Bur Chudai Kamukata
मैं हूँ अंकिता। मैं और प्रतिमा हमउम्र हैं – 21 की। एक ही कालेज में पढ़ती हैं और हॉस्टल के एक ही कमरे में रहती हैं। कमरा ही नहीं और भी हम एक दूसरे का बहुत कुछ सांझा करती हैं – एक दूसरे के कपड़े, खाना, बिस्तर और राज़ भी – और कभी कभी तो एक दूसरी के बॉय फ्रेंड का लंड भी। और अगर कभी लंड की तलब आ जाये और लंड ना मिले तो एक दूसरी की चूत भी चाट लेती हैं, या फिर उंगली कर लेती हैं – “काम ही तो चलाना है”। Bur Chudai Kamukata
प्रतिमा के 52 वर्षीय पिता रणधीर, प्रतिमा के सौतेले पिता हैं। उनकी पहली पत्नी का चार साल पहले देहांत हो चुका है। उनका पहली पत्नी से 22 साल का बेटा अंकित है जो अभी तक कुंवारा है पढ़ाई पूरी करके तीन महीने पहले ही अपने घर हिसार वापस आया है, अभी फ़िलहाल नौकरी की तलाश कर रहा है। पुश्तैनी अमीरी के कारण नौकरी की कोइ जल्दी नहीं है।
हिसार शहर के बाहरी भाग में उन लोगों का एक एकड़ में बना फार्म हाउस है। हिसार से सात किलोमीटर दूर उनके खेत हैं और एक बड़ा डेयरी फार्म है। वहां भी उनका एक बड़ा घर है। प्रतिमा की 41 वर्षीय तलाकशुदा मां उर्मिला रणधीर की दूसरी पत्नी है – सुन्दर और स्वस्थ – उनकी शादी तीन साल पहले हुई थी।
प्रतिमा के सौतेले पिता रणधीर लाल अक्सर खेतों वाले घर में ही रहते हैं, सप्ताह के अंत में ही हिसार आते हैं। प्रतिमा ने मुझे बताया था की उसके सौतेले पिता को चूत और चुदाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है शादी उन्होंने इस लिए की थी की घर संभालने वाली कोइ घर में आ जाएगी और उसके बेटे को मां मिल जाएगी।
हिसार वाला फार्म हाउस बहुत बड़ा है रसोई के सामने बड़ा हाल है जो ड्राइंग रूम की तरह प्रयोग होता है। रसोई की बाईं तरफ का कमरा प्रतिमा की माँ और उसके सौतेले पिता का है। रसोई की दाईं तरफ दो कमरे हैं एक प्रतिमा के सौतेले भाई अंकित का, दूसरा प्रतिमा का। दो कमरे और हैं जो मेहमानों के लिए काम आते हैं।
हाल से ही एक गलियारा बाहर की तरफ जाता है जहां 25 वर्षीय नौकर मनोज (जो घर का सदस्य ही है) का कमरा है। मनोज हायर सेकंडरी पास है और बाहर के सारे काम करता है। कई बार दिन में डेरी फार्म पर भी चला जाता है। मनोज की 22 वर्षीय पत्नी है मधु। मधु घर के अंदर का काम संभालती है।
मधु साफ़ सुथरी सुन्दर और BA के “पहले साल” तक पढ़ी है मतलब कालेज क्या होता है उसे मालूम है। मनोज का एक 23 वर्षीय छोटा भाई भी है मधु का देवर दीपक। हिसार में ही नौकरी करता है। अभी तक कुंवारा है। जब कभी चुदाई की तलब लगती है तो भाभी मधु को चोदने आ जाता है मधु का प्यारा देवर है, मगर गांड का शौक़ीन है।
पिछले हफ्ते जब दो महीने की छुट्टियां काट कर प्रतिमा वापस आयी तो कुछ ज़्यादा ही खुश थी। बात बात पर हंसना मेरी चूचियों पर हाथ फेरना या मेरी चूत या गांड पर हाथ लगाना पहले वो ऐसी नहीं थी। लड़की इतनी खुश तभी होती है जब या तो उसके मनपसंद लड़के के साथ उसकी शादी हो रही हो या फिर डाक्टरी के कोर्स के लिए मेडिकल कालेज में दाखला मिल गया को। तीसरा कारण है की लड़की की बढ़िया मस्त चुदाई हुई हो।
प्रतिमा की ना तो सगाई हुई थी ना ही मेडिकल कालेज में दाखला ही मिला था – मतलब हिसार से मस्त चुदाई करवा कर आयी थी। सोच सोच कर मेरी तो अपनी चूत ही गीली होने लग गयी। बस, फिर तो मैं प्रतिमा की खुशी का राज़ जानने के लिए उसके पीछे ही पड़ गयी की। पहले तो हंस हंस कर प्रतिमा ने टाला मगर फिर बोली “ठीक है, आज रात को तुम्हें सारा किस्सा बताऊंगी।”
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मगर मैं तो सुनंने के लिए बेताब हो रही थी, “रात को क्यों, अभी क्यों नहीं”।
“अरी क्यों बेचैन हो रही है, किस्सा गरमा गरम और मस्त भी। ऐसे किस्से रात को ही सुने सुनाए जाते हैं। अगर हमारी भी गरम हो गयी तो ठंडी कैसे करेंगे”?
अब तो मेरी जिज्ञासा और भी बढ़ गयी मैं जानने के लिए बेचैन हो गयी की आखिर प्रतिमा के साथ क्या और कैसे हुआ है। ये तो मैं समझ गयी की थी लड़की मस्त चुद कर आयी है मगर किससे और कैसे। दिन भर मैं रात होने का ही इंतज़ार करती रही।
रात आयी, हम दोनों एक ही बिस्तर पर लेट गयीं। प्रतिमा बुदबुदाई, ” क्या छुट्टियां कटीं, कभी ना भूलने वाली छुट्टियां”।
जिज्ञासा के मारे मेरी हालत खराब थी, “अब बताओ भी, रहा नहीं जा रहा”।
और फिर जो किस्सा प्रतिमा ने सुनाया, वाकई सेक्सी, गरम करने वाला और मस्त था।
बकौल प्रतिमा – मैं (प्रतिमा) जब हिसार पहुंची तो मेरी माँ बड़ी खुश हुई। सब से मेरा परिचय करवाया अंकित, मधु, मधु का पति मनोज। सभी बड़े ही प्यार से मिले मेरा तो बड़ा ही अच्छा स्वागत हुआ। अंकित को देख कर तो मेरा मन कुछ और ही सोचने लगा। सोचने लगी क्या डील डौल है लंड भी बढ़िया होगा।
तभी ख्याल आया की वो मेरा भाई है। मगर दिल के एक कोने से आवाज़ आई भाई तो है, मगर है तो “सौतेला” ही। ख्याल आते ही फिर उसके लंड के बारे में सोचने लगी। तीन चार दिन यों ही निकल गए। एक दिन रात को प्यास लगी तो मेरे जग में पानी नहीं था। मैं रसोई में से पानी लेने निकली।
रसोई जाने के लिए अंकित का कमरा लांघना पड़ता है। जब उसके कमरे के सामने से गुज़री तो उसके कमरे का दरवाजा थोड़ा खुला हुआ था। मैंने उत्सुकतावश अंदर झाँका तो अंकित कमरे में नहीं था सोचा शायद टॉयलेट गया होगा। पानी ले कर जब वापस आयी, तब भी अंकित कमरे में नहीं था और दरवाजा वैसे ही खुला था।
मैं बड़ी हैरान हुई की इतनी रात को अंकित कहाँ जा सकता है घर के सारे दरवाजे तो बंद हैं। मैं सोच ही रही थी की ऐसा लगा की मेरी माँ के कमरे से कुछ आवाजें आ रही हैं। मैं देखने के लिए गयी और थोड़ी सी खुली खिड़की में से झांका अंदर का नज़ारा देख कर मेरे तो होश ही उड़ गए।
अंकित पूरी तरह से नंगा बिस्तर पर लेता हुआ था और मेरी माँ उसके ऊपर बैठी थी पूरी तरह नंगी। साफ़ पता लग रहा था की अंकित का लंड मेरी माँ की चूत में है और मेरी माँ अंकित का लंड चोद रही है। मेरी माँ ऊपर नीचे हिल हिल कर झटके लगा रही थी और अंकित नीचे से झटके लगा रहा था। कुछ ही देर में माँ नीचे उतर गयी। अंकित का लंड खूटे की तरह खड़ा था। माँ बिस्तर पर लेट गयी और अंकित माँ की टांगें उठा कर ऊपर से माँ को चोदने लगा।
“अजीब नज़ारा था। मेरी सगी माँ मेरे ही सौतेले भाई से चुद रही थी और मैं देख रही थी”।
मुझ से और नहीं देखा गया और में भाग कर अपने कमरे में चली गयी। मेरी साँस फूल रही थी। अंकित का खूंटे जैसा लंड मेरी आँखों के सामने घूम रहा था। मेरी तो अपनी चूत ही गरम हो गयी। बड़ी मुश्किल से उंगली से रगड़ रगड़ कर चूत का पानी छुड़ाया, मगर आँखों के आगे वही नज़ारा था अंकित नीचे, माँ ऊपर। माँ नीचे अंकित ऊपर और अंकित का मोटा लम्बा लंड।
अगले दिन मैंने देखा माँ और अंकित बिलकुल सामान्य हैं मगर मैं ना माँ से ना ही अंकित से नज़रें नहीं मिला पा रही थी। मुझे तो मधु से भी शर्म आ रही थी। मैं सोच रही थी की क्या मधु भी इस माँ बेटे की चुदाई के बारे में जानती है ? पूरा दिन ऐसे ही गुज़र गया। रात को नींद ही नहीं आ रही थी। बार बार उठ कर देखती थी की अंकित मेरी माँ को चोदने उसके कमरे में गया या नहीं मगर उस रात वो नहीं गया। मेरी रात जागते जागते ही कट गयी।
अगले दिन मेरे चेहरे से साफ़ लग रहा था की मैं रात भर नहीं सोई। माँ ने एक दो बार पूछा भी, मगर मैंने टाल दिया। माँ ने भी सोचा होगी कोइ बात, रात ढंग की नींद नहीं आयी होगी। अंकित ने सरसरी नज़र मुझ पर डाली लेकिन बोला कुछ नहीं।
मधु ने ज़रूर हँसते हुए कहा, ” क्या बात है जीजी रात को डरावना सपना देखा या कोइ भूत देख लिया”। मुझे उसकी ये भूत वाली बात कुछ अजीब लगी। मुझे लगा की ये अंकित और माँ के चूत चुदाई के रिश्ते के बारे में जानती है या मेरा वहम है। खैर !!
नींद मुझे अगली रात भी नहीं आयी। मैं तो जानना चाहती थी की अंकित माँ के पास जाता है की नहीं। उस रात अंकित आधी रात को माँ के कमरे में गया। मैं तो इस ताक में ही थी। फिर खिड़की की तरफ गयी। खिड़की आज भी थोड़ी सी खुली थी। खिड़की का पल्ला या तो खराब था या जान बूझ कर खुला रखा गया था।
अंदर देखा तो अंकित आज माँ को पीछे से चोद रहा था। माँ फर्श पर खड़ी थी और पलंग पर झुकी हुई थी। अंकित ने माँ की कमर पकड़ी हुई थी और दबा कर चुदाई कर रहा था। तभी माँ ने सिर घुमा कर अंकित को कुछ कहा। अंकित ने भी हाँ में अपना सिर हिलाया और लंड चूत में से बाहर निकल लिया।
मैंने सोचा की अब माँ पलंग पर लेटेगी और अंकित ऊपर से चोदेगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। माँ वैसे ही झुकी हुई खड़ी रही। अंकित आया, उसके हाथ में कुछ ट्यूब जैसा कुछ था। अंकित ने ट्यूब में से सफेद सफेद कुछ निकाल कर माँ की गांड के छेद पर लगाया।
“ओह !! तो क्या अब अंकित माँ की गांड चोदेगा” ?
मैं समझ गयी अंकित माँ की गांड के छेद को चिकना करने के लिए जैल क्रीम लाया था। अंकित ने क्रीम लगा कर अपने लंड का टोपा माँ की गांड के छेद पर रखा और धीरे धीरे लंड अंदर डालना शुरू किया। कुछ ही पलों में अंकित का मोटा लंड माँ की गांड के अंदर था।
मैं हैरान थी इतना मोटा लंड गांड में चला कैसे गया लेकिन हक़ीक़त में अंकित का लंड माँ की गांड के अंदर ही था। मेरी तो अपनी गांड में खुजली होने लग गयी। चूत तो पानी छोड़ ही रही थी। माँ की गांड की चुदाई शुरू हो चुकी थी। तभी माँ ने सिर घुमा कर अंकित से कुछ कहा। अंकित ने भी सिर हिलाया और लंड पूरा बाहर निकाल कर पूरे जोर से अंदर पेला, अब गांड चुदाई फुल स्पीड पर चल रही थी।
माँ एक पक्की चुदक्क्ड़ की तरह चुदाई करवा रही थी। मुझ से और नहीं देखा गया, मेरी हालत खराब हो रही थी। कमरे में आ कर फिर अपनी चूत को उंगली से रगड़ा – एक उंगली अपनी गांड में भी डालने की कोशिश की। रात ऐसे निकल गयी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
अगले दिन माँ ने तो कुछ नहीं कहा, अंकित मुझे अजीब नज़रों से देख रहा था। “हे भगवान कहीं इसको भनक तो नहीं लग गयी की मैंने इसे माँ को चोदते देख लिया है, कहीं खिड़की जान बूझ कर तो नहीं खुली छोड़ी गयी जिससे मैं सारा नज़ारा देख सकूं”? उधर मधु भी मुझे देख देख कर मुस्कुरा रही थी। मैं हैरान थी की आखिर ये हो क्या रहा है ?
दस दिन गुज़र गए। मैं जान चुकी थी की अंकित हर दुसरे दिन माँ को चोदता है। मुझे भी हर चुदाई देखने का चस्का लग गया था। मधु अब अजीब अजीब सी बातें करने लगी थी, बात को घुमा कर मुझसे जाना चाहती थी मेरा कोइ बॉय फ्रेंड है क्या ? कहाँ तक है हम लोगों की दोस्ती मैं मतलब समझती थी।
मधु जानना चाहती थी की क्या मैंने चूत चुदवाई है या नहीं ? मगर क्यों ? कहीं इसने मुझे खिड़की में से चुदाई देखते हुए देख तो नहीं लिया ? क्या ये मधु माँ और अंकित की चुदाई के बारे में जानती है? एक दिन तो कमाल ही हो गया। मैं माँ और अंकित की चुदाई देख कर अपने कमरे की तरफ जा ही रही.
जैसे ही रसोई के दरवाजे के सामने से गुज़री अंदर से मधु ने दबी आवाज में मुझे अंदर बुलाया। मेरे तो पसीने छूट गए। तो मेरा शक ठीक ही था। मधु जान गयी थी की मैं छुप छुप कर अंकित और माँ की चुदाई देखती हूँ। मैं रसोई में गयी।
मधु ने पूछा, “क्या देखा ?” मेरी तो आवाज ही नहीं निकल रही थी। वो बोली, “चलो तुम्हारे कमरे में चलते हैं।” मैंने मधु से पूछा ये कब से चल रहा है।
“क्या कब से चल रहा है “? उसने पूछा। यही सब, मैंने माँ के कमरे की तरफ इशारा करके कहा।”
ओह तुम्हारा मतलब बीबी जी (मधु माँ को बीबी जी बुलाती थी) और अंकित बाबा की चुदाई का चक्कर”? मैं हैरान हुई की ये कैसे बात कर रही है।
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“अरे जीजी ये तो शुरू से – जब से अंकित घर आये हैं तब से ही चल रहा है। बाबू जी को काम से फुर्सत नहीं। ये चूत चुदाई उनके लिए बेमानी है और बीबी जी अभी जवान हैं, उनको लंड चाहिए वो उनको अंकित बाबा से मिल रहा है”।
मुझे सुन कर बड़ी ही हैरानी हुई। अगर अंकित को चूत ही मारनी है तो मधु की क्यों नहीं ? सच्चाई तो यही है माँ की चूत 41 साल की उम्र में तो अब भोसड़ा बन चुकी होगी या फिर वो मधु को भी चोदता होगा या फिर माँ को चुदाई से मना नहीं कर पाता होगा।
“जो भी हो, घर मैं चुदाई का खेल तो चल ही रहा था”।
मैंने मधु से पूछ ही लिय। अगर अंकित को चूत ही चाहिए तो तुम भी तो हो। तुम तो जवान भी हो। मधु ने मेरे गाल पर चिकोटी काटी, “हाँ मैं भी हूँ मगर मेरा काम मनोज बढ़िया चलाता है आगे और पीछे, दोनों छेद चोदता है। इस लिए जरूरत नहीं पड़ती”।
मैं हैरान तो थी, मगर मुझे मधु की बात पर विश्वास नहीं हुआ। तभी अचानक मधु ने मेरी सलवार के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूत में उंगली डाल दी और बोली, “अरे इसमें तो बरसात हो रही है। लंड मांग रही है ये”।
बात तो मधु ठीक ही कह रही थी। लंड तो मांग ही रही थी मेरी चूत। मगर मैं बोली कुछ नहीं बोलती भी तो क्या बोलती।
ज़रा सा रुकने के बाद मधु बोली, “चलो”।
मैंने पूछा, “कहाँ” ?
“चलो तो, आज तुम्हारी चुदाई का इंतज़ाम करते हैं”। मैं एक दम ठिठक गयी, “क्या “? मेरे मुंह से आवाज़ नहीं निकल रही थी।
मधु बोली, “अरे जीजी घबराओ नहीं, चलो”।
“मगर कहाँ”, मैं हैरान थी।
“हमारे कमरे में, मनोज के पास। उसे बोलूंगी तुम्हारी चूत को ठंडा करे”।
“मगर”, मधु मेरी बात काट कर बोली, “कोइ अगर मगर नहीं, चलो”।
“मगर माँ, अंकित ?” मैंने दबी आवाज मैं पूछा।
मधु बोली, “अंकित तड़का होने से पहले बाहर नहीं आने वाला, ना ही बीबी जी। दूसरे अंकित तुम्हाई चूत चोदने वाला नहीं जब तक बीबी जी घर में हैं। अगले हफ्ते बीबी जी और बाबू जी तीन दिनों के लिए अम्बाला एक शादी में जाने वाले हैं। अंकित घर पर ही होगा तब उससे चुदवा लेना अब चलो मनोज का लंड ट्राई करो”। बात करते करते मधु का कमरा ही आ गया।
मुझे बाहर ही रुकने के लिए बोल कर मधु अंदर चली गय। कुछ देर बाद बाहर आयी और बोली, “जाओ जीजी अंदर जाओ और मौज लो”। इतना कह कर मधु ने मुझे अंदर धकेल दिया। मैं दरवाजे के पास ही खड़ी हो गयी। मनोज चारपाई पर बैठा मुस्कुरा रहा था वो उठा और मुझे पकड़ कर बिस्तर की तरफ ले गया।
मनोज ने मेरी चूचियां पकड़ ली और दबाने लगा। उसने मेरी सलवार का नाड़ा खोला और बिस्तर पर लिटा दिया। मेरी टांगें चौड़ी कर के मेरी चूत चाटने लगा I फिर मनोज ने अपनी जीभ मेरे चूत के दाने भग्नाशा(क्लोरिटिस) पर फेरनी शुरू कर दी। मेरी तो सिसकारियां निकल रही थी।
मैंने मनोज का सर चूत से हटाया और दबी आवाज में बोली, मुंह में डालो। वो एक सेकण्ड के लिए रुका फिर उलटा मेरे ऊपर लेट गया अब उसका लंड मेरे मुंह में था और वह मेरी चूत चाट रहा था। लंड वाकई मोटा था। लग रहा था चुदाई का सही मजा आने वाला है। अगले पांच सात मिनट तक यही चलता रहा।
फिर मनोज ने अपना लंड मेरे मुंह में से निकला और उठ गया, लगता था गर्म हो गया है। मैं भी तैयार ही थी। मनोज ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत ऊंची की टांगें फैलाई, लंड मेरी चूत पर रक्खा और फच्च फच्च की एक आवाज़ के साथ आधा लंड मेरे अंदर था।
कुछ सेकण्ड रुक कर मनोज ने पूरा लंड चूत के अंदर डाल दिया और चुदाई शुरू कर दी। क्या चुदाई थी। हालांकि मैं अपने बॉय फ्रेंड से भी चुदी थी और तुम्हारे (उसने मेरी और इशारा कर के कहा) बॉय फ्रेंड से भी चुदी लेकिन वो चुदाई जल्दबाज़ी वाली थी यहाँ मनोज मस्त चोद रहा था न कोई जल्दी न कोई डर।
लगभग बीस मिनट की चुदाई के बाद मनोज ने अचानक ही धक्कों के स्पीड बढ़ा दी लगता था झड़ने वाला था। मैं खुद भी झड़ने के लिए तैयार थी। अचानक मनोज के मुंह से एक आवाज़ निकली ओ… ओ… आह… आह… मजा आ गया आह… आह… और मेरी चूत उसने अपने गरम गरम वीर्य से भर दी।
मैं भी झड़ चुकी थी। मन तृप्त हो गया। दो मिनट के बाद मनोज उठा कपडे उठा कर टॉयलेट में चला गया। मैंने अपनी सलवार से ही चूत साफ़ की मनोज का लेसदार वीर्य बाहर तक आ गया था। कपड़े पहने और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी। मधु मेरे कमरे में ही बैठी थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मुझे उससे शर्म सी आ रही थी आखिर उसके पति से चुदवा कर आ रहे थी। मेरी नज़रें नीचे की तरफ थी। मधु उठी और मेरे पास आ कर बोली, “शर्माओ मत जीजी, जब तक यहां हो मनोज से चुदवा सकती हो। मुझ से पूछने की भी ज़रूरत नहीं है। बस जब मौक़ा मिले जाओ और मजे ले कर आ जाओ”।
यह कह कर मधु जाने लगी, मगर दरवाजे पर रुकी, “और हाँ याद रखना बीबी जी और बाबू जी तीन दिन के लिए अम्बाला जा रहे हैं, अंकित बाबा अकेले होंगे”। इतना कह कर मधु चली गयी। मैं भी टॉयलेट में गयी कपड़े उतारे और छह फुट लम्बे शीशे में अपने नंगा जिस्म देखा।
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मनोज का वीर्य अभी भी मेरी चूत से निकल कर टांगों पर बह रहा था। मैं टॉयलेट सीट पर बैठ गयी और जोर लगा कर सारा वीर्य बाहर निकाला पेशाब किया, स्नान किया और सो गयी। क्या नींद आयी सुबह जब नींद खुली तो नौ बज चुके थे। मुंह धो कर बाहर निकली तो सामने ही माँ थी, “क्या बात है, लगता है आज थकान दूर हुई है, आज तो बड़ी तरोताजा लग रही हो”, कह कर वो चली गयी, मैं शर्मा गयी, मधु पीछे खड़ी हंस रही थी।
शुक्रवार को मेरे पिता जी (सौतेले) आ गए, माँ तैयार ही थी। अम्बाला अपनी कार से ही जा रहे थे 80 किलोमीटर ही तो सफर था। जाते जाते माँ बोली अच्छा प्रतिमा तीन या चार दिन लगेंगे। मेरा मन तो हुआ की कहूँ तीन या चार ही क्यों ? चार या पांच क्यों नहीं, पांच या छः क्यों नहीं। मेरी चूत तो अंकित के खूंटे के लिए बेचैन थी।
खैर शाम हुई और सब खाना खा कर इधर उधर समय बिताने लगे। जल्दी सोने की दिनचर्या थी। साढ़े आठ बजे मधु अपने कमरे की तरफ जाने लगी। जाते जाते बोल गयी, “जीजी एक बात बोलूं मैंने अंकित को बीबीजी की चुदाई करते देखा है। बढ़िया चोदता है। लंड चुसवाने का बड़ा शौक़ीन है, वहीं से शुरू करना”। और वो चली गयी।
मुझे यकीन हो गया अंकित ने मधु की भी चुदाई की है, वार्ना इसे कैसे पता की अंकित को लंड चुसवाने मैं मज़ा आता है। मैं भी अपने कमरे में आ गयी और टीवी देखने लगी। साढ़े दस बजे मैं उठी और पानी का जग ले कर पानी लेने के बहाने बाहर निकली। जग रसोई में रख क़र, धीरे से अंकित के कमरे की तरफ गयी।
दरवाजे को धीरे से धक्का दिया, दरवाजा खुला ही था। नाईट लैंप में अंकित बिस्तर पर लेटा दिखाई दे रहा था। बनियान और वेस्ट (कच्छे) में। लंड का उभार साफ़ दिखाई दे रहा था। मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। अंकित और माँ की चुदाई आखों के आगे आ गयी बढ़िया चुदाई करता था। मैं आगे बढ़ी और जा कर घुटनों के बल पलंग के साथ बैठ गयी। मेरा मुंह अंकित के लंड के बिलकुल सामने था।
थोड़ी देर मैं ऐसे ही बैठी रही, फिर सोचा जब चुदाई की करवानी है तो शर्म कैसे और डर कैसा। मैंने अंकित का लंड धीरे से उसकी वेस्ट से बाहर निकाला और अपने मुंह में ले कर चूसना शुरू कर दिया। अंकित कच्ची नींद में था , या फिर बहाना बना रहा था, “अरे प्रतिमा”? मैंने लंड मुंह से बाहर निकल दिया और अंकित की तरफ देखने लगी की देखें क्या कहता है।
वो बोला, “नीचे क्यों बैठी हो ऊपर आओ”। मैं पलंग के ऊपर बैठ गयी। अंकित ने अपना लंड अपने हाथ में लिया और बोला, ये लो आराम से चूसो। मैंने लंड पकड़ा और अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। मनोज के लंड की तरह का ही मोटा लंड। पांच सात मिनट की चुसवाई के बाद अंकित ने लंड मेरे मुंह से निकाल लिया।
मुझे पूरी तरह नंगा करके, मेरी चूचियां चूसने लगा। साथ ही मेरी चूत में उसने उंगली डाल दी। जब उसे लगा की मेरी चूत अब लंड मांग रही है तो उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरी टांगें उठा दी। मुझे मनोज की चुदाई याद आ गयी कैसे मनोज ने मेरे चूतड़ों के नीचे तकिया रख कर मेरी चूत ऊपर उठाई थी।
मगर अंकित ने तो ऐसा कुछ नहीं किया मगर जो अंकित ने किया वो वाकई अलग था। अंकित ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रख दी। मेरी हालत ये थी की मैं अपने चूतड़ हिला भी नहीं पा रही थी। अंकित ऊपर की तरफ खिसका और मेरी चूत खुदबखुद ऊपर उठ गयी।
मेरी चूत का छेद अंकित के लंड के बिलकुल सामने था। बस फिर क्या था एक दो और तीन लंड चूत के अंदर था और चुदाई शुरू थी। दस मिनट धक्कों के बाद अंकित हटा और बोला “अब ज़रा चुदाई का ढंग बदलते है। पीछे से चुदाई करूँ”? मुझे अपनी माँ की चुदाई याद आ गयी जिसमे अंकित माँ को पीछे से चोद रहा था।
मैंने सर हिला कर हामी भरी और पलंग से नीचे उतर गयी। मेरी माँ की ये वाली चुदाई मेरी आखों के आगे घूम गयी। अपनी माँ की तरह ही मैं पलंग पर झुक गयी, अपनी टांगें चौड़ी कर दी और अंकित के लंड का इंतज़ार करने लगी। अब सबर नहीं हो रहा था। अंकित ने अपना लंड मेरी चूत पर फेरना शुरू किया।
बीच बीच में वो अपना लंड मेरी गांड के छेद पर भी रख देता था। आनंद के मारे मेरी तो सिसकारियां निकलनी शुरू हो गयी और मैं हिलने लग गयी। अंकित समझ गया भट्टी गर्म है। उसने एक ही बार में पूरा लंड अंदर कर दिया और मेरी चूत की चुदाई शुरू कर दी। मैं सोच रही थी क्या लंड है और क्या चुदाई है।
अगले आठ दस मिनट तक ऐसी ही चुदाई चली, फिर अंकित ने अपना लंड मेरी चूत में से निकाल लिया और बिस्तर पर सीधा लेट गया और बोला, “बैठो मेरे लंड पर और अंदर लो इसको”। मेरी आँखों के आगे माँ का दृश्य घूम गया, जब वो अंकित के खूंटे जैंसे लंड पर बैठी थी और जोर जोर से ऊपर नीचे हो रही थी।
अब वही “खूंटा” मेरी आँखों की सामने था और मेरी चूत में घुसने के लिए बेताब था। मैंने एक टांग उठाई, अंकित के दूसरी ओर रखी, लंड को एक हाथ से पकड़ कर चूत पर रखा और उसकी ऊपर बैठ गयी। लंड पूरी गहराई तक अंदर था – मजा ही आ गय। यही जन्नत थी। थोड़ी और चुदाई के बाद दोनों झड़ गए।
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मेरी चूत एक बार फिर सफ़ेद गर्म लेसदार वीर्य से भर गयी थी। कुछ देर मैं ऐसे ही बैठी रही। जैसे ही मैं टांग उठा कर अंकित के ऊपर से उतरी, ऐसा लगा जैसे आधा कप वीर्य मेरी चूत में से निकल कर अंकित के लंड और अंडकोषों (टट्टों) पर फ़ैल गया।
ना जाने मेरे मन में क्या आया, मैं झुकी और वीर्य चाटने लगी – और तब तक चाटती रही जब तक अंकित का लंड और टट्टे बिलकुल साफ़ नहीं हो गए। अंकित भी वैसे ही पड़ा रहा। जब सारा काम हो गया तो बोला, “प्रतिमा तुम बहुत अच्छा चुदवाती हो। मजा आ गया।”
मैं कपड़े पहनते हुए बोली, “चुदाई तो तुम भी कमाल की करते हो। अच्छा एक बात बताओ माँ के तो तुमने पीछे भी डाला था।”
वह हंसा और बोला, “ओ ओ ओ तो तुमने पूरी फिल्म देखी है !”
अब कहने को कुछ नहीं था। मस्त चुदाई हो चुकी थी। अब पीछे की छोड़ आगे का सोचना था कल क्या होगा?
मैंने अंकित से कहा, “माँ और बाबू जी तो सोमवार को वापस आने वाले हैं – मतलब दो दिन और”I
अंकित ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और बोला ,” हाँ दो दिन चुदाई के और। एक बात और – कल तुम्हारे लिए एक सरप्राइज भी होगा”।
मैं अपने कमरे में आ गयी, चूत और मन दोनों की तसल्ली हो गयी थी। पूरी चुदाई एक फिल्म जी तरह आखों के आगे थी। फिर ना जाने कब आँख लग गयी। आँख खुली तो मधु चाय का कप ले कर सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी। “जीजी कैसी कटी रात ?”
मुझे तो शर्म ही आ गयी।
मधु बोली, “अच्छा चाय पी लो तरो ताज़ा हो कर आ जाओ, बातें करने लिए सारा दिन पड़ा है।”
मैंने चाय का प्याला पकड़ा, चाय पी और टॉयलेट में घुस गयी। नहाते हुए जब चूत पर हाथ फेर रही थी तो पाया चूत अभी भी चिप चिप कर रही थी – अंकित का सफ़ेद लेसदार वीर्य था या फिर पूरी रात चूत मस्ती में पानी छोड़ती रही थी? नहा धो कर बाहर आयी, अंकित हिसार शहर जा चुका था। मनोज खेतों में गया हुआ था। घर में मैं और मधु अकेली ही थी।
मधु फिर पूछने लगी, “जीजी रात का किस्सा तो बताओ।”
मैं सोचने लगी, अब मधु से क्या शर्माना। मधु के पति मनोज से चुदने के बाद तो मैं मधु के सामने नंगी ही थी। मैंने पूरी की पूरी चुदाई मधु को बताई। मधु ने अपनी चूत पर हाथ फेरते हुए कहा, “जीजी बाकी तो सब ठीक है, इस सरप्राइज़ वाली बात का क्या मतलब है ?”
मैंने कहा, “मुझे भी नहीं पता,मैं भी हैरान हूँ। अब क्या सरप्राइज़ है ये तो रात को ही पता चलेगा”।
मधु ने अपना हाथ अपनी चूत से हटाया और बोली, “अच्छा मैं भी चलूँ , काम पड़ा है” वो हमारे कमरे की तरफ बढ़ गयी। अब वहाँ उसको क्या काम ? मेरी चुदाई सुन कर गरम हो गई होगी, ज़रूर चूत में उंगली करेगी। दिन गुज़र गया। अंकित शाम को लौटा। काफी सामान ले कर आया था।
घर का सामान वही लाता था। मेरे पास से गुज़रा तो मुझे देख कर मुस्कुराया। सब अपने अपने काम में व्यस्त थे। बाबू जी नहीं थे इसलिए मनोज रात को डेरी वाले घर में ही रुकने वाला था।मधु खाना बना रही थी, मैं पास ही खड़ी थी। वो बोली, “जीजी, रात की तैयारी पूरी है ?” साथ ही हंस पड़ी। मैं थोड़ी शरमाई लेकिन चुप रही। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मनोज बोली, “जीजी एक बात बोलूं, मानोगी”?
“हाँ हाँ बोलो, इसमें ना मानने वाली क्या बात है”? मैंने कहा।
मनोज ने मेरे हाथ अपने हाथ में लिए और बोली, “मुझे आप की चुदाई देखनी है”।
मैं हैरान हो गयी। इस बात की तो मुझे उम्मीद नहीं थी। पर फिर भी मैं बोली, “ठीक है, पर देखोगी कैसे”?
“बस अंकित के कमरे की खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।
मैंने मधु की तरफ देखा और हाँ में सर हिला दिया, “खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।
तो क्या माँ के कमरे की खिड़की भी जान बूझ कर खुली रखी गई थी ? रात हुई, जब सब लाइटें बंद हो गयी तो मैं उठी और अंकित के कमरे की तरफ जाने लगी। मधु बाहर ही खड़ी थी – बोली , “तुम चलो जीजी अपना खेल खेलो, बस खिड़की थोड़ी खोल कर रखना”।
मैं आगे बढ़ी और अंकित के कमरे में चली गयी। अंकित मेरा इंतज़ार ही कर रहा था। आज तो नंगा ही बिस्तर पर लेता हुआ था। लंड उसके हाथ में था, उसके साथ खेल रहा था। एक पल के लिए मैं रुकी फिर मैं भी उसके साथ ही लेट गयी और उसका लंड सहलाने लगी। जल्दी ही लंड फनफनाने लगा।
अंकित बोला, “मैं पेशाब करके आता हूँ”, वो टॉयलेट की तरफ चला गया। मैं उठी और खिड़की थोड़ी सी खोल दी और वापस आ कर बिस्तर पर लेट गयी। अंकित पांच मिनट के बाद आया, और मेरे साथ ही लेट गया। मेरी चूचियों के साथ खिलवाड़ करने लगा। मैंने भी उसका लंड हाथ में ले लिया।
दोनों एक दुसरे की बाहों में समा गए। मेरी चूचियां उसकी छाती से लग रही थी और उसका लंड मेरी चूत पर रगड़ खा रहा था। जल्दी ही दोनों गरम हो गए। अंकित ने मुझे सीधा लिटा दिया और मेरे होंठ अपने होठों में ले कर चूसने लगा। मैंने भी नीचे से उसके चूतड़ अपने हाथों में ले लिए और दबाने लगी। जल्दी ही दोनों को चुदाई की तलब होने लगी।
कल रात की ही तरह अंकित ने मेरी टांगें अपने कंधों पर रखी और ऊपर की तरफ होने लगा। मेरी चूत ऊपर उठने लगी। अंकित का लंड और मेरी चूत आमने सामने थे। अंकित ने लंड चूत पर रखा और थोड़ा खिलवाड़ करने के बाद अंदर पेल दिया। बस फिर चुदाई शुरू हो गयी।
आज चुदाई की गाड़ी सुपर फ़ास्ट थी बिना रुके अंकित ने दबा कर मुझे चोदा। इतना मजा आ रहा था की चूतड़ उठा उठा कर झटके दे दे कर पूरा लंड अंदर ले रही थी। अंकित भी समझ गया होगा कि “ये तो गयी”, उसने आठ दस लम्बे धक्के लगाए और बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ लेसदार वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया।
मेरा तो दिमाग़ ही सुन्न पड़ गया होश तब आया जब मैं झड़ गयी। घर में कोइ था नहीं इसलिए हम दोनों पूरे जोर शोर के साथ मजे ले रहे थे। मैं सोच रही थी मधु अगर चुदाई देख रही होगी तो क्या सोच रही होगी क्या कर रही होगी। कुछ देर लेटने के बाद मेरी चूत ठंडी हो गयी। मेरा मन तृप्त हो गया। उठ कर टॉयलेट गयी, पेशाब कर के चूत को धो कर वापस आयी और कपड़े पहनने लगी।
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“अरे ये क्या कर रही हो”, अंकित बोला।
मैं रुक गयी और उसकी तरफ देखा और हंस कर कहा – “क्या एक बार और चोदना है”?
वो बोला, “याद नहीं, अभी तो सरप्राइज़ बाकी है”।
“कैसा सरप्राइज़”? मैंने पूछा, कपड़े मेरे हाथ में ही थे।
“वही, जो मैंने कल कहा था कि आज सरप्राइज़ दूंगा”, अंकित बोला।
मुझे याद आ गया, मैं तो भूल ही चुकी थी कि अंकित ने ऐसा कुछ कहा था। मैंने कपड़े फिर से बिस्तर पर रख दिए और पूछा, “क्या सरप्राइज़ है? ”
“अभी पता लग जाएगा, आ जाओ”।
मैं उसके साथ लेट गयी। ट्रेलर फिर शरू हो गया। उसके हाथ मेरी चूचियों पर और मेरी चूत पर और मेरा हाथ उसके लंड पर। दस बारह मिनट के बाद अंकित उठा और बोला, “चलो अब पीछे से करेंगे”। गरम तो मैं हो ही चुकी थी। जिस चूत को थोड़ी देर पहले साफ़ कर के तौलिये के साथ पोंछ कर आयी थी वो फिर गीली हो चुकी थी।
मैं उठी और कोहनियां बिस्तर पर टिका कर टांगें चौड़ी करके खड़ी हो गयी और अंकित के लंड का इंज़ार करने लगी। “अंकित लंड अंदर डाल क्यों नहीं रहा, क्या कर रहा है”! तभी मुझे लगा कि अंकित मेरी गांड के छेद पर कुछ लगा रहा है – कुछ चिकना चिकना ठंडा ठंडा।
मैंने सर घुमा कर पूछा, “क्या कर रहे हो अंकित”?
“तुम्हें सरप्राइज़ देने की तैयारी कर रहा हूँ। आज तुमही गांड चुदाई करूंगा”।
“तो ये था सरप्राइज़”।
मैंने कभी गांड नहीं चुदाई थी। मगर इतना पता था कि चूत में से चुदाई से पहले जो लेसदार पानी निकलता है वो असल में कुदरत का करिश्मा है जिससे लंड फिसल चूत में चला जाता है। गांड में से ऐसा कुछ नहीं निकलता इस लिए गांड के छेद पर ढेर सारी चिकनी जैल या क्रीम लगानी पड़ती है।
अंकित गांड पर जैल लगा रहा था। थोड़ी जैल उंगली से गांड के अंदर भी लगा रहा था। गांड कि इस मालिश और गांड के अंदर उंगली ने मुझे बेसबर कर दिया। मन कर रहा था कि डाले लंड अंदर, एक नया तजुर्बा होने वाला था गांड मरवाने का, गांड चुदवाने का।
आखिर अंकित ने अपना लंड गांड के छेद के ऊपर रक्खा और थोड़ा सा अंदर किया। मुझे बड़ी दर्द हुई। मैं आगे की तरफ हुई। अंकित ने अब मेरी कमर पकड़ ली जिससे मैं आगे ना जा सकूं और लंड अंदर जाये। अंकित ने लंड फिर अंदर धकेला। मुझे सच में हे दर्द हो रहे थी। मैंने अंकित से कहा, “अंकित ये तो बड़ा दर्द करता है”।
अंकित ने मुझे समझाया, “शुरू शुरू में थोड़ा दर्द होता ही है। पहली गांड चुदाई में ढेर सारी जैल लगानी पड़ती है और लंड को थोड़ा थोड़ा अंदर डालते हैं। पहली बार पूरा अंदर करने में आठ दस मिनट भी लग जाते हैं”।
अब मुझे कुछ हिम्मत हुई। अंकित ने वैसा ही किया जैसा कहा था। लंड थोड़ा अंदर डाला, फिर बाहर निकल कर खूब सारी जैल लगाई और लंड थोड़ा और अंदर किया। थोड़ी ही देर में अंकित का आधा लंड अंदर था। अंकित जरा भी जल्दी नहीं कर रहा था।
“आखिर मैं कहीं भागी तो जा नहीं रही थी”।
अगले दस मिनट में लंड पूरा अंदर था। मुझे दर्द तो हो रहा था और मैं महसूस भी कर रही थी कि मेरी गांड का छेद चौड़ा हो गया है – गांड की छेद के प्रवेश द्वार के ऊपर ही रगड़ाई का मजा आता है। जितना मोटा और लम्बा लंड, गांड के प्रवेश द्वार की उतनी ज़्यादा रगड़ाई, उतना ज़्यादा मजा। बस जैल खूब सारी लगी होनी चाहिए। मैंने अपना सर अपनी बाहों में रख लिया और गांड चुदाई का मजा लेने लगी।
“चूत चुदाई, गांड चुदाई – ये चुदाई भी क्या मस्त चीज़ है। क्या होता अगर चूत और लंड दोनों में से कोइ एक ना होता”।
तभी अंकित की आवाज़ आयी, “अरे मधु तुम” ?
मैंने सर उठाया और पीछे मुड़ कर देखा, मधु खड़ी थी, बिकुल नंगी। तो मधु चुदाई देख ही रही थी ? वो बोली, “तुम लोग करते रहो”। वो बिस्तर पर आयी और अपनी चूत मेरे मुंह के आगे कर के लेट गयी और अपनी टांगें चौड़ी कर दी। मधु की चिकनी चूत मेरे सामने थी।
मधु ने अपने हाथों से अपनी चूत चौड़ी कर दी। गीली गुलाबी फुद्दी मेरी आँखों के सामने थी। मैंने अपने होठ मधु की चूत पर लगा दिए और जबान से ऊपर नीचे चूत चाटने लगी। अंकित मेरी गांड चोद रहा था और मैं मधु की चूत चाट रही थी। मेरी गांड दुखने लग गयी थी।
मैंने अंकित को कहा, “अंकित मेरी गांड दुःख रही है”।
अंकित ने लंड बाहर निकल लिया और खड़ा हो गया। मधु उठी और कुहनियां बिस्तर पर रख कर टांगें चौड़ी कर के खड़ी हो गयी। अब मेरी और मधु की जगह बदल गयी थी। मधु मेरी जगह थी और मैं मधु की जगह मतलब अंकित का लंड मधु की गांड में था और मधु मेरी चूत चाट रही थी।
थोड़ी चुदाई के बाद अंकित बोला अब दोनों आ जाओ। अब मैं बारी बारी से दोनों की गांड की चुदाई करूंगा। हम दोनों पलंग पर कुहनियों रख के खड़ी हो गयी और गांड चौड़ी कर दी। अंकित हम दोनों की गांड बारी बारी से चोद रहा था। मैं तो एक बार चूत की चुदाई का मजा ले चुकी थी, फिर से अपनी उंगली चूत में डाल कर चूत का दाना(भग्नाशा) रगड़ना शुरू कर दिया।
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मधु पूरी गरम हो चुकी थी वो लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी। लगता था हमारी चुदाई देखते हुए अपनी चूत काफी रगड़ चुकी थी। अंकित बोला, अब तैयार हो जाओ। तुम दोनों की गांड के ऊपर वीर्य निकालूँगा। मैंने अपनी चूत जोर जोर से रगड़ने शुरू कर दी। मधु भी यही कर रही थी।
अंकित अपने लंड को कभी मेरी गांड के साथ लगाता था कभी मधु की गांड के साथ और हाथ से मुठ मार रहा था। जल्दी ही अंकित ने एक बड़ी हुंकार भरी “आह… ओह… आ… मजा आ गया” और उसने बारी बारी से लंड मेरी और मधु की चूत के साथ सटाया। उसका गरमा गरम वीर्य मेरी और मधु की गांड पर भल भल करके गिरा और नीचे कि तरफ बहने लगा।
“ये भी क्या अनुभव था। गांड के छेद पर गर्म वीर्य और नीचे की तरफ बहता हुआ। इस अनुभव ने ही हमारी चूत का पानी निकल दिया। हम तो निहाल हो गयीं”।
चुदाई खत्म हो चुकी थी। हम तीनो ही बाथरूम में चले गए। तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी।
मधु मुझ से बोली, “बैठ जाओ।”
मैंने पूछा “क्यों ?”
उसने कहा “बैठो तो सही” ?
मैं घुटनों के बल बैठ गयी। मेरे पास ही मधु भी घुटनों के बल बैठ गयी। मधु अंकित से बोली, “चलो अंकित शरू हो जाओ।” अंकित ने लंड हाथ में लिया और हमारे ऊपर मूत की धार डाल दी। एक बार तो मैं सकपकाई, मगर जब मधु कि तरफ देखा तो हैरान रह गयी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
मधु ने मुंह खोला हुआ था और अंकित के लंड से गर्म मूत मधु के मुहं में जा कर बाहर निकल कर बह रहा अनायास ही, मैंने भी मुँह खोल दिया। अंकित अब मेरे ऊपर भी पेशाब कर रहा था। ये हो क्या रहा था। आधा घंटा हम यही कुछ करते रहे। जब चलने लगे तो अंकित बोला, “याद रखना, परसों तो माँ और बाउजी आ जायेंगे”।
“माँ !!!”, मेरी तो हंसी छूट गयी करता है चुदाई, और बोलता है माँ पर मैं ही कौन सी कम थी। अंकित मेरा भी तो भाई ही था, क्या हुआ जो सौतेला था”।
मैंने मधु को कहा, मधु आज मेरे साथ ही मेरे कमरा में सो जाओ, अकेले कहाँ सोवोगी”।
वो हंस कर बोली, “हाँ ठीक है क्या पता रात को फिर मन कर आये और उंगली करनी पड़े”।
मैं भी हंस पडी, और हम दोनों मेरे कमरे में चले गए, कपड़े उतरे और नंगे ही बिस्तर में घुस गयीं। लेकिन पूरी रात हम सोई नहीं, ऐसी ऐसी चूत और गांड चुसाई की क्रीड़ा की कि कोइ कल्पना भी नहीं कर सकता। सुबह जब मैं उठी तो मधु पहले ही उठ चुकी थी। में रात के किस्से याद करके मुस्कुरा पडी।
मैंने कपड़े पहने और रसोई में गयी मधु काम कर रही थी। मैंने पीछे से मधु की चूचियों को पकड़ा और बोली, “मज़ा आ गया।” मधु घूमी और मेरे होठों को अपने होठों मैं पकड़ कर चूसने लगी। उस रात हमने फिर अंकित के साथ चूत और गांड की चुदाई की। ये सिलसिला मेरी छुट्टियां खत्म होने तक चलता रहा। अगर माँ कहीं बाहर होती तो अंकित, अगर माँ घर पर ही होती तो मनोज।
प्रतिमा आपबीती सुनाने के बाद चुप हो गयी लगता था कुछ सोच रही है। “अपनी चुदाई के बारे में ही सोच रही होगी”।
मेरी हालत बड़ी खराब थी। चुदाई की इच्छा होने लगी थी। मगर अब इस वक़्त लंड कहाँ। मैंने प्रतिमा से ही कहा, “प्रतिमा तुम्हारी छुट्टियों के कहानी सुन कर चूत गर्म हो गई है। लंड मांग रही है – क्या करें.”
वो बोली, ” मेरी भी यही हालत है, पर इस वक़्त तो कुछ नहीं होगा, कल देखते है”।
मगर मुझ से नहीं रहा जा रहा था। मैंने कहा, ” पर अभी क्या करें” ?
प्रतिमा ने कुछ देर सोचा और बोली, “चलो आज हम वही करते हैं जो मधु और मैं आपस में करती थी”।
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हम दोनों ने कपड़े उतार दिए। फिर जो हुआ उसकी मुझे कल्पना नहीं थी। हमने एक दुसरे की चूत चाटी, गांड के छेद में जुबान घुसाई और अंत में बॉथ रूम में पहले वो बैठ गई और टांगें चौड़ी करके मैंने उसके ऊपर मूता फिर मैं बैठी और उसने मेरे ऊपर मूता।
“पूरे जिस्म पर गरमा गर्म मूत – ये बताने वाली नहीं खुद किसी के साथ करके महसूस करने वाली चीज़ है।”
हल्की हो कर हम फिर लेट गयी।
“प्रतिमा, अगली बार कब जाओगी हिसार”?
“छुट्टियों में। वैसे मैं मधु को नंबर दे कर आयी हूँ। मां और बाबू जी पंद्रह दिन के लिए रामेश्वरम जायेंगे। मधु मुझे फोन करेगी तब जाऊंगी। मेरी तो चूत में खजली छिड़ गयी और गांड का छेद खुलने बंद होने लगा। मैंने बड़े ही दबे स्वर में पूछा, “प्रतिमा, मुझे भी ले जाओगी” ? मुझे भी चूत और गांड ,,,,,,,,,” , उसने मुझे बीच में ही टोक दिया, अरी मेरी जान अंकिता, मैं तुझे कैसे छोड़ दूंगी ? अगर तू ना भी कहती तो भी मैं तुझे ले कर जाती। तीन लड़के तीन लड़कियां”।
मैंने पुछा, “तीसरा कौन”?
प्रतिमा ने मेरी चूत में उंगली डाल कर कहा – “मधु का देवर दीपक, वो नहीं था वहाँ। मधु कह रही थी क्या गांड की पिलाई करता है। इस बार वो नहीं था वहां, तो उससे गांड नहीं चुदवा पाई”।
मैं तो सोच सोच कर ही मस्ती में आ गई। मैंने प्रतिमा को कहा, “गांड में भी उंगली करो प्रतिमा”।
प्रतिमा हंसी, “ये ले मेरी ठरकी अंकिता” – और पूरी उंगली प्रतिमा ने मेरी गांड के छेद में डाल दी।
मैं भी हंसी ,”मजा आ गया ठरकी प्रतिमा, यही है ज़िंदगी”।
और हम दोनों हंसने लगी।
“सच ही तो है। बढ़िया चुदाई भी ज़िंदगी में ज़रूरी है – चुदाई बढ़िया न हो तो ज़िंदगी बेमानी है”।
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