मालकिन साथ कामसूत्र
ये करीब पिछले 5 साल की बात होगी। जब मैं हमारे शहर के मण्डी में एक फ़ोटो स्टैट की बड़ी सी दुकान पे नया नया काम करने लगा था। हमारी दुकान के अगल बगल बहुत सी ऐसी दुकाने थी जिनमे स्टेशनरी हमारे यहां से पहुंचती थी। मालकिन साथ कामसूत्र
हमारा काम काज बहुत ही बढ़िया था। मेरे काम काज और तज़ुर्बे को देखते हुए दुकान के मालिक ने मुझे अच्छी तनखाह पे रख लिया। हमारे मालिक कबीर का घर दुकान से काफी दूर पड़ता था। उनके घर में उनकी बीवी और बूढी माता जी के इलावा कोई नही था।
दोपहर को 2 बजे के करीब मालिक खाना खाने अपने घर चले जाते थे और डेढ़ दो घण्टे बाद वापिस आते थे। ज्यादातर मैं ही उनका खाना घर से लेकर आता था। एक दिन ऐसे ही उन्होंने मुझसे बोला, ”अक्षय तुम हमारे घर जाओ और मेरे लिये खाना पैक करवाकर ले आओ।“
उन्होने अपने घर अपनी बीवी को भी फोन कर दिया के अक्षय आ रहा है, तुम खाना टिफन में पैक करके रखदो। मैं बाइक से, उनकी आज्ञा मानकर उनके घर तक पहुच गया। दरवाजा अंदर से बन्द था। मैंने डोर बैल बजाई। अंदर से एक बहूत ही खूबसूरत औरत यानि मेरी मालकिन आई और उसने दरवाजा खोला।
माफ़ करना दोस्तों अपनी मालकिन के बारे में तो मैं बताना ही भूल गया । उनका नाम स्वाति है, उम्र 30 साल, कद साढ़े 5 फ़ीट, सुडोल और गदराया बदन जो उन्हे एक बार देखले बार बार देखना चाहेगा। ये तो थी हमारी मालकिन की जान पहचान अब कहानी आगे बढ़ाते है।
मैंने उन्हें नमस्ते बुलाई और खाने का टिफन लेकर जाने का बोला।
वो बोली,” अक्षय अंदर आ जाओ, अभी खाने में थोड़ी कमी है, सब्जी तो तैयार है बस रोटियां सेंकनी बाकी है।
मैं उनके पीछे पीछे उनके घर में चला आया। उसने मुझे हाल में पड़ी कुर्सी पे बैठने का इशारा किया और किचन से ट्रे में मेरे लिए एक गिलास पानी ले आई। मेने पानी पिया और थैंक्स बोला।
वो बोली, ”आप 5 मिनट बैठो, तब तक मैं आटा गूंथकर उनके लिये 4-5 रोटिया बना लू।”
उनके जाने के बाद मैं टाइमपास के लिए ऐसे ही मेज़ पे पड़े रसाले, अख़बार देखने लगा, वहां एक डायरी भी पड़ी थी। वो शायद उसकी पर्सनल डायरी थी। जो शायद मेरे आने से पहले ही वहाँ बैठकर कुछ लिख रही होंगी, डायरी पे उस दिन की तारीख टाइम सब कुछ उसपे लिखा हुआ था। मेने जब उसे खोला तो एक पन्ने पे हल्की सी नज़र मारी तो उसपे लिखा था।
आज के दिन हमारी 5वीं सालगिरह है। आज से 5 साल पहले हमारी शादी हुई थी। लेकिन 5 साल बीत जाने पे भी मैं माँ नही बन पाई। डॉक्टर्स का कहना है के कबीर कभी भी मुझे माँ का सुख नही दे सकते। इसके लिए स्वाति आप या तो बच्चा गोद लेलो या फेर नई शादी करलो।
अभी इतनी पंक्तिया ही पढ़ी थी के मुझे पता चला के मालकिन का नाम स्वाति है। इसी दौरान मुझे किसी के कदमो की आवाज़ अपनी और आती सुनाई दी। मैंने जल्दी से वो डायरी वही पे रखदी, जहां से उठाई थी। सिर्फ एक मिनट बाद स्वाति मेरे सामने टिफन लिये खडी थी।
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वो — ये लो अक्षय, उनका खाना और उन्हें जाकर बोल देना के घर पे जल्दी आये हमे किसी डॉक्टर के पास जाना है।
मैं — ठीक है जी, बोल दूंगा।
उसके मुंह से डॉक्टर शब्द सुनकर एक बार फेर मेरा मन डायरी के उस नोट पे चला गया जिस पर लिखा था स्वाति या तो बच्चा गोद लेलो या नई शादी करलो। पूरे रास्ते में यही सोचता आया के ऐसा क्यों होता है। जो कुछ भी भगवान से मांगते है, उन्हें वो मिलता क्यों नही है।
दुकान पे आकर मैंने हमारे मालिक को उनकी बीवी का सन्देश दिया और वो बोले,” ऐसा करो यार बाइक पे तुम ही उसे क्लीनिक ले जाओ, मेरा थोडा काम बाकी है। ये लो पैसे अपनी मालकिन को दे देना और कहना के आज किसी जरूरी काम की वजह से मालिक आ नही पाएंगे। इस लिए मुझे उनके साथ दवा लेने भेज रहे है। “मालकिन साथ कामसूत्र”
मैं फेर वही से खाली टिफन वापिस लेकर वापिस घर पे आ गया। घर आकर स्वाति को उनका सन्देश सुनाया। पहले तो वो मेरे साथ जाने के लिए मना करने लगी और फोन लगाकर कबीर को न आने की वजह पूछने लगी। लेकिन फेर पता नही क्या सूझा और बोली, अक्षय गाडी निकालो गैराज से, मैंने उनका आदेश मानकर गाड़ी को निकाला और पूछा अब जाना कहाँ है ?
वो – तुम ड्राइव करो जहां बोलू रोक देना।
मैं – ठीक है जी।
मैंने गाड़ी घर से निकालकर उनके बताये हुए एड्रेस पे लेजाकर रोक दी।
ये एक कोठीनुमा इमारत थी। हम दोनों उतरकर उसमे चले गए। वो शायद किसी डॉक्टर का घर पे खोला क्लीनक था। वहां कुर्सी पे तकरीबन 40 वर्षीय एक व्यक्ति बैठा फोन पे बात कर रहा था।
हमे आता देख उसने फोन काट दिया और सामने पड़ी कुर्सियो की और इशारा करते हुए कहा, आइये स्वाति जी, बैठिये। मैं और मेरी मालकिन कुर्सियो पे बैठ गए। डॉक्टर शायद उनको काफी अच्छी तरह से जानता था। शायद उनका फैमिली डॉक्टर था। तभी उन्हें नाम लेकर बुला रहा था। ये लड़का कौन है स्वाति जी, इसे पहले तो इसे आपके घर कभी नही देखा। “मालकिन साथ कामसूत्र”
स्वाति — दरअसल, ये हमारी दुकान पे फोटोस्टेट का काम सम्भालता है। कबीर के पास आज आने का वक्त नही था तो उन्होंने इसे भेज दिया।
डॉक्टर — आपको कोई ऐतराज़ तो नही यदि कोई पर्सनली बात मैं इसके सामने करु। यदि आपको कोई ऐतराज़ हो तो इसे बाहर बिठा देते है।
डाक्टर की ये बात मेरे दिल पे लगी और मैं खुद ही उनके बिन कहे बाहर जाने के लिए उठा। इतने में स्वाति ने मेरा हाथ पकड़ के वापिस बिठा लिया।
स्वाति — नही, नही डॉक्टर साब, ये भी अब घर के मेंबर की तरह ही है। आपको जो भी कहना हो, कह दो।
डॉक्टर — आपको शायद पहले भी बताया था के कमी आपमें नही बल्कि आपके पतिदेव में है। उनके शक्राणु बनते तो है लेकिन शरीर से बाहर आते ही मर जाते है। सो सीधे शब्दों में कहूँ तो आपके पति का लम्बा इलाज़ चलेगा। फेर कहीं जाकर आप माँ का सुख भोग सकते है।
डॉक्टर की बात सुनकर स्वाति थोडा रुआंसी हो गई और हाथ जोड़कर बोली, डॉक्टर साब कैसे भी करो, आप मुझे माँ बनने का सुख दे दो, जितना भी पैसा लगेगा मैंने देने को तैयार हूँ। बस अब और नही सहा जाता। आस पड़ोस की औरते मुझे बाँझ बोलती है। मेरी सासु माँ भी जल्द से पोते का मुंह देखना चाहती है।
उनकी बातचीत से ये तो साबित हो गया था के स्वाति जी, बेकसूर है। इसमें उनका कोई भी कसूर नही है। इनको तो ऐसे ही सज़ा मिल रही है। मैं भी थोडा सा भावुक हो गया और हम चेकअप करवाके घर पे आ गए।
अगले दिन दुकान पे गया तो मालिक ने फेर खाना लेने घर भेज दिया। अब सब कुछ शीशे की तरह साफ हो गया था। स्वाति ने किचन से आवाज़ देकर मुझे कहा, मेरे पास आओ अक्षय,,, मैं किचन में पड़ी एक कुर्सी पे जाकर इनके समीप बैठ गया। “मालकिन साथ कामसूत्र”
स्वाति — देखो अक्षय, कल जो हुआ, हम दोनों में राज़ ही रहना चाहिए। अपने मालिक को भी शक न होने देना के मुझे ये सब पता है।
मैं — ठीक है मालकिन।
स्वाति — पता नही कैसे बोलू आपको। एक बात कहनी थी।
मैं — हांजी कहिये मालकिन। आप हुक्म दो बस। आपके लिए तो जान भी हाज़िर है।
स्वाति — मुझे जान नही चाहिए, लेकिन क्या एक चीज़ मांग सकती हूँ तुमसे ?
मैं — हांजी, क्यों नही बोलो क्या चाहिए आपको?
स्वाति — तुम तो जानते हो के कबीर बच्चा पैदा करने में असमर्थ है। उनके ठीक होने मे पता नही कितना समय लगेगा। सो मैं ये चाहती हूँ। तुम मेरी बच्चा पैदा करने में मदद करो।
मैं — क्या मतलब जी?
चाहे मैं सारी बात एक पल में ही समझ गया था लेकिन फेर भी विस्तार से उनके मुंह से सुनना चाहता था।
स्वाति — सच में नही समझे या न समझने का ढोंग कर रहे हो।
मैं – नही जी, कसम से सच में समझ नही आया के भला मैं कैसे मदद कर सकता हूँ आपकी?
स्वाति — सुनो फेर तुम मेरे गर्भ में अपने शुक्राणु छोड़ कर मुझे माँ बनने में मदद कर सकते हो। तुमसे इस लिए कह रही हूँ के कबीर के बाद तुम ही घर में मात्र एक इंसान हो जो मेरी मदद कर सकते और मेरा भरोसा कायम रख सकते हो।
मैं – लेकिन मैं ही क्यों और कोई क्यों नही ?
स्वाति – वो इस लिए के तुमपे घर का सदस्य होने की वजह से हमे पूरा भरोसा है। तुम बात को समझते हो। तुमसे हमारा कुछ भी छिपा नही है। करवाने को ये काम मुहल्ले के किसी भी लड़के को थोडा सा लालच देकर भी करवा सकती हूँ।
लेकिन मुझे अपने घर की इज़्ज़त भी प्यारी है। क्या पता जिस से मैं बच्चा लूँगी, वो बाद में मुझे इसके लिए ब्लैकमेल भी करने लग जाये। इस लिए आप मुझे इस काम के लिए एक दम परफेक्ट आदमी लगे। एक आप पे यकीन है, के इस बात को आगे नही लीक नही करोगे.. “मालकिन साथ कामसूत्र”
किसी और पे भरोसा करने से अच्छा है आप मेरी बात मानलो। यदि डॉक्टर्स से भी इलाज़ करवाया तो वो भी क्या पता किस का वीर्य मेरे गर्भाशय में डालेंगे। तुमसे सेक्स करूंगी तो कम से कम ये तो पता होगा इसका बाप कौन है और मुझे तसल्ली तो रहेगी के इसके बाप को मैं जानती हूँ।
सो प्लीज़ मेरी विनती मानलो, और मैं ये काम मुफ्त में नही करवाउंगी। इसके लिए जितने पैसे मांगोगे देने के लिए तैयार हूँ। उधर हॉस्पिटल में भी खर्च भरना पड़ेगा। इस से बेहतर तो ये है के वही पैसे तुम रखलो। बोलो क्या राय है आपकी ?
मैं — देखिए मैडम जी, मैं आपकी भावनाओ को समझता हूँ। लेकिन अपने मालिक से मैं गद्दारी नही कर सकता।
स्वाति— इसमें गद्दारी वाली कोनसी बात है। तुम तो उनकी ही मदद कर रहे हो। चाहे चोरी छिपे ही हो रही है। उनका भी दुनिया में नाम रह जायेगा। वरना हमारी जायदाद हमारे शरीक मतलब कबीर के भाई और उनके बच्चे सम्भाल लेंगे।
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क्या तुम भी यही चाहते हो के हमारा अधिकार हमे न मिले। औलाद चाहे बेटी हो या बेटा मुझे कोई फर्क नही पड़ता। बस मेरी कोख हरी होनी चाहिए। मेरे दिल में जो भी बात थी आपको बतादी है। अब आपकी जो भी मर्ज़ी हो बता दो। “मालकिन साथ कामसूत्र”
मैं — (मुझे उसपे दया आ गई)– चलो ठीक है , जैसा आपको अच्छा लगे। लेकिन आपको भी वादा करना होगा। इसका ज़िक्र किसी से भी न करोगे।
स्वाति – मैं पागल हूँ क्या, अपने हाथो अपने पैरो पे कुल्हाड़ी मारूँगी।
अब तुम खाना लेकर जाओ, अपना मोबाईल नम्बर दे जाओ। जब समय निकला आगे का प्लान बताउंगी।
मैं टिफन लेकर बाइक से दुकान पे आ गया।
अगले दिन मैं अभी घर पे ही था। तो मुझे अनजान नम्बर से कॉल आया।
हलो, अक्षय मैं स्वाति बोल रही हूँ। तुम बाइक लेकर जल्दी घर आओ। हमे कही जाना है।
मैं — लेकिन अभी तो मालिक घर पे होंगे। स्वाति – उन्होंने ही ने कहा है के अक्षय को साथ ले जाओ।
मैं — चलो ठीक है। अभी आता हूँ।
करीब आधे घण्टे बाद मैं उनके घर पे था।
मैं — लेकिन हमे जाना कहा है?
स्वाति – मेरे मायके में जो यहाँ से 300 किलोमीटर की दूरी पे है।
हम बाते कर ही रहे थे के इतने में मालिक आ गए और मैंने उन्हें नमस्ते की। उन्होंने मेरी नमस्ते का जवाब दिया और बोले” अक्षय तुम अपने घर पे फोन करके बोल्दो के तुम मालिक के साथ दिल्ली जा रहे हो। “मालकिन साथ कामसूत्र”
एक हफ्ता लग सकता है। अब मेरी बात कुछ कुछ समझ में आ रही थी के इन दोनों की सहमति से सब हो रहा है। मैंने अपने घर पे फोन करके बता दिया के एक हफ्ता घर नही आऊंगा।
इसके बाद हम तीनो ने इकठे खाना खाया और मैं और स्वाति उनकी कार से सफर के लिए निकल गए। घर से काफी दूर निकल कर यही कोई 3 घण्टे कार चली होगी के एक होटल पे हम चाय पीने के लिए रुके। “मालकिन साथ कामसूत्र”
स्वाति — अक्षय, माफ़ करना मैंने आपसे झूठ कहा |
मैं — क्या मतलब आपका ?
स्वाति — दरअसल, हमे कोई भी रिश्तेदारी में नही जाना है। हम इसी होटल में हफ्ता रहने वाले है।
मैं — हम्म… चलो ठीक है, जब साथ आ ही गया हूँ तो कही भी ले जाओ आप। हाँ बस इतना ध्यान रखना मेरी और अपनी इज़्ज़त पे कोई आंच न आने देना।
स्वाति – वो तुम बेफिक्र हो जाओ, कोई शिकायत का मौका नही मिलेगा आपको, यदि आपको लगे भी कोई बात हो रही है ऐसी तो बिन बताये जा सकते हो।
मैं – ठीक है मालकिन।
स्वाति — मालकिन नही, इस वक्त आपकी पत्नी हूँ, मेरा नाम स्वाति ले सकते हो आप। दुनिया के सामने मालकिन होउंगी, लेकिन अकेले में आपकी स्वाति।
मैं – मेरे हिसाब से कबीर को पता होगा न इस बात का।
स्वाति — हाँ उन्होंने तो भेजा है। ये सारा प्लान उनका ही तो है।
मैं — फेर किसी बात का डर नही है।
हम दोनों गाडी पार्क करके अंदर चले गए और अपने कमरे की चाभी लेकर रूम में चले गए। गर्मी का दिन था तो थकावट के साथ पसीना भी बहुत आ रहा था। हमने इकठे नहाने का प्लान बनाया। “मालकिन साथ कामसूत्र”
हम दोनों अपने अपने कपड़े उतारकर शावर के निचे आ गए। स्वाति मेरा 6 इंची लण्ड देख कर खुश हो गयी और निचे बैठकर उसको हाथो में लेकर सहला कर चूसने लगी। सर पे ठंडा पानी और निचे लण्ड को मुंह की गर्मी आह्ह्ह्ह… क्या मज़ा आ रहा था।
थोड़ी देर तक ऐसे ही हम कामुक खेल खेलते रहे। फेर फ्रेश होकर दोनों नंगे ही बेडरूम में चले गए। मुझसे ज्यादा खुश तो स्वाति दिखाई दे रही थी। जो के स्वभाविक भी था के उसकी एक ख्वाहिश पूरी होने जा रही थी।
मैं नंगा ही बैड पे लेट गया और स्वाति मेरे ऊपर आकर मेरे होंठो पे होठ रखकर मुझे गर्म करने की कोशिश कर रही थी। मैंने उसे इशारे से लण्ड की चुसाई करने को कहा। वो पक्की रण्डी की तरह इशारा समझकर अपने काम पे लग गयी।
अब अकड़न से लण्ड दुखने लगा था और मुझे डर भी था के उसके मुंह में ही न झड़ जाऊ तो मैंने उसे निचे लेटने का इशारा किया। अब मैं उसके होंठ चूस रहा था। उसके भीगे बालो से पानी की बूंदे उसके कन्धों, उरोज़ों पे आ रही थी।
मुझे लगा के स्वाति को कोई दिक्कत है और वो रो रही है। मैंने लिप्किस्स छोड़कर पूछा क्या बात है स्वाति डार्लिंग। वो बोली, कुछ नही बस ये ख़ुशी के आंसू है। मैं कल्पना की दुनिया में खो गई थी के हमारा एक बहुत ही सुंदर सा बेटा है। बस यही सोचकर रोना आ गया। “मालकिन साथ कामसूत्र”
मैं – हट पगली, बेटे की नीव रखी नही, ऐसे ही सपने लेने लग गयी।
इसपे हम दोनों हंस दिए।
मैंने स्वाति के उरोज़ों को बारी बारी से चूसा। अब उसपे भी कामदेव सवार होने लगे थे। उसकी आँखे भारी हो रही थी और उरोजों के निप्पल कड़े होने शुरू हो गए थे। जो के एक संकेत था के उसपे खुमारी चढनी शुरू हो गयी है। “मालकिन साथ कामसूत्र”
स्वाति — बस करो, अक्षय और नही सहा जाता अब मुझसे,,,,,, सीईईईई,,,,,, अब डाल दो अपना लण्ड मेरी योनि में बना दो अपने बच्चे की माँ मुझे…. मैं भी मातृत्व सुख का आनन्द लेना चाहती हूँ। कृपा मेरी ये ख्वाहिश पूरी करदो। आपका ये एहसान मैं ज़िदगी भर नही भूलूंगी।
मैं — बस जान अब चुप हो जाओ, समझलो तुम्हारी ये इच्छा पूरी हो गई है। अब आँखे बन्द करके इसका आनंद लो।
मैंने स्वाति की टाँगे अपने कन्धों पे रखकर उसकी योनि पे अपने तने हुए लण्ड को रखकर ज़ोरदार शॉट मारा के उसकी आह्ह्ह निकल गयी और आधे दे ज्यादा लण्ड उसकी क्लींशेवड़ चूत में घुस चूका था।
मैंने पीछे हटकर एक और ज़ोरदार शॉट मारा इस बार पूरा लण्ड जड़ तक स्वाति की चूत में घुसकर उसके गर्भाशय को छू रहा था। मेरे ऐसा करने से स्वाति को थोड़ी तकलीफ तो हुयी लेकिन उसकी ख्वाहिश के आगे ये कुछ भी नही था। वो निचे से गांड हिला हिला कर लण्ड को ले रही थी। “मालकिन साथ कामसूत्र”
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करीब 20 मिनट के इस सेक्स से हम थक कर चूर हो गए और ऐसे ही एक दूसरे में समाए रहे ऐसा करने से हमे हल्की सी नींद भी आ गयी। करीब एक डेढ़ घण्टे बाद हम कपड़े पहनकर बाहर लंच करने आये। खाना खाने के बाद हम दुबारा कमरे में जाकर अपने मिशन पे जूट गए। उस होटल में हम एक हफ्ता रुके अपने मिशन को सफल बनाने में हमने दिन रात एक कर दिया। हफ्ते बाद हम वापिस घर आये और काफी दिनों बाद स्वाति ने नए क्लीनक से अपना मेडिकल चेकअप करवाया। “मालकिन साथ कामसूत्र”
उसने फोन पे मुझे बताया के हमारी मेहनत रंग ला रही है। इस तरह हमे जब भी मौका मिलता हम दोनों दो जिस्म एक जान हो जाते। तकरीबन 9 महीने बाद स्वाति ने एक बहुत ही सुंदर बेटे को जन्म दिया। उसका नाम हमने अपने अपने नाम को जोड़कर मनराज रख दिया। अब स्वाति अपनी ज़िन्दगी से बहुत खुश है ! उन्होंने मुझे 2 लाख रूपये भी बख्शीश में देने चाहे। लेकिन मेने लेने से मना कर दिया। क्योंके मेने अपना खून उनको बेचा नही था। इस तरह से उनकी ज़िन्दगी में छाया अँधेरा लुप्त हो गया और चारो और खुशियो का आगमन होना आरम्भ हो गया।