Hot Patient Fuck
मैं डॉक्टर आपको अपनी कहानी सुना रहा हूँ। मैं कस्बे मे चौराहे पर अपनी प्रैक्टिस करता हूँ। यही मेरा क्लिनिक है। मैं अब 50 साल का हों चूका हूँ। पर आज भी मेरा लण्ड किसी हसीन पेशेंट को देखकर खड़ा हो जाता है। मैं बहुत ही ठरकी आदमी हूँ, और आप ये समज लीजिये जी मेरा लण्ड हमेशा खड़ा ही रहता है। Hot Patient Fuck
अपने चोदूँ नेचर की वजह से मैं कई बार पब्लिक से पिट भी चूका हूँ। पर फिर भी मैं जरा भी अपनी आदतों से बाज नही आता हूँ। चुट के लिए मैं किसी भी हद तक गिर और जा सकता हूँ। मेरी ठरकी होने की वजह से मेरे 7 बच्चे हो चुके है, क्योंकि मैं अपनी बीवी को हर रात नन्गा करके हर एंगल से बारी बारी चोदता हूँ।
मैं एक रात भी बिना चूत के नही रह सकता। पहले तो मेरा क्लिनिक बहुत कम चलता था। लगता था कि कोई मरीज आएगा ही नही। लगता था कि मुझे कोई दूसरा काम करना पढ़ेगा, पर फिर ऊपर वाले की रहम हुई और आज मेरा क्लिनिक खूब चलता है। मरीजो की भीड़ लगी रहती है।
दोंस्तों, जब नही कोई हसींन औरत मेरे पास आती थी और लाइन में लग जाती थी तो मैं उसे केवल खूबसूरत होने के कारण मैं उसे तुरंत देख लेता था। मैं हसींन और सुंदर औरतों को पूरी अटेंशन और मेहनत से चेक करता था। मैं उनकी डायग्नोसिस करने के बहाने उनके अंगों को खूब सहलाता था।
कामोत्तेजक ढंग से उनको छूता था, और कोई ठरकी औरत राजी हो जाती थी तो उसे केबिन में तत्काल चोद लेता था। एक बार की बात है जब मैं किसी जवान औरत को डायग्नोज़ कर रहा था तो उसने बिना कहे की अपने मस्त गदराए मम्मो का ब्लॉउज़ खोल दिया। वो औरत अल्टर थी।
साब चाहिए तो ले लो!! इसके बदले फ़ीस माफ़ कर देना!! वो बोली.
मैंने तुरंत अपने पर्चा बनांई वाले आदमी से कहा कि अभी आधे घण्टे तक किसी को केबिन में मत भेजना। बस फिर क्या था दोंस्तों, अपनी बड़ी सी टेबल पर ही साली की टांग फैलाके मैंने खूब पेला साली को। खूब चूत मारी। अपनी 150 रुपए फ़ीस माफ़ कर दी और 200 की और उसे दवा दी। उस दिन मजा आ गया था दोंस्तों। वो औरत बड़ी खूबसूरत थी। बड़ी हसीन थी।
उसके बाद मैं हर हसीन औरत को अल्टर और चुदक्कड़ समझने लगा। एक बार और एक हसीन औरत मेरे पास दवा लेने आयी। वो इतनी खूबसूरत थी की मेरा तो दिमाग ही फिर गया। उसकी हर्ट बीट चेक करके के लिए मैंने उसे पीछे गुमाया और पीठ पर आला रखा।
उसका ब्लॉउज़ पीछे से गहरा खुला था। इतनी मस्त चिकनी पीठ थी की मैं सम्हाल नही पाया। मैंने उसकी पीठ पर हाथ रख दिया और चूमने चाटने लगा। बस फिर क्या था उसका मर्द आया और उसने मुझे चप्पल जूते से खूब मारा। मेरी खोपड़ी फुट गयी।
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पर इसके बाद भी मुझे बिच बीच में अल्टर और चुदासी औरते मिलती रही। जो फ़ीस नही देना चाहती थी। मैं अब सावधान हो गया था, अपनी तरफ से किसी को इशारा नही करता था। जब कोई चुदक्कड़ औरत खुद ही पहल करती थी तो ही मैं आगे बढ़ता था और कभी रात में आने को कहता था, कभी केबिन में ही चोद लेता था।
ये पूरी तरह से मेरे मूड पर निर्भर करता था। अगर मैं मरीज देखते देखते बोर हो गया हूँ और ब्रेक लेना चाहता हूँ तो केबिन में ही चोद लेता हूँ। ऐसा ही हसींन वाकया आपको बता रहा हूँ। ये घटना पिछली सर्दियों की है। जनवरी का महीना चल रहा था। सर्दियां इतनी थी की मुझे अपने केबिन में रूम हीटर लगाना पड़ गया था।
इन दिनों मरीज दोपहर में धुप निकलने के बाद जादा आते थे। शाम को 5 बजे कोहरा छा जाता था इसलिए मरीज शाम 5 बजे के बाद कम ही आते थे। इस समय 7 बज गए थे। मैं बार बार सोच रहा था कि क्लिनिक बंद कर दूँ। क्योंकि पिछले 2 घण्टों में कोई मरीज नही आया था। मैं क्लिनिक बंद ही करने वाला था कि एक जवान औरत दवा लेने आ गयी। उसने पर्चा नही कटवाया। सीधे मेरे पास आ गयी।
पर्चा क्यों नही बनवाया! जाओ पहले पर्चा कटवाओ! मैंने कहा.
वो रोने लगी। बताने लगी की उसके पास पैसे नही है। उसके आदमी को अस्थमा का अटैक पड़ा था, दवा देने को कहने लगी।
देख फोकट में काम नही होता! रोजाना तुम्हारे जैसे कितने लोग आते है! अगर मैं फ्री में दवा दूँगा तो अपने स्टाफ को सलरी कहाँ से दूँगा! मैंने कहा.
मेरे पास इसके सिवा कुछ नही है!! उसने अपना आँचल अपने ब्लॉउज़ से हटा दिया। मैं जान गया कि चूत ऑफर कर रही है।
चल आ जा!! मैंने कहा।
मैंने अपने पर्चा बनांने वाले से कहा कि बाहर से सेटर गिरा दे और दुकान का साइनबोर्ड उठा के अंदर रख दे और वो अपने घर चला जाए। मेरा असिस्टेंट खुश हो गया और सेटर गिरा के चला गया। वो भी जान गया कि इस पेशेंट को मैं चोदूंगा। अब क्लिनिक बाकी जनता के लिए बंद हो गया था। मैंने उस औरत को बाँहों में भर लिया।
क्या नाम है तेरा?? मैंने पूछा.
अंजू! वो बोली.
कहाँ रहती है??
यही चौराहे के बगल! वो बोली.
मैंने उसे खीच लिया और उसके रसीले होंठ पीने लगा। 6 फीट की लंबी कदकाठी की औरत थी। भरा हुआ बदन था। उसकी सांसों की खुश्बू लेकर मैं उसके होंठ चूसने लगा। आँहा!! क्या मस्त सांसों की खुश्बू थी उसकी। कोई 29 30 साल की औरत थी वो। देखने में ही गरीब लग रही थी।
उसका आदमी कुछ महीनो से सांस की बीमारी होने के कारण काम पर नही जा पाया था। इसलिए उस बेचारी के पास पैसे नही थे। मैं उसका आँचल हटा दिया। उसकी छातियां काफी बड़ी थी। मैंने एक एक करके ब्लाऊज़ के बटन खोल दिए। अंजू ने ब्रा नही पहनी थी। सायद उसका कोई छोटा बच्चा भी था।
क्योंकि अंजू का दूध बह रहा था। उसके ब्लॉउज़ के पास उस दूध बहकर गीला हो गया था। इससे मुझे पता लग गया कि उसके कोई छोटा बच्चा भी था। मैंने उसका मम्मा अपने मुँह में भर लिया। लगा की मैंने कोई बड़ी वाली बन डबलरोटी मुँह में भर ली हो। मैं जब अंजू के दूध पीने लगा तो दूध मेरे मुँह में बेहने लगा।
सायद अंजू को बच्चे को दूध पिलाने का वक़्त हो गया था। पर बेचारी पैसा नही होने से यहाँ मुझसे चुदा रही थी। मैंने अपनी डॉक्टरी वाली बड़ी सी कुर्सी पर बैठा रहा। अंजू को भी मैंने अपनी गोद में बैठा लिया। वो आराम से मुझे देने लगी। मैं एक एक करके उसके दूध पीने लगा।
क्या मस्त गोल छातियां थी दोंस्तों। गोल, दूध से भरी, और गोरी। अंजू का क्लीवेज बड़ा आकर्षक था। मैंने एक रूपए का सिक्का निकाला और उसके क्लीवेज में डाल दिया। क्लीवेज इतना कसा था कि सिक्का उसमे फस गया। मुझे ये देखकर बड़ी उत्तेजना हो गयी और मैंने उसकी छातियां हाथ में ले ली।
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मैं उनको खूब धीरे धीरे पर कस कसके दबाने लगा। अंजू गरम होने लगी। मुझे उसे देखकर इतना जोश चढ़ा की मैं क्या बताऊँ। कितने दिनों से कोई चूत नही मारी थी। मैं ठंड में अपने लण्ड से कह ही रहा था कि मुझे एक चूत चाहिए। इतने में अंजू जैसी मस्त औरत मिल गयी। मन कर रहा था पहले इसी चोद लूँ, बाद में बात करुँ।
जब मैंने उसके खूब दूध पी लिए तो मैंने अपना एक हाथ अंजू के पेटीकोट में ख़ोस दिया। उसकी चिकनी जांघों से होता हुआ मेरा हाथ उसकी बुर ढूंढने लगा। आखिर मेरा हाथ उसकी चड्ढी तक पहुँच गया। मैंने उसे हल्का सा ऊपर उचकाया और उनकी चड्ढी में हाथ डाल दिया। उसकी बड़ी बड़ी झांटे मुझे मिली।
मैं झांटों के जंगल से होता हुआ उसकी बुर ढुंगने लगा। आखिर मुझे सफलता मिली, मैंने अंजू की बुर अपनी उँगलियों से खोज ली। मेरी आँखे का रंग कामुकता के कारण बिलकुल लाल हो गया। वासना और चोदन की भावना मेरी आँखों में तैरने लगी। उसकी बुर खोजने के बाद मैंने साड़ी ज्यूँ की तियों ढाक दी।
अगर कोई मुझे दूर से देखता तो समझता की मैं अंजू का इलाज कर रहा हूँ, पर असलियत में मैं उसकी बुर में ऊँगली कर रहा था। जैसे ही मैंने अपनी 2 उँगलियाँ उसकी बुर में डाल दी, वो हल्का सहम गयी। फिर मेरी गोद में बैठ गयी। मैं मस्ती से उसकी बुर में धीरे से अंदर बाहर ऊँगली करने लगा।
फिर जब चूत हल्की गरम हो गयी तो मैं जल्दी जल्दी उसकी बुर में ऊँगली करने लगा। उधर दूसरी तरह मैंने उसका ब्लॉउज़ खोल रखा था और मुँह लगाकर दूध पिए जा रहा था। मैं दोनों काम एक साथ कर रहा था। एक तरफ अपने मुँह से अंजू के दूध को पी रहा था, वहीँ दूसरी तरफ अपनी ऊँगली उसकी चुत में कर रहा था।
जब मेरी ऊँगली खूब गीली और चिपचिपी हो जाती थी तो मैं निकाल कर चाट लेता था, वहीँ दूसरी बार अंजू को उसी का पानी चटा देता था। मेरे प्यारे दोंस्तों, ये सिलसिला बड़ी देर तक चला। जब अंजू देवी बिलकुल पानी पानी हो गयी तो मैं बहुत कामुक हो गया।
मैं उसकी एक छाती को ऊँगली ले पकड़ लिया और अपने मुँह में गारने लगा। दोंस्तों, आप लोगो को विस्वास नही होगा की उसकी छाती से दूध निकलने लगा और सीधे मेरे मुँह में जाने लगा। ये सब देखकर मैं बेकाबू हो गया, वासना मेरे दिलो दिमाग पर छा गयी।
अंजू!! अपनी चूत दे दे! अब और काबू नही होता! मैंने कहा।
वो गरीब औरत तो पहले ही तैयार थी। साहिब! जल्दी करो! मुझे अपने मर्द को दवा भी खिलानी है, रात का खाना भी बनाना है! अंजू बोली.
मैं उठा। मैंने खुद अपने हाथों से अंजू की साड़ी उतार दी। पेटीकोट और चड्डी भी निकाल दिया। अब वो पूरी नँगी हो गयी। मैंने उसे अपनी ऊँची डॉक्टरी वाली कुर्सी पर बैठा दिया। अंजू के पैर खोल दिए। मैंने लण्ड तो पहले ही खड़ा हो गया था। सर्दी तो जाने कहाँ भाग गयी थी।
मैं लण्ड उसके भोंसड़े पर रखा और पेल दिया। लण्ड सीधा अंदर चला गया। चूत पूरी तरह फ़टी हुई थी। मैं चोदने लगा अंजू देवी को। मैंने अभी तक अपने इस क्लिनिक में कई औरतों को चोदा था, कई लड़कियों को भी लिया था। पर अंजू सबसे विचित्र थी।
वो बिना कोई प्रतिरोध किये आराम से देती रही। मैं मजे से कमर उठा उठाके उसे चोदता रहा। मैं जान गया था कि बेचारी गरीब औरत है। इसमें इसका क्या कसूर। अब इसकी किस्मत ही फूटी थी जो शराबी और बीमार पति से शादी हो गयी। मैं उसे मजे से लेने लगा।
जब मैंने देखा की उसका बदन ऐंठने लगा है मैं और जोर जोर से धक्के मारने लगा। मेरा बड़ा सा लण्ड उसकी बुर की दीवाल को छू रहा था। फिर कुछ मिनट बाद मैं जब झड़ने को आया तो मैंने अपना लण्ड निकाल के सीधा उसके मुंह में डाल दिया।
दोंस्तों, वो मेरा पूरा माल पी गयी। आज मेरी उस महान डॉक्टरी वाली कुर्सी पर अंजू नँगी बैठी थी। आज एक दिन के लिए वो भी डॉक्टर बन गयी थी। अब मैं जमीन पर बैठ गया जबकि अंजू मेरी बड़ी आरामदायक कुर्सी पर ही बैठी रही। मैं अंजू की बुर पीने लगा।
मैं खूब जीभ फेर फेरकर उसकी बुर पीने लगा। नमकीन कसैला स्वाद था। खूब देर तक अपनी जीभ को मैंने उसकी बुर पर लपलपाया । फिर मैंने अपने सूखे लण्ड को कुछ देर मुठ मारी जिससे लण्ड खड़ा हो जाए। जब मैंने देखा की मेरा लण्ड खड़ा नही हो रहा है तो मैं उससे कहा।
ऐ अंजू, चल मेरा लौड़ा चुस के खड़ा कर। अगर नही खड़ा तो मैं तुझे कोई दवा नही दूँगा।
अंजू अब दुगुनी मेहनत से मेरा लण्ड चूसने लगी। वो अपने हाथ से भी फेंटकर मेरा लण्ड खड़ा करने लगी। आखिर बड़ी देर तक चूसने के बाद अंजू ने मेरा लण्ड खड़ा कर दिया। मैंने उसको अपनी कुर्सी पर और ऊपर औंधा दिया। मुझे उसकी गाण्ड का शुराख मिल गया।
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पहले तो मैं उसकी गाण्ड के सुराख़ को अपनी जीभ से चाटने लगा। फिर मैंने अपना लण्ड उसकी गाण्ड के सुराख़ पर रख दिया और पेल दिया। मेरा बड़ा सा लण्ड खूब अंदर घुस गया। इस तरह मैं अंजू की गाण्ड को मस्ती से चोदने लगा। दोंस्तों, क्या मस्त कसी गाण्ड की छिनाल की। मैंने उस शाम उसको खूब खाया पेला। अंजू को भली भांति चोदकर मैं उसके मर्द के लिए 7 दिन की दवा की पुड़िया बांध दी। मैंने उसको 200 रुपए और दिए।
अंजू! कभी दवा चाहिए तो पैसो की फिकर मत करना! फ्री दे दूंगा! मैंने उससे कहा। फिर दोंस्तों, बाद में उसके आदमी को टीबी हो गया। आप लोग तो जानते ही है कि टीबी में 6 महीना तक बिना नागा किए दवा खायी जाती है। एक दिन भी नागा नही किया जाता। अब अंजू मेरे पास हर चौथे दिन टीबी की दवा लेने शाम को ही सबसे बाद में आती। मैं उसे खुद चोदता, पुरे 6 महीनो तक मैंने उसे खूब रंडियों की तरह चोदा खाया। और उसके मर्द के लिए फ्री में दवा दी। और वो ठीक हो गया।