Honey Trap Sex Kahani
मुस्तफा मेरा बचपन का दोस्त था. बड़े होने के बाद हम पहले जितने नज़दीक नहीं रहे थे पर हम एक ही शहर में रहते थे इसलिए हमारा मिलना होता रहता था. मुस्तफा को आप एक आम आदमी कह सकते हैं. वो दिखने में आम आदमी जैसा है, आम किस्म का बिजनेस करता है और औसत आर्थिक स्तर का है. Honey Trap Sex Kahani
लेकिन उसके मुताल्लिक एक बात आम आदमियों से अलग है और वो है उसकी बीवी मुमताज. देखने में वो उतनी ही खूबसूरत है जितनी किसी ज़माने में फिल्म एक्ट्रेस मुमताज रहमान हुआ करती थी. जब मुस्तफा से उसकी शादी हुई तो मैं हैरान रह गया कि इस मुस्तफा के बच्चे को ऐसी हूर कैसे मिल गई!
मुमताज को देखते ही मेरे दिल की धडकनें बेकाबू हो जाती थीं, मेरे मुंह में पानी आ जाता था और मेरे दिल में एक ही ख़याल आता था – किसी तरह ये मुझे मिल जाए! मेरा ही क्या, और सब मर्दों का भी यही हाल होता होगा. एक बार उसके चेहरे पर नज़र पड़ जाए तो वहां से नज़र हटाना मुश्किल हो जाता था.
उसके होंठ तो चुम्बन का मौन निमंत्रण देते प्रतीत होते थे. चेहरे से किसी तरह नज़र हट भी जाए तो उसके सीने पर जा कर अटक जाती थी. उसके सुडौल, पुष्ट और उठे हुए स्तन मर्दों को दावत देते लगते कि आओ, हमें पकड़ो, हमें सहलाओ, हमें दबाओ और हमारा रस पीयो.
अगर नज़र थोड़ी और नीचे जाती तो ताज्जुब होता कि इतनी पतली और नाज़ुक कमर सीने का बोझ कैसे उठाती होगी. मैं कभी उसके पीछे होता और उसे चलते हुए देखता तो उसके लरजते, थर्राते और एक-दूसरे से रगड़ते नितम्ब देख कर मैं तमाम तरह की नापाक कल्पनाओं में खो जाता!
कुल मिला कर कहा जा सकता है कि मुमताज जैसी हसीन औरत बनाने के पीछे ऊपर वाले के दो ही मकसद रहे होंगे – पहला, कमबख्त मुस्तफा की ख्वाबगाह को जन्नतगाह बनाना और दूसरा, बाकी सब मर्दों के ईमान का इम्तेहान लेना. मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि इस इम्तेहान में मैं फेल साबित हुआ था.
मैं जब-जब मुमताज को देखता, मेरा लंड कपड़ों के अन्दर से उसे सलामी देने लगता था. अपने मनचले लंड को उसकी चूत की सैर करवाने के ख्वाब मैं सोते-जागते हर वक़्त देखा करता था. मुस्तफा का दोस्त होने के कारण मुझे मुमताज से मिलने के मौके जब-तब मिल जाते थे.
मैं अपनी मर्दाना शख्सियत से उसे इम्प्रेस करने की पूरी कोशिश करता था. अपनी तारीफ सुनना हर औरत की आम कमजोरी होती है. मुमताज की इस कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश भी मैं हमेशा करता रहता था. पर इस सब के बावजूद मैं अपने मकसद में आगे नहीं बढ़ पाया और मेरी कामयाबी सिर्फ उसके जलवों से अपनी आंखें सेकने तक ही सीमित रही.
एक दिन मुस्तफा मेरे ऑफिस में मेरे से मिलने आया. वो निहायत परेशान लग रहा था पर अपनी बात कहने में झिझक रहा था. मेरे बार-बार पूछने पर उसने बड़ी मुश्किल से मुझे बताया, “वकार, मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं. मुझे मदद की जरूरत है लेकिन ऐसे मामले में तुम्हारी मदद मांगने में मुझे शर्म आ रही है.”
“मुस्तफा, हम एक-दूसरे के सच्चे दोस्त हैं,” मैंने कहा. “अगर मुझे मदद की जरूरत होती तो मैं सबसे पहले तुम्हारे पास ही आता. तुमने ठीक किया कि तुम मेरे पास आये हो. अब मुझे बताओ कि मसला क्या है.”
“मसला मेरे बिज़नेस से ताल्लुक रखता है,” मुस्तफा ने सर झुका कर कहा. “एक पार्टी के पास मेरे पैसे अटक गए हैं. वे दो-तीन हफ़्तों का वक़्त मांग रहे हैं. लेकिन उससे पहले मुझे अपने सप्लायर्स को दस लाख रुपये चुकाने हैं. बैंक से मैं जितना लोन ले सकता हूं उतना पहले ही ले चुका हूं. अगर मैंने ये दस लाख रुपये फ़ौरन नहीं चुकाए तो मैं बड़ी मुश्किल में पड़ जाऊंगा.”
मुस्तफा की बात सुन कर मेरी आंखों के सामने मुमताज की तस्वीर घूमने लगी. मुझे अपने नाकाम मंसूबे पूरे करने का मौका नज़र आने लगा. दस लाख रुपये काफी बड़ी रकम थी, खास तौर से मुस्तफा के लिये. मैं सोच रहा था कि अगर मैं मुस्तफा को यह रकम दे दूं और वो इसे वक़्त पर न लौटा पाए तो क्या मैं अपने मकसद में कामयाब हो सकता हूं!
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मैंने यह रिस्क लेने का फैसला किया और मुस्तफा से कहा, “इस मुसीबत के वक़्त तुम्हारी मदद करना मेरा फर्ज़ है पर दस लाख की रकम बहुत बड़ी है.”
“मैं जानता हूं,” मुस्तफा ने जवाब दिया. “इसीलिए मैं तुमसे कहने में झिझक रहा था. लेकिन बात सिर्फ एक महीने की है. अगर किसी तरह तुम इस रकम का इंतजाम कर दो तो मैं हर हालत में एक महीने में इसे लौटा दूंगा.”
मेरे शातिर दिमाग में तरह-तरह के नापाक खयाल आ रहे थे. मेरी आँखों के सामने घूम रही मुमताज की तस्वीर से कपड़े कम हो रहे थे. मैं उम्मीद कर रहा था कि मुस्तफा की कारोबारी मुश्किलें कम नहीं हों और वो वक़्त पर मेरा क़र्ज़ न उतार पाए.
उस सूरत में मुस्तफा क़र्ज़ अदा करने की मियाद बढाने की गुज़ारिश करेगा और मेरे मुमताज तक पहुँचने का रास्ता खुल सकता है. वैसे यह दूर की कौड़ी थी. मुमकिन था कि युसुफ वक़्त पर पैसों का इंतजाम कर ले. और इंतजाम न भी हो पाए तो लाजमी नहीं था कि मुमताज मेरी झोली में आ गिरे. पर उम्मीद पर दुनिया कायम है. फिर मैं उम्मीद क्यों छोड़ता!
मैंने मुस्तफा को कहा, “दस लाख रुपये देने में मुझे कोई दिक्क़त नहीं है पर तुम जानते हो कि बिजनेस में लेन-देन लगातार चलता रहता है. मुझे भी अपनी देनदारियां वक़्त पर पूरी करनी होंगी. इसलिए मैं एक महीने से ज्यादा के लिए क़र्ज़ नहीं दे पाऊंगा.”
यह सुन कर मुस्तफा खुश हो गया. उसने कहा, “तुम उसकी चिंता मत करो. मैं एक महीने से पहले ही यह रकम लौटा दूंगा.”
“मुझे तुम पर पूरा यकीन है,” मैंने सावधानी से कहा. “लेकिन मेरे पास कोई ब्लैक मनी नहीं है. मुझे पूरा लेन-देन अपने खातों में दिखाना होगा.”
“हां, हां! क्यों नहीं? मुझे कोई एतराज़ नहीं है.” मुस्तफा ने कहा.
मैंने कहा, “ठीक है, तुम कल इसी वक़्त यहाँ आ जाना. तुम्हारा काम हो जाएगा.”
मुस्तफा खुश हो कर वापस गया. मैं भी खुश था क्योंकि अब मेरा काम होने की भी सम्भावना बन रही थी. जब मुस्तफा अगले दिन आया तो वो कुछ चिंतित दिख रहा था, शायद यह सोच कर कि मैं रुपयों का इंतजाम न कर पाया होऊं! जब मैंने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया तो उसकी चिंता कुछ कम हुई. अब मुझे होशियारी से बात करनी थी. मैंने थोड़ी ग़मगीन सूरत बना कर कहा, “मुस्तफा, रुपयों का इंतजाम तो हो गया है लेकिन…”
मुस्तफा ने मुझे अटकते देखा तो पूछा, “लेकिन क्या? अगर कोई दिक्कत है मुझे साफ-साफ बता दो.”
“दिक्कत मुझे नहीं, मेरे ऑफिस के लोगों को है,” मैंने अपने शब्दों को तोलते हुए कहा. “मुझे तुम्हारे पर पूरा भरोसा है लेकिन मेरे ऑफिस वाले कहते हैं कि पूरी लिखा-पढ़ी के बाद ही रकम दी जाए.”
“तो इसमें गलत क्या है?” मुस्तफा ने फौरन से पेश्तर जवाब दिया. “इतनी बड़ी रकम कभी बिना लिखा-पढ़ी के दी जाती है! तुम्हारे ऑफिस वाले बिलकुल ठीक कह रहे हैं. तुम उनसे कह कर कागजात तैयार करवाओ.”
अब मैं उसे क्या बताता कि कागजात तो मैंने पहले से तैयार करवा रखे हैं और उनमे वक़्त पर क़र्ज़ अदा न होने की सूरत में कड़ी पेनल्टी की शर्त रखी गई है. खैर अपने आदमियों को एग्रीमेंट बनाने की हिदायत दे कर मैंने चाय के बहाने कुछ वक़्त निकाला.
कुछ देर बाद मेरा आदमी एग्रीमेंट ले कर आया. मुझे डर था कि उसे पढ़ कर मुस्तफा अपना इरादा न बदल दे. पर मुझे यह भी मालूम था कि उसे कहीं और से इतना बड़ा क़र्ज़ नहीं मिलने वाला था. बहरहाल उसने सरसरी तौर पर एग्रीमेंट पढ़ा और बिना झिझक उस पर दस्तखत कर दिए. जब मुस्तफा ने चैक अपनी जेब में रखा तो मुझे अपनी योजना का पहला चरण पूरा होने की तसल्ली हुई.
मेरे अगले एक-दो हफ्ते बड़ी बेचैनी से गुजरे. मैं लगातार मुस्तफा के बिजनेस की यहां-वहां से जानकारी जुटाता रहा. जैसे-जैसे मुझे खबर मिलती कि उसके पैसे अब भी अटके हुए हैं, मेरी ख़ुशी बढ़ जाती. आम तौर पर क़र्ज़ देने वाला उम्मीद रखता है कि उसके पैसे वक़्त पर वापस आ जायें पर मैं उम्मीद कर रहा था कि यह क़र्ज़ वक़्त पर न लौटाया जाए.
जब तीन हफ्ते गुजर गए और मुझे मुस्तफा की मुश्किलें कम होने की खबर नहीं मिली तो मेरे अरमानों के पंख लग गए. अब मेरी कल्पना में मुमताज लगभग नग्न दिखने लगी थी. जब क़र्ज़ की मियाद पूरी होने में सिर्फ तीन दिन बचे थे तब मुस्तफा का फ़ोन आया. उसने मुझे शाम को डिनर की दावत दी तो मुझे आश्चर्य के साथ-साथ ख़ुशी भी हुई.
मेरी ख़ुफ़िया जानकारी के मुताबिक मुस्तफा अब तक पैसों का इंतजाम नहीं कर पाया था. मुझे यकीन था कि वो क़र्ज़ की मियाद बढाने की बात करेगा. मुझे इसका क्या और कैसे जवाब देना था यह मैंने सोच रखा था. क्योंकि मुस्तफा ने मेरी बेग़म को नहीं बुलाया था, मुझे लगा कि आज की रात मेरी किस्मत खुल सकती है! मैं रात के आठ बजे उसके घर पहुँच गया. मैं मुमताज के लिए एक कीमती गुलदस्ता ले गया था.
मुस्तफा ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझे ड्राइंग रूम में बैठाया. कुछ मिनटों के बाद मुमताज मुझे सलाम करने आई. उसको देखते ही मुझे लगा कि आज का दिन कुछ अलग किस्म का है. उसकी चाल, उसकी मुस्कुराहट, उसका पहनावा… सब कुछ अलग और दिलनशीं लग रहा था.
उसने एक बहुत चुस्त साटिन की कमीज़ पहन रखी थी. कमीज़ का गला काफी लो-कट था जिसमे से उसके एक-चौथाई मम्मे और उनके बीच की घाटी दिख रही थी. उसके दिलफरेब मम्मे तो जैसे कमीज़ से बाहर निकलने को अकुला रहे थे. आमतौर पर मेरी नज़र उसके हसीन चेहरे पर अटक कर रह जाती थी पर आज मैं उसके सीने से नज़र नहीं हटा पा रहा था.
जब मुमताज ने थोड़ी जोर से ‘सलाम, वकार साहब’ कहा तो मैं अपने खयालों की जन्नत से हकीकत की दुनिया में लौटा. उसने देख लिया था कि मेरी निगाहें कहाँ अटकी थी. पर वो नाराज़ दिखने की बजाय खुश दिख रही थी. मैंने शर्मा कर उसके सलाम का जवाब दिया. जब वो बैठ गई तो मेरी नज़र उसके बाकी जिस्म पर गयी.
वो एक नई नवेली दुल्हन की तरह खुशनुमा लग रही थी. अचानक मुझे गुलदस्ते की याद आई जो अभी तक मेरे हाथ में था. मैंने उठ कर गुलदस्ता उसे दिया तो उसके हाथ मेरी उँगलियों से छू गये. उस छुअन से मेरे शरीर में एक हल्का सा करंट दौड़ गया. मुस्तफा कुछ बोल रहा था जिस पर मेरा बिलकुल ध्यान नहीं था क्योंकि मेरा पूरा ध्यान तो मुमताज की खूबसूरती पर केन्द्रित था.
वो भी बीच-बीच में मुझे एक मनमोहक अदा से देख लेती थी. कुछ देर बाद मुमताज ने कहा कि उसे किचन में काम करना था और वो उठ कर चली गई. मुस्तफा और मैं बातें करते रहे पर मेरा दिमाग कहीं और ही था. हां, बीच-बीच में मैं उम्मीद कर रहा था कि मुस्तफा क़र्ज़ की बात छेड़ेगा पर ऐसा कुछ नहीं हुआ.
मैंने भी सोचा कि जल्दबाजी से कोई फायदा नहीं होगा. मुझे इंतजार करना चाहिए. तभी मुमताज ने आ कर कहा कि खाना तैयार है. हम उठ कर डाइनिंग रूम में चले गए. मुमताज खाना परोसने के लिए झुकती तो मुझे लगता कि वो जानबूझ कर मुझे अपने मम्मों की झलक दिखा रही है.
मैं उसके मम्मों पर नज़र डालने के साथ-साथ यह भी कोशिश कर रहा था कि मुस्तफा को कोई शक न हो. मुझे यह भी लग रहा था कि वो या तो मेरी लालची नज़रों से अनजान है या फिर जानबूझ कर अनजान बन रहा है. खाना परोसने के बाद मुमताज मेरे सामने की कुर्सी पर बैठ गई.
मेज की चौड़ाई ज्यादा नहीं थी इसलिए मेरे घुटने एक-दो बार मुमताज के घुटनों से छू गये. उसने कोई नाखुशी जाहिर नहीं की तो मेरी हिम्मत बढ़ गई. मैं जानबूझ कर अपने घुटने उसके घुटनों से टकराने लगा. मुझे आशंका थी कि वो अपने घुटने पीछे खींच लेगी पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया. हां, उसकी नज़रें शर्म से झुक गई थीं.
मैं मुस्तफा की तरफ देखते हुए उससे बात करने लगा और साथ ही मैंने अपने घुटने से मुमताज के घुटने को एक-दो बार सहलाया. उसने भी जवाब में मेरे घुटने को अपने घुटने से सहला कर जैसे इशारा कर दिया कि उसे कोई एतराज़ नहीं था. वो बीच-बीच में हमारी बातचीत में भी भाग ले रही थी और दिखा रही थी जैसे सब कुछ सामान्य हो.
उसका व्यवहार मेरे शरीर में रोमांच पैदा कर रहा था. मेरी हिम्मत और बढ़ गई और मैंने उसकी समूची टांग को अपनी टांग से सहलाना शुरू कर दिया. अब मेरा ध्यान खाने से हट चुका था. मुझे कुछ पता नहीं था कि मुस्तफा क्या बोल रहा था. मेरा ध्यान सिर्फ उन तरंगों पर था जो मेरी टांगों से उठ कर ऊपर की तरफ जा रही थीं और जिनका सीधा असर मेरे लंड पर हो रहा था.
अचानक मुमताज की सुरीली आवाज ने मुझे जैसे नींद से जगाया. वो कह रही थी, “शायद वकार साहब को खाना पसंद नहीं आया. ये तो कुछ खा ही नहीं रहे हैं!”
मुमताज ने ये बात मुस्तफा को कही थी पर मैंने फ़ौरन जवाब दिया, “यह कैसे हो सकता है कि तुम जो बनाओ वो किसी को पसंद न आये. तुम्हारे हाथों में तो जादू है. लेकिन मुश्किल ये है कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या खाऊं.”
जवाब के साथ-साथ मुमताज की तारीफ भी हो गई जो उसे जरूर अच्छी लगी होगी. मेज के नीचे मेरा पैर अब उसकी पिंडली की मालिश कर रहा था. उसकी सलवार ऊपर उठ चुकी थी. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मैं मुस्तफा की मौजूदगी में उसकी बीवी की नंगी टांग को अपने पैर से सहला रहा था और वो इससे बेखबर था.
मुझे यह शक भी हो रहा था कि कहीं वो जानते हुए अनजान तो नहीं बन रहा था. मैंने अपना पैर पीछे खींचा तो मुमताज के चेहरे पर निराशा का भाव आया. पर वो जल्दी ही संभल गई और सामान्य तरीके से बात करने लगी. मैंने भी अपना ध्यान बातचीत और खाने की तरफ मोड़ दिया. कुछ देर में डिनर ख़त्म हो गया. हाथ धोने के बाद मैंने फिर मुमताज से खाने की तारीफ की. मुस्तफा ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ चुका था.
मुमताज ने धीरे से मुझे कहा, “आप बहुत दिलचस्प बातें करते हैं. मैं दिन में घर पर ही रहती हूँ. आप जब चाहें यहाँ आ सकते हैं.”
यह तो खुला निमंत्रण था. आज शाम वो नहीं हुआ जिसकी मुझे उम्मीद थी पर आगे के लिए रास्ता खुल चुका था. और मुझे नहीं लगा कि यह मुस्तफा की जानकारी के बिना हुआ होगा. मैं दिखने में बेशक मुस्तफा से बेहतर हूं पर इतना भी नहीं कि मुमताज जैसी दिलफ़रेब औरत मुझ पर फ़िदा हो जाए.
यह कमाल तो उस क़र्ज़ का था जो वक़्त पर वापस आता नहीं लग रहा था. खैर, अगर मुमताज ब्याज देने के लिए तैयार है तो मैं इतना बेवक़ूफ़ नहीं हूँ कि यह सुनहरा मौका छोड़ दूं! यह सोचते-सोचते मैं अपने घर पहुँच गया. मेरे दिल-ओ-दिमाग पर पूरी तरह मुमताज का नशा छाया हुआ था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
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मुझे अपनी बेग़म में मुमताज का अक्स नज़र आ रहा था. सोने से पहले मैंने उनकी चूत को इतना कस कर रगड़ा कि वे भी हैरान रह गयीं. अगली सुबह भी मुमताज का अक्स बार-बार मेरी नज़रों के सामने आ रहा था. मैं अपने दफ्तर पहुंचा तो मैं अपने काम पर कंसन्ट्रेट नहीं कर पाया. मुझे अपने कॉलेज के दिन याद आ गए.
जब मैं कॉलेज में नया-नया पहुंचा था तब मैं अपनी इंग्लिश की लेक्चरर पर इस कदर फ़िदा हो गया था कि मैं रात-दिन उनके सपने देखता रहता था. मुझे लगता था कि वे मुझे नहीं मिलीं तो मैं ट्रेन के आगे कूद कर अपनी जान दे दूंगा. सपनों में मैं न जाने कितनी बार उन्हें चोद चुका था. आज मेरी हालत फिर वैसी ही हो गई थी.
उस लेक्चरर की जगह अब मुमताज ने ले ली थी. फर्क यह था कि वो लेक्चरर मेरी पहुँच से दूर थी जबकि मुमताज मुझे हासिल हो सकती थी. हो सकता था कि वो इस वक़्त मेरा इंतजार कर रही हो. उसने साफ़ कहा था कि मैं कभी भी उससे मिलने जा सकता था. मैं यह तय नहीं कर पा रहा था कि मैं आज ही उससे मिलूँ या दो दिन और इंतजार करूं.
मेरा दिमाग कह रहा था कि दो दिन बाद मुस्तफा को मेरी हर बात माननी पड़ेगी. वो मजबूर हो कर मुमताज को मेरे हवाले करेगा. लेकिन मेरा दिल कह रहा था कि मुमताज तो आज ही मेरी आगोश में आने के लिए तैयार है. फिर मैं उसके लिए दो दिन क्यों तरसूं!
मैंने अपने दिल की बात मानने का फैसला किया. हिम्मत कर के मैं मुस्तफा के घर की तरफ रवाना हो गया. मैंने कार को उसके घर से थोड़ी दूर छोड़ा और पैदल ही घर तक पहुंचा. घंटी बजाने के बाद मैं बेसब्री से मुमताज से रूबरू होने का इंतजार करने लगा. दरवाजा खुलने में देर हुई तो मेरे मन में शक ने घर कर लिया.
मैं सोचने लगा कि मैंने यहाँ आ कर कोई गलती तो नहीं कर दी! दो मिनट के लम्बे इंतजार के बाद दरवाजा खुला. मुमताज मेरे सामने थी पर उसके चेहरे पर मुझे उलझन नज़र आ रही थी. मैंने थोड़ी शर्मिंदगी से कहा, “शायद मैं गलत वक़्त पर आ गया हूं. मैं चलता हूं.”
“नहीं, नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है. आप अन्दर आइये.” उसने पीछे हट कर मुझे अन्दर आने का रास्ता दिया.
“लेकिन तुम कुछ उलझन में दिख रही हो,” मैंने अन्दर आते हुए कहा.
“नहीं, उलझन कैसी?” उसने कहा. “आप बैठिये. मैं फ़ोन पर बात कर रही थी कि दरवाजे की घंटी बज गई. मैं बात ख़त्म कर के अभी आती हूँ.”
अब मैंने इत्मीनान की सांस ली. मेरे आने से मुमताज की फ़ोन पर हो रही बात में खलल पड़ गया था इसलिए वो परेशान दिख रही थी और मैं कुछ का कुछ सोचने लगा था.
मुमताज दो मिनट में वापस आ गई. न जाने यह मेरा भ्रम था या हकीकत पर इस बार वो पहले से ज्यादा दिलकश लग रही थी. उसके व्यवहार में भी अब गर्मजोशी आ गई थी. उसने पूछा, “आप चाय लेंगे या कॉफ़ी … या कुछ और?”
‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा. मैं ‘कुछ और’ लेने के लिए ही तो आया था पर थोडा तकल्लुफ दिखाना भी लाजमी था. मैंने कहा, “तुम्हे तकलीफ करने की जरूरत नहीं है. मैं तो सिर्फ तुम से मिलने के लिए आया हूं क्योंकि कल तुम्हारे साथ ज्यादा बात नहीं हो सकी थी.”
मुमताज ने कहा, “इसमें तकलीफ की क्या बात है! मैं तो वैसे भी चाय पीने वाली थी. लेकिन आप कुछ और लेना चाहें तो…”
फिर ‘कुछ और’ सुन कर तो मेरा मन उसे दबोचने पर आमादा हो गया. पर मैंने अपने आप पर काबू करते हुए कहा, “तुम्हारे हाथ की चाय पीने का मौका मैं कैसे छोड़ सकता हूँ!”
“मैं अभी आती हूं,” उसने कहा.
मुमताज किचन में चली गई तो मेरे दिल में नापाक खयाल आने लगे. मैं सोच रहा था कि जो हाथ चाय बना रहे हैं वो मेरे लंड के गिर्द होते तो कैसा होता! मेरे होंठ चाय के प्याले के बजाय मुमताज के होंठों पर हों तो कैसा रहेगा! और वो दुबारा ‘कुछ और’ की पेशकश करे तो क्या मैं उसे बता दूँ कि मेरे लिए ‘कुछ और’ का मतलब उसकी चूत है?
फिर मैंने सोचा कि मैं कहीं खयाली पुलाव तो नहीं पका रहा हूं! ऐसा न हो कि मैं जो सोच रहा हूं वो हो ही नहीं और मुझे खाली हाथ लौटना पड़े. कुछ मिनट बाद मुमताज चाय की ट्रे ले कर आई. ट्रे मेज पर रख कर उसने प्यालों में चाय डाली. जब वो मुझे प्याला देने के लिए आगे झुकी तब मुझे पता चला कि वो कपडे बदल चुकी थी.
उसकी कमीज़ के गले से न सिर्फ मुझे उसके दिलकश मम्मे दिख रहे थे बल्कि इस बार तो मुझे उसके निपल की भी झलक दिख रही थी. मम्मे बिलकुल अर्ध-गोलाकार और दूधिया रंग के थे. इस रोमांचक दृश्य ने मेरे दिल की धड़कने बढ़ा दीं. मेरा मन कर रहा था कि मैं उसके मम्मों को कपड़ों की क़ैद से आजाद कर दूं. उधर मेरा लंड भी कपड़ों से बाहर निकलने के लिए मचल रहा था.
मेरी नज़रें पता नहीं कब तक उन दिलफरेब मम्मों पर अटकी रहीं. एक सुरीली आवाज ने मुझे खयालों कि दुनिया से बाहर निकला, “वकार साहब, चाय लीजिये ना!” मैंने चौंक कर मुमताज के चेहरे की तरफ देखा. वो देख चुकी थी कि मेरी नज़रें कहाँ अटकी हुई थीं. जब हमारी नज़रें मिली तो उसके रुखसार शर्म से लाल हो गए.
मैंने प्याला लेने के लिए हाथ बढाया तो कल की तरह हमारे हाथ टकराए और मेरा शरीर झनझना उठा. मैंने किसी तरह अपने जज्बात पर काबू पाया और प्याला ले लिया. मुमताज भी अपना प्याला ले कर मेरे पास बैठ गई. उसके जिस्म से उठती महक मुझे मदहोश कर रही थी. यह पहला मौका था जब मैं उसके साथ अकेला था.
मैं थोडा घबरा भी रहा था कि मैं उत्तेजनावश कुछ ऐसा न कर बैठूं जिससे वो नाराज़ हो जाए. मेरे हाथ पसीने से इस कदर गीले थे कि मुझे प्याला थामने में मुश्किल हो रही थी. मेरी धडकनों की आवाज तो मुमताज के कानों तक पहुँच रही होगी. मुमताज ने शायद मेरी दिमागी हालत भांप ली थी.
वह बोली, “आप कुछ बोल नहीं रहे हैं. शायद मेरे साथ बोर हो रहे हैं!”
मैंने अपने आप को संभाल कर कहा, “बोर और तुम्हारे साथ? मैं तो खुद को खुशकिस्मत समझ रहा हूँ कि मैं तुम्हारे जैसी नफीस और हसीन खातून के पास बैठा हूं.”
“मुझे यकीन है कि आप हर खातून को यही कहते होंगे,” मुमताज ने शरारत से कहा.
“तो मैं तुम्हे चापलूस लगता हूं,” मैंने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा. “सच तो यह है कि तुम्हारे जैसी खूबसूरत और जहीन औरत मैंने आज तक नहीं देखी. और अब देख रहा हूं तो यह क़ुबूल करने में क्या हर्ज़ है!” मुझे फिर लग रहा था कि औरत को पटाने के लिए चापलूसी एक बेहद कारगर हथियार है और मुझे इसका भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए.
‘अच्छा? तो बताइये कि मैं आपको जहीन कैसे लगती हूँ?” मुमताज ने पूछा.
यह सवाल वाकई मुनासिब था. इसका जवाब देना आसान नहीं था पर औरत की तारीफ में कंजूसी करना भी मुनासिब नहीं है. इसलिए मैंने कहा, “जैसे तुमने अपने घर को संवार रखा है और जैसे तुम अपने आप को संवार कर रखती हो, यह तो कोई जहीन औरत ही कर सकती है.”
“अच्छा जी, तो मैं आपको संवरी हुई दिख रही हूँ?” मुमताज के अल्फ़ाज़ से लग रहा था कि वो अपनी और तारीफ सुनने के मूड में थी.
“क्यों नहीं? तुम्हे मुस्तफा ने नहीं बताया कि तुम्हारा लिबास का चुनाव कितना उम्दा है? उसे पहनने का सलीका कितना नफीस है? तुम्हारे बाल और तुम्हारे नख-शिख हमेशा संवरे रहते हैं! तुम्हे देख कर तो मुझे मुस्तफा पर रश्क होता है!” मैंने मुमताज की तारीफ करने के साथ-साथ मुस्तफा को भी लपेटे में ले लिया था. मुझे मालूम था कि शादी के इतने अरसे बाद कोई शौहर अपनी बीवी की ऐसे तारीफ नहीं करता है.
मुमताज थोड़े रंज से बोली, “उनके पास कहाँ वक़्त है ये सब देखने का? वे तो हमेशा अपने कारोबार में मसरूफ रहते हैं.”
इसका मतलब था कि मेरे कहने का असर हुआ था. मुमताज अपने शौहर की जानिब अपनी नाराज़गी को छुपा नहीं पाई थी. मुझे लगा कि मुझे अपना रद्दे-अमल जारी रखना चाहिये. साथ ही मुझे लगा कि मुमताज ने कारोबार का ज़िक्र कर के क़र्ज़ वाले मसले की तरफ भी इशारा कर दिया है.
“मुझे तो लगता है कि मुस्तफा न तो अपने कारोबार को ठीक तरह संभल पा रहा है और न अपनी बीवी को,” अब मैंने मुद्दे पर आने का फैसला कर लिया था. “और वो कारोबार में ऐसा मसरूफ भी नहीं है कि अपनी बीवी पर ध्यान न दे पाए. उसकी जगह मैं होता तो …” मैंने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
“आपको उनके कारोबार के बारे में क्या मालूम?” मुमताज ने थोड़ी हैरत दिखाते हुए पूछा.
अब मुझे शक हुआ कि मुस्तफा ने अपनी कारोबारी मुश्किलात और अपने क़र्ज़ के बारे में मुमताज को बताया था या नहीं! मैं तो सोच रहा था कि मुझे उसका खुला निमंत्रण क़र्ज़ के कारण ही मिला था. यह भी मुमकिन था कि वो जानबूझ कर अनजान बन रही हो. अब मुझे क्या करना चाहिये? मैंने तय किया कि कारण कुछ भी हो, मुझे आज मौका मिला है तो मुझे पीछे नहीं हटना चाहिए.
मुमताज ने अपनी बात को आगे बढाया, “और उनकी जगह आप होते तो क्या करते?”
“पहली बात तो यह है कि मैंने अपने कारोबार के लिए जितने कारिंदे रख रखे हैं, उनसे मैं पूरा काम करवाता हूँ. मैं उन्हें जरूरी हिदायतें दे देता हूं और फिर कारोबार संभालने की जिम्मेदारी उनकी होती है. इस तरह से मेरा काफी वक़्त बच जाता है. वक़्त बचने के कारण ही मैं यहाँ आ पाया हूँ. और हां, अगर मुस्तफा की जगह मैं होता तो इस बचे हुए वक़्त का इस्तेमाल मैं अपनी बेग़म के हुस्न की इबादत करने में करता.”
अपनी बात ख़त्म होते ही मैंने मुमताज को अपनी बांह के घेरे में लिया और उसे अपनी तरफ खींच लिया.
“वकार साहब, छोडिये मुझे.” मुमताज ने कहा. उसकी आवाज से अचरज तो झलक रहा था लेकिन गुस्सा या नाराज़गी नहीं. उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश भी नहीं की. मुझे लगा कि उसका विरोध सिर्फ दिखाने के लिए है. मैंने उसे मजबूती से अपने शरीर से सटा लिया. उसके गुदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे रोमांचित कर रहा था. उसके बदन से निकलने वाली खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी.
मुमताज ने रस्मी तरीके से कहा, “ये क्या कर रहे हैं आप?”
“मैं अपनी बेग़म के हुस्न की इबादत कर रहा हूं,” मैंने चापलूसी से कहा. “तुम मुझ से इबादत करने का हक़ नहीं छीन सकती.”
“लेकिन यह क्या तरीका है इबादत करने का?” मुमताज ने कहा. “और मैं आपकी नहीं, आपके दोस्त की बेग़म हूँ.”
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मुमताज के अल्फ़ाज़ जो भी हों, उसकी आवाज में कमजोरी आ गई थी. उसने मेरे से दूर होने की कोई कोशिश नहीं की थी और उसका बदन ढीला पड़ चुका था. मुझे लगा कि उसका विरोध अब नाम मात्र का रह गया है.
“मैं तो तुम्हे दिखा रहा हूं कि मैं तुम्हारा शौहर होता तो क्या करता,” मैंने उसे और पास खींच कर कहा. “इसके लिए मुझे कुछ देर के लिए तुम्हे अपनी बेग़म समझना होगा. और आज मैं अपनी बेग़म की ख़िदमत पैरों से नहीं बल्कि अपने हाथों से करूंगा.”
मेरा एक हाथ मुमताज की कमर के गिर्द था और दूसरे हाथ से मैं उसके कंधे को सहला रहा था. पैरों की बात छेड़ कर मैंने उसे पिछली रात की याद दिला दी थी. और पिछली रात जो हुआ था वो तो उसके शौहर की मौजूदगी में हुआ था. जब उसने अपने शौहर के होते हुए कोई विरोध नहीं किया तो उसका आज का विरोध तो बेमानी था. लेकिन वो इतनी जल्दी हथियार डालने को तैयार नहीं थी. उसने कहा, “वकार साहब, कल जो हुआ वो सिर्फ एक बेगुनाह छेड़छाड़ थी.”
“वो बेगुनाह थी तो इसमें कौन सा गुनाह है?” मेरा हाथ मुमताज के कंधे से फिसल कर उसके नंगे बाजू पर आ चुका था. “वो बेगुनाह छेड़छाड़ थी तो ये बेगुनाह इबादत है! बस तुम मुझे थोड़ी और इबादत करने का मौका दे दो.”
“कल की बात अलग थी,” मुमताज ने जवाब दिया. “कल मेरे शौहर साथ में थे.”
“इसीलिए तो तुमने मुझे कहा था कि मैं कभी भी दिन में यहाँ आ सकता हूं,” मैंने सोचा कि अब शर्म-ओ-लिहाज छोड़ने का वक़्त आ गया है. “तुम्हे पता था कि दिन में तुम्हारे शौहर यहाँ नहीं होंगे. क्या तुम मुझ से अकेले में नहीं मिलना चाहती थीं?”
अब मुमताज के लिए जवाब देना मुश्किल था. फिर भी उसने कोशिश की, “हां, लेकिन मेरा मकसद …”
मैंने उसकी बात काटते हुए कहा, “तुम्हारा और मेरा मकसद एक ही है. तुम्हारा शौहर तुम्हारी अहमियत समझे या न समझे पर मैं समझता हूं. तुम्हारा हुस्न बेशक इबादत के काबिल है. तुमने मुझे अकेले में यहाँ आने के लिए कह कर बहुत हिम्मत की है. अब थोड़ी हिम्मत और करो. मुझे अपनी इबादत करने का मौका दे दो.”
मुझे लगा कि मैंने बहुत सधे हुए अल्फाज़ में अपनी बात कही थी. उसका असर भी देखने को मिला. मुमताज न तो कल रात जो हुआ उससे इंकार कर सकती थी और न ही इस बात से मुकर सकती थी कि उसने मुझे दिन में आने के लिए कहा था. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उसने धीमी आवाज में कहा, “वकार साहब, आप सचमुच ऐसा समझते हैं? कहीं आप मुझे बना तो नहीं रहे हैं?”
मेरी नज़र उसके मम्मों पर थी जो उसकी कमीज़ के महीन कपडे से झाँक रहे थे. मुमताज ने जब देखा कि मेरी नज़र कहाँ थी तो उसने शर्मा कर अपनी गर्दन झुका ली. मैं समझ गया कि उसने मेरे सामने समर्पण कर दिया है. मैंने कहा, “मैं क्या समझता हूं यह मैं बोल कर नहीं बल्कि कर के दिखाऊंगा.”
मैंने मुमताज का एक हाथ अपने हाथ में लिया और उसे उठा कर अपने होंठ उस पर रख दिये. जैसे ही मेरे होंठों ने उसके हाथ को छुआ, वो सिहर उठी. उसका जिस्म मेरे जिस्म से सट गया. उसके मम्मे मेरे सीने से लग गए. मैं उसके नर्म हाथ को चूमने लगा. मेरा मुंह रफ्ता-रफ्ता उसकी बांह और कंधे पर फिसलते हुए उसकी सुराहीदार गर्दन पर पहुँच गया.
मेरी जीभ उसकी गर्दन पर फिसल रही थी तो मेरा हाथ उसकी कमर पर. मुझे अपनी खुशकिस्मती पर यकीन नहीं हो रहा था. जिस मुमताज को हासिल करने के सपने मैं सालों से देख रहा था वो आज मेरे हाथों में कठपुतली बनी हुई थी. मेरे होंठ उसके गालों पर पहुँच गए. उसके नर्म और रेशमी गालों की लज्जत नाकाबिले-बयां थी.
मेरे होंठ उसके एक गाल का जायजा ले कर उसके गले के रास्ते दुसरे गाल पर पहुँच गए. एक गाल से दूसरे गाल का सफ़र चलता रहा और साथ ही मेरा हाथ उसकी कमर से उसके सीने पर पहुँच गया. जैसे ही मेरी मुट्ठी मुमताज के मम्मे पर भिंची, उसका जिस्म तड़प उठा. उसकी आँखें बरबस मेरी आँखों से मिलीं.
उसका चेहरा मेरे चेहरे के सामने था. मैने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिये. मैने अपने होंठों से उसके होंठ खोलते हुए उसका निचला होंठ अपने होंठों के बीच दबाया और उसका रस पीने लगा. अब मुमताज की शर्म जा चुकी थी. उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकरा रही थीं. उसने अपना मुंह खोल कर अपने होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए.
जैसे ही मेरी जीभ उसके मुंह में पहुंची, उसने उसका स्वागत अपनी जीभ से किया. जीभ से जीभ का मिलन जितना रोमांचकारी मेरे लिए था उतना ही मुमताज के लिए भी था. वो पूरे जोश से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी. मैं भी उसकी जीभ का रसपान करते हुए उसकी चून्ची को मसलने लगा।
मेरा हाथ मुमताज के मम्मे को छोड़ कर उसके मांसल चूतड़ पर पहुँच गया. कुछ देर चूतड़ को सहलाने और दबाने के बाद मेरा हाथ उसकी सलवार के नाड़े पर पहुंचा तो वो थोड़ा कसमसा कर बोली, “नहीं, वकार साहब.”
मैं जैसे ओंधे मुंह ज़मीन पर गिरा. मंजिल मेरी पहुँच में आने के बाद मुमताज मुझे रोक रही थी. मैंने इल्तजा भरी निगाहों से उसकी तरफ देखा. उसने अपनी बात पूरी की, “दरवाजा बंद नहीं है!”
उसकी बात सुन कर मेरी नज़र दरवाजे पर गई. डोर क्लोजर से किवाड़ बंद तो हो गया था पर चिटकनी नहीं लगी हुई थी. मुझे अपनी बेवकूफी पर गुस्सा आया कि किवाड़ को धकेल कर कोई भी अन्दर आ सकता था. मैं चिटकनी लगाने के लिए उठा पर मुमताज मेरे से पहले दरवाजे तक पहुँच गई.
जैसे ही वो चिटकनी लगा कर पलटी, मैंने उसे अपनी बाँहों में भींच लिया. मैने उसे दरवाजे से सटा कर उसकी दोनों चूचियों पर अपने हाथ रख दिये. मेरे होंठ एक बार फिर उसके होंठों पर काबिज हो गए. साथ ही मैं उसकी दोनों चूचियों को मसलने लगा. अब बिला-शक मुमताज पूरी तरह मेरे काबू में थी और मैं जान गया था कि मेरी बरसों की मुराद पूरी होने वाली है.
मैं कभी उसकी चून्चियों को कमीज़ के ऊपर से मसलता था तो कभी अपनी अंगुलियों से उसके निप्पल को मसल देता था. मुमताज चुपचाप आँखें मूंदे अपनी चून्चियां दबवा रही थी. उसका लरजता जिस्म और उसकी तेज़ होती सांसे उसकी उत्तेजना की गवाही दे रही थीं. उसकी जीभ फिर मेरी जीभ से टकरा रही थी. अब अगली पायदान पर चढ़ने का वक़्त आ गया था.
मैं अपना हाथ मुमताज की कमीज़ के ज़िप पर ले गया. वो कुछ बोलती उससे पहले मैंने ज़िप को पूरा नीचे खिसका दिया. ज़िप खुलते ही उसने अपना मुंह मेरे मुंह से अलग किया. उसने मुझे सवालिया नज़रों से देखा. उसकी नज़रों में शर्म भी थी. मैं जानता था कि किसी भी औरत के लिए यह लम्हा बहुत मुश्किल होता है, मेरा मतलब है एक नए मर्द के सामने पहली बार अपने जिस्म को बेपर्दा करना.
मैंने मुमताज को बहुत प्यार से कहा, “मुमताज, प्लीज़ मुझे इस नज़ारे से महरूम मत करो. मैंने इस लम्हे का सालों इंतजार किया है. तुम चाहो तो अपनी आँखें बंद कर लो.”
मुमताज ने मुझे निराश नहीं किया. उसने मौन स्वीकृति में अपनी आंखें बंद कर लीं. मैंने धीरे से उसके दुपट्टे को उसके जिस्म से अलग किया. मैंने उसकी कमीज़ को नीचे से ऊपर उठाया. जब वह उसके सीने तक पहुँच गई तो उसने अपनी बाँहें ऊपर उठा कर कमीज़ उतारने में मेरा सहयोग किया.
अब उसके सीने पर ब्रा के अलावा कुछ नहीं था. काले रंग के महीन कपडे की ब्रा उसके मम्मों की खूबसूरती छुपाने में नाकामयाब साबित हो रही थी. मैंने उसे पीछे घुमा कर उसकी ब्रा के हुक खोले. जब मैंने ब्रा को उसके जिस्म से हटाया तो मैं उसकी नंगी सुडौल पीठ के हुस्न में खो गया. मैं बेसाख्ता अपने हाथ उसकी पीठ पर फिराने लगा.
मुमताज ने अपना जिस्म किवाड़ से सटा दिया. मुझे लगा कि मैं उसके बाकी कपडे भी पीछे से उतारूं तो उसे कम झिझक होगी. मैंने अपने हाथ आगे ले जा कर उसकी सलवार का नाड़ा खोल दिया. इस बार उसने कोई एतराज़ नहीं किया. जब मैंने सलवार नीचे खिसकाई तो मुमताज ने अपने पैर उठा कर सलवार उतारने में मेरी मदद की.
मेरी नज़र उसकी चड्डी से झांकते मांसल कसे हुए नितम्बों पर अटक गई. मैंने हौले-हौले उसकी चड्डी को नीचे खिसकाया. जैसे ही उसके नंगे नितम्ब नुमाया हुए, मैं बे-अख्तियार हो कर उन्हें चूमने लगा. चड्डी को उसके जिस्म से अलग कर के मैं उसकी नंगी रानों को सहलाने लगा.
मेरी जीभ उसके लज़ीज़ चूतड़ों के एक-एक इंच का जायका ले रही थी. चूतड़ों को चाटते-चाटते मैंने अपने कपडे भी उतार दिये. मैं खड़ा हो गया. मुमताज की पीठ मेरी तरफ थी. मैं पीछे से उसके नंगे जिस्म का दिलकश नज़ारा देख रहा था. उसे पता नहीं था कि उसकी तरह मैं भी मादरजात नंगा था.
मैंने उससे चिपक कर अपने हाथ उसकी चून्चियों पर रख दिए. मेरा बेकाबू लंड उसके चूतड़ों के बीच की खाई में धंस गया. शायद लंड के स्पर्श से उसे मेरे नंगेपन का एहसास हुआ. वह उत्तेजना से कांप उठी. मैं भी उसकी नंगी चून्चियों के स्पर्श से पागल सा हो गया था. मैंने अपना मुंह उसके गाल पर रख दिया और उसे मज़े से चूसने लगा.
यह मन्ज़र मेरी कल्पना से भी ज्यादा दिलकश था – मुमताज का नंगा जिस्म मेरे सामने, उसकी नंगी चून्चियां मेरी मुट्ठियों में और मेरे होंठ उसके लज़ीज़ रुखसार पर. मेरा मुंह उसके गाल से उसके कान पर पहुँच गया और मैं अपनी जीभ से उसके कान को सहलाने लगा.
साथ ही मेरा जिस्म अपने आप आगे-पीछे होने लगा. मेरा लंड उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से से रगड़ने लगा. मेरी हरकतों से मुमताज की गर्मी बढ़ने लगी. उसकी सिसकारियां निकलने लगीं और उसके चूतड़ लरजने लगे. मुमताज पर गर्मी चढ़ते देख कर मेरी हिम्मत बढ़ गई. अब तक मैंने उसकी चून्चियों का नंगापन सिर्फ अपने हाथों से महसूस किया था. अब मैं उनका नज़ारा पाने को बेक़रार हो गया.
मैं उसकी चून्चियों को दबाते हुए बोला, “मुमताज, आज तक मैंने इन्हें सिर्फ सपनों में देखा है. आज तुम मुझे इनका दीदार हक़ीक़त में करवा दो तो मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा.” यह कह कर मैंने उसे अपनी तरफ घुमा दिया. मुमताज ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा, “ये क्या कर रहे हैं, वकार साहब?” शर्म से उसकी गर्दन झुक गई.
“प्लीज़ देखने दो, मुमताज.” मैंने उसके हाथ हटाते हुए कहा. मुमताज की हालत तो ऐसी थी जैसे वो शर्म से जमीन में गड़ जाना चाहती हो.
मैंने कहा, “इतना हसीन नज़ारा शायद फिर कभी मुझे देखने को नहीं मिलेगा. … ओह! इतने प्यारे मम्मे! इन्हें देख कर तो मैं अपने होश खो बैठा हूँ!”
अब तारीफ का औरत पर असर न हो, यह तो नामुमकिन है. मुमताज भी अपने मम्मों की तारीफ सुन कर यकीनन खुश हुई. वह शर्माते हुए बोली, “यह क्या कह रहे हैं आप! आपको तो झूठी तारीफ करने की आदत है.”
“झूठी तारीफ करने वाले और होंगे,” मैंने हैरत का दिखावा करते हुए कहा (मेरा इशारा मुस्तफा की तरफ था जो आम शौहरों की तरह अपनी बीवी की चून्चियों की तारीफ अब शायद ही कभी करता होगा). मैंने आगे कहा, “तुम्हारी कसम, ऐसे हसीन मम्मे मैंने आज तक नहीं देखे. अगर मेरी बात झूठ हो तो अल्लाह मुझे अभी अँधा कर दे!”
यह सुनते ही मुमताज ने कहा, “अंधे हों आपके दुश्मन! मेरा मतलब कुछ और था.”
“तुम्हारा मतलब है कि मुस्तफा इनकी झूठी तारीफ करता है,” मैंने एक चूंची हाथ में ले कर कहा.
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मुमताज ने शर्मा कर मेरे हाथ की तरफ देखा जो उसकी एक चूंची पर काबिज़ हो चुका था. उसने कहा, “उनके पास कहाँ वक़्त है इन्हें देखने के लिए!” उसकी आवाज में थोड़ी मायूसी थी पर वो मेरी बातें सुन कर थोड़ी खुश भी लग रही थी. मैंने सोचा कि अब आगे बढ़ने का वक़्त आ गया है.
मैं मुमताज को अपनी एक बांह के घेरे में ले कर दीवान की तरफ बढ़ा. उसने कोई एतराज़ नहीं किया. लगता था कि आगे जो होने वाला था उसके लिए वो दिमागी और जिस्मानी तौर पर तैयार हो चुकी थी. मैंने उसे दीवान पर लिटाया और खुद भी उसके पास लेट गया. मैंने उसकी तरफ करवट ले कर उसे अपनी तरफ घुमाया.
हमारे चेहरे एक-दूसरे के सामने थे. वो पहली बार मेरे जिस्म को पूरा नंगा देख रही थी. उसने शरमा कर अपना चेहरा मेरी छाती में छुपा लिया. हमारे जिस्म एक-दूसरे से चिपक गए थे. मैंने उसके चेहरे को उठा कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए. जब चुम्बन का आगाज़ हुआ तो मुमताज पीछे नहीं रही. उसने शर्म त्याग कर चुम्बन में मेरा पूरा साथ दिया.
एक बार फिर जीभ से जीभ मिली और हम दोनों एक नशीले एहसास में खो गए. मुझे पहली बार पता चला कि होंठों से होंठों और जीभ से जीभ का मिलन इतना मज़ेदार हो सकता है. मज़ा शायद मुमताज को भी आ रहा था. तभी वो पूरी तन्मयता से मेरी जीभ से अपनी जीभ लड़ा रही थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मेरा हाथ फिर से मुमताज के जिस्म का जायजा लेने में लगा था. इस बार उसका हाथ भी निष्क्रिय नहीं था. वो भी मेरे जिस्म को टटोल रही थी और सहला रही थी. हमारा चुम्बन ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. न मैं पीछे हटने को तैयार था और न मुमताज. हमारी जीभ एक-दूसरे के मुंह के हर कोने को टटोल रही थी.
कुछ देर बाद मुमताज ने सांस लेने के लिए अपने मुंह को मेरे मुंह से अलग किया तो मेरी नज़र उसके सीने पर गई. ओह, क्या दिलफरेब मम्मे थे! गोरे-गोरे, एकदम अर्ध-गोलाकार और गर्व से उठे हुए! साइज़ में नारंगियों के बराबर और वैसे ही रसीले भी! उनके मध्य में उत्तेजना से तने हुए निप्पल! मेरी नज़र उन पर अटक सी गई.
और फिर मेरा मुंह अपने आप एक मम्मे पर पहुँच गया. मेरी जीभ उस पर फिसलने लगी. उसका सफर मम्मे की बाहरी सीमा से शुरू होता था और निप्पल से थोडा पहले ख़त्म हो जाता था. एक मम्मे को नापने के बाद मेरा मुंह दूसरे मम्मे पर पहुँच गया, फिर वही खेल खेलने.
शुरू में तो लगा कि मुमताज भी इस खेल का मज़ा ले रही थी पर फिर वो बेचैन दिखने लगी. उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपना निप्पल मेरे मुंह में घुसा दिया. मैंने अपनी जीभ से निप्पल को सहलाना शुरू किया तो उसका शरीर रोमांच से लहराने लगा. मैंने उसके दूसरे मम्मे को अपने हाथ में ले लिया और उसे मसलने और दबाने लगा.
इस दोहरे हमले से मुमताज पगला सी गयी. उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी गर्मी बढ़ती देख कर मैं भी जोश में आ गया. मेरे मुंह और हाथ का दबाव बढ़ गया. मैं उसकी चूंची को चूसने के साथ-साथ उसके निप्पल को अपने दांतों के बीच दबाने लगा. मेरी मुट्ठी उसकी दूसरी चूंची पर भिंची हुई थी.
दोनों चून्चियों का जी भर कर मज़ा लेने के बाद मैंने नीचे की ज़ानिब रुख किया. मेरा मुंह उसके सुडौल और सपाट पेट और उसके मध्य में स्थित नाभि की सैर करने लगा. मुमताज अब बुरी तरह मचलने और फुदकने लगी थी. मेरा मुंह उसकी पुष्ट और दिलकश जाँघों पर पहुँच गया.
मैं उसकी पूरी जाँघों पर अपनी जीभ फिराने लगा, पहले एक जांघ पर और फिर दूसरी पर. उसकी जाँघों का मनमोहक संधि-स्थल मेरे मुंह को निमंत्रण देता प्रतीत हो रहा था मानो कह रहा हो कि आओ, मेरा भी स्वाद चखो. जाँघों के मध्य एक पतली सी दरार थी, कोई तीन इंच लम्बी और बालरहित. मेरी जीभ जाँघों के मध्य पहुंची तो मुमताज ने उन्हें जोर से भींच लिया.
मैंने यत्न कर के उसकी जाँघों को चौड़ा किया और अपनी जीभ उसके तने हुए क्लाइटोरिस पर रख दी. जब मेरी जीभ ने उसे सहलाना और चुभलाना शुरू किया तो मुमताज का शरीर बेतहाशा फुदकने लगा. उसने मेरे सर को पकड़ कर जबरदस्ती ऊपर उठाया और हाँफते हुए बोली, “ये क्या कर रहे हैं, वकार साहब? प्लीज़, ऐसा मत कीजिये.”
मैंने मुमताज को ताज्जुब से देखा. वो उठने की कोशिश कर रही थी. मैंने उसे कहा, “मुमताज, मेरी जान! मैं तो तुम्हे खुश करने की कोशिश कर रहा हूँ. मैंने सोचा था कि तुम्हे ये अच्छा लगेगा.”
“अच्छा तो लग रहा है,” मुमताज ने जवाब में कहा. “पर ऐसा भी कोई करता है!’
अब मुझे एहसास हुआ कि मुस्तफा शायद ऐसा नहीं करता होगा इसलिए मुमताज को यह अजीब लग रहा था. कुछ भी हो, उसने यह तो मान लिया था कि उसे यह अच्छा लग रहा था. मैंने सोचा कि मैं उसे चुदाई का पूरा मज़ा दे दूं तो यह चिड़िया लम्बे अरसे तक मेरे जाल में फंसी रह सकती है. मैंने उसे प्यार से कहा, “मैं तो ऐसा करता हूं और करूंगा. तुम बस आराम से लेट कर इसका लुत्फ़ उठाओ.”
मैंने मुमताज को फिर से लिटाया और इस बार मैंने उसकी चूत को अपने निशाने पर लिया. मैं उसकी रसीली चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा. मुमताज ने अब अपने आप को पूरी तरह मेरे हवाले कर दिया था. एक कहावत है कि अगर बलात्कार अवश्यम्भावी है तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए.
शायद मुमताज ने मान लिया था कि अगर चूत-चुम्बन अवश्यम्भावी है तो लेट कर उसका मज़ा लेना चाहिए. मैं चाटने के साथ-साथ अपनी जीभ उसकी चूत के अन्दर बाहर करने लगा. अपनी चूत में जीभ घुसते ही मुमताज बेसाख्ता फुदकने लगी. लगता था कि अब वो खुल कर मज़ा ले रही थी.
वो मेरे सर को अपनी चूत पर दबा कर अपनी कमर तेज़ी से ऊपर-नीचे करने लगी. अचानक उसके मुंह से एक चीख निकली और उसका बदन कांप उठा. उसकी सिसकारियों और उसके शरीर के कम्पन से जाहिर था कि वो झड़ रही थी. मुझे ख़ुशी हुई कि मैं मुमताज को चोदने से पहले ही उसे ओर्गज्म पर पहुँचाने में कामयाब हो गया था. अब चिड़िया पर मेरे जाल की पकड़ मजबूत हो गई थी.
जब मुमताज अपने ओर्गज्म से उबरी तो उसने प्यार से मुझे देखा. उसके चेहरे पर शर्म की लाली थी पर शर्म से ज्यादा उस पर ख़ुशी नज़र आ रही थी. उसने मुझे ऊपर की तरफ खींचा. ऊपर बढ़ते हुए मैंने फिर उसके शरीर को चूमना और चाटना शुरू कर दिया, पहले उसका पेडू, फिर नाभि और फिर चून्चियां.
एक बार फिर उसकी एक चूंची मेरे मुंह में थी और दूसरी मेरी मुट्ठी में. मुमताज फिर मचल रही थी और तड़प रही थी. उसकी सांसें तेज़ हो गई थीं और चूंची के नीचे से मैं उसके दिल की धडकनों को महसूस कर रहा था. मैं अपना एक हाथ नीचे ले गया और उससे टटोल कर मैंने उसकी चूत को ढूँढा. चूत उत्तेजना से भीग चुकी थी.
मैंने अपनी ऊँगली उसमें घुसा दी. ऊँगली अन्दर घुसते ही मुमताज सिसक उठी. मैंने उसकी चूंची से अपना मुंह उठाया और उसके चेहरे का रुख किया. एक बार फिर मैं उसके गालों को चूसने और चाटने लगा. फिर मेरा मुंह उसके कान पर पहुंचा. मैं अपनी जीभ से उसके कान को अन्दर से गुदगुदाने करने लगा. गुदगुदी से मुमताज कुलबुलाने लगी.
मैंने फिर से अपना मुंह उसके होंठों से लगा दिया और अपनी जीभ उसके मुंह में घुसा दी. उसने भी खुल कर जवाब दिया और हमारी जीभें एक फिर मुक़ाबिल हो गईं. उनमे एक-दूसरी को पछाड़ने की होड़ लग गई. उधर मेरी ऊँगली अपने काम में जुटी हुई थी. मुमताज का जिस्म बुरी तरह मचल रहा था. जाहिर था कि उसकी जांघों के बीच आग लग चुकी थी. मैं अभी उसे और तडपाना चाहता था मगर उसने बड़े इसरार से कहा, “बस वकार साहब, उंगली से नहीं! अब ऊपर आ जाइए.”
जब मुमताज ने मुझे अपने ऊपर आने की दावत दी तो मैं अपने आप को नहीं रोक पाया. आखिर इसी लम्हे का तो मैं बरसों से इंतजार कर रहा था. मेरा लंड भी अब उत्तेजना से बेकाबू हो चला था. मैंने मुमताज के ऊपर अपनी पोजीशन ली. उसने भी अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मैं अपने लंड से उसकी चूत को ढूँढने लगा.
अपने तमाम तजुर्बे के बावजूद मैं अपना निशाना ढूंढने में नाकामयाब रहा. मुमताज मेरी मुश्किल समझ गई. या शायद वो चुदने के लिए बेताब थी. उसने मेरे लंड को अपनी उंगलियों के बीच थाम कर उसे सही जगह पर रखा और मुझे एक मौन इशारा किया. मैंने अपने चूतडों को आगे धकेला तो चूत के लब खिंच कर फैल गए.
उनमे कहाँ कुव्वत थी एक हठीले लंड को रोकने की. सुपाड़ा चूत में प्रवेश पा गया. मैंने एक सधा हुआ धक्का लगाया तो एक चौथाई लंड चूत में दाखिल हो गया. मुमताज हल्के-हल्के कराहती मुझे और गहराई में उतरने की दावत दे रही थी. मैं लंड को थोड़ा बाहर खींचता और फिर उसे थोड़ा और अंदर ठेल देता.
आहिस्ता आहिस्ता लंड अपना रास्ता बनाता गया. मुमताज भी पूरा सहयोग कर रही थी और जल्द ही उसकी चूत ने मेरे लंड को जड़ तक अपने अंदर जज्ब कर लिया. उसकी चूत मेरी बेग़म जैसी चुस्त नहीं थी पर थी बड़ी लज्ज़तदार, अन्दर से मखमल जैसी मुलायम. मुझे इल्म था कि मर्दों को हर नई चूत लज्ज़तदार लगती है और जब चूत की मालकिन मुमताज जैसी हसीन औरत हो तो लज्जत का कहना ही क्या!
मैंने उसकी तारीफ करने में कंजूसी नहीं की, “कसम से मुमताज, ऐसी मस्त चूत आज पहली बार मिली है!”
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मुमताज ने शर्मा कर अपनी आँखें बंद कर लीं. मैं उसकी चूत की गिरफ्त का लुत्फ़ लेते हुए नीचे झुक कर उसके कानों, गले और कंधे को चूमने लगा. मेरा हाथ उसके मम्मे को सहला रहा था और उसके निप्पल को मसल रहा था. मैं किसी तरह अपनी उत्तेजना पर काबू पाना चाहता था ताकि मैं जल्दी न झड़ जाऊं.
जो नायाब मौका मुझे आज मिला था मैं उसे लम्बे से लम्बा खींचना चाहता था. मैने अपनी कोहनियों को मुमताज की बगलों के नीचे जमाया और अपने मस्ताये हुए लंड से हलके-हलके धक्के देने लगा. मुमताज की आँखें बंद थीं पर वो खुश दिख रही थी. शायद वो भी चुदाई का लुत्फ़ ले रही थी. मैं भी उसे चोदने का पूरा मज़ा ले रहा था.
जब मेरी उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती, मैं अपने धक्के रोक कर मुमताज के गालों और होंठों को चूमने लगता. इससे उसका मज़ा बरकरार रहता और मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा लेता. जब मैं मुमताज की चूत के कसाव का अभ्यस्त हो गया तो मैंने अपने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी.
मैं अब लंड को लगभग पूरा निकाल कर अन्दर पेल रहा था. ताक़त के साथ-साथ मेरे धक्कों की रफ़्तार भी बढ़ रही थी. मुमताज ने मुझे कस कर पकड़ लिया था और वो भी नीचे से धक्के लगा रही थी. जल्दी ही मेरे अंदर फुलझड़ियाँ सी छूटने लगीं. मेरे गले से आनंद की सिसकारियां निकल रही थीं, ‘आऽऽऽऽह…! ओऽऽऽऽह…! ऊऽऽऽऽह…!’
सिसकने वाला मैं अकेला नहीं था. मेरे साथ मुमताज भी सिसक रही थी. … उसे लुत्फ़-अन्दोज़ पा कर मेरा हमला तेज़ हो गया – फचाक, धचाक, फचाक – मेरा लंड उसकी चूत को तहस-नहस करने पर आमादा था! वो चूत के अन्दर गहराई तक मार कर रहा था. ऐसा जबरदस्त हमला चूत कब तक झेलती!
मुमताज का शरीर अकड़ा और एक लम्बी ‘आऽऽऽऽह!’ के साथ उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया. उसने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया. उसका जिस्म बुरी तरह कांप रहा था. मुझे लगा कि बिजलियाँ कड़क रही हैं और बरसात होने वाली है पर अपनी पूरी विल पॉवर लगा कर मैंने किसी तरह अपने आप को झड़ने से रोक लिया.
जब मुमताज का होश लौटा तो उसने मुझे बार-बार चूम कर मुझे मूक धन्यवाद दिया. मुझे फख्र महसूस हुआ कि मैं उसे इतना मजा दे पाया. इससे भी ज्यादा फख्र मुझे इस बात पर था कि मैं अभी तक नहीं झड़ा था. मुमताज जरूर मेरी मर्दानगी की कायल हो गई होगी. मैं यही चाहता था.
उसे और खुश करने के लिए मैंने कहा, “मुमताज, तुम्हारे हुस्न की तरह तुम्हारी चूत भी लाजवाब है. मुझे ख़ुशी है कि मैं उसकी थोड़ी इबादत कर पाया.”
मेरी बात सुन कर उसके चेहरे पर हया की लाली छा गई. उसने नज़रें झुका कर कहा, “लाजवाब तो आप हैं! मुझे अफ़सोस है कि मैं आपको मंजिल तक नहीं पहुंचा सकी. काश मैं भी आपकी खिदमत कर पाती.”
“मुझे कौन सी जल्दी पड़ी है,” मैंने कहा. “हाँ, तुम्हे जल्दी हो तो और बात है.”
“जल्दी कैसी, मैं तो सिर्फ आपको खुश करना चाहती हूँ,” मुमताज ने कहा. “आप जो करना चाहें, कीजिये और मुझ से कुछ करवाना हो तो हुक्म दीजिये.”
मेरा मन तो कर रहा था कि मैं मुमताज को अपना लंड चूसने को कहूं पर इसमें जल्दी झड़ने का जोखिम था. बहरहाल मैं मुमताज में आये बदलाव से बहुत खुश था. अब वो पूरी तरह मेरे काबू में लग रही थी. मैंने उसके ऊपर से उतरते हुए कहा, “क्या तुम घोड़ी बन सकती हो?”
मुमताज समझ गई कि मैं उसे पीछे से चोदना चाहता हूँ. वो फ़ौरन पलट कर घोड़ी बन गई. उसके मांसल और सुडौल चूतड़ मेरी आंखों के सामने नुमाया हो गये. मेरी सहूलियत के लिए उसने अपनी टांगों को थोडा फैला दिया. अब जो मंज़र मेरी नज़रों के सामने था वो बहुत ही दिलकश था.
एक तरफ मुमताज की चुस्त गुलाबी गांड मेरे लंड को दावत दे रही थी तो दूसरी तरफ उसकी फड़कती हुई चूत कह रही थी कि आओ और मेरे अन्दर समा जाओ. लेकिन मुझे अपने बेकरार लंड को थोडा आराम देना था ताकि वो जल्दी निपट कर मुझे शर्मिंदा न कर दे.
मैंने आगे झुक कर अपना मुंह मुमताज के चूतड़ों के बीच रख दिया. जैसे ही मेरी जीभ का स्पर्श उसकी गांड से हुआ, मुमताज चिहुंक उठी. लेकिन वो मेरे मुंह से दूर होती उससे पहले ही मैंने उसकी रानों को पकड़ लिया. मैं अपनी जीभ कभी उसके एक चूतड़ पर फिराता तो कभी दूसरे पर.
बीच-बीच में मेरी जीभ उसकी गांड और चूत का जायजा भी ले लेती. मुमताज एक बार फिर मस्ती से सराबोर होने लगी. उसका जिस्म मचलने लगा. मैंने अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसा दी और अपनी जीभ उसकी गांड पर जमा दी. जब ऊँगली और जीभ का दोहरा हमला हुआ तो मुमताज बेसाख्ता बोल उठी, “बस वकार साहब, अब आ जाइए!”
अब मुमताज को और मुन्तजिर रखना बे-अदबी होती. इसलिए मैं एक बार फिर पोजीशन में आ गया, इस दफा उसके चूतड़ों के पीछे. उसकी गांड और चूत दोनों मेरी पहुँच में थीं. गांड के आकर्षण पर काबू पाना आसान न था पर मुझे इल्म था कि गांड मारने में जल्दबाजी मुझे उसकी चूत से भी महरूम कर सकती थी. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
इसलिए फ़िलहाल मैंने उसकी चूत को ही अपना निशाना बनाया. मैंने अपना लंड उनकी चूत के मुहाने पर रख कर उसे आगे धकेला. उसने अपनी चूत को ढीला छोड़ दिया था इसलिए लंड चूत के अंदर धंसने लगा. चूत में काफी चिकनाई भी थी इसलिये मेरे लंड को उसके अंदर दाखिल होने में कोई मुश्किल पेश नहीं आई.
मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया और उनकी चूत में धक्के मारने लगा. मुझे अपना लंड उसके हसीन चूतड़ों के बीच चूत के अंदर-बाहर होता नज़र आ रहा था. यह एक बहुत ही दिलकश नज़ारा था! मैं उसकी चूत में मुसलसल धक्के मार रहा था और वो अपनी कमर को पीछे धकेल कर मेरा पूरा साथ दे रही थीं. उसके मुंह से बेसाख्ता आहें निकल रही थीं, “आह! आsssह! ओह! ओsssह! उंह…! हाय अल्लाह!”
चार-पांच मिनट की पुरलुत्फ चुदाई के बाद मेरे लंड पर मुमताज की चूत का शिकंजा कसने लगा. मुझे अपने लंड पर एक लज्ज़त भरा दबाव महसूस होने लगा. मुझे लगा कि अब मेरा काम होने वाला है. एक तरफ मैं अपनी मंजिल पर पहुँचने के लिए बेसब्र हो रहा था पर दूसरी तरफ मेरा दिल कह रहा था कि मज़े का यह आलम अभी ख़त्म नहीं होना चाहिए.
बहरहाल मैंने फैसला किया कि इतनी जल्दी निपटना मुनासिब नहीं है. मैंने किसी तरह अपने धक्कों को रोका. जब मैंने अपने लंड को चूत से बाहर खींचा तो मुमताज ने अपना चेहरा पीछे घुमाया. उसकी सवालिया निगाहें पूछ रही थीं कि मैंने लंड को चूत से जुदा क्यों कर दिया.
मैंने उसे तस्कीन देते हुए कहा, “मैं फिर तुम्हे सामने से चोदना चाहता हूं. अब सीधी लेट जाओ.”
मेरे अल्फाज़ से मुमताज बेशक शर्मज़दा हुई पर उसे यह तसल्ली भी हुई कि चुदाई अभी ख़त्म नहीं हुई है. उसने तुरंत मिश्नरी पोजीशन अख्तियार कर ली. मेरा मकसद पोजीशन बदलने के बहाने थोडा वक़्त हासिल करना था. मैं उसकी कमर पर बैठ गया. मैंने अपने दोनों हाथ उसकी चूचियों पर रख दिये और उन्हें मसलने लगा.
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मुमताज की गर्मी बढ़ने लगी और उसकी साँसें तेज हो गईं. मैं उसकी चून्चियों को मसलते हुए आगे झुक कर उसके होंठों को चूमने लगा. कभी-कभी मैं उसके निप्पल अपनी अंगुलियों के बीच पकड़ कर मसल देता था. मुमताज की आँखें बंद थी. उसकी जीभ मेरी जीभ से टकरा रही थी.
कुछ देर उसकी जीभ के जायके का मज़ा लेने के बाद मैंने अपने मुंह को उसके मुंह से अलग किया और उसे उसके मम्मे पर रख दिया. मैं उसके एक मम्मे को चूसने लगा और दूसरे को अपने हाथ से मसलने लगा. एक बार फिर मुमताज की गर्मी शिखर पर पहुँच गई.
उसका जिस्म बेकाबू हो कर मचलने लगा. उसकी साँसे उखडने लगीं. उसने अपनी आँखें खोल कर मुझे इल्तज़ा भरी नज़र से देखा. मैं अपनी उत्तेजना पर काबू पा चुका था इसलिए अब मैं भी चुदाई फिर से शुरू करने के लिए तैयार था. मैं मुमताज के पुरकशिश और दिलफरेब जिस्म से पूरी तरह लुत्फ़-अंदोज़ होना चाहता था. मेरा लंड भी अब चूत की गिरफ्त का ख्वाहिशमंद था.
मैं उसके ऊपर लेट गया. उसने अपनी टांगें चौड़ी कर दीं. मेरा तना हुआ लंड उसकी चूत के मुहाने से टकराया. चूत का गीलापन उसकी हालत को बयां कर रहा था. वो पूरी तरह गर्म हो चुकी थी. मुमताज ने अपना हाथ नीचे किया और मेरे लंड को पकड़ कर अपनी चूत से सटा दिया.
मैंने अपने चूतड़ों को आगे धकेला तो मेरा लंड चूत को फैलाता हुआ उसके अंदर समाने लगा. मुमताज के मुंह से एक आह निकल गई. उसने मेरी कमर को अपने हाथों से थाम कर अपने चूतड़ों को थोड़ा ऊपर-नीचे किया ताकि मेरा लंड ठीक से उसकी चूत में अपनी जगह बना ले.
जब उसकी चूत ने लंड को पूरी तरह ज़ज्ब कर लिया तो उसने मेरे चेहरे को अपनी जानिब खींचा और मेरे होंठों से अपने होंठ मिला दिए. उसके होंठों का मज़ा लेने के साथ-साथ मैं अपने लंड के गिर्द उसकी चूत की खुशगवार गिरफ्त को महसूस कर रहा था. चूत इस बार पहले की बनिस्बत ज्यादा चुस्त लग रही थी, शायद उत्तेजना की वजह से.
मुमताज आहिस्ता-आहिस्ता अपने चूतड़ उठाने लगी. उसने मुझे आँखों से इशारा किया कि मैं भी धक्के मारूं. मैं उसकी ताल से ताल मिला कर हलके-हलके धक्के लगाने लगा. जब मेरा लंड आसानी से चूत के अंदर जाने लगा तो मैने अपने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. मुमताज भी मेरे धक्कों का जवाब पुरजोर धक्कों से दे रही थी.
वो कुछ देर तो चुपचाप चुदती रहीं लेकिन जब मेरे धक्के गहरे हो गए तो वो सिसकने लगी, ‘उंह…! आsss! ओsssह!’ उस के मुँह से निकलने वाली सिसकारियों से मुझे लगा कि उसे इस काम में खासा मज़ा आ रहा था. मुझे यह जान कर सुकून मिला कि मैं मुमताज को अपने कब्जे में लेने के मकसद में कामयाब हो रहा था.
साथ ही उसे चोदते हुए मैं एक मज़े के समंदर में गोते खा रहा था. मुमताज ने मेरी कमर को अपनी बांहों में कस रखा था. उसके चूतड़ों की हरकत तेज़ हो गई थी और उसकी चूत में और कसावट आ गयी थी. उसकी चूत की कसावट इशारा कर रही थी कि वो फिर से झड़ने की तरफ बढ़ रही थी.
मुझे खुशी थी कि मै पहली ही चुदाई में मुमताज पर अपनी मर्दानगी की छाप छोड़ने में कामयाब हो रहा था. मैं पूरा दम लगा कर उसकी चूत में धक्के मारने लगा. चूत अब बुरी तरह फड़क रही थी. साथ में मुमताज का बदन मुसलसल लहरा रहा था. अब मेरे लिये अपने आप को रोकना नामुमकिन हो गया था.
मैंने बेअख्तियार हो कर अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी. मुमताज को शायद इल्म हो गया कि मैं झड़ने के कगार पर हूँ. उसने अपनी चूत को मेरे लंड पर भींचना शुरू कर दिया. मेरी रग-रग में एक मदहोश कर देने वाली लज्ज़त का तूफान उठ रहा था. मैं झड़ने की नीयत से उसकी चूत में जबरदस्त शॉट मारने लगा.
जल्द ही मुझे अपने लंड के सुपाड़े पर एक मीठी गुदगुदी महसूस हुई और मैं अपना होश खो बैठा. मैं अंधाधुंध धक्के मारने लगा. वो भी अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर मेरे धक्कों का जवाब दे रही थी. अचानक मेरे लंड पर उसकी चूत का शिकंजा कसा और मैं अपनी मंजिल पर जा पहुंचा.
मेरे लंड ने उसकी चूत में पिचकारियाँ मारनी शुरू कर दीं. जैसे ही मुमताज की चूत में पानी की पहली बौछार पडी, उसका जिस्म अकड़ गया और उसकी चूत भी पानी छोड़ने लगी. मुझ पर एक मस्ती का आलम तारी हो गया. मुमताज ने अपनी चूत को भींच-भींच कर मेरे लंड को पूरी तरह निचोड़ डाला.
खलास होने के बाद मैं बेदम हो कर उस पर गिरा तो उसने प्यार से मुझे अपनी बांहों में भींच लिया. … थोड़ी देर बाद हमारे होश लौटे तो मुमताज ने मुझे बार-बार चूम कर मेरा शुक्रिया अदा किया. मुझे यकीन हो गया कि ये चिड़िया अब मेरे जाल से नहीं निकल सकेगी.
अगली शाम मुस्तफा मेरे घर आया. ताज्जुब की बात यह थी कि पहली बार मुमताज भी उसके साथ आई थी. उसे देख कर मेरा ख़ुश होना लाजमी था. मैंने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया और उन्हें ड्राइंग रूम में बैठाया. तहजीब के तकाजे के मुताबिक मैंने अपनी बेगम को उनसे मिलने के लिए ड्राइंग रूम में बुलाया. कुछ देर हमारे दरमियान इधर-उधर की बातें होती रहीं. फिर मेरी बेगम ने उठते हुए कहा, “आप लोग बैठिये. मैं चाय का इंतजाम करती हूं.”
मुमताज ने उठ कर कहा, “मैं भी आपके साथ चलती हूँ. इस बहाने मैं आपका किचन भी देख लूंगी.”
इसमें किसी को क्या ऐतराज़ हो सकता था. मेरी बेगम ने कहा, “हां, आइये ना. हम कुछ देर और बातें कर लेंगे.”
मुझे लगा कि मुमताज मुझे और मुस्तफा को अकेला छोड़ना चाहती थी ताकि मुस्तफा मेरे से क़र्ज़ अदायगी की मियाद बढाने की बात कर सके. मैं भी इसी का इंतजार कर रहा था. मैं एक बार मुमताज को हासिल कर चुका था. अब मुझे ऐसा इंतजाम करना था कि यह सिलसिला आगे भी चलता रहे. इसके लिए मुझे मुस्तफा पर अपनी पकड़ बनानी थी.
जैसे ही हमारी बीवियां अन्दर गईं, मुस्तफा बोला, “मेरा खयाल है कि हमें क़र्ज़ वाला मामला निपटा देना चाहिए. अब मियाद ख़त्म होने को है. मैंने जो एग्रीमेंट साइन किया था वो यहीं है या तुम्हारे ऑफिस में है?”
यह सुन कर मैं भौंचक्का रह गया. मुझे उम्मीद थी कि मुस्तफा मियाद बढाने की बात करेगा पर वो तो मियाद ख़त्म होने से पहले ही क़र्ज़ चुकाने की बात कर रहा है. मुझे अपने मंसूबे पर पानी फिरता नज़र आया. मैंने बुझी हुई आवाज में कहा, “एग्रीमेंट तो यहीं है, मेरे स्टडी रूम में. लेकिन क़र्ज़ चुकाने की कोई जल्दी नहीं है. तुम्हे और वक़्त चाहिए तो…?
“जो काम अभी हो सकता है उसमे देर क्यों करें?” मुस्तफा ने मेरी बात पूरी होने से पहले ही जवाब दिया. “चलो, तुम्हारे स्टडी रूम में चलते हैं.”
अपनी योजना को नाकामयाब होते देख कर मैं मायूस हो गया था. मैं बेमन से उसे स्टडी रूम में ले गया. मैंने अलमारी से एग्रीमेंट निकाला. वो एक लिफाफे में था. मैं उसे लिफ़ाफे से बाहर निकालता उससे पहले मुस्तफा बोला, “ओह, मैं तुम से एक बात पूछना भूल गया. तुमने अपने घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगवा रखे हैं या नहीं?”
एक तो मैं वैसे ही परेशान था, ऊपर से यह सवाल मुझे बड़ा अजीब लगा. मैंने कहा, “सी.सी.टी.वी. कैमरे किसलिए?”
युसुफ ने जवाब दिया, “तुम तो जानते ही हो कि आजकल चोरी-चकारी कितनी आम हो गयी है. हम सिर्फ पुलिस के भरोसे बैठे रहें तो चोर कभी नहीं पकडे जायेंगे. हां, घर में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हों तो पुलिस चोरों तक पहुँच सकती है. मैंने तो अपने घर में कई जगह कैमरे लगवा रखे हैं.”
यह सुन कर मेरे कान खड़े हो गए. यह बात मेरे लिए परेशानी का सबब बन सकती थी. मैंने मुस्तफा की तरफ देखा.
वो आगे बोला, “आज मैं सी.सी.टी.वी. की रिकॉर्डिंग देख रहा था. मैंने जो देखा वो यकीन करने के काबिल नहीं हैं.”
स्टडी रूम में मेरा कम्प्यूटर ऑन था. मुस्तफा ने उसमे एक पैन ड्राइव लगाई और अपना हाथ माउस पर रख दिया. कुछ ही पलों में स्क्रीन पर उसके ड्राइंग रूम के अन्दर का नज़ारा दिखा. ड्राइंग रूम के अन्दर मुमताज और मैं नज़र आ रहे थे. मेरे होंठ मुमताज के होंठों पर थे और मेरा हाथ उसकी चूंची पर. यह देखते ही मेरे होश फाख्ता हो गए. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मुस्तफा ने वीडियो को रोक कर मेरी तरफ देखा और कहा, “तुम तो यकीनन मेरे सच्चे दोस्त निकले. मेरी गैर-मौजूदगी में एक सच्चा दोस्त ही मेरी बीवी की इस तरह खिदमत कर सकता है!”
मुस्तफा की बात सुन कर मुझ पर घड़ों पानी पड़ गया. मेरी बोलती बंद हो गई. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कहूं. मैं तो सोच रहा था कि उसने क़र्ज़ की मियाद बढ़वाने के लिए मुमताज का इस्तेमाल किया था (और मुझे उसका इस्तेमाल करने दिया था). लेकिन यहाँ तो मामला उल्टा था. वो तो आज ही क़र्ज़ चुकाने के लिए तैयार था, बिना मियाद बढवाए. इसका मतलब था कि जो भी हुआ वो उसकी जानकारी के बिना हुआ था.
लेकिन मुमताज ने ऐसा क्यों किया? उसने क्यों मुझे अकेले में घर बुलाया? वो क्यों मुझसे चुदने को राज़ी हो गई? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था… लेकिन जब इंसान किसी मुसीबत में फंस जाता है तो सबसे पहले अपना बचाव करने की कोशिश करता है. मैंने किसी तरह थोड़ी हिम्मत बटोर कर कहा, “जो तुम सोच रहे हो वैसा कुछ नहीं है. मैंने अपनी तरफ से कुछ नहीं किया… मेरा मतलब है कि… मुमताज ने खुद अपने आप को मेरे हवाले कर दिया.”
“वाकई, तुम्हारे जैसे खूबसूरत शहज़ादे को देख कर भला कोई औरत अपने आप को रोक सकती है?” मुस्तफा ने व्यंग्य से कहा. “मुमताज ने जबरदस्ती तुम्हारा हाथ अपने सीने पर रख दिया होगा. उसने जबरदस्ती अपने होंठ तुम्हारे होंठों पर रख दिए होंगे. शायद तुम यह भी कहोगे कि उसने तुम्हारे साथ बलात्कार किया था! क्यों?”
मुस्तफा ने मुझे बिलकुल बेजुबान कर दिया था. मैं जानता था कि मुमताज ने जो किया और मुझे करने दिया, उसका मेरी शक्ल-सूरत से कोई वास्ता नहीं था. मेरे ख़याल में उसका वास्ता सिर्फ मेरे दिए हुए क़र्ज़ से था पर अब तो मेरा खयाल गलत साबित हो चुका था. मैं बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया था. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इस मुसीबत से कैसे पार पाऊं.
फिर भी मैंने कोशिश की, “मेरा यकीन करो, मैं मुमताज का फायदा नहीं उठाना चाहता था. उसने खुद ही…”
मुस्तफा ने मेरी बात काट कर कहा, “ठीक है, मेरे सच्चे दोस्त. हम ये रिकॉर्डिंग तुम्हारी प्यारी बेग़म को दिखा देते हैं और फैसला उन्ही पर छोड़ देते हैं. इसे देखने के बाद वो अपने आप को मेरे हवाले कर दें तो तुम्हे कोई एतराज़ नहीं होना चाहिए. और मैं तो उनकी पेशकश को ठुकराने से रहा!”
उसके अल्फ़ाज़ मेरे दिल में खंज़र की तरह उतरे. मैंने चीख कर कहा, “नहीं!!! तुम ऐसा नहीं… मेरा मतलब है…” मैं आगे नहीं बोल पाया. मेरे लिए यह कल्पना करना ही दर्दनाक था कि मेरी बेग़म अपने आप को इस इंसान के हवाले कर देगी… लेकिन ये उन्होंने रिकॉर्डिंग देख ली तो वो क्या करेगी, यह खयाल भी बेहद खौफनाक था.
अब मुस्तफा भी खामोश था और मैं भी. मेरी नज़रें झुकी हुई थीं. मेरा दिमाग तो जैसे सुन्न हो गया था. मुझे किसी भी तरह मुस्तफा को यह रिकॉर्डिंग अपनी बेग़म दिखाने से रोकना था पर मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उसे कैसे रोकूं!
आखिर मुस्तफा ने सन्नाटा तोड़ा. वो बोला, “एक रास्ता है. हम इस रिकॉर्डिंग और एग्रीमेंट की अदला-बदली कर सकते हैं. तुम रिकॉर्डिंग को मिटा देना और मैं एग्रीमेंट को फाड़ दूंगा. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.”
मैं बेइंतिहा खौफ और बेबसी के आलम में था. मुस्तफा के अल्फ़ाज़ में मुझे एक उम्मीद की किरण दिखी. उसकी तजबीज मानने के अलावा मुझे और कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. मैंने हथियार डालते हुए कहा, “इसकी कोई और कॉपी तो नहीं है?”
“एक कॉपी मेरे कम्प्यूटर में है,” मुस्तफा ने जवाब दिया. “लेकिन मैं घर पहुँचते ही उसे मिटा दूंगा. तुम्हे मेरे पर भरोसा करना होगा.”
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मुस्तफा पर भरोसा करने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था. मैंने एग्रीमेंट उसे दे दिया. उसने उसे अपनी जेब में रखा और पैन ड्राइव मुझे दे दी. हम चुपचाप ड्राइंग रूम में वापस लौटे. हमारी बीवियां वहां पहले से ही मौजूद थीं, चाय के साथ. अगले दस मिनट मेरे लिए बहुत बोझिल रहे. चाय के दौरान मुस्तफा, मुमताज और मेरी बेग़म के बीच कुछ आम किस्म की बातें होती रहीं पर मैं न तो कुछ बोला और न ही उनकी कोई बात मेरे जेहन तक पहुंची. चाय ख़त्म होने के बाद जब मुस्तफा और मुमताज रुखसत हुए, मैं स्टडी रूम में वापस आया.
मुस्तफा और मुमताज स्टडी रूम की खिड़की के पास से गुजर रहे थे. मुस्तफा कुछ बोलता हुआ जा रहा था. उसके कुछ अल्फ़ाज़ मेरे कान में पड़े, “… कैसे नहीं फंसता हमारे जाल में.” यह सुन कर मैं दंग रह गया. तो यह उनका जाल था? मैं समझ रहा था कि जाल मेरा है और मुमताज उसमें फंस रही है! पर असली जाल मुस्तफा और मुमताज ने बिछाया था… और मैं बेवक़ूफ़ की तरह उसमे फंस गया! मुमताज को एक बार चोदने की कीमत दस लाख रुपये? होगा कोई मेरे जैसा बेवक़ूफ़!!!