Cuckold Fantasy
मेरी पत्नी, रश्मिका। वो मेरी जान है। शादी के बाद से ही मैं उस पर जो फिदा हुआ, सो आज तक हूँ। ‘देखे तो देखता रह जाए !’ जैसी सुंदर और सेक्स में सदा ही नए उत्साही प्रयोग करना एंजॉय करती है। मेरी रंगीन फंतासियों को सच करने में मेरा साथ देती है। Cuckold Fantasy
कभी मैंने उसे पार्क में पेड़ के पीछे उसके वक्ष अनावृत करके उसके स्तन चूसे, कभी उसके हाथ-पांव बांधकर उसके साथ सेक्स किया। एक बार तो झील में नहाते हुए मैंने पानी के अंदर ही उसके सारे कपड़े उतार कर ले लिए और उन्हें किनारे पर ही फैलाकर रख दिया था कि कोई देखे तो समझ ले कि पानी के भीतर वह नंगी है।
मैं सूखे कपड़े थोड़ी दूर पर पेड़ की एक डाल में टांगकर चला गया था। बड़ी मुश्किल से वह पानी से निकलकर उस पेड़ तक जा पाई थी। मैं छिपकर पानी से प्रकट होते उसके नग्न सौंदर्य का पान करता रहा। उस वक्त मुझे जो उसने मुझे जो डांट पिलाई सो पिलाई, रात में भरपूर बदला लिया।
दिल्ली से चंडीगढ़ हाइवे पर कार में अपनी ड्राइविंग सीट के बगल में बिठाकर उसके ब्लाउज के पल्ले खोल दिए थे और उसकी तरफ की खिड़की खोल दी थी। उसके ब्लाउज के पल्ले उड़ उड़कर लहरा रहे थे और ठंडी हवा से उसके स्तन और चूचुक कड़क हो गए थे। उस दिन सड़क पर कितनी ही दुर्घटनाएँ होते होते बचीं।
पहला बच्चा होने के बाद भी बिस्तर पर हमारे जोशोखरोश में कोई कमी नहीं हुई, लगता था ‘वन इज फन’। हमारी दीवानगी देखकर दूसरे ईर्ष्या करते तो हम अपने को खुशनसीब समझते। लेकिन दूसरा बच्चा होने के बाद लगने लगा था कि अब पहलेवाला रस और रोमांच नहीं रहा।
दस साल के वैवाहिक जीवन ने उसमें एकरसता घोलनी शुरू कर दी थी और यही हम दोनों को बेहद अखर रहा था। पति मैं हूँ, इसलिए कुछ उपाय करने की जिम्मेदारी मेरी थी। किसी दूसरे दम्पति से अदला-बदली की इच्छा मन में थी, मगर किसी दूसरी औरत के सहारे अपनी पत्नी में उत्तेजना ढूंढना सही नहीं लग रहा था।
मुझे अपनी पत्नी में ही वो खूबी चाहिए थी। मैं बराबर सोच रहा था कि ऐसा क्या करूँ कि शादी के समय वाला चटखारा फिर से वापस आ जाए, रश्मिका में फिर से वही हसीन, नमकीन, मस्ती का रंग फिर से भर जाए। उसका एक पुराना शौक था, गुदने यानि टैटू का !
वह शादी के बाद ही चाहती रही थी कि शादी की याद में उसकी काया के किसी अति व्यक्तिगत जगह में एक गुदना हो पर मैं उसके गोरे बेदाग शरीर पर फिदा था। उस पर कितना भी अच्छा गुदना क्यों न हो मुझे धब्बा-सा ही लगता।
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वह फिगर को लेकर वह बहुत संवेदनशील थी। प्रसव के बाद उसने मेरी मां की पारंपरिक घी में लिपटी बत्तीस जड़ी-बूटियों की दवाइयाँ खाने से इनकार कर डॉक्टर की सलाह के मुताबिक खीरे सलाद और प्रोटीन-प्रचुर दालें खाकर पेट पर चरबी की परत चढ़ने नहीं दी थी। दो प्रसवों के बाद भी उसका शरीर कसा और सुंदर था।
मैंने सोचा कि उसकी इसी इच्छा से जिंदगी में हरियाली लाई जाए। विवाह की अगली वर्षगांठ पर, जो जल्दी ही आने वाली थी… सुनकर वह उछल पड़ी। शादी की सालगिरह का अनुपम तोहफा होगा। अंदर के अंग पर एक सुंदर-सा गुदना ! और वह पैंटी से भी छिपा रहेगा।
केवल हम दोनों ही उसे देख सकेंगे। निस्संकोच होने के बावजूद उसके गालों पर लाली दौड़ गई। लेकिन गुदना करने वाली उसके गुप्तांग को देखेगी तो? इस पर मेरी अगली शर्त ने उसे और लाल कर दिया,’ऐतराज नहीं करना कि कोई दूसरा मर्द तुम्हें देख लेगा।’
उसकी हैरानी भरे ‘क्या??!!’
में खुले मुँह को मैंने हाथ से दबा दिया और किसी औरत से करवाने की संभावना से दृढ़ता से इनकार कर दिया। इस बीच मैंने दिल्ली में कोई अच्छी मनोनुकूल टैटू शॉप की तलाश की। बड़ी कंपनियों के सैलून भव्य और तरह तरह के उपकरणों से सज्जित थे मगर वहाँ मेरे मन लायक बात नहीं थी।
मैं किसी अच्छे अकेले युवा प्रोफेशनल आर्टिस्ट से कराना चाहता था। माइकल में मुझे ये सभी खूबियाँ मिल गईं। अमरीकी था, पर भारत के प्रति किसी रौमैंटिक आकर्षण में बंधकर यहीं रह गया था। डॉक्टरी पढ़ा था, गाइनी सर्जन था पर मेडिकल प्रैक्टिस करके बीमार औरतों को देखना उसे गवारा नहीं हुआ।
उसकी जगह स्व़स्थ और सुंदर इंडियन वूमन की ‘असली’ ब्यूटी देखने के लिए उसने यहाँ टैटूइंग और पियर्सिंग (गुदना गुदाई और छिदाई) की दुकान खोल ली थी। कैसे कैसे सनकी लोग होते हैं ! अंग्रेजों की प्रवृत्ति के अनुरूप उसकी दुकान बिल्कुल प्रोफेशनल तरीके से स्वच्छ, हाइजीनिक और आधुनिक उपकरणों से लैस थी। मैंने उसके साथ तय कर लिया।
उसने सुझाया कि टैटूइंग के साथ ‘क्लिट पियर्सिंग (भगनासा की छिदाई) भी करा दूँ। ‘it will add much more spice !’ गुदने की ब्यूटी तो रोशनी में ही दिखेगी पर क्लिट में छिदे रिंग का आनन्द तो अंधेरे में भी मिलेगा।
मैंने पूछा- चाटते समय जीभ में गड़ेगा नहीं?
वह हँसा- उलटे जीभ से उसकी टकराहट तुम्हारी वाइफ को और मस्त कर देगी। अंधेरे में क्लिट को खोजना नहीं पड़ेगा।
उसने बताया कि कई ललनाएँ उससे क्लिट पियर्सिंग करवा चुकी हैं, वे बहुत खुश हैं।
मैंने उसे बता दिया कि सारी प्रक्रिया के दौरान मैं मौजूद रहूँगा और वीडियो कैमरे में रिकॉर्ड करता रहूँगा।
जब मैंने रश्मिका को उसकी क्लिट की छिदाई के बारे में बताया तो वह बोल पड़ी- बाप रे ! कितना दर्द होगा !
मैंने प्यार से उसको मनाया- कुछ दर्द नहीं होगा, और मैं तो तुम्हारे पास मौजूद रहूँगा।
‘कितनी शरम आएगी !’
मैंने उसके झुके माथे को चूम लिया- एक बार जब उसके सामने टांगें खोल चुकी होगी तो शर्माने को क्या बाकी रह जाएगा?
उस रात उसकी सांसों में फूलों की खुशबू और योनि में खटमिट्ठे शराब का स्वाद था। अगले दस दिन रोमांच में ही गुजरे। लग रहा था काम-सुख की बगिया में फिर से बसंत आया है। 21 मई का बेसब्री से प्रतीक्षित दिन ! हमारी शादी की सालगिरह ! रश्मिका को उसका तोहफा देने का दिन !
मैंने एक दिन पहले ही उसकी काम-वेदी का मुंडन कर दिया ताकि अगले दिन तक उस पर से रेजर की जलन चली जाए। उस दिन बच्चों के जगने के पहले सुबह मुँह अंधेरे ही उठा और पानी गर्म किया। रश्मिका अभी आधी नींद में ही थी। उसकी गोरी जांघें और बीच में उभरी मक्खन मलाई चूत को देखकर मेरा मन डोलने लगा।
मैंने उसके चूतड़ों के नीचे एक प्लास्टिक शीट डाली और गरम पानी में छोटा सा तौलिया भिगोकर काम-वेदी पर फैला दिया। पाँच मिनट में बाल अंदर जड़ तक मुलायम हो गए। चूत पर उदारता से शेविंग क्रीम लगाकर ब्रश से झाग उत्पन्न किया और लेडीज रेजर से उसको हौले-हौले मूंडना शुरू किया।
उसकी नींद खुल गई थी और वह सिर के नीचे तकिया ऊँचा करके देख रही थी। गाढ़ा सफेद झाग तिकोने उभार पर पेड़ू से लेकर नीचे गुदा तक फैला था। गोरे रंग के बीच उभरी सफेद चूत सुपरिभाषित तथा सुविकसित लग रही थी।
मैंने होंठों के अगल बगल के बालों को साफ करने के लिए उनके बीच उंगली डालकर होंठों को अलग कर सावधानी से रेजर चलाया। उत्तेजना से उसके रोएँ खड़े हो गए थे। जब मुंडन समाप्त हुआ और मैंने तौलिये से उसे पोंछा, जिसमें उसकी भगनासा पर भी जानबूझ कर बहकी हुई रगड़ दे दी, तब तक वह अपने ही रसों से लबलबा रही थी, पूरी चूत गर्म होकर फूल गई थी।
मैंने उस पर आफ्टरशेव लोशन लगाया तो वह एकबारगी हजार सुइयों की चुभन से थरथरा गई। उसने मुझसे जल्दी से एक संभोग की मांग की, पर मैंने याद दिलाया कि टेटू शॉप में चूती हुई योनि लेकर जाना ठीक नहीं होगा।
दिन भर ऑफिस में मन चंचल, उत्तेजित रहा। रश्मिका से ज्यादा सनसनी और उत्सुकता मुझे थी। रात को हम बस किसी तरह एक-दूसरे में समाने से खुद को रोक पाए। हमने हाथों से भी संतुष्टि लेने से मना कर दिया। लेट द एकसाइटमेंट बिल्ड अप।
अगले दिन… दो बजे का एपाइंटमेंट था। सुबह हेयर रिमूविंग का आखिरी सेशऩ़, ताकि बालों की खूंटियाँ अंदर तक गल जाएँ। मैंने मुंडित क्षेत्र पर पर हेयर रिमूविंग क्रीम लगाकर आधे घंटे के लिये छोड़ दिया। गुदा के पास जहाँ रेजर नहीं चल पाया था वहाँ उदारता से ढेर-सा क्रीम लपेटते हुए मुझे कौतुक भरी खुशी हुई- आज इसका भी बेड़ा पार होगा क्या? हालाँकि मैं गुदा मैथुन का प्रेमी नहीं था।
जब मैंने क्रीम पोंछकर तौलिये से साफ किया तो उसकी चूत छोटी बच्ची की तरह भोली ओर चुलबुली लग रही थी। एकदम मालपुए की तरह मुलायम और फूली। बीच में चिरती माँस, उसके शीर्ष पर तनी हुई भगनासा… जैसे कुमारी लड़की की तरह घमंड में हो और छूने पर गुस्सा कर रही हो।
मैंने कहा- बस आज तुम्हारी अकड़ का अंतिम दिन है। आज मैं नथ पहनाकर तुम्हें सदा के लिए सुहागन बना लूंगा।
मैंने कैमरा निकाला और उस यादगार दृश्य की तसवीरें ले लीं। दोपहर दो बजे का अपांइंटमेंट था। एक बजते-बजते वह नहा-धोकर तैयार हो गई।
‘क्या पहनकर जाना ठीक रहेगा?’
मैंने सुझाया कि शलवार-फ्रॉक या शर्ट-पैंट पहनकर मत जाओ, शलवार या पैंट उतारने में नंगापन महसूस होगा। क्यों न पहले से ही थोड़ा ‘खुला’ रखा जाए। मैंने सुझाया कि बिना पैंटी के शॉर्ट स्कर्ट पहन लो।
उसे लगा मैं मजाक कर रहा हूँ और वह बिगड़ पड़ी। उसने पतली शिफॉन की साड़ी पहनने का फैसला किया। मेरी बात मानते हुए उसने अंदर पैंटी नहीं पहनी, बोली,’जरूरत पड़ी तो साड़ी उतार दूंगी, केवल साए में कराने में कोई दिक्कत तो नहीं है ना?’
औरत की जिद ! उसका अपना तर्क ! 21 मई का बेसब्री से प्रतीक्षित दिन ! हमारी शादी की सालगिरह ! रश्मिका को उसका तोहफा देने का दिन ! औरत की जिद ! उसका अपना तर्क ! हम समय से थोड़ा पहले ही पहुँच गए। रश्मिका पार्लर को देखकर बहुत प्रभावित हुई।
उसे वहाँ की स्वच्छता, सुविधाएँ आदि बहुत पसंद आईं। खासकर जब मैंने माइकल से उसका परिचय कराया तो रश्मिका की आँखों में उसके लम्बे-चौड़े गठीले शरीर और आकर्षक व्यक्तित्व के प्रति आश्चर्य और प्रशंसा का भाव दिखा। माइकल भी उसे दिलचस्पी से देख रहा था।
मेरी योजना के लिए अनुकूल संकेत था। माइकल ने रश्मिका को वह जगह दिखाई जहाँ उसे काम करना था। यह स्वागत कक्ष से दूर अंदर एक छोटा कमरा था और उसमें पूरी गोपनीयता थी, जरूरत की चीजें उसी में रखी थीं- टैटू के लिए जरूरी सामान और औजारों के लिए एक मेज़, कलाकार के बैठने की एक छोटी-सी नीची स्टूल और ग्राहक के बैठने की एक भव्य कुर्सी।
माइकल ने सबसे पहले कम्प्यूटर स्क्रीन पर हमें सैकड़ों ड्राइंग दिखाए, हम तीनों ने आपसी सहमति से चुनाव कर लिया। तब माइकल ने रश्मिका से पहले बाथरूम से होकर आने का अनुरोध किया। टॉयलेट सीट में बिडेट लगी थी जिससे पानी का फव्वारा निकलकर सीधे उस अंग पर पड़ता था।
धोने के लिए हाथ लगाने की जरूरत नहीं थी। फिर भी सुगंधित साबुन रखे हुए थे। पोंछने के लिए दीवार में अलग अलग सुगंधों वाले टॉयलेट-पेपर के रोल लगे थे। वाकई माइकल ने काफी नफासत की व्यवस्था की थी। रश्मिका टॉयलेट से निकलते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
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अब वो घड़ी आ गई जिसके लिए इतनी तैयारी की थी। माइकल ने कुर्सी का हत्था थपथपाकर रश्मिका को उस पर बैठने का इशारा किया। रश्मिका ने मेरी ओर देखा, मैंने नजरों से ही उसका उत्साह बढ़ाया- ‘चढ़ जा बेटा सूली पर !’ वह चढ़ गई।
कुर्सी शानदार थी, डेन्टिस्टों की कुर्सी जैसी। पीठ टेकने के लिए चौड़ा सा बैक रेस्ट, दोनों तरफ हाथ रखने के लिए गद्देदार बाँहें। उनसे चमड़े के फीते लटक रहे थे- बैठने वाले की कलाइयों को हैंडल से बांधने के लिए। कुहनियों को पीछे जाने से रोकने के लिए हत्थों के अंत में रोक बनी हुई थी। पाँ
व रखने के लिए पाँवदान बने थे जो किनारों की तरफ से बाहर फैलते थे, ताकि गुदना कलाकार बीच में पहुँच सके। पांवदानों में भी चमड़े के फीते टंगे थे। माइकल ने सरसरी तौर पर बताया कि ये उन लोगों के लिए हैं जो कुछ क्रियाओं में थो़ड़ा रफ ट्रीटमेंट चाहते हैं। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
“कोई डर तो नहीं?”
रश्मिका ने इनकार में सिर हिलाया। जल्दी ही जाहिर हो गया कि साड़ी के तंग घेरे में पाँवों को खोलना संभव नहीं हो पाएगा- “यू हैव टु रिमूव इट माई डियर !”
मुझे उसकी परेशानी पर खुशी हुई, कहा था शार्ट स्कर्ट पहनने को, नहीं मानी।
रश्मिका ने साड़ी खोल दी। माइकल ने उसे एक तौलिया देते हुए पेटीकोट की ओर इशारा किया- दिस टू (इसे भी)।”
इस शर्मिंदगी से वह बच सकती थी, यदि मेरी बात मान लेती। उसके गाल लाल हो गए। बाथरूम से लौटी तो कंधों से छातियों तक ढँकती ब्लाउज और तौलिये में वह अजीब और उत्तेजक लग रही थी। खुला पेट और कमर में लिपटा तौलिया मानों जरा सा खींचने से गिर पड़ेगा।
चोली में छातियाँ ठूँसकर भरी थीं। चूचुकों की नोक का भी पता चल रहा था। मैंने माइकल की ओर देखा, उसकी नजरें भी उसी पर मंडरा रही थी। माइकल ने उसे ‘वेलकम’ किया और कुर्सी की ओर इशारा किया। रश्मिका के बैठने के बाद माइकल ने उसके पैर पांवदान पर और हाथ हत्थों पर ठीक से टिकवा दिए।
पांवदान काफी उंचे थे। उन पर पाँव रखने से उसके घुटने लगभग कंधों के बराबर आ गए। तौलिया खिसककर कमर पर जमा हो गया और बीच में से वस्तिक्षेत्र प्रकट हो गया। माइकल ने उसकी कमर में हाथ डालकर तौलिये की गांठ खोली और तौलिया खींचकर निकाल लिया।
उसने रश्मिका से पुन: उठाने का इशारा किया और उसके चूतड़ों के नीचे हाथ घुसाकर बित्ते भर की लंबाई चौड़ाई का एक छोटा-सा रोएँदार तौलिया बिछा दिया। इस प्रक्रिया में उसका चेहरा उसके योनिप्रदेश के सामने आ गया। रश्मिका का चेहरा शर्म से लाल हो रहा था पर माइकल सामान्य था, जैसे यह उसके पेशे के लिए सामान्य बात हो। मुझे लगा रश्मिका को गुदा में जरूर तौलिये के रोओं से गुदगुदी हो रही होगी।
माइकल ने उसका कंधा थपथपाया और पूछा- रेडी?
“या:” रश्मिका मुस्कुराती हुई कुछ ज्यादा ही जोर से बोली। वह अपने को आत्मविश्वस्त दिखाने की कोशिश कर रही थी।
माइकल ने दीवारों में कुछ लाइटें जलाई, उनके रिफलेक्टर एडजस्ट किए जिससे रोशनी रश्मिका के पैरों के बीच में पर्याप्त मात्रा में पड़ने लगी। उसने सामानों वाली मेज़ कुर्सी के पास खींच ली और नीची स्टूल पर सामने बैठ गया।
मैंने भी तबतक स्टैण्ड पर कैमरा एडजस्ट कर लिया था। कैमरे की लेंस से उसकी चूत-वेदिका को देखा। पैरों के अगल बगल खिंच जाने से वह बीच में साफ उभर गई थी। यह पहला मौका था जब कोई पराया मर्द उसके उस स्थल को देख रहा था- इतने करीब से।
प्रसव के दौरान मेडिकल स्टाफ के सामने टांग खोलना दूसरी बात थी लेकिन यह क्षण तो कामुक प्रकृति का था, यहाँ यह बड़ी हिम्मत की बात थी। मैं देख रहा था रश्मिका के चेहरे पर की घबराहट को। वह विगत दो दिन से मेरे ‘मुंडन कार्य’ से उत्तेजित भी थी।
माइकल थोड़ी देर के लिए ठहरा, मानो सामने खुले उस दृश्य़ को आँखों से ‘पी’ रहा हो.. एक बेहद आकर्षक साफ-सुथरी, फूली-फूली गोरी चूत ! किसी भी प्रकार की कालिमा या भूरेपन से रहित, तेज रोशनी में चमकती हुई, प्लेब्वाय पत्रिका की किसी मॉडल सरीखी- फोटो लेने लायक, प्रदर्शन योग्य !
बीच में गहरी कटान बनाते मोटे होंठ, जो खिंचाव से थोड़े खुलकर भी अंदर से बंद थे। सीधी खड़ी लम्बी फाँक, बिल्कुल एक जैसी मोटाई की मध्य रेखा बनाती हुई जिसके ऊपरी सिरे पर अंदर से झांकती मूंगे जैसी भगनासा। बेहद आमंत्रण भरा दृश्य था।
मैं रश्मिका के इस अंग का दीवाना था और उसे अक्सर बताता था क्यों उसमें मेरी बार बार मुँह घुसाने की इच्छा होती है। सुनकर वह शर्माती, फूलती और ”ए:…” की डांट भी लगाती। माइकल ने उस पर वह आकृति उकेरनी शुरू की जो हमने चुनी थी।
रश्मिका उसके हाथ और कलम को योनि क्षेत्र के इतने पास महसूस कर थोड़ा तन गई। चलती कलम की नोक से उसे सिहरन और गुदगुदी हो रही थी। माइकल उसे शांत होने देने के लिए ठहर जाता। मैं उसके सधे हाथों की हरकत देख रहा था। कुछ ही देर में उसने कटाव के ठीक ऊपर बेहद सुंदर आकृति उकेर दी, पेशेवर कलाकार था, मेरी ओर देखकर पूछा- ओके?
मैं कैमरा छोड़कर पास गया और गौर से देखा- ‘एक्सलेंट’ मेरे मुँह से निकला।
प्रकट रूप से उस सुंदर चित्र के लिए और मन ही मन उस परिस्थिति के लिए जिसमें यह चित्र बन रहा था। मेरी सुंदर पत्नी का यौनांग पूरी भव्यता के साथ सामने खुला था और दो पुरुष उसे करीब से निहार रहे थे। मुझे नशा-सा आ रहा था। लगता था किसी संजोए स्वाप्न की रील चल रही हो।
माइकल ने एक छोटा आइना निकालकर उसके हाथ में दे दिया ताकि वह स्वयं ठीक से देख ले। रश्मिका को भी तसवीर बहुत पसंद आई पर उसने आइने में यह भी नोटिस किया कि किस तरह तस्वीर के ठीक नीचे उसके मोटे फूले होंठ हल्के से खुलकर अंदर की गुलाबी आभा बिखेर रहे थे।
इतनी देर से उस खुली अवस्था में होने के बावजूद उसकी आँखें लज्जा से झुक गईं। उसने आइना माइकल की ओर बढ़ा दिया। रश्मिका ने मेरी ओर नजर घुमाई, मैंने उसे एक हवा में एक मौन चुम्बन उछाल दिया। माइकल ने तस्वीर में रंग चढ़ाने वाली गन उठाई। एक बार फिर उसने पूछा कि इरादा बदलना तो नहीं चाहती है।
“नहीं, ठीक है, go ahead !” रश्मिका ने कहा।
मैंने वीडियो कैमरा जूम-इन कर दिया। माइकल चित्र की बाहरी रेखाओं पर गन से रंग चढ़ा रहा था। रंग चढ़ाने के लिए उसके हाथ भगनासा की कगार के बिल्कुल पास टिक जाते और कभी कभी उसके ऊपर फिर भी जाते। मैं समझ रहा था कि यह हल्की छुअन रश्मिका को कितनी विचलित कर रही होगी।
कैमरे की लेंस की क्लोजअप से मैं देख सकता था कि उसकी वेदी बहुत हल्के हल्के फूलनी शुरू हो गई है और होंठ बहुत हल्के से खुलने लगे हैं। वह नितम्बों को इस कोण मे लाने की चेष्टा कर रही थी कि माइकल का हाथ भगनासा के ठीक ऊपर आ सके। माइकल ने उसकी यह कोशिश पकड़ ली और घूमकर कंधे के ऊपर से मुझे देखा।
मैंने आँख मारी- एंजॉय करो !
वह आराम से समय लेते हुए धीरे-धीरे चित्र के आउटलाइन पर रंग उकेरने लगा। बीच बीच में रुककर अतिरिक्त स्याही को पोंछता। इस क्रिया में वह हाथ ऊपर से नीचे जाता ताकि भगनासा और फाँक में ठंडे अल्कोहल को फिरा सके। जब चित्र की रेखाओं पर रंग चढ़ गया तो उसने ठहरकर देखा।
रंगीन रेखाओं में वह आकृति और सुंदर लग रही थी। वह गन में फिर से रंग भरने के लिए उठा, रश्मिका से कहा- आप तब तक डिजाइन देख सकती हैं। उसने उसकी ओर आइना बढ़ा दिया। रश्मिका डिजाइन देखने के बाद मेरी ओर देखकर मुस्कुसराई। मैंने मुस्कुराकर उसका उत्साह बढ़ाया।
माइकल ने बताया कि अब वह रेखाओं के अंदर की जगह में रंग भरेगा, रंग भरने में गन की सुई तेज चलती है, इसलिए उसे पहले की अपेक्षा चुभन अधिक महसूस होगी लेकिन पाँच-दस मिनट में वह सहने लायक हो जाएगा। रंग भरने में लगभग बीस मिनट लगेंगे। इस दौरान उसे एकदम स्थिर रहना होगा ताकि रंग ठीक से भरा सके। वह ठहरा, जैसे कुछ कहने में हिचक रहा हो।
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मैंने पूछा- एनीथिंग मोर? (और कुछ)
उसने कहा- लगातार चुभन से कभी कभी सिहरन होती है इसलिए उसे उसके हाथों को कुर्सी के हत्थों से बांधना होगा।
रश्मिका तब तक शर्म पर काबू पा चुकी थी, उसने पूछा क्या ऐसा करना जरूरी है?
“no, but it will help !” (नहीं, लेकिन यह अच्छा रहेगा).
रश्मिका एक सेकंड के लिए ठहरी, फिर बोली- ok, do it !(ठीक है, करो).
कह कर उसने कुर्सी के हत्थे पर हाथ जमा दिए। माइकल ने हैंडल में लगी चमड़े की पट्टी उसके हाथ पर कसते हुए दूसरी ओर बक्कल लगा दिया। यही क्रिया उसने दूसरे हत्थे पर भी दुहराई। उसने उसे निश्चिंत किया, डरने की कोई बात नहीं है। मैं समझ रहा था आगे वास्तव में क्या होने वाला है। रश्मिका के बंधे हाथ देखकर मुझे खुशी हुई।
माइकल गन लेकर उसके सामने बैठ गया। उसने सीधे वेदी की फाँक पर हाथ टिकाया और गन से काम स्टार्ट कर दिया। रश्मिका उछल पड़ी। पर पांच मिनट बाद उसे अच्छा लगने लगा। वह मज़ा लेने लगी। माइकल धीरे-धीरे अपना हाथ चूत के ऊपर गोल घुमाने लगा। रश्मिका की योनि गीली होने लगी और होंठ और अधिक ‘पिसाई’ की इच्छा से फैलने लगे। अचानक ही माइकल ने उंगली छेद के अंदर सरका दी।
रश्मिका चौंक पड़ी, यह तो नहीं किया जाना था? उसने मेरी ओर देखा कि मैं कुछ बोलूँगा। पर मैं बस मुस्कुरा दिया और वीडियो कैमरे से फिल्माता रहा। वह उलझन में थी और अपने को मुसीबत में महसूस कर रही थी… आखिरकार उसके हाथ बंधे थे और एक अपरिचित आदमी उसके पति के सामने ही उसकी योनि में उंगली कर रहा था।
उसके उस अंग को मेरे सिवा किसी ने देखा भी नहीं था। वह और मैं किसी दंपति के साथ अदला-बदली या दूसरे व्यक्तियों के साथ सेक्स का इरादा कर रहे थे मगर यह अभी तक केवल बातों तक ही सीमित था। माइकल अब गन चलाते हुए छेद में कन्नी उंगली अंदर-बाहर कर रहा था, उंगली भीगकर चमक रही थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
औरत की उत्तेजना की एक खास गंध कमरे में फैल गई। कभी कभी वह भगनासा को भी हल्के से रगड़ देता। जब-जब ऐसा होता रश्मिका कुर्सी पर थोड़ा उछल जाती। वह समझ नहीं पा रही थी इसे किस रूप में ले। मैं सामने था और यह होने दे रहा था।
वह कुछ देर तनी रही पर जल्दी़ ही उत्तेजना उसकी उलझन पर हावी हो गई। वह कुर्सी पर अपने को ढीला छोड़ दी। उसकी योनि अब सचमुच ही रस छोड़ने लगी। मैं दम साधे फिल्मा रहा था, हालाँकि मेरा लिंग फूल गया था और मुझे उस गीली योनि को चखने की बड़ी तीव्र इच्छा हो रही थी।
माइकल ने अब एक दूसरी उंगली घुसा दी और रश्मिका के मुँह से ‘आह’ निकल गई। वह उसकी उंगलियों के अंदर-बाहर होने की गति से अपनी गति मिलाने लगी। जब उंगलियां अंदर जाती तो वह नितंब आगे ठेलकर उन्हें पूरा अंदर लेने की कोशिश करती। उसमें अब पीछे लौटने की कोई इच्छा नहीं बची थी।
शायद माइकल का काम समाप्त हो गया था। उसने गन रख दी और बहाना छोड़कर सीधे काम पर उतर गया। योनि में उंगली करते हुए वह दूसरे हाथ से उसकी भगनासा भी रगड़ने लगा। रश्मिका इतनी मग्न थी कि उसे पता नहीं चला कि माइकल कब गोदने का काम रोक चुका है।
वह और जोर से ‘आह’ ‘उह’ करने लगी और नितम्बों को और अधिक उचकाने लगी। क्या उसके इस तरह मेरे सामने निश्चिंत होने के पीछे उसके दूसरे मर्दों के साथ देखने संबंधी मेरी छेड़छाड़ का भी कोई योगदान है? मैं नहीं जानता था पर यह जरूर जानता था कि घर में इस वीडियो को दिखाकर उसे शीघ्र अदला-बदली या दो स्त्री-पुरुषों के संग एक साथ आनंदभोग के लिए प्रेरित कर सकूँगा।
मैं इस अनमोल, अविस्मरणीय दृश्य को बिल्कुल सटीक फोकस करके पूरी सफाई से कैमरे में कैद कर रहा था। यह आज के दिन का यादगार रहेगा। इससे उसे याद दिलाता रहूंगा कि आज के दिन क्या हुआ था।
“lick me, please (मुझे चाटो, प्लीज)” रश्मिका के आँख मुंदे चेहरे के होठों से आधी फुसफुसाहटभरी आवाज निकली।
मैं खुशी से किलक पड़ा- अरे वाह !
मैं उत्कंठापूर्वक देख रहा था- माइकल की उंगलियाँ अनवरत चल रही थीं। उसका अंगूठा उसकी फूली भगनासा की जड़ों को सहला रहा था। उसने सिर झुकाया और चूत को हौले से चूम लिया।
रश्मिका की साँस निकल गई। वह नितम्ब खिसकाकर अपने कटाव को उसके मुँह पर बिठाने की कोशिश करने लगी, ‘more… more… please…’ फुसफुसाती हुई उससे और चाटने की प्रार्थना कर रही थी। माइकल एक हाथ से उसके होठों को खींचकर फैलाकर मुँह घुसा कर सीधे भगनासा को चूस रहा था।
बीच-बीच में नीचे उतरकर फाँक के अंदर की गुलाबी सतहों की भी ‘खबर’ ले लेता। मैं कैमरे को खिसकाते हुए उस बिन्दु पर चला आया जहाँ से लेंस में माइकल की जीभ योनि के अंदर लपलपाती दिख रही थी। उसने उसके चूतड़ों के नीचे हाथ घुसाकर उठाया और फाँक में मुँह गाड़कर तरबूज की तरह चूसने लगा।
मुझे उससे ईर्ष्या हो रही थी। वह चीज जो मैं करना चाहता था उसे वह कर रहा था। मैं अपने तने लिंग और कैमरे के साथ अकेला सा पड़ गया था। वह बीच-बीच में ठहरकर साँस लेता, फिर घुस जाता। रश्मिका की कराहटें और सिसकारियाँ बढ़ती जा रही थीं।
जैसे ही माइकल रुकता वह ‘don’t stop”don’t stop’ की गुहार लगाती। माइकल उसे तरह तरह से आनंदित कर रहा था। चूत झरने की तरह बह रही थी और मैं वीडियो बनाने में व्यस्त़ था। माइकल उसकी हरकतों से समझ गया वह अब झड़ने के करीब है।
वह और अंदर उतरा, जीभ से योनि का घर्षण बढ़ाया, भगनासा की घुंडी होठों में कस लिया… शायद एक बार उसमें दाँत भी गड़ाए… रश्मिका चिल्लाई….’आह’.. ‘आऽऽह’.. मुझे लगा अब वह झड़ी… अब झड़ी…. झड़ी…… कि तभी माइकल अलग हो गया।
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“o my god!!” रश्मिका चिल्ला पड़ी, “please don’t stop (मत रुको.)
माइकल को पकड़ने के लिये कलाइयों को कसमसाने लगी- मुझे ऐसे मत छोड़ो। I’m so close to cumming (मैं झड़ने के एकदम करीब हूँ।)
माइकल हँसा। उसने अपने होंठों पर जीभ फिराई और चटखारा लिया- you have a good taste (तुम्हारा स्वाद बड़ा बढ़िया है।)
उसने पुन: बढ़कर उसके चूत के खुले होंठों के बीच एक चुम्बन लिया और उठ खड़ा हुआ- let us celebrate it (चलो इसका जश्न मनाते हैं।)
रश्मिका डर गई। कहीं यह उसके साथ असली सेक्स तो नहीं करने वाला है? उसे लग रहा था कि थोड़ा मजा लेने के लालच में वह काफी आगे चली गई है, अब नतीजा भुगतना पड़ेगा। वह उठने की कोशिश करने लगी।
माइकल ने उसे कुर्सी पर वापस ठेल दिया- ऐसी भी क्या जल्दी है माई डियर, आज का दिन तो यादगार बनाना है, है ना? नकली पूछने का अभिनय करके उसने अपनी जींस का बकल खोलकर लिंग को बाहर निकाल लिया।
मैं जानता था कि अंग्रेजों के बड़े आकार के होते हैं फिर भी प्रत्यक्ष चीज देखकर मुझे आश्चर्य हुआ। मेरी तुलना में वह काफी बड़ा था- मूसल जैसा मोटा, गुलाबी, तना हुआ, आक्रमण के लिए तैयार। उस पर की नसों का उभार भी साफ झलक रहा था। मुझे डर लगा, इतना बड़ा अंदर जाएगा?
रश्मिका उस लंबे चौड़े हथियार को देखकर दहल गई, नहीं-नहीं करने लगी। माइकल उसके करीब पहुँचा, उसकी छटपटाती कलाइयों को कुर्सी के हत्थे पर दबाया और उसकी आँखों में आँख गड़ाकर नकली नम्रता से बोला- I am obliged to please you, great lady ! (मैं आपको खुशी देने के लिए बाध्य हूँ, महान नारी।)
उसे छटपटाते, कसमसाते देखकर वह और अधिकार और व्यंग्य से हंसा- madam must know what a great bitch she is ! (महोदया को अवश्य मालूम होना चाहिए वह कितनी बड़ी कुतिया है।)
मेरी चहेती, गरिमापूर्ण, गर्वीली पत्नी। मैं उसे अपमानित होते देखने का मजा ले रहा था। उसकी अंतिम पराजय की प्रतीक्षा कर रहा था। चुदना एक तरह की पराजय ही होता है। चुदकर औरत अपने पर उस पुरुष का आधिपत्य स्वीकार करती है।
माइकल ने विनम्रता और शिष्टाचार के अभिनय को छोड़कर उसे सीधे सीधे डांटा- चुपचाप बैठी रहो। the more you fight, the harder I’ll fuck you (जितना ज्यादा छटपटाओगी, उतनी जोर से चोदूँगा।)
मैंने कैमरा रख दिया। रश्मिका को उम्मीद बंधी कि अब मैं हस्तक्षेप करूंगा। पर उसे हैरानी में डालते हुए मैंने उसका पैर पकड़ लिया और माइकल ने उसकी एड़ी को चमड़े की पट्टी से कुर्सी में बांध दिया। वह सदमे से जड़ रह गई।
मैंने और माइकल ने मिलकर उसका दूसरा पैर भी बांधा और फिर दोनों बाँहें भी कुर्सी के हत्थे से बांध दी। वह संघर्ष करती, छटपटाती रही और हमने बिना कोई दया दिखाए उसकी छटपटाहट का आनन्द लेते हुए उसे पूरी तरह बेबस कर दिया।
कुर्सी की पीठ के निचले हिस्से से चमड़े का एक बड़ा पट्टा लगा हुआ था। माइकल ने उस पट्टे को खोला और उसे उसकी गोद पर से गुजारते हुए दूसरी तरफ ले जाकर कुर्सी से कस दिया। अब उसका हिलना भी मुश्किल था, हम उसके साथ बेरोकटोक जो चाहे कर सकते थे।
मैंने कैमरा उठा लिया। माइकल ने कुर्सी की पीठ में कोई लीवर घुमाई। इससे कुर्सी की पीठ पीछे झुक गई और दोनों पावदान ऊपर उठ गए। रश्मिका के कूल्हे सीट में आगे खिसक गए और उसके उसके चूतडों के नीचे दबा तौलिया आगे थोडा लटक गया।
होंठ और खुल गए और गुदा का गुलाबी छेद भी प्रकट हो गया। मैंने नोटिस किया होंठों के बीच चिपचिपे योनि द्रव का एक तार खिंच गया था। माइकल ने कुर्सी की सीट के नीचे एक हैंडल घुमा घुमाकर सीट को अपने मनोनुकूल ऊँचाई तक उठाया और लॉक कर दिया।
माइकल ने मुझे एक क्षण देखा- I’m going to fuck your wife (मैं तुम्हारी पत्नी को चोदने जा रहा हूँ।)” वह जैसे मुझसे कह और पूछ दोनों ही रहा था।
”यदि तुम करते हो…” मैंने भी उतने ही गंभीर स्वर में कहा, बात में नाटकीय प्रभाव लाने के लिए थोड़ा रुका, रश्मिका पर एक नजर डाली और बोला- …तो ठीक से करो।
“भाड़ में जाओ तुम दोनों !” रश्मिका चिल्ला पड़ी। वह आवेग में भरकर फीतों से छूटने के लिए जी-जान से जोर लगाने लगी। “you fucking bastards” उसकी गाली सुनकर मुझे मजा आ गया। इसने माइकल और मुझे दोनों को एक स्तर पर उतार दिया।
हम दो पुरुषों के सामने एक औरत – मेरी पत्नी – टांगें फैलाए, योनि परोसे, बंधनों में छटपटाती, गालियाँ देती अपने चुदने का इंतजार कर रही थी। माइकल ने ज्यादा इंतजार नहीं कराया। वह आगे बढ़ा और लिंग के मुँह को उसके होठों के बीच लगाकर दरार में ऊपर-नीचे फिराया।
लिंग का माथा उसके रस में भीगकर चमकने लगा। अब उसने उसके मुँह को छेद के उपर लगाया और ठेला। रश्मिका उसकी हरकत को भय से देख रही थी। मैं भी डर रहा था उसकी योनि इतने मोटे की अभ्यस्त नहीं थी। कहीं फट… (मैं उन शब्दों को सोच भी न पाया।)
लेकिन कुदरत ने उसे कमाल का लचीला बनाया है। और फिर वह माइकल की उंगलियों के संचालन से काफी गीली और किंचित फैल भी चुकी थी। लिंग का मुंड उसमें शीघ्र ही अंदर चला गया। रश्मिका की आँखें फैल गई- ओ ग्गॉड… अब यह जरूर पूरा अंदर चला जाएगा…… भयानक ख्याल से वह सिहर गई।
रश्मिका ने जिस गॉड से फरियाद की थी, मैंने उसी गॉड को धन्यवाद दिया। वह महान था। रश्मिका का पूर्ण मर्दऩ, स्खलन… पैंट के अंदर मेरा लिंग दर्द कर रहा था। ऐसी दुर्दम्य उत्तेजना को सम्हालने की मशक्कत शायद ही उसे कभी पहले करनी पड़ी थी।
माइकल ने मुँह को को थोड़ी देर फैलने का समय दिया। रश्मिका की घुटी-घुटी सांसें… रुआंसी सिसकारियाँ… माइकल ने उसकी डरी अवस्था का और मजाक उड़ाया- लगता है इतने से तुम्हें संतोष नहीं हो रहा है। तुम्हें पूरा ही चाहिए, है ना…?
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“तो यह लो !” कहते हुए उसने जोर का धक्का दिया।
रश्मिका की चीख निकल गई। लंबे चौड़े मजबूत अमरीकी शरीर के शक्तिशाली वार से पूरा लिंग सरसराता हुआ अंदर घुस गया। रश्मिका की तंग ‘भारतीय’ योनि कोई रुकावट पैदा कर ही नहीं पाई। इतनी गीली और कोमल थी वो। रश्मिका की साँस रुक गई।
मुझे डर लगा कि कहीं उसे कुछ हो न गया हो। मन हुआ कि आगे बढ़कर रोक दूँ। माइकल उसमें वैसे ही धँसा था। उसकी कसावट और कोमलता और गर्माहट का आनन्द ले रहा था। उसे फैलने का समय दे रहा था। रश्मिका की अटकी साँस निकली और मेरी जान में जान आई।
माइकल बाहर निकला, बस इतना कि बस लिंग का सिर होठों के बीच रह जाए और फिर से पूरा आठ इंच अंदर उतार दिया। मैं उस दुर्लभ घटना का एक एक विवरण टेप पर उतार लेने के लिए नजदीक चला गया। मेरे पाँच इंच के मुकाबले यह काफी ताकतवर और जानलेवा था।
रश्मिका की क्या गति हो रही होगी मैं अंदाजा भी नहीं लगा सकता था। उसकी योनि इतनी अधिक तनी हुई थी कि लिंग के बाहर आते समय अंदर की दीवारें भी बाहर खिंच जा रही थीं। माइकल आहिस्ते-आहिस्ते धक्के लगा रहा था।
कुछ मिनटों के बाद रश्मिका शांत पड़ने लगी और उसने धक्कों के डर से पेड़ू को भींचना बंद कर दिया। धीरे-धीरे उसकी योनि अजनबी, उद्दंड घुसपैठिये से परिचय बढ़ाने लगी। जल्दी ही वह नितम्ब उचकाकर उसके प्रवेशों का स्वागत भी करने लगी। उसकी आँखें मु्ंदने लगीं और वह अपना निचला होठ दांतों से काटने लगी।
मैंने माइकल को संकेत किया कि अब वह मज़ा लेने लगी है। वह उत्साह में आ गया और जोर-जोर से धक्के मारने लगा। अचानक आई तेजी से रश्मिका के जैसे होश उड़ गए। जोरदार घर्षण ने उसकी योनि में आग की लपटें उठा दीं। वह सारा लाज संकोच भूल बैठी और बढ़कर धक्कों का जवाब देने लगी।
भूल गई कि वह एक ब्याहता, कुलीन स्त्री है और पति के सामने ही वग गैर मर्द द्वारा भोगी जा रही है। लाज-शरम, सभ्यता, मर्यादा और मान-अपमान के सारे संस्कार छोड़कर शुद्ध कामोत्तेजित भोग्या स्त्री के रूप में रति क्रिया का तुर्शी-ब-तुर्शी जवाब दे रही थी।
संभोग के धक्के से उसके नितम्ब पीछे खिसक जाते तो वह उतनी ही जोर से उन्हें आगे ठेलकर अगली चोट से राह में ही मिलती। उसकी कराहटें और सिसकारियाँ कमरे में गूंज रही थीं और मैं उसके इस अभूतपूर्व शुद्ध यौनोत्तेाजित रूप पर फिदा हो रहा था।
स्तन ब्लाउज से ढँके मगर यौनांग खुले हुए, हाथ-पाँव बंधे, कलाइयों और एड़ियों में चूड़ी और पायल की जगह चमड़े के फीते, भिंचती-खुलती गुलाबी नाखूनपॉलिश लगी उंगलियाँ, चित्रपट की तरह खुली जाँघें, उनके बीच उभरे बड़े से चूतक्षेत्र को चीरती लम्बी गहरी गुलाबी दरार और दरार को चौड़ी करती शक्तिाशाली लिंग की संयोग क्रीड़ा।
माइकल थोड़ा किनारे खिसक गया ताकि मैं अच्छे से देख और फिल्मा सकूँ। इतनी देर से मुझे दरार के नीचे गुदा की गुलाबी कली की लुका छिपी बार-बार आकर्षित कर रही थी। योनि से निकलते रसों से भीगकर वह भी चमक रही थी।
मुझे सुबह वहाँ पर हेयर रिमूवर लगाते वक्त का ख्याल याद आया, ”आज इसका भी बेड़ा पार होगा क्या?” मैं जानता था अंग्रेज लोग पृष्ठभाग के बड़े प्रेमी होते हैं। मैं इसका प्रेमी नहीं पर रश्मिका पर इसकी आजमाइश का इच्छुक जरूर था।
योनि से लिंग के आलाप के क्रम में गुदा भी भिंच–खुल रही थी। मैंने उसकी ओर माइकल का ध्यान खींचा। माइकल ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया। मुझे दरार के नीचे गुदा की गुलाबी कली की लुका छिपी बार-बार आकर्षित कर रही थी।
योनि से निकलते रसों से भीगकर वह भी चमक रही थी। मुझे सुबह वहाँ पर हेयर रिमूवर लगाते वक्त का ख्याल याद आया, ”आज इसका भी बेड़ा पार होगा क्या?” मैं जानता था अंग्रेज लोग पृष्ठभाग के बड़े प्रेमी होते हैं। मैं इसका प्रेमी नहीं पर रश्मिका पर इसकी आजमाइश का इच्छुक जरूर था।
योनि से लिंग के आलाप के क्रम में गुदा भी भिंच–खुल रही थी। मैंने उसकी ओर माइकल का ध्यान खींचा। माइकल ने मुस्कुरा कर सिर हिलाया। अब और सम्हालना मेरे लिए मुश्किल था। इतनी देर से पैंट को ताने-ताने वह दर्द करने लगा था। उसे मुक्ति दिए बिना आगे जारी रख सकना मुश्किल था।
जब एक अपिरचित मेरे सामने रश्मिका के साथ कर ही रहा था तो मेरे लिए क्या रुकावट थी। मैंने चेन खींचकर लिंग को आजाद किया, कैमरे को ऑटो रिकॉर्डिंग मोड में डालकर घूमकर कुर्सी के सिरहाने चला आया था। जिस कोण पर कुर्सी झुकी हुई थी उससे रश्मिका का सिर ठीक मेरे लिंग के बराबर में आ गया।
मैंने लिंग को थोड़ा ऊपर नीचे सहलाया और उसके होंठों की ओर बढ़ा दिया। रश्मिका की आनन्द में डूबी नजर एक बार मुझ पर पड़ी और उसने जीभ निकालकर उस पर फिरा दी। फिर उसे मुँह के अंदर खींचकर तीव्रता से चूसने लगी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मैं आनंदातिरेक में डूब गया। पाँव कमजोर पड़ने लगे। मैं आगे-पीछे करने लगा। माइकल के धक्कों के साथ रश्मिका का मुँह स्वयं मेरे लिंग पर सरक रहा था। पहले से ही संचित उत्तेजना इतनी थी कि मैं ज्यादा ठहर नहीं पाया। मेरे गले से गुर्राहट निकली और लिंग उसके मुँह में जोर से तन गया।
रश्मिका ने मेरा पतन जानकर चेहरा घुमाना चाहा लेकिन मैंने उसका सिर पकड़ लिया। उसे वीर्य का स्वाद अच्छा नहीं लगता था पर उसने मेरा विरोध नहीं किया और मुँह में छूटते रस को गटक गई। मुझे खुद पर हीनता का एहसास हुआ।
एक तरफ मैं उसके साथ जबर्दस्ती कर रहा था दूसरी तरफ वह मुझ पर प्यार दिखाती हुई मुझे पी गई थी। मुझे उसकी उस अपमानित, परपुरूष के आनंद में डूबी अवस्था में भी उसके प्रति कृतज्ञता महसूस हुई। मैंने तौलिये से उसके मुँह से बाहर गिरे वीर्य को होंठों, गालों, गले पर से पौंछा और प्यार से उसके मुँह पर एक चुंबन देकर कैमरे के पास चला आया।
जिस समय उसे चुंबन दिया उस समय भी उसके होंठ माइकल के धक्कों से ऊपर-नीचे हो रहे थे। माइकल धक्के लगाते हुए अंगूठे से गुदा की छेद सहला रहा था। वहाँ पर उसकी उंगली महसूस करके रश्मिका चौंकी पर आनन्द की लहरों के सामने उस पर ध्यान नहीं दे पाई। वह सिसकारियाँ भर रही थी।
माइकल ने अंगूठे को उसके रसों में अच्छी तरह भिंगोया और अचानक छिद्र के अंदर घुसा दिया। यही नहीं, रश्मिका उस घुसपैठ को महसूस कर सके इसके लिए ठहर भी गया। आनंद की लहरें हठात रूक गईं और पुराने भय ने सिर उठा लिया। ‘अब यह क्या करेगा?’ वह उसे देखती रही।
“अब मैं तुम्हें वो मजा देने जा रहा हूँ कि एक हफ्ते तक बैठ नहीं पाओगी।”
माइकल ने उसके पाँव बंधे पांवदानों को और फैला दिया, होंठ और खुल गए। माइकल ने उसके चूतड़ों को खींचकर फैलाकर जायजा लिया। रश्मिका को आभास हो गया था कि उसके साथ क्या होने वाला है।वह चुपचाप छत की ओर देखती रही।
जिस तरह जकड़कर बंधी हुई थी उसमें चुपचाप होने देने का इंतजार करने के सिवा कुछ कर भी नहीं सकती थी। माइकल ने उसके चूतड़ों को यथासंभव फैलाकर अपने लिंग का माथा उसकी गुदा पर लगा दिया, हल्के से ठेला, इसमें जाना आसान नहीं था।
यद्यपि योनि का रस रिस-रिसकर गुदाद्वार को अत्यंत चिकना बना चुका था पर वह बेहद तंग थी और डर से सिकुड़ भी गई थी। रश्मिका साँस रोके सह रही थी, पहले की तरह देख भी नहीं पा रही थी कि वहाँ पर कैसे क्या हो रहा है। उसे सिर्फ माइकल का पेड़ू नजर आ रहा था।
माइकल ने उसे चेताया- loosen up, otherwise there will be much pain (ढीला छोड़ो, नहीं तो बहुत दर्द होगा।)
उसने फिर उसकी योनि में लिंग घुसाकर कुछ धक्के दिए ताकि आनन्दित होकर वह ढीली पड़ सके और लिंग फिर से उसके रस में अच्छी तरह भीग जाए। जैसे ही रश्मिका की पहली आनन्दित ‘आह’ निकली उसने लिंग निकालकर फिर से गुदा पर लगा दिया।
रश्मिका की चिल्लाहटों के बावजूद उसने इस बार दया नहीं दिखाई। कुर्सी के हत्थों को पकड़कर उस पर झुका और जोर लगा लगाकर किसी तरह लिंग की थूथन को अंदर दाखिल करा ही दिया। मगर इतनी देर के मैथुन और अभी के संघर्ष और गुदा के आत्यंदतिक कसाव के कारण ठहर नहीं सका और हांफता हुआ उतने ही अंदर में झड़ने लगा।
रश्मिका भी हाँफ रही थी। उसकी गुदा के अंदर मोटा लिंग माथा घुसाए हिचकोले खा रहा था। मुझे आश्यर्च हुआ कैसी लग रही होंगी रश्मिका को वे हिचकोले ! माइकल पूरा स्खलित होकर भी अंदर रुका रहा और अंदर के कसाव का आनंद लेता रहा।
जब उसका लिंग ढीला पड़ गया तभी निकाला। तब भी वह उसे खींचकर ही निकाल पाया। रश्मिका निढाल पड़ी हुई थी और दर्द और कुंठा में कराह रही थी। उसे अब तक चरमसुख नहीं मिला था। हर बार जब वह उसके करीब पहुंची थी, उससे छीन लिया गया था।
उसकी योनि अभी भी आकांक्षा में गीली और फैली हुई थी। मैंने उस पर कैमरे को जूम किया- अंदर गहरे तक दिख रहा था। गुदा लाल पड़ गई थी और वीर्य का सफेद द्रव उससे रिस रहा था। माइकल ने उसे बुरी तरह खींच दिया था।
माइकल ने पैंट ऊपर खींची और कैमरे में देखकर कनखी मारा। भीगा तौलिया लाकर उसे अच्छी तरह पोंछा। गुदा के छेद से द्रव के रिसाव को बार-बार पोंछना हास्यास्पद लग रहा था। जब जब उसको पोंछता, रश्मिका गुदा को सिकोड़ लेती और सिकोड़ने से कुछ द्रव बाहर निकल जाता।
पता नहीं रश्मिका को कैसा लग रहा होगा। एक अपरिचित पुरुष बच्ची की तरह उसकी गुदा को ध्यान से देखते हुए पोंछ रहा था। अब कौन सी शर्म रह गई थी ! उस नितांत प्राइवेट, पति से भी अनछुई रही चीज को एक अजनबी ने उसके पति के सामने ही रौंदा था।
भगांकुर पर तौलिये के मुलायम रोयों का स्पर्श निश्चय ही उसको दर्द और कुंठा से निकालकर उत्तेजना की दुनिया में प्रविष्ट होने के लिए प्रेरित कर रहा था। माइकल जानबूझ कर उस पर बार बार तौलिया फिरा रहा था। उसने झुककर पुन: चूत को चूमा और जीभ से उसमें गुदगुदी की।
अगली अंतिम दर्दनाक क्रिया से पहले फिर रश्मिका को उत्तेजित करना चाह रहा था। रश्मिका का पूरा उभार ही अब तक के घर्षण से काफी संवेदनशील हो चुका था। माइकल उसके मोटे होठों को चूमता, उनके बीच खुल गए गुलाबी मांस को हल्के हल्के जीभ से कुरेदता, गुदगुदाता उसे फिर से आनन्द के घोड़े पर बिठा रहा था।
अब रश्मिका को कोई शर्म भी नहीं थी। वह जल्दा ही आनन्द के घोड़े की सवारी करने लगी। उसे लग रहा था माइकल उसे जिह्वा से ही अंतिम सुख दिला देगा। वह नितम्बों को माइकल के मुँह पर ठेलते मानों उससे इस सुख के लिए प्रार्थना कर रही थी।
माइकल उसे कोन में खत्म होते आइसक्रीम की तरह जीभ घुसाघुसाकर चाट और चूस रहा था। पर जैसे ही लगा वह कगार पर पहुँच रही है वह फिर रुक गया। रश्मिका लाल आँखें खोलकर उसे देखती रह गई। वह फिर वंचित कर दी गई थी। क्षोभ से उसके आँसू निकल गए, कुछ नहीं बोली।
आज उसे मुक्ति का सुख नसीब नहीं होगा… माइकल ने उंगली से उसके भगांकुर पर कैरम का स्ट्राइकर मारने के अंदाज में चोट की, ”अब इस कुमारी को नथ पहना दिया जाए।” चोट की थरथराहटों के बीच रश्मिका के कानों मे उसके शब्द पड़े।
माइकल छिदाई का सेट लेकर आया और उसकी टांगों के बीच स्टूल खींचकर बैठ गया। उसने रुई को स्पिरिट से भिगोकर उसकी भगनासा को और चारों तरफ पोंछा। वहाँ पर वह अत्यंत संवेदनशील हो गई थी और हर छुअन पर फड़क जाती थी।
यद्यपि स्पिरिट की ठंडक उसका दर्द कम करने के लिए थी। माइकल ने चिमटी से भगनासा के दाने को पकड़ा और सुई से उसमें दाएँ से बाएँ आर-पार छेद कर दिया। खून की एक छोटी-सी बूंद बनने लगी। माइकल ने सोने का रिंग निकाला और उसको उस छेद में इस पार से उस पार पहना दिया।
रश्मिका दाँत पर दाँत दबाए सी सी करती अपनी चीखें दबाने की कोशिश कर रही थी। माइकल ने रिंग के खुले छोरों को सँड़सी से दबाकर सटाया और मांस को बचाते हुए सोल्डिंग रॉड से रिंग के सिरों को वेल्ड कर दिया।
मैंने माइकल से पूछा- सोल्डरिंग से तो रिंग गर्म हो गई होगी और रश्मिका को जल रहा होगा?
वह बोला- हल्का-सा, ज्यादा नहीं। this pain is not more than the piercing pain. Everything will be ok ! (यह दर्द छिदाई के दर्द से ज्यादा नहीं है, सब ठीक हो जाएगा।)
उसने रुई से पोंछकर मरहम लगा दिया, बोला- दो दिन में घाव ठीक हो जाएगा। बस पेशाब उसे बचाकर करना होगा नहीं तो क्षार से जलन होगी। बेहतर होगा ऊपर से पानी की धार डालती हुई पेशाब करे।
गुलाबी कली में छिदी सुनहली अंगूठी सुंदर लग रही थी। उसके ठीक ऊपर पंख फड़फड़ाता एक किंगफिशर पक्षी- नुकीली चोंच नीचे रिंग पर लक्ष्य किए, जैसे झपट्टा मारकर उसे ले उड़ेगा। सुनहला रिंग किसी कीड़े की तरह कली में घुसा हुआ था और किंगफिशर उसे चोंच मारकर पकड़ लेने को उद्यत।
बहुत सु्ंदर उकेरा था उसने। पक्षी की झपटने की गति को जीवंत कर दिया था। चोंच के नीचे रिंग बड़ी चुलबुली लग रही थी। गुदाई और छिदाई की बेहतरीन जुगलबन्दी थी। माइकल कलाकार था। हमने रश्मिका के फीते खोल दिए, वह निस्पंद पड़ी रही।
मैं उसे दम लेने के लिए छोड़कर माइकल के साथ बाहर चला आया। हॉल में मैंने माइकल को पैसे दिए और उसके काम की तारीफ की। उसने बहुत सुंदर गुदाई और छिदाई की थी। मैंने उसे वीडियो की एक कॉपी देने का वादा किया।
घर लौटते समय वह कार में ही सो गई। इतनी थकी और परास्त थी कि मैं उसे उठाकर घर के अंदर ले गया और बिस्तर पर डाला। किसी तरह साड़ी मैंने उसके बदन में लपेट दी थी। साया खुला ही था। वह अगले दिन तक सोती ही रही। बच्चों को मैंने समझा दिया मम्मी की तबियत ठीक नहीं है।
सुबह उठा तो वह बाथरूम में थी। दरवाजे से देखा वह बाथटब के किनारे पर बैठी थी और एक छोटा आइना लेकर पैरों के बीच देख रही थी। मुझे देखकर लगा वह मुझे डाँटेगी पर वह मुस्कुराई और बोली- उस माइकल ने तो अच्छा काम किया है। मैं चकित रह गया। मैंने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया।
उस दिन के बाद से हमारे यौन जीवन में जैसे एकदम से परिवर्तन आ गया। मैं उसके गुदने और छल्ले को देखने छूने के लिए रोमांचित रहता। रश्मिका तो जैसे बदल गई। उसमें उत्साह का झरना खुल गया। भगनासा पर उसे हमेशा छल्ला महसूस होता और उसकी इच्छा होती रहती।
अक्सर पैंटी से छल्ला रगड़ खाकर उसकी उत्तेजना बढ़ा देता, वह मुझे ऑफिस में फोन करती- मन हो रहा है, चले आओ ना ! वगैरह। सेक्स करते समय भगनासा पर रिंग की वजह से जल्दी ही स्खलित हो जाती। मुझे मुँह से करने में ज्यादा आनन्द आने लगा।
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जल्दी ही उसके चरमसुख और योनि के रसों का प्रसाद मिल जाता। उसके रस में शराब का नशा बढ़ गया। वह सदा तैयार और गीली मिलती। मेरी सक्रियता बहुत बढ़ गई। एक बार मैंने सुबह उसके रिंग में एक मोती का झुमका पहना दिया। हिदायत दे दी कि दिन भर उसे हाथ से हरगिज नहीं छुए। मैंने उसे पैंटी पहनने से भी मना कर दिया। शाम को जब घर लौटा तो वो बेकरार थी। बड़ी मुश्किल से खुद को छूने से रोक पाई थी।
उस रात हमने हमारे बीच क्या लहालोट मची कहने की बात नहीं। पर अब उसे हर समय की उत्तेजना परेशान करने लगी है। कहती है ‘रिंग की वजह से हर समय मन होता रहता है। हाथ अपने-आप उधर चला जाता है। किसी और चीज में ध्यान नहीं जमता।’ मैं उसे धैर्य रखने की सलाह देता हूँ, कहता हूँ- कुछ दिन में उसकी अभ्यस्त हो जाओगी। पर वह कहती है न होगा तो रिंग निकलवा देंगे। मैं अपने अनुभवी पाठकों से पूछना चाहता हूँ कि क्या वह रिंग निकलवा दूँ?