कामुकता सेक्स कहानी
होली के अगले छुट्टी के दिन शायद सब लोग ज्यादा ही आलसी हो जाते हैं, सड़के लगभग खाली थी और बाजार में भी भीड़ नहीं थी. घंटे भर में ही मैं सारे काम निपटा चुकी थी. वापिस घर निकलने के लिए फिर से स्कूटी के पास आयी, तभी ख्याल आया मैं जिस इलाके में हूँ वही पास में मेरी कॉलेज की सहेली प्रीती का फ्लैट हैं. कामुकता सेक्स कहानी
महीने भर से ज्यादा हो गया था उससे मिले और बात किये. अपना फ़ोन निकाला उसको फ़ोन करके पूछने के लिए और फिर यह सोच कर रख दिया की सीधा घर पहुंच कर ही उसको सरप्राइज देती हूँ, वो बहुत खुश हो जाएगी. मैं स्कूटी लेकर उसके घर की तरफ निकल पड़ी.
साल भर पहले की ही बात थी जब वो इस नए फ्लैट में शिफ्ट हुई थी. आये दिन उसकी ससुराल वालों से झड़प हो जाती थी, इसलिए वो अपने पति के साथ इस फ्लैट में अलग रहने आयी थी.
अब उसके फ्लैट की बिल्डिंग सामने ही नज़र आ रही थी, कि तभी अचानक से तेज बारिश शुरू हो गयी. बादल तो सुबह से ही छा रहे थे, पर अचानक तेज बारिश की उम्मीद नहीं थी.
मैं कुछ बचाव कर पाती उससे पहले ही अगले कुछ सेकंड में मैं पूरी भीग चुकी थी. उसकी बिल्डिंग के अहाते में पहुंच कर वहां स्कूटी पार्क करते ही बारिश धीमी पढ़ गयी, जैसे सिर्फ मुझे भिगोने ही आयी थी.
मेरा सफ़ेद कुर्ता भीग कर मेरे शरीर से चिपक चूका था और अंदर से मेरा ब्रा साफ़ दिखाई दे रहा था. ऊपर से मैंने आज दुपट्टा भी नहीं डाला था, जिसका की आजकल फैशन ही नहीं हैं पर आज बड़ी जरुरत थी.
एक बार सोचा इस हालत में उसके घर कैसे जाऊ, वापिस अपने घर चली जाती हूँ. फिर सोचा इस हालत में आधा घंटा गाडी चलाना भी ठीक नहीं. प्रीती से उसके कपडे लेकर एक बार बदल लुंगी.
बिल्डिंग का वॉचमन अपने रजिस्टर में मेरी एंट्री करने लगा, बीच-बीच में वो मुझे घूर रहा था. क्योकि मेरे कपडे भीग कर मेरे बदन से चिपके हुए थे. मुझे उस पर बड़ा गुस्सा आया, ऐसे लोग औरतो की इज्जत नहीं करते और गलत नजरो से देखते हैं.
उसे थप्पड़ मारने की इच्छा हुई, पर अपने आप को नियंत्रित किया. मैं अब लिफ्ट की तरफ बढ़ी और दूसरे माले पर पहुंची जहा प्रीती का फ्लैट था. डोरबेल बजायी, घंटी पूरी बजी भी नहीं थी की दरवाज़ा खुल गया और उसकी छोटी बच्ची बाहर निकली.
मैं उससे कुछ कहती उससे पहले ही वह भाग कर सीढ़ियों से ऊपर के माले पे चली गयी, उसके हाथ में खिलोने भी थे. शायद छुट्टी के दिन अपने पड़ोस की सहेली के यहाँ जा रही थी. अब दरवाज़ा खुला था तो मैं अंदर चली गयी, दरवाज़ा बंद कर दिया.
अंदर कोई दिखाई नहीं दे रहा था. सामने रसोईघर भी खाली था. मैंने उसको आवाज़ लगाई. दूसरी आवाज़ देने ही वाली थी कि उसके पति सचिन बैडरूम से बाहर आये और मुस्करा कर अभिवादन किया. मैंने भी मुस्करा कर जवाब दिया.
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मुझे इस भीगी हालत में देख कर चिंतित हुए और कहाँ “शायद बारिश बहुत जोर की हुई हैं”.
मैंने हां में सर हिला दिया. मुझे अब थोड़ी ठंड लगने लगी थी. मैंने हल्का ठिठुरते हुए पूछा “प्रीती कहा हैं”
उन्होंने जवाब दिया वो “घर पर नहीं हैं.” और मैं अवाक रह गयी.
काश सरप्राइज को छोड़ कर फ़ोन ही कर दिया होता आने से पहले. पर अब क्या हो सकता था, मैं फंस चुकी थी. मैंने अगला सवाल दागा, “वो कहा गई और कितने देर में आ जाएगी?”
उन्होंने कहाँ “सब इत्मीनान से बताता हूँ, पहले आप कपडे बदल लीजिये.”
मैंने ना मैं सर हिला दिया, उनसे कैसे कहु की मुझे कपडे बदलने हैं. मैं उनसे इजाजत लेकर वापिस जाने लगी तो उन्होंने मुझे रोका. “इस तरह आप बाहर ना जाये, सर्दी लग सकती हैं”.
बैडरूम की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहाँ उस अलमारी में प्रीती के कपडे पड़े हैं, उनमे से कुछ पहन लू. वो मेरे कपडे ड्रायर में डाल कर सूखा लेंगे और वापिस पहनने को दे देंगे. मैं भी यही चाहती थी पर थोड़ा हिचकिचाई.
उन्होंने मुझे आश्वश्त किया की यही ठीक हैं और ज्यादा समय नहीं लगेगा. मैंने अपने सैंडल उतारे और स्टैंड पर रख दिए. लिविंग रूम में कारपेट बिछा था. अब मैं बैडरूम की तरफ जाने लगी जहा कारपेट नहीं था.
जैसे ही चिकने फर्श पर गीले पैर पड़े मैं फिसल कर बैठ गयी. मुझे बहुत शर्म आयी और तुरंत उठ कर खड़ी हो हुई. उन्होने मुझे ध्यान से चलने के लिए कहाँ. मैं बिना पीछे मुड़े बैडरूम में प्रवेश कर गयी और तेजी से सामने रखी अलमारी की तरफ बढ़ गयी.
अलमारी खोली तो कुछ साड़ियां और सूट करीने से रखे थे, मैंने उन्हें बिगाड़ना ठीक नहीं समझा, आखिर कुछ देर के लिए ही तो पहनना था. मैंने कोने में पड़े एक गाउन को उठा लिया. अब मैंने अपना लेगिंग और कुर्ता उतारा और एक तरफ रख दिया.
अंदर के कपडे भी भीग चुके थे तो उन्हें भी उतार दिया. एक तौलिया लेकर अपने बदन को पोंछने लगी. फिर तौलिया पास में रखी कुर्सी पे रखा, तभी मैंने थोड़ी रौशनी आते हुए महसूस की.
याद आया फिसलने के बाद शर्म के मारे जल्दबाजी में मैंने दरवाज़ा ही बंद नहीं किया था. मैंने दरवाज़े के उस ओर देखना मुनासिब नहीं समझा और आँखों के एक कोने से देखने की कोशिश की तो एक साया हिलता हुआ दिखा.
मैंने अनजान बने रहने का नाटक करने में ही भला समझा. बिना समय गवाए मैंने वो गुलाबी गाउन पहन लिया. वह बहुत नरम और मुलायम था, शायद अंदर कुछ नहीं पहने होने के कारण मुझे और भी नरम लगा.
मैं अपने गीले अंतवस्त्रों को कुर्ता लेगिंग के अंदर छुपाते हुए बाहर आयी. हॉल में वो नहीं थे, शायद मुझे आते हुआ देख कही अंदर चले गए, यह जताने के लिए की वो साया वह नहीं थे.
वह रसोई से बाहर निकले और बोले चाय चढ़ा दी हैं मुझे चाय पीकर थोड़ी राहत मिलेगी. मैं उनसे नज़रे नहीं मिला पा रही थी. फिसलने की वजह से ज्यादा मेरे उस अनचाहे अंगप्रदशन की वजह से. “कामुकता सेक्स कहानी”
मुझे वह अब बाथरूम की ओर ले गए जहां ड्रायर लगा था. और ड्रायर का ढक्कन खोल कर मुझे कपडे अंदर डालने को कहाँ. मैंने बड़ी सावधानी बरती कि कपडे डालते वक़्त छुपाये हुए अंतवस्त्र बाहर न निकल जाये, किस्मत फूटी थी, मेरी उंगली में ब्रा का स्ट्रैप फंसा और मेरे हाथ के साथ बाहर आ गया और फर्श पर गिर गया.
मेरे हाथ कांप रहे थे. मैं झेप गयी और तुरन्त उठा कर उसे भी अंदर डाल दिया और ड्रायर का दरवाज़ा बंद कर दिया. अब उन्होंने कुछ बटन घुमा कर मशीन को सेट कर दिया. अब हम लोग बाहर हॉल में आ गए, मैं वही सोफे पर बैठ गयी और वो रसोई में चाय लेने चले गए.
मै जहां बैठी थी वहाँ से वो जगह साफ़ दिख रही थी जहां मैंने कपडे बदले थे, मैं अब और हिल गयी थी. मैं उनकी पत्नी की सहेली हूँ, इन्हे इस तरह नहीं घूरना चाहिए था चोरी से. मन में कही न कही यह भी सोच रही थी कि शायद वो साया मेरा भ्रम हो तो अच्छा है.
वो अंदर से चाय के दो कप में लेकर आ गए. एक के बाद एक होती इन गलतियों की वजह से मैं अब भी नजरे नहीं मिला पा रही थी. मैंने चाय की चुस्किया ली और मुझे बहुत आराम मिला. मैंने नीची नजरो से ही उनसे पूछा “आप प्रीती के बारे में बता रहे थे”.
उन्होंने अब अपनी कहानी बतानी शुरू की जिसे सुन कर मुझे सदमा लगा. प्रीती महीने भर पहले ही उनको छोड़ कर अलग रहने लगी थी. उन्होंने बताया कि पहले प्रीती के मेरी माँ से झगडे होते थे तो हम अलग हो गए. “कामुकता सेक्स कहानी”
मैं अपनी माँ की मदद के लिए थोड़ी आर्थिक सहायता देता था जो प्रीती को पसंद नहीं था. मेरी माँ की कोई आय नहीं, बड़े भाई मदद नहीं करते इसलिए मैं ही उनको रूपये देता था. इसी वजह से प्रीती से आये दिन झगडे होते थे.
एक दिन यह इतना बढ़ गया कि वो बच्चों को लेकर चली गयी. जाने के बाद आज पहली बार वो छोटी बच्ची को मुझसे कुछ समय के लिए मिलाने के लिए सुबह घर पर छोड़ गयी थी. बच्ची भी शायद पापा की बजाय अपने पुराने मित्रो के साथ खेलने आयी थी.
इनके प्रति मेरे मन में अभी तक जितनी भी नफरत थी वो अब सम्मान में बदल चुकी थी. मुझे उन पर तरस आने लगा था और प्रीती पर गुस्सा. वो ऐसे कैसे घर छोड़ कर जा सकती हैं, इतनी छोटी बात पर. मैंने उनको सांत्वना देते हुए कहा कि मैं प्रीती से बात करुँगी और मनाने का प्रयास करूंगी.
उन्होंने बताया कि पिछले एक महीने में हमारे सारे रिश्तेदारों और मित्रो ने बहुत समझाने का प्रयास किया, पर वो समझने को तैयार ही नहीं हैं. कुछ मिनट इसी तरह वह अपनी दुःख भरी दास्ताँ बताते रहे और मैं और भी द्रवित हुए जा रही थी. “कामुकता सेक्स कहानी”
प्रीती के लौटने की शर्त यह थी कि सचिन और उनकी माँ उससे माफ़ी मांगे, जिसके लिए सचिन तैयार नहीं थे, और वो ठीक भी थे. जब मैं इस शहर में कुछ समय पहले आयी थी, तब इन दोनों ने मेरी बहुत सहायता की थी.
मैं भी उनकी कोई सहायता करना चाहती थी, पर जानती थी की प्रीती बहुत ज़िद्दी हैं और किसी की नहीं सुनेगी. फिर मैं क्या मदद कर सकती थी. पत्नी विरह क्या होता हैं वो अब मैं जान चुकी थी. यह व्यक्ति इतने समय से विरह में था फिर भी मुझे उस अवस्था में देख कर मेरा फायदा उठाने का प्रयास नहीं किया.
यह बताते हुए उनका गला रूंध गया, कि प्रीती अब तलाक के बारे में सोच रही हैं और उनकी आँखें भर आयी. मैंने मन ही मन निश्चय किया मुझे उनके लिए कुछ करना चाहिए. क्या मुझे उन्हें कुछ समय के लिए ही सही पत्नी सुख देना चाहिए.
तुरंत मैंने अपने आप को डांट दिया. यह मैं क्या सोच रही हूँ? इनकी शादीशुदा ज़िन्दगी अच्छी नहीं चल रही, पर मेरी तो बिलकुल सही हैं. मैं क्यों अपनी अच्छी चलती ज़िन्दगी को खराब करना चाह रही हूँ. “कामुकता सेक्स कहानी”
वो अब उठे और मेरे पास पड़े टेबल से मेरा खाली कप उठाने के लिए बढे. मेरे अंदर अब दया और करुणा की देवी प्रवेश कर चुकी थी. जिसने मुझे मजबूर कर दिया और मैं भी उठ खड़ी हुई.
मुझ पर से मेरा नियंत्रण हट चूका था. मैंने तुरंत अपने दोनों हाथों से उनकी कलाइयां पकड़ ली, ओर कुछ नहीं सुझा और उनके दोनों हाथों को अपने दोनों वक्षो के ऊपर रख दिया. मेरे अंदर एक बिजली सी दौड़ पड़ी. का
फी समय के बाद उन्होंने किसी स्त्री के नाजुक अंगो को छुआ था, तो वो भी पूरा हिल चुके थे. मैंने अंदर कुछ नहीं पहना था और वो गाउन बहुत मुलायम और पतला था. वो मेरे अंगो को बिना वस्त्रो के जितना ही महसूस कर सकते थे.
अगले कुछ पलों में उनकी उंगलिया मेरे वक्षो पर अठखेलिया कर रही थी. तुरंत दया की देवी मुझ से बाहर आ गयी. मैं अपने होश में आ चुकी थी, और सोच रही थी की यह मैंने क्या अनर्थ कर दिया.
अपने आप को पर पुरुष के हवाले कर दिया. अब मैं क्या करूँ. अब उन्होंने मेरे वक्षो को दबाना और मलना शुरू कर दिया था. एक औरत होने के नाते मुझे कुछ आनंद तो आ रहा था साथ ही डर भी लग रहा था. “कामुकता सेक्स कहानी”
मैं अब इस मुसीबत से कैसे बच सकती हूँ. मुझे कुछ उपाय सूझता उससे पहले ही उन्होंने मुझे पलट कर सोफे पर धकेल दिया. अब मैं घुटनो और हाथों के बल सोफे पर थी. उन्होंने मेरे गाउन को नीचे से उठाते हुए कमर के ऊपर तक उठा दिया.
अब मेरे नीचे का भाग पूरा नग्न था और उनकी तरफ खुला था. मुझे अहसास हो गया था कि आज मेरी इज्जत मेरे पति के अलावा किसी और के हाथों में भी जाने वाली थी.
मुझे कुछ और नहीं सूझ रहा था. मैं स्तब्ध हो उसी हालत में बैठी रही और सोच रही थी कि अब क्या करू. तब तक उन्होंने अपने कपडे उतार लिए थे और अपने लिंग को मेरे नितंबो के बीच रगड़ने लगे.
क्या मैं चिल्लाऊं? मगर मैंने ही तो उनके हाथों को पकड़ कर यह सब करने की शुरुआत की थी. गलती तो सारी मेरी ही थी. वो तो विश्वामित्र बन के बैठा था. मैंने ही मेनका बनके उसकी तपस्या भंग की थी.
मेनका की तरह अब मुझे भी एक श्राप तो भुगतना ही था. ऐसा श्राप जो एक शादीशुदा औरत नहीं झेलना चाहेगी. मैं अपनी मूर्खता और किस्मत को कोसने के अलावा अब कुछ और नहीं कर सकती थी. “कामुकता सेक्स कहानी”
मैं अब तक सुन्न हो चुकी थी. अभी भी शायद कुछ नहीं बिगड़ा था. मैं कुछ हरकत करती उससे पहले ही वो मेरे पीछे आ चुके थे और अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया. उनके मुँह से एक जोर की आह निकली.
भीग कर ठंड लगने की वजह से अब तक जो शरीर में कपकपी हो रही थी. अचानक अपनी चूत में उस गरमा गरम लंड के जाते ही मेरे शरीर में दौड़ता लहू गरम हो गया. मेरी तो साँसे ही थम गयी उन कुछ सेकण्ड्स के लिए और मेरे मुँह से सिर्फ एक गहरी आहह्ह्ह निकली.
शायद काफी समय से यह सुख नहीं मिलने पर पुरुषो का यही हाल होता होगा. अब मुझे मेरे प्रतिरोध करने का कोई फायदा नजर नहीं आया. मैं अब सब कुछ लुटा चुकी थी. अब वह आगे पीछे होकर गति करने लगे धीरे धीरे यह गति बढ़ती जा रही थी.
वो प्रेमानंद में डूबते जा रहे थे और सिसकिया निकाले जा रहे थे. मैं इस बीच अपने पति के बारे में सोच रही थी. मेरी एक छोटी सी गलती की वजह से अब मैं उनको मुँह नहीं दिखा पाऊँगी. “कामुकता सेक्स कहानी”
अब पछताये हो तो क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत. मैंने अब बाकी सब बातों के बारे में सोचना बंद कर दिया और सकारात्मक सोचने लगी. मेरे इस कदम से मैंने एक पुरुष को जैसे नया जीवन दिया, एक तड़पते पुरुष को वो ख़ुशी दी जो वो ज़िन्दगी भर याद रखेगा.
आखिर औरत होती भी त्याग की मूर्ति हैं. मैंने अपनी आबरू का त्याग कर किसी की खुशिया खरीदी थी. वह लगातार मुझे पीछे से धक्का मारते हुए चोदने का आनंद लिए जा रहे थे, उनकी आहें और सिसकिया सुनकर मुझे अच्छा लग रहा था. जैसे कोई पुण्य कर दिया हो.
अब आखिर मैं भी कब तक अपने शरीर को रोकती. कुछ ही समय में मेरा सब्र भी टूट गया और मेरी भी आहें निकलनी लगी. उससे उनका जोश भी बढ़ गया तथा ओर भी लगन से अपना कार्य करने लगे.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और वो रुक गए. बाहर से उनकी बच्ची की आवाज आ रही थी. उन्होंने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाल दिया और खड़े हो अपना पाजामा फिर ऊपर कर लिया. मैंने भी खड़े हो अपना गाउन नीचे कर दिया. “कामुकता सेक्स कहानी”
मुझे खुश होना चाहिए था पर थोड़ा बुरा लगा कि ऐसे में मुझे अधूरा नहीं छोड़ना था. मुझे अपनीं मम्मी के गाउन में देख बच्ची क्या सोचेगी इसलिए मैं बाथरूम की तरफ चली गयी. सचिन ने दरवाजा खोला और बच्ची दौड़ते हुए अंदर गयी और थोड़ी देर में एक नया खिलौना हाथ में ले वापिस दरवाजे से बाहर निकल गयी.
उन्होंने फिर से दरवाजा बंद किया. मैं बाथरूम से निकल कर फिर हॉल में आ गयी. हम दोनों की नजरे फिर से मिली और अभी जो कुछ भी हुआ था, ये सोच मैंने अपनी नजरे नीचे झुका ली. मैंने सोचा शायद इनका जमीर भी जाग जाए और अपना इरादा बदल ले.
पर एक महीने भर से तड़पते हुए मर्द को अगर मौका मिला हो तो वो भला कैसे छोड़ेगा. उन्होंने मुझे अपनी गोद में उठा लिया था. वो मुझे बेडरूम में ले गए. मुझे आईने के सामने खडी किया और नीचे से गाउन पकड़ कर उठाते हुए मेरे सर से बाहर निकाल दिया.
उन्होंने मुझे उठाया और बिस्तर पर उल्टी लेटा दिया. उन्होंने एक दराज से कुछ सामान निकाल लिया. अब वो मेरे करीब आये और मेरी दोनों नाजुक कलाइयां पकड़ी और उनको पीठ पर ले जाकर उन पर एक हथकड़ी बाँध ली. उस पर मखमल का कपडा चढ़ा था तो चुभ नहीं रही थी.
मुझे समझ नहीं आया वो करना क्या चाह रहे थे. मैं कोई विरोध नहीं कर थी फिर इस हथकड़ी का क्या फायदा. उन्होंने मुझे अब सीधा लेटा दिया और अपने हाथ में एक लंबी सी पंखनुमा चीज पकड़ ली. मुझे लग गया वो मुझे गुदगुदी करने वाला हैं. “कामुकता सेक्स कहानी”
वो अब उस पंखे को मेरे निप्पल के घेरो के चारो तरफ हलके से फेरने लगा. मजे के मारे मेरी सिसकियाँ निकलने लगी. मेरी चूंचिया एकदम से तन गयी और फुल कर और बड़ी हो गयी.
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प्रीती ने मुझसे एक दो बार जिक्र भी किया था, कि उसके पति सेक्स से पहले कुछ गेम खेल कर तड़पाते हैं, आज पता चला वो खेल क्या हैं. जो भी हो आज उसके हिस्से का खेल मैं खेल रही थी.
अब वो पंख घेरा बढ़ाते हुए मेरे पुरे मम्मो को गुदगुदी कर तड़पाने लगा. इतना रोमांटिक पति होते हुए उसको छोड़ कर जाने वाली कोई बेवकूफ पत्नी ही हो सकती हैं. पंख घूमते हुए अब मेरे नाभी और पतली कमर को गुदगुदाने लगा.
मैं अब इंतज़ार कर रही थी कि जब ये मेरी चूत पर अठखेलियां करेगा तब कैसा लगेगा. इससे पहले की मैं उस उन्माद में सो जाऊ, डोरबेल एक बार फिर बजी और मैं उस नशे से बाहर आयी.
सचिन ने अपने सारे सामान फिर से दराज में डाले और मुझ पर एक रजाई पूरी डाल दी. ऐ.सी. से वैसे ही हलकी ठंड थी तो रजाई से थोड़ी गर्माहट मिली. सचिन बाहर जा चुके थे और किसी महिला से बात कर रहे थे. थोड़ी देर में वो दोनों बैडरूम की तरफ बढ़ रहे थे.
मेरी हालत ख़राब हो गयी, कही किसी को शक तो नहीं हो गया. मुझे वो आवाज पहचानते देर नहीं लगी, वो प्रीती की ही आवाज ही थी. बातों से ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने बचे हुए कपडे लेने ही आयी थी. मेरी हालत उस वक्त क्या थी ये कोई सोच भी नहीं सकता. “कामुकता सेक्स कहानी”
मैं अपनी सहेली की गैरमौजूदगी में उसके बैड पर नंगी लेटी हुई थी, और उसके छोड़े हुए पति के साथ कुछ अनैतिक काम कर चुकी थी. मैं सोच में पड़ गयी, क्या मुझे आवाज लगा देनी चाहिए. इससे मैं तो बच जाउंगी इस पाप को और आगे बढ़ने से पहले.
पर फिर सोचा प्रीती पर क्या बीतेगी. उसका अपने पति पर रहा सहा भरोसा भी टूट जायेगा. उसके दोनों बच्चो का क्या होगा. किसी और को अपने बिस्तर पर सोया हुआ देख उसने सचिन को पूछा भी था, पर सचिन ने झूठ बोल दिया कि वो उसकी माँ हैं, सो रही हैं.
प्रीती का तो वैसे भी उसकी माँ से छत्तीस का आंकड़ा था, तो शायद वो थोड़ी ही देर में वहा से चली गयी थी. क्यों कि आवाजे आना बंद हो गयी थी. मैं रजाई के नीचे अभी भी इंतज़ार कर रही थी, कि अचानक मेरे ऊपर से वो रजाई हटा दी गयी. “कामुकता सेक्स कहानी”
मैं डर गयी, कही सामने प्रीती न खड़ी हो. पर सामने सचिन को देख थोड़ी शांती मिली. उसने बताया कि प्रीती आई थी अपने कपडे लेने और मेरा पहना हुआ गाउन भी लेके चली गयी. जो सचिन ने नीचे से उठा कर अंदर अलमारी में छुपा दिया था बाहर जाने से पहले.
मैंने फैसला कर लिया था कि मैं अब और वहा नहीं रुकने वाली. तब तक वो एक बार फिर वो पंख ले आया और मेरे शरीर पर फेरने लगे. उसमे पता नहीं क्या जादू था कि मुझे अपना फैसला फिर से बदलना पड़ा. “कामुकता सेक्स कहानी”
शायद सचिन के पास भी ज्यादा समय नहीं था, मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा. वो नाजुक पंख मेरी चूत को सहला रहा था और मेरी चूत मजे के मारे कांप रही थी. मेरे मुँह से आह आह की आवाजे आने लगी.
मेरे पैर अपने आप ही एक दूसरे से दूर होते गए और मैंने अपनी चूत के दरवाजे खोल दिए. मुझे बस ये अहसास हो रहा था कि मैं किसी मसाज पार्लर में हूँ और सुकून भरी मसाज करवा रही हूँ. मेरी चूत में बूंद बूंद पानी भरने लगा था और छलकने को उतारू था.
इससे पहले की मेरी चूत का जाम छलक जाए, वो रुक गए और मुझे पलटी मार कर उल्टी लेटा दिया. वो अब दराज से कुछ और निकालने लगे. तभी एक जोर की चटाक आवाज सुनाई दी और मैंने अपनी गांड पर किसी ने मारा हो ऐसा महसूस किया.
उसके कुछ सेकंड्स बाद मुझे वहा हलकी जलन होने लगी जो कुछ सेकंड रही. मैंने सर पीछे कर देखा सचिन के हाथ में एक पतली छड़ी जैसा था जिस के आगे के सिरे पर चमड़े का छोटा टुकड़ा लगा था. “कामुकता सेक्स कहानी”
अब उन्होंने मेरे गांड के दूसरे गाल पर मारा, फिर वही चटाक की आवाज और हलकी जलन. जिसके बाद पुरे शरीर में कंपन सा हुआ. मेरे पुरे शरीर में रोंगटे खड़े हो गए और खास तौर से मेरी चूत में एक अजीब सी खुजली मचने लगी. ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई आये और मेरे अंगो को हाथ लगा कर सहलाये. “कामुकता सेक्स कहानी”
थोड़ी थोड़ी देर से वो मुझे ऐसे ही चटाके मारता रहा और मेरे मुंह से कराहने की आवाज के साथ एक प्यास भरी आह निकलती. जब उसने चटाके मारना पूरा बंद कर दिया, तब मुझे अहसास हुआ कि मेरी गांड पर जहा जहा पड़ी एक साथ हल्का दर्द सा हो रहा था.
वो दर्द थोड़ी देर बाद सामान्य हो गया, क्यों कि वो इतनी जोर से भी नहीं मारा था कि बहुत ज्यादा देर तक रहे. उसने मेरे हाथों से हथकड़ी खोल दी. मुझे लगा कही इसी कारण से तो प्रीती इसको छोड़ कर नहीं चली गयी. पर इसमें इतना बुरा भी नहीं था.
अगर ज्यादा जोर से ना मारा जाए तो ये औरत को और भी ज्यादा उकसाने के काम आ सकता हैं. मैंने तो सोच लिया था कि मैं भी अपने पति को ऐसी चीज लाने को बोलूंगी, वरना हाथ से भी चांटे मार कर काम चला सकते हैं.
मेरी चूत अब फड़फड़ा रही थी. कभी चूत की पंखुडिया सिकुड़ती तो कभी फूल कर खुल जाती. मैं अब आबरू, नफरत, दया सब भूल चुकी थी, मैं अपने शरीर की जरुरत के आगे लाचार हो चुकी थी. पति ने वैसे भी पिछले एक सप्ताह से मुझे कोई शारीरिक सुख नहीं दिया था.
वो अपने कपडे उतार कर मेरे पास में लेट गए. शायद इतनी मेहनत के बाद थोड़ा आराम करना चाहते थे. मैंने देखा उनका लंड फुँफकार मार रहा था और रह रह ऊपर नीचे हो सलामी दे रहा था. “कामुकता सेक्स कहानी”
उनके हाथ में एक कंडोम का पैकेट था. उन्होंने वो कंडोम खोल अपने लंड को पहना दिया. फिर उन्होंने मुझे अपनी तरफ खिंच कर मुझे अपने आप पर झुका दिया. मैं जैसे उन पर सवार हो गयी. मेरा थोड़ा शरीर उन पर झुका हुआ था. मेरे दोनों मम्मे उनके मुख पर थे. “कामुकता सेक्स कहानी”
वह अब मेरी चूँचियो को धीरे धीरे चूसने लगे. साथ ही साथ वो अपने दोनों हाथ मेरे कमर और नितंबो पर फेरने लगे. उनका लंड नीचे से बार बार खड़ा हो कर मेरी चूत पर चांटे मार रहा था, जिसके छूते ही मुझे करंट सा लगता. मेरे शरीर में झुरझुरी छूट जाती.
थोड़ी देर इसी तरह चलता रहा. अब उन्होंने अपना लंड पकड़ कर मेरी चूत में डाल दिया. वो मेरे कूल्हे पकड़ कर मुझे आगे पीछे हिलाते हुए मेरी धक्का मशीन चालू कर रहे थे. एक बार मजा आना चालू हुआ तो मैं उनके हाथ छोड़ने के बावजूद अब खुद ही झटके मारने लगी.
अब मैं तेजी से आगे पीछे होते हुए अपने बदन से उनके बदन को रगड़ रही थी. मेरे मम्मे उनके सीने से रगड़ खाकर और मजा दे रहे थे. थोड़ी ही देर में हम दोनों की आहें एक साथ निकलने लगी. मैं अपने चरम की और बढ़ रही थी. मैंने उन्हें कस कर पकड़ लिया था. “कामुकता सेक्स कहानी”
आह्ह्ह आह्ह आह्ह ओह्ह्ह यस्स्स्स उम्म उँह उँहह्ह्ह्ह आह्ह्ह आईईईइ हम्म्म्म की आवाज के साथ और कुछ हल्के धक्को के साथ अपना काम पूरा किया. उनका अभी भी पूरा नहीं हुआ था. इसलिए थकी होने के बावजुद मैंने करना जारी रखा. पर थोड़ी ही देर में मैं थक कर रुक गयी. “कामुकता सेक्स कहानी”
अब वो नीचे लेटे लेटे ही अपने लंड को मेरे शरीर में अंदर बाहर करने लगे. मुझे फिर मजा आने लगा. थोड़ी देर में मैंने भी साथ देते हुए थोड़ा जोर लगाया. जिससे मेरा मूड एक बार फिर बनने लगा. शायद ये सारा जादू उस खेल का हैं जो उन्होंने मेरे साथ खेला था.
मैं वो पंख अभी भी अपने मम्मो और चूत पर फिरते हुए महसूस कर पा रही थी. मैंने रुक रुक कर जोर से झटके मारने शुरू किये. मेरा थोड़ा पानी तो पहले ही निकल चूका था तो उन झटको से फच्चाक फच्चाक की आवाजे आने लगी.
हम दोनों एक दूसरे की विपरीत दिशा में एक साथ झटके मार रहे थे, जिससे उनका लंड और मेरी चूत एक दूसरे की तरफ तेजी से बढ़ते हुए एक दूजे में समा रहे थे, और झटको का वेग और भी बढ़ने से लंड गहराई में उतर रहा था. “कामुकता सेक्स कहानी”
उनकी आहें अब और भी लंबी होने लगी और आवाज भी बढ़ने लगी. अब उन्होंने जोर लगाना बंद कर दिया था शायद उनका होने वाला था. इसलिए मैंने अपना पूरा जोर लगाते हुए करना जारी रखा.
जल्द ही उनकी चीख निकली और मुझे अपने सीने से चिपका कर अंदर की ओर कुछ हलके धक्के देने लगे. अब तूफ़ान शांत हो चूका था. मैं अपनी चूत से थोड़ा पानी रिसता हुआ महसूस कर रही थी. शायद मैंने ही दूसरी बार झड़ने के करीब होने से पानी छोड़ा होगा.
शारीरिक जरुरत पूरी होने के बाद ही इंसान को अपने सारे गुनाह नजर आते हैं. हम दोनों का हो तो गया, पर मन ही मन में पता था कि हमने क्या गलती कर दी हैं जिसका कोई प्रायश्चित भी नहीं हैं. “कामुकता सेक्स कहानी”
थोड़ी देर उसी मुद्रा में सोये रहने के बाद मैं उनसे नीचे उतर गयी. जो मैंने देखा उस पर यकीन नहीं कर पायी. मैंने देखा उनका कंडोम फट चूका था. इसका मतलब उनका सारा वीर्य मेरी चूत में जा चूका था. वो जो पानी रिसा था वो मेरा नहीं सचिन का था.
ये मेरे महीने के सबसे खतरनाक दिन चल रहे थे, जब बच्चा होने की सम्भावना सबसे ज्यादा होती हैं. शायद वो कंडोम नहीं मेरी किस्मत फटी थी. वो उठे और कपडे पहन कर बाहर चले गए. मेरा गाउन तो जा चूका था, मेरे कपडे बाहर ड्रायर में थे तो ऐसे ही बैठ मैं इंतज़ार करने लगी.
थोड़ी ही देर में वो लौट आये, उनके हाथ में मेरी ड्रायर में सुख चुकी लेगिंग कुर्ता थे. मैंने उनसे वो कपडे ले लिए. कपड़ो के बीच में वो मेरे अंतवस्त्र छुपा कर लाये थे मेरी ही स्टाइल में. जो की मेरी लापरवाही से फिर नीचे गिर पड़े. मैं एक बार फिर शर्मिंदा हुई. उन्होंने झुककर तुरंत वो कपडे उठाये और मुझे थमा दिए. “कामुकता सेक्स कहानी”
अब उनको यह अधिकार था कि वो इन वस्त्र को भी छु सकते थे. वो बाहर चले गए और मैं फिर उसी अलमारी के पास खड़ी हो कपडे पहनने लगी. दरवाज़ा अभी भी खुला था, पर अब मुझे परवाह नहीं थी. छुपाती भी क्या? सब कुछ तो दे ही चुकी थी.
बाहर देखा तो वो सोफे पर बैठे मुझे ही कपडे पहनते देख रहे थे. शायद वो पहले वाला साया सच्चाई ही था. मैं अब बाहर हॉल में आ गयी थी और उनसे जाने की इजाजत मांगी. वो मेरे पास आये और अपने हाथ में मेरा हाथ लेकर मुझे धन्यवाद करने लगे. अपनी आदत के अनुसार मेरे मुँह से वेलकम निकल गया.
अपनी इस आखिरी गलती पर मैंने अपनी जुबान दाँतों से काट ली. तुरंत मुड़ कर उनसे विदा लेते हुए दरवाज़े के बाहर चली गयी. नीचे उतरते हुए यही सोच रही थी कि क्या मैंने जो भी किया सही था? प्रीती के पति के लिए निश्चित रूप से सही किया था.
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शायद मेरे खुद के लिए भी ठीक ही किया था. मुझे आज एक नया अनुभव हुआ. मैंने कही प्रीती का घर तो नहीं तोड़ दिया या फिर वो घर पहले से ही टुटा हुआ था. फटे कंडोम को याद कर मेरा मदद करने का हौंसला भी टूट चूका था. पहले ही हिल स्टेशन पर जो किया वो काफी नहीं था जो अब ये कांड भी कर बैठी. “कामुकता सेक्स कहानी”
चार दिन के बाद प्रीती का फ़ोन आया, एक बार तो मैंने डर के मारे उठाया ही नहीं, कि कही उसको सब मालुम तो नहीं चल गया. दूसरी बार आने पर मैंने उठाया, वो मुझे शुक्रिया बोल रही थी. उसके हिसाब से मैंने उसके पति को अच्छे से समझाया जिससे वो माफ़ी मांग कर उसको फिर अपने घर ले आये थे प्रीती की शर्तो पर. मुझे बहुत अच्छा लगा कि मेरी इज्जत की कुर्बानी मेरी सहेली के कुछ तो काम आयी. मन में एक अपराध-बोध था वो थोड़ा कम हुआ.