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चुदाई की सत्य कथा दोस्तों, मेरा नाम नाथूराम है और मेरी उम्र करीब 50 पार कर चुकी है। मेरे घर में मेरे बेटे रोहित के अलावा और कोई नहीं है। उसकी मां को गुजरे करीब 8 साल हो चुके हैं और अभी दो साल पहले मेरे माता-पिता का भी देहांत हो चुका था। अब मेरे घर में मैं और मेरा बेटा रोहित ही है, जिसकी उम्र करीब 26 साल की है। Bahu Ki Jawani Porn
देखने में रोहित ठीक-ठाक है और एक मल्टीनेशनल कम्पनी में कार्यरत है। मैं अपने बेटे की शादी करना चाहता था लेकिन वो शादी करने के लिए मान ही नहीं रहा था. तब भी परिवार के लोगों के दबाव के कारण मुझे रोहित की शादी एक बहुत ही खूबसूरत और घरेलू लड़की से करनी पड़ी. हांलाँकि रोहित शादी के पक्ष में नहीं था।
शादी हो गयी, मेहमान भी अपने घर चले गये। एक दिन मेरी बहू वंदना ने मुझसे अपने मायके जाने के लिये अनुमति मांगी। मैंने भी खुशी-खुशी इस शर्त के साथ वंदना को उसके घर भेज दिया कि वो जल्दी वापिस लौटकर आयेगी. पर 10 दिन बीत गये, वो नहीं आयी।
मैंने रोहित को उसे लाने के लिये भेजा, पर वो उसके साथ भी नहीं आयी और बहाना बना दिया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है। इस तरह एक महीना बीत गया। इस बीच मैंने मेरे बेटे को 2-3 बार वंदना को बुलाने के लिये कहा लेकिन जैसे वो आना नहीं चाह रही थी।
इधर मेरे दोस्त यार जो मेरे घर अक्सर आ जाया करते थे, बहू के बारे में पूछते थे. लेकिन अब मेरे लिये उन्हें भी टालने मुश्किल होने लगा था। इसके अलावा मुझे भी बात को जानना था कि ऐसा क्या हो गया जिसके वजह से बहू अपने ससुराल में आने के लिये मना कर रही थी और रोहित के सास ससुर भी वंदना को वापस भेजने के लिये तैयार नहीं हो रहे थे।
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इसलिये हारकर एक दिन मैं रोहित के ससुराल पहुँच गया। मेरी आवभगत तो बहुत अच्छे से हुई और मेरे वहाँ जाने से घर के सभी लोग बहुत खुश थे। बातों बातों में मैं जानना चाह रहा था कि आखिर वंदना क्यों नहीं वापस अपने ससुराल नहीं आना चाह रही है।
रोहित के ससुर ने बस इतना ही कहा कि जब भी वो लोग वंदना को बोलते तो वंदना बस इतना कहती कि बस थोड़े दिन वो उन लोगों के साथ रह ले, फिर चली जाऊंगी, क्योंकि मेरे यहां उसे अपने घर दोबारा जल्दी आने का मौका नहीं मिलेगा। मैंने वंदना से भी बात की लेकिन उसने भी मुझे वही रटा रटाया जवाब दिया।
अब मेरा अनुभव जो मुझसे कह रहा था कि जरूर मेरे रोहित के नाकाबिलयत के वजह से यह सब हो रहा है। पर तुरन्त ही मैंने अपने कान को पकड़े और बोला- हे प्रभु, ऐसा कुछ भी न हो, जैसा मैं सोच रहा हूं। फिर भी मैं उन बातों को जानना चाह रहा था जिसके कारण वंदना नहीं आ रही थी. और ऐसी बात वंदना से घर पर नहीं हो सकती थी।
इसलिये मैंने वंदना से कहा- बेटा, तुम्हारे शहर आया हूं, मुझे अपना शहर नहीं घुमाओगी?
वंदना खुशी-खुशी तैयार हो गयी। मैं वंदना के मम्मी पापा से इजाजत लेकर वंदना के साथ घूमने के बहाने घर आ गया। वंदना अपनी स्कूटी में मुझे बैठाकर मेरे साथ चल दी। थोड़ी देर तक मैं उसके साथ इधर-उधर की बातें करते हुए घूमता रहा।
फिर मैंने वंदना को ऐसी जगह पर ले चलने के लिये कहा, जहाँ पर मैं उससे अकेले में बातें कर सकूं। पहले तो वंदना ने मुझे टालने की कोशिश की लेकिन मेरी जिद के कारण वो मुझे एक रेस्टोरेंट में ले आयी। रेस्टोरेंट में भीड़ बहुत थी तो हम लोग वहां से वापिस चलने को हुए. तो मैनेजर ने रोककर जाने का कारण पूछा.
मेरे द्वारा कारण बताने पर वो मुझे एक केबिन की तरफ इशारा करते हुए बोला- सर, इस समय वो केबिन खाली है, अगर आप लोग चाहें तो उसमें बैठ जायें।
मुझे भी यही चाहिये था कि मुझे और वंदना को कोई डिस्टर्ब नहीं करे. तो मैंने मैनेजर को कुछ सनैक वगैरह भिजवाने को कहा और मैं वंदना के साथ उस केबिन के अन्दर आ गया। कुर्सी पर बैठते ही मैंने वंदना पर पहला वही सवाल दागा कि वो वापस क्यों नहीं जाना चाहती.पर उसने भी वही रटा रटाया जवाब दिया।
तभी मैंने वंदना के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए कहा- देखो बेटी, मैं ही रोहित की माँ और बाप हूं। अब अगर रोहित की माँ होती तो वो तुमसे पूछ कर समस्या का समाधान निकालती।
फिर मैंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- देखो बेटा, मैं जानता हूं कि जरूर ऐसी कोई बात तुम दोनों के बीच हुयी है जो मुझे बताने के काबिल तो नहीं है और जिसके वजह से तुम वापस भी नहीं आ रही हो।
लेकिन वंदना ने मेरी बात को काटते हुए कहा- नहीं पापा, ऐसी कोई बात नहीं है।
“नहीं बेटा, बात तो कुछ न कुछ जरूर है। नहीं तो मुझे बताओ, नयी ब्याही लड़की भला अपने ससुराल से दूर रह सकती है?” इतना कहकर एक बार फिर मैंने उसके हाथों को अपने हाथों में लिया और बोला- देखो वंदना, चाहे तुम मुझे अपनी सास समझो, या ससुर समझो, या दोस्त, जो कुछ भी समझना है समझो, लेकिन आज अपनी समस्या मुझसे शेयर करो। क्योंकि मैं अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को तुम्हारे न आने का कारण नहीं बता पा रहा हूं।
इतना कहते हुए मैं उसकी तरफ देखने लगा और वंदना भी मुझे टकटकी लगाकर देखने लगी। उसकी आंखों के कोने से आंसू की एक बूंद मुझे दिख गयी। मैंने उसके आंसू को अपनी उंगली में लेते हुए कहा- वंदना, देखो ये तुम्हारे आंसू के बूंद बता रहे हैं कि कुछ न कुछ ऐसा जरूर हुआ है कि तुम रोहित से दूर हो गयी हो। अभी भी बिना बोले वंदना मुझे टकटकी लगाकर देखती रही।
मैंने फिर उसके हाथ को सहलाते हुए कहा- वंदना, तुम बस इतना मान लो कि तुम अपनी सहेली से बात कर रही हो. और जो कुछ भी तुम्हारे अंदर है उसको मुझे बताओ ताकि मैं उस समस्या को दूर कर संकू।
“मुझे तलाक चाहिये।” उसने इस शब्द को अपने रूँधे हुए गले से कहा।
मैं एकदम धक से रह गया- तलाक!!! यह क्या कह रही हो?
मेरा अनुमान सही दिशा में जाने लगा लेकिन मैं वंदना के मुंह से सुनना चाहता था।
“हाँ पापा, मुझे तलाक चाहिये।”
“बेटा तलाक? लेकिन क्यों?”
“पापा, मैं कारण नहीं बता सकती, लेकिन मैं रोहित से तलाक चाहती हूं।”
“बेटा, न्यायालय में भी तलाक का कारण तो बताना पड़ेगा. और इससे मुझे और तुम्हारे पापा दोनों को ही शर्मिन्दगी उठानी पड़ेगी। इतनी देर में मैं यह समझ गया हूं कि तुम्हारे और रोहित के बीच जो समस्या है उसको अभी तक तुमने अपने मम्मी और पापा को नहीं बताया है।”
मेरी बात सुनकर वंदना ने अपनी नजरें झुका ली और हम दोनों के बीच एक अजीब सी शान्ति छा गयी। थोड़ी देर बाद मैंने बात आगे बढ़ाई और वंदना से बोला- देखो बेटा, मैंने बड़ी उम्मीद से रोहित की शादी करवायी थी कि मेरे यहां औरत नाम पर कोई नहीं है और तुम्हारे आने से यह कमी पूरी हो जायेगी। लेकिन तुम बिना कोई वजह बताये तलाक की बात कर रही हो। थोड़ा देर के लिये सोचो, मैं लोगों से क्या बताऊंगा कि मेरे बेटे और बहू के बीच ऐसा क्या हुआ कि इतनी जल्दी तलाक की नौबत आ गयी।
“तो पापा, मैं क्या करूँ इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है।”
“रास्ता नहीं है! रास्ता नहीं है! कह रही हो लेकिन समस्या नहीं बता रही हो?” इस समय मैं भी थोड़ा झल्ला कर वंदना से बोल बैठा।
वंदना ने मेरी तरफ देखा, उसकी पलकें भीगी हुयी थी, रूँधे हुए आवाज के साथ बोली- पापा, रोहित से शादी करने से अच्छा था कि आप जैसे किसी अधेड़ से मैं शादी कर लेती।
अपनी बहू वंदना की इस बात से मैं बिल्कुल समझ गया कि रोहित ने मेरे नाम को मिट्टी में मिला दिया। अब मैं चाह कर भी वंदना से बाते आगे नहीं बढ़ा सकता।
तभी वंदना बोली- पापा जी, एक बात आपसे पूछनी है।
“हाँ हाँ पूछो बेटा?”
“चलिये मैं अपने पापा और आपकी इज्जत के खातिर अपने अन्दर के औरत को भूल जाऊँ. लेकिन जो गलती रोहित की है, उसका इल्जाम मैं अपने ऊपर क्यों लूँ?”
“मैं समझा नहीं?”
“मैं क्षमा चाहते हुए बोल रही हूं, आप बुरा मत मानियेगा।”
“नहीं बेटा, मैं बुरा नहीं मानूंगा।”
“पापाजी, मैं अपनी जिस्मानी भावना को अगर मार भी दूं पर कल को हमारा बच्चा नहीं हुआ तो आपके और हमारे दोस्त और रिश्तेदार ही मुझे बांझ बोलेंगे. जबकि मेरी गलती भी नहीं होगी और अपराधी भी मैं हूंगी।”
“हाँ यह बात तो है वंदना! पर एक रास्ता यह भी तो है कि तुम दोनों एक बेबी को एडाप्ट कर लो तो जमाने वाले नहीं कहेंगे।”
“तब मैं अपने मां-बाप को क्या जवाब दूंगी। वो अगर पूछें कि तुमने बच्चा गोद क्यों लिया?” अगर मैंने सारा किस्सा बताया तो बोलेंगे कि मैंने उन्हें पहले क्यों नहीं बताया. और नहीं बताती तो फिर रोहित की गलती और सजा मुझे?”
“हम्म!” मैं कहकर चुप हो गया।
तभी वंदना ने मेरे हाथों को अपने हाथों में ले लिया और सहलाने लगी।
“वंदना, मैं कल सुबह वापस जा रहा हूं। अगर तुमको मुझ पर विश्वास हो तो तुम मां भी बनोगी और और जब तक मैं इस दुनिया में जीवित हूं तुम्हें औरत होने का अहसास भी मिलेगा. और किसी को कुछ भी कहने का मौका भी नहीं मिलेगा।”
वंदना मेरी तरफ टकटकी लगाकर देखने लगी, शायद इस समय मैं कुछ जरूरत से ज्यादा स्वार्थी हो गया था, मैं वंदना से नजर नहीं मिला पा रहा था. काफी देर तक हम दोनों के बीच खामोशी छायी रही और वंदना की तरफ से कोई उत्तर न आने पर मुझे अपने ही ऊपर गुस्सा आने लगा। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
जब बातों का सिलसिला दोबारा शुरू नहीं हुआ तो मैं और वंदना वापिस चल दिये। रास्ते में मैंने उसे उसकी पसंद के कुछ कपड़े खरीद कर यह कहकर दिये- बेटा, यह छोटा सा गिफ्ट तुम्हारे पापा की तरफ से है। जब तक घर नहीं आ गया, मैं रास्ते भर यही सोचता रहा कि वंदना मेरी बातों को किस अर्थ में लेगी।
घर पहुँचने के बाद मेरा और वंदना से कोई आमना-सामना नहीं हुआ और मैं भी इसी उधेड़बुन में रहा कि वंदना मेरी बातों को बुरा मान गयी है। रात के खाने के समय भी वंदना मेरे सामने नहीं आयी। खाना खाते वक्त ही मैंने वंदना के मम्मी-पापा को सुबह होते ही जाने के लिये बोल दिया।
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दूसरे दिन मैं सात बजे अपना सामान लेकर बाहर आया तो देखा एक बैग और भी है और वंदना के पापा ऑटो लेकर आ चुके थे। उधर वंदना भी नारी सुलभ परिधान में तैयार होकर आ चुकी थी और अपने मां-बाप से विदाई लेकर मेरे साथ हो ली।
हमने अपने शहर के लिये बस पकड़ी। हम दोनों के बीच इस बीच कोई बातचीत नहीं हुयी। बस चल चुकी थी और हम दोनों के हाथ आपस में टकरा रहे थे। कई किलोमीटर तक हम लोग बिना बातचीत के यात्रा करते रहे। लेकिन मेरे शब्दों को वंदना ने पकड़ा या नहीं … यह मुझे जानना था.
इसलिये मैंने वंदना का हाथ लिया और उसको सहलाते हुए पूछा- वंदना थैंक्स, तुम्हारे इस अहसान का बदला नहीं चुका पाऊंगा। लेकिन एक बात जाननी है मुझे कि जो कुछ मैंने कहा, उसका आशय ही समझ कर मेरे साथ आयी हो ना?
मेरी पुत्रवधू में मेरी तरफ देखा और कहा- कहते हैं ना कि आदमी हो या औरत … अपना भाग्य खुद बनाती है. और आज मैं भी अपना भाग्य खुद बनाने आपके साथ चल रही हूं. या फिर मैं अपने मां-बाप पर दुबारा वो बोझ नहीं डालना चाहती।
“नहीं वंदना, अगर ऐसी बात हो तो तुम मेरे बेटे से तलाक ले सकती हो और तुम अपने माँ-बाप पर बोझा भी नहीं डालोगी, मैं तुम्हारा पूरा खर्च उठाऊंगा।”
“तब फिर आपने ऐसा क्या पाप कर दिया कि आप हर जगह पैसा भी खर्च करें और हाथ भी आपका खाली रहे और बदनामी भी आपको ही मिले?”
“तो फिर मैं समझूँ कि तुम्हारे मन में किसी प्रकार का बोझ नहीं है?”
उसने मेरी तरफ देखा, फिर बस में चारों ओर देखा और मेरे हाथ को चूमते हुए बोली- पापा, यह सबूत है कि मुझे कोई अफसोस नहीं है।
तब मैंने भी वंदना के हाथ को चूमते हुए कहा- वंदना, समाज के सामने हमारे रिश्ते जो भी हों लेकिन आज से हम एक-दूसरे के दिल में रहेंगे, बस तुम्हें धैर्य रखना होगा. क्योंकि मैं चाहता हूं कि जैसा तुमने अपनी सुहागरात के सपना देखा होगा, उससे ज्यादा सुखद तुम्हारी सुहागरात हो।
फिर पूरे रास्ते हम दोनों के हाथ एक-दूसरे से अलग नहीं हुए। हम दोनों घर पहुंचे, दरवाजा रोहित ने खोला। मेरे साथ वंदना को देखकर बहुत खुश हुआ। खुशी में उसने वंदना को कसकर अपनी बांहों में भर लिया। थोड़ी देर तक दोनों एक दूसरे से चिपके रहे और फिर वंदना अलग होते हुए मेरे सीने से चिपक गयी।
वंदना के देखा-देखी रोहित भी मेरे सीने से चिपक गया। मेरा एक हाथ रोहित के सिर को सहला रहा था जबकि दूसरा हाथ वंदना के पीठ से लेकर चूतड़ तक सहला रहा था। थोड़ी देर तक हम लोग बातें करते रहे। फिर रोहित को होटल से खाना लाने के लिये भेज दिया।
रोहित के जाते ही मैंने वंदना को पैसे निकाल कर देते हुए कहा- तुम अपने हिसाब से अपनी सुहागरात की तैयारी करो, जिस रात को मौका मिलेगा, उस रात तुम्हारे जीवन का सबसे सुखद दिन होगा।
धीरे-धीरे वंदना को आये 15-20 दिन बीत गये लेकिन कोई मौका हाथ नहीं लग रहा था। बस रोज सुबह शाम वंदना की नजरें मुझसे सवाल करती रहती थी। इस बीच हनीमून के बहाने वंदना और रोहित घूमने भी चले गये। लेकिन शाम को फोन पर नमस्ते पापा की एक धीमी आवाज मेरे दिल में नश्तर की तरह चुभती थी।
इस बीच मैंने न तो वंदना को छुआ और न ही वंदना ने मुझे छूने की कोशिश की. इस तरह से दिन बीत रहे थे कि तभी एक दिन रोहित ने आकर बताया कि उसे उसके बॉस के साथ दूसरे दिन सुबह जाना है और दूसरी रात को वो वापिस आयेगा।
मेरे मन को रोहित की इस बात से बहुत खुशी मिली। मैंने वंदना की तरफ देखा तो वो अपनी नजरें नीचे की हुयी अपने पैरों के नाखून से जैसे जमीन को खोद रही थी। दूसरे दिन रोहित करीब 10 बजे घर से निकला. उसके जाते ही वंदना मुझसे चिपक गयी और बोली- पापा, आज की रात के लिये मैं न जाने कितनी रातों से बैचेनी से इंतजार कर रही थी।
“जाओ वंदना, तुम अपनी तैयारी करो और मैं अपना बेडरूम सजवाता हूं।”
फिर मैंने वंदना से उसके पैन्टी और ब्रा की साईज पूछी। वंदना ने बड़े ही सहजता से कहा- 80 साइज की ब्रा है और 85 साईज की पैन्टी है। मैं घर के बाहर आ गया और वंदना को गिफ्ट करने के लिये एक सुन्दर सोने का हार खरीदा, उसके साईज की पैन्टी-ब्रा लिया और साथ ही ढेर सारे फूल लेकर मैं घर पहुंचा। ब्रा, पैन्टी और फूल मैंने वंदना को दे दिया। फूल देखकर वंदना बहुत खुश हुयी। फिर मैंने वंदना को ब्यूटी-पार्लर जाने के लिये कहा।
बाहर जाते हुए वंदना बोली- पापा, आज आपको एक दुल्हन ही मिलेगी!
“और तुम्हें एक दूल्हा, जो तुम्हें आज रात एक कली से फूल और एक लड़की से औरत बनायेगा।”
वंदना मेरी बात को सुनकर शर्माते हुए नजरें झुका कर बाहर निकल गयी। इधर मैंने अपने बिस्तर पर सफेद चादर बिछाया और उस पर तीन चार प्रकार के फूल से ढक दिया। दो-तीन घंटे के बाद वंदना वापिस ब्यूटी पार्लर से आयी, उसके चेहरे पर चमक थी।
अभी शाम को सात बजे थे। हम दोनों के मन में ही जिस्मानी मिलन की एक उत्सुकता थी। इसलिये हम दोनों ने खाना खाया और खाना खाने के बाद मैंने वंदना से कहा कि वह दुल्हन की पोशाक पहनकर मेरे कमरे में मेरा इंतजार करे।
करीब साढ़े आठ बजे के बाद मैं वापिस आया और शेरवानी पहनकर मैंने भी एक दूल्हे के गेटअप लिया. और अपने कमरे के दरवाजे को हल्के से खोलते हुए अन्दर आया. दरवाजा बन्द करके अपने पलंग की ओर देखा, वंदना दुल्हन के वेश में अपने को सिकोड़ कर बैठी हुयी थी। कमरे की खुशबू आज ठीक वैसी ही थी जैसे मेरी सुहागरात के समय की थी।
मैं पलंग पर वंदना के पास बैठ गया और उसके हाथों पर अपने हाथ रख दिये। वंदना के लिये शायद इस तरह से मेरा उसके हाथ को छूने का पहला मौका था इसलिये उसने अपने आपको और समेट लिया। एक बार फिर मैंने उसके हाथ को पकड़ा एक बार वो फिर पीछे हुयी। मैंने उसका घूंघट उठाते हुए उसकी ठुड्डी को उठाया, पलकें अभी भी वंदना ने झुका रखी थी।
मैंने वंदना से कहा- वंदना तुम बहुत सुन्दर लग रही हो।
मेरा इतना बोलना था कि वंदना की नजरें मेरी तरफ उठी.
ठीक उसी समय मैंने वंदना को उस सोने के हार का सेट देते हुए कहा- इस खूबसूरत दुल्हन का गिफ्ट।
अब वंदना की नजर उस हार पर ही थी.
मैंने पूछा- कैसा लगा?
बोली- बहुत खूबसूरत।
इसके बाद मैं वंदना के सीने पर अपने सिर टिका कर उसके दिल की धड़कन सुनने लगा. उसका दिल बहुत ही तेज धड़क रहा था और सांसें भी काफी तेज चल रही थी। उसके बाद मैंने उसके सर से पल्लू हटाते हुए उसकी नथ उतारी और धीरे-धीरे उसके बदन से सारे गहने उतार कर किनारे रखकर वंदना को अपनी बाहों में भर लिया. वंदना ने भी मुझे कस कर अपनी बांहों से जकड़ लिया।
मैंने वंदना से पूछा- वंदना, तुम तैयार हो?
“हूम्म!” मेरी पुत्रवधू ने एक संक्षिप्त उत्तर दिया।
मैंने धीरे-धीरे वंदना को बिस्तर पर लेटाया और उसके सीने से साड़ी हटाते हुए उसके सीने को चूमते हुए पेटीकोट में फंसी साड़ी को हटाया और पेटीकोट का नाड़ा खोलकर अपना हाथ उसके अन्दर डालते हुए उसकी चूत पर फिराने लगा.
वंदना की चूत गीली हो चुकी थी। मैंने उसके कान को दांतों के बीच फंसाते हुए कहा- वंदना तुमने तो पानी छोड़ दिया।
वंदना बोली- आज सुबह से केवल आपके बारे में सोच रही थी। मैं कितना बर्दाश्त करती, जैसे ही आपने मुझे छुआ, मैं गीली हो गयी। प्लीज आप ऐसा करते रहिये, आपका इस तरह सहलाना मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है.
इतना कहकर वंदना ने अपने पैरों को सिकोड़ते हुए अपनी टांगों के बीच थोड़ा गैप बना दिया। वंदना की चूत गीली हुयी तो क्या हुआ, मेरे हाथ अभी भी उसके अनारदाने को मसल रहे थे और उंगली को अन्दर डालने का प्रयास कर रहे थे।
फिर मैंने उसके ब्लाउज के ऊपर से ही उसके खरबूजे को बारी-बारी मैं अपने मुंह में लेता और मसलता। फिर मैंने वंदना के ब्लाउज और ब्रा को उसके जिस्म से अलग किया और उसके छोटे-छोटे दानो पर अपनी जीभ चलाते हुए उसके खरबूजे को मसलता था और बीच-बीच में दानों को काट लेता था। वो सीईईई करके रह जाती थी। मैं उसकी नाभि उसके पेट पर जीभ फिराता।
मैं अभी भी यही कर रहा था कि वंदना बोली- पापा, चुनचुनाहट हो रही है, प्लीज कुछ करिये ना!
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बस इतना कहना था कि मैंने सबसे पहले अपने आपको नंगा किया और फिर अपनी बहू वंदना के बचे-खुचे कपड़े हटाकर उसको नंगी किया और उसकी टांगों के बीच आकर बैठ गया। बहू की चूत काफी चिकनी थी लेकिन मैं इस समय वंदना से कुछ पूछना नहीं चाहता था।
बस मैंने इतना किया कि दो तकिये लिये और वंदना की कमर के नीचे लगा कर उसकी कमर को अपनी कमर की ऊंचाई तक उठाया और उसके चूत के मुहाने को लंड से सहलाते हुए कहा- वंदना, आज थोड़ा तुम्हें दर्द, जलन होगा, तैयार हो ना?
“पापा, आप करो, जो भी होगा, मैं बर्दाश्त करूँगी।” मेरी बहू ने कहा.
बस इतना ही कहना था, मैं वंदना के ऊपर झुका, अपने लंड को पकड़कर वंदना की चूत में ताकत के साथ अन्दर डालने लगा. जैसे-जैसे वंदना की चूत मेरे लंड को अन्दर लेने के लिये जगह बना रही थी, वैसे-वैसे वंदना का चिल्लाना शुरू हो चुका था। ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
वो मुझे नोच खसोट रही थी और मुझे धक्का देकर अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी, पर मैं उसकी सभी बातों को अनसुना करते हुए लंड को धीरे-धीरे उसकी चूत के अन्दर डालता ही जा रहा था।
तभी वंदना की रूंधी हुयी आवाज आयी- पापा, रहने दो, बहुत दर्द हो रहा है। मैं बर्दाश्त नहीं कर पा रही हूं, मैं मर जाऊंगी, प्लीज छोड़ दो-प्लीज छोड़ दो।
लेकिन मैंने उसकी किसी बातों पर ध्यान नहीं दिया और लंड को पूरा चूत के अन्दर डाल दिया। उसकी सील टूट चुकी थी क्योंकि मेरा लंड चिपचिपाने लगा था। फिर मैंने रूक कर उसके आंसू को, उसके होंठों को, उसकी छोटे-छोटे निप्पल पर बारी-बारी जीभ चलाता।
कुछ ही देर के बाद वंदना ने अपनी कमर उठानी शुरू की और अपनी कमर को हिला-डुला कर लंड को सेट करते हुए बोली- पापा, एक बार फिर चुनचुनाहट हो रही है।
अब तक वंदना दो-तीन बार अपनी कमर उचका चुकी थी। मैं उसकी इच्छा को देखते हुए मैं धीरे-धीरे लंड को अन्दर बाहर करने लगा। अब उसकी चूत की सिकुड़न कम होने लगी और फैलाव आने लगा। जैसे-जैसे उसकी चूत में संकुचन में कमी और फैलाव में अधिकता होती जा रही थी, मेरी स्पीड भी बढ़ती जा रही थी।
उसके बाद रफ्तार ने जोर पकड़ा और वंदना की आवाज आने लगी- हाँ पापाजी, बहुत अच्छा लग रहा है, बस ऐसे ही कीजिए।
मेरी स्पीड बढ़ती जा रही थी। लंड और चूत के मिलन के थप-थप की आवाजों के गवाह मेरा कमरा बना जा रहा था। रोहित के मम्मी के जाने के कई साल बाद चूत चोदने को मिल रही थी, वो भी रोहित की नाकामी की वजह से!
लेकिन अब मैं थकने लगा था और सांस भी फूलने लगी थी इसलिये मैंने वंदना के ऊपर अपना वजन डाला और उसके खरबूजों को बारी-बारी चूसता, उसके होंठों को चूसता, उसके कान काटता, वंदना भी मेरा साथ दे रही थी। जब मैं अपने स्टेमिना पर काबू पा लेता तो फिर धकापेल शुरू हो जाता।
इस बीच दो बार मेरा लंड अच्छे से गीला हो चुका था, पर पता नहीं क्या बात थी कि लंड मुझसे धक्के पर धक्के लगवाये जा रहा था। जब-जब लगा कि अब मेरा माल निकलने वाला है, तब-तब लंड मुझे धोखा दे जाता, मुझे और कसरत करनी पड़ जाती।
खैर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती … मेरे लंड ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया। मुझे पता नहीं लगा कि कितना वीर्य निकला … लेकिन हुआ मजे का था। कई सालों से टट्टों में कैद था। मैं हाँफते काँपते अपनी बहू वंदना के नंगे बदन के ऊपर गिर गया और जब तक मेरे महाराज उस छेद से बाहर नहीं निकले, मैं तब तक वंदना के ऊपर ही रहा.
फिर मैं उसके बगल में आकर लेट गया। शरीर में थोड़ी ताकत आने के बाद मैंने वंदना को एक बार फिर से अपनी बांहों में कसकर जकड़ लिया, ताकि मुझे उसके गर्म जिस्म से गर्मी मिल सके। थोड़ी देर तक वो मुझसे चिपकी रही, लेकिन फिर वो कसमसाने लगी और अपने आपको मुझसे छुड़ाने की कोशिश करती रही. लेकिन वो जितना मुझसे अपने को छुड़ाती, उतना ही मैं वंदना को जकड़ लेता।
मेरी बहू कसमसाते हुए बोली- पापा जी, प्लीज अब छोड़ दीजिए ना!
“क्या हुआ? पसंद नहीं आ रहा है क्या?”
“नहीं यह बात नहीं है, लेकिन …”
“लेकिन क्या?”
“जी पेशाब आ रही है।”
बस इतना सुनना था कि मैंने वंदना को और जकड़ लिया।
“पापा, प्लीज छोड़ दीजिए … नहीं तो बिस्तर पर ही निकल जायेगी।”
मैंने वंदना को छोड़ दिया, वो चादर से अपने नंगे जिस्म को ढकने लगी, मैंने तुरन्त चादर पकड़ ली और बोला- इसे क्यों ओढ़ रही हो?
वो अपने पैरों को चिपका कर उछलते हुए बोली- शर्म आ रही है।
“अब क्या शर्माना … अब हम तुम पति-पत्नी भी हैं. और तुमको पेशाब करने जाना है तो नंगी ही जाओ!” कहकर मैंने चादर खींच ली।
वो चादर छोड़ कर लंगड़ाती हुए बाथरूम की तरफ भागी। भागते समय वंदना के कूल्हे ऊपर नीचे हो रहे थे।
काफी देर बाद वंदना पेशाब करके बाहर आयी तो मैंने पूछा- अन्दर देर क्यों लगा दी?
तो वो बोली- पापा, पेशाब करते समय मुझे जलन महसूस हुयी तो मैंने देखा तो पेशाब के साथ-साथ हल्का-हल्का खून भी आ रहा था.
वो अपनी ताजी चुदी चूत की तरफ इशारा करते हुए बोली- मैं बस इसे साफ कर रही थी।
अपनी बात खत्म करने के बाद वंदना मेरे पास आकर मेरे सीने में मुक्के बरसाते हुए बोली- पापा, आप बड़े वो हैं।
मैंने उसके हाथ पकड़कर चिपका लिया और बोला- अगर मैं बड़ा वो नहीं होता तो तुमको मजा नहीं आता।
मेरी बात सुनकर वो चुप हो गयी और फिर बोली- पापा, अन्दर अब भी बड़ी जलन हो रही है।
मुझे इसका अंदाजा पहले से ही था, मैंने क्रीम लाकर रखी हुई थी, उसे निकाली और उंगली में लेकर वंदना की चूत के अन्दर अच्छे से लगा दिया।
यह सब करने के बाद मैंने वंदना से पूछा- कैसा लगा बेटी?
“पापा बहुत अच्छा लगा, मैं जिस उम्मीद से आपके साथ आयी थी, वो पूरी हुयी। और आपने तो कमाल ही कर दिया. मैं आपको बताऊं … मेरा पानी दो बार निकल चुका था लेकिन आप तो मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे।”
“चलो अच्छा है. अब हमारी सुहागरात हो चुकी है, इसलिये आज के बाद जब भी तुम चाहोगी, मैं तुम्हें सुख दे दिया करूँगा।”
“थैक्यूं पापा।”
“अब ये बताओ कि सुहागरात के समय रोहित ने क्या किया था?”
“कुछ नहीं, कमरे में आने के तुरन्त बाद उसने जल्दी-जल्दी मेरे और अपने कपड़े उतारे और मुझे यहां वहां चूमने चाटने लगा, इससे पहले मैं कुछ समझ पाती, मुझे अपने नीचे कुछ गीला लगा, मेरा ध्यान जब तक वहां से हटता, तब तक रोहित बगल में लेटकर सो चुका था, मैं अपनी उंगलियों के बीच रोहित के पानी को मल रही थी और सोते हुए रोहित को देख रही थी, पूरी रात मेरी रोते रोते बीती।“
“चलो कोई बात नहीं, आज भी तुम्हारी पूरी रात रोते रोते ही बीतेगी लेकिन तुम्हें उसका सुखद एहसास होगा।”
“अच्छा जरा नीचे उतरकर कमरे की पूरी लाईट जला कर मेरे पास आओ।”
मेरी बहू लाईट जलाकर मेरे पास आयी, हम दोनों की नजर खून से सनी हुई चादर पर पड़ी तो वंदना ने शर्माकर अपनी नजरें झुका ली। मैं उसके पास खड़ा होकर उसकी पीठ को सहलाते हुए बोला- चादर पर यह खून बता रहा है कि तुम्हारी सील टूट गयी है।
तभी वंदना मेरे लंड की तरफ उंगली से इशारा करते हुए बोली- पापा जी, मेरा खून इस पर भी लग गया है।
“कोई बात नहीं।” कहकर मैं बाथरूम में घुसा और अपने लंड को साफ किया.
इधर वंदना ने भी पलंग का चादर बदल कर, उस चादर को लाकर बाल्टी में डालकर उसे गीला कर दिया। उसके बाद मैं और वंदना वापिस पलंग पर आकर बैठ गये। थोड़ी देर बाद मैंने वंदना को बिस्तर पर ही खड़े होने के लिये कहा. मेरी बात को मानते हुए वंदना बिस्तर पर खड़ी हो गयी। वंदना का जिस्म दूध जैसा था। जांघ के पास एक तिल था।
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मैं वंदना को लगातार घूरे जा रहा था, मुझे इस तरह घूरते देखकर बोली- पापा, आप मुझे इस तरह क्यों देख रहे है?
“कुछ खास नहीं, तुम्हारे दूध जैसे उजले जिस्म को देख रहा हूं। ऊपर वाले ने तुम्हारे जिस्म को बहुत ही फुरसत से ढाला है।”
“नहीं पापा, अभी अभी आपकी वजह से मेरा जिस्म खूबसूरत हुआ है, नहीं तो मुझे मेरा यह जिस्म बोझ ही लग रहा था।” वंदना के चेहरे पर सकून के साथ-साथ एक अलग सी खुशी थी।
एक बार फिर मैंने वंदना के हाथों को पकड़कर और उसकी नाभि के पास एक हल्का सा चुंबन दिया और बोला- मुझे माफ करना वंदना जो मेरे वजह से तुम्हें रोहित जैसा पति मिला।
“आप जैसा ससुर भी तो मिला जिसने मेरे सभी दुखों को एक बार में ही दूर कर दिया।” इतना कहते ही वंदना मेरी गोदी में बैठ गयी और एक बार फिर मेरे हाथ धीरे-धीरे उसकी चूत पर चलने लगे.
मैं बार-बार उसकी गर्दन को चूमता और कानों के चबा लेता या फिर जीभ से गीली करता। मेरे द्वारा उसकी चूत में इस तरह सहलाने के कारण वंदना को भी अपनी टांगों को फैलाने में मजबूर कर दिया। मेरे हाथ अभी तक वंदना के चूत को ऊपर ही ऊपर सहला रहे थे, वंदना के टांगों को फैलाने के कारण अब उंगली भी अन्दर जाने लगी।
वंदना ने मेरे दूसरे हाथ को पकड़ा और अपने चूची पर रख दी। अब मेरे दोनों हाथ व्यस्त हो चुके थे। एक हाथ चूत की सेवा कर रहा था तो दूसरा हाथ उसकी चूची की! इसके अलावा मेरे होंठ और दांत उसकी गर्दन और कान की सेवा कर रहे थे। वंदना ने भी मेरे हाथों को पकड़ रखा था।
कुछ देर बाद वंदना बोली- पापा, एक बार फिर खुजली शुरू हो चुकी है।
मैंने वंदना को लेटाया और लंड चूत के अन्दर पेवस्त कर दिया। हालाँकि इस बार भी थोड़ा ताकत लगानी पड़ी, पर पहले से अराम से मेरा लौड़ा अन्दर जा चुका था। वंदना ने अपनी टांगें और चौड़ी कर ली। मैं पोजिशन लेकर चूत चोद रहा था और वंदना का जिस्म हिल रहा था।
इस बार मैं वंदना को और मजा देना चाहता था, इसलिये मैंने अपने लंड को बाहर निकाला, वंदना की टांगें हवा में उठायी और फिर लंड को चूत के मुहाने में रख कर अन्दर डाला लेकिन इस पोजिशन से उसकी चूत थोड़ी और टाईट हो गयी और वंदना को एक बार फिर दर्द का अहसास हुआ।
इस पोजिशन की चुदाई से मुझे भी बहुत मजा आ रहा था लेकिन एक बार फिर मैं थकने लगा। इस बार मैंने नीचे होकर वंदना को अपने ऊपर ले लिया और लंड को वंदना की चूत के अन्दर पेल दिया। थोड़ी देर तक मैं अपनी कमर को उठा-उठाकर वंदना को चोद रहा था.
फिर वंदना खुद ही वो सीधी होकर उछालें मार रही थी। काफी देर हो चुकी थी और अब मेरा निकलने वाला था. इधर मेरी बहू मेरे लंड पर बैठ कर लगातार उछाले मारे जा रही थी, बीच-बीच में अपनी कमर को गोल-गोल घुमाते हुए मुझे चोद रही थी।
तभी वंदना चीखी- पापा, मेरा दूसरी बार निकलने वाला है!
“मुझे चोदती रहो वंदना बेटी … मेरा लंड भी पिचकारी छोड़ने वाला है।”
मेरे कहते ही दूसरे पल मेरी पिचकारी छुट गयी और साथ ही वंदना भी मेरे ऊपर धड़ाम से गिर पड़ी। फिर अपनी सांसों पर काबू पाने के बाद मुझसे अलग हुई।
“वंदना, इस बार भी मजा आया न?”
“हाँ पापा, आपने इस बार भी मेरी भूख को शांत कर दिया।”
थोड़ी देर तक तो हम दोनों के बीच खामोशी रही।
फिर कुछ देर बाद मैं बोला- वंदना!
“हाँ पापा?”
“सारी मर्यादा हम दोनों के बीच की टूट चुकी है।”
“हाँ पापा! लेकिन पापा, जो भी मर्यादा, सीमाएँ हैं वो हमारे और आपके जिस्म जब बिस्तर पर मिलेंगे तब ही टूटेंगी, बाकी कभी भी आपकी इस बहू बेटी से आपको कभी भी कोई शिकायत नहीं होगी।”
मुझे नींद आने लगी थी, मैंने ऊंघते हुए कहा- वंदना बेटी, मुझे नींद आ रही है।
“पापा, आप सो जाइए!”
मैंने करवट बदली और अपनी आंखें बन्द कर ली। वंदना ने भी तुरन्त करवट बदली और अपने चूतड़ों को मेरी जांघों के बीच फंसा कर मेरे हाथ को अपने मुलायम उरोज पर रख दिया। अभी मैंने अपनी आँखें सोने के लिये बन्द की थी, वो वंदना की गांड की गर्मी और उसके नर्म गर्म चूची की वजह से खुल गयी।
फिर भी मैंने अपनी आँखें सोने के लिये जबरदस्ती बन्द की, लेकिन अब आँखों से एक बार फिर नींद गायब हो गयी। किसी तरह मैंने थोड़ा वक्त बिताया लेकिन जब मैं हार गया तो खुद को वंदना से अलग किया और सीधा होकर लेट कर अपनी आँखें बन्द कर ली. वंदना के गर्म जिस्म का अहसास अभी भी मेरे दिमाग में चल रहा था।
थोड़ी देर बाद मुझे एक हलचल सी महसूस सी हुई, मैंने हल्की सी अपनी आँखें खोली, देखा कि वंदना उठकर बैठी, अपने बालों का जूड़ा बनाया, मुझे ऊपर से नीचे देखा. फिर उसकी नजर मेरे लंड पर जाकर ठहर गयी और खुद से बात करने लगी.
“हाय पापा, आपका लंड तो रोहित के लंड से दुगुना लम्बा और मोटा है, रोहित का लंड तो मेरे हथेली के अन्दर आकर गुम हो जाता है. पर आपका लंड है कि हथेली में समाता ही नहीं है। रोहित का लंड मेरी चूत को छूने से पहले झर जाता है और आपका लंड जब तक मेरी चूत को जब तक मसल नहीं देता तब तक छोड़ता ही नहीं है।“
इतना कहने के साथ ही साथ दो-तीन बार उसने मेरे लंड को चूमा और सुपारे पर अपनी जीभ चलाने लगी. मेरी नजर अभी भी वंदना की हरकतों पर थी, उसने अपने अंगूठे को सुपारे पर फिराया और अपनी नाक के पास ले जाकर सूंघने के बाद चाटने लगी और फिर चटकारे लेते हुए बोली- पापा थैंक्यू, मुझे अपने निर्णय पर पछतावा नहीं है।
इसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ चल दी। मैं अभी भी अधखुली आँखों से वंदना की हर हरकत पर ध्यान रख रहा था। कोई दो-तीन मिनट बाद वंदना वापिस पलंग पर आकर बैठ गयी और मेरे लंड को निहारने लगी और साथ ही अपनी चूत अपर हाथ फेर रही थी।
फिर वो मेरे लंड पर झुकी, पर एक बार उसने मुझे फिर देखा, मैंने तुरन्त ही आँखें बन्द कर ली। शायद वंदना इस बात को देखना चाह रही थी कि मैं सो रहा हूं या जाग रहा हूं। मैं अपनी आँखों को मूंदे हुए था पर दिमाग को खुला रखाकर वंदना की हिलने डुलने को समझ रहा था.
थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि एक बार वंदना का पूरा ध्यान मेरे लंड पर है। मैंने फिर अपनी आंख को थोड़ा खोला और फिर से देखने लगा. वंदना अभी भी मेरे लंड पर झुकी हुई थी। फिर एकाएक मुझे लगा कि वंदना के होंठों का स्पर्श मेरे लंड के सुपारे पर है, शायद उसने मेरे लंड को चूमा था।
एक बार फिर वंदना मेरे पास से हटकर शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने जिस्म को निहारने लगी, अपनी दोनों चूचियों को बारी-बारी से मसलते हुए अपने हाथ को अपनी चूत की तरफ ले जाकर, फिर अपनी टांगों को फैलाकर चूत को जोर-जोर से रगड़ते हुए लम्बी-लम्बी सांसें ले रही थी।
चूत को अच्छे से मलने के बाद वो अपनी दोनों हथेलियों को चाटने लगी. इधर अपनी बहू की कामुकता भरी हरकतों को देखकर मेरा लंड हिलौरें मारते हुए टनटना चुका था. वंदना ने जब मेरा लंड चूमा था, तभी से वो खड़ा था लेकिन अब चमड़ी को फाड़कर सुपारा बाहर आ चुका था और 90 डिग्री पर सेट हो गया।
वंदना की नजर मेरे लंड पर पड़ी. तने लंड को देखकर समीप आकर उसने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में कैद किया और सुपारे पर अपनी जीभ चलाते हुए बोली- पापा, आप भले ही सो रहे हों लेकिन आपका लंड मानने का नाम ही नहीं ले रहा है। अब आपको जगाकर परेशान थोड़े ही करूँगी. पर आपके लंड को तब तक प्यार करूँगी, जब तक इसका मन होगा.
कहकर वो मेरे लंड को चूसने लगी और मेरे टट्टों के साथ खेलने लगी. बीच-बीच में वो मुझे देख लेती और फिर अपने काम में जुट जाती. वंदना के लगातार ऐसा करने से मेरे जिस्म में अकड़न सी शुरू हो चुकी थी, मेरे चूतड़ आपस में मिल चुके थे.
वंदना मस्त होकर अपने ससुर के लंड को चूसे जा रही थी. उसको मेरे जिस्म में होने वाले हलचल की कोई खबर न थी. बस इसी एक पल का मैंने फायदा उठाते हुए अपने जिस्म की अकड़न को खत्म किया, इसके परिणाम स्वरूप मेरा वीर्य वंदना के मुंह के अन्दर छूट गया.
अचानक मेरे लंड से निकलते हुए वीर्य की वजह से वंदना हड़बड़ा गयी और मेरे लंड को मुंह से निकाल दिया. मेरे वीर्य से उसका पूरा चेहरा गीला हो चुका था पर वंदना ने मेरे लंड को छोड़ा नहीं वो मेरे सुपारे को चाटती रही.
उसके बाद एक बार फिर शीशे के सामने खड़े होकर चेहरे पर पड़ी मेरी मलाई से अच्छे से अपने चेहरे को मला, फिर अपनी चूची में लगाया और फिर चूत पर मलने के बाद मेरे पास आकर बैठ गयी. मेरी बहू मेरे बालों को सहलाते हुए बहुत ही धीमी आवाज में बोली- पापा, आप बहुत अच्छे हो। आज आपने मुझे कली से फूल बना दिया. पर …
अब मेरे कान खड़े हो गये, वंदना क्या कहना चाह रही थी?
“पर पापा … मैं क्या कहूं, कैसे बोलूं, मुझे अच्छे से प्यार कीजिए, मैं आपके लंड को खुल कर चूसना चाहती हूं लेकिन आपके जागते हुए … आपको मजा देते हुए!”
“हम्म!” मैं अपने मन में ही बोल पड़ा- वंदना मेरी बहू, मैं भी तुम्हारी चूत को चाटना चाहता था तुमसे अपना लंड चुसवाना चाहता था, पर तुम बुरा न मान जाओ, इसलिये नहीं किया, लेकिन कल तुम्हें खूब मजा दूंगा।
फिर मैंने करवट बदल लिया। वंदना भी मुझसे चिपक गयी। उसके जिस्म की गर्मी को बर्दाश्त करते हुए मैं सो गया। सुबह वंदना ने मुझे जगाया, उसने पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी। पीली छोटी बिंदी, पीली लिपस्टिक, पीली चूड़ियाँ बहुत सुंदर दिख रही थी।
उसके हाथ में चाय का कप था- पापा उठिये, चाय!
मैंने उठकर चाय उसके हाथ से ली, वंदना तुरन्त ही झुककर मेरे पैर छुये, मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया- दूधो नहाओ, पूतो फलो।
मुसकुराते हुए बोली- अब मैं पूतों से फल जाऊंगी क्योंकि अब आपके दूध का आशीर्वाद मिल गया है।
उसकी बात काटते हुए बोला- रोहित का फोन आया था?
“हां पापा-रात तक आ जायेंगे। पापा, आप नहा धो लो, मैं तब तक आपके लिये नाश्ता बना देती हूं!” कहकर वो उठी और रसोई की तरफ चल दी।
वंदना के सुबह के व्यवहार को देखकर मैं रात की बात सोचने लगा कि किस तरह वंदना ने मुझे और मेरे लंड को संतुष्ट किया. अभी मैं सोच ही रहा था कि वंदना ने मुझे झकझोरा और फ्रेश होने के लिये बोली. मैंने वंदना को ऊपर से नीचे तक देखा, हुस्न भी उसके सामने इस समय फीका लगता.
एक बार फिर वंदना ने मुझे झकझोरा और बोली- क्या सोच रहे हैं पापा?
मैंने अपनी गर्दन न में हिलायी और फ्रेश होने के लिये बाथरूम में घुस गया। नहाने धोने के बाद तौलिया ही लपेटे बाहर आया, वंदना अभी भी रसोई में ही थी, उसने अपने साड़ी के पल्लू को कमर में खोंस रखा था. अपनी जवान बहू की चिकनी कमर देख कर मेरे और मेरे लंड महराज को नशा सा छाने लगा। वंदना की पीठ मेरी तरफ थी और वो अपने काम में मशगूल थी। मैं दबे पांव रसोई के अन्दर गया और वंदना की कमर को सहलाते हुए उसको पीछे से कस कर पकड़ लिया।
बड़ी सहजता के साथ बोली- पापा जी, नहा चुके है आप?
“हां नहा तो चुका हूं!” मैं उसकी चूची को उसके ब्लाउज के ऊपर से दबाते हुए बोला.
“तो फिर मैं नाश्ता लगा देती हूं।”
मैंने वंदना को गोद में उठाया और अपने रूम में लाकर पलंग पर लिटाते हुए कहा- नाश्ता कहां भागा जा रहा है, बस मेरी प्यारी गुड़िया एक बार मुझे प्यार कर ले तो नाश्ता भी जमकर खा लूंगा.
“और हां …” उसके बगल में लेटते हुए कहा- अब तुम ही मुझे प्यार करोगी, मैं कुछ भी नहीं करूंगा।
थोड़ा सा झिझकने का नाटक करते हुए मेरी पुत्रवधू बोली- पापा, मैं?
“हाँ तुम!” मैंने भी अपनी बातों में जोर देते हुए कहा- पर एक शर्त और भी है, मुझे मजा आना चाहिये।
“पापा मैं कैसे करूंगी?”
“क्यों, क्या हुआ? आजकल की लड़की हो, तुम्हें तो पता होना चाहिए कि मर्द को कैसे अपने वश में किया जाता है।”
थोड़ी देर वो मुझे ऐसे ही देखती रही। मैंने वंदना को अपने ऊपर खींचा और उसके चेहरे को ढक रहे बालों को एक तरफ करते हुए कहा- वंदना, यह मत सोचो कि मैं क्या सोचूंगा। बस तुम मुझे ऐसा प्यार करो कि मैं तुम्हारा गुलाम हो जाऊं. ये कहानी आप हमारी वासना डॉट नेट पर पढ़ रहे है.
इतना कहने के साथ ही मैंने उसके होंठों को चूमा और फिर उसके उत्साह को बढ़ाने के लिये बोला- वंदना, एक बात कहूँ, तुम इस पीली साड़ी और मेकअप में बहुत ही सेक्सी लग रही हो। एक बार फिर वंदना ने शर्माने का नाटक किया लेकिन कुछ ही देर बाद वो मेरे बालो को सहलाते हुए मेरे होंठ पर एक बहुत ही छोटी लेकिन मिठास से भरी हुई पप्पी दी।
दो-तीन बार तक वंदना ने ऐसा ही किया। मैंने चुपचाप अपने हाथ पैर सब खोल दिये थे। अभी तक वंदना मेरे होंठों को पप्पी दे रही थी पर अब चूसना शुरू कर दिया। फिर अपनी जीभ के मेरे मुंह के अन्दर डालती, मेरे होंठों पर चलाती और अगर मैं भी अपनी जीभ बाहर निकालता तो मेरे जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसती।
अब उसके ऊपर कामवासना हावी होने लगी थी। वंदना ने मेरे दोनों गालों को कसकर पकड़ा और मेरे होंठों को जोर-जोर से चूसने लगी। फिर नीचे की तरफ खिसककर मेरे निप्पल को चूसती और काटती और इससे भी मन नहीं भरता तो अपनी उंगलियों के बीच में फंसाकर मेरे निप्पल को जोर-जोर से मसलती।
वंदना की आँखें बता रही थी कि उसे क्या चाहिये। फिर वो मेरी जाँघों के पर बैठ गयी और अपनी साड़ी का पल्ले को हटाकर अपने ब्लाउज के हुक को खोलकर ब्लाउज को अपने जिस्म से अलग किया। अरे वाह … उसने मैचिंग ब्रा भी पहनी हुई थी.
जल्दी से उसने अपनी ब्रा को अपने जिस्म से अलग किया और अपने थन को उसने आजाद कर दिया और मेरे निप्पल को अपने निप्पल से चूमाचाटी करवाने लगी। फिर अपनी दोनों चूचियों को हाथ से पकड़कर मेरी छाती पर खासतौर से निप्पल पर रगड़ने लगी और फिर बारी-बारी से अपनी चूची मेरे मुंह में भर देती और मैं उसे चूसता।
थोड़ी देर तक बहू ऐसे ही करती रही और फिर एक बार सीधी बैठी और इस बार अपनी साड़ी को अपने से अलग किया तो मुझे उसका मैचिंग पेटीकोट नजर आया। वंदना अब और नीचे मेरी जांघ की तरफ आ गयी और झुककर मेरे पेट पर जीभ चलाते हुए मेरे लंड को पकड़कर मुठ मारने लगी।
मैं उसका हौसला बढ़ाते हुए बोला- वंदना, शाबाश … बहुत अच्छे, मजा आ रहा है। बस ऐसे ही प्यार करती रहो, मत सोचो तुम अपने ससुर के साथ हो, बस मुझे अपना मर्द मानो, शर्म छोड़कर मजा लो, मैं चाह रहा था, झिझक में मजा खत्म न हो जाये।
मेरे बात सुनकर वंदना ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुराती हुई मेरी जाँघों पर बारी-बारी जीभ फिराने लगी. साथ ही सुपारे पर अपनी उंगली रगड़ रही थी।
“शाबाश शाबाश … बहुत मजा आ रहा है। ये हुई ना बात नयी पीढ़ी वाली बात … और आगे बढ़ो, तुम बहुत मजा दे रही हो।” मैं सिसकारी भी ले रहा था।
शायद मेरे हौसले बढ़ाने वाले बोल को वो समझ गयी. उसने पहले तो पूरे लंड पर जीभ चलाई और फिर धीरे से लंड को मुंह के अन्दर ले लिया। अब वो मेरे लंड को आईसक्रीम की तरह चूस रही थी, सुपारा चाट रही थी। वो मेरे अंडों को कभी दबाती तो कभी मुंह में भर लेती।
वंदना ने इस बीच अपनी गांड को मेरी तरफ कर दिया था जिससे मैं वंदना के चूतड़ को सहला कर और चूत के अन्दर उंगली करके मस्त हो रहा था। वंदना मेरे लंड को चूसते हुए मेरे अंडकोष को बड़े ही प्यार के साथ सहला रही थी और साथ ही अपने पिछवाड़े को मेरी तरफ लाती जा रही थी।
अब मेरे हाथ असानी से उसके कूल्हे, गांड का छेद, उसकी चूत की फांकों में हरकत कर रहे थे। ऐसा करते हुए वो 69 की पोजिशन में आ गयी। उसकी गुलाबी चूत और उसकी कली अब मेरे सामने थी। बस अब मेरे दोनों हाथों में लडडू थे।
मैं उसकी फांकों के अच्छे से मसल रहा था और वंदना भी अपना पिछवाड़ा हिला रही थी। थोड़ी देर तक उसकी चूत से मैं इसी तरह खेलता रहा, फिर उसकी कमर को पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और उसकी हल्की गुलाबी पंखुड़ियो के बीच मेरी लपलपाती हुई जीभ को लगा दिया.
जीभ लगने का इंतजार जैसे वंदना कर रही हो, तुरन्त ही उसने मुड़कर मुझे देखा और फिर मुस्कुराते हुए अपने काम में लग गयी। मेरी जीभ को उसकी चूत का लसलसा कसैला और नमकीन सा स्वाद लगा। हम दोनों के यौनांग पानी छोड़ने लगे थे। वंदना मेरे सुपारे को चटखारे ले लेकर चाट रही थी और अंडों से खेल रही थी.
मैं भी उसकी चूत के नमकीन और कसैला पानी के स्वाद का अनुभव कर रहा था. मैं उसके कूल्हों के साथ खेलते हुए उसकी गांड में उंगली फिरा रहा था। साथ ही जब मैं चूत की फांकों पर दांत रगड़ने लगता तो सी-सी करती हुई वंदना चूत को बचाने का प्रयास करती.
जब सफल नहीं हो पाती तो वो भी मेरे सुपारे को काट लेती और मुझे हारकर दांत रगड़ना बन्द करना पड़ता। काफी देर तक हम दोनों के बीच ऐसा चलता रहा. पर अब मेरा लंड उसकी चूत के अन्दर जाने के लिये बेताब होने लगा. शायद वंदना की चूत को भी लंड अपने अन्दर लेने की चाहत होने लगी होगी.
इसलिये वो मेरे ऊपर से हटी और मेरे लंड पर आकर बैठ गयी. लेकिन उसके लिये मुश्किल यह थी कि वो लंड को चूत के अन्दर ले नहीं पा रही थी, वो लंड को पकड़ कर जब भी अन्दर डालने के जोर लगाती, लंड उसको चिढ़ाते हुए इधर-उधर फिसल जाता.
वो बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखने लगी. वंदना को ज्यादा न तड़पाते हुए मैंने लंड को पकड़कर उसकी चूत के मुहाने पर रगड़ते हुए सेट करके उसे आराम-आराम से लंड पर दवाब बनाने के लिये बोला. वंदना ने ऐसा ही किया और अब फिर लंड की क्या मजाल जो चूत की गुफा में जाने से बच जाये। वंदना धीरे-धीरे उछलने लगी और फिर उसकी स्पीड बढ़ती गयी, उसके चूचे भी उसके साथ-साथ उछाले भर रहे थे। जितना वंदना उछाल भर रही थी, मेरे लंड की खुजली उतनी बढ़ती जा रही थी। तभी मुझे लगा कि मेरा वीर्य अब निकलने वाला है।
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मैंने वंदना से कहा- मां कब बनना चाहती हो?
मेरी यह बात सुनकर वो रूक गयी- क्या पापा?
“मां कब बनना चाहती हो?”
“अरे पापा, अभी नहीं, अभी तो मुझे आपके साथ और आपके लंड के साथ खेलना है, फिर मां बनना है।”
“तब ठीक है.”
मैंने उसकी बांहों को पकड़ते हुए उसे अपने नीचे लिया और 8-10 धक्के मारने के बाद मैंने उसकी चूत के ऊपर ही अपना सारा वीर्य छोड़ दिया और बगल में आकर लेट गया। वंदना अपनी चूत पर पड़े हुए मेरे वीर्य को अपने हाथों से पौंछने लगी और उंगलियों के बीच फंसे रेशे को देखती.
फिर वो उठी और शीशे के सामने खड़े होकर अपनी चूत देखती और अपनी उंगलियों को देखती। फिर उसने अपनी पैन्टी उठायी. शायद मुझे दिखाने के लिये अपनी चूत को साफ करने लगी. मैं भी कुछ नहीं बोला, मैं एक बारगी खुलकर नहीं आना चाहता था. उसके बाद वंदना ने उसी पैन्टी से मेरे लंड को साफ किया और फिर पेटीकोट ब्लाउज साड़ी पहनकर अपनी ब्रा-पैन्टी उठाकर बाथरूम के अन्दर चली गयी।