Pakistani Cute Sexy Sister
हेल्लो दोस्तों मैं रिजवान आप सभी का हमारी वासना पर फिर से स्वागत करता हूँ. दोस्तों आपने मेरी कहानी का पहला एपिसोड “बहन के हुस्न का दीवाना भाई 1“ पढ़ा होगा. दोस्तों अभी तक आपने पढ़ा कि मैं अपनी बाजी के जिस्म को पाने के लिए तड़पने लगा था, और रात में कामुक हो कर सोई हुई बाजी की गांड को सहलाने लगा, जिससे बाजी जग गई और मुझे ३ थप्पड़ मर कर रूम से चली गई. सुबह जब मैं जगा तो मुझे बहुत शर्म आ रही थी, अब आगे- Pakistani Cute Sexy Sister
में नाश्ता करते हुए सोच रहा था कि अम्मी से पूछूँ कि बाजी कहाँ हैं नज़र नहीं आ रहीं। पर मेरे दिल में चोर था। इस लिए पूछने से घबरा रहा था। फिर भी पूछना तो था ही बाजी का क्योंकि वह रोज मेरे साथ ही तो जाया करती थीं। मैंने हिम्मत कर के अम्मी से पूछा कि बाजी कहाँ हैं। तो अम्मी ने आगे जो कहा वह मेरे दिमाग पे किसी परमाणु बम के विस्फोट से कम न था। अम्मी ने कहा कि बाजी आज से होस्टल जा रही हैं। मेरे मन में आंधियां और तूफान फिर से चलना शुरू हो गए। मैने मरी हुई ज़ुबान मे अम्मी से पूछा कि वह क्यों?
अम्मी ने कहा कि राबिया (मेरी बाजी का नाम) कहती है कि घर पर पढ़ाई सही नहीं होती। हॉस्टल में सभी क्लास की साथी लड़कियों के साथ में मिल के पढ़ाई करेगी तो ज़्यादा अच्छे से पढ़ाई होगी। मैं तो मना कर रही थी तुम्हारे अब्बू को अब कौन समझाए कहते हैं कि जहां राबिया की इच्छा है राबिया वहां रह कर पढ़े, हमें बस इसी बात से मतलब है कि यह स्टडी अच्छे से करे।
अजीब बेरहम प्यार था मेरा एक तरफ तो मुझे मारने नहीं देता और दूसरी तरफ मुझसे दूर जाकर मुझे अकेला तड़पने और मरने के लिए छोड़ के जा रहा है। साथ ही अम्मी ने कहा कि रिजवान तुम कॉलेज चले जाओ बाजी को अबू उसके हॉस्टल में छोड़ देंगे उसका काफी सामान भी है कि तुम्हारी कार मे नहीं आएगा। और हां जा के बाजी से मिल भी आओ और बाय बोल आओ।
में नाश्ता क्या करता बस वही पे छोड़ दिया। पर अम्मी जो मुझे बाजी से मिलने को कह रही थी मैं कैसे मिल सकता था बाजी को कैसे फेस कर सकता था उन्हें। उनके रात को कहे हुए शब्द अभी भी तो मेरे कानों में गूंज रहे थे और ऊपर से उनका हॉस्टल शिफ्ट होने का फैसला। यह सब बातें तो इस बात की घोषणा कर रही थीं कि रिजवान तुम्हारी बाजी तुमसे नफरत करती है। और अब वह तुम्हारा चेहरा कभी नहीं देखना चाहती।
में हारे होय जुआरी की तरह चेयर से उठा जो अपना सब कुछ हारी हुई बाजी में लगा बैठा था। सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ ऊपर की ओर बढ़ा अपने रूम में जाकर थोड़ी देर के लिए खड़ा हो गया। ताकि अम्मी को यह लगे कि मैं बाजी से मिल रहा हूँ। फिर रूम से बाहर निकला और अपनी बाजी के रूम के डोर की ओर एक बार देखा। इस दरवाजे के दूसरी ओर ही तो मेरा प्यार बैठा था।
कॉलेज पहुंचा और कॉलेज मे एक साइड पे लगे एक बेंच पे जा के बैठ गया। यहाँ बहुत कम ही कोई आता था। पर एक था जो मुझे कहीं भी देख सकता था वह थी मेरी प्रेमिका जन्नत। मुझे अपने पीछे से किसी के गाना गाने की आवाज आई ”चुप चुप बैठे हो जरूर कोई बात है” मुझे जन्नत की च्वाइस पे हमेशा हंसी आती थी।
आज जाने क्यों मुझे उसका यह गाना दिल को बहुत भा गया। यह समय और हालात ही तो होते हैं जो इंसान को क्या से क्या बना देते है। जन्नत ने कहा क्या बात है जनाब आज यहाँ कहाँ और कैसे आए। मैंने मुश्किल से जन्नत के आगमन पे स्माइल की और कहा कि कुछ नहीं बस वैसे दिल कर रहा था यहाँ थोड़ी देर बैठने का।
जन्नत ने कहा, न बताओ जब दिल करे तो दिल की बात साझा कर लेना। और जन्नत मेरे साथ बेंच पे आ के बैठ गई। फिर हम लोग वैसे ही गपें लगाते रहे कुछ देर। उस दिन मैंने जाना कि औरत अगर मर्द को जख्म देती है तो यही औरत आदमी को मरहम भी तो लगाती है, चाहे जख्म देने वाली महिला कोई और हो और मरहम लगाने वाली कोई और।
जब मेरी कॉलेज में एंट्री हुई थी तो मुझे अपने दोस्त दूर से नज़र आये पर मैंने उनसे बात नहीं की और उनसे नज़रें बचाकर यहाँ आकर बैठा था जब जन्नत यहाँ आई और मैंने जन्नत से कुछ देर गपशप की तो मुझे ऐसा लगा कि जन्नत की गपशप ने मेरे ज़ख़्मों पे मरहम का काम किया है सच कहते हैं ”अपोजिट अट्रॅक्टिव।”
पर जो भी था मेरे जख्म ऐसे थे कि अब उनका पूरा इलाज एक ही इंसान के पास था और वह थी मेरी प्यार यानी कि मेरी अपनी बाजी। अचानक बात करते करते जन्नत ने कहा कि रिजवान तुम्हें तुम्हारी दीदी के बारे में तुम्हें कुछ बताऊँ? ? जन्नत की बात जैसे मेरे दिमाग पे हथौड़ा का वार साबित हुई और मेरा मन धड़क कर रह गया जन्नत ने जैसे मेरी दुखती रग पे पैर रख दिया था।
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मैं अपने आप को और अपनी दिली भावनाओं को नियंत्रित करके जन्नत से पूछा कि हां बताओ क्या बात है। तो जन्नत ने कहा कि मेरी जो चचेरे भाई हैं तमखा है तमखा की फ्रेंड के ही कॉलेज में पढ़ती है वह कुछ दिन पहले तुम्हारी दीदी की कुछ फ्रेंड्स के साथ बैठी थी और तुम्हारी दीदी की फ्रेंड्स तुम्हारी दीदी के बारे में ही आपस में बात कर रही थीं….।
जन्नत कुछ देर के लिए खाँमोश हो गई। मैंने तड़प के जन्नत से कहा कि आगे कुछ बताएगी या नहीं। जन्नत ने अपनी बात आगे बढ़ाई और कहा कि रिजवान वह बात कर रही थीं कि हमारे कॉलेज में बहुत कम ऐसी लड़कियां हैं जिनका किसी लड़के के साथ कोई अफेयर नहीं है और उनमें से एक राबिया है (यानी मेरी बाजी)।
जन्नत ने कहा कि रिजवान तुम्हारी दीदी के साथ कॉलेज के कई लड़के अपने प्यार का इजहार कर चुके हैं पर तुम्हारी बाजी इन सब बातों के सख्त खिलाफ हैं। मेरी चचेरे भाई को उनकी फ्रेंड्स ने यह भी बताया है कि तुम्हारी दीदी की यह सोच है कि लड़की की इज्जत और लड़की हया ही लड़की का गहना है।
तुम्हारी दीदी की यह सोच है कि लड़की को सारा जीवन शालीनता में गुजारना चाहिए और जब लड़की की शादी की उम्र आए तो उसके माता-पिता को ही उसकी शादी तय करना चाहिए। और लड़की जब पहली बार प्यार करे तो वह शादी के बाद अपने हसबंड के साथ ही करे।
हमारी क्लास का समय हो चुका था। हम उठे और क्लास की ओर चल पड़े। जन्नत की बातों से मेरे अंदर मौजूद कई सवालों के जवाब मुझे मिल चुके थे। जहां मुझे एक ओर अपनी बहन की पवित्र सोच और अच्छी भूमिका पे गर्व हो रहा था, दूसरी ओर बाजी की अच्छी सोच और सॉफ चरित्र से परेशानी भी। अजीब भाई था मैं भी जो अपनी बहन के पवित्र और नेक होने पे परेशान था।
आज तो जन्नत की बातों के बाद मुझे ऐसा लगना शुरू हो गया कि मैं बाजी को लेकर जीतने भी सपने सजाए थे और जो कुछ भी सोचा था अब मुझे भूलना पड़ेगा। पर प्यार करने वाला हार कैसे मान सकता है। चाहे मंजिल मिले या न मिले। अब मुझे लगने लगा था कि ये विवश्ता के आंसू और ये अधूरी ख्वाहिशें ऐसे ही मेरे सीने में रहते रहते मेरे साथ मर जाएंगी।
घर पहुँचने पर पता चला कि बाजी जा चुकी हैं। मेरा मन कर रहा था कि मैं चीख चीख कर रो पडूं। दीवार टक्कर मारूं। आज मुझे मेरा ही घर ही काट खाने को दोड़ रहा था। आज बाजी को देखे 2 सप्ताह हो चुके थे। मैं अपने बाथरूम में बैठा स्मोकिंग कर रहा था। जीवन तो बर्बाद हो ही चुका था मेरा तो मैने सोचा स्मोकिंग करके थोड़ा और बर्बाद कर लेते हैं।
प्यार में विफलता के बाद इंसान तरह तरह के काम करता है। चैन तो उसी के पास होता है जिससे वह प्यार करता है… बाथरूम से बाहर आया और बेड पे बैठ गया। अचानक मेरी मृत आँखों में इक चमक आई और मैं अपने कमरे से बाहर आया और सीढ़ियाँ उतर के अम्मी के कमरे में आ गया।
अम्मी अपने कमरे में सोई हुई थी मैंने उन्हें जगाया और कहा कि हमारे परिवार की फोटो एल्बम कहां है। अम्मी ने पूछा क्या करना है बेटा परिवार की फोटो एल्बम का। मैंने कहा वैसे ही आज दिल कर रहा था बचपन के फोटोग्राफ देखने का। अम्मी ने मुझे अपनी चाबी देकर कहा यह लो वहाँ से ले लो।
और मैं गया और परिवार का फोटो एल्बम सैफ से निकाल लिया और अम्मी को चाबियां वापस करते हुए अपने रूम में आ गया। एक अनजानी सी खुशी थी मेरे चेहरे पे जो आज बहुत दिनों बाद मैंने देखी थी। मैंने एल्बम को खोला और उसके पन्नों को पलट पलट कर देखने लगा।
फिर मैं एक पृष्ठ पे आके रुक गया। क्योंकि इस पृष्ठ पे उसकी तस्वीर थी जिस हस्ती के दर्शन के लिये मैं यह एल्बम नीचे ले आया था। और वह सख्श स्पष्ट रूप से एक ही हो सकता है। हाँ वह हस्ती मेरी जान से प्यारी मेरी बाजी की थी। बाजी की ये फोटो आज से 1 साल पहले की थी। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
हम लोग अपने एक चचेरे भाई की शादी पे गए थे और वहां मैंने बाजी की यह तस्वीर बनाई थी। तब जब मैंने ये फोटो बनाई थी तब मुझे क्या पता था कि इसी फोटो को 1 सालबाद में देखकर रो रहा हुँगा। मेरे आँसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। मैंने बाजी की फोटो एलबम से निकाली और जी भर के अपनी बाजी का दीदार किया।
बाजी की बड़ी बड़ी सुंदर सी आँखें और बाजी की प्यारी सी नाक बाजी के पिंक होंठ उनके के चमकते गाल और काले लम्बे बाल, बाजी उस दिन व्हाइट ड्रेस में किसी हूर से कम नहीं लग रही थीं। किसी को वो फोटो दिखा दो और उससे पूछो कि इस दुनिया में सबसे सुंदर स्त्री कौन है तो वो एक ही जवाब देता कि रिजवान तेरी मोहब्बत।
अचानक मैंने फिर एल्बम के पन्ने फिर पलटने शुरू किए और एक पृष्ठ पे आकर रुक गया। इस पृष्ठ पे बाजी की एक और तस्वीर थी जिसमें बाजी घास पे बैठी थी। हम परिवार के सदस्यों के साथ एक बार पिकनिक पर गए थे ये फोटो वहां बनाई थी मैने। इस तस्वीर में बाजी की गाण्ड की साइड बाजी की कमीज और सलवार के ऊपर से सही नजर आ रही थी.
क्योंकि बाजी घास पे बैठी थी जिस वजह से बाजी की गाण्ड जमीन पे लगने से बहुत चौड़ी हो गई थी। मैंने सोचा कि बाजी की पहली वाली तस्वीर देखने के बाद अपनी आत्मा को पल भर का आराम दे दूँ . अब इस तस्वीर को देखते हुए ज़रा अपने शरीर को भी आराम दे लूँ।
मैंने बाजी का फोटो एलबम से बाहर निकाला और हाथ में पकड़ के बेड से टेक लगा के लेट गया… और अपनी नज़रें बाजी की मोटी गाण्ड की साइड पे जमा ली. मैंने दूसरे हाथ से अपनी सलवार से अपना लण्ड बाहर निकाला जोकि लगभग अब तकखड़ा हो ही चुका था और तस्वीर देखते देखते मुठ मारने लगा।
यह उस रात के बाद आज मेरा पहला मुठ था। और मेरे प्यार का आलम यह था कि यह मूठ भी में अपनी बाजी नाम की ही मार रहा था। अजीब आराम और लज़्जत की लहरें मेरी रगों में दौड़ रही थीं। मैं एक नज़र बाजी पे डालता और एक नज़र बाजी बाकी के शरीर पे।
मेरे लंड से स्पर्म निकल निकल कर मेरे ही हाथों मे लग रही थी और मैं उस स्पर्म को अपने लंड के ऊपर मस्ल रहा था। अब मेरा हाथ अपने लंड पे बहुत हल्का महसूस हो रहा था और स्लिप कर रहा था। और स्लिप से बहुत मज़ा आ रहा था। पता नहीं ऐसेही कब तक बाजी की तस्वीर को देखते हुए मुठ मारता रहा।
जब भी फारिग होने लगता तो मुठ में थोड़ा ब्रेक लगा लेता। क्योंकि मैं इस मजे की दुनिया से बाहर बेरहम दुनिया में वापस नहीं जाना चाहता था। साथ में उसकी आखिरी रात को याद कर रहा था जब मैंने अपने हाथ में बाजी की गाण्ड का वह मोटा पब पकड़ा हुआ था और अपने अंगूठे को अपनी बाजी की गाण्ड की गहरी लाइन में घुसाया हुआ था।
यह सोचते सोचते तो जैसे मैं नशे और मज़े में पागल हो चुका था। अब मैं अपने लंड से निकलती स्पर्म को अपनेलंड के नीचे जो बॉल्स थे उनके पर मलना शुरू कर दिया। अब मामला मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया था। मैंने अपने हाथ से मुट्ठी बनाई और उस मुट्ठी के छेद में अपने लंड को डाला.
और धीरे धीरे नीचे की ओर ले के गया और फिर ऊपर की ओर, नज़रें बाजी की तस्वीर पे मन में वही अंतिम रात का दृश्य और साथ ही आह आह की आवाज के साथ फारिग होना शुरू हो गया और साथ ही मैं सिहर के आगे की ओर हो गया और स्पर्म मेरी टांगों पे गिरना शुरू हो गई। दिन बीतते जा रहे थे।
अब तो मैंने दीदी के छात्रावास के चक्कर भी लगाने शुरू कर दिए थे। कितनी कितनी देर उनके छात्रावास के बाहर जा के अपनी कार साइड पे पार्क कर कार में बैठा रहता और यही सोच के दिल को सुकून रहता कि चारदीवारी के पार बाजी कहीं बैठी होगी।
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बाजी को घर से गए आज 25 दिन हो चुके थे। ऐसे ही घर पर नीचे टीवी के सामने बैठा अपनी बाजी की यादों में खोया हुआ था कि घर की बेल बजी। मैं उठा और बाहर जा के जबगेट खोला तो मेरा सिर चकरा गया और चक्कर खा के गिरते गिरते बचा और बहुत मुश्किल से मैंने अपने आप को संभाला। यह सपना तो नहीं हो सकता कि मेरे सामने मेरी बाजी खड़ी थी।
मेरे शरीर में जैसे कीड़े काट रहे थे। मेरे मन में भी मुझे ऐसे ही लग रहा था कि कुछ कीड़े दौड़ रहे हैं शरीर ठंडा सा पड़ने लगा। क्योंकि बाजी के चेहरे पे अभी भी वही नफरत थी जो उस आख़िरी रात उनके चेहरे पे थी। ज़ुबान इतनी भारी हो गई थी कि कोई शब्द निकल ही नहीं पा रहा था मेरी जीभ से।
बड़ी मुश्किल से मैंने दीदी को सलाम किया जिसका बाजी ने कोई जवाब नहीं दिया और अंदर की ओर चली गई। जिसकी खातिर रातों को नींद नहीं आती, जिसके लिए दिन का चैन छिन गया, जिसकी खातिर खाना पीना भूल गया, और सिगरेट को मुंह से लगा लिया और मेरा वही प्यार आज चुप्पी का थप्पड़ मेरे मुंह पे मार चली गई।
मैं गेट बंद किया और निराशा के आलम में अंदर आ गया। बाजी अम्मी के साथ बैठी बातें कर रही थीं। ज्यों ही मैं अंदर आया अम्मी ने मुझे कहा कि तुम्हारी यह जो बहन है ना उसका अब हम से मिलने को जरा सा भी दिल नहीं करता। आज इससे फोन पे कितनी मन्नतें की फिर कहीं जा के यह 2 दिन रहने घर आई है।
अम्मी मेरे और दीदी के बीच होने वाले सभी मामले से अनजान मुझसे बाजी की शिकायतें कर रही थीं। में अम्मी की बात सुन बमुश्किल एक स्माइल ला पाया अपने चेहरे पे और अपने रूम की तरफ जाने लगा कि अम्मी ने कहा बहन इतने दिन बाद घर आई है उसके पास बैठो ना। ऊपर कहाँ जा रहे हो।
में अम्मी के साथ ही बैठ गया और अम्मी ने कहा तुम दोनों बहनभाई बातें करो मैं खाने को जरा देख के आई। अम्मी चली गई। बाजी टीवी को देखने लगी और मैं उसकी ओर। कितने दिन बाद देख रहा था अपनी चाहतों की रानी को। मेरे सपनों की रानी को क्या पता था कि मेरे अंदर क्या भावनाओं हैं इसके लिए।
वो तो बस मेरे सीने पे खंजर चलाना जानती थी। अचानक मैंने अपने दिमाग में कुछ सोचा और बाजी कहा; बाजी; ज्यों ही मेरी आवाज बाजी के कानों से टकराई तो उनके चेहरे पे नफरत और गुस्से के मिलेजुले भाव उभर आए। और वह उठकर रसोई मे चली गई। और मैं मुंह खोले बाजी को जाते हुए देखता रहा।
इतनी नफरत इतना गुस्सा। मेरा अपराध आखिर क्या था कि मुझे बाजी की आत्मा और बाजी के शरीर से प्यार था। मैं उठा और अपने कमरे में आ गया। रात के खाने पे भी बाजी ने एक बार भी मुझ पे नहीं डाली। खाने के बाद मैं अपने कमरे में आ गया और अपनी विफलता ए प्यार पे मातम करने लगा।
रात के 1 बज रहे थे। एकाएक बस मेरे मन में यही ख्याल था कि मुझे बाजी से प्यार है सच्चे दिल का प्यार। फिर बाजी को मेरा प्यार समझना चाहिए। वह बेशक ही मुझसे प्यार न करें जैसा मैं उनसे करता हूँ पर मुझे एक बार मेरे दिल की बात कहने का मौका तो दें।
मैंने अपने रूम का डोर खोला और बाजी के रूम की ओर बढ़ा। बाजी के रूम के पास पहुंच के मैंने उनके कमरे के दरवाजे नोक किया। थोड़ी ही देर में कमरे का दरवाजे खुला और मेरे सामने वही सुंदर चेहरा और हूर बदन खड़ी थी। मुझे देखते ही बाजी ने गुस्से से कहा कि ”क्यों आए हो यहाँ” लगभग 25 दिन बाद आज बाजी ने मुझसे बात की थी।
मेरी आंखों में आंसू आ गए और कपकपाती आवाज में बोला कि आप से कुछ बात करनी है। बाजी ने मेरे आँसुओं की परवाह न करते हुए कहा मैंने तुम जैसे घटिया और कमीने आदमी से कोई बात नहीं करनी। दफा हो जाओ यहाँ से। और मुझसे अब जीवन भर कभी बात करने की कोशिश मत करना।
बाजी मुझे घटिया और कमीना और ज़लील आदमी समझती थी। क्यों कि उन्होंने मुझे उस रात जिस हालत में अपने साथ देखा था। वह उनके लिए नाक़ाबिले माफी था। बाजी के सामने जो मेरा इमेज बन गया था वह इसलिए कि बाजी ने एक एंगल से मुझे देखा बाजी को यह तो पता था ही नहीं कि वह मेरी जिंदगी मेरी जान बन चुकी हैं। और मैं यही तो बाजी को बताने आया था।
उन्होंने उस दिन की तरह आज भी मुझे कोई मौका नहीं दिया। मैं आज एक पक्के इरादे के साथ बाजी के पास आया था कि अगर बाजी ने मुझे कुछ कहने का मौका दिया तो ठीक वरना आज मैं अपने आप को खत्म कर दूंगा। वह चाहे मुझसे मेरे जैसा प्यार न करें पर एक बार मेरे दिल का हाल तो सुन ले। बेशक मेरे प्यार को ठुकरा दें पर मेरे दिल की कहानी तो सुनें।
पर आज भी बाजी ने मेरी कोईबात सुने बिना मुझे दफा हो जाने का जब कहा तो मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और उसमें से एक ब्लेड निकाला (जब रूम से निकला था तब मैं जेब में अपने साथ ले आया था) और बाजी की आँखों में आँखें डाल के उस ब्लेड से अपने हाथ की नस को काट दिया।
खून का एक फव्वारा सा मेरे हाथ से अचानक निकला और फिर टिप टिप खून जमीन पे गिरना शुरू हो गया। खून इतना निकल चुका था कि मेरी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। शायद मौत का अंधेरा और फिर ख्यालों में कहीं गिरता जा रहा था। बाजी का जो अंतिम शब्द मेरे कानों से टकराया वह यह था “रिजवान यह तुमने क्या कर दिया.”
जब मुझे होश आया तो मैं अस्पताल के कमरे में लेटा हुआ था। अम्मी, अबू और बाजी मेरे पास ही मौजूद थे। अम्मी अब्बू के चेहरे पे गंभीर परेशानी थी। जब कि बाजी रो रही थी। उनकी हालत सख्त खराब लग रही थी। मुझे होश में देख अम्मी अब्बू के चेहरे पे खुशी की लहर दौड़ गई जब कि बाजी थी कि चुप ही नहीं हो रही थी।
अम्मी ने आगे बढ़कर मुझे अपने साथ चिपका लिया और रोना शुरू कर दिया। जब अम्मी चुप हुई तो मुझसे पूछा कि तुमने ये हरकत क्यू की बेटा। जरा सा नहीं सोचा अपनी इस माँ के बारे में कि तुम्हारे बिना यह कैसे जी पाएगी। हमें राबिया ने बताया कि तुम रात को उसके कमरे में गये और उसे यह कहा कि अम्मी अब्बू से कह देना कि अगर मुझे कुछ गलती हो गई हो तो मुझे माफ कर देना और फिर तुमने अपने हाथ की नस काट ली। बेटा ये क्या बेवकूफी है। ऐसा क्यों किया तुमने।
में समझ गया कि दीदी ने मेरे और उनके बीच के मामले को सामने नहीं आने दिया। मैं चूँकि इकलौता बेटा था इसलिए सारे परिवार के लिए बहुत इम्पोर्टेंट भी था। अबू के मजबूत दिल का मुझे उस दिन अंदाजा हुआ। कि अबू ने अपने अंदर की परेशानी उस दिन भी पता नहीं होने दी.
अम्मी ने मुझे कहा कि रिजवान देखो न तुम्हारी बहन कैसे रो रही है तुम्हारे लिए। कुछ कहती नहीं है। बस रोये जा रही है। इतना प्यार करनेवाली बहन को छोड़ तुम कहाँ जा रहे थे। मैंने बाजी को देखा जो अभी भी रो रही थीं।
मैंने कहा: बाजी चुप हो जाओ मैं अब ठीक हूँ ना।
पर बाजी ने फिर भी रोना बंद नहीं किया। अम्मी ने भी काफ़ी कोशिश की कि मैं बता दूं कि ऐसा मैं क्यों किया। पर मैं आगे चुप ही रहा।
अम्मी ने कहा: बेटा कोई समस्या है तो हमें बताओ हम तुम्हारी उस समस्या का समाधान करेंगे।
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पर मैं सो बात की इक बात बस चुप ही रहा। जब अम्मी के बहुत पूछने पे भी कुछ न बोला तो अबू आगे बढ़े और अम्मी केशोल्डर पकड़ के दबा दिया। शायद वह अम्मी को मेरे से ज़्यादा कुछ पूछने के लिए मना कर रहे थे। अम्मी ने कहा: अच्छा बाजी तुम्हारे पास ही रहेगी हम लोग जरा घर से हो आएँ और खाने को भी कुछ ले आएं।
राबिया ने कब से कुछ खाया ही नहीं। और ऐसा कह कर अम्मी अब्बू घर चले गए। अम्मी और अब्बू के जाते ही बाजी मेरे पास चेयर पे आके बैठ गई। और मेरा एक हाथ अपने दोनों हाथों में लेकर उस पे अपनी आँखें रख कर रोने लगी। इतना रोई कि मेरा हाथ उनके आंसुओं से भीग गया।
मुझे पता था कि बाजी के यह आंसू अपने भाई के लिए हैं। न कि अपने भाई के उस प्यार के लिए जो उनका भाई उनसे करता है। मेरा दिल ऊब चुका था अब इस दुनिया से। और मैं चाहता था कि कुछ ऐसा हो कि मैं मर जाऊं। .क्यों बच गया मरने से।
अचानक बाजी ने रोते रोते सिर उठाया और कहा: रिजवान ऐसा क्यों किया तुमने। तुम्हें पता है तुम मौत के मुंह से वापस आए हो।
मैंने कहा: बाजी अब क्या फायदा पूछने का उस दिन तुम्हारे पास आया था आपको कुछ बताने तब तो आपने सुना नहीं। अब मुझे पे यह प्यार कैसा तरस कैसा? और क्यों?
बाजी ने कहा व्यर्थ की बातें मत करो और मुझे बताओ क्यों किया ऐसा। अपनी बाजी के आँसू देख के अब मेरा दिल भी धीरे धीरे पिघलना शुरू हो गया। फिर आख़िर थोड़ी देर बाद मेरे दिल में जो भी बाजी के लिए था मैंने उन्हें सब कुछ बता दिया। शरीर के प्यार का भी उन्हें बताया साफ साफ शब्दों में नहीं। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
बाजी मेरी सारी बात सुनती रहीं और जब मैं चुप हुआ तो तब तक उनका रोना भी बंद हो चुका था। बाजी ने एक गहरी साँस मी और हल्के से सख्त लहजे में कहा कि रिजवान तुम कैसी बात कर रहे होभला भाई बहन कैसे एक दूसरे से प्यार कर सकते हैं। यह प्यार तो ऐसा प्रेम है जो इस समाज में मौजूद ही नहीं है।
तुम बच्चों वाली बात कर रहे हो। यह सिर्फ तुम्हारी उम्र का तक़ाज़ा कि इस उम्र में आदमी ऐसी व्यर्थ बातें सोच सकता है। नहीं रिजवान ऐसा तो संभव ही नहीं। अपने ही भाई से प्यार। बाजी ऐसी कितनी ही बातें कह गई। और जैसे वह अपने आप से भी यह सवाल पूछ रही हों कि क्या ऐसा संभव है।
अचानक बाजी ने कहा रिजवान तुम्हें अब यह सब बातें अपने मन से निकालनी होंगी। यह कभी भी नहीं हो सकता। अचानक से मेरे अंदर का वह पागल पन जाग उठा। जो होश में आने के बाद मुझे अब तक महसूस नहीं हो रहा था। (शायद मौत की सच्चाई को इतने करीब से देखने के बाद कुछ बदलाव आया था मेरे अंदर).
मैंने तड़प के बाजी से कहा बाजी आई लव यू तुम मेरी पहली प्रेम हो तुम्हारे बिना मैं मर जाऊँगा। और आप मुझे न मिली तो मैं अपने आप को खत्म कर दूंगा। अपने शरीर पे अपनी आत्मा पे बस मैने आपका नाम लिख दिया है. बाजी ने अचानक गुस्से से कहा रिजवान बस। बाजी से मेरे हाथ से अपने हाथ हटा दिए। और सामने के सोफे पे जा के बैठ गई। और पता नहीं किन सोचों में गुम हो गई।
में अस्पताल से वापस घर आ चुका था। और जिस दिन मैं होश में आया था बाजी उसी दिन हॉस्टल वापस जा चुकी थी। जाते हुए बाजी के चेहरे पे बहुत उलझन और परेशानी देखी थी मैने। घर आते साथ ही अम्मी ने कहा: आज के बाद तुम हमारे कमरे में ही सोया करोगे। (अम्मी डर गई थीं कि कहीं फिर कुछ उल्टा सीधा नहीं कर दूं। ऊपर से मैंने हाथ काटने की वजह अभी तक नहीं बताई थी.)
मैंने अम्मी को कहा कि आप चिंता न करें मैं फिर कुछ ऐसा वैसा नहीं करूँगा। आप मुझ पर विश्वास करें। खैर बहुत मुश्किल से अम्मी को मना पाया मैं। बाजी एक बार फिर मुझसे मिलकर जा चुकी थी। अब तो मुझे बाजी का साफ साफ जवाब भी मिल चुका था कि ऐसा संभव नहीं जैसा जो मैं चाहता हूँ। हां सही भी तो था। यह जरूरी तो नहीं कि जैसे मुझे बाजी से प्यार हो गया था वैसे ही बाजी को भी मुझसे हो जाता।
बाजी की थी भी तो बाकी लड़कियों से अलग सोच। सम्मान, हया, शालीनता को ही लड़की का गहना समझती थी। मेरे हाथ का घाव तो ठीक हो चुका था पर बाजी के साफ इनकार के बाद मेरी आंतरिक हालत बुरी और बुरी होती जा रही थी। बहुत कमजोर हो गया था मेरी इस हालत को लेकर अम्मी बहुत परेशान थी।
बाजी घर से फिर गए आज 13 दिन हो चुके थे। एक दिन मैं रात के खाने के समय नीचे गया तो अम्मी डाइनिंग टेबल पर अकेली बैठी थी और खाना भी लगा हुआ था। अबू वहां मौजूद नहीं थे। मैं समझा कि अम्मी मेरा और अबू का वेट कर रही हैं। मैंने पूछा कि: अम्मी अब्बू कहाँ हैं। अम्मी ने जो जवाब दिया वह सुन के एक खुशी की लहर मेरे अंदर दौड़ गई और खुशी के साथ ही उदासी भी।
अम्मी ने कहा: अबू राबिया को लेने गए हैं और अब बस पहुँचने वाले हैं। राबिया के कॉलेज में गर्मियों की छुट्टियां हो गई हैं अब राबिया एक महीने घर ही रहेगी।
खुशी इसलिए कि मेरा प्यार आ रही है। अब यह दिन देखना तो नसीब होगा। और उदासी इसलिए में अपनी इस प्यार को पा नहीं सका। थोड़ी देर तक अबू और राबिया बाजी आ गए। अम्मी ने बाजी को साथ लगा लिया और प्यार किया। बाजी ने मुझे सलाम किया। फिर हम सबने खाना खाया और मैं अपने कमरे में आ गया।
आज मेरा भी कॉलेज में लास्ट डे था। गर्मी बहुत बढ़ गई थी इसलिए हमारा कॉलेज भी आज बंद हो रहा था। कॉलेज से जब घर पहुंचा तो अम्मी और बाजी बातें कर रही थीं। मैं दोनों को सलाम किया और ऊपर कमरे में आ गया। रात रूम में लेटे में दैनिक दिनचर्या के अनुसार बाजी की वही शादी वाली तस्वीर देख रहा था (अम्मी को एल्बम वापस करने से पहले मैंने वह दोनों तस्वीरें एल्बम से चुरा लीं थीं) और तस्वीर से बातें कर रहा था।
अपने प्यार को तो न पा सका। इसलिए ऐसे तस्वीर से बातें कर के कुछ पल का आराम मिल जाता था मुझे। और जब मुठ मारनी होती थी तो बाजी की दूसरी वाली फोटो देख के मुठ मार लेता था। अचानक मेरे रूम के दरवाजे पे दस्तक हुई मैं फोटो तकिए के नीचीरखे और गेट खोला तो सामने बाजी खड़ी थी। बाजी के हाथ में दूध का गिलास था। बाजी ने आने का का पूछा तो मैं साइड मे हो गया।
बाजी जब अंदर आई तो मैने डोर बंद कर दिया। बाजी के शरीर को एक निगाह में पीछे से देखा। बाजी मेरे बेड पे जा के बैठ गई में भी चुप करके बाजी के साथ ही बेड पे बैठ गया। (नहीं चाहिए मुझे किसी का तरस किसी की सहानुभूति, न ही वह बहन भाई वाला पारंपरिक प्यार, अब मैंने अपनी ही एक दुनिया बनानी है। जिसमें मैं अपनी बाजी को प्यार करूं और उनकी पूजा करता रहूं) बाजी ने मुझे दूध का गिलास पकड़ा दिया।
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मैंने कहा: बाजी में दूध नहीं पीता होता।
बाजी जैसे मेरी इसी बात का इंतजार कर रही थी।
बाजी तुरंत से चिल्ला उठी: आखिर तुम चाहते क्या हो? क्या हालत बना ली है अपनी? ऐसे ही रहे तो एक दिन मर जाओगे? यह कहां की मानवता है? सारे घर को परेशान कर रखा है तुमने। अपनी माँ के हाल पे ही तरस खाओ। तुम्हें पता भी है कि कितने दिन से चैन की नींद नहीं सो सकी तुम्हारी वजह से।
बाजी कहती गई और मैं चुपचाप सुनता अचानक बाजी की नज़र मेरे तकिए पर पड़ी तो उन्हें उसके नीचे कोई तस्वीर पड़ी दिखी (मैं जल्दी में तस्वीर को सही से तकिए के नीचे नहीं रख पाया था जो बाजी को नजर आ गई) बाजी ने हाथ आगे बढ़ाया तोमैं नेतड़प के कहा नहीं बाजी प्लीज़ उसे वहीं रहने दें। बहुत देर हो चुकी थी .तस्वीर अब बाजी हाथ में थी।
मेरी दीवानगी ने बाजी के दिल पे आज एक वार और कर दिया। बाजी रो पड़ी। बाजी की आंखों से आंसू टिप टिप गिर रहे थे। बाजी को रोता देख भी रो पड़ा। बाजी ने रोते रोते मुझसे पूछा: रिजवान क्यों? आखिर क्यों? (इस क्यों का जवाब तो इस दुनिया में किसी भी प्यार करने वाले के पास नहीं था।
आज बाजी ने मेरे अंधे प्यार की एक और झलक देख ली थी। जिसे बाजी सहन न सकी) में कुछ बोला नहीं बस रोता रहा. अचानक बाजी उठी और रूम के डोर की ओर बढ़ी तो मैंने आगे बढ़ बाजी हाथ पकड़ लिया और बाजी को अपनी तरफ किया और दूसरे हाथ से बाजी के बाल प्यार से पकड़ लिए और बाजी के गुलाबी गुलाबी होंठ अपने होंठों में ले लिए।
बाजी के आंसू थे जो रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। और मेरे आँसू भी उनकी आँखों मे आँसू देख कर निकलना शुरू हो चुके थे वह भला कैसे मेरी आँखों में ठहर सकते थे। में बाजी के होठों को किस कर रहा था। कभी बाजी के नीचे वाले होंठ को अपने होंठों में डालता। कभी ऊपर वाले होंठ को अपने होंठों में।
बाजी की आँखें बंद थीं और बाजी मेरे किसका कोई रेसपौंस नहीं दे रही थीं बस रोये जा रही थी ऐसे जैसे वह अपने होश में ना हों। बाजी के आँसू मेरे मुंह में जा रहे थे और मेरे आँसू बाजी के मुंह में। अब मैं बाजी के गाल पर भी किस करने लगा। और बाजी के आँसुओं को पीने लगा।
बाजी के माथे चुंबन के बाद बाजी की प्यारी सी नाक को भी चूम लिया। अब मैंने अपने होंठ बाजी की बरसती आँखों पे रख दिए। और दोनों आंखों को भी बारी बारी चूमना शुरू कर दिया। मेरा एक हाथ जिससे मैंने बाजी हाथ पकड़ा था। अपने उस हाथ की उंगलियां मैंने बाजी के हाथ की बेजान उंगलियों में डाल दी और दूसरे हाथ की उंगलियां बाजी के बालों में फेरने लगा।
अजीब ही आलम था। मेरे सपनों की रानी मेरे सपनों की वह देवी। जिसकी आज तक तस्वीरों से ही मैंने प्यार किया था जिसे आज तक मैं छुप छुप के पूजता था। वह देवी वह रानी आज सीधे मेरे प्यार की चपेट में थी। और मैं उसके चेहरे के हर एक एक इंच को चूमे जा रहा था।
अचानक बाजी ने अपना हाथ मेरे से छुड़ाया और दोनों हाथों से मुझे पीछे किया आँखें खोल मुझ पे एक निगाह डाली। और ऐसे ही रोती हुई और मुझे भी रोता हुआ छोड़ रूम से बाहर निकल गई रो रो के मेरे आँसू भी खत्म हो चुके थे शायद। बाजी के साथ बिताए वह कुछ पल मुझे एक सपने जैसे लग रहे थे।
बाजी के रूम से चले जाने के बाद भी बहुत देर तक मुझे विश्वास नहीं आया कि मेरे और दीदी के बीच यह सब हुआ है। मेरे सपनों की वह हुश्न की परी, मैंने उसके गुलाबी होंठों को अपने होंठों में लिया और चूमा है। उसके चेहरे की इंच इंच को चूमा है। एक तो बाजी मेरा प्यार था ऊपर से थी भी तो बहुत हसीन।
क्या पल थे। मेरे दिल चाह रहा था इन पलों को याद करते करते ही सारा जीवन बीत जाए। क्या अब बाजी पे मेरा पूरा अधिकार था? क्या उन्हें लेकर जो सपने मैं सजाए थे वो पूरे होनेवाले थे? ऐसे ही कितने सवालों की लड़ाई मेरे सीने में चल रही थी। में अपने बेड पे लेटा हुआ था। और मैंने बाजी वह शादी वाली तस्वीर हाथ में ली हुई थी। यह फोटो मेरे लिए बहुत भाग्यशाली साबित हुई।
बाजी की फोटो देखते ही जब मेरी नज़र बाजी होंठों पे पड़ी तो मुझे वह पल याद आ गया जब मैंने बाजी होंठों को अपने होंठों में लिया हुआ था और किस करते हुए जब मेरे होंठ बाजी के नरम होठों सेरगड़ खा रहे थे। .और बाजी के नरम होठों के घर्षण को याद करते ही मेरा लंडखड़ा होने लगा। मस्ती और की लहरें मेरे शरीर में दौड़ने लगी।
किस करते समय मुझे पता नहीं क्यों इस तरह की कोई ग्लानि नहीं आई। या शायद मेरा ध्यान ही इस ओर नहीं गया। पर अब मेरा लण्ड धीरे धीरे बहुत जोश में आने लगा था। मैंने बाजी की दूसरी तस्वीर निकाली और बाजी के हुश्न को देखने लगा और अपना लंड पाजामे से बाहर निकाल लिया। और मुठ मारनी शुरू कर दी।
अब मेरी नजर बाजी की गाण्ड की साइड पे जमी हुई थी। अब मैं पूरे जोश में आ चुका था। और अपने लंड को सही मजे ले के आगे पीछे आगे पीछे हिला रहा था। वीर्य थोड़ा थोड़ा करके लंड से निकल रहा था। कुछ देर पहले बाजी के साथ बिताए वह हसीन पल मेरे अंदर और अधिक नशा और मज़ा बढ़ा रहे थे।
मैं अब नशे और मजे की इंतिहा तक पहुँच चुका था। बाजी की मोटी गाण्ड को देखते देखते पता नहीं मुझे क्या हुआ और अचानक मेरे मुंह से निकला “बाजी आप की मोटी गाण्ड” “बाजी दिखा दो ना यह अपनी मोटी गाण्ड” “क्यों सलवार में छुपाई हुई है” मानो जैसे इन शब्दों का जादू गया।
मुठ मारने से जो नशा मेरे शरीर में पैदा हो रहा था यह शब्द बोलते ही वह नशा चार गुना आना शुरू हो गया। उस दिन मैंने जाना जितना मज़ा सेक्स करते हुए अपनी भाषा का प्रयोग करने में आता है किसी और भाषा से मज़ा बिल्कुल नहीं आता। अब मामला मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया था।
मैंने तेजी से करवट बदल ली और बाजी की तस्वीर मेरे हाथ से गिर गया। मेरी आँखें बंद थी और बाजी की गाण्ड मेरी आँखों के सामने और मस्ती और बेसुधी की हालत में एक ही बात बार बार कह रहा था “बाजी की मोटी गाण्ड” “बाजी की मोटी गाण्ड”। मुझे कुछ पता नहीं कि फारिग होने के कितनी देर बाद भी एक नशे की कैफियत में रहा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
सुबह जब मेरी आँख खुली तो सब कितना अच्छा लग रहा था। बहुत दिन बाद खुशी के रंग अपने जीवन में फिर से देख रहा था। एक रात में इतना बड़ा परिवर्तन तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। पिछली रात के बाद अब मैं इस सोच में था कि कब मैं अपनी बाजी के फिर से इतना करीब जाऊँगा। और बाजी के शरीर से टूट के प्यार करूँगा।
यही सोचते सोचते मैं बेड से उठा तैयार हुआ और नीचे आ गया। बाजी अम्मी और अबू नाश्ता कर रहे थे। मैंने हर किसी को सलाम किया और नाश्ता करने लगा। आज बहुत दिनों बाद मेरे चेहरे पे खुशी और रौनक देख के अम्मी बहुत खुश हुईं और कहा क्या बात है आज मेरा रिजवान कितना खुश लग रहा है बेटा खुश रहा करो। मैंने केवल “जी अम्मी” कहा। और दिल में सोचा अब मैं खुश ही रहूंगा।
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नाश्ता करते करते चोरी चोरी बाजी को भी देख रहा था। बाजी की आँखें सूजी हुई और लाल नजर आ रही थीं। जिससे पता लग रहा था कि वह सारी रात ही रोती रही हैं। बाजी मुझे इग्नोर कर रही थीं।अम्मी और अब्बू कुछ और ही सोच रहे थे पर मामला यहाँ तो कुछ और ही था। बाजी के इग्नोर करने पे में परेशान हो गया।
कई तरह के सवाल मेरे मन में गूंज रहे थे। क्या बाजी के साथ अब मैं वैसा कर पाऊंगा जो रात को किया ? और ऐसे ही जाने और कितने सवाल। मैं नाश्ता करके अम्मी अब्बू को स्टडी का कह के रूम में आ गया और कमरे में मौजूद एक चेयर पे बैठ के आँखें बंद कर ली और बाजी के बारे में सोचने लगा। कि अब कैसे बाजी से वही सब कुछ करूँ जो रात को हुआ।
और फिर कुछ मन में आते ही मैंने आँखें खोली और बाजी के साथ आगे की प्रगति को रात पे छोड़ दिया. लंच पर बाजी का सामना नहीं हुआ। बाजी अपने रूम में ही रही। अम्मी से पता चला कि वह एक लेट खाना बनाएँगी . दिन बहुत मुश्किल से कटा। और फिर रात के खाने पे बाजी से सामना हो गया।
अब बाजी को देखते ही एक अलग ही तरह की खुशी का एहसास होता था। बाजी की हालत अभी भी ठीक नहीं थी आँखें और वैसी ही लाल और सूजी हुई थीं। लगता था कि बाजी दिन में भी रोती रही हैं। बाजी अब भी मुझे उसी तरह इग्नोर कर रही थीं। मेरे अंदर की परेशानी और बढ़ रही थी।
अम्मी ने बाजी पूछा भी कि: राबिया क्या हालत बनाई हुई है?
बाजी ने कहा कि: अम्मी रात काफी देर तक पढ़ती रही हूँ। नींद कम ली है इसलिए ऐसा है।
अम्मी ने कहा पढ़ाई ज़रूरी है पर उसके साथ अपने स्वास्थ्य का भी ख़याल रखा करो।
बाजी ने कहा जी अम्मी।
खाना खाने के बाद रूम में आ चुका था और अभी बुक सामने रखे बाजी की याद में गुम था। ऐसे ही समय बीतता रहा फिर जब रात के 12 बजे तो मैंने किताब साइड में रखी और बेड से उतरा कदम उठने सेपहले ही लड़खड़ा रहे थे। पैर बेजान हो चुके थे। शरीर में करंट लग रहा था।
अचानक मैंने एक अंतिम फैसला किया और एक गहरी सांस ली और अपने रूम के दरवाजे को खोला। और बाजी के रूम की ओर बढ़ा। बाजी के रूम के पास पहुँच के एक पल मेंने कुछ सोचा और फिर गेट पे नोक किया। कुछ ही सैकंडबाद डोर खुला तो बाजी मेरे सामने खड़ी थीं। बाजी मुझे देख कर घबरा सी गईं। मुंह से कुछ बोली नहीं।
मैंने ही हिम्मत करके बाजी से पूछा कि क्या मैं अंदर आ सकता हूँ? बाजी ने कुछ पल कुछ सोचा और कहा हूँ आ जाओ। और बाजी साइड मे हो गईं। मैं अंदर आ गया। और रूम में मौजूद एक चेयर पे बैठ गया। बाजी ने दरवाजा अंदर बंद नहीं किया। और बेड पे आ के बैठ गईं। बाजी जैसी ही सुंदर थीं वैसा ही सुंदर बाजी ने अपना कमरा सजाया हुआ था और सब कुछ सलीके से अपनी जगह पड़ी हुई थी।
बाजी अपने बेड पे पड़ी किताब उठा कर उसके पन्नों को पलटने लगी और मैं बाजी को देखने लगा। काफी देर की चुप्पी के बाद बाजी ने पूछा कहो कैसे आ ना हुआ? एक तो मेरी बाजी थी ही बहुत सुंदर ऊपर से मेरा पहला प्रेम वह भी ऐसा प्रेम कि दीवानगी की सभी सीमाओं को पार कर बैठा था उसके प्यार में।
बाजी के इस सवाल का जवाब देने की कोई हिम्मत पैदा नहीं हुई मेरे अंदर। मैं चुप बैठा बाजी की तरफ देखता ही रहा और बाजी मेरे जवाब का इंतज़ार करते करते मेरी ही तरफ देख रही थी। हम दोनों एक दूसरे को ऐसे देखते देखते धीरे धीरे हम किसी और ही दुनिया में चले गये। बाजी अपना सवाल भूल गई और अपना जवाब।
हम दोनों बहन भाई एक दूसरे की आंखों में आंखें डाल पता नहीं किस जहां में खो गए। कुछ पता नहीं उस रात हम दोनों एक दूसरे को कितनी देर ऐसे ही देखते रहे। और पता नहीं और कितनी देर ऐसे ही एक दूसरे को देखते रहते अगर बाजी के हाथ में पकड़ी वह किताब गिरती नहीं। किताब के गिरते ही बाजी चौंकी और बुक उठाने नीचे झुकी और हमारा यह सिलसिला ऐसे अंत को पहुँचा.
बाजी ने किताब उठा रखी और कहा तुम ने बताया नहीं कि तुम क्यों आए थे? बाजी के लहजे में थोड़ी घबराहट में नरमी भी थी। मैं क्क़ कुछ नहीं वैसे ही आया था। और यह कह कर में उठा और रूम से बाहर जाने लगा। बाजी सवालिया नजरों से मुझे ही देख रही थी।
रूम के गेट पे पहुँच कर मैं अचानक पीछे की तरफ पलटा और बाजी के पास आ के बाजी बालों को अपने एक हाथ में प्यार से पकड़ा और बाजी के होंठों को अपने होंठों में ले लिया। मेरे अचानक हमले से बाजी के शरीर को एक झटका लगा और बाजी ने मुझे दोनों हाथों से पीछे की ओर धकेल दिया और उठ खड़ी हो गई।
और कहा: नहीं रिजवान अब नहीं कभी नहीं। ऐसा अब ऐसा सोचना भी मत।
बाजी के स्वर में हल्की सी कठोरता और काफी परेशानी थी। बा
जी ने कहा: रिजवान ये पाप है।
पर बाजी के होठों का स्पर्श मिलने की देर थी। भावनाओं के तूफान अब मेरे अंदर चलना शुरू हो चुके थे। और अब इस तूफान को रोकना असंभव हो चुका था। बाजी अपने दुपट्टे को अपने गले से निकाल कर अपने सर पे और अपने सीने पे सही से रख चुकी थी।
मैं फिर से आगे हुआ और बाजी के आगे खड़ा होकर बाजी की गर्दन में अपना हाथ पीछे से घुमा के बाजी को अपनी ओर किया और किस करने की कोशिश की। पर बाजी ने फिर मुझे पीछे की ओर धकेलने की कोशिश की पर अब मैं पीछे नहीं हो सकता था। मैं बाजी के होंठ अपने होंठों में लेने की कोशिश कर रहा था और बाजी मुझसे अपने आप को छुड़ाने की।
ऐसे करते करते अब एक तरह से हम दोनों बहन भाई में लड़ाई शुरू हो चुकी थी। ऐसे करते करते अचानक मैंने बाजी को रूम की दीवार के साथ जा के लगा दिया. मेरा एक हाथ पीछे से बाजी की गर्दन मे डला हुआ था और दूसरे हाथ से मैंने बाजी के बाल दुपट्टे के ऊपर से ही पकड़ लिए थे। अब बाजी पे मेरी पकड़ बहुत टाइट थी।
मैंने अब अपने होंठ बाजी के होंठों पे रखे और बाजी होंठों को चूमना शुरू कर दिया। बाजी ने हर तरह से कोशिश की कि वह मुझसे अपने आप को छुड़ा लें पर वह नाकाम रहीं। पर फिर भी उन्होंने अपनी यह असफल कोशिश जारी रखी मैं पागलों की तरह बाजी के होठों को चूम रहा था और अब तो अपनी ज़ुबान भी मैंने बाजी होंठों के बीच में डालनी शुरू कर दी थी।
पूरी जीब बाजी के होंठों के बीच से गुज़ारता हुआ बाजी के मुंह में डालता। और मैने अपनी जीब को बाजी की जीब पे फेरता और फिर ऐसे ही करता हुआ वापस अपनी जीब बाजी के मुंह से बाहर निकाल लेता और फिर इसी प्रक्रिया के साथ ही फिर अंदर डाल देता।
मेरा पूरा बदन इस प्रक्रिया में जैसे मस्ती के समुंदर में गोते खा रहा था। काफी देर ऐसा करने के बाद अब मैं फिर बाजी होंठ चूमने चूसने लगा। पर इसके साथ ही कुछ ऐसा हुआ जिससे मेरा रोम रोम झूम उठा। बाजी ने अचानक मेरे होंठों को अपने सुंदर गुलाबी होठों से पकड़ लिया। और मेरे होठों को चूम लिया।
मेरे सपनों की देवी, मेरा जीवन, मेरा पहला प्यार और उसका मुझे पहला चुंबन। उस समय मौत भी आ जाती तो कोई ग़म नहीं था। बाजी के ऐसे करने से मेरी भावनाओं की गर्मी को जो ठंडक मिली इस से मेरे प्यार की तीव्रता जैसे कई गुना और बढ़ गई और मैं बाजी के होंठों को प्यार और चाहत से चूमने और चूसने लगा।
बाजी भी अब मेरे होंठों पे पलट कर मेरे चुम्बन का जवाब दे रही थीं पर उसके साथ ही बाजी मुझे अपने हाथों से पीछे भी करने की कोशिश कर रही थीं। जिससे यह लग रहा था कि जो हम दोनों बहन भाई के बीच हो रहा है बाजी नहीं चाहती थी कि यह हो। मैंने फिर भी अपने हाथों और होठों की पकड़ को ढीला नहीं छोड़ा.
ऐसे ही हम दोनों बहन भाई पता नहीं कितनी देर एक दूसरे को चूमते रहे और एक दूसरे की सांसों की गर्मी को एक दूसरे में उतारते रहे। किस करते करते मैंने अपने होंठ बाजी के होंठों से उठाए और बाजी के गालों को चूमने लगा। बाजी का सफेद चेहरा इस प्रक्रिया से गीला हो चुका था।
बाजी के होठों से होंठ उठाने की देर थी कि बाजी ने हल्की से चीख के साथ कहा रिजवान पीछे हटो, ऐसा मत करो मेरे साथ, पर रिजवान होश-ओ-हवा में कहां था जो अपनी बाजी की आवाज सुन पाता। मैंने बाजी की नाक माथा कान को चूमा और फिर अपने एक हाथ जो बाजी की गर्दन के आसपास था उसे वहां से उठाया और बाजी के शोल्डर पे रख दिया। और अपने होंठ बाजी की गर्दन पे जमा दिए।
उस दिन मुझे पता चला कि गर्दन लड़की का कितना संवेदनशील बिंदु है। जैसे ही मैंने अपनी बाजी की सुंदर नरम नाजुक और सफेद गर्दन पे अपने होंठ जमाए। बाजी के मुँह से एक सिसकी निकली। और बाजी के मुंह से बेइख्तियार निकला रिजवान नहीं। बाजी की ये सिसकी एक और ही तरह का जादू गई मेरे पर। और मैं पागल वार अपनी बाजी की गर्दन को किस करने लगा।
और बाजी पता नहीं किस जहां में खोई हुई बस यही कहती रही: रिजवान नहीं रिजवान नहीं रिजवान क्या है यह रिजवान.
सारी दुनिया सोई हुई थी और हम दोनों बहन भाई एक दूसरे में खोये हुए थे। मैं अब बाजी की सुंदर गर्दन को अपने होठों से चूम रहा था और अपनी जीभ भी उस पर फेर रहा था। में बाजी की पूरी गर्दन पे जीब फिरता रहा ऊपर से नीचे तक, फिर नीचे से ऊपर तक। और साथ ही जिस हिस्से पे ज़ुबान फेरता उस हिस्से को चूमता भी।
मेरी इस प्रक्रिया से बाजी की हालत बुरी से बुरी होती जा रही थी और बाजी की सिसकियों में भी वृद्धि होती जा रही थी और बाजी ने आँखें बंद कर ली थीं। पर अब भी बाजी के नरम नाजुक हाथ मेरे सीने से टकरा रहे थे। इन नरम नाजुक खाथों से बाजी मुझे पीछे करने की कोशिश भी साथ साथ कर रही थीं।
बाजी की गर्दन को ऐसे ही चूमते चाटते में अब बाजी के शोल्डर पे पड़े अपने हाथ से बाजी के शोल्डर दबाने लगा। मेरा प्यार मेरी सपनों की वहशहज़ादी मेरे सामने मेरे अधिकार में थी, भला यह कैसे हो सकता था कि मैं उसके शरीर की इंच इंच को जी भर के प्यार न करता। अगर मैं ऐसा नही करता तो प्यार में बेमानी हो जाती। मैं तो ऐसा दीवाना था जो शायद यही एक प्यार का उद्देश्य इस दुनिया में ले के आया था।
मस्ती और खुमार की स्थिति और जुनून की हालत में डूबे हुए, मेरा हाथ बाजी के शोल्डर को दबा रहा था वह अब धीरे धीरे नीचे की ओर आया और मैंने अपने उस हाथ से बाजी का नरम, मोटा और सख़्त खड़ा मम्मा शर्ट के ऊपर से ही पकड़ लिया और आराम से प्यार से दबाने लगा।
मेरी बाजी का मम्मा आज मेरे हाथ में था, वह मम्मा जिसे मैंने आज तक छुप छुप कर देखा था, वह मम्मा जिसे आज तक तस्वीर में ही देख कर मैंने मुठ मारी थी, वह मम्मा जिसे छूना एक सपने जैसा लगता था, जी हाँ वही मम्मा आज मेरे हाथ की गिरफ़्त में था और उस मम्मे को मैं दबा रहा था। उसी दिन के अंदर मजे की एक नई दुनिया से परिचित हो चुका था।
मैं बाजी की गर्दन को वैसे ही चूम चाट रहा था और साथ ही बाजी का मम्मा भी दबा रहा था। बाजी किसी और ही दुनिया में खोई हुई थी कि अचानक उनके शरीर को एक झटका लगा और साथ ही बाजी ने मेरा हाथ अपने बालों से हटाया और फिर दूसरा हाथ अपने मम्मे से हटाया, फिर दोनों हाथो से मुझे पूरी ताकत के साथ पीछे की ओर धक्का दिया.
और कहा कि रिजवान ये क्या बदतमीज़ी है? ऐसा मत करो। पीछे हो। यह सब पाप है, यह गलत है रिजवान पीछे हो जाओ।
बाजी ऐसे ही कितना कुछ बोल गई। और बाजी के धक्के कारण लड़खड़ाते हुए कॉफी कदम पीछे हो गया। बाजी के चेहरे पे सख्त नाराजगी थी। और बाजी को खो देने के डर से सिर झुकाए कमरे से बाहर चला गया। वैसे भी हम दोनों के बीच एक अंजाना सा छुपे प्यार का सिलसिला चल रहा था, जिसे अब कुछ कह कर खराब नहीं करना चाहता था।
मैं अपने रूम में आकर बेड पे गिर गया और आज के उस हसीन समय की यादों में खो गया। और उन यादों से अपनी आत्मा को सारॉबार करने लगा। यह जो कुछ भी हो रहा था सपने जैसा लगता था। बाजी का यूं मुझे किस करना, मेरा बाजी के शरीर को छूना बाजी के अपने होंठों की गर्मी खुद मुझे देना। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
उस बेरहम को मुझ पे थोड़ा रहम आ चुका था। पर बाजी जिस तरह की लड़की थी उनके लिए इतना सब कुछ कर लेना भी बहुत ज़्यादा था। एक ऐसी लड़की जो हया और सम्मान को अपना सिंगार समझती थी। आज उसने अपनी इज़्ज़त और हया को अपने छोटेभाई के प्यार और दीवानगी पे लूटाया था।
सुबह जब मैं उठा तो वही रात वाली स्थिति मुझ पे अभी भी वैसे ही छाई हुई थी। मैं अब दीवानगी की उस हालत में पहुंच चुका था कि मुझे अब जिंदगी ही एक सपने जैसी लगना शुरू हो गई थी। शायद प्यार इतनी मुश्किल के बाद पाने के कारण ये हाल था मेरा। पर अभी मेरे प्रिय ने मुझे वह विकल्प नहीं दिया था, जो मैं उस से चाहता था। मैं चाहता था कि वह भी मुझे ऐसे ही दीवानों की तरह प्यार करे जैसे मैं करता हूँ। मैं उठा तैयार हुआ और नीचे आ गया। नीचे सब उपस्थित थे और अम्मी नाश्ता लगा रही थी।
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नाश्ते के दौरान बाजी ने मुझे बिल्कुल नहीं देखा। बाजी को हिम्मत करके मैंने कहा कि बाजी ब्रैड देना इधर बाजी ने बिना कोई उत्तर दिए चुपचाप ब्रैड ऐसे पास की कि उनके चेहरे और एक्सपरेशन से मुझे अंदाजा हो गया कि वह मुझसे सख्त नाराज हैं। अजीब ही प्रेम कहानी थी मेरी। एक पल ऐसा लगता था कि महबूब पे मेरा बस मेरा ही अधिकार है और दूसरे पल ऐसा लगता था कि मेरे महबूब ने तो आज तक मुझे बिल्कुल चाहा ही नहीं। नाश्ते के बाद मुझे अम्मी ने कहा: बेटा शाम को बाजार चलना है, कुछ खरीदारी करनी है। मैं ओके कह के अपने रूम में आ गया। दिन गुजरा और शाम आई।
मैं अम्मी और बाजी को लेकर बाजार में चला गया। बाजी के चेहरे पे अब भी वही नाराजगी थी। जिसे केवल मैं देख सकता था।हम दोनों बहन भाई की तो कोई और ही दुनिया है, इस दुनिया की भाषा को सिर्फ हम दोनों ही समझ सकते थे। इस लोगों से भरी दुनिया वाले तो हमें बहन भाई ही समझते. बाजी की यह नाराजगी मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी। मेरा मन कर रहा था कि बाजी को गले लगा लूँ और उन्हें रो रो के मना लूँ। पर मजबूर मरता क्या न करता। चुप ही रहा। दोस्तों कहानी अभी बाकि है, आगे की कहानी अगले एपिसोड्स में…