Chut Me Gajar XXX
नमस्कार दोस्तों मैं सौरभ आपका फिर से हमारी वासना पर स्वागत करता हूँ. दोस्तों आपने मेरी कहानी के पिछले भाग औरत का सबसे बड़ा गहना उसकी कुंवारी चूत 1 में पढ़ा की मेरे दोस्त नितेश की दीदी प्रिया के सांवले रंग की वजह से उसका पति भी उससे प्यार नहीं करता था, जिससे वह बहुत परेशान थी, और आत्महत्या करने की कोशिश की. फिर मैं उनके साथ रहने लगा, और उनकी कैसे मदद करने लगा ये जानिए इस भाग में – Chut Me Gajar XXX
एक दिन काम करते करते जेठानी ने मजाक किया- क्यों देवरानी, फूल कब खिला रही हो?
मैंने भी गुस्से में कह दिया- गमले में आज तक पानी की बूंद नहीं पड़ी और आप फूल की बात करती हो?
जेठानी मेरी बात को झट से समझ गई, उसने कहा- फिर तो गमला प्यासा होगा, तू कहे तो मैं कुछ मदद करूं?
मैंने कहा- आप मेरी मदद कैसे करोगी?
उसने कहा- गाजर, मूली, बेलन ये सब कब काम आएंगे, तू कहे तो हम दोनों मजे ले सकते हैं।
मैं पढ़ी-लिखी लड़की थी.. मुझे ये सब बातें बकवास लगीं.. मैं भड़क उठी, तो जेठानी ने झेंप कर कहा- मैंने कोई जबरदस्ती तो नहीं की है, जब तुम्हारा मन हो मुझे बता देना!
मैं वहाँ से उठ गई और आगे इस बारे में हमारी बात भी नहीं हुई। अब रोज रात मुझे रतिक्रिया के सपने आने लगे, मैं भले ही पढ़ी-लिखी लड़की थी, पर तन की जरूरतों के आगे किसका बस चलता है! मेरी भी हालत ऐसी ही होने लगी।
एक रात को सपने देखते-देखते मैं अपनी योनि को सहलाने लगी और थोड़ी ही देर में मेरी योनि भट्टी की तरह गर्म हो गई। मैंने क्रमशः एक, फिर दूसरी उंगली योनि में डाल ली, पर मेरी वासना शांत होने के बजाए और भड़क उठी।
अब मुझे जेठानी की बातें याद आने लगीं, फिर मैं चुपके से रसोई में जाकर एक गाजर उठा आई, पहले तो गाजर को थूक से गीला किया और योनि के ऊपर रगड़ने लगी। इसी के साथ मैं अपने दूसरे हाथ से अपने उरोज को सहला रही थी।
अब मेरी योनि लिंग मांग रही थी, तो मैंने गाजर के मोटे भाग को योनि के अन्दर प्रवेश कराना चाहा, जो तीन इंच मोटा होगा, उसकी लंबाई भी बहुत थी.. पर पतली होने के क्रम में थी। गाजर को योनि में डालते हुए दर्द के मारे मेरी जान निकल रही थी.. उम्म्ह… अहह… हय… याह…
पर गाजर अन्दर नहीं गई, तो मैंने दर्द को सहने के लिए अपने दांतों को जकड़ लिया और एक जोर का धक्का दे दिया। इससे गाजर मेरी योनि में तीन इंच अन्दर तक घुस गई और योनि से खून की धार बह निकली। मेरी आँखों में आँसू आ गए, मैं डर गई.. मैंने अपनी सील खुद ही तोड़ी थी, पर अभी मेरा इम्तिहान बाकी था।
इसे भी पढ़े – मोटा लंड देख कर नौकर रखा मैंने
अब मेरे सर से सेक्स का भूत उतर गया था, मैंने गाजर को निकालने के लिए उसे वापस खींची.. लेकिन गाजर टस से मस नहीं हुई। फिर मैंने सोचा थोड़ा हिला डुला कर खींचती हूँ। मैंने इतनी तकलीफ के बावजूद गाजर को हिलाने के लिए उसे और अन्दर धकेली और फिर बाहर खींचने लगी, मेरी तो जान ही निकल गई, फिर भी गाजर को निकालना तो जरूरी था।
मेरे जोर लगाने से गाजर बीच से टूट गई… हाय राम.. ये क्या हो गया.. अब मैं क्या करूँ! गाजर का बहुत छोटा सा भाग लगभग डेढ़ इंच ही बाहर दिख रहा था। अब मुझसे गाजर निकालते भी नहीं बन रही थी और दर्द के मारे मेरी हालत और खराब हो रही थी।
अब मुझे बदनामी से लेकर दर्द खून और सभी चीजों की चिन्ता सताने लगी। ऐसी हालत में अब मेरे पास जेठानी के पास जाने के अलावा कोई चारा नहीं था। ऐसे भी मैंने पूरे कपड़े तो उतारे नहीं थे सिर्फ पेंटी उतारी थी और साड़ी ऊपर करके मजे लेने में लगी थी, सो मैंने तुरंत साड़ी को नीचे किया और लंगड़ा कर चलती हुई जेठानी के कमरे के बाहर जाकर उसे आवाज लगाई।
फिर उसे बुला कर अपने कमरे में लाई और झिझकते हुए उसे अपनी साड़ी उठा कर अपनी योनि दिखाई और पूरी कहानी बताई। मेरी जेठानी बहुत कमीनी थी, उसने सबसे पहले मेरे उस दिन के व्यवहार के लिए खरी खोटी सुनाई और कहा- तू तो बहुत अकड़ती थी ना, ले अब कुत्ते के लंड जैसा अटक गया ना तेरी चुत में.. और चुत फट गई.. सो अलग, देख तो तेरी चुत की कैसे धज्जियाँ उड़ गई हैं!
वो मुझे और ज्यादा डरा रही थी।
मैं उसके पैरों में गिर गई- दीदी मुझे बचा लो.. एक बार ये गाजर निकाल दो फिर आप जो कहोगी मैं करूँगी।
उसने कहा- सोच ले.. जो कहूँगी, वो करना पड़ेगा!
मैंने कहा- सोच लिया दीदी.. आप जो कहोगी, मैं वो करने को तैयार हूँ।
तो वो बोली- फिर ठीक है अब तू फिकर मत कर.. जा बिस्तर में लेट जा, मैं अभी गाजर निकालने का सामान लेकर आती हूँ।
मैं बिस्तर में लेट कर इंतजार करने लगी, जेठानी करीब दस मिनट बाद आई। उसके हाथ में नारियल तेल का डिब्बा और गाड़ी में रहने वाला पेंचकस आदि टूल थे। उसने उसे मेरे पैरों के पास रखा और थोड़ा ऊपर आकर मेरे दोनों कंधों को जकड़ लिया, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जेठानी क्या कर रही है। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उसने मुझे जकड़ने के बाद आवाज लगाई- आ जाओ जी.. मछली जाल में कैद है..!
सामने से जेठ जी अन्दर आ गए।
‘हाय राम.. दीदी आपने जेठ जी को क्यों बताया? अब वो क्या सोचेंगे.. मैं तो कहीं की नहीं रही!’
मैं योनि खोले टांगें फैलाए लेटी थी, मैंने हड़बड़ाने की कोशिश की, पर जेठानी ने मुझे जकड़ रखा था। जेठ जी सामने आकर बोले- साली गाजर योनि में डालते समय लाज नहीं आई.. और अब नखरे दिखा रही है, शांति से पड़ी रह, इसी में सबकी भलाई है। देख.. केवल आधा इंच गाजर ही बाहर दिख रही है, ज्यादा हिलोगी तो वो भी अन्दर घुस जाएगी, फिर आपरेशन के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा।
मुझे उनकी बात सही लगी.. मैंने जेठानी से कहा- हाँ, अब मैं नहीं हिलूँगी, मुझे छोड़ दो।
जेठानी के छोड़ते ही मैंने नजर योनि में डाली.. सही में डेढ़ इंच गाजर में से एक इंच और अन्दर घुस गई थी और योनि तो ऐसी लाल दिख रही थी मानो पान खाकर 50-100 लोगों ने एक साथ थूक दिया हो।
मैंने जेठ जी से कहा- अब आप ही कुछ कीजिए जेठ जी?
उन्होंने कहा- करूँगा तो मैं बहुत कुछ.. पर अभी सिर्फ ये गाजर निकाल देता हूँ।
मैं उनका इशारा समझ चुकी थी, पर अभी मेरे लिए गाजर निकलवाना ही सबसे ज्यादा जरूरी था। जेठ जी ने तेल के डिब्बे को खोलकर मेरी योनि में तेल की धार पिचकाई और बहुत सारा तेल अन्दर तक डालने की कोशिश की, फिर जेठानी से कहा- तुम इसके दोनों पैर फैला के रखो, ध्यान रहे गाजर खींचते वक्त कहीं ये पैर सिकोड़े ना, क्योंकि दर्द बहुत ज्यादा होगा।
जेठानी ने मेरे दोनों पैर फैलाए और कहा- चुप रहना कुतिया.. अपनी ही करनी भोग रही है, ज्यादा चिल्लाना मत और अपना वादा याद रखना।
अब जेठ जी ने बड़ी सफाई से पेंचकस में गाजर को फंसाया और जोर लगा कर बाहर खींचने लगे। दर्द के कारण मैं बेहोशी की स्थित में आ गई, अगर तेल ना डाला होता तो मैं सच में मर ही जाती। उई माँ.. मैं तो मर गई रे.. कहते हुए मैं अचेत हो गई। जब मुझे होश आया तो जेठानी मेरे सर के पास बैठी थी और सुबह होने वाली थी।
जेठानी ने कहा- चल अब तू आराम कर, रात की बात भूल जाना, ज्यादा सोचना मत.. हाँ लेकिन वादा याद रखना, मैं उसे जब चाहूं मांग सकती हूँ।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया और अनमने मन से ‘धन्यवाद दीदी’ कहा।
सुबह उठ कर मुझे चलने में तकलीफ हो रही थी, मैं जब अपने कमरे से बाहर निकली तो मैं जेठ जेठानी से नजरें नहीं मिला पा रही थी।
जेठानी ने पास आकर कहा- जो हुआ उसके लिए ज्यादा मत सोच और आज रात अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार रहना।
मैंने तुरंत ही जेठानी से गिड़गिड़ाते हुए कहा- दीदी आप क्या चाहती हो, पहले वो खुल कर बताओ!
तो उसने कहा- अरे तुम इतनी भी तो भोली नहीं हो.. तेरे जेठ तेरे तुझे चखना चाहते हैं।
मैंने कहा- इसमें आपको क्या मिलेगा दीदी?
उसने कहा- हमारी शादी को हुए आठ साल हो गए और अभी तक बच्चा नहीं हुआ है.. इसलिए मैंने इक्कीस गुरुवार का व्रत रखा है, ताकि मैं ठाकुर जी को प्रसन्न कर सकूँ और इस बीच मैं अपने पति से संबंध नहीं बना सकती हूँ। लेकिन तेरे जेठ पर ये बंदिश लागू नहीं है, वो किसी दूसरे से संबंध बना सकते हैं। अगर मैं उन्हें ऐसा करने से रोकूँगी तो वो मेरा व्रत पूरा नहीं होने देंगे। वो तो रोज ही सेक्स करने वाले व्यक्ति हैं, वो इतने दिन नहीं रुक पायेंगे और फिर उनकी हालत मैं समझ सकती हूँ।
मैंने कहा- पर दीदी, आज तक मैंने किसी के साथ संबंध ही नहीं बनाए हैं और इसी कारण से सबसे पहले मैं अपने पति से संबंध बनाना चाहती हूँ, बस मुझे पति के साथ सेक्स संबंध बनाने तक की मोहलत दे दो.. प्लीज दीदी… फिर मैं अपना वादा पूरा करने के लिए तैयार हूँ।
जेठानी भी एक स्त्री ही थी, सो उसने मेरी व्यथा समझ कर ‘हाँ कह दी.. और कहा- अब तेरे खसम को जल्दी ही तेरे ऊपर चढ़वाती हूँ।
जेठानी ने मेरी मजबूरी समझी, इसलिए अब वो मुझे थोड़ी अच्छी लगने लगी।
इसे भी पढ़े – सौतेले पापा ने मेरे साथ सुहागरात मनाया
जेठानी की कही हुई बात सच निकली, एक हफ्ते के भीतर ही मेरे पति ने एक रात मुझसे संभोग करने की इच्छा जताई, अनायास ही मेरी आँखों में आंसू आ गए। हालांकि वह नशे की हालत में सेक्स करना चाहते थे, मैं फिर भी तैयार थी, मेरे मन में बस यही तसल्ली थी कि कम से कम मैं शादीशुदा होने का अर्थ पूर्ण कर पाऊंगी।
लेकिन जैसा मैंने सोचा था, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, राज नशे की हालत में आए और उन्होंने मुझे बिस्तर पर लेटने और कपड़े उतारने को कहा, मैंने वैसा ही किया और हब्शी की तरह मुझे नोंचने लगे। उनका लिंग भी मेरे सपने के जैसा नहीं था.. मैंने तो सपने में लगभग आठ इंच के लिंग की कल्पना की थी, पर वास्तविकता में वह महज छ: इंच का लग रहा था।
मेरे पति का लिंग बहुत सख्त भी नहीं था, वह कभी मेरे उरोजों को दबाते, कभी होंठों को चूसते। मुझे उनकी ये हरकत कामोत्तेजित करने के बजाए घृणित काम करने जैसी लग रही थी क्योंकि दारू की तेज गंध मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी।
फिर भी प्रथम सहवास की खुशी से ही मेरी योनि गीली हो चुकी थी। सम्भोग की स्थिति बनने की ख़ुशी को अभी मैं महसूस ही कर रही थी कि तभी अचानक उन्होंने मेरे पैर फैलाए और अपना लिंग मेरी योनि में बेदर्दी से ठूंस दिया, मुझे बहुत दर्द हुआ.. पर झिल्ली फटने का दर्द जितना नहीं हुआ क्योंकि मैंने तो अपनी झिल्ली गाजर से ही फाड़ ली थी।
फिर भी मैंने दर्द का और रोने का नाटक किया, उन्हें तो किसी बात से मतलब तो था नहीं.. और वो लिंग को लगातार अन्दर बाहर करने लगे। अब मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया था.. तीन से चार मिनट के अन्दर मैं स्खलित हो गई और पांच मिनट के अन्दर वो भी झड़ गए और उठ कर एक किनारे सो गए।
क्या सेक्स ऐसे ही होता है, फिर लोग जो सेक्स के बारे में इतनी इंस्ट्रेस्टिंग बातें कहते हैं.. वो क्या है? मैं इसी सोच में रात भर जागती रही। अब ना ही मेरे अन्दर सेक्स की कोई ललक बची थी और ना ही उसके अन्दर ऐसी कोई बात थी कि उसके साथ सेक्स करने की चाहत मेरे अन्दर कोई भाव पैदा कर सके।
मैं तो पहली बार में ही सेक्स से विमुख होने लगी थी। फिर सोचा पहली बार के कारण ऐसा हुआ हो। मुझे सेक्स का कोई अनुभव भी नहीं था, इसलिए मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकती थी। मैंने सोचा हो सकता है कि आगे कोई बात बने। उस महीने पांच-छह बार पति के साथ संबंध बने, पर सभी अनुभव ऐसे ही नीरस ही रहे। सेक्स के दौरान हम दोनों ही उत्तेजित नहीं हो पाते थे।
फिर एक दिन जेठानी ने कहा- चल अब तुझे अपने पति से रगड़वाते एक महीना हो गया.. अब अपना वादा पूरा कर, तेरे जेठ को मैंने कब से रोक रखा है, अब और नहीं रोक सकती।
मैं चाहती तो जेठानी को सीधे मना कर सकती थी और वो मेरा कुछ भी नहीं कर सकती थी। पर मैं खुद सेक्स को जानना चाहती थी, एहसास करना चाहती थी। इसलिए मैंने ‘हाँ’ कह दिया। हालांकि मेरे अन्दर सेक्स उत्तेजना धीरे-धीरे घट रही थी, फिर भी मुझे सारी बातों का हल जेठानी की बातों को मान लेने में ही दिखा।
जेठानी ने कहा कि आज देवर जी बाहर जा रहे हैं.. वो रात को नहीं आएंगे, उनके भैया ने उसे दूसरे शहर भेजा है, आज रात को तुम तैयार रहना।
मैंने मजबूरी और मर्जी के मिले-जुले भाव में ‘हाँ’ में सर हिला दिया। रात को खाना खाकर मैं जेठ-जेठानी का इंतजार करने लगी, मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था, बहुत डर भी लग रहा था। मैं भगवान को कोस रही थी कि ये गलत काम वो मुझसे क्यों करा रहा है। फिर सोचने लगी कि जो होता है, अच्छा ही होता है।
मेरा अनुमान था कि जेठानी आज मुझे जेठ के सामने परोस कर ही रहेगी, पर क्या वो खुद भी सामने रहेगी? अकेले में तो मैं एक बार जेठ के साथ कर भी लेती पर जेठानी के सामने ये सब!
तभी दरवाजे के खुलने की आवाज आई.. सामने जेठ-जेठानी आ खड़े हुए, जेठानी ने पास आकर सीधे मेरे भारी उरोजों को मसल दिया और कहा- क्यों अभी भी तैयार नहीं है?
मैंने कहा- और कैसे तैयार होते हैं?
उसने कहा- ना लिपिस्टिक, ना सेक्सी गाऊन, ना बेड में नया चादर, ना चेहरे पे खुशी.. ऐसे भी कोई सेक्स के लिए तैयार होता है क्या? पुरानी सी साड़ी ब्लाउज पहन कर मुंह लटकाए बैठी हो..! ऐसे में तो खड़ा लिंग भी सो जाएगा!
इसे भी पढ़े – बेटे को बना लिया अपना सैयां
मैं प्रतिक्रिया में बिस्तर से उतर कर उनके सामने खड़ी हो गई और उसने ‘जरा देखूँ तो.. कुतिया ने अन्दर क्या तैयारी की है..’ कहते हुए एक झटके में साड़ी खींच दी और ब्लाउज भी फाड़ दिया। अन्दर मैंने पिंक कलर की ब्रा-पेंटी का सैट पहना था, तो उसने हँस कर कहा- अय.. हय.. अन्दर से तो सेक्स के पूरे इंतजाम किए बैठी है। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अब जेठ जी ने बिना कुछ कहे मुस्कान बिखेरी और वे अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने अनजान बनते हुए कहा- दीदी आप मेरे साथ क्या करने वाली हो?
तो जेठानी ने कहा- दिखता नहीं, तेरे ऊपर अपने खसम को चढ़वाने आई हूँ, तुझे अपनी योनि पर बहुत घमंड था ना? आज देख तेरी योनि की कैसे चटनी बनवाती हूँ।
मैं डर गई, या कहिए कि डरने का नाटक करने लगी। तब तक जेठ जी अपने कपड़े उतार चुके थे.. उन्होंने पास आकर प्यार से मेरे बालों पर हाथ फेरा और कहा- डरो मत बहू रानी, तुम्हारी योनि में मैं बहुत आराम से लिंग डालूंगा, मैं बहुत दिनों से किसी मोटी औरत से संभोग करने के सपने देखता था.
मैंने बहुतों से सेक्स किया.. पर किसी मोटी औरत की योनि में लिंग प्रवेश नहीं करा पाया। ऐसे भी तुम या मैं बाहर मुंह मारेंगे तो बदनामी तो घर की ही होगी, इसलिए जो हो रहा है, घर पर ही हो जाए तो अच्छा रहेगा। इसलिए अब तुम बिना कुछ सोचे इस संभोग का आनन्द लो।
फिर मैंने कहा- लेकिन दीदी के सामने..!
तो जेठ ने जेठानी को जाने का इशारा किया, तो जेठानी ‘ठीक है कुतिया जाती हूँ..’ कहते हुए जाने लगी.. और जाते-जाते कह गई- सुनो जी.. जल्दी आकर मेरे खेत में भी जल छिड़कना है, पूरा हैंडपंप यहीं सुखा के मत आ जाना!
उसके जाते ही जेठ जी ने मुझे आगोश में ले लिया और चुम्मा-चाटी करने लगे, वो पिये हुए थे, लेकिन तब भी मुझे उनका छूना बहुत बुरा तो नहीं लग रहा था, पर अच्छा भी नहीं लग रहा था। वो जैसा कहते रहे.. मैं करती रही, मैंने अपने मन से कुछ भी अतिरिक्त करने का प्रयास ही नहीं किया।
फिर उन्होंने अपने अंतर्वस्त्र भी निकाल फेंके, उनका लिंग 7 इंच का सीधा लंबा काला और मोटा था। लिंग में तनाव भी साफ नजर आ रहा था। वो मुझे बिस्तर में लेट कर पैर को फैलाने बोले, मैं यंत्रवत उनकी आज्ञा का पालन करती रही।
फिर वो मेरे ऊपर चढ़ कर मेरे पर्वतों को दबाने लगे, घाटियों को टटोलने लगे और अपने लिंग को मेरी योनि में लगा दिया। उसके बाद उन्होंने झटका जोर से लगा कर एक ही बार में अपना लिंग मेरी योनि की जड़ तक पहुँचा दिया। उम्म्ह… अहह… हय… याह… मुझे थोड़ा दर्द हुआ, पर मैं आराम से सह गई।
मैं कुछ देर में ही झड़ गई और वो मेरे ऊपर कूदते रहे। फिर करीब बीस मिनट बाद वो भी झड़ गए और अपने कपड़े पहन कर चले गए। मैं ऐसी ही लेटी रही, कुछ सोचते हुए.. थोड़ा रोते हुए, नींद भी आ गई। अब दिन ऐसे ही कटते रहे.. कभी पति रौंद जाते, तो कभी जेठ बिस्तर पर पटक जाते थे.
पर मैंने एक बात पर गौर किया कि पहले वो लोग मुझे हफ्ते में एक-दो बार रगड़ ही देते थे और फिर महीने में एक बार हुआ.. फिर अब तो तीन-चार महीनों में कभी-कभी भगवान की कृपा से मेरे सूखे खेत को पानी की बूंद नसीब हो जाती थी।
सबसे खास बात ये थी कि मुझे खुद भी इस बीच सेक्स के लिए बहुत ज्यादा ललक नहीं रहती या और शारीरिक क्रियाओं का मन नहीं करता। अब शादी के डेढ़ साल बीत गए और बच्चे का कोई पता नहीं था.. लोगों के कटीले ताने शुरू हो गए और साथ ही पति और घर वाले दहेज के लिए सुनाने लगे।
पति तो बीच-बीच में मायके से पैसे लाने को कहने लगे, मैं पढ़ी-लिखी होकर भी सब चुप-चाप झेल रही थी क्योंकि मेरे मायके वाले हमेशा मुझे चुप रहकर समझौता करने की ही बात करते थे। इसी बीच मैंने अपनी उदासी दूर करने के लिए अपनी बहन अंकिता को कुछ दिनों के लिए बुला लिया। उसकी छुट्टियाँ चल रही थीं, तो वह मेरे एक बुलावे पर आ गई। उसके आने से अब मुझे अच्छा लगने लगा।
अंकिता ने अभी-अभी जवानी में कदम रखा था, वो खूबसूरत चंचल लड़की जल्दी ही मेरे ससुराल वालों के साथ घुल-मिल गई। पर अंकिता के आने से शायद मेरे पति को अच्छा नहीं लग रहा था, इसलिए उनके कहने पर मैंने अंकिता को अलग कमरे में सोने को कहा।
इसे भी पढ़े – मामा मेरी स्कर्ट और ब्रा में हाथ डाला
हमेशा की तरह एक रात मेरे पति घर नहीं आए थे, मैं अकेले ही सोई हुई थी और रात को अचानक किसी सपने या आवाज की वजह से मेरी नींद खुली और उठकर इधर-उधर देखने पर भी कुछ समझ ना आया तो फिर मैं बाथरूम चली गई। फिर मैं जैसे ही वापस आने के लिए मुड़ी तो मुझे अंकिता के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दीं।
मेरे कदम ठिठके और उस ओर बढ़ गए। मैं उसके कमरे के सामने पहुँच गई और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला… मेरे पांव तले जमीन ही खिसक गई, जिसे मैं बच्ची समझ रही थी मेरी वही बहन, जिसने जवानी की दहलीज पर ठीक से कदम भी नहीं रखा था.. अपने ही जीजा जी के साथ निर्वस्त्र होकर रंगरेलियाँ मना रही है।
मेरी आँखों से आंसुओं की धार बह निकली, मैं पहले के गमों से ही पीछा नहीं छुड़ा पाई थी और अब अंकिता की इस हरकत ने मुझे अन्दर तक हिला दिया। मुझे सामने पाते ही अंकिता ने खुद को ढकना चाहा, वहाँ से हटना चाहा.. पर मेरे पति को कोई फर्क ही नहीं पड़ा। जिनका लिंग मेरे लिए हमेशा मुरझाया हुआ रहता था.. आज उसमें जान आ गई थी।
मैं समझ गई थी कि ये सब मेरे भद्देपन के कारण ही हुआ है। मैं बिना कुछ बोले अपने कमरे में वापस आ गई। सुबह भी मैंने किसी से कुछ नहीं कहा, बस अंकिता का सामान बांध कर वापस भेज दिया। अंकिता अपनी सफाई देना चाहती थी, पर अब सफाई सुनने का कोई फायदा नहीं था और मेरे पति ने तो सफाई देना तो दूर, उनके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं आई थी। मैं भी अन्दर ही अन्दर घुट के रह गई।
ऐसे ही दिन बीतने लगे, मुझे खुद से घिन आने लगी.. अपनी जिन्दगी से घिन आने लगी, मेरी जेठानी ने भी मेरे मोटापे और भद्देपन का खूब मजाक उड़ाया, उसने तो यहाँ तक कह दिया कि मेरे भद्देपन के कारण मर्द मेरे से दूर भागते हैं और अब मुझे सेक्स, आकर्षक या उत्तेजना जैसे शब्दों से चिढ़ हो गई।
पर हद तो तब हो गई.. जब मेरे हाथ घर की सफाई करते हुए पुराने कागज लगे। उसमें एक फोटो और एक सर्टिफिकेट था। वो सर्टिफिकेट मेरे पति की पहली शादी के थे। मैं दंग रह गई कि मेरे साथ इतना बड़ा धोखा हुआ है। फोटो में भी मेरे पति किसी और महिला के साथ नजर आ रहे थे। मैं फूट पड़ी… क्या मेरी शादी एक पहले से शादीशुदा इंसान से कर दी गई है??
मैंने तुरंत ही रोना-चिल्लाना शुरू कर दिया, तब मेरे पति ने मुझसे साफ-साफ कह दिया कि मैंने तो तुमसे सिर्फ दहेज के लिए शादी की थी। वर्ना तुम जैसी भद्दी लड़की के साथ तो कुत्ता भी ना रहे। अब मेरे सब्र का बांध टूट चुका था, मैंने घर फोन लगाकर पापा से बात की, तो पापा ने कहा- हमें राज की पहली शादी के बारे में पता था, पर हम लोगों ने पता किया था, अब राज उसके साथ नहीं रहता इसलिए हमने तुम्हारी शादी उससे कर दी।
मैंने फोन काट दिया, अब मुझे मेरे साथ ससुराल में हो रहे सारे बर्ताव समझ आ गए कि मेरे पति अकसर कहाँ जाया करते थे, लेकिन जब मेरे ही माँ-बाप ने मुझे धोखा दिया तो मैं क्या करती। मैंने तुरंत खेत में डालने वाली एक कीटनाशक दवाई की शीशी खोली और खा ली।
मैं जीना ही नहीं चाहती थी, पर उन लोगों ने समय पर अस्पताल पहुँचा कर बचा लिया। फिर मैंने हिम्मत जुटाई और तलाक ले लिया। अब तक प्रिया अपनी शादी, सेक्स लाईफ और अपने साथ हुए धोखे को बता रही थी और मैं सारी बातें चुपचाप सुन रहा था।
मैंने प्रिया से कहा- और दूसरी बार तुमने आत्महत्या का प्रयास क्यों किया?
प्रिया ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर कहा- अकेलेपन का दर्द तुम नहीं समझ सकते सौरभ..!
प्रिया अपनी आँखों के आँसू पोंछते हुए बाहर चली गई। उसके अकेलेपन का दर्द मैं समझूँ या ना समझूं, पर मैं उसकी भरी हुई आवाज, उदास चेहरे को जरूर समझ रहा था क्योंकि उसके इस एक वाक्य ने मुझे अन्दर तक झकझोर दिया था।
उसके बाहर चले जाने के बाद मैं अकेला बैठकर बहुत कुछ सोचता रहा, उसकी मन:स्थिति को समझने का प्रयास करता रहा, पर सब कुछ मेरे मस्तिष्क की सीमाओं से परे था और जो कुछ समझ आया, वह यह था कि सेक्स की सही समझ, फोरप्ले और शारीरिक क्षमताओं के साथ ही सही पार्टनर भी मनुष्य के जीवन में बहुत अहमियत रखते हैं।
अब मैं इस बात से भी इंकार नहीं कर सकता कि प्रिया की कामक्रीड़ा की कहानी सुन कर मेरे लिंग में तनाव आया और प्रीकम की बूँदें भी चमक उठीं। प्रिया के लिए मेरा नजरिया बदल गया, लेकिन मैंने जल्दबाजी के बजाए समझदारी से काम लिया।
मैंने प्रिया की परेशानी का हल और अपनी अन्तर्वासना पूर्ति के लिए एक अनोखा उपाय किया, जिससे सांप भी मर गई और लाठी भी नहीं टूटे। लेकिन मैं जो चाहता था.. अब उसके लिए मुझे लंबा परिश्रम करना और करवाना था। मैं प्रिया का खोया हुआ आत्मविश्वास लौटाना चाहता था, उसे हॉट और खूबसूरत बनाना चाहता था, सेक्स के प्रति उसकी रुचि फिर से जागृत करना चाहता था।
अंत में उसके साथ कामक्रीड़ा की पराकाष्ठा को पार करना चाहता था.. और इस सबके लिए मुझे बहुत सी प्लानिंग करनी थी। पहले तो मैं कुछ दिन सोचता ही रहा कि मुझे क्या-क्या करना है। मैं प्रिया को सारी चीजें सीधे-सीधे बता भी नहीं सकता था क्योंकि फिर वो मेरा साथ नहीं देती, या यूं कहो कि मेरी तरकीबों का असर नहीं होता।
सबसे पहले मैं खुद सुबह जौगिंग के लिए जाने लगा, तीन दिन बाद प्रिया को भी चलने को कहा, उसने मना किया तो मैंने दोस्ती का वास्ता दे दिया। प्रिया की जिन्दगी में अरसे बाद कोई अपना लगने वाला सच्चा दोस्त मिला था, इसलिए वो मुझे कभी भी नाराज नहीं करना चाहती थी और अभी तो मैंने उसे दोस्ती का वास्ता दे दिया तो ‘नहीं’ कहने का तो सवाल ही नहीं था।
अब वो मेरे साथ सुबह सैर पर जाने लगी और मैं उसे खूब दौड़ाने लगा। मेरा मानना है कि सांवली लड़कियां भी अगर फिट हों.. तो खूबसूरत लगती हैं। अगर किसी के चेहरे पर अन्दर से की खुशी नजर आने लगे.. तो फिर बदसूरती कोसों दूर भाग जाती है। मैं सबसे पहले प्रिया के अन्दर यही चीजें लाना चाहता था।
हम पहले हफ्ते लगभग आधा कि.मी. फिर एक कि.मी. फिर दो कि.मी. दौड़ लगते रहे। ऐसे करते-करते एक महीने में हम दोनों धीरे धीरे चार कि.मी. तक की दौड़ लगाने लगे, इससे ज्यादा ना ही वो दौड़ सकती थी और ना ही मैं उसे दौड़ाना चाहता था।
हम दौड़ने के बाद एक जिम स्टाइल गार्डन में जाते थे, जहाँ थोड़ी देर आराम करने के बाद बहुत सी आधुनिक झूले टाईप के व्यायाम मशीनों में कसरत किया करते थे। इन सबमें मेरा जिम का पुराना अनुभव काम आ रहा था, मेरा पूरा फोकस प्रिया को सुडौल बनाने का था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
आप सोच रहे होंगे डॉक्टरी ट्रीटमेंट, या दवाई का भी सहारा तो लिया जा सकता था, तो मैं आपको बताना चाहूंगा कि पहली बात तो ऐसी सारी चीजें या तो असर नहीं करतीं, यदि करती भी हैं तो साईड इफेक्ट भी हो सकते हैं।
थोड़ी बहुत डॉक्टरी ट्रीटमेंट के लिए तो मैं खुद ही कहता हूँ, पर प्रिया को तो मुझे पूरा का पूरा बदलना था और सबसे बड़ी बात, इससे प्रिया का आत्मविश्वास नहीं लौटता। इसलिए मैं उसको नेचुरल तरीके से ही ट्रीट कर रहा था।
प्रिया हार्ड वर्क करके बहुत ज्यादा थक जाती थी, तो मैं घर आने पर उसके हाथ पैर दबा दिया करता था, हालांकि उसने शुरू शुरू में मुझे मना किया, पर अब हम इतने करीब आ चुके थे कि उसकी ना-नुकुर मेरी जिद के सामने फीकी पड़ गई।
मैंने इन सब चीजों के साथ ही उसके शरीर के रंग को भी ठीक करने के लिए घरेलू नुस्खे अपनाने को कहा। वो खुद से तो कुछ करने से रही.. तो मुझे ही मुलतानी मिट्टी, ऐलोवेरा लाना पड़ता था और आटा, बेसन, गुलाबजल, हल्दी को मिक्स करके एक लेप बनाना पड़ता था। आप भी ट्राई कीजिएगा..
पहले तो मैं ये लेप उसके चेहरे और हाथों में लगवाता था और कुछ देर रखने के बाद नहाने को कहता, ये सब उसने कुछ दिन ही किए होंगे और असर दिखने लगा। प्रिया भी अब पहले की तुलना में खुश रहने लगी, पर असली परिश्रम अभी बाकी था.
इसे भी पढ़े – मालिनी की चूत का स्वर्णामृत निकाला मस्त चुदाई से
क्योंकि थोड़े से बदलाव से काम नहीं चलना था और अभी तो उसे सेक्सी डॉल, अप्सरा, मॉडल बनाना था। उसे नार्मल लड़कियों से भी ज्यादा खूबसूरत और हॉट बनाना था। इन सबके लिए मैंने उसे स्वीमिंग, साईकिलिंग और डांसिंग करवाने की सोची। पर इनमें टाइम भी बहुत लगता था, इसलिए मैंने ऑफिस से तीन महीने की छुट्टी ले ली और प्रिया से भी छुट्टी के लिए लेने को कहा। प्रिया बड़ी मुश्किल से तैयार हुई, क्योंकि अब वो भी जान गई थी कि उसके ना कहने से मैं मानने वाला तो हूँ नहीं..
और हम दोनों को ‘नो वर्क.. नो पेमेंट’ पर और ऑफिस के हेड से प्रिया की जान-पहचान की वजह से छुट्टी मिल गई। अब प्रिया यंत्रवत मेरी बात मानने लगी क्योंकि वो भी समझती थी कि ये सारे उपक्रम उसी के लिए ही हैं। मैं उसे डांस क्लास अकेले जाने को कहता और साईकिलिंग और स्वीमिंग के वक्त साथ जाता। प्रिया को शार्ट ड्रेस में स्वीमिंग करते हुए देख कर मेरा तो लिंग अकड़ जाता था, क्योंकि प्रिया का शरीर अब सुडौल हो रहा था। मैं कभी कंट्रोल कर लेता था और कभी घर आकर हाथों से ही हल्का हो जाता था। आगे की कहानी अगले भाग में…