Mom Give Handjob Son
नमस्कार दोस्तों, आपने मेरी कहानी के पिछले भाग “परिवार में चुदाई की अनोखी कहानी 1” में पढ़ा होगा कि सन्नो के भाई अमर उसकी माँ के जिस्म का ही दीवाना हो गया था, और उसकी विधवा माँ की चूत में भी बहुत खुजली होती थी चुदवाने की. तो दोनों ने चुदाई शुरू करने वाले थे. अब आगे – Mom Give Handjob Son
”अमर बेटा, ये सब तुम क्या कर रहे हो, मैं इस तरह तुमको अपनी जिन्दगी बर्बाद करते हुए नहीं देख सकती। तुमने अपने डिप्रेशन का इलाज इस चीज में ढूँढ लिया है, ये गलत है, जब से पापा की डैथ हुई है, मुझे पता है कि तुम कितने परेशान हो, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हर रात दो दो तीन तीन बार ये सब करोगे। इस कठिन समय में तुमको एक जिम्मेदार मर्द की तरह हिम्मत दिखानी होगी, अगर जरूरत लगे तो किसी डॉक्टर को दिखा लो।”
जिस तरह से मैं उसके सामने मादरजात नंगी बैठी हुई थी, वो बस ”मम्मी…” बोलकर चुप हो गया, लेकिन उसका लण्ड अभी भी फ़नफ़नाकर खड़ा हुआ था। किसी तरह हिम्मत करके वो बोला, ”मुझे पता है कि जो कुछ मैं कर रहा था, वो गलत है, आई एम सॉरी, मेरे खुद समझ में नहीं आ रहा मैं क्यों ये सब कर रहा हूँ।”
मैंने उसके हाथ छोड़ दिये, और उसको समझाते हुए बोली, ”देखो इस उम्र में ऐसा करना स्वाभाविक है, लेकिन यदि तुम हद से ज्यादा करोगे तो तुम्हारा शरीर खराब हो जायेगा।” जैसे ही मैंने अमर के गाल पर हाथ रखा, और उसके माथे को सहलाते हुए उसके बालों में अपनी ऊँगलियों से कंघी करने लगी, उसकि लण्ड ने एक जोरदार झटका मारा।
फ़िर उसने बोलना शुरू किया, ”मम्मी मेरा किसी चीज में मन नहीं लगता, मुझे हल्का होने की बेहद जरूरत मेहसूस होती है, मुझे पता है कि ये असली सैक्स का विकल्प नहीं है, लेकिन मैं और क्या करूँ, मुझे खुद समझ नहीं आता, आई एम सॉरी मम्मी।”
मेरे होंठों पर एक ममता भरी कुटिल मुस्कान थी। मेरे अन्दर भी कुछ कुछ हो रहा था, मैने कहा, ”कोई बात नहीं बेटा, इसीलिये मैंने सोचा क्यों ना इस बारे में बात कर ही ली जाये, मैं तुम्हारी प्रॉब्लम सॉल्व करूँगी।” जब मैंने उसके खड़े हुए लण्ड को अपने हाथ की नाजुक ऊँगलियों से पकड़ा तो एक बारगी अमर की साँस रुक सी गयी।
इसे भी पढ़े – कॉलेज की छत पर प्रेमी जोड़े चुदाई कर रहे
”ओह्ह्… मम्म्म्म्मी, ये आप क्या…”
मै उसके लण्ड को हिलाते हुए बोली, ”श्श्श्श्श्श्श्श्… बस चुप रहो और चुपचाप देखते रहो।”
जब मैं उसके लण्ड को अपने हाथ से मुठिया रही थी, तो अमर के पास कराहने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा था। दूसरे हाथ से मैंने अमर के टट्टे सहलाने शुरू कर दिये, अमर से ये बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपने हाथ पीछे ले जाकर बैडशीट को अपनी मुट्ठी में भींच लिया।
मैंने अमर से पूछा, ”अच्छा लग रहा है, बेटा?”
”ओह्ह्ह, हाँ मम्मी, बहुत मजा आ रहा है!” उसकी नजरें मेरे बड़े बड़े मम्मों पर टिकी हुई थीं।
”अपने आप करते हो, उससे तो ज्यादा अच्छा लग रहा होगा, क्यों बेटा?”
”हाँ, मम्मी बहुत अच्छा लग रहा है, बहुत ज्यादा…।, सीईईईई!”
अपने बेटे के इतने बड़े लण्ड को मुठियाते हुए मेरे होंठों पर बरबस मुस्कान आ गयी। जिस तरह आँखों में वासना भरकर वो मेरे मम्मों को देख रहा था, और मैं उसके जवान लण्ड को हिला रही थी, ऐसा करते हुए मुझे बहुत मजा आ रहा था।
मैं उसकी मुट्ठ मारते हुए कई बार अपनी टाँगों को क्रॉस अनक्रॉस कर चुकी थी, जिस से अमर को मेरी चूत को कई बार कनखियों से देखने का मौका मिल चुका था। मेरी चूत में भी आग लगी हुई थी, और मेरा मन कर रहा था कि उसी वक्त अमर को नीचे लिटा कर उसके ऊपर चढ कर बैठ जाऊँ और उसके लण्ड को अपनी चूत में घुसाकर उसकी सवारी करने लगूँ।
जैसे ही उसके लण्ड के शिश्न पर चूत को चिकना करने वाले पानी की कुछ बूँदे आयीं, मेरी नजर उसी पर जा टिकी। वो मेरे नग्न बदन को निहार रहा था, और मैं उसके शिश्न पर उभरती बूँदों को अपनी हथेली पर लेती और फ़िर पूरे लण्ड पर उसको लगा कर सारे लण्ड को चिकना कर देती।
मैं उसके टट्टों से खेलते हुए उसके वीर्य की पिचकारी छोड़ने का इन्तजार कर रही थी। बस इतना सोचते ही मेरी जीभ बाहर निकल कर मेरे होंठों को गीला कर गयी, मैं बस ये सोच कर उत्तेजित हो रही थी कि मेरे अपने बेटे के वीर्य के पानी का स्वाद कैसा होगा।
कुछ देर बाद अमर कराहते हुए बोला, ”ओह्ह, मम्मी… मैं बस… झड़ने…आह्ह्ह!”
”कोई बात नहीं बेटा, हो जाओ आराम से,” मैं उसके लण्ड को मुठियाते हुए बोली। मैं दूसरे हाथ से उसके टट्टों को अब भी सहलाये जा रही थी, जिसमें कि उसकी गोलियाँ ऊपर चढ चुकी थीं। ”आराम से निकाल दो सारा पानी, अपनी मम्मी के हाथों पर!”
मैं वासनामयी नजरों से अमर के फ़नफ़नाते हुए लण्ड में से वीर्य का लावा उगलते हुए देखने लगी। उसके लण्ड से वीर्य की पिचकारी पर पिचकारी निकले जा रही थी, और उसका वीर्य युक्त पानी उसके पेट, उसकी छाती, मेरी बाँहों और मेरे हाथों को गीला कर रहा था।
मैं अपने हाथ से उसके लण्ड को मुठियाते हुए आखिर बूँद तक निकालने का प्रयास कर रही थी, हाँलांकि ऐसा करते हुए मेरी चूत में भी आग और ज्यादा भड़कने लगी थी। हल्का होने के बाद अमर निढाल हो गया और उसकी आँखें स्वतः ही बण्द हो गयीं।
होश आने पर जब कुछ देर बाद अमर ने आँखें खोली तो उसने मम्मी को अपने पास पूर्ण रुपेण नग्न होकर बैठे हुए पाया। उसने जब मम्मी के मम्मों पर नजर डाली तो उनके निप्पल को हार्ड होकर चूसने के लिये आमंत्रित करते हुए पाया।
”ओह मम्मी आप बहुत अच्छी हो, बहुत सुंदर हो,… आपके…ये … ओह ये तो बहुत अच्छे हैं!”
अपने मम्मों की अमर के मुँह से तारीफ़ सुनकर बहुत अच्छा लगा। उसके लण्ड को एक हाथ से मसलते हुए मैंने कहा, ”ओह, थैन्क यू, बेटा, तुम इनको मम्मे, बोबे, चूँची जो चाहे बोल सकते हो, तुमको अच्छे लगते हैं ना अपने मम्मी के ये मम्मे?”
”हाँ, मम्मी आपके मम्मे बहुत अच्छे हैं, ये कितने बड़े बड़े हैं!”
“तुम छूना चाहोगे अपनी मम्मी के मम्मों को, बेटा ?”
अमर के लण्ड के शिश्न पर चूत को चिकना करने वाला पानी फ़िर से निकलने लगा। ”ओह, हाँ मम्मी, मैं छू लूँ इनको?” वो हाँफ़ते हुए हाथ बढाते हुए बोला।
मैं शर्माते हुए बोली, ”नहीं बेटा, आज नहीं फ़िर किसी दिन, तुम तो मेरे प्यारे बेटे हो ना…”
जैसे जैसे मेरे मुठियाने की स्पीड तेज होती जा रही थी, उसी तरह अमर के मुँह से निकलने वाली कराहने की आवाज तेज होती जा रहीं थीं ।
”बेटा, अब तुम को अपने आप दो-तीन बार अपने आप मुट्ठ मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी, अब मैं तुम्हारा ख्याल रखा करूँगी, मैं तुमहारे इस लण्ड की इसी तरह मालिश करके इसका पानी निकाल दिया करूँगी। बस तुम को मेरी एक बात माननी पड़ेगी।”
”हाँ मम्मी, बहुत मजा आयेगा,” वो मस्ती में आँखें बंद करके कुछ कुछ बरबड़ाये जा रहा था। उसको रोजाना अपनी मम्मी के हाथ से मुट्ठ मारने की बात सुनकर अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
”मैं आपकी हर बात मानने को तैयार हूँ।”
”बेटा, तुम अपनी सेहत पर ध्यान दो, तुम अच्छी अच्छी बातें सोचा करो, सुबह उठ कर घूमने जाया करो। इसके बदले तुम्हारा जब भी मुट्ठ मारकर पानी निकालने का मन किया करे, मुझे बता दिया करना। तुम चाहो तो मेरे मम्मे दबा भी सकते हो, और चाहो तो इनके बीच अपने लण्ड को घिस भी सकते हो।” मैं अपने मम्मे हिलाते हुए बोली।
अमर चरम पर पहुँचने ही वाला था और उसके लण्ड से पानी निकलने ही वाला था।
”लेकिन अगर तुम ऐसे ही मेरी बात मानते रहे और अच्छी तरह से खुश रहते रहे तो मैं तुमको कुछ और भी तोहफ़ा दे सकती हूँ,” मैं इस अंदाज में बोली कि अमर कयास लगाने लगा कि मैं किस हद तक जा सकती हूँ।
”हो सकता है, मैं तुमको अपने इन चूतड़ों के साथ खेलने दूँ? तो फ़िर डील पक्की?”
इसे भी पढ़े – आश्रम के सन्यासियों ने मेरी बीवी साथ जबरदस्ती की
ये सब अमर के लिये कुछ ज्यादा ही हो गया था। वो बेहद खुश था क्योंकि उसने इस सब की कल्पना भी नहीं की थी। अपनी मम्मी के हाथों से मुट्ठ वो पहले ही मरवा चुका था, और अब मम्मों या चूतड़ों को छूने या फ़िर मम्मी के फ़ूले हुए मोटे होठों से लण्ड चुसवाने की कल्पना मात्र से वो बेहद उत्तेजित हो गया था, उसको अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
वो इतना ज्यादा उत्तेजित हो गया कि उसके लण्ड ने तुरंत अपनी मम्मी के हाथ पर वीर्य का लावा ऊँडेलना शुरु कर दिया। अपने बेटे के वीर्य से मेरे हाथ, मम्मे पेट सब सन चुका था। अमर चरम पर पहुँच कर निढाल होकर लेट गया।
”अब सो जाओ बेटा,” मैंने अमर के नंगे बदन पर एक निगाह डालते हुए, और उसके लण्ड को निहारते हुए कहा।
इस एपिसोड के बाद मैं भी बेहद गरम हो चुकी थी, और फ़िर मैं भी बाथरूम में जाकर अपने आप को पानी से साफ़ किया, और अपनी चूत में ऊँगली डालकर, और चूत के दाने को घिसकर उसकी आग को बुझाया।
मैं अपने बेटे के खड़े फ़नफ़नाते हुए लण्ड को कुछ ही मिनट पहले देखकर इतनी ज्यादा उत्तेजित और गरम हो चुकी थी कि बस एक दो मिनट में ही में ही मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, और बरबस अपने आप मेरे मुँह से निकल गया, ”ओह, अमर…”
अगले कुछ दिनों तक मैंने अमर की मुट्ठ मारने का कोई चान्स मिस नहीं किया। जो कुछ हो रहा था वो दोनों की सहमती से हो रहा था, और दोनों ही ऐसा करके खुश थे। अमर अब पहले से कहीं ज्यादा खुश रहने लगा था, और उसकी भूख भी खुल गयी थी।
वो खुशी खुशी फ़ैक्ट्री पर काम करने जाता और हँसता खिलखिलाता रहता। हर रात सोने से पहले वो मुझसे मुट्ठ मरवाता और ढेर सारा वीर्य का पानी मेरे हाथ पर निकाल कर, थक कर सो जाता। जब चाहे जब मैं उसका लण्ड चूम लेती, और जब चाहे जब वो अपना पानी मेरी गोल गोल नितम्बों पर निकाल देता।
उसके बाद मुझे गुड नाईट विश करके वो थक कर सो जाता। उसके बाद मैं उसके वीर्य के गाढे पानी को चाटकर, बाथ रुम में जाकर अपनी चूत की आग को ऊँगली डालकर शांत करती, और फ़िर हम दोनों अगल बगल नंगे ही सो जाते।
कुछ दिन इस रूटीन के बाद, मैं एक हाथ से अमर को लण्ड को मुठियाती और दूसरे हाथ से अपनी चूत को सहलाने लगती, इस तरह हम दोनों एक साथ झड़ जाते। एक दिन शाम को अमर ने फ़क्ट्री पर काम से लौटने के बाद बताया कि मालिक ने उसकी लगन, समय पाबंदी और ईमानदारी से खुश होकर उसकी पगार 5000 बढा दी है।
ये सुनकर मैंने अमर को गले लगा लिया, और कहा, ”आज तो तुमको कुछ स्पेशल मिलेगा।” और फ़िर अपना ब्लाउज खोलकर उसके सामने बैठ गयी, ”तुम्हारी पगार बढने की खुशी में, तुम क्या करना चाहोगे, मेरे मम्मे चोदना या चुसवाना, या चाहो तो दोनों कर लो।”
”थैन्क यू, मम्मी,” अमर हकलाते हुए बोला। मेरे हिलते हुए मम्मे देखकर उसका लण्ड पहले ही खड़ा हो चुका था। जैसे ही मैंने उसका पाजामा खोलकर, अन्डर वियर की इलास्टिक को नीचे किया, उसका फ़नफ़नाता हुआ तना हुआ लण्ड फ़टाक से जाके उसके पेट से टकराया।
अपने बेटे के लण्ड को देखकर मेरी भी साँसें तेज हो गयी, जो मैं करने जा रही थी, उसके बारे में सोचकर मुझे कुछ कुछ होने लगा। मैं अपने बेटे का लण्ड चूसने वाली थी, चाहे मेरी चूत में ना सही लेकिन मैं अपने बेटे का लण्ड अपने शरीर में अंदर लेने वाली थी, वो चाहे मुँह में ही सही।
मैं उस लक्ष्मण रेखा को पार करने ही वाली थी, मैं अपने बेटे के साथ सैक्स करने वाली थी, और मुझसे अब और ज्यादा इंतेजार नहीं हो रहा था। जैसे ही मैंने अमर के लण्ड को अपने होंठों के बीच लिया, और धीरे धीरे एक एक ईन्च करके अमर के लण्ड को अपने मुँह में अंदर लेने लगी, अमर का लण्ड मेरे मुँह की चिकनाहट और गरमाहट पाकर आनंदित हो उठा।
अपने लण्ड को मेरे मुँह में अंदर घुसते हुए देखकर, अमर के मुँह से निकल गया, ”ओह्ह्ह, मम्मी…”
अमर मेरे मुँह में अपने लण्ड को गले तक पेले जा रहा था, और मैं उसके प्रीकम का स्वाद ले रही थी। मैं उसके लण्ड को अपने एक्सपर्ट जीभ से चाट और चूस रही थी, और ऐसा करते हुए मेरी चूत में भी आग लग रही थी। मैं अपने एक हाथ से अपनी चूत को सहलाने लगी।
”ओह्ह मम्मी बहुत मजा आ रहा है।”
मैंने उसके लण्ड को पूरा अपने थूक से गीला कर दिया था। ऐसा करते हुए बस कुछ देर ही अपनी चूत को सहलाने के बाद, मैं झड़ गयी, और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, और मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, और अमर का लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकल गया।
इसे भी पढ़े – मेरी चाची सेक्सी माल लगती है
”मम्मी, मैं बस होने ही वाला था, आप रुक क्यों गयीं?”
”बेटा, तुम मेरे मुँह में पानी बाद में निकालना, पहले तुम थोड़ा मेरे मम्मे चोद लो।” मैंने अपने मम्मों को दोनों हाथ से टाईट पकड़ कर उसको उनके बीच अपना लण्ड उनके बीच घुसाने के लिये आमंत्रित करते हुए कहा।
”तुम अपनी मम्मी के मम्मों के बीच अपने लण्ड नहीं घुसाओगे? तुमने तो इनको अभी तक छुआ भी नहीं है, लो खेलो इनके साथ, दबाओ इनको, तुमको बहुत अच्छे लगते हैं ना, अपनी मम्मी के मम्मे?”
अमर तो अपनी मम्मी से लण्ड को चुसवाकर ही अपने आप को धन्य समझ रहा था, उसको मेरे मम्मों के साथ खेलने का ख्याल ही नहीं आया था। उसने झट से मेरे मम्मों को अपनी हथेलियों में भरकर, उनको दबाना शुरु कर दिया।
जब अमर मेरे निप्पल को मींजता तो मेरी आह निकल जाती। किसी मर्द से अपने मम्मों को दबवाते हुए मुझे बहुत मजा आ रहा था। अमर ने अपना लण्ड दोनों मम्मों के बीच रख दिया, और मजे से मेरे मम्मों को दबाने लगा और निप्प्ल के साथ खेलने लगा।
मेरी चूत में आग लगी हुई थी, मेरी पैन्टी चूत के पानी में भीगकर पूरी गीली हो चुकी थी, तभी मैंने अपने हाथों को अमर के मेरे मम्मों को मींजते हुए हाथों के ऊपर रख दिया, और उसके हाथों के साथ अपने हाथों से अपने मम्मे दबाने लगी।
मैंने अपनी ऊंगलियाँ उसकी ऊंगलियों के बीच फ़ँसा ली, और फ़िर अपने होंठों पर मुस्कान लाते हुए उसकी तरफ़ देखा, और फ़िर अमर को लण्ड से मेरे मम्मों को चोदने में उसकी मदद करने लगी। अमर अपने लण्ड को मेरे मम्मों के बीच फ़िसलते हुए देखकर पूरे जोश में आ चुका था। मुझे भी उसके फ़नफ़नाते लण्ड से अपने मम्मों को चुदवाने में अपार आनन्द आ रहा था।
”अमर बेटा, तुमको मेरे मम्मे अच्छे लगते हैं ना?” मैंने मुस्कुराते हुए उससे पूछा, ”तुमको अपने लण्ड को इनके बीच घुसाकर मजा आ रहा है ना बेटा?”
”हाँ मम्मी बहुत मजा आ रहा है, सच में!” वो हाँफ़ता हुआ बोला, और फ़िर से अपने लण्ड को मेरे मम्मों के बीच पेलने लगा। ”मुझे आपके मम्मे बहुत अच्छे लगते हैं मम्मी! ये कितने सॉफ़्ट और बड़े बड़े हैं… इतना मजा तो पहले कभी नहीं आया!”
मैं उसकी बात सुनकर बरबस मुस्कुरा दी। उसके लण्ड से मम्मों की पहली चुदाई को यादगार बनाने के लिये मैंने आगे बढकर उसके लण्ड के सुपाड़े को अपने होंठों से चूम लिया, और अपने बेटे के लण्ड को अपने चिकने बड़े बड़े मम्मों के बीच फ़िसलता हुआ महसूस करते हुए, अमर को प्रोत्साहित करने लगी।
कुछ ही समय बाद अमर अपने चरम पर पहुँच गया, और जब उसका लण्ड वीर्य मिश्रित पानी मेरे मम्मों पर उँडेलने वाला था, तभी मैं उसके लम्बे फ़नफ़नाते हुए लण्ड को अपनी हथेली की मुट्ठी बनाकर उसको आगे पीछे करने लगी, ताकि उसको चूत जैसा एहसास मिल सके।
इससे पहले की उसके लण्ड से वीर्य का लावा निकलता, मैंने उसको कहा, ” मेरे मुँह में पानी निकालना बेटा! ले अब अपने लण्ड को मेरे मुँह में घुसा दे, और अपने पानी से मेरे गले को त्रप्त कर दे बेटा!”
अमर तो अपनी मम्मी से ऐसे आमंत्रण को सुनकर मानो पागल ही हो गया। एक हाथ से वो मेरे मम्मे दबा रहा और और दूसरे हाथ से उसने मेरे सिर को पकड़कर अपनी तरफ़ खींचा, ऐसा करते ही उसका फ़नफ़नाता हुआ पूरा लण्ड मेरे गले तक घुस गया, और उसकी गोलियाँ मेरी थूक से भीग चुकी ठोड़ी से टकराने लगीं।
अमर अपनी मम्मी के मुँह में अपने लण्ड को ताबड़तोड़ पागलों की तरह पेले जा रहा था। अपने बेटे के सामने समर्पण कर और इस तरह लाचार होकर उसके लण्ड को अपने मुँह में पिलवाने में मुझे भी बहुत मजा आ रहा था, मैंने भी अपना एक हाथ अपनी पैण्टी में घुसाकर अपनी पनिया रही चूत को सहलाना शुरु कर दिया।
कुछ देर बाद अमर बोला, ”ओह, मम्मी मेरा पानी बस निकलने ही वाला है।”
मेरे मुँह में अपने लण्ड को जोरों से पेलते हुए जब उसके लण्ड से वीर्य मिश्रित पानी मेरे मुँह में निकलना शुरू हुआ तो वो आनंद से जोर जोर हुँकार भरने लगा। मेरी चूत भी और ज्यादा पनियाने लगी और मेरी उँगलियाँ भी मेरी चूत में अंदर तक घुस गयीं।
अपने बेटे के लण्ड से निकले वीर्य मिश्रित पानी को अपने मुँह में लेकर गले से नीचे सटकने में जो मुझे आनंद आ रहा था वो लाजवाब था। अमर अपने लण्ड का सारा पानी मेरे मुँह में निकालने के बाद वो निढाल होकर बैड पर लेट गया।
शायद उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया था, वो आँखें बंद करके साँस लेकर संयत होने का प्रयास कर रहा था। मैं भी बैड पर अमर के पास ही बैठ गयी, मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा था, पहला तो इस बात का कि मैंने अपने प्यारे बेटे को खुशी प्रदान की थी, और दूसरा इस वजह से कि मेरा रंडीपना अभी भी किसी मर्द को पानी छोड़ने को मजबूर कर सकता था।
इतने सालों बाद किसी मर्द के लण्ड को छूकर देखकर मुझे उत्तेजित कर रहा था, और वो भी अपने सगे बेटे का लण्ड, ये आग में घी का काम कर रहा था। हम दोनों वो शारीरिक सम्बंध बना रहे थे जिसकी समाज मान्यता नहीं देता, लेकिन वही करने में मुझे और मेरे बेटे अमर को जो आनंद मिल रहा था, तो फ़िर हम दोनों को किसी की परवाह नहीं थी।
बिना कुछ सोचे मैंने अमर के मुर्झाते हुए प्यारे से लण्ड को अपने मुँह में भर लिया, मैं एक हाथ से अमर के टट्टों में गोलियों को सहला रही थी, तो दूसरे हाथ से उसके सुडौल पेट को, एक माँ अपने बेटे के लण्ड को सहला रही थी, उसे चूम रही थी, उसके लण्ड के सुपाड़े को अपनी जीभ से चाट रही थी, और उसके लण्ड को फ़िर से खड़ा करने का प्रयास कर रही थी।
मैं अपने मुँह में अमर के लण्ड को फ़िर से खड़ा होता हुआ मेहसूस कर रही थी। मैं इस सब में इतना ज्यादा डूब गयी थी कि जब अमर ने मेरा सिर पकड़कर मुझे अपनी तरफ़ खींचा तो मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों 69 की पोजीशन में आ चुके थे। अमर ने जैसे ही अपना हाथ मेरी गाँड़ पर रखा तो मेरे पूरे बदन में करंट सा दौड़ गया, और मेरे मुँह से आह निकल गयी, जिससे अमर का लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकलकर मेरे गालों से टकराने लगा।
इसे भी पढ़े – ब्लाउज का नाप देने आई कस्टमर
मैं उत्तेजित और चुदासी हो रही था, किसी तरह मेरे मुँह से निकला, ”क्या कर रहे हो बेटा!?”
मैं जड़वत अमर को मेरा पेटीकोट और पैण्टी उतारते हुए देख रही थी, उसने एक झटके में दोनों को मेरी टाँगो से नीचे निकालते हुए मुझे मादरजात नंगा कर दिया। तब मुझे एहसास हुआ कि आज पहली बार मैं अपने बेटे के सामने पूरी नंगी हुई थी।
इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, अमर ने मेरी दोनों टाँगों को चौड़ा कर के फ़ैला दिया, और मेरी गोरी गोरी अंदरूनी चिकनी जाँघों को सहलाते हुए मेरी चूत की तरफ़ बढने लगा। इस व्याभिचार का परम सुख मुझे बेहद आनंदित कर रहा था, जब मैंने अमर की साँसों को अपनी चूत के ऊपर मेहसूस किया तो फ़िर भी मैं ना चाहते हुए बोली, ”अमर, ऐसा मत करो बेटा, हे भगवान!”
जब मैंने अमर की उँगलियों को मेरी चूत की फ़ाँकों को अलग करते हुए, और मेरी पनिया रही फ़ूली हुई चुत को सहलाते हुए मेहसूस किया तो मानों मेरी साँसे गर्दन में ही अटक गयीं। और कुछ ही पल बाद अमर की साँसों की जगह उसके होंठों की किस ने ले ली थी, और अमर की जीभ मेरी चूत के छेद में अंदर तक घुस रही थी।
”ओह्ह्ह्ह्… अमर बेटा, ऐसा मत करो बेटा…”
अमर ने एक बार चूत में से जीभ बाहर निकाली, और फ़िर चूत के होंठों को नीचे से ऊपर तक पूरी तरह चाटते हुए बोला,”कर लेने दो ना मम्मी, जैसा मजा आप मुझे देती हो, वैसा ही मजा मैं भी आपको देना चाहता हूँ,” वो हाँफ़ते हुए बोला।
अपनी मम्मी की चूत को पहली बार चाटने में उसे बहुत मजा आ रहा था। हम दोनों हवस के तूफ़ान में बहे जा रहे थे। अमर ने फ़िर से अपना मुँह मेरी टाँगों के बीच घुसा दिया, और अपनी माँ की स्वादिष्ट चूत को चूसने लगा। कुछ ही देर बाद मेरा बनावटी प्रतिरोध स्वीकृति में बदल गया.
और मैं बड़बड़ाने लगी, ”ओह अमर बेटा, हाँ ऐसे ही करो बेटा… ओह तुम तो मुझे बहुत अच्छा चूस रहे हो…!” जब अमर ने मेरी चूत के होंठों के साथ मेरी चूत के दाने को चूसना शुरू किया तो मेरा सिर चकराने लगा, और मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी कि ”मेरा बेटा मेरी चूत को चूस और चाट रहा है।”
हर बार, बार बार अमर की जीभ के हर झटके के साथ मरी चूत और पूरे बदन में आनंद की एक लहर सी दौड़ जाती, और मेरी चूत फ़ड़क कर और ज्यादा पनिया जाती। मैंने एक बार फ़िर से अमर के लण्ड को अपने मुँह में ले लिया और अमर मेरी चूत को इस कदर चूस रहा था मानो उसका जीवन का यही लक्ष्य हो।
मैं सोच रही थी कि, ”हमको ऐसा नहीं करना चाहिये, लेकिन फ़िर अमर कितना प्यार से मेरी चूत को चूस रहा है, और मजा तो मुझे भी आ ही रहा था।” मेरी चूत झड़ने ही वाली थी, और मेरे चुसने के कारण अमर के लण्ड का सुपाड़ा भी फ़ूल गया था। और जब मैं झड़ी तो मैंने अमर का लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाल दिया, जिससे अमर मेरी सिस्कारीयाँ सुन सके और उसको पता चले कि उसकी मम्मी कितना अच्छा वाला झड़ी हैं।
मैं हाँफ़ते हुए बोली, ”ओह बेटा,” और उसके लण्ड को अपने हाथों से जोर जोर से झटकने लगी। हम दोनों इसी तरह 69 की पोजीशन में एक दो घण्टे लेटे रहे, और पूरे कमरे में बस हमारी कराह और सिसकारियाँ ही सुनाई दे रही थीं।
और जब अमर के लण्ड से फ़िर से पानी निकला तो मैंने अपना मुँह खोल दिया, जिससे उसके वीर्य के पानी की सारी पिचकारियाँ ने मेरे चेहरे और मुँह को पूरी तरह भिगो दिया। और फ़िर हम दोनों वैसे ही नंगे निढाल होकर बैड पर लेटे रहे।
कुछ देर बाद जब मैं उठी तो मैंने अपने चेहरे पर लगे वीर्य को अपनी उँगलियों से पोंछा, और फ़िर उँगलियों को अपनी जीभ से चाट लिया। अमर तकिये का सहारा लगाकर बैड पर बैठे हुए अपनी मम्मी को पूर्ण नग्नावस्था में खुद का वीर्य उस दिन दूसरी बार चाटते हुए देख रहा था।
”बहुत मजा आया मम्मी,” अमर कुछ समय बाद बोला, ”आपको भी आया ना, आप मुझसे गुस्सा तो नहीं हो ना, मम्मी? मैं तो बस…”
मुझे उसकी बात सुनकर बरबस उस पर प्यार आ गया, और मैंने उसके होठों को चूम लिया।
”अरे, नहीं बेटा, तुम्हारी खुशी के लिये तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ। तुम मेरा और सन्नो का कितना ख्याल रखते हो, और ये तो तुम्हारे जवान जिस्म की जरूरत है, बाहर जाकर किसी रन्डी के ऊपर रुपये उड़ाने से तो अच्छा ही है कि तुम अपने जिस्म की जरूरत मेरे साथ ही पूरी कर लो, किसी बीमारी होने का खतरा भी नहीं रहेगा। आज के बाद जब भी तुम्हारा मन मेरी चूत को चाटने का करे, तो चाट लिया करना, और मैं तुम्हारे लण्ड को चूस कर उसका पानी निकाल दिया करुँगी, ठीक है?”
अमर मेरी बात सुनकर खुश हो गया, और मुस्कुराते हुए बोला, ”हाँ मम्मी ये ठीक रहेगा।”
”मेरा प्यारा बेटा, हाँ एक बात और, तुम चूत बहुत अच्छा चूसते और चाटते हो, आज मैं बहुत दिनों के बाद इतना अच्छा वाला झड़ी हूँ।”
”थैन्क्स मम्मी, आप मेरा कितना ख्याल रखती हो,” अमर शरारती अन्दाज में बोला, ”लगता है आपके जिस्म को भी इसकी जरूरत थी।”
ये सुनकर मैं हँस पड़ी और मजाक में अमर की छाती पर एक प्यार भरी चपत लगा दी। ”चल अब सो जा, सुबह फ़िर फ़ैक्ट्री भी काम पर जाना है। सोने से पहले रोजाना रात को इसी तरह मैं तेरी सारी थकान मिटा दिया करूँगी।”
जब मैं बैड से उठकर बाथरूम की तरफ़ जाने लगी तो अमर मेरे नंगे बदन, मटकती हुई गाँड़ और हिलते हुए मम्मों को निहार रहा था। अगले दिन सुबह जब मैंने अमर को नाश्ता परोस रही थी तब अमर मुस्कुराते हुए बोला, ”मम्मी आज के बाद आप मेरी मुट्ठ मत मारा करना, आप चूस के ही मेरा पानी निकाला करना।”
मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा भर दी।
मेरा कोई उत्तर ना पाकर अमर मेरी आँखों में आँखे डालते हुए बोला, ”या फ़िर आपके मम्मों के बीच में घिसकर…”
”ठीक है, जैसे चाहो वैसे कर लेना, चलो अब जल्दी से नाश्ता करो और फ़िर काम पर जाओ, नहीं तो लेट हो जाओगे।”
लेकिन मन ही मन मेरे मन में अमर से अपनी गाँड़ मरवाने के विचार चल रहे थे। ये सोचकर ही मेरे दिल की धड़कन तेज हो रही थी, और अपने बेटे अमर के मोटे लण्ड को अपनी गाँड़ के छोटे से छेद में घुसाने का विचार आते ही मेरी चूत पनियाने लगी। अमर के फ़ैक्ट्री जाने के बाद मैं अपने बदन को अलमारी के आदमकद शीशे में निहारने लगी।
मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिये और अपने मम्मों को दोनों हाथों में भरकर मसलने लगी। और अमर के लण्ड के बारे में सोचते हुए अपने निप्पल मींजने लगी। और कुछ देर बाद ही मेरा एक हाथ मेरी चूत पर पहुँच गया, और उसकी उंगलियाँ मेरी चूत को सहलाने लगीं।
और जब एक उँगली मेरी गीली चूत के दाने को सहलाने के बाद चूत के छेद के अंदर घुसी तो मेरी आँखें खुदबखुद बंद हो गयीं। शाम को जब अमर फ़ैक्ट्री से घर लौटा तो वो बहुत खुश था, उसका प्रोमोशन हो गया था, और वो सुपरवाइजर बन गया था।
इसे भी पढ़े – वाइल्ड तरीके से चुदवा रही थी मम्मी अंकल से
उसकी पगार भी दुगनी हो गयी थी। उसने आते ही खुशी से मुझे चूम लिया, मैं भी उसकी तरक्की पर खुश थी। मेरे कहने पर वो मंदिर चलने को तैयार हो गया, मंदिर से लौटते समय सिटी बस में मैं उस से चिपक कर बैठी हुई थी, वो मेरे स्पर्ष का भरपूर आनंद ले रहा था। सिटी बस से उतर कर जब हम दोनों घर आ रहे थे, तो मैंने अमर से कहा, ”ये तुम्हारी इमानदारी और मेहनत का ही नतीजा है कि सेठ ने तुम्हे तरक्की दी है, सब ऊपर वाले की मेहर है।
भगवान ने तुम्हे बरकत दी है, मैं भी आज रात तुम्हे कुछ स्पेशल चीज दूंगी।” इतना कहकर मैं कुटिलता से मुस्कुरा दी। मेरी इस मुस्कान के राज को अमर समझने का प्रयास करने लगा। ”रात में स्पेशल… क्या दोगी मम्मी? मुँह में तो डाल ही चुका हूँ, अब बस दो ही जगह बची हैं।” इतना कहकर अमर हँसने लगा। ”कुछ घण्टों बाद खुद ही देख लेना बेटा।” दोस्तों अभी कहानी बाकि है, आगे क्या हुआ रात में जानने के लिए कहानी का अगला भाग पढ़े…