… अभी नया जॉइन हुआ है इसके लिये कोई किराये पर रूम ढूँढना है… तुम तो यहाँ करीब ही रहते हो कोई कमरा अवैलबल हो तो बताओ!”
आबिद: “जरूर… कमरा मिलने में तो कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिये…! कितना बजट है संजय तुम्हारा?”
संजय : “अगर दो-तीन हज़ार किराया भी होगा तो भी चलेगा!”
जफ़र: “और हाँ… रूम के आसपास कोई अच्छा सा ढाबा भी हो तो मुनासिब रहेगा ताकि इसे खाने पीने की तकलीफ़ ना हो!”
आबिद (थोड़ी देर सोचने के बाद बोला): “संजय अगर तुम चाहो तो मेरे घर में भी एक रूम खाली है ऊपर छत पर… बाथरूम टॉयलेट सब अलग है ऊपर… बस सीढ़ियाँ बाहर की बजाय घर के अंदर से हैं… अगर तुम्हें प्रॉब्लम ना हो तो… और रही खाने के बात तो तुम्हें मेरे घर पर घर का बना खाना भी मिल जायेगा… पीने की भी कोई प्रॉब्लम नहीं… है क्या कहते हो?”
संजय: “जी आपका ऑफर तो बहुत अच्छा है… आपको ऐतराज़ ना हो तो शाम तक बता दूँ आपको?”
आबिद के जाने के बाद संजय ने जफ़र से पूछा कि क्या आबिद के घर पर रहना ठीक होगा… तो उसने हंसते हुए कहा, “यार संजय तू आराम से वहाँ रह सकता है… वैसे तुझे पता है कि ये जो आबिद है ना बड़ा पियक्कड़ किस्म का आदमी है… रोज रात को दारू पिये बिना नहीं सोता… वैसे तुझे कोई तकलीफ़ नहीं होगी वहाँ पर… बहुत अच्छी फ़ैमिली है और तुझे घर का बना खाना भी मिल जायेगा!”
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शाम को संजय अपने ऑफिस से निकल कर आबिद के ऑफ़िस में गया जो प्लैटफ़ोर्म के दूसरी तरफ़ था और आबिद को अपनी रज़ामंदी दे दी। आबिद बोला, “तो चलो मेरे घर पर… रूम देख लेना और अगर तुम्हें पसंद आये तो आज से ही रह लेना वहाँ पर!”
संजय ने आबिद की बात मान ली और उसके साथ उसके घर की तरफ़ चल पढ़ा। वो दोनों आबिद के स्कूटर पर बैठ के उसके घर पहुँचे तो आबिद ने डोर-बेल बजायी। थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला तो आबिद ने थोड़ा गुस्से से दरवाजा खोलने वाले को कहा, “क्या हुआ इतनी देर क्यों लगा दी!” संजय बाहर से घर का मुआयना कर रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
घर बहुत बड़ा नहीं था लेकिन बहोत अच्छी हालत में था। अच्छे रंग-रोगन के साथ गमलों में खूबसूरत फूल-पौधे लगे हुए थे। आबिद की आवाज़ सुन कर संजय ने दरवाजे पर नज़र डाली। सामने बीस-इक्कीस साल की बेहद ही खूबसूरत गोरे रंग की लड़की खड़ी थी… उसके बाल खुले हुए थे और उसके हाथ में बाल संवारने का ब्रश था…
उसने सफ़ेद कलर का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जिसमें उसका जिस्म कयामत ढा रहा था। संजय को अपनी तरफ़ यूँ घूरता देख वो लड़की मार्बल के फर्श पे अपनी हील वाली चप्पल खटखटाती हुई अंदर चली गयी। तभी आबिद ने संजय से कहा, “संजय ये मेरी बेटी इकरा है… आओ अंदर चलते हैं…!”
संजय उसके साथ अंदर चला गया। अंदर जाकर उसने संजय को ड्राइंग रूम में सोफ़े पर बिठाया और अंदर जाकर आवाज़ दी, “जैनब… ओ जैनब! कहा चली गयी… जल्दी इधर आ!” और फिर आबिद संजय के पास जाकर बैठ गया। जैनब जैसे ही रूम मैं पहुँची तो आबिद उसे देख कर बोला, “ये संजय है… हमारे स्टेशन पर नये क्लर्क हैं… इनको ऊपर वाला कमरा दिखाने लाया था… अगर इनको रूम पसंद आया तो कल से ये ऊपर वाले रूम में रहेंगे… जा कुछ चाय नाश्ते का इंतज़ाम कर!”
संजय: “अरे नहीं आबिद भाई… इसकी कोई जरूरत नहीं है!”
आबिद: “चलो यार चाय ना सही… एक-एक पेग हो जाये!”
संजय: “नहीं आबिद भाई… मैं पीता नहीं… मुझे बस रूम दिखा दो!” संजय ने आबिद से झूठ बोला था कि वो ड्रिंक नहीं करता पर असल में वो भी कभी-कभी ड्रिंक कर लिया करता था।
जैनब ने बड़ी खुशमिजाज़ी से संजय को सलाम कहा तो उसने एक बार जैनब की तरफ़ देखा। वो सर झुकाये हुए उनकी बातें सुन रही थी। जैनब ने कढ़ाई वाला गहरे नीले रंग का सलवार- कमीज़ पहना हुआ था और बड़ी शालीनता से दुपट्टा अपने सीने पे लिया हुआ था। खुले लहराते लंबे बाल और चेहरे पे सौम्य मेक-अप था और पैरों में ऊँची हील की चप्पल पहनी हुई थी।
जैनब की आकर्षक शख्सियत से संजय काफ़ी इंप्रेस हुआ। जैनब को भी संजय शरीफ़ और माकूल लड़का लगा। संजय भी अच्छी पर्सनैलिटी वाला लड़का था। हट्टा-कट्टा कसरती जिस्म था और उसके चिकने चेहरे पे कम्सिनी और मासूमियत की झलक थी। दिखने में वो बारहवीं क्लास या कॉलेज के स्टूडेंट जैसा लगता था।
आबिद बोले, “चलो तुम्हें रूम दिखा देता हूँ!” फिर संजय आबिद के साथ छत पर चला गया। संजय को घर और ऊपर वाला रूम बेहद पसंद आया। अंदर बेड, दो कुर्सियाँ और स्टडी टेबल मौजूद थी। बाथरूम और टॉयलेट छत के दूसरी तरफ़ थे लेकिन वो भी साफ़-सुथरे थे। रूम देखने के बाद संजय ने आबिद से पूछा, “बताइये आबिद भाई… कितना किराया लेंगे आप…?”
आबिद ने संजय की तरफ़ देखते हुए कहा, “अरे यार जो भी तुम्हारा बजट हो दे देना!”
रूम का और खाने-पीने का मिला कर साढ़े तीन हज़ार महीने का किराया तय करने के बाद फिर संजय ने आबिद से जैनब और उसके रिश्ते के बारे में पूछा तो आबिद ने बताया कि जैनब उसकी बीवी है। संजय को लगा था कि जैनब आबिद की बड़ी बेटी है शायद।
आबिद: “वो दर असल संजय बात ये है कि, जैनब मेरे दूसरी बीवी है। जब मैं चौबीस साल का था तब मेरी पहली शादी हुई थी और पहली बीवी से इकरा हुई थी… शादी के तेरह साल बाद मेरी पहली बीवी की मौत हो गयी… फिर मैंने अपनी बीवी की मौत के बाद अढ़तीस साल की उम्र में जैनब से शादी की। जैनब की भी पहले शादी हुई थी… लेकिन उसके शौहर की भी मौत हो गयी और बाद में जब जैनब तेईस साल की थी तब मेरी और जैनब की शादी हुई!”
अब सारा मसला संजय के सामने था। थोड़ी देर बाद संजय वापस चला गया। अगले दिन शाम को संजय आबिद के साथ ऑटो से अपना सामान ले कर आ गया और फिर अपना सामन ऊपर वाले रूम में सेट करने लगा।
आबिद: “अच्छा संजय… गरमी बहुत है… तुम नहा धो लो… फिर रात के खाने पर मिलते हैं!”
उसके बाद नीचे आने के बाद आबिद ने जैनब से बोला, “जल्दी से रात का खाना तैयार कर दो… मैं थोड़ी देर बाहर टहल कर आता हूँ!” ये कह कर आबिद बाहर चला गया।
जैनब जानती थी कि आबिद अब कहीं जाकर दारू पीने बैठ जायेगा और पता नहीं कब नशे में धुत्त वापस आयेगा। इसलिये उसने खाना तैयार करना शुरू कर दिया। आधे घंटे में जैनब और इकरा ने मिल कर खाना तैयार कर लिया। अभी वो खाना डॉयनिंग टेबल पे लगा ही रही थी कि लाइट चली गयी। ऊपर से इतनी गरमी थी कि नीचे तो साँस लेना भी मुश्किल हो रहा था।
जैनब ने सोचा कि क्यों ना संजय को ऊपर ही खाना दे आये। इसलिये उसने खाना थाली में डाला और ऊपर ले गयी। जैसे ही वो ऊपर पहुँची तो लाइट भी आ गयी। संजय के रूम की तरफ़ बढ़ते हुए उसके ज़हन में अजीब सा डर उमड़ रहा था। रूम का दरवाजा खुला हुआ था। जैनब सिर को झुकाये हुए रूम में दाखिल हुई तो उसके सैंडलों की आहट सुन कर संजय ने पीछे पलट कर उसकी तरफ़ देखा।
“हाय तौबा…” जैनब ने मन में ही आह भरी क्योंकि संजय सिर्फ़ ट्रैक सूट का लोअर पहने खड़ा था उसने ऊपर बनियान वगैरह कुछ नहीं पहना हुआ था। जैनब की नज़रें उसकी चौड़ी छाती पर ही जम गयीं… एक दम चौड़ा सीना माँसल बाहें… एक दम कसरती जिस्म! जैनब ने अपनी नज़रों को बहुत हटाने की कोशिश की… पर पता नहीं क्यों बार-बार उसकी नज़रें संजय की चौड़ी छाती पर जाकर टिक जाती।
जैनब: “जी वो मैं आपके लिये खाना लायी थी!”
अभी संजय कुछ बोलने ही वाला था कि एक बार फिर से लाइट चली गयी और रूम में एक दम से घुप्प अंधेरा छा गया। एक जवान लड़के के साथ अपने आप को अंधेरे रूम में पा कर जैनब एक दम से घबरा गयी। उसने हड़बड़ाते हुए कहा, “मैं नीचे से एमर्जेंसी लाइट ला देती हूँ!”
पर संजय ने उसे रोक दिया, “अरे नहीं आप वहीं खड़ी रहिये… आप मुझे बता दो एमर्जेंसी लाइट कहाँ रखी है… मैं ले कर आता हूँ!” जैनब ने उसे बता दिया कि एमर्जेंसी लाइट नीचे डॉयनिंग टेबल पे ही रखी है तो संजय अंधेरे में नीचे चला गया और फिर थोड़ी देर बाद संजय एमर्जेंसी लाइट ले कर आ गया और उसे टेबल पर रख दिया।
जैसे ही एमर्जेंसी लाइट की रोशनी रूम में फैली तो जैनब की नज़र एक बार फिर उसके गठीले जिस्म पर जा ठहरी। पसीने से भीगा हुआ उसका कसरती जिस्म एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में ऐसे चमक रहा था मानो जैसे सोना हो। जैनब को सबसे अच्छी बात ये लगी कि संजय के सीने या पेट पर एक भी बाल नहीं था।
बिल्कुल चीकना सीना था उसका। जैनब को खुद आपने जिस्म पे भी बाल पसंद नहीं थे और वो बाकायदा वेक्सिंग करती थी। यहाँ तक कि अपनी चूत भी एक दम साफ़ रखती थी जबकि उसे चोदने वाला या उसकी चूत की कद्र करने वाला कोई नहीं था।
तभी संजय उसकी तरफ़ बढ़ा और जैनब की आँखों में झाँकते हुए उसके हाथ से खाने की थाली पकड़ ली। जैनब ने शरमा कर नज़रें झुका ली और हड़बड़ाते हुए बोली, “मैं बाहर चारपाई बिछा देती हूँ… आप बाहर बैठ कर आराम से खाना खा लीजिये…!”
जैनब बाहर आयी और बाहर चारपाई बिछा दी। संजय भी खाने की थाली लेकर चारपाई पर बैठ गया।
“आबिद भाई कहाँ हैं…?” संजय ने खाने की थाली अपने सामने रखते हुए पूछा पर जैनब ने संजय की आवाज़ नही सुनी… वो तो अभी भी उसके बाइसेप्स देख रही थी। जब जैनब ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया तो वो उसकी और देखते हुए दोबारा आबिद के बारे में पूछने लगा। संजय की आवाज़ सुन कर जैनब होश में आयी और एक दम से झेंप गयी और सिर झुका कर बोली “पता नहीं कहीं पी रहे होंगे… रात को देर से ही घर आते हैं!”
संजय: “अच्छा कोई बात नहीं… उफ़्फ़ ये गरमी… इतनी गरमी में खाना खाना भी मुश्किल हो जाता है!”
जैनब संजय की बात सुन कर रूम में चली गयी और हाथ से हिलाने वाला पंखा लेकर बाहर आ गयी और संजय के पास जाकर बोली, “आप खाना खा लीजिये… मैं हवा कर देती हूँ…!”
संजय: “अरे नहीं-नहीं… मैं खा लुँगा आप क्यों तकलीफ़ कर रही हैं!”
जैनब: “इसमें तकलीफ़ की क्या बात है… आप खाना खा लीजिये!”
संजय चारपाई पर बैठ कर खाना खाने लगा और जैनब संजय के करीब चारपाई के बगल में दीवार के सहारे खड़ी होकर खुद को और संजय को पंखे से हवा करने लगी। “अरे आप खड़ी क्यों हैं… बैठिये ना!” संजय ने उसे यूँ खड़ा हुआ देख कर कहा।
“नहीं कोई बात नहीं… मैं ठीक हूँ…!” जैनब ने अपने सर को झुकाये हुए कहा।
संजय: “नहीं जैनब जी! ऐसे अच्छा नहीं लगता मुझे कि मैं आराम से खाना खाऊँ और आप खड़ी होकर मुझे पंखे से हवा दें… मुझे अच्छा नहीं लगता… आप बैठिये ना!” अंजाने में ही उसने जैनब का नाम बोल दिया था पर उसे जल्दी ही एहसास हो गया। “सॉरी मैंने आप का नाम लेकर बुलाया… वो जल्दबाजी में बोल गया!”
जैनब: “कोई बात नहीं…!”
संजय: “अच्छा ठीक है… अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो आज से मैं आपको भाभी कहुँगा क्योंकि मैं आबिद साहब को भाई बुलाता हूँ… अगर आपको बुरा ना लगे।”
जैनब: “जी मुझे क्यों बुरा लगेगा!”
संजय: “अच्छा भाभी जी… अब ज़रा आप बैठने की तकलीफ़ करेंगी!”
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संजय की बात सुन कर जैनब को हंसी आ गयी और फिर सामने चारपाई पे पैर नीचे लटका कर बैठ गयी और पंखा हिलाने लगी। संजय फिर बोला, “भाभी जी एक और गुज़ारिश है आपसे… प्लीज़ आप भी मुझे ‘आप-आप’ कह कर ना बुलायें… उम्र में मैं बहुत छोटा हूँ आपसे… मुझे नाम से बुलायें प्लीज़!”
“ठीक है संजय अब चुपचाप खाना खाओ तुम!” जैनब हंसते हुए बोली। उसे संजय का हंसमुख मिजाज़ बहोत अच्छा लगा।
संजय खाना खाते हुए बार-बार जैनब को चोर नज़रों से देख रहा था। एमर्जेंसी लाइट की रोशनी में जैनब का हुस्न भी दमक रहा था। बड़ी- बड़ी भूरे रंग की आँखें… तीखे नयन नक्श… गुलाब जैसे रसीले होंठ… लंबे खुले हुए बाल… सुराही दार गर्दन… जैनब का हुस्न किसी हूर से कम नहीं था।
जैनब ने गौर किया कि संजय की नज़र बार-बार या तो ऊँची हील वाली चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों पर या फिर उसकी चूचियों पर रुक जाती। गहरे नीले रंग की कमीज़ में जैनब की गोरे रंग की चूचियाँ गजब ढा रही थी… बड़ी-बड़ी और गोल-गोल गुदाज चूचियाँ। इसका एहसास जैनब को तब हुआ जब उसने संजय की पतली ट्रैक पैंट में तने हुए लंड की हल चल को देखा।
खैर संजय ने जैसे तैसे खाना खाया और हाथ धोने के लिये बाथरूम में चला गया। इतने में लाइट भी आ गयी थी। जब वो बाथरूम में गया तो जैनब ने बर्तन उठाये और नीचे आ गयी। नीचे आकर उसने बर्तन किचन में रखे और अपने बेड पर आकर लेट गयी, “ओहहहह आज ना जाने मुझे क्या हो रहा है….?”
अजीब सी बेचैनी महसूस हो रही थी उसे। बेड पर लेटे हुए उसने जैसे ही अपनी आँखें बंद की तो संजय का चिकना चेहरा और उसकी चौड़ी छाती और मजबूत बाइसेप्स उसकी आँखों के सामने आ गये। पेट के निचले हिस्से में कुछ अजीब सा महसूस होने लगा था… रह-रह कर इक्कीस साल के नौजवान संजय की तस्वीर आँखों के सामने से घूम जाती।
जैनब पेट के बल लेटी हुई अपनी टाँगों के बीच में अपना हाथ चूत पर दबा कर अपने से पंद्रह साल छोटे लड़के का तसव्वुर कर कर रही थी… किस तरह संजय उसकी चूचियों को निहार रहा था… कैसे उसकी ऊँची हील की चप्पल में उसके गोरे-गोरे पैरों को देखते हुए संजय का लंड ट्रैक पैंट में उछल रहा था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
जैनब का हाथ अब उसकी सलवार में दाखिल हुआ ही था कि तभी वो ख्वाबों की दुनिया से बाहर आयी जब इकरा रूम में अंदर दाखिल होते हुए बोली… “अम्मी क्या हुआ खाना नहीं खाना क्या?” जैनब एक दम से बेड पर उठ कर बैठ गयी और अपनी साँसें संभालते हुए अपने बिखरे हुए बालों को ठीक करने लगी। इकरा उसके पास आकर बेड पर बैठ गयी और उसके माथे पर हाथ लगा कर देखते हुए बोली, “अम्मी आप ठीक तो हो ना?”
जैनब: “हाँ… हाँ ठीक हूँ… मुझे क्या हुआ है?”
इकरा: “आपका जिस्म बहोत गरम है… और ऊपर से आपका चेहरा भी एक दम लाल है!”
जैनब: “नहीं कुछ नहीं हुआ… वो शायद गरमी के वजह से है… तू चल मैं खाना लगाती हूँ!”
फिर जैनब और इकरा ने मिल कर खाना खाया और किचन संभालने लगी। तभी आबिद भी आ गया। जब जैनब ने उससे खाने का पूछा तो उसने कहा कि वो बाहर से ही खाना खा कर आया है। आबिद शराब के नशे में एक दम धुत्त बेड पर जाकर लेट गया और बेड पर लेटते ही सो गया।
जैनब ने भी अपना काम खतम किया और वो लेट गयी। करवटें बदलते हुए कब उसे नींद आयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह- सुबह आबिद ने ऊपर जाकर संजय के रूम का दरवाजा खटकटाया। संजय ने दरवाजा खोला तो आबिद संजय को देखते हुए बोला “अरे यार संजय… मुझे माफ़ कर दो… कल तुम्हारा यहाँ पहला दिन था… और मेरी वजह से…”
संजय: “अरे आबिद भाई कोई बात नहीं… अब जबकि मैं आपके घर में रह रहा हूँ तो मुझे बेगाना ना समझें..!”
आबिद: “अच्छा तुम तैयार होकर आ जाओ… आज नाश्ता नीचे मेरे साथ करना!”
संजय: “अच्छा ठीक है मैं तैयार होकर आता हूँ!”
आबिद नीचे आ गया और जैनब को जल्दी नाश्ता तैयार करने को कहा। थोड़ी देर बाद संजय तैयार होकर नीचे आ गया। जैनब ने नाश्ता टेबल पर रखते हुए संजय के जानिब देखा तो उसने जैनब को सलाम कहा। जैनब ने भी मुस्कुरा कर उसे जवाब दिया और नाश्ता रख कर फिर से किचन में आ गयी। नाश्ते के बाद संजय और आबिद स्टेशन पर चले गये।
इसी तरह दो हफ़्ते गुज़र गये। आबिद और संजय हर रोज़ नाश्ता करने के बाद साथ-साथ स्टेशन जाते। फिर शाम को छः-सात बजे के करीब कभी दोनों साथ में वापस आते और कभी संजय अकेला ही वापस आता। आबिद जब संजय के साथ वापस आता तो भी थोड़ी देर बाद फिर शराब पीने कहीं चला जाता और देर रात नशे की हालत में लौटता।
संजय ज्यादातर शाम को ऊपर अपने कमरे में या छत पे ही गुज़ारता था। जैनब उसे ऊपर ही खाना दे आती थी। संजय की खुशमिजाज़ी और अच्छे रवैये से जैनब के दिल में उसके लिये उल्फ़त पैदा होने लगी थी। उसे संजय से बात करना अच्छा लगता था लेकिन उसे थोड़ा-बहोत मौका तब ही मिलता था जब वो उसे खाना देने ऊपर जाती थी।
संजय खाने की या उसकी तारीफ़ करता तो उसे बहोत अच्छा लगता था। जैनब ने नोट किया था कि संजय भी कईं दफ़ा उसे चोर नज़रों से निहारता था लेकिन जैनब को बुरा नहीं लगता था क्योंकि संजय ने कभी कोई ओछी हर्कत या बात नहीं की थी। उसे तो बल्कि खुशी होती थी कि कोई उसे तारीफ़-अमेज़ नज़रों से देखता है।
एक दिन शाम के छः बजे डोर-बेल बजी तो जैनब ने सोचा कि संजय और फ़ारूख आ गये हैं। उसने इकरा को आवाज़ लगा कर कहा कि, “तुम्हारे अब्बू आ गये है, जाकर डोर खोल दो!” इकरा बाहर दरवाजा खोलने चली गयी। इकरा ने उस दिन गुलाबी रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था जो उसके गोरे रंग पर क़हर ढा रहा था।
गरमी होने की वजह से वो अभी थोड़ी देर पहले ही नहा कर आयी थी। उसके बाल भी खुले हुए थे और बला की क़यामत लग रही थी इकरा उस दिन। जैनब को अचानक महसूस हुआ कि जब संजय देखेगा तो उसके दिल पर भी इकरा का हुस्न जरूर क़हर बरपायेगा।
इकरा दरवाजा खोलने चली गयी। जैनब बेडरूम में बैठी सब्जी काट रही थी और आँखें कमरे के दरवाजे के बाहर लगी हुई थी। तभी उसे बाहर से संजय की हल्की सी आवाज़ सुनायी दी। वो शायद इकरा को कुछ कह रहा था। जैनब को पता नहीं क्यों इकरा का इतनी देर तक संजय के साथ बातें करना खलने लगा।
वो उठ कर बाहर जाने ही वाली थी कि संजय बेडरूम के सामने से गुजरा और ऊपर चला गया। उसके पीछे इकरा भी आ गयी और सीधे जैनब के बेडरूम में चली आयी। इससे पहले कि रुख्सना इकरा से कुछ पूछ पाती वो खुद ही बोल पड़ी, “अम्मी आज रात अब्बू घर नहीं आयेंगे… वो संजय बोल रहा था कि आज उनकी नाइट ड्यूटी है…!”
इकरा सब्जी काटने में जैनब की मदद करने लगी। जैनब सोच में पड़ गयी कि आखिर उसे हो क्या गया है… संजय तो शायद इसलिये इकरा से बात कर रहा था कि आज आबिद घर पर नहीं आयेगा… यही बताना होगा उसे… पर उसे क्या हुआ था को वो इस कदर बेचैन हो उठी… अगर वैसे भी इकरा और संजय आपस में कुछ बात कर भी लेते है तो इसमें हर्ज ही क्या है… वो दोनों तो हम उम्र हैं… कुंवारे हैं और वो एक शादीशुदा औरत है उम्र में भी उन दोनों से चौदह-पंद्रह साल बड़ी।
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जैनब को इकरा और संजय का बात करना इस लिये भी अच्छा नहीं लगा था कि जब से संजय उनके यहाँ रहने आया था तब से इकरा के तेवर बदले-बदले लग रहे थे… कहाँ तो हर रोज़ इकरा को ढंग से कपड़े पहनने और सजने संवरने के लिये जोर देना पड़ता था और कहाँ वो इन दिनों नहा-धो कर बिना कहे शाम को कॉलेज से लौट कर तैयार होती और आइने के सामने बैठ कर अच्छे से मेक-अप तक करने लगी थी।
इन दो हफ़्तों में उसका पहनावा भी बदल गया था। यही सब महसूस करके जैनब को इकरा के ऊपर शक सा होने लगा। फिर जैनब ने सोचा कि अगर इकरा संजय को पसंद करती भी है तो उसमें इकरा की क्या गल्ती है… संजय था ही इतना हैंडसम और चार्मिंग लड़का कि जो भी लड़की उसे देखे उस पर फ़िदा हो जाये।
जैनब खुद भी तो इस उम्र में संजय पे फ़िदा सी हो गयी थी और अपने कपड़ों और मेक-अप पे पहले से ज्यादा तवज्जो देने लगी थी। जैनब उठी और इकरा को सब्जी काट कर किचन में रखने के लिये कहा। फिर आईने के सामने एक दफ़ा अपने खुले बाल संवारे और थोड़ा मेक-अप दुरुस्त किया।
जैनब घर के अंदर भी ज्यादातर ऊँची हील वाली चप्पल पहने रहती थी लेकिन अब मेक-अप दुरुस्त करके उसने अलमारी में से और भी ज्यादा ऊँची पेंसिल हील वाली सैंडल निकाल कर पहन ली क्योंकि इन दो हफ़्तों में संजय की नज़रों से जैनब को उसकी पसंद का अंदाज़ा हो गया था।
संजय की नज़र अक्सर हील वाली चप्पलों में जैनब के पैरों पे अटक जाया करती थी। सैंडलों के बकल बंद करके वो एक गिलास में ठंडा पानी लेकर ऊपर चली गयी। सोचा कि संजय को प्यास लगी होगी तो गरमी में उसे फ़्रिज का ठंडा पानी दे आये लेकिन इसमें उसका खुद का मकसद भी छुपा था।
जैसे ही जैनब संजय के कमरे के दरवाजे पर पहुँची तो संजय अचानक से बाहर आ गया। उसके जिस्म पर सिर्फ़ एक तौलिया था… जो उसने कमर पर लपेट रखा था। शायद वो नहाने के लिये बाथरूम में जा रहा था। जैनब ने उसकी तरफ़ पानी का गिलास बढ़ाया तो संजय ने शुक्रिया कह कर पानी का गिलास लेते हुए पानी पीना शुरू कर दिया।
जैनब की नज़र फिर से संजय की चौड़ी छाती पर अटक गयी। पसीने की कुछ बूँदें उसकी छाती से उसके पेट की तरफ़ बह रही थीं जिसे देख कर जैनब के होंठ थरथराने लगे। संजय ने पानी खतम किया और जैनब की तरफ़ गिलास बढ़ाते हुए बोला, “थैंक यू भाभी जी… लेकिन आप ने क्यों तकलीफ़ उठायी… मैं खुद ही नीचे आ कर पानी ले लेता!”
जैनब ने नोटिस क्या कि संजय उसके काँप रहे होंठों को बड़ी ही हसरत भरी निगाहों से देख रहा था।
संजय उसे निहारते हुए बोला, “भाभी जी कहीं बाहर जा रही हैं क्या…?”
जैनब चौंकते हुए बोली, “नहीं तो क्यों!”
“नहीं बस वो आपको इतने अच्छे से तैयार हुआ देख कर मुझे ऐसा लगा… एक बात कहूँ भाभी जी… आप खूबसूरत तो हैं ही और आपके कपड़ों की चॉईस… मतलब आपका ड्रेसिंग सेंस भी बहुत अच्छा है… जैसे कि अब ये सैंडल आपकी खूबसूरती कईं गुना बढ़ा रहे हैं।”
संजय से इस तरह अपनी तारीफ़ सुनकर जैनब के गाल शर्म से लाल हो गये। फ़रूक से तो कभी उसने अपनी तारीफ़ में दो अल्फ़ाज़ भी नहीं सुने थे। सिर झुका कर शरमाते हुए वो धीरे से बोली, :बस ऐसे ही सजने-संवरने का थोड़ा शौक है मुझे!” फिर वो गिलास लेकर जोर-जोर से धड़कते दिल के साथ नीचे आ गयी। जब जैनब नीचे पहुँची तो इकरा खाना तैयार कर रही थी।
इकरा को पहले कभी इतनी लगन और प्यार से खाना बनाते जैनब कभी नहीं देखा था। थोड़ी देर में ही खाना तैयार हो गया। जैनब ने संजय के लिये खाना थाली में डाला और उसने सोचा क्यों ना आज संजय को खाने के लिये नीचे ही बुला लूँ। उसने इकरा से कहा कि वो खाना टेबल पर लगा दे जब तक वो खुद ऊपर से संजय को बुला कर लाती है। जैनब की बात सुन कर इकरा एक दम चहक से उठी।
इकरा: “अम्मी संजय आज खाना नीचे खायेगा?”
जैनब: “हाँ! मैं बुला कर लाती हूँ..!”
जैनब ऊपर की तरफ़ गयी। ऊपर सन्नाटा पसरा हुआ था। बस ऊँची पेंसिल हील वाले सैंडलों में जैनब के कदमों की आवाज़ और संजय के रूम से उसके गुनगुनाने की आवाज़ सुनायी दी रही थी। जैनब धीरे-धीरे कदमों के साथ संजय के कमरे की तरफ़ बढ़ी और जैसे ही वो संजय के कमरे के दरवाजे पर पहुँची तो अंदर का नज़ारा देख कर उसकी तो साँसें ही अटक गयीं।
संजय बेड के सामने एक दम नंगा खड़ा हुआ था। उसका जिस्म बॉडी लोशन की वजह से एक दम चमक रहा था और वो अपने लंड को बॉडी लोशन लगा कर मुठ मारने वाले अंदाज़ में हिला रहा था। संजय का आठ इंच लंबा और मोटा अनकटा लंड देख कर जैनब की साँसें अटक गयी।
उसके लंड का सुपाड़ा अपनी चमड़ी में से निकल कर किसी साँप की तरह फुंफकार रहा था। क्या सुपाड़ा था उसके लंड का… एक दम लाल टमाटर के तरह इतना मोटा सुपाड़ा… उफ़्फ़ हाय जैनब की चूत तो जैसे उसी पल मूत देती। जैनब बुत्त सी बनी संजय के अनकटे लंड को हवा में झटके खाते हुए देखने लगी…
इस बात से अंजान कि वो एक पराये जवान लड़के के सामने उसके कमरे में खड़ी है… वो लड़का जो इस वक़्त एक दम नंगा खड़ा है। तभी संजय एक दम उसकी तरफ़ पलटा और उसके हाथ से लोशन के बोतल नीचे गिर गयी। एक पल के लिये वो भी सकते में आ गया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
फिर जैसे ही उसे होश आया तो उसने बेड पर पड़ा तौलिया उठा कर जल्दी से कमर पर लपेट लिया और बोला, “सॉरी वो मैं… मैं डोर बंद करना भूल गया था…!” अभी तक जैनब यूँ बुत्त बन कर खड़ी थी। संजय की आवाज़ सुन कर वो इस दुनिया में वापस लौटी। “हाय अल्लाह!” उसके मुँह से निकला और वो तेजी से बाहर की तरफ़ भागी और वापस नीचे आ गयी।
जैनब नीचे आकर कुर्सी पर बैठ गयी और तेजी से साँसें लेने लगी। जो कुछ उसने थोड़ी देर पहले देखा था… उसे यकीन नहीं हो रहा था। जिस तरह से वो अपने लंड को हिला रहा था… उसे देख कर तो जैनब के रोंगटे ही खड़े हो गये थे… उसकी चुत में हलचल मच गयी थी और गीलापन भर गया था। तभी इकरा अंदर आयी और उसके साथ वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोली, “अम्मी संजय नहीं आया क्या?”
जैनब: “नहीं! वो कह रहा है कि वो ऊपर ही खाना खायेगा!”
इकरा: “ठीक है अम्मी… मैं खाना डाल देती हूँ… आप खाना दे आओ…!”
जैनब: “इकरा तुम खुद ही देकर आ जाओ… मेरी तबियत ठीक नहीं है…!”
संजय के सामने जाने की जैनब की हिम्मत नहीं हुई। उसे यकीन था कि अब तक संजय ने भी कपड़े पहन लिये होंगे… इसलिये उसने इकरा से खाना ले जाने को कह दिया। इकरा बिना कुछ कहे खाना थाली में डाल कर ऊपर चली गयी और संजय को खाना देकर वापस आ गयी और जैनब से बोली, “अम्मी संजय पूछ रहा था कि आप खाना देने ऊपर नहीं आयीं… आप ठीक तो है ना…?”
जैनब ने एक बार इकरा की तरफ़ देखा और फिर बोली, “बस थोड़ी थकान सी लग रही है… मैं सोने जा रही हूँ तू भी खाना खा कर किचन का काम निपटा कर सो जाना!”
इकरा को हिदायत दे कर जैनब अपने बेडरूम में जा कर दरवाजा बंद करके बेड पर लेट गयी। उसके दिल-ओ-दिमाग पे संजय का लौड़ा छाया हुआ था और वो इस कदर मदहोश सी थी कि उसने कपड़े बदलना तो दूर बल्कि सैंडल तक नहीं उतारे थे। ऐसे ही संजय के लंड का तसव्वुर करते हुए बेड पर लेट कर अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया हल्के-हल्के उस पर अपनी चूत रगड़ने लगी।
फिर अपना हाथ सलवार में डाल कर चूत सहलाते हुए उंगलियों से अपनी चूत चोदने लगी। आमतौर पे फिर जब वो हफ़्ते में एक-दो दफ़ा खुद-लज़्ज़ती करती थी तो इतने में उसे तस्क़ीन हासिल हो जाती थी लेकिन आज तो उसकी चूत को करार मिल ही नहीं रहा था।
थोड़ी देर बाद वो उठी और बेडरूम का दरवाजा खोल कर धीरे बाहर निकली। अब तक इकरा अपने कमरे में जा कर सो चुकी थी। घर में अंधेरा था… बस एक नाइट-लैम्प की हल्की सी रोशनी थी। जैनब किचन में गयी और एक छोटा सा खीरा ले कर वापस बेडरूम में आ गयी।
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दरवाजा बंद करके उसने आनन फ़ानन अपनी सलवार और पैंटी उतार दी और फिर वो बेड पर घुटने मोड़ कर लेटते हुए खीरा अपनी चूत में डाल कर अंदर बाहर करने लगी। उसकी बंद आँखों में अभी भी सूनील के नंगे जिस्म और उसके तने हुए अनकटे लौड़े का नज़ारा था।
करीब आठ-दस मिनट चूत को खीरे से खोदने के बाद उसका जिस्म झटके खाने लगा और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। उसके बाद जैनब आसूदा होकर सो गयी। अगले दिन सुबह सुबह जब जैनब की आँख खुली तो खुद को बिस्तर पे सिर्फ़ कमीज़ पहने हुए नंगी हालत में पाया।
संजय के लिये जो पेंसिल हील के सैंडल पिछली शाम को पहने थे वो अब भी पैरों में मौजूद थे। बिस्तर पे पास ही वो खीरा भी पड़ा हुआ था जिसे देख कर जैनब का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसकी सलवार और पैंटी भी फर्श पर पड़े हुई थी। उसने कमरे और बिस्तर की हालत ठीक की और फिर नहाने के लिये बाथरूम में घुस गयी।
इतने में आबिद वापिस आ गया और इकरा और जैनब से बोला कि इकरा की मामी की तबियत खराब है और इसलिये वो इकरा को कुछ दिनो के लिये अपने पास बुलाना चाहती है। आबिद ने इकरा को तैयार होने के लिये कहा। जैनब ने जल्दी से नाश्ता तैयार किया और नाश्ते की ट्रे लगाकर इकरा से कहा कि वो ऊपर संजय को नाश्ता दे आये। आज इकरा और भी ज्यादा कहर ढा रही थी।
जैनब ने गौर किया कि इकरा ने मरून रंग का सलवार कमीज़ पहना हुआ था। उसका गोरा रंग उस मरून जोड़े में और खिल रहा था और पैरों में सफ़ेद सैंडल बेहद सूट कर रहे थे। जैनब ने सोचा कि आज तो जरूर संजय इकरा की खूबसूरती को देख कर घायल हो गया होगा। इकरा नाश्ता देकर वापस आयी तो उसके चेहरे पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कान थी।
फिर थोड़ी देर बाद संजय भी नीचे आ गया। जैनब किचन में ही काम कर रही थी कि आबिद किचन मैं आकर बोला, “जैनब! मैं शाम तक वापस आ जाऊँगा… और हाँ आज नादिया भाभीजान आने वाली हैं… उनकी अच्छे से मेहमान नवाज़ी करना!”
ये कह कर इकरा और आबिद चले गये। जैनब ने मन ही मन में सोचा कि “अच्छा तो इसलिये आबिद इकरा को उसकी मामी के घर छोड़ने जा रहा था ताकि वो अपनी भाभी नादिया के साथ खुल कर रंगरलियाँ मना सके।” इकरा समझदार हो चुकी थी और घर में उसकी मौजूदगी की वजह से आबिद और नादिया को एहतियात बरतनी पड़ती थी। जैनब की तो उन्हें कोई परवाह थी नहीं।
आबिद के बड़े भाई उन लोगों के मुकाबले ज्यादा पैसे वाले थे। वो एक प्राइवेट कंपनी में ऊँचे ओहदे पर थे। उनका बड़ा लड़का इंजिनियरिंग कर रहा था और दो बच्चे बोर्डिंग स्कूल में थे। उन्हें भी अक्सर दूसरे शहरों में दौरों पे जाना पड़ता था इसलिये नादिया भाभी हर महीने दो-चार दिन के लिये आबिद के साथ ऐयाशी करने आ ही जाती थी।
कभी-कभार आबिद को भी अपने पास बुला लेती थी। नादिया वैसे तो आबिद के बड़े भाई की बीवी थी पर उम्र में आबिद से छोटी थी। नादिया की उम्र करीब बयालीस साल थी लेकिन पैंतीस-छत्तीस से ज्यादा की नहीं लगती थी। जैनब की तरह खुदा ने उसे भी बेपनाह हुस्न से नवाज़ा था और नादिया को तो रुपये-पैसों की भी कमी नहीं थी।
फ़रूक को तो उसने अपने हुस्न का गुलाम बना रखा था जबकि जैनब हुस्न और खूबसूरती में नादिया से बढ़कर ही थी। अभी कुछ ही वक़्त गुजरा था कि डोर-बेल बजी। जब जैनब ने दरवाजा खोला तो बाहर उसकी सौतन नादिया खड़ी थी। जैनब को देख कर उसने एक कमीनी मुस्कान के साथ सलाम कहा और अंदर चली आयी। जैनब ने दरवाजा बंद किया और ड्राइंग रूम में आकर नादिया को सोफ़े पर बिठाया।
“और सुनाइये नादिया भाभी-जान कैसी है आप!” जैनब किचन से पानी लाकर नादिया को देते हुए तकल्लुफ़ निभाते हुए पूछा।
नादिया: “मैं ठीक हूँ… तू सुना तू कैसी है?”
जैनब: “मैं भी ठीक हूँ भाभी जान… कट रही है… अच्छा क्या लेंगी आप चाय या शर्बत?”
नादिया: “तौबा जैनब! इतनी गरमी में चाय! तू एक काम कर शर्बत ही बना ले!”
जैनब किचन में गयी और शर्बत बना कर ले आयी और शर्बत नादिया को देकर बोली, “भाभी आप बैठिये, मैं ऊपर से कपड़े उतार लाती हूँ…!” जैनब ऊपर छत पर गयी और कपड़े ले कर जब नीचे आ रही थी तो कुछ ही सीढ़ियाँ बची थी कि अचानक से उसका बैलेंस बिगड़ गया और वो सीढ़ियों से नीचे गिर गयी।
गिरने की आवाज़ सुनते ही नादिया दौड़ कर आयी और जैनब को यूँ नीचे गिरी देख कर उसने जैनब को जल्दी से सहारा देकर उठाया और रूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया। “हाय अल्लाह! ज्यादा चोट तो नहीं लगी जैनब! अगर सलाहियत नहीं है तो क्यों पहनती हो ऊँची हील वाली चप्पलें… मेरी नकल करना जरूरी है क्या!”
नादिया का ताना सुनकर जैनब को गुस्सा तो बहोत आया लेकिन दर्द से कराहते हुए वो बोली, “आहहह हाय बहोत दर्द हो रहा है भाभी जान! आप जल्दी से डॉक्टर बुला लाइये!” ये बात सही थी कि जैनब की तरह नादिया को भी आम तौर पे ज्यादातर ऊँची ऐड़ी वाले सैंडल पहनने का शौक लेकिन जैनब उसकी नकल या उससे कोई मुकाबला नहीं करती थी।
नादिया फ़ौरन बाहर चली गयी! और गली के नुक्कड़ पर डॉक्टर के क्लीनिक था… वहाँ से डॉक्टर को बुला लायी। डॉक्टर ने चेक अप किया और कहा, “घबराने की बात नहीं है… कमर के नीचे हल्की सी मोच है… आप ये दर्द की दवाई लो और ये बाम दिन में तीन-चार दफ़ा लगा कर मालिश करो… आपकी चोट जल्दी ही ठीक हो जायेगी!”
डॉक्टर के जाने के बाद नादिया ने जैनब को दवाई दी और बाम से मालिश भी की। शाम को आबिद और संजय घर वापस आये तो नादिया ने डोर खोला। आबिद बाहर से ही भड़क उठा। जैनब को बेडरूम में उसकी आवाज़ सुनायी दे रही थी, “भाभी जान! आपने क्यों तकलीफ़ की… वो जैनब कहाँ मर गयी… वो दरवाजा नहीं खोल सकती थी क्या?”
नादिया: “अरे आबिद मियाँ! इतना क्यों भड़क रहे हो… वो बेचारी तो सीढ़ियों से गिर गयी थी… चोट आयी है… उसे डॉक्टर ने आराम करने को कहा है!”
संजय ऊपर जाने से पहले जैनब के कमरे में हालचाल पूछ कर गया। संजय का अपने लिये इस तरह फ़िक्र ज़ाहिर करना जैनब को बहोत अच्छा लगा। जैनब ने सोचा कि एक उसका शौहर था जिसने कि उसका हालचाल भी पूछना जरूरी नहीं समझा। रात का खाना नादिया ने तैयार किया और आबिद संजय को ऊपर खाना दे आया। आबिद आज मटन लाया था जिसे नादिया ने बनाया था।
उसके बाद आबिद और नादिया दोनों शराब पीने बैठ गये और अपनी रंगरलियों में मशगूल हो गये। थोड़ी देर बाद दोनों नशे की हालत में बेडरूम में आये जहाँ जैनब आँखें बंद किये लेटी थी और चूमाचाटी शुरू कर दी। जैनब बेड पर लेटी उनकी ये सब हर्कतें देख कर खून के आँसू पी रही थी। उन दोनों को लगा कि जैनब सो चुकी है जबकि असल में वो जाग रही थी। वैसे उन दोनों पे जैनब के जागने या ना जागने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।
“आबिद मियाँ! अब आप में वो बात नहीं रही!” नादिया ने आबिद का लंड को चूसते हुए शरारत भरे लहज़े में कहा।
आबिद: “क्या हुआ जानेमन… किस बात की कमी है?”
नादिया: “हम्म देखो ना… पहले तो ये मेरी फुद्दी देखते ही खड़ा हो जाता था और अब देखो दस मिनट हो गये इसके चुप्पे लगाते हुए… अभी तक सही से खड़ा नहीं हुआ है!”
आबिद: “आहह तो जल्दी किसे है मेरी जान! थोड़ी देर और चूस ले फिर मैं तेरी चूत और गाँड दोनों का कीमा बनाता हूँ!”
“अरे आबिद मियाँ अब रहने भी दो… खुदा के वास्ते चूत या गाँड मे से किसी एक को ही ठीक से चोद लो तो गनिमत है…!” नादिया ने तंज़ किया और फिर उसका लंड चूसने लगी।
थोड़ी देर बाद नादिया आबिद के लंड पर सवार हो गयी और ऊपर नीचे होने लगी। उसकी मस्ती भरी कराहें कमरे में गुँज रही थी। जैनब के लिये ये कोई नयी बात नहीं थी लेकिन हर बार जब भी वो नादिया को आबिद के साथ इस तरह चुदाई के मज़े लेते देखती थी तो उसके सीने पे जैसे कट्टारें चल जाती थी। थोड़ी देर बाद उन दोनों के मुतमाइन होने के बाद रुखसना को नादिया के बोलने की आवाज़ आयी, “आबिद मैं कल घर वापस जा रही हूँ!”
आबिद: “क्यों अब क्या हो गया..?”
नादिया: “मैं यहाँ तुम्हारे घर का काम करने नहीं आयी… ये तुम्हारी बीवी जो अपनी कमर तुड़वा कर बेड पर पसर गयी है… मुझे इसकी चाकरी नहीं करनी… मैं घर जा रही हूँ कल!”
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जैनब को बेहद खुशी महसूस हुई कि चलो सीढ़ियों से गिरने का कुछ तो फ़ायदा हुआ। वैसे भी उसे इतना दर्द नहीं हुआ था जितना की वो ज़ाहिर कर रही थी। उसे गिरने से कमर में चोट जरूर लगी थी लेकिन शाम तक दवाई और बाम से मालिश करने कि वजह से उसका दर्द बिल्कुल दूर हो चुका था लेकिन वो नादिया को परेशान करने के लिये दर्द होने का नाटक ज़ारी रखे हुए थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
आबिद: “नादिया मेरे जान… कल मत जाना…!”
नादिया: “क्यों… मैंने कहा नहीं था तुम्हें कि तुम मेरे घर आ जाओ… तुम्हें तो पता है तुम्हारे भाई जान दिल्ली गये हैं… दस दिनों के लिये घर पर कोई नहीं है!”
आबिद: “तो ठीक है ना कल तक रुक जओ… मैं कल स्टेशान पे बात करके छुट्टी ले लेता हूँ… फिर परसों साथ में चलेंगे!”
उसके बाद दोनों सो गये। जैनब भी करवटें बदलते-बदलते सो गयी। अगली सुबह जब उठी तो देखा नादिया ने नाश्ता तैयार किया हुआ था और आबिद डॉयनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा था। आबिद ने नादिया से कहा कि ऊपर संजय को थोड़ी देर बाद नाश्ता दे आये।
दर असल उस दिन संजय ने छुट्टी ले रखी थी क्योंकि संजय को कुछ जरूरी सामान खरीदना था। आबिद के जाने के बाद नादिया ने नाश्ता ट्रे में रखा और ऊपर चली गयी। थोड़ी देर बाद जब नादिया नीचे आयी तो जैनब ने नोटिस किया कि उसके होंठों पर कमीनी मुस्कान थी। पता नहीं क्यों पर जैनब को नादिया के नियत ठीक नहीं लग रही थी।
जैनब की कमर का दर्द आज बिल्कुल ठीक हो चुका था लेकिन वो नाटक ज़ारी रखे हुए बिस्तर पे लेटी रही। नादिया से उसने एक-दो बार बाम से मालिश भी करवायी। इस दौरान जैनब ने फिर नोटिस किया कि नादिया सज-धज के ग्यारह बजे तक बार-बार किसी ना किसी बहाने से चार पाँच बार ऊपर जा चुकी थी।
जैनब को कुछ गड़बड़ लग रही थी। फिर संजय नीचे आया और जैनब के रूम में जाकर उसका हाल चल पूछा। जैनब बेड से उठने लगी तो उसने जैनब को लेटे रहने को कहा और कहा कि वो बाज़ार जा रहा है… अगर किसी चीज़ के जरूरत हो तो बता दे… वो साथ में लेता आयेगा।
जैनब ने कहा कि किसी चीज़ की जरूरत नहीं है। संजय बाहर चला गया और दोपहर के करीब डेढ़-दो बजे वो वापस आया। उसके बाद जैनब की भी बेड पे लेटे-लेटे आँख लग गयी। अभी उसे सोये हुए बीस मिनट ही गुजरे थे कि तेज प्यास लगने से उसकी आँख खुली। उसने नादिया को आवाज़ लगायी पर वो आयी नहीं।
फिर वो खुद ही खड़ी हुई और किचन में जाकर पानी पिया। फिर बाकी कमरों में देखा पर नादिया नज़र नहीं आयी। बाहर मेन-डोर भी अंदर से बंद था तो फिर नादिया गयी कहाँ! तभी उसे नादिया के सुबह वाली हर्कतें याद आ गयी… हो ना हो दाल में जरूर कुछ काला है… कहीं वो संजय पर तो डोरे नहीं डाल रही? ये सोचते ही पता नहीं क्यों जैनब का खून खौल उठा।
वो धड़कते दिल से सीढ़ियाँ चढ़ के ऊपर आ गयी। जैसे ही वो संजय के दरवाजे के पास पहुँची तो उसे अंदर से नादिया की मस्ती भरी कराहें सुनायी दी, “आहहह आआहहह धीरे संजय डर्लिंग… आहहह तू तो बड़ा दमदार निकला… मैं तो तुझे बच्चा समझ रही थी…. आहहह ऊहहह हायऽऽऽ मेरी फुद्दी फाड़ दीईई रे…. आआहहहह मेरी चूत… संजयलल!”
ये सब सुन कर जैनब तो जैसे साँस लेना ही भूल गयी। क्या वो जो सुन रही थी वो हकीकत थी! जैनब संजय के कमरे के दरवाजे की तरफ़ बढ़ी जो थोड़ा सा खुला हुआ था। अभी वो दरवाजे की तरफ़ धीरे से बढ़ ही रही थी कि उसे संजय की आवाज़ सुनायी दी, “साली तू तो मुझे नामर्द कह रही थी… आहहह आआह ये ले और ले… ले मेरा लौड़ा अपनी चूत में साली… अगर जैनब भाभी घर पर ना होती तो आज तेरी चूत में लौड़ा घुसा-घुसा कर सुजा देता!”
नादिया: “हुम्म्म्म हायऽऽऽ तो सुजा दे ना मेरे शेर… ओहहह तेरी ही चूत है… और तू उस गश्ती जैनब की फ़िक्र ना कर मेरे सनम… वो ऊपर चढ़ कर नहीं आ सकती…. और अगर आ भी गयी तो क्या उखाड़ लेगी साली!”
जैनब धीरे- धीरे काँपते हुए कदमों के साथ दरवाजे के पास पहुँची और अंदर झाँका तो अंदर का नज़ारा देख कर उसके होश ही उड़ गये। अंदर नादिया सिर्फ़ ऊँची हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी बेड पर घोड़ी बनी हुई झुकी हुई थी और संजय भी बिल्कुल नंगा उसके पीछे से अपना मूसल जैसा लौड़ा तेजी से नादिया की चूत के अंदर-बाहर कर रहा था।
नादिया ने अपना चेहरा बिस्तर में दबाया हुआ था। उसका पूरा जिस्म संजय के झटकों से हिल रहा था। “आहहह संजय मेरी जान… मैंने तो सारा जहान पा लिया… आहहह ऐसा लौड़ा आज तक नहीं देखा… आहहह एक दम जड़ तक अंदर घुसता है तेरा लौड़ा… आहहह मेरी चूत के अंदर इस कदर गहरायी पर ठोकर मार रहा है जहाँ पहले किसी का लौड़ा नहीं गया… आहहह चोद मुझे फाड़ दे मेरी चूत को मेरी जान!”
जैनब ने देखा दोनों के कपड़े फ़र्श पर तितर-बितर पड़े हुए थे। टेबल पे शराब की बोतल और दो गिलास मौजूद थे जिससे जैनब को साफ़ ज़ाहिर हो गया कि संजय और नादिया ने शराब भी पी रखी थी। इतने में संजय ने अपना लंड नादिया की चूत से बाहर निकला और बेड पर लेट गया और नादिया फ़ौरन संजय के ऊपर चढ़ गयी।
नादिया ने ऊपर आते ही संजय का लंड अपने हाथ में थाम लिया और उसके लंड के सुपाड़े को अपनी चूत के छेद पर लगा कर उसके लंड पर बैठ गयी… और तेजी से अपनी गाँड ऊपर नीचे उछलते हुए चुदाने लगी। संजय का चेहरा दरवाजे की तरफ़ था। तभी उसकी नज़र अचानक बाहर खड़ी जैनब पर पड़ी और दोनों की नज़रें एक दूसरे से मिली।
जैनब को लगा कि अब गड़बड़ हो गयी है पर संजय ने ना तो कुछ किया और ना ही कुछ बोला। उसने जैनब की तरफ़ देखते हुए नादिया के नंगे चूतड़ों को दोनों हाथों से पकड़ कर दोनों तरफ़ फ़ैला दिया। नादिया की गाँड का छेद जैनब की आँखों के सामने नुमाया हो गया जो नादिया की चूत से निकले पानी से एक दम गीला हुआ था।
संजय ने जैनब की तरफ़ देखते हुए अपनी कमर को ऊपर की तरफ़ उछालना शुरू कर दिया। संजय का आठ इंच का लंड नादिया की गीली चूत के अंदर बाहर होना शुरू हो गया। संजय बार-बार नादिया की गाँड के छेद को फैला कर जैनब को दिखा रहा था। जैनब के पैर तो जैसे वहीं जम गये थे। वो कभी नादिया की चूत में संजय के लंड को अंदर-बाहर होता देखती तो कभी संजय की आँखों में!
संजय: “बोल साली… मज़ा आ रहा है ना?”
नादिया: “हाँ संजय मेरी जान! बहोत मज़ा आ रहा है…. आहहह दिल कर रहा है कि मैं सारा दिन तुझसे अपनी चूत ऐसे ही पिलवाती रहूँ… आहहहह सच में बहोत मज़ा आ रहा है…!”
संजय अभी भी जैनब की आँखों में देख रहा था। फिर जैनब को अचानक से एहसास हुआ कि ये वो क्या कर रही है और वहाँ से हट कर नीचे आ गयी। उसकी सलवार में उसकी पैंटी अंदर से एक दम गीली हो चुकी थी। उसे ऐसा लग रहा था कि जिस्म का सारा खून और गरमी चूत की तरफ़ सिमटते जा रहे हों!
वो बेड पर निढाल सी होकर गिर पड़ी और अपनी टाँगों के बीच तकिया दबा लिया और अपनी चूत को तकिये पर रगड़ने लगी पर चूत में सरसराहट और बढ़ती जा रहा थी। जैनब की खुली हुई आँखों के सामने नादिया की चूत में अंदर-बाहर होता संजय का आठ इंच लंबा और बेहद मोटा लंड अभी भी था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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अपनी सलवार का नाड़ा ढीला करके उसका हाथ अंदर पैंटी में घुस गया। वो तब तक अपनी चूत को उंगलियों से चोदती रही जब तक कि उसकी चूत के अंदर से लावा नहीं उगल पढ़ा। जैनब का पूरा जिस्म थरथरा गया और उसकी कमर झटके खाने लगी। झड़ने के बाद जैनब एक दम निढाल सी हो गयी और करीब पंद्रह मिनट तक बेसुध लेटी रही।
फिर वो उठ कर बाथरूम में गयी और अपने कपड़े उतारने शुरू किये। उसने अपनी सलवार कमीज़ उतार कर टाँग दी और फिर ब्रा भी उतार कर कपड़े धोने की बाल्टी में डाल दी और फिर जैसे ही उसने अपनी पैंटी को नीचे सरकाने की कोशिश की पर उसकी पैंटी नीचे से बेहद गीली थी और गीलेपन के वजह से वो चूत की फ़ाँकों पर चिपक सी गयी थी।
जैनब ने फिर से अपनी पैंटी को नीचे सरकाया और फिर किसी तरह उसे उतार कर देखा। उसकी पैंटी उसकी चूत के लेसदार पानी से एक दम सनी हुई थी। उसने पैंटी को भी बाल्टी में डाल दिया और फिर नहाने लगी। नहाने से उसे बहुत सुकून मिला। नहाने के बाद उसने दूसरे कपड़े पहने और बाथरूम का दरवाज़ा खोला तो उसने देखा कि नादिया बेड पर लेटी हुई थी और धीरे-धीरे अपनी चूत को सहला रही थी।
जैनब को बाथरूम से निकलते देख कर नादिया ने अपनी चूत से हाथ हटा लिया। जैनब आइने के सामने अपने बाल संवारने लगी तो नादिया ने उससे कहा, “जैनब मैं कल घर वापस जाने की सोच रही थी लेकिन अब सोच रही हूँ कि तुम्हारी कमर का दर्द ठीक होने तक कुछ दिन और रुक जाऊँ!”
जैनब के दिल में तो आया कि नादिया का मुँह नोच डाले। बदकार कुत्तिया साली पहले तो उसके शौहर को अपने बस में करके उसकी शादीशुदा ज़िंदगी नरक बना दी और ज़िंदगी में अब जो उसे थोड़ी सी इज़्ज़त और खुशी उसे संजय से मिल रही थी तो अज़ारा संजय को भी अपने चंगुल में फंसा रही थी।
जैनब ने कुछ नहीं कहा। कमर में दर्द का नाटक जो उसने नादिया को जल्दी वापस भेजने के लिये किया था अब नादिया उसे ही यहाँ रुकने का सबब बना रही थी। अब उसे यहाँ पर तगड़ा जवान लंड जो मिल रहा था। रात को आबिद घर वापस आया तो वो बहुत खुश लग रहा था… शायद उसे छुट्टी मिल गयी थी।
रात को आबिद ही संजय का खाना उसे ऊपर दे आया। जब आबिद ने नादिया को बताया कि उसे एक हफ़्ते की छुट्टी मिल गयी है तो नादिया ने उसे यह कहकर अगले दिन जाने से मना कर दिया कि जैनब की तबियत अभी ठीक नहीं है। लेकिन शायद किस्मत नादिया के साथ नहीं थी।
दिल्ली से उसके शौहर का फ़ोन आ गया कि उनके बेटे की बोर्डिंग स्कूल में तबियत खराब हो गयी है और वो जल्दी से जल्दी घर पहुँचे। नादिया को बेदिल से अगले दिन आबिद के साथ अपने घर जाना ही पड़ा लेकिन उस रात फिर नादिया और आबिद ने शराब के नशे में चूर होकर खूब चुदाई की।
हसद की आग में जलती हुई जैनब कुछ देर तक चोर नज़रों से उनकी ऐयाशी देखते-देखते ही सो गयी। अगली सुबह संजय भी आबिद और नादिया के साथ ही स्टेशन पर चला गया था। जैनब को संजय पे भी गुस्सा आ रहा था। उसने कभी सोचा नहीं था कि वो मासूम सा दिखाने वाला संजय इस हद तक गिर सकता है कि अपने से दुगुनी उम्र से भी ज्यादा उम्र की औरत के साथ ऐसी गिरी हुई हर्कत कर सकता है।
उसका संजय से कोई ज़ाती या जिस्मानी रिश्ता भी नहीं था लेकिन जैनब को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि नादिया और संजय ने मिल कर उसके साथ धोखा किया है। हालांकि संजय से कोई जिस्मानी रिश्ता कायम करने का रुखासाना का कोई इरादा बिल्कुल था भी नहीं लेकिन उसे ऐसा क्यों लग रहा था जैसे नादिया ने संजय को उससे छीन लिया था।
नादिया तो थी ही बदकार-बेहया औरत लेकिन संजय ने उसके साथ धोखा क्यों किया। जैनब को बिल्कुल वैसा महसूस हो रहा था जैसा पहली दफ़ा अपने शौहर आबिद के नादिया के साथ जिस्मानी रिश्तों के मालूम होने के वक़्त हुआ था बल्कि उससे भी ज्यादा बदहाली महसूस हो रही थी उसे।
शाम को जब संजय के आने का वक़्त हुआ तो जैनब ने पहले से ही मेन-डोर को खुला छोड़ दिया था ताकि उसे संजय की शक़्ल ना देखनी पड़े। वो अपने कमरे में आकर लेट गयी। थोड़ी देर बाद उसे बाहर के गेट के खुलने की आवाज़ आयी और फिर अंदर मेन-डोर बंद होने की।
जैनब को अपने कमरे में लेटे हुए अंदाज़ा हो गया कि संजय घर पर आ चुका है और थोड़ी देर बाद संजय ने उसके कमरे के खुले दरवाजे पे दस्तक दी। जैसे ही दरवाजे पे दस्तक हुई तो जैनब उठ कर बैठ गयी और उसे अंदर आने को कहा। संजय पास आकर कुर्सी पर बैठ गया और बोला, “आपका दर्द अब कैसा है..?”
जैनब ने थोड़ा रूखेपन से जवाब दिया, “अब पहले से बेहतर है!”
संजय: “आप दवाई तो समय से ले रही हैं ना?”
जैनब: “हाँ ले रही हूँ!”
संजय: “अच्छा मैं अभी फ्रेश होकर बाहर से खाना ले आता हूँ… आप प्लीज़ खाना बनाने का तकल्लुफ़ मत कीजियेगा… क्या खायेंगी आप…?”
संजय के दिल में अपने लिये परवाह और फ़िक्र देख कर जैनब का गुस्सा कम हो गया और उसने थोड़ा नरमी से जवाब दिया, “कुछ भी ले आ संजय!”
संजय उठ कर बाहर जाने लगा तो न जाने जैनब के दिमाग में क्या आया और वो संजय से पूछ बैठी, “तूने ऐसी हर्कत क्यों की संजय?”
उसकी बात सुन कर संजय फिर से कुर्सी पर बैठ गया और सिर को झुकाते हुए शर्मसार लहज़े में बोला, “मुझे माफ़ कर दीजिये भाभी… मुझसे बहुत बड़ी गल्ती हो गयी… ये सब अंजाने में हो गया!” उसने एक बार जैनब की आँखों में देखा और फिर से नज़रें झुका ली।
“अंजाने में गल्ती हो गयी…? तू तो पढ़ा लिखा है… समझदार है अच्छे घराने से है… तू उस बेहया-बदज़ात नादिया की बातों में कैसे आ गया…?” संजय ने एक बार फिर से जैनब की आँखों में देखा। इस दफ़ा जैनब की आँखों में शिकायत नहीं बल्कि संजय के लिये फ़िक्रमंदी थी।
संजय नज़रें नीचे करके बोला, “भाभी सच कहूँ तो आप नहीं मानेंगी… पर सच ये है कि इसमें मेरी कोई गल्ती नहीं है… दर असल कल नादिया भाभी बार-बार ऊपर आकर मुझे उक्सा रही थी… मैं इन सब बातों से अपना दिमाग हटाने के लिये बाहर बज़ार चला गया… बज़ार में अपने काम निपटा कर मैं लौटते हुए व्हिस्की की बोतल भी साथ लाया था।
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दोपहर में मैंने सोचा आप दोनों खाने के बाद शायद सो गयी होंगी तो मैं अपने कमरे में ड्रिंक करने लगा। इतने में अचानक नादिया भाभी ऊपर मेरे कमरे में आ गयीं और बैठते हुए बोली कि अकेले-अकेले शौक फ़र्मा रहे हो संजय मियाँ हमें नहीं पूछोगे… पीने का मज़ा तो किसी के साथ पीने में आता है…
उनकी बात सुनकर मैं सकपका गया और इससे पहले कि मैं कुछ कहता वो खुद ही एक गिलास में अपने लिये ड्रिंक बनाने लगी। फिर ड्रिंक करते -करते वो फिर मुझे अपनी हर्कतों से उक्साने लगीं। मुझे ये सब अटपटा लग रहा था लेकिन नादिया भाभी तेजी से ड्रिंक कर रही थीं और उन्हें नशा चढ़ने लगा तो उनकी हर्कतें और भी बोल्ड होने लगीं।
उन्होंने अपनी कमीज़ के हुक खोल दिये और मेरी टाँगों के बीच में अपना हाथ रख कर दबाते हुए गंदी-गंदी बातें बोलने लगीं। मैंने उन्हें वहाँ से जाने को कहा और आपका वास्ता भी दिया कि जैनब भाभी आ जायेंगी लेकिन नादिया भाभी ने एक नहीं मानी और मुझे नामर्द बोली…
मैं फिर भी चुप रहा तो उन्होंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिये और मेरे सामने नंगी होते हुए मुझे गंदी-गंदी गालियाँ देकर उक्साने लगी कि तू हिजड़ा है क्या जो एक खूबसूरत हसीन औरत तेरे सामने नंगी होके खड़ी है और तू मना कर रहा है…
भाभी मैंने भी ड्रिंक की हुई थी और आप यकीन करें कि नादिया भाभी की उकसाने वाली गंदी-गंदी बातों से और उन्हें अपने सामने इस तरह बिल्कुल नंगी खड़ी देख कर खासतौर पे सिर्फ़ हाई हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी… मैं कमज़ोर पड़ गया और मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि मुझसे और रुका नहीं गया….!” ये कहते हुए संजय चुप हो गया।
जैनब अब उसकी हालत समझ सकती थी। आखिर एक जवान लड़के के सामने अगर एक औरत नंगी होकर उक्साये तो उसका नतीजा वही होना था जो उसने अपनी आँखों से देखा था। “भाभी मैं सच कह रहा हूँ… मेरा ये पहला मौका था… इससे पहले मैंने कभी ऐसा नहीं किया था… हो सके तो आप मुझे माफ़ कर दें भाभी..!” ये कह कर संजय ऊपर चला गया।
संजय ने बिल्कुल सच बयान किया था और वाकय में ये उसका चुदाई करने का पहला मौका था। फिर वो थोड़ी देर में फ्रेश होकर नीचे आया तो अभी भी शर्मसार नज़र आ रहा था। जैनब ने उसे ढाढस बंधाते हुए कहा कि उसे शर्मिंदा होने की बिल्कुल जरूरत नहीं है क्योंकि उसकी कोई गल्ती नहीं है।
फिर संजय खुश होकर ढाबे से खाना लेने चला गया। जैनब भी उठी और तैयार होकर थोड़ा मेक अप किया और फिर टेबल पर प्लेट और पानी वगैरह रखने लगी। थोड़ी देर में संजय भी खाना लेकर आ गया। हालांकि सुबह का नाश्ता तो संजय ने कईं दफ़ा आबिद के साथ नीचे किया था लेकिन आज पहली बार संजय रात का खाना जैनब के साथ नीचे खाना खा रहा था।
जैनब ने नोटिस किया कि हमेशा खुशमिजाज़ रहने वाला संजय इस वक़्त काफ़ी संजीदा था और कुछ बोल नहीं रहा था। इसी बीच जैनब ने बड़े प्यार और नरमी से पूछा, “संजय एक और बात बता… वो नादिया भाभी उस दिन रात को दोबारा भी आयी थी क्या तेरे कमरे में… तेरे साथ…. हमबिस्तर…?”
“जी भाभी वो आयी थीं रात को करीब तीन-साढ़े तीन बजे… मैं गहरी नींद सोया हुआ था… गरमी की वजह से कमरा खुला रखा हुआ था मैंने… जब मेरी आँख खुली तो वो पहले से ही मेरे ऊपर सवार थीं… मैंने फिर एक बार उन्हें संतुष्ट किया और फिर वो नीचे चली गयीं… काफी नशे में लग रही थीं वो!” संजय ने काफ़ी संजीदगी से जवाब दिया।
खाना खतम करने के बाद जब जैनब बर्तन उठाने के लिये उठी तो संजय ने उसे रोक दिया और बोला, “रहने दें भाभी! मैं कर देता हूँ…!” जैनब ने कहा कि नहीं वो कर लेगी पर संजय ने उसकी एक ना सुनी और उसे बेड पर आराम करने को कह कर खुद बर्तन लेकर किचन में चला गया और बर्तन साफ़ करके सारा काम खतम कर दिया।
संजय फिर से जैनब के बेडरूम में आया तो वो बेड पर पीछे कमर टिकाये हुई थी। संजय ने एक गिलास पानी जैनब को दिया और बोला “भाभी जी… बताइये कौन सी दवाई लेनी है आपको!” जैनब ने उसे बताया कि उसका दर्द अब काफ़ी ठीक है और अब किसी दवाई की जरूरत नहीं है। तभी संजय के नज़र साइड-टेबल पे रखी हुई बाम पर गयी तो वो बोला, “चलिये आप लेट जाइये… मैं आपकी कमर पर बाम लगा कर मालिश कर देता हूँ… आपका जो थोड़ा बहुत दर्द है वो भी ठीक हो जायेगा!”
वो संजय को मना करते हुए बोली, “नहीं रहने दे संजय… मैं खुद कर लुँगी…!”
संजय: “आप लगा तो खुद लेंगी पर मालिश नहीं कर पायेंगी… मैं आपकी मालिश कर देता हूँ… आप का रहा सहा दर्द भी ठीक हो जायेगा!” ये कह कर संजय कुर्सी से उठ कर बेड पर आकर जैनब के करीब बैठ गया और उसे लेटने को बोला, “चलिये भाभी जी बताइये कहाँ लगाना है…!”
अपने लिये संजय की इतनी हमदर्दी और फ़िक्र देख कर जैनब उसे और मना नहीं कर सकी और ये हकीकत भी बता नहीं पायी कि उसे दर्द तो कभी हुआ ही नहीं था और ये दर्द का तो सिर्फ़ बहाना था नादिया को परेशान करने का। जैनब शर्माते हुए पेट के बल लेट गयी और अपनी कमीज़ को कमर से ज़रा ऊपर उठा लिया और बोली यहाँ कमर पर!
संजय ने थोड़ा सा बाम अपनी उंगलियों पर लगाया और फिर जैनब की कमर पर मलने लगा। जैसे ही उसके हाथ का लम्स जैनब ने अपनी नंगी कमर पर महसूस किया तो उसका पूरा जिस्म काँप गया। उसकी सिस्करी निकलते-निकलते रह गयी।
संजय ने धीरे-धीरे दोनों हाथों से उसकी कमर की मालिश करनी शुरू कर दी। उसके हाथों का लम्स उसे बेहद अच्छा लग रहा था। कईं दफ़ा उसके हाथों की उंगलियाँ जैनब की सलवार के जबर से टकरा जाती तो उसका दिल जोरों से धड़कने लगता। वो मदहोश सी हो गयी थी।
“भाभी ज्यादा दर्द कहाँ पर है?” संजय ने पूछा तो बिना सोचे ही जैनब के मुँह से मदहोशी में खुद बखुद निकल गया कि थोड़ा सा नीचे है!
संजय ने फिर थोड़ा और नीचे बाम लगाना शुरू कर दिया। भले ही उस मालिश से कोई फ़ायदा नहीं होने वाला था क्योंकि चोट तो कहीं लगी ही नहीं थी पर फिर भी जैनब को उसके हाथों के लम्स से जो सुकून मिल रहा था उसे वो बयान नहीं कर सकती थी। “भाभी जी थोड़ी सलवार नीचे सरका दो ताकि अच्छे से बाम लग सके…!”
संजय की बात सुन कर जैनब के ज़हन में उसका वजूद काँप उठा पर उसे संजय के हाथों का लम्स अच्छा लग रहा था और उसे सुकून भी मिल रहा था। जैनब ने तुनकते हुए अपनी सलवार को थोड़ा नीचे के तरफ़ सरकाया। उसने नाड़ा बाँधा हुआ था इसलिये सलवार पूरी नीचे नहीं हो सकती थी पर फिर भी काफ़ी हद तक नीचे हो गयी।
“भाभी जी आप तो बहुत गोरी हो… मैंने इतना गोरा जिस्म आज तक नहीं देखा..!” संजय की बात सुनकर जैनब के गाल शर्म के मारे लाल हो गये। वो तो अच्छा था कि जैनब उल्टी लेटी हुई थी। जैनब को यकीन था कि अकेले कमरे में वो उसे इस तरह अपने पास पाकर पागल हो गया होगा।
संजय ने थोड़ी देर और मालिश की और जैनब ने जब उसे कहा कि अब बस करे तो वो चुपचप उठ कर ऊपर चला गया। जैनब को आज बहुत सुकून मिल रहा था। आज कईं सालो बाद उसके जिस्म को ऐसे हाथों ने छुआ था जिसके लम्स में हमदर्दी और प्यार मिला हुआ था।
संजय के बारे में सोचते हुए जैनब को कब नींद आ गयी उसे पता ही नहीं चला। अगली सुबह जब वो उठी तो बेहद तरो तज़ा महसूस कर रही थी। नहाने के बाद जैनब बहुत अच्छे से तैयार हुई… आसमानी रंग का सफ़ेद कढ़ाई वाला जोड़ा पहना और सफ़ेद रंग के ऊँची हील के सैंडल भी पहने।
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फिर हल्का सा मेक-अप करने के बाद वो किचन में गयी और नाश्ता तैयार करने लगी। नाश्ता तैयार करते हुए वो बार-बार किचन के दरवाजे पर आकर सीढ़ियों की तरफ़ देख रही थी। संजय के काम पर जाने का वक़्त भी हो गया था। जैसे ही वो नाश्ता तैयार करके बाहर आयी तो संजय सीढ़ियों से नीचे उतरा।
“आज तो आपकी तबियत काफ़ी बेहतर लग रही है भाभी जी… लगता है कल की मालिश ने काफ़ी असर किया!” उसने जैनब के लिबास और फिर उसके पैरों में हाई पेंसिल हील के सैंडलों की तरफ़ देखते हुए अपने होंठों पर दिलकश मुस्कान लाते हुए कहा।
बदले में जैनब ने भी मुस्कुराते हुए कहा, “असर तो जरूर हुआ पर तुझे कैसे पता?” तो संजय थोड़ा झेंपते हुए बोला कि “भाभी जी वो आज आपने फिर हमेशा की तरह हाई हील के सैंडल जो पहने हैं… तो मुझे लगा कि कमर का दर्द अब बेहतर है!”
जैनब: “बिल्कुल ठीक पहचना तूने… अब डायनिंग टेबल पे बैठ… मैं नाश्ता लेकर आती हूँ!” फिर दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करने लगे।
इसी बीच में संजय ने जैनब से पूछा कि, “भाभी जी… आप कभी साड़ी नहीं पहनती क्या?”
जैनब: “पहनती हूँ लेकिन बहोत कम… साल में एक-आध दफ़ा अगर कोई खास मौका हो तो… क्यों!”
संजय: “नहीं बस वो इसलिये कि कभी देखा नहीं आपको साड़ी में… मेरा ख्याल है आप पे साड़ी भी काफ़ी सूट करेगी!”
फिर संजय जाते हुए जैनब से बोला, “भाभी जी, रात का खाना मैं बाहर से ही ले आऊँगा… आप बनाना नहीं..!”
जैनब ने मुस्कुराते हुए कहा कि ठीक है तो संजय ने फिर कहा, “अगर किसी और चीज़ के जरूरत हो तो बता दीजिये… मैं आते हुए लेता आऊँगा!”
जैनब ने कहा कि किसी और चीज़ के जरूरत नहीं है और फिर संजय के जाने के बाद वो घर के छोटे-मोटे कामों में लग गयी। फिर ऊपर आकर संजय के कमरे को भी ठीकठाक करने लगी। इसी दौरान जैनब को उसके बेड के नीचे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उसने नीचे झुक कर उसे बाहर निकाला तो उसकी आँखें एक दम से फैल गयीं। वो एक लाल रंग की रेशमी पैंटी थी। अब इस डिज़ाइन की पैंटी ना तो जैनब के पास थी और ना ही इकरा के पास। तभी जैनब को दो दिन पहले का शाम वाला वाक़्या याद आ गया जब संजय ने नादिया को इसी कमरे में चोदा था। ये जरूर नादिया की ही पैंटी थी।
उस पैंटी पर जगह- जगह-जगह चूत से निकले पानी और शायद संजय के लंड से निकली मनी के धब्बे थे। पैंटी का कोई भी हिस्सा ऐसा नहीं था जिस पर उस दिन हुई घमासान चुदाई के निशान ना हों। जैनब ने पैंटी को अपने दोनों हाथों में लेकर नाक के पास ले जाकर सूँघा तो मदहोश कर देने वाली खुश्बू उसके जिस्म को झिनझोड़ गयी।
वो पैंटी को लेकर बेड पर बैठ गयी और उसे देखते हुए उस दिन के मंज़रों को याद करने लगी। संजय का मूसल जैसा लंड नादिया की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। जैनब एक बार फिर से अपना आपा खोने लगी पर तभी बाहर मेन-गेट पर दस्तक हुई तो उसने उस पैंटी को वहीं बेड के नीचे फेंक दिया और बाहर आकर छत से नीचे गेट की तरफ़ झाँका तो देखा कि पड़ोस में रहने वाली नज़ीला खड़ी थी।
“अरे नज़ीला भाभी आप..! मैं अभी नीचे आती हूँ.!”
जैनब ने जल्दी से संजय का कमरा बंद किया और नीचे आकर दरवाजा खोला। नज़ीला उसके पड़ोस में रहती थी। उसकी उम्र चालीस साल थी और वो अपने घर में ही ब्यूटी पार्लर चलाती थी। वो दोपहर में कईं बार जैनब के घर आ जाया करती थी या उसे अपने यहाँ बुला लेती थी और दोनों इधर-उधर की बातें किया करती थी।
उस दिन भी जैनब और नज़ीला ने गली मोहल्ले की ढेरों बातें की। नज़ीला के जाने के बाद वो फिर नहाने चली गयी। सुबह संजय ने साड़ी का ज़िक्र किया था इसलिये जैनब ने नहा कर फिरोज़ा नीले रंग की प्रिंटेड साड़ी पहन ली और साथ में सिल्वर रंग के हाई पेंसिल हील वाले खूबसुरत सैंडल भी पहने।
संजय के आने का समय भी हो चला था। संजय आज पाँच बजे ही आ गया। जब जैनब ने दरवाजा खोला तो वो उसे बड़े गौर से देखने लगा। उसे यूँ अपनी तरफ़ ऐसे घूरता देख कर जैनब शरमाते हुए लेकिन अदा से बोली, “ऐसे क्या देख रहा है संजय!”
तो वो मुस्कुराता हुआ बोला, “वॉव भाभी! आज तो आप बहुत ही ज्यादा खूबसूरत लग रही हो इस साड़ी में..!” ये कह कर वो अंदर आ गया। वो साथ में रात का खाना भी ले आया था। “भाभी ये खाना लाया हूँ… आप बाद में रात को गरम कर लेना… मैं ऊपर जा रहा हूँ फ्रेश होने के लिये… आप एक गिलास शर्बत बना देंगी प्लीज़?”
जैनब उसकी तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली, “हाँ क्यों नहीं..!”
फिर संजय ऊपर चला गया और फ्रेश होकर जब वो नीचे आया तो उसने एक ढीली सी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहना हुआ था। जैनब ने शर्बत बनाया और उसे अपने बेड रूम में ले गयी क्योंकि वहाँ पे कूलर लगा हुआ था। संजय रूम में आकर बेड के सामने कुर्सी पर बैठ गया और जैनब भी बेड पर टाँगें नीचे लटका कर बैठ गयी। दोनों ने इधर उधर की बात की।
इस दौरान संजय ने रुख्सना से पूछा, “भाभी अब आपकी कमर का दर्द कैसा है?”
जैनब मुस्कुराते हुए बोली, “अरे अब तो मैं बिल्कुल ठीक हूँ… कल तूने इतनी अच्छी मालिश जो की थी!”
अपना शर्बत का खाली गिलास साइड टेबल पे रखते हुए संजय उससे बोला, “भाभी आप उल्टी लेट जाओ… मैं एक बार और बाम से आपकी मालिश कर देता हूँ…!”
जैनब मना किया कि, “नहीं संजय! मैं अब बिल्कुल ठीक हूँ..!”
लेकिन संजय भी फिर इसरार करते हुए बोला, “भाभी आप मेरे लिये इतना कुछ करती है… मैं क्या आपके लिये इतना भी नहीं कर सकता… चलिये लेट जाइये!”
जैनब संजय के बात टाल ना सकी और अपना खाली गिलास टेबल पे रखते हुए बोली, “अच्छा बाबा… तू मानेगा नहीं… लेटती हूँ… पहले सैंडल तो खोल के उतार दूँ!”
“सैंडल खोलने की जरूरत नहीं है भाभी… इतने खूबसूरत सैंडल आपके हसीन गोरे पैरों की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ा रहे हैं… आप ऐसे ही लेट जाइये!” संजय किसी बच्चे की तरह मचलते हुए बोला.
तो जैनब को हंसी आ गयी और वो उसकी बात मान कर बेड पर लेट गयी। क्योंकि आज उसने साड़ी पहनी हुई थी इसलिये उसकी कमर पीछे से संजय की आँखों के सामने थी। संजय ने बाम को पहले अपनी उंगलियों पर लगाया और जैनब की कमर को दोनों हाथों से मालिश करना शुरू कर दिया।
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“एक बात बता संजय! तुझे मेरा ऊँची हील वाले सैंडल काफ़ी पसंद है ना?” जैनब ने पूछा तो इस बार संजय का चेहरा शरम से लाल हो गया।
वो झेंपते हुए बोला, “जी… जी भाभी आप सही कह रही हैं… आपको अजीब लगेगा लेकिन मुझे लेडिज़ के पैरों में हाई हील वाले सैडल बेहद अट्रैक्टिव लगते हैं… और संयोग से आप तो हमेशा हाई हील की सैंडल या चप्पल पहने रहती हैं!”
“अरे इसमें शर्माने वाली क्या बात है… और मुझे बिल्कुल अजीब नहीं लगा… मैं तेरे जज़्बात समझती हूँ… कुछ कूछ होता है… है ना?” जैनब हंसते हुए हुए बोली।
संजय के हाथों की मालिश से पिछले दिन की तरह ही बेहद मज़ा आ रहा था। संजय के हाथ अब धीरे-धीरे नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे। जैनब को मज़ाक के मूड में देख कर संजय भी हिम्मत करते हुए बोला, “भाभी… आपकी स्किन कितनी सॉफ्ट है एक दम मुलायम… भाभी आप अपनी साड़ी थोड़ा नीचे सरका दो… पूरी कमर पे नीचे तक अच्छे से मालिश हो जायेगी और साड़ी भी गंदी नहीं होगी।”
जैनब ने थोड़ा शर्माते हुए अपनी साड़ी में हाथ डाला और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और पेटीकोट और साड़ी ढीली कर दी। जैनब को पिछली रात मालिश से बहुत सुकून मिला था और बहुत अच्छी नींद भी आयी थी इसलिये उसने ना-नुक्कर नहीं की।
जैसे ही जैनब की साड़ी ढीली हुई तो संजय ने उसकी साड़ी और पेटीकोट के अंदर अपनी उंगलियों को डाल कर उसे नीचे सरका दिया पर जैनब को तभी एहसास हुआ कि उसने बहुत बड़ी गलती कर दी है। जैनब ने नीचे पैंटी ही नहीं पहनी हुई थी… पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
उसके आधे से ज्यादा चूतड़ अब संजय की नज़रों के सामने थे। संजय ने कोई रीऐक्शन नहीं दिखाया और धीरे-धीरे कमर से मालिश करते हुए अपने हाथों को जैनब के चूतड़ों की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया। उसके हाथों का लम्स जैनब के जिस्म के हर हिस्से को ऐसा सुकून पहुँचा रहा था जैसे बरसों के प्यासे को पानी पीने के बाद सुकून मिलता है।
वो चाहते हुए भी एतराज नहीं कर पा रही थी। वो बस लेटी हुई उसके छुने के एहसास का मज़ा ले रही थी। जैनब की तरफ़ से कोई ऐतराज़ ना देख कर संजय की हिम्मत बढ़ी और अब उसने जैनब के आधे से ज्यादा नंगे हो चुके गुदाज़ चूतड़ों को जोर-जोर से मसलना शुरू कर दिया।
जैनब की साड़ी और पेटीकोट संजय के हाथ से टकराते हुए थोड़ा-थोड़ा और नीचे सरक जाते। जैनब को एहसास हो रहा था कि अब संजय को उसके चूतड़ों के बीच की दरार भी दिखायी दे रही होगी। उसने शरम के मारे अपने चेहरे को तकिये में छुपा लिया और अपने होंठों को अपने दाँतों में भींच लिया ताकि कहीं वो मस्ती में आकर सिसक ना पड़े और उसकी बढ़ती हुई शहवत और मस्ती का एहसास संजय को हो।
संजय उसके दोनों गोरे-गोरे गोल-गोल चूतड़ों को बाम लगाने के बहाने से सहला रहा था। जैनब को भी एहसास हो रहा था कि संजय बाम कम लगा रहा था और सहला ज्यादा रहा था। जब जैनब ने फिर भी ऐतराज ना किया तो संजय और नीचे बढ़ा और चूतड़ों को जोर-जोर से मसलने लगा।
थोड़ी देर बाद उसके हाथों की उंगलियाँ जैनब की गाँड की दरार में थी। फिर उसने अचानक से जैनब के दोनों चूतड़ों को हाथों से चौड़ा करते हुए फैला कर बीच की जगह देखी तो जैनब साँस लेना ही भूल गयी। जैनब को एहसास हुआ की शायद संजय ने उसके चूतड़ों के फैला कर उसकी गाँड का छेद और चूत तक देख ली होगी.
लेकिन जैनब अब तक संजय हाथों के सहलाने और मसलने से बहुत ज्यादा मस्त हो गयी थी और उसकी चूत गीली और गीली होती चली जा रही थी। वो ये सोच कर और शरमा गयी कि संजय उसकी बिल्कुल मुलायम और चिकनी चूत को देख रहा होगा जिसे उसने आज सुबह ही शेव किया था।
उसकी चिकनी चूत को देखने वाला आज तक था ही कौन लेकिन उसके घर में रहने वाला किरायेदार आज उसके चूतड़… उसकी गाँड और उसकी चिकनी चूत को देख रहा था और वो भी पड़े-पड़े नुमाईश कर रही थी। ये सोच कर उसका दिल जोर-जोर से धक-धक करने लगा कि कहीं संजय को उसकी चूत के गीलेपन का एहसास ना हो जाये।
पर थोड़ी देर में जब संजय ने जानबूझकर या अंजाने में जैनब की गाँड के छेद को अपनी उंगली से छुआ तो वो एक दम से उचक पड़ी। उसके जिस्म में जैसे करंट लग गया हो… जैसे तन-बदन में आग लग गयी हो। जैनब ने एक दम से संजय का हाथ पकड़ कर झटक दिया और उसके मुँह से निकल पड़ा, “हाय आल्लाह ये क्या कर रहा है तू…?” जैनब उससे दूर होते हुए उठ कर बैठ गयी।
जैनब एक दम से घबरा गये थी और संजय तो उससे भी ज्यादा घबरा गया था। जैनब को उसका इरादा ठीक नहीं लगा और घबराहट में वो एक दम से बेड से नीचे उतर कर खड़ी हो गयी। पर उसके खड़े होने का नतीजा ये हुआ कि गजब हो गया… उसकी साड़ी और पेटीकोट कमर से खुले हुए थे… जब वो खड़ी हुई तो साड़ी और पेटीकोट दोनों सरक कर उसके पैरों में जा गिरे।
जैनब नीचे से एक दम नंगी हो गयी। इस तरह से अपने किरायेदार और बीस साल के जवान लड़के के सामने नंगी होने में उसकी शरम की कोई इंतेहा ना रही। उसे कुछ नहीं सूझा… दिमाग ने काम करना बंद कर दिया… साँस जैसे अटक गयी थी! वो घबराहट में वहीं जमीन पर बैठ गयी।
इससे पहले कि जैनब को कुछ समझ आता… तब तक संजय ने उसे गोद में उठा कर बेड पर डाल दिया और अगले ही पल वो हुआ जिसका जैनब ने तसव्वुर तक नहीं किया था कि आज उसके साथ ये सब होगा। जैनब को पलंग पर पटकते ही संजय खुद जैनब पर चढ़ गया।
अगले ही पल जैनब उसके नीचे थी और वो जैनब के ऊपर था। उसके बाद अगले ही पल संजय ने जैनब की टाँगों को हवा में उठा दिया। जैनब को वो कुछ भी सोचने समझने का मौका नहीं दे रहा था। अगले ही पल वो जैनब की टाँगों के बीच में जगह बना चुका था.
और पाँचवे सेकेंड में ही उसका शॉर्ट्स और अंडरवियर उसके जिस्म से अलग हो गये और उसके अगले ही पल उसने अपने लंड को हाथ में लेकर अपने लुंड का मोटा सुपाड़ा जैनब की चूत के छेद पर लगा दिया। एक मोटी सी गरम सी कड़क सी चीज़ जैनब को अपनी चूत के अंदर जाती हुई महसूस हुई।
बस फिर क्या था… शाम के वक़्त में जैनब के अपने कमरे में एक बीस-इक्कीस साल का किरायेदार और चौंतीस-पैंतीस साल की मकान माल्किन औरत और मर्द बन गये थे! जैनब की तो मस्ती में साँसें उखड़ने लगी थीं… जिस्म ऐंठ गया था… आँखें झपकना भूल गयी थी… और ज़ुबान सूखने लगी थी।
उसे कुछ होश नहीं था कि क्या हो रहा है. संजय कर रहा था… और वो चुपचप उसे करने दे रही थी… वो ना तो उसे रोक रही थी और ना ही उसे उक्सा रही थी। वो बिना कुछ बोले अपनी टाँगें उठाये और संजय की कमर में हाथ डाले लेटी रही और संजय का मोटा मूसल जैसा लंड उसकी चूत को रौंदता रहा रगड़ता रहा… पता नहीं कब तक जैनब को चोदता रहा।
ऐसा नहीं था कि जैनब को मज़ा नहीं आ रहा था पर वो जैसे कि सक्ते की हालत में थी। जिस्म तो चुदाई के मज़े ले रहा था लेकिन दिमाग सुन्न था। फिर उसकी चूत को संजय ने अपने गाढ़े वीर्य से भर दिया। जैनब अपने गैर-मज़हब वाले इक्कीस साल के किरायेदार के लंड के पानी से तरबर्तर हो चुकी थी।
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जैसे ही संजय जैनब के ऊपर से उठा तो वो भी काँपती हुई बिस्तर से उठी और सिर्फ़ ब्लाउज़ और सैंडल पहने नंगी हालत में ही बाथरूम में चली गयी। उसके दिल में उलझने बढ़ने लगीं कि हाय ये मैंने क्या कर दिया… शादीशुदा होकर दूसरे मर्द से चुदवा लाया… वो भी इकरा की उम्र के लड़के से… खुद से पंद्रह साल छोटे लड़के से गैर मज़हब वाले लड़के से… नहीं ये गलत है… सरासर गलत है… जो हुआ नहीं होना चाहिये था… मैं कैसे बहक गयी… अब क्या होगा…!
जैनब बाथरूम में कमोड पे बैठ कर मूतने लगी। उसे बहोत तेज पेशाब लगी थी। उसने झुक कर देखा तो उसकी रानें और चूत उसकी चूत के पानी और संजय के वीर्य से चिपचिपा रही थी। मूतने के बाद जैनब खड़ी हुई और टाँगें थोड़ी चौड़ी करके उसने अपनी चूत की फ़ाँकों को फैलाते हुए चूत की माँसपेशियों पर जोर लगाया तो संजय का वीर्य उसकी चूत से बाहर टपकने लगा। एक के बाद एक वीर्य की कईं बड़ी-बड़ी बूँदें उसकी चूत से बाहर नीचे गिरती रही। फिर उसने अपनी चूत और रानों को पानी से साफ़ किया।
उसने सोचा कि कल सुबह -सुबह केमिस्ट की दुकान से बच्चा ना ठहरने की दवाई ले आयेगी। फिर वो अपना ब्लाऊज़ और सैंडल निकाल कर नहाने लगी। फिर तौलिया लपेट कर वो बाथरूम से निकल कर बाहर आयी। संजय ऊपर जा चुका था। जैनब ने अलमारी में से सलवार सूट निकाल कर पहन लिया और बाल संवार कर आदतन थोड़ा मेक-अप किया और अपने बेड पर जाकर गिर पड़ी। शाम के छः बज रहे थे। खुमारी में उसे नींद आ गयी।