Bada Lund
मेरा नाम दिव्यांश सिंह है.. मैं रायपुर का रहने वाला हूँ। मैं बताना चाहता हूँ कि मैं घर पर अकेला ही रहता हूँ। मॉम-डैड पास ही एक गाँव में रहते हैं। वैसे तो अभी मैं ग्रॅजुयेट हुआ हूँ, तो जॉब के बारे में कुछ सोचा नहीं… बस घर पर ही रहकर अपनी आगे की पढ़ाई करता हूँ और डिफेन्स की तैयारी कर रहा हूँ। Bada Lund
वैसे भी मुझे डिफेन्स में जाने की बचपन से ही बहुत इच्छा थी और इसीलिए अपनी बॉडी को भी फिट कर रखा है। मेरा कद 5 फिट 10 इंच है और मैं दिखने में भी काफ़ी आकर्षक हूँ। शायद इसीलिए लड़कियां मुझे देख कर ‘आहें’ भरती हैं। अब मैं आपको अपनी कहानी पर ले चलता हूँ।
ये बात उन दिनों की है जब मैंने कॉलेज में प्रवेश लिया था। यहाँ आए तो नया कॉलेज और नए लोग थे, पर जल्द ही अपने मस्त और हँसमुख व्यवहार के कारण बहुत मेरे सारे दोस्त बन गए। उन्हीं में से एक ख़ास दोस्त शिखा भी थी.. जिसे देखकर तो मेरा सुर ही बदल जाता है।
वो भी दिखने में बहुत सुन्दर.. एकदम अप्सरा लगती है। उसके जिस्म के 36-32-36 कटाव भी क्या खूबसूरत थे.. वैसे तो हम एक-दूसरे को बस देखते थे.. खूब सारी बातें करते थे और एक-दूसरे को देख कर मुस्कुरा देते थे, पर एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि हम इतने करीब आ गए कि आज भी हम एक-दूसरे को अलग करने को तैयार नहीं हैं।
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उस समय गर्मियों के दिन थे और कॉलेज में भी छुट्टियाँ होने वाली थीं। इम्तिहान हो चुके थे बस परिणाम आने का इंतजार था। शाम के वक्त मैं छत पर कुछ दोस्तों के साथ मस्ती कर रहा था कि अचानक नीचे देखा कि शिखा आ रही है।
अब उस समय गर्मी थी और हम सब दोस्त तो ऐसे ही सादा हाफ लोवर और टी-शर्ट में थे। मैं जल्दी अन्दर गया और कपड़े बदल कर वापस आया तो देखा कि खिड़की पर शिखा जो कि पहले ही आ गई थी। मैं कुछ कह पता कि शिखा ने खुद ही टोक दिया- आपकी ज़िप खुली है।
अब मेरी हालत पहले तो खराब थी ही बाकी शिखा की बात सुनकर मैंने जल्दी से अपनी ज़िप बन्द की। फिर हम दोनों कमरे में आकर सोफे पर बैठ गए और शायद तब तक सारे दोस्त भी चले गए थे। मैं उस वक्त घर पर अकेला ही था।
मुझे चाय पीना बहुत अच्छी लगती है, इसीलिए मैं थोड़ी देर बात करने के बाद रसोई में चला गया। थोड़ी देर बाद जो मैंने देखा तो उस पल मेरा तो बुरा हाल हो गया। मैं चाय बना ही रहा था कि पीछे से शिखा आई और मुझसे लिपट गई। “Bada Lund”
अब मेरा तो पहले से ही दिमाग़ काम नहीं कर रहा था.. फिर ऊपर से ये शिखा की मस्त हरकत। मैंने पीछे से शिखा के हाथ को पकड़ कर आगे किया ही था कि वो मेरे सीने से लिपट गई और अपनी तेज हो रही सांसों से मेरे दिल में आग लगाने लगी।
मैं भी थोड़ा गर्म हो रहा था तो मैंने गैस बन्द की और शिखा से कुछ कहने ही वाला था कि उसके होंठों ने मेरे होंठों को खूब कस कर जकड़ लिया। अब मुझे भी थोड़ा-थोड़ा सुरूर छाने लगा। मैंने शिखा को अपनी बाहों में भर लिया और उसके चुम्बन का जवाब देने लगा। “Bada Lund”
उफ्फ.. उसके होंठ कितने मस्त थे कि उसे छोड़ने का मन ही नहीं कर रहा था। करीब 15 मिनट तक चूमा-चाटी के बाद मैंने शिखा को अपनी गोद में उठा लिया और अपने कमरे में ले गया। हमारा घर थोड़ा बड़ा है तो कमरे भी बड़े ही बनवाए गए हैं।
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मैंने शिखा को अपने बिस्तर पर बड़े प्यार से लिटाया और फिर मैं भी उसके बगल में लेट गया और उसके होंठों को चूमने लगा। अब अपने हाथों को उसकी ब्रा पर फेरने लगा। फिर धीरे से उसके कपड़ों को उतारने लगा। वो भी मेरा साथ दे रही थी।
मैं उसके होंठों को.. गालों को… माथे को.. कान के पास और फिर गले पर और कंधे पर जी भर कर चूमने लगा। अब शिखा मेरे सामने सिर्फ सफ़ेद ब्रा और गुलाबी पैन्टी में थी और मैं उसकी ब्रा को उतारने लगा… तो शिखा मेरे बेल्ट को ढीला करके मेरे बाबूलाल (लौड़े) को निकालने लगी। “Bada Lund”
ब्रा के खुलते ही शिखा मेरे बाबूलाल को अपने हाथों से सहलाने लगी और कहने लगी- यह कितना बड़ा है?
मैंने कहा- मुझे नहीं पता…
तो वो उठी और वहीं से स्केल उठा कर मेरे बाबूलाल को नापने लगी।
वो खुशी से चिल्लाई- हे भगवान… पूरा 9 इंच का है…
मुझे भी यकीन नहीं हुआ.. क्योंकि पहली बार किसी लड़की ने मेरे लौड़े को हाथों से सहलाया था। फिर शिखा ने मेरे बाबूलाल को अपने होंठों में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूमने लगी। मैं तो जैसे स्वर्ग में था… मैंने उसके बालों को पकड़ कर उससे अपने बाबूलाल को मस्ती से चुसवाने लगा। थोड़ी देर में ही मेरा निकलने वाला था।
मैंने कहा- मेरा सैलाब निकलने वाला है।
तो वो भी बड़े जोश से बोली- मुझे पिला दो अपना रस.. मैं तो बहुत दिनों से इसी रस की प्यासी थी।
जैसे ही मेरा निकलने वाला था तो शिखा ने बाबूलाल को दांतों में दबा लिया… सच में दोस्तों मुझे इतना अच्छा लगा कि मैं देर तक अपने बाबूलाल को वैसे ही लगाए रहा और शिखा मेरे बाबूलाल का रस पीकर बहुत खुश थी। फिर शिखा ने बाबूलाल को साफ़ किया और मेरे गालों पर काट लिया।
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तब मेरी आँखें खुलीं और फिर अब प्यार का मेरा नंबर था। मैं भी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता था। अब मैंने शिखा को बड़े ही प्यार से चूमते हुए चित्त लिटा दिया और उसकी गुलाबी पैन्टी को नीचे खींच कर उसके जिस्म से अलग कर दिया। हय.. उसकी चिकनी चमेली ने मेरे लौड़े की हालत फिर से खराब कर दी और मेरा बाबूलाल फिर से अंगड़ाई लेने लगा।
मैंने उसकी चूत की दरार में अपनी ऊँगली डाली, वो एकदम से चिहुंक गई.. रस से सराबोर उसकी चूत में मेरी ऊँगली घुसती चली गई। उसने मीठी सी सिसकारी लेकर मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने भी उसके ऊपर झुकते हुए उसकी नाभि को चूमा और अपने होंठों को उसकी चूत की तरफ लाना आरम्भ कर दिया। “Bada Lund”
‘दिव्यांश.. गुदगुदी होती है.. आह्ह..’
‘होने दो..’
मैं लगातार इस पल का मजा ले रहा था। फिर मेरी जीभ की नोक उसकी चूत की दरार में घुस गई और वो एकदम से अकड़ी और अगले ही पल वो झड़ गई, उसका नमकीन पानी मेरी जुबान से छुआ मैंने चपर चपर करते हुए उसके रस को चाट लिया।
वो शिथिल होकर मेरे सर को अपने हाथों से पकड़े हुए थी। अब मैंने बैठ कर उसको अपनी गोद में बिठाया और अपने सीने से लगा लिए। वो अपने दोनों पैर मेरी कमर में लपेटे हुए मुझसे चिपकी हुई थी। कुछ देर हम दोनों ऐसे ही लिपटे हुए बैठ रहे.. मेरा लवड़ा खड़ा हो कर उसकी चूत से स्पर्श कर रहा था।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके चूतड़ों को उठाया और उसकी चूत के छेद को लौड़े की नोक पर सैट किया। उसकी चूत अनछिदी थी। मेरा लौड़ा गीली चूत की दरार में घुस गया। उसके मुँह से एक तेज ‘आहहह..’ निकली पर मैंने उसको अपनी बाँहों में भींचा हुआ था। मैं कुछ देर तक उसके होंठों को अपने होंठो से दबा कर चूसता रहा और अपने चूतड़ों को उठाकर उसकी चूत में पेवस्त करने का मेरा प्रयास जारी था। “Bada Lund”
फिर मैंने उससे कहा- थोड़ा दर्द सहने को तैयार रहना अब मैं पूरा अन्दर करने जा रहा हूँ।
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उसकी बन्द आखों ने मौन स्वीकृति दी और मैंने अपने पूरी ताकत से लवड़े को उसकी चूत में ठूंस दिया। वो चिल्लाना चाहती थी पर मैं सजग था। मेरे होंठ उसकी आवाज पर पहरा दे रहे थे। कुछ देर तड़फने के बाद वो शिथिल हो गई। मैंने भी उसको नीचे से ठोकरें लगाना आरम्भ कर दीं। फिर जब वो कुछ सामान्य हुई तो मैंने कुछ इस तरह उसको लिटाया कि मेरा बाबूलाल उसकी मुनिया में ही रहा और उसी वक्त मुझे हल्के से खून की लालिमा दिखी पर मैं चुप रहा।
और अब पूरी तरह से उसके ऊपर चढ़ कर मैंने उसकी चुदाई आरम्भ कर दी। कुछेक मिनट बाद वो अकड़ गई और झड़ गई पर मेरी धकापेल चालू थी फिर दस मिनट की चुदाई के बाद उसकी चूत ने फिर से अपना रस छोड़ना चालू किया तो मेरा बाबूलाल भी चूत के दरिया में डूब कर अपनी जान दे बैठा.. उसने उलटी कर दी थी। हम दोनों ही निढाल हो कर एक दूसरे से चिपक कर लेटे रहे। कुछ देर बाद उठे और फिर एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे। यह हमारे मिलन की दास्तान थी।