Pahli Chudai Sukh
मैं एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ाती हूँ। उसका एक बड़ा कारण है कि एक तो स्कूल कम समय के लिये लगता है और इसमें छुट्टियाँ खूब मिलती हैं। बी एड के बाद मैं तब से इसी टीचर की जॉब में हूँ। हाँ बड़े शहर में रहने के कारण मेरे घर पर बहुत से जान पहचान वाले आकर ठहर जाते हैं खास कर मेरे अपने गांव के लोग। Pahli Chudai Sukh
इससे उनका होटल में ठहरने का खर्चा, खाने पीने का खर्चा भी बच जाता है। वो लोग यह खर्चा मेरे घर में फ़ल सब्जी लाने में व्यय करते हैं। एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग में मेरे पास दो कमरो का सेट है। जैसे कि खाली घर भूतों का डेरा होता है वैसे ही खाली दिमाग भी शैतान का घर होता है।
बस जब घर में मैं अकेली होती हूँ तो कम्प्यूटर में मुझे सेक्स साईट देखना अच्छा लगता है। उसमें कई सेक्सी क्लिप होते है चुदाई के, शीमेल्स के क्लिप… लेस्बियन के क्लिप… कितना समय कट जाता है मालूम ही नहीं पड़ता है। कभी कभी तो रात के बारह तक बज जाते हैं।
फिर दिलकश कहानियाँ… लगता है मेरा दिल किसी ने बाहर निकाल कर रख दिया हो। इन दिनों मैं एक मोटी मोमबती ले आई थी। बड़े जतन से मैंने उसे चाकू से काट कर उसका अग्र भाग सुपारे की तरह से गोल बना दिया था। फिर उस पर कन्डोम चढ़ा कर मैं बहुत उत्तेजित होने पर अपनी चूत में पिरो लेती थी।
पहले तो बहुत कठोर लगता था। पर धीरे धीरे उसने मेरी चूत के पट खोल दिये थे। मेरी चूत की झिल्ली इन्हीं सभी कारनामों की भेंट चढ़ गई थी। फिर मैं कभी कभी उसका इस्तेमाल अपनी गाण्ड के छेद पर भी कर लेती थी। मैं तेल लगा कर उससे अपनी गाण्ड भी मार लिया करती थी।
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फिर एक दिन मैं बहुत मोटी मोमबत्ती भी ले आई। वो भी मुझे अब तो भली लगने लगी थी। पर मुझे अधिकतर इन कामों में अधिक आनन्द नहीं आता था। बस पत्थर की तरह से मुझे चोट भी लग जाती थी। उन्हीं दिनों मेरे गांव से मेरे पिता के मित्र का लड़का अनुग्रह किसी इन्टरव्यू के सिलसिले में आया।
उसकी पहले तो लिखित परीक्षा थी… फिर इन्टरव्यू था और फिर ग्रुप डिस्कशन था। फिर उसके अगले ही दिन चयनित अभ्यर्थियों की सूची लगने वाली थी। मुझे याद है वो वर्षा के दिन थे… क्योंकि मुझे अनुग्रह को कार से छोड़ने जाना पड़ता था। गाड़ी में पेट्रोल आदि वो ही भरवा देता था।
उसकी लिखित परीक्षा हो गई थी। दो दिनों के बाद उसका एक इन्टरव्यू था। जैसे ही वो घर आया था वो पूरा भीगा हुआ था। जोर की बरसात चल रही थी। मैं बस स्नान करके बाहर आई ही थी कि वो भी आ गया। मैंने तो अपनी आदत के आनुसार एक बड़ा सा तौलिया शरीर पर डाल लिया था, पर आधे मम्मे छिपाने में असफ़ल थी। नीचे मेरी गोरी गोरी जांघें चमक रही थी।
इन सब बातों से बेखबर मैंने अनुग्रह से कहा- नहा लो ! चलो… फिर कपड़े भी बदल लेना…
पर वो तो आँखें फ़ाड़े मुझे घूरने में लगा था। मुझे भी अपनी हालत का एकाएक ध्यान हो आया और मैं संकुचा गई और शरमा कर जल्दी से दूसरे कमरे में चली गई। मुझे अपनी हालत पर बहुत शर्म आई और मेरे दिल में एक गुदगुदी सी उठ गई।
पर वास्तव में यह एक बड़ी लापरवाही थी जिसका असर ये था कि अनुग्रह का मुझे देखने का नजरिया बदल गया था। मैंने जल्दी से अपना काला पाजामा और एक ढीला ढाला सा टॉप पहन लिया और गरम-गरम चाय बना लाई। वो नहा धो कर कपड़े बदल रहा था। मैंने किसी जवान मर्द को शायद पहली बार वास्तव में चड्डी में देखा था।
उसके चड्डी के भीतर लण्ड का उभार… उसकी गीली चड्डी में से उसके सख्त उभरे हुये और कसे हुये चूतड़ और उसकी गहराई… मेरा दिल तेजी से धड़क उठा। मैं 24 वर्ष की कुँवारी लड़की… और अनुग्रह भी शायद इतनी ही उम्र का कुँवारा लड़का… जाने क्या सोच कर एक मीठी सी टीस दिल में उठ गई। दिल में गुदगुदी सी उठने लगी।
अनुग्रह ने अपना पाजामा पहना और आकर चाय पीने के लिये सोफ़े पर बैठ गया। पता नहीं उसे देख कर मुझे अभी क्यू बहुत शर्म आ रही थी। दिल में कुछ कुछ होने लगा था। मैं हिम्मत करके वहीं उसके पास बैठी रही। वो अपने लिखित परीक्षा के बारे में बताता रहा। फिर एकाएक उसके सुर बदल गये…
वो बोला- मैंने आपको जाने कितने वर्षों के बाद देखा है… जब आप छोटी थी… मैं भी…
“जी हाँ ! आप भी छोटे थे… पर अब तो आप बड़े हो गये हो…”
“आप भी तो इतनी लम्बी और सुन्दर सी… मेरा मतलब है… बड़ी हो गई हैं।”
मैं उसकी बातों से शरमा रही थी। तभी उसका हाथ धीरे से बढ़ा और मेरे हाथ से टकरा गया। मुझ पर तो जैसे हजारों बिजलियाँ टूट पड़ी। मैं तो जैसे पत्थर की बुत सी हो गई थी। मैं पूरी कांप उठी। उसने हिम्मत करते हुये मेरे हाथ पर अपना हाथ जमा दिया।
“अनुग्रह जी, आप यह क्या कर रहे हैं? मेरे हाथ को तो छोड़…”
“बहुत मुलायम है जी वंदना जी… जी करता है कि…”
“बस… बस… छोड़िये ना मेरा हाथ… हाय राम कोई देख लेगा…”
अनुग्रह ने मुस्कराते हुये मेरा हाथ छोड़ दिया।
अरे उसने तो हाथ छोड़ दिया- वो मेरा मतलब… वो नहीं था…
मेरी हिचकी सी बंध गई थी। उसने मुझे बताया कि वो लौटते समय होटल से खाना पैक करवा कर ले आया था। बस गर्म करना है।
“ओह्ह्ह ! मुझे तो बहुत आराम हो गया… खाने बनाने से आज छुट्टी मिली।”
शाम गहराने लगी थी, बादल घने छाये हुये थे… लग रहा था कि रात हो गई है। बादल गरज रहे थे… बिजली भी चमक रही थी… लग रहा था कि जैसे मेरे ऊपर ही गिर जायेगी। पर समय कुछ खास नहीं हुआ था। कुछ देर बाद मैंने और अनुग्रह ने भोजन को गर्म करके खा लिया।
मुझे लगा कि लकी की नजरें तो आज मेरे काले पाजामे पर ही थी। मेरे झुकने पर मेरी गाण्ड की मोहक गोलाइयों का जैसे वो आनन्द ले रहा था। मेरी उभरी हुई छातियों को भी वो आज ललचाई नजरों से घूर रहा था। मेरे मन में एक हूक सी उठ गई।
मुझे लगा कि मैं जवानी के बोझ से लदी हुई झुकी जा रही हूँ… मर्दों की निगाहों के द्वारा जैसे मेरा बलात्कार हो रहा हो। मैंने अपने कमरे में चली आई। बादल गरजने और जोर से बिजली तड़कने से मुझे अन्जाने में ही एक ख्याल आया… मन मैला हो रहा था, एक जवान लड़के को देख कर मेरा मन डोलने लगा था।
“अनुग्रह भैया… यहीं आ जाओ… देखो ना कितनी बिजली कड़क रही है। कहीं गिर गई तो?”
“अरे छोड़ो ना दीदी… ये तो आजकल रोज ही गरजते-बरसते हैं।”
ठण्डी हवा का झोंका, पानी की हल्की फ़ुहारें… आज तो मन को डांवाडोल कर रही थी। मन में एक अजीब सी गुदगुदी लगने लगी थी। अनुग्रह भी मेरे पास खिड़की के पास आ गया। बाहर सूनी सड़क… स्ट्रीटलाईट अन्धेरे को भेदने में असफ़ल लग रही थी।
कोई इक्का दुक्का राहगीर घर पहुँचने की जल्दी में थे। तभी जोर की बिजली कड़की फिर जोर से बादल गर्जन की धड़ाक से आवाज आई। मैं सिहर उठी और अन्जाने में ही अनुग्रह से लिपट गई,”आईईईईईई… उफ़्फ़ भैया…”
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अनुग्रह ने मुझे कस कर थाम लिया, “अरे बस बस भई… अकेले में क्या करती होगी…?” वो हंसा।
फिर शरारत से उसने मेरे गालों पर गुदगुदी की। तभी मुहल्ले की बत्ती गुल हो गई। मैं तो और भी उससे चिपक सी गई। गुप्प अंधेरा… हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
“भैया मत जाना… यहीं रहना।”
अनुग्रह ने शरारत की… नहीं शायद शरारत नहीं थी… उसने जान करके कुछ गड़बड़ की। उसका हाथ मेरे से लिपट गया और मेरे चूतड़ के एक गोले पर उसने प्यार से हाथ घुमा दिया। मेरे सारे तन में एक गुलाबी सी लहर दौड़ गई। मेरा तन को अब तक किसी मर्द के हाथ ने नहीं छुआ था।
ठण्डी हवाओं का झोंका मन को उद्वेलित कर रहा था। मैं उसके तन से लिपटी हुई… एक विचित्र सा आनन्द अनुभव करने लगी थी। अचानक मोटी मोटी बून्दों की बरसात शुरू हो गई। बून्दें मेरे शरीर पर अंगारे की तरह लग रही थी। अनुग्रह ने मुझे दो कदम पीछे ले कर अन्दर कर लिया।
मैंने अन्जानी चाह से अनुग्रह को देखा… नजरें चार हुई… ना जाने नजरों ने क्या कहा और क्या समझा… विक्की ने मेरी कमर को कस लिया और मेरे चेहरे पर झुक गया। मैं बेबस सी, मूढ़ सी उसे देखती रह गई। उसके होंठ मेरे होंठों से चिपकने लगे। मेरे नीचे के होंठ को उसने धीरे से अपने मुख में ले लिया।
मैं तो जाने किस जहाँ में खोने सी लगी। मेरी जीभ से उसकी जीभ टकरा गई। उसने प्यार से मेरे बालों पर हाथ फ़ेरा… मेरी आँखें बन्द होने लगी… शरीर कांपता हुआ उसके बस में होता जा रहा था। मेरे उभरे हुये मम्मे उसकी छाती से दबने लगे।
उसने अपनी छाती से मेरी छाती को रगड़ा मार दिया, मेरे तन में मीठी सी चिन्गारी सुलग उठी। उसका एक हाथ अब मेरे वक्ष पर आ गया था और फिर उसका एक हल्का सा दबाव ! मेरी तो जैसे जान ही निकल गई।
“अनुग्रह… अह्ह्ह्ह…!”
“दीदी, यह बरसात और ये ठण्डी हवायें… कितना सुहाना मौसम हो गया है ना…”
और फिर उसके लण्ड की गुदगुदी भरी चुभन नीचे मेरी चूत के आस-पास होने लगी। उसका लण्ड सख्त हो चुका था। यह गड़ता हुआ लण्ड मोमबत्ती से बिल्कुल अलग था। नर्म सा… कड़क सा… मधुर स्पर्श देता हुआ। मैं अपनी चूत उसके लण्ड से और चिपकाने लगी।
उसके लण्ड का उभार अब मुझे जोर से चुभ रहा था। तभी हवा के एक झोंके के साथ वर्षा की एक फ़ुहार हम पर पड़ीं। मैंने जल्दी से मुड़ कर दरवाजा बन्द ही कर दिया। ओह्ह ! यह क्या? मेरे घूमते ही अनुग्रह मेरी पीठ से चिपक गया और अपने दोनों हाथ मेरे मम्मों पर रख दिये।
मैंने नीचे मम्मों को देखा… मेरे दोनों कबूतरों को जो उसके हाथों की गिरफ़्त में थे। उसने एक झटके में मुझे अपने से चिपका लिया और अपना बलिष्ठ लण्ड मेरे चूतड़ों की दरार में घुमाने लगा। मैंने अपनी दोनों टांगों को खोल कर उसे अपना लण्ड ठीक से घुसाने में मदद की।
उफ़्फ़ ! ये तो मोमबत्ती जैसा बिल्कुल भी नहीं लगा। कैसा नरम-सख्त सा मेरी गाण्ड के छेद से सटा हुआ… गुदगुदा रहा था। मैंने सारे आनन्द को अपने में समेटे हुये अपना चेहरा घुमा कर ऊपर दिया और अपने होंठ खोल दिये।
अनुग्रह ने बहुत सम्हाल कर मेरे होंठों को फिर से पीना शुरू कर दिया। इन सारे अहसास को… चुभन को… मम्मों को दबाने से लेकर चुम्बन तक के अहसास को महसूस करते करते मेरी चूत से पानी की दो बून्दें रिस कर निकल गई। मेरी चूत में एक मीठेपन की कसक भरने लगी।
“दीदी… प्लीज मेरा लण्ड पकड़ लो ना… प्लीज !”
मैंने अपनी आँखें जैसे सुप्तावस्था से खोली, मुझे और क्या चाहिये था। मैंने अपना हाथ नीचे बढ़ाते हुये अपने दिल की इच्छा भी पूरी की। उसका लण्ड पजामे के ऊपर से पकड़ लिया।
“भैया ! बहुत अच्छा है… मोटा है… लम्बा है… ओह्ह्ह्ह्ह !”
उसने अपना पजामा नीचे सरका दिया तो वो नीचे गिर पड़ा। फिर उसने अपनी छोटी सी अण्डरवियर भी नीचे खिसका दी। उसका नंगा लण्ड तो बिल्कुल मोमबत्ती जैसा नहीं था राम… !! यह तो बहुत ही गुदगुदा… कड़क… और टोपे पर गीला सा था। मेरी चूत लपलपा उठी… मोमबती लेते हुये बहुत समय हो गया था अब असली लण्ड की बारी थी। उसने मेरे पाजामे का नाड़ा खींचा और वो झम से नीचे मेरे पांवों पर गिर पड़ा।
“दीदी चलो, एक बात कहूँ?”
“क्या…?”
“सुहागरात ऐसे ही मनाते हैं ! है ना…?”
“नहीं… वो तो बिस्तर पर घूंघट डाले दुल्हन की चुदाई होती है।”
तो दीदी, दुल्हन बन जाओ ना… मैं दूल्हा… फिर अपन दोनों सुहागरात मनायें?”
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मैंने उसे देखा… वो तो मुझे जैसे चोदने पर उतारू था। मेरे दिल में एक गुदगुदी सी हुई, दुल्हन बन कर चुदने की इच्छा… मैं बिस्तर पर जा कर बैठ गई और अपनी चुन्नी सर पर दुल्हनिया की तरह डाल ली। वो मेरे पास दूल्हे की तरह से आया और धीरे से मेरी चुन्नी वाला घूँघट ऊपर किया। मैंने नीचे देखते हुये थरथराते हुये होंठों को ऊपर कर दिया।
उसने अपने अधर एक बार फ़िर मेरे अधरों से लगा दिये… मुझे तो सच में लगने लगा कि जैसे मैं दुल्हन ही हूँ। फिर उसने मेरे शरीर पर जोर डालते हुये मुझे लेटा दिया और वो मेरे ऊपर छाने लगा। मेरी कठोर चूचियाँ उसने दबा दी। मेरी दोनों टांगों के बीच वो पसरने लगा। नीचे से तो हम दोनो नंगे ही थे। उसका लण्ड मेरी कोमल चूत से भिड़ गया।
“उफ़्फ़्फ़… उसका सुपारा… ” मेरी चूत को खोलने की कोशिश करने लगा। मेरी चूत लपलपा उठी। पानी से चिकनी चूत ने अपना मुख खोल ही दिया और उसके सुपारे को सरलता से निगल लिया- यह तो बहुत ही लजीज है… सख्त और चमड़ी तो मुलायम है।
“भैया… बहुत मस्त है… जोर से घुसा दे… आह्ह्ह्ह्ह… मेरे राजा…”
मैंने कैंची बना कर उसे जैसे जकड़ लिया। उसने अपने चूतड़ उठा कर फिर से धक्का मारा…
“उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़… मर गई रे… दे जरा मचका के… लण्ड तो लण्ड ही होता है राम…”
उसके धक्के तो तेज होते जा रहे थे… फ़च फ़च की आवाजें तेज हो गई… यह किसी मर्द के साथ मेरी पहली चुदाई थी… जिसमें कोई झिल्ली नहीं फ़टी… कोई खून नहीं निकला… बस स्वर्ग जैसा सुख… चुदाई का पहला सुख…
मैं तो जैसे खुशी के मारे लहक उठी। फिर मैं धीरे धीरे चरमसीमा को छूने लगी। आनन्द कभी ना समाप्त हो । मैं अपने आप को झड़ने से रोकती रही… फिर आखिर मैं हार ही गई… मैं जोर से झड़ने लगी। तभी अनुग्रह भी चूत के भीतर ही झड़ने लगा। मुझसे चिपक कर वो यों लेट गया कि मानो मैं कोई बिस्तर हूँ।
“हो गई ना सुहाग रात हमारी…?”
“हाँ दीदी… कितना मजा आया ना…!”
“मुझे तो आज पता चला कि चुदने में कितना मजा आता है राम…”
बाहर बरसात अभी भी तेजी पर थी। अनुग्रह मुझे मेरा टॉप उतारने को कहने लगा। उसने अपनी बनियान उतार दी और पूरा ही नंगा हो गया। उसने मेरा भी टॉप उतारने की गरज से उसे ऊपर खींचा। मैंने भी यंत्रवत हाथ ऊपर करके उसे टॉप उतारने की सहूलियत दे दी।
हम दोनो जवान थे, आग फिर भड़कने लगी थी… बरसाती मौसम वासना बढ़ाने में मदद कर रहा था। अनुग्रह बिस्तर पर बैठे बैठे ही मेरे पास सरक आया और मुझसे पीछे से चिपकने लगा। वहाँ उसका इठलाया हुआ सख्त लण्ड लहरा रहा था। उसने मेरी गाण्ड का निशाना लिया और मेरी गाण्ड पर लण्ड को दबाने लगा।
मैंने तुरन्त उसे कहा- तुम्हारे लण्ड को पहले देखने तो दो… फिर उसे चूसना भी है।
वो खड़ा हो गया और उसने अपना तना हुआ लण्ड मेरे होंठों से रगड़ दिया। मेरा मुख तो जैसे आप ही खुल गया और उसका लण्ड मेरे मुख में फ़ंसता चला गया। बहुत मोटा जो था। मैंने उसे सुपारे के छल्ले को ब्ल्यू फ़िल्म की तरह नकल करते हुये जकड़ लिया और उसे घुमा घुमा कर चूसने लगी।
मुझे तो होश भी नहीं रहा कि आज मैं ये सब सचमुच में कर रही हूँ। तभी उसकी कमर भी चलने लगी… जैसे मुँह को चोद रहा हो। उसके मुख से तेज सिसकारियाँ निकलने लगी। तभी अनुग्रह का ढेर सारा वीर्य निकल पड़ा। मुझे एकदम से खांसी उठ गई…
शायद गले में वीर्य फ़ंसने के कारण। अनुग्रह ने जल्दी से मुझे पानी पिलाया। पानी पिलाने के बाद मुझे पूर्ण होश आ चुका था। मैं पहले चुदने और फिर मुख मैथुन के अपने इस कार्य से बेहद विचलित सी हो गई थी… मुझे बहुत ही शर्म आने लगी थी। मैं सर झुकाये पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई।
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“अनुग्रह… सॉरी… सॉरी…”
“दीदी, आप तो बेकार में ही ऐसी बातें कर रहीं हैं… ये तो इस उम्र में अपने आप हो जाता है… फिर आपने तो अभी किया ही क्या है?”
“इतना सब तो कर लिया… बचा क्या है?”
“सुहागरात तो मना ली… अब तो बस गाण्ड मारनी बाकी है।”
मुझे शरम आते हुये भी उसकी इस बात पर हंसी आ गई।
“यह बात हुई ना… दीदी… हंसी तो फ़ंसी… तो हो जाये एक बार…?”
“एक बार क्या हो जाये…” मैंने उसे हंसते हुये कहा।
“अरे वही… मस्त गाण्ड मराई… देखना दीदी मजा आ जायेगा…”
“अरे… तू तो बस… रहने दे…”
फिर मुझे लगा कि अनुग्रह ठीक ही तो कह रहा है… फिर करो तो पूरा ही कर लेना चाहिये… ताकि गाण्ड नहीं मरवाने का गम तो नहीं हो अब मोमबत्ती को छोड़, असली लण्ड का मजा तो ले लूँ।
“दीदी… बिना कपड़ों के आप तो काम की देवी लग रही हो…!”
“और तुम… अपना लण्ड खड़ा किये कामदेव जैसे नहीं लग रहे हो…?” मैंने भी कटाक्ष किया।
“तो फिर आ जाओ… इस बार तो…”
“अरे… धत्त… धत्त… हटो तो…”
मैं उसे धीरे से धक्का दे कर दूसरे कमरे में भागी। वो भी लपकता हुआ मेरे पीछे आ गया और मुझे पीछे से कमर से पकड़ लिया। और मेरी गाण्ड में अपना लौड़ा सटा दिया।
“कब तक बचोगी से लण्ड से…”
“और तुम कब तक बचोगे…? इस लण्ड को तो मैं खा ही जाऊँगी।”
उसका लण्ड मेरी गाण्ड के छेद में मुझे घुसता सा लगा।
“अरे रुको तो… वो क्रीम पड़ी है… मैं झुक जाती हूँ… तुम लगा दो।”
अनुग्रह मुस्कराया… उसने क्रीम की शीशी उठाई और अपने लण्ड पर लगा ली… फिर मैं झुक गई… बिस्तर पर हाथ लगाकर बहुत नीचे झुक कर क्रीम लगाने का इन्तजार करने लगी। वह मेरी गाण्ड के छिद्र में गोल झुर्रियों पर क्रीम लगाने लगा। फिर उसकी अंगुली गाण्ड में घुसती हुई सी प्रतीत हुई।
एक तेज मीठी सी गुदगुदी हुई। उसके यों अंगुली करने से बहुत आनन्द आने लगा था। अच्छा हुआ जो मैं चुदने को राजी हो गई वरना इतना आनन्द कैसे मिलता। उसके सुपारा तो चिकनाई से बहुत ही चिकना हो गया था। उसने मेरी गाण्ड के छेद पर सुपारा लगा दिया। मुझे उसका सुपारा महसूस हुआ फिर जरा से दबाव से वो अन्दर उतर गया।
“उफ़्फ़्फ़ ! यह तो बहुत आनन्दित करने वाला अनुभव है।”
“दर्द तो नहीं हुआ ना…”
“उह्ह्ह… बिल्कुल नहीं ! बल्कि मजा आया… और तो ठूंस…!’
“अब ठीक है… लगी तो नहीं।”
“अरे बाबा… अन्दर धक्का लगा ना।”
वह आश्चर्य चकित होते हुये समझदारी से जोर लगा कर लण्ड घुसेड़ने लगा।
“उस्स्स्स्स… घुसा ना… जल्दी से… जोर से…”
इस बार उसने अपना लण्ड ठीक से सेट किया और तीर की भांति अन्दर पेल दिया।
“इस बार दर्द हुआ…”
“ओ…ओ…ओ… अरे धीरे बाबा…”
“तुझे तो दीदी, दर्द ही नहीं होता है…?”
“तू तो…? अरे कर ना…!”
“चोद तो रहा हूँ ना…!”
उसने मेरी गाण्ड चोदना शुरू कर दिया… मुझे मजा आने लगा। उसका लम्बा लण्ड अन्दर बाहर घुसता निकलता महसूस होने लगा था। उसने अब एक अंगुली मेरी चूत में घुमाते हुये डाल दी। बीच बीच में वो अंगुली को गाण्ड की तरफ़ भी दबा देता था तब उसका गाण्ड में फ़ंसा हुआ लण्ड और उसकी अंगुली मुझे महसूस होती थी। उसका अंगूठा और एक अंगुली मेरे चुचूकों को गोल गोल दबा कर खींच रहे थे। सब मिला कर एक अद्भुत स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति हो रही थी।
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आनन्द की अधिकता से मेरा पानी एक बार फिर से निकल पड़ा… उसने भी साथ ही अपना लण्ड का वीर्य मेरी गाण्ड में ही निकाल दिया। बहुत आनन्द आया… जब तक उसका इन्टरव्यू चलाता रहा… उसने मुझे उतने दिनों तक सुहानी चुदाई का आनन्द दिया। मोमबत्ती का एक बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि उससे तराशी हुई मेरी गाण्ड और चूत को एकदम से उसका भारी लण्ड मुझे झेलना नहीं पड़ा। ना ही तो मुझे झिल्ली फ़टने का दर्द हुआ और ना ही गाण्ड में पहली बार लण्ड लेने से कोई दर्द हुआ।… बस आनन्द ही आनन्द आया…।
एक वर्ष के बाद मेरी भी शादी हो गई… पर मैं कुछ कुछ सुहागरात तो मना ही चुकी थी। पर जैसा कि मेरी सहेलियों ने बताया था कि जब मेरी झिल्ली फ़टेगी तो बहुत तेज दर्द होगा… तो मेरे पति को मैंने चिल्ला-चिल्ला कर खुश कर दिया कि मेरी तो झिल्ली फ़ाड़ दी तुमने… वगैरह… गाण्ड चुदाते समय भी जैसे मैंने पहली बार उद्घाटन करवाया हो… खूब चिल्ल-पों की… आपको को जरूर हंसी आई होगी मेरी इस बात पर… पर यह जरूरी है, ध्यान रखियेगा…
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