Burqa Girl Porn
यास्मिन एक 20 साल की लड़की है। उसकी लम्बाई 5’6 ” सुंदर गोरी त्वचा और दुबली पतली दिखाई देती है, कुछ-२ आलिआ भट्ट की तरह। उसके बोबे ना ज्यादा बड़े ना ज़्यादा छोटे, 34b साइज के हैं। उसकी गांड बहुत की गोल मटोल और शानदार है। देखने में एक दम माल लगती है। स्वभाव से बहुत ही शर्मीली और मासूम है। Burqa Girl Porn
वह अपने परिवार के साथ रहती है। उसके परिवार में उसको छोड़ कर, उसके पापा, माँ और भाई है। उसके पापा, सलमान, एक निजी फर्म में एक अकाउंट मैनेजर हैं। उसकी माँ, सलमा, कपड़ों और मेकअप के सामन की शॉप चलाती हैं। उसकी माँ अपने व्यस्त जीवन शैली की कारन बहुत ही फिट है।
बोबों और गांड को छोड़ के उसकी माँ का बदन भी पतला है। उसके बोबों का साइज 36c है और गांड बहुत ही बड़ी और जानमारु है। उसकी माँ इस उम्र में भी इतनी सेक्सी और फिट है की वो यास्मिन की माँ की तुलना में यास्मिन की बहन ज़्यादा दिखती है।
यास्मिन का भाई, अरबाज, 18 साल का है और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है। क्योंकि भाई-बहन एक ही उम्र के हैं इसलिए दोनों मैं झगड़ा भी बहुत होता है और प्यार भी बहुत है। दोनों की एक दूसरे को परेशान करने की तरकीबें बनाते रहते हैं। नाज़मा का परिवार एक रूढ़िवादी परिवार है।
वह जब भी बाहर जाती है बुर्का पहनती है। इसलिए घरवालों और रिश्तेदारों को छोड़ कर बहुत कम लोग ही उसे पहचानते हैं। यास्मिन एक बहुत ही शर्मीली, मासूम और शरीफ लड़की है लेकिन उसका एक और छुपा हुआ व्यक्तित्व भी है। उससे लोगों को नंगे देखना या सेक्स करते हुए देखना बहुत पसंद है।
वो ये भी चाहती है की कोई उसके बदन को देखे, नंगा देखे लेकिन अचानक से। जैसे की गलती से देख लिया हो, वो नहीं चाहती थी लेकिन परिस्थिति ऐसी बन जाये। ऐसा सोच कर ही वो बुरी तरह से उत्तेजित हो जाती। इनकी सब कल्पनाओं के बारे में सोचकर वो ना जाने कब से ऊँगली करती थी और अपनी गर्मी निकलती थी।
यास्मिन को नहीं पता था की वास्तविक रूप में सेक्स कैसा होता है, उसकी फीलिंग क्या होती है। उसकी सील अभी तक नहीं टूटी थी। सील क्या उसने अपनी ज़िन्दगी में अभी तक किसी के साथ सेक्स के बारे में बात तक नहीं की थी। धीरे-२ रोज़ कल्पना करते हुए मुठ मारने से वो उकता गयी थी।
वो असल में कुछ करना चाहती थी लेकिन उसे अपनी कल्पनों को, अपने सपनो को साकार करने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। अब वो अपनी एक-दो फैंटसी को वास्तविकता में लाने का प्रयत्न करना चाहती थी। अब उससे लगने लगा था की एक बेजोड़ प्लान बनाया जाये और हिम्मत करके कुछ असल ज़िन्दगी में कोशिश की जाये, नहीं तो वो अपनी कल्पनों के भंवर में पागल हो जाएगी।
उसकी एक बहुत पुरानी फैंटसी थी, बुर्का के नीचे बिलकुल नंगे ही बाज़ार जाना। ऐसा सोचते ही उसके रोंगटे खड़े हो जाते थे। बुर्का ज्यादातर चूड़ीदार, सलवार-कमीज, साडी या फिर कभी-२ नाइटी के ऊपर भी पहना जाता है, और उसके नीचे अंडरवियर तो होते ही हैं। बुर्का ज्यादातर पतले कपडे का बना होता है, इसलिए उसमें से निप्पल की शेप दिखने का भी खतरा हो सकता है।
इसलिए यास्मिन ने काले रंग के बुर्के को चुना। वो बहुत डर रही थी लेकिन अब उसने ठान ली थी की ये फैंटसी तो पूरी करनी ही है। उसने पूरी योजना बना ली थी। वो नहीं चाहती थी की घर के किसी भी व्यक्ति को इसके बारे में भनक भी लगे, नहीं तो उसकी फैंटसी तो क्या पूरी होती, उसकी ज़िन्दगी ही नरक बन जाती।
उसने अपने प्लान के लिए शनिवार का दिन चुना। उसके पापा शनिवार को भी ऑफिस जाते थे, माँ की दुकान पर शनिवार को थोड़ा ज़्यादा भीड़ रहती थी और भाई अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने सुबह ही निकल जाता था। शनिवार को सब लोगों के जाने के बाद वो अपने कमरे में जाके सारे कपडे उतार के पूरी नंगी शीशे के सामने खड़ी हो गयी।
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उससे साफ़-सफाई बहुत पसंद थी। उसकी मुनिया बिलकुल सफाचट थी। वो आईने में अपने नग्न शरीर को निहारने लगी। जब भी वह कपड़े बदलती तो शीशे में अपने बदन को ज़रूर निहारती थी। उसने सोचा कि अगर वह इस तरह पूरी नंगी ही बाहर जाती है तो कैसा होगा।
जैसे ही ये विचार उसके दिमाग में आया, उसकी मुनिया ने पानी बरसाना शुरू कर दिया। वो फिर से अपनी सपनो की दुनिया में पहुँच गयी। लेकिन अब ये सपने देखने का समय नहीं था, अब तो सच में कुछ करना था। सपने देखना और सच करना दोनो अलग-अलग बातें है। उसके पेट में गुड़गुड़ होने लगी।
एक बार तो सोचा की रहने दे लेकिन कभी तो करना है की। इसलिए उसने अपने प्लान पे आगे बढ़ने का फैसला किया। उसने अपने मादरजात नंगे शरीर पर बुर्का पहना। ऐसे करने से ही वो बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गयी। उसके उभरे हुए निप्पल बुर्के के ऊपर से बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहे थे.
लेकिन उसने अपने मन को समझाया की कोई इतनी पास से और इतने ध्यान से थोड़ा ना देखेगा। उसने दुपट्टे से अपना सिर ढक लिया और थोड़ा सा बोबों को छुपाने के असफल प्रयास भी किया। उसने जल्दी से अपना बैग उठाया और बाहर निकल गई ताकि कहीं उसके बुज़दिल विचार उससे कमज़ोर ना कर दें।
जाने से पहले उसकी माँ ने उसे बाज़ार से कुछ सामान लाने के लिया कहा था। उसे पास की मंडी से सब्जी खरीदनी थी। इस मंडी में बहुत भीड़ रहती थी। वो गंदे गरीब लोग, एक-२ रुपए पे मोलभाव, गन्दगी, पसीने की बदबू, ये मंडी भी हमारे देश की बाकि सब्ज़ी मंडियों की तरह ही है।
यास्मिन शर्मीली ज़रूर है लेकिन उसकी माँ ने उसे मोलभाव करना अच्छे से सिखाया है। हमारे देश में औरतें इस काम में बहुत कुशल होती हैं। वह तेज़-२ क़दमों से बाजार जाने लगी। उसके बोबे बहुत बड़े नहीं थे और बिलकुल सख्त भी थे इसलिए बिना ब्रा के भी बहुत ज़्यादा फुदकते हुए नहीं दिखाई दे रहे थे।
यास्मिन अपनी पोशाक को लेकर बहुत टेंशन में थी। बाज़ार में बहुत भीड़ थी। जब भी कोई उसकी तरफ देखता है तो वह एकदम से सजग हो जाती थी। कहीं से कुछ दिख तो नहीं रहा, क्या इसे पता तो नहीं चल गया की मैं बुर्के के नीचे पूरी नंगी हूँ। बुर्के के नीचे से अगर थोड़ा सा पैर भी नंगा दिखाई दे जाता तो किसी को भी शक हो सकता था, क्योंकि बुर्के के नीचे ज्यादातर ऐसे कपडे पहने जाते हैं जो की टखने तक आते हैं।
वह बाजार पहुंची। सब्ज़ियां खरीदने से पहले उसने एक लम्बी सांस ली और अपने आप को रिलैक्स करने की कोशिश करने लगी। उसने सोचा अगर वो दुकानदार के सामने जाएगी तो दुकानदार को एक जवान लड़की ही तो दिखाई देगी। दुकानदार को थोड़ा ना पता होगा की वो लड़की बुर्के के नीचे नंगी है।
उसने अपने सीने से दुपट्टा हटा दिया। उसके निप्पल भी अब उतने नहीं दिखाई दे रहे थे। उसका मन अब पहले से अपेक्षा शांत हो चूका था। उसके बोबे उतने फुदकते हुए भी नहीं दिखाई दे रहे थे। अगर वो तेज़ चलती या फिर सब्ज़ी खरीदते हुए ज़्यादा हिलती तो थोड़ा बहुत मह्सूस होता की उसने ब्रा नहीं पहनी है लेकिन वो भी बहुत ध्यान से देखने वाले को।
पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद वो एक दुकान पर रुक गयी। दुकानदार का नाम शादाब था। वो तकरीबन 60 साल की उम्र का बूढ़ा सा आदमी था। उसका मुंह पान से भरा हुआ था। उसने धोती और ऊपर सिर्फ एक फटी पुरानी बनियान पहनी हुई थी। यास्मिन पहले से कहीं ज़्यादा कण्ट्रोल में थी लेकिन फिर भी वो पूरी तरह से रिलैक्स नहीं थी।
उसने जल्दी-२ सब्ज़ी लेनी शुरू की। वो कोई उतना मोलभाव भी नहीं कर रही थी। शातिर दुकानदार की नज़र से ये बात चुप नहीं पायी। शादाब समझ गया की कुछ ना कुछ गड़बड़ ज़रूर है। अब क्या गड़बड़ है, ये शादाब को अभी तक पता नहीं चला था।
“क्या हुआ बेटी? सब ठीक तो है, थोड़ा घबराई सी लग रही हो। कोई तुम्हे तंग तो नहीं कर रहा ना?” शादाब ने टेढ़ी मुस्कान के साथ पुछा।
यास्मिन: नहीं, कुछ नहीं। सब ठीक है।
यास्मिन को लगा की शायद दुकानदार को उसकी हालत के बारे में पता चल गया है। वो वहां से भाग जाना चाहती थी। लेकिन अगर ऐसे अचानक से चली जाती तो दुकानदार का शक यकीन में बदल जाता। यही सोच कर वो चुपचाप सब्ज़ी खरीदने में ध्यान लगाने लगी।
शादाब: और बेटी, अब्बा कैसे हैं तुम्हारे? सलमान मियां दिखाई ही नहीं देते आजकल?
यास्मिन की गांड ही फट गयी। ये मादरचोद तो जानकार निकला। अब्बा को भी जानता है। अब क्या होगा?
यास्मिन (घबराते हुए): जी… जी.. अब्बा बहुत अच्छे हैं…. वो गर्मी से बड़ी बेचैनी हो रही है… इसलिए थोड़ा जल्दी में हूँ… आप प्लीज जल्दी से सब्ज़ी दे दें….
शादाब (गन्दी सी हंसी के साथ): हाँ, हाँ। क्यों नहीं। हमारा तो काम ही है, आपको देना…. ये लम्बे बैगन ले जाइये… बहुत शानदार लगेंगे आपको.
यास्मिन उस दुकानदार की दोअर्थी बातें समझ रही थी लेकिन उसने दुकानदार से उलझना अच्छा नहीं समझा। वो बस उसकी दुकान से जल्दी से जल्दी निकल जाना चाहती थी। यास्मिन ने चुपचाप सब्ज़ी ली और फटाक से निकल ली। शादाब जाती हुई यास्मिन की गांड को बड़े गौर से घूरता है और बगल में पीक की पिचकारी मारता है।
शादाब (मन में): क्या गांड है बहन की लोड़ी की। खूब जवानी चढ़ गयी है। कुछ तो चक्कर है साली का। अगली बार देखता हूँ कुतिया को.
यास्मिन थोड़ा आगे निकल कर चैन की सांस लेती है।
यास्मिन (मन में): कमीना, पहचान गया था मुझे। अच्छा हुआ मुझे ही पहचाना, मेरे कारनामो को नहीं…
खरीदारी पूरी करने के बाद यास्मिन पैदल ही घर की तरफ चल दी। घर जाने से पहले उसे कुछ सब्जियाँ अपने पड़ोस में रहने वाले बुजुर्ग अंकल-आंटी को देनी थी। उनके पडोसी बहुत समय से वहां रह रहे थे। वो बहुत बूढ़े थे और उनके घर यास्मिन के परिवार का काफी आना जाना था। वो लोग इस बुढ़ापे में ज़्यादा बाहर नहीं निकल पाते थे इसलिए यास्मिन का परिवार उनकी दैनिक चीज़ों में मदद कर देता था। यास्मिन ने उनके घर पहुँच कर डोर बेल बजाई। आंटी ने दरवाज़ा खोला।
यास्मिन: हेलो आंटी… मैं आपके लिए सब्ज़ियां ले आयी.
आंटी: अरे यास्मिन बेटी, आओ, आओ… हम तुम्हारी ही बात कर रहे थे। तुम ये सब्ज़ियां फ्रिज में रख दो। फिर आराम से बातें करते हैं…
यास्मिन ने सब्ज़ियां फ्रीज में रख दी और ड्राइंग रूम में अंकल-आंटी के सामने रखे सोफे पे बैठ गयी।
आंटी: थैंक्स बेटा। तू कितना ख्याल रखती है हम दोनों बूढ़ा-बूढी का।
यास्मिन: अरे थैंक्स की क्या बात है आंटी। वो तो मुझे वैसे भी घर ले लिए सब्ज़ी लानी ही थी तो आपके लिए भी ले आयी।
आंटी: कितनी गर्मी है। देख तो कितना पसीना आ रहा है तुझे बेटा। ये मुआ बुरका क्यों पहन रखा है ? कम से कम घर में तो निकाल दे इससे।
एक पल को तो यास्मिन को लगा की बात बिलकुल ठीक है, बुरका निकाल देती हूँ। फिर उससे याद आया की आंटी-अंकल से बातों में वो भूल ही गयी की वो तो बुर्के के अंदर नंगी है। अब बुरका उतार के अंकल को हार्ट अटैक थोड़ा ना देना था।
यास्मिन: नहीं आंटी, मैं ऐसे ही ठीक हूँ। अच्छा मैं चलती हूँ, घर पे भी काम है।
आंटी: अरे रुक तो, मैं तेरे लिए कुछ ठंडा पीने के लिए लेके आती हूँ।
यास्मिन: नहीं आंटी, आप क्यों तकलीफ कर रहे हैं। ठंडा फिर कभी, अभी तो मैं चलती हूँ।
आंटी यास्मिन के साथ कुछ टाइम और पास करना चाहती थी। आंटी ने उससे रोको भी लेकिन फिर भी यास्मिन वहां से निकल आयी। वह अपने घर पहुँच गयी गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। जैसा कि वो बाहर से आने के बाद हर बार करती है, वैसे ही उसने घर पहुँचते ही अपना बुर्का उतर कर दरवाजे के पास बने स्टैंड पे लटका दिया। फिर उसने एक लम्बी रिलैक्स मूड में सांस ली।
फिर से अपनी मुट्ठी को हवा में लहराया और ख़ुशी से चीख पड़ी: “यस, यस,… I have done it…. कर लिया मैंने…. कर ली अपनी एक फैंटसी पूरी…. शाबास यास्मिन”। ये कहते हुए उसने अपनी खुद ही पीठ थपथपाई। वो पूरी नंगी ही लिविंग रूम में कूद रही थी। अच्छा है की जाने से पहले वो सारी खिड़कियाँ बंद करके गयी थी।
उसे नंगे रहने में बहुत मज़ा आ रहा था। पूरे दिन ढकी रहने वाली यास्मिन, ऐसी यास्मिन जिस के बदन के ना जाने कितने अंगों ने कब से रौशनी नहीं देखी होगी, वो यास्मिन दिन-दिहाड़े पूरी मादरजात नंगी ड्राइंग रूम में बेधड़क घूम रही थी। उसे ऐसा करते हुए कोई देख नहीं रहा था लेकिन उसे बहुत अच्छा लग रहा था।
दोपहर के खाने से पहले कोई नहीं आने वाला था। उसके पास अभी बहुत टाइम था, मस्ती करने के लिए, नंगे रहने के लिए। उसे बर्तन धोने थे। उसने सोचा क्यों ना ये काम भी नंगे ही किया जाये। उसने नंगे ही सारे बर्तन धोये और सेल्फ में सजा दिए। बर्तन धोते-२ वो पूरी तरह से गीली हो गयी थी।
उसने एक तौलिया लिया और ड्राइंग रूम में लगे सोफे पे बैठ कर खुद को सुखाने लगी। उसके दिमाग में सुबह से हुई सारी घटनाएं दौड़ने लगी। सब याद करते-२ उसके बदन में सिहरन दौड़ने लगी। बदन से छूता हुआ तौलिया भी उसे रोमांचित कर रहा था। उसने अपनी चूत को छू के देखा तो पता लगा की उसकी चूत का तो झरना बना हुआ है।
अब उससे और रुका नहीं गया। उसने अपनी दो उँगलियाँ चूत में घुसाड़ दी और वहीँ सोफे पे मुठ मारना शुरू कर दिया। आज ये पहली बार था जब वो इतने खुले में मुठ मार रही थी। आज से पहले उसने केवल अपने कमरे मैं, लॉक करके, बिना आवाज़ के, लाइट बंद करके ही अपनी मुनिया को हाथ लगाया था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वो इतनी ज़्यादा उत्तेजित थी की ऊँगली करने के 10 सेकण्ड्स में ही उसने झड़ना शुरू कर दिया। शायद ये उसकी ज़िन्दगी की सबसे शानदार मुठ थी। वो इतनी तेज़ और इतनी ज्यादा झड़ी की वो वहीँ सोफे पे निढाल हो के लेट गयी। कुछ समय बाद जब उसने आँखें खोली तो उसे गलानि ने आ घेरा।
वो सोचने लगी “मेरे माँ बाप मुझे कितना शरीफ समझते हैं। कितनी इज्जत है उनकी समाज में। अगर उन्हें पता चल गया की उनकी बेटी ये सब कारनामे करती है तो क्या बीतेगी उनपे। नहीं, मैं आज के बाद ऐसा कुछ नहीं करुँगी।” ये सोच के वो तुरंत नहाने चली गयी।
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नहा के उसने कपड़े पहन लिए। उसके भाई के आने का टाइम भी हो चला था। अपने मूड को फ्रेश करने के लिए वो टीवी देखने लगी। जब उसके माँ और भाई लौटे तो यास्मिन उनसे आँखें मिलाने में झिझक रही थी। लेकिन उसके भाई और माँ का बर्ताव बिलकुल नार्मल था।
ये देख के यास्मिन भी धीरे-२ रिलैक्स होने लगी और उसका कॉन्फिडेंस भी वापिस आने लगा। कुछ समय के बाद वो सामान्य होने लगी। सभी ने साथ में दोपहर का खाना खाया और फिर सभी अपनी-२ सामान्य दिनचर्या में लग गए। दो दिन तक तो सब नार्मल रूटीन रहा लेकिन तीसरी रात को यास्मिन जब सोने के लिए अपने बिस्तर पे लेटी तो उसके कामुक विचारों ने उसे फिर से उसे घेर लिया।
उसे अब फिर से कोई रोमांच चाहिए था। उसने सोने के बहुत कोशिश की लेकिन वो बिल्कुल भी नहीं सो पा रही थी। उसे कुछ करना था, आज भी करना था, कल भी करना था, रोज़ करना था। कितना मज़ा आया था उस दिन सब्ज़ी लेने में। पहली बार उसे बर्तन धोना उसे अच्छा लगा था। नंगे होके घूमना, कुछ भी करना, कितना मज़ा आता है।
उसने अपने कपडे उतार दिए और नंगी हो गयी। नंगे होके अपने बिस्तर पर लेटने में उसे एक अलग सी मस्ती की लहर महसूस हो रही थी। आमतौर पर सुबह उसकी माँ उसे चद्दर खिंच कर जगाती थी इसलिए रात को नंगे सो जाना भी मुंकिन नहीं था। इसलिए यास्मिन अभी सोना नहीं चाहती थी।
उसे नंगे रहना बहुत अच्छा लग रहा था। वो बिस्तर से उठी और अपने कमरे में इधर-उधर नंगे ही घूमने लगी। उसने अपने कमरे में इधर-उधर कुछ-२ नार्मल काम करने शुरू कर दिए लेकिन ये सब नंगे करने में अलग ही आनंद मिल रहा था। अब उसने मन बना लिया की जब भी संभव हुआ वो नंगी ही रहा करेगी और नंगी ही सब काम करेगी।
कुछ देर में यास्मिन थोड़ा बोर होने लगी। उसने अपने बेडरूम का दरवाजा खोला और बाहर झाँका। बाहर अंधेरा और सन्नाटा फैला हुआ था। उसका बाहर जाने का मन किया। वो घर में नंगे घूमना चाहती थी, वो भी तब जब सब लोग घर में ही हों। लेकिन अगर कोई जाग गया तो क्या होगा।
क्या होगा अगर उससे शोर हो गया या कोई अनजाने में आवाज़ हो गयी कोई अपने रूम से चेक करने के लिए आ गया। वो क्या जवाब देगी? ऐसे नंगे घर में घूमने का क्या बहाना बनाएगी? वो मन में कुछ देर बहस करती रही और आखिर में दिमाग पे चुत की जीत हुई। उसने रिस्क उठा के बाहर जाने का फैसला किया।
यास्मिन बहुत ही सावधानी से बाहर आई। उसने चुपचाप धीरे-२, बिना शोर किये, अपने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया। वो नहीं चाहती थी की कोई अगर अपने रूम से बाहर आये तो उसे यास्मिन के रूम का दरवाज़ा खुला देख के कोई शक हो। लेकिन दरवाज़ा बंद करने का ये भी मतलब था की अब वो किसी खतरे के समय पर तुरंत अपने कमरे में नहीं जा सकती थी।
उसका कमरा सीधे लिविंग रूम में खुलता है। वह धीरे-२ बिना आवाज़ लिए बिल्ली की तरह चल रही थी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था की वो नंगी अपने घर के लिविंग रूम में पहुँच गयी है जबकि उसके मम्मी, पापा और भाई अपने बेडरूम में सो रहे हैं। उसे उत्तेजना और बेचैनी के मारे अपनी चुत में गीलापन महसूस होने लगा।
बाहर अँधेरा घना नहीं था। सड़क से खिड़कियों के रस्ते आती रोशनी ने लिविंग रूम में पर्यापत उजाला कर रखा था। उसके घर के सभी बैडरूम के दरवाज़े लिविंग रूम में ही खुलते थे। इसलिए, अगर कोई उठ के बाहर आता तो उसे जन्मजात नंगी घूमती हुई, घर की इज्जत, शरीफ और लाड़ली बेटी दिख जाती।
वो कुछ देर तक घर में इधर-उधर टहलती रही। उसे घूमते हुए 15 मिनट से ज़्यादा हो गया थे। लेकिन अभी तक उसका मन नहीं भरा था। उसने प्लान किया की वो एक घंटे तक ऐसे ही नंगी घर में घूमेगी और उसके बाद अपने कमरे में जाएगी। उत्तेजना से उसका गला सूख गया था और उसे बहुत तेज प्यास लगी थी।
वह रसोई में गई और फ्रिज खोला। लेकिन ये क्या, जैसे ही उसने फ्रीज खोला उसका नंगा बदन फ्रीज की रौशनी में नहा गया। ऐसा लग रहा था जैसे वो नंगी स्पॉटलाइट में खड़ी हो। उसने घबरा के तुरंत फ्रीज बंद कर दिया। वो घबरा गयी थी। उसने एक लम्बी सांस लेके अपने आप को शांत किया और मन-२ अल्लाह को याद करते हुए फिर से फ्रीज को खोल लिया।
फ्रीज में एक ही पानी की बोतल भरी रखी थी। उसने बोतल से कुछ पानी पिया और कुछ पानी अपने ऊपर गिरा लिया। गर्मी बहुत हो रही थी। फ्रिज से आती ठंडी हवा उसे बहुत अच्छी लग रही थी। यास्मिन वहीं ठण्ड का आनंद लेती हुई कुछ देर खड़ी रही। ठंड के कारण उसके निप्पल अब थोड़े-२ खड़े होने लगे थे।
जो पानी उसने अपने शरीर पे डाला था वो पानी धीरे-धीरे रास्ता बनाते हुए उसकी चूत तक पहुँच गया और उसके नीचे वाले होंठों को और ज़्यादा गिला करने लगा। कुछ देर बाद उसने फ्रिज बंद कर दिया और तफरी करते हुए आखिर में सोफे पर बैठ गई। उसका मन वहां मुठ मारने का हो रहा था।
लेकिन उसे पता था की वो आज मुठ मारते हुए बिलकुल चुप नहीं रह पायेगी। कुछ न कुछ आवाज़ें तो उससे होंगी ही। इसलिए उसने मुठ मारने का प्लान अभी के लिए टाल दिया। अचानक उसे दरवाजे के खुलने की आवाज आई। वो एक दम से अलर्ट हो गयी। यास्मिन अभी अपने बेडरूम में नहीं जा सकती थी या कहा जाये तो वो इस समय पर नहीं जा सकती थी।
उसने आव देखा न ताव और बस सोफे के पीछे कूद के वहां छिप गई। उसका भाई कमरे से बाहर आया था। उसके भाई ने लिविंग रूम की लाइट ऑन कर दी। हर जगह उजाला फ़ैल गया। उसका नंगा बदन रौशनी में नहा गया। अगर उसका भाई इस तरफ आ जाता तो उसके पास छिपने की कोई जगह नहीं थी।
“क्या घटिया प्लान था? माँ चुद गयी सारे प्लान की। आगे से बहुत ध्यान देके प्लान बनाना होगा।” यास्मिन ने अपने मन में सोचा।
उसका भाई पानी पीने के लिए रसोई में गया। उसे पता था की उसके भाई को अच्छा-खासा टाइम लगने वाला है। फ्रीज में एक ही बोतल थी जो की यास्मिन ने पूरी खाली कर दी थी। पहले तो यास्मिन ने मज़े-२ में सारा पानी पी लिया था अब उसका पेशाब का तेज प्रेशर बन रहा था।
उनका घर काफी पुराने तरीके से बना हुआ था। घर में कोई अटैच्ड बाथरूम नहीं था क्योंकि उस ज़माने में इसे बहुत ही गन्दा और अस्वच्छ माना जाता था। उनके घर के पीछे एक खुला पिछवाड़ा था,बहुत बड़ा भी नहीं लेकिन छोटा भी नहीं। उसके दाहिने कोने पे एक शौचालय बना हुआ था। घर के पिछवाड़े को ऊंची दीवारों से हर तरफ से ढक दिया था ताकि कोई देख या कूद न सके।
पिछवाड़े के बिलकुल दूसरे छोर पर रसोई बनी हुई थी। यदि यास्मिन की तरह उसके भाई को भी पेशाब करना होता तो उसे पूरा लिविंग रूम पार करके जाना पड़ता। अगर ऐसा होता तो पक्के से यास्मिन नंगी पकड़ी जाती। यास्मिन प्रार्थना करने लगी की उसका भाई सीधे अपने कमरे में वापिस चला जाये। उसके भाई ने पानी पिया और लाइट बंद करके सीधे अपने कमरे में चला गया।
यास्मिन मन ही मन में: शुक्र है अल्लाह का। जान बची तो लाखों पाए…. इतनी देर से वो अपने पंजों पे ही बैठी हुई थी। अब रिलैक्स होते हुए वो सोफे से अपनी पीठ टिकाते हुए नंगी ही ही फर्श पर बैठ गयी। जैसे ही ठन्डे-२ फर्श को उसकी गांड ने छुआ, उसके पेशाब का प्रेशर फिर से जोर मारने लगा।
लेकिन वो अभी कोई चांस नहीं लेना चाहती थी, वो चाहती थी के मैदान पूरा साफ़ हो जाये। उसने थोड़ी देर और इंतजार किया। जब उसे यकीन गया कि अब उसका भाई वापस नहीं आएगा। वह उठकर पिछवाड़े के दरवाजे की ओर भागी। लेकिन पिछवाड़े के दरवाज़े पे पहुँच कर उसकी गांड फट गयी।
उसने सोचा की अब और चांस लेना ठीक नहीं है, उसे अपने कमरे में जाके कपडे पहन लेने चाहिए और फिर ही पेशाब करने जाना चाहिए। यास्मिन अपने कमरे की तरह जाने लगी। इससे पहले कि वो अपने कमरे का दरवाजा खोल पाती, उसके दिमाग का शैतान उस पर फिर से हावी होने लगा।
उसने सोचा इस समय उसे पिछवाड़े में देखने वाला कोई नहीं होगा। चांद की मुलायम रोशनी के नीचे उसका नंगा बदन। अये-हाय मज़ा ही आ जायेगा। उस विचार से उसके बदन में एक कंपकंपी फ़ैल गयी। उसने ये चांस लेने का भी मन बना लिया।
यास्मिन ने सोचा: करुँगी तो ज़रूर, लेकिन जल्दी-२। ज्यादा टाइम लगाना मतलब ज्यादा रिस्क…
ये सोचते ही यास्मिन तेज़ी से पीछे का दरवाजा खोल कर बाहर चली गई। उसने दरवाज़ा बाहर से बंद किया और शौचालय की ओर भागी। उसने पेशाब किया लेकिन तुरंत घर में नहीं गयी। वो कुछ देर तक बाहर खड़ी, चाँद और तारों को देखती रही। आज उसके कारनामो का भी एक गवाह बन गया था, अब से आकाश के सभी सितारों को, चाँद को भी पता था, सब पता था, की कितनी छुपी रुस्तम है यास्मिन, कितनी ठरकी है यास्मिन।
वो बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी थी, उसे और इंतजार नहीं हुआ। उसकी टपकती चूत उसे पागल कर रही थी। वो भाग के अपने कमरे में चली गई। जाते ही उसने अपनी दो उँगलियाँ अपनी चूत में घुसा दी और कुछ ही सेकंड में बुरी तरह झड़ गयी। आज उसे बहुत मज़ा आया था, ये उसका उसकी फैंटसी की दुनिया का टॉप स्कोर था।
वो बहुत खुश थी, उसे कोई पछतावा नहीं हो रहा था। अब वो रुकने वाली नहीं थी, अगली बार उसे अपने इस स्कोर को पछाड़ना था। उसने अपने आप को साफ़ किया और गहरी नींद में सो गयी। अगले दिन, उसकी माँ ने उसे जगाया। उसकी माँ हमेशा सबसे पहले उठ कर तैयार होती थी। उसके बाद यास्मिन को उठा के तैयार होने के लिए भेजती थी।
यास्मिन का कॉलेज घर से काफी दूर था इसलिए यास्मिन को बाकि सब से पहले निकलना होता था। जब घर के मर्द लोग उठते थे तब तक यास्मिन जाने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुकी होती थी। जैसे ही वो कॉलेज के लिए निकलने लगी उसने नोटिस किया की उसके मम्मी-पापा उसी के बारे में बात कर रहे थे। वो ये चर्चा कर रहे थे की पिछले कुछ दिनों से यास्मिन बहुत खुश दिखाई पड रही है।
यास्मिन मन में: हाँ यार, बात तो सही है…
यास्मिन ने इसपे ज़्यादा नहीं सोचा और कॉलेज के लिए निकल गई। उस रात एक बार फिर से यास्मिन ने वही सब किया। उतना की मज़ा आया, उतनी ही उत्तेजना हुई। बस फरक ये था की आज उसका भाई उसे परेशान करने बीच में नहीं आया।
अब उसने हर रात अपना जलवा जारी रखा। शनिवार और रविवार के दिन उसकी छुट्टी होती थी। उसने छुट्टियों के दिनों में अब दिन के समय में भी अपने रूम में नंगा रहना शुरू कर दिया। वो ये सब बहुत सावधानी से करती थी ताकि पकड़ी ना जाए। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
एक रात यास्मिन पिछवाड़े में नंगी घूम रही थी की उसे दरवाजा खुलने की आवाज़ आयी। एक पल के लिए तो उसे कुछ समझ नहीं आया फिर वो भाग के शौचालय में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। कुछ देर बाद किसी ने टॉयलेट का दरवाजा खटखटाया। बाहर उसके पापा था। शायद मूतने आये होंगे, अब क्या होगा?
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पापा: कौन है?
यास्मिन: मैं हूँ पापा।
पापा: अच्छा। मैं पानी पीने आया था, पीछे का दरवाज़ा खुला देख के चला आया। तुम ठीक हो ना बेटी?
यास्मिन (मन में): ओह, ये गलती कैसे हो गयी बहनचोद। मैं कैसे दरवाज़ा खुला छोड़ आयी…
यास्मिन: हाँ पापा, बिलकुल ठीक हूँ। मुझे फारिक होने में अभी थोड़ा और वक़्त लगेगा।
फिर कोई जवाब नहीं आया। यास्मिन ने कुछ समय के लिए इंतजार किया और फिर धीरे से दरवाज़े से सर बाहर निकाल के देखा। वहाँ कोई नहीं था। वो तुरंत लिविंग रूम की तरफ भाग ली। बाहर उसके पापा तो कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे लेकिन लिविंग रूम की लाइट जली हुई थी।
शायद से उसके पापा ने उसके लिए खुली रख छोड़ी होगी। लाइट का स्विच रसोई के पास लगा हुआ था, इसका मतलब की उसे स्विच बंद करने के लिए, उस रौशनी से भरे कमरे में से नंगे निकल के जाना पड़ेगा। रास्ते में उसके माता-पिता और भाई के कमरों के दरवाज़े भी पड़ते थे।
काम बहुत रिस्की था। लेकिन उसके शैतानी दिमाग को तो और रिस्क चाहिए था। यास्मिन ने मन बनाया की वो स्विच तक चल के जाएगी। चाहे कोई आ भी जाये वो भागेगी नहीं। वो बिलकुल नार्मल तरीके से जाएगी और अपने नंगे शरीर को अपने हाथों से ढकने की कोशिश भी नहीं करेगी।
यास्मिन धीरे-२ स्विच की तरफ बढ़ने लगी। हर बीतते पल के साथ उसकी चूत और गीली होती जा रही रही थी। बिना किसी अनहोनी के वो स्विच तक पहुँच गयी और लाइट बंद करके अपने कमरे में चली गई। उस रात उसने अपने पापा की मदद से एक नया टॉप स्कोर बनाया था।
कुछ रातों तक यास्मिन के जलवे ऐसे ही चलते रहे। यास्मिन की हिम्मत अब दिन बे दिन बढ़ती जा रही थी। अगले हफ्ते उसने फिर से अपना बुरका कांड करने का प्लान किया। अगले दिन यास्मिन कॉलेज से छुट्टी मार के एक मॉल में सिर्फ बुरका पहन के पहुँच गयी।
मॉल शहर से थोड़ा दूर था और अभी नया खुला था इसलिए किसी जानकार के मिलने के चान्सेस काफी कम थे। यास्मिन वहां एक कपड़े की दुकान में चली गई। वो कुछ ऐसा करना चाहती थी जिसके बारे में वो बहुत दिनों से प्लान कर रही थी।
उसने एक ऐसा स्टोर चुना जहाँ ट्रायल रूम में दरवाजों के बजाय पर्दे थे। थोड़ी देर तक वो कपडे ढूंढती रही। उस स्टोर में ज़्यादातर कर्मचारियों लड़के ही थे। तभी एक दुकान का लड़का यास्मिन के पास आया और पुछा: “मैडम, क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ?”
यास्मिन: नहीं, कुछ नहीं, मैं अपने लिए जीन्स और कुरता ढूंढ रही हूँ, कुछ मदद चाहियेगी तो आप को बता दूंगी।
लड़का: ओके मैडम।
ये कह के वो लड़का वहां से चला गया। कुछ देर में यास्मिन ने भी एक कुरता और जीन्स चुन ली लेकिन थोड़े छोटे साइज में। वो ट्रायल रूम में चली गई। उसने पर्दा बंद कर दिया और अपना बुर्का उतार दिया। यास्मिन अब एक स्टोर में पूरी नंगी थी, चाहे ट्रायल रूम में ही.
लेकिन फिर भी ये उसे बहुत उत्तेजित करने वाला पल था। हालाँकि उसे पता था की जीन्स छोटे साइज ही है फिर भी उसने जीन्स को पहनने की कोशिश की। जैसा की पता ही था जीन्स उसकी जाघों से ऊपर चढ़ी ही नहीं। उसने जीन्स उतार दी और थोड़ा ज़ोर से पुकारा: “सुनिए, कोई है?”
बाहर से एक लड़का: “सुप्रभात मैडम, बताइये में आपकी कैसे सहायता कर सकता हूँ?”
यास्मिन: मैंने गलती से ये छोटे साइज की जीन्स चुन ली, क्या आप मुझे एक बड़े साइज की जीन्स ला के दे सकते हैं।
लड़का: हाँ-२, क्यों नहीं मैडम। कोन से साइज की जीन्स लानी है?
यास्मिन परदे के पीछे पूरी नंगी थी। यास्मिन ने थोड़ा सा पर्दा से अपना हाथ बाहर निकला और बोली: भैया, ये जीन्स ले लीजिए और इसी डिज़ाइन में बड़ा साइज ला दीजिये। नंगे होके किसी अनजान आदमी से बात करने का यास्मिन का पहला मौका था। उसे अपने आज के कांड में बहुत मज़ा आ रहा था।
जब वो लड़का जीन्स लेने चला गया तो यास्मिन ने कुरता पहन लिया। कुरता यास्मिन के बदन पे बहुत टाइट था, उसे बोबे तो कुरता फाड़ के बाहर आने के बेताब थे। उसके अंगूर जैसे निप्पल कुर्ते के ऊपर से बिलकुल साफ़ दिखाई दे रहे थे। कुरता उसके घुटनो के थोड़ा सा ऊपर तक था, साइडों से कुर्ते का कटाव कमर तक था। उसकी चिकनी गोरी-२ झांघें ऊपर तक दिखाई दे रही थी।
सब प्लान के मुताबिक चल रहा था। बस कुरता ज़रुरत से ज़्यादा टाइट हो गया था। अब प्लान के हिसाब से उसे इसी ड्रेस में उस लड़के से जीन्स लेनी थी। लेकिन यास्मिन का डर था की कहीं ये कुरता फट ही ना जाए। लेकिन उसने अपने मन को पक्का किया और उस लड़के का इंतज़ार करने लगी।
लड़का कुछ देर में वापिस आया और उसने यास्मिन को आवाज़ लगायी। यास्मिन चाहती तो सिर्फ हाथ बाहर निकाल के जीन्स ले सकती थी लेकिन उसने परदे को थोड़ा सा खोल दिया। उसके सामने एक प्यारा-सा तकरीबन 18-19 साल का लड़का जीन्स लिए खड़ा था।
लड़के का मुंह खुला हुआ था और वो यास्मिन को सर से पाँव तक निहार रहा था। यास्मिन ने उससे जीन्स लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया लेकिन वो लड़का तो जैसे बुत्त ही बन गया था। यास्मिन थोड़ा और झुकी और जीन्स पकड़ ली। अब उसका क्लीवेज और ज्यादा दिखाई देने लगा।
यास्मिन: जीन्स दो ना भैया, क्या कर रहे हो?
लड़का (होश में आते हुए): हाँ… हाँ… मैडम…
यास्मिन ने जीन्स उस लड़के के हाथ से ले ली और थोड़ा मायूसी दिखाती बोली: क्या भैया, देखो ना ये कुर्ती भी छोटी साइज की आ गयी है। क्या आप मेरे लिए प्लीज बड़े साइज कुर्ती भी ला देंगे? लड़का अब तक होश संभाल चूका था। लड़के ने बातचीत को बढ़ाने के लिए बोला: क्या बात करती हैं मैडम? ये कुर्ती तो आप पे बहुत जंच रही है।
यास्मिन: अरे भैया आप भी, देखो ना कितनी टाइट है हर तरफ से। ऐसा लगता ही किसी ने मुझे इस कुर्ती में ठूंस दिया हो।
लड़का (जाँघों को घूरते हुए): कुछ भी कहो मैडम, लेकिन अच्छी तो बहुत लग रही है.
यास्मिन (इशारा करते हुए): ये देखो, मेरे पिछवाड़े पे कितनी टाइट है। और देखो, और देखो, छाती पे भी कितनी कस गयी है। ज्यादा हिली तो कहीं फट ही ना जाये।
लड़का (मन में): तो हिल न मेरी छमकछल्लो.
यास्मिन: आप रुको एक मिनट।
ये कहते हुए उसने पर्दा बंद कर लिया और कुर्ती उतार दी। यास्मिन ने बाहर हाथ निकल के कुर्ती दी और बोली: “भैया, इसी डिज़ाइन की लाना प्लीज”. लड़के के जाने के बाद यास्मिन ने जीन्स पहन ली और हाथ में बुरका ले लिया। अब यास्मिन ने अपने प्लान को अगले स्तर पे लेके जाने का सोचा।
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थोड़ी देर में लड़के ने वापिस आ के यास्मिन को आवाज़ दी। इस बार यास्मिन ने सिर्फ जीन्स डाली हुई थी और ऊपर से अपने आप बुर्के से ढक लिया था। यास्मिन ने पर्दा आधे से ज़्यादा खोल दिया। लड़के की आँखें फटी की फटी रह गयी। ऐसा लग रहा जैसे अभी उसकी आँखें बाहर निकल के गिर जाएँगी।
लड़के को यास्मिन की गोरी चिकनी पीठ पीछे लगे शीशे में बिना ब्रा की पट्टी के बिलकुल साफ़ दिखाई दे रही थी। ऐसा नहीं था की यास्मिन उस लड़के के सामने टॉपलेस थी लेकिन ये कुछ कम भी नहीं था। यास्मिन ने दोनों हाथ से बुर्के को अपने बदन से कस कर पकड़ा हुआ था।
उसका एक हाथ बोबों के थोड़ा ऊपर था और दूसरा हाथ पेट के पास था। अब यास्मिन को उस लड़के से कुर्ती लेने के लिए एक हाथ को बुर्के से हटाना था। अगर वो अपना नीचे वाला हाथ हटाती तो उसके बोबे नीचे से दिखाई दे जाते और उसकी नाभि तो पूरी दिखाई दे जाती।
अगर वो अपना ऊपर का हाथ हटाती तो उसके बोबे बिलकुल की नंगे हो जाने थे। कुछ सेकंड सोचने के बाद यास्मिन ने अपना ऊपर वाला हाथ खिसका के बिलकुल अपने बोबों पे रख लिया और दूसरा हाथ हटा के कुर्ती लेने के लिए आगे बढ़ा दिया।
उसके ऐसा करने के उसके बोबे थोड़ा दब गए और ऊपर से आधे से ज़्यादा दिखाई देने लगे। बस निप्पल ही दिखाई देने की कसर बची थी। नीचे से उसका नंगा सपाट पेट देख के लड़के की हालत ख़राब होने लगी। लड़के ने ना चाहते हुए यास्मिन को कुर्ती पकड़ा दी और पुछा: मैडम, कोई और सहायता?
यास्मिन: अभी के लिए थैंक्स भैया।
यास्मिन को इस सब में बहुत मज़ा आया। मस्ती से उसकी आँखें लाल हो गयी थी। उसकी चुत बुरी तरफ बहने लगी थी। यास्मिन की हालत बहुत ख़राब हो गयी और सहना मुश्किल हो गया। यास्मिन ने फटाक से पर्दा बंद किया। उसने कुर्ती पहन के भी नहीं देखि। उसने जीन्स उतारी और वापिस से अपना बुरका पहन लिया। यास्मिन जल्दबाज़ी में बाहर जाने लगी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
पीछे से लड़के ने आवाज़ दी: क्या हुआ मैडम?
यास्मिन: नहीं भैया, पसंद नहीं आया कुछ, कपडा भी अच्छा नहीं है और आपके रेट भी बहुत ज़्यादा हैं।
लड़का: मैं कुछ और कम रेट के कपडे दिखा देता हूँ, बिलकुल नए फैशन है मैडम।
लड़का किसी भी कीमत पे यास्मिन के साथ कुछ और देर बिताना चाहता था।
यास्मिन: नहीं भैया, अभी देर भी बहुत हो गयी, फिर कभी आउंगी।
लड़का: आपकी ही दुकान है मैडम, जब चाहे आइये। अभी तो थोड़ा रुकिए ना, आपके लिए स्पेशल डिस्कोउंट भी हो जायेगा, आप कुछ और कपडे ट्राई करके तो देखिये।
यास्मिन (मन में): ये चूतिया तो चिपक ही गया।
यास्मिन: नहीं भैया, फिर कभी।
उसके बाद यास्मिन उस लड़के को अनसुना करके तेजी से दूकान से निकल ली। यास्मिन बार-२ पीछे मुड़ के देख रही थी। उस डर था की कहीं वो दुकानवाला लड़का उसके पीछे ना आ जाये। पीछे देखने की वजह से यास्मिन को सामने से आता हुआ एक लड़का दिखाई नहीं दिया और वो उससे टकरा गयी। शायद लड़के का ध्यान भी कहीं और था, लड़के ने भी यास्मिन को नहीं देखा।
यास्मिन टकरा के नीचे गिरने लगी तभी लड़के ने उस थाम लिया। बहुत सव्भाविक है की जब हम किसी से टकराते हैं तो हमारे हाथ बीचे में आ जाते हैं। तो इस यास्मिन की मज़ेदार टक्कर में हुआ यूं की लड़के का एक हाथ तो यास्मिन के बोबे पे आ गया और दूसरे हाथ से उसने यास्मिन की बड़ी गांड को पकड़ लिया। हाथ लगते ही लड़के को पता चल गया की लड़की ने बुर्के के नीचे कुछ नहीं पहना। बुर्के का कपडा बहुत ही महीन और मुलायम था।
यास्मिन (सँभलते हुए): जी माफ़ कीजियेगा, मेरा ध्यान कहीं और था।
लड़का (मुस्कुराते हुए): अरे कैसी बात करती हैं, ये तो खुदा की रेहमत है की की आपसे टक्कर हो गयी…
लड़के के हाव-भाव से साफ़ पता चल रहा था की उसे महसूस हो चूका है की यास्मिन बुर्के के नीचे पूरी नंगी है। उसके हाथ भी ऐसी जगह पहुंचे थे की उसे अब ब्रा और कच्छी के ना होने का पता होगा।
यास्मिन: जी क्या?
लड़का: जी वो गलती मेरी भी है, मेरा घ्यान भी कहीं और था।
यास्मिन इस अचानक से हुए हादसे से घबरा गयी थी। उसने ये प्लान नहीं किया था। यास्मिन तेजी से वहां से निकलने लगी।
लड़का: अरे सुनिए तो, शायद मैंने आपको कहीं देखा है?
यास्मिन(मन में): चूतिये, क्या घिसा-पिटा बहाना? कुछ तो नया बोलता बात आगे बढ़ाने के लिए।
यास्मिन: जी.. हो सकता है।
ये कह कर यास्मिन तेजी से वहां से निकल ली और लड़का खड़ा-२ मुस्कुराते हुए यास्मिन को जाते हुए देखता रहा।
लड़का(मन में): हो ना हो, देखा तो ज़रूर है इस लड़की को। साली बुर्के के नीचे पूरी नंगी वो भी भरेपुरे मॉल में। बड़ी मादरचोद आइटम है छिनाल कहीं की।
यास्मिन तेज़ क़दमों से मॉल से बाहर निकल आयी। अब तो वो काफी संयत हो चुकी थी। मन ही मन यास्मिन मॉल में हुई सारी घटनाओ के बारे में सोचने लगी। कितना मज़ा आया था ट्रायल रूम में, उस दुकानवाले लड़के की हालत तो देखने वाली थी। और उसके बाद वो टक्कर, कितनी जल्दी हुआ था सब, उस लड़के ने तो मेरे बोबे और गांड को ही दबा दिया था।
दबाएगा कैसे नहीं, हूँ भी तो मैं इतनी सेक्सी। ये टक्कर वाला प्लान भी सही है, ज़्यादा टाइम भी नहीं लगता, बोबे और गांड दबवाने का मज़ा भी मिल जाता है। क्यों न फिर से एक टक्कर की जाये? लेकिन किसी भीड़-भाड़ वाली जगह ही ठीक रहेगा। कोई ज़्यादा फायदा भी नहीं उठा पायेगा और लगेगा भी बिलकुल स्वाभाविक।
इस प्लान के साथ यास्मिन फिर से उसी मॉल में दाखिल हो गयी। उसने चारों तरफ अपनी नज़रें दौड़ाई और एक लंबे, हैंडसम लड़के को चुन लिया। वो लड़का भीड़ से भरे इस मॉल में अकेला खड़ा था। यास्मिन तेजी से उस लड़के की तरफ चलने लगी, यास्मिन ने जानकार के अपनी गर्दन दूसरी तरफ की हुई थी, लेकिन उसकी तिरछी नज़रें थी अपने शिकार पर ही।
कुछ सेकण्ड्स में यास्मिन जानबुज कर उस लड़के से टकरा गयी। वो लड़का भी बिलकुल रिलैक्स मूड में खड़ा हुआ था, इसलिए लड़के का बैलेंस बिगड़ गया और दोनों एक साथ फर्श पर गिर गए। इस बार यहाँ मामला हाथ से निकल रहा था। गिरने से यास्मिन का बुरका उसकी जांघों तक उठ गया था।
उसकी गोरी-२ जांघें दुनिया के सामने नंगी हो गयी थी। यास्मिन ने तेजी से उठने की कोशिश की लेकिन ये मामला तो बाद से बदतर होता जा रहा था। यास्मिन के बुर्के का हुक उस लड़के, मयंक की शर्ट में फंस गया था। अगर यास्मिन ज़ोर लगा के उठने की कोशिश करती तो उसका बुरका फट भी सकता था। या अल्लाह… कहाँ फंसा दिया बेचारी यास्मिन को?
यास्मिन ने सबसे पहले अपने बुर्के को थोड़ा नीचे खींच कर अपनी जाँघों को ढका। कम से दुनिया को तो ना पता चले की वो बुर्के के नीचे नंगी है। फिर उसने अपने हाथ साइड में रख कर अपना वज़न मयंक पे से हटाया और थोड़ा ऊपर हुई। इससे उसके बुर्के में और उसके बदन में थोड़ा गैप आ गया। उसका बुरका तो मयंक की शर्ट से चिपका हुआ था और वो तकरीबन ३-४ इंच ऊपर उठ गयी थी।
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मयंक ने नीचे देखा तो उसके होश उड़ गए। उसे यास्मिन के बोबे, पेट, चुत पे उगी छोटी-२ झांटें, उसकी गोरी-२ जांघें सब दिखाई दे रहा था। ऐसे लग रहा था मानो कोई लड़की बिलकुल नंगी होके उसके ऊपर पुशउप, दंड मार रही हो। इतने में कहीं से मयंक के दोस्त आ गए।
दोस्त: अबे ये क्या कर रहा है मयंक?
मयंक: दिखता नहीं है हरामखोरो, गिर गया हूँ?
दोस्त: हाँ दिख तो रहा है, कितना गिरा हुआ है तू, एक बेचारी लड़की को गिरा दिया। अब उठेगा भी।
मयंक: हाँ-२ उठ रहा हूँ।
एक तो जवान लड़की के नंगे बदन का मस्त नज़ारा, दोस्तों का प्रेशर, मयंक बहुत नेर्वस हो रहा था। उसके हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे। मयंक कांपते हाथों से हुक को अपनी शर्ट के बटन से निकालने का प्रयास करने लगा। अब यास्मिन को भी समझ आ गया था की क्या देख के मयंक की हालत इतनी पतली हो गयी है।
यास्मिन को अपनी इस हालत पे बहुत शर्म आ रही थी। लेकिन अब शर्माने से ये हालत तो ठीक होने वाले थे नहीं, इसलिए यास्मिन ने हिम्मत कर के धीरे से कहा: भैया, डरो मत, आराम से हुक निकालो। ये नज़ारा सिर्फ आपको ही दिखाई दे रहा है, आपके दोस्तों को नहीं।
मयंक: जी….. जी.
कुछ देर की जदोजहद के बाद आखिरकार मयंक ने हुक निकाल ही दिया। यास्मिन तुरंत खड़ी हुई और बाहर की तरफ भाग ली। यास्मिन का दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था। उसे पीछे से मयंक के दोस्तों की चिल्लाने की और सीटियां मारने की आवाज़ें आ रही थी।
लेकिन यास्मिन रुकी नहीं, वो अब जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंचना चाहती थी। जैसे ही वह अपने घर में दाखिल हुई, वह सोफे पर गिर गयी और मुठ मारने लगी। वो कुछ सेकण्ड्स में ही झड़ गयी। जब एक बार से संतुष्टि नहीं मिली तो उसने दुबारा ऊँगली करना शुरू कर दिया।
उसका मज़ा, उसकी फैंटसीज, उसका रोमांच दिन बे दिन पहले से कहीं अधिक बेहतर होता जा रहा था। आज थोड़ा रिस्की हो गया था, वो तो मयंक एक शरीफ लड़का था, इसलिए बच गयी नहीं तो कोई उसका फायदा उठाने का प्रयास भी कर सकता था। अब आगे उसे कुछ और नया करना था, कुछ और बेहतर करना था।
लेकिन बहुत सोच के। वो आज की तरह किसी ऐसी स्थिति में नहीं आना चाहती थी जहाँ कण्ट्रोल उसके पास ना हो। उसे एक आईडिया आया। यास्मिन की बहुत दिनों से साड़ी के लिए कह रही थी। कुछ सोच के यास्मिन की आंखें चमकने लगी, एक नॉटी आईडिया आईडिया फिर से रेडी..
यास्मिन की माँ पिछले कुछ समय से उसे साड़ी पहनने के लिए उकसा रही थी। उसकी माँ चाहती थी की यास्मिन को शादी से पहले कम से कम साड़ी पहनने का तरीका पता हो और थोड़ा बहुत आदत भी हो ताकि उस शादी के बाद साड़ी पहनने में परेशानी नहीं आये। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अगली सुबह यास्मिन ने अपनी मां को बताया की वो साड़ी पहनना चाहती है। उसकी माँ बहुत खुश हो गयी। उसकी माँ उसी दिन यास्मिन को अपनी दुकान पर ले आयी और एक अच्छी सी साड़ी सेलेक्ट करवा दी। उसकी माँ सलमा ने कहा की यास्मिन अब ब्लाउज सिलवा ले ताकि सप्ताह के आखिर तक उसकी साड़ी तैयार हो जाये।
यास्मिन दो-तीन दिन के बाद एक दर्जी के पास गई। उसने अपना बुर्का, उसके अंदर नाइटी और सबसे नीचे अंडरवियर डाले हुए थे। दर्जी की दुकान में सिर्फ दो लोग थे। रमन नाम का एक बूढ़ा आदमी था जो की इस दुकान का मालिक था। रमन बहुत समय से ये दुकान चला रहा था।
यहाँ तक की उसने सलमा की शादी का जोड़ा भी तैयार किया था। कुछ समय पहले से रमन ने कल्लू को अपना सहायक रख लिया था। कल्लू ने अभी-२ स्कूल छोड़ा था और अब रमन के साथ दर्ज़ी का काम सीख रहा था। कल्लू की उम्र तकरीबन यास्मिन जितनी ही होगी।
यास्मिन को सिर्फ रमन के ही मिलने की उम्मीद थी। उसे नहीं पता था की रमन चाचा ने अब एक लड़का भी रख लिया है। लेकिन ये तो अच्छा हो था, बल्कि उसके प्लान के लिए और ज़्यादा अच्छा था। कल्लू देखने में बहुत शर्मीला और शांत था। पहले तो रमन ने यास्मिन से पढ़ाई और तमाम दूसरी चीज़ों के बारे में पुछा, फिर कहा: बोलो, क्या काम है बेटी?
यास्मिन: चाचा, एक ब्लाउज सिलवाना था।
रमन: सही है, तुम्हारे पास कोई पुराना ब्लाउज है?
यास्मिन: नहीं चाचा, मैं पहली बार ब्लाउज सिलवा रही हूँ?
रमन: फिर तो नाप लेना पड़ेगा बेटी।
यास्मिन: ठीक है चाचा, आप ले लीजिये नाप।
रमन: बेटी तुम ये अपना बुरका उतार दो। दरअसल इसके साथ नाप ठीक से आएगा नहीं। कहीं उच-नीच हो गयी तो हम तुम्हारी माँ को क्या शकल दिखाएंगे।
यास्मिन: जी, जैसा आप कहें चाचा।
यही उम्मीद थी यास्मिन को। अगले कदम की तैयारी यास्मिन पिछले हफ्ते से कर रही थी। उसने अगले कदम को परफेक्ट करने के लिए कम से कम अपने कमरे में इसका सैंकड़ों बार अभ्यास किया था। उसने अपनी आँखें बंद की और मन ही मन अल्लाह को याद किया।
वो झुकी और नीचे से उतारने के लिए बुरका पकड़ा, साथ-२ उसने चुपचाप अपनी नाइटी को भी पकड़ लिया था। एक झटके में उसने बुरका अपने सर के ऊपर से उतार दिया। हाय दईया, ये क्या हो गया? बुर्के के साथ नाइटी भी उतर गयी। यास्मिन ने मैचिंग गुलाबी रंग की ब्रा-पैंटी डाली हुई थी।
ब्रा से उसकी गहरी क्लीवेज दिखाई दे रही थी। उसने पहले से अपनी पैंटी के एक किनारे को अपनी चुत की दरार के अंदर धकेल रखा था, “गलती से”। पीछे से भी यास्मिन ने पैंटी को अपने चूतड़ की दरार में घुसा रखा था, उसका एक चूतड़ बिलकुल नंगा था, “गलती से”।
दोनों मर्दों के आँखें यास्मिन के बदन से चिपक गयी थी। दुकान में चारों तरफ़ शीशे लगे हुए थे, हर तरफ अर्धनंगी यास्मिन हर कोने से नज़र आ रही थी। कुछ सेकण्ड्स में यास्मिन ने आँखें खोली और ऐसे नाटक किया जैसे उसे पता ही नहीं चला और उसकी नाइटी उतर गयी।
यास्मिन(चीखते हुए): हाय अल्लाह, ये क्या गज़ब हो गया? मैंने गलती से बुर्के के साथ नाइटी भी निकाल दी। मुझे माफ़ करें चाचा।
यास्मिन तेजी से घूम गयी और अपना मुंह दूसरी तरफ कर लिया। देखने वाले को ऐसा लगेगा जैसे यास्मिन ने ये शर्म के मारे में किया हो, लेकिन असल में यास्मिन अब उन्हें अपनी गोल मटोल गांड के दर्शन भी करवाना चाहती थी।वो तेजी से बुर्के में से अपनी नाइटी निकालने लगी। वो ये काम दिखाने के लिए तो जल्दबाजी में कर रही थी लेकिन उसे हर पल का बेहद आनंद मिल रहा था।
यास्मिन ने अपनी एक और फैंटसी पूरी कर ली थी। अब वो जल्दी से जल्दी वहां से निकलना चाहती थी। यास्मिन कांपते हाथों से नाइटी को बुर्के में से निकालने का प्रयास कर रही थी। रमन चाचा भी कम नहीं था। उसने भी बहुत दुनिया देखी थी। वो यास्मिन की कारिस्तानी को भांप गया। उसने भी सोचा की क्यों न खेल आगे बढ़ाया जाये।
रमन: रुको मेरी चाँद सी बेटी। अभी कपड़े पहनने की जहमत मत उठाओ। पहले नाप ले लेते हैं।
यास्मिन: तो क्या मैं आप लोगों के सामने ऐसे आधी नंगी खड़े होके नाप दूँ?
रमन: तुम चिंता क्यों कर रही हो डार्लिंग बेटा जी, वो देखना था वो तो हमने देख ही लिया है। अब छुपाने का क्या फायदा। तुम अगर ऐसे नंगी…… मेरा मतलब है ब्रा चड्डी में नाप दोगी तो नाप एक दम सटीक लिया जायेगा। इतना बढ़िया ब्लाउज सिलेगा की, सालों साल याद रखोगी अपने रमन चाचा को।
यास्मिन अब कशमकश में फंस गयी थी। ये उसके प्लान का हिस्सा नहीं था। वो सोच में पड़ गयी।
रमन: अरे घबराती क्यों हो बेटी, ये पेशा है हमारा, रोज़ यही करते हैं सुबह-शाम। ना जाने कितनी मोहतरमाओं का नाप लेते हैं…. नंगी करके.
यास्मिन की चूत उत्तेजना के मारे गीली हो चुकी थी। उसे उस बुड्ढे के साड़ी द्विअर्थी बातें समझ आ रही थी। उसे भी बहुत मज़ा आ रहा था खेल में। वो भी आगे बढ़ना चाहती थी लेकिन थोड़ा डर रही थी। फिर उसने सोचा की देखा जायेगा जो होगा। ज़्यादा से ज़्यादा ये बूढ़ा कर भी क्या लेगा।
हद से ज़्यादा आगे बढ़ने की कोशिश करेगा तो थप्पड़ खायेगा और फिर माँ का भी तो डर होगा इसे। यास्मिन को कुछ ना बोलता देख, रमन ने आगे बढ़ के यास्मिन का हाथ पकड़ लिया और बोला: आओ ना बेटी, थोड़ा बीच में आ जाओ, नाप ले लें आपका। अरे कल्लू तू जाके दरवाज़ा बंद कर दे।
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यास्मिन: दरवाज़ा… दरवाज़ा क्यों बंद कर रहे हैं?
रमन: अरे डार्लिंग, अभी तो हमने ही देखा है नज़ारा, क्या पूरी दुनिया को दीदार करवाना है?
फिर यास्मिन कुछ नहीं बोली। कल्लू भी दरवाज़ा बंद करके वापिस आ गया था। रमन नाप लेने के लिए आगे बढ़ा और उसने अपने दोनों हाथ यास्मिन के कन्धों पर रख दिए और कन्धों पे हाथ फिराने लगे।
यास्मिन: चाचा, क्या हाथ से ही नाप लोगे? फित्ता कहाँ है आपका?
रमन: बेटी, 30 साल हो गए मुझे, लोगों के कपडे सिलते हुए। कभी टेप इस्तेमाल नहीं किया। टेप से ज़्यादा भरोसा मुझे अपने हाथों पर है। आज तक एक भी ग्राहक से कोई शिकायत नहीं आयी है। अरे मेरी डार्लिंग बड़े-२ घरों के लिए कपडे सिले हैं मैंने, पूछना कभी अपनी माँ से।
यास्मिन: फिर भी चाचा जी, ये थोड़ा अजीब है। और अगर आप टेप इस्तेमाल नहीं करते तो टांग क्यों रखी है गले में?
रमन: हा .. हा .. ये तो, बस ऐसे ही। दर्ज़ी भी तो लगना है ना। और रही बात औरतों के नाप लेने की, चू…. अनाड़ी लेते हैं टेप से नाप। अब तुम ही बताओ कोई बोबे के शेप टेप से कैसे नाप सकता है? टेप से लम्बाई तो नापी जा सकती है, लेकिन बोबे के गोलाइ कैसे नापेगा कोई? गोलाई का तो हाथ से ही सही पता चलता है।
यास्मिन (मन में): बात तो सही कर रहा है बुड्ढा। कितना ठरकी है, कैसे साफ़-२ बोल रहा है… बोबा। ब्रेअस्ट्स नहीं बोल सकता था कमीना। हिम्मत देखो हरामखोर की, बेटी से कब डार्लिंग पे आ गया, पता ही नहीं चला।
यास्मिन: ना तो कभी ऐसा सुना है और ना ही कहीं ऐसा देखा है।
रमन: अरे इतना क्यों घबरा रही हो, केवल 5 मिनट की ही तो बात है।
यास्मिन (मन में): हाँ बूढ़े, तेरे लिए तो 5 मिनट भी बहुत ज़्यादा ही हैं। इतने में तो तू 5 बार झाड़ लेगा मेरे सामने।
अभी तक यास्मिन उन दोनों मर्दों के सामने ब्रा-पैंटी में ही खड़ी थी। धीरे-२ अब यास्मिन काफी रिलैक्स महसूस करने लगी थी। अब उसे आधी नंगी खड़े होने में ज़्यादा झिझक भी नहीं हो रही थी, उल्टा अब उसे इन सब में खूब मज़ा आ रहा था। इतने में किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। यास्मिन अचानक से चौंक गयी।
रमन: अरे डरती क्यों हो डार्लिंग। अरे कल्लू देख तो कोन बुड़बक आ गया, लस्सी में लंड घोलने… बाहर से ही रफा-दफा कर देना मादरचोद को।
रमन का मुहावरा सुन के यास्मिन मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी।
रमन: तुम चिंता मत करो डार्लिंग, कल्लू देख लेगा, जो भी होगा। आज आराम से लेंगे…. नाप तुम्हारा।
कल्लू (अंदर आते हुए): चाय देके गया है लड़का।
रमन: ये हुई ना बात, चलो पहले चाय पी जाये।
यास्मिन: चाय बाद में पीजिएगा। अभी पहले मुझे फारिक कर दीजिये। मैं क्या यहाँ नंगी खड़ी रहूंगी?
रमन (धीरे से): नंगी कहाँ हुई हो अभी तुम जानेमन।
रमन: डार्लिंग इतनी जल्दी मत करो, सकून से बैठो। बस 2 मिनट तो लगेंगे चाय पीने में। कल्लू, मादरचोद, तू खड़ा-२ क्या देख रहा है, मैडम को बैठने के लिए वो स्टूल दे।
कल्लू ने स्टूल मेरी तरफ खिसका दिया लेकिन स्टूल को उसने पकड़े रखा। अब अगर यास्मिन स्टूल पे बैठती तो कल्लू की उँगलियाँ यास्मिन के चूतड़ों के नीचे दब जाती। यास्मिन ने कुछ पल तो कल्लू के हटने का इंतज़ार किया लेकिन जब कल्लू ने स्टूल को पकडे रखा तो वो बोली: अगर तुम ऐसे पकड़े रखोगे तो मैं बैठूँगी कैसे?
कल्लू: वो क्या है ना मैडम जी, ये स्टूल कमज़ोर सा है। कहीं आपके बैठने से गिर न जाये, इसलिए मैंने पकड़ रखा है।
स्टूल की हालत देखकर यास्मिन को हँसी आ गयी।
वो बोली: हाँ इसकी सेहत भी रमन चाचा जैसी ही है, मरियल सी।
यास्मिन की बात सुन के कल्लू ज़ोर-२ से हसने लगा।
रमन (मन में): वाह क्या बात है, लड़की को भी मज़ा आ रहा है पूरा खेल में।
रमन: अरे डार्लिंग अभी देखि कहाँ है तुमने हमारी सेहत। जहाँ-२ ज़रुरत हैं, वहां-२ से बहुत सख्त हैं हम। और तू क्या दांत फाड़ रहा है मादरचोद?
यास्मिन (मन में): हरामखोर, लंड की बात कर रहा है। कहीं मैं गलती तो नहीं कर रही, इस बूढ़े की हिम्मत तो बढ़ती ही जा रही है।
फिर यास्मिन सोचते-२ स्टूल पर बैठ गयी। कल्लू ने अपना हाथ नहीं हटाया और यास्मिन के चूतड़ों के नीचे कल्लू की उँगलियाँ दब गयी। कल्लू को तो पता नहीं चड्डी के ऊपर से गोल मटोल चूतड़ों को छूने में कितना मज़ा आया लेकिन उसकी ठंडी-२ उँगलियों के स्पर्श से यास्मिन की चुत में सुरसुरी दौड़ गयी।
कुछ देर में रमन ने चाय ख़तम कर ली और खड़े होते हुए बोला: चलो, अब नाप लिया जाये आपका। ऐसा कहकर रमन यास्मिन के पास पहुँच गया। रमन की लंबाई यास्मिन से थोड़ी ज़्यादा थी। इसलिए ब्रा में कैद बोबे रमन को ऊपर से साफ़ दिखाई दे रहे थे। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
सबसे पहले रमन ने यास्मिन बाँहें पकड़ी और अपने हाथ उसकी काखों तक ले गया। रमन धीरे-२ अपनी अंगुली से यास्मिन की काखों को सहला रहा था और कभी-२ रगड़ भी रहा था। यास्मिन को गुदगुदी हो रही थी और साथ में उसे उतेज़ना भी हो रही थी। इतने में रमन ने कुछ बड़बड़ाया जो कल्लू ने रजिस्टर में नोट कर लिया।
रमन: अब तुम डार्लिंग घूम जाओ, मैं तुम्हारी पीठ का नाप ले लूँ।
यास्मिन थोड़ा हिचकिचाते हुए पीछे को मुड़ी और अब उसका मुँह कल्लू की तरफ हो गया। कल्लू बिना पलकें झपकाए यास्मिन के बोबों को घूर रहा था। रमन अब यास्मिन की पीठ पर अपने हाथ फिराने लगा। धीरे-२ उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ते जा रहे थे।
यास्मिन: कहाँ का नाप ले रहे हैं चाचा। ब्लाउज इतना नीचे तक थोड़ा ना आएगा।
रमन (थोड़ा कठोर आवाज़ में): अब हमें मत समझाओ हमारा काम। इतना नीचे नहीं आएगा तो क्या? ब्लाउज पहनोगी तो इसी शरीर पे ना। हर तरफ से फिटिंग देखनी पड़ती है, समझी? तुम आराम से नाप दो।
रमन की बात सुन के यास्मिन चुप हो गयी। रमन के हाथ धीरे-२ और नीचे बढ़ते जा रहे थे। कुछ ही समय में रमन के हाथ यास्मिन के चूतड़ों पर पहुँच गए। अब रमन ने अपनी पूरी एक हथेली यास्मिन के चूतड़ों पे जमा दी थी और उन्हें हल्का-२ सहला रहा था। रमन का दूसरा हाथ यास्मिन के कंधे पर था।
जब यास्मिन की तरफ से कोई विरोध नहीं देखा तो रमन की हिम्मत और बढ़ गयी। थोड़ी देर एक हाथ से सहलाने के बाद रमन ने अपने दोनों हाथ यास्मिन के चूतड़ों पे रख दिए और जोर-२ दबाने लगा। अब रमन के हाथ यास्मिन की पैंटी में घुसने लगे थे।
रमन ने खींच कर यास्मिन की पैंटी एक साइड में कर दी और अपनी खुरदरी उँगलियों से यास्मिन की गांड के छेद को सहलाने लगा। यास्मिन का हाल बुरा हो गया था। उसकी चूत बुरी तरह से पानी छोड़ रही थी। आगे से उसकी पैंटी पूरी गीली हो चुकी थी। उसकी गुलाबी रंग की पैंटी पे उसके कामरस के धब्बे साफ़ दिखाई दे रहे थे।
दूसरी तरफ कल्लू भी अपनी आँखों के सामने चलते इस वासना के खेल को देख के बोरा गया था। कल्लू को पता ही नहीं चला की कब उसके हाथ उसके लंड को मसलने लगे थे। कल्लू अब बिना किसी शर्म के पैंट के ऊपर से ही अपने लंड को पकड़ के मुठिया रहा था।
ना जाने कब रमन सीधा खड़ा गया और पीछे से यास्मिन के साथ चिपक गया। रमन ने अपने दोनों हाथ यास्मिन के हाथों के साइडों से निकाल कर उसके बोबों पे पहुंचा दिए थे। रमन अब खुलेआम यास्मिन के बोबे दबा रहा था। अब तो कोई नाप लेने का बहाना भी नहीं कर रहा था। सब काम खुले में हो रहा था।
यास्मिन के मुंह से सिसकारियां छूटती जा रही थी। यास्मिन ने अपने होंठों को दाँतों तले दबा लिया और अधखुली आँखों से कल्लू को मुठ मारते हुए देखने लगी। रमन के हाथ अब यास्मिन की ब्रा में पहुँच गए थे। रमन यास्मिन के निप्पल अपनी ऊँगली और अँगूठे के बीच दबा के मरोड़ने लगा। रमन ने अपनी बड़ी सी खुरदरी हथेली से यास्मिन के बोबे को पूरा ढक रखा था और आटे की तरह उन्हें गूंथ रहा था।
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रमन अपना मुंह यास्मिन के कान के बिलकुल पास ले आया और यास्मिन के कान की लौ को अपने होंठो के बीच लेके हल्का-२ चबाने लगा। यास्मिन का बदन मस्ती के कांपने लगा। रमन की गरम-२ साँसे यास्मिन को अपनी गर्दन पे महसूस हो रही थी। रमन धीरे से यास्मिन के कान में फुसफुसाया: क्यों आ रहा है ना मज़ा हाथ से नाप देने में जानेमन?
यास्मिन: हुंह…… जल्दी ले लो नाप, घर भी जाना है।
रमन: इतनी भी क्या जल्दी मेरी जान, अभी तो…
अचानक यास्मिन को अपनी गांड के सुराख पे कुछ गीला-२ सा महसूस हुआ। उसने एक दम से घबराते हुए अपना हाथ पीछे किया। या अल्लाह ये क्या? उसके हाथ में रमन का आठ इंच का मोटा ताज़ा घनघोर काला लंड आ गया। उसकी रूह कांप उठी। इस हरामखोर ने कब अपना लंड पैंट से बाहर निकला।
ये मादरचोद तो मुझे चोदने का प्लान कर रहा है। नहीं… नहीं… ये सब नहीं, यास्मिन को तो बस थोड़ा बहुत एडवेंचर करना था, एक छोटी से फैंटसी पूरी करनी थी। वो अपना यौवन, अपना कामोर्य अपने पति के लिए बचा के रखेगी। ऐसे कैसे कोई गन्दी नाली का कीड़ा उसकी सील को तोड़ सकता है।
यास्मिन एक दम से चिल्लाई: क्या कर रहे हो चाचा?
रमन यास्मिन को ग़ुस्से में देख थोड़ा घबरा गया। फिर अपने आप को सँभालते हुए बोला: नाप ले रहे हैं जानेमन, क्या हुआ?
यास्मिन की ऑंखें गुस्से से लाल हो गयी थी। उसका पूरा शरीर थर-२ कांप रहा था। यास्मिन ज़ोर से चिलायी: ये नाप ले रहे हो? ये तरीका है नाप लेना का तुम्हारा?
रमन की गांड फट गयी। उसे समझ नहीं आया की ये अचानक से हुआ क्या? रमन गिड़गिड़ाते हुए बोला: बेटी, थोड़ा आराम से बोलो, दुनिया इकट्ठी हो जाएगी। मेरी दुकानदारी बंद हो जाएगी।
यास्मिन (दांत भींचते हुए): लंड काट के नाली में बहा दूंगी। चूतिया समझा है क्या? कुछ तो शर्म कर बूढ़े, तेरी बेटी से छोटी उम्र होगी मेरी… फिर ना जाने क्या-२ बड़बड़ाते हुए यास्मिन ने फटाफट अपने कपडे पहने और रमन को गरियाते हुए तेज़ क़दमों से दुकान से निकल गयी।
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