Sex Ka Khula Aamantran
गाँव की पेला पेली कहानी आपका स्वागत है दोस्तों, मेरा नाम सतीश है. एक बार फिर आप सब का धन्यवाद. दोस्तों आपने मेरी कहानी कामुकता से भरी अन्तर्वासना कहानी 1 का पहला भाग तो जरुर पढ़ा होगा. ये कहानी उसके आगे की बात है. तो कहानी का पूरा मज़ा लेने के लिए पहला भाग जरुर पढ़े. अब आगे- Sex Ka Khula Aamantran
धर्मेन्द्र के वापस आने के बाद धर्मेन्द्र और सरिता की शरारत भरी मस्ती बढ़ती ही जा रही थी। करीब हर रोज, माँ की नजर चुका कर धर्मेन्द्र सरिता को जकड ने कोशिश में लगा रहता था और सरिता उसे अंगूठा दिखाकर एक शरारत भरी नजर से देख हंस कर खिसक जाती थी।
एक दिन सुबह मैं कमरे में पढ़ाई कर रहा था तब सरिता आयी। थोड़ी देर तक तो हम दोनों बात करते रहे पर फिर मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने पूछ ही लिया की उसके और धर्मेन्द्र के बिच में क्या चल रहा था।
सरिता ने मुझे कहा,”छोटे भैया, उसके लण्ड में जवानी की खुजली हो रही है। वह अपनी हवस की भूख मुझसे बुझाना चाहता है। ”
तब मैंने सरिता की और देखा और पूछा, “और तुम? तुम क्या चाहती हो?”
सरिता ने सीधा जवाब दिया, “छोटे भैया, सच कहूं? मेरा भी वही हाल है। मुझे भी खुजली हो रही है। पर मैं आसानी से उसके चुंगल में फंसने वाली नहीं हूँ। मैं देखना चाहती हूँ की उसमें कितना दम है।”
मैं सरिता की बात सुन हैरान रह गया। बाप रे! एक सीधी सादी गॉंव की लड़की और इतनी चालाक? मेरी उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। मैं देखना चाहता था की उन दोनों की जवानी क्या रंग लाती है।
ऐसे ही दिन बितते चले गए। धर्मेन्द्र को सरिता को फाँसने का मौक़ा नहीं मिल रहा था। माँ के रहने से सरिता को खिसक ने का मौक़ा मिल जाता था, और धर्मेन्द्र हाथ पे हाथ धरे वापस चला जाता था।
कुछ दिनों के बाद एक दिन हमारी कॉलोनी के दूसरे छोर पर सुबह कॉलोनी की सारी महिलाओं ने मिलकर एक घर में सत्संग का कार्यक्रम रखा था। माँ सुबह तैयार हो कर मुझे घर का ध्यान रखने की हिदायत दे कर सत्संग में जाने के लिए निकली।
मैं अपनी पढ़ाई में लगा हुआ था की सरिता आयी और बर्तन मांजने बैठ गयी। बर्तन करने के बाद जब रसोई में झाड़ू लगा रही थी तब तो धर्मेन्द्र प्रसाद पाइप लेकर घरमें दाखिल हुआ। उसे पता लग गया की घर में मेरे और सरिता के अलावा कोई नहीं था।
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धर्मेन्द्र ने मुझे देखा तो इशारा कर के मुझे सरिता के बारेमें पूछने लगा। मैंने धर्मेन्द्र को रसोई की और इशारा किया। धर्मेन्द्र समझ गया की सरिता रसोई में है। धर्मेन्द्र ने मुझे अपने नाक और होंठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया। मैं समझ गया की उस दिन कुछ न कुछ तो होने वाला था। “Sex Ka Khula Aamantran”
बस फिर क्या था? उसने चुपचाप टंकी में पाइप डाला और बाहर जा कर नलका खोल कर पाइप को टंकी में पानी भर ने छोड़ दिया। सरिता तब रसोई घर में झाड़ू लगा रही थी। उसे पता नहीं था की धर्मेन्द्र आया था। धर्मेन्द्र चोरीसे दरवाजे के पीछे छुपते हुए सरिता को देखने लगा।
मैं सारा नजारा देख रहा था। जैसे ही सरिता दरवाजे से बाहर निकलने लगी की धर्मेन्द्र ने उसे अपनी बाहों में दबोच लिया। सरिता धर्मेन्द्र की बाहोंमें छटपटाने और चिल्लाने लगी। उसे पता था की घरमें मेरे अलावा कोई भी नहीं था।
जैसे तैसे धर्मेन्द्र से अपने आपको छुड़ा कर वह मेरे कमरे की और भागी और मेरे कमरे में घुस कर उसने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। मैं अपने कमरे में ही था। तब मैंने सरिता से पूछा, “क्या मैं चिल्ला कर सब को बुलाऊँ?”
सरिता ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली, “यह हमारे तीनों के बिच की बात है। किसी चौथे को पता नहीं लगना चाहिए। ठीक है?”
मैंने अपना सर हिलाया। उधर बाहर से धर्मेन्द्र दरवाजा खटखटाने लगा। मैंने सरिता की और देखा। वह जोर जोर से हाँफ रही थी। जोर जोर से सांस लेने के कारण उसकी छाती धमनी की तरह ऊपर निचे हो रही थी। उसके मोटे फल सामान परिपक्व स्तन ऊपर निचे हो रहे थे। मैं उसे देखते ही रहा। “Sex Ka Khula Aamantran”
सरिता ने मुझे उसकी छाती को घूरते हुए देखा तो बोली, “कैसी लग रही है मेरी चूचियां? मेरे मम्मे अच्छे लग रहे हैं ना? तुम्हें उनको छूना है क्या?”
मैं घबड़ाया हुआ सरिता की और देखने लगा। सरिता ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी छाती पर रखा और बोली, “दबाओ मेरे शेर, इन्हें खूब दबाओ। आज इन्हें खूब दबना है।”
मैं भी पागलों की तरह सरिता के दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों से उसकी चोली के ऊपर से ही जोर से दबाने लगा। आह! कितने मुलायम और कितने कड़क थे उसके मम्मे! उतने में ही बाहर से धर्मेन्द्र की जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आयी।
वह हमें दरवाजा खोलने के लिए कह रहा था। मैंने फिर सरिता की देखा। मैंने सरिता से कहा, “आज धर्मेन्द्र तुम्हें नहीं छोड़ेगा। आज वह पक्के इरादे से आया लगता है। क्या करना करना है, बोलो?”
सरिता की सांस थोड़ी थमी तो वह बोली, “धीरे से अचानक ही दरवाजा खोलना। मैं निकल कर भागुंगी। मैं देखती हूँ वह मुझे कैसे पकड़ पाता है?”
मैं चुपचाप दरवाजे के करीब खड़ा हो गया, और एक ही झटके में मैंने दरवाजा खोल दिया। सरिता एकदम निकल कर भागी। पर उसका इतना बड़ा और मोटा घाघरा उसको ज्यादा तेजी से कहाँ भागने देने वाला था? थोड़ी ही दुर में धर्मेन्द्र ने भाग कर पकड़ लिया और उसे अपनी बाहों में फिरसे दबोच लिया। “Sex Ka Khula Aamantran”
अब सरिता कितना भी छटपटाये वह उसे छोड़ने वाला नहीं था। देखने की बात वह थी की सरिता भी उसकी पकड़ से छूटने की बड़ी भारी कोशिश कर रही थी पर थोड़ा सा भी चिल्लाना तो क्या आवाज भी नहीं निकाल रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह नहीं चाहती थी की कोई उसे छुड़ाए पर वह जैसे धर्मेन्द्र की मर्दानगी को चुनौती दे रही थी।
धर्मेन्द्र की चंगुल से छूटने के लिए वह धर्मेन्द्र के दोनों हाथों का पाश, जो उसकी छाती पर था उसे खोलने का जोरों से प्रयास कर रही थी। सरिता की छाती फिर से श्रम के कारण हांफने से ऊपर निचे हो रही थी। सरिता की परिपक्व स्तन ऐसे फुले हुए थे जैसे कोई दो बड़े गोल बैंगन उसकी छाती में रख दिए गए हों।
सरिता के जोर जोर से सांस लेने से वह ऐसे फ़ैल रहे थे और ऊपर नीचे हो रहे थे जिसको देखकर किसीका भी लण्ड फुफकारे मारने लगे। धर्मेन्द्र के बाहों में सरिता के बड़े स्तन इतने दबे हुए थे फिर भी वह दबने से फूलने के कारण धर्मेन्द्र के हाथ के दोनों तरफ फ़ैल रहे थे और साफ दिख रहे थे। “Sex Ka Khula Aamantran”
धर्मेन्द्र ने सरिता के दोनों पांवों को अपने दोनों पांवों के बिच में फँसा कर उसकी गांड के पीछे अपना लण्ड दबा रखा था। सरिता असहाय हो कर फड़फड़ा रही थी। साथ ही साथ सरिता धर्मेन्द्र को उल्ट पुलट बोल कर उकसा भी रही थी.
“साले छोड़ मुझे। तू क्या सोच रहा है, मैं इतनी आसानी से फँस जाउंगी। अरे तू मुझे क्या फाँसेगा, देख मैं कैसे भाग जाती हूँ। ताकत है तो रोक ले मुझे। मैं भी देखती हूँ तू क्या कर सकता है। अरे तुझमें ताकत है तो अपनी मर्दानगी दिखा मुझे।” ऐसा और कई बातें बोलकर जैसे वह धर्मेन्द्र को और भड़काना चाहती थी। पर धर्मेन्द्र उसे कहाँ छोड़ने वाला था। धर्मेन्द्र ने सरिता को अपनी बाहोंमें ऐसे जकड कर कस के पकड़ा था की आज वह छूट नहीं सकती थी।
सरिता के जवाब में धर्मेन्द्र भी बोलने लगा, “साली, तू क्या समझती है? मैं क्या कोई ऐसा वैसा ढीलाढाला नरम मर्द हूँ जो तु मुझसे इतनी आसानी से पिंड छुड़ा कर भाग जायेगी और फिर मुझे इशारा कर के उकसाती और भड़काती रहेगी? मैं जानता हूँ की तेरी चूत में मेरे लण्ड के लिए बहुत खुजली हो रही है। “Sex Ka Khula Aamantran”
इसी लिए तू मुझे हमेशा उकसाती और भड़काती रहती है। अगर तु मुझे पसंद नहीं करती है तो मुझे अभी बोल दे, मैं तुझे इसी वक्त छोड़ दूंगा। मैं तेरे पर कोई जबरदस्ती नहीं करूंगा, पर तू मुझे चुनौती मत दे और यह मत सोच की अगर तू मुझे उकसाएगी तो मैं चुपचाप बैठूंगा। तुझे मेरी मर्दानगी देखनी है न? तो मैं तुझे आज मेरी मर्दानगी दिखाऊंगा।”
उस तरफ सरिता भी कोई कम नहीं थी। वह बोली, “अच्छा? तू मुझे चुनौती दे रहा है? अरे तू मुझे अपनी मर्जी से क्या छोड़ेगा? मैं कोई तुझसे कम नहीं हूँ। मैं खुद ही इतनी ताकतवर हूँ की तुझको आसानी से मात दे दूंगी। और तू क्या कहता है, मैं तुझे यह कह कर मुझे छोड़ने के लिए भीख मांगू की तू मुझे पसंद नहीं है?
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अरे पसंद नापसंद की तो बात ही नहीं है। जो मुझे वश में कर लेगा मैं तो उसीकी बनकर रहूंगी। तुझमें यदि ताकत है तो मुझे उठाकर कमरे में ले जा और दिखा अपनी मर्दानगी। तू क्या सोच रहा था की आज घर में कोई नहीं है तो क्या मैं तुझसे ड़र जाउंगी? मैं डरने वालों में से नहीं।”
यह साफ़ था की सरिता धर्मेन्द्र से छूटना नहीं चाहती थी। वह धर्मेन्द्र को मर्दानगी की बार बार चुनौती देकर शायद यह साबित करना चाहती थी की अगर धर्मेन्द्र को उसे चोदना है तो उसे वश में करना पडेगा। मेरे लिए भी यह प्रसंग कोई पिक्चर के उत्तेजक द्रश्य से कम नहीं था। “Sex Ka Khula Aamantran”
मेरा भी लण्ड खड़ा हो गया और मेरे जांघिए में फटकार मारने लगा। मेरा हाथ बार बार मेरे पांवों के बिच में जाकर मेरे चिकने लण्ड को सहलाने लगा। अगर सरिता धर्मेन्द्र को कहती की धर्मेन्द्र उसे पसंद नहीं तो धर्मेन्द्र उसे छोड़ देता।
यह साफ़ था की धर्मेन्द्र उसपर जबरदस्ती या बलात्कार करना नहीं चाहता था। पर वह तो धर्मेन्द्र को बार बार चुनौती दे कर के उसके चुंगुल में फंसना ही चाहती थी, ऐसा मुझे साफ़ साफ़ लगा। बस फर्क सिर्फ इतना ही था की वह धर्मेन्द्र को उसे चोदने का खुल्लम खुल्ला आमत्रण नहीं दे रही थी।
शायद कोई भी साधारण नारी कोई भी मर्द से चुदवाने के लिए ऐसा खुल्लम खुल्ला निमत्रण नहीं देगी। जब धर्मेन्द्र ने सरिता से सूना की वह धर्मेन्द्र को चुनौती दे रही थी की अगर धर्मेन्द्र उसे वश में कर लेगा तो सरिता उसीकी बन जायेगी, तो धर्मेन्द्र में अजब का जोश आगया।
उसने सरिता की गांड अपने दोनों पाँव के बिच में फँसायी और पिछेसे उसे धक्का मारने लगा। उपरसे अपने हाथों का पाश थोड़ा ढीला करके एक हाथ उसने हटाया और वह सरिता के मम्मों को दबाने लगा। “Sex Ka Khula Aamantran”
सरिता को एक मौक़ा मिल गया। जैसे ही धर्मेन्द्र का पाश थोड़ा ढीला पड़ा की सरिता ने एक धक्का देकर धर्मेन्द्र का हाथ हटा दिया और भागने लगी। पर उसके पाँव तो धर्मेन्द्र के पाँव में फंसे हुए थे। भागती कैसे?सरिता धड़ाम से निचे गिर पड़ी। साथ में अपना संतुलन न रखने के कारण धर्मेन्द्र भी साथ में सरिता के ऊपर गिरा।
तब सरिता निचे और धर्मेन्द्र ऊपर हो गए। मैंने देखा की धर्मेन्द्र ने सरिता को जमींन पर लेटे हुए अपनी बाहों में ले लिया। अब उसके होंठ सरिता के होंठों से लगे हुए थे। उसने अपने होंठ सरिता के होंठों पर भींच दिए और सरिता के होंठों को चुम्बन करने लगा।
उसका कड़ा लण्ड सरिता के घाघरे के उपरसे उसकी चूत में ठोकर मार रहा था। सरिता धर्मेन्द्र के दोनों बाँहों में फँसी हुई थी। धर्मेन्द्र ने सरिता को अपने निचे ऐसे दबा रखा था की हिलना तो दूर की बात, सरिता साँस भी ठीक तरह से ले नहीं पा रही थी।
मुझे तब लगा की सरिता भी अब धर्मेन्द्र के चुंगल में फँस ही गयी। धर्मेन्द्र के मुंह की लार उसके मुंह में जाने लगी। धर्मेन्द्र ने अपनी जीभ से सरिता के होंठ खोले और उसमें अपनी जीभ घुसेड़ी। आखिर में विरोध करते हुए भी सरिता ने अपना मुंह खोला और धर्मेन्द्र की लार अपने मुंहमें चाव से निगल ने लगी। “Sex Ka Khula Aamantran”
धर्मेन्द्र अपनी जीभ मुंह में डाल ने की कोशिश कर रहा था। थोड़े से औपचारिक विरोध के बाद सरिता ने जीभ को मुंह में ले लिया और उसे चूसने लगी। अब ऐसा लग रहा था की सरिता आखिर में धर्मेन्द्र के चँगुल में फँस ही गयी थी।
जब धर्मेन्द्र ने देखा की सरिता अब उसके जाल में फँस गयी है और धर्मेन्द्र के वजन से दबने के कारण वह ठीक से सांस नहीं ले पा रही थी, तो धर्मेन्द्र को सरिता पर तरस आगया। वह थोड़ा शिथिल हो गया। वह सरिता के उपरसे थोड़ा खिसका ताकि सरिता ठीक से सांस ले सके।
पर सरिता भी तो एक जंगली बिल्ली से कम नहीं थी वह इतनी आसानी से फँसने वाली नहीं थी। जैसे ही धर्मेन्द्र खिसका की सरिता उठ खड़ी हुई और उसने एक जोर का धक्का लगा कर धर्मेन्द्र को एक तरफ गिरा दिया और एक लम्बी छलांग मार के कमरे में से बाहर की और भागी।
भागते हुए वह धर्मेन्द्र को अपना अंगूठा दिखाकर बोली, “ले लेते जा। मैं देखती हूँ तू मुझे अब कैसे पकड़ता है। अब मैं तेरे हाथ में नहीं आने वाली। बड़ा मर्द बनता फिरता है। हिम्मत है तो अब बाहर रास्ते पर आ और फिर मुझे पकड़ के दिखा।” “Sex Ka Khula Aamantran”
उस समय धर्मेन्द्र के चेहरे के भाव देखते ही बनाते थे। पहले तो वह भौंचक्का सा देखता रहा और फिर वह एकदम झल्लाया और उसके मुंह से निकल ही पड़ा, “यह मादर चोद की औलाद ऐसे नहीं मानेगी। अब मैं तुझे दिखाता हूँ की मर्दानगी किसे कहते हैं।“
ऐसा बोलकर वह भी घर के बाहर सरिता के पीछे दौड़ पड़ा। सरिता भागती हुई थोड़ी आगे निकली की एक और से कोई कार आ रही थी तो उसे रुकना पड़ा। इतना समय धर्मेन्द्र के लिए काफी था। धर्मेन्द्र ने एक छलांग लगाई और सरिता को पकड़ा और उसे अपनी बाहों में उठा कर वापस घर में ले आया।
सरिता उसकी बाहोंमें छटपटाती रही और बोलती रही, “अरे साले हरामी, एक गाडी आगयी तो मुझे रुकना पड़ा, जो तूने मुझे पकड़ लिया। इसमें कौन सी बहादुरी है?” ऐसा बोलते हुए सरिता कई हलकी भारी गालियां धर्मेन्द्र को देती रही और जोर जोर से हाथ धर्मेन्द्र के सीने में पिट पिट कर मारने लगी और जोर से पाँव आगे पीछे करती रही। “Sex Ka Khula Aamantran”
हाथ पाँव मार कर अपने आपको छुड़ाने की कितनी कोशिशें की। पर अब धर्मेन्द्र एकदम सतर्क था। उसने सरिता को हिलने का ज़रा भी मौक़ा नहीं दिया। रास्ते में कई लोग यह तमाशा देखते भी रहे पर धर्मेन्द्र ने उसकी परवाह किये बिना उसे घर में ले आया।
जैसे ही वह घरमें घुसा तो उसने मुझसे कहा, “छोटे भैया, घर का दरवाजा अंदर से बंद करलो प्लीज। आज मैं इस लौंडियाँ को मेरी मर्दानगी दिखाता हूँ। कोई भी आ जाये तो दरवाजा मत खोलना जब तक मैं इस लौंडियाँ से निपट न लूँ। आज मैं इसकी बजा कर ही छोडूंगा। बेशक देखना चाहो तो आप भी देख लो।“
मैं सरिता को देख रहा था। धर्मेन्द्र की बाहों में वह छटपटा रही थी और छूटने की कोशिश में लगी हुई थी पर उसने एक भी बार न तो मुझे न तो रास्तेमें खड़े तमाशाबीन लोगों को चिल्ला कर बचाने के लिए आवाज लगाई।
मैं सोच रहा था की कहीं धर्मेन्द्र सरिता पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? मैंने थोड़ा घबड़ाते हुए सरिता से चिल्ला कर पूछा, “सरिता, क्या धर्मेन्द्र तुम पर बलात्कार तो नहीं कर रहा? क्या मैं तुम्हारी मदद करूँ? क्या मैं दूसरे लोगों को बुलाऊँ?”
सरिता ने भी चिल्लाते हुए मुझे जवाब में कहा, “अरे यह भड़वा क्या मुझ पर बलात्कार करेगा? मुझमें अपने आप को छुड़ाने की पूरी क्षमता है। अगर मैं न चाहूँ तो यह मुझे छू भी नहीं सकता। आप निश्चिन्त रहो। मुझे कोई भी मदद नहीं चाहिए। अब यह मामला मेरे और धर्मेन्द्र के बिच का है।” “Sex Ka Khula Aamantran”
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सरिता खुद धर्मेन्द्र से निपटना चाहती थी। वह शायद जानती भी थी की धर्मेन्द्र उसे नहीं छोड़ेगा। वह जानती थी की धर्मेन्द्र उसे चोद कर ही छोड़ेगा। यह साफ़ था की वह भी धर्मेन्द्र से चुदवाना चाहती थी। वह हांफ रही थी, पर उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव था। वह मदमस्त लग रही थी। उसकी जवानी और खिली हुई लग रही थी। सरिता की आँखों में एक अजीब सा नशा छाया हुआ था।
शायद कोई औरत यह जानते हुए की अब थोड़ी ही देर में पहली बार उसकी चुदाई होने वाली है, उसके मुंह पर शायद ऐसे ही भाव होंगे, क्यूंकि अब मुझे पूरा यकीन हो गया था की सरिता धर्मेन्द्र से उस दिन जरूर चुदने वाली थी। सरिता भी अब अच्छी तरह समझ गयी थी की उसकी सील उसदिन टूटने वाली थी। वह तो कई महीनों से इसका इंतजार कर रही थी। पर शायद वह धर्मेन्द्र को परखना चाहती थी। वह ऐसे वैसे किसी भी मर्द को अपनी इज्ज़त आसानी से देने वाली नहीं थी। आगे की कहानी अगले भाग में. “Sex Ka Khula Aamantran”