Sexy Nitamb Chudai XXX
मैं आपको हमारे खानदान की सबसे अन्दर की बात बताने जा रहा हूँ मेरे हिसाब से मैंने कुछ बुरा किया नहीं है हालांकि कई लोग मुझे पापी समझेंगे। कहानी पढ़ कर आप ही फ़ैसला कीजिएगा कि जो हुआ वो सही हुआ है या नहीं? कहानी कई साल पहले की है जब मैं अठारह साल का था और मेरे बड़े भैया काशी राम चौथी शादी करने की सोच रहे थे। Sexy Nitamb Chudai XXX
हम सब मुज्जफरपुर से पचास किलोमीटर दूर एक छोटे से गाँव में ज़मीदार हैं एक सौ बीघा की खेती है और लंबा चौड़ा व्यवहार है हमारा। गाँव में चार घर और कई दुकानें है। मेरे माता-पिताजी जब मैं दस साल का था तब मर गए थे। मेरे बड़े भैया काशी राम और भाभी आस्था ने मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया।
भैया मुझसे तेरह साल बड़े हैं, उनकी पहली शादी के वक़्त में आठ साल का था। शादी के पाँच साल बाद भी आस्था भाभी को संतान नहीं हुई। कितने ही डॉक्टरों को दिखाया लेकिन सब बेकार गया। भैया ने दूसरी शादी की तरुणा भाभी के साथ ! तब मेरी आयु तेरह साल की थी।
लेकिन तरुणा भाभी को भी संतान नहीं हुई। आस्था और तरुणा की हालत बिगड़ गई, भैया उनके साथ नौकरानियों जैसा व्यवहार करने लगे। मुझे लगता है कि भैया ने दोनों भाभियों को चोदना चालू रखा था संतान की आस में। दूसरी शादी के तीन साल बाद भैया ने तीसरी शादी की श्रद्धा भाभी के साथ।
उस वक़्त मैं सोलह साल का हो गया था और मेरे बदन में फ़र्क पड़ना शुरू हो गया था। सबसे पहले मेरे वृषण बड़े हो गये बाद में कांख में और लौड़े पर बाल उगे और आवाज़ गहरी हो गई। मुँह पर मूछें निकल आई, लौड़ा लंबा और मोटा हो गया, रात को स्वप्न-दोष होने लगा, मैं मुठ मारना सीख गया।
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आस्था और तरुणा भाभी को पहली बार देखा तब मेरे मन में चोदने का विचार तक आया नहीं था, मैं बच्चा जो था। श्रद्धा भाभी की बात कुछ और थी। एक तो वो मुझसे चार साल ही बड़ी थी, दूसरे वो काफ़ी ख़ूबसूरत थी, या कहो कि मुझे ख़ूबसूरत नज़र आती थी। उनके आने के बाद मैं हर रात कल्पना किए जाता था कि भैया उसे कैसे चोदते होंगे और रोज़ उसके नाम पर मुठ मार लेता था।
भैया भी रात-दिन उसके पीछे पड़े रहते थे, आस्था भाभी और तरुणा भाभी की कोई क़ीमत रही नहीं थी। मैं मानता हूँ कि भैया बदलाव के वास्ते कभी कभी उन दोनों को भी चोदते थे। ताज्जुब की बात यह है कि अपने में कुछ कमी हो सकती है ऐसा मानने को भैया तैयार नहीं थे।
लंबे लण्ड से चोदे और ढेर सारा वीर्य पत्नी की चूत में उड़ेल दे, इतना काफ़ी है मर्द के वास्ते बाप बनाने के लिए, ऐसा उनका दृढ़ विश्वास था। उन्होंने अपने वीर्य की जाँच करवाई नहीं थी। उमर का फ़ासला कम होने से श्रद्धा भाभी के साथ मेरी अच्छी बनती थी, हालांकि वो मुझे बच्चा ही समझती थी।
मेरी मौजूदगी में कभी कभी उनका पल्लू खिसक जाता तो वो शरमाती नहीं थी। इसीलिए उनके गोरे-गोरे स्तन देखने के कई मौक़े मिले मुझे। एक बार स्नान के बाद वो कपड़े बदल रही थी और मैं जा पहुँचा। उनका अर्धनग्न बदन देख मैं शरमा गया लेकिन वो बिना हिचकिचाहट के बोली- दरवाज़ा खटख़टा कर आया करो।
दो साल यूँ ही गुज़र गए। मैं अठारह साल का हो गया था और गाँव के स्कूल में 12वीं में पढ़ता था। भैया चौथी शादी के बारे में सोचने लगे। उन दिनो में जो घटनाएँ घटी, आपके सामने बयान कर रहा हूँ। बात यह हुई कि मेरी उम्र की एक नौकरानी कमली, हमारे घर काम पर आया करती थी। वैसे मैंने उसे बचपन से बड़ी होते देखा था।
कमली इतनी सुंदर तो नहीं थी लेकिन दूसरी लड़कियों के मुकाबले उसके स्तन काफ़ी बड़े-बड़े और लुभावने थे। पतले कपड़े की चोली के आर-पार उसकी छोटी-छोटी चूचियाँ साफ़ दिखाई देती थी। मैं अपने आप को रोक नहीं सका, एक दिन मौक़ा देख मैंने उसके स्तन थाम लिए। उसने ग़ुस्से से मेरा हाथ झटक डाला और बोली- आइंदा ऐसी हरकत करोगे तो बड़े सेठ को बता दूँगी।
भैया के डर से मैंने फिर कभी कमली का नाम ना लिया। एक साल पहले कमली को ब्याह दिया गया था। एक साल ससुराल में रह कर अब वो दो महीनों के वास्ते यहाँ आई थी। शादी के बाद उसका बदन और भर गया था और मुझे उसको चोदने का दिल हो गया था लेकिन कुछ कर नहीं पाता था।
वो मुझसे क़तराती रहती थी और मैं डर का मारा उसे दूर से ही देख लार टपकाता रहता था। अचानक क्या हुआ क्या मालूम ! लेकिन एक दिन माहौल बदल गया। दो चार बार कमली मेरे सामने देख मुस्कराई। काम करते करते मुझे गौर से देखने लगी। मुझे अच्छा लगता था और दिल भी हो जाता था उसके बड़े-बड़े स्तनों को मसल डालने को।
लेकिन डर भी लगता था। इसी लिए मैंने कोई प्रतिभाव नहीं दिया। वो नखरे दिखाती रही। एक दिन दोपहर को मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था। मेरा कमरा अलग मकान में था, मैं वहीं सोया करता था। उस वक़्त कमली चली आई और रोनी सूरत बना कर कहने लगी- इतने नाराज़ क्यूं हो मुझसे संतोष?
मैंने कहा- नाराज़? मैं कहाँ नाराज़ हूँ? मैं क्यूँ होने लगा नाराज़?
उसकी आँखों में आँसू आ गये, वो बोली- मुझे मालूम है उस दिन मैंने तुम्हारा हाथ जो झटक दिया था ना? लेकिन मैं क्या करती? एक ओर डर लगता था और दूसरे दबाने से दर्द होता था। माफ़ कर दो संतोष मुझे।
इतने में उसकी ओढ़नी का पल्लू खिसक गया, पता नहीं कि अपने आप खिसका या उसने जानबूझ कर खिसकाया। नतीजा एक ही हुआ, गहरे गले की चोली में से उसके गोरे-गोरे स्तनों का ऊपरी हिस्सा दिखाई दिया। मेरे लौड़े ने बग़ावत की पुकार लगाई।
मैं- उसमें माफ़ करने जैसी कोई बात नहीं है, मैं नाराज़ नहीं हूँ, माफ़ी तो मुझे मांगनी चाहिए थी।
मेरी हिचकिचाहट देख वो मुस्करा गई और हंस कर मुझसे लिपट गई और बोली- सच्ची? ओह, संतोष, मैं इतनी ख़ुश हूँ अब। मुझे डर था कि तुम मुझसे रूठ गये हो। लेकिन मैं तुम्हें माफ़ नहीं करूंगी जब तक तुम मेरी चूचियों को फिर नहीं छुओगे। शर्म से वो नीचे देखने लगी, मैंने उसे अलग किया तो उसने मेरी कलाई पकड़ कर मेरा हाथ अपने स्तन पर रख दिया और दबाए रखा।
छोड़, छोड़ पगली, कोई देख लेगा तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी।
तो होने दो संतोष, पसंद आई मेरी चूची ? उस दिन तो ये कच्ची थी, छूने पर भी दर्द होता था। आज मसल भी डालो, मज़ा आता है।
मैंने हाथ छुड़ा लिया और कहा, ‘चली जा, कोई आ जाएगा।’
वो बोली- जाती हूँ लेकिन रात को आऊँगी। आऊँ ना ?
उसका रात को आने का ख़याल मात्र से मेरा लौड़ा तन गया, मैंने पूछा- ज़रूर आओगी?
और हिम्मत जुटा कर बसन्ती के स्तन को छुआ।
विरोध किए बिना वो बोली- ज़रूर आऊँगी। तुम ऊपर वाले कमरे में सोना। और एक बात बताओ, तुमने किस लड़की को चोदा है ?’ उसने मेरा हाथ पकड़ लिया मगर हटाया नहीं।
नहीं तो ! कह कर मैंने स्तन दबाया।
ओह, क्या चीज़ था वो स्तन !
उसने पूछा- मुझे चोदना है?
सुनते ही मैं चौंक पड़ा।
‘उन्न..ह..हाँ.. ! लेकिन?
‘लेकिन वेकिन कुछ नहीं। रात को बात करेंगे।
धीरे से उसने मेरा हाथ हटाया और मुस्कुराती चली गई। रात का इंतज़ार करते हुए मेरा लण्ड खड़ा का खड़ा ही रहा, दो बार मुठ मारने के बाद भी। क़रीब दस बजे वो आई।
सारी रात हमारी है, मैं यहाँ ही सोने वाली हूँ ! उसने कहा और मुझसे लिपट गई, उसके कठोर स्तन मेरे सीने से दब गये। वो रेशम की चोली, घाघरी और ओढ़नी पहने आई थी। उसके बदन से मादक सुवास आ रही थी। मैंने ऐसे ही उसको अपने बाहुपाश में जकड़ लिया।
‘हाय दैया, इतना ज़ोर से नहीं ! मेरी हड्डियाँ टूट जाएंगी। वो बोली।
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मेरे हाथ उसकी पीठ सहलाने लगे तो उसने मेरे बालों में उंगलियाँ फिरानी शुरू कर दी। मेरा सर पकड़ कर नीचा किया और मेरे मुँह से अपना मुँह मिला दिया। उसके नाज़ुक होंठ मेरे होंठों से छूते ही मेरे बदन में झुरझुरी फैल गई और लौड़ा अकड़ने लगा।
यह मेरा पहला चुंबन था, मुझे पता नहीं था कि क्या किया जाता है। अपने आप मेरे हाथ उसकी पीठ से नीचे उतर कर उसके कूल्हों पर रेंगने लगे। पतले कपड़े से बनी घाघरी मानो थी ही नहीं। उसके भारी गोल-गोल नितंब मैंने सहलाए और दबोचे। उसने नितंब ऐसे हिलाए कि मेरा लण्ड उसके पेट साथ दब गया।
थोड़ी देर तक मुँह से मुँह लगाए वो खड़ी रही। अब उसने अपना मुँह खोला और ज़बान से मेरे होंठ चाटे। ऐसा ही करने के वास्ते मैंने मुँह खोला तो उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी। मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरी जीभ से उसकी जीभ खेली और वापस चली गई। अब मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाली। उसने होंठ सिकोड़ कर मेरी जीभ को पकड़ा और चूसा।
मेरा लण्ड फटा जा रहा था। उसने एक हाथ से लण्ड टटोला। मेरे लण्ड को उसने हाथ में लिया तो उत्तेजना से उसका बदन नर्म पड़ गया। उससे खड़ा नहीं रहा गया। मैंने उसे सहारा देकर पलंग पर लेटाया। चुंबन छोड़ कर वो बोली- हाय संतोष, आज पंद्रह दिन से मैं भूखी हूँ ! पिछले एक साल से मेरे पति मुझे हर रोज़ एक बार चोदते हैं लेकिन यहाँ आने के बाद मैं नहीं चुदी। मुझे जल्दी से चोदो, मैं मरी जा रही हूँ।
मुसीबत यह थी कि मैं नहीं जानता था कि चुदाई में लण्ड कैसे और कहाँ जाता है। फिर भी मैंने हिम्मत करके उसकी ओढ़नी उतार फेंकी और पाजामा निकाल कर उसकी बगल में लेट गया। वो इतनी उतावली हो गई थी कि चोली-घाघरी निकाल ही नहीं रही थी, फटाफट घाघरी ऊपर उठाई और …
मुसीबत यह थी कि मैं नहीं जानता था कि चुदाई में लण्ड कैसे और कहाँ जाता है। फिर भी मैंने हिम्मत करके उसकी ओढ़नी उतार फेंकी और पाजामा निकाल कर उसकी बगल में लेट गया। वो इतनी उतावली हो गई थी कि चोली-घाघरी निकाल ही नहीं रही थी, फटाफट घाघरी ऊपर उठाई और जांघें चौड़ी कर मुझे ऊपर खींच लिया।
यूँ ही मेरे कूल्हे हिल पड़े थे और मेरा आठ इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लण्ड अंधे की लकड़ी की तरह इधर उधर सर टकरा रहा था, कहीं जा नहीं पा रहा था। उसने हमारे बदन के बीच हाथ डाला और लण्ड को पकड़ कर अपनी भोंस पर टिका लिया। मेरे कूल्हे हिलते थे और लण्ड चूत का मुँह खोजता था।
मेरे आठ दस धक्के ख़ाली गए, हर बार लण्ड फिसल जाता था, उसे चूत का मुँह मिला नहीं। मुझे लगा कि मैं चोदे बिना ही झड़ जाने वाला हूँ। लण्ड का अग्रभाग और कमली की भोंस दोनों कामरस से तर-बतर हो गए थे। मेरी नाकामयाबी पर कमली हंस पड़ी।
उसने फिर से लण्ड पकड़ा और चूत के मुँह पर रख कर अपने चूतड़ ऐसे उठाए कि आधा लण्ड वैसे ही चूत में घुस गया। तुरंत ही मैंने एक धक्का जो मारा तो पूरा का पूरा लण्ड उसकी योनि में समा गया। लण्ड की टोपी खिंच गई और चिकना सुपारा चूत की दीवालों ने कस कर पकड़ लिया।
मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रुक नहीं सका। आप से आप मेरे कूल्हे झटके देने लगे और मेरा लण्ड अंदर-बाहर होते हुए कमली की चूत को चोदने लगा। कमली भी चूतड़ हिला-हिला कर लण्ड लेने लगी और बोली- ज़रा धीरे चोद, वरना जल्दी झड़ जाएगा।
मैंने कहा- में नहीं चोद रहा, मेरा लण्ड चोद रहा है और इस वक़्त मेरी सुनता नहीं है।
मार डालोगे आज मुझे ! कहते हुए उसने चूतड़ घुमाए और चूत से लण्ड दबोचा। दोनों स्तनों को पकड़ कर मुँह से मुँह चिपका कर मैं कमली को चोदते चला गया।
धक्कों की रफ़्तार मैं रोक नहीं पाया। कुछ बीस-पच्चीस झटकों बाद अचानक मेरे बदन में आनंद का दरिया उमड़ पड़ा। मेरी आँखें ज़ोर से मुंद गई, मुँह से लार निकल पड़ी, हाथ पाँव अकड़ गए और सारे बदन पर रोएँ खड़े हो गए, लण्ड चूत की गहराई में ऐसा घुसा कि बाहर निकलने का नाम लेता ना था।
लण्ड में से गरमा गरम वीर्य की ना जाने कितनी पिचकारियाँ छुटी, हर पिचकारी के साथ बदन में झुरझुरी फैल गई। थोड़ी देर मैं होश खो बैठा। जब होश आया तब मैंने देखा की कमली की टाँगें मेरी कमर के आस-पास और बाहें गर्दन के आसपास जमी हुई थी।
मेरा लण्ड अभी भी तना हुआ था और उसकी चूत फट फट फटके मार रही थी। आगे क्या करना है वो मैं जानता नहीं था लेकिन लण्ड में अभी गुदगुदी हो रही थी। कमली ने मुझे रिहा किया तो मैं लण्ड निकाल कर बसन्ती के ऊपर से उतरा।
बाप रे ! वो बोली- इतनी अच्छी चुदाई आज कई दिनों के बाद हुई।
मैंने तुझे ठीक से चोदा?
बहुत अच्छी तरह से !
हम अभी पलंग पर लेटे थे। मैंने उसके स्तन पर हाथ रखा और दबाया। पतले रेशमी कपड़े की चोली आर पार उसके कड़े चुचूक मैंने मसले। उसने मेरा लण्ड टटोला और खड़ा पाकर बोली- अरे वाह, यह तो अभी भी तैयार है ! कितना लंबा और मोटा है संतोष, जा तो, इसे धो के आ।
मैं बाथरूम में गया, पेशाब किया और लण्ड धोया। वापस आकर मैंने कहा- कमली, मुझे तेरे स्तन और चूत दिखा। मैंने अब तक किसी की देखी नहीं है। उसने चोली घाघरी निकाल दी। मैंने पहले बताया था कि कमली कोई इतनी ख़ूबसूरत नहीं थी। पाँच फ़ीट दो इंच की उँचाई के साथ पचास किलो वज़न होगा। रंग सांवला, चहेरा गोल, आँखें और बाल काले। नितंब भारी और चिकने।
सबसे अच्छे थे उसके स्तन। बड़े-बड़े गोल-गोल स्तन सीने पर ऊपरी भाग पर लगे हुए थे, मेरी हथेलियों में समाते नहीं थे। दो इंच के एरेयोला और छोटे छोटे काले रंग के चुचूक थे। चोली निकलते ही मैंने दोनों स्तनों को पकड़ लिया, सहलाया, दबोचा और मसला।
उस रात कमली ने मुझे अपने बदन के बारे में यानि लड़की के बदन के बारे में पूरा पाठ पढ़ाया। टांगें पूरी फ़ैला कर भोंस दिखाई, बड़े होंठ, छोटे होंठ, भगनासा, योनि, मूत्र-द्वार सब दिखाया। मेरी दो उंगलियाँ चूत में डलवा के चूत की गहराई भी दिखाई, अपना जि-स्पॉट भी दिखाया।
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वो बोली- यह जो भगनासा है वो मर्द के लण्ड बराबर होती है, चोदते वक़्त यह भी लण्ड के माफ़िक कड़ी हो जाती है। दूसरे, तूने चूत की दिवालें देखी? कैसी करकरी है ? लण्ड जब चोदता है तब ये करकरी दीवालों के साथ घिसता है और बहुत मज़ा आता है। हाय, लेकिन बच्चे का जन्म के बाद ये दिवालें चिकनी हो जाती है चूत चौड़ी हो जाती है और चूत की पकड़ कम हो जाती है।
मुझे लेटा कर वो बगल में बैठ गई। मेरा लण्ड ठोड़ा सा नर्म होने चला था, उसने मेरे लण्ड को मुट्ठी में लिया, टोपी खींच कर मटका खुला किया और जीभ से चाटा। तुरंत लण्ड ने ठुमका लगाया और तैयार हो गया। मैं देखता रहा और उसने लण्ड मुँह में ले लिया और चूसने लगी।
मुँह में जो हिस्सा था उस पर वो जीभ फ़िरा रही थी, जो बाहर था उसे मुट्ठी में लिए मुठ मार रही थी। दूसरे हाथ से मेरे वृषण टटोलती थी। मेरे हाथ उसकी पीठ सहला रहे थे। मैंने हस्त-मैथुन का मज़ा लिया था, आज एक बार चूत चोने का मज़ा भी लिया। इन दोनों से अलग किस्म का मज़ा आ रहा था लण्ड चूसवाने में।
वो भी जल्दी से उत्तेजित हो चली थी। उसके थूक से लड़बड़ लण्ड को मुँह से निकाल कर वो मेरी जांघों पर बैठ गई, अपनी जांघें चौड़ी करके भोंस को लण्ड पर टिकाया। लण्ड का मटका योनि के मुख में फँसा ही था कि बसन्ती ने नितंब नीचे करके पूरा लण्ड योनि में ले लिया। उसके चूतड़ मेरी जांघों से जुड़ गए।
‘उहहहहह ! मज़ा आ गया। संतोष, जवाब नहीं तेरे लण्ड का। जितना मीठा मुँह में लगता है इतना ही चूत में भी मीठा लगता है !
कहते हुए उसने नितंब गोल घुमाए और ऊपर नीचे कर के लण्ड को अंदर-बाहर करने लगी। आठ दस धक्के मारते ही वो तक गई और ढल पड़ी। मैंने उसे बाहों में लिया और घूम कर उसके ऊपर आ गया। उसने टाँगें पसारी और पाँव उठा लिए। अवस्था बदलते मेरा लण्ड पूरा योनि की गहराई में उतर गया। उसकी योनि फट फट करने लगी।
सिखाए बिना मैंने आधा लण्ड बाहर खींचा, ज़रा रुका और एक ज़ोरदार धक्के के साथ चूत में घुसेड़ दिया। मेरे वृषण बस्नती की गांड से टकराए। पूरा लण्ड योनि में उतर गया। ऐसे पाँच-सात धक्के मारे। कमली का बदन हिल पड़ा, वो बोली- ऐसे, ऐसे, संतोष, ऐसे ही चोदो मुझे ! मारो मेरी भोंस को और फाड़ दो मेरी चूत को !
भगवान ने लण्ड क्या बनाया है चूत मारने के लिए कठोर और चिकना ! भोंस क्या बनाई है मार खाने के लिए गद्दी जैसे बड़े होंठों के साथ। जवाब नहीं उनका।
मैंने कमली का कहा माना। फ़्री स्टाईल से ठपाठप मैं उसको चोदने लगा। दस पंद्रह धक्कों में वो झड़ पड़ी। मैंने उसे चोदना चालू रखा। उसने अपनी उंगली से अपनी भगनासा को मसला और दूसरी बार झड़ गई। उसकी योनि में इतनी ज़ोर से संकुचन हुए कि मेरा लण्ड दब गया, आते जाते लण्ड की टोपी ऊपर नीचे होती चली और मटका और तन कर फूल गया।
मेरे से अब ज़्यादा बरदाश्त नहीं हो सका। चूत की गहराई में लण्ड दबाए हुए मैं ज़ोर से झड़ गया। वीर्य की चार-पाँच पिचकारियाँ छुटी और मेरे सारे बदन में झुरझुरी फैल गई। मैं ढल गया। आगे क्या बताऊँ ? उस रात के बाद रोज़ कमली चली आती थी।
हमें आधा एक घंटा समय मिलता था जब हम जम कर चुदाई करते थे। उसने मुझे कई तरीके सिखाए और आसन सिखाए। मैंने सोचा था कि कम से कम एक महीना तक कमली को चोदने का लुत्फ़ मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक हफ़्ते में ही वो ससुराल वापस चली गई। कमली के जाने के बाद तीन दिन तक कुछ नहीं हुआ। मैं हर रोज़ उसकी चूत याद करके मुठ मारता रहा। चौथे दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था। लेकिन एक हाथ में लण्ड पकड़े हुए ! और तभी श्रद्धा भाभी वहाँ आ पहुंची। झटपट मैंने लण्ड छोड़ कपड़े ठीक किए और सीधा बैठ गया।
वो सब कुछ समझती थी इसलिए मुस्कुराती हुई बोली- कैसी चल रही है पढ़ाई देवरजी ? मैं कुछ मदद कर सकती हूँ?
भाभी, सब ठीक है ! मैंने कहा।
आँखों में शरारत भर कर भाभी बोली- पढ़ते समय हाथ में क्या पकड़ रखा था जो मेरे आते ही तुमने छोड़ दिया ?
नहीं, कुछ नहीं, ये तो ! ये ! मैं आगे बोल ना सका।
तो मेरा लण्ड था, यही ना ? उसने पूछा।
वैसे भी श्रद्धा मुझे अच्छी लगती थी और अब उसके मुँह से लण्ड सुन कर मैं उत्तेजित होने लगा पर शर्म से उनसे नज़र नहीं मिला सका, कुछ बोला नहीं।
उसने धीरे से कहा- कोई बात नहीं ! मैं समझती हूँ ! लेकिन यह बता कि कमली को चोदना कैसा रहा? पसंद आई उसकी काली चूत ? याद आती होगी ना ?
सुन कर मेरे होश उड़ गए कि श्रद्धा को कैसे पता चला होगा ? कमली ने बता दिया होगा ?
मैंने इन्कार करते हुए कहा- क्या बात करती हो ? मैंने ऐसा वैसा कुछ नहीं किया है।
अच्छा? वो मुस्कराती हुई बोली- क्या वो यहाँ भजन करने आती थी ?
वो यहाँ आई ही नहीं ! मैंने डरते डरते कहा।
श्रद्धा मुस्कुराती रही।
तो यह बताओ कि उसने सूखे वीर्य से अकड़ी हुई निक्कर दिखा कर पूछा- यह निक्कर किसकी है, तेरे पलंग से मिली है ?
मैं ज़रा जोश में आ गया और बोला- ऐसा हो ही नहीं सकता, उसने कभी निक्कर पहनी ही नहीं !
मैं रंगे हाथ पकड़ा गया।
मैंने कहा- भाभी, क्या बात है? मैंने कुछ ग़लत किया है?
उसने कहा- वो तो तेरे भैया फ़ैसला करेंगे।
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भैया का नाम आते ही मैं डर गया। मैंने श्रद्धा को गिड़गिड़ा कर विनती की कि भैया को यह बात ना बताएँ। असली खेल अब शुरू हुआ। मुझे क्या पता कि इसके पीछे श्रद्धा भाभी का हाथ था! तब उसने शर्त रखी और सारा भेद खोल दिया। श्रद्धा ने बताया कि भैया के वीर्य में शुक्राणु नहीं थे, भैया इससे अनजान थे।
भैया तीनों भाभियों को अच्छी तरह चोदते थे और हर वक़्त ढेर सारा वीर्य भी छोड़ जाते थे। लेकिन शुक्राणु बिना बच्चा हो नहीं सकता। श्रद्धा चाहती थी कि भैया चौथी शादी ना करें। वो किसी भी तरह बच्चा पैदा करने को तुली थी। इसके वास्ते दूर जाने की ज़रूर कहाँ थी, मैं जो मौज़ूद था ! श्रद्धा ने तय किया कि वो मुझसे चुदवाएगी और माँ बनेगी। अब सवाल उठा मेरी मंज़ूरी का।
मैं कहीं ना बोल दूं तो ? भैया को बता दूं तो ? मुझे इसी लिए कमली के जाल में फंसाया गया था।
सारा बखान सुन कर मैंने हंस कर कहा- भाभी, तुझे इतना कष्ट लेने की क्या ज़रूरत थी ? तूने कहीं भी, कभी भी कहा होता तो मैं तुझे चोदने से इनकार ना करता, तू चीज़ ऐसी मस्त है।
उसका चहेरा लाल हो गया, वो बोली- रहने भी दो ! झूठे कहीं के। आए बड़े चोदने वाले। चोदने के वास्ते लण्ड चाहिए और कमली तो कहती थी कि अभी तो तुम्हारी नुन्नी है, उसको चूत का रास्ता मालूम नहीं था। सच्ची बात ना ?’
मैंने कहा- दिखा दूं अभी कि नुन्नी है या लण्ड ?
ना बाबा, ना। अभी नहीं। मुझे सब सावधानी से करना होगा। अब तू चुप रहना ! मैं ही मौक़ा मिलने पर आ जाऊँगी और हम तय करेंगे कि तेरी नुन्नी है या लण्ड !
दो दिन बाद भैया दूसरे गाँव गए तीन दिन के लिए। उनके जाने के बाद दोपहर को वो मेरे कमरे में चली आई। मैं कुछ पूछूँ इससे पहले वो बोली- कल रात तुम्हारे भैया ने मुझे तीन बार चोदा है। सो आज मैं तुम से गर्भवती हो जाऊँ तो किसी को शक नहीं पड़ेगा और दिन में आने की वजह भी यही है कि कोई शक ना करे।
वो मुझसे चिपक गई और मुँह से मुँह लगा कर चूमने लगी। मैंने उसकी पतली कमर पर हाथ रख दिए, मुँह खोल कर हमने जीभ लड़ाई। मेरी जीभ होठों बीच लेकर वो चूसने लगी। मेरे हाथ सरकते हुए उसके नितंब पर पहुँचे। भारी नितंब को सहलाते सहलाते में उसकी साड़ी और घाघरी ऊपर उठाने लगा।
एक हाथ से वो मेरा लण्ड सहलाती रही। कुछ देर में मेरे हाथ उसके नंगे नितंब पर फिसलने लगे तो पाजामा का नाड़ा खोल उसने नंगा लण्ड मुट्ठी में ले लिया। मैं उसको पलंग पर ले गया और गोद में बिठा लिया। लण्ड मुट्ठी में पकड़े हुए उसने चूमना चालू रखा।
मैंने ब्लाऊज़ के हुक खोले और ब्रा ऊपर से स्तन दबाए। लण्ड छोड़ उसने अपने आप ब्रा का हुक खोल कर ब्रा उतार फेंकी। उसके नंगे स्तन मेरी हथेलियों में समा गए। शंकु के आकार के श्रद्धा के स्तन चौदह साल की लड़की के स्तन जैसे छोटे और कड़े थे। एरेयोला भी छोटा सा था जिसके बीच नोकदार चुचूक था।
मैंने चुचूक को चुटकी में लिया तो श्रद्धा बोल उठी- ज़रा होले से ! मेरे चुचूक और भग बहुत नाजुक हैं, उंगली का स्पर्श सहन नहीं कर सकती।
उसके बाद मैंने चुचूक मुँह में लिया और चूसने लगा। मैं आपको बता दूँ कि श्रद्धा भाभी कैसी थी। पाँच फ़ीट पाँच इंच की लंबाई के साथ वज़न था साठ किलो, बदन पतला और गोरा था, चहेरा लम्बा-गोल थोड़ा सा नरगिस जैसा, आँखें बड़ी बड़ी और काली, बाल काले, रेशमी और लंबे, सीने पर छोटे-छोटे दो स्तन जिसे वो हमेशा ब्रा से ढके रखती थी.
पेट बिल्कुल सपाट था, हाथ पाँव सुडौल थे, नितंब गोल और भारी थे, कमर पतली थी। वो जब हंसती थी तब गालों में गड्ढे पड़ते थे। मैंने स्तन पकड़े तो उसने लण्ड थाम लिया और बोली- देवर जी, तुम तो अपने भैया जैसे बड़े हो गए हो। वाकई यह तेरी नुन्नी नहीं बल्कि लण्ड है और वो भी कितना तगड़ा ! हाय राम, अब ना तड़पाओ, जल्दी करो।
मैंने उसे लेटा दिया। ख़ुद उसने घाघरा ऊपर उठाया, जांघें चौड़ी की और पाँव उठा लिए। मैं उसकी भोंस देख कर दंग रह गया। स्तन के माफ़िक श्रद्धा की भोंस भी चौदह साल की लड़की की भोंस जितनी छोटी थी। फ़र्क इतना था कि श्रद्धा की भोंस पर काली झांटें थी और भग लंबी और मोटी थी। भैया का लण्ड वो कैसे ले पाती थी, यह मेरी समझ में आ ना सका।
मैं उसकी जांघों के बीच आ गया। उसने अपने हाथों से भोंस के होंठ चौड़े करके पकड़ लिए तो मैंने लण्ड पकड़ कर भोंस पर रग़ड़ा। उसके नितंब हिलने लगे। अब की बार मुझे पता था कि क्या करना है। मैंने लण्ड का अग्र भाग चूत के मुँह में घुसाया और लण्ड हाथ से छोड़ दिया। चूत ने लण्ड पकड़े रखा।
हाथों के बल आगे झुक कर मैंने मेरे कूल्हों से ऐसा धक्का लगाया कि सारा लण्ड चूत में उतर गया। जांघों से जांघें टकराई, लण्ड ठुमक-ठुमक करने लगा और चूत में फटक-फटक होने लगा। मैं काफ़ी उत्तेजित था इसलिए रुक नहीं सका। पूरा लण्ड खींच कर ज़ोरदार धक्के से मैंने श्रद्धा को चोदना शुरू किया।
अपने चूतड़ उठा-उठा कर वो सहयोग देने लगी, चूत में से और लण्ड में से चिकना पानी बहने लगा। उसके मुँह से निकलती आह-आह की आवाज़ और चूत की पच्च पच्च सी आवाज़ से कमरा भर गया। पूरे बीस मिनट तक मैंने श्रद्धा भाभी की चूत मारी। इस दरमियान वो दो बार झड़ी। आख़िर उसने चूत ऐसी सिकौडी कि अंदर-बाहर आते-जाते लण्ड की टोपी उतर-चढ़ करने लगी, मानो कि चूत मुठ मार रही हो।
यह हरकत मैं बरदाश्त नहीं कर सका, मैं ज़ोर से झड़ गया। झड़ते वक़्त मैंने लण्ड को चूत की गहराई में ज़ोर से दबा रखा था और टोपी इतना ज़ोर से खिंच गई थी कि दो दिन तक लौड़े में दर्द रहा। वीर्य को भाभी की योनि में छोड़ कर मैंने लण्ड निकाला, हालांकि वो अभी भी तना हुआ था। श्रद्धा टाँगें उठाए लेटी रही, कोई दस मिनट तक उसने चूत से वीर्य निकलने ना दिया।
उस दिन के बाद भैया आने तक हर रोज़ श्रद्धा मेरे से चुदवाती रही। नसीब का करना था कि वो गर्भ से हो गई परिवार में आनंद ही आनंद हो गया। सबने श्रद्धा भाभी को बधाई दी। भैया सीना तान कर मूंछ मरोड़ते रहे। आस्था भाभी और तरुणा भाभी की हालत औरर बिगड़ गई।
इतना अच्छा था कि गर्भ के बहाने श्रद्धा ने भैया से चुदवाने से मना कर दिया था, भैया के पास दूसरी दोनों को चोदने दे सिवा कोई चारा ना था। जिस दिन भैया श्रद्धा भाभी को डॉक्टर के पास ले गए उसी दिन शाम वो मेरे पास आई, घबराती हुई वो बोली- संतोष, मुझे डर है कि आस्था और तरुणा को शक पड़ता है हमारे बारे में।
सुन कर मुझे पसीना आ गया। भैया जान जाएँ तो अवश्य हम दोनों को जान से मार डालें !
मैंने पूछा- क्या करेंगे अब ?
एक ही रास्ता है ! वो सोच कर बोली।
रास्ता है ?
तुझे उन दोनों को भी चोदना पड़ेगा। चोदेगा ?
भाभी, तुझे चोदने के बाद दूसरी को चोदने का दिल नहीं होता। लेकिन क्या करें? तू जो कहे, वैसा मैं करूँगा। मैंने बाज़ी श्रद्धा के हाथों छोड़ दी। श्रद्धा ने योजना बनाई। रात को जिस भाभी को भैया चोदें, वो दूसरे दिन मेरे पास चली आए।
किसी को शक ना पड़े इसलिए तीनो एक साथ मेरे वाले घर आएँ लेकिन मैं चोदूँ एक को ही। थोड़े दिन बाद तरुणा भाभी की बारी आई। माहवारी आए तेरह दिन हुए थे। श्रद्धा और आस्था दूसरे कमरे में बैठी और तरुणा मेरे कमरे में चली आई। आते ही उसने कपड़े उतारने शुरू किए।
मैंने कहा- भाभी, यह मुझे करने दे।
आलिंगन में लेकर मैंने भाभी को चूमा तो वो तड़प उठी। समय की परवाह किए बिना मैंने उसे ख़ूब चूमा। उसका बदन ढीला पड़ गया। मैंने उसे पलंग पर लेटा दिया और होले होले सब कपड़े उतार दिए। मेरा मुँह उसके एक चुचूक पर टिक गया, एक हाथ स्तन दबाने लगा, दूसरा भग के साथ खेलने लगा।
थोड़ी ही देर में वो गर्म हो गई, उसने ख़ुद टांगें उठाई और चौड़ी करके अपने हाथों से पकड़ ली। मैं बीच में आ गया। एक दो बार भोंस की दरार में लण्ड का मटका रग़ड़ा तो तरुणा भाभी के नितंब डोलने लगे। इतना होने पर भी उसने शर्म से अपनी आँखें बन्द की हुई थी। ज़्यादा देर किए बिना मैंने लण्ड पकड़ कर चूत पर टिकाया और होले से अंदर डाला।
तरुणा की चूत श्रद्धा की चूत जितनी सिकुड़ी हुई ना थी लेकिन काफ़ी कसी थी और लण्ड पर उसकी अच्छी पकड़ थी। मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाते हुए तरुणा को आधे घंटे तक चोदा। इस दौरान वो दो बार झड़ी। मैंने धक्कों की रफ़्तार बढ़ाई तो तरुणा भाभी मुझसे लिपट गई और मेरे साथ साथ ज़ोर से झड़ी। थकी हुई वो पलंग पर लेटी रही, मैं कपड़े पहन कर खेतों में चला गया।
दूसरे दिन श्रद्धा अकेली आई, कहने लगी- कल की तेरी चुदाई से तरुणा बहुत ख़ुश है ! उसने कहा है कि जब चाहे !
मैं समझ गया। अपनी बारी के लिए आस्था को पंद्रह दिन इन्तज़ार करनी पड़ी। आख़िर वो दिन आ भी गया। आस्था को मैंने हमेशा माँ के रूप में देखा था इसलिए उसकी चुदाई का ख्याल मुझे अच्छा नहीं लगता था। लेकिन दूसरा चारा कहाँ था ?
श्रद्धा और तरुणा मिल कर आस्था भाभी को मेरे कमरे में लाई और छोड़ कर चली गई। अकेले होते ही आस्था ने आँखें मूँद ली। मैंने भाभी को नंगा किया और मैं भाभी की चूचियाँ चूसने लगा। मुझे बाद में पता चला कि आस्था की चाबी उसके स्तन थे। इस तरफ़ मैंने स्तन चूसना शुरू किया तो उस तरफ़ उसकी भोंस ने कामरस का फ़व्वारा छोड़ दिया।
मेरा लण्ड कुछ आधा तना था और ज़्यादा अकड़ने की गुंजाइश ना थी। लण्ड चूत में आसानी से घुस ना सका। हाथ से पकड़ कर धकेल कर मटका चूत में सरकाया कि आस्था ने चूत सिकोड़ी। ठुमका लगा कर लण्ड ने जवाब दिया।
इस तरह का प्रेमालाप लण्ड और चूत के बीच होता रहा और लण्ड ज़्यादा से ज़्यादा अकड़ता रहा। आख़िर जब वो पूरा तन गया तब मैंने आस्था भाभी के पाँव अपने कंधों पर लिए और तल्लीनता से उसे चोदने लगा।
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आस्था की चूत इतनी कसी नहीं थी लेकिन संकोचन करके लण्ड को दबाने की कला आस्था अच्छी तरह जानती थी। बीस मिनट की चुदाई में वो दो बार झड़ी। मैंने भी पिचकारी छोड़ दी और भाभी के बदन से नीचे उतर गया। अगले दिन श्रद्धा वही संदेशा लाई जो तरुणा ने भेजा था। तीनो भाभियों ने मुझे चोदने का इशारा दे दिया था। अब तीन भाभियाँ और चौथा मैं ! हम चारों में एक समझौता हुआ कि कोई यह राज़ खोलेगा नहीं। श्रद्धा ने भैया से चुदवाना बंद कर दिया था लेकिन मुझसे नहीं।
एक के बाद एक ऐसे मैं अपनी तीनों भाभियों को चोदता रहा। भगवान की कृपा से बाकी दोनों भाभियाँ भी गर्भवती हो गई। भैया के आनंद की सीमा ना रही। समय आने पर श्रद्धा और आस्था ने लड़कों को जन्म दिया तो तरुणा ने लड़की को। भैया ने बड़ी दावत दी और सारे गाँव में मिठाई बाँटी। अच्छा था कि कोई मुझे याद करता नहीं था। भाभियों की सेवा में कमली भी आ गई थी और हमारी नियमित चुदाई चल रही थी। मैंने शादी ना करने का निश्चय कर लिया।
Raman deep says
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