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कामुकता से भरी अन्तर्वासना कहानी 3

मार्च 23, 2021 by hamari

Naukrani Ki Choli Fati

हिंदी देहाती सेक्स स्टोरीज नमस्कार दोस्तों मैं सतीश फिर से स्वागत करता हूँ आपका हमारी वासना पर. दोस्तों आपने मेरी पिछली सेक्सी कथा कामुकता से भरी अन्तर्वासना कहानी 2 में पढ़ा होगा की. कैसे सरिता और धर्मेन्द्र अपनी सेक्सी शरारतो से मुझे पागल कर रहे थे अब आगे-  Naukrani Ki Choli Fati

धर्मेन्द्र सरिता को उठाकर मेरे कमरे में ले आया। सरिता अपनी छटपटाहट से धर्मेन्द्र का काम मुश्किल बना रही थी। सरिता जैसे तैसे धर्मेन्द्र के चुंगल से छटकना चाहती थी। पर अब धर्मेन्द्र ज़रा भी असावधान रहने वाला नहीं था। धर्मेन्द्र ने सरिता को पलंग पर लिटाया। मैं कमरे से बाहर निकल आया और पीछे से दरवाजा बंद किया तो धर्मेन्द्र ने कहा, “छोटे भैया, दरवाजा खुला ही रहने दो। आज यह छमनियाँ मुझसे कैसे चुदती है वह तुम भी देखो।”

पर मैं बाहर निकल आया। मुझे अंदर से दोनों की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। सरिता अभी भी धर्मेन्द्र को चुनौती दे रही थी। वह बोली, “अच्छा! तो तू सोच रहा है तू मुझे आज चोदेगा? तू अपने आपको क्या समझता है? तू मुझे छूना भी मत। अगर तूने मुझे छुया भी तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी।”

तब धर्मेन्द्र बोला, “अरे छमिया, तू मुझे छोड़ना भी मत। मैं भी तुझे चोदुँगा जरूर, पर छोडूंगा नहीं। आज मैं तुम्हें पहली बार चोदुँगा पर आखरी बार नहीं। अब तू मेरी ही बन कर रहेगी। तू मेरे बच्चों की माँ बनेगी और मेरे पोतों की दादी माँ।”

सरिता ने यह सूना पर पहली बार उसका जवाब नहीं दिया। धर्मेन्द्र ने उसे मेरे पलंग पर लिटाया और भाग न जाए इसके लिए धर्मेन्द्र ने सरिता को अपने बदन के नीच दबा कर रखा। धर्मेन्द्र ने अपना सारा वजन सरिता के बदन पर लाद दिया था। सरिता ने एड़ीचोटी का जोर लगा दिया पर अब धर्मेन्द्र उसे छोड़ने वाला नहीं था।

मुझसे रहा नहीं। गया मैंने दरवाजे के अन्दर झांका तो देखा की धर्मेन्द्र सरिता को अपने तले दबा कर उसके ऊपर चढ़ गया था। सरिता को धर्मेन्द्र ने अपनी दो टाँगों में फाँस कर अपना लण्ड उसकी चूत से सटा कर वह सरिता के ऊपर लेट गया। सरिता के लिए अब थोड़ा सा भी हिलना नामुमकिन था।

उसने अपना मुंह सरिता के मुंह पर रखा और अपने होंठ सरिता के होंठ से भींच कर उसे चुम्बन करने लगा। इतना घमासान करने के बावजूद जब धर्मेन्द्र के होंठ सरिता के होंठ से सट गए तो सरिता चुप हो गयी और धर्मेन्द्र को चुम्बन में साथ देने लगी। उसके हाथ फिर भी धर्मेन्द्र की छाती को पिट रहे थे।

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धर्मेन्द्र ने अपनी जीभ सरिता के मुंह में डाली और उसे अंदर बाहर करने लगा। मुझे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब मैंने देखा की सरिता ने अपने होठों से धर्मेन्द्र की जीभ को जकड लिया और उसकी जीभ को चूसना शुरू किया। अब ऐसा लग रहा था जैसे धर्मेन्द्र सरिता के मुंहको अपनी जीभ से चोद रहा था। इस तरह धर्मेन्द्र सरिता के मुंह को अपनी जीभ से काफी समय तक चोदता रहा और सरिता चुपचाप इसे एन्जॉय करती रही। “Naukrani Ki Choli Fati”

जब धर्मेन्द्र ने अपना मुंह सरिता के मुंह से हटाया तो सरिता बोली, “धर्मेन्द्र तुम अपना शरीर ऊपर से थोड़ा हटा कर तो देखो, मैं कैसे भागती हूँ।”

धर्मेन्द्र ने सरिता की हुए हँस कर बोलै, “अच्छा? मैं उपर से हट जाऊं तो तुम भाग जाओगी?” सरिता ने मुंडी हिलायी।

अचानक एक ही झटके में धर्मेन्द्र ने सरिता की चोली जोर से खिंच कर फाड़ डाली। फिर उसने सरिता की ब्रा को पकड़ा और एक ही झटक में तोड़ फेंका। सरिता ऊपर से नंगी हो गयी। उसकी बड़े बड़े स्तन एकदम पहाड़ की दो चोटियों की तरह उन्नत और उद्दण्ड दिख रहे थे। मैं

 दरवाजे की फाड़ में से सरिता की इतनी सुन्दर रसीली भरी हुई चूचियों को देखता ही रहा। धर्मेन्द्र ने अपना मुंह सरिता की चूँचियों पर सटा दिया और वह उनको चूसने लगा। सरिता की शकल उस समय देखने वाली थी। वह अपने मस्त स्तनों को पहली बार कोई मर्द से चुसवा रही थी और उसका नशा उसकी आखों में साफ़ झलक रहा था।

अब वह अपने बाग़ी तेवर भूल ही गयी हो ऐसा लग रहा था। अब वह धर्मेन्द्र के मुंह को अपने स्तनों पर अनुभव कर रही थी और ऐसा लग रहाथा की वह चाहती नहीं थी की धर्मेन्द्र वहाँ से अपना मुंह हटाए। धर्मेन्द्र भी जैसे सालों का प्यासा हो ऐसे सरिता के स्तनों पर चिपका हुआ था।

लग रहा था जैसे सरिता के स्तनों में से कोई रस झर रहा था जिसे पीकर धर्मेन्द्र उन्मत्त होरहा था। ऐसे ही कुछ मिन्टों तक चलता रहा। उसके बाद धर्मेन्द्र ने अपना मुंह सरिता के स्तनों से हटाया और स्वयं भी बाजू में हट गया। धर्मेन्द्र सरिता की और देखने लगा। वह सरिता को खुली चुनौती दे रहा था, की अगर सरिता में हिम्मत हो तो वह भाग कर दिखाए। “Naukrani Ki Choli Fati”

सरिता ने धर्मेन्द्र की और देखा। वह धीरे से बैठ गयी। मैं हैरान था की सरिता के बैठने पर भी उसके स्तन ज़रा से भी झुके नहीं। उनमें ज़रा सी भी शिथिलता नहीं थी। उसकी निप्पलेँ कड़क और एकदम अकड़ी हुई थी। उसके स्तन ऐसे भरे हुए अनार के फल के सामान फुले हुए और सरिता की अल्हड़ता को साक्षात् रूप में अभिभूत कर रहे थे।

सरिता ने एक नजर धर्मेन्द्र की और देखा और बोली, “लेले मजे, तुम मुझे इस तरह नंगी कर के कह रहे हो भग ले? तुम जानते हो की मैं ऐसे बाहर नहीं जा सकती। तुम बहुत चालु हो। आखिर तुमने मुझे फाँस ही लिया। अब मैं तुमको छोडूंगी नहीं। तू क्या समझता है अपने आपको।“

ऐसा कह कर सरिता ने धर्मेन्द्र का कुरता पकड़ कर उसे अपनी और खींचा। धर्मेन्द्र असावधान था और धड़ाम से सरिता के ऊपर जा गिरा। अब सरिता ने उसे अपनी बाहों में लिया और कस के पकड़ा और बोली, “अब तू मुझसे दूर जा कर के तो दिखा। अब तक तो इतना फड़फड़ा रहा था। अब आजा, मेरी प्यास बुझा रे! अब तक जो तू मुझे इतने जोर से अपनी मर्दानगी का विज्ञापन कर रहा था तो उसको दिखा तो सही।”

सरिता ने आगे बढ़ कर धर्मेन्द्र के पाजामे का नाडा खोल दिया और देखते ही देखते धर्मेन्द्र का पजामा निचे गिर पड़ा। धर्मेन्द्र अपने निक्कर में अजीब सा लग रहा था। सरिता ने अपना हाथ धर्मेन्द्र के निक्कर पर उसकी टांगों के बिच में फिराया। वह उसके लण्ड का जैसे मुआयना कर रही थी। “Naukrani Ki Choli Fati”

सरिता ने धर्मेन्द्र के निक्कर के ऊपर से ही उसके लण्ड को सहलाना शुरू किया। जरूर उसका हाथ धर्मेन्द्र ले लण्ड से रिस रही चिकनाहट से चिकना हो गया होगा। मुझे भी धर्मेन्द्र के लण्ड के फूलने के कारण उसकी निक्कर पर उसके पाँव के बिच बना हुआ तम्बू साफ़ दिखाई दे रहा था।

सरिता शायद धर्मेन्द्र के लण्ड की लम्बाई और मोटाई की पैमाइश कर रही थी। शायद उसके लिए किसी मर्द के लण्ड को छूने और सहलाने का पहला ही मौक़ा था। शायद सरिता देखना चाहती थी की जो लण्ड जल्द ही उसकी चूत में घुसने वाला है वह उसकी चूत को कितना फैलाएगा और उसको कितना मजा देगा।

सरिता के सहलाते ही देखते ही देखते धर्मेन्द्र का लण्ड फैलता ही जा रहा था। धर्मेन्द्र के पाँवोँ के बिच का तम्बू बड़ा ही होता जा रहा था। अब तो मुझे भी उसके पाँव के बिच का गीलापन साफ़ नजर आ रहा था। धर्मेन्द्र के लण्ड की पैमाइश करते ही सरिता की बोलती बंद हो गयी।

सरिता शायद यह सोच कर चुप हो गयी की आखिर उसे भी तो धर्मेन्द्र का लण्ड चाहिए था। उसे भी तो उसके पाँव के बिच जवानी की ललक लगी हुई थी। वह भी तो पिछले कितने हफ़्तों से इस लण्ड के सपने देख रही थी। शायद सरिता ने यह नहीं सोचा होगा की धर्मेन्द्र का लण्ड उतना बड़ा होगा। जो भी कारण हो। “Naukrani Ki Choli Fati”

सरिता जो तब तक इतना हंगामा कर रही थी अब जैसे एक अजीब सी तंद्रा में धर्मेन्द्र के लण्ड का अपने हाथों में अनुभव कर रही थी और मंत्र्मुग्ष जैसी लग रही थी। जबकि धर्मेन्द्र की नजरें सरिता के सुगठित दो पके हुए आमके फल सामान स्तनों के मद मस्त आकार को देखने और हाथ दोनों को मसल ने और सहलाने में लगे हुए थे।

सरिता के उन्मत्त उरोज की निप्पलेँ आम की डंठल की तरह फूली और कड़क दबवाने और चुसवाने का जैसे बड़ी उत्सुकता पूर्वक इंतजार कर रही थीं। उसकी मदमस्त चूँचियाँ धर्मेन्द्र के लण्ड पर केहर ढा रही थीं। धर्मेन्द्र के लिए रुकना तब बड़ा ही मुश्किल हो रहा होगा।

तो फिर सरिता का भी तो वैसा ही हाल था। मुझे साफ़ दिख रहा था की सरिता भी धर्मेन्द्र से चुदवाने के लिए जैसे बाँवरी हो रही थी। अब उसका भी पूरा ध्यान धर्मेन्द्र के लण्ड पर था। सरिता ने धीरे से धर्मेन्द्र के निक्कर के बटनों को अपनी लम्बी उँगलियों से खोला.

और एकदम धर्मेन्द्र का लण्ड जैसे एक बड़ा अजगर छेड़ने से अपने बिल में से फुफकार मारते हुए बाहर आता है. वैसे ही धर्मेन्द्र की निक्कर से निकल कर सरिता के हाथों में फ़ैल गया। धर्मेन्द्र का फुला हुआ लण्ड सरिता की हथेली में देख कर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे सरिता बड़ी मुश्किल से अपनी हथेली में उसे पकड़ पा रही थी।

बार बार धर्मेन्द्र का लण्ड सरिता की हथेली से फिसल कर निचे गिर कर लटक जाता था। सरिता उसे बार बार वापस अपनी छोटी सी हथेली में ले रही थी। धर्मेन्द्र का लण्ड देखते ही सरिता को तो जैसे साप सूंघ गया हो ऐसी शकल हो गयी। वह मंत्रमुग्ध होकर चुपचाप वह एकटक लण्ड को ही देख रही थी। “Naukrani Ki Choli Fati”

देखते ही देखते सरिता ने पलंग से निचे उतर कर अपना सर धर्मेन्द्र की टांगों के बिच रखा और धर्मेन्द्र के लण्ड के करीब अपना मुंह ले गयी। कुछ देर तक तो वह धर्मेन्द्र के लण्ड को एकदम करीब से निहारती रही फिर धीरे से उसने अपनी जीभ लम्बी करके धर्मेन्द्र के लण्ड के टोपे को चाटना शुरू किया।

धर्मेन्द्र का पूर्व रस धर्मेन्द्र के लण्ड के टोपे के केंद्र बिंदु से रिस्ता ही जा रहा था। सरिता उसे अपनी जीभ से चाटकर निगलने लगी। धीरे से फिर सरिता ने अपना मुंह और निकट लिया और धर्मेन्द्र के लण्ड को अपने मुंह में अपने होठों के बिच ले लिया।

धीरे धीरे उसने अपना सर हिलाना शुरू किया और धर्मेन्द्र के लण्ड के टोपे को पूरी तरह अपने मुंह में लेकर अपने होंठ और जीभ से अंदर बाहर करने लगी और साथ साथ चूसने लगी। धर्मेन्द्र भी तो अब सरिता के कार्यकलाप से पागल हो रहा था।

उसे तो कल्पना भी नहीं थी की ऐसी शेरनी जैसी लगने वाली यह अल्हड लड़की अब उसकी इतनी दीवानी हो जाएगी और एक भीगी बिल्ली की तरह उसके हाथ लग जायेगी । अनायास ही धर्मेन्द्र भी अब अपना पेडू से अपना लण्ड सरिता के मुंह में धक्के देकर अंदर बाहर करते हुए घुसेड़ने लगा। “Naukrani Ki Choli Fati”

ऐसा लग रहा था जैसे धर्मेन्द्र सरिता के मुंह को चोद रहा था। सरिता धर्मेन्द्र के इतने मोटे लण्ड को अपने मुंहमें पूरी तरह से ले नहीं पा रही थी। फिर भी अपने गालों को फुलाकर वह धर्मेन्द्र के लण्ड को चूसने लगी।

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धर्मेन्द्र से रहा नहीं जा रहा था। धर्मेन्द्र ने हलके से अपने लण्ड को सरिता के मुंह से निकाला और धीरे से सरिता को बोला, “पगली, आज मुझे तुझे तेरी चूत में चोदना है। मैं अब तुझे मेरे इस लण्ड के लिए ऐसा पागल कर दूंगा की तू अब मेरे पीछे पीछे मुझसे चुदवाने के लिए मिन्नतें करेगी और तब ही मैं तुझे चोदूँगा।

यह सुनते ही जैसे सरिता अपने मूल रूप में आ गयी और बोली, “हट बे लम्पट! यह तो मुझे तुझपे रहम आ गया। सोचा, चलो तू इतना पीछे पड़ा था तो तुझे ही देती हूँ। तू भी क्या याद करेगा। वरना मैं और तुझे मिन्नतें करूँ? अरे एकबार अपनी शकल आयने में तो देख।”

सरिता धर्मेन्द्र को हड़काने में लगी हुई थी, की धर्मेन्द्र ने सरिता के घाघरे का नाडा खोल दिया और सरिता को पता भी नहीं चला। जैसे ही सरिता समझी तो खड़ी हुई। सरिता के खड़े होते ही उसका घाघरा निचे गिर पड़ा। सरिता अब सिर्फ एक चड्डी जैसी पैंटी पहनी हुई थी। “Naukrani Ki Choli Fati”

सरिता को इसकी भनक लगे उसके पहले ही एक झटके में धर्मेन्द्र ने सरिता की पैंटी को निचे की और खिंच लिया और सरिता पूरी नंगी हो गयी। बापरे! मैंने उससे पहले इतनी खूबसूरत कोई जवान नंगी लड़की नहीं देखि थी। (वैसे भी मैंने तब तक और कोई नंगी लड़की नहीं देखि थी। ) नंगी खड़ी हुई सरिता कोई अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।

क्या गजब के घुंघराले बालों के गुच्छे और कान पर और नाक पर फैली उसके बालों की लटें! क्या घनी और धनुष के अकार सामान उसकी भौंहें! ऑयहोय! कैसा गज़ब ढ़ा रही थीं उसकी लम्बी पलकें! क्या मदहोश उसकी आँखें! क्या नशीले और कुदरती लाल होंठ जो कटाक्ष पूर्ण मुद्रा में दिख रहे थे!

उसकी लम्बी और पतली गर्दन जो निचे से उसके हसीं कन्धों से जुडी हुई थी। क्या जवान कड़क और ग़ज़ब के खूबसूरत उसके मम्मों का आकार! कैसे फूली हुई करारी उस मम्मों पर उद्दंडता से खड़ी हुई निप्पलेँ! क्या ईमान ख़तम करने वाला उसके पेट, कमर और नितम्ब का घुमाव और क्या उसकी हल्केफुल्के बालों वाली उभरी हुई चूत!

उसके नितम्ब और उसकी मदहोश करने वाली चूत से निचे उसकी उत्तेजना से थिरकती हुई सुआकार जांघें ऐसी लग रहीथीं जैसे एक बड़ी नदी में से पतली सी दो नदियाँ निकल रही हों! उस नंगी मूरत को देख मेरा लण्ड भी खड़ा हो गया। और ऐसा खड़ा हो गया की मुझसे रहा ही नहीं जा रहा था। “Naukrani Ki Choli Fati”

जब मैं छुपा हुआ इतनी दूर खड़ा हुआ था और फिर भी मेरा यह हाल था, तो सोचो की उस क़ुदरत की अति सुन्दर नग्न मूरत को इतने करीब से देख रहे धर्मेन्द्र का हाल क्या हुआ होगा? वह तो कोई दक्ष कलाकार की तराशी हुई अद्भुत संगमरमर की उस नग्न मूरत समान खड़ी सरिता को ठगा हुआ देखता ही रहा। “Naukrani Ki Choli Fati”

उसका लंबा घंट के सामान लण्ड एकदम सावधान पोजीशन में अकड़ा हुआ खड़ा था जिसमें से उसका पूर्व रस रिसता ही जा रहा था। सरिता ने उसका अक्कड़ खड़ा हुआ घंटा अपने हाथों में पकड़ा और उसे धीरे धीरे हिलाती हुई बोली, “अरे फक्कड़, क्या देख रहा है?

मैं यहां एक औरत हो कर नंगी खड़ी हूँ और तू साला पहले तो बड़ी डिंग मारता था, की “तुझे चोदुँगा तुझे चोदुँगा” तो अब तुझे क्या साप सूंघ गया है? कुछ न करते हुए बस मुझे नंगी देखकर घूरता ही जा रहा है? घूरता ही जा रहा है? चल कपडे निकाल! तू भी नंगा होकर दिखा। साले मुझे भी तो तुझे नंगा देखना है।

देखूं तो सही की कैसा लगता है मेरा मर्दानगी भरा छैला?” धर्मेन्द्र जो सरिता की नग्न अंगभँगिमा में खोगया था उस तंद्रा से वापस धरती पर आया। धर्मेन्द्र ने पाया की उसके सपनों की रानी जिसे सपनों में देखकर मूठ मारते मारते उसकी हालत खराब हो जाती थी, स्वयं वह तब उसके सामने नग्न खड़ी उसे चोदने का आह्वान कर रही थी। “Naukrani Ki Choli Fati”

उस सुबह की और उसके पहले की कई महीनों की उसकी सरिता को फ़साने की मेहनत फलीभूत होती हुई नजर आ रही थी। उस नंगी खड़ी हुई औरत का हरेक अंग धर्मेन्द्र के सपनों में आयी हुई सरिता के हर अंग से कितना मिलता था! धर्मेन्द्र तो जैसे नंगी खड़ी हुई सरिता का दीवाना ही हो गया।

तब उसे उस देवी को कैसे मैं खूब खुश करूँ? यही बात मन में आ रही थी। अपने लण्ड की बेचैनी की और न ध्यान देते हुए धर्मेन्द्र जमीं पर घुटनों के बल आधा खड़ा हुआ और उसने बड़े प्यार से सरिता को पलंग पर बिठाया और सरिता के पैरों को चौड़े कर उनके बीचमें अपना सर घुसेड़ा।

उसने देखा की सरिता की चुदवाने की उत्तेजना उसकी चूत में से बूँदें बन कर टपक रही थीं। सरिता की उत्तेजना से भरा उसका पूर्व रस उसकी चूत में से निकल कर उस की जाँघों पर पतली सी धारा बनकर बह रहा था। “Naukrani Ki Choli Fati”

धर्मेन्द्रको उसका आस्वादन करना था। धर्मेन्द्र ने अपनी जीभ लम्बाई और सरिता की चूत की दरार में घुसादी। धर्मेन्द्र की जीभ जब सरिता की संवेदनशील त्वचा को चाटने और कुरेदने लगी तो सरिता मारे उत्तेजना से पगला सी गयी। एक अकल्पनीय सिहरन सरिता के बदनमें दौड़ रही थी।

उसकी चूत की अंदरूनी त्वचा ऐसे चटक रही थी जैसा सरिता ने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। धर्मेन्द्र का सर अपने हाथों में पकड़ कर सरिता धर्मेन्द्र के काले घने घुंघराले बालों को जैसे अपनी उँगलियों से कंघा करने लगी। “Naukrani Ki Choli Fati”

सरिता धर्मेन्द्र के बालों द्वारा धर्मेन्द्र का सर अपने हाथों में पकड़ कर जैसे अपनी चूत में और अंदर घुसेड़ रही थी. और अपनी चूत को चटवाने की धर्मेन्द्र की प्रक्रिया पर अपने उत्तेजित बदन का हाल बयाँ कर रही थी।

जैसे धर्मेन्द्र ने अपनी जीभ और ज्यादा घुसेड़ी और और फुर्ती से चाटना शुरू किया की सरिता कांपने लगी और उत्तेजना के शिखर पर जैसे पहुँचने वाली ही थी। तब शायद धर्मेन्द्र थोड़ा सा थका सा लगा। उसने थोड़ा पीछे हट कर अपनी दो उंगलियां सरिता की चूत में डाली।

जैसे ही धर्मेन्द्र की दो उंगलियां सरिता की चूत की अंतर्त्वचा को स्पर्श करने लगी की सरिता उछल पड़ी। शायद सरिता की चूत से उसके पूर्व रस का प्रवाह ऐसा बहने लगा की मैंने देखा की धर्मेन्द्र ने उसमें से डूबी हुई उंगलियां को मुंह में रखकर उन्हें ऐसे चाटने लगा जैसे वह शहद हो।

जब सरिता ने धर्मेन्द्र को उंगलियां चाटते देखा तो वह अनायास ही हँस पड़ी। उसे तब एहसास हुआ की धर्मेन्द्र उसे सिर्फ चोदने के लिए ही इच्छुक नहीं है, वह वास्तव मैं सरिता को चाहता है। तब सरिता ने धर्मेन्द्र के होंठ से अपने होंठ मिलाये और धर्मेन्द्र की बाँहों में समा गयी। “Naukrani Ki Choli Fati”

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अब उसे धर्मेन्द्र से चुदने में कोई भी आपत्ति नजर नहीं आ रही थी। बल्कि वह धर्मेन्द्र से चुदवाने के लिए बड़ी आतुर लग रही थी। एक हाथ की दो उँगलियों से धर्मेन्द्र सरिता को चोद रहा था तो उसका दुसरा हाथ सरिता के स्तनों को जोर से पकडे हुए था। बार बार वह उन उन्मत्त स्तनों को कस कर भींचे जा रहा था। तो कभी वह झुक कर उनमें से एक स्तन को अपने मुंह में लेकर उन्हें चूसता था। जैसे जैसे धर्मेन्द्र की सरिता को उँगलियों से चोदने की रफ़्तार बढ़ने लगी, वैसे वैसे सरिता अपने कूल्हे उठाकर धर्मेन्द्र को और जोर से उंगली चोदन करने का आह्वान कर रही थी।

उन दोनों प्रेमियों की हालत देखकर मेरा बुरा हाल हो रहा था। पहले मैं जब भी सरिता को देखता था तो मेरी नजर सबसे पहले उसकी चूचियों पर ही जाती थी। उसकी चोली के पीछे उसकी चूचियां इतनी मदमस्त लगती थीं की क्या बताऊँ? मुझे बचपन से ही लडकियां और बड़ी औरतों के मम्मे बहुत भाते थे। जब कोई औरत के भरे हुए स्तनों का उभार ऊपर से अगर नजर आ जाता था तो उन स्तनों का उभार देख कर ही मेरे लण्ड में से पानी झर ने लगता था। जैसे जैसे मैं बड़ा होने लगा तो यह पागल पन बढ़ता ही गया। “Naukrani Ki Choli Fati”

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