Indian Mom Anal Fuck
हेल्लो दोस्तों कैसे है आप सब, आप सभी ने इस कहानी का पिछला भाग परिवार में चुदाई की अनोखी कहानी 2 पढ़ा होगा, जिसमे आपने पढ़ा कि अपने बेटे की सेक्स की प्रॉब्लम देख कर सन्नो की माँ उससे अपने जिस्म का मजा देने के लिए तैयार हो गई थी. अब आगे – Indian Mom Anal Fuck
रात को खाना खाने के बाद जब मैं अमर के कमरे में मादरअजात नंगी दाखिल हुई तो मेरे हाथ में सरसों के तेल की शीशी थी। अमर सिर्फ़ अन्डर वियर पहने हुए बैड पर लेटा हुआ था। मुझे इस रुप में देखकर अमर के मुँह से आह निकल गयी.
और उसने तुरंत अंडर वियर में से अपना लण्ड बाहर निकाल लिया। मुझे पूर्ण नग्नावस्था में देख कर अमर का लण्ड फ़नफ़ना रहा था। मैं अमर को और ज्यादा उत्तेजित करने के लिये अपनी गाँड़ मटकाती हुई और मम्मों को हिलाती हुई उसके पास आकर बैठ गयी।
”अगर अपनी मम्मी की गाँड़ मारना चाहते हो तो, पहले अपने लण्ड को और मेरी गाँड़ के छेद को अच्छी तरह से चिकना कर लो, और तुम्हारा ये लण्ड मेरी गाँड़ के छोटे से छेद में आसानी से नहीं जायेगा, तो प्लीज थोड़ा आराम आराम से डालना।”
मैंने अमर को बैड से नीचे उतरने का इशारा किया, और खुद बैड के किनारे पर बैठ गयी। अमर के लण्ड को अपने मुँह में भरकर उसको चुसने लगी, ऐसा करते हुए मेरी चूत भी पनिया रही थी। हम दोनों ही कुछ नया करने वाले थे, जो हमने पहले कभी नहीं किया था, ये एक नयी उत्तेजना पैदा कर रहा था। मैंने उसके लण्ड को पूरा नीचे से ऊपर तक अपने थूक से गीला करके चिकना कर दिया।
हमेशा की तरह जब मैं उस के लण्ड को चूस रही थी तो उस दिन भी अमर मेरे गालों और मेरी गर्दन को अपने हाथ से सहला रहा था। लण्ड को चुसवाते हुए उसको बहुत मजा आ रहा था, और वो जब बीच बीच में मेरे चेहरे को देखता और हमारी आँखें मिल जाती तो हम दोनों मुस्कुरा देते।
”मम्मी, आप मेरा बहुत ख्याल रखती हो, आप बहुत अच्छी हो, लेकिन क्या सच में मैं आपकी गाँड़ मार लूँ…?”
मैंने अपनी भौहें चढाते हुए कहा, ”हाँ बेटा, मार लो, लेकिन तुम ऐसा क्यों पुछ रहे हो? तुमको तो पता है कि मुझे कोई आपत्ती नहीं है, और आखिर मेरे बेटे की तरक्की हुई है, उसको कुछ इनाम तो देना ही पड़ेगा।”
अपनी मम्मी को अपने लण्ड के सुपाड़े को चूसते हुए देखता हुआ अमर बोला, ”वो तो ठीक है मम्मी, लेकिन फ़िर इस तरह जैसे मुझे रोजाना आपसे लण्ड चुसवाने की आदत पड़ गयी है, कहीं आपकी रोजाना गाँड़ मारने की आदत पड़ गयी तो? क्योंकि आपकी गाँड़ है ही इतनी मस्त कि फ़िर मैं इसको रोजाना मारे बिना नहीं रह पाऊँगा।”
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अमर की ये बात सुनकर मेरे होंठों पर मुस्कान आ गई, और मेरी गाँड़ की तारीफ़ सुनकर मेरी चूत और ज्यादा पनिया गयी, मैंने कुछ बोलने से पहले एक बार फ़िर से अमर के लण्ड को पूरा मुँह में अन्दर तक लेकर एक जोर का सड़का मार दिया।
”अरे अमर बेटा, तुम उसकी चिन्ता मत करो, अभी जो मिल रहा है उसका फ़ायदा उठा लो, बाद का जो होगा देखा जायेगा,” मैं माहौल का हल्का करने के अन्दाज में बोली।
”ठीक है मम्मी, जो मिल रहा है उसका फ़ायदा उठा ही लेते हैं।”
”तुम चिन्ता मत करो, अगर आदत पड़ भी गयी तो भी मुझे तुम से रोज गाँड़ मरवाने में कोई आपत्ती नहीं है, जब चाहो मार लिया करना अपनी मम्मी की गाँड़, अब तो ठीक है?”
अमर मुझसे चिपकता हुआ बोला, ”ओह मम्मी, आप बहुत अच्छी हो।”
”मेरा अच्छा बेटा, तो फ़िर आ जाओ,” मैं बैड के ऊपर चढकर घोड़ी बनते हुए, और गाँड़ को ऊपर उँचकाते हुए बोली, ”ले लो अपना इनाम, और मार लो अपनी मम्मी की गाँड़।”
मैं अपने बेटे अमर के सामने घोड़ी बनकर अपनी गाँड़ को हिलाने लगी। अमर किसी तरह से मेरी मोटी हिलती हुई गाँड़ को देखकर अपने आप पर काबू रखने का प्रयास कर रहा था, उसकी सांसे तेज तेज चल रही थी और दिल जोरों से धड़क रहा था। जब अमर ने पहली बार अपनी मम्मी की आमंत्रित कर रही गोल, मुलायम, भरपूर उभरी हुई दर्षनीय गाँड़ पर हाथ रखकर, दोनों गोलाइयों को पूरा सहलाना शुरू किया तो उसका हाथ काँप उठा।
”हे भगवान…” अमर सिसकते हुए बोला, वो समझ नहीं पा रहा था कि ये सपना है या हकीकत, क्या वो सचमुच अपनी मम्मी की गाँड़ में अपना लण्ड पेलने वाला है। ”आपकी गाँड़ सचमुच बहुत सुन्दर है मम्मी, क्या मस्त उभरी हुई गोलाइयाँ है इसकी आह…”
कंधे के ऊपर से मैं अपने बेटे अमर को मेरे चूतड़ों को प्यार से सहलाते और मसलते हुए देख रही थी। कुछ देर बाद जब मेरे सब्र का इम्तेहान जवाब देने लगा तो मैं बोली, ”अमर बेटा, मेरे वहाँ पर थोड़ा तेल लगाकर चिकना कर लेना।”
अमर ने तभी मेरी गाँड़ के छेद को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया। अमर को मेरी सिसकारियाँ बता रही थीं कि उसका ऐसा करना मुझे कितना आनंदित कर रहा था। कुछ देर बाद अमर ने सरसों के तेल की शीशी में से थोड़ा सा तेल मेरी गाँड़ के छेद पर टपका दिया, और फ़िर अंदर तक चिकना करने के लिये एक उंगली तेल में भिगोकर मेरी गाँड़ के छेद के अंदर बाहर करने लगा। मेरी तो मानो जान ही निकल रही थी, मेरा बेटा मेरी गाँड़ को मारने से पहले उसको तेल लगाकर चिकना कर रहा था।
”हाँ बेटा, मेरी गाँड़ मारने से पहले इसको ऐसे ही चिकना कर लो, आह्ह्ह।”
जैसे ही अमर ने अपने लोहे जैसे फ़नफ़नाते हुए लण्ड का सुपाड़ा मेरी चिकनी गाँड़ के छेद पर टिकाया तो मैं झड़ने के बेहद करीब पहुंच चुकी थी। अमर धीरे धीरे अपने लण्ड को मेरी गाँड़ में घुसा रहा था ताकि मुझे कम से कम दर्द हो।
एक बार जब उसको यकीन हो गया कि मेरी गाँड़ और उसका लण्ड दोनों भरपूर चिकने हो चुके हैं, तो उसने मेरी नजरों की तरफ़ देखा, और फ़िर मेरी गाँड़ की दोनों गोलाईयों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर चौड़ा कर फ़ैलाने लगा, जिससे उसके लण्ड को मेरी गाँड़ की बेहतर पहुँच मिल सके।
”तैयार हो मम्मी?” उसने सिसकते हुए पूछा, ”और तेल लगाने की जरूरत तो नहीं है ना?”
”नहीं बेटा, ठीक है, अब जल्दी से अंदर तक डाल दो, मार लो अपनी मम्मी की गाण्ड़ अपने मूसल से।”
अमर का दिल जोरों से धड़क रहा था, और उसके लण्ड में उफ़ान आ रहा था, उसने एक गहरी लम्बी साँस ली, और फ़िर अपनी मम्मी की गुलाबी गांड़ के छोटे से छेद में एक जोर का झटका मारा, हम दोनों एक साथ कराह उठे। मेरी गाँड़ के छेद ने खुलने से एक सैकण्ड को विरोध किया और फ़िर अमर के लण्ड के सुपाड़े के सामने हथियार डाल दिये।
अमर उत्सुकता से मेरी गाँड़ के छेद की गोलाई को अपने लण्ड के सुपाड़े के गिर्द फ़ैलकर खुलते हुए देख रहा था। उसको अब लण्ड को मेरी गरम गरम गाँड़ के अंदर तक घुसाने में आसानी हो रही थी। अमर को विश्वास नहीं हो रहा था, कि मैं अपनी गाँड़ की मसल्स को रिलैक्स करके इतने आराम से उसके लण्ड को अंदर तक ले जाऊँगी।
”ऊह बेटा, ऐसे ही करते रहो, फ़ाड़ दो अपनी मम्मी की गाँड़” मैं फ़ुसफ़ुसाते हुए बोली। मैं अपनी गाँड़ मरवाते हुए अपनी चूत के दाने को अपनी उँगली से घिस रही थी। ”अंदर तक डाल दो अपने लण्ड को, बेटा, पूरा अंदर तक।”
मेरी बातें सुनकर अमर को मजा आ रहा था। अपनी माँ को इस तरह लण्ड के लिये गिड़गिड़ाते हुए देख कर, वो और ज्यादा उत्तेजित हो रहा था, और फ़िर उसने एक बार फ़िर पूरा लण्ड मेरी गाँड़ में पेल दिया। जब अमर के टट्टों की गोलियाँ हर झटके के साथ मेरी पनिया रही चूत से टकराती तो अमर आनम्दित हो उठता और फ़िर और जोरों से अपनी मम्मी की गरम गरम टाईट गाँड़ में जोरों से अपना लण्ड पेलने लगता। मेरी गाँड़ के छेद ने मानो अमर के लण्ड को सब तरफ़ से जकड़ रखा था।
”आह्ह, मम्मी बहुत मजा आ रहा है,” मेरे ऊपर झुकते हुए, अमर मेरी गर्दन को चूमता हुआ वोला, और फ़िर उसने मेरे लटक कर झूलते हुए मम्मों को अपने हाथ से मसलना शुरू कर दिया। ”आपकी प्यारी सुंदर टाईट गाँड़ मारने में बहुत मजा आ रहा है, आप बहुत अच्छी हो मम्मी।”
अपनी गाँड़ में अपने बेटे का लण्ड घुसाये हुए, और अपने मम्मों को उसके हाथों से दबवाते हुए, अमर की गर्म साँसों को अपनी गर्दन पर महसूस करते हुए, मैंने मानो अपने बेटे अमर के सामने समर्पण कर दिया था।
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”ओह, अमर बेटा, तुम भी बहुत अच्छे हो,” मैं कराहते हुए बोली, और फ़िर गर्दन घुमाकर अपने गुलाबी मोटे होंठ उसको परोस दिये। और फ़िर हम दोनों एक दूसरे को ताबड़तोड़ चूमने चाटने लगे।
हम दोनों एक दूसरे की जिस्म की जरूरत को पूरा कर रहे थे, लेकिन ये पहली बार था हब हम दोनों के जिस्म का मिलन हुआ था। मेरी ग़ाँड़ की दीवार अभी भी अमर के लण्ड के साईज के अनुसार अपने आप को ढाल रही थीं, और मैं हर पल और ज्यादा मस्त हुए जा रही थी।
अपने होंठों को अमर के होंठो से थोड़ा दूर करते हुए मैं फ़ुसफ़ुसाई, ”बेटा, चोद दो मुझे, मार लो मेरी गाँड़ को, निकाल दो अपना पानी अपनी मम्मी की गांड़ में।
”आह्ह, मम्मी आप सबसे अच्छी मम्मी हो,” अमर अपने लण्ड को मेरी गाँड़ में जोर से पेलते हुए, गुर्राते हुए बोला।
मेरे रस भरे होंठों को एक लास्ट बार चूमते हुए, अमर अपने घुटनों पर सीधा हो गया, और फ़िर मेरी गाँड़ के दोनों मोटे चूतड़ों को अपने दोनों हाथों में भर के मसलने लगा। वो अपने लण्ड को मम्मी की गाँड़ के छेद में घुसे हुए होने का दीदार करने लगा.
और फ़िर धीरे धीरे अपने लोहे जैसे कड़क लण्ड को अपनी मम्मी की गाँड़ में धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा। और फ़िर मेरी तेल लगाकर चिकनी हुई गाँड़ में उसके लण्ड के झटके तेज होने लगे। मेरी गाँड़ तो मानो हर झटके के साथ उसके लण्ड को खा जाने को बेकरार हो रही थी।
”ऊह्ह्ह, बहुत मजा आ रहा है, मेरी गाँड़ में तुम्हारा लण्ड और भी ज्यादा बड़ा और मोटा लग रहा है बेटा,” मैं कराहते हुए, और अपनी चूत के दाने को उसके झटके के साथ ताल में ताल मिलाकर सहलाते हुए बोली।
”तुमको भी मजा आ रहा है ना अपनी मम्मी की गाँड़ मारकर? मुझे तो बहुत मजा आ रहा है, और अन्दर तक डालो बेटा… ऊउह्ह्ह! बेटा, मेरी टाईट गाँड़ में अपना लण्ड घुसाकर मजा आ रहा है ना?”
”हाँ मम्मी बहुत मजा आ रहा है!” अमर गुर्राते हुए बोला, ”इतना मजा तो मुझे कभी नहीं आया, आह…, आपकी गाँड़ तो बहुत अच्छी है मम्मी, कितनी गर्म है, कितनी टाईट है ये, ओह्ह मम्मी बहुत अच्छी गाँड़ है आपकी तो ओह्ह…!”
जिस तरह से मैं अमर के लण्ड के हर झटके के अंदर जाते समय अपनी गाँड़ को लूज और एक बार पूरा अंदर जाने के बाद टाईट कर उसके लण्ड को जकड़ लेती थी, उससे अमर समझ रहा था कि मुझे भी गाँड़ मरवाने में उतना ही मजा आ रहा था जितना उसको मेरी गाँड़ मारने में।
जिस तरह से एक हाथ से मैं अपनी चूत के बेकरार दाने को घिस रही थी, उसकी वजह से बीच बीच में मेरे पूरे बदन में थोड़ा झड़ने जैसी हल्की सी तरंगें दौड़ जाती। ऐसा लग रहा था कि बस अब मैं पूरी अच्छी तरह झड़ने ही वाली हूँ।
अमर मुस्कुराते हुए मेरी मोटी मस्त गाँड़ में अपने लण्ड के लम्बे अंदर तक झटके मारे जा रहा था, वो मानो कोई सपना देख रहा था, और उस सपने को देखता रहना चाहता था। उसका अपनी मम्मी की गाँड़ मारने से मन ही नहीं भर रहा था।
उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि लण्ड चुसवाने से इतना ज्यादा मजा गाँड़ मारने में आता है। मेरी गाँड़ की गोलाईयों पर हर झटके के साथ आ रही थप थप की आवाज पूरे कमरे में गूँज रही थी। मेरी हल्के हल्के कराहने की आवाज माहौल को और ज्यादा मादक बना रही थी।
अमर को इस तरह हर वर्जना को तोड़ते हुए महुत मजा आ रहा था, वो समाज द्वारा वर्जित अपनी सगी माँ के साथ शारीरिक सम्बंध बनाते हुए उनके वर्जित गाँड़ के छेद में अपना लण्ड अपना लण्ड घुसाकर अंदर बाहर कर रहा था।
मैंने एक बार फ़िर से पीछे अमर की तरफ़ घूमकर देखत हुए कहा, ”और जोर से मारो बेटा, और जोर से… हाँ… ऐसे ही… आह्ह्ह्… अंदर तक घुसा दो बेटा अपना मोटा लण्ड अपनी मम्मी की गाँड़ में…ढंग से मार लो अपनी मम्मी की गाँड़.”
अपने बेटे के लण्ड को अपनी गाँड़ में घुसवाकर, और उसे पिस्टन की तरह अंदर बाहर करवाते हुए मैं मस्त हुए जा रही थी। अपनी मम्मी के मुँह से ऐसी मस्त बातें सुनकर अमर का लोहे जैसा सख्त लण्ड और तेजी से मेरी टाईट गाँड़ के छेद के अंदर बाहर होने लगा, और वो भी झड़ने की कगार पर पहुँच गया था।
”आह्ह, मम्मी बस मैं झड़ने ही वाला हूँ… आपकी मस्त गाँड़ में मैं सारा पानी निकाल दूँगा… ओह मम्मी आपकी गाँड़ तो कमाल की है।”
”हाँ बेटा निकाल दो अपना सारा पानी अपनी मम्मी की गाँड़ में…भर दो इसको अपने पानी से…” मैं हांफ़ते हुए झड़ने के करीब पहुँचते हुए बोली।
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अमर तो मानो जन्नत की सैर कर रहा था, उसने अपने लोहे की रॉड जैसे लण्ड के अपनी मम्मी की गाँड़ में दो चार जोर जोर के झटके लगाने के बाद, एक बार जोर से अंदर तक लण्ड पेलते हुए ढेर सारा वीर्य का पानी मेरी गाँड़ में निकाल दिया।
मैंने जैसे ही अपनी गाँड़ में उसके गरम गरम पानी को महसूस किया मैं भी उसी वक्त झड़ गयी। हम दोनों माँ बेटे एक साथ झड़ते हुए खुशी से जोर जोर से तरह तरह की आवाजें निकालने लगे। झड़ने के कुछ देर तक अमर मेरी गाँड़ में वैसे ही अपना लण्ड घुसाये रहा, झड़ने के बाद मेरी गाँड़ का छेद सिंकुड़ कर अमर के लण्ड को भींच कर दबा रहा था।
और फ़िर जब अमर ने अपना लण्ड मेरी गाँड़ में से बाहर निकाला तो मेरी गाँड़ का खुले हुए छेद में से फ़च्च की आवाज आयी। अमर फ़िर मेरे पीछे पींठ के पास निढाल होकर लेट गया, और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। कुछ देर बाद मेरे बदन को सहलाते हुए जब अमर का एक हाथ मेरी चूत पर पहुँचा.
तो दो ऊँगलियाँ मेरी चूत में घुसाते हुए अमर मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाया, ”मम्मी आप तो बहुत ज्यादा पनिया रही हो, क्या मुलायम मस्त चिकनी गीली चूत हो रही है।” अमर का लण्ड मेरी चिकनी गाँड़ की दरार में घुसने का प्रयास कर रहा था, और उसकी ऊँगलियाँ मेरी चूत में अंदर बाहर हो रही थी। मैंने अपना सिर घुमा कर अमर के चेहरे की तरफ़ देखा, मैं उसकी कराह में चूत में लण्ड घुसाने की तड़प को समझ रही थी।
”अपने लण्ड को मम्मी की चूत में घुसाना चाहते हो,” मैंने उसके गाल पर हाथ फ़िराते हुए मुस्कुराते हुए पूछा, ”क्यों बेटा मन कर रहा है ना अपनी मम्मी की चूत को चोदने का?”
अमर ने अपने लण्ड को मेरी गाँड़ की दरार में जोर से घिसते हुए, और मेरी चूत में जोरों से अपनी ऊँगलियाँ अंदर बाहर करते हुए, हामी में सिर हिला दिया। अमर के चेहरे पर मासूमियत थी, मुझे उस पर प्यार आ गया, और मैंने उससे पूछा, ”लेकिन क्यों बेटा? मम्मी की गाँड़ मार के मन नहीं भरा क्या?”
”ओह्ह्ह, नहीं मम्मी ऐसी बात नहीं है, आपकी गाँड़ तो बहुत अच्छी है, बहुत बहुत अच्छी है।”
मुझे उसकी बात में इमानदारी और धन्यवाद के भाव प्रतीत हुए। मैंने अमर को अपने आप से और जोरों से चिपका लिया, और उसके होंठों को जोर से चूम लिया। असलियत में मेरी चूत अमर के लण्ड को अपने अंदर लेना चाहती थी, और इस मुकाम तक आने के बाद वापस लौटने का कोई मतलब नहीं था।
मैं अमर के लण्ड को अपने हाथों से मुठिया चुकी थी, उसको अपने मुँह में और मम्मों के बीच ले चुकी थी, और तो और अपनी गाँड़ भी मरवा चुकी थी। हम दोनों वासना और हवस के खेल में बहुत आगे निकल चुके थे, हम दोनों के जिस्म की जरूरत हम दोनों को बेहद करीब ले आयी थी।
समाज की वर्जनाओं को तोड़ते हुए हम माँ बेटे जिस पड़ाव पर पहुँच चुके थे, वहाँ पहुँचने के बाद चूत में लण्ड को घुसवाने या ना घुसवाने का कोई अर्थ नहीं बचा था। और वैसे भी अमर का लण्ड पहली बार किसी चूत का स्वाद चखने वाला था, तो फ़िर वो मेरी चूत का ही क्यों ना चखे? अमर पहली बार किसी चूत को चोदने वाला था, और वो भी अपनी मम्मी की चूत।
उस वर्जित कार्य को करने से पहले ये सब सोचते हुए मेरे गदराये बदन में उत्तेजना की एक लहर सी दौड़ गयी। मेरा बेटा अमर अपना लण्ड उस चूत में घुसाने वाला था, जिस में निकल कर वो इस दुनिया में आया था, और ये वो ही चूत थी, जिस में वो अपने जीवन के पहले तजुर्बे में किसी चूत में अपना लण्ड घुसाने वाला था। इससे बेहतर और क्या हो सकता था?
ये सब सोचकर, मैंने किस तोड़ते हुए कहा, ”हाँ, बेटा।”
अमर ने अविश्वास में अपनी आँख झपकाईं, उसकी ऊँगलियाँ मेरी पनिया रही चूत में कोई हरकत नहीं कर रही थी, और उसके लण्ड के मेरी गाँड़ की दरार में झटके भी शांत थे। वो मेरी बार सुनकर तुरंत समझ गया, लेकिन फ़िर भी उसने हकलाते हुए पूछा, ”सचमुच मम्मी?”
मैं अमर की बाहों में मचल रही थी, अमर के लण्ड को अपनी गाँड़ के छेद पर दस्तक देते, और उसकी ऊँगलियों को मेरी चूत में घुसे हुए, उसके लण्ड को अपनी चूत में लेने का ख्याल ही मुझे कई गुना उत्तेजित कर रहा था।
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”हाँ, बेटा,” मैंने हामी में सिर हिलाया और अपनी गाँड़ को थोड़ा पीछे खिसकाते हुए उसके लण्ड पर घिस दिया। ”हाँ, बेटा जिस दिन तुम मेहनत कर के इतना पैसा जोड़ लोगे और अपनी टैक्सी खरीद कर ले आओगे, उस दिन मैं तुमको वो इनाम दूँगी जो तुम कभी नहीं भूल पाओगे, तुम को ईनाम में मेरी चूत चोदने को मिलेगी, हाँ बेटा, मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ बेटा।
छः महीने बाद जब अमर ने अपनी टैक्सी खरीद कर घर के सामने खड़ी की, तो जब मैंने घर से बाहर निकलकर टैक्सी देखने के बाद जब अमर के चेहरे की तरफ़ देखा, तो हम दोनों के चेहरे पर गर्व, खुशी और वासना की मिश्रित मुस्कान थी।
उस दिन सुबह जब अमर टैक्सी खरीदने के लिये घर से जाने वाला था, उस से पहले किचन में मैंने उसके लण्ड को चूस कर उसका पानी निकाला था। सड़क पर खड़े होकर मैं जब अमर की नयी टैक्सी को देख रही थी, तो मैं अपने होंठों पर अपनी जीभ फ़िरा रही थी।
मुझे अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था कि मैंने किस तरह मैंने अमर को सैक्स के इनामों से प्रेरित कर मेहनत करने को उकसाया था कि वो आज टैक्सी का मालिक बनकर मेरे सामने खड़ा था। कहीं मेरे मन में ये डर भी था कि कहीं अमर अब जब ठीक ठाक कमाने लगेगा.
उसके बाद शादी कर ले अपनी नयी नवेली दुल्हन की कच्ची कोमल टाईट चूत के सामने मुझे भूल ना जाये, लेकिन फ़िर मैंने अपने आप को समझाया कि पहले अमर को समझा कर पहले गुड़िया की शादी करेंगे और उसके बाद अमर की शादी का नम्बर आयेगा, और उस में अभी काफ़ी समय था।
वो दिन हमारे लिये किसी त्योहार से कम नहीं था, और मैं उस दिन को अमर के लिये यादगार बनाने वाली थी। नारियल फ़ोड़ कर और मंदिर में गाड़ी की पूजा करवा कर जब हम दोनों वापस घर लौटे तो मेरी चूत बुरी तरह पनिया कर चुदने को उतावली हुए जा रही थी।
मैंने अमर को एक नयी माला देते हुए उसके पापा की तस्वीर पर टँगी माला को बदलने के लिये कहा। अमर के पापा की मुस्कुराती हुई फ़ोटो मानो हम माँ बेटे के शारीरिक सम्बंधों को स्वीकृति प्रदान कर रही थी। उस रात भी खाना खाने के बाद जब हम दोनों बिस्तर पर लेटे तो अमर का लण्ड मेरी गाँड़ की गोलाईयों के बीच दस्तक देने लगा।
अमर का एक हाथ मेरे मम्मों को सहला और दबा रहा था, और वो मेरी गर्दन के पिछले हिस्से को चूम और चाट रहा था। बिना कोई समय गँवाये अमर ने मेरी पेटीकोट को ऊपर कर दिया और मेरी फ़ूली हुई चूत को ऊपर से सहलाने लगा। मेरी चूत के दाने के ऊपर वो गोल गोल ऊँगली घुमा रहा था, और चूत की फ़ाँकों को सहलाये जा रहा था।
उस दिन मैं इस कदर चुदासी हो रही थी, कि अमर के कुछ देर इस तरह मेरी चूत को सहलाने से ही मैं एक बार झड़ गयी। अमर अभी भी मेरी गर्दन को पीछे से चूम रहा था, और उसका फ़नफ़नाता हुआ लण्ड मेरी गाँड़ पर टक्कर मार रहा था।
उसके लण्ड से निकल रहा चिकना पानी मेरी गाँड़ के छेद को चिकना कर रहा था। मेरे मुँह से खुशी और उत्तेजना में सिसकारियाँ निकल रही थी। अपने बेटे के लण्ड के सुपाड़े को अपनी गाँड़ के छेद पर अंदर घुसने के लिये बेताब होता देख मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
जैसे ही उसने अपने लण्ड का सुपाड़ा मेरी गाँड़ के अंदर घुसाया, मेरे मुँह से आह निकल गयी। अपने बेटे के मोटे लण्ड को अपनी गाँड़ के छोटे से छेद में घुसवाने में थोड़ा दर्द होना लाजमी था। हाँलांकि मैं अमर के लण्ड से पिछले कुछ दिनों में कई बार अपनी गाँड़ मरवा चुकी थी.
लेकिन हर बार जब पहली दफ़ा जब अमर अपने लण्ड मेरी गाँड़ में घुसाता था, तो मुझे अलग ही मजा आता था। अमर का मोटा लण्ड मेरी गाँड़ के छोटे से छेद को चौड़ा कर के उसका मुहाना खोल के बड़ा कर देता था। और ऐसा होता देख मुझे सम्पूर्णता का एहसास होता था, और मेरे पूरे गदराये बदन में खुशी की लहर सी दौड़ जाती थी।
हमेशा की तरह मेरी गाँड़ मारते हुए अमर ने छोटे छोटे धीमे धीमे झटके मारने शुरू कर दिये, और धीरे धीरे हर झटके के साथ उसका लण्ड इन्च दर इन्च मेरी गाँड़ में घुसता जा रहा था। जब उसका लण्ड पूरा मेरी गाँड़ में घुस गया तो उसने कस कर मुझे दबोच लिया, और मेरे मम्मों को अपनी हथेली में भरकर कस कर मसलते हुए अपना लण्ड मेरी गाँड़ में पेलने लगा।
खुशी के मारे मेरे मुँह से सिसकारीयाँ निकल रही थी, और मैं मचल रही थी। जैसे ही अमर का लण्ड बाहर निकलता मुझे खालीपन मेहसूस होता और मैं अमर के मोटे लण्ड को फ़िर से अंदर लेने को बेताब होकर मचल उठती। मैंने अमर के लण्ड को अपनी गाँड़ में दबोच रखा था, और गाँड़ के छेद को बंद करते हुए अमर को टाईट गाँड़ का पूरा मजा दे रही थी।
और जब अमर अपने लण्ड से वीर्य का पानी मेरी गाँड़ में निकाल कर फ़ारिग हुआ, तब तक अपनी चूत में उंगली घुसाकर और चूत के दाने को अपने हाथ की उंगली से सहलाते हुए मैं दो बार झड़ चुकी थी। जैसे ही अमर ने मेरी गाँड़ में अपने लण्ड का आखिरी झटका मारा, मेरे मुँह से खुशी के मारे चीख निकल गयी।
अमर के लण्ड से निकले पानी ने मेरी गाँड़ के छेद में मानो बाढ ला दी थी। अमर का मोटा मूसल जैसा लण्ड झड़ते हुए मेरी गाँड़ में और ज्यादा कड़क और मोटा हो जाता था, और उसको अपनी गाँड़ में कड़क होता मेहसूस करते हुए मुझे बहुत मजा आता था, और मेरा भी उसके साथ झड़ने का मजा दोगुना हो जाता था।
वासना का तूफ़ान शांत होने के बाद, मैंने अपना सिर घुमाकर अमर के होंठो को चूम लिया। अमर का लण्ड अभी भी मेरी गाँड़ में घुसा हुआ था। अमर अभी भी अपने मुलायम नरम हो चुके लण्ड के हल्के हल्के झटके मार कर मेरी गाँड़ में मानो अपने वीर्य के बीज को रोपने का प्रयास कर रहा था।
मैंने धीमे से फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा, ”अमर बेटा, आज तो वायदे के मुताबिक तुम मेरी चूत में भी अपने लण्ड को घुसाकर, मेरी चूत को भी अपने लण्ड के पानी से भर सकते हो…”
मेरी इस बात को सुनकर अमर का लण्ड मेरी गाँड़ में अकड़ने लगा। अमर मेरे होंठों को चूमने, मेरे मम्मों को मसलने और मेरी चूत में उँगली करने के बाद फ़िर से अपने लण्ड को मेरी गाँड़ में पेलने लगा, और मेरी खूबसूरती की तारीफ़ करने लगा।
एक बार फ़िर से मेरी गाँड़ में अपने लण्ड का पानी छोड़ने के साथ ही मुझे भी झड़ने पर मजबूर करते हुए, अमर मुझ से कस कर चिपक गया, और मेरे कन्धे पर अपना सिर रख दिया। अमर साथ साथ बोले जा रहा था, ”मम्मी आप बहुत अच्छी हो, आप बहुत सुन्दर हो, आप मेरा बह्तु ख्याल रखती हो,” उसका हर एक शब्द मुझे उसको और ज्यादा प्यार करने पर बाध्य कर रहा था।
एक दूसरे से चिपक कर लेटे हुए, हम दोनों ही के दिमाग में चूत में लण्ड डालने की ईनाम वाली बात घूम रही थी। अमर मुझे बता रहा था कि वो मेरी चूत को चोदने के लिये कितना बेकरार था, और वो भी इसलिये नहीं कि वो अपना लण्ड किसी चूत में पहली बार घुसाने जा रहा था, बल्कि इसलिये कि वो चूत उसकी प्यारी मम्मी की चूत थी।
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मैं भी उसको बता रही थी कि मैं भी उसके लण्ड से चुदने को उतनी ही बेकरार थी, और भगवान की शुक्र गुजार थी कि मेरे बेटे ने अपनी मेहनत से टैक्सी खरीदी थी, और उसका अपने ईनाम पर पूरा हक था। ”मैं पहली बार किसी चूत को चोदूँगा, और मैं इसे यादगार बनाना चाहता हूँ, क्यों ना मम्मी हम दोनों कल शाम जयपुर घूमने चलें और वहाँ किसी होटल में नव विवाहित जोड़े की तरह सुहाग रात मनायेंगे,” अमर ने किसी बच्चे की तरह उत्साहित होते हुए कहा।
मुझे भी अमर का प्रस्ताव सही लगा, और मैंने हामी में अपनी गर्दन हिला दी। अगले दिन सुबह से ही मैंने अपने बेटे की सुहाग रात के लिये तैयारी शुरू कर दी। बाजार जाकर मैंने अपने हाथों पर मेंहदी लगवाई, और नई ब्रा पैण्टी खरीदीं। घर आकर अपनी बगल और झाँटों के बाल साफ़ किये, और शाम को अमर के लौटने से पहले मैं एक अच्छी सी साड़ी पहन कर तैयार हो गयी। दोस्तों कहानी अभी बाकि है फिर मैंने कैसे अपने बेटे से चूत चुदवाई ये जानने के लिए कहानी का अगला भाग पढ़े…
Hot says
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